Book Title: Angsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003553/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ.उवासगॅर्टेसा ओ.अंतगडदसाझा अणूतरोववाहयदसाओ.पाहावागरणाई.विवागसूर्य VAAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAV HOM ( 58) वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल Hain Education International For Bevate & Personal use only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान् महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में निग्गंथं पावयणं अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ • उवासगदसाओ . अंतगडदसाओ • अणुत्तरोषवाइयदसाओ • पण्हावागरणाई विवागसुयं वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबंध सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया, निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन (जैन विश्व भारती) आर्थिक सहायक श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम संवत् २०३१ कार्तिक कृष्णा १३ (२५०० वां निर्वाण दिवस) पृष्ठांक । ६२५ मूल्य : ८०/ मुद्रक :एस. नारायण एण्ड संस (प्रिंटिंग प्रेस) ७११७/१८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGA SUTTĀNI III NAYADHAMMAKAHÃO. UWĀSAGADASÃO. ANTAGADADASÃO. ANUTTAROWAWAIYADASAO. PANHAWAGARANAIN. VIVAGASUYAM. (Original text Critically edited) Vaćanā PRAMUKHA ĀCĀRYA TULASI EDITOR MUNI NATHAMAL Publisher JAIN VISWA BHARATI LADNUN (Rajasthan) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Managing Editor Shreechand Rampuria. Director : Āgama and Sahitya Publication Dept. JAIN VISHWA BHARATI, LADNUN Financial Assistance Sri Ramlal Hansraj Golchha Biratnagar (Nepal) V.S. 2031 Kārtic Kệishna 13 2500th Nirvaņa Day Pages 925 Rs. 801 Printers : S. Narayan & Sons (Printing Press) 7117/18, Pahari Dhiraj, Delhi-6 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुट्ठो वि पण्णा- पुरिसो सुदक्खो, आणा पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स पणिहाण पुष्वं ॥ विलोडियं लद्धं आगमदुद्धमेव, णवणीयमच्छं । सुलद्धं सज्झाय सज्झाण रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स पवाहिया जेण सुयस्स गणे समत्थे मम जो हेउभूओ स्स कालुस्स तस्स समर्पण पणिहाणपुव्वं ॥ धारा, माणसे वि । पवायणस्स, पणिहाणपव्वं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था । सत्य योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । जिसने आगम- दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत श्रुत सध्या लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से 1 जिसने श्रुत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत श्रुत कालुगणी को विमल भाव से । सम्पादन में, - Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम-निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अतः मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है संपादक: सहयोगी: पाठ-संशोधन : मुनि नथमल मुनि दुलहराज मुनि सुदर्शन मुनि मधुकर मुनि हीरालाल संविभाग हमारा धर्म है। जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता है और कामना करता है कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थानुक्रम १. प्रकाशकीय २. सम्पादकीय ३. भूमिका (हिन्दी) ४. भूमिका (अंग्रेजी) ५. विषयानुक्रम ६. संकेत निर्देशिका ७. नायाधम्मकहाओ ८. उवासगदसाओ ६. अंतगडदसाओ १०. अणुत्तरोववाइयदसाओ ११. पण्हावागरणाई १२. विवागसुयं ५३६ ६११ ६३५ ७१४ परिशिष्ट १. संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार-स्थल २. पूरक पाठ ३. शुद्धिपत्रम् Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय सन् १९६७ की बात है। आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुंचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था। मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में 'गांधी विद्या-मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है । 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये ? दोनों संस्थान एक दूसरे के पूरक होंगे । सुझाव पर विचार हुआ। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ (सरदारशहर) को बम्बई बुलाया गया। सारी बातें उनके सामने रखी गई और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दृष्टि से 'गांधी विद्या-मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से थी गोपीचन्दजी चोपड़ा और मैं तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादूलालजी आछा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हुए । श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे । सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ । श्री दूगड़जी ने 'गांधी विद्या-मन्दिर' की प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया । 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया। सरदारशहर 'जैन विश्व-भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा। आगे के कदम इसी ओर बढ़े। आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे। आचार्यश्री ने बीच में पैर थामे और मुझ से कहा "जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कैसा सुन्दर शान्त वातावरण है।" 'जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य-रूप में आगे बढ़ाने की दृष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे । (सरदारशहर) प्रतिक्रमण के बाद का समय था । पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिखर पर काँच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे। मैं उनके सामने बैठा था। वचनबद्ध हुआ कि यदि 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती है, तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा। उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए । आचार्यश्री ऊटी (उटकमण्ड) पधारे । वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बैंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की बात ठहरी। इस तरह नंदी गिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मात-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडन (राजस्थान) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म-स्थान भी है। आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हाथ में लिया। कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० २०१३ में लाडनूं में आचार्य श्री के दर्शन प्राप्त हुए। कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में दशवकालिक सूत्र के अपने अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे । आचार्यश्री मुग्ध हुए। मुनिश्री नथमलजी ने फरमाया-"ऐसा ही प्रकाशन ईप्सित है।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम-सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही १. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला : मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला : मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला : आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला : आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला : आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में-(१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि, (२) आयारो तह आयारचूला, (३) निसीहज्झयणं, (४) उववाइयं और (५) समवाओ प्रकाशित हुए। रायपसेणइयं एवं सूयगडो (प्रथम श्रुतस्कन्ध) का मुद्रण-कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर बे प्रकाशित नहीं हो पाए। दूसरी ग्रन्थमाला में-(१) दसवेआलियं एवं (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और भाग २) प्रकाशित हुए। समवायांग का मुद्रण-कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया। तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 99 चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ। पाँचवीं ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. १) और (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. २) । उक्त प्रकाशन-कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविंदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी) का बहुत बड़ा अनुदान महासभा को रहा । अनूदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त हुआ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्यों गंज रहे हैं"धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन-कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हैं, उनकी बराबरी कौन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य-दीपक जलता रहा। __ कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा (विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया। आचार्यश्री की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जैन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है। प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंगसत्ताणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है : प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय-ये प्रथम चार अंग हैं। दूसरे खण्ड में भगवती–पाँचवाँ अंग है। तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं। इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आगम-सुत्त ग्रंथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है। ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण-कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा। केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है; जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है। दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन मूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है। 'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ मद्रण-कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते। मुद्रण-कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकत्ता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन (भूतपूर्व मुनि) की समर्पित सेवा भी स्मरणीय है। इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है। आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है। 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोड़िया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा। इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। सन् १९७३ में मैं जैन विश्व-भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चना गया। तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे। दिल्ली में मद्रण की व्यवस्था बैठाई गई। कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रुतगति नहीं आई। आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हुआ तभी यह कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ा । स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है। उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है। मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया । मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सुन्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत्वंद्य श्रमण भगवान महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है। ४६८४, अंसारी रोड़ २१, दरियागंज दिल्ली-६ श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन जैन विश्व-भारती Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय ग्रन्थ-बोध आगम सूत्रों के मौलिक विभाग दो हैं - अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य । अंग-प्रविष्ट सूत्र महावीर के मुख्य शिष्य गणधर द्वारा रचित होने के कारण सर्वाधिक मौलिक और प्रामाणिक माने जाते हैं । उनकी संख्या बारह है- १. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ६ ज्ञाताधर्मकथा ७. उपासकदशा ८. अंतकृतदशा ६. अनुत्तरोपपातिकदसा १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकश्रुत १२. दृष्टिवाद । बारहवां अंग अभी प्राप्त नहीं है । शेष ग्यारह अंग तीन भागों में प्रकाशित हो रहे हैं। प्रथम भाग में चार अंग हैं - १. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग और ४. समवायांग, दूसरे भाग में केवल व्याख्याप्रज्ञप्ति और तीसरे भाग में शेष छह अंग । प्रस्तुत भाग अंग साहित्य का तीसरा भाग है । इसमें नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाई और विवागसुयं — इन ६ अंगों का पाठान्तर सहित मूल पाठ है । प्रारम्भ में संक्षिप्त भूमिका है । विस्तृत भूमिका और शब्द-सूची इसके साथ सम्बद्ध नहीं है । उनके लिए दो स्वतन्त्र भागों की परिकल्पना है। उसके अनुसार चौथे भाग में ग्यारह अंगों की भूमिका और पांचवें भाग में उनकी शब्द - सूची होगी । प्रस्तुत पाठ और सम्पादन-पद्धति हम पाठ संशोधन की स्वीकृत पद्धति के अनुसार किसी एक ही प्रति को मुख्य मानकर नहीं चलते, किन्तु अर्थ-मीमांसा, पूर्वापरप्रसंग, पूर्ववर्ती पाठ और अन्य आगम-सूत्रों के पाठ तथा वृत्तिगत व्याख्या को ध्यान में रखकर मूलपाठ का निर्धारण करते हैं । लेखनकार्य में कुछ त्रुटियां हुई हैं। कुछ त्रुटियां मौलिक सिद्धान्त से सम्बद्ध हैं । वे कब हुई यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता । पाठ के संक्षेप या विस्तार करने में हुई हैं, यह संभावना की जा सकती है । 'नायाधम्मक हाओ' १५५६ में बारह व्रत और पांच महाव्रतों का उल्लेख है । स्थानांग ४।१३६, उत्तराध्ययन २३।२३-२८ के अनुसार यह पाठ शुद्ध नहीं है । बाईस तीर्थंकरों के युग में चातुर्याम धर्म होता है, पांच महाव्रत और द्वादशव्रत रूप धर्म नहीं होता। ऐसा प्रतीत होता है कि अगार - विनय और अनगारविनय का पाठ ओवाइय सूत्र के अगारधर्म और अनगारधर्म के आधार पर पूरा किया गया है । इसलिए जो वर्णन वहां था वह यहां आ गया। हमने इस पाठ की पूर्ति रायपसेणइय सूत्र के आधार Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ पर की है, देखें – नायाधम्मकहाओ पृष्ठ १२२ का सातवां पाद-टिप्पण । इस प्रकार के आलोच्य पाठ नायाधम्मकहाओ १।१२।३६, १ १६ २१, १/१६/४६ में भी मिलता है । प्रश्नव्याकरण सूत्र १०/४ में 'कायवर' पाठ मिलता है । वृत्तिकार ने इसका अर्थ 'काचवर' – प्रधान काच दिया है, किन्तु यह पाठ शुद्ध नहीं है । लिपि दोष के कारण मूलपाठ विकृत हो गया । निशीथाध्ययनके ग्यारहवें उद्देशक (सूत्र १) में 'कायपायाणिवा और वइरपायाणिवा' दो स्वतन्त्र पाठ हैं। वहां भी पात्र का प्रकरण है और यहां भी पात्र का प्रकरण है । काँचपात्र और वज्रपात्र -- दोनों मुनि के लिए निषिद्ध हैं । इस आधार पर यहां भी 'वर' के स्थान पर 'वइर' पाठ का स्वीकार औचित्यपूर्ण है । लिपिकाल में इस प्रकार का वर्ण विपर्यय अन्यत्र भी हुआ है । 'जात' के स्थान पर 'जाव' तथा 'पचकमण' के स्थान पर 'एवंकमण' पाठ मिलता है । पाठ-संशोधन में इस प्रकार के अनेक विचित्र पाठ मिलते हैं । उनका निर्धारण विभिन्न स्रोतों से किया जाता है । प्रतिपरिचय १. नायाधम्मकहाओ क. ताडपत्रीय ( फोटोप्रिंट) मूलपाठ - यह प्रति जेसलमेर भंडार से प्राप्त है । यह अनुमानतः बारहवीं शताब्दी की है । ख. नायाधम्मकहाओ (पंचपाठी) मूल पाठ वृत्ति सहित -- यह प्रति गया पुस्तकालय, सरदारशहर की है । पत्र के चारों ओर हासियों (Margin) में वृत्ति लिखी हुई है । इसके पत्र १८६ तथा पृष्ठ ३७२ हैं । प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। पत्र में मूलपाठ की १ से १३ तक पक्तियां हैं । प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ३८ तक अक्षर हैं । प्रति स्पष्ट और कलात्मक है । बीच में तथा इथर-उधर वापिकाएं हैं। यह अनुमानतः १४-१५ शताब्दी की होनी चाहिए । प्रति के अंत में टीकाकार द्वारा उद्धृत प्रशस्ति के ११ श्लोक हैं । उनमें अन्तिम श्लोक यह है - एकादशसु गतेष्वथ विंशत्यधिकेषु विक्रमसमानां । अणहिलपाटकनगरे भाद्रवद्वितीयां पज्जुसणसिद्धयं ॥ १ ॥ समाप्तेयं ज्ञाताधर्म प्रदेशटीकेति ॥ छ ॥ ४२५५ ग्रंथाग्रं ॥ वृत्ति । एवं सूत्र वृत्ति ९७५५ ग्रंथाग्रं ॥ १ ॥ छ ॥ ग. नायाधम्मकहाओ ( मूलपाठ ) यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर की है । इसके पत्र ११० तथा पृष्ठ २२० हैं । प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ४८ से ५३ तक अक्षर हैं । प्रति जीर्ण-सी है। बीच में बावड़ी है । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिपि संवत् १५५४ है । अंतिम प्रशस्ति में लिखा है-संवत् १५५४ वर्षे प्रथम श्रावण वदि २ रवौ । श्री श्री श्री शीरोही नगरे । राया राउ श्रीजगमालराज्ये ॥ श्रीत पागच्छे गच्छनायकश्रीसमतिसाधसरि । तत्पटटे श्रीहेमविमलसरिराज्ये । महोपाध्याय श्रीअनंतहंसगणीनां उपदेशेन ॥ साह श्री सूरा लिखापितं ॥ जोसी पोपा लिखितं ॥ भ्राति उज्जल संजुक्त घीआ लिखापितं ॥छ।छ।।१॥ इसके आगे १२ श्लोक लिखे हुए हैं। घ. टब्बा यह प्रति १२वें अध्ययन से आगे काम में ली गई है। २. उवासगदसाओक. उवासगदसाओ---मूल पाठ (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) इसकी पत्र संख्या २० व पृष्ठ ४० है। पत्र क्रमांक संख्या १८२ से २०२ तक है। फोटो प्रिंट पत्र संख्या ६ है व एक पत्र में ८ पृष्ठों का फोटो है। इसकी लम्बाई १४ इंच, चौड़ाई ३ इंच है। प्रत्येक पत्र में ४ से ६ तक पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४५ के करीब अक्षर हैं। प्रति के अन्त में 'ग्रन्थ ८१२' इतना ही लिखा हुआ है । संवत् वगैरह नहीं है पर विपाक सुत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ है। अतः उसके आधार पर यह ११८६ से पहले की ही मालूम पड़ती है। ख. उवासगदसाओ-टब्बेयुक्त पाठ (हस्तलिखित) यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ३६ तथा पृष्ठ ७२ हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की आठ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में करीब ५२ अक्षर हैं। पाठ के नीचे राजस्थानी में अर्थ लिखा हुआ है। प्रत्येक पृष्ठ १० इंच लम्बा व ४१ इंच चौड़ा है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति है संवत् १७७८ वर्षे मिति माघमासे कृष्णपक्षे पंचमीतिथी बुधवारे मुनिना सिवेनालेखि स्ववाचनाय श्रीमत्फतेपुरमध्ये श्रीरस्तु कल्याणमस्तु लेखकपाठकयोः श्रीः । ३. अंतगडदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट) । पत्र संख्या २०३ से २२२ तक । विपाक सूत्र के अंत में (पत्र संख्या २८५ में) लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार पत्रों से यह प्रति भी ११८६ से पहले की होनी चाहिए। ख. हस्तलिखित-गधया पुस्तकालय, सरदाशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की संयुक्त प्रति (उवासगदशा, अंतगड, अणुत्तरोववाइय) परिचय-देखें अणुत्तरोववाइय 'ख' प्रति-लेखन. संवत् १४६५ है। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ग. हस्तलिखित -- गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । यह प्रति पंचपाठी है । इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं । प्रत्येक पृष्ठ में १३ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १० इंच तथा चौड़ाई ४ इंच है । अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं। प्रति 'तकार' प्रधान तथा अपठित होने के कारण कहीं-कहीं अशुद्धियां भी हैं । प्रति के अंत में लेखन संवत् नहीं है । केवल इतना लिखा है-- ॥ छ ॥ ग्रंथाग्रं ८० ॥०|| || || पुण्यत्नसूरीणा | घ. यह प्रति या पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । इसके पत्र २० हैं । प्रत्येक पत्र में पाठ की पांच पंक्तियां हैं । प्रत्येक पंक्ति के बीच में टब्बा लिखा हुआ है । प्रति सुन्दर लिखी हुई है । पत्र की लम्बाई १० इंच व चो० ४३ इंच है। प्रति के अंत लिखे हुए हैं। में तीन दोहे रिणी हमारो ग्राम । गणेश हमारो नाम ||१|| मुन्नीलाल । पोसाल ॥ २ ॥ नाम । नाम ||३|| थली हमारौ देश गोत्र वंश है माहातमा, गणेश हमारा है पिता, बड़ो गच्छ है खरत्तरो, बीकानेर व्रत्मान है, राजपुतानां जंगलधर बादस्या, गंगासिंह श्रीरस्तु ॥ छ ॥ कल्याणमस्तु ॥ छ || मैं सुत उजियागर ४. अणुत्तरोववाइयदसाओ क. ताडपत्रीय ( फोटो प्रिंट) । पत्र संख्या २२३ से २२८ तक । विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार यह प्रति १९८६ से पहले है । ख. गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की ( उपासकदशा, अन्तकृत और अनुत्तरोपपातिक) संयुक्त प्रति है। इसके पत्र १५ तथा पृष्ठ ३० । प्रत्येक पत्र १३३ इंच लम्बा तथा ५३ इंच करीब चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में २३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ८२ अक्षर हैं । प्रति पठित तथा स्पष्ट लिखी हुई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है । उसके अनुसार यह प्रति १४९५ की लिखी हुई है :-- ऊकेशवंशो जयति प्रशंसापदं सुपर्वा बलिदत्तशोभः । डागाभिधा तत्र समस्ति शाखा पात्रावली वारितलोकतापा ॥ १ ॥ मुक्ताफलतुलां बिभ्रत् सद्वृत्तः सुगुणास्पदं । तस्यां श्रीशालभद्राख्यः सम्यचिरजायत || २ | Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ तदन्वयस्याभरणं बभूव वांगाभिधानः सुविशुद्धबुद्धिः । विवेकसत्संगतिलोचनाभ्यां दृष्ट्वा सुमार्ग य उरीचकार ॥३॥ तदंगजन्माजनि वाहडाख्यः सद्धर्मकर्मार्जनबद्धकक्षः । वक्षो यदीयं गुरुदेवभक्तिरलंचकाराब्जमिवालिराजी ॥४॥ क्रमेण तवंशविशालकेतु: कर्माविधः श्रावकपुंगवोभूत् । चित्रं कलावानपि यः प्रकामं बुधप्रमोदार्पणहेतुरुच्चैः ॥५॥ तदंगभूरभूत्साधु महणो द्रुहिणोपमः । राजहंसगतिः शश्वच्चतुराननतां दधत् ॥६॥ तस्यार्हदह्रियुगलाब्जमधुव्रतस्य यात्रादिभूरिसुकृतोच्चयकारकस्य । आसीदसामयशसः किल माव्हणाद्या देविप्रिया प्रणयिनी गिरिजेव शंभोः ॥७॥ तत्कुक्षिप्रभवाबभुवुरभितोप्युद्योतयंतः कुलं, चत्वारस्तनया नयाजितधना नाभ्यर्थना भीरवः । आद्यस्तत्र कुमारपाल इति विख्यातः परो वर्द्धनस्तार्तीयस्त्रिभवाभिधस्तदपरो गेलाह्वयोमा भूवि ॥८॥ चत्वारोपि व्यधुरधरितां मर्त्यधात्रीरुहस्ते, स्वौदार्येणातन्धनभूतो बांधवा धर्मकर्म । अन्योन्यं स्पर्द्धयेव प्रतिदिनमनयास्तेषु गेलाख्य भार्या, गंगा देवीति गंगावदमलहृदयास्तीह जैनांह्रिलीना ।।६।। तत्कुक्षिभूः श्रावक ऊदराज, आधो द्वितीयः किल बूट नामा। द्वावप्यभूतां गुरुदेवभक्तो मंदोदरी नाम सुता तथास्ति ॥१०॥ ऊदाख्यस्य सभीरीति माऊ बूटस्य च प्रिया । आसधरो मंडनश्व तयो पुत्रौ यथाक्रमम् ॥११॥ अमुना परिवारेण, सारेण सहिता शुभा। गंगादेवी गुरोर्वक्त्रादुपदेशामृतं पपौ ॥१२॥ आबाल्याद्धर्मकर्माणि तत्वान्यसौ निरंतरं । एकादशांगसूत्राणि लेखयामास हर्षतः ॥१३॥ विजयिनि खरतरगच्छे जिनभद्रसूरिसाम्राज्ये । गुण निधि वाद्धौंदु' मिते विक्रमभूपाद् व्रजति वर्षे ॥१४॥ गंगादेवी सुतोपेता, लेखयित्वांगपुस्तकं । दत्तेस्म श्रीतपोरलोपाध्यायेभ्यः प्रमोदतः ॥१५॥ ॥छ।। श्रीः ॥ हस्तलिखित प्रति गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । इसके पत्र ६ तथा पृष्ठ १५ हैं। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ४० तक अक्षर हैं। प्रति Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ख. ५. पन्हावागरणाई - क. ताडपत्रीय ( फोटो प्रिंट) मूलपाठ -- पत्र संख्या २२८ से २५६ ग. घ. च. क्व. की लम्बाई १० इंच तथा चौड़ाई ४ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति शुद्ध तथा 'त' प्रधान है। अंत में लेखन-संवत् तथा लिपिकर्ता का नाम नहीं है केवल निम्नोक्त वाक्य हैं ॥ छ ॥ अणुत्तरोववाइयदशांगं नवमं अंगं समत्तं छ । श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः छ छः प्रति का अनुमानित समय १६०० है । १५ पंचपाठी हस्तलिखित अनुमानित संवत् १२वीं सदी का उत्तरार्धं । । यह प्रति गया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र ८ हैं। प्रत्येक पत्र १० X ४ इंच है। मूलपाठ की पंक्तियां १ से १२ तथा पंक्ति में लगभग २३ से ३५ अक्षर हैं। चारों ओर वृत्ति तथा बीच में बावड़ी है । अन्तिम प्रशस्ति की जगह -- लिखा है । लेखन कर्ता तथा लिपि-संवत् का १३वीं शताब्दी की होनी चाहिए । ग्रंथाग्र १२५० शुभं भवतु कल्याणमस्तु | उल्लेख नहीं है किन्तु अनुमानतः यह प्रति त्रिपाठी (हस्तलिखित ) -- गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त इसके पत्र १११ हैं। प्रत्येक पत्र १०x४ इंच है। मूल पाठ की पंक्तियां १ से ८ तथा प्रत्येक पंक्ति में ३६ से ४६ तक लगभग अक्षर हैं। ऊपर नीचे दोनों तरफ वृत्ति तथा बीच में कलात्मक बावड़ी है । प्रति के उत्तरार्ध के बीच बीच के कई पन्ने लुप्त हैं। अंत में सिर्फ ग्रंथा १२५० । ।। श्री ।। छ || || लिखा है । लिपि संवत् अनुमानतः १६वीं शताब्दी होना चाहिए । मूलपाठ (सचित्र) -- पूनमचंद दुधोड़िया, छापर द्वारा प्राप्त। इसके पत्र २७ हैं। प्रत्येक पत्र १२४५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५१ से ६० तक अक्षर हैं । बीच में बावड़ी है तथा प्रथम दो पत्रों में सुनहरी कार्य किए हुए भगवान् महावीर और गौतम स्वामी के चित्र हैं । लेखन संवत् नहीं है पर यह प्रति अनुमानतः १५७० के लगभग की होनी चाहिए। अशुद्धि बहुल है। मूलपाठ तथा टब्बा की प्रति- गया 'पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त पत्र संख्या ५३ । यह प्रति वर्तमान में जैन विश्व भारती, लाडनूं में है। इसके पत्र १०३ तथा पृष्ठ २०६ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. विवागसूर्य क. ख. ग. है। बालावबोध पंचपाठी तक हैं। लेखन संवत् १६६७ E पंक्तियां नीचे में १ ऊपर में ११ तक हैं। अक्षर २८ से ३५ लेखक सुदर्शन प्रति काफी शुद्ध है। I मदनचन्दजी गोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) २६० से २८५ तक । ( मूलपाठ) पंक्तियां ५ से ६ तक । कुछ पंक्तियां अधूरी तथा कुछ अस्पष्ट हैं । प्रति प्रायः शुद्ध है। लेखन संवत् ११५६ आश्विन सुदि ३ सोमवार पुष्पिका काफी लम्बी है पर अस्पष्ट है । प्रति की लम्बाई १४ इंच तथा चौड़ाई १ लिखी हुई है । । इंच है और तीन कोष्ठकों में मूलपाठ यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र ३२ तथा पृष्ठ ६४ हैं । पत्रों की लम्बाई १० तथा चौड़ाई ४१ इंच है । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। कहीं-कहीं भाषा का अर्थ लिखा हुआ है । प्रति प्रायः शुद्ध है। अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है: ―― शुभं भवतु लेखकपाठकयोः । संवत् १६३३ वर्षे आसो वदि ८ रवि लिखितं छ । मूलपाठ- यह प्रति हनूतमलजी मांगीलालजी बँगानी बीदासर से प्राप्त हुई। इसके पत्र ३५ तथा पृष्ठ ७० हैं । प्रत्येक पत्र ११३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४५ से ४६ तक अक्षर हैं। प्रति अशुद्धि बहुल है। अन्तिम प्रशस्ति में- एक्कारस्यं अंगं समत्तं ॥ ग्रंथाग्र १२१६ ॥ टीका ६०० एतस्या | लिपि संवत् नहीं है, पर पत्रों की जीर्णता तथा अक्षरों की लिखावट से यह प्रति करीब ४०० वर्ष पुरानी होनी चाहिए। वृ. एम० सी मोदी तथा वी० जी० चोकसी द्वारा सम्पादित तथा गुर्जरग्रंथरत्न कार्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण १९३५ 'विवागस्यं । सहयोगानुभूति जैन-परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम याचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनव्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, तटस्थदृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ। हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन-कर्म के अनेक अंग हैं-पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन आदि-आदि । इन सभी प्रवत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है। मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनू । प्रस्तुत पाठ के सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है। मुनि बालचन्द्रजी, इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं। प्रति-शोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है। इसका ग्रंथ-परिमाण मुनि मोहनलाल (आमेट) ने तैयार किया है। कार्य-निष्पत्ति में इनके योगका मूल्यांकन करते हए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। __ आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता । यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। __ आगम के प्रबन्ध-सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारम्भ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। 'अंगसुत्ताणि' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है। 'जैन विश्व-भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्द जी सेठिया, 'जैन विश्व-भारती' तथा 'आदर्श साहित्य संघ' के कार्यकर्ताओं ने पाठ-सम्पादन में प्रयुक्त सामग्री के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है। एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारपुत्ति मात्र है। वास्तव में यह हम सब का पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। अणुव्रत विहार नई दिल्ली २५०० वां निर्वाण दिवस । मुनि नथमल Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका नायाधम्मक हाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का छठा अंग है । इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं । प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम 'नाया' और दूसरे श्रुतस्कन्ध का नाम 'धम्मकहाओ' है । दोनों श्रुतस्कन्धों का एकीकरण करने पर प्रस्तुत आगम का नाम 'नायाधम्मकहाओ' बनता है । 'नाया' (ज्ञात) का अर्थ उदाहरण और 'धम्मकहाओ' का अर्थ धर्म - आख्यायिका है । प्रस्तुत आगम में चरित और कल्पित —- दोनों प्रकार के दृष्टान्त और कथाएं हैं । ' जयधवला में प्रस्तुत आगम का नाम 'नाहधम्मकहा' (नाथधर्मकथा) मिलता है । नाथ का अर्थ है स्वामी । नाथधर्मकथा अर्थात् तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा । कुछ संस्कृत ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' उपलब्ध होता है। आचार्य अकलंक ने प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' बतलाया है।' आचार्य मलयगिरि और अभयदेवसूरि ने उदाहरण-प्रधान धर्मकथा को ज्ञाताधर्मकथा कहा है । उनके अनुसार प्रथम अध्ययन में 'ज्ञात' और दूसरे अध्ययन में 'धर्म - कथाएं' । दोनों ने 'ज्ञात पद के दीर्घीकरण का उल्लेख किया है। ' श्वेताम्बर साहित्य में भगवान् महावीर के वंश का नाम 'ज्ञात' और दिगम्बर साहित्य में 'नाथ' बतलाया गया है । इस आधार पर कुछ विद्वानों ने प्रस्तुत आगम के नाम के साथ भगवान् महावीर का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयत्न किया । उनके अनुसार ' ज्ञातृधर्मकथा' या 'नाथधर्मकथा' १. समवाओ, पद्दण्णगसमवाओ, सूत्र ९४ । २. तवार्थवार्तिक १२०, पृ० ७२ : ज्ञातृधर्मकथा | ३. ( क ) नंदीवृत्ति, पत्र २३०,३१ : झातानि - उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः, अथवा ज्ञातानि ज्ञाताध्ययनानि प्रथमश्रुतस्कन्धे धर्मकथा द्वितीयश्रुतस्कन्धे यासु ग्रन्थपद्धतिषु (ता) ज्ञाताधर्मकथाः पृषोदरा. दित्वात्पूर्वपदस्य दीर्घान्तता । (ख) समवायांगवृत्ति, पत्र १०८ : ज्ञातानि --- उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा, दीर्घत्वं संज्ञात्वाद् अथवा प्रथमश्रुतस्कंधो ज्ञाताभिधायकत्वात् ज्ञातानि द्वितीयस्तु तथैव धम्मंकथाः । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ का अर्थ है-- भगवान् महावीर की धर्मकथा' । वेवर के अनुसार जिस ग्रंथ में ज्ञातृवंशी महावीर के लिए कथाएं हों उसका नाम 'नायाधम्मकहा' है । किन्तु समवायांग और नंदी में जो अंगों का विवरण प्राप्त हैं उसके आधार पर 'नायाधम्मकहा' का 'ज्ञातृवंशी महावीर की धर्मकथा -- यह अर्थ संगत नहीं लगता । वहां बतलाया गया है कि ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञातों (उदाहरणभूत व्यक्तियों) के नगर, उद्यान आदि का निरूपण किया गया है । प्रस्तुत आगम के प्रथम अध्ययन का नाम भी 'उक्खित्तणाए' (उत्क्षिप्त ज्ञात ) है । इसके आधार पर 'नाथ' शब्द का अर्थ 'उदाहरण' ही संगत प्रतीत होता है । विषय-वस्तु - प्रस्तुत आगम के दृष्टान्तों और कथाओं के माध्यम से अहिंसा, अस्वाद, श्रद्धा, इन्द्रिय-विजय आदि आध्यात्मिक तत्त्वों का अत्यन्त सरस शैली में निरूपण किया गया है। कथावस्तु के साथ वर्णन की विशेषता भी है। प्रथम अध्ययन को पढ़ते समय कादम्बरी जैसे गद्य काव्यों की स्मृति हो आती है। नवें अध्ययन में समुद्र में डूबती हुई नौका का वर्णन बहुत सजीव और रोमांचक है। बारहवें अध्ययन में कलुषित जल को निर्मल बनाने की पद्धति वर्तमान जल शोधन की पद्धति की याद दिलाती है। इस पद्धति के द्वारा पुद्गल द्रव्य की परिवर्तनशीलता का प्रतिपादन किया गया है। मुख्य उदाहरणों और कथाओं के साथ कुछ अवान्तर कथाएं भी उपलब्ध होती हैं। आठवें अध्ययन में कूप मंदूक की कथा बहुत ही सरस शैली में उल्लिखित है। परित्राजिका चोखा जितशत्रु के पास जाती है। जितशत्रु उसे पूछता है तुम बहुत घूमती हो, क्या तुमने मेरे जैसा अन्तःपुर कहीं देखा है ?' चोखा ने मुस्कान भरते हुए कहा -- तुम कूप मंडूप जैसे हो ।' 'वह कूप मंडूप कौन है ?' जितशत्रु ने पूछा । - चोखा ने कहा--' कुएं में एक मेंढक था वह वहीं जन्मा, वहीं बढ़ा। उसने कोई दूसरा कूप, तालाब और जलाशय नहीं देखा। वह अपने कूप को ही सब कुछ मानता था। एक दिन एक समुद्री मेंढक उस कूप में आ गया। कूप मंडूक ने कहा- तुम कौन हो ? कहां से आए हो ? उसने कहामैं समुद्र का मेंढक हूँ, वहीं से आया हूँ । कूप मंडूक ने पूछा -- वह समुद्र कितना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा- वह बहुत बड़ा है। कूप मंडूक ने अपने पैर से रेखा खींचकर कहा -- क्या समुद्र इतना बड़ा है? समुद्री मेंढक ने कहा- इससे बहुत बड़ा है। कूप मंडूक ने कूप के पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक फुदक कर कहा--क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा -- इससे भी बहुत बड़ा है। कूप मंदूक इस पर विश्वास नहीं कर सका। इसने कूप के सिवाय कुछ देखा ही नहीं था। इस प्रकार नाना कथाओं, अवान्तर-कथाओं, वर्णनों, प्रसंगों और शब्द-प्रयोगों की दृष्टि से प्रस्तुत आगम बहुत महत्वपूर्ण है। इसका विश्व के विभिन्न कथा-ग्रन्थों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर कुछ नए तथ्य उपलब्ध हो सकते हैं । १. जैन साहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका पत्र ६६० । 9 २. Stories From the Dharma of NAYA इं० ए० जि० १६, पृष्ठ ६६ । ३. (क) समवायो पदमा सूत्र ९४। 7 (ख) नंदी, सूत्र ८५ । ४. नायाधम्मकाओ ८।१५४, पृ० १८६, १८७ । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ उवासगदसाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशानी का सातवां अंग है। इसमें दस उपासकों का जीवन वर्णित है इसलिए इसका नाम 'उवासगदसाओ' है। धमण-परम्परा में श्रमणों की उपासना करने वाले गृहस्थों को श्रमणोपासक या उपासक कहा गया है। भगवान महावीर के अनेक उपासक थे। उनमें से दस मुख्य उपासकों का वर्णन करने वाले दस अध्ययन इसमें संकलित हैं। विषय-वस्तु भगवान् महावीर ने मुनि-धर्म और उपासक धर्म--इस द्विविध धर्म का उपदेश दिया था। मुनि के लिए पांच महाव्रतों का विधान किया और उपासक के लिए बारह व्रतों का । प्रथम अध्ययन में उन बारह व्रतों का विशद वर्णन मिलता है। श्रमणोपासक आनन्द भगवान् महावीर के पास उनकी दीक्षा लेता है। व्रतों की यह सूची धार्मिक या नैतिक जीवन की प्रशस्त आचार-संहिता है। इसकी आज भी उतनी ही उपयोगिता है जितनी ढाई हजार वर्ष पहले थी। मनुष्य स्वभाव की दुर्बलता जब तक बनी रहेगी तब तक उसकी उपयोगिता समाप्त नहीं होगी। मनि का आचार-धर्म अनेक आगमों में मिलता है, किन्तु गृहस्थ का आचार-धर्म मुख्यतः इसी आगम में मिलता है । इसलिए आचार-शास्त्र में इसका मुख्य स्थान है। इसकी रचना का मुख्य प्रयोजन ही गृहस्थ के आचार का वर्णन करना है। प्रसंगवश इममें नियतिवाद के पक्ष-विपक्ष की सन्दर चर्चा हुई है। उपासकों की धार्मिक कसौटी की घटनाएं भी मिलती हैं। भगवान महावीर उपासकों की साधना का कितना ध्यान रखते थे और उन्हें समय-समय पर कैसे प्रोत्साहित करते थे यह भी जानने को मिलता है। जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम उपासकों के ग्यारह प्रकार के धर्म का वर्णन करता है। उपासक-धर्म के ग्यारह अंग ये हैं-दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषधोपवास, सचित्तविरति रात्रिभोजन विरति, ब्रह्मचर्य, आरंभविरति, अनुमति विरति और उद्दिष्ट विरति । आनन्द आदि श्रावकों ने उक्त ग्यारह प्रतिमाओं का आचरण किया था। व्रतों की आराधना स्वतन्त्र रूप में भी की जाती है और प्रतिमाओं के पालन के समय भी की जाती है। व्रत और प्रतिमा-ये दो पद्धतिया हैं। समवायांग और नन्दी सुत्र में व्रत और प्रतिमा दोनो का उल्लेख है। जयधवला में केवल प्रतिमा का उल्लेख है। १. कसायपाहुड भाग १, पृष्ठ १२६, १३० । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अंतगडदसाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशानी का आठवां अंग है। इसमें जन्म-मरण की परम्परा का अंत करने वाले व्यक्तियों का वर्णन है, तथा इसके दस अध्ययन हैं इसलिए इसका नाम 'अंतगडदसाओं' है। समवायांग में इसके दस अध्ययन और सात वर्ग बतलाए गए हैं। नंदी सूत्र में इसके अध्ययनों का कोई उल्लेख नहीं है, केवल आठ वर्गों का उल्लेख है। अभयदेवसूरि ने दोनों में सामञ्जस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन हैं इस अपेक्षा से समवायांग सूत्र में दस अध्ययन और अन्य वर्गों की अपेक्षा से सात वर्ग बतलाए गए हैं। नन्दी सत्र में अध्ययनों का उल्लेख किए बिना केवल आठ वर्ग बतलाए गए हैं। किन्तु इस सामञ्जस्य का अंत तक निर्वाह हो नहीं सकता, क्योंकि समवायांग में प्रस्तुत आगम के शिक्षा-काल (उद्देशनकाल) दस बतलाए गए हैं। नंदीसूत्र में उनकी संख्या आठ है। अभयदेवसूरि ने लिखा है कि उद्दशनकाला के अन्तर का आशय हम ज्ञात नही । नदासूत्र के चूणिकार श्री जिनदास महत्तर और वृत्तिकार श्री हरिभद्रसूरि ने भी यह लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन होने के कारण प्रस्तुत आगम का नाम 'अंतगडदसाओ' हैं। चूर्णिकार ने दसा का अर्थ अवस्था भी किया है। __ प्रस्तुत आगम का वर्णन करने वाली तीन परम्पराएं हैं-एक समवायांग की, दूसरी तत्त्वार्थवातिक आदि की और तीसरी नंदी की। प्रथम परम्परा के अनुसार प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन हैं। इसकी पुष्टि स्थानांग सूत्र से होती है। स्थानांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन और उनके नाम निर्दिष्ट हैं, जैसे-नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमाली, भगाली, किंकष, चिल्वक और फाल अंबडपूत्र । तत्त्वार्थवार्तिक में कुछ पाठ-भेद के साथ ये दस नाम मिलते हैं, जैसे-जमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, यमलीक, वलीक, कंबल, पाल और अंबष्ठपुत्र। समवायांग में दस अध्ययनों का उल्लेख है, किन्तु उनके नाम निर्दिष्ट नहीं हैं। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में प्रत्येक १. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सूत्र ९६ :..... 'दस अज्झयणा सत्त वग्गा । २. नंदी, सून ८८""अट्ठ वग्गा । ३. समवायांगवत्ति, पत्र ११२ : दस अज्झयण ति प्रथमवर्गापेक्षयव घटन्ते, नन्द्यां तथैव व्याख्यातत्वात, यच्चेह पठ्यते सत्त वग्ग' ति तत् प्रथमवर्गादन्यवर्गापेक्षया, यतोऽप्यष्ट वर्गाः, नन्द्यामपि तथा पठितत्वात् । ४. समवायांगवृत्ति, पन ११२ : ततो भणितं-अठ्ठ उद्देसणकाला इत्यादि, इह च दश उद्देशनकाला अधीयन्ते __ इति नास्याभिप्रायमवगच्छामः । ५. (क) नन्दीसूत्र, चूणिसहित पृ० ६८ : पढमवग्गे दस अज्झयण त्ति तस्सक्खतो अंतकडदस ति। (ख) नन्दीसूत्र, वृत्तिसहित पु० ८३ : प्रथमवर्गे दशाध्ययनानि इति तत्सङ्ख्यया अन्तकृदशा इति । ६. नन्दीसूत्र, चूणिसहित पृ० ६८ : दस त्ति-अवत्था। ७. ठाणं, १०११३ । ८. तत्त्वार्थवार्तिक १२०, पृ०७३ । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अंतकृत केवलियों का वर्णन है । जयधवला में भी तत्त्वार्थवार्तिक के वर्णन का समर्थन मिलता है । नंदी सूत्र में दस अध्ययनों का उल्लेख और नाम निर्देश दोनों नहीं हैं । इस आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि समवायांग और तत्त्वार्थवार्तिक में प्राचीन परम्परा सुरक्षित है और नंदी सूत्र में प्रस्तुत आगम के वर्तमान स्वरूप का वर्णन है। वर्तमान में उपलब्ध आठ वर्गों में प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं, किन्तु इनके नाम उक्त नामों से सर्वथा भिन्न हैं, जैसे-गौतमसमुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित, और विष्णु । अभयदेवसूरि ने स्थानांग वृत्ति में इसे वाचनान्तर माना है। इससे स्पष्ट होता है कि नंदी में जिस वाचना का वर्णन है वह समवायांग में वर्णित वाचना से भिन्न है। 'अंतगड' शब्द के दो संस्कृत रूप प्राप्त होते हैं—अंतकृत और अंतकृत् । अर्थ की दृष्टि से दोनों में कोई अन्तर नहीं है, किन्तु 'गड' का 'कृत' रूप छाया की दृष्टि से अधिक उपयुक्त है। विषय-वस्तु वासदेव कृष्ण और उनके परिवार के सम्बन्ध में इस आगम में विशद जानकारी मिलती है। वासुदेवकृष्ण के छोटे भाई गजसुकुमाल की दीक्षा और उनकी साधना का वर्णन बहुत ही रोमांचकारी है। छठे वर्ग में अर्जनमालाकार की घटना उल्लिखित है। एक आकस्मिक घटना ने उसे हत्यारा बना दिया और एक प्रसंग ने उसे साधु बना दिया। परिस्थिति और वातावरण से मनुष्य बनताबिगडता है-इसे स्वीकार न करें फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि मनष्य के बननेबिगड़ने में वे निमित्त बनते हैं। अतिमक्तक मुनि के अध्ययन में आन्तरिक साधना का महत्व समझा जा सकता है। समग्र आगम में तपस्या ही तपस्या दृष्टिगोचर होती है । ध्यान के उल्लेख नगण्य हैं। भगवान् महावीर ने उपवास और ध्यान-दोनों को स्थान दिया था। तपस्या के वर्गीकरण में उपवास बाह्य तप और ध्यान आन्तरिक तप है। भगवान् महावीर ने अपने साधना-काल में उपवास और ध्यान-दोनों का प्रयोग किया था। यह अनुसन्धेय है कि प्रस्तुत आगम में केवल उपवास पर ही इतना बल क्यों दिया गया ? विस्मति और नव- निर्माण की श्रृंखला में बचा हुआ प्रस्तुत आगम अनेक दष्टियों से महत्वपूर्ण और अनुसन्धेय है। १. तत्वार्थवार्तिक १।२०, पृ० ७३ :....""इत्येते दश वर्धमानतीर्थकरतीर्थे । एवमुषमादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थे ध्वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निर्जित्य कृत्स्नकर्मक्षयादन्तकृतः दश अस्यां वर्ण्यन्ते इति अन्तकृद्दशा । २. कसायपाहुड भाग ११० १३० : अंतयडदसा णाम अंगं चउविहोवसग्गे दारुणे सहिऊण पाडिहेरं लक्षण णिवाणं गदे सुदंसणादि-दस-दस-साह तित्यं पहि वण्णेदि । ३. स्थानांगबत्ति पत्र ४८३....."ततो वाचनान्तरापेक्षाणीमानीति सम्भावयामः । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोषवाइयदसाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का नवां अंग है। इसमें अनुत्तर नामक स्वर्ग-समूह में उत्पन्न होने वाले मुनियों से सम्बन्धित दस अध्ययन हैं, इसलिए इसका नाम 'अणुत्तरोववाइयदसाओ' है । नंदी सूत्र में केवल तीन वर्गों का उल्लेख है। स्थानांग में केवल दस अध्ययनों का उल्लेख है। राजवार्तिक के अनुसार इसमें प्रत्येक तीर्थकर के समय में होने वाले दस-दस अनुत्तरोपपातिक मुनियों का वर्णन है। समवायांग में दस अध्ययन और तीन वर्ग-दोनों का उल्लेख है। उसमें दस अध्ययनों के नाम उल्लिखित नहीं हैं। स्थानांग और तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं। (१) स्थानांग के अनुसार ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कात्तिक, स्वस्थान, शालिभद्र, आनंद, तेतली, दशार्णभद्र और अतिमुक्त' । (२) राजवार्तिक के अनुसार ऋषिदास, वान्य, सूनक्षत्र, कात्तिक, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलातपुत्र । उक्त दस मुनि भगवान् महावीर के शासन में हुए थे—यह तत्त्वार्थवातिककार का मत है। धवला में कार्तिक के स्थान पर कार्तिकेय और नंद के स्थान पर आनंद मिलता है। प्रस्तुत आगम का जो स्वरूप उपलब्ध है वह स्थानांग और समवायांग की वाचना से भिन्न है। अभयदेवसरि ने इसे वाचनान्तर बतलाया है। उपलब्ध वाचना के तृतीय वर्ग में धन्य. १. नंदी, सूत्र ८९ :....."तिण्णि वगा। २. ठाणं १०।११४ ३. (क) तत्वार्थवार्तिक १।२०, पृ०७३ । ...."इत्येते दश वर्धमानतीर्थकरतीर्थे । एवमृषभादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थेष्वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य विजयाद्यनुत्तरेषत्पन्ना इत्येवमनुत्तरोपपादिक: दशास्यां वर्ण्यन्त इत्यनुत्तरोप पादिकदशा। (ख) कसायपाहुड भाग १, पृ० १३० । अणुत्तरोववादियदसा णाम अंग चउविहोवसग्गे दारुणे सहियूण चउवीसहं तित्थयराणं तित्थेसु अणुतर विमाणं गदे दस दस मुणिवसहे वण्णेदि । ४. समवाओ, पइण्णगसमवाओ६७ । ....''दस अज्झयणा तिण्णि वागा...... । ५. ठाणं १०१११४ । ६. तत्त्वार्थवार्तिक १।२० पृ०७३ । ७. षट्खण्डागम १।१।२।। ८. स्थानांगवृत्ति पन ४८३ : तदेवमिहापि वाचनान्तरापेक्षयाऽध्ययनविभाग उक्त्तो न पुनरुपलभ्यमानवाचनापेक्षयेति । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ सुनक्षत्र और ऋषिदास-ये तीन अध्ययन प्राप्त हैं। प्रथम वर्ग में वारिषेण और अभय-ये दो अध्ययन प्राप्त हैं, अन्य अध्ययन प्राप्त नहीं हैं। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम में अनेक राजकुमारों तथा अन्य व्यक्तियों के वैभवपूर्ण और तपोमय जीवन का सुन्दर वर्णन है। धन्य अनगार के तपोमय जीवन और तप से कश बने हए शरीर का जो वर्णन है वह साहित्य और तप दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। पण्हावागरणाई नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का दसवां अंग है। समवायांग सूत्र और नंदी में इसका नाम 'पण्हावागरणाई' मिलता है। स्थानांग में इसका नाम 'पण्हावागरणदसाओ' है। समवायांग में 'पण्हावागरणदसासु'-यह पाठ भी उपलब्ध है। इससे जाना जाता है कि समवायांग के अनुसार स्थानांग-निर्दिष्ट नाम भी सम्मत है । जयधवला में 'पण्हवायरणं' और तत्त्वार्थवातिक में 'प्रश्नव्याकरणम्' नाम मिलता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के विषय-वस्तु के बारे में विभिन्न मत प्राप्त होते हैं। स्थानांग में इसके दस अध्ययन बतलाए गए हैं-उपमा, संख्या, ऋषि-भाषित, आचार्य-भाषित, महावीर-भाषित, क्षोमक प्रश्न, कोमल प्रश्न, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न और बाहु प्रश्न । इनमें वणित विषय का संकेत अध्ययन के नामों से मिलता है। समवायांग और नंदी के अनुसार प्रस्तुत आगम में नाना प्रकार के प्रश्नों, विद्याओं और दिव्य-संवादों का वर्णन है। नंदी में इसके पैतालिस अध्ययनों का उल्लेख है । स्थानांग से उसकी १. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र ६८ । (ख) नंदी, सूत्र ६० । २. ठाणं १०।११०। ३. (क) कसायपाहुड, भाग १ पृष्ठ १३१ : पण्हवायरणं णाम अंग। (ख) तत्त्वार्थवार्तिक १२० : "प्रश्नव्याकरणम् । ४. ठाणं १०१११६: पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-उवमा. संखा, इसिभासियाई, आयरियभासियाई, महावीरभासियाई, खोमगपसिणाई, कोमलपसिणाई, अद्दागपसिणाई, अंगुटुपसिणाई बाहुपसिणाई । ५. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १८: पण्हावागरणेसु अठ्ठत्तरं पसिणसय अठ्ठत्तरं अपसिणसयं अठ्ठतरं पसिणापसिणयं विज्जाइसया, नागसुवणेहि सद्धि दिव्वा संवाया आघविज्जति । (ख) नंदी, सूत्र ६० Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ कोई संगति नहीं हैं। समवायांग में इसके अध्ययनों का उल्लेख नहीं है, किन्तु उसके 'पण्हावागरणदसासू' इस आलापक (पैराग्राफ) के वर्णन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता हैं कि समवायांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययनों की परम्परा स्वीकृत है। उक्त आलापक में बतलाया गया है कि प्रश्नव्याकरणदसा में प्रत्येक बुद्ध भाषित, आचार्य भाषित, वीरमहर्षि भाषित, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न, बाहु प्रश्न, असि प्रश्न, मणि प्रश्न, क्षौम प्रश्न, आदित्य प्रश्न आदि-आदि प्रश्न वणित हैं। इन नामों की स्थानांग में निर्दिष्ट दस अध्ययन के नामों के साथ तुलना की जा सकती है। यद्यपि उद्देशनकाल पैतालिस बतलाए गए हैं फिर भी अध्ययनों की संख्या का स्पष्ट निर्णय नहीं किया जा सकता। गंभीर विषय वाले अध्ययन की शिक्षा अनेक दिनों तक दी जा सकती है। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में अनेक आक्षेप और विक्षेप के द्वारा हेतू और नय से आश्रित प्रश्नों का उत्तर दिया गया है, लौकिक और वैदिक अर्थों का निर्णय किया गया है। जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निवेदनी-इन चारों कथाओं तथा प्रश्न के आधार पर नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुख, जीवन और मरण वा वर्णन करता है। उक्त ग्रंथों में प्रस्तुत आगम का जो विषय वर्णित है वह आज उपलब्ध नहीं हैं। आज जो उपलब्ध है उसमें पांच आश्रवों (हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह) तथा पांच संवरों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) का वर्णन है। नंदी में उसका कोई उल्लेख नहीं है। समवायांग में आचार्य भाषित आदि अध्ययनों का उल्लेख है तथा जयधवला में आक्षेपणी आदि चारों कथाओं का उल्लेख है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम का उपलब्ध विषय भी प्रश्नों के साथ रहा हो, बाद में प्रश्न आदि विद्याओं की विस्मति हो जाने पर वह भाग प्रस्तुत आगम के रूप में बचा हो। यह अनुमान भी किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम के प्राचीन स्वरूप के विच्छिन्न हो जाने पर किसी आचार्य के द्वारा नए रूप से रचना की गई हो। नंदी में प्रस्तुत आगम की जिस वाचना का विवरण है, उसमें आश्रवों और संवरों का वर्णन नहीं है, किन्तु नंदी चूर्णि में उनका उल्लेख मिलता है। यह संभव है कि चूर्णिकार ने उपलब्ध आकार के आधार पर उनका उल्लेख किया है। १. तत्त्वार्थवार्तिक १२०, पृ०७३, ७४ : आक्षेपविक्षेपहेतुनयाश्रितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम् । तस्मिल्लौकिकवैदिकानामर्थानां निर्णयः । कसायपाहुड, भाग १, पृ० १३१, १३२: पण्हवायरणं णाम अंग अक्खेवणी-विक्खेवणी-संवेयणी-णिव्वेयणीणामाग्रो चउव्विहं कहाओ पण्हादो णट्र-मटिठ चिंता-लाहालाह-सुखदुक्ख-जीवियमरणाणि च वण्णेदि । ३. नंदी सूत्र, चूणि सहित पु० ६६ । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का ग्यारहवां अंग है। इसमें सुकृत और दुष्कृत कर्मों के विपाक का वर्णन किया गया है, इसलिए इसका नाम 'विवागसुयं' है'। स्थानांग में इसका नाम 'कम्म विवागदसा' है ' | विषय-वस्तु २९ प्रस्तुत आगम के दो विभाग हैं-दुःख विपाक और सुख विपाक । प्रथम विभाग में दुष्कर्म करने वाले व्यक्तियों के जीवन प्रसंगों का वर्णन है। उक्त प्रसंगों को पढ़ने पर लगता है कि कुछ व्यक्ति हर युग में होते में होते हैं । वे अपनी क्रूर मनोवृत्ति के कारण भयंकर अपराध भी करते हैं । दुष्कर्म व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थितियों को किस प्रकार प्रभावित करता है, वह भी जानने को मिलता है । दूसरे विभाग में सुकृत करने वाले व्यक्तियों के जीवन-प्रसंग हैं। जैसे क्रूर कर्म करने वाले व्यक्ति हर युग में मिलते हैं वैसे ही उपशान्त मनोवृत्ति वाले लोग भी हर युग में मिलते हैं। अच्छाई और बुराई का योग आकस्मिक नहीं है । विवा स्थानांग सूत्र में कर्म विपाक के दस अध्ययन बतलाए गए हैं- मृगापुत्र, गोत्रास, अंड, शकट, माहन, नन्दीपेण, शीरिक, उदुम्बर, सहसोद्दाह-आमरक और कुमार लिच्छवी'। ये नाम किसी दूसरी वाचना के हैं। १. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र ९६ । (च) नंदी, धूल ९१। (ग) तत्त्वावार्तिक १२० उपसंहार अंग सूत्रों के विवरण और उपलब्ध स्वरूप में पूर्ण संवादिता नहीं है । इस आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि अंग सूत्रों का उपलब्ध स्वरूप केवल प्राचीन नहीं है, प्राचीन और अर्वाचीन दोनों संस्करणों का सम्मिश्रण है। इस विषय का अनुसन्धान बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है कि अंग सूत्रों के उपलब्ध स्वरूप में कितना प्राचीन भाग है और कितना अर्वाचीन तथा भाषा, प्रतिपाद्य, विषय और प्रतिपादन शैली के आधार यद्यपि यह कार्य बहुत ही श्रम, साध्य है, पर असंभव किस आचार्य ने कब उसकी रचना की । पर यह अनुसन्धान किया जा सकता है। नहीं है । (घ) कसायपाहुड, भाग १ पृ० १३२ । २. ठाणं १०।११० । ३. ठाणं १०।१११ । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . कार्य-संपूर्ति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो । इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता। इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तररहस्य पकड़ने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता हो पाई है । इनको कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है । मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधू-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस आचार्य तुलसी Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Preface NĀYĀ DHAMMAKAHÃO The title The present Agama is the sixth Anga of Dwādaśāngi. It has two Srutaskandhas. The first is called as 'NĀYA' and the second as 'DHAMMAKAHÃO'. On combining both the Srutaskandhas, the present Āgama has the title as 'NĀYĀDHAMMAKAHĀO'. 'NĀYA' (Jnāta) means examples and 'DHAMMAKAHÃO' means religious fables. The present Agama has both of historical illustrations and imaginary fables. In the Jayadhawalā the title of this Agama is found as 'Nāhadhāmmakahā' (Nāthadharma-kathā). 'Natha' means the Lord. 'Nāthadhamma-kahā' i.e, the dharmakathā expounded by the Tīrthankara. In some Sanskrit works the title of this Agama is given as 'Inātridharmakatha'. Āchārya Akalanka too has given the title of this Agama as 'Inātadharmakathā'. Acharya Malayagiri and Abhayadeva Sūri give the title of 'Inātadharmakathā. It is a treatise mainly containing illustrative religious stories. According to them, the first Śrutasakandha has illustrations and the second Srutaskandha has religious stories. Both of them mention the lengthening of the word 'Ināta’.3 The family name of lord Mahavira has been given as 'Ināta' and 'Nätha' in the Swetamber and Digamber literature respectively. On this basis, some scholars have tried to relate this Agama with lord Mahāvīra. They hold that Inätadharmakathā' or 'Nātha dharmakathā' means the Dharmakathā by lord Mahāvīra'. Waber says that the work having fables pertaining to the religion of Jnātriwanśī Mahāvīra, is titled as NĀYADHAMMAKAHĀ'." But, on the account found in the Samwāyānga and the Nandi, the meaning 1. Samawao, pa innaga samawao, Sutra 94, 2. Tatwartha Vartika, 1/20. 3. (a) Nandivritti, pages 230-31. (b) Samawayanga Vritti, page 108. 4. Jain sahitya ka Pitihas, Purwa-Pithika, page 660. 5. Stories from the Dharma of NAYA, I.A., Vol. 19, page 66. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 'Dharmakatha of Jnätriwanst Mahavira' does not seem to be appropriate. It has been told there that in the 'Jnätadharmakatha', the cities and gardens. etc. of the Inatas' (the persons cited) have been described. The title of the first Adhyayana of this Agama is 'Ukkhittanaye' (Utkshiptajņāta). On this basis also, the word 'Natha' seems to go with the meaning as an 'illustration' only. The content The spiritual elements such as non-voilence, palate contral, faith, restraint of senses etc. have been expounded in an excellent style through the illustrations. and fables in the present Agama. Besides that of a plot, it has the elegance of description also, While going through the first Adhyayana, we have the reminiscense of the poetical prose-work such as the Kadambari. In the ninth Adhyayana, the description of the boat sinking in the sea, is very lively and horripilating. In the twelfth Adhyayana, the process of purifying water reminds us of the modern method. The changability of the Pudgala substance has been expounded by this illustration. Along with the main illustrations and fables, some subsidiary fables are also found. In the eighth Adhyayana the fable of a well-frog has been recorded in an excellent style. Parivrājikā Chokha goes to Jitaśatru. Jitaśatru enquires of her-You wander a lot. Have you ever seen a harem like that of mine? With a smile Chokha said-You are like a Küpa-Manduka. Who is that Kupa Manduka ? Chokha said-There was a frog in a well. He was born and brought up there. He considered his well everything. One day an ocean-frog came down in that well. The well-frog said to him-Who are you? He answered-I am a frog from the ocean. I have came from there. The well-frog asked him-How big is the ocean? The ocean-frog said-It is very big. The well-frog, drawing a boundry with his foot, asked him-Is the ocean as big as this? The ocean-frog answered-Far more greater than this. The well-frog had a jump, from the eastern to the western end of the well, and said-Is the ocean so big? The ocean-frog answered-It is far more bigger than this too. well-frog could not believe it as it had never seen any thing except the well2. 1. (a) Samwao, pa innagasamawao, Sutra 94. (b) Nandi, Sutra 85. 2. Nayadhammakahao, 8/154, pages 186-87. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ In this way, from the view point of various fables, insertions, illustrations, descriptions, anecdotes and word-usages, this Āgama has a great value. A comparative study of it with that of the different fable-works found the world over may well give some new facts. UWĀSAGADASĀO The title The present Āgama is the seventh Anga of the Dwādaśāngī. It has the biographies of ten Upāsakas (lay devotees), therefore, it is called as 'Upāsagadasão'. In the śramaņū order the laymen serving the Sramaņas are called sramaṇopāsakas or Upāsakas. Lord Mahävira had large number of Upāsakas. It comprises of ten 'Adhyayanas' depicting the life of ten principal Upāsakas. The Content Lord Mahāvira has given twofold code of conduct, such as laws of conduct for Munis and laws of conduct for Upāsakas. Five Mahāvratas (great vows) were postulated for a Muni and twelve Vratas (vows) for a Upăsaka. Śramanopāsaka Anand was consecreted and initiated to his cult by him. The list of the Vratas is an excellent code of conduct pertaining to religious or ethical life. Even today, it has the same utility as it had 2500 years ago. As long as the weakness of human nature is there, its utility will always exist. The code of conduct for Munis is found in many Agamas but the code of conduct for laymen is found in this Agama only. It has, therefore, its own place in the codes of conduct. The object of its composition is only to put forth the code of conduct for a layman. Incidently, Niyatiwāda has also been discussed nicely with its arguments for and against. Incidents, proving the religious touch-stone for the Upāsakas, are also found. It also throws light on the fact as to how lord Mahāvira took care of the accomplishment of the Upāsakas. and encouraged them to higher spiritual life from time to time. According to the Jayadhawalā the present Agama narrates eleven-fold practices of the Upāsakas'. They are-Darśan, Vrat, Sāmayika, Pausadhopawā. Sacitta-Virati, Ratri-Bhojan-Virati, Brahmacarya, Arambha-Virati, Parigrahavirati. Anumăti-Virati, and Uddista Virati?, The Srāwakas, beginning from 1. Kasyapahuda, part i, pages 129-30, Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 Ananda, had practised above said eleven Pratimās. The Vratas are practised indenpedently, and at the time of fulfilment of Pratimās also. These Vratās and Pratimās are the two religious codes for an Upāsaka. In the Samawāyānga and the Nandi Sūtra, Vratā and Pratimā both are mentioned. The Jayadhawalā gives an account of Pratimās only. ANTAGADADASÃO The title The present Āgama is the eighth of the Dwādaśāngi. The illustrious ones who put an end to the cycle of death and birth, have been narrated in it, and it has ten Adhyayanas. Hence the title 'Antagadadasāo'. The Samwāyānga tells us that it contained ten Adhyayanas and seven Vargas. The Nandi Sūtra says nothing about its Adhyayanas and only eight Vargas have been accounted for and in it. Sri Abhayadeva Sūri has tried to find consistency in these both. He tells us that the first Varga has ten Adhyayanas, therefore the Samawāyānga Sūtra mentions ten Adhyayanas and seven Vargas only. The Nandi Sūtra gives eight Vargas only with no mention of Adhyayanas. But this consistency cannot be maintained to the end, because the Samawāyānga gives us ten Siksha-kālas (Uddeśan kālas) of this Agama and the Nandi Sūtra gives only eight. Sri Abhayadeva Sūri admits that he does not understand the purpose behind the difference in the number of the Uddeśankālas'. The Chūrņikār of the Nandisutra, Sri Jinadas Mahattar and the Vrittikār, Sri Haribhadra Sūri also write that the present Āgama is given the title 'Antagadadasāo' as it has ten Adhyayanas in the first Vargas. The Chūrņikār takes the meaning of 'Daśā' as 'Awasthā' (condition) also 6. Three traditions are found to narrate the present Āgama : firstly, that of the samawāyānga; secondly, that of the Tatwārtha Vārtika, and thirdly, that of the Nandi Sūtra. 1. Samawao, painnagasamawao, Sutra 96. 2. Nandi Sutra, 88. 3. Samwayanga Vritti, page 112. 4. Samawayanga Vritti, page 112. 5. (a) Nandi with Churni, page 68. (b) Nandi with Vritti, page 83. 6. Nandi with the Churnipage 68. Dasatti Awastha. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 35 According to the first tradition, the present Āgama has ten Adhyayanas. The Sthāvānga Sūtra supports it. The Sthānānga mentions the ten Adhyayanas and their headings, such as Nami, Mātanga, Somila, Ramagupta, Sudarsana, Jamäti, Bhagāli, Kimkașa, Cilawaka, Pāla, and the Ambaşhthaputtra. These headings are fou'd in the Tatwārthavartika also with some variance, such as, Nami, Mātang, Somila, Ramaguptā, Sudarśana, Yamalika, Kambala, Pāla and Ambașthaputtra. Samawayanga mentions ten adhayans without giving their names. The present Agama gives an account of the Antaksīta Kewalis, in groups of ten contemporaries of each Tirthankara. The Jayadhawala, too. supports this statement of the Tatwārthavrät ka. In the Nandisutra mention is found neither of the ten Adhyayanas nor of their headings. On this basis, it can be inferred that the Samawāyanga and the Tatwārthavarţika maintain the old tradition and the Nandi-Sutra gives the Agama in the form found at present. There are ten Adhyayanas of the first Varga out of the eight Vargas found at present, but their headings altogether differ from the above- said headings. i.e., Gautama, Samudra, Sāgara, Gambhira, Stanita. Alala Kampilya, Aksetra, Prasenjit and Vişņu. In the 'Sthänāngavritti' Sri Abhayadeva Suri acknowledges it as a variant 'Vācnās. This shows that the Väćnä' of the 'Nandi' is different from the Vāćnā' found in the 'Samawäyānga'. The word 'Antagada' has two Sanskrit forms---Antakrita and Antakrit. Both have the same sense but "gāda' goes more with the Sanskrit version Krita' so far as morphology is concerned. The Content This Agama gives an excellent account of Vasudeva Krisna and his family. The Dikšā (initiation) and accomplishment of Gajasukamāla, the younger brother of Vasudeva Krişna has been horripiliatingly narrated. In the sixth Varga, is found an account of the incident occured with Ariuna, the gardener. An accident turned him to be a murderer and the other association made him a saint. It may not be admitted that a man changes with the circumstances and atmosphere, but, even then, it may be accepted that they are the cause of the rise and fall of a man. 1. Tatwarthavartika 1/20 2. Tatwarthavartika 1/20. 3. Sihany Vritti. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 By the Adhyayana of Atimuktaka Muni, the value of spiritual accomplishment can be well understood. Fasting alone is seen in this Āgama through out. The narrations of meditations are scanty. Lord Mahavira had laid stress upon both--the fast and the meditation. In the classification of penance, fast is the outer penance and meditation is the inner one. Lord Mahavira in his penance-period, had observed both, fast and meditation. It is worth investigating why this Agama lays so much stress on fasting only. This Agama, a remanent in the succession of oblivion and reproduction, is valuable and worthy of research work from many points of view. ANUTTAROWAWĀIYA-DASÃO The title This Agama is the ninth Anga of the Dwādaśangi. As it containsten Adhyayanas regarding the Munis born in the Anuttara Swarga class, its title is given as 'Anuttarowawăiya- Dasāo'. The Nandi Sutra mentions only three Vargas? The Sthānānga quotes only ten Adhyayanas. According to the Rajavārttika groups of ten Anuttaropapātika Munis, contemporaries of each Tirthanker, have been narrated in it. The Samawāyānga mentions the ten Adhyayanās and the three Vargas too. But the headings of the ten Adhyayanas have not been given in it. According to the Sthānānga and the Tattwärthavärttika they read as, Risidasa, Dhanya, Sunaksatra, Kārttika, Swasthan, Salibhadra, Ananda, Tetali, Daśārņabhadra and Atimukta", and as Risidasa, Dhanya, Sunaksatra, Kärttika, Nandanandana, Gatibhadra, Abhaya, Wārişeņa, and Cilattaputra respectively. The above said Munis were the contemporaries of Lord Mahavira, such is the opinion of the author of the Tatta wārthavärttika. In the Dhawalā we find Kārtikeva instead of Kärttika and Anand instead of Nanda? The present form of the Agama is different from the 'Vaćna' of the Sthânāga and the Samawāyānga. Abhayadeva Sūri holds that it is a different Vana'. In the form of the Agama, that is available, three Adhyayanas, such 1. Nandi, Sutra, 89. 2. Thanam, 10/114. 3. Tattawarth varttikas 1/20, Kasayapahuda I, page 130. 4. Samawao, painnagasamawao, Sutra 97. 5. Thanam 10/114. 6. Tattwarthvarttika 1/20. 7. Satkhundagama 1/1/2. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 37 as Dhanya, Sunakshtra and Risidasa, are found. In the first Varga, only two Adhyayanas, named as Wārisseņa and Abhaya, are seen. The contents This Āgama beautifully narrates the luxury and ascetic lives of many princes. The narration of the ascetic life of Dhanya Anagāra and his body emaciated due to the penance is noteworthy both from the literary and spiritual viewpoints. PANHĀWĀGARANĀIN The title The present Āgama is the tenth Anga of the Dwādaśāngi. Its title has been mentioned as 'Paṇhāwāgaraņāin' in the Samawāyanga Sūtra and the Nandi. Its name is found as 'Paṇhāwāgaradasão' in the Sthänānga and the same reads as 'Paṇhāwāgaraṇadasāsu' in the Samawāyānga. It is, therefore inferred that the title mentioned in the Sthānānga is also in concurrence with the Samawāyānga. The Jayadhawala and the Tattwärtha varttika note it as Panhāwāyaraņa or Praśna-Vyakaraņā. The Contents Opinions differ regarding the contents of the present Āgama. The Sthānānga cites its ten Adhyayanas, such as, Upamā, Samkhyā. Risibhāsita, Ācāryabhäşitā, Mahävira-bhäşitā, Kșaumaka-Praśna, Komala-Praśna, ĀdarśaPraśna, Anguştha-Praśna and Bāhu-Praśna. The headings of the Adhyayanas indicate well the contents they have. According to the Samawāyānga and the Nandi, the present Agama has various types of queries, sciences (vidyās) and the dialogues of the Devas dealt with. The Nandi notes fortyfive Adhyayanas of it, which do not accord with the Sthānanga. The Samawāyānga makes no mention of its Adhyavanas. 1. (a) Samawao pa innagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi, Sutra 90, 2. Thanam, 10/110. 3. (a) Kasayapahuda pt. I, page 131. (b) Tatwarthavarttika 1/20. 4. Thapam 10116. 5. (a) Samawao, painnagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi, Sutra, 90. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 But, from its 'Paṇhāwāgaraņadasāsu' paragraph, it may be inferred that the Samawāyānga accepts the traditional ten Adhyayanas of the present Agama. The said paragraph tells us that Pratyeka Buddhabhāśita, Acāryabhāṣita, Viramaharşi-Bhasita, Ādarśa-Praśna, Anguștha-Praşna, Bāhu-Praśna, Asi-Praśna, Mani-Praśna, Ksauma-Praśna, Aditya-Praśna etc. have been dealt with in the Praśna-Vyakaraṇa-Dasā'. These headings can well be compared with those of ten Adhyayanas mentioned in the Sthānānga. Though the Uddeśana-Kālas have been mentioned as fortyfive, the exact number of the Adhyayanas cannot be decided definitely. The teaching of the Adhyayana on a deep topic could he spread over for many days. According to the Tattwärthavārttika many queries have been expounded in this Āgama , depending on cause and inference by 'Ākşepa' and 'Vikṣepa'. Also the Laukika (secular) and Vedic Arthas have been ascertained in it. The Jayadhawalā notes that this Agama narrates the Nasta, Musti, Čintā, Läbha, Alābha, Sukha, Dukkha, Jiwan and Maraṇa with the help of the four kinds of fables, ie, Aksepaņi, Praksepani, Samvejanī, and Nirvedani, as well as purporting a query. Jadi, The contents of the Agama, as mentioned in the said works, is not found today. What is found covers the five Aśrawas (Hinsä, Asatya, Caurya, Ābrahmaćarya and Parigraha) and the five Samwaras (Ahimsa, Satya, Aćaurya, Brhmacarya, and Aparigraha) only. The Nandi does not make mention of it at all. The Samawāyānga mentions the Adhyayanas beginning from Ācārya-Bhāşita, while the Jayadhawala gives an account of the four kinds of fables beginning from Akşepani. It may be inferred that the known contents of the Agama formerly were in the form of the queries and subsequently, the learning of query etc. being lost, the remanent part formed the present Āgama. It is also likely that the old form of the present Āgarna being lost, some Āćarya composed it a fresh. The 'Vacna' of this Āgama given in the Nandi, does not narrate the Aśrawas and the Samwaras, but the Ćūrņi of the Nandi does it.3 Likely it is that the Čūrņikära did it on the basis of the present form of the Āgama. 1. Tattwarthavarttika 1/20. 2. Kasayapahuda part I, page 131. 3. Nandi Sutra with the Curni on page 12. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 39 VIVĀGASUYAM The title The present Āgama is the 11th Anga of the Dwādaśāngi. The Vipāka (fruit) of the Sukrita and Duskrita deeds has been dealt with in it, therefore the title "Vivāgasuyam.' The Sthānānnga gives its title as Kāmma Vivāgadasā." The Contents This Agama has two divisions, i.e. the Dukha Vipāka and the Sukha Vipāka. The first division contains the topics on the lives of the individuals doing bad deeds. On going through the said contents, it appears that, in every age, there are some individuals who commit horrible crimes on account of their cruel mentality. It is also gathered how the criminal deeds affect their physical and mental states. The second division has the life-contents of those individuals who perform good deeds. As the commitant of cruel deeds are found in every age, so are the persons having the tranquil mentality. Conjunction of goodness and badness is not without cause. Conclusion The Sthānānga Sūtra enamurates ten Adhyayanas of the Karma-Vipāka such as, Mrigāputra, Gotrāsa, Anda, Sakata, Māhan, Nandişeņa, Saurika Udumbara, Sahasoddāha-Amaraka, and Kumar Licéhavī. These headings have been taken from some other Vaćna'. The account of the Anga-Sūtras and the peculiar form they are presently found in are not fully harmonic. On this basis, it may be inferred that the obtained form of the Āgama Sūtras in not ancient only, but is a mixture of the editions of old and new, both. This will form an important subject of investigation as to how much of the present form of the AngaSūtra is ancient and how much modern, as well as who of the Āćaryas composed it and when. The language, the subject-matter and the style of ascertainment will surely form the basis of investigation. This is of course, highly toilsome, but not impossible. 1. (a) Samawao, painnagasamawao, Sutra 99 (b) Nandi Sutra 91. (c) Tattawarthavarttika 1/20 (d) Kasayapahuda, Pt I, page 132. 2. Thanam 10/110. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Accomplishment of the work In the accomplishment of this task, there has been the contribution of many a Muni. I bless them that their devotedness to the performance be ever more developed. 40 For the editing of this Agama major amount of credit goes to my learned disciple Muni Shri Nath Mali. Day in and day out he has devoted himself to this arduous task. It is because of his concentrated efforts that the work has got such a nice accomplishment. Otherwise, it would not have been an easy job. On account of his in-born Yogic temperament he was capable of attaining that concentration of mind which was essential for achieving the end. On account of his constant devotion to the work of research in the field of Agamic literature his intellect has achieved sufficient sharpness in finding out immediately the hidden meaning and mysteries of Agamic expositions. His keen sense of obedience, perseverance and absolute dedication have contributed much in developing his personality. The above qualities are seen in him since his early age. Right from the time when he joined the Sangha I have been an observor of these qualities of his, which have. so developed. His capacity to undertake to a big task has given me ever increasing satisfaction. I have undertaken this hard and tremendous task of editing the Agamas relying on the strength of such learned disciples in the Sangha. I am now, quite confident that I shall be able to complete this hazardous work with. the help and assistance of my obedient, selfless and devout disciples. On the holy occasion of this 25th centinary of Lord Mahavira, I have a feeling of great pleasure in presenting to the people the teachings of the Lord. Anuvrata Vihar Delhi Acharya Tulasi Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसथाणुक्कम नायाधम्मक हाओ पढमं अभयणं सू० १-२१३ पृ० १-७३ उक्लेव पदं १, मेहस्स नगरपरिवारादि-वण्णग- पदं ११, धारिणीए सुमिणदंसण - पदं १८ सेणियस्स सुमिणनिवेदण-पदं १६, सेणियस्स सुमिणमहिम-निदंसण- पदं २०, धारिणीए सुमिण जागरिया - पदं २१, सुमिणपाठग - निमंतण-पदं २२, सेणियस्स सुमिणफल- पुच्छा-पदं २७, सुमिणफलकहण-पदं २६, सुमिणपाठम-विसज्जण-पदं ३०, सेणियस्स सुमिणपसंसा-पदं ३१, धारिणीए दोहल - पदं ३२, धारिणीए चिंता-पदं ३४, पडिचारियाण चिंताकारणपुच्छा - पदं ३५, पडिचरियाणं सेणियस्स निवेदण-पदं ३६, सेणियस्स चिंताकारण-पुच्छा-पदं ४०, धारिणीए चिंताकारणनिवेदण-पदं ४५, सेणियस्स आसासण-पदं ४६, अभयकुमारस्स सेयं पर चिताकारण पुच्छा-पदं ४७, सेणियस्स चिंताकारणनिवेदण-पदं ४६, अभयस्स आसा सण - पदं ५०, अभयस्स देवाराहण-पदं ५२, देवागमण-पदं ५४, देवस्स अकाल मेहविवण-पदं ५६, धारिणीए दोहद- पूरण-पदं ६०, अभएण देवस्स पडिविसज्जण पदं ७०, धारिणी गभरिया- पदं ७२, मेहस्स जम्म वद्धावण - पदं ७३ । मेहस्स जम्मुस्सवकरणपदं ७६, मेहस्स नामादिसक्कार (संस्कार) करण-पदं ८१, मेहस्स लालणपालण - पदं ८२, मेहस्स कलागहण - पदं ८४, मेहस्स पाणिग्गहण-पदं ८६, पीइदाण- पदं ε१, महावीरसमवसरण -पदं ε४, मेहस्स जिन्नासा - पदं ६५, कंचुइज्जपुरिसस्स निवेदण-पदं ६७, मेहस्स भगवओ समीवे गमण-पदं ८, धम्मदेसणा-पदं १००, मेहस्स पव्वज्जासंकष्प-पदं १०१, मेहस्स अम्मापणं निवेदण-पदं १०२, धारिणीए सोगाकुलदसा - पदं १०५, धारि णीए मेहस्स य परिसंवाद - पदं १०६, मेहस्स एगदिवसरज्ज- पदं ११४, मेहस्स निक्खमणपाओग्ग उवगरण-पदं १२१, कासवेण मेहस्स अग्गकेसकप्पण-पदं १२४ मेहस्स अलंकरणपदं १२८, मेहस्स अभिनिक्खमणमहुस्सव- पदं १२६, सिस्सभिक्खादाण-पदं १४५, मेहस्स पव्वज्जागहण - पदं १४६, मेहस्स मणो-संकिलेस - पदं १५२, मेहस्स संबोध - पदं १५५, भगवया सुमेरुप्पम - भवनिरूवण-पदं १५६, भगवया मेरुप्पभ- भवनिरूवण-पदं १६३, मेरुप्पभेण मंडलनिम्माण - पदं १७४, दवग्गिभीतसावयाणं मंडलपवेस - पदं १७८, मेरुघभस्स पादुक्खेवपदं १८०, तीय संदभे वट्टमाण - तितिक्खोवदेस - पदं १८८, मेहस्स जाइसरण - पदं १६०, मेहस्स समप्पणपुब्वं पुणो पव्वज्जा- पदं १६१, मेहस्स निग्गंठचरिया - पदं १९४, मेहस्स Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ भिक्खुपडिमा - पदं १९६, मेहस्स गुणरयणसंवच्छर-पदं १६६, मेहस्स सरीरदसा - पदं २०२, मेहस्स विपुलपव्वए अणसण-पदं २०३, मेहस्स समाहिमरण-पदं २०८, थरेहिं मेहस्स आयाणभंडस मप्पण - पदं २०६, गोयमपुच्छाए भगवओ उत्तरपदं २१०, निक्खेव पदं २१३ | बीयं अभयणं सू० १-७७ पृ० ७४ - ६२ संताणमणोरह-पदं १२, भद्दाए उक्खेव-पदं १, धणसत्थवाह-पदं ७, विजयतक्कर - पदं ११ भद्दाए देवदिन्न - पुत्तपसव - पदं १६, देवदिन्नस्स कीडा - पदं २५, देवदिन्नस्स अपहार - पदं २८, देवदिन्नस्स गवेसणा-पदं २६, विजयतक्करस्स निग्गह- पदं ३३, देवदिन्नस्स नीहरण-पदं ३४, are free- पदं ३५, धणस्स घराओ आहाराणयण-पदं ३७, विजयतक्करेण संविभाग गण-पदं ३६, धणस्स तन्निसेध-पदं ४०, आबाधितस्स धणस्स विजयतक्करावेक्खापदं ४३, विजयतक्करेण तन्निसेध-पदं ४५, धणेण पुणो कथिते विजएण संविभाग मग्गण-पदं ४७, धणेण विजयस्स संविभागदाण-पदं ५२, पंथगस्स भद्दाए साटोवं तन्निवेदण-पदं ५५, भद्दा कोव पदं ५७, धणस्स चारमुत्ति-पदं ५८, धणस्स सम्माण- पदं ५६, भद्दाए कोवोवसमपुब्वं सम्माण- पद ६१, विजय णायस्स निगमण-पदं ६७, धण णायस्स निगमण-पदं ६६, निक्खेव पदं ७७ | सू० १-३५ पृ० ६३ - १०२ उक्खेव - पदं १, मयूरी अंड - पदं ५, सत्थवाहदारंग- पदं ६, देवदत्ता गणिया-पदं ८, सत्थवाहदरगाणं उज्जाणकीडा-पदं &, सत्थवाहदारगेहिं मयूरी अंडगाणयण-पदं १७, सागरदत्तपुत्तस्स संदेहेण अंडयविणास पदं २१, जिणदत्तपुत्तस्स सढाए मयूर-लद्धि-पदं २५, निक्खेव पदं ३५ । तच्चं अभयणं चत्थं अभयणं सू० १-२३ पृ० १०३ – १०८ उक्खेव पदं १, पावसियालग-पदं ६, कुम्भ-पदं ७, पावसियालगाणं आहारगवेसण - पदं 5, कुम्माणं साहरण-पदं १० अगुत्तकुम्मस्स मच्चु पदं १३, गुत्तकुम्मस्स सोक्ख- पदं १६, निक्खेव पदं २३ | पंचमं अभयणं सू० १-१३० पृ० १०६ - १३६ उक्खेव-पदं १, थावच्चापुत्त-पदं ७, अरिट्ठनेमि - समवसरण पदं १०, कण्हस्स पज्जुवासणा-पदं १२, थावच्चापुत्तस्स पव्वज्जासंकप्प- पदं १८, कण्हस्स थावच्चापुत्तस्स य परिसंवाद - पदं २२, कण्हस्स जोगक्खेम-घोसणा - पदं २६, थावच्चापुत्तस्स अभिनिक्खमण-पदं २७, सिस्स भिक्खा - दाण-पदं ३०, थावच्चापुत्तस्स पव्वज्जागहण-पदं ३४, थावच्चापुत्तस्स अणगारचरिया-पदं ३५, थावच्चापुत्तस्स जणवयविहार- पदं ३६. सेलगराय - पदं ४२, सेलगस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ ४५, सेलगस्स समणोवासयचरिया-पदं ४७, सुदंसणसेट्टि-पदं ५१, सुयपरिव्वायग-पदं ५२, सोयमूलयधम्म-पदं ५५, सुदंसणस्स सोयमूलय-धम्मपडिवत्ति-पद ५६, थावच्चापुत्तस्ससुदंसणेण संवाद-पदं ५८, सुदंसणस्स विणयमूलय-धम्मपडिवत्ति-पदं ६२, सुएण सुदंसणस्स पडिसंवोधपयत्त-पदं ६५, सूयस्स थावच्चापत्तेण संवाद-पदं ७०, सरिसवयाणं भक्खाभक्ख-पदं ७३. कुलत्थाणं भक्खाभक्ख-पदं, ७४, मासाणं भक्खाभक्ख-पदं ७५, अत्थित्त-पण्ह-पदं ७६, सुयस्स परिव्वायगसहस्सेण पव्वज्जा-पदं ७७, सुयस्स जणवयबिहार-पदं ८१, थावच्चापुत्तस्स परिनिव्वाण-पदं ८३, सेलगस्स अभिनिक्खमणामिप्पाय-पदं ८५, मंड्रयस्स रायाभिसेय-पदं ६२, सेलयस्स निक्खमणाभिसेय-पदं ६६, सेलगस्स पव्वज्जा-पदं ६६, सेलगस्स अणगारचरिया-पदं १००, सुयस्स परिनिव्वाण-पदं १०२, सेलगस्स रोगातंक-पदं १०६, सेलगस्स तिगिच्छा-पदं ११०, सेलगस्स पमत्तविहार-पदं ११७, साहूहिं सेलगस्स परिच्चायपदं ११८, पंथगस्स चाउम्मासिय-खामणा-पदं ११६, सेलगस्स कोव-पदं १२२, सेलगस्स अब्भुज्जयविहार-पदं १२४, निक्खेव-पदं १३० । ' छठें अज्झयणं सू० १-५ उक्खेव-पदं १, गरुयत्त-लहयत्त-पदं ४, निक्खेव-पदं ५ पृ० १४०-१४२ सत्तमं अज्झयणं सू०१-४४ पृ० १४३-१५४ उक्खेव-पदं १. धणसत्यवाह-पदं ३, धणस्स परिक्खापयोग-पदं ६ परिक्खापरिणाम-पदं २२, निक्खेव-पदं ४४। अट्ठम अज्झयणं सू० १-२३६ पृ० १५५-२०३ उक्खेव-पदं १, बल-राय-पदं २, महब्बलंराय-पदं ६, महब्बलादीणं पव्वज्जा-पदं १६. महब्वलस्स तवविसय-माया-पदं १८, महब्वलादीणं विविहतवचरण-पदं १६, समाहिमरणपदं २६, पच्चायाति-पदं २७, मल्लिस्स मोहणघर-निम्माण-पदं ४०, पडिबुद्धिराय-पदं ४३, चंदच्छाय-राय-पदं ६४, रुप्पि-राय-पदं ६०, संख-राय-पदं १०१, अदीणसत्त-राय-पदं ११४, जियसत्तु-राय-पदं १३८, दूयाणं संदेस-निवेदण-पदं १५७, कुभएण दूयाणं असक्कार-पदं १५६, जियसत्तुपामोक्खाणं कुंभएणं जुज्झ-पदं १६१, मल्लीए चिंताहेउ-पुच्छा-पदं १६६, कंभगस्स चिंताहेउ-कहण-पदं १७२, मल्लीए उवायनिरूवण-पदं १७३, मल्लीए जियसत्तपामोक्खाणं संवोह-पदं १७५, जियसत्तुपामोक्खाणं जाइसरण-पदं १८१, मल्लीए पव्वज्जापदं १८२, मल्लिस्स केवलणाण-पदं २२५, जियसत्तुपामोक्खाणं पव्वज्जा-पदं २२७, मल्लिस्स सिस्ससंपदा-पदं २३० मल्लिस्स निव्वाण-पदं २३५, निक्खेव-पदं ३३६ । नवमं अज्झयणं सू०१-६४ पृ० २०४-२२० उक्खेव-पदं १, मागंदिय-दारगाणं समुद्दजत्ता-पदं ४, नावा भंग-पदं ६, रयणदीव-पदं १३. रयणदीवदेवया-पदं १६, रयणदीवदेवयाए मांगदिय-पुत्ताणं निद्देस-पदं १६, मागंदियपुत्ताणं Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वणसंडगमण-पदं २१, सेलगजक्ख-पदं २६, रयणदीवदेवया-उवसग्ग-पदं ३७, जिणरक्खियविवत्ति-पदं ४१, जिणपालियस्स चंपागमण-पदं ४५, निक्खेव-पदं ५४ । दसमं अज्झयणं पृ० २२१-२२३ उक्खेव-पदं १, परिहायमाण-पदं २, परिवडढमाण-पदं ४, निक्खेव-पदं ६ । एक्कारसमं अज्झयणं सू०१-१० पृ० २२४-२२६ उक्खेव-पदं १, देसविराहय-पदं २, देसाराहय-पदं ४, सव्वविराहय-पदं ६, सव्वाराहय-पदं निक्खेव-पदं १०। बारसमं अज्झयणं सू० १४६ पृ० २२७-२३६ उक्खेव-पदं १, फरिहोदग-पदं ३, जियसत्तुणा पाणभोयणपसंसा-पदं ४, सुबुद्धिस्स उहा-पदं, ६, जियसत्तुणा फरिहोदगस्स गरहा-पदं ११, सुबुद्धिस्स उवेहा-पदं १५, जियसत्तस्स विरोधपदं १८, सुबुद्धिणा जलसोधण-पदं १६, सुबुद्धिणा जलपेसण-पदं २०, जियसत्तुणा उदगरयणपसंसा-पदं २१, जियसत्तुणा उदगाणयणपुच्छा-पदं २४, सुबुद्धिस्स उत्तर-पदं २७, जियसत्तुणा जलसोधण-पदं ३०, जियसत्तुस्स जिण्णासा-पदं ३१, सुबुद्धिस्स उत्तर-पदं ३२, जियसत्तुस्स समणोवासयत्त-पदं ३४, पव्वज्जा-पदं ३८, निक्खेव-पदं ४६ । तेरमर्म अज्झयणं सू० १-४५ पृ० २३७-२४७ उक्खेव-पदं १, गोयमस्स पुच्छा-पदं ४, भगवओ उत्तरे ददुरदेवस्स नंदभव-पदं ७, नंदस्स धम्मपडिवत्ति-पदं ६, मिच्छत्तपडिवत्ति-पदं १३, पोक्खरिणी-निम्माण-पदं १५, वणसंड-पदं १८, चित्तसभा-पदं २०, महाणससाला-पदं २१, तिगिच्छियसाला-पदं २२, अलंकारियसभा-पदं २३, नंदस्स पसंसा-पदं २४, नंदस्स रोगप्पत्ति-पदं २८, तिगिच्छा-पदं २६, भगवओ उत्तरे ददुरदेवस्स ददुरभव-पदं ३२, दगुस्स जाइसरण-पदं ३५, भगवओ रायगिहे समवसरण-पदं ३७, ददुरस्स समवसरणं पइ गमण-पदं ३६, दद्दुरस्स मच्चुपदं ४१, निक्खेव-पदं ४५ । चोदसमं अज्झयणं सू० १-८९ पृ० २४८-२६५ उक्खेव-पदं १, पोट्टिलाए कीडा-पदं ८, तेयलिपुत्तस्स आसत्ति-पदं ६, पोट्टिलाए वरण-पदं १२ पोट्रिलाए विवाह-पदं १८, कणगरहस्त रज्जासत्ति-पदं २१, पउमावईए अमच्चेणमंतणापदं २२, अवच्च परिवत्तण-पदं २४, दारियाए मयकिच्च-पदं ३१, अमच्चपुत्तस्स उस्सव-पदं ३३, पोट्टिलाए अप्पियत्त-पदं ३६, पोट्टिलाए दाणसाला-पदं ३८, अज्जा-संघाडगस्स भिक्खायरियागमण-पदं ४०, पोट्टिलाए अमच्चपसायोवाय-पुच्छा-पदं ४३, अज्जा-संघाडगस्स उत्तर-पदं ४४, पोट्टिलाए सावया-पदं ४५, पोट्टिलाए पव्वज्जा-पदं ५०, कणगरहस्स Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मच्च-पदं ५५, कणगझयस्स रायाभिसेय-पदं ५७, तेयलिपुत्तस्स सम्माण-पदं ६०, पोट्टिलदेवेण तेयलिपुत्तस्स संबोह-पदं ६२, तेयलिपुत्तस्स मरणचेट्ठा-पदं ७२, तेयलिपुत्तस्स विम्हयकरण-पदं ७७, पोट्टिलदेवस्स संवाद-पदं ७८, तेयलिपुत्तस्स जाईसरणपुव्वं पव्वज्जापदं ८१, केवलणाण-पदं ८३, कणगझयस्स सावगधम्म-पदं ८५, तेयलिपुत्तस्स सिद्धि-पदं ८८, निक्खेव-पदं ८६।। पण्णरसमं अज्झयणं सू० १-२२ पृ० २६६-१७१ उक्खेव-पदं १, धणस्स घोषणा-पदं ६, धणस्स निद्देस-पदं ११, निद्देसपालणस्स निगमण-पदं १३, निद्देसापालणस्स निगमण-पदं १५, धणस्स अहिच्छत्ताऽागमण-पदं १७, धणस्स पव्वज्जा-पदं २०, निक्खेव-पदं २२ । सोलसमं अज्झयणं सू० १-३२७ पृ० २७२-३३५ उक्खेव-पदं १, नागसिरी-कहाणग-पदं ४, नागसिरीए तित्तालाउय-उवक्खडण-पदं ६, धम्मरुइस्स तित्तालाउय-दाण-पद ११, तित्तालाउय-परिठ्ठावण-पदं १६, अहिंसटुं तित्तालाउयभक्खण-पदं १६, धम्मरुइस्स समाहिमरण-पदं, २०, साहहिं धम्मरुइस्स गवेसण-पदं २२, साहहिं धम्मरुइस्स समाहिमरण निवेदण-पदं २३, धम्मरुइस्स सइसभा-पदं २४, नागसिरीए गरिहापदं २५, नागसिरीए गिहनिवासण-पदं २८, नागसिरीए भबभमण-पदं ३०, समालियाकहाणगपदं ३२, सूमालियाए सागरेण सद्धि विवाह-पदं ३७, सागरस्स पलायण-पदं ५२, सूमालियाए चिंता-पदं ६२, सागरदत्तेण जिणदत्तस्स उवालंभ-पदं ६७, सागरस्स पुणोगमणव्दास-पदं ६८, सूमालियाए दमगेण सद्धि पुणव्विवाह-पदं ७०, दमगस्स पलायणपदं ८० सूमालियाए पुणोचिंता-पदं ८७, सूमालियाए दाणसाला-पदं ६२, अज्जासंघाडगस्स भिक्खारियागमण-पदं ६४, सूमालियाए सागरपसायोवाय-पूच्छा-पदं १७, अज्जा-संघाडगस्स उत्तर-पदं१८, सूमालियाए साविया-पदं-६६, सूमालियाए पव्वज्जापदं १०४, सूमालियाए आतावणा-पदं १०६, सूमालियाए नियाण-पदं १०६, सूमालियाए वाउसियत्त-पदं ११४, सूमायालिए पुढोविहार-पदं ११८, दोवईकहाणग-पदं, १२०, दोवईए सयंवर-संकप्प-पदं, १३१, बारवईए दूयपेसण- पदं १३२, कण्हस्स पत्थाण-पदं १३६, हत्थिणाउरे दूयपेसण-पदं १४२, दूयपेसण-पदं १४५. रायसहस्साणं पत्थाण-पदं १४६, दुवयस्स आतित्थ-पदं १४७, दोवईए सयंबर-पदं १५३. दोवईए पंडव-वरण-पदं १६४, पाणिग्गहण-पदं १६७, पंदुरायस्स निमंतण-पदं १७०. पंड्रायस्स आतित्थ-पदं १७२, कल्लाणकार-पदं १८१, नारदस्स आगमण-पदं १८४, नारदस्स अवरकंका-गमण-पदं १६१, दोवईए साहरण-पदं २०१, दोवईए चिंता-पदं २०७, पउमनाभस्स आसासण-पदं २०८, दोवईए गवेषणा-पदं २१२, दोवईए उवलद्धि-पदं २२६. सपंडवस्स कण्हस्स पयाण-पदं २३३, कण्हस्स देवाराधण-पदं २३७, कण्हस्स मग्गजायणा-पदं २३६, कण्हेण दूयपेसण-पदं, २४३, पउमनाभेण दूयस्स अवमाण-पदं २४५, दूयस्स पूणो आगमण-पदं २४६, पउमनाभस्स पंडवेहिं जुद्ध-पदं २४७, पंडवाणं पराजय-पदं २५२. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कण्हेण पराजय-हेउ-कहणपुव्वं जुज्भ-पदं २५४, पउमनाभस्स पलायण-पदं २६०, कण्हस्स नरसिंहरूव-पदं २६१ पउमनाभस्स सरण-पदं २६३, सदोवई-पंडवस्स कण्हस्स पच्चावटण-पदं २६६, वासुदेव-जुयलस्स संखसद्देण मिलण-पदं २६८, कविलेण पउमनाभस्स निव्वासण-पदं २७८, अपरिक्खणीयपरिक्खा-पदं २८१, कण्हेण पंडवाणं निव्वासण-पदं २८६, पंडुमहरानिवेसण-पदं ३०३, पंडुसेण जम्म-पदं ३०४, पंडवाणं दोवईए य पव्वज्जा-पदं ३१०, अरिट्ठनेमिस्स निव्वाण-पदं ३१८, पंडवाणं निव्वाण-पदं ३२३, दोवईए देवत्त-पदं ३२५, निक्खेव-पदं ३२७ । सत्तरसमं अज्झयणं सू० १-३७ पृ०३३६-३४६ उक्खेव-पदं १, कालियदीव-जत्ता-पदं ५, कालियदीवे आस-पेच्छण-पदं १४, संजत्तियाणं पणरागमण-पदं १६, आसाण आणयण-पदं १७, अमुच्छिय-आसाणं सायत्त-विहार-पदं २४, निगमण-पदं २५, मुच्छिय-आसाणं परायत्त-पदं २६, निगमण-पदं ३६ । अट्ठारसमं अज्झयणं सू० १-६२ पृ० ३४७-३५८ उख्खेव-पदं १, चिलाय-दासचेडस्स विग्गह-पदं ६, चिलायस्स गिहाओ निक्कासण-पदं १०. चिलायस्स दृव्वसण-पवत्ति-पदं १६, चोरपल्ली-पदं १८, चिलायस्स चोरपल्ली-गमण-पदं २३. विजयस्स मच्च-पदं २६, चिलायस्स चोरसेणावइत्त-पदं २८, चिलायस्स धणस्स गिहे चोरिय-पदं ३३, नगरगुत्तिएहिं चोरनिग्गह-पदं ३६, चिलायस्स चोरपल्लीतो पलायण-पदं ४४, निगमण-पदं ४८, धणस्स संसुमाकए कंदण-पदं ४६, धणेणं अडवि-लंघणट्र सूयामंससोणियाहार-पदं ५१, निगमण-पदं ६० । एगूणवीसइमं अज्झयणं सू०१-४६ पृ० ३५६-३६७ उक्खेव-पदं १, कंडरीयस्स पव्वज्जा-पदं ८, कंडरीयस्स वेयणा-पदं २०, कंडरीयस्स तिगिच्छा-पदं २२, कंडरीयस्स पमत्त-विहार-पदं २७, पुडरीएण पडिबोह-पदं २६, कंडरीयस्स पव्वज्जा-परिच्चाय-पदं ३२, पुंडरीयस्स पव्वज्जा-पदं ३८, कंडरीयस्स मच्च-पदं ३६, निगमण-पदं ४२, पूडरीयस्स आराहणा-पदं ४३, निगमण-पदं ४७, निक्खेव-पदं ४८. बीओ सुयक्खंधो पढमो वग्गो १-५ अज्झयणाणि सू० १-६३ पृ० ३६८-३८० उक्खेव-पदं १, कालीदेवी-पदं १०, कालीए भगवओ वंदण-पदं ११, गोयमस्स पसिण-पदं १३. भगवओ उत्तरे काली-पदं १५, कालीए पव्वज्जा-पदं १६, कालीए वाउसियत्त-पदं ३४, कालीए पढो विहार-पदं ३८, कालीए मच्चु-पदं ३६, निक्खेव-पदं ४५ । २-५ अज्झयणाणि Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ उवासगदसाओ पढम अज्झयणं सू०१-८६ पृ० ३६५-४२० उक्खेव-पदं १, आणंदगाहावइ-पदं ८, महावीर-समवसरण-पदं १७, आणंदस्स गिहिधम्मपडिवत्ति-पदं २३, अतियार-पदं ३१, आणंद-अभिग्गह-पदं ४५, सिवणंदाए वंदण?-गमणपदं ४६, सिवणंदाए गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं ५१, गोयम-पुच्छा-पदं ५३, भगवओ जणवयविहार-पदं ५४, आणंदस्स समणोवासग-चरिया-पदं ५५, सिवणंदाए समणोवासिय-चरियापदं, ५६, आणंदस्स धम्मजागरिया-पदं ५७, आणंदस्स उवासगपडिगा-पडिवत्ति-पदं ६१. आणंदस्स अणसण-पदं ६५, आणंदस्स ओहिनाणुप्पत्ति-पदं ६६, गोयमस्स आगमण-पदं ६७, आणंद-गोयम-संवाद-पदं ७६, भगवओ उत्तर-पदं ८१, गोयमस्स खामणा-पदं ८२, भगवओ जणवयविहार-पदं ८३, आणंदस्स समाहिमरण-पदं ८४, निक्खेव-पदं ८६ । बीयं अज्झयणं सू० १-५७ पृ० ४२१-४३६ उक्खेव-पदं १, कामदेवगाहावइ-पदं २, महावीर-समवसरण-पदं ७, कामदेवस्य गिहिधम्मपडिवत्ति-पदं १३, भगवओ जणवयविहार-पदं १५, कामदेवस्य समणोवासयग-चरिया-पदं १६. भट्टाए समणोबासिय-चरिया-पदं १७, कामदेवस्स धम्मजागरिया-पदं १८, कामदेवस्स पिसायरूव-कय-उवसग्ग-पदं २०, कामदेवस्स हत्थिरूव-कय-उवसग्ग-पदं २८, कामदेवस्स सप्परूव-कय-उवसग्ग-पदं ३४, देवरूव-विउव्वण-पदं ४०, कामदेवस्स पडिमापारण-पाद ४१, कामदेवस्स भगवओ पज्जूवासणा-पदं ४२, भगवया कामदेवस्स उवसग्गवागरण-पदं ४५, भगवया कामदेवस्स पसंसा-पदं ४६, कामदेवस्स पडिगमण-पदं ४८. भागवओ जणवयविहार-पदं ४६, कामदेवस्स उवासगपडिमा-पडिवत्ति-पदं ५०, कामदेवस्स अणसण-पदं ५४, कामदेवस्स समाहिमरण-पदं ५५, निक्खेव-पदं ५७ । तइयं अज्झयणं सू० १-५३ पृ०४४०-४५३ उक्खेव-पदं १, चुलणीपियगाहावइ-पदं २, महावीर-समवसरण-पदं ७ चुलणीपियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३, भगबओ जणवयविहार-पदं १५, चूलणीपियस्स समणोवासगचरिया-पदं १६, सामाए समणोवासिय-चरिया-पदं १७, चूलणीपियस्स धम्मजागरिया-पदं १८, चलणीपियस्स देव-कय-उवसग्ग-पदं २०, जेठ्ठपुत्त २१, मज्झिमपुत्त २७, ०कणीयसपूत्त ३३,० भद्दासत्थवाही ३६, चूलणीपियस्स कोलाहल-पदं ४२, भद्दाए पसिण-पदं ४३. चलणीपियस्स उत्तर-पदं ४४, पायच्छित्त-पदं ४५, चुलणीपियस्स उवासगपडिमा-पदं ४७. चलणीपियस्स अणसण-पदं ५१, चूलणीपियस्स समाहिमरण-पदं ५२, निक्खेव-पदं ५३ । चउत्थं अज्झयणं सू०१-५३ पृ०४५४-४६६ उक्खेव-पदं १, सुरादेवगाहावइ-पदं २, महावीर-समवसरण-पदं ७, सुरादेवस्स गिहिधम्मपडिवत्ति-पदं १३, भगवओ जणवयविहार-पदं १५, सुरादेवस्स समणोवासग-चरिया-पदं १६, Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ धन्नाए समणोवासिव-चरिया-पदं १७, सुरादेवस्स धम्मजागरिया-पदं १८, सुरादेवस्स देवकय-उवसग्ग-पदं २०, ° जेठ्ठपुत्त २१, ° मज्झिमपुत्त २७, ° कणीयसपुत्त ३३, ° सोलसरोगायंक ३६, सुरादेवस्स कोलाहल-पदं ४२, धन्नाए पसिण-पदं ४३, सुरादेवस्स उत्तर-पदं ४४, पायच्छित्त-पदं ४५, सुरादेवस्स उवासगपडिमा-पदं ४७, सुरादेवस्स अणसण-पदं ५१, सूरादेवस्स समाहिमरण-पदं ५२, निक्खेव-पदं ५३ । पंचमं अज्झयणं सू०१-५४ पृ० ४६७-४१६ उक्खेव-पदं १, चुल्लसययगाहावइ-पदं २, महावीर-समवसरण-पदं ७, चूल्लसययस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३, भगवओ जणवयविहार-पदं १५, चुल्लसयतस्स समणोवासग-चरियापदं १६, बहुलाए समणोवासिय-चरिया-पद १७, चूल्लसयय-धम्मजागरिया-पदं १८, चुल्लसयगस्स देव-कय-उवसग्ग-पदं २०, °जेठ्ठपुत्त २१, ° मज्झिमपुत्त २७, ° कणीयसपुत्त ३३. हिरण्णकोडीबिप्पकिरण ३६, चूल्लसययस्स कोलाहल-पदं ४२, बहलाए पसिण-पदं ४३, चूल्लसयगस्स उत्तर-पदं ४४, पायच्छित्त-पदं ४ , चूल्लसयगस्स उवासगपडिमा-पदं ४७, चल्लसयगस्स अणसण-पदं ५१, चूल्लसययस्स समाहिमरण-पदं ५२, निक्खेव-पदं ५४ । छठें अज्झयणं सू० १-४२ पृ० ४८०-४८६ उक्खेव-पदं १, कंडकोलियगाहावइ-पदं २, महावीर समवसरण-पदं ७, कंडकोलियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३, भगवओ जणवयविहार-पदं १५, कुंडकोलियस्स समणोवासगचरिया-पदं १६, पूसाए समणोवासिय-चरिया-पदं १७, देवेण नियतिवाद-समत्थण-पदं १८, कंडकोलिएण नियतिवाद-निरसण-पदं २१, देवेण नियतिवाद-समत्थण-पदं २२, कंडकोलिएण नियतिवाद-निरसण-पदं २३, देवस्स पडिगमण-पदं २४, महावीर-समवसरण-पदं २५, महावीरेण पुव्ववुत्तंत-परूवण-पदं २८, महावीरेण कुंडकोलियस्स पसंसा-पद २६. भगवओ जणवयविहार-पदं ३२, कुंडकोलियस्स धम्मजागरिया-पदं ३३, कुंडकोलियस्स उवासगपडिमा-पदं ३५, कुंडकोलियस्स अणसण-पदं ३६, कुंडकोलियस्स समाहिमरण-पदं ४०, निक्खेव-पदं ४२। सत्तमं अज्झयणं सू०१-८६ पृ०४६०-५१३ उक्खेव-पदं १, सद्दालपुत्त-पदं २, सद्दालपुत्तस्स देवसंदेस-पदं ८. सद्दालपुत्तस्स संकप्प-पदं ११. महावीर-समवसरण-पदं १२, महावीरस्स देवसंदेस-विरूवण-पदं १७, सद्दालपुत्तस्स निवेदण-पदं १८, महावीरेण सद्दालपुत्त-संबोधण-पदं १६, सद्दालपुत्तस्स गिहिधम्म-पडिवत्तिपदं २८, अग्गिमित्ताए वंदणठू-गमण-पदं ३३, अग्गिमित्ताए गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं ३७ भगवओ जणवयविहार-पदं ३६, सद्दालपुत्तस्स समणोवासगचरिया-पदं ४०, अग्गिमित्तारा समणोवासियचरिया-पदं ४१, गोसालस्स आगमण-पदं ४२, गोसालेण महावीरस्स गणकित्तण-पदं ४४, विवाद-पट्टवणा-पसिण-पदं ५०, सद्दालपुत्तस्स धम्मजागरिया-पदं ५४. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सद्दालपुत्तस्स देवरूव-कय-उवसग्ग-पदं ५६, • जेट्टपुत्त ५७, ° मज्झिमपुत्त ६३, ° कणीयसपुत्त ६६, °अग्गिमित्ताभारिया ७५, सद्दालपुत्तस्स कोलाहल-पदं ७८, अग्गिमित्ताए पसिण-पदं ७६, सद्दालपुत्तस्स उत्तर-पदं ८०, पायच्छित्त-पदं, ८१, सद्दालपुत्तस्स उवासगपडिमा-पदं ८३, सद्दालपुत्तस्स अअसण-पदं ८७, सद्दालपुत्तस्स समाहिमरण-पदं ८८, निक्खेव-पदं ८६। अट्ठमं अज्झयं सू० १-५४ पृ० ५१४-५२६ उक्खेव-पदं १, महासतयगाहावइ-पदं २, महावीर-समवसरण-पदं ८, महासतयस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १४, महासतयस्स समणोवासग-चरिया-पदं १६, भगवओ जणवयविहारपदं १७, रेवतीए चिंता-पदं १८, रेवतीए सवत्ती-उद्दवण-पदं १६, रेवतीए मंसमज्जासायणपदं २०, अमाघाय-पदं २१, महासतगस्स धम्मजागरिया-पदं २५, महासतगस्स अणकलउवसग्ग-पदं २७, महासतगस्स उवासगपडिमा-पदं ३२, महासतगस्स अणसण-पदं ३६, महासतगस्स ओहिनागुप्पत्ति-पदं ३७, महासतगस्स पुणरवि अगुकूल-उवसग्ग-पद ३८, महासतगस्स विक्खेव-पदं ४१, महावीर-समवसरण-पदं ४४, महासतगस्स अंतिए गोतमपेसण-पदं ४६, गोतमस्स आगमण-पदं ४७, महासतगम वंदण-पदं ४८, महावीरुत्तस्स कहण-पदं ४६, महासतगस्स पायच्छित्त-पदं ५०, गोयमस्स पडिणिक्खमण-पदं ५१, भगवओ जणवयविहार-पदं ५२, महासतगस्स अणसण-पदं ५३, निक्खेव-पदं ५४ । नवमं अज्झयणं सू० १-२७ पृ० ५२७-५३१ उक्खेव-पदं १, नंदिणीपियगाहावइ-पदं २, महावीर-समवसरण-पदं ७, नंदिणीपियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३, भगवओ जणवयविहार-पदं १५, नंदिणीपियस्स समणोवासगचरिया-पदं १६, अस्सिणीए समणोवासिय-चरिया-पदं १७, नंदणीपियस्स धम्मजागरियापदं १८, नंदिणीपियस्स उवासगपडिमा-पदं २०, नंदिणी पियस्स अणसण-पदं २४, नंदिणीपियस्स समाहिमरण-पदं २५, निक्खेव-पदं २७ । दसमं अज्झयणं सू० १-२७ पृ० ५३२-५३७ उक्खेव-पदं १, लेइयापितागाहावइ-पदं २, महावीर-समवसरण-पदं ७, लेतियापियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३, भगवओ जणवयविहार-पद १५, लेतियापियस्स समणोवासगचरिया-पदं १६, फग्गुणीए समणोवासिय-चरिया-पदं १७, लेतियापियस्स धम्मजागरियापदं १८, लेतियापियस्स उवासगपडिमा-पदं २०, लेतियापियस्स अणसण-पदं २४, लेतियापियस्स समाहिमरण-पदं २५, निक्खेव-पदं २७ । अंतगडदसाओ पढमो वग्गो सू० १-२६ पृ० ५४१-५४५ उक्खेव-पदं १, गोयम-पदं ८, निक्खेव-पदं २५, समुद्दादि-पदं २६ । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० बीओ वग्गो सू० १-३ उक्खेव-पदं १, अक्खोभादि-पदं ३ । पृ०५४५ तइओ वग्गो सू०१-११८ पृ० ५४६-५६६ उक्खेव-पदं १, अणीयसादि-पदं ४, सारण-पदं १६, उक्खेव-पदं १७, छण्हं अणगाराणं तव-संकप्प-पदं १६, छण्हं पि देवईए गिहे पवेस-पदं २२, देवईए पुणरागमणसंका-पदं २६, संकासमाधाण-पदं ३०, पुत्त-बोह-पदं ३१, देवईए हरिस-पदं ४२, देवईए पुत्ताभिलासा-पदं ४३, कण्हस्स चिताकारणपुच्छा-पदं ४४, देवईए चिंताकारणनिवेदण-पदं ४६, कण्हस्स देवाराहण-पदं ४७, कण्हेण देवईए आसासण-पदं ५१, गयसुकुममालस्य जम्म-पदं ५२, सोमिलधूयाए कण्णतेउर-पक्खेव-पदं ५५, धम्मदेसणा-पदं ६२, गयसुकुमालस्स पव्वज्जासंकप्पपदं ६३. गयसुकुमालस्स अम्मापिऊणं निवेदण-पदं ६४, देवईए सोगाकुलदसा-पदं ६७, देवईए गयसुकुमालस्स य परिसंवाद-पदं ६८, गयसुकुमालस्स एकदिवस-रज्ज-पदं ७७, गयसुकुमालस्स पव्वज्जा-पदं ८४, गयसुकुमालस्स महापडिमा-पदं ८८, सोमिलकय-उवसन्गपदं ८६, गयसुकुमालस्स सिद्धि-पदं ६०, कण्हेण बुट्टस्स साहिज्जकरण-पदं ६४ कण्हस्स गयसुकुमाल-दसणाभिलासा-पदं ६८, गयसुकुमालस्स सिद्धि-सूयणा-पदं ६६, सोमिलस्स अकालमच्चू-पदं १०८, निक्खेव-पदं १११, उक्खेव-पदं ११२, सुमुहादि-पदं ११३ । पृ० ५७०,५७१ चउत्थो वग्गो उक्खेव-पदं १, जालिपभित्ति-पदं ४, निक्खेव-पदं ७ । पंचमो वग्गो सू०१-४३ पृ० ५७२-५७८ उक्खेव-पदं १, पउमावई-पदं ४, गोरिपभित्ति-पदं ३३, मूलसिरी-मूलदत्ता-पदं ३६ । छटो वग्गो सू० १-१०२ पृ० ५७८-५९३ १,२ अज्झयणाणि उक्खेव-पदं १, मकाइ-किंकम-पदं ४, अज्जुण-मालागार-पदं १०, अज्जुणस्स जक्खपज्जवासणा-पदं १६, गोठ्ठीए अणाचार-पदं १७, अज्जुणस्स पडिसोध-पदं २५, रायगिहे आतंकपदं २८, भगवओ समवसरण-पदं ३३, सुदंसणस्स वंदणटुं गमण-पदं ३५, सुदंसणस्स अज्जुणकय-उवसग्ग-पदं ४०, उवसग्गनिवारण-पदं ४३, सुदंसणस्स अज्जुणस्स य भगवओ पज्जुवासणा-पदं ४६, अज्जुणस्स पव्वज्जा-पदं ५१, अज्जुणअणगारस्स तितिक्खा-पदं ५३, अज्जुणअणगारस्स सिद्धि-पदं ५६, कासवादि-पदं ६०, अइमुत्त कुमार-पदं ७१, गोयमस्स भिक्खायरिया-पदं ७५, गोयम-अइमत्तकुमार-संवाद-पदं ७७, अइमुत्तकुमारस्स पव्वज्जा. पदं ८५, अलक्क-पदं ६७, निक्खेव-पदं १०२ । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वग्गो उख्खेव - पदं १, नंदादिपदं ४ | अमो वग्गो पढमो वग्गो सू० १-३८ पृ० ५४६-६१२ उक्खेव - पदं १, कालीए रयणावलितव पदं ४, सुकालीए कणगावलितव - पदं १८, महाकालीए खुड्डागसीह्निक्कीलियतव-पदं २१, कण्हाए महालय सीहनिक्कीलियतव-पदं २२, सुकण्हाए भिक्खुपडिमा पदं २३, महाकण्हाए खुड्डागसव्वओभद्द - पदं २७, वीरकण्हाए महालयसओभद्दपडिमा-पदं २६, रामकहाए भद्दोत्तरपडिमा पदं ३०, पिउसेणकण्हाए मुत्तावलितवपदं ३१, महासे णकण्हाए आयंबिलवड्ढमाणतव पदं ३२, निक्खेव पदं ३८, परिसेसो । बोच्चो वग्गो अणुत्तरोववाइयदसाओ सू० १-१६ पृ० ६१३-६१६ उक्खेव - पदं १, जालि - पदं ६, निक्खेव पदं १४, मयालिपभिति पदं १५, निक्खेव पदं १६ । पृ० ६१७-६१८ ५१ सू० १-७ सू० १-६ उक्खेव - पदं १, दीह सेणादि-पदं ४, निक्खेव पदं ६ । तच्चो वग्गो सू० १-७५ पृ० ६१६-६३३ घण्णस्स तवचरिया उक्खेव पदं १, धण्णस्स गिहवास - पदं ४, धण्णस्स पव्वज्जा- पदं १० पदं २२, घण्णस्स तवजणियसरीरलावण्ण-पदं ३१, सेणियस्स महादुक्करकारय - पुच्छा-पदं ५३, भगवओ उत्तर-पदं ५७, सेणिएण धण्णस्स थवणा- पदं ५८ घण्णस्स सव्वट्ठ सिद्धगमण-पदं ५६, निक्खेव - पदं ६३, सुणक्खत्त-पदं ६४, इसिदासादि-पदं ७४, निक्खव-पदं ७५, परिसेसो । पढमं अभयणं पृ० ५६४ पावागरणांइं सू० १-४० पृ० ६३५-६५० उक्खेव-पदं १, पाणवहस्स सरूव पदं २, पाणवहस्स तीसनाम-पदं ३, पाणवहस्स पगार- पदं ४, पाणबहस कारण-पदं ११, पाणवहस्स कत्तार - पदं २०, पाणवहस्स फलविवाग-पदं २३, निगमण - पदं ४० । बीयं अभयणं सू० १-१६ पृ० ६५१-६५६ उक्खेव-पदं १, अलियवयणस्स तीस नाम - पदं २, अलियवयणस्स पगार- पदं ३, अलियवयणस्स फलविवाग-पदं १५, निगमण-पदं १६ । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं सू० १-२६ पृ० ६५७-६६७ उक्खेव-पदं १, अदिण्णादाणस्स तीसनाम-पदं २, चोरिय-चोरपगार-पदं ३, रण्णो परधणहरण-पदं ४, धणत्थं जुद्ध-पदं ५, लूटाक-पदं ६, सामुद्दियचोर-पदं ७, दारुणचोर-पदं ८, अदिण्णादाणस्स फलविवाग-पदं ६, निगमण-पदं २६ । चउत्थं अज्झयणं सू०१-१५ पृ० ६६८-६७७ उक्खेव-पदं १, अबंभस्स तीसनाम-पदं २, सुरगणस्स अबंभ-पदं ३, चक्कवट्टिस्स अबंभ-पदं ४, बलदेव-वासुदेवस्स अबंभ-पदं ५, मंडलिय-नरवरेंदस्स अबंभ-पदं ६ जुगलियाणं लावण्णनिरूवणपुरस्सरं अबंभ-पदं ७, जुगलिणीणं लाबण्णनिरूवणपुरस्सरं अबंभ-पदं ८, अबंभस्स फलविवाग-पदं, निगमण-पदं १५ । पंचमं अज्झयणं सू० १-१० पृ० ६७८-६८२ उक्खेव-पदं १, परिग्गहस्स तीसनाम-पदं २, देवाणं परिग्गह-पदं ३, मणुस्साणं परिग्गह-पदं ४, परिग्गहत्थं सिक्खा-पदं ५, परिग्गहीणं पवित्ति-पदं ६, परिग्गहस्स फलविवाग-पदं ८, निगमण-पदं १० । छठें अज्झयणं सू० १-२५ पृ० ६८३-६८८ उक्खेव-पदं १, अहिंसा-पज्जवनाम-पदं ३, अहिंसा-थुइ-पदं ४, अहिंसा-माहप्प-पदं ६, उंछगवेसणा-पदं ७, अहिंसाए पंचभावणा-पदं १६, निगमण-पदं २२ । सत्तमं अज्झयणं सू० १-२५ पृ०६८९-६६३ उक्खेव-पदं १, सच्चस्स माहप्प-पदं २, सच्चस्स थुइ-पदं १०, सावज्जसच्च-पदं १२, अणवज्जसच्च-पदं १४, सच्चस्स पंचभावणा-पदं १६, निगमण-पदं २२ । अटठमं अज्झयणं सू०१-१७ पृ० ६६४-६६७ उक्खेव-पदं १, अदत्तस्स अग्गहण-पदं २, अदत्तादाणवेरमणस्स अजोग्गता-पदं ५, अदत्तादाणवेरमणस्स जोग्गता-पदं ६, अदतादणवेरमणस्स पंचभाबणा-पदं ८, निगमण-पदं १४ ।, नवमं अज्झयणं सू०१-१५ पृ० ६९८ ७०३ उक्खेव-पदं १, बंभचेरमाहप्प-पदं २, बंभचेरथिरीकरण-पदं ४, बभचेरस्स पंचभावणा-प ६, निगमण-पदं १२। दसमं अज्झयणं सू० १-२३ पृ० १००४-७१३ अक्खेव-पदं १, अकप्पदव्वजाय-पदं ३, असण्णिहि-पदं ६, अकप्पभोयण-पदं ७, कप्पभोयण Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदं ८, रोगाय के वि असण्णहि पदं ε, उवगरणधारणविहि- पदं १०, समणस्स सरूवनिरूवण - पद ११, अपरिग्गहस्स पंचभावणा-पदं १३, निगमण-प १६, परिसेसो । बीयं अज्झणं पढमं अभयणं पृ० ७१७ ७३१ उक्खेव-पदं १, मियापुत्तवण्णग पदं ६, गोयमस्स जाइअधपुरिसविसए पुच्छा-पदं १६, भगवया मियापुत्तरूव निरूवण - पदं २६, गोयमस्स मियापुत्तदंसण-पदं २७, गोयमेण मियापुत्तस्स पुन्वभवपुच्छा-पदं ४१, मियापुत्तस्स एक्काइभव वण्णग पदं ४३, मियापुत्तस्य वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ५८, मियापुत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ७०, निक्खेव पदं ७१ । तइयं अज्झयणं ५३ सू० १-७४ पृ० ७३२-७४३ उक्खेव - पदं १, गोयमेण उज्झियस्स पुव्वभवपुच्छा - पदं १२, उज्झियस्स गोत्तासभव-वण्णगपदं १७, उज्झियस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ४३, उज्झियस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ६६, निक्खेव पदं ७४ । विवागस्यं पढमो सुक्कंधो सू० १-७१ सू० १-६६ उaha - पदं १, गोयमेण अभग्ग सेणस्स पुव्वभवपुच्छा-पदं १३, aura-पदं १७, अभग्ग सेणस्स वत्तमाणभव-वण्णग- पदं २३, वण्णग- पद ६५, निक्खेव पदं ६६ । चउत्थं अभयणं छट्ठ अज्झणं सू०१-४० पृ० ७५७ से ७६२ उक्खेव - पदं १, सगडस्स पुव्वभवपुच्छा-पदं १२, सगस्स छन्नियभव - वण्णग- पदं १३, सगडस्स वत्तमाणभव वण्णग-पदं १८, सगडस्स आगमिभव-वण्णग-पदं ३२, निक्खेव पदं ४० । पंचमं अभयणं सू० १-३० पृ० ७६३ से ७६६ उक्खेव पदं १ गोयमेण बहस्सइदत्तस्स पुव्वभवपुच्छा-पदं १०, बहस्सइदत्तस्स महेसरदत्तभव-वण्णग-पदं ११, बहस्सइदत्तस्स वत्तमाणभव वण्णग-पदं १७, बहस्सइदत्तस्स अगमिभव-वण्णग- पदं २६, निक्खेव पदं ३० । प० ७४५ से ७५६ अभग्ग सेणस्स निन्नयभवअभग्गसेणस्स आगामिभव • सू० १-३८ पृ० ७६७-७७३ उक्खेव - पदं १, गोयमेण नंदिवद्वणस्स पुव्वभवपुच्छा-पदं ७, नंदिवर्द्धणस्स दुज्जोहणभव वण्णग पदं C नंदिवद्वणस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं २५. नंदिवद्धणस्स आगामिभब - aura - पदं ३७. निक्खेव पदं ३८ । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ सत्तमं अज्झयणं सू०१-३६ १० ७७४ से ७८२ उक्खेव-पदं १, गोयमेण उंबरदत्तस्स पुवभवपुच्छा-पदं ७, उंवरदत्तस्स धणंतरिभव-वण्णगपदं १३, उबरदत्तस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं १८, उबरदत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ३८, निक्खेव-पदं ३६ । अट्ठमं अज्झयणं सू० १-२८ पृष्ठ ७८२-७८७ उक्खेव-पदं १, सोरियदत्तस्स पुव्वभवपुच्छा-पदं ८, सोरियदत्तस्स सिरीयभव-वण्णग पदं ६. सोरियदत्तस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं १४, सोरियदत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं २७, निक्खेव-पदं २८ । नवमं अज्झयणं सू० १-६० पृ० ७८८-७६७ उक्खेव-पदं १, देवदत्ताए पुन्वभवपुच्छा-पदं ६, देवदत्ताए सीहसेणभव-वण्णग-पदं ७, देवदत्ताए वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ३०, देवदत्ताए आगामिभव-वण्णग-पदं ५६, निक्खेव-पदं ६० दसमं अज्झयणं स० १-२० पृ० ७९८-८०१ उक्खेव-पदं १, अंजूए पुव्वभवपुच्छा-पदं ४, अंजूए पुढविसिरीभववण्णग-पदं ५, अंजूए वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ६, अंजूएआगामिभव-वण्णग-पदं १६, निक्खेव-पदं २० । बीओ सुयक्खंधो पढमं अज्झयणं सू० १-३७ ८०२-८०६ उक्खेव-पदं १, सुबाहुकुमार-पदं ४, सुबाहुस्स पुन्वभवपुच्छा-पद १५ सुबाहुस्स सुमुहभववणणग-पदं १६, सुबाहुकुमारस्स पव्वज्जा-पदं ३१, सुबाहुकुमारस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ३५, निक्खेव-पदं ३७, २-१० अज्झयणाणि। पृ०८१०-८१३ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत निर्देशिका • . ये दोनों बिन्दु पाठपूर्ति के द्योतक है । पाठपूत्ति के प्रारुम्भ में भरा बिन्दु [*[ और उसके समापन में रिक्त विन्दु [.] रखा गया है । देखें-पृष्ठ २ सू ६ । [?] कोष्ठकवर्ती प्रश्नचिन्ह [?] अदर्शो में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें-पृष्ठ ३. सूत्र ७ । ये दो या इससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखें पष्ठ २ सू०४। 'वण्णओ' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूत्ति स्थल का निर्देश है । देखें--पृष्ठ १ टिप्पण ३ और पृष्ठ ३ सूत्र ८ । < क्राश [४] पाठ न होने का द्योतक है । देखें-पृष्ठ ३ टिप्पण ४ ।। पाठ के पूर्व या अन्त में खाली विन्दु [.] अपूर्ण पाठ का द्योतक है । देखें-पृ० ३ सूत्र ७ टिप्पण ५। 'जहा' 'तहेब' आदि पर टिप्पण में दिए गए सूत्रांक उसकी पूर्ति के सूचक हैं । देखें--पृष्ठ ३०१ सूत्र ७ तथा पृष्ठ ३७८ सूत्र ५० । क, ख, ग, घ, च, छ, ब, देखें-सम्पादकीय में 'प्रति-परिचय' शीर्षक । 'व्या० वि' व्याकरण विमर्श । देखें-पृष्ठ ३६६ टिप्पण १ । 'क्व' क्वचित् प्रयुक्तादर्श । सं० पा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है। देखें-पृष्ठ ५ टिप्पण १ । वृपा वृत्ति-सम्मत पाठान्तर । देखें-पृष्ठ १० टिप्पण ३ । व्र वृत्ति का सूचक है । देखें--पष्ठ ६ टिप्पण १७ । पू० पूर्णपाठार्थ द्रष्टव्यम् । देखें-पृष्ठ ५२६ टिप्पण १ । अं० अंतगडदसाओ। अ० अणत्तरोववाइयदसाओ। सूय० सूयगडो। उवा० उवासगदसाओ। जंबू० जंबूदीवपण्णत्ति। ओ० ओवाइयं । ना० नायाधम्मकहाओ। भ०, भग०, भगवई। राय० रायपसेणइयं । पण्हा० पण्हावागरणाई। वि० विवागसूयं । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ पढमं अज्झयणं उक्खित्तणाए उक्खेव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था-वण्णो ' ।। २. तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नामं चेइए' होत्था--वण्णग्रो ॥ ३. तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए नामं राया होत्था-वण्णग्यो । ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नाम थेरे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे बल-रूव-विणय-नाण-दसण-चरित्त'-लाघवसंपण्णे पोयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे 'जिइंदिए जियनिद्दे जियपरीसहे जीवियास-मरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे एवं-करण-चरण-निग्गह-निच्छय-अज्जव-मद्दव-लाघव-खंति-गुत्तिमुत्ति-विज्जा-मंत-बंभ-वेय-नय-नियम- सच्च-सोय- नाण- दंसण- चरित्तप्पहाणे अोराले घोरे घोरव्वए" घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छृढसरीरे संखित्तविउल-तेयलेस्से चोहसपन्वी१२ चउनाणोवगए पंचहि अणगारसएहि सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुब्बि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे १. ओ० सू० १। २. चेतिए (क, ख, ग)। ३. प्रो० सू० २-१३। ४. ओ० सू० १४ । ५. चरित्त लज्जा (राय० सू० ६८६) । ६. जियइंदिए (ख)। ७. जियनिद्दे जितिदिए (राय० सू० ६८६)। ८. जीवियासा (ग, घ)। ६. बंभचेर (ख, घ) । वृत्तौ 'ब्रह्म' पदमेवव्या ख्यातमस्ति, यथा-ब्रह्म-ब्रह्मचर्य सर्वमेव वा कुशलानुष्ठानम् । कासुचित् प्रतिषु 'बंभचेर' इति मूलपाठरूपेण परिवर्तितमभूत् । १०. उराले (ख, घ)। ११. घोरगुणे (राय० सू० ६८६) । १२. चोदस ° (ख); चउद्दस ° (ग)। १३. दूतिज्ज° (ख, ग )। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ माओ 'जेणेव चंपा नयरी', जेणेव पुण्णभद्दे चेतिए” तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महापरूिवं श्रोग्गहं योगिन्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति ॥ ५. 'तए णं चंपाए नयरीए परिसा निग्गया । धम्मो कहियो । परिसा जामेव दिसि पाउब्भूया, तामेव दिसि पडिगया || ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं प्रज्जसुहम्मस्स प्रणगारस्स जेट्ठे अंतेवासी प्रज्जजंबू नामं अणगारे कासव' गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंस संठाण-संठिए वइररिसहणारा-संघयणे कणग-पुलग-निघस-पम्ह-गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउलतेयलेस्से' ग्रज्जसुहम्मस्स थेरस्स प्रदूरसामंते उड्ढजाणू ग्रहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ७. तए णं से ग्रज्जजंबूनामे अणगारे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले 'संजायसड्ढे संजायसंसए संजायको उल्ले उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णको उहल्ले " समुपणसढे समुपणसंसए समुप्पण्णको उहल्ले' उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणामेव प्रज्जसुहम्मे थेरे, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ' ग्रज्जसुहम्मे थेरे" तिक्खुत्तो 'आयाहिण -पयाहिणं" करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता श्रज्ज - १. नगरी (ग ) । ६. सं० पा० --- सत्तुस्सेहे जाव अज्जसुहम्मस्स । ७. ० संसते ( ख, ग ) । ८. औपपातिक (८३) सूत्रे क्रमभेदोविद्यते, यथा - जायसड्ढे उप्पण्णसड्ढे • संजायसड्ढे समुण्णसड्ढे ° । ० कोऊहल्ले ( ख ) । अज्जसुहम्मं थेरं ( वृपा) । औपपातिक २. क्वचिद् 'राजगृहे गुणसिलके' इति दृश्यते स चापपाठ इति मन्यते ( वृ) | ३. तेणं कालेणं (ख); तेणं (घ ) । ४. निग्गया । कोणितो निम्तो ( ग ) ; निग्गया । कोणिओ निग्गओ (घ) । वृत्तौ - परिषत् - कूणिक राजादिको लोको निर्गता -- निःसृता - एवं व्याख्यातमस्ति । श्रनेन 'परिसा निग्गया' इत्येव मूलपाठः संभाव्यते । 'कोणिओ निग्गओ' इति व्याख्यांशो मूलपाठत्वेन परिवर्तितोभूत् । उपासकदशासु (१।१६ ) राजनिर्गमस्य स्वतंत्र सूत्रमपि दृश्यते । ( ८३ ) सूत्रे तथा रायपसेणइय (१०) सूत्रेपि एतत्सदृशप्रकरणे 'समण भगवं महावीरं' इति द्वितीयान्तपदं लभ्यते । ग्रत्र सप्तम्यन्तपदं लभ्यते । वृत्तिकृता एतदेव प्रमाणीकृतम् - 'अज्जसुहम्मे थेरे' इत्यत्र षष्ठ्यर्थे सप्तमी ( वृ ) । ५. विभक्तिरहितं पदम् । काश्यप गोत्रेण इति ११. आताहिणपदाहिणं ( ग ), आयाहिणं (घ ) । वृत्तिः । ६. १० o Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झणं (उक्खित्तणाए ) ८. सुम्मस्स थेरस्स नच्चासण्णे नातिदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणणं पज्जुवासमाणे एवं वयासी' - जइ' णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं 'प्राइगरेणं तित्थगरेणं सहसंबुद्धेणं' लोगनाहेणं लोगपईवेणं लोग पज्जोयगरे अभयदपणं सरणदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं धम्मदएणं धम्मदेसणं धम्मनायगेणं' धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा' ग्रपडियवरनाणदंसणधरेणं जिणेणं जाणएणं' बुद्धेणं बोहरणं मुत्तेणं मोयगेणं तिष्णेणं तारएणं सिवमय लमरुयमणंत मक्खयमव्वाबापु णरावत्तयं सासयं orang [सिद्धि इनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं ? ] पंचमस्स अंगस्स" प्रयमट्ठे पण्णत्ते, छट्टस्स णं 'भंते ! अंगस्स" नायाधम्मकहाणं के अट्ठे पण्णत्ते ? जंबु त ज्जहम्मे थेरे ग्रज्जजवूनामं अणगारं एवं वयासी- • एवं खलुंजंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जावर संपत्तेणं छट्टस्स अंगस्स दो सुक्खंधा पण्णत्ता, तं जहा -नायाणि य धम्मकहाम्रो य ॥ ६. जइ णं भंते ! समणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं छट्टस्स अंगस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, तं जहा -- नायाणि य धम्मकहाओ य । पढमस्स णं भंते ! सुयक्खंधस्स समणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं नायाणं कइ अज्झयणा पण्णत्ता ? १०. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं नायाणं एगूणवीसं अभयणा पण्णत्ता, तं जहा १. वदासी (ग, वृ) । २. जति ( ख, ग ) । ३. सइ ० ( ख ) ; सयं ० (घ) । ४. X (ख, घ ) । ५. ० वट्टी ( ख, ग, घ ) । अत्र प्रकरणसंगत्या तृतीयान्तं पदं युज्यते । समवायांगे ( सू० २ ) इत्थमेव विद्यते । क्वचित् प्रयुक्तासु प्रस्तुतसूत्रस्य प्रतिष्वपि तृतीयान्तं पदं प्राप्यते । तेन तदेव मूले स्वीकृतम् । ६. जावएणं (ख, घ) | ७. ० मरुतवत्तियं (ख, घ ) ; ° मरुत ० ( ग ) । ८. अत्र चिन्हांकितपाठः श्रपपातिकादिसूत्रेभ्यो भिन्नो वर्तते । एन० वी० वैद्य संपादित - 'तायाम्म कहाओ' विशेषणानि पाठे ३ अधिकानि लभ्यन्ते, किन्तु अस्माकं पाठशोधार्थं प्रयुक्तासु प्रतिषु तानि न सन्ति । द्रष्टव्यं -- औपपानिकसूत्रस्य तृतीयं परिशिष्टम् । ६. अष्टमे सूत्रे 'जाव संपत्तेणं' संक्षिप्त पाठो लभ्यते । अत्र च 'सासयं ठाणमुवगएणं' इति पाठोस्ति । अस्य अग्रिमपाठेन संगतिर्नास्ति, श्रपपातिक (२१) सूत्रे 'सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं' इति पाठो विद्यते । त्रापि तथैव युज्यते । १०. अंगस्स विवाहपण्णत्तीए (घ ) । ११. अंगस्स भंते ! ( ख, घ ) । १२,१३, १४, १५. ना० १ १ ७ । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ संगहणी - गाहा मेहस्स नगरपरिवारादि- वण्णग-पदं १. उक्खित्तणाए २. संघाडे, ३. अंडे ४. कुम्मे य ५. सेलगे । ६. तुंबे य ७. रोहिणी ८. मल्ली, 8. मायंदी १०. ' चंदिमा इ" य ॥१॥ ११. दावद्दवे १२. उदगणाए, १३. मंडुक्के' १४. तेयली विय । १५. नंदीफले १६. अवरकंका' १७. ग्राइणे १६. प्रवरे य पुंडरीए, नाए एगूणवीसमे ॥ १८. सुंसुमा इ य ॥ २॥ ११. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं नायाणं एगूणवीसं अभयणा पण्णत्ता, तं जहा - उक्खित्तणाए जाव पुंडरीएत्तिय । पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के प्रट्टे पण्णत्ते ? १२. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढr रहे रायगिहे नामं नयरे होत्था - वण्णो ॥ नामक हाओ १३. गुणसिलए चेतिए - वण्ण ॥ १४. तत्थ णं रायगिहे नयरे सेणिए नाम राया होत्था - महताहिमवंत-महंत मलयमंदर-महिंदसारे वण्णओ" ॥ १५. तस्स णं सेणियस्स रण्णो नदा नामं देवी होत्था - सूमालपाणिपाया" वण्णो" ।। १६. तस्स णं सेणियस्स पुत्ते नंदाए देवीए अत्तर भए नामं कुमारे होत्था - प्रहीण " • पडिपुण-पंचिदियसरीरे लक्खण- वंजण-गुणोववेए माणुम्माण-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय- सव्वंग सुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे, सामदंड-भेय-उवप्पयाणनीति - सुप्पउत्त-नय- विहण्णू", "हा- वूह ""- मग्गण - गवेसणश्रत्थसत्थ- मइविसारए, उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मयाए" पारिणामियाएव्हिा बुद्धी उववेए, सेणियस्स रण्णो बहूसु कज्जेसु य" [ कारणेसु य ? ] १. चंदमाई (घ ) | २. मंदुक्के ( ख ) । ३. अमर० (घ ) । ४. अतिणे ( ख, ग ) | ५. ० वीसइमे ( ग ) । ६. ना० १।१७ ७. ना० १।१।१० । ८. प्रो० सू० १ । ६. ओ० सू० २-१३ । १०. ओ० सू० १४ । ११. सुकुमाल (घ) । १२. ओ० सू० १५ । o १३. सं० पा० - अहीण जाव सुरूवे । १४. प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ 'पडिपुण्ण' पदं व्याख्यातं नास्ति । १५. विहिज्जा ( ख ) । १६. ईहापूह ( ग ) ; ईहापोह (घ ) । १७. कम्मइयाए (ख, घ); कम्मियाए ( ग ) । १८. अतोनन्तरं उपासकदशासु (१।१३) रायपसेणइय (६७५) सूत्रे 'कारणेसु य' इति पाठो विद्यते । प्रस्तुतसूत्रस्य पंचमाध्ययने ( १० ) सूत्रेपि कज्जेसु य कारणेसु य इति पाठो लभ्यते । अत्रापि तथैव युज्यते । Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाणं पाहारे पालंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए, सव्वकज्जेसु सव्वभूमियासु लद्धपच्चए विइण्णवियारे रज्जधुरचितए यावि होत्था, सेणियस्स रण्णो रज्जं च रटुं च कोसं च कोट्ठागारं च बलं च वाहणं च पुरं च अंतेउरं च सयमेव समुपेक्खमाणे समुपेक्खमाणे विहरइ॥ १७. तस्स णं सेणियस्स रण्णो धारिणी नामं देवो होत्था--'सुकुमाल-पाणिपाया अहीण-पंचेंदियसरीरा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुम्माण-प्पमाण-सुजायसव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकार-कंत-पियदंसणा सुरूवा करयल-परिमित-तिवलिय वलियमझा 'कोमुइ-रयणियर-विमल-पडिपुण्ण-सोमवयणा कुंडलुल्लिहिय-गंडलेहा सिंगारागार-चारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-विहिय-विलाससललिय-संलाव-निउण-जुत्तोवयारकुसला पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, सेणियस्स रण्णो इट्ठा कंता पिया मणुण्णा नामधेज्जा वेसासिया सम्मया बहुमया अणुमया भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया चेलपेडा इव सुसंपरिगिहीया रयणकरंडगो विव सुसारक्खिया, मा णं सीयं मा णं उण्हं मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाला मा णं चोरा मा णं वाइयपित्तिय-सिभिय-सन्निवाइय विविहा रोगायंका फुसंतु त्ति कटु सेणिएण रण्णा सद्धि विउलाइं भोगभोगाइं पच्चणुभवमाणी विहरइ ॥ धारिणीए सुमिणसण-पदं १८. तए णं सा धारिणी देवी अण्णदा कदाइ तंसि तारिसगंसि-छक्कट्ठग-लट्ठमट्ठ १. सं० पा०—होत्था जाव सेणियस्स रणो उल्लिखितोस्ति । विपाकश्रुतस्य संदर्भ ___ इट्ठा जाव विहरंई। असावपि पाठः समीचीनः प्रतिभाति । २. अहीण-पडिपुण्ण (ओ० सू० १५) । प्रस्तुतागमे (१।१।१०६) एव 'थेज्जे' इति ३. पमाण-पडिपुण्ण (प्रो० सू० १५) । पाठो लभ्यते। ओवाइय (११७) सूत्रे ४. परिमिय-पसत्थ-तिवली (ओ० सू० १५)। शरीरवर्णनप्रसङ्ग पेज्जं' इति पाठोऽस्ति । ५. कंडलुल्लिहिय गंडलेहा कोमुइ-रयणियर.. एवं विभिन्नस्थलेषु पाठावलोकनेन एतत् सोमवयणा (ओ० सू० १५)। सुनिश्चितं भवति यत् लिपिकरणकाले पाठ६. आगमेषु बहुषु स्थानेषु ‘मणुण्णा मणामा' इति परिवर्तनं जातम् । 'धेज्ज थेज्ज' इतिपाठा पाठरचनादृश्यते । द्रष्टव्यम् - १११४।४३ । पेक्षया 'नामधेज्जा' इति पाठः अर्थदृष्ट्या क्वचिद् 'धेज्जा' इति पाठो लभ्यते । अधिकं संगच्छते। द्रष्टव्यम्-विवागसुयं १११५६ । प्रस्तुतपाठः ७. विभक्तिरहितं पदम् । वृत्या पूरितोस्ति, तत्र 'नामधेज्जा' इति पाठः Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ संठिय-खंभुग्गय-पवरवर-सालभंजिय-उज्जलमणिकणगरयणभिय-विडंकजालद्धचंदनिज्जहंतरकणयालिचंदसालियाविभत्तिकलिए 'सरसच्छधाऊवल-वण्णरइए'' बाहिरओ दूमिय-घट्ठ-मढे अभितरो पसत्त-सुविलिहिय-चित्तकम्मे नाणाविह-पंचवण्ण-मणिरयण'-कोट्टिमतले पउमलया-फुल्लवल्लि-वरपुप्फजाइउल्लोय-चित्तिय-तले वंदण - वरकणगकलससुणिम्मिय- पडिपूजिय'- सरसपउमसोहंतदारभाए पयरग'-लंबंत-मणिमुत्तदाम-सुविरइयदारसोहे सुगंध-वरकुसुममउय-पम्हलसयणोवयार-मणहिययनिव्वुइयरे कप्पूर- लवंग-मलय-चंदणकालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव -डज्झत-सुरभि-मघमत - गंधुद्धयाभिरामे सुगंधवर [गंध ? ] गंधिए गंधवट्टिभूए मणिकिरण-पणासियंधयारे किंबहुणा ? जुइगुणेहि सुरवरविमाण-विडंबियवरघरए, तंसि तारिसंगसि सयणिज्जसिसालिंगणवट्टिए उभओ विब्बोयणे दुहनो उण्णए 'मज्झे णय गंभीरे'११ गंगापुलिणवालुय-उद्दालसालिसए ओयविय-खोम-दुगुल्लपट्ट-पडिच्छयणे अत्थरयमलय-नवतय-कुसत्त-लिंब"-सीहकेसरपच्चुत्थिए" सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे पाइणग-रूय"-बूर-नवणीय-तुल्लफासे पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि सूत्तजागरा प्रोहीरमाणी-प्रोहीरमाणी 'एगं महं सत्तुस्सेहं रययकूड-सन्निहं नहयलंसि सोमं सोमागारं लीलायंतं जंभायमाणं मुहमतिगयं गयं पासित्ता णं पडिबुद्धा। १. सरसच्छधाऊधवल ° (घ);कैश्चित्पुनरेवं संभा- ६. गंध ° (ख घ)। वितमिदम् –सरसच्छधाऊवलरत्तरए (वृ)। १०. वेलंबवर ° (ग, घ) । २. सर्वासु प्रतिषु 'सुवि' इति पठ्यमानमस्ति । ११. मज्भेण य गंभीरे (वृपा)। वृत्तौ 'शुचि पवित्र' इति व्याख्यातमस्ति । १२ खोमदुगुल ° (घ)। प्राचीनलिप्यां चकारवकारयोः प्रायः १३. लिव्व (ख, ग)। सादृश्येनात्र वर्णविपर्ययो जातः । वृत्तिकारेण १४. पच्चुत्थुए (ख); ° पच्चुत्थए (क्व०) । तथैव व्याख्यातः । १५. रुय (ख)। ३. मणिरतण (ग)। १६. पूर (ख)। ४. चंदण (ख, घ); अत्र वकारस्थाने चकारो १७. वाचनान्तरे त्वेवं दश्यते-जाव सीहं सविणे जातः । पासित्ता णं पडिबुद्धा। यावत्करणात् इदं ५. पडिपुंजिय (ख, ग, घ, वृपा)। द्रष्टव्यम्-एगं च णं महंतं पंडुरं धवलं ६. पयरग्ग (ग, घ); एकस्मिन् वृत्यादर्श सेयं संखउल-विमलदहि-घणगोखीर-फेण'प्रतरकाणि', अपरस्मिंश्च 'प्रवरकाणि' रयणिकरपगासं [अथवा-हार-रजतइति संस्कृतरूपं लभ्यते । खीरसागर-दगरय- महासेल - पंडुरतरोरु- रम७. सुगंधि (वृ)। णिज्ज-दरिसणिज्ज] थिर-लट्ठ-पउट्ठ-पीवर८. मति (ग); °मघंत (घ)। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) सेणियस्स सुमिणनिवेदण-पदं १९. तए णं सा धारिणो देवी अयमेयारूवं उरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगल्लं सस्सिरीयं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुद्धा समाणी हट्टतुटु'-चित्तमाणंदिया पोइमणा परमसोमणस्सिया' हरिसवस-विसप्पमाणहियया 'धाराहय-कलंबपुप्फगं पिव समूससिय-रोमकूवा'' तं सुमिणं अोगिण्हइ, अोगिण्हित्ता सयणिज्जागो उद्देइ, उद्वेत्ता पायपीढायो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंवियाए रायहंससरिसीए गईए जेणामेव से सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं ताहिं इट्टाहि कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं उरालाहि कल्लाणाहिं सिवाहिंधण्णाहि मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहि हिययपल्हायणिज्जाहि मिय-महुर-रिभिय-गंभीर-सस्सिरीयाहिं गिराहिं संलवमाणी-संलवमाणी पडिबोहेइ, पडिबोहेत्ता सेणिएणं रणा अब्भणण्णाया समाणी नाणा-मणिकणगरयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि निसीयइ, निसिइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु सेणियं रायं एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि सालिंगणवट्टिए जाव' नियगवयणमइवयंत गयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा-तं एयस्स णं देवाणुप्पिया! उरालस्स सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-तिक्खदाढाविडंबियमुहं परि- १. हट्टतुट्ठा (ख); हट्ठातुट्टा (घ); वृत्तौ 'हृष्टकम्मियजच्चकमलकोमल-माइयसोहंतलद्धउटुं तुष्टा-अत्यर्थं तुष्टा अथवा हृष्टा---विस्मिता, रत्तुप्पलपत्तमउय-सुकुमालतालुनिल्लालियग्ग- तुष्टा-तोषवती' इति व्याख्यातमस्ति किन्तु जीहं महुगुलियभिसंत पिंगलच्छं मूसागयपवर- औपपातिकाद्यागमेषु 'हद्रतट्र-चित्तमाणंदिया' कणयतावियआवत्तायंत - वट - तडियविमल इति संयुक्तः पाठो लभ्यते । अत्रापि तथैव सरिसनयणं [अत्र वट्ट तड्ड' इत्येतावदेव गृहीतः। पुस्तके दष्टं संभावनया तु 'वृत्तदित' इति २. °सिया (ख, ग, घ)। व्याख्यातम् । पाठांतरेण तु-वट्ट-पडिपुन्न ३. एतद् विशेषणं वृत्तो नास्ति व्याख्यातम् । पसत्थ-निद्ध-महुगुलिय पिंगलच्छं] विसालपीवरभमरोरु-पडिपून्नविमलखधं [अथवा ४. ना० १११।१८। ५. एष पाठो यत्र समर्पितोस्ति तत्र पडिपुण्ण-सुजायखंध] मिदुविसदसुहमलक्षण-पसत्थ-वित्थिन्न-केसरसढं अथवा (१।१।१८) 'मुहमतिगयं' इति पाठो विद्यते, निम्मलवरकेसरधर] ऊसिय-सुनिम्मिय अत्रापि तथैव युज्यते किन्तु सर्वास्वपि सुजाय अप्फोडियलंगूलं सोमं सोमागारं प्रतिषु नियगवयणमइवयंतं' इति पाठो लीलायंतं जभायमाणं गगनतलाओ ओवयमाणं लभ्यते । नानयोः कश्चिदर्थभेदः तेनासावेव सीहं अभिमुहं महे पविसमाणं पासित्ता पाठःस्वीकृतः। णं पडिबुद्धा (व)। ६. सं० पा०-उरालस्स क सि ध मं जाव सुमिणस्स। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ नायाधम्मक हाओ • कल्लाणस्स सिवस्स धण्णस्स मंगल्लस्स सस्सिरीयस्स सुमिणस्स के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसे से भविस्सइ ? सेस्सि सुमिण महिम- निदंसण-पदं २०. तए णं से सेणिए राया धारिणीए देवीए अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म - 'चित्तमादिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाण • हियए धाराह्यनीवसुरभिकुसुम-चुंचुमाल इयतणू ऊसवियरोमकूवे तं सुमिणं योगिण्हइ, हित्ता इहं पविसइ, पविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुव्वएणं बुद्धिविणणं तस्स सुमिणस्स प्रत्थोग्गहं करेइ, करेत्ता धारिणि देवि ताहि जा" हिययपल्हाणिज्जाहिं मिय-महुर-रिभिय- गंभीर सस्सिरीयाहि वग्गूहिं' अणुवूहमाणे प्रणुवूहमाणे एवं वयासी - उराले णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिट्ठे । कल्लाणे णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिट्ठे । सिवे धणे मंगल्ले सस्सिरीए णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिट्ठे । श्रारोग्ग-तुट्ठि- दीहाउय'-कल्लाणमंगल्लकारए णं तुमे देवि ! सुमिणे दि । प्रत्थलाभो ते देवाणुप्पिए ! पुत्तलाभो ते देवाणुप्पिए ! रज्जलाभो ते देवाणुप्पिए ! भोग- सोक्खलाभो ते देवाणुपए ! १. सं० पा०-हट्ठतुट्ट जाव हियए । २. चंचु ० ( ख, घ ) । ३. प्रोगοहाति २ ( ख ) । ४. ना० १।१।१६ । एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं प्रद्धट्ठमाण इंदियाणं वीइक्कंताणं म्हं कुलकेउं कुलदीवं कुलपव्वयं कुलवडिस ' कुलतिलकं कुलकित्तिकरं कुलवित्तिकरं " कुलनंदिकरं कुलजसकरं कुलाधारं कुलपायवं कुलविवर्द्धणकरं सुकुमालपाणिपायं जाव" सुरूवं दारयं पयाहिसि । से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणप्पत्ते सूरे वीरे विक्कते" वित्थण्ण - विपुल - बलवाहणे रज्जवई " राया भविस्सइ | तं उराले गं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिट्ठे " । कल्लाणे णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमि दिट्ठे । सिवेधणे मंगल्ले सस्सिरीए णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणेदिट्ठे | ° ५. १।१।१६ सूत्रे अत्र 'गिराहिं' पाठो विद्यते । ६. दीहाउ ( ख ) । ७. X ( ग, घ ) सर्वत्र । ८. कुल हे (वृपा) । o ६. वडंसयं ( ख ) । १०. नासौपाठः वृत्तिसम्मतः, यथा - क्वचिद् वृत्तिकरमित्यपि दृश्यते । ११. ओ० सू० १४३ । १२. विष्णाय (क, ख, घ) । १३. वितिक्कते ( क ); वियक्कतं ( ख ) । १४. रज्जयती ( क ) । १५. सं० पा० - दिट्ठे जाव आरोग्ग । Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउय-कल्लाण-मंगलकारए णं तुमे देवि ! सुमिणे दिढे त्ति कटु भुज्जो-भुज्जो अणुवूहेइ । धारिणीए सुमिणजागरिया-पदं २१. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी हट्टतुटु-चित्तमाणंदिया जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए ° अंजलि कटु एवं वयासी-एवमेयं देवाणुप्पिया! तहमेयं देवाणुप्पिया ! अवितहमेयं देवाणुप्पिया ! असंदिद्धमेयं देवाणु प्पिया! इच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! पडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! इच्छियपडिच्छियमेयं देवाणप्पिया ! सच्चे णं एसमटे जं तुब्भे वयह त्ति कटु तं सुमिणं सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सेणिएणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी नाणामणिकणगरयण-भत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्ठत्ता जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, ' उवागच्छित्ता सयंसि सयणिज्जसि निसीयइ, निसीइत्ता एवं वयासी'मा मे" से उत्तमे पहाणे मंगल्ले सुमिणे अण्णेहि पावसुमिणेहि पडिहम्मिहित्ति कटु देवय-गुरुजणसंबद्धाहि पसत्थाहिं धम्मियाहिं कहाहि सुमिणजागरियं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ । सुमिणपाढग-निमंतण-पदं २२. तए णं से' सेणिए राया पच्चूसकालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! बाहिरियं उवट्ठाणसालं अज्ज 'सविसेसं परमरम्म" गंधोदगसित्त-सुइय-सम्मज्जियोवलित्तं पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क - तुरुक्क-धूव-डज्झत-सुरभि - मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवर (गंध ? )गंधिय" गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ १. ना० ११।१६। ८. सुइ (क); सुइयं (घ)। २. सं० पा०-करयलपरिग्गहियं जाव अंजलि। ६. ° सुरभिकुसुम (क)। ३. इमे (ख)। १०. ४ (ख, ग, घ)। ४. ° संबुद्धाहिं (ख)। ११. सुयंध° (क); ११११७६ सूत्रेः पूरितपाठे ५. ४ (क,ख, ग)। 'गंध' शब्दोविद्यते । औपपातिकस्य ५५ ६. कोटुंबिय ° (क)। सूत्रेपि स लभ्यते । अत्रापि तथैव युज्यते । ७. सविसेस ° (क); सविसेसे ° (ख); सविसेस- १२. एव ° (क, ख, ग, घ)। परम° (ग)। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायाधम्मकहाओ २३. तए णं ते कोडुबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठ तुटु •चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पच्चप्पिणति ।।। २४. तर णं से सेणिए राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलु म्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगास-किसुय-सुयमुह-गुंजद्ध-बंधुजीवगपारावयचलणनयण - परहुयसुरत्तलोयण-जासुमणकुसुम-जलियजलण-तवणिज्जकलस-हिंगुलयनिगर-रूवाइरेगरेहंत-सस्सिरीए दिवायरे अहकमेण उदिए तस्स 'दिणकर-करपरंपरोयारपारद्धंमि" अंधयारे बालातव - कुंकुमेण 'खचितेव्व' जीवलोए लोयण-विसयाणुयास -विगसंत-विसददंसियम्मि लोए कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते सयणिज्जाओ उढेइ, उद्वेत्ता जेणेव अट्टणसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ । अणेगवायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपागसहस्सपागेहि सुगंधवरतेल्लमादिएहि पीणणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सबिदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भंगेहि अब्भंगिए समाणे, तेल्लचम्मंसि पडिपुण्ण-पाणिपाय-सुकुमालकोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहि पद्धेहि कुसलेहि मेहावीहिं निउणेहि निउणसिप्पोवगएहि जियपरिस्समेहि अभंगण-परिमद्दणुव्वलण-करणगुणनिम्माएहिं, अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासूहाए रोमसूहाए--चउविहाए संवाहणाए संवाहिए समाणे अवगयपरिस्समे नरिदे अट्टणसालाप्रो पडिनिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समत्तजालाभिराम विचित्त-मणि-रयण-कोट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि नाणामणिरयण-भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहनिसण्णे सुहोदएहिं 'गंधोदएहि पुष्फोदएहि' १. सं० पा०-हट्ट तुट जाव पच्चप्पिणंति । २. अहपंडरे (क, ख); अहा° (ग)। ३. दिनकरपरंपरोयारपरद्धम्मि (क, ख, ग, घ, वृपा)। ४. बालायव (क्वचित्)। ५. खइय व्व (ख); खचियंमि (घ)। ६. ° तास (क, ख); ° वास (घ)। ७. जोग (क, ख, ग, घ)। प्रयुक्तासु सर्वास्वपि प्रतिषु 'जोग' इति पाठो लभ्यते, किन्तु वृत्तौ 'योग्या' इति व्याख्यातमस्ति तथा औपपातिक (६३) सूत्रे 'जोग्ग' इति पाठोऽस्ति । असौ च समीचीनः तेन मले स्वीकृतः । ८. अब्भंगिएहिं (ख)। ६. समंत (वृ); समत्त, समुत्त (वृपा) । १०. पुप्फोदएहिं गंधोदएहिं (क, ख, ग, घ)। वृत्तौ पूर्वं गंधोदकं ततश्च पुष्पोदकं व्याख्यातमस्ति । औपपातिक (६३) सूत्रे पि एष एव क्रमो दृश्यते । Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभयणं ( उक्खित्तणाए ) १. कल्लाण ( ग ) । २. कल्ला (क, ख, ग ) । ३. कयाभरणे ( ग ) । ४. मुद्दिया - पिंगलंगुलीए सुद्धोदहिं पुणो पुणो कल्लाणगः - पवर- मज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसहि बहुविहेहि कल्लाणग - पवर- मज्जणावसाणे पम्हल- सुकुमाल - गंधकासाइलूहियंगे अहय - सुमहग्घ-दूसरयण- सुसंवुए सरस- सुरभि गोसीस-चंदणाणुलित्तगत्ते सुइमाला-वण्णगविलेवणे ग्राविद्ध-मणिसुवणे कप्पिय-हारद्धहार-तिसरयपालंब-लंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसो हे पिणद्धगेवेज्ज-अंगुलेज्जग-ललियंगयललियकयाभरणे नाणामणि- कडग तुडिय-थंभियभुए हिरू सस्सिए कुंडलुज्जोइयाणणे मउड- दित्तसिरए हारोत्थय-सुकय-रयवच्छे 'मुद्दिया - पिंगलं - गुलीए पालंव - पलंवमाण-सुकय-पडउत्तरिज्जे" नाणामणिकणगरयण-विमल - महरिह-निउणोविय- मिसिमिसित' - विरइय-सुसिलिट्ठ - विसि लट्ठ-संठिय-पसत्थ विद्ध-वीरवलए, किंबहुणा ? कप्परुक्खए चेव सुअलंकिय' - विभूसिए नरिंदे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे मंगल-जयसद्द-कयालोए ं ‘ग्रणेगगणनायग- दंडनायग राईसर- तलवर - माडंबिय कोडुंबिय - मंति- महामंति- गणग - दोवारिय-ग्रमच्च - चेड - पीढमद्द - नगर-निगम-सेट्ठि सेणावइसत्थवाह- दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवलमहामेहनिग्गए विव गहगण - दिप्पंतरिक्खतारागणाण मज्भे ससि व्व पियदंसणे नरवई मज्जणघराम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसणे ॥ २५. तए णं से सेणिए राया अप्पणी दूरसामंते उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दा - सणाइं— सेयवत्थ-पच्चुत्थुयाई" सिद्धत्थय" - मंगलोवयार- कय"-संतिकम्माई - रावेर, रावेत्ता नाणामणिरतणमंडियं ग्रहियपेच्छणिज्जरूवं महग्घवरपट्टणुयं सह बहुभत्तिसय-चित्तठाणं ईहामिय उस भ-तुरय-नर-मगर- विहग वालग पालंब - पलंबमाणसु-डउत्तरिज्जे (क, ख, ग ) । ५. ० करणगरयण (क, ग ) । ६. मिसिमित (क, घ) । ७. अलंकिय (क, ख, घ) । ८. सकोरिंट (घ) | ६. अत्र औपपातिकस्य पाठक्रमो अस्माद् भिन्नो वर्तते । अर्थसमीक्षया सचाधिकः संगतोप्य ११ ; १०. पच्चत्थयाई ( क ) ; पच्चत्थुयाई ( ग ) | ११. सिद्धत्थ ( क, ख, ग ) । १२. कत ( ग ) । स्ति -- ' कयालोए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अणेगगणनायगदंडनायग- राईसर- तलवर- माटुंबिय कोडुंबिय - इब्भ - सेट्ठि - सेणावइ - सत्थवाह दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवल - महामेहणिग्गए इव गगण. दिप्पंत- रिक्ख तारागणाण मज्भे ससिव्व पिअदंसणे णरवइ जेणेव (ओ० सू० ६३) । Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ किन्नर'-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर - वणलय- पउमलय-भत्तिचित्तं सुखचियवरकणगपवरपेरंतदेसभागं प्रभितरियं जवणियं अंछावेइ, छावेत्ता अत्थरग-मउग्रमसूरंग-उत्थइयं धवलवत्थ-पच्चुत्थुयं विसिट्ठअंगसुहफासयं सुमउयं धारिणीए देवीए भद्दासणं यावेइ, रयावेत्ता कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! श्रदूंग महानिमित्त सुत्तत्थपाढए" विविहसत्य कुसले पाढए साह, सदावेत्ता एयमाणतियं खिप्पामेव पच्चपिह || २६. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जा हरसवस - विसप्पमाणहियया करयल-परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं देवो ! तह त्ति प्राणाए विणणं वयणं पडिसुर्णेति, सेणियस्सरणो अंतिया पडिनिक्खमंति, रायगिहस्स नगरस्स मज्झमज्झेणं जेणेव सुमिणपाढगगिहाणि तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुमिणपाढए सद्दाति ॥ सेस्सि सुमिफल- पुच्छा-पदं २७. तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रण्णो कोडुंबियपुरिसेहि सद्दाविया समाणा - चित्तमाणं दिया जाव' हरिसवस - विसप्पमाणहियया व्हाया कयबलिकम्मा" • कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा 'हरियालियसिद्धत्थय-कयमुद्धाणा" सहि-सएहिं गेहेहितो" पडिनिवखमंति, पडिनिक्खमित्ता रायगिहस्स नगरस्स मज्भंमज्भेणं जेणेव सेणियस्स भवणवडेंसगदुवारे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एगयो मिलति ", मिलित्ता सेणियस्स रण्णो भवणवडेंसगदुवारेणं प्रणुप्पविसंति, प्रणुप्पविसित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला, जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, सेणिएणं रण्णा ग्रच्चिय - वंदिय - ' पूइय- माणिय"सक्कारिय-सम्माणिया समाणा पत्तेयं पत्तेयं पुव्वन्नत्थेसु भासणेसु निसीयंति ॥ २८. तणं से सेणिए राया जवणियंतरियं धारिणि देवि ठवेइ, ठवेत्ता पुप्फफलपणिहत्थे परेण विणणं ते सुमिणपाढए एवं वयासी – एवं खलु १. किंनर ( ख, ग ) । २. ० मसूर ( क, ख, ग, घ ) । ३. पच्चत्यं ( क ); पच्चत्थियं (घ ) । ४. विसिद्ध (क, ख, घ) । ५. सुतत्थधारए ( ख ) । ६. ना० १।१।१६ । ७. यहिया ( क ) । प. ० निक्खमंति, २ ता ( ग, घ ) । धम्मा ६. ना० १।१।१६ । १०. सं० पा० - कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता । ११. सिद्धत्थय-हरिया लिया. कय मंगलमुद्धारणा ( वृपा ) । १२. गर्हितो ( क ) | १३. मेलायंति ( क ); मिलायंति (ख, घ ) । १४. मणि- इ ( ग ); पूइय (ख, घ) । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९. पढमं अज्झयणं (उक्खितगाए) देवाणुप्पिया! धारिणी देवी अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि जाव' महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुद्धा । तं एयस्स णं देवाणुप्पिया ! उरालस्स जाव' सस्सिरीयस्स महासुमिणस्स के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भवि स्सइ ? ॥ सुमिणफल-कहण-पदं तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रण्णो अंतिए एयमर्दु सोच्चा निसम्म हट्टतुटुचित्तमाणंदिया जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियया तं सुमिणं सम्म 'रोगिण्हति अोगिण्हित्ता" ईहं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता अण्णमण्णेण सद्धि 'संचालति, संचालेत्ता' तस्स सुमिणस्स लद्धट्ठा 'पुच्छियट्ठा गहियट्ठा' विणिच्छियट्ठा अभिगयटा सेणियस्स रणो पूरओ समिणसत्थाई उच्चारेमाणा-उच्चारेमाणा एवं वयासी-एवं खलु अम्हं सामी ! सुमिणसत्थंसि बायालोसं सुमिणा, तीसं महासुमिणा-बावत्तरि सव्वसुमिणा दिट्ठा । तत्थ णं सामो ! अरहंतमायरो वा चक्कवट्टिमायरो वा अरहंतसि वा चक्कवदिसि वा गभं वक्कममाणंसि एएसिं तीसाए महासुमिणाणं इमे चोदस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुज्झति, तं जहासंगहणी-गाहा १.गय २.वसह' ३.सीह ४ अभिसेय ५. दाम ६.ससि ७.दिणयरं ८.झयं ६. कुंभं । १०. पउमसर ११. सागर १२. विमाणभवण १३. रयणुच्चय १४. सिहि च ।। वासूदेवमायरो वा वासुदेवंसि गभं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अण्णयरे सत्त महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुज्झति । बलदेवमायरो वा बलदेवंसि गम्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोदसण्हं महासुमिणाणं अण्णयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झति ।। मंडलियमायरो वा मंडलियंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अण्णयरं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुज्झति।। इमे य सामी ! धारिणीए देवीए एगे महासुमिणे दिटे, तं उराले णं सामी ! धारिणीए देवीए सुमिणे दिढे जाव आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउय-कल्लाण-मंगल्लकारए णं सामी ! धारिणीए देवीए सुमिणे दिढे । 'अत्थलाभो सामी ! पुत्तलाभो सामी ! रज्जलाभो सामी ! भोगलाभो सामी ! सोक्खलाभो सामी" ! एवं १. ना० १११८,१६ । २, ३. ना०१।१।१६ । ४. परिगिण्हंति २ (ख)। ५. संवाएंति २ ता (क); बोलेंति २ (ख)। ६. गहियट्ठा पुच्छियट्ठा (क, घ)। ७. उसभ (क, ख)। ८. ना० १।१।२०। ९. अत्र विंशतितमं सूत्रमनुसत्य पाठः स्वीकृतः, Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ खलु सामी ! धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव' दारगं पयाहिइ । से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कंते वित्थिण्ण-विपुल-बलवाहणे रज्जवई राया भविस्सइ, अणगारे वा भावियप्पा। तं उराले णं सामी ! धारिणीए देवीए सुमिणे दिढे जाव' आरोग्ग-तुट्टि'- दीहाउय-कल्लाण-मंगल्लकारए णं सामी ! धारणीए देवीए सुमिणे ° दिवै त्ति कटु भुज्जो-भुज्जो अणुवूहेति ।। सुमिणपाढग-विसज्जण-पदं ३०. तए णं से सेणिए राया तेसि सुमिणपाढगाणं अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म हट्टतुटु-चित्तमाणदिए जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियए करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी–एवमेयं देवाणुप्पिया ! जाव जणं तुब्भे वयह त्ति कटु तं सुमिणं सम्म पडिच्छइ', ते सुमिणपाढए विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विपुलं जीवियारिहं पीतिदाणं दलयति', दलइत्ता पडिविसज्जेइ॥ सेणियस्स सुमिणपसंसा-पदं ३१. तए णं से सेणिए राया सीहासणाश्रो अब्भुढेइ, अब्भुट्ठत्ता जेणेव धारिणी देवी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता 'धारिणि देवि एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए ! सुमिणसत्थंसि बायालीसं सुमिणा" तीसं महासुमिणाबावत्तरि सव्वसुमिणा दिट्ठा जाव' तं उराले णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिट्रे। कल्लाणे णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिलै । सिवे धण्णे मंगल्ले सस्सिरीए णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणे दिढे । आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउय-कल्लाण- मंगल्लकारए णं तुमे देवि ! सुमिणे दिढे त्ति कटु° भुज्जो-भुज्जो अणुवूहेइ ।। प्रतिषु चात्र पाठस्य क्रमविपर्ययो दृश्यते- ६. सं० पा०—करयल जाव एवं । अत्थलाभो सामी! सोक्खलाभो साम। ! ७. ना० ११२१ । भोगलाभो सामी! पुत्तलाभो रज्जलाभो ८. संपडिच्छइ (ग, घ)। (क, ख, ग, घ)। ६. दलइ (क)। १. ना० ११११२० १०. धारणी देवी (क); धारणीए देवीए (ख, ग), २. विण्णाय (वृ); विण्णय (वृपा)। धारणी देवीं (घ)। ३. ना० १११।२०। ११. सं० पा० - सुमिणा जाव भुज्जो २ अणु४. सं० पा० ---आरोग्ग-तुट्ठि जाव दिद्वै। वहति । ५. ना० १।१।१६। १२. ना० १।१।२६। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) १५ धारिणीए दोहल-पदं ३२. तए णं सा धारिणी देवी सेणियस्स रण्णो अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हठ्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियया तं सुमिणं सम्म पडिच्छति, जेणेव सए वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ण्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता विपुलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ॥ ३३. तए णं तीसे धारिणीए देवीए दोसु मासेसु वीइक्कतेसु तइए मासे वट्टमाणे तस्स गब्भस्स दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउब्भवित्था - धण्णायो णं तानो अम्मयानो, संपुण्णाओ णं तानो अम्मयायो, कयत्थानो णं तानो अम्मयानो, कयपुण्णासो णं तारो अम्मयानो, कयलक्खणाप्रो णं ताओ अम्मयानो, कयविहवाग्रो णं तायो अम्मयाग्रो, सुलद्ध णं तासिं माणुस्सए जम्मजीवियफले, जानो णं मेहेसु अब्भुग्गएसु अब्भुज्जएसु अब्भुण्णएसु अब्भुट्ठिएसु सगज्जिएसु सविज्जुएसु सफुसिएसु सथणिएसु धंतधोय-रुप्पपट्ट-अंक-संख-चंद-कुंद-सालिपिट्ठरासिसमप्पभेसु चिकुर-हरियालभेय-चंपग-सण-कोरेंट-सरिसव-पउमरयसमप्पभेसु लक्खारस-सरस-रत्तकिसुयजासुमण-रत्तबंधुजीवग-जातिहिंगुलय-सरस - कुंकुम-उरभससरुहिर - इंदगोवगसमप्पभेसु बरहिण-नील-गुलिय'-सुगचासपिच्छ-भिंगपत्त-सासग-नीलुप्पलनियरनवसिरीसकूसम - नवसहलसमप्पभेस जच्चंजण-भिंगभेय-रिट्रग-भमरावलिगवलगुलिय-कज्जलसमप्पभेसु फुरंत-विज्जुय-सगज्जिएसु वायवस-विपुलगगणचवलपरिसक्किरे, निम्मल-वरवारिधारा-पर्यालय-पयंडमारुयसमाहयसमोत्थरंत-उवरिउवरितुरियवासं पवासिएस, धारा-पहकर-निवाय-निव्वाविय मेइणितले हरियगगणकंचुए पल्लविय" पायव १. ना० १।१।१६। ७. गुलिया (ख, घ)। २. सं० पा०—कयबलिकम्मा जाव विपुलाइं ८. सामग (क, ख); साम (वृपा)। जाव विहरइ ॥ ६. निर्वापितशब्दाच्च सप्तम्येकवचनलोपो दृश्यः ३. सथणिज्जेसु (क)। (वृ)। ४. सरिसय (ख); सरिस (घ); वाचनान्तरे-- १०. इदं समस्तपदं स्यादपि तथापि वत्तिकृता 'सण' स्थाने 'कंचण' 'सरिसव' स्थाने 'पल्लविय' पदं स्वतंत्ररूपेण व्याख्यातम्'सरिस' त्ति पठ्यते (व)। इह सप्तमीबहुवचनलोपो दृश्यः, ततः ५. हिंगुलिय (ग, घ)। पल्लवितेषु (वृ)। ६. इंदगोवसम ° (क)। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ Streeओ गणेसु वल्लिवियाणेसु' पसरिएसु उन्नएस' सोभग्गमुवगएसु वैभारगिरिप्पवाय-तड-कडगविमुक्केसु उज्झरेसु, तुरियपहाविय- पल्लोट्ट फेणाउलं सकलुसं जलं वहंतीसु गिरिनदीसु सज्जज्जुण - नीव - कुडय - कंदल - सिलिंध - कलिएसु उववणेसु, मेहरसिय चिट्ठिय - हरिसवसपमुक्ककंठ केकारवं मुयंतेसु बरहिणेसु उउवस'-मयजणिय-तरुणसहयरि - पणच्चिएस नवसुरभि - सिलिंध- कुडय - कंदलकलंब-गंधद्धणि मुयंतेसु उववणेसु । परहुय - रुय - रिभिय-संकुलेसु उद्दाइंत-रत्तइंदगोवय-थोवय - कारुण्णविलविएसु प्रणयतणमंडिएसु ददुरपयंपिएसु संपिंडिय-दरिय भमर-महुयरिहकरपरिलित-मत्त - छप्पय - कुसुमासवलोल - महुर-गुंजंतदेस भासु उववणेसु । परिसामिय' -चंद - सूर - गहगण-पणट्ट नक्खत्तता रंग पहे' इंदाउह-बद्ध - चिंधपट्टम्मि' अंबरतले उड्डीणबलागपंति" - सोभंत मेहवंदे कारंडग-चक्कवाय- कलहंस-उस्सुयकरे संपत्ते पाउसम्म काले पहायाश्रो" कयबलिकम्मा कय- कोउय-मंगल-पायच्छित्तानो 'किं ते?"`वरपायपत्तनेउर-मणिमेहल - हार रइय-प्रोविय" - कडग 'खुड्डय"विचित्तवरवलयथंभियभुयाग्रो कुंडलउज्जोवियाणणाश्रो" रयणभूसियंगीयो, नासा"-नीसासवाय-वोज्यं चक्खुहरं वण्णफरिससंजुत्तं हयलालापेलवाइरेयं [भ० | १४४ सूत्रस्य पादटिप्पणं ] असौ पाठ: व्याख्यादृष्ट्या सरलोस्ति । २. पाठान्तरे नगेषु पर्वतेषु नदेषु वा ह्रदेषु १३. उचिय ( ग, घ ) । वृत्तिकारेणापि ' उचिय' पदं व्याख्यातमस्ति — उचितानि योग्यानि (वृ) | किन्तु अत्र 'ओविय' पदं समीचीनमस्ति । संभवतो लिपिदोषेण परिवर्तनं जातम् । २४ सूत्रे 'ओविय' इति पाठी लभ्यते । तत्र वृत्तिकारेण 'ओविय त्ति परिकर्मितानि इति' व्याख्या कृतास्ति । अत्र वृत्तिकारेण 'उचिय' पाठो लब्धः तेन तथा व्याख्यातः । १. ० सुं ( क, ख ); अन्यत्रापि यत्र क्वचित् एतत् दृश्यते । (वृ) । ३. सोहग्ग ० ( क ) । ४. सिद्धि ( ख, ग ) । ५. बहिणे ( क ) । ६. उदु° (ख); उडु° ( ग, घ ) । ७. परिभामिय (क, ग, घ, वृपा) । ८. ° ताराग पहे ( क ) ; ° तारागणपहे ( ग ) । पटंटसि (ख, घ) । ६. १०. ० बलागवंति ( ख ) । ११. किंभूता श्रम्मयाओ खदुय (घ ) ; खड्डय (घ ) । १४. इत्याह- पहायाओ १५. खड्डय- एगावलि- कंठमुरज- तिसरय-वरवलयहेमसूत्त - कुंडलुज्जोवियाणणाओ (वृपा) । नास ( क ) । इत्यादि (वृ ) | १२. किन्नो ( क ) ; किन्ने ( ग ) ; किं रो (घ ) । किं तत् 'यत् करोति' इति शेषः । किं च १६. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खिसणाए) धवलकणय-खचियंतकम्मं आगासफलिह-सरिसप्पभं अंसुयं पवर' परिहियारो, दुगूलसुकुमालउत्तरिज्जाओ' 'सव्वोउय-सुरभिकुसुम-पवरमल्लसोभियसिरानो' कालागरुधूवधूवियाओ सिरी-समाणवेसायो, सेयणय-गंधहत्थिरयणं दुरूढायो समाणीओ, सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं 'चंदप्पभवइरवेरुलियविमलदंड- संखकुंद- दगरयलमयमहियफेणपुंजसन्निगास- चउचामरवालवीजियंगीयो" सेणिएणं रण्णा सद्धि हत्थिखंधवरगएणं पिट्ठो-पिढनो समणुगच्छमाणीओ चाउरंगिणीए सेणाए-महया हयाणीएणं गयाणीएणं रहाणीएणं पायत्ताणोएणंसव्विड्ढीए सव्वज्जुईए 'सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडिय-सद्द-सण्णिणाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरयमुइंग-दुंदुहि ° -निग्घोसनाइयरवेणं रायगिहं नयरं सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चरचउम्मुह-महापहपहेसु आसित्तसित्त-सुइय-सम्मज्जिग्रोवलित्तं पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्क-पुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डज्झंतसुरभि-मघमघेत-गंधद्धयाभिरामं० सुगंधवर (गंध ?) गंधियं गंधवद्रिभूयं अवलोएमाणीयो नागरजणणं अभिनंदिज्जमाणीयो" गुच्छ-लया-रुक्ख-गुम्मवल्लि-गुच्छोच्छाइयं सुरम्मं वेभारगिरिकडग"-पायमूलं सव्वनो समंता 'आहिंडमाणीप्रो-आहिंडमाणीओ दोहलं विणिति। तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव दोहलं विणिज्जामि ॥ १. प्रवरमिहानुस्वारलोपोदृश्यः (व) । 'ग' प्रतौ ७. सं० पा०-सव्वजुईए जाव निग्घोसनाइय'पवर' इति पाठो पि लभ्यते । रवेणं । २. दुगुल्ल° (क)। ८. सं० पा०–सामज्जिओवलित्तं जाव सुगंध३. पाठान्तरे-सर्व कसुरभिकुसुमैः सुरचिताः वरगंधियं । प्रलम्बा शोभमानाः कान्ता चित्रा माला यासां ६. १।१।७६ सूत्रे, वृत्तेः पूरितपाठे 'गंध' शब्दो तास्तथा। एवमन्यान्यपिपदानि बहवचनानि विद्यते । औपपातिकस्य ५५ सूत्रपि संस्करणीयानि । इह वर्ण के बृहत्तरो स लभ्यते । अत्रापि तथैव युज्यते । वाचनाभेदः (व)। १०. अभिनंदिज्जमाणीओ २ (क)। ४. सेयणयं (ख)। ११. बेब्भार ° (ख, ग)। ५. अयमेवार्थों वाचनान्तरे इत्थमधीत:- १२. डोहलं (क, घ)। सेयवरचामराहिं उद्धवमाणीहिं-उद्धव्वमा- १३. विणएंति (क); विणियति (घ)। णीहिं (वृ)। १४. वृत्तिकारस्य सम्मुखे सम्मता आदर्शा आसन् ६. सव्व ° (ख)। तेषु 'समंता आहेडज्ज' इत्येतावानेव पाठः पासीत । अग्रिमस्य पाठस्य वृत्तिकृता Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ धारिणीए चिता-पदं ३४. तए णं सा धारिणी देवी तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि असंपत्तदोहला असंपुण्णदोहला असम्माणियदोहला सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा अोलुग्गसरीरा पमइलदुब्बला किलंता प्रोमंथियवयण-नयणकमला पंडुइयमुही करयलमलिय व्व चंपगमाला नित्तेया दीणविवण्णवयणा जहोचिय-पुप्फ-गंध-मल्लालंकार-हारं' अणभिलसमाणी किड्डारमणकिरियं परिहावेमाणी दीणा दुम्मणा निराणंदा भूमिगयदिट्ठीया प्रोहयमणसंकप्पा' 'करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोव गया' भियाइ ॥ पडिचारियाणं चिताकारणपुच्छा-पदं ३५. तए णं तीसे धारिणीए देवीए अंगपडिचारियायो अभितरियानो दासचेडियाओ' धारिणि देवि अोलुग्ग झियायमाणि पासंति, पासित्ता एवं वयासी---किण्णं तुमे देवाणुप्पिए ! अोलुग्गा अोलुग्गसरीरा जाव झियायसि ? ३६. तए णं सा धारिणी देवी ताहिं अंगपडिचारियाहिं अभितरियाहि दासचेडि याहि य एवं वुत्ता समाणी तायो दासचेडियानो नो आढाइ नो परियाणइ०, 'अणाढायमाणी अपरियाणमाणी" तुसिणीया संचिट्ठाइ॥ ३७. तए ण तारो अंगपडिचारियायो अभितरियानो दासचेडियानो धारिणि देवि दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-किण्णं तुमे" देवाणुप्पिए ! अोलुग्गा अोलुग्ग सरीरा जाव" झियायसि ? ३८. तए णं सा धारिणी देवी ताहि अंगपडिचारियाहि अभितरियाहि दासचेडि वाचनान्तरत्वेन उल्लेखः कृतः, तस्य ५. ना० १११३४ । संगतत्वमपि प्रदर्शितम् -ग्राहेंडज त्ति ६. अत्र पाठसंक्षेपकरणे सुक्खं भूक्खं निम्मस आहिंडते । अनेन चैव मुक्तव्यतिकरभाजां इति विशेषणत्रयी न विवक्षितास्ति । सामान्येन स्त्रीणां प्रशंसाद्वारेणात्मविषयेऽका- एवमग्रेपि । लमेघदोहदो धारिण्याः प्रादुरभूत् इत्युक्तम् । ७. किं नं (क); किं णं (ख); किण्हं (ग)। वाचनान्तरे तु-ओलोयमारणीओ २ आहिंडे- ८. ० चेडीहिं (ख, ग)। माणीओ २ डोहलं विणिति । तं जइ णं ६. चेडियानो (ख, ग)। अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव डोहलं १०. परियाणाइ (ग); परियाणेति (घ) । विणिज्जामि । संगतश्चायं पाठ इति (व)। ११. मारणा अपरियाणमाणा (ख, घ)। १. मल्लालकाराहारं (क, ख, ग)। १२. चिट्ठ इ (क)। २. कीडा (क, ख, घ)। १३. तुमं (क, ग)। ३. सं. पा.-ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ। १४. ना० ११११३४ । ४. चेडीमो (क, ग)। १५. परियारियाहिं (क)। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अयणं (उक्खित्तणाए ) याहि दोच्चपि तच्च पि एवं वृत्ता समाणी नो ग्राढाइ नो परियाणा, प्रणाढायमाण परियामाणीतुसिणीया संचिट्ठइ || पडिचारियाणं सेणियस्स निवेदण-पदं ३६. तए णं ताम्रो अंगपडिचारिया प्रभितरिया दासचेडिया धारिणीए देवोए अगाढाइज्ज माणोश्रो अपरिजाणिज्जमाणीश्रो तहेव संभंताओ समाणी धारिणी देवीए अंतिया पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि • कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी - एवं खलु सामी ! किंपि प्रज्ज धारिणी देवी प्रलुग्गा प्रोलुग्गसरीरा जाव' श्रट्टज्झागोवगया भियायइ ॥ सेणियस्स चिताकारणपुच्छा-पदं ४०. तए णं से सेणिए राया तासि श्रंगपडिचारियाणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म तव संभंते समाणे सिग्घं तुरियं चवलं वेइयं' 'जेणेव धारिणी देवी तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता" धारिणि देवि श्रलुग्गं श्रलुग्गसरीरं जाव' श्रट्टज्भागोवगयं झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी- किण्णं तुमं देवाणुप्पिए ! लुग्गा प्रोलुग्गसरीरा जाव ग्रदृज्भाणोवगया भियायसि ? ४१. तणं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वृत्ता समाणी नो आढाइ नो परियाई जाव' सिणीया संचिट्ठइ ॥ ४२. तए णं से सेणिए राया धारिणि देवि दोच्चं पि तच्च पि एवं वयासी -- किण्णं तुमं देवाप्पिए ! लुग्गा बोल्लुगसरीरा जाव श्रदृज्भाणोवगया भियाससि ? ४३. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा दोच्चं पि तच्चं पि एवं बुत्ता समाणी नो आढाइ नो परियाणइ' तुसिणीया संचिट्ठइ || १६ ४४. तए णं से सेणिए राया धारिणि देवि सवह- सावियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी किण्णं' देवाणुप्पिए" ! ग्रहमेयस्स अट्ठस्स ग्रणरिहे सवणयाए ? तो " णं तुमं ममं यमेारूवं मणोमाणसियं दुक्खं रहस्सीकरेसि ॥ १. सं० पा०-- करयलपरिग्गहियं जाव कट्टु | २. ना० १।१।३४ | ३. चेइयं (क, ख, ग, घ ) । ४. जेणेव धारिणी देवी तेणेव पहारेत्थ गमणाए तएणं सेणिए राया जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ २ (ग, वृपा) । ५. ना० १।१।३४ । ६. ना० १।१।३६ । ७. ना० १।१।३४ | 5. पू० - ना० १११।३६ । 0 ६. हि किमिति वा पाठ: (वृ) । १०. तुमं देवाणु (क, घ) । अत्र 'तुम' अनावश्यको विद्यते । ११. ता (घ) । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० नायाधम्मकहानी धारिणीए चिताकारणनिवेदण-पदं ४५. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा सवह-साविया समाणी सेणियं रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! मम तस्स उरालस्स जाव' महासुमिणस्स तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे' अकालमेहेसु दोहले पाउन्भूएधण्णो णं तानो अम्मयानो कयत्थानो णं तानो अम्मयानो जाव' वेभारगिरिकडग-पायमूलं सव्वनो समंता आहिंडमाणीप्रो-आहिंडमाणीओ" दोहलं विणिति । तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव' दोहलं विणेज्जामि। 'तए णं अहं सामी ! अयमेयारूवंसि अकालदोहलंसि अविणिज्जमाणंसि अोलुग्गा जाव अट्टज्माणोवगया झियामि ।। सेणियस्स आसासण-पद ४६. तए णं से सेणिए राया धारिणीए देवीए अंतिए एयमहूँ सोच्चा निसम्म धारिणि देवि एवं वयासी-मा णं तुम देवाणप्पिए ! अोलुग्गा जाव अज्झाणोवगया झियाहि । अहं णं तह" करिस्सामि जहा णं तुम्भं अयमेयारूवस्स अकालदोहलस्स मणोरहसंपत्ती भविस्सइ त्ति कटु धारिणि देवि इट्टाहि कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहि वग्गूहि समासासेइ, समासासेत्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे धारिणीए देवीए एयं अकालदोहलं बहूहि आएहि य उवाएहि य, उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मियाहि य पारिणामियाहि य–'चउविवहाहिं बुद्धीहिं५२ अणुचितेमाणे-अणुचितेमाणे तस्स दोहलस्स पायं वा उवायं वा 'ठिई वा उप्पत्ति वा अविंदमाणे अोहयमणसंकप्पे जाव" झियायइ॥ अभयकुमारस्स सेणियं पइ चिताकारणपुच्छा-पदं ४७. तयाणंतरं च णं अभए५ कुमारे ‘ण्हाए कयबलिकम्मे 'कयकोउय-मंगल पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए पायवंदए पहारेत्थ गमणाए । १. ना० १११।१६। १०. तहा (घ)। २. अतमेया ° (ग)। ११. घत्तीहामि (व); करिस्सामि (वपा)। ३. ना० १२११३३ । १२. चउव्विहाए बुद्धीए (ग)। ४. वेब्भार ० (ख, ग)। १३. उप्पत्ति वा ठिई वा (क); उत्पत्ति वा ५. द्रष्टव्य : १।१।३३ सूत्रस्यासौ पाठः । (वृपा)। ६. ना० १११।३३। १४. ना० १।१।३४ । ७. तए ण हं (क); तते णं हं (ख); तेणा हं(घ)। १५. अभय (क, ग, घ)। ८, ६. ना० ११११३४ । १६. सं० पा०-कयबलिकम्मे जाव सव्वालंकार । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) २१ ४८. तए णं से अभए कुमारे" जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं प्रोहयमणसंकप्पं जाव' झियायमाणं पासइ, पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था अण्णया' मम सेणिए राया एज्जमाणं पासइ, पासित्ता पाढाइ परियाणइ सक्कारेइ सम्माणेइ [इट्ठाहि कंताहि पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं अोरालाहिं वग्गूहि ? ] पालवइ संलवइ अद्धासणेणं उवनिमंतेइ मत्थयंसि अग्धाइ। इयाणि ममं सेणिए राया नो पाढाइ नो परियाणइ नो सक्कारेइ नो सम्माणेइ नो इट्टाहि कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं अोरालाहि वग्गूहिं पालवइ संलवइ नो अद्धासणेणं उवनिमंतेइ नो मत्थयंसि अग्घाइ', किं पि अोहयमणसंकप्पे जाव' झियायइ । तं भवियव्वं णं एत्थ कारणेणं । तं सेयं खलु ममं सेणियं रायं एयमटुं पुच्छित्तएएवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे णं तारो ! अण्णया ममं एज्जमाणं पासित्ता आढाह परियाणह 'सक्कारेह सम्माणेह पालवह संलवह अद्धासणेणं उवणिमंतेह मत्थयंसि अग्धायह" । इयाणि ताओ ! तुब्भे ममं नो पाढाह जाव 'नो मत्थयंसि अग्घायह'१२ कि पि अोहयमणसंकप्पा जाव झियायह । तं भवियव्वं णं तारो ! एत्थ कारणेणं । तो तुब्भे मम तायो ! एयं कारणं अगृहमाणा" असंकमाणा अनिण्हवमाणा अपच्छाएमाणा जहाभूतमवितहमसंदिद्धं एयमहूँ आइक्खह । तए णंहं तस्स कारणस्स अंतगमणं गमिस्सामि ।। सेणियस्स चिताकारणनिवेदण-पदं ४६. तए णं से सेणिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे अभयं कुमारं एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता ! तव चुल्लमाउयाए" धारिणीदेवीए तस्स गब्भस्स दोसु मासेसु अइक्कतेसु तइयमासे वट्टमाणे दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे १.४ (घ)। ८. तेणेव (घ)। २. ना० १११।३४। ६. सं० पा०-परियाणह जाव मत्थयंसि ३. अण्णया य (क); अण्णतो (घ)। १०. पू०-अस्य सूत्रस्य पूर्वभागः। ४. आसणेणं (क, ख, ग)। नोयुक्तपुनरावर्तने ११. आग्घायह आसणेणं उवनिमंतेह (क, घ)। ___ 'अद्धासणेण' पाठोस्ति, अत्रापि तथैव युज्यते। १२. नो आसणेणं उवनिमंतेह (क, ख, ग, घ)। ५. अग्घायइ (क, ख, ग)। १३. अगृहेमाणा (ख, ग, घ)। ६. ना० १११।३४। १४. तुल्ल ° (ग)। ७. जेणेव (घ)। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ दोहले पाउब्भवित्था-धण्णायो णं तानो अम्मयानो तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव' वेभारगिरिकडग-पायमूलं सव्वनो समंता आहिंडमाणीग्रो-आहिंडमाणीनो दोहलं विणिति। तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव दोहलं विणिज्जामि। तए णं अहं पुत्ता धारिणीए देवीए तस्स अकालदोहलस्स बहूहि आएहि य उदाएहि य जाव' उप्पत्ति अविंदमाणे प्रोहयमणसंकप्पे जाव' भियामि, तुम आगयं पि न याणामि । तं एतेणं कारणेणं अहं पुत्ता! ग्रोहयमणसंकप्पे जाव भियामि ॥ अभयस्स आसासण-पदं ५०. तए णं से अभए कुमारे सेणियस्स रण्णो अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिए जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहिगए सेणियं रायं एवं वयासी-मा णं तुब्भे तारो ! अोहयमणसंकप्पा' जाव' झियायह । अहं णं तहा करिस्सामि जहा णं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवस्स अकालदोहलस्स मणोरहसंपत्ती भविस्सइ त्ति कटु सेणियं रायं ताहिं इट्ठाहिं' °कंताहि पियाहि मणुन्नाहि मणामाहि वग्गूहि समासासेइ॥ ५१. तए णं से सेणिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठ तुट्ठ-चित्तमाणंदिए जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियए अभयं कुमारं सक्कारेइ समाणेइ, पडिविसज्जेइ ॥ अभयस्स देवाराहण-पदं ५२. तए णं से 'अभए कुमारे" 'सक्कारिए सम्माणिए' पडिविसज्जिए समाणे सेणियस्स रण्णो अंतियानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव सए भवणे, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणे निसण्णे ॥ ५३. तए णं तस्स अभयस्स" कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए१२ चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था-नो खलु सक्का माणुस्सएणं उवाएणं मम १. ना० १२११३३ । २. ना० १११४६ । ३. ना० १११।३४ । ४. ना० १११।१६। ५. तोहय° (क)। ६. ना० १।१३४। ७. सं० पा०–इट्टाहिं जाव समासासेइ। ८. ना० १२१६ । ६. अभयकुमारे (ख, ग, घ)। १०. सक्कारिय ° (क); सक्कारिय सम्माणिय (ख, ग)। ११. अभय (ख, ग, घ)। १२. सं० पा० -अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) २३ चुल्लमाउयाए' धारिणीए देवीए अकालदोहलमणोरहसंपत्ति करित्तए, नन्नत्थ' दिवेणं उवाएणं । अस्थि णं मझ' सोहम्मकप्पवासी पुत्वसंगइए देवे महिड्ढीए •महज्जुइए महापरक्कमे महाजसे महब्बले महाणुभावे° महासोक्खे। तं सेयं खलु ममं पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स' उम्मुक्कमणिसुवण्णस्स ववगयमालावण्णगविलेवणस्स निक्खित्तसत्थमुसलस्स एगस्स अबीयस्स दब्भसंथारोवगयस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता पुव्वसंगइयं देवं मणसीकरेमाणस्स विहरित्तए। तए णं पुव्वसंगइए देवे मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालमेहेसु दोहलं विणेहिति-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव पोसहसाला तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभचारो जाव पुव्वसंगइयं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे" चिट्ठइ ॥ देवागमण-पदं ५४. तए णं तस्स अभयकुमारस्स अट्ठमभत्ते परिणममाणे पुव्वसंगइयस्स देवस्स ग्रासणं चलइ। ५५. तए णं से पुव्वसंगइए सोहम्मकप्पवासी देवे आसणं चलियं पासइ, पासित्ता प्रोहिं पउंजइ। ५६. तए णं तस्स पुव्वसंगइयस्स देवस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए१२ चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्था- एवं खलु मम पुव्वसंगइए जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे रायगिहे नयरे पोसहसालाए पोसहिए अभए नामं कुमारे अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता णं ममं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिद्रइ। तं सेयं खलु मम अभयस्स कुमारस्स अंतिए पाउब्भवित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं १. तुल्ल ° (ग) प्रायः सर्वत्र। २. ण अण्णत्थ (क)। ३. मम (घ)। ४. सं० पा०–महिड्ढीए जाव महासाक्खे । ५. महसोक्खे (क, ख)। ६. बंभयारिस्स (घ)। ७. परिगिण्हित्ता (क, घ)। ८. तेणेव (घ)। ६. पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता (ख, घ), अत्र उपासकदशायाः प्रथमाध्ययने (६०) सूत्रे एवं पाठो विद्यते-दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता। १०. अट्ठमं ° (ख)। ११. X (क, ख, घ)। १२. सं० पा०--अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ नायाधम्मक हाओ समोहण', समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंड निसिरइ, तं जहा - रयणाण इराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधिया जोईरसाणं अंकाणं गंजणाणं रययाणं जायरूवाणं अंजणपुलगाणं फलिहाणं रिट्ठाणं महाबारे पोग्गले परिसाडेइ, परिसाडेत्ता ग्रहासुमे पोग्गले परिगिह, परिगिण्हित्ता अभय कुमारमणुकंपमाणे देवे 'पुव्वभवजणिय- नेह-पीइबहुमाणजायसोगे" तो विमाणवरपुंडरीया रयणुत्तमाओ 'धरणियल-गमणतुरिय-संजणिय-गमणपयारो" "वाघुण्णिय- विमल कणग-पय रंग - वडिसगमउडुक्कडाडोवदंसणिज्जो मणि-कणगरणपहकरपरिमंडिय-भत्तिचित्त-विणि उत्तम गुणजणियहरिसो पिखोलमाणवरललियकुंडलुज्जलिय-वयणगुणजणियसोमवो उदियो विव कोमुदीनिसाए सणिच्छरंगारकुज्जलियमज्झभागत्थो नयणानंदो सरयचंदो दिव्वोसहिपज्जलुज्जलियदंसणाभिरामो उदुलच्छिसमत्तजायसोहो पगंधुद्धयाभिरामो मेरू विव नगवरो विगुव्वियविचित्तवेसो दीवसमुद्दाणं असंखपरिमाणनामधेज्जाणं मज्भकारेणं वीइवयमाणो उज्जोयंतो ' पभाए विमलाए जीवलोयं रायगिहं पुरवरं च अभयस्स पासं प्रोवयइ दिव्वरूवधारी । ५७. तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे दसवण्णाई सखिखिणियाइं पवर वत्थाई परिहिए अभयं कुमारं एवं वयासी-ग्रहं णं देवाणुप्पिया ! पुव्वसंगइए १. समोहणति ( क, ख, घ) । २. दंडं उड्ढं ( ग ) । ३. वयराणं ( ग, घ ) । ४. रयणाणं ( ग, घ ) इत्यपपाठ: । ५. वाचनान्तरे - पूर्वभवजनितस्नेहप्रीति बहुमानजनितशोभः (वृ) । ६. वाचनान्तरे - धरणीतलगमन संजनितमनः प्रचारः ( वृ) | ७. ० सोमरूवो (ख, घ); वाचनान्तरे पुनरेवं विशेषणत्रयं दृश्यते - वाघुन्निय- विमलकणगपयरग-वडेंसगप कंपमाण चललोल ललियपरिलंबमाण- नर-मगर - तुरंग मुहसय विणिग्गश्रोग्गिण्ण - पवरमोत्तियविरायमाणम उडुक्कडावडोवदरिसणिज्जो अणेगमणिकणगरयणपहकरपरिमंडिय-भाग भत्तिचित्त-विणिउत्तगगुणजय खोलमाणवरल लिय कुंडलुज्ज - लिय अहियआभरणज णियसोभे गयजलमलविमलदंसणविरायमाणरूवे (वृ) । ८. उज्जीवेंतो (क, ग) । गमः ६. 'परिहिए' इतिपाठानन्तरं आदर्शेषु एक्को ताव एसो गमो । अन्नो वि गमो' इत्युल्ले खोस्ति । तदनन्तरं द्वितीयोः गमः साक्षाल्लिखितोस्ति, तेनादर्शेषु गमद्वयस्य सम्मिश्रणं जातम् । वृत्तावपि अस्य सूचना लभ्यते, यथा - एकस्तावदेष पाठोन्यो पि द्वितीयो गमो वाचनाविशेषः पुस्तकान्तरेषु दृश्यते । अस्योल्लेखस्यानुसारेण द्वितीयगमस्य पाठः इत्थं भवति - " तरणं से देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चलाए चंडाए सीहाए उद्धुयाए जयणाए छेयाए दिव्वाए देवगईए जेणामेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे जेणामेव दाहिणड्ढभरहे Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) २५ सोहम्मकप्पवासी देवे महिड्ढीए' जंणं तुमं पोसहसालाए अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता णं ममं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठसि, तं एस णं देवाणुप्पिया ! अहं इहं हवमागए । संदिसाहिणं देवाणुप्पिया ! किं करेमि ? कि दलयामि ? कि पयच्छामि ? किं वा ते हियइच्छियं ? ५८. तए णं से अभए कुमारे तं पुव्वसंगइयं देवं अंतलिक्खपडिवण्णं पासित्ता हट्ठतुट्टे पोसहं पारेइ, पारेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए ° अंजलि कटु एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवे अकालदोहले पाउन्भूए-धन्नानो णं तारो अम्मयानो तहेव पुव्वगमेणं जाव वेभारगिरिकडग-पायमूलं सव्वनो समंता आहिंडमाणीप्रो आहिंडमाणीप्रो दोहलं विणिति । तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव' दोहलं विणेज्जामि-तं णं तुम देवाणुप्पिया ! मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालदोहलं विणेहि ॥ देवस्स अकालमेह विउव्वण-पदं । ५६. तए णं से देवे अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुढे अभयं कुमारं एवं वयासीतुमं णं देवाणुप्पिया ! सुनिव्वुय-वीसत्थे अच्छाहि । अहं णं तव चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवं अकालदोहलं" विणेमि त्ति कटु अभयस्स कुमारस्स अंतियानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता उत्तरपुरत्थिमे णं वेभारपव्वए वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरइ जाव दोच्चंपि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता खिप्पामेव सगज्जियं सविज्जुयं सफुसियं पंचवण्णमेहनिणाअोवसोहियं दिव्वं पाउससिरि विउव्वइ, विउव्वित्ता जेणामेव अभए कुमारे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायगिहे नयरे पोसहसाला अभयकुमारे ४. दलामि (ख, ग, घ)। तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंत- ५. हियं (ग)। लिक्खपडिवन्ने दसवण्णाई सखिखिणियाई ६. सं.पा--करयल अंजलिं । पवर वत्थाइं परिहिए"। ७,८. ना० १२११३३ । वृत्तिकारेण द्वितीयगमविषये एका सूचनापि ६. अत्थाहि (ग, घ)। दत्तास्ति-अयं द्वितीयो गमो जीवाभिगम- १०. जावदोहलं (क)। सूत्रवृत्त्युनुसारेण लिखितः (वृ)। ११. निसरति (ख, ग, घ)। १. महड्ढिए (ख, घ); पू०--ना० ११११५३ । १२. ना० ११११५६ । २. संगिण्हित्ता (क, ख, ग)। १३. जेणेव (ख, ग, घ)। ३. संदिसहा (क); संदिसह (घ)। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ नायाधम्मक हाओ अभयं कुमारं एवं वयासी – एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए तव पियट्टयाए 'सगज्जिया सफुसिया सविज्जुया" दिव्वा पाउससिरी विउब्विया, तं विषेऊ णं देवाप्पिया ! तव चुल्लमाउया धारिणी देवी प्रयमेयारूवं कालदोहलं ॥ धारिणीए दोहद- पूरण-पदं ६०. तए णं से अभए कुमारे तस्स पुव्वसंगइयस्स ' सोहम्मकप्पवासिस्स देवस्स तिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठे सयाओ भवणाम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल ' "परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - एवं खलु ताम्रो ! मम पुव्वसंगइएणं सोहम्मकप्पवासिणा देवेणं खिप्पामेव सगज्जिया सविज्जुया (सफुसिया ? ) पंचवण्णमेहनिणाश्रवसोभिया दिव्वा पाउससिरी विउब्विया । तं विऊ णं मम चुल्लमाउया धारिणी देवी ग्रकालदोहलं ॥ ६१. तरणं से सेणिए राया अभयस्स कुमारस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म तुट्टे' कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो ! देवापिया ! रायगिहं नगरं सिंघाडग-तिग- चउक्क- चच्चर- चउम्मुह- महापहपसु ग्रासित्तत्ति - सुइय- संमज्जिओवलित्तं जाव' सुगंधवर [ गंध ? ] गंधियं गंधभूयं करेह य कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चपिह || ६२. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा' सेणिएणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठ-चित्तमादिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ ६३. तए णं से सेणिए राया दोच्चंपि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हय-गय-रह-पवरजोह - कलियं चाउरंगिणि सेण सन्नाहेह, सेयणयं च गंधहत्थिं परिकप्पेह । तेवि तहेव करेंति जाव पच्चपिणंति || ६४. तए णं से सेणिए राया जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता १. सगज्जय सफुसिय सविज्जुया ( क, ख, ग, घ); पूर्वपंक्ती 'सफुसियं' अंतिमं पदमस्ति अत्र च 'सविज्जुया' इत्यंतिमं पदम् । कथमसौविपर्ययो जातः इति न निश्चयपूर्वकं वक्तुं शक्यते । २. देवस्स सोहम्मकप्पवासिस्स (क, ख, ग, घ ) । ३. सं० पा०-- करयल अंजलि । ४. हट्ट तुट्ठ ( क, ग, घ ) । ५. ना० १।१।३३ । ६. सं० पा० - कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पि पंति | ७. जोहपवर ( क, ख, ग, घ ) । अष्ट माध्ययनरय १६१ सूत्रानुसारेण असो पाठः परिवर्तितः । ८. सेन्नं (क, ख, ग, घ ) । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) धारिणि देवि एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिए ! सगज्जिया' •सविज्जुया सफुसिया दिव्वा पाउससिरी पाउन्भूया । तं गं तुम देवाणुप्पिए ! एयं अकाल दोहलं विणेहि ॥ ६५. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी हट्टतुट्ठा जेणामेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छड. उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणप्पविसइ, अणप्पविसित्ता अंतो अंतेउरंसि पहाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता 'कि ते'२ वरपायपत्तने उर-मणिमहल-हार-रइय-प्रोविय-कडग-खुड्डय-विचित्त वरवलयर्थभियभुया जाव' 'पागास-फालिय-समप्पभं" अंसुयं नियत्था, सेयणयं गंधहत्थिं दुरूढा समाणी अमय-महिय-फेणपुंज-सन्निगासाहि सेयचामरवाल वीयणीहि वीइज्जमाणी-वीइज्जमाणी संपत्थिया । ६६. तए णं से सेणिए राया पहाए कयबलिकम्मे 'कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते अप्पमहग्घाभरणालंकिय ° सरीरे हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं च उचामराहि वीइज्जमाणे धारिणि देवि पिट्ठो अणुगच्छइ । ६७. तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा हत्थिखंधवरगएणं पिट्टो-पिट्ठो समणुगम्ममाण-मग्गा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा महया भड-चडगर-वंदपरिक्खित्ता सव्विड्ढीए सव्वज्जुईए जाव' दंदुभिनिग्घोसनाइयरवेणं रायगिहे नय रे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर''चउम्मुह ° -महापहपहेसु नागरजणेणं अभिनंदिज्जमाणी-अभिनंदिज्जमाणी जेणामेव 'वेभारगिरि-पव्वए" तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेभारगिरिकडग-तडपायमूल पारामसु य 'उज्जाणेसु य काणणेसू य वणसू य वणसंडेस य 'रुवखेसु य११ 'गुच्छेसु य१२ गुम्मसु य लयासु य वल्लीसु य कंदरासु य दरीसु य चुढीसु य जूहेसु" य कच्छेसु य नदीसु य संगमेसु य 'विवरएसु य'"अच्छमाणी १. सं. पा.--सगज्जिया जाव पाउस सिरी। ६. वेभार ० (ख, ग); विब्भार (घ)। २. कि तत् 'यत् करोति' इति शेषः । १०. X (ख, ग)। ३. ना० १११।३३। ११. ४ (ख)। ४. सप्पभं ° फलिय ° (क); °फलिहसप्पभं १२. गच्छेसु य (ख); X (ग)। (ख); ° फालिय सप्पभं (ग); °फालिह- १३. चुट्टिसु (क); वान्हिसु (ख); चोड्ढीसु सप्पभं (घ); ° फलिह-सरिसप्पभं (१।१।३३) (ग, घ)। ५. नियच्छा (क, ग)। १४. दहेसु (ख, ग, घ, वृपा)। ६. सं० पा० - कयबलिकम्मे जाव सरीरे। १५. ४ (क); विरयतेसु य (ख); वियरतेसु य ७. ना० १११।३३। (ग); वियारेसु य (घ)। ८. सं० पाo---चच्चर जाव महापहपहेसु । १६. अत्थमाणी (ख)। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माया महाऔ य पेच्छमाणी य मज्जमाणी य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य पल्लवाणि य गिरहमाणी य माणेमाणी य अग्धायमाणी य परिभुजेमाणी' य परिभाएमाणी भारगिरिपायमूले 'दोहलं विणेमाणी" सव्वश्री समंता आहिंडइ || ६८. तए णं सा धारिणी देवी सम्माणियदोहला विणीयदोहला संपूण्णदोहला ' संपत्तदोहला जाया यावि होत्था ॥ ६६. तए णं सा धारिणी देवी सेयणयगंधहत्थिं दुरूढा समाणी सेणिएणं हत्थिखंधवरगणं पिट्ठो-पि समणुगम्ममाण- मग्गा हय-गय-रह-पवरजोहक लियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा महया भड चडगर-वंदपरिक्खित्ता सव्विड्ढीए सब्वज्जुईए जाव' दुंदुभिनिग्घोसनाइय • - रवेणं जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायगिहं नयरं प्रज्भंमज्झणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विउलाई माणुस्सगाई भोग भोगाई " • पच्चणुभवमाणी विहरइ ॥ ० २५ भएण देवस्स पडिविसज्जण-पदं ७०. तणं से प्रभ कुमारे जेणामेव पोसहसाला तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुव्वसंगइयं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ || ७१. तए णं से देवे सगज्जियं [ सविज्जयं सफुसियं ? ] पंचवण्णमेहोवसोहियं दिव्वं पाउससिरि पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता जामेव दिसिं" पाउब्भूए तामेव दिसिं " पडिगए || धारिणीए गन्भचरिया-पदं ७२. तए णं सा धारिणी देवी तंसि प्रकालदोहलंसि विणीयंसि सम्माणियदोहला तस्स गब्भस्स अणुकंपणट्टाए" जयं चिट्ठइ जयं ग्रासयइ" जयं सुबइ, ग्राहारं पि १. X ( क ) ; आग्घा एमाणी ( ख ) । २. परिभुंजाणी ( ख, ग ) । ३. विणेमाणी (क, ख, ग ); डोहलं विणेमाणी (घ); वृत्तिकारेणापि 'दोहल' इति पाठो मूलतया नैव व्याख्यातः । यथा-विणेमाणी त्ति - डोहलं विनयंती १० (वृ) । ४. १।१ ३३ सूत्रानुसारेण 'सम्माणियदोहला' इति पाठो युज्यते, यद्यपि प्रयुक्तादर्शेषु नोपलभ्यते । क्वचित्प्रयुक्तेषु लभ्यते । ५. संपन्न डोहला (घ ) । ६. संपन्न डोहला (क, ख ) 1 ७. दुरुढा ( क )। ८. सं० पा० - हयगय जाव रखेणं । ६. ना० १|१|३३ । सं० पा०-- भोगभोगाई जाव विहरइ | ११. दिसं (क, घ) । १२. दिसं (क, घ) । १३. ० टुयाए ( क ) । आदर्शेषु १४. आसति (घ ) । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) य णं आहारेमाणी-नाइतित्तं नाइकडुयं नाइकसायं नाइअंबिलं नाइमहुरं, जं तस्स गब्भस्स हियं मियं पत्थयं देसे य काले य आहारं आहारेमाणी, नाइचितं नाइसोयं नाइमोहं नाइभयं नाइपरित्तासं' ववगचिंता-सोय-मोह-भय-परित्तासा उदु-भज्जमाण'-सुहेहिं भोयण-च्छायण-गंध-मल्लालंकारेहिं तं' गभं सुहंसुहेणं परिवहइ ॥ मेहस्स जम्म-वद्धावण-पदं ७३. तए णं सा धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण' य' राइंदियाणं वीइक्कंताणं अद्धरत्तकालसमयंसि सुकुमालपाणिपायं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया ॥ ७४. तए णं तारो अंगपडियारियानो धारिणि देवि नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयायं पासंति, पासित्ता सिग्घं तुरियं चवलं वेइयं" जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया। तं णं अम्हे देवाणुप्पियाणं पियं निवेएमो, पियं भे" भवउ ॥ तए णं से सेणिए राया तासि अंगपडियारियाणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हद्वतुटे ताओ अंगपडियारियानो महुरेहिं वयणेहिं विउलेण य पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, मत्थयधोयानो करेइ, पुत्ताणुपुत्तियं वित्ति कप्पेइ. कप्पेत्ता पडिविसज्जेइ॥ मेहस्स जम्मुस्सवकरण-पदं ६७. तए णं से सेणिए राया [पच्चूसकालसमयंसि" ?] कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! रायगिहं नगरं आसिय"'सम्मज्जिोवलित्तं सिंघाडग-तिय - चउक्क-चच्चर - चउम्मुह- महापहपहेसु आसित्त-सित्त-सुइ-सम्मट्ठ-रत्यंतरावण-वीहियं मंचाइमंचकलियं णाणाविहराग१. x (क, ख, ग)। १०. चेतियं (क, ग, घ)। २. उडु (ग)। ११. ते (क, ख, ग, घ)। ३. भयमाण (क, ख, घ)। १२. मत्थाधोयानो (क, ग)। ४. X (क)। १३. क्वचित् प्रयुक्तादर्शेषु कोष्ठकवर्तिपाठो ५. अद्ध? ° (ग)। लभ्यते तथा १।१।२२ सूत्रेपि विद्यते, तेनात्र ६. ४ (ख, ग)। स्वीकृतः । ७. अढरत्त० (ख) । ८. ओ० सू० १४३ । १४. सं० पा.-आसिय जाव परिगीयं । ९. ना० ११११७३ । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाध महाओ ऊसिय-भय-पडागाइप डाग - मंडियं लाउल्लोइय - महियं गोसीस सरस-रत्तचंदण - दद्दर-दिण्ण पंचगुलितलं उवचियचं दणकलसं चंदणघड-सुकय-तोरणपरिवारदेसभायं ग्रासत्तोसत्तविउल- वट्ट-वग्घारिय- मल्लदाम - कलावं पंचवण्णसरस-सुरभिमुक्क-पुप्फपूँंजोवयार - कलियं कालागुरु-पवर- कुंदुरुक्क तुरुक्क-धूवडज्मंत-मघमघेंत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं नड-गटगजल्ल- मल्ल-मुट्ठिय- वेलंबग-कहकहग-पवग-लासग-आइक्खग-लंख - मंख - तूणइल्लतुंबवीणिय अणेगतालायर परिगीयं करेह, कारवेह य, चारगपरिसोहणं करेह, करेत्ता माणुम्माणवद्धणं करेह, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चपिह ॥ ७७. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पच्चपिण्णंति ॥ ३० o ७८. तए णं से सेणिए राया अट्ठारससेणि-प्पसेणीग्रो सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीगच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया ! रायगिहे नगरे अभितरबाहिरिए उस्सुंकर उक्करं प्रभडप्पवेसं दंडिम - कुदंडिमं अधरिमं प्रधारणिज्जं प्रणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं गणियावरनाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं पमुइयपक्कीलियाभिरामं जहारिहं 'ठिइवडियं दसदेवसिय" करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चष्पिण ॥ ७६. तेवि तहेव करेंति, तहेव पच्चपिणंति ॥ ८०. तणं से सेणिए राया बाहिरियाए उवद्वाणसालाए सीहासणवरगए पुरत्थाभिहे सणसणे 'सतिएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सिएहि य दाएहिं दलयमाणे दलयमाणे " पडिच्छमाणे- पडिच्छमाणे एवं च णं विहरइ ॥ मेहस्स नामादिसक्कार (संस्कार) करण-पदं ८१. तए णं तस्स अम्मापियरो 'पढमे दिवसे ठितिपडियं करेंति, बिति दिवसे ० १. चारगारसोहणं (क); चारगसोहणं (ख, घ); ६. सएहिं साहस्सिएहि य रायसाहस्सिएहि य दाएहिं भागेहिं ( क ); ° जाएहि दाएहि भागेहिं० (ख, घ), ० दलमाणे २ ( ग ); वाचनान्तरे-शतिकाँश्च इत्यादि यागान् — देवपूजा:, दायान् — दानानि, भागान् - लब्धद्रव्यविभागान् इति (वृ) । चारागार परिसोहणं ( ग ) एकस्मिन् हस्तलिखितवृत्त्यादर्श' 'चारगपरिशोधनं' इति व्याख्यातमस्ति अपरस्मिंश्च 'चारागारशोधनं' इति लभ्यते । २. सं० पा० - पच्चप्पिणह जाव पच्चप्पिणंति । ३. उस्सुक्कं (क, ग, घ ) । ४. ठिइवडियं (वृ); वाचनान्तरे - दसदिवसियं ठिइपडियं । ५. X ( ख, ग, घ ) । ७. जायकम्मं (क, ख, ग, घ, वृ ); निरयावलियाओ १|१|६० ठितिपडियं च जहा मेहस्स' इति संकेतितमस्ति, तस्याधारेणासौ पाठ: स्वीकृतः । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) जागरियं करेंति, ततिए दिवसे चंदसूरदंसणियं" करेंति, एवामेव 'निवत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसाहे' विपुलं असण-पाण-खाइम-साइम उवक्खडावेंति, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं बलं च बहवे गणनायग- दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-मंति-महामंतिगणग-दोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-दूयसंधिवाले ° आमंतेति । तो पच्छा व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय- मंगलपायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया महइमहालयंसि भोयणमंडवंसि तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेहिं बलेण च बहूहिं गणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-मंति-महामंतिगणग-दोवारिय-अमच्च-चेड - पीढमद्द - नगर-निगम-सेटि-सेणाव इ-सत्थवाह दूयसंधिवालेहिं ° सद्धि प्रासाएमाणा 'विसाएमाणा परिभाएमाणा" परिभुंजेमाणा एवं च णं विहरति । जिमियभुत्तुत्तरागयावि य णं समाणा प्रायंता चोक्खा परमसुइभूया तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं बलं च बहवे गणनायग जाव संधिवाले विपुलेणं पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेंति सम्माणति, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं वयासी-- जम्हा णं अम्हं इमस्स दारगस्स गन्भत्थस्स चेव समाणस्स अकालमेहेसु दोहले पाउन्भूए, तं होऊ णं अम्हं दारए मेहे नामेणं । तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्ज करेंति मेहे इ ।। १. पाठान्तरे तु-प्रथमदिवसे स्थितिपतितां, द्वादशानामह्नां समाहारो द्वादशाहं, तस्य तृतीये चन्द्रसूरदर्शनिकां, षष्ठे जागरिकां दिवसो येन पूर्यते (वृ) । यद्यपि वृत्तिकारण 'बारसाहदिवसे' इति पाठो व्याख्यातस्तथा२. निव्वत्ते सुइ° (क, ख, ग, वृपा); निव्वत्ते प्यस्माभिः 'बारसाहे' इतिपाठः स्वीकृतः, असुइ० (घ)। वृत्तिकृता 'निवृत्ते-- एतदर्थं द्रष्टव्यम्-ओवाइय (१४४) सूत्रस्य अतिक्रान्ते अशुचीनां जातकर्म करणे' बारसाहे' पदस्य पादटिप्पणम् । इतिव्याख्यातम्, तेन तदनुसारी पाठः 'निवते ४. सं० पा० - गणनायग जाव आमंतेति । असुइजायकम्मकरणे' इत्येवंरूप: स्यात्। ५. सं. पा.-कयकोउय जाव सव्वालंकारयत्र 'सुइजाय ' इति पाठः सम्मतस्तत्रैव विभूसिया। 'निव्वत्ते' इति पाठः सङ्गच्छेत। ६. सव्वालंकारभूसिया (क, ख, ग)। ३. बारसाहदिवसे (क, ख, ग, घ)। वृत्ति- ७. सं० पा०-मित्त-नाइ-गणनायग जाव कारेण -'बारसाहदिवसे' इति पाठः विकल्प- सद्धि । द्वयेन व्याख्यातः, यथा-बारसाहदिवसे ८. पडिलाहेमाणा (क); X (ग)। त्ति-द्वादशाख्ये दिवसे इत्यर्थः । अथवा Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ नायाधम्मकहाओ मेहस्स लालणपालण-पद ८२. तए णं से मेहे कुमारे पंचधाईपरिग्गहिए, [तं जहा-खोरधाईए मज्जणधाईए कीलावणधाईए मंडणधाईए अंकधाईए]' अण्णाहि य बहूहि-खुज्जाहि चिलाईहि 'वामणीहि वडभीहि बब्बरीहिं बउसीहि जोणियाहि पल्हवियाहिं ईसिणियाहि थारुगिणियाहिं' लासियाहिं लउसियाहिं दामिलोहिं सिंहलीहिं आरबोहिं पुलिंदीहिं पक्कणीहि बहलीहिं मुरुंडीहिं सबरीहिं पारसीहि'-नानादेसीहि विदेसपरिमंडियाहिं इंगिय-चितिय-पत्थिय-वियाणियाहिं सदेस-नेवत्थ-गहियवेसाहिं निउणकुसलाहिं विणीयाहिं, चेडियाचक्कवाल-वरिसधर-कंचुइज्जमहयरग -वंद-परिक्खित्ते हत्थानो हत्थं साहरिज्जमाणे" अंकाओ अंक परिभुज्जमाणे परिगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे रम्मंसि मणिकोट्टिमतलंसि परंगिज्जमाणे निव्वाय-निव्वाघायंसि गिरिकंदरमल्लीणे व चंपगपायवे सुहंसुहेणं वड्ढइ । ८३. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो अणुपुव्वेणं" नामकरणं च पजेमणगं च पचंकमणगं च चोलोवणयं च महया-महया इड्ढी-सक्कार-समुदएणं करेंसु ॥ मेहस्स कलागहण-पदं ८४. तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासजायगं चेव सोहणंसि तिहि करण-मुहुत्तंसि कलायरियस्स उवणेति ।। १. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ११. साहिज्जमाणे (ख, ग, घ)। २. चिलाइयाहि (क, ख, ग, घ, रायपसेणइयं १२. अतोने वृत्तौ पाठान्तरस्योल्लेखो विद्यतेसू० ८०४)। उवनच्चिज्जमाणे २ उवगाइज्जमाणे २ ३. पउसियाहि (ओ० सू० ७०)। उवलालिज्जमाणे २ उवगुहिज्जमाणे २ ४. इसिणियाहिं (क, ख, ग)। अवयासिज्जमाणे २ परिवंदिज्जमाणे २ ५. थारुइणियाहिं (ओ० सू० ७०) । परिचुंबिज्जमाणे २ । द्रष्टव्यम्-(प्रोवाइय६. मुरुडीहि (ओ० सू० ७०); मुरंडीहिं (राय० सूत्रस्य परिशिष्टं पृ० १५१); रायपसेणइयं सू० ८०४)। सूत्र ८०४॥ ७. वामणि [बावणि (ख, ग)] वडभिबब्बरि- १३. परिगिज्जमाणे २ (क, ग)। बउसिजोणियपलहविइसिणिथारुगिणिलासिय- १४. वद्धति (घ) । लडसियदमिलिसिंहलिआरबिपुलिंदिपक्कणि- १५. अणुपुव्विं (ख) । बहलिमुरंडिसबरिपारसीहिं (क, ख, ग, घ)। १६. एवं जेमणं च एवं चंकमणगं च (ख, ग)। ८. नानादेसी (क, ख, ग)। १७. अतोय 'गब्भट्ठम वासे' इति पाठो विद्यते, ६. युक्त इति गम्यते (वृ)। किन्तु एतत् पाठान्तरं प्रतीयते । 'साइरेगट्र१०. महत्तरंग (घ)। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) ८५. तए णं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयानो गणियप्पहाणामो सउणरुय पज्जवसाणाप्रो बावत्तरि कलाप्रो सुत्तो य अत्थो य करणो य सेहावेइ सिक्खावेइ, तं जहा१. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४. नटुं ५. गोयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पोक्खरगयं ६. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं १२. पासयं १३. अट्टावयं १४. पोरेकव्वं १५. दगमट्टियं १६. अण्णविहिं १७. पाणविहिं १८. वत्थविहिं १६. विलेवणविहिं २०. सयणविहिं २१. अज्जं २२. पहेलियं २३. मागहियं २४. गाहं २५. गीइयं २६. सिलोयं २७. हिरणजत्ति २८. सुवण्णजुत्ति २६. चुण्णजुत्ति' ३०. ग्राभरणविहि ३१. तरुणीपडिकम्म ३२. इत्थिलक्खणं ३३. पुरिसलक्खणं ३४. हयलक्खणं ३५. गयलक्खणं ३६. गोणलक्खणं ३७. कुक्कुडलक्खणं ३८. छत्तलक्खणं ३६. दंडलक्खणं ४०. असिलक्खणं ४१. मणिलक्खणं ४२. कागणिलक्खणं' ४३. वत्थुविज्ज ४४. खंधारमाणं' ४५. नगरमाणं४६. वूह ४७. पडिवूहं ४८. चारं ४६. पडिचारं ५०. चक्कवूहं ५१. गरुलवूहं ५२. सगडवूहं ५३ जुद्धं ५४. निजुद्धं ५५. जुद्धाइजुद्धं ५६. अटिजुद्धं ५७. मुट्ठिजुद्धं ५८. बाहुजुद्धं ५६. लयाजुद्धं ६०. ईसत्थं ६१. छरुपवायं ६२. धणुवेयं' ६३. हिरण्णपागं ६४. सुवण्णपागं ६५. बट्टखेड्डु ६६. सुत्तखेड़े ६७. नालियाखेडु ६८. पत्तच्छेज्जं ६६. कडच्छेज्ज ७०. सज्जीव ७१. निज्जीव ७२. सउणरुतं ति ।। ८६. तए णं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयाप्रो गणियप्पहाणाम्रो सउणरुयपज्जव साणाप्रो वावरि कलाप्रो सुत्तो य अत्थरो य करणो य सेहावेइ सिक्खा वेइ, सेहावेत्ता सिक्खावेत्ता अम्मापिऊणं उवणेइ ॥ ८७. तर णं मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो तं कलायरियं महुरेहिं वयणेहिं 'विउलेण य" वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेंति" सम्माणेति, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति, दल इत्ता पडिविसज्जेंति ।। ८८. तए णं से मेहे कुमारे बावत्तरि-कलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारस वासजायगं, इति पाठस्यानन्तरमसौ पाठो ४. वत्थविज्ज (क, ग)। नावश्यकः प्रतिभाति । ओवाइय (१४५), ५. ०मारणं (क)। रायपसेणइथ (८०५) सूत्रयोरपि स्वीकृतपाठः ६. °मावणं (ख)। उपलभ्यते। ७. धणुव्वेयं (ख, ग)। १. तूतं (ग)। ८. वेट्टखेड्ड (क)। २. तुण्णाजुत्ति (ख)। ६. विउलेणं (ख, घ)। ३. कागिणी ० (ग)। १०. हक्कारेंति (ख)। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ नायाधम्मकहाओ विहिप्पगारदेसीभासाविसारए' गीयरई गंधव्वनदृकुसले हयजोही गयजोही रहजोहो बाहुजोही बाहुप्पमद्दी प्रलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था ॥ मेहस्स पाणिग्गहण-पदं ८६. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं बावत्तरि-कलापंडियं जाव' वियालचारि जायं पासंति, पासित्ता अट्ठ पासायडिसए कारेंतिअब्भुग्गयमूसिय' पहसिए विव मणि-कणग-रयण-भत्तिचित्ते वाउद्धय-विजयवेजयंती-पडाग-छत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमभिलंघमाणसिहरे जालंतररयण पंजरुम्मिलिए' व्व मणिकणगथूभियाए वियसिय-सयवत्त-पुंडरीए तिलयरयणद्धचंदच्चिए नाणामणिमयदामालंकिए अंतो बहिं च सण्हे तवणिज्ज-रुइल-वालुया-पत्थरे सुहफासे सस्सिरीयरूवे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे ° पडिरूवे। एगं च णं महं भवणं कारेंति-अणेगखंभसयसन्निविट्ठ लीलट्ठियसालभंजियागं अब्भुग्गयसुकयवइरवेइयातोरण -वररइयसालभंजिय-सुसिलिट्ठ - विसिट्ठ-लट्ठसंठिय-पसत्थ-वेरुलियखंभ-नाणामणिकणगरयण-खचियउज्जलं बहुसम-सुविभत्तनिचियरमणिज्जभूमिभागं ईहामिय२. उसभ-तुरय-नर-मगर-विहग-वालगकिन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय °-भत्तिचित्तं खंभुग्गयवयरवेइयापरिगयाभिरामं विज्जाहर-जमल-जुयल-जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं" भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं५ सुहफासं सस्सिरीयरूवं कंचणमणिरयणथूभियागं नाणाविह-पंचवण्ण-घंटापडाग-परिमंडि १. भट्ठारसविह° (ख); अट्ठारसदेसीभासा (वृपा); ° चंदचित्ता (राय० सू० १३७) । (ओ० सू० १४८); अट्ठारसविहदेसिप्पगार- ८. रुइर (ग)। भासा (राय ° सू० ८०६) । अष्टादश- ६. सं० पा०-पासाईए जाव पडिरूवे। विधेः प्रकारा: प्रवृत्तिप्रकारा: अष्टादशभिर्वा १०. °वतिरवेतिया' (ग); °वरवइरवेइया विधिभिर्भेदः प्रचारः प्रवृत्तिर्यस्या (वृ)। (राय० सू० १७) । २. ना० ११८८। ११. सालभंजिया (क, ख, घ)। ३. वियालचारी (क)। १२. सं० पा०—ईहामिय जाव भत्तिचित्त । ४ अत्र च द्वितीयाबहुवचनलोपो दृश्यः (वृ)। १३. ° मीणं (क, ख, ग)। ५. द्वितीया बहुवचनलोपो दृश्यः (व)। १४. ° मालिणीयं (ख)। ६. पंजरुम्मिल्लिय (ख, ग)।। १५. ० लेस्सं (क, ग)। ७. यंदच्चिए (क, ख, ग); चंदचित्ते Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभय ( उक्खित्तणाए ) गहिरं धवल-मिरिचिकवयं विणिम्मुयंतं लाउल्लोइयमहियं जाव' गंधवट्टिभूयं पासाईयं दरिस णिज्जं अभिरूवं पडिरूवं ॥ ६०. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स सम्मापियरो मेहं कुमारं सोहणंसि तिहि-करणनक्खत्त-मुहुत्तंसि सरिसियाणं सरिव्वयाणं सरित्तयाणं सरिसलावण्ण-रूवजोवण-गुणोववेयाणं सरिसहितो रायकुलेहितो आणिल्लियाण पसाहणट्टंगविप्रवण-मंगलसुजपिएहिं ग्रट्ठहिं रायवरकन्नाहिं सद्धि एगदिवसेणं पाणिगाविसु ॥ पीइदाण-पदं १. तणं तस्स मेहस्स ग्रम्मापियरो इमं एयारूवं पीइदाणं दलयंति - हिरण्णसुवणको डीग्रो गाहाणुसारेण भाणियव्वं जाव' पेसणकारिया, १. ना० १।१।७६ । २. आणतिल्लियाणं ( क ) ; आणियल्लियाणं ( ग ) | ३. अविधव ० ( क ) । ४. मूलपाठे यासां गाथानां समर्पणमस्ति ताः वृत्त्यनुसारेणेमा: मउड- कुंडलाहारा । अटु ॥ तुडिय-खोम- जुगा | अट्ठा ॥ वडजुग-पट्टजुगाइ - दुकुल्लजुगलाय ३. सिरि-हिरि-धि- कित्तीओ बुद्धी लच्छी य होंति अट्टट्ठा । नंदा भद्दा य तला य भय-वय नाडाई आसे य ॥ ४. हत्थी जाणा जुग्गा, सीया तह संदमाणि-गिल्लीश्रो । थिल्ली य वियडजाणा, रह-गामा दास दासीग्रो ॥ वाचनान्तरे - रथानन्तरमश्वा हस्तिनश्चाधीयन्ते ( वृ ) । दीव - थाले य । अवक्का || ५. किंकर - कंचुइ-मयहर- वरिसधर-तिविह पाई - थासग - पल्लग कइविय अवएडय पडिसिज्जा | ६. पावीढाभिसिय-करोडियाओ पल्लंकए य हंसाईहि विसिट्ठा, ७. हंसे कोंचे गरुडे, पक्खे मयरे पउमे, ८. तेल्ले कोट्ट - समुग्गा, पत्ते चोए हरियाले हिंगुलए, मणोसिला ६. खुज्जा - चिलाइ वामणि- वडभीश्रो जोणिय - पल्हवियाओ, इसिणीया १. अहिरण्णसुवण्णय- कोडीओ अद्धहार एक्कावलीओ २. कणगावलि - रयणावलि - कडगजुगा ३५ मुक्तावली आसण-भेया उ अ उष्णय - पणए यदीह-भद्दे य । होइ दिसासोत्थि एक्कारे ॥ तगर एला य । वसग्गे ॥ बव्वरि-वउसियाओ । थारुणिया य ॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२. नायाधम्मकहानो अण्णं च विपुलं धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावएज्ज अलाहि जाव आसत्तमानो कुलवंसानो पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउ । तए णं से मेहे कुमारे एगमेगाए भारियाए एगमेगं हिरण्णकोडिं दलयइ, जाव' एगमेगं पेसणकारि दलयइ, अण्णं च विउलं धण-कणग'- रयण-मणि-मोत्तियसंख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार-सावएज्जं अलाहि जाव अासत्तमानो कुलवंसानो पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं ° परिभाएउं दलयइ ॥ ६३. तए णं से मेहे कुमारे उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं वरतरुणि संपउत्तेहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहिं 'उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे-उवलालिज्जमाणे [इ8 ] ' सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ ।। महावीरसमवसरण-पदं ६४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणु गामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए" 'तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ ।। १०. लासिय-लउसिय-दमिणी, सीहलि तह आरबी पुलिंदी य । पक्कणि-बहलि-मुरुडी, सबरीओ पारसीओ य॥ ११. छत्तधरा चेडीओ, चामरधर-तालयंटयधरीओ। सकरोडियाधरीओ, खीराई पंच धाईओ।। १२. अटुंगमद्दियाओ, उम्मद्दिग- हविग-मंडियायो य । वण्णय-चुण्णय-पीसिय-कीलाकारी य दवगारी॥ १३. उत्थावियाओ तह णाडइल्ल-कोडुबिणी-महाणसिणी। भंडारी अब्भ (झ) धारिणि, पुप्फघरि पाणियघरी य ॥ १४. बलिकारिय सेज्जाकारियाओ अभंतरीओ बाहरिया। पडिहारी मालारी, पेसणकारीओ अट्ठट्ठ ।। भगवती (११।१५६) सूत्रे क्वचित् केचित् पाठभेदा अपि लभ्यते । १. भाएउ (ख, ग)। ५. उवणच्चिज्जमाणे उवगाइज्जमाणे (राय० २. ना० १११९१ । सू० ७१०)। ३. सं० पा०-धण-कणग जाव परिभाएउ। ६. एतत् पदं रायपसेणइय (७१०) सूत्रे ४. °बद्धेहि (क); बत्तीसनिबद्धेहिं (ग)। विद्यते, अत्रापि युज्यते। ७. सं० पा०-चेइए जाव विहरइ। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) मेहस्स जिन्नासा-पदं ६५. तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु ° - महया जणसद्दे इ वा जाव' बहवे उग्गा भोगा [0] रायगिहस्स नगरस्स मज्झमज्झेणं एगदिसिं एगाभिमुहा निग्गच्छंति । इमं च णं मेहे कुमारे उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव' माणुस्सए कामभोगे भुंजमाणे रायमग्गं च 'अोलोएमाणे-पोलोएमाणे' एवं च णं विहरइ । ६६. तए णं से मेहे कुमारे ते बहवे उग्गे भोगे जाव' एगदिसाभिमुहे निग्गच्छमाणे पासह. पासित्ता कंचइज्जपरिसं सहावेइ. सहावेत्ता एवं वयासी-किणं भो देवाणप्पिया ! अज्ज रायगिहे नगरे इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा एवंरुद्द-सिव-वेसमण-नाग-जवख-भूय-नई- तलाय-रुक्ख - चेइय - पव्वयमहे इ वा उज्जाण-गिरिजत्ता इ वा ? जो णं वहवे उग्गा भोगा जाव एगदिसि ए गाभिमुहा निग्गच्छंति ।। कंचुइज्जपुरिसस्त निवेदण-पदं ६७. तए णं से कंचुइज्जपुरिसे समणस्स भगवो महावीरस्स गहियागमणपवित्तीए मेहं कुमारं एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिया! अज्ज रायगिहे नयरे इंदमहे इ वा जाव' गिरिजत्ता इ वा जं णं एए उग्गा भोगा जाव एगदिसि एगाभिमुहा निग्गच्छंति । एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे प्राइगरे तित्थगरे" इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ॥ मेहस्स भगवो समीवे गमण-पदं १८. तए णं से मेहे कुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म हट्टतुटे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटे पास रहं जुत्तामेव उवट्ठवेह । तहत्ति उवणेति ।। १. सं० पा०-सिंघाडग जाव महया। २. ओ० सू० ५२ । ३. जाव (क, ख, ग, घ)। ४. ना० १।१।६३। ५. उवलोएमाणे २ (ग)। ६. ओ० सू० ५२। ७. कंचुइ-पुरिसं (राय० सू० ६८८) । ८. किं णं (क, ख)। ६. ना० १११९६ । १०. ओ० सू० ५२ । ११. तित्थंकरे (ख)। १२. सं० पा०-अहापडिरूवं जाव विहरइ । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ हा ६६. तए णं से मेहे पहाए जाव' सव्वालंकारविभूसिए चाउग्घंटं आसरहं दुरूढे समाणे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भड-चडगर - वंदपरियाल - संपरिवुडे रायगिहस्स नयरस्स मज्भंमंज्भेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवो महावीरस्स छत्ताइच्छत्तं पडागाइपडागं विज्जाहर चारणे जंभए य देवे प्रोवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता चाउरघंटाम्रो ग्रासरहाओ पच्चोरुहइ, पच्चरुहित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं प्रभिगच्छइ । [ तं जहा - १. सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए २. अचित्ताणं दव्वाणं विसरणयाए ३. एगसाडिय - उत्तरासंगकरणेणं ४. चक्खुफासे अंजलि पग्गहेणं ५. मणसो एगत्तीकरणेणं ] ' । जेणामेव समणें भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण -पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता समणस्स भगवश्रो महावीरस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सुसमाणे नमसमाणे पंजलिउडे ग्रभिमुहे विणणं पज्जुवासइ ॥ धम्मदेसणा-पदं १००. तए णं समणे भगवं महावीरे मेहस्स कुमारस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मज्भगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ जह जीवा बज्भंति, मुच्चंति जहा य संकिलिस्संति । धम्म हा भाणियव्वा जाव परिसा पडिगया ॥ मेहस्स पव्वज्जासंकप-पदं १०१. तए णं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओो महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म तुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी सहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । पत्तियामि' णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं ।° प्रभुमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । १. ना० १।१।१ । २. चडगर-रह-पहकर ( राय० सू० ६८३) । ३. वियोसरणयाए (वृपा ) | ४. एगल्लसडियं ( क ) । ५. एगत्तिभावेणं (क, वृपा) । ६. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ७. ओ० सू० ७१-७६ । ८. सं० पा०- एवं पत्तियामि णं रोएमि णं । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) एयमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से 'जहेयं तुब्भे वयह' । नवरि' देवाणप्पिया! अम्मापियरो प्रापुच्छामि । तो पच्छा मुंडे भवित्ता णं अगाराप्रो अणगारियं पव्वइस्सामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ मेहस्स अम्मापिऊणं निवेदण-पदं १०२. तए णं से मेहे कुमारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदिता नमंसित्ता जेणामेव चाउग्घंटे अासरहे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंट आसरहं दुरूहइ, महया भड-चडगर-पहकरेणं रायगिहस्स नगरस्स मज्झमझेणं जणामव सए भवण तेणामव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घटाओ प्रासरहाम्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणामेव अम्मापियरो तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं पायवडणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी- एवं खलु अम्मयायो! मए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए॥ १०३. तए णं तस्स मेहस्स अम्मापियरो एवं वयासी-धन्नोसि तुमं जाया! संपूण्णो सि तुमं जाया ! कयत्थो सि तुमं जाया ! कयलक्खणो सि तुमं जाया ! जन्नं तुमे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य ते धम्म इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। १०४. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरो दोच्चंपि एवं वयासी-एवं खलु अम्म यायो ! मए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराग्रो अणगारियं पव्वइत्तए । धारिणीए सोगाकुलदसा-पदं १०५. तए णं सा धारिणी देवी तं अणिटुं अकंतं अप्पियं अमणुण्णं अमणामं असुय १. जहेव तं तुब्भे वयह जं (क, ख, ग, घ); लिपिदोषेण परिवर्तनस्य संभावना स्यादिति प्रसौ पाठः सर्वास प्रतिष विद्यते, तथाप्यत्र नासौ स्वीकारोन्यथात्वं भजते । 'उपासकदशा' (७।३७) नुसारी पाठः स्वी- २. नवरं (घ)। कृत। आदर्शगतपाठापेक्षया तत्रस्थपाठः ३. X (क, ख, ग)। समीचीनः प्रतिभाति। प्रस्तुतादशेषु ४. दोच्चंपि तच्चपि (ख, घ)। Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाऔ पुवं फरुसं गिरं सोच्चा निसम्म इमेणं एयारूवेणं मणोमाणसिएणं महया पुत्तदुक्खेणं अभिभूया समाणी सेयागयरोमकूवपगलंत-चिलिणगाया' सोयभरपवेवियंगी नित्तेया दीण-विमण-वयणा करयलमलिय व्व कमलमाला तक्खणग्रोलुग्गदुब्बलसरीर-लावण्णसुन्न-निच्छाय-गयसिरीया पसिढिलभूसण-पडतखुम्मियसंचुण्णियधवलवलय-पब्भट्ठउत्तरिज्जा सूमाल -विकिण्ण-केसहत्था मुच्छावसनढचेय-गरुई परसुनियत्त व्व चंपगलया निव्वत्तमहे व्व इंदलट्ठी विमुक्क संधिबंधणा कोट्टिमतलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति पडिया ॥ धारिणीए मेहस्स य परिसंवाद-पदं १०६. तए णं सा धारिणी देवी ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचणभिंगारमुहविणिग्गय सीयलजलविमलधाराए परिसिंचमाण -निव्वावियगायलट्ठी उक्खेवय-तालविंटवीयणग-जणियवाएणं सफुसिएणं अंतेउर-परिजणेणं प्रासासिया समाणी मुत्तावलि-सन्निगास-पवडत"-अंसुधाराहि सिंचमाणी पोहरे, कलुण-विमण-दीणा रोयमाणी कंदमाणी तिप्पमाणी सोयमाणी विलवमाणी मेहं कुमारं एवं वयासीतुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते इ8 कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे" वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासिए 'हियय-णंदि-जणणे १३ 'उंबरपुप्फ व दुल्लहे सवणयाए, किमंगपुण पासणयाए ? नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पयोगं सहित्तए । तं भंजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तग्रो पच्छा अम्हेहि कालगएहि परिणयवए वड्ढिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयवखे५ समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्यो अणगारियं पव्वइस्ससि ॥ १. परुसं (क)। २. विलीण ° (क, ख, ग, घ)। ३. ° खुण्णिय ° (भ० ६।१६८) । ४. सुकुमाल (क, घ)। ५. गुरुइ (ख)। ६. व (ख)। ७. परिसिंचमाणा (घ)। ८. उक्खे वण (क, ख)। ६. परियणेणं (ख, ग, घ)। १०. पडत (क)। ११. धिज्जे (ग); धेज्जे (घ); पेज्जे (ओ० सू० ११७)। १२. ° उस्सासए (क, ख, ग); वाचनान्तरे---- जीविउस्सविए (व)। १३. हिययाणंदजणणे (क, ख, व); एकस्यां हस्त लिखितवत्तावपि 'हदयनंदिजननः' इति लिखितमस्ति । १४. °पुप्फमिव (ख)। १५. निरवयक्खे (घ)। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) १०७. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापिकहिं एवं वुत्ते समाणे अम्मापियरो एवं वयासी तहेव णं तं अम्मो ! जहेव णं तुब्भे ममं एवं वयह – “तुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते "इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासिए हियय-णंदि-जणणे उंबरपूप्फ व दुल्लहे सवणयाए, किमंग पण पासणयाए ? नो खल जाया ! अम्ह इच्छामो खणमवि विप्पोगं सहित्तए। तं भजाहि ताव जाया ! विपले माणुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो। तो पच्छा, अम्हेहिं कालगएहि परिणयवए वड्ढिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयक्खे' समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइस्ससि ।” एवं खलु अम्मयानो ! माणुस्सए भवे अधुवे अणितिए असासए वसणसग्रोवदवाभिभूते विज्जलयाचंचले अणिच्चे जलबुब्बुयसमाणे कुसग्गजलबिंदुसन्निभे संझब्भरागसरिसे सुविणदसणोवमे सडण-पडण-विद्धंसण-धम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे । से के णं जाणइ अम्मयायो ! के पुद्वि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयागो ! तुब्भेहिं अभणुण्णाए समाणे समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगारानो अणगारियं ° पव्वइत्तए । १०८. तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-'इमानो ते जाया ! सरिसि यानो सरित्तयाग्रो सरिव्वयाप्रो सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण-गणोववेयानो सरिसेहितो रायकुलेहितो ग्राणिल्लियारो भारियायो । तं भुजाहि णं जाया ! एयाहिं सद्धि विउले माणुस्सए कामभोगे। पच्छा भुत्तभोगे समणस्स •भगवनो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगारासो अणगारियं° पव्वइस्ससि ॥ १. सं० पा०-तं चेव जाव निरावयखे समणस्स इमाओ ते जाया विपुलकुलबालियाओ कलाजाव पव्वइस्ससि। कुसल-सव्वकाललालिय-सुहोइयाओ मद्दवगुण२, निरवक्खे (क, ग); निरावेक्खे (ख); निर- जुत्त-निउणविणओवयार-पंडिय-वियक्खणामो वयक्खे (घ)। मंजुलमियमहुरभणिय-हसिय-विपेक्खिय-गइ३. अणिइए (क); अणितिते (ग); अणियए विलास-चेट्ठियविसारयाओ अविकलकुलसील(घ, वृ)। सालिणीमो विसुद्ध कुलवंससंताणतंतुवद्धण४. सुविणयदंस° (क), सुविणगदंस ° (घ)। पगब्भउब्भवप्पभावणीओ मणोणकूलहियय५. सं. पा०—समणस्स जाव पव्वइत्तए। इच्छियाओ अटू तुज्झ गुणवल्लहाओ भज्जाओ ६. आणिइल्लियाओ (ख); आणियल्लियामो उत्तमायो णिच्चं भावाणुरत्तसव्वंगसुंदरीओ (ग, घ)। (वृ)। ७. वाचनान्तरे मेघकुमारभार्यावर्णकमेवमुप- ८. तओ पच्छा (क, घ); पच्छा तु (ख)। लभ्यते ६. सं०पा०-समणस्स जाव पव्वइस्ससि । Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ मायाधम्मकहाओ १०६. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं वयासी--तहेव णं तं अम्मयानो ! जं णं तुब्भे ममं एवं वयह'-"इमानो ते जाया ! सरिसियानो' 'सरित्तयाओ सरिव्वयानो सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयानो सरिसेहितो रायकुलहितो आणिल्लियारो भारियाओ। तं भुंजाहि णं जाया ! एयाहिं सद्धि विउले माणस्सए कामभोगे । पच्छा भुत्तभोगे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं° पव्वइस्ससि ।" एवं खलु अम्मयाअो! माणुस्सगा कामभोगा असुई वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा 'दुरुय-उस्सास-नीसासा दुरुय-मुत्त-पुरीस-पूयबहुपडिपुण्णा उच्चार-पासवण-खेल -सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणियसंभवा अधुवा अणितिया असासया सडण-पडण-विद्धंसणधम्मा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जा। से के णं जाणइ अम्मयानो! 'के पुब्बि गमणाए के पच्छा गमणाए? तं इच्छामि णं अम्मयानो ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगारानो अणगारियं ° पव्वइत्तइ । ११०. तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-इमे य ते जाया ! अज्जय पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहू हिरण्णे य सुवण्णे य कंसे य दूसे य मणि-मोत्तिय - संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमायो कुलवंसानो पगामं दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं अणुहोही ताव जाया। विपुलं माणुस्सगं इड्ढिसक्कारसमुदयं । तो पच्छा अणुभूयकल्लाणे १. वयहा (ग)। ५. मुखसुखोच्चारणार्थ 'दुरूव' शब्दस्य 'दुरुय' २. सं० पा०-सरिसियाओ जाव समणस्स भिति रूपं कृतं संभाव्यते, अथवा दुरूपार्थवाची पव्वइरससि । देशीशब्दोसो स्यात् ? वृत्तौ 'दुरुय' शब्दस्य ३. असुइ (ख, घ); असुती (ग), अतोग्रे सर्वा- 'दुरूप' इत्यर्थोस्ति कृतः । स्वपि प्रतिषु 'असासया' इति पाठो विद्यते ६. खेल जल्ल (घ)। किन्तु वृत्तौ नास्ति स व्याख्यातः तथा ७. अणियता (ग)। प्रस्तुतपाठक्रम एव 'अणितिया असासया' ८. सं० पा०-अम्मयाओ जाव पव्वइत्तए । इति पाठो विद्यते, तेन नासावत्र गृहीतः। ६. त (क, ख, ग)। ४. दरुस्सास (क, ख, ग, घ) एतत् पदमत्र वृत्तौ १०. मोत्तिए य (ख) । नास्ति व्याख्यातम् । अष्टमाध्ययनस्य १८० ११. तंतसार (घ)। सूत्रस्य वृत्ती व्याख्यातमस्ति, यथा-दुरूपौ १२. अणुहोहि ति (ख, घ); अणुहोहि (ग) विरूपी उच्छवासनिःश्वासौ यस्य (वृ)। १३. ताव जाव (ख)। तदाधारेणासौ पाठः स्वीकृतः। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयण (उक्खित्तणाए) समणस्स भगवरो महावीरस्स' 'अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइस्ससि ॥ १११. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियर' एवं वयासी-तहेव णं तं अम्मयायो ! जंणं तुब्भे ममं एवं वयह-"इमे ते जाया ! अज्जग-पज्जग- पिउपज्जयागए सुबहू हिरण्णे य सुवण्णे य कसे य दूसे य मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयणसंतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमानो कुलवंसानो पगाम दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं अणुहोही ताव जाया ! विपुलं माणुस्सगं इड्ढिसक्कारसमुदयं । तो पच्छा अणुभूयकल्लाणे समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइस्ससि ।” एवं खलु अम्मयानो ! हिरण्णे य जाव सावएज्जे य अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए दाइयसाहिए मच्चुसाहिए, अग्गिसामण्णे 'चोरसामण्णे रायसामण्णे दाइयसामण्णे ° मच्चुसामण्णे सडण-पडण-विद्धंसणधम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे। से के णं जाणइ अम्मयानो ! के 'पुवि गमणाए के पच्छा° गमणाए ? तं इच्छामि ण 'अम्मयानो ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराप्रो अण गारियं० पव्वइत्तए। ११२. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति मेहं कुमार बहूहि विसयाणुलोमाहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य ाघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्ण वित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउव्वेयकारियाहिं पण्णवणाहिं पण्णवेमाणा एवं वयासीएस णं जाया ! निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगंतदिट्ठिए", खुरो इव एगंतधाराए", लोहमया इव जवा चावेयव्वा. वालयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए. महासमुद्दो इव भुयाहि दुत्तरे, तिक्खं कमियव्वं", गरुअं लंबेयव्वं, प्रसिधारव्वयं चरियव्वं । नो खलु कप्पइ जाया ! समणाणं निग्गंथाणं पाहाकम्मिए वा १. सं० पा०-महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि। ७. सं० पा०-तं इच्छामि णं जाव पव्वइत्तए। २. अम्मापियरो (क, ख, ग, घ)। ८. एगंतदिट्ठीए (घ)। ३. सं० पा०-पज्जग जाव तओ पच्छा अणु- ६. एगधाराए (वृ); एगंतधाराए (वृपा)। भूयकल्लाणे पव्वइस्ससि । १०. चंकमियव्व (क)। ४. दाविय ° (क)। ११. असिधारावयं (क, ग, घ)। ५. सं० पा०-अग्गिसामण्णे जाव मच्चसामण्णे। १२. नो य (ख, घ)। ६. सं. पा.-के जाव गमणाए। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ नाय धम्म कहा उद्देसिए वा कीगडे वा ठविए वा रइए वा दुभिक्खभत्ते वा कंतारभत्ते वा वलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते वा मूलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा भोयणे वा हरियभोयणे वा भोत्तए वा पायए वा । तुमं च णं जाया ! सुहसमुचिए नो चेव णं दुहसमुचिए, नालं सीयं नालं उन्हं नाल खुहं नालं पिवासं नालं वाइय-पित्तिय-सिभिय- सन्निवाइए विविहे रोगायंके, उच्चावए गामकंटए, बावीस परीसहोवसग्गे उदिष्णे सम्मं ग्रहियासित्तए । भुजाहि ताव जाया ! माणुस्सर कामभोगे । तम्रो पच्छा भुत्तभोगी समणस्स ' • भगवो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता प्रगारा अणगारियं पव्वइससि || ११३. तए णं से मेहे कुमारे ग्रम्मापिऊहि एवं वृत्ते समाणे ग्रम्मापियरं एवं वयासीतहेव णं तं ग्रम्मया' ! जं णं तुब्भे ममं एवं वयह- "एस णं जाया ! निग्गंथे पावयणे सच्चे ग्रणुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, ग्रहीव एगंतदिट्ठिए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो इव भुयाहिं दुत्तरे, तिक्खं कमियव्वं, गरुत्रं लंबेयव्वं, प्रसिधारख्वयं चरियव्वं । नो खलु कप्पर जाया ! समणाणं निग्गंथाणं ग्राहाकम्मिए वा उद्देसिए वा कीयगडे वा विए वा रइए वा दुब्भिक्खभत्ते वा कंतारभत्ते वा वलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते वा मूलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा वीयभोयणे वा हरियभोयणे वा भोत्तए वा पाय वा । तुमं चणं जाया ! सुहसमुचिए नो चेव णं दहसमुचिए, नालं सीयं नालं उण्हं नाल खुहं नालं पिवासं नालं वाइय-पित्तिय- सिभिय- सन्निवाइए विविहे रोगायंके, उच्चावए गामकंटए बावीसं परीसहोवसग्गे उदिण्णे सम्मं ग्रहियासित्तए । भुजाहि ताव जाया ! माणुस्सए कामभोगे । तम्रो पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो प्रणगारियं पव्वइस्ससि ।" एवं खलु अम्मयाओ ! निग्गंथे पावयणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपडिबद्धाणं परलोगनिष्पिवासाणं दुरणुचरे पाययजणस्स, नो चेव णं धीरस्स । निच्छियववसियस्स एत्थ किं दुक्करं करणयाए ? १. ० समुच्चिए ( क ग ) । २. समुच्चिए (घ ) । ३. सन्निवाइय ( ख, ग, घ ) । ४. सं० पा० - समणस्स जाव पव्वइस्ससि । ५. अम्मताओ ( ख, ग ) । o ६. स० पा० - अणुत्तरे पुणरवि तं चैव जाव तओ पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भगवओ जाव पव्वइस्ससि । ७. वीरस्स ( ख, ग ) । Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं ग्रयणं (उक्खित्तणाए ) तं इच्छामि णं श्रम्मयात्रो ! तुम्भेहिं प्रब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवत्रो' • महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं श्रगाराम्रो अणगारियं पव्वइत्तए || मेहस्स एगदिवस रज्ज -पदं ११४. तए णं तं मेहं कुमारं सम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहिं विसयाणुलोमाहि विपडिकूलाहि य प्राघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विष्णवहि वित्त वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विष्णवित्तए वा ताहे कामकाई चेव मेहं कुमारं एवं वयासी - इच्छामो ताव जाया ! एगदिवसमवि ते रायसरि पात्तिए ॥ ११७. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा रायाभिसेयं उट्ठति ॥ ११५. तए णं से मेहे कुमारे ग्रम्मापियर मणुवत्तमाणे तुसिणीए संचिदृइ || ११६. तए णं से सेणिए राया कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासीखिप्पामेव भो देवाणुपिया ! मेहस्स कुमारस्स महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उद्ववेह ॥ मेहस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं ११८. तए णं से सेणिए राया बहूहिं गणनायगेहि य जाव संधिवालेहि यसद्धि संपरिवडे मेहं कुमारं असणं सोवणियाणं कलसाणं एवं - रुप्पमयाणं कलसाणं मणिमयाणं कलसाणं सुवण्णरुप्पमयाणं कलसाणं, सुवण्णमणिमयाणं कलसाणं रूप्पमणिमयाणं कलसाणं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं कलसाणं, भोमेज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं सव्वपुप्फेहिं सव्वगंधेहिं सव्वमल्ले हिं सव्वोसहीहिं' सिद्धत्थएहि य सब्विड्ढीए सब्वज्जुईए सव्ववलेणं जाव" दुंदुभिनिग्घोस - णाइयरवेणं महया - महया रायाभिसेएणं अभिसिंचाइ, अभिसिंचित्ता करयल' परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी'जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! o O ४५ o १. सं० पा० - भगवओ जाव पव्वइत्तए । २. ० मणुयत्तमाणे ( क ) 1 ३. उवद्वावेह ( ख ) । ४. सं० पा० - कोडुंबियपुरिसा जाव ते वि तव । ५. ना० १।१।२४ । ६. सव्वीसह (क, ख ) ; सव्वोसहि ( ग, घ ) । जय-जय नंदा ! भद्दं ते " प्रजियं जिणाहि, जियं पालयाहि", जियमज्झे साहि [ जियं जिणाहि सत्तु पक्खं, जियं च पालेहि मित्तपक्ख" ] इंदो इव देवाणं ७. ना० १।१।३३ | ८. सं० पा० – करयल जाव कट्टु | ६. जय-जय गंदा ! जय जय भद्दा ! भदंते, (प्रो० सू०६८ ) । १०. पालेहिं ( क ) | ११. सं० पा० - मित्तपक्खं जाव भरहो । १२. कोष्ठकर्तवाक्यद्वयं सर्वाषु प्रतिषु लभ्यते, Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मक हा चमरो इव प्रसुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं रायगिहस्स नगरस अन्नेसि च बहूणं गामागर-नगर'- खेड-कब्बड - दोणमुहमडंब - पट्टण - प्रासम - निगम-संवाह - सण्णिवेसाणं ग्राहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं प्राणा - ईसर - सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-नट्टगीय - वाइय तंती-तल - ताल-तुडिय घण-मुइंग- पडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोग भोगाई भुंजमा विहराहि त्ति कट्टु जय-जय -सद्दं परंजंति ॥ ० ११६. तणं से मेहे राया जाए महयाहिमवंत-महंत मलय-मंदर-महिंदसारे जाव' रज्जं पसासेमाणे विहरइ ॥ १२०. तए णं तस्स मेहस्स रण्णो [ तं मेहं रायं ? ] अम्मापियरो एवं वयासी - भण जाया ! किं दयामों ? किं पयच्छामो ? किं वा ते हियइच्छिए सामत्थे ? मेहस्स निक्खमणपाश्रोग्ग-उवगरण-पदं १२१. तए णं से मेहे राया अम्मापियरो एवं वयासी- इच्छामि णं अम्मयात्रो ! कुत्तियावणाम्रो रहरणं पडिग्गहं' च प्राणियं, कासवयं च सद्दावियं । १२२. तए णं से सेणिए राया कोडुं बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया ! सिरिघराम्रो तिण्णि सयसहस्साई गहाय दोहिं सयसहस्सेहिं कुत्तियावणाम्रो रयहरणं पडिग्गहं च उवणेह, सयसहस्सेणं कासवयं साह || ४६ - १२३. तणं ते कोडुं वियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठा सिरिघरा तिणि ससहस्साइं गहाय कुत्तियावणाओ दोहिं सयसहस्सेहिं रयहरणं डिग्गहं च उवणेंति, सयसहस्सेणं कासवयं सद्दावेंति ।। कासवेणं मेहस्स श्रग्गकेसकरपण-पदं १२४. तए णं से कासवए तेहि कोडुंबिय पुरिसेहि सद्दाविए समाणे जाव' हरिसवसविसप्पमाणहियए हाए कयबलिकम्मे तथापि पुनरुक्तं व्याख्यारूपं प्रतीयते । वृत्तावपि नैतद् व्याख्यातमस्ति । 'ओवाइय' (६८) सूत्रे पि नैतल्लभ्यते । तेन नास्माभिमूलपाठ रूपेण स्वीकृतः । १. सं० पा० - नगर जाव सण्णिवेसाणं आहेवच्चं जाव विहराहि । २. ओ० सू० १४ । ३. दलामो ( क ) । ४. हियइच्छिए ( क ) ; हियपयच्छिए ( ख ) । ५. कुमारे (क, ख, ग ) । o तुटु - चित्तमाणंदिए कय- कोउय-मंगल ६. पडिग्गहणं ( ख ) । ७. सद्दाविडं ( क ) ; सद्दा वेडं ( ख, ग ) ; सद्दावित्तए (घ) ; वृत्तौ - शब्दितं -- प्राकारितम्' इति व्याख्यातं विद्यते । 'आनीतमिच्छामि' तथैव 'शब्दितमिच्छामि' इति उपयुक्तोस्ति सम्बन्ध:, तस्मात् 'सद्दावियं' इति वृत्त्यनुसारी पाठ: स्वीकृतः । ८. पडिग्गहगं ( ख ) । ६. ना० १।१।१६ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खित्तणाए) पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं वत्थाई पवर' परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-संदिसह णं देवाणुप्पिया ! जं मए करणिज्ज ॥ १२५. तए णं से सेणिए राया कासवयं एवं वयासी-गच्छाहि णं तुब्भे देवाण प्पिया ! सुरभिणा गंधोदएणं निक्के हत्थपाए पक्खालेहि, सेयाए चउफलाए पोत्तीए मुहं बंधित्ता मेहस्स कुमारस्स चउरंगुलवज्जे निक्खमणपाउग्गे अग्गकेसे कप्पेहि ॥ १२६. तए णं से कासवए सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणदिए जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियए' 'करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं° पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सुरभिणा गंधोदएण' [निक्के ? ] हत्थपाए पक्खालेइ, पक्खालेत्ता सुद्धवत्थेणं मुहं बंधइ, बंधित्ता परेणं जत्तेणं मेहस्स कुमारस्स चउरंगुलवज्जे निक्खमण पाउग्गे अग्गकेसे कप्पेति ॥ १२७. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया महरिहेणं हंसलक्खणेणं पडसाडएणं अग्गकेसे पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ, पक्खालेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चायो दलयइ, दलइत्ता सेयाए पोत्तीए बंधइ, बंधित्ता रयणसमुग्गयंसि पक्खिवइ, मंजूसाए पक्खिवइ, हार-वारिधार -सिंदुवारछिन्नमुत्तावलि-प्पगासाइं अंसूई विणिम्मुयमाणी-विणिम्मुयमाणी, रोयमाणीरोयमाणी, कंदमाणी-कंदमाणी, विलवमाणी-विलवमाणी एवं वयासी-एस णं अम्हं मेहस्स कुमारस्स अब्भुदएसु य उस्सवेसु य पसवेसु य तिहीसु य छणेसु य जन्नेसु य पव्वणीसु य-अपच्छिमे दरिसणे भविस्सइ त्ति कटु उस्सीसामूले ठवेइ॥ मेहस्स अलंकरण-पदं १२८. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो उत्तरावक्कमणं सोहासणं रयाति. मेहं कुमारं दोच्चं पि तच्चं पि सेयापीएहि कलसेहि पहावेंति, पहावेत्ता पम्हलसूमालाए गंधकासाइयाए गायाइं लूहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं १. विभक्तिरहितं पदम्। ६. वारिधारा (ग)। २. निक्के ति सर्वथा विगतमलान् (व)। ७. सेयाणीएहिं (ग, घ); अत्र लिपिकरणे ३. चउप्फालाए (क्व०) अट्ठपडलाए (भ० 'पकारों' णकाररूपेण परिवर्तितोभूत् अथवा ६।१८९)। 'सेकानीतैः' इत्यर्थस्य परिकल्पनायां 'सेयाणी४. ना० १११।१६ । एहि' इत्यपि पाठः शुद्धस्यात् । ५. सं० पा०—हियए जाव पडिसुणेइ। Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ नायाधम्मकहाओ गायाइं अणुलिपंति, अणुलिपित्ता नासा-नीसासवाय-बोझ' वरणगरपट्टणुग्गयं कुसलणरपसंसितं अस्सलालापेलवं छेयायरियकणगखचियंतकम्म' हंसलक्खणं पडसाडगं नियंसेंति, हारं पिणāति, अद्धहारं पिणद्धति, एवं--एगावलि मुत्तावलि कणगावलि रयणावलि पालंबं पायपलंबं कडगाई तुडिगाई केऊराइं अंगयाई दसमुद्दियाणंतयं कडिसुत्तयं कुंडलाइं चूडामणि रयणक्कडं मउडं-पिणद्धेति, पिणवेत्ता गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमेणं--चउव्विहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव अलंकिय-विभूसियं करेंति ।। मेहस्स अभिनिक्खमणमहस्सव-पदं १२६. तए णं से सेणिए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया ! अणेगखंभसय-सण्णिविटुं लीलट्ठिय-सालभंजियागं ईहामिय-उसभ-तुरय-नर-मगर - विग-वालग-किन्नर-रुरु - सरभ- चमर-कंजरवणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं घंटावलि-महुर-मणहरसरं सुभ-कंत-दरिसणिज्ज निउणोविय-मिसिमिसेंत-मणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं अब्भुग्गय-वइरवेइयापरिगयाभिरामं विज्जाहरजमल-जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं' भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेस्सं सुहफास सस्सिरीयरूवं सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं उवट्ठवेह ॥ १३०. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा हट्टतुट्ठा अणेगखंभसय-सण्णिविढे जाव' सीयं उवट्ठति ।। १३१. तए णं से मेहे कुमारे सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे॥ १३२. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया ण्हाया कयबलिकम्मा जाव अप्पमहग्या १. स० पा०-नासानीसासवायवोझ जाव हंस- आचारचूलायां (१५२८) च असौ पाठः लक्वण । अतीव व्यवस्थितरूपेण प्राप्तोस्ति, अतः २. एतत् पदं वृत्तौ नास्ति व्याख्यातम् । तयोराधारेण अत्रापि पाठः स्वीकृतः । अनेन ३. X (ख, ग)। प्रस्तुतसूत्रे जातस्य पाठमिश्रणस्य परिहार: ४. पिणवेत्ता दिध्वं सुमणदामं पिणद्धति, सहजमेव जातः । ददरमलयसुगंधिए गंधे पिणद्धेति । तए णं ५. संजोइमेणं (ख)। तं मेहं कुमारं (क, ख, ग); 'घ' प्रति विहाय ६. °मालिणीयं (क, ख, ग)। सर्वासु प्रतिषु पाठान्तररूपेणोद्धृतः पाठो ७. मिसमीणं (ख, ग)। लभ्यते । 'घ' प्रती एवं पाठोस्ति-'दिव्वं ८. ना० १११।२६। सुमणदामं पिरगद्धेति । तते णं तं मेहं कुमारं ६. ना०१॥ १।१।२७ । गंथिम' । किन्तु भगवत्यां (६।२३) Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभयणं ( उक्खित्तणाए ) भरणालंकियसरीरा सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता मेहस्स कुमारस्स दाहिणपासे भद्दा - ससि' निसीयइ || १३३. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स बधाई रयहरणं च पडिग्गहं च गहाय सीयं दुरूह, दुरुहिता मेहस्स कुमारस्स वामपासे भद्दासणंसि निसीयइ || १३४. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पिट्ठएगा वरतरुणी सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय-हसिय- भणिय- चेट्ठिय-विलास - संलावुल्लाव - निउणजुत्तोवयारकुसला ग्रामे लगजमलजुयल वट्टिय-प्रभुण्णय- पीण-रइय-संठिय- पोहरा हिम- रययकुंदेंदुपगास सकोरेंट मल्लदामं धवलं प्रायवत्तं गहाय सलीलं प्रहारेमाणीहारेमाणी चिट्ठ || १३५. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स दुबे वरतरुणी सिंगारागारचारुवेसाग्रो संगयगय- हसिय-भणिय-चेट्टिय-विलास-संलावुल्लाव- निउणजुत्तोवयार कुसलायो सीयं दुरुहंति, दुरुहित्ता मेहस्स कुमारस्स उभयो पास नाणामणि- कणग-रयणमरिहतवणिज्जुज्जल-विचित्तदंडाग्रो चिल्लियाग्रो सुहुमवरदीहवाला संखकुंद- दगरय श्रमयमहिय फेणपुंज-सण्णिगासाग्रो चामराम्रो गहाय सलीलं मोहारेमाणीग्रो प्रहारेमाणी चिट्ठति ॥ १३६. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स एगा वरतरुणी सिंगारा- गारचारुवेसा संगयगय- हसिय- भणिय- चेट्ठिय-विलास-संलावुल्लाव- निउणजुत्तोवयार • कुसला सीयं geet, दुरुहिता मेहस्स कुमारस्स पुरग्रो पुरत्थिमे णं चंदप्पभवइर - वेरुलियविमलदंड तालियंटं गहाय चिट्ठइ ॥ १३७ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स एगा वरतरुणी सिंगारागारचारुवेसा संगय- हसिय- भणिय- चेट्टिय-विलास-संलावुल्लाव- निउणजु त्तोवयार कुसला सीयं दुरूह, दुरुहित्ता मेहस्स कुमारस्स पुव्वदक्खिणे णं सेयं रययामयं विमलसलिलor मत्तगय महामुहाकितिसमाणं भिगारं गहाय चिट्ठइ ॥ १. भद्दासम्मि ( ख ) ; भद्दासणे ( ग ) । २. सं० पा० - सिंगारागारचारुवेसाओ जाव कुस १३८. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सरिस्याणं सरितयाणं सरिव्वयाणं गाभरण - गहिय - निज्जोयाणं कोडुंबियवरतरुणाणं सहस्सं सद्दावेह || लाओ । ३. पासि ( ख ) । ४. सं० पा० - सिंगारा जाव कुसला । ५. सं० पा० -- वतरुणी जाव सुरूवा (क, ख, ४६ 0 ग, घ ) अत्र पूर्वसूत्रक्रमेण 'जाव कुसला' इति युज्यते कथमिदं परिवर्तनं जातनिति ज्ञातुं न शक्यते । ६. दक्खिणे ( ग ) । ७. सं० पा० सद्दावेह जाव सद्दावेंति । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ १३६. 'तए णं ते कोडंबियपुरिसा सरिसयाणं सरित्तयाणं सरिव्वयाणं एगाभरण गहिय-निज्जोयाणं कोडुबियवरतरुणाणं सहस्सं सद्दावेंति ।। १४०. तए णं ते कोडंबियवरतरुणपुरिसा सेणियस्स रणो कोडुबियपुरिसेहि सद्दाविया समाणा हट्ठा हाया जाव' [सव्वालंकारविभूसिया ?] एगाभरण-गहियणिज्जोया जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं एवं वयासी-संदिसह णं देवाणुप्पिया ! जं णं अम्हेहिं करणिज्जं ।। तए णं से सेणिए राया तं कोडुंबियवरतरुणसहस्सं एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं परिवहेह ॥ १४२. तए णं तं कोडंबियवरतरुणसहस्सं सेणिएण रण्णा एवं वुत्तं संतं हढं मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं परिवहइ ।। १४३. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरूढस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलया तप्पढमयाए पुरनो अहाणुपुवीए' संपत्थिया, तं जहा-सोवत्थिय - सिरिवच्छ - नंदियावत्त - वद्धमाणग-भद्दासण - कलस-मच्छ-दप्पणया जाव १. ना० १।१८१ । २. अत्र जाव शब्दस्पानिमो पाठो नास्ति सूचितः, किन्तु प्रसंगानुसारेण पूर्तिकृत एव पाठो युज्यते। ३. वाहिणी (ग, घ)। ४. ० वाहिणी (ख); वाहिणी (ग)। ५. आणुपुत्वीए (घ)। ६. सोस्थिय (ग)। ७. (१) तयाणंतरं च णं पुण्णकलसाभंगारं दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा दंसण-रइयआलोयदरिसणिज्जा वाउद्ध यविजयवेजयंती य ऊसिया गगणतलमणुलिहती पुरो अहाणुपुवीए संपट्टिया। (२) तयाणंतरं च णं वेरुलियभिसंतविमलदंड पलंबकोरेंट मल्लदामोवसोहियं चंदमडल निभं विमलं आयवत्तं पवरं सीहासणं च मणिरयणपायवीढं सपाउयाजुयसमाउत्तं बहकिकरकम्मकर-पुरिस-पायत्त-परिक्खित्त पूरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठियं । (३) तयाणंतरं च णं बहवे लट्टिग्गाहा कुंतग्गाहा चावगाहा चामरग्गाहा, पोत्थयग्गाहा फलग्गाहा पीढयग्गाहा वीणग्गाहा कूवग्गाहा हडप्पग्गाहा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्टिया। (४) तयाणंतर च णं बहवे दंडिणो मंडिणो छिहंडिणो पिच्छिणो हासकरा डमरकरा चाडकरा कीडता य वायंता य गायंता य नच्चता य हसंता य सोहंता य साविता य रक्खंता य पालोयं च करेमाणा जयसह च पउंजमाणा पुरओ अहाणपुवीए संपट्टिया। (५) तयाणंतरं च ण जच्चाणं तरमल्लिहायणाणं थासग-अहिलाण-चामर-गड-परिमंडियकडीणं किंकरवरतरुणपरिग्गहियाणं अट्ठसयं वरतुरगाणं पुरनो अहाणपुब्बीए संपट्रियं । (६) तयाणंतरं च णं ईसीदंताणं ईसीमत्ताणं ईसीतुंगाणं ईसीउच्छंगविसाल-धवलदताणं कंचणकोसी-पविदंताण कंचण-मणिरयणभूसियाण वरपुरिसारोहगसंपउत्ताणं अट्ठ सय Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पइमं अज्झपणं (उक्खि तणाए) बहवे अत्थत्थिया' 'कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किव्विसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं मणाभिरामाहिं हिययगमणिज्जाहि वग्गूहिं जयविजयमंगलसएहि अणवरयं अभिनंदंता य अभिथुणता य एवं वयासी-जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! जय-जय नंदा ! भदं ते। अजियं जिणाहि इंदियाइं, जियं च पालेहि समणधम्म, जियविग्यो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धिमज्झे, निहणाहि रागदोसमल्ले तवेण धिइ-धणिय-बद्धकच्छो, मदाहि य अट्ठकम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं अप्पमत्तो, पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं नाणं, गच्छ य मोक्खं परमं पयं गयारणं पुरनो अहाणुपुब्बीए संपट्ठियं । णागधरा (नागवरा-वृपा) पिट्ठओ रह(७) तयाणतरं च णं सच्छताणं सज्झयाणं संवेल्लि (रहसंगेल्लि-वृपा) । सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराणं सणंदि- (११) तए णं से मेहे कुमारे अब्भुग्गयभिंगारे घोसाणं सखिखिणी-जाल-परिक्खित्ताण पग्गहियतालियंटे ऊस वियसेयछत्ते पवीजियहेमवय-चित्त-तिणिस-कणग-णिज्जत्त-दारुयाण बालबीयणीए सविड्ढीए सव्वजत्तीए सव्वकालायस-सुकवणेमि-जंतकम्माणं सुसिलिट्ठ- बलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए वत्तमंडल-धुराणं आइण्णवरतुरगसुसं- सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधपउत्ताणं कुसलनरच्छेयसारहि सुसंग्गहियाणं मल्लालंकारेणं सव्वतूडिय-सह-सण्णिणाएणं बत्तीसतोण-परिमंडियाणं सकंकड वडेंसगाणं महया इड्ढीए मह्या जुईए महया बलेणं सचावसर-पहरणावरणभरिय - जुद्धसज्जाणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमगअट्ठसयं रहाणं पुरओ अहाणु मुवीए संपट्ठियं । प्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झलरि (८) तयाणंतरं च णं असि-सत्ति-कृत-तोमर- खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंग-दुंदुहि - णिग्धोससुल-लउल-भिडिमाल-धण-गाणिसज्जं पायत्ता णाइयरवेणं रायगिहस्स नगरस्स णीयं पुरओ अहाणपुवीए संपट्रियं । मझमझेणं निग्गच्छइ । (8) तए णं से मेहे कुमारे हारोत्यय-सूकय- (१२) तए णं तस्स मेहकुमारस्स रायगिहस्स रइय-वच्छे कुंडलुज्जोइयाणणे मउडदित्त- नगरस्स मझमझेणं णिग्गच्छमाणस्स सिरए अब्भहियं रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे बहवे अत्यत्थिया कामस्थिया भोगत्थिया...। सकोरेंटमल्लदामेण छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उपरिलिखितः पाठो वृत्तेः समुद्धृतोस्ति । सेयवरचामराहिं उद्धृव्वमाणीहिं-उद्धुव्वमा- औपपातिकस्य ६४-६८ सूत्रेषु असौ पाठ: णीहिं हयगयपवरवरजोहकलियाए चाउरंगि- किञ्चिच्छब्दभेदेन सहोपलभ्यते ।। णीए सेणाए समणगम्ममाणमग्गे जेणेव १. सं० पा०-अत्यत्थिया जाव ताहि इद्राहि गुणसिलए चेइए, तेणेव पहारेत्थ गमणाए। जाव अणवरयं । (१०) तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पुरओ २. वलिक (ग, वृपा); एकस्यां वृत्तिप्रती महं आसा आसवरा उभओ पासि णागा पलिक' इत्यपि लभ्यते । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ सासयं च अयलं, 'हंता परीसहचमूणं", अभीयो परीसहोवसग्गाणं, धम्मे ते अविग्धं भवउ त्ति कटु पुणो-पुणो मंगल-जयसई पउंजंति ॥ १४४. तए णं से मेहे कुमारे रायगिहस्स नगरस्स मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुरिससहस्सवाहि णीयो सोयाओ पच्चोरुहइ ।। सिस्सभिक्ख दाण-पदं १४५. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं पुरनो कटु जे णामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वपासी-एस णं देवाणुप्पिया ! मेहे कुमारे अम्हं एगे पुत्ते इट्रे कंते पिए मणुणे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए ° जीवियऊसासए हिययणंदिजणए उंबरपुप्फ पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए ? से जहानामए उप्पल ति वा पउमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवढिए नोवलिप्पइ पंकणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव मेहे कुमारे कामेसु जाए भोगेसू संवढिए नोवलिप्पइ कामरएणं नोवलिप्पइ भोगरण। एस णं देवाणु प्पिया ! संसारभ उव्विग्गे भीए जम्मण'-जर-मरणाणं, इच्छइ देवाणप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । अम्हे ण देवाण प्पियाणं सिस्सभिक्खं दलयामो । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सभिक्खं ॥ १४६. तए णं समणे भगवं महावीरे मेहस्स कुमारस्स अम्मापिऊहिं एवं वत्ते समाणे एयमटुं सम्म पडिसुणेइ॥ १४७. तए णं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावो रस्स अंतियायो' उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, सयमेव ग्राभरण-मल्लालंकारं प्रोमुयइ ।। १४८. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं' प्राभरण मल्लालंकारं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता हार-वारिधार-सिंदुवार-छिन्नमुत्तावलिप्पगासाइं अंसूणि विणिम्मुयमाणी-विणिम्मुयमाणी रोयमाणी-रोयमाणी कंदमाणी-कंदमाणी विलवमाणी-विलवमाणी एवं वयासी--जइयव्वं जाया ! परीसह-चम----परीषहसैन्यम् । ४. संवडढे (ख, ग)। णमित्यलंकारे अथवा कथंभूतः त्वम, हंता--- ५. जम्म (ख, ग)। विनाशक: परीषह-चमूनाम् (वृ) । ६. सीसक्खि (क)। २. पच्चोरुभइ (ख, ग)। ७. X (क, ग, घ)। ३. सं० पा०-कते जाव जीवियऊसासए। ८. पडग (ख)। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खिसणाए) घडियव्वं जाया ! परक्कमियब्वं जाया ! अस्सि च णं अट्टे नो पमाएयव्वं । अम्हंपि णं एसेव मग्गे भवउ त्ति कटु मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ॥ मेहस्स पव्वज्जागहण-पदं । १४६. तए णं से मेहे कुमारे सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छ इ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासो-प्रालित णं भंते ! लोए, पलिते णं भंते ! लोए, प्रालित्त पलित्ते णं भंते ! लोए जराए मरणेण य । से जहानामए केइ गाहावई अगारंसि झियायमाणंसि जे तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगरुए तंगहाय आयाए एगंतं अवक्कमइ- एस मे नित्थारिए समाणे 'पच्छा पुरा य लोए हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए प्राणुगामियत्ताए भविस्सइ । एवामेव मम वि एगे पायाभंडे इतु कंते पिए मणुण्ण मणामे । एस मे नित्थारिए समाणे संसारवोच्छेयकरे भविस्सइ । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिएहिं सयमेव पव्वावियं सयमेव मुंडावियं सयमेव सेहावियं सयमेव सिक्खावियं सयमेव आयार-गोयर-विणय-वेणइय-चरण-करण-जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं ।। तए णं समणे भगवं महावीरं मेहं कुमारं सयमेव पव्वावेइ सयमेव' •मुंडावेइ सयमेव सेहावेइ सयमेव सिक्खावेइ सयमेव आयार-गोयर-विणय-वेणइय-चरणकरण-जायामायावत्तियं ° धम्ममाइक्खइ–एवं देवाणुप्पिया ! गंतव्वं, एवं चिट्ठियव्वं, एवं निसीयव्वं, एवं तुयट्टियव्वं, एवं भुंजियव्वं, एवं भासियव्वं, एवं उट्ठाए उट्ठाय पाणेहिं भूएहि जीवेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजभियव्वं, अस्सि च णं अट्ठ नो पमाएयव्वं ।।। १५१. तए ण से मेहे कूमारे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए इमं एयारूवं धम्मियं सं सम्म पडिवज्जइ-तमाणाए तह गच्छइ, तह चिट्रइ', 'तह निसीय तह तुयट्टइ, तह भुंजइ, तह भासइ, तह° उठाए उट्ठाय पाणेहि भूएहि जीवेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमइ ॥ १. अप्पसारं (वृपा)। २. पच्छाउरस्स (वृपा) ३. खेमाए (क्व०)। ४. ° उत्तियं (क, ख, ग, घ)। ५. सं० पा० सयमेव आयार जाव धम्ममाइक्खइ। ६. ° उट्टाए (ग); उत्थाय उत्थाय (वृ) । ७. सं० पा०-चिट्ठइ जाव उट्टाए। ८. उट्ठाए (क)। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ मेहस्स मणो-संकिलेस-पदं १५२. जहिवसं च णं मेहे कुमारे' मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइए, तस्स णं दिवसस्स पच्चावरण्हकालसमयंसि' समणाणं निग्गंथाणं अहाराइणियाए" सेज्जा-संथारएसु विभज्जमाणेसु मेहकुमारस्स' दारमूले सेज्जा-संथारए जाए यावि होत्था ॥ १५३. तए णं समणा निग्गंथा पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि वायणाए पुच्छणाए परियट णाए धम्माणुजोगचिताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणा य निग्गच्छमाणा य अप्पेगइया मेहं कुमारं हत्थेहि संघटृति 'अप्पेगइया पाएहि संघद्रेति अप्पेगइया सीसे संघटुंति अप्पेगइया पोट्टे संघटृति अप्पेगइया कायंसि संघ ति° अप्पेगइया ओलंडेंति अप्पेगइया पोलंडेंति अप्पेगइया पाय-रय-रेणगंडियं करेंति । एमहालियं च रयणि मेहे कुमारे नो संचाएइ खणमवि अच्छि निमीलित्तए॥ १५४. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए१३ •चितिए पत्थिए मणो गए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं सेणियस्स रण्णो पुत्ते धारिणीए देवीए अत्तए मेहे 'इट्ठे कते पिए मणुण्ण मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासए हियय-णंदि-जणणे उंबर-पप्फ व दुल्लहे ° सवणयाए । तं जया णं अहं अगारमज्झावसामि तया णं मम समणा निग्गंथा पाढायंति परियाणंति सक्कारेंति सम्माणेति, अढ़ाई हेऊई पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं" प्राइक्खंति, इट्ठाहिं कंताहि वग्गूहि बालवैति संलवेति । जप्पभिई च णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए, तप्पभिई च णं ममं समणा निग्गंथा नो पाढायति 'नो परियाणंति नो सक्कारेति नो सम्माणेति नो अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं प्राइक्खंति, १. जं दिवसं (घ)। १०. एवंमहा° (क, घ); ए यमहा° (ग)। २. अणगारे (क)। ११. रयणी (क, घ)। ३. पुव्वा (क, ग, घ)। १२. अच्छी (ख)। ४. आहारातिणियाए (ख, ग)। १३. सं० पा०-अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। ५. मेहस्स अणगारस्स (क) सर्वत्र । १४. सं० पा०--मेहे जाव सवणयाए। ६. वारमूले (क, ख)।। १५. समणयाए (क, ख, ग)। ७.८. य (क, ख, ग, घ)। १८६ सूत्रस्य १६. मझवसामि (क); ° मज्झेवसामि (ग): आधारेण अत्र 'वा' इति पाठो गहीतः । पालो गढीतः । अगारमझे आवसामि (वपा)। ६. सं० पा०–एवं पाएहिं सीसे पोट्टे १७. परिजाणंति (ग)। कायंसि । १८. वाकरणाइं (क, ख, ग)। १६. सं० पा०-आढायंति जाव संलवेंति। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ षढमं अज्झयणं (उक्खिसणाए) नो इट्टाहि कंताहि वग्गूहिं पालवेति ° संलवेति । अदुत्तरं च णं ममं समणा निग्गथा राम्रो पव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि वायणाए पुच्छणाए' परियटणाए धम्माणजोगचिताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणा य निग्गच्छमाणा य अप्पेगइया हत्थेहि संघटेति अप्पेगइया पाएहि संघट्टेति अप्पेगइया सीसे संघटृति अप्पेगइया पोट्टे संघटृति अप्पेगइया कायंसि संघट्टेति अप्पेगइया अोलंडेंति अप्पेगइया पोलंडति अप्पेगइया पाय-रय-रेणु-गुडियं करेंति ° । एमहालियं च णं रत्ति अहं नो संचाएमि अच्छि निमिल्लावेत्तए' [निमीलित्तए?] । तं सेयं खलु मज्झ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते समणं भगवं महावीरं आपुच्छित्ता पुणरवि अगारमज्भावसित्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता अट्ट-दुहट्ट-वसट्ट-माणसगए निरयपडिरूवियं च णं तं रयणि खवेइ, खवेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए सुविमलाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ जाव' पज्जवासइ॥ मेहस्स संबोध-पदं १५५. तए ण मेहा ! इसमणे भगवं महावीरे मेहं कूमारं एवं वयासी–से नणं तमं० महा ! राम्रो पुव्व रत्तावरत्तकालसमयंसि समणेहिं निग्गंथेहिं वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणुजोगचिंताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणेहि य निग्गच्छमाणेहि य अप्पेगइएहिं हत्थेहि संघट्टिए अप्पेगइएहिं पाएहि संघट्टिए अप्पगइएहिं सीसे संघट्टिए अप्पेगइएहि पोट्टे संघट्टिए अप्पेगइएहि कायंसि संघट्टिए अप्पेगइएहि ओलंडिए अप्पेगइएहिं पोलंडिए अप्पेगइएहिं पायरय-रेणु-गुंडिए कए। एमहालियं च णं राई तुम नो संचाएसि मुत्तमवि अच्छि निमिल्लावेत्तए । तए णं तुझ मेहा ! इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्था-जया णं अहं अगारमज्झावसामि तया णं ममं १. सं० पा०-पुच्छणाए जाव एमहालिय। ७. ना० १ १।२४ । २. १५३ सूत्रे 'निमिलित्तए' इति पाठोस्ति। ८. तेणामेव (ग)। अत्र ततल्यार्थेऽपि निमिल्लावेत्तए' इति ६. राय० सू० ६० । पाठः कथं जातः ? १०. तुमे (ग)। ३. ममं (ग)। ११. सं० पा०-पुच्छणाए जाव एमहालियं । ४. ना० १११।२४। १२. तुब्भ (क); तुब्भे (ख, घ)। ५. मज्झे वसित्तए (क)। १३. स० पा०-अझथिए जाव समुप्पज्जित्था। ६. वेदेति (घ)। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहानी समणा निग्गंथा पाढायंति' परियाणंति सक्कारेति सम्माणेति अट्ठाई हेऊई पसिणाइं कारणाई वागरणाइं प्राइक्खंति, इट्टाहि कंताहि वग्गूहि पालवेंति सलवति । जप्पीभई च ण मड भवित्ता अगाराप्रो अणगारिय पव्वयामि तप्पभिइंच णं ममं समणा निग्गंथा नो ग्राढायंति जाव' संलवेति। अदत्तरं च णं मम समणा निग्गंथा राम्रो पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अप्पेगइया जाव' पाय-रय-रेणु-गुंडियं करेंति। तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं आपुच्छित्ता पुणरवि अगारमझे आवसित्तए त्ति कटु एवं संपेहेसि, संपेहेत्ता अट्ट-दुहट्ट-वसट्ट-माणसगए' निरयप डिरूवियं च णं तं° रयणि खवेसि, खवेत्ता जेणामेव अहं तेणामेव हव्वमागए। से नणं मेहा ! एस 'अत्थे समत्थे । हंता अत्थे समत्थे ॥ भगवया सुमेरुप्पभ-भव निरूवण-पदं १५६. एवं खलु मेहा ! तुम इप्रो तच्चे अईए भवग्गहणे वेयड्ढगिरिपायमूले वणयरेहि निव्वत्तियनामधेज्जे सेए संख-उज्जल-विमल-निम्मल-दहिघण-गोखीर-फेणरयणियरप्पयासे सत्तुस्सेहे नवायए दसपरिणाहे सत्तंगपइट्ठिए ‘सोम-सम्मिए"" सुरूवे पुरओ उदग्गे समूसियसिरे सुहासणे पिट्ठो वराहे अइयाकुच्छी' अच्छिद्दकुच्छी अलंबकूच्छी पलंबलंबोदराहरकरे धणुपट्टागिति-विसिट्टपूटे अल्लीणपमाणजत्त-वदिय-पीवर-गत्तावरे अल्लीण-पमाणजत्तपच्छे पडिपुण्ण-सुचारु कुम्मचलणे पंडुर"-सुविसुद्ध-निद्ध-निरुवय-विसतिनहे छइंते सुमेरुप्पभे नाम हत्थिराया होत्था ॥ १५७. तत्थ णं तुमं मेहा ! बहूहि हत्थीहि य हत्थिणियाहि य लोट्टएहि य लोट्टियाहि १. सं० पा०-आढायंति ० । १०. अलंब ° (वृ); पलंब° (वृपा)। २. ना० १०१११५४ 1 ११. अतोने वृत्तौ वाचनान्तरस्य निर्देशोस्ति३. ना० १११११५३ ।। अभ्युद्गत-मुकुल-मल्लिका-धवलदन्तः, आना४. ना० १११।२४ । मित-चाप-ललित-संवेल्लिताग्रशुंडः । उपाशक५.सं पा०-अट्टदुहट्टवसट्टमाणसगए जाव दशाया-(२।२८) मिदं विशेषणद्वयं मूलपाठे रणि । विद्यते-अब्भुग्गय - मउल-मल्लिया-विमल६. अद्वै समटे हंता अढे सम? [क्वचित् । धवलदंतं ० ग्राणामिय-चाव-ललिय-संवेल्लि७. समे सुसंठिए (वृ); सोम-सम्मिए (वृपा)। यग्गसोंडं। ८. वृत्तौ नास्ति व्याख्यातः । १२. पंडर (क, च)। है. अतिया ० (ग, घ)। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्मयणं (उक्खितणाए) ५७ १५४. य कलभएहि य कलभियाहि य सद्धि संपरिवुडे हत्थिसहस्सनायए देसए पागट्टी पट्टवए जूहवई वंदपरिवड्ढए', अण्णेसि च बहूणं एकल्लाणं' हत्थिकलभाणं आहेवच्चं' •पोरेवच्चं सामित्तं भटित्तं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारे माणे पालेमाणे ° विहरसि ।। १५८. तए णं तुम मेहा ! निच्चप्पमत्ते सई पललिए कंदप्परई मोहणसीले 'अवितण्हे कामभोगतिसिए" वहूहि हत्थोहि य 'हत्थिणियाहि य लोट्टएहि य लोट्टियाहि य कलभएहि य कलभियाहि य सद्धि ° संपरिवुडे वेयड्ढगिरिपायमूले गिरीसु य दरीसु य कुहरेसु य कंदरासु य उज्झरेसु य निज्झरेसु य वियरएसुय गड्डासु य पल्ललेसु य चिल्ललेसु य कडगेसु य कडयपल्ललेसु य तडीसु य वियडीसु य टंकेसु य कूडेसु य सिहरेसु य पव्भारेसु य मंचेसु य मालेसु य काणणेसु य वणेसु य वणसंडेसु य वणराईसु य नदीसु य नदीकच्छेसु य जहेसु य संगमेसु य वावीसु य पोक्खरणीसु य दीहियासु य गुंजालियासु य सरेसु य सरपंतियासु य सरसरपंतियासु य वणयरेहि दिन्नवियारे वहूहि हत्थीहि य जाव' सद्धि संपरिडे बहुविहतरुपल्लव-पउरपाणियतणे" निब्भए निरुव्विग्गे सुहंसुहेणं विहरसि ।। तए णं तुम मेहा -- अण्णया" कयाइ पाउस-वरिसारत-सरद हेमंत-वसंतेसु कमेण पंचसु उऊसु समइक्कतेसु गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूले मासे पायवघंससमूट्रिएणं सुक्कतण-पत्त-कयवर-मारुय-संजोगदोविएणं महाभयंकरेणं हुयवहेणं वणदव-जाल"-संपलित्तेसु वणतेसु धूमाउलासु दिसासु महावाय-वेगेणं संघट्टिएसु छिण्णजालेसु आवयमाणेसु पोल्लरुक्खेसु अतो-अंतो झियायमाणेसु मय-कुहिय-विणट्ठ-किमिय-कद्दम-नईवियरगज्झीणपाणीयंतेसु वणंतेसु भिंगारकदीणकंदिय-रवेसु 'खरफरुस-अणि?-रिट्ठ-वाहित्त-विद्दुमग्गेसुदुमेसु तण्हावस मुक्कपक्ख-पायडियजिब्भतालुय-असंपुडियतुंड-पक्खिसंघेसु ससंतेसु गिम्हुम्ह-- १. परियट्टए (क)। १०. पाणियतले (क, ग, घ)। २. कल्लाणं (ग)। ११. अन्नता (ख)। ३. सं० पा०--आहेवच्चं जाव विहरसि। १२. सरय (ख, ग, घ)। ४. अवितण्हकामतिमिए (क); अवितण्हकामभोगे १३. महाभयक रेणं (क, ख, घ)। १४. जाला (ख)। ५. सं० पा०-हत्थीहि य जाव संपरिडे । १५. किमि (वृ); किमिय (वृपा)। ६. वियरेसु (ख, ग, घ)। १६. खरफरुस-रिट्ठ-वाहित्त-विदुमग्गेसु (वृपा)। ७. पुक्खरिणीसु (क)। १७. पडिय ° (घ)। ८. ना० १११११५७ । १८. गिम्हउम्ह (ख); गिम्ह (घ) । 8. पल्लवे (क)। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ नायाधम्मकहाओ उण्हवाय-खरफरुसचंडमारुय-सुक्कतणपत्तकयवरवाउलि-भमंतदित्तसंभंतसावयाउल-मिगतण्हाबद्धचिधपट्टेसु गिरिवरेसु संवट्टइएसु' तत्थ-मिय-ससय-सरीसिवेसु अवदालियवयणविवर-निल्लालियग्गजीहे महंततुंबइय-पुण्णकण्णे संकुचियथोर-पीवर-करे ऊसिय-नंगूले पीणाइय-विरसरडिय-सद्देणं फोडयंतेव अंबरतलं, पायदहरएणं कंपयंतेव मेइणितलं, विणिम्मयमाणे य सीयर", सव्वग्रो समंता वल्लिवियाणाई छिदमाणे, रुक्खसहस्साइं तत्थ सुबहूणि नोल्लयते', विणदरतुव्व नरवरिंदे, वायाइद्धेव्व पोए, मंडलवाएव्व परिब्भमंते, अभिक्खणं-अभिक्खणं लिंडनियरं प{चमाणे-प{चमाणे बहूहि हत्थीहि य जाव' सद्धि दिसोदिसिं विप्पलाइत्था । १६०. तत्थ णं तुम मेहा ! जुण्णे जरा-जज्जरिय-देहे ग्राउरे झंझिए पिवासिए दुब्बले किलंते नटुसुइए मूढदिसाए सयानो जूहाम्रो विप्पहूणे वणदवजालापरद्धे" उण्हेण य तण्डाए य छहाए य परब्भाहए समाणे भीए तत्थे तसिए उब्विग्गे संजायभए सव्वनो समंता अाधावमाणे परिधावमाणे एगं च णं महं सरं अप्पोदगं" पंकबहुलं अतित्थेणं पाणियपाए अोइण्णे । तत्थ णं तुम मेहा ! तीरमइगए पाणियं असंपत्ते अंतरा चेव सेयंसि विसण्णे। तत्थं णं तुम मेहा ! पाणियं पाइस्सामि त्ति कटु हत्थं पसारेसि । से वि य ते हत्थे उदगं न पावइ । तए णं तुमं महा ! पुणरवि कायं पच्चुद्ध रिस्सामि त्ति कटु बलियतरायं पंकसि खुत्ते ॥ १६१. तए णं तुमं मेहा ! अण्णया कयाइ एगे चिरनिज्जूढए गयवरजुवाणए सगालो जहाम्रो कर-चरण-दंत-मुसलप्पहारेहिं विप्परद्धे समाणे तं चेव महद्दहं पाणीयपाए समोयरइ। तए ण से कलभए तुम पासइ, पासित्ता तं पुववेरं सुमरइ, सुमरित्ता प्रासुरत्ते रुढे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे जेणेव तुमं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुमं तिक्खेहि दंतमुसलेहि तिक्खुत्तो पिट्ठो ‘उठ्ठ १. संवट्टएसु (ग)। ६. नोल्लवते (ग)। २. पसय (ख, ग, घ, वृ); अनुयोगद्वारवृत्तौ ७. ना० १।१।१५७ । पाठान्तररूपेण 'पसय' शब्दः प्राप्यते -- ८. झुसिए (क, घ); जुजिए (ग); 'झुसियं' पसयस्तु–आटविको द्विखुरः चतुष्पदविशेषः। बुभुक्षितमित्यर्थः (अंतगडवृत्ति ३८)। प्रस्ततसत्रस्य वत्तावपि इत्थमेव व्याख्यात- ६. विप्पहीणे (क)। मस्ति-प्रसयाश्चाटव्यचतुष्पदविशेषाः। १०. वरद्धे (क); परद्धे (ख) । ३. सिरीसवेसु (ख, ग)। ११. अप्पोययं (ख)। ४. पिणाइय (ख); पेणाइय (ग)। १२. अतित्थणं (ख, ग)। ५. सीइरं (क); सीयारं (क्व०)। १३. आसुरुते (क, ख)। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं प्रयणं (उक्तिणाए ) ५६ भइ, उट्ठभित्ता" पुव्वं वेरं निज्जाएइ, निज्जात्ता हट्टतुट्ठे पाणीयं पिबइ, पिबित्ता" जामेव दिसि पाउवभूए तामेव दिसि पडिगए || १६२. तए णं तव मेहा ! सरीरगंसि वेयणा पाउन्भवित्था - उज्जला विउला दुरहियासा । पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाह o कक्खडा" "पगाढा चंडा दुक्खा वक्ती यावि विहरित्था | भगवया मेरुष्पभ- भवनिरूवण-पदं १६३. तए णं तुमं मेहा ! तं उज्जलं विउलं कक्खडं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं सत्तरादियं वेयणं वेदेसि, सवीसं वासस्यं परमाउयं पालइत्ता अट्ट-'दुहट्ट व सट्टे " कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे गंगाए महानईए दाहिणे कूले विझगिरिपायमूले एगेणं मत्तवरगंधहत्थिणा एगाए गयवरकरेणूए कुच्छिसि गयकल भए जणिए || १६४. तए णं सा गयकलभिया नवण्हं मासाणं वसंतमासंसि तुमं पयाया ॥ १६५. तए णं तुमं मेहा ! गव्भवासाप्रो विष्पमुक्के समाणे गयकल भए यावि होत्था - रतुप्पल - रत्तसूमालए जासुमा । रत्तपालयत्तय' - लक्खा रस- सरसकुंकुमसंभब्भरागवणे, इट्ठे नियगस्स जूहवइणो", गणियार" - कणेरु" -कोत्थ- हत्थी गहत्थिसयसंपरिवुडे रम्मेसु गिरिकाणणेसु सुहंसुहेणं विहरसि || १६६. तए गं तुमं मेहा ! उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुप्पत्ते जूहवइणा कालधम्मुणा संजुत्ते तं जूहं यमेव पडिवज्जसि ॥ १६७. तए णं तुमं मेहा ! वणयरेहिं निव्वत्तियनामधेज्जे" सत्तुस्सेहे नवायए दसपरिहे तंग पट्टिए सोम - सम्मिए सुरूवे पुरस्रो उदग्गे समूसियसिरे सुहासणे fuga वराहे ग्रइयाकुच्छी ग्रच्छिदकुच्छी प्रलंब कुच्छी पलंबलंबोदराहरकरे पट्टागिति-विसि अल्लीण - पमाणजुत्त वट्टिय- पीवर - गत्तावरे अल्लीण १. उट्ठभइ २ (क) । २. पुव्व (ख, घ ) । ३. नियइ २ ( क, ख, घ) । ४. तिउला विउला ( ख ) ; तिउला ( वृपा ) । ५. सं० पा० - कक्खडा जाव दुरहियासा । ६. सं० पा०-- उज्जलं जाव दुरहियासं । ७. वसट्ट दुहट्टे (क, ख, ग, वृ) । ८. ० मासम्मि ( क ) ; ° मासे ( ग ) । ६. पालियात्तय (क, घ); पारिजत्तय ( क्व ० ) । १०. ० संझराग ० (क) 1 ११. ० वइणा ( ग ) । १२. गणियायार (घ ) । १३. करेणु (घ) । जाव १४. सं० पा०-- निव्वत्तियनामधेज्जे चाउदंते । इह यावत् करणेन यद्यपि समग्र : पूर्वोक्तो हस्तिवर्णकः सूचितस्तथापि श्वेततावर्जो द्रष्टव्यः इह रक्तस्य तस्य वर्णितत्वात् । अतएवाग्रे सत्तुस्सेहे इत्यादिकमतिदेशं वक्ष्यति (वृ) । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ पमाणजुत्तपुच्छे पडिपुण्ण-सुचारु-कुम्मचलणे पंडुर-सुविसुद्ध-निद्ध-निरुवहयविसतिनहे ° चउदंते मेरुप्पभे हत्थिरयणे होत्था। तत्थ णं तुम मेहा ! सत्तसइयस्स जूहस्स आहेबच्चं •पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणाईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे अभिरमेत्था । तए णं तुम मेहा ! अण्णया कयाइ गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूले [मासे पायवघंससमुट्टिएणं सुक्कतण-पत्त-कयवर-माख्य-संजोगदीविएणं महाभयंकरेणं हुयवहेणं ? ]' वगदव-जाला-पलित्तेसु वणंतेसु धूमाउलासु दिसासु जाव' मंडलवाएव्व परिब्भमंते भीए तत्थे' तसिए उव्विग्गे ° संजायभए बहूहिं हत्थीहि य हस्थिणियाहि य लोट्टएहि य लोट्टियाहि य कल भएहि य कलभि याहि य सद्धि संपरिवडे सव्वनो समंता दिसोदिसि विप्पलाइत्था ।। १६९. तए ण तव मेहा ! तं वणदवं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था---कहि णं मन्ने मए अयमेयारूवे अग्गिसंभमे अणूभूयपुव्वे ? १७०. तए णं तव मेहा ! लेस्साहि विसुज्झमाणोहिं अज्झवसाणेणं सोहणेणं सुभेणं परिणामेणं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं ईहा-पूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सन्निपुव्वे जाईस रणे समुप्पज्जित्था ।। १७१. तए णं तुम मेहा ! एयमटुं सम्म' अभिसमेसि-एवं खलु मया" अईए दोच्चे भवग्गहणे इहेव जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले जाव' सुमेरुप्पभे नाम हत्थिराया होत्था । तत्थ णं मया" अयमेवारूवे अग्गिसंभमे समणुभूए ।। १७२. तए णं तुम मेहा ! तस्सेव दिवसस्स पच्चावरण्हकालसमयंसि नियएणं जूहेणं सद्धिं समण्णागए यावि होत्था ।। १७३. तए णं तुम मेहा ! सत्तुस्सेहे जाव" सन्निजाईसरणे चउदंते मेरुप्पभे नाम हीत्थ होत्था ॥ १. होत्था । सत्तगपइट्टिए तहेव जाव पडिरूवे ७. सं० पा० -अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था। (क, घ) । यत पुनरिह दृश्यते--सत्तंगेत्यादि ८. °संभवे (ख, ग)। तद् वाचनान्तरवर्णकापेक्षं कुलिखित मिति ६.X (ग)। (व)। १०. मता (ख)। २. सं० पा०—आहेवच्चं जाव अभिरमेत्था। ११. ना० १११११५६ । ३. १५६ सूत्रस्य वर्णनपद्धत्यासौ पाठोऽत्र युज्यते। १२. महया (क, ख, ग); एतत् पदं अशुद्धं ४. ना० १।११५६ । दृश्यते । ५. सं० पा०–तत्थे जाव संजायभए । १३. ° संभवे (घ)। ६. सं० पा०-हत्थीहि य जाव कलभियाहि । १४. ना० १७११६७ । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झपणं (उक्खित्तणाए) मेरुप्पभेण मंडलनिम्माणपदं १७४. तए णं तुझं मेहा ! अयमेयारूवे अज्झथिए जाव' समुप्पज्जित्था -सेयं खलु मम इयाणि गंगाए महानईए दाहिणिल्लं सि कुलं सि विझगिरिपायमूले 'दवग्गिसंताणकारणट्ठा सएणं जूहेणं महइमहालयं मंडलं घाइत्तए' त्ति कटु एवं संपेहेसि, संपेहेत्ता सुहंसुहेणं विहरसि ॥ तए णं तुम मेहा ! अण्णया कयाइ पढमपाउसंसिौं महावुट्ठिकायंसि सन्निवयंसि गंगाए महानईए अदूरसामंते बहूहि हत्थीहि य जाव' कलभियाहि य सत्तहि य हत्थिसएहि संपरिवुडे एगं महं जोयणपरिमंडलं महइमहालयं मंडलं घाएसिजं तत्थ तणं वा पत्तं वा कटुं वा कंटए वा लया वा वल्लो वा खाणुं वा रुक्खे वा खुवे वा, तं सव्वं तिक्खुत्तो पाहुणिय-पाहुणिय पाएणं उट्ठवेसि, हत्थेणं गिण्हसि, एगते एडेसि ॥ १७६. तए णं तुम मेहा ! तस्सेव मंडलस्स अदूरसामंते गंगाए महानईए दाहिणिल्ले कूले विझगिरिपायमूले गिरीसु य जाव सुहंसुहेणं विहरसि ।। १७७. तए णं तुम मेहा ! अण्णया कयाइ मज्झिमए वरिसारत्तंसि महावुट्टिकायंसि सन्निवइयंसि जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता दोच्चं पि 'मंडलघायं करेसि'१० । एवं-चरिमवरिसारत्तसि" महावुटिकायंसि सन्निवयमाणंसि जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छ ता तच्चं पि मंडलघायं करेसि जाव' सुहंसुहेणं विहरसि ॥ दवग्गिभीतसावयाणं मंडलपवेस-पदं १७८. "तए णं तुम मेहा ! अण्णया कयाइ कमेण पंचसु उऊसु समइक्कतेसु १. ना० १११.१६६ । १०. तं मंडलं घाएसि (क, ग, घ)। २. बदवग्गिसंताण ° (क); दवग्गिसंजाय° ११. °वासारत्तंसि (ख)। (ख, ग, घ); दवग्गिमंताण ° (वृपा)। १२. करेसि, जं तत्थ तणं वा जाव (क, ख, ग, घ); ४. घातए (ख)। गमान्तरप्रसंगे वृत्तिकारेण तच्चं पि ४. पाउसे (ग); ° पाउसम्मि (घ) । मंडलघायं करेसि जाव सुहंसुहेणं विहरसि'५. ना० १।१।१५७ । इति पाठः उद्धृतोस्ति, तस्याधारेणासोपाठोत्र ६. X (ग, घ)। स्वीकृतः । ७. उद्धवेसि (क); उद्धरेसि (ख, ग); १३. ना० १११११७५.१७६ । ___ उवढेसि (घ); उद्यवेसित्ति उद्धरसि (वृ)। १४. प्रथमो गमः पादटिप्पणे विन्यस्तोस्ति, द्वितीय८. ना० १११११५८ । श्च मूलपाठे रक्षितोऽस्ति । वृत्तिकृता द्वितीय६. महाविट्ठि (क, ख)। गमस्य गमान्तरत्वेन उल्लेखः कृतोस्ति, यथा Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ नायाध महा म्हका समयंसि जेट्ठामूले मासे पायव - घंससमुट्ठिएणं' जाव' संवदृइएसु मियपसुपं खिसरीसिवेसु' दिसोदिसि विप्पलायमाणेसु तेहि बहूहिं हत्थी हि य सद्धि जेणेव से मंडले तेणेव पहारेत्थ गमणाए । यत् पुनः 'तए णं तुमं मेहा अण्णया कयाइ कमेणं पंचसु' इत्यादि दृश्यते, तद् गमान्तरं मन्यामहे (वृ) आदर्शषु गमद्वयं लिखितमस्ति । द्वितीयो गमः पूर्ववर्ति १५ सूत्रस्य वर्णनेन सादृश्यं गच्छति, तेन तस्यैव मूले सन्निवेशः कृतः । प्रथमो गमः इत्थमस्ति अह मेहा ! तुमं गइंदभावम्मि वट्टमाणो कमेण नलिणिवणविहवणकरे हेमंते कुंदलोद्ध-उद्धत - तुसारपउरम्मि अइक्कते, अवगम्यंसि पत्ते वियट्टमाणो वणेसु 'वणकरेणु - विविह दिन्नकयपसव घाओ" उकुसुम-चामरा' - कण्णपूर परिमंडियाभिरामो मयवस - विगसंत-कडतड-किलिन्नगंधमदवारिणा सुरभिजणियगंधी करेणुपरिवारिओ उउसमत्त - जणिय सोहो काले दिणवरकरपयंडे परिसोसिय-तरुवर सिहर'भीमत रदंसणिज्जे भिंगार-रवंत - भेरवर वे नाणाविपत्त-क-त-कयवरुद्धृत-पइमारुया इद्ध-नहयल-पदुममाणे वाउलि-दारुणतरे तण्हावस- दोस- - दूसिय-भमंत- विविसावय १. वणरेणुविवि दिन्नकयपंसुधा (वृपा) । १०. जालालेविय (वृ ) । २. तुमं कुसुम (घ), कुसुम ( वृ), उउयकुसुम (वृपा) । ११. प्रायवाले ( वृ), प्रायवालोय ( वृपा ) । ३. चामर ( क्व० ) । ४. ० समय ( क ) । ५. ० सिरिहर (घ, वृ ) । ६, दुमगणे (वृपा) । ७. दोसिय (वृ) । ५. ०दंसणिजे ( ख ) । C. सद्धणं (वृपा) । समाउले भीमदरिसणिज्जे' वट्ट ते दारुणम्मिगिम्हे मारुयवस - पसर - पसरिय-वियंभिएणं अब्भहिय- भीमभेरव - रवप्पगारेणं महुधारापडिय - सित्त- उद्धायमाण- धगधगेत संदुद्धरणं' दित्ततर- सफुलिंगेणं धूममालाउलेण सावयस्यंत करणेणं वणदवेणं जालालोविय"निरुद्धधुमंधकारभीओ आयवालोय" महंत तुंबइय-पुण्ण-कण्णो 'आकुंचिय-थोरपीवरकरो भयवस भयंत दित्तनयणो १२ वेगेण महामहो व्व वाय- गोल्लिय-महल्लरूवो जेण कओ तेण पुरा दवग्ग भयभीहियएणं अवगतणप्पएसक्खो रुक्खोद्देसो दवग्गिसंताणकारणट्ठा" तेहि बहूहि हत्थीहि य सद्धि" जेणेव मंडले तेणेव पहारेत्य गमणाए । एक्को ताव एस गमो । १. संघंस ० ( क, ख, घ) । २. ना० १।१।१५६ । ३. १५६ सूत्रे इत्थं पाठरचनास्ति तत्य मियसमय - सरीसिवेसु । ४. पू० - ना० १।१।१५७ ॥ १२. श्राकुंचियथोरपीवरकराभोयसव्वदिसिभयंत दित्तनयणो ( वृपा) । १३. ते ( क, ख, घ) । - १४. कारणत्था (क, ग, घ ) । १५. एतावान् पाठ: ख, ग, घ, प्रतिषु नास्ति, केवलं 'क' प्रतावेव विद्यते, वृत्त्यनुमोदितोस्ति तेनास्माभिः स्वीकृतः । Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) तत्थ णं अण्णे बहवे सीहा य वग्घा य विगा य दीविया य अच्छा य तरच्छा य परासरा' य सियाला य विराला य सुणहा य कोला य ससा य कोकंतिया य चित्ता य' चिल्लला' य पुवपविट्ठा अग्गिभयविदुया एगयनो बिलधम्मेणं चिट्ठति ॥ १७६. तए णं तुम मेहा ! जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता तेहिं बहूहि सोहेहि य जाव' चिल्लले हि य एगयो बिलधम्मेणं चिट्ठसि ।। मेरुप्पभस्स पादुक्खेव-पदं १८०. तए णं तुमे मेहा ! पाएणं गत्तं कंडूइस्सामी' ति कटु पाए उक्खित्ते । तसिं च णं अंतरंसि अण्णेहि बलवंतेहि सत्तेहि पणोलिज्जमाणे -पणोलिज्जमाणे ससए अणुप्पवितु ॥ १८१. तए णं तुमे" मेहा ! गायं कंडूइत्ता" पुणरवि पायं पडिनिक्खेविस्सामि त्ति कट्ट तं ससयं अणुपविट्ठ पाससि, पासित्ता पाणाणुकंपयाए भूयाणुकंपयाए जीवाणुकंपयाए सत्ताणुकंपयाए से पाए अंतरा" चेव संधारिए, नो चेव णं निखित्ते ॥ १८२. तए णं तुम मेहा ! ताए पाणाणुकंपयाए 'भूयाणुकंपयाए जीवाणुकंपयाए ° सत्ताणुकंपयाए संसारे परित्तीकए, माणस्साउए निबद्धे ।। १८३. तए णं से वणदवे अड्ढाइज्जाइं राइंदियाइं तं वणं झामेइ, झामेत्ता निदिए उवरए उवसंते विज्झाए यावि होत्था । १. पारासरा (घ)। ६. पणोल्लिज्ज° (क, ग)। २. य चित्तलगा य (ख, ग); य चित्तला य १०. तुमं (क, ख, ग, घ)। ११. कंडुइत्ता (क. ख)। ३. चिल्लाला (क)। एतेषां मध्येऽधिकृत- १२. निक्खिमिस्सामि (क); निक्वमिस्सामि वाचनायां कानिचिन्न दृश्यन्ते । (ख, ग, घ)। ४. ० भयाभिया (क, ख, घ)। १३. ° कंपाए (ग)। ५. ना० ११११७८ । १४. अंतरे (ग)। ६. तुमं (क, ख, ग, घ)। १५. सं० पा०-पाणाणुकंपयाए जाव सत्ताण७. कडुइ ° (ख)। कंपयाए। ८. अणुक्खित्ते (क, ग, घ)। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૪ नामक हाओ १८४. तए णं ते बहवे सीहा य जाव' चिल्लला य तं वणदवं निट्टियं उवरयं उवसंत विज्झायं पासंति, पासित्ता अग्गिभयविप्पमुक्का तण्हाए य छुहाए य परब्भाह्या समाणा तो मंडलाम्रो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता सव्वग्रो समंता विप्पसरित्था | १८५. तए णं ते बहवे हत्थी यहत्थिणीओ य लोट्टया य लोट्टिया व कलभाय कलभिया य तं वणदवं निट्ठियं उवरयं उवसंतं विज्झायं पासंति, पासित्ता भयविमुक्का तण्हाए य छुहाए य परव्भाया समाणा तम्रो मंडलाग्रो डिनिमंति, पडिनिक्खमित्ता दिसोदिसिं विप्पसरित्था । १८६. तए णं तुमं मेहा ! जुण्णे जरा-जज्जरिय- देहे सिढिलवलितय-पिणिद्धगत्ते दुब्बले किलते जंजिए पिवासिए अत्थामे प्रबले अपरक्कमे ठाणुकडे वेगेण विप्पसरिस्सामि त्ति कट्टु पाए पसारेमाणे विज्जुहए विव रययगिरि - पब्भारे धरणितलसि सव्वंगेहिं सण्णिवइए || १८७. तए णं तव मेहा ! सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया – उज्जला" विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा । पित्तज्जरपरिगयसरीरे " दाहवक्कंतीए यावि विहरसि ॥ तीय संदभे वट्टमाण- तितिक्खोवदेस-पदं १८८. तए गं तुमं मेहा ! तं उज्जलं जाव' दुरहियासं तिष्णि राइंदियाई वेयणं वेमाणे विहरिता एवं वासस्यं परमाउं पालइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे सेणियस्स रण्णो धारिणीए देवीए कुच्छिसि कुमारत्ताए पच्चायाए ॥ १८६. तए णं तुमं मेहा ! प्राणुपुव्वेणं गव्भवासाग्रो निक्खते समाणे उम्मुक्कवालभावे जोव्वणगमप्पत्ते मम अंतिए मुंडे भवित्ता ग्रगारा अणगारियं पव्वइए । तं जइ ताव तुभे मेहा ! तिरिक्खजोणियभावमुवगणं ग्रपडिलद्ध सम्मत्तरयणलंभेणं से पाए पाणाणुकंपयाए" भूयाणुकंपयाए जीवाणुकंपयाए सत्ताणुकंपयाए १. ना० १।१।१७८ । २. स० पा०- -निट्ठियं जाव विज्झायं । ३. सं० पा० - हत्थी जान छुहाए । ४. तया (घ ) । ५. ठाणुक्कडे (क); ठाणखंभे (घ ) । ६. रेवय ० ( क्व० ) ; एकस्यां हस्तलिखितवृत्तावपि 'रेवयगिरि' इति पाठो लभ्यते । वृत्तौ 'रययगिरि' पाठस्य पर्यालोचनमपि कृतमस्ति इह प्राग्भारः ईषदवनतखंड उपमानेनास्य महत्तयैव न वर्णतो रक्तत्वात् तस्य । वाचनान्तरे तु सित एवासाविति ( वृ) | ७. सं० पा० उज्जला जाव दाहवक्कंतीए । ८. ना० १।१।१८७। 8 निक्कंते ( ख ) । सं० पा० - पाणाणुकंपयाए जाव अंतरा । १० Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अझयणं (उक्वित्तणाए) अंतरा चेव संधारिए, नो चेव णं निक्खित्ते। किमंग पुण तुम मेहा ! इयाणि 'विपुलकुलसमुभवे णं निरुवहयसरीर-दंतलद्धपंचिदिए' णं एवं उढाण-बलवीरिय-पुरिसगार-परक्कमसंजुत्ते णं मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए समाणे समणाणं निग्गंथाणं राम्रो पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि वायणाए 'पुच्छणाए परियट्टणाए ° धम्माणुप्रोगचिंताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणाण य निग्गच्छमाणाण य हत्थसंघटणाणि य पायसंघट्टणाणि य' सीससंघट्टणाणि य पोट्टसंघट्टणाणि य कायसंघट्टणाणि य अोलंडणाणि य पोलंडणाणि य पाय-रय-रेणु-गुंडणाणि य नो सम्मं सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि ? मेहस्स जाइसरण-पदं १६०. तए णं तस्स मेहस्स अणगारस्स समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म सुभेहि परिणामेहि पसत्थेहिं अज्झवसाणेहि लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सण्णिपुव्वे जाईसरणे समुप्पण्णे, एयमटुं सम्मं अभिसमेइ ॥ मेहस्स समप्पणपुव्वं पुणो पव्वज्जा-पदं १६१. तए णं से मेहे कुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं संभारियपुव्वभवे दुगुणाणी यसंवेगे पाणंदसुपुण्णमुहे. हरिसवस- विसप्पमाण हियए ° धाराहयकलंबकं पिव समूससियरोमकूवे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीअज्जप्पभित्ती णं भंते ! मम दो अच्छीणि मोत्तूणं अवसेसे काए समणाणं निग्गंथाणं निसटे त्ति कटु पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी १. तुमे (क, ख, ग, घ)। ° पूव्वभवे (वपा); भगवती ११।१७२ २. विपुलकुलसमुद्भवे ण मित्यादौ णकारो सूत्रानुसारेण असौ वृत्तेः पाठभेदो मले वाक्यालंकारे (वृ)। स्वीकृतः। ३. पत्तलद्ध° (क, ख, ग, घ, वृपा)। ७. दुगणाणिय° (क, ख, ग, घ)। ४. सं० पा०–वायणाए जाव धम्माणुप्रोग- ८. आणंदयंसु° (ख, ग)। चिताए। ६. सं० पा०—हरिसवस। हरिसवसत्ति ५. सं० पा० --पायसंघटणाणि य जाव अनेन हरिसवसविसप्पमाणहियए त्ति द्रष्टव्यम रयरेणुगुंडणाणि । (व)। ६. 'पूवजाईसरणे (क, ख, ग, घ, वृ); १०. समूसविय (क, Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ इच्छामि णं भंते ! इयाणि दोच्चंपि सयमेव पव्वावियं सयमेव मुंडावियं' •सयमेव सेहावियं सयमेव सिक्खा वियं ° सयमेव आयार-गोयरं जायामाया वत्तियं धम्ममाइक्खियं । १६२. तए णं समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं सयमेव पव्वावेइ सयमेव मडावेइ सयमेव सेहावेइ सयमेव सिक्खावेइ सयमेव आयार-गोयर-विणय-वेणइय-चरणकरण ° -जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खइ--एवं देवाणुप्पिया ! गंतव्वं, एवं चिट्ठियन्वं, एवं निसीयव्वं, एवं तुयट्टियव्वं, एवं भुंजियव्वं एवं भासियव्वं एवं उट्ठाए' उट्ठाय पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमियव्वं ॥ १६३. तए णं से मेहे समणस्स भगवनो महावी रस्स अयमेयारूवं धम्मियं उवएसं सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता तह गच्छइ तह चिट्ठइ' 'तह निसीयइ तह तुयट्टइ तह भुंजइ तह भासइ तह उट्ठाए उट्ठाय पाणेहिं भूएहि जीवेहिं सत्तेहि ° संजमेणं संजमइ॥ मेहस्स निग्गंठचरिया-पदं १६४. तए णं से मेहे अणगारे जाए-इरियासमिए •भासासमिए एसणासमिए आयाण भंड-मत्त-णिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिद्वावणियासमिए मणसमिए वइसमिए कायसमिए मणगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गत्तबंभयारी चाई लज्ज धन्ने खंतिखमे जिइंदिए सोहिए अणियाणे अप्पस्सए अबहिल्लेसे सुसामण्णरए दंते इणमेव निग्गंथं पावयण पुरोकाउं विहरति । १६५. तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवनो महावीरस्स 'तहारूवाणं थेराणं अंतिए" सामाइयमाइयाई ‘एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहहिं छट्टट्ठमदसमदुवालसेहिं मासद्ध मासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ मेहस्स भिक्खुपडिमा-पदं १६६. तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहायो नयरानो गुणसिलयानो चेइयानो पडिणिक्खमइ, पडिणिवखमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। १. सं० पा०-मंडावियं जाव सयमेव । इति विशेषणं नास्ति । २. ० उत्तियं (क, ख, ग, घ)। ८. अंतिए तहारूवाणं थेराणं (क, ख, ग, घ)। ३. ° माइक्विउं (क, ग, घ)। अत्र लेखने 'अंतिए' पदस्य विपर्ययो जातः ४. सं० पा०-पव्वावेइ जाव जायामाया- इति संभाव्यते। (१।१।२०८) सूत्रे पि वत्तियं । स्वीकृतपाठवत् पाठो लभ्यते५. उट्ठाय (क, ग, घ)। ६. ० माइयाणि (क, ग); सामातियमाइयाणि ६. सं० पा०--चिट्ठइ जाव संजमेणं । ७. सं० पा० --अणगार-वण्णग्रो भाणियब्वो। १०. ० अंगाति (ख); एक्कारसंगाई (घ)। वत्तावयं पाठः उल्लिखितोस्ति, तत्र 'दंते' ११. ० खवणेहि (ख)। पू०–ना० १११।२०१। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : पढमं अभयणं (उत्तिणाए ) ६७ १६७. तए णं से मेहे अणगारे ग्रण्णया कयाइ समण भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहि प्रब्भणुण्णाए माणे मासि भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । ग्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि || १६८. तए णं से मेहे अणगारे समणेण भगवया महावीरेणं प्रब्भणुण्णाए' समाणे मासि भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता गं विहरइ | मासिय भिक्खुपडिमं 'ग्रहासुतं महाकप्पं ग्रहामग्गं सम्मं कारणं फासेइ पाइ सोइ तीरे किट्टेइ, सम्मं कारणं फासेत्ता पालेत्ता सोभेत्ता तीरेत्ता कित्ता पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं प्रब्भणुण्णाए समाणे दोमासिय भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । ग्रहासुहं देवाप्पिया ! मा पडिबंध करेहि । जहा पढाए ग्रभिलावो तहा दोच्चाए तच्चाए चउत्थाए पंचमाए छम्मासियाए सत्तमासियाए पढमसत्तराइंदियाए दोच्चसत्तराइंदियाए। तच्च सत्तराइंदियाए होराइया' एगराइयाए' वि ॥ मेहस्य गुणरयणसंव च्छर-पदं १६६. तणं से मेहे अणगारे बारस भिक्खुपडिमाओ सम्मं कारणं फासेत्ता पालेत्ता सत्ता तीरेत्ता कित्ता पुणरवि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासीइच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं प्रभणुण्णाए समाणे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । हासू देवाप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ २००. तणं से मेहे अणगारे पढमं मासं चउत्थं चउत्थेणं प्रणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे श्रायावणभूमीए आयावेमाणे, रतिं वीरासणेणं ग्रवाउडएणं । दोच्चं मासं छट्ठ-छट्टेणं प्रणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुकुडु सूराभिमु प्रायावणभूमीए आायात्रेमाणे, रतिं वीरासणेणं प्रवाउडएणं । तच्चं मासं अट्ठमं-ग्रट्ठमेणं प्रणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिश्रावणभूमी यावेमाणे, रति वीरासणेणं श्रवाउडएणं । १. अण्णा ( ग ) । २. स्थानाङ्ग (७।१३) एवं पाठो लभ्यते- अहाअत्थं अहातच्चं अहामगं अहा अहाकप्पं । ३. दोच्चा ० ( ख ) ; बीया ० (घ ) । ४, तच्चा ० ( ख ) ; तीया° (घ) | ५. अहोरा इंदियाए (ख, घ ) । ६. एगराइदियाए ( ग, घ ) । ७. अवाउडतेण ( ख ) ; अवाउडेणं (घ ) ; प्रावृतेन अविद्यमानप्रावरणेन । स एव वा अप्रावृतः णंकारस्त्वलंकारार्थः (वृ) । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मक हाओ चउत्थं मासं दस-दस मेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमु श्रयावणभूमीए श्रायावेमाणे, रति वीरासणेणं श्रवाउडएणं । पंचमं मासं दुवालसमं दुवालसमेणं प्रणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिप्रायावणभूमीए प्रायावेमाणे, रति वीरासणेणं श्रवाउडएणं । एवं एएवं अभिलावेणं छट्ठे चोदसमं चोद्दसमेणं, सत्तमे सोलसमं - सोलसमेणं, अट्टमे अट्ठारसमं अट्ठारसमेणं, नवमे वीस इमं - वीसइमेणं, दसमे बावीस इमं - बावीसइमेणं, एक्कारसमे चउव्वीसइमं चउव्वीसइमेणं, बारसमे छव्वीसइमछवी सइमेणं, तेरसमे अट्ठावीस इमं अट्ठावीसइमेणं, चोइसमे तीसइमं - तीसइमेणं, पंचदसमे बत्तीसइमं - बत्तीसइमेणं, सोलसमे चउत्तीसइमं चउत्तीसइमेणं - प्रणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडुए सुराभिमुहे प्रायावणभूमीए आयावेमाणे, वीरासणेण' प्रवाउडएण य ॥ २०१. तणं से मेहे अणगारे गुण रयणसंवच्छरं तवोकम्मं ग्रहासुत्त ग्रहाकप्पं ग्रहामग्गं॰ सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोभेइ तीरेइ किट्टेइ ग्रहासुत्तं ग्रहाकष्प ●ग्रहाग्गं सम्मं काएणं फासेत्ता पालेत्ता सोभेत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता बहूहिं छट्टट्टमदसमदुवालसेहि मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं ग्रप्पाणं भावेमाणे विहरइ || मेहस्स सरीरदसा-पदं २०२. तए णं से मेहे अणगारे तेणं 'प्रोरालेणं' विपुलेणं सस्सिरीएणं पयत्तेणं पग्गहिएणं' कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं उदग्गेणं उदारेणं उत्तमेणं महाणुभावेणं तवम्मेणं सुक्के लक्खे' निम्मंसे किडकिडियाभूए श्रचिम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था - जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामि त्ति गिलाइ । से जहानामए इंगालसगडिया इ वा कट्टसगडिया इवा पत्तसगडिया इ वा तिलंडासगडिया इवा एरंडसगडिया' इ वा" उन्हे दिन्ना सुक्का " समाणी ६८ १. वीरासणेण य ( क, ख, ग ) । २. सं० पा०-- अहासुतं जाव सम्मं । ३. सं० पा० - अहाकप्पं जाव किट्टेत्ता । ४. उरालेणं (ख, ग, घ ) । ५. परिग्ाहिए ( क, ख ) । पदानि अधिकानि विपर्ययं प्राप्तानि च वर्तन्ते यथा - ओरालेणं विउलेण पयत्तेणं पग्गहिए कल्ला सिवेण घणण मंगल्लेणं सस्सिरिएणं उदग्गेणं उदत्तेण उत्तमेणं उदारेणं महाणुभागेणं । से जहा नामए कट्टसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा पत्ततिलभंडसगडिया इ वा एरंडक सगडिया इ वा इंगालसगडिया इ वा । ६. भुक्खे (क, ग, घ ) : ७. तिलसगडिया ( ग ) । ८. एरंडक सगडिया ( ख ) । ६. भगवती (२1१) सूत्रे स्कन्दकवर्ण के कानिचित् १०. सुक्खा ( ख, ग ) । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (उक्खित्तणाए) ससई गच्छइ, ससई चिट्ठइ, एवामेव मेहे अणगारे ससई गच्छइ, ससदं चिट्टइ, उवचिए तवेणं, अवचिए मंससोणिएणं, यासणे इव भासरासिपरिच्छन्ने तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे-उवसोभेमाणे चिट्ठइ ।। मेहस्स विपुल पव्वए अणसण-पदं २०३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे जाव' पुव्वाणपुवि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिहे नयरे जेणामेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं योगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। २०४. तए णं तस्स मेहस्स अणगारस्स राम्रो पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए' 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था—एवं खलु अहं इमेणं अोरालेण विपुलेणं सस्सिरीएणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं उदग्गेणं उदारेणं उत्तमेणं महाणुभावेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे किडिकिडियाभूए अट्ठिचम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था--जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवेणं चिट्टामि, भासं भासित्ता गिलामि, भासं भासमाणे गिलामि °, भासं भासिस्सामि त्ति गिलामि । तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसकार'-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पूरिसकार'-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, ताव ता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणण्णायस्स समाणस्स सयमेव पंच महव्वयाई प्रारुहित्ता गोयमादीए समणे निग्गंथे निग्गंथीयो य खामेत्ता तहारूवेहि कडाईहि थेरेहिं सद्धि विउल पव्वयं सणिय-सणियं दुरुहित्ता सयमेव मेहघणसण्णिगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहित्ता संलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स पाअोवगयस्स कालं प्रणवकखमाणस्स विहरित्तए–एवं संपहेइ, संपहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव समणे भगवं १. ओ०१६। २. सं० पा०–अज्झथिए जाव समुप्पज्जिस्था। ३. सं० पा०-उरालेणं तहेव जाव भासं । ४. तामेव (ख, ग)। ५. पुरिसक्कार (क, घ)। ६. पुरिसगार (क)। ७. ताव (क, ग, घ); तावताव (वृ)। ८. ना० १११२४ । ६. जलते सूरिए (ख, ग)। १०. ना० १२११२४ । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ છ मायाम्म हाओ महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो यहि-पायाहि करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता नच्चासणे नाइदूरे सुस्समाणे नमसमाणे ग्रभिमुहे विणणं पंजलिउडे पज्जुवासइ ॥ २०५. 'मेहा इ !” समणे भगवं महावीरे मेहं अणगारं एवं वयासी से नूणं तव मेहा ! राम्रो पुत्र्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूत्रे अज्झत्थिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकम्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु श्रहं इमेणं प्रांरालेणं तत्रोकम्मेणं सुक्के जाव' जेणेव इहं तेणेव हव्व मागए । से नूणं मेहा ! श्रट्टे समट्ठे ? हंता अत्थि । ग्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि || २०६. तए णं से मेहे ग्रणगारे समणेण भगवया महावीरेण ग्रब्भणुण्णाए समाणे - चित्तमादिए जाव हरिसवस विसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो ग्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदिता नमसित्ता सयमेव पंच महत्वयाई ग्रारुहेड, ग्रारुहेत्ता गोयमादोए समणे निग्ये निग्गंथी य खामेइ, खामेत्ता तहारूवेहिं कडादोहि थेरेहिं सद्धि विपुलं पव्वयं सनियं-सणियं दुरुहइ, दुरुहित्ता सयमेव मेहघणसण्णिगासं " पुढविसिलापट्ट पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दव्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दव्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंक निसणे करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - नमोत्थु णं ग्ररहंताणं जाव" सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्यु णं समणस्स जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स । वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे भगवं तत्थगए इयं ति कट्टु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - पुव्विपि य णं मए समणस्स भगवत्रो महावीरस्स अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए, मुसावादिण्णादा मेहुणे परिग्गहे कोहे माणे माया लोहे पेज्जे दोसे कलहे १. पंजलियडे (ख); अंजलियडे (घ ) । २. मेहति ( ख ) ; मेघाइ (घ ) । ३. सं० पा० - अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था । ४. ना० - १११।२०४ | ५. पू० ना० १।१।२०४ | ६. अत्र १।१।२०४ सूत्रस्य 'जेणेव समणे भगवं महावीरे' अतः पूर्ववर्ती पाठ: समर्पितोस्ति । o ७. ना० १।१।१६ । ८. आरुभेइ ( ख ) ; आरुहति (घ ) । ६. गोयमादि (क, ख, ग, घ ) । १०. अतो १५८३ सूत्रे 'देवसण्णिवायं' इति पदं विद्यते । ११. ओ० सू० २१ । Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (उक्खिसणाए) अब्भक्खाणे पेसुण्णे परपरिवाए अरइरई मायामोसे मिच्छादसणसल्लेपच्चक्खाए। इयाणि पि णं अहं तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि, सव्वं असण-पाण-खाइम-साइमं चउव्विहंपि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए। जपि य इमं सरीरं इटुं कंतं पियं' 'मणुण्णं मणामं थेज्ज वेस्सासियं सम्मयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं मा णं सीयं मा णं उण्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला मा णं दंसा मा णं मसया मा णं वाइय-पित्तियसेंभिय-सण्णिवाइय' • विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा 'फुसंतीति कट्ट' एयं पि य णं चरमेहि ऊसास-नीसासेहिं वोसिरामि त्ति कटु संलेहणाअसणा-झूसिए' भत्तपाण - पडियाइक्खिए पाप्रोवगए कालं अणवकंखमाणे विहरइ॥ २०७. तए णं ते थेरा भगवंतो मेहस्स अणगारस्स अगिलाए वेयावडियं करेंति ।। मेहस्स समाहिमरण-पदं तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवनो महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारसग्रंगाई अहिज्जित्ता, बहुपडिपुण्णाई दुवालसवरिसाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेएत्ता, पालोइय-पडिक्कते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते अणुपुवेणं कालगए॥ थेरेहि मेहस्स पायारभंडसमप्पण-पदं २०६. तए णं ते थेरा भगवंतो मेहं अणगारं अणुपुव्वेणं कालगयं पासंति, पासित्ता परिनेव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, करेत्ता मेहस्स आयारभंडगं गेहंति, विउलाओ पव्वयानो सणियं-सणियं 'पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता" जेणामेव गुणसिलए चेइए, जेणामेव समणे भगवं महावीरे, तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं १. सं० पा०—पियं जाव विविहा । २. इह प्रथमाबवचनलोपो दृश्यः (भ० वृ)। ३. फुसंति चिट्ठति (ग, घ)। ४. एवं (क, ख, ग, घ)। ५. चरिमेहिं (घ)। ६. संलेखनास्पर्शकः (वृ); संलेहणाभूसणाभूसिए (वृपा)। ७. सामाइयाई (ख)। ८. परिनिव्वाणवत्तियं (ख, घ): परिनिव्वाण पत्तियं (ग)। ६. पच्चोरुभंति २ (क)। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ नायाधम्मकहानी वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी मेहे नामं अणगारे पगइभद्दए' •पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपण्णे अल्लीणे ० विणीए से णं देवाणप्पिएहि अबभणण्णाए समाण गोयमाइए समणे निग्गंथे निग्गंथीयो य खामेत्ता अम्हेहिं सद्धि विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहइ, सयमेवमेघघणसण्णिगासं पुढविसिलं पडिलेहेइ, भत्तपाण-पडियाइक्खिए अणुपुव्वेणं कालगए। एस णं देवाणुप्पिया ! मेहस्स अणगारस्स पायारभंडए । गोयमपुच्छाए भगवनो उत्तर-पदं २१०. भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी मेहे नाम अणगारे से णं भंते ! मेहे अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए ? कहि उववण्णे ? । गोयमा ! इसमणे भगवं महावीरे गोयमं एवं वयासी-एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी मेहे नामं अणगारे पगइभद्दए जाव' विणीए, से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइं अहिज्जित्ता, वारस भिक्खपडिमानो गुणरयण-संवच्छरं तवोकम्म काएणं फासेत्ता जाव किट्टेत्ता, मए अभणुण्णाए समाणे गोयमाइ थेरे खामेत्ता, तहारूवेहि कडादीहिं थेरेहि सद्धि विपुलं पव्वयं [ सणियं-सणियं ? ] दुरुहित्ता', दब्भसंथारगं, संथरित्ता दव्भसंथारोवगए सयमेव पंचमहव्वए उच्चारेत्ता, बारस वासाइं सामण्णपरि यागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सट्टि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता पालोइय-पडिक्कते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणाई बहूई जोयणसयाई बहुइं जोयणसहस्साई वहुई जोयणसयसहस्साइं बहूयो जोयणकोडीयो बहनो जोयणकोडाकोडीग्रो उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिद-बंभ-१० लंतग-महासुक्क-सहस्साराणय-पाणयारणच्चुए तिण्णि य अट्ठारसुत्तरे गेवेज्जविमाणवाससए वीईवइत्ता विजए महाविमाणे देवत्ताए उववण्णे। १. सं० पा०-पगइभद्दए जाव विणीए। ६. सामाझ्याइं (ख)। २. प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ 'अल्लीणे' इत्यस्य अनन्तरं ७. ना० १११।२०१। ___'भद्दए' इति पाठोरित। ८. सं० पा०-तहारूवेहिं जाव विपुलं । ३. अत्र पुनर्लेखने अपूर्णो पाठोस्ति । अस्य ६. अत्र पुनर्लेखने अपूर्णो पाठोस्ति । अस्य पूर्तये द्रष्टव्यं १।१।२०६ सूत्रम् । पूर्तये द्रष्टव्यं १३११२०६ सूत्रम् । ४. दि (क, ख, ग, घ)। १०. बंभलोक (घ)। ५. न.० १।१।२०६। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अभयणं (उक्खित्तणाए) तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवागं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं मेहस्स वि देवस्स तेत्तीस सागरोवमाइं ठिई ॥ २१२. एस णं भंते ! मेहे देवे तानो देवलोयाग्रो पाउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिड ? कहि उववज्जिहिड? । गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ । निक्खेव-पदं २१३. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं जाव' सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं अप्पोलंभ-निमित्तं पढमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । -त्ति बेमि। वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा महुरेहि निउणेहि, वयहि चोययंति आयरिया। सीसे कहिंचि खलिए, जह मेहमुणि महावीरो ॥१॥ १. X (क, ख, ग)। २. ना० १।१७। ३. अप्पोपालंभ (क्व०); एकस्यां वृत्तिप्रतावपि 'अप्पोपालंभ' इति लिखितमस्ति । Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं संघाडे उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं पढमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, वितियस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था -- वण्णयो । ३. तस्स णं रायगिहस्स नय रस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गुणसिलए नामं चेइए होत्था–वण्णो ' । ४. तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महं एगं जिण्णुज्जाणे यावि होत्था--विणट्ठदेवउल-परिसडियतोरणघरे नाणाविहगुच्छ-गुम्म-लया-वल्लि वच्छच्छाइए' अणेग-वालसय-संकणिज्जे यावि होत्था ॥ ५. तस्स णं जिण्णुज्जाणस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे भग्गकवे यावि होत्था । तस्स णं भग्गकूवस्स अदूरसामते, एत्थ णं महं एगे मालुयाकच्छए यावि होत्था ---किण्हे किण्होभासे जाव' रम्मे महामेहनिउरंबभूए' बहूहिं रुक्वेहि य गुच्छेहि य गुम्महि य लयाहि य वल्लीहि य तणेहि य कुसेहि य खण्णुएहि य संछण्णे पलिच्छण्णे अंतो झुसिरे बाहि गंभीरे अणेग-बालसय-संकणिज्जे यावि होत्था । १. नगरवण्णओ (क, ग); नगरस्सवण्णओ (ग); ७. ओ० सू० ४। ओ• सू०१। ८. वाचनान्तरे त्विदमधिकं पठ्यते-पत्तिए २. तत्थ (ग)। पुप्फिए फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए ३. ओ० सू० २-१३ । अईव-अईव उवसोभेमाणे चिट्ठ इ (वृ) । ४. विणट्ठदेव उले (ख, घ)। ६. कुसएहि (क); कुविएहि (वृपा) । ५. °च्छातिए (ग)। १०. खाणुएहि (ख); खत्तएहि (घ, वृपा)। ६. कूवए (क, ख, ग)। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौयं अज्झयणं (संघाडे) धणसत्थवाह-पदं ७. तत्थ णं रायगिहे नयरे धणे नामं सत्थवाहे --अड्ढे दित्ते वित्थिण्ण-विउल भवण-सयणासण-जाण-वाहणाइण्णे बहुदासो-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूए बहुधण-बहुजायरूवरयए अायोग-पयोग-संपउत्ते विच्छड्डिय -विउल-भत्तपाणे ।। तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स भद्दा नाम भारिया होत्था-सुकुमालपाणिपाया अहीणपडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुम्माण-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगी ससिसोमागार-कंत-पियदसणा सुरूवा करयलपरिमिय-तिवलिय-वलियमझा कुडलुल्लिहियगंडलेहा कोमुइ-रयणियरपडिपुण्ण-सोमवयणा सिंगारागार-चारुवेसा'संगय-गय-हसिय-भणिय-विहियविलास-सललिय-संलाव-निउण-जुत्तोवयार-कुसला पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा वंझा अवियाउरी जाणुकोप्परमाया यादि होत्था ।। तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स पंथए नाम दासचेडे होत्था--सव्वंगसुंदरंगे मंसो वचिए वालकीलावणकुसले यावि होत्था ।। १०. तए णं से धणे सत्थवाहे रायगिहे नयरे बहूणं नगर-निगम-सेट्ठि-सत्थवाहाणं अटारसण्ह य सेणिप्पसेणीणं बहसु कज्जसु य कुडुबेसु य मंतेसु य जाव' चक्खुभूए यावि होत्था। नियगस्स वि य णं कुडुवस्स बहूसु कज्जेसु य जाव चक्खुभूए यावि होत्था ॥ विजयतक्कर-पदं ११. तत्थ णं रायगिहे नयरे विजए नाम तक्करे होत्था-पावचंडाल-रूवे भीमतररुद्द कम्मे आरुसिय-दित्त-रत्तनयणे२ खरफरुस-महल्ल-विगय-बीभच्छदाढिए असंपुडियउटे उद्धय-पइण्ण-लंवंतमुद्धए भमर-राहुवण्ण निरणुक्कोसे निरणुतावे दारुण पइभए निसंसइए“ निरणुकंपे अहीव एगंतदिट्ठीए खुरेव एगंतधाराए गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे अग्गिमिव सव्वभक्खी जलमिव सव्वग्गाही उक्कंचणवंचण-माया-नियडि-कूड कवड-साइ-संपयोग-बहुले चिरनगरविणठ्ठ-दुट्ठसीलायार १. सं० पा०—दित्ते जाव विउलभत्तपाणे । २. विच्छिन्न (ओ० सू० १४) । ३. पउर (ओ० सू० १४)। ४. सुभद्दा (ख)। ५. पसत्थ-तिवली (ओ० सू० १५) । ६. मज्झा (क, ख, घ)। ७. रयणियर-विमल (१११।१७)। ८. सोमचंदवयणा (ग)। ६. सं० पा०-चारुवेसा जाव पडिरूवा । १०. नियम (क, ग)। ११. ना० १।१।१६ । १२. रत्तयनयणे (क)। १३. पतिभते (ग)। १४. नेसंसत्तिए (ख); निसंसे (बृपा)। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाम्महाश्री चरिते जूयप्पसंगी मज्जप्पसंगी भोज्जप्पसंगी मंसप्पसंगी दारुणे हिययदारए साहसिए संधिच्छेयए उवहिए विस्संभवाई ग्रालीवग'- तित्थनेय-लहुहत्थसंपउत्ते परस्स दव्वहरणम्मि निच्चं ग्रणुबद्धे तिब्ववेरे रायगिहस्स नगरस्स बहूणि अइगमणाणि य निगमणाणि य वाराणि य श्रववाराणि य छिंडीग्रो य खंडीय नगरनिद्धमाणि संवट्टणाणि य निव्वट्टणाणि य जूयखलयाणि य पाणागाराणि सागाराणि य तक्करद्वाणाणि य तक्करघराणि यसिंघाडगाणि य तिगाणि य चक्काणि य चच्चराणि य नागघराणि य भूयघराणि य जक्खदेउलागि य सभाणि य पवाणि य पणियसालाणि य सुन्नघराणि य आभोएमाणे सगमाणे गवेसमाणे, बहुजणस्स छिद्देसु य विसमेसु य विहुरेसु य वसणेसु य प्रभुदासु य उत्सवेसु यपसवेसु य तिहोसु य छणेसु य जण्णेसु य पव्वणीसु य मत्तपमत्तस्स य वक्त्तिस्स य वाउलस्स य सुहियस्स य दुहियस्सय विदेसत्यस्स य faप्aसियस् य मग्गं च छिदं च विरहं च अंतरं च मग्गमाणे गवेसमाणे एवं च णं विहरइ । वहिया वि य णं रायगिहस्स नगरस्स ग्रारामेसु य उज्जाणेसु य वावि- पोक्खरणि दीहिय-गुंजालिय- सर-सरपंतिय सरसरपंतियासु य जिष्णुज्जाणेसु य भग्गकूत्रेसु य मालुयाकच्छएतु य सुसाणे य 'गिरिकंदरेसु य लेणेसु य" उवद्वाणेसु य बहुजणस्स छिद्देसु य जाव प्रतरं च मग्गमाणे गवेसमाणे एवं च णं विहरइ ॥ भद्दा संताणमणोरह-पदं O १२. तए णं तीसे भद्दाए भारियाए ग्रण्णया कयाइ पुत्र्वरत्तावरत्तकालसमयं सि कुडुंब जागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे प्रज्भथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था --- ग्रहं धणेणं सत्थवाहेणं सद्धि बहूणि वासाणि सद्द - फरिस-रस-गंध-रूवाणि माणुस्सगाई कामभोगाई पच्चणुब्भवमाणी विहरामि, नो चेवणं श्रहं दारगं वा दारियं वा पयामि 1 तं धण्णा णं ताम्रो अम्मयाश्रो", "संपुण्णाओ णं ताथो अम्मयाश्रो, कयत्थाओ णं ताम्रो अम्मयाश्रो, कयपुण्णाओ णं ताम्रो ग्रम्मयात्रो, कलक्खणा १. जगहियाकारए (वृपा) । २. आलियग (क, ख ) । ३. विहरे ( क, ख, घ) । ४. विहरं ( ख, ग ) । ५. भग्गकुवएसु (क, ख, घ । ६. ० लेणेसु य देवउलेसु य ( क ); गिरिकंदर लेण ( ख, ग, घ ) । ७. सं० पा० - अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था | ८. X ( क, ग, घ ) । ९. दारिगं (क 1 १०. पयायामि ( ग ) | ११. सं० पा० - अम्मयाओ जाव सुद्धे । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं (संघाडे) ७७ णं तानो अम्मयाओ, कयविहवानो णं तानो अम्मयायो, • सुलद्धे णं माणुस्सए जम्मजीवियफले तासि अम्मयाणं, जासिं मण्णे नियगकुच्छिसंभूयाई थणदुद्ध-लुद्धयाई महुरसमुल्लावगाइं मम्मणपयं पियाइं थणमूला कक्खदेसभागं अभिसरमाणाई मुद्धयाइं थणयं पियंति, तनो य कोमलकमलोवमेहि हत्येहिं गिहिऊणं उच्छंग'-निवेसियाणि देति समुल्लावए पिए सुमहुरे पुणोपुणो मंजुलप्पणिए। 'तं णं अहं' अधण्णा अपुण्णा अकयलक्खणा एत्तो एगमवि न पत्ता । तं सेयं मम कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते धणं सत्थवाहं आपुच्छित्ता धणेणं सत्थवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी सुबहुं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता सुबहुं पुप्फ-वत्थ'-गंध-मल्लालंकारं गहाय बहूहि मित्तनाइ-नियग सयण संबंधि-परियण-महिलाहिं सद्धि संपरिवुडा जाइं इमाई रायगिहस्स नयरस्स बहिया नागाणि य भूयाणि य जक्खाणि य इंदाणि य खंदाणि य रुहाणि य शिवाणि य वेसमणाणि य, तत्थ णं बहणं नागपडिमाण य जाव वेसमणपडिमाण य महरिहं पुप्फच्चणियं करेत्ता जन्नुपायपडियाए एवं वइत्तए......जइ ह देवाणुप्पिया ! दारगं वा दारियं वा पयामि", 'तो णं'१ अहं तूब्भं जायं च दायं च भायं च अक्खयणिहि च अणवड्ढेमि त्ति कट्ट उवाश्यं उया इत्तए..... एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणोए जाव" उद्रियस्मि सूरे सहर सररिराश्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणामेव धणे सत्थवाहे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासीएवं खलु अहं देवाण प्पिया ! तुब्भेहिं सद्धि बहुइं वासाइं सह-फरिस-रसगंध-रूवाई माणुस्सगाई कामभोगाइं पच्चणुब्भवमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि। तं धण्णाप्रो णं तानो अम्मयाो जाव कोमलकमलोवमेहि हत्येहि गिहिऊणं उच्छंग-निवेसियाणि ° देति समुल्लावए १. थणमूो (क)। ६. ना० १११।२४ । २. अइसर ° (ख, ग)। ७. X (ख, ग, घ)। ३. 'अंतगड' सूत्रे (३।८।२६) 'मुद्धयाइ पुणो ८. उवा इत्तए (क)। य' इतिपाठोऽस्ति । तद्वृत्तिकृता मुग्धकानि- १. ण अहं (घ)।। अत्यव्यक्तविज्ञानानि भवन्तीति गम्यते, १०. पयायामि (क, ग)। इति क्रियाया अध्याहारः कृतः । ११. तेणं (क, ख, ग)। 'निरयावलियाओ' सूत्रे (३।४) 'पण्यति १२. उववाइत्तए (क)। पुणो य' इति पाठो विद्यते । १३. ना० १११।२४ । ४. उच्छगे (क, ख)। १४. सं० पा०-वासाई जाव देंति । ५. अहं णं (क, ख, ग)। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ नायाधम्मकहानो १४. सुमहुरे पिए पुणो-पुणो मंजुलप्पभणिए। तं णं अहं अहण्णा अपुण्णा अकयलक्खणा एत्तो एगमवि न पत्ता। तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! तुब्भेहि अब्भणण्णाया समाणो विपुलं असणं 'पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता जाव अक्खयणिहिं च ° अणुवड्ढेमि उवाइयं करित्तए॥ १३. तए णं धणे सत्थवाहे भई भारियं एवं वयासी-- ममं पि य णं देवाणुप्पिए ! एस चेव मणो रहे-'कहं णं तुमं दारगं वा दारियं वा पयाएज्जासि ?--भद्दाए सत्थवाहीए एयमढे अणुजाणइ ।। तए णं सा भद्दा सत्थवाही धणेणं सत्थवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी हदुतुटुचित्तमाणंदिया जाव' हरिसवस-विसप्पमाण-हियया विपुलं असण-पाण-खाइमसाइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता सुबहुं पुप्फ-वत्थ'-गंधमल्लालंकारं गेण्हइ, गेण्हित्ता सयाग्रो गिहाम्रो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता रायगिहं नयरं मझमझणं निग्गच्छड. निग्गच्छित्ता जेणेव पोखरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुक्खरिणीए तीरे सुवहं पुप्फ- वत्थ-गंध मल्लालंकारं ठवेइ, ठवेत्ता पुक्ख रिणि प्रोगाहेइ, प्रोगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलकीडं करेइ, करेत्ता व्हाया कयबलिकम्मा उल्लपडसाडिगा जाइं तत्थ उप्पलाई 'पउमाइं कुमुयाई णलिणाइं सुभगाइं सोगंधियाइं पोंडरीयाइं महापोंडरीयाइं सयवत्ताई सहस्सपत्ताइं ताइं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुक्खरिणीयो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता तं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लं [मल्लालंकारं ? ] गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणाभेव नागघरए य जाव' वेसमणघरए य तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तत्थ णं नागपडिमाण य जाव" वेसमणपडिमाण य आलोए पणामं करेइ. ईसि पच्चण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता नागपडिमाओ य जाव वेसमणपडिमानो य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता उदगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता पम्हल-सूमालाए गंधकासाईए गायाइं लूहेइ, लूहेत्ता महरिहं 'वत्थारुहणं च मल्लारुणं च गंधारुहणं च वण्णारहणं'१२ च करेइ, करेत्ता धूवं डहइ, डहित्ता जन्नुपायपडिया पंजलिउडा एवं वयासी १. सं० पा०-असणं जाव अणुवड्ढेमि। २. मम (ग)। ३. कहण्णं (क, घ); कह णं (ख)। ४. ना० १।१।१६। ५. X (ख, ग, घ)। ६. स० पा०-पुप्फ जाव मल्लालंकारं। ७. सं० पा०-उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई। ८. ना० १।२।१२। ६. तेणेव (क, ख, ग, घ)। १०. ना० १।२।१२। ११. हत्थेणं (ख, ग, घ)। १२. रायपसेणइय (२६१) सूत्रे असौ पाठः किंचिद् भेदेन लभ्यते--पुप्फारुहणं मल्लारुहणं चुण्णारहणं वत्थारुहणं आभरणारुहणं । Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं (संघाडे) जइ णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि तो णं अहं जायं च' दायं च भायं च अक्खयणिहिं च ° अणुवड्ढेमि त्ति कटु उवाइय करेइ, करेत्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं विपुलं असण-पाण-खाइमसाइमं आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी एवं च णं° विहरइ। जिमिय' भुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परम° सुइभूया जेणेव सए गिहे तेणेव उवागया ।। १५. अदुत्तरं च णं भद्दा सत्थवाही चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु विपुलं असण पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेइ, उवक्खडेत्ता बहवे नागा य जाव' वेसमणा य उवायमाणी नमसमाणी जाव एवं च णं विहरइ ।। भद्दाए देवदिन्न-पुत्तपसव-पदं १६. तए णं सा भद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ केणइ कालंतरेणं आवण्णसत्ता जाया यावि होत्था॥ १७. तए णं तीसे भद्दाए सत्थवाहीए [तस्स गब्भस्स ? ] दोसु मासेसु वीइक्कतेसु तइए मासे वट्टमाणे इमेयारूवे दोहले पाउन्भूए-धण्णानो णं तानो अम्मयानो जाव' कयलक्खणाश्रो णं तानो अम्मयायो, जागो णं विउलं असणं पाणं खाइम साइमं सुबहुयं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियण-महिलियाहिं सद्धि संपरिवुडायो रायगिहं नयरं मज्झमज्झणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता पोखरिणि प्रोगाहेति, प्रोगाहित्ता ण्हायाप्रो कयबलिकम्माप्रो सव्वालंकारविभूसियाओ विपुलं असणं पाणं खाइमं साइम आसाएमाणीयो विसाएमाणीग्रो परिभाएमाणीयो० परिभुजेमाणीयो दोहलं विणेति-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव" उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव धण सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणं सत्थवाहं एवं वयासी—एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम तस्स गब्भस्स" १. सं० पा०-जायं च जाव अणुवड्ढेमि । गब्भस्स' इति पाठोस्ति। तेनात्रापि 'तस्स २. सं० पा०-आसएमाणी जाव विहरइ । गब्भस्स' इति पाठो युज्यते । ३. सं० पा०-जिमिय जाव सुइभूया। ७ ना० ११२।१२। ४. ना० ११२।१२। ८. १।२।१२ सूत्रे 'महिलाहिं' पाठो विद्यते । ५. कयाइं (क)। ६. सं० पा०-आसाएमाणीओ जाव परिभंजे६. १।१।३३ सूत्रे 'तइए मासे वट्टमाणे तस्स माणीग्रो। गब्भस्स दोहलकालसमयसि' इति पाठो १०. ना० १११।२४ । विद्यते । प्रस्तुत सूत्रे पि किंचिदग्रे 'तस्स ११. सं० पा०-गब्भस्स जाव विणेति । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ . नायाधम्मकहानो •दोसु मासेसु वीइक्कतेसु तइए मासे वट्टमाणे इमेयारूवे दोहले पाउन्भूए--- धण्णासो णं तारो अम्मयानो जाव दोहलं ° विणेति । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी' •विउलं असणं पाणं खाइमं साइम सुबहुयं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय जाव दोहलं° विणित्तए। अहासहं देवाणप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि॥ १८. तए णं सा भद्दा धणेणं सत्थवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी हट्टतुट्ठ-चित्तमाणं दिया जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियया विपुलं 'असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता जाव धूवं करेइ, करेत्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ॥ १६. तए णं तानो मित्त-नाइ'- नियग-सयण-संबंधि-परियण ° -नगरमहिलानो भदं सत्थवाहिं सव्वालंकारविभूसियं करेंति ।। २०. तए णं सा भद्दा सत्थवाही ताहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-'परियण नगरमहिलियाहिं' सद्धि तं विपुलं असणं 'पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी° परिभुजेमाणी दोहलं विणेइ, विणेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया । २१. तए णं सा भद्दा सत्थवाही संपुण्णदोहला जाव तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ ।। २२. तए णं सा भद्दा सत्थवाही नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य राइं दियाणं वीइक्कंताणं सुकुमालपाणिपायं जाव' दारगं पयाया। २३. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जायकम्मं करेंति, तहेव जाव" १. सं० पा०-समाणी जाव विहरित्तए (क, एतेषु त्रिप्वपि स्थानेषु पाठस्य समानता ख, ग, घ); यद्यपि पाठसंशोधनप्रयुक्तेषु युज्यते, किन्तु दोहदस्य पूर्तिविषयक: पाटसर्वेष्वपि आदर्शेषु "विहरित्तए' इति पाठो स्ततो भिन्नोस्ति । अत्र अनेकधा जाय शब्द: लभ्यते किन्तु अर्थमीमांसया नासौ समीचीन: प्रयुक्तोस्ति। तदनुसारेण पाठपूरणे 'पणामं प्रतिभाति । नास्य केनापि पाठेन पूर्तिर्जायते। करेइ' इत्यस्य पदस्य द्विधा प्रयोगो जायते, सभवतो लिपिदोषेण 'विणित्तए' इत्यस्य किन्तु प्रतिप्रामाण्यात अनन्यगतिकरस्माभिर'विहरित्तए' इति रूपेण परिवर्तनं जातम् । न्याधाराभावेन यथा लब्ध एव पाठः स्वीकृतः। एतस्य पाठस्य स्वीकारेऽप्य पूतिरपि जायते। ५. सं० पा०--नाइ जाव नगरमहिलाओ। स्तबकादर्श विणित्तए' इति पदस्यार्थः ६. १२ सूत्र-परियण-महिलाहिं । १७ कृतोस्ति । सूत्रे-परियण-महिलियाहिं । १८ सूत्रे२. ना० १११।१६। परियण-नगरमहिलियाहि । ३. ना० १।२।१४ । ७. सं० पा० ---असणं जाव परिभंजेमाणी। ४. असणं जाव उल्लपडसाडिगा जेणेव नागघरए ८. ना० १११।७२ । जाव धूवं (क, ख, ग, घ)। दोहदस्य ६. ना० १।१।२० । उत्पत्तिः, पत्युस्तस्य निवेदनं, तस्यपूर्तिश्च- १०. ना० १।१।८१ । पाहा Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१ बीय अज्झयणं (संघाडे) विपुलं' असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, तहेव' मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणं भोयावेत्ता अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्ज करेंति -- जम्हा णं अम्हं इमे दारए बहूणं नागपडिमाण य जाव' वेसमणपडिमाण य उवाइयलद्धे, तं होउ णं अम्हं इमे दारए देवदिन्ने नामेणं । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्ज करेंति देवदिन्ने त्ति ।। २४. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं च __ अणुवड्ढेति ॥ देवदिन्नस्स कीडा-पदं २५. तए णं से पंथए दासचेडए देवदिन्नस्स दारगस्स बालग्गाही जाए, देवदिन्नं दारगं कडीए गेण्हइ, गेण्हित्ता बहूहिं डिभएहि य डिभियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धि संपरिवुडे अभिरमइ ।। २६. तए णं सा भद्दा सत्यवाही अण्णया कयाइ देवदिन्नं दारयं ण्हायं कयबलिकम्म कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकारविभसियं करेइ, करेत्ता पंथयस्स दासचेडगस्स हत्थयंसि दलयइ ॥ २७. तए णं से पंथए दासचेडए भद्दाए सत्थवाहीए हत्थाओ देवदिन्नं दारगं कडीए गेण्हइ, गेण्हित्ता सयानो गिहारो पडिनिक्खमइ, बहूहिं डिभएहि य' डिभियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य° कुमारियाहि य सद्धि संपरिवुडे जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं एगते ठावेइ, ठावेत्ता बहूहिं डिभएहि य जाव कुमारियाहि य सद्धि संपरिवुडे पमत्ते' यावि विहरइ॥ देवदिन्नस्स अपहार-पदं २८. इमं च णं विजए तक्करे रायगिहस्स नगरस्स बहूणि [अइगमणाणि य निग्गम णाणि य ? ] वाराणि य अववाराणि य तहेव जाव" सुन्नघराणि य प्राभोएमाणे मग्गेमाणे गवसमाणे जेणेव देवदिन्ने दारए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं सव्वालंकारविभूसियं पासइ, पासित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणालंकारेसु मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे पंथयं दासचेडयं पमत्तं पासइ, पासित्ता दिसालोयं करेइ, करेत्ता देवदिन्नं दारगं गेण्हइ, गेण्हित्ता १. तिपुलं (ख)। २. पू०-ना० १।१८१ । ३. ना० ११२।१२। ४. ओवाइय° (क)। ५. सं० पा०-डिभएहि य जाव कुमारियाहि । ६. पमग्गे (ख)। ७. ना० १।२।११। Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ कक्खंसि अल्लियावेइ', अल्लियावेत्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ', पिहेत्ता सिग्घं तुरियं चवलं वेइयं रायगिहस्स नगरस्स अवद्दारेण निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव जिण्णुज्जाणे जेणेव भग्गकूवए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारयं जीवियाग्रो ववरोवेड. ववरोवेत्ता प्राभरणालंकारं गेण्ड, गेण्डित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरं निप्पाणं निच्चेटुं जीवविप्पजढं भग्गकूवए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छयं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता निच्चले निप्फंदे तुसिणीए दिवसं खवेमाणे चिट्ठइ ॥ देवदिन्नस्स गवेसरणा-पदं २६. तए णं से पंथए दासचेडए' तो मुहुत्तंत रस्स जेणेव देवदिन्ने दारए ठविए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे [विलवमाणे ? ] देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ । देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुई वा खइं वा पत्ति वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणं सत्थवाहं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! भद्दा सत्थवाहो देवदिन्नं दारयं पहायं जाव" सव्वालंकारविभूसियं मम हत्थंसि" दलयइ । तए ‘णं अहं देवदिन्नं दारयं कडीए गिण्हामि", •गिण्हित्ता सयाओ गिहाम्रो पडिनिक्खमामि, बहहिं डिभएहि य डिभियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धि संपरिवुडे जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं एगते ठावेमि, ठावेत्ता बहूहिं डिभएहि य जाव कुमारियाहि य सद्धि संपरिवुडे पमत्ते यावि विहरामि । तए णं अहं तनो मुहुत्तंतरस्स जेणेव देवदिन्ने दारए ठविए तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे [विलवमाणे ? ] देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वनो समंता' मग्गण-गवेसणं करेमि । तं न नज्जइ णं सामी ! देवदिन्ने दारए केणइ नीते" वा अवहिते वा अक्खित्ते वा–पायवडिए धणस्स सत्थवाहस्स देइ ।। १. अलियावेइ (क, ख)। २. पेहेइ (क)। ३. चेइयं (क, ग)। ४. अववारेण (क)। ५. निक्खिवइ (ग)। ६. क्षेपयन् (वृ)। ७. चेडे (क, ख, घ)। ८. ठाविए (ख)। ६. ११२।३४ सूत्र 'रोयमाणे जाव विलवमाणे' इति पाठोस्ति । अत्रापि तथैव यूज्यते । १०. ना० ११२।२६। ११. हत्थे (घ)। १२. णं हं (ख, ग)। १३. सं० पा०-गिण्हामि जाव मग्गणगवेसणं । १४. नितिए (क, ग)। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अग्झरणं (संघाडे) ३०. तए णं से धणे सत्थवाहे पंथयस्स दासचेडगस्स एयमढे सोच्चा निसम्म तेण य महया पुत्तसोएणाभिभूए समाणे परसु-णियत्ते व चंपगपायवे 'धसत्ति' धरणी यलंसि सव्वंगेहिं सण्णिवइए । ३१. तए णं से धणे सत्थवाहे तो मुहुत्तंतरस्स आसत्थे पच्चागयपाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वनो समंता मग्गण-गवेसणं करेह । देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थड सुई वा खुइं वा पउत्ति वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महत्थं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं पाहुडं उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणु प्पिया ! मम पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए देवदिन्ने नामं दारए इट्टे जाव उंबरपुप्फ पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? तए णं सा भद्दा देवदिन्नं हायं' सव्वालंकारविभूसियं पंथगस्स' हत्थे दलाइ जाव पायवडिए तं मम निवेदेइ। तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वग्रो समंता मग्गण-गवेसणं कयं ॥ ३२. तए णं ते नगरगोत्तिया धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा सण्णद्ध-बद्ध वम्मिय-कवया उप्पीलिय-सरासण-पट्टि या •पिणद्ध-गेविज्जा प्राविद्ध-विमलवरचिंध-पट्टा • गहियाउह-पहरणा धणेणं सत्थवाहेणं सद्धि रायगिहस्स नगरस्स 'बहस अइगमणसूय जाव"पवासू य मग्गण-गवेसण करेमाणा रायांगहाम्रो नगरायो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव जिण्णुज्जाणे जेणेव भग्गकवए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरगं निप्पाणं निच्चेटुं जीवविप्पजढं पासंति, पासित्ता हा हा अहो ! अकज्जमित्ति कटु देव दिन्नं दारगं भग्गकूवानो उत्तारेंति, धणस्स सत्थवाहस्स हत्थे दलयंति ।। विजयतक्करस्स निग्गह-पदं ३३. तए णं ते नगरगुत्तिया विजयस्स तक्करस्स पयमग्गमणुगच्छमाणा२ जेणेव १. निसम्मा (क, ख, ग)। ११. बहूणि अइगमणाणि (क, ख, ग, घ)। २. परिसुणियत्ते (ख, घ)। यद्यपि १११११ सूत्रे 'अइगमणाणि य' ३. नगरगोत्तिए (क)। पाठो विद्यते, किन्तु अत्र 'मग्गण-गवेसणं' ४. ना० १११।१०६ । इति पदस्य संबंधेन सप्तम्यन्तो युज्यते, ५. पू०-ना० १।२।२६ । यथा पवासु । इदं पदं द्वितीयान्तं केन ६. पंथदासस्स (ग)। कारणेनात्र कृतमथवा संक्षेपीकरणे गहीत७. ना० शरा२७,२६, मिति न ज्ञातुं शक्यते। ८. करेह (क)। १२. ना० १।२।११। ६. X (ग, वृपा)। १३. पयमग्गमणुगच्छमाणा २ (क); पायमग्ग ° १०. सं० पा०-पट्टिया जाव गहियाउहपहरणा। (घ)। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ नायाधम्मकहाओ मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छगं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता विजयं तक्करं ससक्खं सहोढं सगेवेज्ज जीवग्गाहं गेण्हंति, गेण्हित्ता अढि-मुट्ठि-जाणुकोप्पर-पहार-संभग्ग-महिय-गत्तं करेंति, करेत्ता अवउडा' बंधणं करेंति, करेत्ता देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणं गेण्हंति, गेण्हित्ता विजयस्स तक्करस्स गीवाए बंधंति, बंधित्ता मालुयाकच्छगानो पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता रायगिहं नयरं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिगचउक्क-पच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु कसप्पहारे य 'छिवापहारे य लयापहारे'३ य निवाएमाणा-निवाएमाणा छारं च धूलिं च कयवरं च उवरि पकिरमाणापकिरमाणा महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा एवं वयंति-एस णं देवाणप्पिया ! विजए नापं तक्करे--- पाव चंडालरूवे भीमतररुद्दकम्मे आरुसियदित्त-रत्तनयणे खरफरुस-महल्ल-विगय-बीभच्छदाढिए असंपुडियउटे उद्ध यपइण्ण-लंबंतमुद्धए भमर-राहुवण्णे निरणुक्कोसे निरणुतावे दारुणे पइभए निसंसइए निरणुकंपे अहीव एगंतदिट्ठीए खुरेव एगंतधाराए गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे अग्गिमिव ° सव्वभक्खी बालघायए बालमारए। तं नो खलु देवाणुप्पिया ! एयस्स केइ राया वा रायमच्चे वा अवरज्झइ, नन्नत्थ' अप्पणो सयाई कम्माइं अवरज्झति त्ति कटु जेणामेव चारगसाला तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हडिबंधणं करेंति, करेत्ता भत्तपाणनिरोह करेंति, करेत्ता तिसंझं कसप्पहारे य' 'छिवापहारे य लयापहारे य° निवाए माणा विहरंति ॥ देवदिन्नस्स नीहरण-पदं ३४. तए णं से धणे सत्थवाहे मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि रोय माणे कंदमाणे ° विलवमाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरस्स' महया इड्ढीसक्कार-समुदएणं नीहरणं करेति, करेत्ता बहूइं लोइयाइं मयगकिच्चाई करेति, करेत्ता केणइ कालंतरेणं अवगयसोए जाए यावि होत्था । १. गीवग्गाहं (घ)। ५. सं० पा०-तक्करे जाव गिद्धे विव आमिस२. अवउड (ख, घ); अवउडग (वृपा)। भक्खी । ३. लयप्पहारे ° (क); लयापहारे य छिवापहारे ६. वाचनान्तरेत्विदं नाधीयते (व)। य (ख, ग, घ); असौ पाठः वृत्त्याधारेण ७. सं० पा०-कसप्पहारे य जाव निवाएमाणा। स्वीकृतः । १।२।४५ सत्रेपि अयमेव क्रमो ८. सं० पा०—रोयमाणे जाव विलवमाणे । लभ्यते। ६. सरीरयस्स (क)। ४. पयरमाणा (क)। १०. मयकिच्चाई (क)। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं (संघा.) धणस्स निग्गह-पदं ३५. तए णं से धणे सत्थवाहे अण्णया कयाइं लहुसयंसि रायावराहसि संपलित्ते' जाए यावि होत्था । ३६. तए णं ते नगरगुत्तिया धणं सत्थवाहं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव चारए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चारगं अणुप्पसंति, अणुप्पवेसित्ता विजएणं तक्करेणं सद्धि एगयो हडिबंधणं करेंति ॥ धणस्स घरानो आहाराणयण-पदं ३७. तए णं सा भद्दा भारिया कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव' उट्टियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडेइ, 'भोयणपिडयं करेइ", करेत्ता भोयणाइं पक्खिवइ, लंछिय-मुद्दियं करेइ, करेत्ता एगं च सुरभि [वर ? ] वारिपडिपुण्णं दगवारयं करेइ, करेत्ता पंथयं दासचेडयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! इमं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं गहाय चारगसालाए धणस्स सत्थवाहस्स उवणेहि ॥ ३८. तए णं से पंथए भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे तं भोयणपिडयं तं च सुरभिवरवारिपडिपुण्णं दगवारयं गेण्हइ, गण्हित्ता सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता राहगिहं नगरं मझमझेणं जेणेव चारगसाला जेणेव धणे सत्थवाहे तेणव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणपिडयं ठवेइ, ठवेत्ता उल्लंछेइ, उल्लंछेत्ता भोयणं गेण्हइ, गेण्हित्ता भायणाई ठावइ, ठावित्ता हत्थसोयं दलयइ, दलइत्ता धणं सत्थवाहं तेणं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं परिवेसेइ ।। विजयतक्करेण संविभागमरगण-पद ३६. तए णं से विजए तक्करे धणं सत्थवाहं एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! ममं एयाओ विपुलामो असण-पाण-खाइम-साइमानो संविभागं करेहि ।। धणस्स तन्निसेध-पदं ४०. तए णं से धणे सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी-अवियाइं अहं विजया ! एयं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं कायाण वा सुणगाण वा दलएज्जा, उक्कुरुडियाए वा णं छड्डेज्जा, नो चेव णं तव पुत्तघायगस्स पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स' पच्चामित्तस्स एत्तो विपुलाप्रो असण-पाण खाइम-साइमाश्रो संविभागं करेज्जामि । १. संपलत्ते (क, वृ)। ४. धावइ (ख); धोवइ (ग, घ)। २. ना० १।१।२४ । ५. पडिणीयस्स (ग, घ)। ३. भोयणं पिडए करेइ (क, वृपा); ° पिडयं ६. करेज्जासि (क, ग)। भरेइ (वृपा)। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहानी ४१. तए णं से धणे सत्थवाहे तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं प्राहारेइ, तं पंथयं पडिविसज्जेइ॥ ४२. तए णं से पंथए दासचेडए तं भोयणपिडग' गिण्हइ, गिण्हित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। पाबाधितस्स धणस्स विजयतक्करावेक्खा-पदं ४३. तए णं तस्स धणस्स सत्थवाहस्स तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं ग्राहारियस्स समाणस्स उच्चार-पासवणे णं उव्वाहित्था ।। ४४. तए णं से धणे सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी-एहि ताव विजया' ! एगंतमवक्कमामो 'जेणं अहं उच्चार-पासवणं परिवेमि ॥ विजयतक्करेण तन्निसेध-पदं ४५. तए णं से विजए तक्करे धणं सत्थवाहं एवं वयासी-तुझ देवाणुप्पिया ! विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं पाहारियस्स अस्थि उच्चारे वा पासवणे वा, ममं णं देवाणुप्पिया ! इमेहिं बहूहिं कसप्पहारेहि य 'छिवापहारेहि य° लयापहारेहि य तण्हाए य छुहाए य परज्झमाणस्स नत्थि केइ उच्चारे वा पासवणे वा । तं छंदेणं तुमं देवाणुप्पिया ! एगते अवक्कमित्ता उच्चार-पासवणं परिट्ठवेहि ॥ ४६. तए णं से धणे सत्थवाहे विजएणं तक्करेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ । धणेण पुणो कथिते विजएण संविभागमग्गण-पदं ४७. तए णं से धणे सत्थवाहे मुहत्तंतरस्स बलियतरागं उच्चार-पासवणेणं उव्वाहि ज्जमाणे विजयं तक्करं एवं वयासी-एहि ताव विजया ! 'एगंतमवक्कमामो जेणं अहं उच्चार-पासवणं परिट्ठवेमि° ॥ ४८. तए णं से विजए तक्करे धणं सत्थवाहं एवं वयासी-जइ णं पुमं देवाणुप्पिया! तानो विपुलामो असण-पाण-खाइम-साइमाप्रो संविभागं करेहि, तोहं तुमेहि सद्धि एगंतं अवक्कमामि ॥ ४६. तए णं से धणे सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी--'अहं णं तुब्भं तारो विपूलाग्रो असण-पाण-खाइम-साइमाग्रो संविभागं करिस्सामि ।। १. भोयणपडिग्गहं (ख)। ७. परब्भवमाणस्स (क, घ)। २. विजया एत्तो (क)। ८. X (क, ख)। ३. जाव णं अहं ताव (क); जा णं ० (ख, घ)। ६. स० पा०-विजया जाव प्रवक्कमामो। ४. तुज्झ ण (क)। १०. अहण्णं (क, घ); ५. X(क, ख, ग, घ)। ११. तुम (घ)। ६. सं०पा०-कसप्पहारेहि य जाव लयापहारेहि। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौय अज्झयणं (संघा.) ५०. तए णं से विजए तक्करे धणस्स सत्थवाहस्स एयमढे पडिसुणेइ । ५१. तए णं से 'धणे सत्थवाहे विजएण तवकरेण" सद्धि एगते अवक्कमइ, उच्चार पासवणं परिटुवेइ, अायंते चोक्खे परमसुइभूए तमेव ठाणं उवसंकमित्ता णं विहरइ ॥ धणेण विजयस्स संविभागदाण-पदं ५२. तए णं सा भद्दा कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते विपुलं असणं' •पाणं खाइमं साइमं उवक्खडेइ, भोयणपिडयं करेइ, करेत्ता भोयणाइं पक्खिवइ, लंछिय-मुद्दियं करेइ, करेत्ता एगं च सुरभि [वर ? ] वारिपडिपुण्ण दगवारयं करेइ, करेत्ता पंथयं दासचेडयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! इमं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं गहाय चारगसालाए धणस्स सत्थवाहस्स उवणेहि। ५३. तए णं से पंथए भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ते समाणे हट्टतुटे तं भोयणपिडयं तं च सुरभिवरवारिपडिपुण्णं दगवारयं गेण्हइ, गेण्हित्ता सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नगरं मझमझेणं जेणेव चारगसाला जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणपिडयं ठवेइ, ठवेत्ता उल्लंछेइ, उल्लंछेत्ता भोयणं गेण्हइ, गेण्हित्ता भायणाई ठावइ, ठावित्ता हत्थसोयं दलयइ, दलइत्ता धणं सत्थवाहं तेणं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं' परिवेसेइ॥ ५४. तए णं से धणे सत्थवाहे विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलामो असण-पाण खाइम-साइमाप्रो संविभागं करेइ । पंथगस्स भट्टाए साटोवं तन्निवेदण-पदं ५५. तए णं से धणे सत्थवाहे पंथगं दासचेडयं विसज्जेइ॥ ५६. तए णं से पंथए भोयणपिडयं गहाय चारगाो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मझमझेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भद्दा सत्थवाही तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भई [सत्थवाहिं ? ] एवं वयासी-एवं खलु देवाणप्पिए ! धणे सत्थवाहे तव पुत्तघायगस्स 'पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स° पच्चामित्तस्स तारो विपुलाप्रो असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेइ॥ भद्दाए कोव-पदं ५७. तए णं सा भद्दा सत्थवाही पंथगस्स दासचेडगस्स अंतिए एयमद्रं सोच्चा ४. विजए धणेण सत्थवाहेण (क, ख, ग)। १. ना० १११।२४ । २. सं० पा०-असणं जाव परिवेसेइ । १. सं० पा०-पुत्तघायगस्स जाव पच्चामित्तस्स । Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहाओ आसुरुत्ता रुट्टा' 'कुविया चंडिक्किया' मिसिमिसेमाणी धणस्स सत्थवाहस्स पोसमावज्जइ ।। धणस्स चारमुत्ति-पदं ५८. तए णं से धणे सत्थवाहे अण्णया कयाइं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परि यणेणं सएण य अत्थसारेणं रायकज्जायो अप्पाणं मोयावेइ, मोयावेत्ता चारगसालानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियकम्म कारवेइ जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहधोयमट्टियं गेण्हइ, गेण्हित्ता पोक्खरिणी अोगाहइ, प्रोगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता हाए कयवलिकम्मे °कय-कोउयमंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए° रायगिहं नगरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता रायगिहस्स नगरस्स मज्झमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ धणस्स सम्माण-पदं ५६. तए णं तं धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासित्ता रायगिहे नयरे बहवे नगर-निगम - सेट्ठि-सत्थवाह-पभिइनो आढंति परिजाणंति सक्कारेति सम्माणेति अब्भुट्ठति सरीरकुसलं पुच्छंति ॥ ६०. तए णं से धणे सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ। जावि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भवइ, तंजहा-दासा इ वा पेस्सा इ वा भयगा इ वा भाइल्लगा इ वा, सा वि य णं धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पायवडिया खेमकुसलं पुच्छइ। जावि य से तत्थ अब्भंतरिया परिसा भवइ, तंजहा--माया इ वा पिया इ वा भाया इ वा भइणी इ वा, सावि य णं धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पास णाम्रो अभुटेइ, कंठाकंठियं अवयासिय" बाह-प्पमोवखणं करेइ ।। भद्दाए कोवोवसमपुव्वं सम्माण-पदं ६१. तए णं से धणे सत्थवाहे जेणेव भद्दा भारिया तेणेव उवागच्छ । १. सं० पा०-रुढा जाव मिसिमिसेमाणी। २. कारेति (ख); करावेई (घ)। ३. अदायमट्टियं (क्व०)। ४. सं० पा०--कयबलिकम्मे जाव रायगिह। ५. नागर (ग)। ६. नियमे (क); नियग (ग)। ७. आढायंति (क)। ८. भइगा (क, ग, घ)। ६. भातिल्लगा (ग)। १०. अभिंतरिया (ग, घ) । ११. अवदासिय (ग, घ)। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं (संघा.) ६२. तए णं सा भद्दा धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाइ नो परिजाणइ अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी तुसिणीया परम्मुही संचिट्ठइ॥ ६३. तए णं से धणे सत्थवाहे भई भारियं एवं वयासी-किण्णं तुझं देवाणुप्पिए ! न तुद्री वा न हरिसो वा नाणंदो वा, जं मए सएणं अत्थसारेणं रायकज्जायो' अप्पा विमोइए। ६४. तए णं सा भद्दा धणं सत्थवाहं एवं वयासी-कहं णं देवाणुप्पिया ! मम तुट्ठी वा 'हरिसो वा पाणंदो वा भविस्सइ ? जेणं तुमं मम पुत्तघायगस्स पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स° पच्चामित्तस्स तारो विपुलायो असण-पाण-खाइम-साइमाप्रो संविभागं करेसि ।। ६५. तए णं से धणे सत्थवाहे भदं भारियं एवं वयासी–नो खलु देवाणुप्पिए ! धम्मो त्ति वा तवोत्ति वा 'कय-पडिकया इ वा लोगजत्ता इ वा नायए इ वा 'घाडियए इ वा" सहाए इ वा सुहि त्ति वा [विजयस्स तक्करस्स? ] ताग्रो विपुलामो असण-पाण-खाइम-साइमाप्रो संविभागे कए, नण्णत्थ सरीरचिताए । ६६. तए णं सा भद्दा धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणी हट्टतुटु-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्ठत्ता कंठाकंठि अवयासे इ१२ खेमकुसलं पुच्छइ, पुच्छित्ता ण्हाया 'कयवलिकम्मा कय-कोउय मंगल °-पायच्छित्ता विपुलाइं भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ॥ विजय-णायस्स निगमण-पदं ६७. तए णं से विजए तक्करे चारगसालाए तेहिं बंधेहि य वहेहि य कसप्पहारेहि य" •छिवापहारेहि य लयापहारेहि य ° तण्हाए य छुहाए य परज्झमाणे कालमासे कालं किच्चा नरएसु नेरइयत्ताए उववण्ण । १. परियाणाइ (क, ख); परियाणइ (ग, घ)। न स्पष्टं भवति : ७५ सूत्रे 'जाव विजयस्स २. तुम्भं (क्व०)। तक्करस्स ताओ विपुलाओ' इति पाठो ३. रज्जकज्जाओ (ग, घ)। विद्यते । तस्य पूतिः प्रस्तुतसूत्रेणव जायते। ४. अप्पाणं (ख)। एतेन प्रतीयते अत्रापि 'विजयस्स तक्करस्स' ५. सं० पा०-तुट्ठी वा जाव आणंदो। इति पाठः आसीत्, किन्तु केनापि कारणे६. सं० पा०-पुत्तघायगस्स जाव पच्चा- नासौ त्रुटितोभूत् । मित्तस्स। १०. ना० १।१।१६। ७. कयपडिकइया वा (क); कयाइपडिकईया ११. कंठाकंठि (ख, ग)। बाला (घ)। १२. अवभासेइ (ख); अवतासे इ (ग, घ)। ८. घोडयए इ वा (क ख); संघाडियाए वा १३. सं० पा०–ण्हाया जाव पायच्छित्ता । १४. सं० पा०-कसप्पहारेहि य जाव तण्हाए। ६. अस्मिन् सूत्रे कस्मै संविभागो दत्तः इति Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावाधम्मकहानी से णं तत्थ नेरइए जाए काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकण्हे वण्णणं। से णं तत्थ निच्चं भीए निच्चं तत्थे निच्चं तसिए निच्चं परमऽसुहसंबद्धं नगरगति ०वेयणं पच्चणब्भवमाणे विहरइ। से णं तनो उव्वट्टित्ता अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्सइ॥ ६८. एवामेव जंबू ! जो णं अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ' अणगारियं पव्वइए समाणे विपुलमणि मोत्तिय-धण-कणग-रयणसारेणं लुब्भइ, सो वि एवं चेव ।। धण-णायस्स निगमण-पदं ६९. तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा जाव' पुव्वाणुपुट्वि चरमाणा गामाणुगामं दूइज्जमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा' जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए 'तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता प्रहा पडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ।। ७०. परिसा निग्गया धम्मो कहियो । ७१. तए णं तस्स धणस्स सत्थवाहस्स बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म इमेयारूवे अज्झथिए' 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्थाएवं खलु थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा" इहमागया इहसंपत्ता । तं गच्छामि ? ११ णं थेरे भगवंते वंदामि नमसामि [ एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता ? २] १. सं०पा-कालोभासे जाव वेयणं । २. X (क, ख, ग)। ३. आगाराप्रो (ख, घ)। ४. मुत्तय (ख, ग)। ५. ना० १११।४। ६. सं० पा०–चरमाणा जाव जेणेव । ७. सं० पा०-चेइए जाव अहापडिरूवं । ८. निसम्मा (क, ख, ग)। है. सं०पा०-अज्झथिए जाव सम्प्पज्जित्था। १०. पू०-ना० १११।४।। ११,१२. इच्छामि (क, ख, ग, घ); पाठसंशोधन प्रयुक्तेषु आदर्शषु तथा मुद्रितपुस्तकेष्वपि 'इच्छामि' इति पाठो लभ्यते, किन्तु अन्यागमानामेतत्तुल्यप्रकरणसमीक्षयात्र 'गच्छामि' इति पाठः उपयुक्तः प्रतिभाति । एवमेव ‘एवं संपेहेइ, संपेहित्ता' इति संयोजकः पाठोपि बहुषु आगमेषु लभ्यते । अत्रापि इत्थमेव युज्यते। अत्र संभाव्यते लिपिदोषेण वर्णपरिवर्तनं जातम्, तेन 'गच्छामि' स्थाने 'इच्छामि' इति जातम् । उत्तरोत्तरमेष एव पाठः प्रचुरेषु आदर्शेषु संक्रान्तोभूत् । संक्षेपीकरणपद्धतेः कारणेन 'एवं संपेहेइ, संपेहित्ता' इति पाठोत्रालिखितोस्ति। उक्तप्रकरणानुसारी पाठः 'उवासगदसाओ' (१।२०) सूत्रे इत्थमस्ति-तं गच्छामि गं Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ati अभय (संघाडें) हाए' कयबलिकम्मे कय- कोउय-मंगल- पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगललाई वत्थाइं पवर' परिहिए पायविहारचारेणं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ ॥ ७२. तए णं थेरा भगवंतो धणस्स विचित्तं धम्ममाइक्खति ॥ ७३. तए णं से धणे सत्थवाहे धम्मं सोच्चा एवं वयासीसहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयण । • पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । अब्भुमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वयह त्ति कट्टु थेरे भगवंते बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जाव पव्वइए जाव' बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता भत्तं पच्चक्खाइत्ता, मासियाए संलेहणाए [पाणं झोसेत्ता ? ], सद्वि भत्ताइं प्रणसणाए छेदित्ता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववण्णे । तत्थ णं प्रत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिप्रोमाई ठिई पण्णत्ता । तस्स णं धणस्स देवस्स चत्तारि पलिप्रोमाई ठिई ॥ ७४. से णं धणे देवे ताम्रो देवलोगाप्रो आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं प्रणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव' सव्वदुक्खाणमंत करेहिइ ॥ देवाप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामिएवं सपेहेइ, सहित्ता हाए । १. सं० पा० - हाए जाव सुद्धप्पावेसाई । २. विभक्तिरहितं पदम् । ३. सं० पा० - पावयरणं जाव पव्वइए । ४, ५. भग० ६।३३ । o ७५. जहा णं जंबू ! धणेणं सत्थवाहेणं नो धम्मो त्ति वा " "तवो त्ति वा कयपडिया इवा लोगजत्ता इ वा नायए इ वा घाडियए इ वा सहाए इ वा सुहि . त्ति वा विजयस्स तक्करस्स ताम्रो विपुला असण- पाण- खाइम - साइमाओ संविभागे कए, नण्णत्थ सरीरसारक्खणट्टाए ॥" ७६. एवामेव जंबू ! जेणं अम्हं निग्गंथे वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं ११ ६. छेदइत्ता ( ग, घ ) । ७. तत्थ ( ख, ग, घ ) । ८. ठिई पण्णत्ता (क, ख ) । ६. ना० १।१।२१२ । १०. सं० पा० - धम्मो त्ति वा जाव विजयस्स । ११. ० सारखखणट्टयाए ( ख ) ; सरीररक्खणट्टाए (ग)। १२. सं० पा० - निग्गथे वा जाव पव्वइए । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायाधम्मकहाओ अंतिए मंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइए समाणे ववगय-हाणुमद्दणपुप्फ-गंध-मल्लालंकार-विभूसे' इमस्स ओरालिय-सरीरस्स नो वण्णहेउं वा 'नो रूवहेउं वा नो बलहेउं वा नो विसयहेउं वा तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आहारमाहारेइ, नण्णत्थ नाणदंसणचरित्ताणं वहणट्टयाए, से णं इहलोए चेव बहणं समणाणं बहणं समणीणं बहणं सावगाणं बहणं सावियाण य अच्चणिज्जे •वंदणिज्जे नमंसणिज्जे पूयणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं° पज्जुवासणिज्जे भवइ, परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं हियय उप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, 'पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंत संसारकतारं ° वीईवइस्सइ - जहा व से धणे सत्थवाहे ।। निक्खेव-पदं ७७. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दोच्चस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते-त्ति बेमि ।। वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा सिवसाहणेसु आहार-विरहियो जं न वट्टए देहो। तम्हा धणो व्व विजयं, साहू तं तेण पोसेज्जा ॥१॥ १. विभूसिते (ख, ग)। २. रूवहेउ वा बलविसयहेउं वा (क, ख, ग, घ) । असौपाठ-संघटना १।१८।६१ सूत्रस्या- धारेण कृतास्ति । ३, ४. X (क, ख, ग, घ)। ५. सावगाण य (क, ख, ग)। ६. सं० पा०-अच्चणिज्जे जाव पज्जुवास णिज्जे। ७. ° उप्पाडणाणि य (क)। ८. अणाईयं (ख, घ); अणातीतं (ग)। ६. सं० पा०-दीहमद्धं जाव वीईवइस्सइ। १०. ना० १।१७। Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव पद १. जइ णं भंते! समणं भगवया महावीरेणं दोच्चस्स अज्झयणस्स नायाधम्मकहा मट्ठे पण्णत्ते तच्चस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! ते कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था - वण्णश्रो' । तीसे गं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए सुभूमिभागे नामं उज्जाणे - 'सव्वोउय - पुप्फ-फल-समिद्धे" सुरम्मे नंदणवणे' इव सुह-सुरभिसीयलच्छायाए समणुबद्धे || तस्स णं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उत्तर एगदेसम्मि मालुयाकच्छए होत्था - वणो ॥ मयूरी अंड-पदं ५. २. ३. ४. तच्चं अभयणं अंडे तत्थ णं एगा वणमयूरी दो पुट्ठे परियागए पिट्टुडी' - पंडुरे निव्वणे निरुवहए भिण्णमुट्ठिपमाणे मयूरी - अंडए पसवइ, पसवित्ता सएण पक्खवाएणं सारक्खमाणी संगोमाणी संविट्ठेमाणी" विहरइ || १. ओ० सू० १ । २. सब्वोउए (वृ) ; सव्वोउय (क, ख, ग, घ, वृपा ); वृत्तिकृता अत्र द्वयोरपि पाठयोः समीक्षा कृतास्ति यथा - सव्वोउएत्तिसर्वे ऋतवो वसन्तादयः, तत्संपाद्यकुसुमादिभावानां वनस्पतीनां सद्भावात्, यत्र तत्तथा । क्वचित् 'सव्वोउयत्ति' दृश्यते तेन च 'सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धे' इत्येतत् सूचितम् (वृ) । ३. नंदणे वणे ( ख ) । ४. उत्तर ( क, ख, ग ) । ५. ना० १।२।६ । ६. पिट्ठपिंडी ( क ) ; वृत्तौ पिष्टस्य - शालिलोटस्य उंडी - पिंडी' इति व्याख्यातमस्ति । असौ व्याख्यांश: मूलपाठे पि संक्रान्तः । ७. पंडरे (क, ग) । ८. सतेणं (ख. घ) । ६. संगोवमाणी ( ख ) ; संगोयमाणी ( ग ) । १०. संचिट्टमाणी ( क ) ; संचिट्ठेमाणी ( ख, ग, घ); असौ पाठः वृत्त्याधारेण स्वीकृतः । ६३ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ नायाधम्मकहाओ सत्यवाहदारग-पदं ६. तत्थ णं चंपाए नयरीए दुवे सत्थवाहदारगा परिवसंति, तं जहा–जिणदत्तपुत्ते' य सागरदत्तपुत्ते' य -सहजायया सहवड्डियया सहपंसुकीलियया सहदारदरिसी अण्णमण्णमणुरत्तया अण्णमण्णमणुव्वयया' अण्णमण्णच्छंदाणु वत्तया अण्णमण्णहिय-इच्छियकारया' अण्णमण्णसु गिहेसु किच्चाई करणिज्जाइं पच्चणु ब्भवमाणा विहरंति ॥ ७. तए णं तेसि सत्थवाहदारगाणं अण्णया कयाइं एगयो सहियाणं समुवागयाणं' सण्णिसण्णाणं सण्णिविट्ठाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्थाजण्णं देवाणुप्पिया ! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पव्वज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पज्जइ, तण्णं अम्हेहिं एगयनो समेच्चा नित्थरियव्वं ति कटु अण्णमण्ण मेयारूवं संगार पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था । देवदत्ता गणिया-पदं ८. तत्थ णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया परिवसइ-अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवण-सयणासण-जाण-वाहणा बहुंधण-जायरूव-रयया आयोगपनोग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा चउसट्ठिकलापंडिया चउसट्ठिगणियागुणोववेया अउणत्तीसं विसेसे रममाणी एक्कवीस-रइगुणप्पहाणा बत्तीसपूरिसोवयारकुसला नवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय-हसिय - भणिय-चेट्ठिय-विलाससंलावुल्लाव-निउणजुत्तोवयारकुसला ऊसियज्झया सहस्सलभा विदिण्णछत्त-चामर-बालवीयणिया कण्णीरहप्पयाया वि होत्था। बहणं गणियासहस्साणं" आहेवच्चं२ •पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणी पालेमाणी महयााहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंतीतल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी' विहरइ ।। १. ° उत्ते (ग)। १०. सं० पा०-संगयगयहसिय (अतोने वृत्ती २. ° उत्ते (ग)। वाचनान्तरं लभ्यते-वाचनान्तरे त्विदम३. ° मणुव्वया (ग)। धिकम्--सुंदरथण-जघण-वयण-चरण-नयण लावण्ण-रूव-जोव्वणविलासकलिया (व)। ४. तिच्छियकारया (ख, ग, घ) । ५. समुवगयाणं (क, ख, ग)। ओवाइय-वाचनान्तरे किंचिद्भेदोस्ति द्रष्टव्यम्-ओवाइयं पृष्ठ १३६ । ६. संहिच्चा (वृपा)। ७. संगरं (वृपा)। ११. ° सहस्सीणं (ख)। ८. सं० पा०-अड्ढा जाव भत्तपाणा। १२. सं० पा०-आहेवच्चं जाव विहरइ । ६. एक्कवीसं (क)। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चं अज्झयणं (अंडे) सत्यवाहदारगाणं उज्जाणकोडा-पदं ६. तए णं तेसिं सत्यवाहदारगाणं अण्णया कयाइ पुव्वावरण्हकालसमयंसि' जिमिय भुत्तुत्तरागयाणं समाणाणं प्रायंताणं चोक्खाणं परमसुइभूयाणं सुहासणवरगयाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था-सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं धूव-पुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारं गहाय देवदत्ताए गणियाए सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरि पच्चणुब्भवमाणाणं विहरित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते कोडंबियपुरिसे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं देवाणुप्पिया ! विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेह, उवक्खडेत्ता तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं धूव-पुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारं गहाय जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता नंदाए पोक्खरिणीए' अदूरसामते थूणामंडवं' पाहणह-आसियसम्मज्जियोवलितं पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्क-पुप्फपुजोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डभंत-सुरभि-मघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं° करेह, करेत्ता अम्हे पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठह जाव चिट्ठति ॥ १०. तए णं ते सत्थवाहदारगा दोच्चंपि कोडंबियपुरिसे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी -खिप्पामेव [भो देवाणुप्पिया ! ? ] 'लहुकरण-जुत्त-जोइयं समखुरवालिहाण-'समलिहिय-तिक्खग्गसिंगएहि" रययामय-घंट-सुत्तरज्जु-पवरकंत्रण १. पुवावरद्ध ° (क)। 'सम्मज्जिओवल्लित्तं जाव सुगंधवरगंधियं' २. ना० १११।२४। अस्ति, तथैव अत्रापि 'सम्मज्जिओवलितं ३. X (ख, ग, घ)। जाव गंधवट्टिभूयं' इति संक्षेपः उपयुक्तः ४. तेणामेव (क, ग, घ)। स्यात् । 'सम्मज्जिओवलितं' इति पाठानन्तरं ५. पुक्खरिणीए (क, ख)। 'सुगंध' इति पदं क्वापि नोपलभ्यते । ६. थूण ° (ख)। ८. लहुकरणजुत्तएहिं जोइयं (वपा)। ७. सं० पा०-सम्मज्जिओवलित्तं सुगंधं जाव ६. समलिहियं तिक्खसिंगएहिं (क, घ); कलियं (क, ख, ग, घ); अत्र पाठसंक्षेपे समलिहिय-सिंगएहि । कश्चिद् विपर्यय: संभाव्यते । १।१।३३ सूत्रे Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ खचिय-नत्थपग्गहोग्गहियएहि नीलुप्पलकयामेलएहिं पवर-गोण-जुवाणएहिं 'नाना-मणि-रयण-कंचण-घंटियाजालपरिक्खित्तं पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव पवहणं उवणेह । ते वि तहेव उवणेति ॥ ११. तए णं ते सत्थवाहदारगा ण्हाया 'कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता अप्पमहग्घाभरणालंकिय° सरीरा पवहणं दुरुहंति, दुरुहित्ता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे' तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता देवदत्ताए गणियाए गिह अणुप्पविसंति ॥ १२. तए णं सा देवदत्ता गणिया ते सत्थवाहदारए एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठा पासणानो अब्भुटेइ, अब्भुटेत्ता सत्तट्ठपयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता ते सत्थवाहदारए एवं वयासी-संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! किमिहागमणप्प प्रोयणं? १३. तए णं ते सत्थवाहदारगा देवदत्तं गणियं एवं वयासी-इच्छामो णं देवाणुप्पिए ! तुमे सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरि पच्चणुब्भवमाणा विहरित्तए॥ १४. तए णं सा देवदत्ता तेसिं सत्थवाहदारगाणं एयमद्वं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता ण्हाया कयबलिकम्मा जाव' सिरी-समाणवेसा जेणेव सत्थवाहदारगा तेणेव उवागया" ॥ १५. तए णं ते सत्थवाहदारगा देवत्ताए गणियाए सद्धि जाणं दुरुहंति, दुरुहित्ता चंपाए नयरीए मझमझेणं जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव नंदा पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पवहणाश्रो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता नंद१२ (जंबूणयामय-कलाव-जुत्त-पइविसिट एहिं। ४. सं० पा०-हाया जाव सरीरा। उवासगदसाओ १।४०) । वृत्तौ जंबूणया- ५. गेहे (ख)। मय ० इति पाठो वाचनान्तरत्वेन ६. गेहे (क, घ)। उल्लिखितोस्ति । ७. पयोयणं (ख); पतोयणं (घ) । १. ° वग्गहियएहिं (क); ° वग्गहोवग्गहिएहिं ८. तुम्हेहिं (ग); तुब्भेहिं (क्वचित्) । (ख, ग) ६. कयबलिकम्मा किं ते (क); कयबलिकम्मा २. X (क)। किं ते पवर (ग); कयवलिकम्मा किं ते वर ३. नाणा-मणि-कणग-घंटियाजालपरिगयं सुजाय- (घ)। जुग-जुत्त-उज्जुग - पसत्थ - सुविरइय-निम्मियं १०. ना० १।१।३३ । (उवासगदसायो १।४७)। वृत्ती- ११. उवागच्छंति (ख); समागया (घ) । ० 'सुजायजग' ० इति पाठः वाचनान्तरत्वेन १२. नंदा (ख)। उल्लिखितोस्ति । Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चं अज्झयणं (अंडे) पोक्खरिणि प्रोगाहेंति, ओगाहेत्ता जलमज्जणं करेंति, करेत्ता जलकिडं करेंति, करेत्ता ण्हाया देवदत्ताए सद्धि [नंदानो पोक्खरिणीप्रो' ?] पच्चुत्तरंति, जेणेव थूणामंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता [थूणामंडवं' ? ] अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता सव्वालंकारभूसिया आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया देवदत्ताए सद्धि तं विपूलं असण-पाण-खाइम-साइमं धव-पूप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकार प्रासाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परिभंजेमाणा एवं च णं विहरति । जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा [आयंता चोक्खा परमसुइभूया? ] देवदत्ताए सद्धि विपुलाइं कामभोगाइं भुंजमाणा विहरंति ।। १६. तए णं ते सत्थवाहदारगा पुव्वावरण्हकालसमयंसि देवदत्ताए गणियाए सद्धि थूणामंडवानो पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता हत्थसंगेल्लीए सुभूमिभागे उज्जाणे बहूसु प्रालिघरएसु य कयलिघरएसु य लताघरएसु य अच्छणघरएसु य पेच्छणघरएसु य पसाहणघरएसु य मोहणघरएसु य सालघरएसु य जालघर एसु य° कुसुमघरएसु य उज्जाणसिरि पच्चणुब्भवमाणा विहरंति ॥ सत्यवाहदारगेहि मयूरीग्रंडगाणयण-पदं १७. तए णं ते सत्थवाहदारगा जेणेव से मालुयाकच्छए तेणेव पहारेत्थ गमणाए । १८. तए णं सा वणमयूरी ते सत्थवाहदारए एज्जमाणे पासइ, पासित्ता भीया तत्था महया-महया सद्देणं केकारवं 'विणिम्मुयमाणी-विणिम्मुयमाणी'' मालुयाकच्छाप्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता एगसि रुक्खडालयंसि ठिच्चा ते सत्थवाहदारए मालुयाकच्छगं च अणिमिसाए दिट्ठीए पेच्छमाणी चिट्ठइ॥ १६. तए णं ते सत्थवाहदारगा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-जहा" णं देवाणुप्पिया ! एसा वणमयूरी अम्हे एज्जमाणे पासित्ता भीया तत्था तसिया उव्विग्गा पलाया महया-महया सद्देणं •केकारवं विणिम्मुयमाणीविणिम्मुयमाणी मालुयाकच्छारो पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता एगंसि १. द्रष्टव्यम्-१।२।१४ सूत्रस्य--पुक्खरिणीग्रो क्वचित् कदलीगृहादिपदानि यावच्छब्देन पच्चोरुहइ --इति पदम् । सूच्यन्ते (वृ)। २. द्रष्टव्यम्-१।३।११ सूत्रस्य--देवदत्ताए ६. केक्कारवं (क, ख, घ) । ___ गणियाए गिहं अणुप्पविसंति-इति पदम् । ७. विणिमुयमाणी-विणिमुयमाणी (ग)। ३. द्रष्टव्यम्-१।३।६। ८. ° डालंसि (घ)। ४. संगिल्लीए (क, घ)। ६. कच्छं (क, ख, ग, घ)। ५. सं० पा०-आलिघरएसु य जाव कुसुमघर- १०. देहमाणी (क, ग, घ)। एसु । वृत्तिकृत्ता पूर्णः पाठो व्याख्यातः, ११. जया (क)। संक्षिप्तपाठस्य सूचनापि कृतास्ति, यथा- १२. सं० पा०-सेद्देणं जाव अम्हे । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाम्म हाओ o रुक्खडालयंसि ठिच्चा • अम्हे मालुयाकच्छयं च [ प्रणिमिसाए दिट्ठीए ? ] पेच्छमाणी चिट्ठइ, तं भवियव्वमेत्थ कारणेणं ति कट्टु मालुयाकच्छयं अंतो o विति । तत्थ दो पुट्ठे परियागए पिट्ठडी - पंडुरे निव्वणे निरुवहए भिण्णमुट्टप्पमाणे मयूरी अंडए पासित्ता प्रण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी - सेयं खलु देवाणुप्पिया ! म्हं इमे वणमयूरी अंडए साणं जातिमंताणं' कुक्कुडियाणं अंडए पक्खिवावित्तए । तए णं ताम्रो जातिमताम्रो कुक्कुडियाओ एए अंड सए अंडए सरणं पंखवाएणं सारक्खमाणीग्रो संगोवेमाणीग्रो विहरिति । तए णं ग्रहं एत्थं दो कीलावणगा मयूरी - पोयगा भविस्संति त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता सए सए दासचेडए' सहावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! इमे अंडए हाय सगाणं जातिमंताणं कुक्कुडीणं अंडएसु पक्खिवह जाव ते वि पक्खिवेंति ॥ २०. तए णं ते सत्थवाहदारंगा देवदत्ताए गणियाए सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाण उज्जाणसिरि पच्चणुब्भवमाणा विहरित्ता तमेव जाणं दुरूढा समाणा जेणेव चंपा नयरी जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता देवदत्ता हिं प्रणुप्पविसंति, ग्रणुष्पविसित्ता देवदत्ताए गणियाए विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति, दलइत्ता सक्कारेंति सम्माणेंति, सक्कारेत्ता सम्मात्ता देवदत्ताए गिहाम्रो पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव साइंसाइं गिहाई तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्ता जाया यावि हत्था ॥ है ८ सागरदत्तपुत्तस्स संदेहेण अंडयविणास-पदं २१. तत्थ णं जे से सागरदत्तपुत्ते ' सत्थवाहदारए से णं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्टियम्म सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव से वणमयूरीअंड तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी अंडयंसि संकिए कंखिए वितिगिछसमावण्णे भेयसमावण्णे कलुससमावण्णे किण्णं ममं एत्थ कीलावणए" मयूरीपोए भविस्सइ उदाहु नो भविस्सइ ? त्ति कट्टु तं मयूरी अंडयं अभिक्खणंअभिक्खणं उव्वत्तेइ परियत्तेइ आसारेइ संसारेइ चालेइ फंदेइ घट्टेइ खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि टिट्टियावेइ" । १. ० कच्छकं ( क ) ; कच्छगं ( ग ) । २. पेहमाणी (क, घ); पिच्छमाणी ( ग ) । ३. सं० पा० - परियागए जाव पासित्ता । ४. जायमेत्ताणं ( क ) । ५. एत्थ (घ) । ६. दासचेडे ( क ) । ७. एह गच्छह ( क ) 1 ८. सागरदत्तस्स पुत्ते ( ग ) । ६. ना० १।१।२४ । १०. किलावण ( ख, ग, घ ) । ११. ढिडियावेइ ( क ) ; टिट्टियारेइ ( ग ) । डिट्टियावेइ ( ख ) । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ तच्चं अज्झयणं (अंडे) २२. तए णं से मयूरी'-अंड { अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तिज्जमाणे' परियत्तिज्ज माणे प्रासारिज्जमाणे संसारिज्जमाणे चालिज्जमाणे फंदिज्जमाणे घट्टिज्जमाणे खोभिज्जमाणे अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि ° टिट्टियावेज्जमाणे पोच्चडे जाए यावि होत्था ॥ २३. तए णं से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए अण्णया कयाइं जेणेव से मयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं मयुरी-अंडयं पोच्चडमेव' पासइ, अहो णं ममं एत्थ कीलावणए मयूरी-पोयए न जाए त्ति कटु अोहयमण' संकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए ° झियाइ' ।। २४. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइए समाणे पंचमहव्वएसु छज्जीवनिकाए सु निग्गंथे पावयणे संकिए 'कंखिए वितिगिछसमावण्णे भेयसमावण्णे ° कलुससमावण्णे, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं" सावगाणं बहूणं" सावियाण य हीलणिज्जे निंदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं प्रागच्छइ बहूणि दंडणाणि य" 'बहूणि मुंडणाणि य बहूणि तज्जणाणि य बहूणि तालणाणि य बहूणि अंदुबंधणाणि य बहूणि घोलणाणि य बहूणि माइमरणाणि य बहूणि पिइमरणाणि य बहूणि भाइमरणाणि य बहुणि भगिणीमरणाणि य बहूणि भज्जामरणाणि य बहूणि पुत्तमरणाणि य बहूणि धूयमरणाणि य बहूणि सुण्हामरणाणि य, बहणं दारिदाणं बहूणं दोहग्गाणं बहूणं अप्पियसंवासाणं बहूणं पियविप्पप्रोगाणं बहूणं दुक्ख-दोमणस्साणं आभागी भविस्सति, अणादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकतारं भुज्जो-भुज्जो° अणुपरियट्टिस्सइ" ।। १. वणमयूरी (ग, घ)। ११. X (क, ख, ग)। २. सं० पा०-उवत्तिज्जमाणे जाव टिट्टिया- १२. परभवणिज्जे (क, ख, घ); भगवती ___ वेज्जमाणे । (५।८१) सूत्र 'गरहह अवमन्नह' इति ३. पोच्चडमेयं (ख)। पदमस्ति । ४. सत्थवाह (क, ख, ग)। १३. सं० पा०-दंडणाणि य जाव अणुपरियट्टइ। ५. सं० पा०-ओहयमण जाव झियायइ। १४. अणुपरियट्टइ (क, ख, ग, घ) । 'भविस्सति' ६. झियायइ (ख, घ); झायति (ग)। इति क्रियापदस्यानन्तरं 'अणुपरियट्टिस्सइ' ७. पव्वज्जिते (ख); पव्वतिए (ग, घ)। इति पाठो युज्यते । सप्तमाध्ययनस्य २७ ८. ° महव्वए (ख, ग, घ)। सूत्रेऽपि एवमेव पाठो लभ्यते । तेनात्रापि ६. सं० पा०-संकिए जाव कलुससमावणे । तथैव स्वीकृतः । १०.X (ख, ग)। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० नायाधम्मकहाओ जिणदत्तपुत्तस्स सद्धाए मयूर-लद्धि-पदं २५. तए णं से जिणदत्तपुत्ते जेणेव से मयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि निस्संकिए [निक्कंखिए निव्वितिगिछे ? ] ' 'सुव्वत्तए णं मम एत्थ कीलावणए मयूरी-पोयए भविस्सइ त्ति कटु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणं-अभिक्खणं नो उव्वत्तेइ 'नो परियत्तेइ नो आसारेइ नो संसारेइ नो चालेइ नो फंदेइ नो घट्टेइ नो खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि ° नो टिट्टियावेइ। २६. तए णं से मयूरी-अंडए अणुव्वत्तिज्जमाणे जाव' अटिट्टियाविज्जमाणे कालेणं - समएणं उब्भिन्ने मयूरी-पोयए एत्थ जाए॥ २७. तए णं से जिणदत्तपुत्ते तं मयूरी-पोययं पासइ, पासित्ता हट्ठतुढे मयूर-पोसए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! इमं मयूर-पोयगं बहूहि मयूर-पोसण-पाप्रोग्गेहि दव्बेहि अणुपुव्वेणं सारक्खमाणा संगोवेमाणा संवड्ढेह', नदुल्लगं च सिक्खावेह ॥ २८. तए णं ते मयूर-पोसगा जिणदत्तपुत्तस्स एयमढे पडिसुणेति, तं मयूर-पोयगं गेण्हंति, जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छंति, तं मयूर-पोयगं- 'बहूहिं मयूरपोसण-पाप्रोग्गेहि दव्वेहिं अणुपुब्वेणं सारक्खमाणा संगोवेमाणा संवड्ढेति°, नदुल्लगं च सिक्खावेंति ॥ तए णं से मयूर-पोयए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणपत्ते लक्खण-वंजण-गुणोववेए माणुम्माण-प्पमाणपडिपुण्णपक्ख-पेहुणकलावे 'विचित्तपिच्छसतचंदए''" नीलकंठए नच्चणसीलए एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए अणेगाइं नदुल्लगसयाई केकाइयसयाणि" य करेमाणे विहरइ॥ ३०. तए णं ते मयूर-पोसगा तं मयूर-पोयगं उम्मुक्कबालभावं जाव केकाइय सयाणि य करेमाणं पासित्ता णं तं मयूर-पोयगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जिणदत्तपुत्तस्स उवणेति ॥ ३१. तए णं से जिणदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए मयूर-पोयगं उम्मुक्कबालभावं जाव' १. द्रष्टव्यम्-३४ सूत्रम् । ८. सं० पा०-मयूरपोयगं जाव नदुल्लगं । २. सुव्वत्तणं (क, घ); X (ख); सुद्धत्तणं ६. विन्नाण (क); विन्नाय (ख, ग, घ)। १०. विचित्तपिच्छोसत्तचदए (ख, ग, वृपा)। ३. सं० पा०-उव्वत्तेइ जाव नो टिट्टियावेइ। ११. केयाणियगसइयाइं (क); केयाइग ४. ना० १।३।२५। (ख, ग); केकातित° (घ)। ५. उभिन्न (ग)। १२. ना० ११३।२६ । ६. संवट्टह (क, ख, ग, घ)। १३. ना० १।३।२६ । ७. नउल्लगं (ग); नट्टल्लगं (घ)। २६. Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्च अज्झयणं (अंडे) केकाइयसयाणि य करेमाणं पासित्ता हट्टतुढे तेसि विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं' 'दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ ।। ३२. तए णं से मयूर-पोयगे जिणदत्तपुत्तेणं एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए नंगोला-भंग-सिरोधरे सेयावंगे' प्रोयारिय-पइण्णपक्खे उक्खित्तचंदकाइय-कलावे केक्काइयसयाणि मंचमाणे नच्चइ ।। ३३. तए णं से जिणदत्तपुत्ते' तेणं मयूर-पोयएणं चंपाए नयरीए सिंघाडग-तिग चउक्क-चच्चर-च उम्मुह-महापह पहेसु सएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सि एहि य पणिएहि जयं करेमाणे विहरइ ।।। ३४. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पंचमहव्वएसु छज्जीवनिकाएसु निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्कंखिए निव्वितिगिछे , से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं 'बहुणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमंसणिज्जे पूयणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ। परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं-हिययउप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकतारं० वीईवइस्सइ ।। निक्खेव-पदं ३५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं प्राइगरेणं तित्थगरेणं जाव'" सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं 'तच्चस्स नायज्झयणस्स" अयम? पण्णत्ते । -त्ति बेमि॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा जिणवरभासियभावेसु, भावसच्चेसु भावो मइमं । नो कुज्जा संदेहं, संदेहोऽणत्थहेउ त्ति ॥१॥ १. सं० पा०-पीइदाणं जाव पडिविसज्जेइ। ७. पणिएहि य (ख, ग, घ)। २. सेयावण्णे (घ, वृ); सेयावंगे (वृपा)। ८. निव्वितिगिच्छे (ख, घ)। ३. ओरालिय (ग, घ)। ६. सं० पा०-समणाणं जाव वीईवइस्सइ । ४. मुच्चमाणे (क, ख, ग, घ); विमुंचमाणे १०. ना० १।१७। (क्व०)। ११. नायाणं तच्चस्स अज्झयणस्स (क, ख, ग); ५. जिणयत्त ° (क)। नायाण तच्चस्स णायाज्झयणस्स (घ)। ६. सं० पा०-सिंघाडग जाव पहेसु । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ नायाधम्मकहाओ निसंदेहत्तं पुण, गुणहेउं जं तो तयं कज्ज । एत्थं दो सेट्टिसुया, अंडयगाही उदाहरणं ॥२॥ कत्थइ मइदुब्बल्लेण, तविहायरियविरहनो वावि । नेयगहणत्तणेणं, नाणावरणोदयेणं च ॥३॥ हेऊदाहरणासंभवे य, सइ सुठ्ठ जं न बुज्झज्जा। सव्वण्णुमयमवितह, तहावि इइ चिंतए मइमं ।।४।। अणुवकय-पराणुग्गह-परायणा उ जिणा जगप्पवरा। जिय - राग - दोस - मोहा, य नन्नहावाइणो तेण ।।५।। Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं कुम्मे उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं 'तच्चस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, चउत्थस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी' नामं नयरी होत्था वण्णयो । ३. तीसे णं वाणारसीए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गंगाए महानईए मयंग तीरद्दहे नामं दहे होत्था—अणुपुव्वसुजायवप्प-गंभीरसीयलजले 'अच्छ-विमलसलिल-पलिच्छण्णे संछण्ण-पत्त-पुप्फ-पलासे' बहुउप्पल-पउम-कुमुय-नलिणसुभग-सोगंधिय-'पुंडरीय - महापंडरीय" - सयपत्त-सहस्सपत्त - केसरपुप्फोवचिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ।। ४. 'तत्थ णं बहूणं मच्छाण य कच्छभाण य गाहाण य मगराण य सुंसुमाराण य सयाणि य सहस्साणि य सयसहस्साणि य जहाई निब्भयाइं निरुव्विग्गाई सुहंसुहेणं अभिरममाणाइं-अभिरममाणाई विहरंति' ।। १. नायाणं तच्चस्स° (ख, ग); नायाण दृश्यम्-संछन्नपउमपत्त - विसमुणाले । तच्चस्स अज्झयणस्स (घ)। क्वचिदेवं पाठः-संछन्नपत्तपुप्फपलासे (वृ)। २. नायाणं (क, ख, घ) ८. पोंडरीय-महापोंडरीय (ग)। ३. वाराणसी (ग)। ६. °चिए छप्पय-परिभुज्जमाण-कमले अच्छ४. ओ० सू० १। विमल-सलिल-पत्थ-पुण्णे परिहत्थभमंत५. आणुपुव्व ° (घ)। मच्छ - कच्छभ - अणेगसउणगण - मिहुणय ६. x (वृ); अच्छ-विमल-सनिल-पलिच्छन्ने पविचरिए (वृ); असौ पाठः आदर्शषु (वृषा)। नोपलभ्यते। ७. (वृ); क्वचित्तु संछन्नेत्यादि सूचनादिदं १०. 'तत्थ णं' इत्यादि आदर्शगतः पाठः नास्ति वृत्तौ व्याख्यातः । १०३ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ मायामकहा ५. तस्स णं मयंगती रद्दहस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महं एगे' मालुयाकच्छए होत्था aur || पावसियालग-पद ६. तत्थ णं दुवे पावसियालगा परिवसंति - पावा चंडा रुद्दा तल्लिच्छा साहसिया लोहियपाणी ग्रामिसत्थी ग्रामिसाहारा ग्रामिसप्पिया ग्रामिसलोला आमिसं गवेसमाणा रत्तिवियालचारिणो दिया पच्छन्नं या विचिट्ठति ॥ कुम्मपदं ७. तए णं ताम्रो मयंगतीर हाम्रो ग्रण्णया कयाइं सूरियंसि चिरत्थमियंसि लुलिया संभाए पविरल माणुसंसि निसंत- पडिनियंतंसि समाणंसि दुवे कुम्मगा श्राहारत्थी आहारं गवेसमाणा सणियं-सणियं उत्तरंति, तस्सेव मयंगती रद्दहस्स परिपेतेणं सव्वप्रो समंता परिघोलमाणा - परिघोलमाणा 'वित्ति कप्पे माणा " विहरति ॥ पावसियालगाणं श्राहारगवेसण-पदं ८. तयानंतरं च णं ते पावसियालगा श्राहारत्थी' ग्राहारं गवेसमाणा मालुयाकच्छगा पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मयंगती रद्दहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तस्सेव मयंगती रद्दहस्स परिपेतेणं परिघोलमाणा - परिघोलमाणा वित्ति कप्पे माणा विहति ॥ ६. तए णं ते पावसियालगा" ते कुम्मए पासंति, पासित्ता जेणेव ते कुम्मए तेव पहारेत्थ गमणाए ॥ कुम्माण साहरण-पदं १०. तए णं ते कुम्मगा ते पावसियालए एज्जमाणे पासंति, पासित्ता भीया तत्था तसिया उब्विग्गा संजायभया हत्थे य पाए य गीवाम्रो य सएहिं सएहिं काएहि साहरति, साहरित्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया संचिट्ठेति ॥ १. वेगे (ग, घ) । २. ना० १।२६ । • ३. पच्छन्न ( क, ख ) ; पच्छिन्नं ( ग, घ ) । तस्से य ( ग, घ ) । ४. तस्स य ( ख ) ; ५. एवं च णं ( क ) । ६. श्राहारत्थी जाव (क, ख, ग, घ ); सर्वास्वपि प्रतिषु जाव शब्दो लभ्यते किन्तु अर्थमीमां सया नासो समीचीनः प्रतिभाति । यद्यत्र जाव शब्दः स्यात् तदा प्रामिसत्थी जाव आमिस इति पाठ: संगतः स्यात् । यदि पूर्ववर्तिसूत्रमनुश्रियते तदा जाव शब्दो नापेक्ष्यते । ७. ० सियाला ( ख, ग, घ ) । ८. संहरति ( ग, घ ) । ६. निष्कंदा (ख, घ) । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्थं अज्झणं (कुम्मै ) १०५ ११. तए णं ते पावसियालगा जेणेव ते कुम्मगा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ते कुम्मए' सव्वश्नो समंता उव्वत्तेंति परियत्र्त्तेति प्रासारेंति संसारेति चालेंति घट्टेति फंदेति खोति नहेहिं प्रातुंपति दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तेसि कुम्मगाणं सरीरस्स किंचि आवाहं वा 'वाबाहं वा" उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए || १२. तए णं ते पावसियालगा ते कुम्मए दोच्चपि तच्चपि सव्वश्रो समंता उब्वत्तेंति' • परियत्र्त्तेति श्रासारेंति संसारेंति चालेंति घट्टेति फंदेंति खोति नहेहि लंपति दंतेहिय अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तेसि कुम्मगाणं सरीरस्स किंचि प्रवाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निव्विण्णा समाणा सणियं सणियं पच्चोसक्कंति, एगंतमवक्कमंति, निच्चला निप्फंदा तुसिणीया संचिट्ठति ॥ अगुत्त-कुम्मस्स मच्च-पदं १३. तए णं एगे कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए जाणित्ता सणियं सनियं एगं पायं निच्छुभइ || १४. तए णं ते पावसियालगा तेणं कुम्मएणं सणियं सणियं एवं पायं नीणियं पासंति, पासित्ता सिग्घं तुरियं चवलं चंडं जइणं वेगिय जेणेव से कुम्मए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तस्स णं कुम्मगस्स तं पायं नखेहिं प्रालुपंति दंतेहि अक्खोडेंति, तम्रो पच्छा मंसं च सोणियं च ग्राहारेति, आहारेत्ता तं कुम्मगं सव्वग्रो समंता उव्वत्र्त्तेति जाव नो चेव णं संचाएंति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि प्रवाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए ॥ १५. तए णं ते पावसियालगा तं कुम्मयं दोच्चंपि तच्चपि सव्वग्रो समंता उव्वत्तेंति परियत्र्त्तेति आसारेति संसारेति चालेंति घट्टेति फंदेति खोति नहेहिं प्रालुपंति दंतेहिय अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता १. कुम्मगा (क, ख, ग, घ ) ; अग्रिमसूत्रे 'ते कुम्मए' इति पाठोस्ति, अत्रापि तथैव युज्यते । २. X ( ग, घ ) । ३. X(क) । ४. सं० पा० - उव्वत्तेंति जाव नो चेव णं संचाएंति करेत्तए । एगंते अवक्कमति ( क ) | तस्थ ( ख, ग, घ ) । ५. ६ ७. वेगितं ( ख ) 1 ८. ना० १।४।११। ६. सं० पा० - संचाएंति करेत्तए । ताहे दोच्चपि श्रवक्कमति । ० Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ नायाधम्मकहाओ परितंता निविण्णा समाणा सणियं-सणियं पच्चोसक्कंति, दोच्चंपि एगंतमवक्कमति । एवं चत्तारि वि' पाया ।। १६. •तए णं से कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए जाणित्ता सणियं-सणियं गीवं नीणेइ॥ १७. तए णं ते पावसियालगा तेणं कुम्मएणं [सणियं-साणियं ? ] गीवं नीणियं पासंति, पासित्ता सिग्धं तुरियं चवलं 'चंडं जइणं वेगियं जेणेव से कुम्मए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तस्स णं कुम्मगस्स तं गीवं ° नहेहिं [पालुपंति ?] दंतेहि कवालं विहाडेंति, विहाडेत्ता तं कुम्मगं जीवियानो ववरोवेंति, ववरोवेत्ता मंसं च सोणियं च आहारेति ॥ १८. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइए समाणे, पंच य से इंदिया अगुत्ता भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे निंदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे,° परलोए वि य णं आगच्छइ-बहूणि दंडणाणि' •य बहुणि मडणाणि य बहूणि तज्जणाणि य बहूणि तालणाणि य बहूणि अंबंधणाणि य बहूणि घोलणाणि य बहूणि माइमरणाणि य बहूणि पिइमरणाणि य बहुणि भाइमरणाणि य बहूणि भगिणीमरणाणि य बहूणि भज्जामरणाणि य बहणि पुत्तमरणाणि य बहूणि धूयमरणाणि य बहूणि सुण्हामरणाणि य। बहूणं दारिद्दाणं बहूणं दोहग्गाणं बहूणं अप्पियसंवासाणं बहूणं पियविप्पोगाणं बहूणं दुक्ख-दोमणस्साणं प्राभागी भविस्सति, अणादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं भुज्जो-भुज्जो' अणुपरियट्टिस्सइ-जहा व से कुम्मए अगुत्तिदिए । गुसकुम्मस्स सोक्ख-पदं १६. तए णं ते पावसियालगा जेणेव से दोच्चे कुम्मए तेणेव उवागछंति, उवागच्छित्ता तं कम्मगं सव्वो समंता उव्वत्तेति •परियत्तेति प्रासारेंति संसारेंति चालेंति घटेति फंदेति खोभेति नहेहिं आलुपंति दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेव णं १. x (ख, ग)। २. सं० पा०-जाव सणियं । ३. सं० पा०-चवलं नहेहि। ४. 'समाणे' इत्यत्र विहरतीति शेषो द्रष्टव्यः ५. सं० पा०--हीलणिज्जे । ६. सं. पा०-दंडणाणि जाव अणपरियट्रइ । ७. सं० पा०-उव्वत्तेति जाव दंतेहि निक्खु डेंति जाव करेत्तए। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउत्थं अज्झयणं (कुम्म) १०७ संचाएंति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए॥ २०. तए णं ते पावसियालगा तं कुम्मगं दोच्चंपि तच्चपि उव्वत्तेति जाव', नो चेव णं संचायंति तस्स कुम्मगस्स सरीरस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा °उप्पाइत्तए° छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा जामेव दिसं पाउब्भया तामेव दिसं पडिगया ।। तए णं से कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए' जाणित्ता सणियं-सणियं गीवं नीणेइ, नीणेत्ता दिसावलोयं करेइ, करेत्ता जमगसमगं चत्तारि वि पाए नीणेइ, नीणेत्ता ताए उक्किट्ठाए' तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धयाए जइणाए छेयाए ° कुम्मगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परियणणं सद्धि अभिसमण्णागए यावि होत्था ।। २२. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं समणो वा समणी वा प्रायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारानो अणगारियं पव्वइए समाणे पंच य से इंदियाई गुत्ताई भवंति', •से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमसणिज्जे पूयणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ। परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं हिययउप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पूणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकतारं वीईवइस्सइ जहा व से कुम्मए गुत्तिदिए । निक्खेव-पदं २३. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। –त्ति बेमि ॥ १. ना० ११४।११। २. सं० पा०-वाबाहं वा जाव छविच्छेयं । ३. दूरगए (क, ख, ग, घ)। ४. सं० पा०-उक्किटाए प्फ कुम्मगईए। अत्र पाठ संक्षेपः 'फ' अनेन संकेतेन सूचितोस्ति । वृत्तौ पूर्णपाठस्य निर्देशो लभ्यते । ५. विहरतीति शेषः (व)। ६. सं० पा०–जाव जहा । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायाधम्मकहाऔ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा विसएसु इंदियाइं, रुंभंता राग-दोस-निम्मुक्का। पावेंति निव्वुइसुहं, कुम्मोव्व मयंगदहसोक्खं ॥१॥ इयरे उ अणत्थ-परंपराअो पावेंति पावकम्मवसा। संसार-सागरगया, गोमाउग्गसियकुम्मोव्व ॥२।। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं सेलगे उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवती' नाम नयरी होत्था पाईणपडीणायया उदीणदाहिणवित्थिण्णा नवजोयणवित्थिण्णा दुवालसजोयणायामा धणवइ-मइ-निम्मिया' चामीयर-पवर-पागारा नाणामणि-पंचवण्णकविसीसग-सोहिया अलकापुरि'-संकासा पमुइय-पक्कीलिया पच्चक्ख' देव लोगभूया ॥ ३. तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए रेवतगे' नाम पव्वए होत्था-तुंगे गगणतलमणुलिहंतसिहरे नाणाविहगुच्छ-गुम्म-लया-वल्लिपरिगए हंस-मिग-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाय-मयणसाल-कोइलकुलोववेए अणेगतड-कडग-वियर-उज्झर-पवायपब्भारसिहरपउरे अच्छरगण-देवसंघचारण-विज्जाहरमिहुण-संविचिण्णे निच्चच्छणए दसारवर-वीरपुरिस-तेलोक्कबलवगाणं, सोमे सुभगे पियदंसणे सुरूवे पासाईए दरिसणीए अभिरूवे पडिरूवे ॥ १. बारवई (क)। आदर्शगत-पाठभेदानुसारेण वृत्तावपि लिपि२. निम्माया (क, ग, घ); निम्मया (ख); क; भेद कृतः इति प्रतीयते । अस्माकं पार्वे वृत्तेः प्रादर्शद्वयमस्ति । ३. अलया (क, ख)। तत्रैकस्मिन धणवइमतिनिम्मियत्ति- ४. पच्चक्ख (ख)। 'धनपतिवैश्रमणः तन्मत्यानिमिता निरूपिता' ५. वहिया (क, ख)। दति पाठोस्ति । अपरस्मिनादर्श 'धणवइमइ- ६. रेवयए (क); रेवए (घ)। निम्मायत्ति-धनपतिवैश्रमणः तन्मत्या- ७. ° तडाग (क)। निर्मापिता निरूपिता' इति पाठोस्ति । ८. रायपसेणइयं (३२) सूत्रे 'संविकिण्ण' इति पाठो लभ्यते। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहानो ४. तस्स णं रेवयगस्स अदूरसामंते, एत्थ णं नंदणवणे नामं उज्जाणे होत्था सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे रम्मे नंदणवणप्पगासे पासाईए' दरिसणीए अभिरूवे पडिरूवे ॥ ५. तस्स णं उज्जाणस्स बहुमज्झदेसभाए सुरप्पिए नामं जक्खाययणे होत्था--- दिव्वे वण्णग्रो॥ ६. तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया परिवसइ। से णं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसण्हं दसाराणं, बलदेवपामोक्खाणं पंचण्हं महावीराणं, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसण्हं राईसाहस्सीणं', पज्जुन्नपामोक्खाणं अद्धढाणं कमारकोडीणं, संबपामोक्खाणं सट्रीए दृढतसाहस्सीणं, वीरसेणपामोक्खाणं एक्कवीसाए वीरसाहस्सीणं, महासेणपामोक्खाणं छप्पण्णाए बलवगसाहस्सीणं, रुप्पिणिप्पामोक्खाणं बत्तीसाए महिलासाहस्सीणं, अणंगसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं ईसर-तलवर - माडंबिय-कोडुबियइब्भ-सेट्रि-सेणावइ -सत्थवाहपभिईणं, वेयड्ढगिरि-सागरपेरंतस्स य दाहिणभरहस्स, बारवईए नयरीए आहेवच्चं •पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे ° पालेमाणे विहरइ ।। थावच्चापुत्त-पदं ७. तत्थ णं बारवईए नयरीए थावच्चा नामं गाहावइणी परिवसइ–अड्डा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवण-सयणासण-जाणवाहणा बहुधण-जायरूव-रयया आयोग-पयोग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा बहुँदासी-दास-गो-महिस गवेलग-प्पभूया बहुजणस्स ° अपरिभूया ॥ ८. तीसे णं थावच्चाए गाहावइणीए पुत्ते थावच्चापुत्ते नामं सत्थवाहदारए होत्था सूकुमालपाणिपाए अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे लक्खण-वंजण-गुणोववेए माणुम्माण-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पिय दसणे सुरूवे ॥ ६. तए णं सा थावच्चा गाहावइणी तं दारगं साइरेगअट्ठवासजाययं" जाणित्ता १. पासातीए (ग, घ)। ६. सं० पा०-तलवर जाव सत्थवाह । २. ओ० सू० २। ७. वियड्ढ ° (ख)। ३. रायसहस्साणं (क); रातीसहस्साणं (ग); ८. सं० पा०-आहेवच्चं जाव पालेमाणे । रायासहस्साणं (घ)। ६. सं० पा०-अड्ढा जाव अपरिभूया। ४. सट्ठी (क); सट्ठीणं (घ)। १०. सं० पा० -सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे । ५. महसेण ° (ख, घ)। ११. ० जाइं (ख); ° जायं (क्वचित्)। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयण (सेलगे ) १११ सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त - मुहुत्तंसि कलायरियस्स उवणेइ जाव' भोगसमत्थं जाणित्ता बत्तीसाए इब्भकुलबालियाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेइ । बत्तीस दा जाव' बत्तीसाए इब्भकुलबालियाहिं सद्धि विपुले सह-फरिस - रस-रूव-गंधे' 'पंचविहे माणुस्सर कामभोए भुंजमाणे विहरइ ॥ o श्ररिनेमि समवसरण-पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं रहा रिट्ठनेमी आइगरे तित्थगरे सो चेव वण्णय * दसणुस्सेहे नीलुप्पल-गवलगुलिय-प्रयसि कुसुमप्पगासे अट्ठारसहि समणसाहस्सीहिं', चत्तालीसाए श्रज्जियासाहस्सीहि सद्धि संपरिवडे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे "गामाणुगामं दृइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव वारवती नाम नगरी जेणेव रेवतगपव्वए जेणेव नंदणवणे उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जवखाययणे जेणेव सोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महापरूिवं प्रोग्गहं योगिन्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ११. परिसा निग्गया । धम्मो कहियो || कण्हस्स पज्जुवासणा-पदं १२. तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लट्ठे समाणे कोडुंबियपुरिसे सहावे, सद्दावेत्ता एवं वयासी – खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सभाए सुहम्माए मेघोघरसियं गंभीरमहुरसद्दं' कोमुइयं भेरि तालेह | १३. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ट" "चित्तमाणंदिया जाव" हरिसवस विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामी ! तह त्ति" आणाए विणणं ari पडणेंति, पडिसुणेत्ता कण्हस्स वासुदेवस्स अंतियाम्रो पडिनिक्खमंति, डिनिक्खमित्ता जेणेव सभा सुहम्मा, जेणेव कोमुइया भेरी, तेणेव उवागच्छंति, o १. ओ० सू० १४६-१४९ । २. ना० १।१।६१-६३ । ३. सं० पा० – सद्दफरिसरसरूवगंधे जाव भुंजमाणे । ४. अरिहा (क, ख, ग ) । ५. ओ० सू० १६ तथा वाचनान्तर पृ० १४०; अत्र 'संपाविउकामे' पर्यन्तं वर्णको ग्राह्यः । ६. ० साहस्सीहिं सद्धि संपरिवुडे (क, ख, ग, घ) ( औपपातिकसूत्रे सू० १६ ) ' चउद्दसहि समण साहस्सीहि, छत्तीसाए अज्जियासाह स्सीहिं सद्धि संपरिवुडे' एकवारमेव सद्धि संपरिवुडे, इतिपाठोस्ति । अन्यागमेष्वपि इत्थमेव दृश्यते । अत्रापि इत्थमेव युज्यते । ७. सं० पा० - चरमाणे जाव जेणेव । ८. गभीर (ख, घ) | C. सामुदा (द) इयं (वृपा) । १०. सं० पा० - हट्टतुट्ठ जाव मत्थए । ११. ना० १।१।१६ । १२. सं० पा० - तहत्ति जाव पडिसुर्णेति । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ नायाधम्मकहाओ उवागच्छित्ता तं मेघोघरसियं गंभीरमहुरसई कोमुइयं भेरि तालेति। तो निद्ध-महुर-गंभीर-पडिसुएणं पिव' सारइएणं बलाहएणं अणुरसियं भेरीए । १४. तए णं तीसे कोमुइयाए भेरीए तालियाए समाणीए बारवईए नयरीए नव जोयवित्थिण्णाए दुवालसजोयणायामाए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-कंदरदरी-विवर-कुहर-गिरिसिहर-नगरगोउर-पासाय-दुवार-भवण-देउल-पडिस्सुया - सयसहस्ससंकुलं' करेमाणे 'बारवति नयरि" सब्भितर-बाहिरियं सव्वग्रो समंता सद्दे विप्पसरित्था ॥ तए णं बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिण्णाए बारसजोयणायामाए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा जाव गणियासहस्साई कोमईयाए भेरीएसई सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव" हरिसवस-विसप्पमाणहियया व्हाया आविद्ध-वग्धारिय-मल्लदाम-कलावा अहयवत्थ-चंदणोकिन्नगायसरीरा१२ अप्पेगइया हयगया एवं गयगया रह-सीया -संदमाणीगया अप्पेगइया पायविहार चारेणं पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स अंतियं" पाउब्भवित्था ।। १६. तए णं से कण्हे वासुदेवे समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे जाव" अंतियं पाउब्भव माणे पासित्ता हट्टतुटु-चित्तमाणंदिए जावः हरिसवस-विसप्पमाणहियए कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउ रंगिणि सेणं सज्जेह", विजयं च गंधहत्थि उवट्ठवेह" । तेवि तहत्ति उवट्ठति ॥ १७. २० तए णं से कण्हे वासुदेवे ण्हाए जाव' सव्वालंकारविभूसिए विजयं गंधहत्थि दुरुढे समाणे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भड-चडगर-वंद १. कोमुदियं (ख, ग, घ)। सचात्र संक्षेपीकरणहेतुना परित्यक्तोभूदिति २. ताडेंति (ग)। प्रतीयते। ३. तिव (क)। ११. ना० १११।१६। ४. वियर (क)। १२. किन्नगासरीरा (ख, ग)। ५. पडिसुया (क, घ); पडिसुया (ख, ग)। १३. सिया (ख)। ६. ° संकुलसदं (क, ख)। १४. अंतिए (ग, घ)। ७. करेमाणा (क, ख, ग, घ); असो पाठः १५. ना० १।५।१५ । वृत्त्याधारेण स्वीकृतः । अत्र 'करेमाणे' १६. ना० १११।१६ । 'सट्टे' इति पदस्य विशेषणमस्ति । वृत्तौ- १७. सज्जेहा (ग) कुर्वन्निति व्याख्यातमुपलभ्यते । १८. उट्ठवेह (ग)। ८. बारवईए नयरीए (क)। १६. उट्ठवेंति (ग)। ६. ना० ११५।६। २०. सं० पा०-जाव पज्जुवासइ । १०. अतोग्रे 'ईसरतलवर' संबन्धिपाठो विद्यते, २१. ना० १ १ । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) परियाल-संपरिवुडे बारवतीए नयरीए मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवतगपव्वए जेणेव नंदणवणे उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहनो अरिट्टनेमिस्स छत्ताइच्छत्तं पडागाइपडागं विज्जाहर-चारणे जंभए य देवे अोवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता विजयालो गंधहत्थीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अरहं अरिटुनेमि पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, [तं जहा-सचित्ताणं दव्वाणं विसरणयाए, अचित्ताणं दवाणं अविउसरणयाए, एगसाडिय-उत्तरासंगकरणेणं, चक्खुफासे अंजलिपग्गहेणं, मणसो एगत्तीकरणेणं] । जेणामेव अरहा अरिटुनेमी तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्टनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता अरहनो अरिट्ठनेमिस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे पंजलिउडे अभिमुहे विणएणं° पज्जुवासइ ॥ थावच्चापुत्तस्स पव्वज्जासंकप्प-पदं । १८. थावच्चापुत्ते वि निग्गए। जहा मेहे' तहेव धम्म सोच्चा निसम्म जेणेव __ थावच्चा गाहावइणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ । जहा मेहस्स तहा चेव निवेयणा ॥ १६. तए णं तं थावच्चापुत्तं थावच्चा गाहावइणी जाहे नो संचाएइ विसयाणलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य बहूहि आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे अकामिया चेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स' निक्खमणमणुमन्नित्था । २०. तए णं सा थावच्चा [गाहावइणी?] आसणानो अब्भटेइ, अब्भदेत्ता महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता मित्त - नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणेणं सद्धि ° संपरिवुडा जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स भवणवरपडिदूवार-देसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पडिहारदेसिएणं मग्गेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल - परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं° वद्धावेइ, वद्धावेत्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं उवणे इ, उवणेत्ता एवं वयासी-एवं खलू देवाणुप्पिया ! मम एगे पुत्ते थावच्चापुत्ते नामं दारए --इठे कंते पिए मणुण्णे १. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते। लोमाहि इति पदस्य पूर्व विद्यते । २. पू०-ना० १११११०१, १०२। ६. X(ख, ग, घ)। ३. निसम्मा (ख, ग, घ)। ७. सं० पा०—मित्त जाव संपरिवूडा। ४. पू०-ना०१।१।१०२-११३ । ८. सं० पा०-करयल वद्धावेइ । ५. १।१।११४ सूत्र 'बहूहिं' इति पदं विसयाणु- ६. सं० पा०-इ8 जाव से णं । Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ नायाधम्मकहाओ मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययनंदिजणए उंबरपुप्फ पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए? से जहानामए उप्पले ति वा पउमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवड्डिए नोवलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव थावच्चापुत्ते कामेसु जाए भोगेसु संवड्डिए नोवलिप्पइ कामरएणं नोवलिप्पइ भोगरएणं ।' से णं देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गे भीए 'जम्मण-जर-मरणाणं इच्छइ अरहो अरिटुनेमिस्स' अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं ° पव्वइत्तए। अहण्णं निक्खमणसक्कारं करेमि । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! थावच्चापुत्तस्स निक्खममाणस्स छत्तमउड-चामरायो य विदिन्नारो॥ २१. तए णं कण्हे वासुदेवे थावच्चं गाहावइणि एवं वयासी-अच्छाहि णं तुम देवाणुप्पिए ! सुनिव्वुत-वीसत्था, अहण्णं सयमेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणसक्कारं करिस्सामि ॥ कण्हस्स थावच्चापुत्तस्स य परिसंवाद-पदं २२. तए णं से कण्हे वासुदेवे चाउरंगिणीए सेणाए विजयं हत्थिरयणं दुरूढे समाणे जेणेव थावच्चाए गाहावइणीए भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थावच्चापुत्तं एवं वयासी-मा णं तुमं देवाणुप्पिया ! मुंडे भवित्ता पव्वयाहि, भंजाहि णं देवाणुप्पिया ! विपुले माणुस्सए कामभोगे मम बाहुच्छाय-परिग्गहिए। केवलं देवाणुप्पियस्स अहं नो संचाएमि वाउकायं उवरिमेणं गच्छमाणं निवारित्तए । अण्णो ण देवाणुप्पियस्स जं किंचि आबाहं वा वाबाह वा उप्पाएइ, तं सव्वं निवारेमि ॥ २३. तए णं से थावच्चापुत्ते कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया ! मम जीवियंतकरं" मच्चु एज्जमाणं निवारेसि, जरं वा सरीररूव-विणासणि सरीरं अइवयमाणि निवारेसि, तए णं अहं तव बाहुच्छाय-परिग्गहिए विउले माणुस्सए कामभोगे भुंजमाणे विहरामि ॥ २४. तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तेणं एवं वुते समाणे थावच्चापुत्तं एवं १. लिपिसंक्षेपेण एतवान् पाठः परित्यक्तोस्ति। ६. ° छाया (ख)। स च १११।१४५ सूत्राधारेण पूरितोस्ति । ७. ° क्कायं (क)। २. सं० पा०-अरिट्ठ नेमिस्स जाव पव्वइत्तए। ८. अन्ने (घ)। ६. अहं णं (ख)। ६. ण्णं (ख, ग)। ४. नो (ग)। १०. विबाह (ख)। ५. ° प्पिया मम जीवियणुस्सए (ख)। ११. °करणियं (क, ख, घ)। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अभय णं (सेलगे) वयासी- - एए णं देवाणुप्पिया दुरइक्कमणिज्जा, नो खलु सक्का सुबलिएणावि देवेण वा दाणवेण वा निवारित्तए, नण्णत्थ' ग्रपणो कम्मक्खएणं ॥ २५. तए णं से थावच्चापुत्ते कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - जइ णं एए दुरइक्कमणिज्जा, नो खलु सक्का सुबलिएणावि देवेण वा दाणवेण वा निवारित, Store it a मक्खएणं । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! अण्णाण - मिच्छत्तविरह कसाय-संचियस्स प्रत्तणो कम्मक्खयं करितए || कण्हस्स जोगक्खेम-घोसणा - पदं २६. तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तेणं एवं वृत्ते समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- गच्छह णं देवाणुप्पिया ! सिंघाडग-तिग- चउक्क- चच्चर- चउम्मुह महापह • पहेसु महया - महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा उग्घोसणं देवापिया ! थावच्चापुत्ते संसारभउब्विग्गे भीए इच्छइ अरहो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता देवापिया ! राया वा जुवराया वा देवी वा कुमारे वा ईसरे वा तलवरे वा कोडुंबिय-माडंविय-इन्भ-सेट्ठि- सेणावइ- सत्थवाहे वा थावच्चापुत्तं पव्वयंतमणुपव्यय, तस्स णं कण्हे वासुदेवे ग्रणुजाणइ पच्छाउरस्स वि य से मित्त-नाइ - • नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स 'जोगक्खेम वट्टमाणी" पडिवहर त्ति कट्टु घोसणं घोसेह जाव घोसंति ॥ बारवईए नयरीए हत्थिखंधव रगया करेह - एवं खलु जम्मण - जर मरणाणं, पव्वइत्तए', तं जो खलु o थावच्चापुत्तस्स अभिनिक्खमण-पदं २७. तए णं थावच्चापुत्तस्स अणुराएणं पुरिससहस्सं निक्खमणाभिमुहं हायं सव्वालंकारविभूसियं पत्तेयं-पत्तेयं पुरिससहस्सवाहिणीसु सिवियासु दुरूढं समाणं मित्त-नाइ - परिवुडं थावच्चापुत्तस्स प्रतियं पाउब्भूयं ॥ १. अन्नत्थ ( ख, ग ) । २. अप्पणा ( क, ख, ग, वृ) । ३. स० पा०सक्का जाव नन्नत्थ । ४. सं० पा० - तिग जाव पहेसु । ५. पव्वतित्तते (ख, घ) । ६. अणुजाणाति ( ख ) । २८. तए णं से कहे वासुदेवे पुरिससहस्सं प्रतियं पाउब्भवमाणं पासइ, पासित्ता विपुरिसे सद्दावे, सद्दावेत्ता एवं वयासी - जहा मेहस्स निक्खमणाभिसेश्रो" ११५ ७. सं० पा० नाइ । ८. जोगक्खेमं वट्टमाणी (क, ख, ग ); जोगक्खेममणी (घ) । ९. सव्वालंकारभूसियं ( क, ख ) । १०. ना० १।१।१२२-१२८ । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेगखंभ-सयसन्निविट्ठ जाव' सीयं उवट्ठवेह ।। तए णं से थावच्चापुत्ते बारवतीए नयरीए मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवतगपव्वए जेणेव नंदणवणे उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहनो अरिट्रनेमिस्स छत्ताइछत्तं पडागाइपडागं विज्जाहर-चारणे जंभए य देवे ग्रोवयमाणे उप्पयमाणे पासइ°, पासित्ता सीयानो पच्चोरुहइ ॥ सिस्सभिक्खादाण-पदं ३०. तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तं पुरनो काउं जेणेव अरहा अरिटुनेमी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्टनेमि तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति, करेत्ता वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीएस णं देवाणुप्पिया ! थावच्चापुत्ते थावच्चाए गाहावइणीए एगे पुत्ते इटे कंते पिए मणुग्ण मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययनंदिजणए उंबरपुप्फ पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण दरिसणयाए ? से जहानामए उप्पले ति वा पउमे ति वा कुमुदे ति वा पंके जाए जले संवडिए नोवलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव थावच्चापुत्ते कामेसु जाए भोगेसू संवड़िए नोवलिप्पइ कामरएणं नोवलिप्पइ भोगरएणं। एस णं देवाणुप्पिया ! संसारभउद्विगे भीए जम्मण-जर-मरणाणं, इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइत्तए। अम्हे णं देवाणुप्पियाणं सिस्सभिक्खं दलयामो । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सभिक्खं ॥ ३१. तए णं अरहा अरिटुनेमी कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे एयमटुं सम्म पडिसुणेइ॥ ३२. तए णं से थावच्चापुत्ते अरहो अरिटुनेमिस्स अंतियानो उत्तरपुरत्थिमं दिसीभायं अवक्कमइ, सयमेव ° अाभरण-मल्लालंकारं प्रोमुयइ। ३३. तए णं सा थावच्चा गाहावइणी हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरण-मल्लालंकारं पडिच्छइ, हार-वारिधार-सिंदुवार-छिन्नमुत्तावलि-प्पगासाइं अंसूणि 'विणिम्मु १. सं० पा.-तहेव सेयापीएहिं कलसेहि २. ना० १।१।१२६ । ण्हावेइ जाव अरहओ अरिट्ठनेमिस्स ३. पू०-ना० १।१।१३०-१४३ । छत्ताइछत्तं पडागाइपडागं पासइ, पासित्ता ४. सं० पा०-सव्वं तं चेव जाव आभरणं । विज्जाहरचारणे जाव पासित्ता। ५. पडगसाडगेणं (ख)। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) यमाणी-विणिम्मुयमाणी" •रोयमाणी-रोयमाणी कंदमाणी-कंदमाणी विलवमाणी-विलवमाणी° एवं वयासी-जइयव्वं जाया ! घडियव्वं जाया ! परक्कमियव्वं जाया ! अस्सिं च णं अट्ठे नो पमाएयव्वं'। अम्हपि णं एसेव मग्गे भवउ त्ति कटु थावच्चा गाहावइणी अरहं अरिट्टनेमि वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया । थावच्चापुत्तस्स पव्वज्जागहण-पदं ३४. तए णं से थावच्चापुत्ते पुरिससहस्सेणं सद्धि सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव अरहा अरिटुनेमी तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं प्ररिट्ठनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ जाव' पव्वइए॥ थावच्चापुत्तस्स प्रणगारचरिया-पदं ३५. तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारे जाए-इरियासमिए भासासमिए •एसणासमिए प्रायाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्लपारिट्ठावणियासमिए मणसमिए वइसमिए कायसमिए मणगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी अकोहे प्रमाणे अमाए अलोहे संते पसंते उवसंते परिनिव्वुडे अणासवे अममे अकिंचणे निरुवलेवे, कंसपाईव मुक्कतोए संखो इव निरंगणे जीवो विव' अप्पडिहयगई गगणमिव निरालंबणे वायुरिव अप्पडिबद्धे सारयसलिलं व सुद्धहियए पुक्खरपत्तं पिव निरुवलेवे कुम्मो इव गुत्तिदिए खग्गविसाणं व एगजाए विहग इव विप्पमुक्के भारंडपक्खीव अप्पमत्ते कुंजरो इव सोंडीरे वसभो इव जायत्थामे सीहो इव दूद्धरिसे मंदरो इव निप्पकंपे सागरो इव गंभीरे चंदो इव सोमलेस्से सूरो इव दित्ततेए जच्चकंचणं व जायरूवे वसुंधरव्व सव्वफासविसहे सुहुययासणोव्व तेयसा जलते ॥ ३६. नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भवइ। [सेय पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वरो खेत्तो कालो भावो । दव्वओ-सच्चित्ताचित्तमीसेसु । खेत्तो -गामे वा नगरे वा रण्णे वा खले वा घरे वा अंगणे वा। कालो-समए वा प्रावलियाए वा आणापाणुए वा थोवे वा लवे वा मुहुत्ते वा १. विणिमुचमाणी-विणिमुंचमाणी (ख, ग, घ); सं० पा०-विणिम्मुयमाणी २ एवं । २. सं० पा०-पमाएयव्वं जाव जामेव । ३. ना० १।१।१४६,१५० । ४. सं० पा०-भासासमिए जाव विहरइ। औपपातिकसूत्रे स्थानद्वये (२७-२६, १६४) अनगार-वर्णको विद्यते । प्रस्तुतसूत्रस्यवृत्तों व्याख्यातादनगार-वर्णकात् तद् द्वयमपि भिन्नमस्ति। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ नायाधम्मकहाऔ अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा अयणे वा संवच्छरे वा अण्णयरे वा दीहकालसंजोए। भावप्रो-कोहे वा माणे वा माए वा लोहे वा भए वा हासे वा । एवं तस्स न भवइ'] ॥ ३७. से णं भगवं वासीचंदणकप्पे समतिणमणि-लेट्ठकंचणे समसुहदुक्खे इहलोग परलोग-अप्पडिबद्धे जीविय-मरण-निरवकंखे संसारपारगामी कम्मनिग्घायणढाए एवं च णं ° विहरइ ॥ ३८. तए णं से थावच्चापुत्ते अरहनो अरिटुनेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि' 'चउत्थ छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ।। थावच्चापुत्तस्स जणवयविहार-पदं ३६. तए णं अरहा अरिट्टनेमि थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स तं इन्भाइयं अणगार सहस्सं सीसत्ताए दलयइ ।। ४०. तए णं से थावच्चापुत्ते अण्णया कयाइं अरहं अरिट्टनेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे 'अणगारसहस्सेणं सद्धि" बहिया जणवयविहारं विहरित्तए। अहासुहं॥ ४१. तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धि' बहिया जणवयविहारं विहरइ॥ १. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते। ६. सद्धि तेणं उरालेणं उदग्गेणं (उग्गेणं२. सामाइयाई (ख, ग)। ख, ग) पयत्तेणं पग्गहिएणं (क, ख, ग, घ) । ३. सं० पा०-बहूहि जाव चउत्थ विहरइ पूर्वसूत्रे थावच्चापुत्रण विहारस्य अनुज्ञा (क, ख, ग, घ) । अत्र 'चउत्थ' शब्दानंतरं प्रार्थिता तत्र य. पाठोऽस्ति, तस्यानुसारेण 'जाव' शब्दो युज्यते । 'बहुहि' इति पदानन्तरं प्रस्तुतसूत्रेऽपि 'अणगारसहस्सेणं सद्धि बहिया 'जाव' शब्दोनर्थकोस्ति । प्रस्तुतसूत्रस्य जणवयविहारं विहरई' इत्येव पाठो द्वितीयश्रतस्कन्धस्य प्रथमवर्गधस्यप्रथमाध्ययने युक्तोस्ति । एतादृशे प्रसङ्ग सर्वत्रापि पि 'बहुहिं चउत्थ जाव विहरई' एवं पाठो एतावानेव पाठः उपलभ्यते । तेणं उरालेणं. लभ्यते। पग्गहिएणं' एतावान् पाठोऽत्र अतिरिक्त ४. सहस्सेणं अणगाराणं (क, ख, घ) । सहस्सेणं इव प्रतिभाति । अणगारेणं (ग) । अग्रिमसूत्रे 'अणगार । यद्यसौ पाठः स्वीक्रियेत, तदानीं 'पग्गहिएणं' सहस्सेणं सद्धि' इति पाठो लभ्यते । 'क्वचित्' इति पदस्यानन्तरं 'तवोकम्मेणं' इति पाठः प्रयुक्तादर्शषु अत्रापि इत्थमेव पाठोस्ति, आवश्यकोऽस्ति । तं विना कश्चिद अर्थतेनात्र स एव पाठः स्वीकृतः । सम्बन्धो नोपपद्यते। ५: अहासुहं देवाणुप्पिया ! (क) । Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अभयण (सेलगे) सेलग राय-पदं ४२. तेणं कालेणं तेणं समएणं सेलगपुरे नाम नगरे होत्या । सुभूमिभागे उज्जाणे सेलए राया । पउमावई देवी । मंडुए कुमारे जुवराया | ४३. तस्स णं सेलगस्स पंथगपामोक्खा' पंच मंतिसया होत्था - उप्पत्तियाए वेणइयाए कमाए पारिणामियाए उववेया रज्जधुरं चितयति ॥ ४४. थावच्चापुत्ते सेलगपुरे समोसढे । राया निग्गए || सेलगस्स गिहिधम्म- पडिवत्ति-पदं ४५. तए णं से सेलए राया थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स अंतिर धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ट - चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेता थावच्चापुत्तं अणगारं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी सहामि णं भंते ! निग्गथं पावयणं । पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । भुमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! जं णं तुब्भे वदह त्ति कट्टु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा जाव' इब्भा इब्भपुत्ता चिच्चा हिरण, एवं धणं धन्नं बलं वाहणं कोसं कोट्ठागारं पुरं अंतेउरं, चिच्चा विउलं धणकणग-रयण-मणि-मोत्तिय संख - सिल प्पवाल- संतसार - सावएज्जं विच्छड्डित्ता विगोवइत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मुंडा भवित्ता णं प्रगाराम्रो अणगारियं पव्वइया, तहा णं ग्रहं नो संचाएमि० जाव पव्वइत्तए, अहं णं देवाणुप्पियाणं ग्रंतिए चाउज्जामियं गिहिधम्मं पडिवज्जि - १. मड्डुए (क) सर्वत्र मद्दए ( ग ) ; मदुए (घ ) । २. ० मोक्खाणं (क, ग, घ ) 1 ३. सं० पा० धम्मं सोच्चा जहा ण देवाप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चत्ता हिरणं जाव पव्वइया तहा णं अहं णो संचाएमि पव्वइए । ४. राय० सू० ६८८ । ५. राय० सू० ६६५ । ६. अत्र 'पंचाणुव्वइयं' इति पाठः प्रवाहपतितः ११६ इवाभाति 1 अर्हतोऽरिष्टः समये चतुर्यामधर्मस्य प्रवृत्तिरासीत् । यथा केशिस्वामिना चित्तसारथये चतुर्यामधर्मस्य उपदेशः कृतः (रायपसेणइयं सू० ६६३ ) । चित्तसारथेव्र तस्वीकारेप्यस्य समीक्षा कृतास्ति, द्रष्टव्यं - रायपसेणइयं, ६६५ सूत्रस्य पादटिप्पणम् अत्रापि वस्तुतः 'चा उज्जामियं गिहिधम्मं' इति पाठ: समीचीनः प्रतिभाति । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० सामि । हासु देवाप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ ४६. तए से सेलए राया थावच्चापुत्तस्स प्रणगारस्स अंतिए चाउज्जामियं गिहिधम्मं उवसंपज्जइ ॥ सेलगस्स समणोवासग चरिया-पदं ४७. तए णं से सेलए राया समणोवासए जाए - श्रभिगयजीवाजीवे उवलद्ध पुण्णपावे ग्रासव-संवर-निज्जर-किरिया अहिगरण- बंधमोक्ख - कुसले ग्रसहेज्जे देवासुरनाग-जक्ख - रक्खस - किण्णर- किंपुरिस - गरुल- गंधव्व-महोरगाइए हिं देवगणेहिं निग्गंथा पावयणाश्रो प्रणइक्कमणिज्जे, निग्गंथे पावयणे णिस्सं किए णिक्कंखिए निव्वितिगिच्छे लट्ठे गहियट्ठे पुच्छियट्ठे अभिगयट्ठे विणिच्छियट्ठे अट्ठिमिजपेमाणुरागरत्ते 'अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे प्रयं परमट्ठे सेसे अणट्टे, ऊसियफलिहे अवगुयदुवारे चियत्तंते उर- परघरदार- पपवेसे चाउद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीस पडणं पोसहं सम्मं प्रणुपालेमाणे समणे निग्गंथे फासू- एस णिज्जेणं सण-पाणखाइम - साइमेणं वत्थ-पडिग्गह- कंवल- पायपुंछणेणं प्रोसहभेसज्जेणं पाडिहारिएणं य पीढफलग - सेज्जा - संथारएणं पडिलाभेमाणे सील व्वय-गुणवेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं ग्रहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहि • अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ४८. पंथगपामोक्खा पंच मंति-सया समणोवासया जाया ॥ ४६. थावच्चापुत्ते बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ ५०. तेणं कालेणं तेणं समएणं सोगंधिया नामं नयरी होत्था - वण्णो । नीलासोए उज्जाणे - वणो ॥ मायाम्म हा सुदंससेट्ठि पदं ५१. तत्थ णं सोगंधियाए नयरीए सुदंसणे नामं नयरसेट्ठी परिवसइ, अड्ढे जाव परिभू || सुपरिव्वायग- पर्द ५२. तेणं कालेणं तेणं समएणं सुए नामं परिव्वायए होत्था - 'रिउव्वेय' - जजुब्वेय' -साम सं० पा० - पंचाणुव्वइयं जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं । वृत्तौ 'पंचाणुव्वइयं' इति पदस्याग्रे 'सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं' इति पाठोऽस्ति । असावपि श्रपपातिकसूत्रात् उद्धृतोऽस्ति वृत्तिकृता । १. पडिवज्जित्त (वृ) । २. काहिस (वृ) | ३. वृत्तौ अस्य पाठस्य पूर्तिः कृताऽस्ति । तत्र कानिचित् पदानि भिन्नानि लभ्यन्ते । ४. ० सया य ( ग ) । ५. ओ० सू० १ । ६. ना० १।३।३ । ७. ना० १।५।७। परियुब्वेय ( ख ) । o ६. यजुब्वेय (घ); जउव्वेय ( क्व ० ) । Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयण (सेलगै) १२१ वेय-अथव्वणवेय-सद्वितंतकुसले" संखसमए लट्ठ पंचजम-पंचनियमजुत्तं सोयमूलयं दसप्पयारं परिव्वायगधम्म दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणे पण्णवेमाणे धाउरत्त-'वत्थ-पवर"-परिहिए तिदंड-कुंडिय-छत्तछन्नालय-अंकुस-पवित्तय-केसरि-हत्थगए परिव्वायगसहस्सेणं सद्धि संपरिवडे जेणेव सोगंधिया नयरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता परिव्वायगावसहंसि भंडगनिक्खेवं करेइ, करेत्ता संखसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ५३. तए णं सोगंधियाए नगरीए सिंघाडग'- तिग-चउक्क-चच्चर-च उम्मुह-महापह पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-एवं खलु सुए परिव्वायए इहमागए 'इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव सोगंधियाए नयरीए परिव्वायगावसहंसि संखसमएणं अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ॥ ५४. परिसा निग्गया ! सुदंसणो वि णीति ॥ सोयमलय-धम्म-पदं ५५. तए णं से सुए परिव्वायए तीसे परिसाए सुदंसणस्स य अण्णेसिं च बहूणं संखाणं परिकहेइ- एवं खलु सुदंसणा! अम्हं सोयमूलए धम्मे पण्णत्ते । से वि य सोए दविहे पण्णत्त, त जहा-दव्वसाए य भावसाए य। दवसोए उदएणं मदियाए य। भावसोए दब्भेहि य मंतेहि य। जं णं अम्हं देवाणुप्पिया! किंचि असुई भवइ तं सव्वं सज्जपुढवीए आलिप्पइ", तो पच्छा सुद्धेण वारिणा पक्खालिज्जइ, तो तं असुई सुई भवइ । एवं खलु जीवा जलाभिसेय-पूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गच्छति ॥ १. वृत्तिकारेणात्र वाचनान्तरं व्याख्यातमस्ति। तदनुसारेण 'कुडिय-कंचणिय-करोडिय तद् औपपातिकसूत्रे (९७) इत्थमस्ति- छत्त' एवं पाठ-संरचना स्यात् । औपपातिके रिउव्वेद - यज्जुव्वेद - सामवेद-अह० णवेद- (११७) पि इत्थं पाठक्रमो विद्यतेइतिहासपंचमाणं निघण्टुछट्ठाणं संगोवंगाणं कुडियाओ य कंचणियाओ य करोडियाओ सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा पारगा य भिसियाओ य'। धारगा सडंगवी सद्वितंतविसारया संखाणे ५. परिवत्तिय (ख, ग) अशुद्ध प्रतिभाति; सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे पवित्तिय (घ)।। अण्णेसु य बहूसु बंभण्णएसु य सत्थेसु ६. स. पा०-सिंघाडग । सुपरिणिट्टिए । ७. सं० पा०-इहमागए जाव विहरइ । २. पंचजाम (घ)। ८. निग्गए (क्व०)। ३. पवरवत्थ (ग)। ६. संखाणं धम्म (क्व०)। ४. वृत्तौ वाचनान्तरस्य उल्लेखो विद्यते, १०. आलिंपइ (ख)। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ सुदंसणस्स सोयमूलय- धम्मपडिवत्ति-पदं ५६. तणं से सुदंसणे सुयस्स प्रति धम्मं सोच्चा हट्टतुट्टे' सुयस्स ग्रंतियं सोयमूलयं धम्मं गेह, हत्ता परिव्वायए विउलेणं असण पाण- खाइम साइमेणं पडिला - भेमाणे संखसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ५७. तए णं से सुए परिव्वायए सोगंधियाम्रो नयरीओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता या जणवयविहारं विहरइ ॥ थावच्चापुत्तस्स सुदंसणेण संवाद-पदं ५८. तेणं कालेणं तेणं समएणं थावच्चापुत्तस्स समोसरणं । परिसा निग्गया । सुदंसण विणी । थावच्चापुत्तं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीतुम्हाणं किमूल धम्मे पण्णत्ते ? ५६. तए णं थावच्चापुत्ते सुदंसणेणं एवं वृत्ते समाणे सुदंसणं एवं वयासी - सुदंसणा ! विणमूल' धम्मे पण्णत्ते । सेविय विणए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- अगारfare अणगारविणए य । तत्थ णं जे से अगारविणए, से णं 'चाउज्जामिए गिहिधम्मे । तत्थ णं जे से अणगारविणए, से णं चाउज्जामा, तं जहा - सव्वाओ पाणाइवाया वेरमणं, सव्वा मुसावायाओ वेरमणं सव्वाश्रो अदिण्णादाणाम्रो वेरमणं, सव्वाओ बहद्धादाणाओ वेरमणं" । १. हट्टु (क, ख, ग ) । २. सं० पा० -- पडिलाभेमाणे जाव विहरइ । ३. णीओ ( ग ); निग्गओ ( क्व० ) । ४. भाणं (घ) । ५. विणयमूले ( ख, ग, घ ) । ६. आगार ° (ख, घ) । ७. पंच अणुव्वयाई सत्त सिक्खावयाई एक्कारस उवासगपडिमाओ । तत्थणं जे से अणगारविणए, से णं पंच महव्वयाई, तं जहासव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमण सव्वाओ राइभोयणाओ वेरमणं जाव मिच्छादंसणसल्लाओ वेरमणं, दसविहे पच्चक्खाणे बारस भिक्खुपडिमाओ (क, ख, ग, घ ) । मायाधम्मक हाओ एतत् अगारानगारविनययोनिरूपणं महावीर - कालीनं वर्तते । अर्हन्नरिष्टनेमिः द्वाविंशतितमः तीर्थंकरो विद्यते । तच्छासने चतुर्याम धर्मस्यैव निरूपणमासीत् । मज्झिमगा बावीस अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पण्णवयंति' इति स्थानाङ्गवति पाठेन उक्ताभिमतस्य पुष्टिर्जायते । उत्तराध्ययनेनापि (२३।२३-२८) अस्य समर्थनं भवति । अत्र पंचमहाव्रतात्मकस्य अनगारधर्मस्य तथा पंचाणुव्रत-सप्तशिक्षाव्रतात्मकस्य अगारधर्मस्य निरूपणं जातं तद्वर्णनसंक्रमणमेव प्रतीयते । स्थानाङ्ग चतुर्यामनिरूपणं इत्थमस्तिसव्वा पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वाश्रो मुसावाया वेरमणं सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं ( ४ । १३६) । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगै) १२३ इच्चेएणं दुविहेणं विणयमूलएणं धम्मेणं आणुपुव्वेणं अट्ठकम्मपगडीओ खवेत्ता लोयग्गपइट्ठाणा भवंति ॥ ६०. तए णं थावच्चापुत्ते सुदंसणं एवं वयासी-तुब्भण्णं सुदंसणा ! किंमूलए धम्मे पण्णत्ते? अम्हाणं देवाणुप्पिया ! सोयमूलए धम्मे पण्णत्ते । •से वि य सोए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वसोए य भावसोए य। दव्वसोए उदएणं मट्टियाए य । भावसोए दब्भेहि य मंतेहि य । जंणं अम्हं देवाणुप्पिया ! किंचि असुई भवइ तं सव्वं सज्जपुढवीए आलिप्पइ, तो पच्छा सुद्धेण वारिणा पक्खालिज्जइ, तो णं असुई सुई भवइ । एवं खलु जीवा जलाभिसेय-पूयप्पाणो अविग्घेणं° सग्गं गच्छंति ॥ तए णं थावच्चापुत्ते सुदंसणं एवं वयासी-सुदंसणा ! से जहानामए केइ पूरिसे एग महं रुहिरकयं वत्थं रुहिरेण चेव धोवेज्जा', तए णं सुदंसणा! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेण चेव पक्खालिज्जमाणस्स अत्थि काइ सोही ? नो इणट्रे" समटे । एवामेव सुदंसणा! तुब्भं पि पाणाइवाएणं जाव' बहिद्धादाणेणं नत्थि सोही, जहा तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं चेव पक्खालिज्जमाणस्स नत्थि सोही। सुदंसणा ! से जहानामए के इ पुरिसे एगं महं रुहिरकयं वत्थं सज्जिय-खारेणं प्रालिपई, आलिपित्ता पयणं आरुहेइ", पारुहेत्ता उण्हं गाहेइ, तो पच्छा सद्धणं वारिणा धोवेज्जा। से नूणं सुदंसणा! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स सज्जिय-खारेणं अणुलित्तस्स पयणं पारुहियस्स उण्हं गाहियस्स सुद्धेणं वारिणा पक्खालिज्जमाणस्स सोही भवइ ? हंता भवइ । एवामेव सुदंसणा! अम्हें पि पाणाइवायवेरमणेणं जाव" बहिद्धादाणवेरमणेणं अत्थि सोही, जहा वा तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स" सज्जियखारेणं अणलित्तस्स पयणं आरुहियस्स उण्हं गाहियस्स' सुद्धणं वारिणा पक्खालिज्जमाणस्स अत्थि सोही। १. सं० पा० -पण्णत्ते जाव सग्गं । ८. सज्जिया (क, घ)। २. धोएज्जा (क, ग, घ)। ६. अणु लिप्पति (ख, घ); अणुलिंपइ (ग)। ३. X (ख, ग)। १०. आरोहइ (घ)। ४. काय (क, ग)। ११. ना० ११५।५६ । ५. यणढे (क, ख)। १२. मिच्छादसणसल्लवेरमणेणं (क, ख, ग, घ)। ६. ना० ११५५६ । द्रष्टव्यम्-११५१५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ७. मिच्छादसणसल्लेणं (क, ख, ग, घ)। १३. सं० पा०-वत्थस्स जाव सद्धेणं । द्रष्टव्यम्-११५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ सुदंसणस्स विणयमूलय- धम्मपडिवत्ति-पदं ६२. तत्थ णं सुदंसणे संबुद्धे थावच्चापुत्तं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते ! [ तुब्भं अंतिए ? ] धम्मं सोच्चा जाणित्तए । ६३. तए णं थावच्चापुत्ते अणगारे सुदंसणस्स तीसे य महइमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं कहेइ, तं जहा - सव्वाश्री पाणाइवायाश्रो वेरमणं, सव्वा मुसावाया वेरमणं, सव्वाश्रो प्रदिण्णादाणाम्रो वेरमणं, सव्वाश्रो हिद्धादाणा' वेरमणं जाव' ॥ ६४. तए णं से सुदंसणे समणोवासए जाए - अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निम्गंथे फासु - एसणिज्जेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं वत्थ-पडिग्गह- कंबल - पाय पुंछणेणं सह-भेज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग सेज्जा - संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ ॥ o सुण सुदंसणस पडिसंबोध - पयत्त-पदं o ६५. तए णं तस्स सुयस्स परिव्वायगस्स इमीसे कहाए लट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे प्रभत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु सुदंसणेणं सोयधम्मं विप्पजहाय विणयमूले धम्मे पडिवण्णे, तं सेयं खलु मम सुदंसणस्स दिट्ठि वामेत्तए पुणरवि सोयमूलए धम्मे प्राघवित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता परिव्वायगसहस्सेणं सद्धि जेणेव सोगंधिया नगरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता परिव्वागावसहंसि भंडगनिक्खेवं करेइ, करेत्ता धाउरत्त-वत्थ-पवर-परिहिए पविरल- परिव्वायगेणं सद्धि संपरिवुडे परिव्वायगावसहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सोगंधियाए नयरीए मज्भंमज्झणं जेणेव सुदंसणस्स गिहे जेणेव सुदंसणे तेणेव उवागच्छइ ॥ ६६. तए णं से सुदंसणे तं सुयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो अब्भुट्ठेइ न पचेचुगच्छइ' नो आढाइ नो वंदइ तुसिणीए संचिट्ठइ || ६७. तए णं से सुए परिव्वायए सुदंसणं प्रणन्भुट्टियं' पासित्ता एवं वयासी - 'तुमं णं सुदंसणा ! प्रण्णया ममं एज्जमाणं पासित्ता प्रभुद्वेसि" पच्चुग्गच्छसि १. सं० पा० - जाव समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिला भेमाणे । २. एतत् १।५।५६ सूत्रात् पूरितम् । ३. राय० ६६४-६६७ । मायाधम्मक हाओ जाए ४. ना० १।५।४७ । ५. सं० पा० – अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था | ६. X ( क, ख, ग, घ ) । ७. पत्तुगच्छइ (घ ) । ८. अणुब्भुट्टियं ( ख, ग, घ ) । ६. तुमणं ( क ) । १०. सं० पा० – अब्भुट्टेसि जाव वंदसि । Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अभयणं (सेलगे) १२५ प्राढासि वंदसि, इयाणि सुदंसणा ! तुमं ममं एज्जमाणं पासित्ता' 'नो अब्भुट्ठेसि नो पच्चुग्गच्छसि नो ग्राढासि नो वंदसि । तं कस्स णं तुमे सुदंसणा ! इमेयारूवे विणयमूले धम्मे पडिवण्णे ? o O ६८. तए णं से सुदंसणे सुएणं परिव्वायगेणं एवं वृत्ते समाणे असणाश्रो प्रभु, अभुट्ठेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु सुयं परिव्वायगं एवं वयासी – एवं खलु देवाणुप्पिया ! ग्ररहो अरिनेमिस्स अंतेवासी थावच्चापुत्ते नामं अणगारे' 'पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे • इमागए इह चेव नीलासोए उज्जाणे विहरइ । तस्स णं अंतिए विणयमूले धम् पविणे || ६६. तए णं से सुए परिव्वायए सुदंसणं एवं वयासी- तं गच्छामो णं सुदंसणा ! तव धम्मायरियस थावच्चापुत्तस्स प्रतियं पाउब्भवामो, इमाई च णं एयारुवाई अट्ठाई ऊई पसिणा कारणाई वागरणाई पुच्छामो । तं जइ मे से इमाई अट्ठाई हेऊई पसिणारं कारणाई वागरणाई वागरेइ, तो णं वंदामि सामि । ग्रह मे से इमाई अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाइं० नो' arrts, तो णं ग्रहं एएहिं चेव अहिं हेऊहिं निप्पट्ट - पसिणवागरणं करिस्सामि || सुयस्स थावच्चापुत्तेण संवाद-पदं ७०. तणं से सुए परिव्वायगसहस्सेणं सुदंसणेण य सेट्टिणा सद्धि जेणेव नीलासोए उज्जाणे जेणेव थावच्चापुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थावच्चापुत्तं एवं वयासी - जत्ता ते भंते ? जवणिज्जं 'ते ( भंते ? ) ? अव्वाबाहं ( ते भंते ? ) ? फासूयं विहारं (ते भंते ? ) ?” ७१. तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारे सुएणं परिव्वायगेणं एवं वृत्ते समाणे सुयं परिव्वायगं एवं वयासी - सुया ! जत्तावि मे जवणिज्जं पि मे अव्वाबाहं पि मे फासु विहारं पि मे ॥ ७२. तणं से सुए थावच्चापुत्तं एवं वयासी - किं ते " भंते ! जत्ता ? १. सं० पा० - पासित्ता जाव नो वंदसि । २. सं० पा० - करयल ' । ३. सं० पा०-- अणगारे जाव इहमागए । ४. हे ऊणि ( क ) ; ऊति ( ख, ग, घ ) । ५. सं० पा० अट्ठाई जाव वागरेइ । ६. वाकरेइ ( ख, ग, घ ) । ७. सं० पा० - अट्ठाई जाव नो वागरेइ । ८. नो से ( ख, ग ) । ६. प्रयुक्तादर्शेषु एतेषु त्रिष्वपि प्रश्नेषु 'ते भंते ?" इति पाठो नास्ति । क्वचित्प्रयुक्तादर्श 'जवणिज्जं' इति पदस्याग्रे 'ते' इति पदं लभ्यते । तेनानुमीयते चतुर्ष्वपि प्रश्नेषु एवमासीत् । उत्तरसूत्रेणाप्यस्य पुष्टिर्जायते । १०. आदर्शषु 'ते' इति पदं न लभ्यते, किन्तु पूर्वप्रसंगानुसारेणात्र तद् युज्यते । भगवत्या ( १८/२०७ ) मपि इत्थमेव पाठो लभ्यते । Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ नायाधम्मकहाओ सुया ! जण्णं मम नाण-दंसण-चरित्त-तव-संजममाइएहिं जोएहिं जयणा, से तं जत्ता । से कि ते भंते ! जवणिज्ज ? सुया ! जवणिज्जे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-इंदियजवणिज्जे य नोइंदियजवणिज्जे य। से किं तं इंदियजवणिज्जे ? सुया ! जण्णं ममं सोतिदिय-चक्खिदिय-घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाई निरुवहयाई वसे वट्टति, से तं इंदियजवणिज्जे । से किं तं नोइंदियजवणिज्जे ? सुया ! जण्णं मम कोह-माण-माया-लोभा खीणा उवसंता नो उदयंति, से तं नोइंदियजवणिज्जे । से कि ते भंते ! अव्वाबाहं ? सुया ! जणं मम वाइय-पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका नो उदीरेंति, से तं अव्वाबाहं।। से कि ते भंते ! फासुयं विहारं ? सुया ! जण्णं पारामेसु उज्जाणेसु देउलेसु सभासु पवासु इत्थी-पसु-पंडगविवज्जियासु वसहीसु पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं ओगिण्हित्ता णं विहरामि, से तं फासुयं विहारं ॥ सरिसवयाणं भक्खाभक्ख-पदं ७३. सरिसवया ते भंते ! किं भक्खेया ? अभक्खेया ? सुया ! सरिसवया भक्खेया वि अभक्खेया वि। से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ-सरिसवया भक्खेया वि अभक्खेया वि ? सुया ! सरिसवया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-मित्तसरिसवया' य धण्णसरिसवया य। तत्थ णं जे ते मित्तसरिसवया ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-सहजायया सह वड्डियया सहपंसुकीलियया", ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। अग्रवतिषु त्रिष्वपि प्रश्नेषु आदर्शलब्धस्य सूत्रे 'सन्निवाइय' पदं विभक्त्यन्तं 'त' इति पदस्य स्थाने 'ते' इति पदं स्वीकृतमस्ति, तदाधारेणात्रापि तथैव स्वीकृतमस्ति । स्वीकृतम् । १. जवणिज्ज (क, ख, ग, घ)। भगवत्या ४. सरिसवता (ख, ग)। (१८।२०६) मपि इत्थमेव पाठो लभ्यते। ५. ° सरिसवा (ख, ग)। २. चिटुंति (ख)। ६. सरिसवा (ख, ग)। ३. सन्निवाइय (क, ख, ग, घ) । १११।११२ ७. °कीलयया (क); ° कीलया (ग, घ)। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) १२७ तत्थ णं जे ते धण्णसरिसवया' ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य। तत्थ णं जेते असत्थपरिणया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जेते सत्थपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-फासुया य अफासूया य । अफासूया णं सूया ! [समणाणं निग्गंथाणं?] नो भक्खेया। तत्थ णं जेते 'फासुया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-एसणिज्जा य अणेसणिज्जा' य । तत्थ णं जेते अणेसणिज्जा ते [णं समणाणं निग्गंथाणं?] प्रभक्खेया । तत्थ णं जेते एसणिज्जा ते विहा पण्णत्ता, तं जहा—जाइया य अजाइया य" । तत्थ णं जेते अजाइया ते [णं समणाणं निग्गंथाणं? ] अभक्खेया। तत्थ णं जेते जाइया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--लद्धा य अलद्धा य । तत्थ णं जेते अलद्धा ते [णं समणाणं निग्गंथाणं ? ] अभक्खेया। तत्थ णं जेते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया। एएणं अटेणं सुया ! एवं वुच्चइ–सरिसवया भक्खेया वि अभक्खेया वि ।। कुलत्थाणं भक्खाभक्ख-पदं ७४. "कुलत्था ते भंते ! किं भक्खेया ? अभक्खेया ? सुया ! कुलत्था भक्खेया वि अभक्खेया वि । से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ -कुलत्था भक्खेया वि अभक्या वि ? सुया ! कुलत्था दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थिकुलत्था य धण्णकुलत्था य । तत्थ णं जेते इत्थिकुलत्था ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–कुलवहुया इ य कुलमाउया इ य कुलधूया इ य । ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते धण्णकुलत्था ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य । तत्थ णं जेते असत्थपरिणया ते समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते सत्थपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - फासुया य अफासुया य । अफासुया णं सुया ! समणाणं निग्गंथाणं नो भक्खेया। तत्थ णं जेते १. सरिसवा (क, ख, ग, घ)। भगवतीवर्तिपाठक्रमः संगतोस्ति । याचिता२. जातिया (क, ख, ग, घ)। नन्तरं एषणीयत्वस्य कापेक्षा स्यात् लिपि३. अजातिया (क, ख, ग, घ)। दोषेण अस्य परिवर्तनं जातमथवा अन्येन ४. भगवतीसूत्रे सोमिलप्रश्नोत्तरप्रसंगे (१८॥ केनचित् कारणेन, नेति वक्तुं शक्यते। २१४) एसणिज्जा अणेसणिज्जा, जाइया ५. सं० पा०-एवं कुलत्था वि भाणियव्वा । अजाइया, असौ पाठक्रमो विद्यते । तत्र नवरं-इनं नाणत्तं-इत्थिकुलत्था य 'अफासया फासुया' इति पाठो नास्ति । अत्र धन्नकुलत्था य। इत्थिकुलत्था तिविहा 'जाइय' इति पाठानन्तरं 'एसणिज्जा अणे- पण्णत्ता, तं जहा-कुलवहुया इ य कुलमाउया सणिज्जा' इति पाठोस्ति । द्वयोस्तुलनायां इ य कुलधूया इ य । धन्नकुलत्था तहेव । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ नायाधम्मकहाओ फासुया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य । तत्थ णं जेते अणेसणिज्जा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते एसणिज्जा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—जाइया य अजाइया य तत्थ णं जेते अजाइया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते जाइया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-लद्धा य अलद्धा य । तत्थ णं जेते अलद्धा ते अभक्खेया। तत्थ णं जेते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया। एएणं अद्वेणं सुया ! एवं वुच्चइ-कुलत्था भक्खेया वि अभक्खेया वि० ॥ मासाणं भक्खाभक्ख-पदं ७५. "मासा ते भंते ! किं भक्खेया ? अभक्खया ? सुया ! मासा भक्खेया वि अभक्खेया वि । से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ --मासा भक्खेया वि अभक्खया वि ? सुया ! मासा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-कालमासा य अत्थमासा य धण्णमासा य। तत्थ णं जेते कालमासा ते दुवालसविहा पण्णत्ता, तं जहा-सावणे भद्दवए आसोए कत्तिए मग्गसिरे पोसे माहे फग्गुणे चेत्ते वइसाहे जेट्ठामूले आसाढे । ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते अत्थमासा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य । ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते धण्णमासा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य । तत्थ णं जेते असत्थपरिणया ते समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया । तत्थ णं जेते सत्थपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-फासुया य अफासुया य । अफासुया णं सुया ! समणाणं निग्गंथाणं नो भक्खेया । तत्थ णं जेते फासुया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य । तत्थ णं जेते अणेसणिज्जा ते णं समणाण निग्गंथाणं अभवखेया। तत्थ णं जेते एसणिज्जा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--जाइया य अजाइया य । तत्थ णं जेते अजा इया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते जाइया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-लद्धा य अलद्धा य । तत्थ णं जेते अलद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । १. सं० पा०-एवं मासा वि। नवरं-इम नाणत्तं-मासा तिविहा पण्णत्ता, तं जहाकालमासा य अत्थमासा य धन्नमासा य । तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं दुवालस, तं जहा-सावणे जाव आसाढे। ते ण अभक्खेया। अस्थमासा दुविहा--हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य । ते णं अभक्खेया। धन्नमासा तहेव। Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) १२६ तत्थ णं जेते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं भक्खेया। एएणं अटेणं सुया ! एवं वुच्चइ-मासा भक्खेया वि अभक्खेया वि०॥ अत्थित्त-पण्ह-पदं ७६. एगे भवं ? दुवे भवं ? अक्खए भवं ? अब्बए भवं ? अवट्ठिए भवं ? अणेगभूय भाव-भविए भवं? सुया ! एगे वि अहं', 'दुवेवि अहं, अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, अणेगभूय-भाव-भविए वि अहं । से केणट्रेणं भंते ! एगे वि अहं' ? 'दुवेवि अहं ? अक्खए वि अहं ? अव्वए वि अहं ? अवट्टिए वि अहं ? अणेगभूय-भाव-भविए वि अहं ? ० सुया ! दव्वट्ठयाए ‘एगे वि अहं", नाणदंसणट्ठयाए दुवे वि' अहं, पएसट्टयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवयोगट्ठयाए अणेगभूय भाव-भविए वि' अहं ।। सुयस्स परिव्वायगसहस्सेण पव्वज्जा-पदं ७७. एत्थ णं से सुए संबुद्धे थावच्चापुत्तं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी इच्छामि णं भंते ! तुम्भं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्म निसामित्तए । ७८. "तए णं थावच्चापुत्ते अणगारे सुयस्स चाउज्जामं धम्मं कहेइ ॥० ७६. तए णं से सुए परिव्वायए थावच्चापुत्तस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! परिव्वायगसहस्सेणं सद्धि संपरिवुडे देवाणप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता पव्वइत्तए । __अहासुहं देवाणुप्पिया ॥ •तए णं से सुए परिव्वायए उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए अवक्कमइ, अवक्कमित्ता तिदंडयं य कुंडियानो य छत्तए य छन्नालए य अंकुसए य पवित्तए य केसरियायो य° धाउरत्तानो य एगते एडेइ, सयमेव सिहं उप्पाडेइ, उप्पाडेता जेणेव थावच्चापुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थावच्चापुत्तं अणगारं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता थावच्चापुत्तस्स अणगारस्स अंतिए मंडे 'भवित्ता पव्वइए । सामाइयमाइयाई चोदसपुव्वाइं अहिज्जइ ॥ १. भगवतीसूत्रे (१८।२१३-२१८) एतत्तुल्यं ६. X (घ)। प्रकरणमस्ति, क्वचित-क्वचित् किंचित् पाठ- ७. सं० पा०-धम्मकहा भाणियव्वा । भेदो विद्यते। 5. सं० पा०-उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए २. सं० पा०—अहं जाव अणेगभूयभाव भविए। तिदंडयं जाव धाउरत्तायो। ३. स. पा०-अहं जाव सुया।। ६. सं० पा०-थावच्चापुत्ते जाव मुंडे । ४. एगेहं (क) एगे अहं (ख, ग घ)। १०. भवित्ता जाव पव्वइए (ख, ग, घ); अत्र ५. ४ (ख, ग, घ)। 'जाव' शब्दस्य विपर्ययो जातोस्ति । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० नायाधम्मकहाओ सुयस्स जणवयविहार-पदं ८१. तए णं थावच्चापुत्ते सुयस्स अणगारसहस्सं सीसत्ताए वियरइ ॥ ८२. तए णं थावच्चापुत्ते सोगंधियायो नयरीनो नीलासोयानो उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ थावच्चापुत्तस्स परिनिव्वाण-पदं ८३. तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धि संपरिवुडे जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहइ', दुरुहित्ता' मेघधणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढवि' सिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता जाव' संलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए° पापोवगमणंणुवन्ने ॥ ८४. तए णं से थावच्चापुत्ते बहणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता जाव' केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेता तो पच्छा सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्ख °प्पहीणे ॥ सेलगस्स अभिनिक्खमणाभिप्पाय-पदं ८५. तए णं से सुए अण्णया कयाइ जेणेव सेलगपुरे नगरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं ओग्गहं अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ° ॥ ८६. परिसा निग्गया। सेलो निग्गच्छइ । ८७. "तए णं से सेलए सुयस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हद्वतुटे सुयं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जाव" नवरं" देवाणुप्पिया ! १. रोहति (ख)। ७. सं० पा०-समोसरणं । २, प्रतोग्रे १।१।२०६ सूत्रे 'सयमेव' इति ८. सं० पा.-धम्म सोच्चा जं नवरं । __ पदं विद्यते। ६. अत्र पाठपूतिकारणेन 'निग्गंथं पावयणं' ३. सं० पा०-पूढवि जाव पापोवगमणं । ___ इति पदं प्राप्तं किन्तु ऐतिहासिकदृष्टयात्र ४. ना० ११२।२०६ । 'अरहंतं पावयणं' इति पदं समीचीनं स्यात् । ५. असौ पाठः भगवती (६।१५१) सूत्रात् १०. ना० १।१।१०१ । पूर्तिमर्हति, तद्महावीरकालीनं वर्णनमस्ति, ११. जं नवरं (क, ख, ग, घ); संभवत: 'ज' ततो नाक्षरशोत्र घटनामहति । इति पदं 'जं तुब्भे वदह' इति पाठस्य ६. सं० पा०—सिद्धे जाव प्पहीणे । संकेतरूपमस्ति। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अग्झयणं (सेलगे) पंथगपामोक्खाइं पंच मंतिसयाई आपुच्छामि, मंड्यं च कुमारं रज्जे ठावेमि । तो पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ॥ ५८. तए णं से सेलए राया सेलगपुरं नगरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणे' सण्णिसण्णे ।। ८६. तए णं से सेलए राया पंथगपामोक्खे पंच मंतिसए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए सुयस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। 'तए णं अहं' देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गे •भीए जम्मण-जर-मरणाणं सुयस्स अणगारस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं° पव्वयामि । तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! किं करेह ? कि ववसह' ? 'किं वा में हियइच्छिए सामत्थे ? १०. तए णं ते पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया सेलगं रायं एवं वयासी-जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गा जाव पव्वयह, अम्हं णं देवाणुप्पिया ! के अण्णे याहारे वा आलंबे वा ? अम्हे वि य णं देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गा जाव पव्वयामो। जहा णं" देवाणुप्पिया ! अम्हं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य२ •कुडंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाणं आहारे आलंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए प्रालंबणभूए चक्खुभूए°, तहा णं पव्वइयाण वि समाणाणं बहुसु कज्जेसु य जाव चक्खुभूए॥ ६१. तए णं से सेलगे पंथगपामोक्खे पंच मंतिसए एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे संसारभउव्विग्गा जाव" पव्वयह, तं गच्छह णं देवाणुप्पिया ! सएसु-सएसु १. सिहासण (क, ख, ग, घ)। ८. ना० ११८६ २. अभिरुतिते (ग)। ___६. किं (ख, ग, घ)। ३. तए णं अहन्नं (ख); अहन्नं (ग)। १०. जह (ख)। ४. सं० पा०-संसारभउव्विग्गे जाव पव्वयामि । ११. x (क, ख, ग, घ)। ५. वसह (ग, घ)। १२. सं० पा०-कारणेसु य जाव तहा । ६. ते (ख, ग)। १३. समणाणं (क, ख, ग, घ)। ७. किं भे हियइच्छिए, किं भे सामत्थे १४. ना० १३०८८ । (भ० १८।४५) । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ नायाधम्मकहाओ कुटुंबेसु' जेट्टपुत्ते कुटुंबमझे' ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीप्रो' सीयालो दुरूढा समाणा मम अंतियं पाउब्भवह । ते वि तहेव पाउन्भवति ।। मंडुयस्स रायाभिसेय-पदं ६२. तए णं से सेलए राया पंच मंतिसयाई पाउब्भवमाणाई पासइ, पासित्ता हट्ठतुढे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं° रायाभिसेयं उवट्ठवेह ।। ६३. "तए णं ते कोडुंबियपुरिसा मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं __रायाभिसेयं उवट्ठवेंति ॥ ६४. तए णं से सेलए राया बहूहिं गणनायगेहि य जाव' संधिवालेहि य सद्धि संपरि वुडे मंडुयं कुमारं जाव रायाभिसेएणं अभिसिंचइ ।। ६५. तए णं से मंडुए राया जाए-महयाहिमवंत-महंत-मलय मंदर-महिंदसारे जाव' रज्ज पसासेमाणे ° विहरइ ॥ सेलयस्त निक्खमणाभिसेय-पदं ६६. तए णं से सेलए मंडुयं रायं आपुच्छइ॥ १७. तए णं मंडुए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सेलगपुरं नयरं आसिय-सित्त-सुइय-सम्मज्जियोवलित्तं जाव सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्च प्पिणह ६८. तए णं से मंडुए दोच्चं पि कोडुबियपुरिसे एवं' वयासी-खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया ! सेलगस्स रण्णो महत्थं २ महग्धं महरिहं विउलं • निक्खमणाभिसेयं [करेह ?] जहेव मेहस्स तहेव नवरं-पउमावती देवी अग्गकेसे पडिच्छइ, सच्चेव पडिग्गहं गहाय सीयं दुरुहइ । अवसेसं तहेव जाव" ॥ १. कोडंबेसु (ख)। ८. ओ० सू०१४। २. कोडुंब ° (घ)। है. सं० पा०-आसिय जाव गंधवद्रिभूयं । ३. वाहिणीयाओ (घ)। १०. ना० १११।३३। ४. सं० पा०-महत्थं जाव रायाभिसेयं । ११. सद्दावेइ २ एवं (क)। ५. सं० पा०-अभिसिंचइ जाव राया जाए १२. सं० पा०-महत्थं जाव निक्खमणाभिसेयं । विहरइ। १३. ना० १३१२१२२-१३२। ६. ना०१।१।२४। १४. ना० १।१।१३४-१४३, ११५।२६-३३ । ७. ना० ११११११८ । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) १३३ सेलगस्स पव्वज्जा-पदं ६६. "तए णं से सेलगे [पंचहिं मंतिसएहि सद्धि' ?] सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव सुए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुयं अणगारं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ जाव' पव्वइए । सेलगस्स अणगारचरिया-पदं १००. तए णं से सेलए अणगारे जाए जाव' कम्मनिग्घायणट्ठाए एवं च णं विहरइ ॥ १०१. तए णं से सेलए सुयस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए ° सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ-'छट्ठम - दसम - दुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणे° विहरइ । सुयस्स परिनिव्वाण-पदं १०२. तए णं से सुए सेलगस्स अणगारस्स ताई पंथगपामोक्खाइं पंच अणगारसयाई सीसत्ताए वियरइ ॥ १०३. तए णं से सुए अण्णया कयाइ सेलगपुराओ नगरानो सुभूमिभागाओ उज्जा णाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ तए णं से सुए अणगारे अण्णया कयाई तेणं अणगारसहस्सेणं सद्धिं संपरिवडे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव पंडरीयपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहइ, दुरुहित्ता मेघघणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता जाव' संलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए पापोव गमणंणुवन्ने ॥ १०५. तए णं से सुए बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झसित्ता, सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तो पच्छा सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्प हीणे ॥ सेलगस्स रोगातंक-पदं १०६. तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य ल हेहि १. सं० पा०---अवसेस तहेव जाव सामाइय- ४. ना० ११५।३५-३७ । माइयाई। ५. सं० पा०-चउत्थ जाव विहरइ । २. प्रव्रज्या-प्रसंगे मंत्रिणामुल्लेखोनोपलभ्यते, ६. कयाई (ख)। सच आवश्यकोस्ति । तेनासो पाठः प्रकरण- ७. सं० पा०-पव्वए जाव सिद्धे० । सादृश्येन थावच्चापुत्रवर्णनगत ३४ सूत्रात् ८. ना० १११।२०६ । पूरितोस्ति । ६. भग०४१५१ । ३. ना० १११११४६,१५० । Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ नायाधम्मकहानो य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कंतेहि य पमाणाइक्कंतेहि य निच्चं पाणभोयणेहि य पयइ-सुकुमालस्स सुहोचियस्स' सरीरगंसि 'वेयणा पाउब्भूया'.-उज्जला' विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा ° दुरहियासा। कंडु-दाह-पित्तज्जर-परिगयसरीरे यावि विहरइ॥ १०७. तए णं से सेलए तेणं रोयायंकेणं सुक्के भक्खे जाए यावि होत्था । १०८. तए णं से सेलए अण्णया कयाइ पुव्वाणुपुब्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सेलगपुरे नयरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ; उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ॥ १०६. परिसा निग्गया। मंडुनो वि निग्गो सेलगं अणगारं 'वंदइ नमसइ पज्जु वासई ॥ सेलगस्स तिगिच्छा-पदं ११०. तए णं से मंडुए राया सेलगस्स अणगारस्स सरीरगं सुक्कं भक्खं सव्वाबाहं सरोगं पासइ, पासित्ता एवं वयासी-अहण्णं भंते ! तुम्भं अहापवत्तेहि तेगिच्छिएहि अहापवत्तेणं ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेणं तेगिच्छं प्राउट्टावेमि । तूब्भे णं भंते ! मम जाणसालासु समोसरह, फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा संथारगं योगिण्हित्ताणं विहरह। १११. तए णं से सेलए अणगारे मंडुयस्स रण्णो एयमहूँ तह 'त्ति' पडिसूणेइ । ११२. तए णं से मंडुए सेलगं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसि पाउब्भए तामेव दिसि पडिगए॥ ११३. तए णं से सेलए कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव'५ उट्ठियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते स-भंड-मत्तोवगरणमायाए पंथगपामोखेहि पंचहिं १. निच्च य (क, ख, ग, घ)। प्रतिस्थलमद्यापि क्वापि नोपलब्धम । २. सुहोइयस्स (ग)। ८. अहापउत्तेहिं (ख); अहापवत्तितेहिं (घ)। ३. रोगायंके पाउन्भूए (वृपा)। ६. तिगच्छएहि (क)। ४. सं० पा०-उज्जला जाव दुरहियासा। १०. अहापवित्तेणं (ख)। ५. सं० पा०-चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे ११. आउंटावेमि (क, ग, घ); आउंट्ठावेमि जाव विहरइ। (ख); आदर्शषु प्रायेण 'आउंटावेमि' इति ६. अणगारं जाव वंदइ नमसइ, २त्ता पज्जु- पाठो लभ्यते, वृत्तावत्र नास्त्यनुस्वारः । वासइ, २त्ता (क)। १२. दिसं (क)। ७. भुक्खं जाव (क, ख, ग, घ) अत्र आदर्शषु १३. ना० १११।२४ । 'जाव' शब्दः उपलभ्यते, किन्तु अस्य Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ पंचमं अज्झयणं (सेलगे) अणगारसएहि सद्धि' सेलगपुरमणुप्पविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव ‘मंडुयस्स रण्णो जाणसाला" तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता फासु-एसणिज्ज' •पीढ-फलग सेज्जा-संथारगं अोगिण्हित्ताणं विहरइ॥ ११४. तए णं से मंडुए तेगिच्छिए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे णं दवाणुप्पिया ! सेलगस्स फासु-एसणिज्जेणं 'पोसह-भेसज्ज-भत्तपाणणं° तेगिच्छं आउट्टेह॥ ११५. तए णं ते तेगिच्छिया मंडुएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा सेलगस्स अहा पवत्तेहि प्रोसह-भेसज्ज-भत्तपाणेहिं तेगिच्छं प्राउट्टेति, 'मज्जपाणगं च से उपदिसंति ॥ ११६. तए णं तस्स सेलगस्स अहापवत्तेहिं 'प्रोसह-भेसज्ज-भत्तपाणेहिं ° मज्जपाण एण य से रोगायंके उवसंते यावि होत्था-हढे गल्लसरीरे जाए ववगय रोगायंके ॥ सेलगस्स पमत्तविहार-पदं ११७. तए णं से सेलए तंसि रोगायकसि उवसंतंसि समाणंसि तंसि विपुले असण-पाण खाइम-साइमे मज्जपाणए य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववन्ने प्रोसन्ने प्रोसन्नविहारी, पासत्थे९ पासत्थविहारी कुसीले कुसीलविहारी पमत्ते पमत्तविहारी संसत्ते संसत्तविहारी उउबद्ध-पीढ- फलग-सेज्जा-संथारए° पमत्ते यावि विहरइ, नो संचाएइ फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणित्ता मंडुयं च रायं आपुच्छित्ता बहिया" 'जणवयविहारं • विहरित्तए॥ साहूहि सलगस्स परिच्चाय-पदं ११८. तए णं तेसिं पंथगवज्जाणं पंचण्हं अणगारसयाणं अण्णया कयाइ एगयो सहियाणं 'समुवागयाणं सण्णिसण्णाणं सण्णिविट्ठाणं° पुव्वरत्तावरत्तकाल १. ४ (ख, ग, घ)। १०. मल्लसरीरे (ग); बलियसरीरे (क्वचित)। २. मड्डुया जाणसाला (ग)। अत्र 'कल्ल' शब्दस्य ककारस्य गकारादेशो ३. सं० पा०-फासुयं पीढ जाव विहरइ । जातोस्ति । ४. तिगिच्छिए (क, ख)। ११. सं० पा०-एवं पासत्थे कुसीले पमत्ते । ५. सं० पा०-फासुएसणिज्जेणं जाव तेगिच्छ। १२. प्रोबद्ध (क, ख)। ६. आउटेह (क, ख, ग)। १३. सं० पा०-पीढं । ७. X(क); मज्जण ० (ख, ग) सर्वत्र । १४. सं० पा०--बहिया जाव विहरित्तए। ८. सेलगस्स तेहिं २ (क)। १५. सं० पा०-सहियाणं जाव पुव्वरत्ता । ६. सं० पा०-अहापवत्तेहिं जाव मज्जपाणएण । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहाओ समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणाणं अयमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था-एवं खलु सेलए रायरिसी चइत्ता रज्जं जाव' पव्वइए विउले' असण-पाण-खाइम-साइमे मज्जपाणए य मुच्छिए नो संचाएइ फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणित्ता मंड्यं च रायं पापुच्छित्ता बहिया जणवयविहारं° विहरित्तए। नो खलु कप्पइ देवाणुप्पिया ! समणाण' निग्गंथाणं ग्रोसन्नाणं पासत्थाणं कुसीलाणं पमत्ताणं संसत्ताणं उउ-बद्ध-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए° पमत्ताणं विहरित्तए । तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं कल्लं सेलगं रायरिसि आपुच्छित्ता पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणित्ता सेलगस्स अणगारस्स पंथयं अणगारं वेयावच्चकरं ठावेत्ता बहिया अब्भुज्जएण' 'जणवयविहारेणं° विहरित्तएएवं संपेहेंति, संपेहेत्ता कल्लं जेणेव सेलए रायरिसी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेलयं रायरिसि आपुच्छित्ता पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणंति, पच्चप्पिणित्ता पंथयं अणगारं वेयावच्चकरं ठावेंति, ठावेत्ता बहिया •जणवयविहारं विहरंति ॥ पंथगस्स चाउम्मासिय-खामणा-पदं ११६. तए णं से पंथए सेलगस्स सेज्जा-संथारय-उच्चार-पासवण-खेल्ल-सिंघाणमत्त प्रोसह-भेसज्ज-भत्तपाणएणं अगिलाए विणएणं वेयावडियं करेइ ॥ १२०. तए णं से सेलए अण्णया कयाइ कत्तिय-चाउम्मासियंसि विउलं असण-पाण खाइम-साइमं प्राहारमाहारिए सुबहुं च मज्जपाणयं पीए पच्चावरण्हकाल समयंसि" सुहप्पसुत्ते ॥ १२१. तए णं से पथए कत्तिय-चाउम्मासियंसि कयकाउस्सग्गे देवसियं पडिक्कमणं १. सं० पा०-अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। १०. मज्जणपाययं (ख)। २. प्रो० सू० २३ । ११. पुवावरण्हकालसमयंसि (क, ख, ग, घ)। ३. विपुलेणं (क)। सर्वेषु आदर्शषु 'पुन्वावरण्ह °' इति पाठो ४. सं० पा०-संचाएइ जाव विहरित्तए । लभ्यते, किन्तु अर्थ-मीमांसया नासावत्र ५. सं० पा०-समणाणं जाव पमत्ताणं । अस्य संगतोस्ति । अत्र सायंकालीनसमयस्य पूर्तिः १११११० सूत्रे प्रदत्तसंकेतानुसारेण प्रसंगोस्ति, अत: 'पच्चावरण्ह०' इति कृतास्ति । पाठोस्माभिः गृहीतः । आदर्शषु लिपिदोषण ६. एतत् पदं ११।१२४ सूत्राधारेण स्वीकृतम् । 'पच्चा०' स्थाने 'पुव्वा' जातमिति ७. सं० पा०-- अब्भुज्जएणं जाव विहरित्तए । संभाव्यते। उपासकदशासूत्रेपि (६।१७) ८. सं० पा०-बहिया जाव विहरति । इत्थं जातमस्ति । ६. कत्तिया (ख)। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयण (सेलगे) पडिक्कते, चाउम्मासियं पडिक्कमिउकामे सेलगं रायरिसिं खामणट्टयाए सीसेणं पाएसु संघट्टेइ॥ सेलगस्स कोव-पदं १२२. तए णं से सेलए पंथएणं सीसेणं पाएसु संघट्टिए समाणे आसुरुत्ते' 'रुटे कुविए चंडिक्किए° मिसिमिसेमाणे उद्वेइ, उद्वेत्ता एवं वयासी-से केस णं भो ! एस अपत्थियपत्थए', 'दुरंत-पंत-लक्खणे, हीणपुण्णचाउद्दसिए, सिरि-हिरि-धिइ कित्ति-परि वज्जिए, जे णं ममं सुहपसुत्तं पाएसु संघट्टेइ ? १२३. तए णं से पंथए सेलएणं एवं वुत्ते समाणे भीए तत्थे तसिए करयल - परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि ° कटु एवं वयासी-'अहं णं" भंते ! पंथए कयकाउस्सग्गे देवसियं पडिक्कमणं पडिक्कते', चाउम्मासियं खामेमाणे देवाणुप्पियं वंदमाणे सीसेणं पाएसु संघट्टेमि । 'तं खामेमि णं तुन्भे देवाणुप्पिया' ! खमंतु णं देवाणुप्पिया! खंतुमरहंति णं देवाणुप्पिया ! नाइ भुज्जो एवंकरणयाए त्ति कटु सेलयं अणगारं एयमटुं सम्म विणएणं भुज्जो-भुज्जो खामेइ ।। सेलगस्स अब्भुज्जयविहार-पदं १२४. तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स पंथएणं एवं वुत्तस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था-एवं खल अहं चइत्ता रज्जं जाव पव्वइए प्रोसन्ने अोसन्नविहारी, पासत्थे पासत्थविहारी कुसीले कूसीलविहारी पमत्ते पमत्तविहारी संसत्ते संसत्तविहारी उउबद्ध-पीढ-फलगसेज्जा-संथारए पमत्ते यावि ° विहरामि। तं नो खलु कप्पइ समणाणं निग्गंथाण प्रोसन्नाणं पासत्थाणं कुसीलाणं पमत्ताणं संसत्ताणं उउबद्ध-पीढ १. सं० पा०-प्रासुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे। प्रयुक्तादर्शाधारेण स्वीकृतः। १।१६।२६५ २. सं० पा०-- अपत्थियपत्थिए जाव वज्जिए सूत्रेपि लभ्यते । (ख, ग, घ)। अत्रापि त्रिषु आदर्शषु अन्यत्र ७. खंतुमरुहंतु (क, ग); खमन्तु ममाराहं तुम च उपासकदशादिषु सूत्रेषु पाठान्तरनिर्दिष्ट: णं (ख)। पाठो लभ्यते, किन्तु 'पत्थय' इति पाठे ८. सं०पा०-अज्झिस्थिए जाव समप्पज्जित्था । समाससारल्यमस्ति। ६. सं० पा०-अहं रज्जं च जाव ओसन्न ३. सं० पा०-करयल। जाव उउबद्धपीढ विहरामि । ४. अहण्ण (ख)। १०. ओ० सू० २३। ५. पडिक्कते चाउम्मासिय पडिक्कते (क)। ११. सं० पा०-निग्गंथाणं जाव विहरित्तए । ३. x (क, ख, ग, घ); असौ पाठः क्वचिद् Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ भायाधम्मकहाओ १२५. फलग-सेज्जा-संथारए पमत्ताणं • विहरित्तए। तं सेयं खलु मे कल्लं मंडुयं रायं आपुच्छित्ता पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणित्ता पंथएणं अणगारेणं सद्धि बहिया अब्भुज्जएणं जणवयविहारेणं विहरित्तए – एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं' मंडुयं रायं आपुच्छित्ता पाडिहारियं पीढ-फलग-सेज्जासंथारगं पच्चप्पिणित्ता पंथएणं अणगारेणं सद्धि बहिया अब्भुज्जएणं जणवयविहारेणं ° विहरइ॥ एवामेव समणाउसो ! जे निग्गंथे वा निग्गंथी वा ओसन्ने 'प्रोसन्नविहारी, पासत्थे पासत्थविहारी कुसीले कुसीलविहारी पमत्ते पमत्तविहारी संसत्ते संसत्तविहारी उउबद्ध-पीढ-फलग-सेज्जा °-संथारए पमत्ते विहरइ, से गं इहलोए चेव बहूणं समणाणं वहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे निंदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं आगच्छइ बहूणि दंडणाणि' य प्रणादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंत-संसार कतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ ° ॥ १२६. तए णं ते पंथगवज्जा पंच अणगारसया इमीसे कहाए लट्ठा समाणा अण्णमण्णं सद्दाति, सद्दावेत्ता एवं वयासी --- एवं खलु देवाणुप्पिया ! सेलए रायरिसी पंथएणं 'अणगारेणं सद्धि बहिया अब्भुज्जएणं जणवयविहारेणं० विहरइ । तं सेयं खलु देवाणप्पिया! अम्हं सेलगं रायरिसिं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए एवं संपेहेंति, संपेहेत्ता सेलगं रायरिसिं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति ॥ १२७. तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा पंच अणगारसया •जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहंति, दुरुहित्ता मेघघणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहंति, पडिलेहित्ता जाव' संलेहणा-झूसणा-झूसिया भत्तपाण-पडियाइक्खिया पाओवगमणंणुवन्ना॥ १. अब्भूज्जएणं जाव (क, ख, ग, घ); अत्र ५. सं० पा०-हीलणिज्जे संसारो भाणियब्वो। जाव पदं अनावश्यक प्रतिभाति । शश११८ ६. पृ०-ना० ११३।२४ । सूत्र संक्षिप्तपाठः आसीत् तत्र 'जाव' ७. सं० पा०-पंथएणं जाव विहरइ । पदस्योपयोगित्वम्, किन्तु नात्र । ८. सं० पा०-पंच अणगारसया बहणि वासाणि २. स. पा०-कल्ल जाव विहरइ । सामण्णपरियागं पाउणित्ता जेणेव पुंडरीए ३. जाव (क, ग, घ); अत्र लिपिदोषेण 'जे' पव्वए तेणेव उवागच्छति जहेव थाणच्चापुत्ते पदस्य स्थाने 'जाव' इति पदं जातम् । तहेव सिद्धा। ४. सं० पा०-ओसन्ने जाव संथारए। ६. ना० १११।२०६। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (सेलगै) १३६ १२८. तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा पंच अणगारसया बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सर्टि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जाव' केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तो पच्छा सिद्धा बुद्धा मुत्ता अंतगडा परिनिव्वुडा सव्वदुक्खप्पहीणा ।। १२६. एवामेव समणाउसो! जो निग्गंथो वा निग्गंथी वा' 'अब्भुज्जएणं जणवय विहारेणं विहरइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे नमंसणिज्जे पूयणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासणिज्जे भवइ, परलोए वि य णं नो बहूणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं हिययउप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकतारं. वीईवइस्सइ ।। निक्खेव-पदं १३०. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते। -त्ति बेमि॥ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा सिढिलिय-संजम-कज्जा वि, होइउं उज्जवंति जइ पच्छा । संवेगाओ ते सेलो व्व पाराहया होंति ॥ १॥ १. भग० ६।३३। २. सं० पा०-निग्गंथो वा २ जाव विहरिस्सइ (क, ख, ग, घ); अत्र लिपिदोषेण 'वीईवइस्सई' स्थाने 'विहरिस्सइ' इति जातम् । यद्यत्र 'विहरिस्सइ' इति पदं स्यात्, तर्हि प्रस्तुतपाठस्य पूतिरपि न स्यात्, न च यच्छब्दस्योत्तरवर्ती तच्छब्दस्यनिर्देशोपि प्राप्तो भवेत । तेनात्र इति कल्पना कतु न्याय्या यल्लिपिदोषेण विपर्ययोसो जातः। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठें अज्झयणं उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, छट्ठस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं । परिसा निगया ।। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूई नाम अणगारे समणस्स भगवो महावीरस्स अदूरसामंते जाव' सुक्कज्झाणोव गए विहरइ ।। गरुयत्त-लहुयत्त-पदं ४. तए णं से इंदभूई नामं अणगारे जायसड्ढे जाव' एवं वयासी-कहणं' भंते ! जीवा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा हव्वमागच्छंति ? । गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं सुक्कतुंब निच्छिदं निरुवयं दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता मट्टियालेवेणं लिपइ, लिपित्ता उण्हे दलयइ, दलयित्ता सुक्कं समाणं दोच्चंपि दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता मट्टियालेवेणं लिपइ, लिपित्ता उण्हे दलयइ, दलयित्ता सुक्कं समाणं तच्चंपि दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, मट्टियालेवेणं लिपइ, उण्हे दलयइ । एवं खलु एएणुवाएणं अंतरा वेढेमाणे १. ओ० सू० ८२। २. ओ० सू० ८३ । ३. कह णं (क, ग)। ४. सुक्कं (क, घ)। १४० Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (तुंबे) १४१ अंतरा लिंपमाणे' अंतरा सुक्कवेमाणे जाव अहिं मट्टियालेवेहि लिंपइ', अत्थाहमतारमपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा'। से नूणं गोयमा ! से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवेणं गरुययाए' भारिययाए' गरुय-भारिययाए" उप्पि सलिलमइवइत्ता अहे धरणियल-पइट्टाणे भवइ। एवामेव गोयमा ! जीवा वि पाणाइवाएणं' 'मुसावाएणं अदिण्णादाणेणं मेहुणेणं परिग्गहेणं जाव' °मिच्छादसणसल्लेणं अणुपुव्वेणं अट्टकम्मपगडीयो समज्जिणित्ता तासि गरुययाए भारिययाए'२ गरुय-भारिययाए कालमासे कालं किच्चा धरणियलमइवइत्ता अहे नरगतल-पइट्ठाणा भवंति । एवं खलु गोयमा ! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छति । 'अह णं'५ गोयमा ! से तुंबे तंसि पढमिल्लुगंसि मट्टियालेवसि तित्तंसि कुहियंसि परिसडियंसि ईसि धरणियलायो उप्पतित्ता णं चिट्ठइ। तयाणंतरं दोच्चं पि मट्टियालेवे तित्ते कुहिए परिसडिए ईसि धरणियलाओ° उप्पतित्ता णं चिट्ठइ। एवं खलु एएणं उवाएणं तेसु असू मट्टियालेवेसु तित्तेसु कुहिएसु परिसडिएसु॰ [से तुंबे ? ] विमुक्कबधणे" अहे धरणियलमइवइत्ता उप्पि सलिलतल-पइट्ठाणे भवइ। एवामेव गोयमा ! जीवा पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादसणसल्लवेरमणेणं अणपुव्वेणं अट्टकम्मपगडीयो खवेत्ता गगणतलमुप्पइत्ता उप्पि लोयग्ग-पइदाणा भवंति । एवं खलु गोयमा ! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति ।। निक्खेव-पदं ५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं छटुस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। -त्ति बेमि ॥ १. लिपेमाणे (ख, घ)। ११. ना० १।१।२०६।। २. सुक्खवेमाणे (ख, ग, घ)। १२. X(क, ख)। ३. आलिंपइ (ख, ग)। १३. X(ग)। ४. पक्खेवेज्जा (ख)। १४. °मतिवतित्ता (ख); ° मतिवितित्ता (ग)। ५. गुरुय ° (ख, ग)। १५. अहण्णं (क, ग, घ)। ६. ४ (ख)। १६. पढमिलुगंसि (ख)। ७. X(ग)। १७. सं० पा० - मट्टियालेवे जाव उपतित्ता। ८. मतिवतित्ता (ख, ग)। १८. सं० पा०—तित्तेसु जाव विमुक्कबंधणे । ६. धरणितल (क)। १६. विमुक्कबंधणेसु (क)। १०. सं० पा०—पाणाइवाएणं जाव मिच्छा- २०. लहुत्तं (ख)। दसणसल्लेणं । २१. १।१।७। Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ नायाधम्मकहाओ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा जह मिउलेवालित्तं, गुरुयं तुंबं अहो वयइ । एवं कय-कम्मगुरू, जीवा वच्चंति अहरगइं ॥१॥ तं चेव तव्विमुक्क, जलोवरि ठाइ जाय-लहुभावं । जह तह कम्म-विमुक्का, लोयग्ग-पइट्ठिया होंति ॥२॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अझयणं रोहिणी उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं छठुस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नयरे होत्था । सुभूमिभागे उज्जाणे ।। धणसत्थवाह-पदं ३. तत्थ णं रायगिहे नयरे धणे नामं सत्थवाहे परिवसइ-अड्ढे जाव' अपरिभूए। भद्दा भारिया-अहीणपंचिंदियसरीरा जाव' सुरूवा ॥ ४. तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स पुत्ता भद्दाए भारियाए अत्तया चत्तारि सत्थवाह दोरगा होत्था, तं जहा-धणपाले धणदेवे धणगोवे धणरक्खिए॥ ५. तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स चउण्हं पुत्ताणं भारियानो चत्तारि सुण्हायो होत्था, तं जहा-उज्झिया भोगवइया रक्खिया' रोहिणिया ।। घणस्स परिक्खापओग-पदं ६. तए णं तस्स धणस्स सत्थवाहस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे 'अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्थाएवं खलु अहं रायगिहे नयरे बहूणं ईसर -तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भसेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह ° पभितीणं सयस्स य कुडुंबस्स बहूसु कज्जेसु य कारणेसु १. ना० ११५७। २. ना० ११२।८। ३. रक्खित्तिया (ग); रक्खितिया (घ)। ४. सं० पा०-इमेयोरूवे जाव समुप्पज्जित्था ५. सं० पा.--.-ईसर जाव पभितीणं । १४३ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ नायाधम्मक हाओ कोडुंबे मंतेय गुज्भेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य श्रापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाणं श्राहारे श्रालंबणे चक्खू, मेढीभूते पमाणभूते आहारभूते प्रालंबणभूते चक्खूभूए सव्वकज्जवड्ढावए । तं 'न नज्जइ" णं भए' गयंसि वा चुयंसि वा मयंसि वा भग्गंसि वा लुग्गंसि वा सडियंस वाडियंस वा विदेसत्यंसि वा विप्पवसियंसि वा इमस्स कुडुंबस्स के मन्ने आहारे वा ग्रालंबे वा पडिबंधे वा भविस्सइ ? तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सम्म दियरे तेयसा जलते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ - नियग-सयण संबंधि परियणं ० चउण्ह य सुहाणं कुलघरवग्गं श्रमंतेत्ता तं मित्त-नाइ - नियग'- सयण-संबंधि- परियणं चउण्ह य सुहाणं कुलधरवग्गं विपुलेणं असण- पाण- खाइम साइमेणं धूव- पुप्फ-वत्थ-गंध- मल्लालंकारेण य° सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तस्सेव मित्त-नाइ - "नियग-सयण-संबंधिपरियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरम्रो चउण्हं सुण्हाणं परिक्खणयाए पंच-पंच सालिक्खए दलइत्ता जाणामि ताव का किह वा सारक्खेइ वा ? संगोवेइ वा ? संवड्ढेइ वा ? एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए णी जाव उट्टियम्म सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते 'विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, मित्त-नाइ" - नियग-सयण-संबंधिपरियणं उन्हय सुहाणं कुलघरवग्गं ग्रामंतेइ "", तओ पच्छा पहाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्त-नाइ" "नियग-सयण संबंधि- परियणेणं चउन्ह सुहाणं कुलघरवग्गेणं सद्धिं तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं प्रासादेमाणे जाव"सक्कारेइ, सकारेत्ता तस्सेव मित्त-नाइ "- नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुहाणं कुलघरवग्गस्स पुरस्रो पंच सालिक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता जे सुहं उज्झियं" सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुमं णं पुत्ता ! मम १. X ( ख, ग ) । २. मए त्ति मयि (वृ ) । ३. ना० १।१।२४ । ४. सं० पा० - नाइ° । ५. साणं ( ख ) । ६. सं० पा० - नियग | ७. साणं ( ख, ग ) । ८. सं० पा०- गंध जाव सक्कारेत्ता । ६. सं० पा० नाइ ० । १०. ना० १।१।२४ । o ११. सं० पा०-- नाइ° । १२. मित्त-नाइ चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्ग आमंतेइ, विपुलं असणं ४ उवक्खडावे (क, ख, ग ) । १३. सं० पा–नाइ । १४. ना० १११५१ । १५. सं० पा० - नाइ° । १६. उज्झितं ( ख ) ; उज्झिहतितं (ग); उज्झिहितितं (घ) । Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम अज्झयणं (रोहिणी) १४५ हत्थानो इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी' संगोवेमाणी विहराहि । जया णं अहं पुत्ता ! तुम इमे पंच सालिअक्खए जाएज्जा, तया णं तुम मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएज्जासि त्ति कटु सुण्हाए हत्थे दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ । ७. तए णं सा उझिया धणस्स तह त्ति एयमट्ठ पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता धणस्स सत्थवाहस्स हत्थानो ते पंच सालिमक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता एगंतमवक्कमइ, एगतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु तायाणं कोट्ठागारंसि बहवे पल्ला सालीणं पडिपुण्णा चिटुंति, तं जया णं मम तायो इमे पंच सालिअक्खए जाएसई, तया णं अहं पल्लंतरानो अण्णे पंच सालिअक्खए गहाय दाहामि त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता ते पंच सालिग्रक्खए एगते एडेइ, सकम्मसंजुत्ता जाया यावि होत्था ॥ ८. एवं भोगवइयाए वि, नवरं-सा छोल्लेइ, छोल्लेत्ता अणुगिलइ, अणु गिलित्ता सकम्मसंजुत्ता जाया यावि होत्था । एवं रक्खियाए वि, नवरं-गेण्हइ, गेण्हित्ता एगंतमवक्कमइ, एगंतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्थाएवं खलु ममं तानो इमस्स मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स ° चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरो सद्दावेत्ता एवं वयासी--तुमं णं पुत्ता ! मम हत्थानो इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि । जया णं अहं पुत्ता ! तुम इमे पंच सालिग्रक्खए जाएज्जा, तया णं तुम मम इमे पंच सालिअक्खए° पडिनिज्जाएज्जासि त्ति कटु मम हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयइ। तं भवियव्वमेत्थ कारणेणं ति कट एवं संपेहेइ संपेहेत्ता ते पंच सालिअक्खए सुद्धे वत्थे बंधइ, बंधित्ता रयणकरंडियाए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता उसीसामूले ठावेइ, ठावेत्ता तिसंझं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ॥ १०. तए णं से धणे सत्थवाहे तहेव" मित्त- नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स १. संरक्खमाणी (ग)। ७. एमेयारूवे (ख)। २. हं (क, ख)। ८. सं० पा०-नाइ । ३. पडिदिज्जाएज्जासि (क); दलएज्जासि ६. सं० पा०-हत्थाओ जाव पडिनिज्जा (ग); पडिदेज्जासि (घ) । एज्जासि । ४. जातिसति (ख)। १०. पक्खिवइ २ मंजूसाए पक्खिवइ २ (क, घ)। ५. तता (क)। ११. तस्सेव (ख, ग)। ६. देहामि (ख, ग)। १२. सं० पा०-मित्त जाव चउत्थं । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ मायाधम्मकहाओ चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरो पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता' चउत्थं रोहिणीयं सुण्हं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुमं णं पुत्ता ! मम हत्थानो इमे पंच सालिग्रक्खए गेण्हाहि, जाव' गेण्हइ, गेण्हित्ता एगंतमवक्कमइ, एगंतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु ममं तारो इमस्स मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुमंणं पुत्ता ! मम हत्थानो इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि। जया णं अहं पुत्ता ! तुम इमे पंच सालिअक्खए जाएज्जा, तया णं तुम मम इमे पंच सालिमक्खए पडिनिज्जाएज्जासि त्ति कट्ट मम हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयइ° । तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं' । तं सेयं खलु मम एए पंच सालिअक्खए सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए संवड्ढेमाणीए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कुलघर-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीतुभे णं देवाणुप्पिया ! एए पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता पढमपाउसंसि महावुट्टिकायंसि निवइयंसि समाणंसि खुड्डागं केयारं सुपरिकम्मियं करेह, करेत्ता इमे पच सालिअक्खए वावेह, वावेत्ता दोच्चं पि 'तच्चं पि” उक्खय-निहए' करेह, करेत्ता वाडिपक्खेव करेह, करेत्ता सारक्खमाणा संगोवेमाणा आणुपुव्वेणं संवड्ढेह ॥ ११. तए णं ते कोडुबिया रोहिणीए एयमटुं पडिसुणेति, ते पंच सालिअक्खए गेण्हंति, अणुपुव्येणं सारक्खंति, संगोविति ॥ १२. तए ण कोडबिया पढमपाउसंसि महावुट्टिकायंसि निवइयंसि समाणंसि खड़ागं केयारं सपरिकम्मियं करेति, ते पंच सालिमक्खए ववंति, दोच्चं पि तच्चं पि उक्खय-निहए करेंति, वाडिपरिक्खेवं करेंति, अणुपुव्वेणं सारक्खेमाणा संगोवेमाणा संवड्ढे माणा विहरंति ॥ १३. तए णं ते साली अणुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविज्जमाणा संवविज्जमाणा साली जाया-- किण्हा किण्होभासा • नीला नीलोभासा हरिया हरिप्रोभासा सीया सीयोभासा णिद्धा णिद्धोभासा तिव्वा तिव्वोभासा किण्हा किण्हच्छाया नीला नीलच्छाया हरिया हरियच्छाया सीया सीयच्छाया णिद्धा णिद्धच्छाया तिव्वा तिव्वच्छाया घण-कडियकडिच्छाया रम्मा महामेह ° निउरंबभूया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। १. स० पा०-सहावेइ जाव तं। २. ना० ११७६,७। ३. कारणेणं ति कटु (क, घ)। ४. X(क, ग)। ५. निक्खए (क, ख, ग, घ)। ६. X(क, ख, ग)। ७. संगोविंति विहरंति (क, ख, ग, घ)। ८. सं० पा०—किण्होभासा जाव निउरंबभूया। Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम अज्झयणं (रोहिणी) १४७ १४. तए णं ते साली पत्तिया वत्तिया' गब्भिया पसूइया आगयगंधा' खीराइया' बद्धफला पक्का परियागया सल्लइय-पत्तइया 'हरिय-फेरंडा" जाया यावि होत्था। १५. तए णं ते कोडं बिया ते साली पत्तिए' •वत्तिए गब्भिए पसूइए आगयगंधे खीराइए बद्धफले पक्के परियागए° सल्लइय-पत्तइए जाणित्ता तिखेहि नवपज्जणएहिं असिएहि लूणंति, लूणित्ता करयलमलिए करेंति, करेत्ता पूर्णति । तत्थ णं चोक्खाणं सूइयाणं' अखंडाणं अफुडियाणं छडछडापूयाण सालीणं मागहए पत्थए जाए। १६. तए णं ते कोडुबिया ते साली नवएसु घडएसु पक्खिवंति पक्खिवित्ता ओलिंपंति, प्रोलिपित्ता लंछिय-मुद्दिएकरेंति, करेत्ता कोट्ठागारस्स एगदेसंसि ठावेंति, ठावेत्ता सारक्खमाणा संगोवेमाणा विहरंति ॥ १७. तए णं ते कोडुबिया दोच्चंसि वासारत्तंसि पढमपाउसंसि महावट्रिकायंसि निवइयंसि [समाणंसि ? ] खुड्डागं केयारं सुपरिकम्मियं करेंति, ते साली ववंति", दोच्चंपि उक्खाय-णिहए करेंति जाव असिएहिं लुणंति लुणित्ता चलणतल मलिए करेंति करेत्ता पुणंति । तत्थ णं" सालीणं बर्वे कुडवा५ 'जाया ।। १८. तएणं ते कोडुबिया ते साली नवएसु घडएसु पक्खिवंति, पक्खिवित्ता अोलिपंति ओलिपित्ता लंछिय-मुद्दिए करेंति, करेत्ता कोट्ठागारस्स ° एगदेसंसि ठाति, ठावेत्ता सारक्खमाणा संगोवेमाणा विहरंति ॥ तए ण ते कोड बिया तच्चंसि वासारत्तंसि महावुट्रिकायंसि निवइयंसि [समाणंसि ? ] केयारे" सुपरिकम्मिए करेंति जाव" असिएहिं लुणंति, लुणित्ता संवहति, संवहित्ता खलयं करेंति, मलेति,“ पुणंति । तत्थ णं" सालीणं बहवे कुंभा जाया ॥ १. पाठान्तरेण तयावत्ति (व)। १०. °देसम्मि (ग)। २. आययगंधा (वृ)। ११. वुप्पंति (क, ग); वुपंति (ख); बुप्पंति (घ)। ३. क्षीरकिता (वृ)। १२. ना० ११७।१२-१५। ४. सल्लइया (क, ख, ग, घ, वृपा)। १३. जाव (क, ख, ग, घ)। ५. हरिया° (ख); ° पेरुडा (ग)। १४. पू०-ना० ११७।१५ । ६. सं० पा०–पत्तिए जाव सल्लइयपत्तइए। १५. सं० पा०-कुडवा जाव एगदेसंसि । ७. सूयाणं (घ)। १६. केदारे (ख, ग, घ)। ८. छडडछड्डाणं पूयाणं (क); छड्डछड्डा- १७. ना० ११७।१२-१५ । पूयाणं (ख); छडछडाभूयाणं (ग, वृपा); १८. मेलित्ति (ख); मेलेति (ग, घ) । छडछडपूयाणं (घ)। १६. पू०-ना० ११७।१५ । ६. मुद्दियाए (क)। Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ नामक हाओ २०. तए णं ते कोडुबिया ते साली कोट्ठागारंसि पल्लंसि' पक्खिवंति, पक्खिवित्ता प्रोपिंति, लिपित्ता लंछिय - मुद्दिए करेंति, करेत्ता सारक्खमाणा संगोवे माणा • विहरति ॥ २१. चउत्थे वासारत्ते बहवे कुंभसया जाया । परिक्खा - परिणाम- पदं २२. तए णं तस्स धणस्स पंचमयंसि संवच्छरंसि परिणममाणंसि पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे ग्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु मए इम्रो प्रतीते पंचमे संवच्छरे चउन्हं सुण्हाणं परिक्खणट्टयाए ते पंच-पंच सालिक्खया हत्थे दिन्ना । तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणी जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पंच सालिअक्खए परिजाइत्तए जाव' जाणामि ताव काए किह सारक्खिया वा संगोविया वा संवडिया वत्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणी जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधिपरियणं चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गं जाव' • सम्माणित्ता तस्सेव मित्त-नाइ :• नियग-सयण-संबंधि- परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरो जे उज्भियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी – एवं खलु ग्रहं पुत्ता ! इओ प्रतीते पंचमम्मि संवच्छरे " इमस्स मित्त-" नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुहाणं कुलधरवग्गस्स य पुरओ तव हत्थंसि पंच सालिक्खए दलयामि । जया णं ग्रहं पुत्ता ! एए पंच सालिक्खए जाएज्जा तया णं तुमं मम इमे पंच सालिक्खए पडिनिज्जाएसि । से नूणं पुत्ता ! ट्ठे समट्ठे ? ܘ १. सं० पा० - पलंसि जाव विहरंति; घल्लंति (क) पल्लंति ( ख, ग, घ ) ; यद्यपि बहुषु आदर्शषु 'पल्लति' इति पदं विद्यते किन्तु नैतत् समीचीनं प्रतिभाति । यद्येतत् स्वीकृतं स्यात् तर्हि जाव शब्दस्य पूर्तेराधारस्थलं नोपलभ्यते 'पल्लंति इति पदस्यार्थोपि नैव संगच्छते । अतएव अस्माभिः पल्लसि इति पदं स्वीकृतम् । अस्याधारः (४३) सूत्रे 'पल्ले उभिदइ' इति पाठे उपलभ्यते । २. अईए (क) 1 ३. ना० १ । १ । २४ । ४. परिजातित्तए ( ख, ग, घ ) । ५. एवं (घ ) । ६. ना० १।१।२४ | ७. सं० पा० - असणं मित्त-नाइ चउण्ह य सुण्हाणं कुलघर जाव सम्माणित्ता । ८. ना० १।७।६ | ६. सं० पा० नाइ ० । १०. संवत्सरे ( ग ) । ११. सं० पा० - मित्त । १२. ० निज्जाए सित्ति कट्टु ( क ) । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (रोहिणी) १४४ हंता अत्थि। तं णं तुमं पुत्ता ! मम ते सालिअक्खए पडिनिज्जाएसि॥ २३. तए णं सा उज्झिया एयमटुं धणस्स सत्थवाहस्स पडिसुणेइ, जेणेव कोट्ठागारं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पल्लाओ पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणं सत्थवाहं एवं वयासी-एए णं तारो ! पंच सालिअक्खए ति कटु धणस्स हत्थंसि ते' पंच सालिमक्खए दलयइ ॥ २४. तए णं धणे सत्थवाहे उज्झियं सवह-सावियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी किण्णं पुत्ता ! ते चेव पंच सालिअक्खए उदाहु अण्णे ? २५. तए णं उज्झिया धणं सत्थवाहं एवं वयासी-एवं खलु तुब्भे तारो ! इनो अतीए पंचमे संवच्छ रे इमस्स मित्त-नाइ'- नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरनो पंच सालिअक्खए गेण्हह, गेण्हित्ता ममं सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुमं णं पुत्ता ! मम हत्थाप्रो इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि । तए णंहं तुब्भं एयमटुं पडिसुणेमि, ते पंच सालिअक्खए गेण्हामि, एगंतमवक्कमामि। तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्था एवं खलु ताताणं कोट्ठागारंसि' 'बहवे पल्ला सालीणं पडिपुण्णा चिदंति, तं जया णं मम ताप्रो इमे पंच सालिअक्खए जाएसइ, तया णं अहं पल्लंतरानो अण्णे पंच सालिअक्खए गहाय दाहामि त्ति कटु एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता ते पंच सालिअक्खए एगते एडेमि, सकम्मसंजुत्ता यावि भवामि । तं नो खलु ताओ ! ते चेव पंच सालिअक्खए, एए णं अण्णे ॥ २६. तए णं से धणे सत्थवाहे उज्झियाए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्मा' आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे उज्झियं तस्स मित्त-नाइ- नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स ° चउण्हं सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरो तस्स कुलघरस्स छारुज्झियं च 'छाणज्झियं च 'कयवरुझियं च संपुच्छियं च" सम्मज्जियं च पाओवदाइयं १. ते (क, ख, ग)। ६. सं० पा०-कोट्ठागारंसि सकम्मसं । २. ४ (क)। ७. ना० १।१।१६१ । ३. सं० पा०-नाइ चउण्ह य कुल जाव ८. निसम्म (क्वचित)। विहराहि। ६. सं० पा० – नाइ । ४. इमे एयारूवे (क)। १०. ४ (ख); वृत्तावपि नास्तिव्याख्यातम् । ५. सं० पा०-अज्झत्यिए जाव समुप्पज्जित्था। ११. समुक्खियं (वृ); संपुच्छियं (वृपा) । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहानी च ण्हाणोवदाइयं च बाहिर'-पेसणकारियं च ठवेइ' ॥ २७. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झा याणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं° पव्वइए, पंच य से महब्वयाइं उज्झियाइं भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे जाव' चाउरंत-संसार-कंतारं भुज्जो भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ-जहा सा उज्झिया॥ २८. एवं भोगवइया वि, नवरं - छोल्लेमि, छोल्लित्ता अणुगिलेमि, अणुगिलित्ता सकम्मसंजुत्ता यावि भवामि । तं नो खलु तारो ! ते चेव पंच सालिअक्खए, एए णं अण्णे । २६. तए णं से धणे सत्थवाहे भोगवइयाए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्मा प्रासुरुत्ते जाव' मिसिमिसेमाणे भोगवई तस्स मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्हं सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरो° तस्स कुलघरस्स कंडितियं च कोतियं च पीसंतियं च एवं-रुंधतियं रंधंतियं परिवेसंतियं परिभायंतियं भितरिय पेसणकारि महाणसिणि ठवेइ ।। एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइए, पंच य से महव्वयाई फालियाई" भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूर्ण सावयाणं बहणं सावियाण य होलणिज्जे जाव" चाउरंत-संसार-कतारं भुज्जो भज्जो अणुपरियट्टिस्सइ-जहा व सा भोगवइया ॥ १७. एवं रक्खियावि, नवरं-जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मंजसं विहाडेइ, विहाडेता रयणकरंडगाओ ते पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंच सालिअक्खए धणस्स हत्थे दलयइ॥ ३२. तए णं से धणे सत्थवाहे रक्खियं एवं वयासी-किं णं पुत्ता ! ते चेव एए पंच सालिअक्खए उदाहु अण्णे ? १. बाहर (ख)। ६. कुंडेतियं (ख); कंडेतियं (ग); खंडेतियं २. पेसणकारि (क, ख)। (घ)। ३. ठावेइ (क)। १०. °तियं च (ग)। ४. सं. पा.-निग्गंथी वा जाव पव्वइए। ११. तियं च (ग)। ५. ना० १।३।२४ । १२. °तरियं च (ग)। ६. उज्झिइया (ग, घ)। १३. फाडियाति (घ) फोडियाई (क्व)। ७. सं० पा०-नवरं तस्स । १४. ना० ११३।२४ । ८. ना० १११।१६१। १५. रक्खितियावि (ख, ग)। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम अञ्झणं (रोहिणी) १५१ ३३. तए णं रक्खिया धणं सत्थवाहं एवं वयासी - ते चेव ताओ' ! एए पंच सालिअक्खए, नो अण्णे । कहणं ? पुत्ता एवं खलु ताओ ! तुब्भे इम्रो प्रतीते पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्त- नाइ-नियगसयण-संबंधि-परियणस्स चउन्हय सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरनो पंच सालिअक्खए गेहह, गेण्हित्ता ममं सद्दावेह, सद्दावेत्ता ममं एवं वयासी - तुमं णं पुत्ता ! मम हत्या इमे पंच सालिक्खए गिण्हाहि, श्रणुपुत्रेणं सारक्खमाणी गोमाणी विहराहि । जया णं ग्रहं पुत्ता ! तुमं इमे पंच सालिक्खए जाज्जा, तया गं तुमं मम इमे पंच सालिक्खए पडिनिज्जा एज्जासि ति कट्टु मम हत्यंसि पंच सालिक्खए दलयह । तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं ति कट्टु ते पंच सालिक्खए सुद्धे वत्थे बंधेमि, वंधत्ता रयणकरंडियाए पक्खिम, पक्खिवित्ता उसीसामूले ठावेमि, ठावेत्ता तिसंभं पडिजागरमाणी यावि विहरामि । तत्र एएणं कारणं ताम्रो ! ते चेव पंच सालिक्खए, नो अणे ॥ ३४. तए णं से धणे सत्थवाहे रक्खियाए' ग्रंतियं एयमट्ठे सोच्चा हट्टतुट्ठे तस्स कुलघरस्स हिरण्णस्स य कंस - दूस - विपुल धण - कणग-रयण-मणि-मोत्तिय संखसिल-प्पवाल- रत्तरयण-संत-सार सावएज्जस्स य भंडागारिणी' ठवेइ || ३५. एवामेव समणाउसो' ! जो ग्रहं निग्गंथो वा अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं या रक्खयाइं भवंति से णं इहभवे चेव बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव" चाउरंतं संसारकंतारं वीईव - इस्सर - जहा वसा रक्खिया ॥ निग्गंथी वा प्रायरिय-उवज्झापव्वइए, ° पंच य से महव्वसमणाणं बहूणं समणीणं बहूणं ३६. रोहिणीया वि एवं चेव, नवरं -- तुब्भे ताम्रो ! मम सुबहुयं सगडि - सागडं लाह", जाणं श्रहं तुब्भं ते पंच सालिक्खए पडिनिज्जामि || ३७. तए णं से धणे सत्थवाहे रोहिणि" एवं वयासी - कहं गं तुमं" पुत्ता ! ते पंच १. ताया ( ख, ग ) ; ताय (घ ) | २. सं० पा० - पंचमे जाव भवियव्वं । ६. सं० पा० समणाउसो जाव पंच । १०. ना० १।३ । ३४ । ११. दयाह (घ ) | १२. जोअणं ( ख ) । १३. रोहिणी (क, ख, ग ) । १४. कह ( ग ) । ३. सं० पा० - वत्थे जाव तिसंभं । ४. ततेणं ( ख ) ; तते (ग); तं (घ) । ५. रक्खितियाए ( क, ख, ग, घ ) । ६. सं० पा० - धण जाव सावएज्जस्स । ७. सावइज्जस्स (क); सावतेयस्स ( ख, ग, घ ) । १५. तुमं मम ( क, ख, ग ) ६. भंडागारिणि (क्व ) । Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ सालिक्ख सगडि - सागडेणं निज्जाइस्ससि ? ॥ ३८. तए णं सा रोहिणी धणं सत्यवाहं एवं वयासी – एवं खलु ताओ ! तुब्भे इस्रो प्रतीते पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्त'- नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणस्स चउण्हय सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरस्रो पंच सालिक्खए गेण्हह, गेण्हित्ता ममं सद्दाह, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुमं णं पुत्ता मम हत्था इमे पंच सालिक्खए गेहाहि, श्रणुपुवेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी विहराहि । जया णं ग्रह पुत्ता ! तुमं इमे पंच सालिक्खए जाएज्जा, तया णं तुमं मम इमे पंच सालिक्खए पडिनिज्जारज्जासि ति कट्टु मम हृत्यंसि पंच सालिक्खए दलह । तं भविव्वं एत्थ कारणेणं । तं सेयं खलु मम एए पंच सालिक्खए सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए संवड्ढेमाणीए जाव' ' बहवे कुंभसयाजाया तेणेव कमेण । एवं खलु ताओ ! तुब्भे ते पंच सालिअक्खए सगडि - सागडेणं निज्जामि || ३६. तए णं से धणे सत्थवाहे रोहिणीयाए सुबहुयं सगडि - सागडं दलाति ॥ ४०. तणं से रोहिणी सुबहु सगडि - सागडं गहाय जेणेव सए कुलघरे तेणेव उवागच्छ, उवागच्छित्ता कोट्ठागारे विहाडेइ, विहाडित्ता पल्ले उब्भिदइ, उब्भिदित्ता सगडि - सागडं भरेइ, भरेत्ता रायगिहं नगरं मज्भंमज्भेणं जेणेव सए गिहे जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ ॥ O ४१. तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग - तिग- चउक्क- चच्चर- चउम्मुह - महापहप हेसु हुमणं माइक्खइ -धणे णं देवाणुप्पिया ! धणे सत्यवाहे, जस्स णं रोहिणीया सुहा पंच सालिग्रक्खए 'सगडि - सागडेणं" निज्जाएइ || ४२. तणं से धणे सत्थवाहे ते पंच सालिक्खए सगडि - सागडेणं निज्जाइए पासइ, पासित्ता हतु पडिच्छइ, पडिच्छित्ता तस्सेव मित्त-नाइ - नियग-सयणसंबंधि- परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरो रोहिणीयं सुहं तस्स कुलघरस्स बहूसु कज्जेसु य' कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुबसु • रहस्से य श्रापुच्छणिज्जं पडिपुच्छणिज्जं मेढि पमाणं श्राहारं आलवणं चक्खु, मेढीभूयं पमाणभूयं प्राहारभूयं प्रलंबणभूयं चक्खुभूयं सव्वकज्ज : पाणभूयं ठवेइ । 'वड्डावियं ४३. एवामेव समणाउसो " ! जो म्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झाया अंतिए मुंडे भवित्ता अगारा अणगारियं पव्वइए, पंच से महत्वया १. सं० पा०-मित्त जाव बहवे । २. ना० १।७।१०-२१ । ६. हट्ट जाव (क, य) । ७. सं० पा० - नाइ । नायाधम्मक हाओ ३. दलयइ ( ख ) । ४. सं० पा० - सिंघाडग जाव बहुजणो । ५. सगडसागडिएणं ( क ); सगडिसागडिएणं ( ख ) । १०. ८. सं० पा०-- कज्जेसु जाव रहस्सेसु । ६. सं० पा० - आपुच्छणिज्जं जाव वड्ढावियं । सं० पा० - समणाउसो ! जाव पंच । Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (रोहिणी) १५३ संवड्डिया भवंति, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव' चाउरंतं संसारकतारं वीईवइ स्सइ-जहा व सा रोहिणीया । निक्खेव-पदं ४४. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं जाव' सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा जह सेट्ठी तह गुरुणो, जह नाइ-जणो तहा समणसंघो। जह बहुया तह भव्वा, जह सालिकणा तह वयाइं ॥१॥ उझिया जह सा उभियनामा, उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा। पेसणगारित्तेणं, असंखदुक्खक्खणी जाया ॥२॥ तह भव्वो जो कोई, संघसमक्खं गुरु-विदिण्णाई। पडिवज्जिउं समुज्झइ, महव्वयाई महामोहा ।।३।। सो इह चेव भवम्मि, जणाण धिक्कार-भायणं होइ। परलोए उ दुहत्तो, नाणा-जोणीसु संचरइ ॥४॥ भोगवती जह वा सा भोगवती, जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा। पेसणविसेसकारित्तणेण पत्ता दुहं चेव ।।५।। तह जो महव्वयाइं, उवभुजइ जीवियत्ति पालितो। पाहाराइसु सत्तो, चत्तो सिवसाहणिच्छाए ।।६।। सो एत्थ जहिच्छाए, पावइ अाहारमाइ लिगित्ता । विउसाग नाइपुज्जो, परलोयंसी दुही चेव ॥७।। रक्खिया जह वा रक्खियबहुया, रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा । परिजणमण्णा जाया, भोगसुहाइं च संपत्ता ॥८॥ तह जो जीवो सम्म, पडिवज्जित्ता महन्वए पंच। पालेइ निरइयारे, पमाय-लेसंपि वज्जेतो ॥६॥ १. ना० १।३।३४ । २. ना० ११११७ । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ नायाधम्मकहाओ सो अप्पहिए क्करई, इहलोयम्मिवि विऊहिं पणयपत्रो। एगंतसुही जायइ, परम्मि मोक्खंपि पावेइ ॥१०॥ रोहिणी जह रोहिणी उ सुण्हा, रोवियसाली जहत्थमभिहाणा । वड्डित्ता सालिकणे, पत्ता सव्वस्स सामित्तं ॥११॥ तह जो भव्वो पाविय, वयाइ पालेइ अप्पणा सम्म।। अण्णेसि वि भव्वाणं, देइ अणेगेसि हियहेउं ॥१२॥ सो इह संघप्पहाणो, जुगप्पहाणोत्ति लहइ संसदं । अप्पपरेंसि कल्लाण-कारो गोयमपहुव्व ॥१३।। तित्थस्स वुड्डिकारी, प्रक्खेवणो कुतित्थियाईणं । विउस-नरसेविय-कमो, कमेण सिद्धि पि पावेइ ॥१४॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं मल्ली उक्खव-पदं १. जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, अट्ठमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? बल-राय-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोप्रोदाए महानदीए दाहिणणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिम लवणसमुदस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पण्णत्ते ॥ ३. तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नाम रायहाणी' नवजोयणवित्थिण्णा जाव' पच्चक्खं देवलोगभूया ॥ तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरथिमे दिसीभाए इंदकुंभे नाम उज्जाणे ॥ तत्थ णं वीयसोगाए रायहाणीए बले' नामं राया । तस्स धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे होत्था ।। तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ सीहं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा जाव' महब्बले दारए जाए-उम्मुक्कबालभावे जाव भोगसमत्थे ।। १. ना० १११७ । २. नलिणावती (वृपा)। ३. °हाणी पण्णत्ता (क, घ)। ४. ना. शश। ५. धीबले (क, ख)। ६. तस्स णं (क)। ७. ओरोहो (क)। ८. भग० ११११३३-१५६ । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ७. तए णं तं महब्बलं सम्मापियरो सरिसियाणं कमलसिरियामोक्खाणं पंचहं रायवर कन्नारायाणं एगदिवसेणं पाणि गण्हावेंति । पंच पासायसया । पंचसो दो जाव' माणुस कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं इंदकुंभे उज्जाणे थेरा समोसढा । परिसा निग्गया । 'बलो वि" निग्ग | धम्मं सोच्चा निसम्म' 'तुट्ठे थेरे तिक्खुत्तो ग्रायाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नसित्ता एवं वयासीसद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जाव' नवरं महब्बलं कुमारं रज्जे ठावेमि । तो पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराश्रो अणगारिय पव्वयामि । 0 ग्रहासु देवाणुप्पिया ! जाव' एक्कारसंगवी । बहूणि वासाणि परियाश्रो । जेणेव चारुपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' मासिएणं भत्तेणं सिद्धे || महब्बल - राय-पदं ε. तणं सा कमलसिरी ग्रण्णया कयाइ सीहं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा जाव' । बलभद्दो कुमारी जा । जुवराया यावि होत्था ॥ ८. १०. तस्स णं महब्बलस्स रण्णो इमे 'छप्पिय बालवयंसगा रायाणी होत्था, तं जहा - धरणे पूरणे वसू वेसमणे प्रभिचंदे" सहजायया" सहवड्डियया सहपंसुकलिया सहदारदरिसी अण्णमण्णमणुरत्तया अण्णमण्णमणुव्वयया अण्णमण्णच्छंदाणुवत्तया ग्रण्णमण्ण हियइच्छियकारया अण्णमण्णेसु रज्जेसु किच्चाई करणिज्जाई पच्चणुब्भवमाणा विहरति ॥ ११. तए णं तेसिं रायाणं प्रण्णया कयाई एगयो सहियाणं समुवागयाणं सण्णिसणाणं सण्णिविद्वाणं इमेयारूवे मिहोकहा- समुल्लावे समुप्पज्जित्था - जण्ण देवाप्पिया ! म्हं सुहं वा दुक्खं वा पवज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पज्जइ, तणं श्रमेहिं एगयो समेच्चा" नित्थरियव्वे त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स एयमट्ठ sa || ܘ १. ० कन्नया ० ( ग ) । २. ना० १।१।६१-६३ । ३. सं० पा० - थेरागमणं इंदकुंभे उज्जाणे समोसढा । असौ पाठः (१२) सूत्रेण जितोस्ति । नियो धम्मा ६. ना० १।१।१०१ । ७. ना० १।५।८८- १०१ । ८. पू० - ना० ११५१०४, १०५ । ६. भग० ११।१३३-१५६ । १०. छप्पिया ० ( क, ख, ग ) । ११. अभियंदे (ख, घ) । ४. धीबलो ( क ) । ५. सं० पा० - निसम्म जं० नवरं महब्बलं १२. सं० पा०-- सहजायया जाव समेच्चा । कुमारं रज्जे ठावेमि । १३. संहिच्चाए ( ख, ग, घ ) । Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणे (मल्ली) १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं इंदकुंभे उज्जाणे थेरा समोसढा । परिसा निग्गया। महब्बले णं धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुढे । जं नवरं-- छप्पि य बालवयंसए आपुच्छामि, बलभदं च कुमारं रज्जे ठावेमि, जाव ते छप्पि य बालवयंसए आपुच्छइ ॥ १३. तए णं ते छप्पि य बालवयंसगा महब्बलं रायं एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे पव्वयह, अम्हं के अण्णे अाहारे' वा आलंबे वा ? अम्हे वि य णं पव्वयामो ॥ १४. तए णं से महब्बले राया ते छप्पि य बालवयंसए एवं वयासी-जइ णं तुब्भे मए सद्धि पव्वयह, तं' गच्छह, जेट्टपुत्ते सएहि-सएहिं रज्जेहिं ठावेह, पुरिससहस्सवाहिणीप्रो सीयारो दुरूढा' 'समाणा मम अंतियं पाउब्भवह । तेवि तहेव ° पाउन्भवंति ॥ १५. तए णं से महब्बले राया छप्पि य बालवयंसए पाउन्भूए पासइ, पासित्ता हवतुढे कोडं वियपुरिसे सद्दावेइ जाव बलभद्दस्स अभिसेयो। जाव बलभदं रायं प्रापुच्छइ ।। महब्बलादीणं पव्वज्जा-पदं १६. तए णं से महब्बले 'छहिं बालवयंसगेहिं सद्धि ° महया इड्डीए पव्वइए। एक्कारसंगवी" । बहूहिं च उत्थ -'छट्टट्ठम-दसम-दुवालसेहि मासद्ध मासखमहि अप्पाण° भावेमाणे विहरइ ।। १७. तए णं तेसिं महब्बलपामोक्खाणं सत्तण्हं अणगाराणं अण्णया कयाइ एगयो सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था-जण्णं अम्हं देवाणुप्पिया एगे तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तण्णं अम्हेहि सव्वेहि तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता बहूहि चउत्थ- छट्ठम-दसम-दुवालसेहि मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणा° विहरंति ॥ १. पू०-ना० ११५८७ । २. ना० ११५१८७-८६ । ३. सं० पा०--आहारे जाव पव्वयामो। ४. सद्धि जाव (क, ख, ग, घ)। ५. तो णं (क्व०)। ६. रज्जेहिं रद्धेहिं (ख, ग, घ)। ७. सं० पा०-दुरूढा जाव पाउन्भवति । ८. ना० ११५।६२-६४ । है. ना० ११५।९५,९६ । १०. सं० पा०-महरले जाव महया। ११. एक्कारस अंगाई (क);एक्कारसगंगवी (ख,घ)। १२. सं० पा०-चउत्थ जाव भावेमाणे। . १३. जण्हं (ग, घ)। १४. सं० पा०-चउत्थ जाव विहरति । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ नायाधम्मकहाओ महब्बलस्स तवविसय-माया-पद १८. तए णं से महब्बले अणगारे इमेणं कारणेणं इत्थिनामगोयं कम्म निव्वत्तिसु जइ णं ते महब्बलवज्जा छ अणगारा चउत्थं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तो से महब्बले अणगारे छटुं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ । जइ' णं ते महब्बलवज्जा छ अणगारा छटुं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तो से महब्बले अणगारे अट्ठमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। एवं--अह अट्ठमं तो दसमं, अह दसमं तो दुवालसमं । 'इमेहि य' णं वीसाए णं कारणेहिं प्रासेविय-बहुलीकएहिं तित्थयर नामगोयं कम्मं निव्वत्तिसु, तं जहासंगहणी-गाहा अरहंत-सिद्ध-पवयण-गुरु-थेर-बहुस्सुय'-तवस्सीसु । वच्छल्लया य तेसि, अभिक्ख नाणोवोगे य ॥१॥ दंसण-विणए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारो। खणलवतवच्चियाए, वेयावच्चे समाहीए' ।।२।। अपुव्वनाणगहणे, सुयभत्ती पवयण-पहावणया। एएहिं कारणेहि, तित्थयरत्तं लहइ ‘सो उ ॥३॥ महब्बलादीणं विविहतवचरण-पदं १६. तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा मासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरंति जाव एगराइयं ।।। २०. तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा खुड्डागं 'सीहनिक्कीलियं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तं जहा चउत्थं करेंति, सव्वकामगुणियं पारेति । छटुं करेंति, चउत्थं करेंति । अट्ठमं करेंति, छटुं करेंति । दसमं करेंति, अट्ठमं करेंति । दवालसमं करेंति. दसमं करेंति । चोद्दसमं करेंति, दुवालसमं करेंति । 2. अत्र वर्णविपर्ययेण 'यकार' स्थाने इकारो ५. समाही य (क, ख, ग, घ)। जातः । मदूच्चारणार्थं वर्णविपर्ययो लभ्यते ६. पवयणे (क, ख, ग, घ)। आर्षवाक्येषु। ७. जीवो (वृ); एसो (वृपा)। २. इमेहिं च (क)। ८. ना० १११।१६८। ३. बहुस्सुए (क, ख, ग, घ)। ६. ०लियत्तवोकम्मं (ख)। ४. अत्र अनुस्वारलोपः। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ भट्टमं अज्झयणं (मल्ली) सोलसमं करेंति, चोद्दसमं करेंति । अट्ठारसमं करेंति, सोलसमं करेंति । वीसइमं करेंति, सोलसमं करेंति । अट्ठारसमं करेंति, चोद्दसमं करेंति । सोलसमं करेंति, दुवालसमं करेंति । चोद्दसमं करेंति, दसमं करेंति । दुवालसमं करेंति, अट्ठमं करेंति । दसमं करेति, छटुं करेति । अट्ठमं करेंति, चउत्थं करेंति । छठें करेंति, चउत्थं करेंति, करेत्ता सव्वत्थ सव्वकामगुणिएणं पारेति। एवं खलु एसा खुड्डागसीहनिक्कीलियस्स तवोकम्मस्स पढमा परिवाडी छहिं मासेहिं सत्तहि य अहोरत्तेहि अहासुत्तं जाव' पाराहिया भवइ ।। २१. तयाणंतरं दोच्चाए परिवाडीए चउत्थं करेंति, नवरं-विगइवज्जं पारेति ।। २२. एवं तच्चा वि परिवाडी, नवरं पारणए अलेवाडं पारेति ।। २३. एवं चउत्था वि परिवाडी, नवरं-पारणए आयंबिलेण पारेति ।। २४. तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा खुड्डाग सीहनिक्कीलियं तवोकम्म दोहि संवच्छरेहिं अट्ठवीसाए अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव' आणाए आराहेत्ता जेणेव थेरे भगवंते तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामो णं भंते ! महालयं सीहनिक्की लियं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । तहेव जहा खुड्डागं, नवरं-चोत्तीसइमाओ नियत्तइ । एगाए परिवाडीए कालो एगेणं संवच्छरेणं छहिं मासेहिं अट्ठारसहि य अहोरत्तेहि समप्पेइ । सव्वंपि [महालयं? ] सीहनिक्कीलियं छहि वासेहिं दोहिं मासेहिं बारसहि य अहोरत्तेहि समप्पेइ॥ २५. तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा महालयं सीहनिक्कीलियं अहासुत्तं जाव' पाराहित्ता जेणेव थेरे भगवंते तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवते वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता बहूणि चउत्थ- छटुट्ठम-दसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणा° विहरंति ॥ १. ठा० ७।१३। २. विगति ° (ख); विगय (घ)। ३. ठा० ७।१३ । ४. पू०-ना० १०८।२०। ५. समप्पइ (क)। ६. ठा० ७.१३ । ७. सं० पा०-चउत्थ जाव विहरंति । Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० समाहिमरण-पदं २६. तए णं ते महबलनामोक्खा सत्त श्रणणारा तेणं उरालेणं' तवोकम्मेणं सुक्का भुक्खा निम्मंसा aिsaडियाभूया अचम्मावणद्धा किसा धर्माणिसंतया जाया या वि होत्या । जहा खंदओ' नवरं - थेरे प्रापुच्छित्ता चारुपव्वयं सनियंसणियं दुरुहंति जाव' दोमासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, सवीसं भत्तसयं अणसणाए छेएत्ता, चतुरासीइं वासस्यसहस्साई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, चुलसीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जयंते विमाणे देवत्ताए उववण्णा । तत्थ णं प्रत्येगइयाणं देवाणं बत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं महब्बलवज्जाणं छण्हं देवाणं देसूणाई बत्तीसं सागरोवमाई ठिई । महब्बलस्स देवरस य पडिपुणाई बत्तीसं सागरोवमाई ठिई' ॥ पञ्चायाति-पदं २७. तए णं ते महब्बलवज्जा छप्पि देवा जयंताओ देवलोगाओ उक्खणं “भवक्खएणं ठितिक्खएणं" प्रणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विसुद्ध पिइमाइवंसेसु रायकुलेसु पत्तेयं पत्तेयं कुमारत्ताए पच्चायाया, तं जहापडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाए अंगराया, संखे कासिया, रूप्पी कुणालाहिवई, अदीणसत्तू कुरुराया, जियसत्तू पंचाल हिवई || २८. तए णं से महब्बले देवे तिहिं नाणेहिं समग्गे 'उच्चद्वाणगएसुं गहेसुं", सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु, जइएसु सउणेसु, पयाहिणाणुकूलंसि भूमिसप्पिसि मारुयंसि पवायंसि, निष्फण्ण- सस्स - मेइणीयंसि कालंसि पमुइयपक्कीलिएसु' जणवएसु श्रद्धरत्तकालसमयंसि स्सिणीनक्खत्तेणं जोगमुवागएणं जे से ‘हेमंताणं चउत्थे मासे प्रमे पक्खे, तस्स णं फग्गुणसुद्धस्स" चउत्थी पक्खेणं जयंताओ विमाणा बत्तीसं सागरोवमठियाओ अनंतरं चयं चइत्ता इहेव १. पू० ना० १।१।२०२ । २. भग० २।१६४-६८; इहैव यथा मेघकुमारो वर्णितः (१।१।२०३-२०६) । ३. ना० १।१।२०६ २०८ । ४. ठिई पण्णत्ता ( क, ख, घ) । ५. ठित्तिक्खएणं भवक्खएणं ( ख, ग, घ ) । हा -------- ६. पितिमाति ( ख, ग, घ ) । ७. ० गएसु गहेसु (घ ) । ८. जइते गहेसु (क, ख, ग, घ ) । ६. पकीलिए ( ख ) । १०. वाचनान्तरेषु - गिम्हाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे चेत्तसुद्धे तस्स णं चेतसुद्धस्स (वृ ) । Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) १६१ जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मिहिलाए रायहाणीए कुंभस्स' रण्णो पभावतीए देवीए कुच्छिसि आहारवक्कंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए गब्भत्ताए वक्कंते । २६. जं रयणि च णं महब्बले देवे पभावतीए देवीए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते, तं रयणि च णं सा पभावती देवी' चोद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा । भत्तार-कहणं । सुमिणपाढगपुच्छा' जाव' विपुलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ॥ ३०. तए णं तीसे पभावईए देवीए तिण्हं मासाणं बहुपडि पुण्णाणं इमेयारूवे डोहले पाउब्भूए-धण्णाओ णं 'तायो अम्मयाओ" जानो णं जल-थलय-भासर:प्पभूएणं दसद्धवण्णेणं मल्लेणं अत्थुय-पच्चत्थुयंसि सयणिज्जंसि सण्णिसण्णाम्रो निवण्णायो य विहरंति, एगं च महं सिरिदामगंडं पाडल-मल्लिय-चंपग-असोगपुन्नाग-नाग-मरुयग-दमणग-अणोज्जकोज्जय"-पउरं परमसुहफासं" दरिसणिज्जं महया गंधद्धणि मुयंतं अग्घायमाणीग्रो डोहलं विणेति ।। ३१. तए णं तीसे" पभावईए इमं एयारूवं डोहलं पाउब्भूयं पासित्ता अहासण्णिहिया वाणमंतरा देवा खिप्पामेव जल - थलय" - •भासरप्पभूयं दसद्धवण्णं ° मल्लं कभग्गसो य भारग्गसो य कुंभस्स५ रण्णो भवणंसि साहरंति, एगं च णं महं सिरिदामगंडं जाव गंधर्वाण मयंतं उवणति ।। ३२. तए णं सा पभावई देवी जल-थलय - भासरप्पभूएणं दसद्धवण्णेणं मल्लेणं८ दोहलं विणेइ ।। ३३. तए णं सा पभावई देवी पसत्थदोहला" 'सम्माणियदोहला विणीयदोहला संपुण्णदोहला संपत्तदोहला विउलाइं माणुस्सगाई भोगभोगाइं पच्चणुभवमाणी विहरइ॥ १. कुंभगस्स (क, ख, ग)। १०. ° कुज्जय (क)। २. सं० पा०-तं रयणि च णं चोद्दसमहासु- ११. ° सुह (ग, घ)। मिणा वण्णओ। १२. आघाय° (क) । ३. पू० कप्पो० सू० ४। १३. तीए (ख, ग, घ)। ४. पू०-कप्पो० सू० ३ । १४. सं० पा०--थलय जाव दसवण्णं । ५. सं० पा०-सुमिणपाढगपुच्छा जाव विहरइ। १५. कुंभगरस (ख)। ६. ना० १।१।१६-३२ । १६. ना० १।८।३०।। ७. तातो अम्मयातो (ख)। १७. सं० पा०-थलय जाव मल्लेणं । ८. पभासुर (ख, ग)। १८. पू०-ना० १।८।३०।। ६. सयंणुवण्णाओ (क, ग); सयणुवण्णातो १६. सं० पा०—पसत्थदोहला जाव विहरइ । (ख, घ)। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ नायाधम्मकहानो ३४. तए णं सा पभावई देवी नवण्हं मासाणं [बहुपडिपुण्णाणं ? ] अट्ठमाण य राइंदियाणं [वीइक्कंताणं?] जे से हेमंताणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे मग्गसिरसुद्धे, तस्स णं एक्कारसीए पुव रत्तावरत्तकालसमयंसि अस्सिणीनक्खत्तेणं [जोगमुवागएणं ? ] उच्चट्ठाणगएसुं गहेसु जाव' पमुइय-पक्कीलिएसु जणवएसु अारोयारोयं एगणवीसइमं तित्थयरं पयाया ।। ३५. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वानो अट्ठ दिसाकुमारीमहयरियायो जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए' जम्मणुस्सव, नवरं-मिहिलाए कुंभस्स पभावईए अभिलामो संजोएयव्वो जाव नंदीसरवरदीवे महिमा ॥ ३६. तया णं कुंभए राया बहूहिं भवणवई- वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहिं देवेहि तित्थयर-जम्मणाभिसेयमहिमाए कयाए समाणीए पच्चूसकालसमयंसि नगरगुत्तिए सद्दावेइ° जायकम्मं जाव' नामकरणं-जम्हाणं अम्हं इमीसे दारियाए माऊए मल्लसयणिज्जसि डोहले विणीए, तं होउ णं [अम्हं दारिया ?] नामेणं मल्ली॥ ३७. १०तए णं सा मल्ली पंचधाईपरिक्खित्ता जाव" सुंहसुहेणं परिवई० ॥ १. ना०-१।८।२८ । पदमस्ति तेन 'इमासे' इति पदं युज्यते । २. आरोग्गारोग्गं (ग)। ६. मल्ली २ (क)। ३. वक्ष° ५। १०. सं० पा०-जहा महब्बले जाव परिवड्ढिया। ४. जम्मणं सव्वं (क, ख, ग, घ)। अत्र अत्र पूर्णपाठावलोकनार्थं महाबलस्य संकेत: 'जम्मणं सव्वं' अस्य पाठस्यार्थो नैव संगति कृतोस्ति । तस्य वर्णनं भगवत्यां (१११११) गच्छति। वृत्तिकृता -'जन्मवक्तव्यता सर्वा विद्यते। तत्राप्यादर्शेषु 'जहा दढपइण्णे' वाच्या' इति विवृतम्, किन्तु नात्र विवरणानु- इति समर्पणमस्ति, तेनास्माभिरसौ पाठ: सारी पाठोस्ति । अत्र 'जम्मणुस्सव' इति पाठः दृढप्रतिज्ञप्रकरणादेव पूरितः । स्वाभाविक्र: स्यात् । जंबुद्वीपप्रज्ञप्त्यामपि अतोग्रे आदर्शेषु निम्नलिखितं गाथाद्वयं 'जम्मणमहिमं करेंति' इति पाठो लभ्यते । प्राप्यते, किन्तु एतत् प्रक्षिप्तमस्ति । असौ 'जम्मणुस्सव' इति पाठस्य पुष्टि वृत्तिकारेणापि सूचितमिदं, यथा-'सा करोति । लिपिदोषेग पाठविपर्ययो जातः वडढई भगवई' इत्यादि गाथाद्वयं आवश्यकइति कल्पना नात्रास्वाभाविकी। नियुक्तिसंबंधिऋषभमहावीरवर्णकरूपं बहु५. सं० पा०–भवणवइ तित्थयर । विशेषणसाधादिहाधीतम्, न पुनर्गाथा६. कप्पो महावीर जन्म प्ररण । द्वयोक्तानि विशेषणानि सर्वाणि मल्लि७. जहा (ख, घ)। जिनस्य घटन्ते । तेनास्माभिः नैतत् मूलपाठे ८. इमीए (क, ख, ग, घ); अत्र षष्ठ्यन्तं स्वीकृतम् । तच्च गाथाद्वयमिदम् सा वड्ढई भगवई, दियलोय चुया अणोवमसिरीया। दासीदासपरिवुडा, परिकिण्णा पीढमद्देहिं ॥१॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) १६३ ३८. तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना उम्मुक्कबालभावा' •विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता° रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य अईव-अईव उक्किट्ठा उक्किसरीरा जाया यावि होत्था । ३६. तए णं सा मल्ली देसूणवाससयजाया ते 'छप्पि य रायाणो विउलेणं प्रोहिणा आभोएमाणी-प्राभोएमाणी विहरइ, तं जहा-पडिबुद्धि' 'इक्खागरायं, चंदच्छायं अंगरायं, संखं कासिरायं, रुप्पि कुणालाहिवई, अदीणसत्तुं कुरुरायं ° जियसत्तुं पंचालाहिवइं॥ मल्लिस्स मोहणघर-निम्माण-पदं ४०. तए णं सा मल्लो कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! असोगवणियाए एगं महं मोहणघरं करेह-अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ । तस्स णं मोहणघरस्स बहुमज्झदेसभाए छ गब्भघरए करेह । तेसि णं गब्भघरगाणं बहुमज्झदेसभाए जालघरयं करेह । तस्स णं जालघरयस्स बहुमज्झदेसभाए मणिपेढियं' करेह । 'एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तेविः तहेव ° पच्चप्पिणंति॥ असियसिरया सुनयणा, बिबोट्ठी धवलदंतपंतीया। वरकमलकोमलंगी, फुल्लुप्पलगंधनीसासा ॥२॥ वृत्तिकारेण स्थाने-स्थाने अनयोः पाठभेदा उल्लिखिताः । आवश्यकनियुक्तौ भगवतो ऋषभस्य वर्णने इदं गाथाद्वयमित्थमस्ति अह वड्ढइ सो भयवं, दियलोगचुतो य अणुवमसिरीयो । देवगणसंपरिवुडो, नंदाए सुमंगला-सहितो ॥१८७॥ असियसिरतो सुनयणो, बिबोट्ठो धवलदंतपंतीओ। वरपउमगभगोरो, फुल्लुप्पलगंधनीसासो ॥१८८'। भगवतो महावीरस्य वर्णने तद् गाथाद्वयमित्थमस्ति अह वड्ढइ सो भयवं, दिवलोगचुनो अणुवमसिरीओ। दासीदासपरिवुडो, परिकिण्णो पीढमद्देहिं ॥६६॥ असियसिरओ सुनयणो, बिबोट्टो धवलदंतपंतीओ। वरपउमगब्भगोरो, फुल्लुप्पलगंधनीसासो ॥७०।। ११. राय० सू० ८०४। ४. पू० -- ना० १११८६ । १. सं० पा० - उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण। ५. °पीढियं (ख, घ); ° पीढयं (ग)। २. छप्पिया° (क); छप्पि (ख, घ)। ६. सं० पा० - करेह जाव पच्चप्पिणंति । ३. सं० पा-पडिबुद्धि जाव जियसत्तु । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ नायाधम्मकहाओ ४१. तए णं सा मल्ली मणिपेढियाए उवरि अप्पणो सरिसियं सरित्तयं सरिव्वयं सरिस लावण्ण-रूव-जोव्वण-गुणोववेयं कणगामई मत्थयच्छिडं पउमुप्पल-पिहाणं पडिमं करेइ, करेत्ता जं विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं आहारेइ, तो मणुण्णाम्रो असण-पाण-खाइम-साइमाओ कल्लाकल्लि एगमेगं पिंडं गहाय तीसे कणगामईए मत्थयछिड्डाए' •पउमुप्पल-पिहाणाए° पडिमाए मत्थयंसि पक्खिवमाणी-पक्खिवमाणी विहरइ ॥ ४२. तए णं तीसे कणगामईए मत्थयछिड्डाए 'पउमुप्पल-पिहाणाए° पडिमाए एगमेगंसि पिंडे पक्खिप्पमाणे-पक्खिप्पमाणे तो गंधे' पाउब्भवेइ, से जहाणामए -अहिमडे इ वा गोमडे इ वा सुणहमडे इ वा मज्जारमडे इ वा मणुस्समडे इ वा महिसमडे इ वा मूसगमडे इ वा आसमडे इ वा हत्थिमडे इ वा सीहमडे इ वा वग्घमडे इ वा विगमडे इ वा दीविगमडे इ वा। मय-कुहिय-विण?-दुरभिवावण्ण-दुब्भिगंधे किमिजालाउलसंसत्ते असुइ-विलीण-विगय-बीभत्सदरिसणिज्जे भवेयारूवे सिया? नो इणढे समढे। एत्तो अणिद्वैतराए चेव अकंततराए चेव अप्पियतराए चेव अमणुण्णतराए चेव ° अमणामतराए चेव ।। पडिबुद्धिराय-पदं ४३. तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसला नाम जणवए । तत्थ णं सागेए नाम नयरे। ४४. तस्स णं उत्तरपुरत्थिमे' दिसोभाए, एत्थ णं महेगे नागघरए होत्था-दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सण्णि हिय-पाडिहेरे । ४५. तत्थ णं सागेए नयरे पडिबुद्धी नाम इक्खागराया परिवसइ । पउमावई देवी। सुबुद्धी अमच्चे साम-दंड-भेय-उवप्पयाण-नीति-सुप उत्त-नय-विहण्णू विहरई ॥ ४६. तए णं पउमावईए देवीए अण्णया कयाइ नागजण्णए यावि होत्था । ४७. तए णं सा पउमावई देवी नागजण्णमुवट्ठियं जाणित्ता जेणेव पडिबुद्धी •राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए १. कणगामयं (ग)। ६. सं० पा० -अहिमडे इ वा जाव अणि? तराए २. पउमप्पल्ल (ख, ग, घ)। अमणामतराए। ३. सं० पा०-मत्थयछिड्डाए जाव पडिमाए। ७. उत्तरपुरस्थिमे णं (ख, ग)। ४. सं० पा-कणगामईए जाव मत्थयछिड्डाए। ८. सं० पा०-साम दंड । असौ अपूर्णः पाठः अत्र जाव शब्दस्य प्रयोगोऽशुद्धोस्ति । असौ 'जाव' आदितिसकेतरहितोस्ति । उपरितनसूत्रवत् 'मत्ययछिड्डाए जाव ६. पू०-ना० १।१।१६ । पडिमाए एवं युज्यते । १०. सं० पा० -पडिबुद्धी करयल ° । ५. गंधिए (क); गंधि (ग, घ)। Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) १६५ अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु सामी ! मम कल्लं नागजण्णए भविस्सइ । तं इच्छामि णं सामी ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाया समाणी नागजण्णयं गमित्तए । तुब्भे वि णं सामी ! मम नागजण्णयंसि समोसरह ॥ ४८. तए णं पडिबद्धी पउमावईए एयमद्रं पडिसणेह॥ ४६. तए णं पउमावई पडिबुद्धिणा रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी हट्टतुट्ठा कोडुबिय पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम कल्लं नागजण्णं भविस्सइ, तं तुन्भे मालागारे सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं वदाह-एवं खलु पउमावईए देवीए कल्लं नागजण्णए भविस्सइ, तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! जल-थलय'- भासरप्पभूयं ° दसद्धवण्णं मल्लं नागघरयंसि साहरह, एगं च णं महं सिरिदामगंडं उवणेह। तए णं जल-थलय- भासरप्पभूएणं ° दसद्धवण्णणं मल्लेणं नाणाविह-भत्तिसुविरइयं हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाय-मयणसाल-कोइल-कुलोववेयं ईहामिय'- उसभ-तुरय-नर-मगर- विहग-वालग- किंनर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजरवणलय-पउमलय ° -भत्तिचित्तं महग्धं महरिहं विउलं पुप्फमंडवं विरएह । तस्स णं बहुमज्झदेसभाए एगं महं सिरिदामगंडं जाव' गंधद्धणि मुयंतं उल्लोयंसि प्रोलएह, पउमावई देवि पडिवालेमाणा चिद्रह ।। ५०. तए णं ते कोडंबिया जावपउमावति देवि पडिवालेमाणा चिद्रंति ।। ५१. तए णं सा पउमावई देवी कल्लं° •पाउप्पभायाए रयणीए जाव" उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते ° कोडुबिए पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव' भो देवाणुप्पिया ! सागेयं नयरं सभितरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जियोवलित्तं जाव' गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चपिणह । ते वि तहेव पच्चपिणंति ॥ ५२. तए णं सा पउमावई देवी दोच्चंपि कोडुबिय"- पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्तं जाव" धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेह । ते वि तहेव ° उवट्ठति ॥ १. सं० पा०-थलय । २. सं० पा०-थलय । ३. चक्काय (क)। ४. सं० पा०-ईहामिय जाव भत्तिचित्तं । ५. ना० १।८।३०। ६. ना० ११८४६। ७. सं० पा०--कल्लं । ८. ना० १११।२४। ६. ना० १११।३३। १०. सं० पा०-कोडुंबिय जाव खिप्पामेव ____लहुकरणजुत्तं जाव जुत्तामेव उवट्ठति । ११. उवा० ११४७ । Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाधम्मकहाओ ५३. तए णं सा पउमावई देवी अंतो अंतेउरंसि व्हाया जाव' धम्मियं जाणं दुरूढा ।। ५४. तए णं सा पउमावई देवी नियग-परियाल-संपरिवुडा सागेयं नयरं मझमझेणं निज्जाइ', जेणेव पोक्खरणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोक्खरणि प्रोगाहति, प्रोगाहित्ता जलमज्जणं करेइ जाव' परमसुइभूया उल्लपडसाडया जाई तत्थ उप्पलाइं जाव ताइं गेण्हइ, जेणेव नागघरए तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ ५५. तए णं पउमावईए देवीए दासचेडीयो बहूयो पुप्फपडलग-हत्थगयाओ धूवकड च्छय-हत्थगयाओ पिटूनो समणुगच्छंति ॥ ५६. तए णं पउमावई देवी सव्विड्डीए जेणेव नागघरए तेणेव उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता नागघरं अणुप्पविसइ, लोमहत्थगं परामुसइ जाव' धूवं डहइ, पडिबुद्धि पडिवालेमाणी-पडिवालेमाणी चिट्ठइ ॥ ५७. तए णं से पडिबुद्धी पहाए" हत्थिखंधवरगए सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं ° सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महया भड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते सागेयं नगरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव नागघरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधागो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता आलोए पणामं करेइ, करेत्ता पुप्फमंडवं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता पासइ तं एगं महं सिरिदामगंडं ॥ ५८. तए णं पडिबुद्धी तं सिरिदामगंडं सुचिरं कालं निरिक्खइ। तंसि सिरिदाम गंडसि जायविम्हए सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी--- तुम देवाणप्पिया ! मम दोच्चेणं बहूणि गामागर जाव सण्णिवेसाइं आहिडसि, बहूण य राईसर जाव" सत्थवाहपभिईणं गिहाई अणुप्पविससि, तं अत्थि णं तुमे कहिंचि एरिसए सिरिदामगंडे दिट्ठपुव्वे, जारिसए णं इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे ? ५९. तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धि रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! अहं अण्णया कयाइ तुब्भं दोच्चेणं मिहिलं रायहाणि गए। तत्थ णं मए कुंभयस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए संवच्छर-पडिलेहणगंसि दिव्वे १. ना० ११११६५। ७. पू०-ना० १११।६६ । २. नियाइ (क, ख); निग्गच्छइ (घ)। ८. सं० पा०-सकोरेंट जाव सेयवर । ३. ४. ना० १०२।१४ । ६. सुइरं (क, ख, ग)। ५. तत्थ (क, ख, ग, घ) एतत् अशुद्ध प्रति- १०. ना० १।१।११८ । भाति । ११. ना० ११५।६। ६. ना० ११२.१४ । १२. कयाइं (ग)। Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) सिरिदामगंडे दिट्टपुव्वे । तस्स णं सिरिदामगंडस्स इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमंपि कलं न अग्घइ ।। ६०. तए णं पडिबुद्धी सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी-केरिसिया ण देवाणुप्पिया ! मल्ली विदेहरायवरकन्ना, जस्स' णं संवच्छर-पडिलेहणयंसि सिरिदामगंडस्स पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सहमपि कलंन अग्घड ? ६१. तए णं सुबुद्धो पडिबुद्धि इक्खागरायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! मल्ली विदेहरायवरकन्ना सुपइदियकुम्मुण्णय-चारुचरणा जाव' पडिरूवा ॥ ६२. तए णं पडिबुद्धो सुबुद्धिस्स अमच्चस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म सिरिदाम गंड-जणियहासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छाहि णं तुम देवाणुप्पिया ! मिहिलं रायहाणि । तत्थ णं कुंभगस्स रण्णो धूयं पभावईए अत्तयं मल्लि विदेहरायवरकन्न' मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुका ॥ ६३. तए णं से दूए पडिबुद्धिणा रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुढे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं पडिकप्पावेइ, पडिकप्पावेत्ता दुरूढे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे ° महया भड-चडगरेणं साएयाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव विदेहजणवए जेणेव मिहिला रायहाणी तेणंव पहारेत्थ गमणाए। चंदच्छाय-राय-पदं ६४. तेणं कालेणं तेणं समएणं अंगनाम जणवए होत्था। तत्थ णं चंपा नाम नयरी होत्था । तत्थ णं चंपाए नयरीए चंदच्छाए अंगराया होत्था । तत्थ णं चंपाए नयरीए अरहण्णगपामोक्खा बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति- अड्डा जाव बहुजणस्स अपरिभूया ॥ ६५. तए णं से अरहण्णगे समणोवासए यावि होत्था-अहिगयजीवाजीवे वण्णो ॥ ६६. तए णं तेसि अरहण्णगपामोक्खाणं संजत्ता-नावावाणियगाणं अण्णया कयाइ एगयो सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा समुल्लावे" समुप्पज्जित्था-सेयं खलु १. अत्र पुंस्त्वनिर्देशः मल्ल्याः तीर्थकरत्वेन ६. सं० पा०-गय । कृतः स्यात् ? ७. विदेहा° (क, ख)। २. वण्णओ० (क, ख, ग, घ); जीवाजीवा- ८. अंगा (क, ख, ग)। भिगमपडिवत्ती ३ । ६. ना० ११५७। ३. हरिसे (क, ख)। १०. ना० १३१४७ । ४. अत्तियं (क, ख, ग, घ)। ११. संलावे (ख, ग, घ)। ५. कन्नयं (क, ख)। Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुई पोयवहणेणं प्रोगाहित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमद्वं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गेण्हंति, गेण्हित्ता सगडीसागडयं सज्जेति, सज्जेत्ता गणिमस्स धरिमस्स मेज्जस्स पारिच्छेज्जस्स य भंडगस्स सगडी-सागडियं भरेति, भरेत्ता सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्तमहत्तंसि विउलं असणं पाणं खाइम साइम उवक्खडावेंति, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं भोयणवेलाए भुजावेति', 'भुजावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं प्रापुच्छंति, आपुच्छित्ता सगडीसागडियं जोयंति, जोइत्ता चपाए नयरीए मज्झमझेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सगडीसागडियं मोयंति, पोयवहणं सज्जेति, सज्जेत्ता गणिमस्स धरिमस्स मेज्जस्स पारिच्छेज्जस्स य° भंडगस्स [पोयवहणं ? ] भरेंति, तंदुलाण य समियस्स य तेल्लस्स य घयस्स य गुलस्स य गोरसस्स य उदगस्स य भायणाण य प्रोसहाण य भेसज्जाण य तणस्स य कट्ठस्स य प्रावरणाण य पहरणाण य अण्णेसि च बहूणं पोयवहणपाउग्गाणं दव्वाणं पोयवहणं भरेति। सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहुत्तंसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं भोयणवेलाए भुजाति, भं जावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं पापुच्छंति, जेणेव पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छति ॥ ६७. तए णं तेसि अरहण्णग पामोक्खाणं बहणं संजत्ता-नावा वाणियगाणं •मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणा ताहि इटाहि •कंताहि पियाहिं मणुण्णाहि मणामाहि अोरालाहिं° वग्गूहिं अभिनंदंता य अभिसंथुणमाणा य एवं वयासी-अज्ज ! ताय ! भाय ! माउल ! भाइणेज्ज ! भगवया समुद्देणं अभिरक्खिज्जमाणा-अभिरक्खिज्जमाणा चिरं जीवह, भदं च भे, पुणरवि लद्धटे कयकज्जे अणहसमग्गे नियगं घरं हव्वमागए पासामो त्ति कटु ताहि सोमाहि निद्धाहिं दीहाहिं सप्पिवासाहि पप्पुयाहि दिट्ठीहिं निरिक्खमाणा मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठति । तम्रो समाणिएसु पुप्फबलिकम्मेसु, दिन्नेसु सरस-रत्तचंदण-दद्दर-पंचंगुलितलेसु, अणुक्खित्तंसि धूवंसि, पूइएसु समुद्दवाएसु, १. सं० पा०-भुंजावेंति जाव आपुच्छंति । ५. सं० पा०-अरहणणग जाव वाणियगाणं । २. गंभीर (ख, घ)। ६. सं० पा०-वाणियगाणं जाव परियणा। ३. सं० पा०-गणिमस्स जाव चउम्विहभंडगस्स। ७. सं० पा०–इट्ठाहिं जाव वग्गूहिं । ४. भायणस्स (घ)। ८. पूतिएसु (ख); पूईतेसु (ग, घ)। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टम प्रज्झयणं (मल्ली) १६६ संसारियासु' वलयासु', ऊसिएसु सिएसु झयग्गेसु, पड्डुप्पवाइएसु तुरेसु' जइएसु सव्वसउणेसु, गहिएसु रायवरसासणेसु मया उक्किट्ठ-सीहनाय - •बोल-कलकल रवेणं पक्खुभियमहासमुद्द-रवभूयं पिव मेइणि करेमाणा एगदिसिं' 'एगाभिमुहा अरहण्णगपामोक्खा संजत्ता-नावा ° वाणियगा नावाए दुरूढा॥ ६८. तो पुस्तमाणवो वक्कमुदाहु-हं भो ! 'सव्वेसिमेव भे अत्थसिद्धी, उवट्ठियाई कल्लाणाई, पडिहयाइं सव्वपावाइं, 'जुत्तो पूसो,“ विजओ मुहुत्तो 'अयं देसकालो"॥ ६६. तानो पुस्समाणवेणं वक्कमुदाहिए" हट्ठतुट्ठा 'कण्णधार-कुच्छिधार'-गब्भिज्ज संजत्ता-नावावाणियगा वावारिसु, तं नावं पुण्णुच्छंग पुण्णमुहिं बंधणेहितो मंचंति ॥ ७०. तए णं सा नावा विमुक्कबंधणा पवणबल-समाहया ऊसियसिया विततपक्खा इव गरुलजुवई गंगासलिल-तिक्ख-सोयवेगेहिं 'संखुब्भमाणी-संखुब्भमाणी" उम्मी-तरंग-मालासहस्साइं समइच्छमाणी-समइच्छमाणी कइवएहिं अहोरत्तेहिं लवणसमुदं अणेगाइं जोयणसयाइं प्रोगाढा ॥ ७१. तए णं तेसि अरहण्णगपामोक्खाणं संजत्ता-नावावाणियगाणं लवणसमुदं अणेगाई जोयणसयाइं प्रोगाढाणं समाणाणं बहूई उप्पाइयसयाई पाउब्भूयाई, तं जहा-- अकाले गज्जिए अकाले विज्जूए अकाले थणियसद्दे अभिक्खणं-अभिक्खणं आगासे देवयाग्रो नच्चंति ।। ७२. "तए णं ते अरहण्णगवज्जा संजत्ता-नावावाणियगा एग६ च णं महं तालपिसायं १. संचारियासु (क)। १४. संबुज्झमाणी २ (क, ख, ग, घ)। २. वलयवाहासु (क); बलयबाहासु (ग, घ)। १५. अत्र द्वयोर्वाचनयोः संमिश्रणं जातमस्ति । ३. भूतेसु (ग)। वृत्तिकारस्य सम्मुखे असो मिश्रितपाठ ४. जतिएसु (ख); जइतेसु (ग, घ) । एवादशेषु लिखितः आसीत्, तेन वृत्तिकृता ५. सं० पा०-सीहनाय जाव रवेण । द्वयोः संगति स्थापयितुं प्रयत्नः कृतः, यथा६. सं० पा०—एगदिसिं जाव वाणियगा। तत्रार्हन्नकवर्जा यत् कुर्वन्ति तत् दर्शयितु७. सव्वेसामवि (क, ख, ग, घ)। मुक्तमेव पिशाचस्वरूपं सविशेषं तेषां ८. इहावसरे इति गम्यते (वृ)। तदर्शनं चानुवदन्नाह-तए णमित्यादिः ६. एष प्रस्तावो गमनस्येति गम्यते । ततस्ते अर्हन्नकवर्जा सांयात्रिकाः पिशाचरूपं १०. माणएणं (ख, ग, घ)। वक्ष्यमाणविशेषणं पश्यन्ति (वृ)। ११. °मुदाहरिए (क, घ)। वृत्तिकारेण वैकल्पिकरूपेण 'तएणं ते अरहण्णग १२. कुच्छिधारकण्णधार (ख, ग, घ)। वज्जा' इति सूत्रांशं वाचनान्तरत्वेन स्वीकृतम्, १३. पुण्णत्थगं (ख)। यथा-अथवा 'तएणं ते 'अरहण्णगवज्जा' Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० Here one पासंति - तालजंघं दिवंगयाहि बाहाहिं फुट्टसिरं भमर - निगर- वरमासरासिमहिसकालगं भरिय - मेहवण्णं सुप्पणहं फाल- सरिस - जीहं लंबोट्टं धवलवट्टसिलिट्ट - तिक्ख-थिर- पीण- कुडिल-दाढोवगूढवणं विकोसिय-धारासिजुयलसमसरिस - तणुय - चंचल - गलंत रसलोल - चवल- फुरुफुरेंत निल्लालियगग्जीहं श्रवयत्थिय' -महल्ल - विगय-बीभच्छ-लाल पगलंत - रत्ततालुयं हिंगुलय-सगब्भकंदरबिलं व अंजणगिरिस्स अग्गिज्जालुग्गिलंतवयणं' ग्राऊसिय' - अक्खचम्मउगंडदेस' चीण-चिमिढ - वंक - भग्गनासं रोसागय-धमधमेंत - मारुय निठुरखर-फरुसभुसिरं प्रभुग्ग- नासियपुडं घाडुब्भड - रइय- भीसणमुहं उद्धमुहकण्णसक्कुलिय-महंत विगय- लोम-संखालग - लंबंत-चलियकण्णं पिंगल - दिप्पंतलोयणं ' भिउडि- तडिनिडाल" नरसिरमाल - परिणद्धचिधं विचित्तगोणस सुबद्धपरिकरं प्रवहोलंत - फुप्फुयायंत' -सप्प - 1 • विच्छुय-गोधुंदुर-नउल- सरड - विरइय-विचित्तवेयच्छमालियागं भोगकूर- कण्हसप्प - धमधमें त-लंबत कण्णपूरं मज्जार- सियाललइयखंधं दित्त-घुघुयंत" - घूय-कय- भुंभर सिर", घंटारवेण भीम-भयंकरं कायर1] इत्यादि गमान्तरं 'आगासे देवयाग्रो नच्चति' इतोनन्तरं द्रष्टव्यम्, अतएव वाचनान्तरे नेदमुपलभ्यते चैवम् 'अभिमुहं आवयमाणं पासंति' (वृ) । प्रथमवाचनापाठे कोपि कर्ता नास्ति अतोस्माभि द्वितीयवाचनापाठो मूले स्वीकृतः । प्रथमवाचना पाठः इत्यमस्ति'एगं च णं महं पिसायरूवं पासंति - तालजंघ दिवंगयाहिं बाहाहिं मसि मूसग महिस- कालगं भरिय मेहवण्णं लंबोट्ठ निग्गयग्गदंतं निल्ला लिय-जमल-जुयल-जीहं श्राऊसिय- [ आघूसिय ( ख ) ; श्राधूसिय, श्रापूसिय (वृपा ) । ] वयण गडदेसं चीणचिमिढ - [ चिविड (क); चमड (घ ) । ] नासियं विगय-भुग्गं - [भुग्ग- भग्ग (क, वृपा) । ] खज्जोयग - दित्त - भुमयं [ भमयं ( ख ) ।] चक्खुरागं [ वाचनान्तरे विगय भग्ग भुमय - पहसिय - पयलिय - पडिय फुल्लिंगखज्जोय - चक्खुरागं ।] उत्तासणगं विसालवच्छं विसालकुच्छ पलंबकुच्छि पहसिय-पय लिय पयडियगत्तं [पडियगत्तं ( क, ख, पणच्चमाणं अफ्फोडतं अभिवगंत अभिगज्जतं बहुसो - बहुसो य अट्टट्टहासे विणिम्यं तं नीलुप्पल - गवल - गुलिय-[ गुडिय (ख) 1] अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असि हाय अभिमुहमावयमाणं पासति । १६. एवं ( क ) । १. अवत्थिय (वृपा) । २. अग्गिजालो ० ( क ); अग्गिजालु ० ( ख ) 1 ३. आवसिय ० ( वृपा) । ४. उट्ठ° ( ख, ग ) । धम्मधम्मेंत ( ख ) । घोडुब्भड ( ख ) । ५. ६. ७. संखालग्ग (वृपा) । ८. भिउडित निडालं (वृपा ) । o ६. पुप्फया (क, ख, ग, घ ) । गोधुंदर (ग, घ ) । १०. ११. १२. घुघूयंत ( ख ) । 0 ० भुंभल (क, ग ); सुंभल ( ख ) । एकस्मिन् वृत्पदर्श 'बुंभलं' इति लभ्यते । कुंतलं ( क्व ) । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम अज्झयणं (मल्लौ) जणहिययफोडणं दित्तं अट्टहासं विणिम्मुयंत, वसा-रुहिर-पूय-मंस-मल-मलिणपोच्चडतण उत्तासणयं विसालवच्छं पेच्छंता भिन्ननख-मुह-नयण-कण्णं वरवग्घ-चित्त-कत्ती-णियंसणं सरस-रुहिर-गयचम्म-वियय-ऊसविय-बाहजयलं ताहि य खर-फरुस-असिणिद्ध-दित्त-अणिट्ठ-असुभ-अप्पिय'-अकंत-वरगृहि य तज्जयंत-तं तालपिसायरूवं एज्जमाणं पासंति, पासित्ता भीया' 'तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया अण्णमण्णस्स कायं समतुरंगेमाणा-समतुरंगेमाणा बहणं इंदाण य खंदाण य रुद्दाण य सिवाण य वेसमणाण य नागाण य भूयाण य जक्खाण य अज्ज-कोट्टकिरियाण' य बहूणि उवाइयसयाणि उवाइमाणा चिति ।। ७३. तए णं से अरहण्णए समणोवासए तं दिव्वं पिसायरूवं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता अभीए अतत्थे अचलिए असंभंते अणाउले अणुव्विग्गे अभिण्णमुहरागनयणवण्णे अदीण-विमण-माणसे पोयवहणस्स एगदेसंसि वत्थंतेणं भूमि पमज्जइ, पमज्जित्ता ठाणं ठाइ, ठाइत्ता, करयल'- परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट° एवं वयासि-नमोत्थु णं अरहताणं भगवताणं जाव सिद्धिगइनामधेनं ठाणं संपत्ताणं । जइ णं हं एत्तो उवसग्गाग्रो मुंचामि तो मे कप्पइ पारित्तए, अह णं एत्तो उवसग्गाग्रो न मुंचामि तो मे तहा पच्चक्खाएयव्वे ति कटटु सागारं भत्तं पच्चक्खाइ ॥ ७४. तए णं से पिसायरूवे जेणेव अरहण्णगे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहण्णगं एवं वयासी-हंभो अरहण्णगा ! अपत्थियपत्थया ! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीणपुण्ण-चाउद्दसिया ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति ०. परिवज्जिया ! नो खलु कप्पइ तव सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाणपोसहोववासाइं चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा। तं जइ णं तुम सील-व्वय-गुण-वेरमणपच्चक्खाण-पोसहोववासाइं न चालेसि न खोभेसि न खंडेसि व भंजेसि न उज्झसि न परिच्चयसि, तो ते अहं एयं पोयवहणं दोहि अंगुलियाहिं गेण्हामि, गेण्हित्ता सत्तद्वतलप्पमाणमेत्ताइ उड्ढं वेहासं उव्विहामि अंतोजलंसि १. अप्पियअमण्णुण्ण (क, घ)। २. तज्जयंतं पासंति (क, ख, ग, घ)। ३. सं० पा०-भीया संजायभया । ४. कोटिकिरियाण (क)। ५. सं० पा०-करयल° । ६. ओ० सू० २१ । ७. अपत्थियपत्थिया (ग, घ, वृपा); सं० पा अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया। ८. वा एवं (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा०-सीलव्वय जावन परिच्चयसि । १०. अंगुलीहिं (ग)। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ লাক্ষাঙ্গী निव्वोलेमि', जेणं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे असमाहिपत्ते अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। ७५. तए णं से अरहण्णगे समणोवासए तं देवं मणसा चेव एवं वयासी-अहं णं देवाणुप्पिया ! अरहण्णए नाम' समणोवासए अहिगयजीवाजीवे । नो खलु अहं सक्के केणइ देवेण वा 'दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेणं वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथात्रो पावयणायो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, तुमं णं जा" सद्धा तं करेहि त्ति कटु अभीए जाव' अभिन्नमुहराग-नयणवण्णे अदीण-विमण-माणसे निच्चले निप्फंदे' तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ॥ ७६. तए णं से दिव्वे पिसायरूवे अरहण्णगं समणोवासगं दोच्चंपि तच्चपि एवं वयासी-हंभो अरहण्णगा ! जाव' धम्मज्झाणोवगए विहरइ ।। ७७. तए णं से दिव्वे पिसायरूवे अरहण्णगं धम्मज्झाणोवग यं पासइ, पासित्ता बलियतरागं आसुरत्ते तं पोयवहणं दोहि अंगुलियाहिं गेण्हइ, गेण्हित्ता सत्तद्वतलप्पमाणमेत्ताइं उड्ढं वेहासं उव्विहइ, उव्विहित्ता' अरहण्णगं एवं वयासीहंभो अरहण्णगा ! अपत्थियपत्थया ! नो खलु कप्पइ तव सील-व्वय'. गुणवेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइंचालितए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा। तं जइ णं तुमं सील-व्वय-गुणवेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं न चालेसि न खोभेसि न खंडेसि न भंजेसि न उज्झसि न परिच्चयसि, तो ते अहं एवं पोयवहणं अंतो जलंसि निब्बोलेमि, जेणं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे असमाहिपत्ते अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ।। ७८. तए णं से अरहण्णगे समणोवासए तं देवं मणसा चेव एवं वयासी-अहं णं देवाणुप्पिया ! अरहण्णए नामं समणोवासए-- अहिगयजीवाजीवे नो खलु अहं सक्के केणइ देवेण वा दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथानो पावयणायो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, तुमं णं जा सद्धा तं करेहि त्ति कटु अभीए जावर अभिन्नमुहराग-नयणवण्णे अदीण-विमण-माणसे निच्चले निप्फंदे १. निच्छोल्लेमि (क)। २. जाणं (क, ग, घ)। ३. X(ग)। ४. सं० पा०-देवेण वा जाव निग्गंथाओ। ५. जाव (ख, ग, घ) अशुद्ध प्रतिभाति। ६. ना० ११८७३। ७. निप्पंदे (ख)। ८. ना० १८।७४,७५ । ६. सं० पा०-सत्तट्टतलाई जाव अरहन्नगं । १०. पू०-~ना० ११८७४ । ११. सं० पा०-सीलव्वय तहेव जाव धम्मज्झाणोवगए। १२. ना० ११८७३ । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमं अज्झणं (मल्ली ) तुसिणीए • धम्मज्भाणोवगए विहरइ । ७६. तणं से पिसायरूवे अरहणगं जाहे नो संचाएइ निग्गंथाओ पावयणाश्र चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते' तंते परितंते निव्विण्णे तं पोयवहणं सणियं-सणियं उवरि जलस्स ठवेइ, ठवेत्ता तं दिव्वं पिसायरूवं पडिसाहरेइ, पडिसाहरेत्ता दिव्वं देवरूवं विउव्वई' - अंतलिक्खपडिवन्ने सखिखिणीयाई दसद्धवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए अरहण्णगं समणोवासगं एवं वयासी -हं भो अरहणगा ! समणोवासया ! धन्नेसि णं तुमं देवाणुप्पिया' ! पुण्णेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयत्थेसि णं तुमं देवाणु - पिया ! कयलक्खणेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! सुलद्धे णं तव देवाणुप्पिया ! माणुस जम्म जीवियफले, जस्स णं तव निग्गंथे पावयणे इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया । एवं खलु देवाणुप्पिया ! सक्के देविंदे देवराया सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए बहूणं देवाणं मज्भगए महया - महया सद्देणं एवं श्राइक्खइ, एवं भासेइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ - एवं खलु देवा ! जंबुद्दीवे दवे भार वासे चंपाए नयरीए अरहणए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे । न खलु सक्के के देवेण वा दाणवेण वा जक्खेण वा रक्ख सेण वा किन्नरेण 0__ किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथा पावयणाश्रो चालित्तए' •वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा । तए णं अहं देवाणुप्पिया ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो नो एयम सद्दहामि पत्तियामि रोएमि । तए णं मम इमेयारूवे ग्रज्भथिए । चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था ● - गच्छामि गं ग्रहं अरहणगस्स प्रतियं पाउब्भवामि, जाणामि ताव अहं अरहणगं - किं पियधम्मे नो पियधम्मे ? दढधम्मे नो दढधम्मे ? सील - व्वयगुण’- वेरमण-पच्चक्खाण-पोस होववासाइं किं चालेइ नो चालेइ ? खोभेइ नो खोइ ? खंडेइ नो खंडेइ ? भंजेइ नो भंजेइ ? उज्झइ नो उज्झइ ? परिच्चयइ° नो परिच्चयइ त्ति कट्टु एवं संपेहेमि, संपेत्ता ओहिं पउंजामि, परंजित्ता देवाणुप्पियं प्रोहिणा ग्राभोएमि, ग्राभोएत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं १. सं० पा० - संते जाव निव्विण्णे । तहेव संते जाव निव्विणे (क, ख, ग, घ ) । २. पू० उवा० २।४० । ३. सं० पा० -- देवाणुप्पिया जाव जीवियफले । ४. सक्का (क, ख, ग, घ ) । १७३ ५. सं० पा० - चालित्तए जाव विपरिणामित्तए । ६. सं० पा० - अज्झत्थिए ७. सं० पा० - गुणे किं चालेइ जाव नो परिच्चयइ | o । Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ नायाधम्मकहाओ अवक्कमामि' उत्तरवेउव्वियं रूवं विउव्वामि, विउव्वित्ता ताए उक्किदाए' देवगईए जेणेव लवणसमुद्दे जेणेव देवाणुप्पिए तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता देवाणपियस्स उवसग्गं करेमि, नो चेव णं देवाणुप्पिए भीए तत्थे चलिए संभंते आउले उव्विग्गे भिण्णमुहराग-नयणवण्णे दीणविमणमाणसे जाए ° । तं जंणं सक्के देविंदे देवराया एवं वयइ, सच्चे णं एसमढे । तं दिढे णं देवाणुप्पियस्स इड्री' 'जई जसो बलं वीरियं पुरिसकार°-परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए। तं खामेमि णं देवाणुप्पिया । खमेसु णं देवाणु प्पिया ! खंतमरिहसि णं देवाणप्पिया! नाइ भुज्जो एवंकरणयाए त्ति कट्ट पंजलिउडे पायवडिए एयम₹ विणएणं भुज्जो-भुज्जो खामेइ, अरहण्णगस्स य दुवे कुंडलजुयले दलयइ, दलइत्ता जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए। ८०. तए णं से अरहण्णए निरुवसग्गमिति कट्ठ पडिमं पारेइ ।। ८१. तए णं ते अरहणणगपामोक्खा संजत्ता-नावावाणियगा दक्खिणाणुकलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयं लंबेंति, लंबेत्ता सगडि-सागडं सज्जेति, तं गणिमं धरिमं मेज परिच्छेज्जं च सगडिसागडं संकामेंति, संकामेत्ता सगडि-सागडं जोविति जोवित्ता जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणंसि सगडि-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं कुंडलजुयलं च गेण्हंति, गेण्हित्ता [मिहिलाए रायहाणीए ? ] अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु° महत्थं" •महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं ° दिव्वं कुंडलजुयलं च उवणेति ॥ ताण भए राया तेसिं संजत्ता नावावाणियगाणं तं महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं कुंडलजुयलं च° पडिच्छइ, पडिच्छित्ता मल्लि विदेहवररायकन्नं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता तं दिव्वं कुंडलजुयलं मल्लीए विदेहरायकन्नगाए पिणद्धेइ, पिणद्धत्ता पडिविसज्जेइ । १. २, ३. पू०-राय सू०१०। ४. सं० पा०-भीया वा''। ५. स० पा०--इड्ढी जाव परकम्मे । ६. सं० पा०-पामोक्खा जाव वाणियगा। ७. सगड (ग, घ)। ८. जोएंति (क)। 8. 'क' प्रतौ असो पाठः 'महत्थं अत: प्राग लिखितो लभ्यते, किन्तु वस्तुतः कोष्ठकस्थाने युज्यते । अन्यादर्शेषु नासो लब्धोस्ति । १०. सं० पा०-करयल । ११. सं० पा०—महत्थं° । १२. सं० पा.--संजत्तगाणं जाव पडिच्छइ । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) १७५ ८३. तए णं से कुंभए राया ते अरहण्णगपामोक्खे संजत्ता-नावा वाणियगे विपुलेणं वत्थ-गंध'- मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता उस्सुक्कं वियरइ, वियरित्ता रायमग्गमोगाढे य आवासे वियरइ, वियरित्ता पडिविसज्जेइ ॥ ८४. तए णं अरहण्णग' पामोक्खा संजत्ता-नावावाणियगा जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भंडववहरणं' करेंति, पडिभंडे गेहंति, गेण्हित्ता सगडी-सागडं भरेंति, भरेत्ता जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं सज्जति, सज्जेत्ता भंडं संकामेंति, संकामेत्ता दक्खिणाणु कूलेणं वाएणं जेणेव चंपाए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयं लंबेंति, लंबेत्ता सगडी-सागडं सज्जेति, सज्जेत्ता तं गणिमं धरिमं मेज परिच्छेज्जं च सगडी-सागडं संकामेंति, संकामेत्ता' 'सगडि-सागडं जोविति, जोवित्ता जेणेव चंपानयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चंपाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणंसि सगडि-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं मह महरिहं विउलं रायारिहं° पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयलं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव चंदच्छाए अंगराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयलं ° उवणेति ॥ ८५. तए णं चंदच्छाए अंगराया तं महत्थं पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयलं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते अरहण्णगपामोक्खे एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया! बहूणि गामागर जाव' सण्णिवेसाइं पाहिंडह, लवणसमुदं च अभिक्खणंअभिक्खणं पोयवहणेहि प्रोगाहेह, तं अत्थियाई भे केइ कहिंचि अच्छेरए दिट्टपुव्वे ? तए णं ते अरहण्णगपामोक्खा चंदच्छायं अंगरायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! अम्हे इहेव चंपाए नयरीए अरहण्णगपामोक्खा बहवे संजत्तगा-नावावाणियगा परिवसामो । तए णं अम्हे अण्णया कयाइ गणिमं च धरिमं च मेज्ज च परिच्छेज्जं च गेण्हामो तहेव अहीण-अइरित्तं जाव' कुंभगस्स रण्णो उवणेमो । तए णं से कभए मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तं दिव्वं कंडलजयलं पिणद्धेड०. पिणद्धत्ता पडिविसज्जेइ । तं एस णं सामी! अम्हेहि कुंभगरायभवणंसि १. सं० पा०-- पामोक्खे जाव वाणियगे। ६. सं० पा०-महत्थं जाव उवणेति । २. सं० पा०-गंध जाव उस्सुक्कं । ७. पू०-ना० ११८८१। ३. सं० पा०-प्ररहन्नग संजत्तगा। ८. ना० ११११११८ । ४. भंडग ° (ग)। ६. ना० १८।६४-८२ । ५. सं० पा०-संकामेत्ता जाव महत्थं पाहुडं । १०. पिणिद्धइ (ख); पिणिधेइ (क)। Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ नायाधम्मकहाओ मल्ली विदेहरायवरकन्ना अच्छेरए दिवें । तं नो खलु अण्णा कावि तारिसिया देवकन्ना वा' 'असुरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ना वा रायकन्ना वा ° जारिसिया णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना ॥ ८७. तए णं चंदच्छाए अरहण्णगपामोक्खे सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता उस्स वियरड. वियरित्ता पडिविसज्जेड। ८८. तए णं चंदच्छाए वाणियग-जणियहासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी जाव' मल्लि विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका॥ ८६. तए णं से दूए चंदच्छाएणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुढे जाव' पहारेत्थ गमणाए । रुप्पि-राय-पदं तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नाम जणवए होत्था। तत्थ णं सावत्थी नाम नयरी होत्था । तत्थ णं रुप्पी कुणालाहिवई नाम राया होत्था। तस्स णं रुप्पिस्स धूया धारिणीए देवीए अत्तया सुबाहू नाम दारिया होत्था-सुकुमालपाणिपाया रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था ॥ ६१. तीसे णं सुबाहुए दारियाए अण्णया चाउम्मासिय-मज्जणए जाए यावि होत्था ।। ६२. तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई सुबाहूए दारियाए चाउम्मासिय-मज्जणयं उवट्रियं जाणइ, जाणित्ता कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! सुबाहूए दारियाए कल्लं चाउम्मासिय-मज्जणए भविस्सइ, तं तुब्भे णं रायमग्गमोगाढंसि चउक्कंसि जल-थलय-दसद्धवण्णं मल्ल साहरह •जाव एगं महं सिरिदामगंड" गंधद्धणि मुयंतं उल्लोयंसि ओलएह । ते वि तहेव ° अोलयंति" ॥ तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई सुवण्णगार-सेणि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! रायमग्गमोगाढंसि पुप्फमंडवंसि नाणाविहपंचवण्णेहिं तंदुलेहिं नगर पालिहह तस्स बहुमज्झदेसभाए पट्टयं रएह, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि तहेव पच्चप्पिणंति ।। १. सं० पा०-देवकन्ना वा जाव जारिसिया। देवकन्नगा (क, ख, ग, घ)। २. पामोक्खा (क, ख, घ)। ३. ना० ११८।६२ । ४. °सुक्का (घ)। ५. ना० ११८६३ । ६. पू०--ना० १११११७ । ७. मंडवंसि (क, ख, ग, घ)। ८. सं० पा०--साहरह जाव पोलयंति । ६. ना० १।८।४८ । १०. पू०-ना० ११८।३०। ११. ओलेंति (क)। Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७७ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) ६४. तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई हत्थिखंधवरगए चाउरंगिणीए सेणाए महया भड- चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते ° अंतेउर-परियाल-संपरिवुडे सुबाहुं दारियं पुरो कट्ट जेणेव रायमग्गे जेणेव पुप्फमंडवे' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पुप्फमंडवे अणुप्पविसइ, अणप्पविसित्ता सीहासणवरगए परत्थाभिमहे सण्णिसण्णे ॥ ६५. तए णं तारो अंतेउरियायो सुबाहुं दारियं पट्टयंसि दुरुहेंति',दुरुहेत्ता सेयापीयएहि कलसेहिं ण्हाणेति, पहाणेत्ता सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता पिउणो पायवंदियं उवणेति ॥ ६६. तए णं सुबाहू दारिया जेणेव रुप्पी राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ ॥ १७. तए णं से रुप्पी राया सुबाहुं दारियं अंके निवेसेइ, निवेसित्ता सुबाहुए दारियाए रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य जायविम्हए वरिसधरं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुमं णं देवाणुप्पिया ! मम दोच्चेणं बहूणि गामागर-नगर" जाव सण्णिवेसाई आहिंडसि, बहूण य राईसर जावं सत्थवाहपभिईणं ° गिहाणि अणुप्पविससि, तं अत्थियाइं ते कस्सइ रण्णो वा ईसरस्स वा कहिंचि एयारिसए मज्जणए दिट्ठपुत्वे, जारिसए णं इमीसे सुबाहूए दारियाए मज्जणए ? १८. तए णं से वरिसधरे रुप्पि रायं करयल"- परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट एवं वयासी-एवं खलु सामी! अहं अण्णया तब्भं दोच्चेणं मिहिलं गए। तत्थ णं मए कंभगस्स रण्णो धयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेहरायवरकन्नगाए मज्जणए दि? । तस्स णं मज्जणगस्स इमे सुबाहुए दारियाए मज्जणए सयसहस्सइमंपि कलं न 'अग्घइ ।। ६६. तए णं से रुप्पी राया वरिसधरस्स अंतियं एयमढे सोच्चा निसम्म मज्जणग जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ', 'सद्दावेत्ता एवं वयासी-जाव' मल्लि विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका ॥ १. सं० पा०-भड"। २. ° मंडवं (क)। ३. दुरुहंति (ग. घ)। ४. सेयावीयएहिं (क)। ५. ° भूसियं (क, ख)। ६. पायगहणं (क)। ७. सं० पा०-नगर गिहाणि । ८. ना० ११११११८ । ६. ना० १।५।६। १०. सं० पा०—करयल"। ११. अग्घइ सेसं तहेव मज्जणग-जणियहासे (क)। १२. सं० पा० -सद्दावेइ जाव जेणेव । १३. ना० १८६२ । Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाओ १७८ १००. तए णं से दूए रुप्पिणा एवं वृत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे जाव' ० जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ संख-राय-पदं १०१. तेणं कालेणं तेणं समएणं कासी नामं जणवए होत्था । तत्थ णं वाणारसी नामं न होत्या । तत्थ णं संखे नामं कासीराया होत्था ॥ १०२. तए णं तीसे मल्लीए विदेहवर रायकन्नाए अण्णया कयाई तस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधी विसंघडिए यावि होत्था ॥ १०३. तए णं से कुंभए राया सुवण्णगारसेणि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुभे देवाप्पिया । इस दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधि संघाडेह, [ संघाडेत्ता एयमाणत्तियं पच्चपिणह ? ] ॥ १०४. तए णं सा सुवण्णगारसेणी एयमट्ठ तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दिव्वं कुंडलजुयलं गेहs, गेण्हित्ता जेणेव सुवण्णगार - भिसिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छत्ता सुवणगार - भिसियासु निवेसेइ, निवेसेत्ता बहूहिं प्राएहि य • उवाएहि य उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मयाहि य पारिणामियाहि य बुद्धीहि परिणामेमाणा इच्छंति तस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधि घडित्तए, नो चेव णं संचाएइ घडित्तए । १०५. तए णं सा सुवणगारसेणी जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल' - परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ°, वद्धावेत्ता एवं वयासी - एवं खलु सामी ! अज्ज तुम्हें' अम्हे सहावेह, जाव' संधि संघाडेत्ता एयमाणत्तियं पच्चपिणह । तए णं ग्रम्हे तं दिव्वं कुंडलजुयलं गेण्हामो, गेण्हित्ता जेणेव सुवण्णगार - भिसिया तेणेव उवगच्छामो जाव' नो संचाएमो संधि" संघाडेत्तए । तए णं श्रम्हे सामी ! एयस्स दिव्वस्स कुंडल लस्सणं सरिसयं कुंडलजुयलं घडेमो ॥ १०६. तए णं से कुंभए राया तीसे सुवण्णगारसेणीए अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म श्रासुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलिय भिउडि निडाले साहट्टु एवं वयासी – केस णं तुब्भे कलाया णं भवह, जेणं तुब्भे इमस्स १. ना० ११८/६३ । २. ० कन्नयाए ( ख ) । ३. संधी (क, ख, ग, घ ) । ४. स्वर्णकारश्रेण्या राज्ञे निवेदने कोष्ठकवर्ती १०५ । तेन पाठो विद्यते । द्रष्टव्यम् - सू० अत्रासौ युज्यते । ५. सं० पा० - आएहि य जाव परिणामेमाणा । ६. सं० पा—- करयलवद्भावेत्ता । ७. तुब्भे ( ग ) । ८. ना० १।८।१०३ । ६. ना० १।८।१०४ । १०. X (ख, घ ) । Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) १७६ दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स नो संचाएह संधि संघाडित्तए ? ते सुवण्णगारे निव्विसए आणवेइ ॥ १०७. तए णं ते सुवण्णगारा कुंभगेणं रण्णा निव्विसया प्राणत्ता समाणा जेणेव साइं साइं गिहाइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सभंडमत्तोवगरणमायाए मिहिलाए रायहाणीए मझमज्झेणं निक्खमंति, निक्खमित्ता विदेहस्स जणवयस्स मझमज्झेणं निक्खमंति, निक्खमित्ता जेणेव कासी जणवए जेणेव वाणारसी नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अग्गुज्जाणंसि' सगडी-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं जाव' पाहुडं गेण्हंति, गेण्हित्ता वाणारसीए नयरीए मज्झमझेणं' जेणेव संखे कासीराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल- परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं° वद्धावेंति, वद्धावेत्ता पाहुडं उवणेति, उवणेत्ता एवं वयासी ---अम्हे णं सामी ! मिहिलामो कुंभएणं रण्णा निव्विसया आणत्ता समाणा इह हव्वमागया । तं इच्छामो णं सामी ! तुब्भं बाहुच्छायापरिग्गहिया निब्भया निरुब्बिग्गा सुहंसुहेणं परिवसिउं॥ १०८. तए णं संखे कासीराया ते सुवण्णगारे एवं वयासी-किं णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! कुंभएणं रण्णा निव्विसया प्राणत्ता ? १०६. तए णं ते सुवण्णगारा संखं कासीरायं एवं वयासी–एवं खलु सामी ! कुंभगस्स रणणो ध्याए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए कंडलजुयलस्स संधी विसंघडिए। तए णं से कुंभए राया सुवण्णगारसेणि सद्दावेइ जाव' निव्विसया आणत्ता। तं एएणं कारणेणं सामी ! अम्हे कुंभएणं रण्णा निव्विसया प्राणत्ता ।। ११०. तए णं से संखे कासीराया सुवण्णगारे एवं वयासी केरिसिया णं देवाणुप्पिया ! कुंभगस्स रण्णो धूया पभावईदेवीए अत्तया मल्ली विदेहरायवरकन्ना ? १११. तए णं ते सुवण्णगारा संखं कासीरायं एवं वयासी-नो खलु सामी ! अण्णा कावि तारिसिया देवकन्ना वा' 'असुरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ना वा रायकन्ना वा जारिसिया णं मल्ली विदेहवररायकन्ना ॥ ११२. तए णं से संखे कासीराया कुंडल-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ', 'सद्दावेत्ता एवं १. अंगुजाणंसि (घ)। करयल ए (ख, ग)। २. ना० १८८१ । ३. रायपसेणइय ६८३ सूत्रे अस्यानन्तरं ५. ना० १।८।१०३-१०६ । 'अणपविसई' इति क्रियापदं लभ्यते । ६. सं० पा०-देवकन्ना वा जाव जारिसिया । ४. सं० पा०-करयल जाव वद्धावेहि (क); ७. सं० पा० --सद्दावेइ जाव तहेव पहारेत्थ । Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० नायाधम्मकहाओ वयासी-जाव' मल्लि विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका॥ ११३. तए णं से दूए संखेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुढे जाव' जेणेव मिहिला नयरी तेणेव ° पहारेत्थ गमणाए॥ प्रदीणसत्तु-राय-पदं ११४. तेणं कालेणं तेणं समएणं कुरु नामं जणवए होत्था । तत्थ णं हत्थिणाउरे नामं नयरे होत्था। तत्थ णं अदीणसत्तू नाम राया होत्था जाव' रज्जं पसासेमाणे विहरइ॥ ११५. तत्थ णं मिहिलाए तस्स णं कुंभगस्स रण्णो पुत्ते पभावईए देवीए अत्तए मल्लीए अणुमग्गजायए मल्लदिन्ने नाम कुमारे सुकुमालपाणिपाए जाव' जुवराया यावि होत्था ॥ ११६. तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अण्णया कयाइ कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एव वयासी-गच्छह णं तुब्भे मम पमदवणंसि एगं महं चित्तसभं करेह-अणेग खंभसयसण्णिविटुं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तेवि तहेव पच्चप्पिणंति ॥ ११७. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगर-सेणि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! चित्तसभं हाव-भाव-विलास-बिब्बोयकलिएहिं रूवेहिं चित्तेह', 'चित्तेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ ११८. तए णं सा चित्तगर-सेणी एयम₹ तहत्ति पडिसूणेइ, पडिसूणेत्ता जेणेव सयाइ गिहाई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तूलियानो वण्णए य गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव चित्तसभा तेणेव अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता भूमिभागे विरचति, विरचित्ता भूमि सज्जेइ, सज्जत्ता चित्तसभं हाव-भाव-विलास-बिब्बोय कलिएहिं रूवेहिं चित्तेउं पयत्ता यावि होत्था । ११६. तए णं एगस्स चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगर-लद्धी लद्धा पत्ता अभिसमण्णा गया-जस्स णं दुपयस्स वा चउप्पयस्स वा अपयस्स वा एगदेसमवि पासइ, तस्स णं देसाणुसारेणं तयाणुरूवं निव्वत्तेइ ।। १२०. तए णं से चित्तगरे" मल्लीए जवणियंतरियाए जालंतरेण पायंगुटुं पासइ । तए १. ना० १।८।६२ । २. ना० ११८।६३ । ३. ओ० सू० १४ । ४. दिन्नए (क, ख, ग, घ)। ५. ओ० सू० १४३। ६६ पू०-ना० ११११८६ । ७. गच्छह णं तुब्भे (ख, घ) । ८. सं० पा०-चित्तेह जाव पच्चप्पिणह । ६. द्रष्टव्यम-अस्यैवाध्ययनस्य १०४ सूत्रम् । १०. सं० पा०-भाव जाव चित्तेउं । ११. चित्तगरदारए (क, ख, ग, घ)। १२. जवणियंतराए (ख); जवणंतरियाए (ग)। Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम अज्झयणं (मल्ली) णं तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव' समुप्पज्जित्था-सेयं खलु मम मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पायगुट्ठाणु सारेणं सरिसगं 'सरित्तयं सरिव्वयं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वण ° गुणोववेयं रूवं निव्वत्तित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता भूमिभाग सज्जेइ, सज्जेत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पायंगुट्ठासारेणं सरिसगं जाव रूवं निव्वत्तेइ ।। १२१. तए णं सा चित्तगर-सेणी चित्तसभं हाव-भाव-विलास-बिब्बोयकलिएहि रूवेहि चित्तेइ, चित्तेत्ता जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ ।। १२२. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगर-सेणि सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दल यइ, दलइत्ता पडिविसज्जइ॥ १२३. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे हाए अंतेउर-परियाल-संपरिवुडे अम्मधाईए सद्धि जेणेव चित्तसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चित्तसभं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता हाव-भाव-विलास-बिब्बोयकलियाई रूवाइं पासमाणे-पासमाणे जेणेव मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। १२४. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवं रूवं निव्वत्तियं पासइ, पासित्ता' इमेयारूवे अज्झथिए जाव' समप्पज्जित्था - एस णं मल्ली विदेहरायवरकन्ने त्ति कटु लज्जिए विलिए वेड्डे सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ॥ १२५. तए णं तं मल्लदिन्नं कुमारं अम्मधाई सणियं-सणियं पच्चोसक्कंतं पासित्ता एवं वयासी-किण्णं तुमं पुत्ता ! लज्जिए विलिए वेड्डे सणियं-सणियं पच्चोसक्कसि ? १२६. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे अम्मधाई एवं वयासी-जुत्तं णं अम्मो ! मम जेट्टाए भगिणीए गुरु-देवयभूयाए लज्जणिज्जाए मम चित्तसभं अणु पविसित्तए? १२७. तए णं अम्मधाई मल्लदिन्नं कुमारं एवं वयासी-नो खलु पुत्ता ! एस मल्ली १. ना० १११।४८ । ६. ना० १११।४८॥ २. सं० पा०–सरिसग जाव गुणोववेयं । । ७. बिलए (ख); विलज्जिए (घ); बीडिए ३. सं० पा०-जाव हाव भावं । अत्र जाव (क्व)। शब्दः भावशब्दानंतरं युज्यते । ८. अम्मधाई (क, ख, ग, घ)। ४. कुमारे अण्णया (क, ख, ग)। ६. चित्तघरसभं (ख, ग, घ)। ५. अतोऽग्रे 'तस्स' इति पदमध्याहर्तव्यम् । Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ नायाधम्मकहाओ विदेहरायवरकन्ना। एस णं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए चित्तगरएणं तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए । १२८. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे अम्मधाईए एयमहूँ सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते एवं वयासी-केस णं भो ! से चित्तारए अपत्थिय पत्थए, दुरंत-पंत-लक्खणे, हीणपुण्णचाउद्दसिए, सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति- परिवज्जिए, जे णं मम जेट्टाए भगिणीए गुरु-देवयभूयाए' लज्जणिज्जाए मम चित्तसभाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए त्ति कटु तं चित्तगरं वज्झं आणवेइ॥ १२६. तए णं सा चित्तगर-सेणी इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ° वद्धावेत्ता एवं वयासोएवं खलु सामी ! तरस चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगर'-लद्धी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया- जस्स णं दुपयस्स वा 'चउप्पयस्स वा अपयस्स वा एगदेसमवि पासइ, तस्स णं देसाणुसारेणं तयाणुरूवं रूवं • निव्वत्तेइ । तं मा णं सामी! तूब्भे तं चित्तगरं वज्झ प्राणवेह। तं तुब्भे णं सामी! तस्स चित्तगरस्स अण्ण तयाणरूवं दंडं निव्वतेह॥ १३०. तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे तस्स चित्तगरस्स संडासगं छिदावेइ, छिदावेत्ता निव्विसयं प्राणवेइ॥ १३१. तए णं से चित्तगरे मल्लदिन्नेणं कुमारेणं निव्विसए आणत्ते समाणे सभंडमत्तो वगरणमायाए मिहिलामो नयरीअो निक्खमइ, निक्खमित्ता 'विदेहस्स जणवयस्स मज्झमझेणं जेणेव कुरुजणवए जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंडनिक्खेवं करेइ, करेत्ता चित्तफलगं सज्जेइ, सज्जेत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पायंगुट्ठाणुसारेण रूवं निव्वत्तेइ, निव्वत्तेता कक्खंतरंसि छुब्भइ, छुब्भित्ता महत्थं जाव पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता 'हत्थिणाउरस्स नयरस्स'१ मज्झमज्झणं जेणेव अदीणसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ, १. पू०-ना० १।८।१०६ । सूत्रानुसारेणासौ पाठः स्वीकृतोस्ति । अत्र २. सं० पा०-अपत्थिय जाव परिवज्जिए। क्रियापदमन्तरा द्वितीयाः विभक्तिनँव ३. सं० पा०—देवयभूयाए जाव निव्वत्तिए। संगच्छते । ४. सं० पा०-करयलपरिग्गहियं जाव वद्धा- ६. 'निक्खमइ, निक्खमित्ता' इत्यध्याहार्यम् । वेत्ता। १०. ना० ११८८१। ५. चित्तकार (ख, ग)। ११. हत्थिणारं नयरं (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा०-दुपयस्स वा जाव निव्वत्तेति । १२. रायपसेणइय ६८३ सूत्र अस्यानन्तरं ७. निव्वत्तएह (ख)। 'अणुपविसई' इति क्रियापदं लभ्यते । ८. विदेहं जणवयं (क, ख, ग, घ); १०८।१०७ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ agi wri ( मल्ली) १८३ उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ° वद्धावेत्ता पाहुडं उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी - एवं खलु अहं सामी ! मिहिलाओ रायहाणीश्रो कुंभगस्स रण्णो पुत्तेण पभावईए देवीए प्रत्तणं मल्लदिन्ने कुमारेणं निव्विसए प्राणत्ते समाणे इहं हव्वमागए । तं इच्छामि णं सामी ! तुब्भं बाहुच्छाया-परिग्गहिए' निभए निरुव्विग्गे सुहंसुणं परिवसित्तए ॥ O १३२. तए णं से प्रदीणसत्तू राया तं चित्तगरं एवं वयासी - किण्णं तुमं देवाणुप्पिया ! मल्ल दिन्नेणं निव्विसए ग्राणत्ते ? १३३. तए णं से चित्तगरे प्रदीणसत्तुं रायं एवं वयासी - एवं खलु सामी ! मल्लदिन्ने कुमारे अण्णया कयाइ चित्तगर- सेणि सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - तुब्भे णं देवाप्पिया ! मम चित्तसभं हाव-भाव-विलास - बिब्बोय कलिएहिं रूवेहिं चित्तेह तं चैव सव्वं भाणियव्वं जाव' मम संडासगं छिदावेइ, छिंदावेत्ता निव्विसयं श्राणवेइ । एवं खलु ग्रहं सामी ! मल्लदिन्नेणं कुमारेणं निव्विसए प्राणत्ते ॥ १३४. तए णं प्रदीणसत्तू राया तं चित्तगरं एवं वयासी- से केरिसए णं देवाणुप्पिया ! तुमे मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए । १३५. तए णं से चित्तगरे कक्खंतराओ चित्तफलगं नीणेइ, नीणेत्ता प्रदीणसत्तुस्स उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी - एस णं सामी मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवस्स रूवस्स केइ आगार - भाव पडोयारे निव्वत्तिए । नो खलु सक्का ' केणइ देवेण वा दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा • मल्लीए विदेहरायवर कन्नाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तित्तए । 0 १३६. तए णं से अदीणसत्तू पडिरूव जणिय- हासे दूयं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी" - " जाव' मल्लिं विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ विय णं सा सयं रज्जका ॥ १३७. तए णं से दूए प्रदीणसत्तुणा एवं वृत्ते समाणे हट्टतुट्ठे जाव' जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ १. सं० पा० - करयल जाव वद्धावेत्ता । २. सं० पा० - परिग्गहिए जाव परिवसित्तए । ३. चित्तगरदारयं ( ख, ग, घ ) । ४. ना० १।८।११७-१३० । ५. प्राकृतव्याकरणानुसारेण 'सक्क' इति पदं युज्यते, किन्तु आदर्शषु 'सक्का' इति पदमेव लिखितमस्ति । एतद् लिपिदोषेण जातमथवा प्राकृतशैल्या प्रयुक्तम् ? ६. सं० पा० - देवेण वा जाव मल्लीए । ७. सं० पा० - तहेव जाव पहारेत्थ । ८. ना० १।८।६२ । ६. ना० १।८।६३ । Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ नायाधम्मकहाओ जियसत्तु-राय-पदं १३८. तेणं कालेणं तेणं समएणं पंचाले जणवए। कंपिल्लपुरे नयरे। जियसत्तू नाम राया पंचालाहिवई । तस्स णं जियसत्तुस्स धारिणीपामोक्खं देवोसहस्सं ओरोहे' होत्था॥ १३६. तत्थ णं मिहिलाए चोक्खा' नामं परिव्वाइया-रिउव्वेय'- यजुव्वेद-सामवेद अहव्वणवेद-इतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा जाव' बंभण्णएस य सत्थेसु सुपरिणिट्रिया यावि होत्था॥ १४०. तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मिहिलाए बहूणं राईसर जाव' सत्थवाहपभिईणं पुरो दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ॥ १४१. तए णं सा चोक्खा अण्णया कयाइं तिदंडं च कुंडियं च जाव' धाउरत्तानो य गेण्हइ, गेण्हित्ता परिव्वाइगावसहाम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पविरलपरिव्वाइया-सद्धि संपरिवुडा मिहिलं रायहाणि मज्झमज्झणं जेणेव कंभगस्स रण्णो भवणे जेणेव कन्नतेउरे जेणेव मल्ली विदेहरायवरकन्ना तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उदयपरिफोसियाए 'दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए" निसीयइ, निसीइत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरनो दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ॥ १४२. तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना चोक्खं परिव्वाइयं एवं वयासी-तुब्भण्णं" चोक्खे ! किंमूलए धम्मे पण्णत्ते ? १४३. तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लि विदेहरायवरकन्नं एवं वयासी-अम्हं णं देवाणुप्पिए ! सोयमूलए धम्मे पण्णत्ते। जं णं अम्हं किचि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्रियाए 'य सुई भवइ । एवं खलु अम्हे जलाभिसेय-पूयप्पाणो° अविग्घेणं सग्गं गच्छामो । १४४. तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना चोक्खं परिव्वाइयं एवं वयासी–चोक्खे'२ ! से जहानामए केइ पुरिसे रुहिरकयं वत्थं रुहिरेणं चेव धोवेज्जा, अत्थि णं १. ओरोहो (क); उवरोहे (ख)। २. चोक्खी (ख)। ३. सं० पा०-रिउव्वेय जाव परिणिट्ठिया। ४. ओ० सू० ६७ । ५. ना० ११५।६। ६. ओ० सू० ११७ । ७. °फासियाए (क, ग)। ८. ° पच्चत्थुयाते भिसियाते (ख, घ)। ६. सं० पा०-दाणधम्मं च जाव विहरइ । १०. तुब्भेणं (ख, घ) अशुद्धं प्रतिभाति । ११. सं० पा०-मट्टियाए जाव प्रविग्घेणं । १।५।६० सूत्रे एतत् वर्णनं किञ्चित् परिवर्तनेन लभ्यते। १२. चोक्खा (ख, घ)। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टम अज्झयणे (मल्ली) १८५ चोक्खे ! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं धोव्वमाणस्स काइ सोही ? नो इणढे समढे। एवामेव चोक्खे ! तुब्भण्णं पाणाइवाएणं जाव' मिच्छादसणसल्लेणं नत्थि काइ सोही, जहा तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं चेव धोव्वमाणस्स ॥ १४५. तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए एवं वुत्ता समाणी संकिया कंखिया वितिगिछिया भेयसमावण्णा जाया यावि' होत्था, मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए नो संचाएइ किंचिवि पामोक्खमाइक्खित्तए, तुसिणीया संचिट्ठइ॥ १४६. तए णं तं चोक्खं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए बहुरो दासचेडीओ हीलेंति निदंति खिसंति गरिहंति, अप्पेगइयानो हेरुयालेति अप्पेगइयानो मुहमक्कडियाओ करेंति अप्पेगइयानो वग्घाडियानो करेंति अप्पेगइयानो तज्जेमाणीयो तालेमाणीप्रो निच्छुहंति ॥ १४७. तए णं सा चोक्खा मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए दासचेडियाहिं हीलिज्जमाणी निदिज्जमाणी खिसिज्जमाणी ° गरहिज्जमाणी आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणी मल्लीए विदेहरायवरकन्नयाए परोसमावज्जइ, भिसियं गेण्हइ, गेण्हित्ता कन्नतेउरानो पडिणिक्खमई, पडिणिक्खमित्ता मिहिलामो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता, परिव्वाइया-संपरिवडा जेणेव पंचालजणवए जेणेव कंपिल्लपूरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहूणं राईसर 'जाव' सत्थवाहपभिईणं पुरो दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ ।। १४८. तए णं से जियसत्तू अण्णया कयाइ अंतो अंतेउर-परियाल-सद्धि संपरिवुडे १२ •सीहासणवरगए यावि° विहरइ ।। १४६. तए णं सा चोक्खा, परिव्वाइया-संपरिवुडा जेणेव जियसत्तुस्स रण्णो भवणे जेणेव जियसत्तू राया तेणेव अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जियसत्तुं जएणं विजएणं वद्धावेइ॥ १५०. तए णं से जियसत्तू चोक्खं परिव्वाइयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता सीहासणामो १. एवं चोक्खी (क, ग); एवं चोक्खा (ख)। बग्घाडाओ (घ)। २. ओ० सू० १६३। ८. सं० पा०–दासचेडियाहिं जाव गरहिज्ज३. चोक्खी (क, ख, ग, घ)। माणी। ४. वि (ग)। ६. ना० ११।१०६ । ५. माति ° (ग, घ)। १०. सं० पा. - राईसर जाव विहरइ। ६. मुहमक्कडियं (क)। ११. ना० ११५॥६॥ ७. बग्घाडिया (क); बग्घाडिओ (ख, ग); १२. सं० पा०-संपरिवुडे एवं जाव विहरइ । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ हा प्रभु, अब्भुत्ता चोक्खं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता प्रासणं उवनिमंतेइ || १५१. तए णं सा चोक्खा उदगपरिफोसियाए 'दब्भोवरि पच्चत्थुयाए भिसियाए निविसइ), निविसित्ता जियसत्तुं रायं रज्जे य' रट्ठे य कोसे य कोट्ठागारे य बलेय वाहणे य पुरे य° अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ ॥ o १५२. तए णं सा चोक्खा जियसत्तुस्स रण्णो दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च प्राघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ ॥ १५३. तए णं से जियसत्तू अप्पणी प्ररोहंसि जायविम्हए चोक्खं एवं वयासी - तुमं णं देवाणुप्पिया ! बहूणि गामागर जाव' सण्णिवेसंसि ग्राहिडसि, बहूण य राईसर-सत्थवाहपभिईणं गिहाई अणुप्पविससि तं ग्रत्थियाई ते कस्सइ रण्णो वा ईसरस वा कहिंचि एरिसए प्रोरोहे दिट्ठपुव्वे, जारिसए णं इमे मम ओरोहे ? o १५४. तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया 'जियसत्तुणा एवं वृत्ता समाणी ईसि विहसिय करेइ, करेत्ता एवं वयासी - सरिसए णं तुमं देवाणुप्पिया ! तस्स अगडददु रस्स । hi देवापि ! से गडदरे ? . जियसत्तू ! से जहानामए ग्रगडददुरे सिया । सेणं तत्थ जाए तत्थेव वुड्ढे ग्रण्णं अगडं वा तलागं वा दहं वा सरं वा सागरं वा अपासमाणे मण्णइ - अयं चेव अगडे वा" "तलागे वा दहे वा सरे वा सागरे वा । १. सं० पा० - उदगपरिफोसियाए जाव भिसि - याए । २. णिवस ( क, ख, ग, घ ) । ३. सं० पा० - रज्जे य जाव अंतेउरे । ४. सं० पा० - दाणधम्मं च जाव विहरइ । ५. ना० १।१।११८ । ६. पू० - ना० २।५।६ ७. सं० पा० - रण्णो वा जाव एरिसए । ८. ओरोघे ( ख ) । ६. जियसत्तु एवं व ईसि अवहसियं ( क, ख, १२. केसणं (घ ) । तए णं तं कूवं अणे सामुद्दए ददुरे हव्वमागए । तणं से कूवदुरे तं सामुयं" ददुरं एवं वयासो-से के" तुमं देवाणुप्पिया ! कत्तो वा इह हवमागए ? तणं से सामुद्दए दद्दुरे तं कूवददुरं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! अहं सामुद्दए ददुरे । ग); जियसत्तुं एवं वयासी इसि अवहसिय (घ) ; आदर्शेषु ' एवं व' इति संक्षिप्तरूपं लिखितं लभ्यते स्तबकादर्शे तत्र ' एवं वयासी' इति जातम् । स्तबककारेण 'इम क' इत्यर्थोपि कृतः । अस्य मौलिकं रूपं अस्माभिः प्रस्तुत सूत्रस्य षोडशाध्ययने लब्धम् । १०. सं० पा०—अगडे वा जाव सागरे । ११. समुद्दयं (घ) । Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टम अज्झयणं (मल्ली) १८७ तए णं से कूवददुरे तं सामुद्दयं ददुरं एवं वयासी-केमहालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? तए णं से सामुद्दए ददुरे तं कूवददुरं एवं वयासी-महालए णं देवाणुप्पिया ! समुद्दे । तए णं से कूबददुरे पाएणं लीहं कड्ढेइ, कड्ढेत्ता एवं वयासी-एमहालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? | नो इणद्वै समढे। महालए णं से समुद्दे । तए णं से कूवददुरे पुरथिमिल्लाअो तीरानो उप्फिडित्ता णं 'पच्चत्थिमिल्लं तीरं गच्छइ, गच्छित्ता एवं वयासी-एमहालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? नो इणद्वे समढे। एवामेव तुमंपि जियसत्तू अण्णेसि बहूणं राईसर जाव' सत्थवाहप्पभिईणं भज्जं वा भगिणि वा धूयं वा सुण्हं वा अपासमाणे जाणसि जारिसए मम चेव णं ओरोहे, तारिसए नो अण्णेसि । तं एवं खलु जियसत्तू ! मिहिलाए नयरीए कुंभगस्स धूया पभावईए अत्तया मल्ली नामं विदेहरायवरकन्ना रूवेण य जोव्वर्णण य' लावण्णण य उक्किद्रा उक्किटसरीरा.. नो खल अण्णा काइ [तारिसिया ?] देवकन्ना वा असरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ना वा रायकन्ना वा जारिसिया मल्ली विदेहरायवरकन्ना [तीसे ? ] छिन्नस्स वि पायंगुटुगस्स इमे तवोरोहे सयसहस्सइमंपि कलं न अग्घइ त्ति कटु जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। १५५. तए णं से जियसत्तू परिव्वाइया-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ', 'सद्दावेत्ता एवं वयासी-जाव' मल्लि विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका ॥ १५६. तए णं से दूए जियसत्तुणा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे जाव' जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ दूयाणं संदेस-निवेदण-पदं १५७. तए णं तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए। १. ४(क, ख, ग, घ)। २. तहेव (क, ख, ग, घ)। ३. ना० ११श६। ४. जाणासि (घ)। ५. सं० पा०-जोव्वणेण य जाव नो खलु । ६. सं० पा०-देवकन्ना ...। ७. सं० पा०-सदावेइ जाव पहारेत्थ । ८. ना० ११८६२ । ६. ना० श८।६३ । Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८५ नायाधम्मकहाओ १५८. तए णं छप्पि दूयगा जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलाए अग्गुज्जाणंसि पत्तेयं-पत्तेयं खंधावारनिवेसं करेंति, करेत्ता मिहिलं रायहाणि अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पत्तेयं करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु साणं-साणं राईणं वयणाइं निवेदेति ॥ कुंभएण दूयाणं असक्कार-पदं १५६. तए णं से कुंभए तेसिं दूयाणं 'अंतियं एयमटुं' सोच्चा आसुरुत्ते 'रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे ° तिवलियं भिउडि निडाले साहट्ट एवं वयासीन देमि णं अहं तुब्भं मल्लि विदेहरायवरकन्नं ति कटु ते छप्पि दूए असक्कारिय असम्माणिय अवद्दारेणं' निच्छुभावेइ॥ तए णं ते जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया कुंभएणं रण्णा 'असक्कारिय असम्माणिय' अवद्दारेणं निच्छुभाविया समाणा जेणेव सगा-सगा जणवया जेणेव 'सयाई-सयाई नगराई जेणेव सया-सया रायाणो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट° एवं वयासी-एवं खलु सामी! अम्हे जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया जमगसमगं चेव जेणेव मिहिला तेणेव उवागया जाव" अवदारणं निच्छुभावेइ । “तं न देइ णं सामी! कुंभए मल्लि विदेहरायवरकन्न” साणं-साणं राईणं एयमटुं निवेदेति ॥ जियसत्तुपामोक्खाणं कुभएणं जुज्झ-पदं १६१. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो तेसिं दूयाणं अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ता रुट्टा कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा अण्णमण्णस्स दूयसंपेसणं करेंति, करेत्ता एवं वयासी-एवं खल देवाणप्पिया ! अम्हं छण्डं राईणं दूया जमगसमगं चेव मिहिला तेणेव उवागया जाव" अवद्दारेणं निच्छूढा। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! कुंभगस्स जत्तं गेण्हित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं १. सं० पा०-करयल"। २. निवेसंति (क, ग, घ)। ३. X(ख, ग)। ४. सं० पा०—आसुरत्ते जाव तिवलियं ।। ५. अवदारेणं (क, ख, घ)। ६. असक्कारिय-असम्माणिया (ख, ग)। ७. अवदारेणं (क)। ८. सयाति-सयाति नगराति (ख)। ६. सं० पा०-करयल ° । १०. ना० १।८।१५८,१५६ । ११. ना० ११८।१५८,१५६ । १२. जुत्तं (ख, ग)। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) १८६ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता हाया सण्णद्धा' हत्थिखंधवरगया सकोरेंटमल्लदामेणं' 'छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणा° महया हय-गय-रहपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा सव्विड्डीए जाव' दुंदुभि-नाइयरवेणं 'सएहितो-सएहितो नगरेहितो निग्गच्छंति', निग्गच्छित्ता एगयनो मिलायंति, जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।। १६२. तए णं कुंभए राया इमीसे कहाए लट्ठ समाणे बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव हयगय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणि° सेणं सन्नाहेहि', सन्नाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि सेवि जाव पच्चप्पिणति ।। १६३. तए णं कुंभए राया पहाए सण्णद्ध हत्थिखंधवरगए' 'सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं ° सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे महया हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव' दुंदुभिनाइयरवेणं मिहिलं मझमझेणं निज्जाइ", निज्जावेत्ता विदेहजणवयं मज्झमझेणं जेणेव देसग्गं१२ तेणेव खंधावारनिवेसं करेइ, करेत्ता जियसत्तुपामोक्खा छप्पि य रायाणो पडिवालेमाणे जुज्झसज्जे पडिचिट्ठइ ।। १६४. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा" छप्पि रायाणो जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता कभएणं रण्णा सद्धि संपलग्गा" यावि होत्था ॥ १६५. तए णं ते जियसत्तपामोक्खा छप्पि रायाणो कं भयं रायं हय-महिय-पवरवीर घाइय-विवडियचिंध-धय'५-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि पडिसेहेति ॥ १. पू०-ना० ११२।३२ । चामराहिं। २. सं० पा०—सकोरेंटमल्लदाम जाव सेयवर- १०. ना० १११।३३ । चामराहिं महया। ११. णिगच्छई (घ)। ३. ना० १।१।३३ । १२. देसग्गंते (क, ख, घ); देसग्रते (क्व); ४. सएहितो जाव निग्गच्छति (क); सएहि २ देसमग्गे (क्व)। नगरेहितो जाव निग्गच्छंति (ख, ग, घ)। १३. जियसत्त ° (क, ख, ग, घ)। ५. सं० पा०-हय जाव सेणं । १४. योद्धमिति शेषः (वृ)। ६. सन्नाह (क, ख, ग, घ)। आदर्शषु १५. निवडियधयच्छत्तचिंध (क)। बहुवचनान्त: प्रयोगो दृश्यते, किन्तु एकवचन- १६. किंछपाणोवगयं (क); किच्छपाणोवगयं कर्तृ के पाठे नासौ उपयुक्तोस्ति । ओवाइय- (ख, ग, घ)। प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ नायं ५६ सूत्रेपि एकवचनान्तं क्रियापदं लभ्यते । पाठो व्याख्यातोस्ति । १।१६।२५२ सूत्रस्य ७. पच्चप्पिणंति (क, ख, ग, घ)। वृत्तावस्य व्याख्या दृश्यते। तत्रत्यः पाठो ८. पू०-ना० ११२।३२। व्याख्या च सम्यक प्रतिभाति, तेन तदनु६. सं० पा०-हत्थिखंधवरगए जाव सेयवर, सारेणात्र पाठः स्वीकृतः । Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० नायाधम्मकहानो १६६. तए णं से कुंभए जियसत्तुपामोक्खेहि छहिं राईहिं हय-महिय-पवरवीर घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसिं° पडिसेहिए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए' 'अपुरिसक्कारपरक्कमे° अधारणिज्जमिति कटु सिग्धं तुरियं' 'चवलं चंडं जइणं वेइयं जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मिहिलं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता मिहिलाए दुवाराइं पिहेइ, पिहेत्ता रोहसज्जे चिट्ठइ ।। १६७. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलं रायहाणि निस्संचारं निरुच्चारं सव्वप्रो समंता अोरुभित्ता णं चिट्ठति ॥ १६८. तए णं से कभए राया मिहिलं रायहाणि प्रोरुद्धं जाणित्ता अभितरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणवरगए तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छह राईणं अंतराणि य छिद्दाणि य 'विवराणि य'' मम्माणि य अलभमाणे बहूहिं पाएहि य उवाएहि य, उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मयाहि य पारिणामियाहि य-बुद्धोहिं परिणामेमाणे-परिणामेमाणे किंचि आयं वा उवायं वा अलभमाणे ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए ° झियायइ ।। मल्लीए चिताहे उ-पुच्छा-पदं १६६. इमं च णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना हाया' कयबलिकम्मा कयकोउय मंगलपायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया • बहूहिं खुज्जाहिं संपरिवुडा जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कुंभगस्स पायगहणं करेइ । १७०. तए णं कुंभए मल्लि विदेहरायवरकन्नं नो पाढाइ नो परियाणाइ" तुसिणीए संचिट्ठइ॥ १७१. तए णं मल्लो विदेहरायवरकन्ना कं भगं एवं वयासी-तुब्भे णं तारो ! अण्णया ममं एज्जमाणि" पासित्ता आढाह परियाणाह अंके निवेसेह । इयाणि ताप्रो ! तुब्भे ममं नो पाढाह नो परियाणाह नो अंके ° निवेसेह । किण्णं तूब्भं अज्ज अोहय मणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया झियायह ? १. सं० पा०-हयमहिय जाव पडिसेहिए। ७. सं० पा०-ओहयमण संकप्पे जाव झियायइ। २. सं० पा०-अवीरिए जाव अधारणिज्ज° । ८. सं० पा०-हाया जाव बहहिं। ३. सं० पा०- तुरियं जाव वेइयं । ६. पू०--ओ० सू० ७० । ४. पवेसेइ (ख, ग, घ)। १०. द्रष्टव्यम्-१।१।३६ सूत्रम् । ५. विरहाणि य (ग); विरहाणि य विवराणि ११. एज्जमाणं (ख, ग, घ)। सं० पा० एज्जमाणि जाव निवेसेह। ६. सम्माणि (क, ख, ग) अशुद्धं प्रतिभाति । १२. सं० पा०-ओहय जाव झियायह । Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ अणं (मल्ली) कुंभगस्स चिताहे कहण-पदं 1 १७२. तए णं कुंभए मल्लि विदेहरायवरकन्नं एवं वयासी एवं खलु पुत्ता ! तव कज्जे जियसत्तुपामोक्खेहिं छहिं राईहिं दूया संपेसिया । ते णं मए प्रसक्कारिय ● सम्माणिय प्रवद्दारेणं निच्छूढा । तए णं जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो तेसिं दूयाणं प्रतिए एयम सोच्चा परिकुविया समाणा मिहिल रायहाणि निस्संचारं निरुच्चारं सव्वग्रो समंता प्रोभित्ता गं° चिट्ठति । तणं श्रहं पुत्ता तेसिंजियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं अंतराणि [य छिद्दाणि विवराणि य मम्माणि य ? ] अलभमाणे जाव' प्रदृज्भाणोवगए भियामि ॥ मल्लीए उवाय निरूवण-पदं १७३. तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना कुंभगं रायं एवं वयासी- माणं तुभे ताो ! श्रहमणसंकप्पा' करतलपल्हत्थमुहा श्रट्टज्भाणोवगया ° झियायह। तुब्भे णं ताओ ! तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं पत्तेयं-पत्तेयं रहस्सिए' दूयसंपेसे करेह, एगमेगं एवं वयह- तव देमि मल्लि विदेहरायवरकन्नं ति कट्टु संकालसमयंसि पविरल - मणूसंसि निसंत - पडिनिसंतंसि पत्तेयं-पत्तेयं महिल रायहाणि श्रणुष्पवेसेह, ग्रणुष्पवेसेत्ता गम्भघरएस प्रणुष्पवेसेह, अणुप्पवेत्ता मिहिलाए रायहाणीए दुवाराई पिहेह, पिहेत्ता रोहासज्जा" चिट्ठह || १७४. तए णं कुंभए "तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं पत्तेयं - पत्तेयं रहस्सिए दूयसंपेसे करेइ जाव' • रोहासज्जे चिट्ठइ || o मल्लीए जियसत्तुपामोक्खाणं संबोह-पदं १७५. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव" उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जालंतरेहि गम मत्थछिडुं परमुप्पल-पिहाणं पडिमं पासंति - एस णं मल्ली विदेहरायवरकन्नत्ति कट्टु मल्लीए रायवरकन्नाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य मुच्छिया गिद्धा गढिया भोववण्णा प्रणिमिसाए दिट्ठीए पेहमाणा - पेहमाणा चिट्ठति ॥ १. सं० पा० - प्रसक्कारिया जाव निच्छूढा । २. सं० पा० - निस्संचारं जाव चिट्ठति । ३. ना० १।८।१६८ । ४. सं० पा० - ओहयमणसंकप्पा जाव कियायह । ५. रहस्सियं ( क, ख, ग, घ ) । ६. संभा० (क, ग) | १९१ ७. ० सज्जे (क, ख, ग, घ ); अत्र कर्तृपदं क्रियापदं च बहुवचनान्तमस्ति अतः अनेन कर्तृपदविशेषणेन बहुवचनान्तेन भाव्यम् । ८. सं० पा० - कुंभए एवं तं चेव जाव पवेसेइ रोहासज्जे । ६. ना० ११८।१७३ । १०. ना० १।१।२४ । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ tara महाओ १७६. तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना पहाया' कयबलिकम्मा कय कोउय- मंगल - पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया बहूहिं खुज्जाहिं जाव' परिक्खित्ता जेणेव जालघरए जेणेव कणगमई मत्थयछिड्डा पउप्पल -पिहाणा पडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तीसे कणगमईए मत्थयछिड्डाए पउमुप्पल - पीहाणाए पडिमा मत्थया तं परमुप्पल-पिहाणं श्रवणेइ । तम्रो णं गंधे निद्धावेइ", से जहाणामए - हिमडे इ वा जाव' एत्तो प्रसुभतराए चेव || १७७० तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो तेणं प्रसुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणासहि-सएहिं उत्तरिज्जेहि आसाई' पिहेंति, पिहेत्ता परम्मुहा चिट्ठति ॥ १७८. तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना ते जियसत्तुपामोक्खे एवं वयासी - किण्णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! सएहिं -सएहिं उत्तरिज्जेहिं" प्रसाई पिहेत्ता परम्मुहा चिट्ठह ? १७६. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा मल्लि विदेहरायवरकन्नं एवं वयंति एवं खलु देवापिए ! ग्रहे इमेणं प्रसुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सहि-सएहिं उत्तरिज्जेहिं" प्रसाई पित्ता चिट्ठामो ॥ १८०. तए णं मल्ली विदेहायवर कन्ना ते जियसत्तुपामोक्खे एवं वयासी - जइ ताव देवापिया ! इमीसे कणग" मईए मत्थयछिड्डाए पउमुप्पल - पिहाणाए • पडिमा कल्ला कल्लि ताम्रो मणुण्णा असण- पाण- खाइम साइमात्र एगमेगे पिंडे पक्खिमाणे- पक्खिप्पमाणे इमेयारूवे सुभे पोग्गल " - परिणामे, इमस्स" पुण ओरालियस रस्स खेलासवस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स सुक्कासवस्स सोयासवस दुरुय " - ऊसास - नीसासस्स 'दुरुय मुत्त- पूइय-पुरीस पुण्णस्स" १. सं० पा० ण्हाया जाव पायच्छित्ता । २. ओ० सू० ७० । ३. पमं (क, ख, ग, घ ) । ४. ततेणं (ख, घ) । ५. णिद्धाइ ( क ); द्धिवे इ ( ख ) । ६. ना० १।८।४२ । चेव ७. प्रस्तुताध्ययनस्य ४२ सूत्रे 'एतो अतिराए अकंततराए चेव' इत्यादि पदानि दृश्यन्ते । तत्र 'असुभतराए वेव' इति पदं नास्ति । अत्र संभवतः 'अणिट्टतराए' इत्यादिपदानां सारसंग्रहरूपेण 'असुभतराए' इति पदं प्रयुक्तमस्ति । ८. आसाति ( ख, ग, घ ) । ६. पिंहिंति ( क ग ) । १०. सं० पा० - उत्तरिज्जेहि जाव परम्मुहा । ११. सं० पा० - उत्तरिज्जेहिं जाव चिट्ठामो । १२. सं० पा० - कणग जाव पडिमाए । १३. पोग्गले ( क, ख, घ) । १४. श्रतः पूर्वं वाचनान्तरे 'किमंग पुण' इति लभ्यते । (वृ) । दुख्य (घ ) । मुखसुखोच्चारणार्थं 'दुरूव' शब्दस्य 'दुरुय' मितिरूपं कृतं संभाव्यते अथवा दुरूपार्थवाची देशी शब्दः स्यात् ? वृत्तौ 'दुरुय' शब्दस्य 'दुरुप' इत्यर्थोस्ति कृतः । १६. दुरुय मुत्त- पुरिस - पूय बहुपडिपुण्ण ( १।१।१० ) । १५ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (मल्ली) १६३ 'सडण-पडण-छेयण-विद्धंसण-धम्मस्स" केरिसए य परिणामे भविस्सइ ? तं माणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! माणुस्सएसु कामभोगेसु सज्जह रज्जह गिज्झह मुझह अज्झोववज्जह । एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे इमाअो' तच्चे भवग्गहणे अवरविदेहवासे सलिलावतिसि' विजए वीयसोगाए रायहाणीए महब्बलपामोक्खा सत्तवि य बालवयंसया रायाणो होत्था-सहजाया जाव' पव्वइया । तए णं अहं देवाणुप्पिया ! इमेणं कारणेणं इत्थीनामगोयं कम्मं निव्वत्तेमिजइ णं तुब्भे चउत्थं उवसंपज्जित्ता णं विहरह, तए णं अहं छटुं उवसंपज्जित्ता णं विहरामि सेसं तहेव सव्वं । तए णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! कालमासे कालं किच्चा जयंते विमाणे उववण्णा । तत्थ णं तुन्भं देसूणाई बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई । तए णं तुब्भे तारो देवलोगाग्रो अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दोवे दीवे जाव साइं-साइं रज्जाइं उवसंपज्जित्ता णं विहरह। तए णं अहं तानो देवलोगायो आउक्खएणं जाव दारियत्ताए पच्चायाया। गाहा किंथ तयं पम्हटुं", जंथ तया भो ! जयंतपवरम्मि । वुत्था समय-णिबद्धा", देवा तं संभरह जाइं ॥१॥ जियसत्तुपामोक्खाणं जाइसरण-पदं १८१. तए णं तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्मा सुभेणं परिणामेणं पसत्थेणं अज्झवसाणेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं तयावर णिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं ईहापूहमग्गण-गवेसणं करेमाणाणं सण्णिपुव्वे ° जाइसरणे" समुप्पण्णे, एयमटुं सम्म अभिसमागच्छंति ॥ मल्लीए पव्वज्जा-पदं १८२. तए णं मल्ली अरहा" जियसत्तुपामोक्खे छप्पि रायाणो समुप्पण्णजाईसरणे जाणित्ता गब्भघराणं दाराई विहाडेइ ।। १. सडण जाव धम्मस्स (ग)। २. इमे (ग)। ३. सलिलावतिम्मि (ख)। ४. सत्तपि (क, ख, घ)। ५. ना० ११८।१०-१६ । ६. चोत्थं (ख, ग, घ)। ७. ना० १।८।१८-२६ । ८. ना० १।८।२७ । ६. ना० श८।२८-३४ । १०. पम्हट्ठा (ख, ग)। ११. णिबद्ध (वृपा)। १२. सं० पा०--तयावर ईहापूह जाव सण्णि जाइसरणे। १३. जाई ° (घ)। १४. अभिसमण्णागच्छंति (ग)। १५. अरिहा (क)। Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ नायाधम्मकहाओ १८३. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति ॥ १८४. तए णं महब्बलपामोक्खा सत्तवि य बालवयंसा एगयनो अभिसमण्णागया वि होत्था ॥ १८५. तए णं मल्ली अरहा ते जियसत्तुपामोक्खे छप्पि रायाणो एवं वयासी-एवं ___ खलु अहं देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गा जाव' पव्वयामि । तं तुब्भे णं किं करेह ? किं ववसह ? 'किं वा भे हियइच्छिए सामत्थे ? १८६. तए णं जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो मल्लि अरहं एवं वयासी-जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गा जाव पव्वयह, अम्हं णं देवाणुप्पिया ! के अण्णे पालंबणे वा आहारे वा पडिबंधे वा ? जह चेव णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे अम्हं इप्रो तच्चे भवग्गहणे बहूसु कज्जेसु य मेढी पमाणं जाव धम्मधुरा होत्था, तह चेव णं देवाणुप्पिया ! इण्हि पि जाव धम्मधुरा भविरसह । अम्हे वि णं देवाणुप्पिया! संसारभउव्विग्गा भीया जम्मणमरणाणं देवाण प्पिया-सद्धि मुंडा भवित्ता" •णं अगाराग्रो अणगारियं ° पव्वयामो॥ १८७. तए णं मल्ली अरहा ते जियसत्तुपामोक्खे छप्पि रायाणो एवं वयासी-जइ णं तुब्भे संसारभउव्विगा जाव मए सद्धि पव्वयह, तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सएहि-सएहिं रज्जेहिं जेट्टपुत्ते" ठावेह, ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीप्रो सीयानो" दुरुहह५, मम अंतियं पाउब्भवह॥ १८८. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो मल्लिस्स अरहो एयमद्वं पडिसूणेति ॥ १८६. तए णं मल्ली अरहा ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो गहाय जेणेव कंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कुंभगस्स पाएसु पाडेइ । १६०. तए णं कुंभए ते जियसत्तुपामोक्खे विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ १. पिय (ख)। 8. भउविगा जाव (क, ख, ग, घ)। अशुद्धं २. ना० ११५८६ । प्रतिभाति । ३. के भे हियसामत्थे (क, ख, ग); ११५८६ १०. देवाणुप्पियाणं (क्व ° )। सूत्रात् किंचित् पाठः स्वीकृतः । ११. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वयामो। ४. ना० ११५८६ । १२. ना० ११५८६ । ५. पू०-ना० ११५६० । १३. ° पुत्ते रज्जे (ख, ग, घ) । ६. ना० ११५१६० । १४. सीविया (क)। ७. तहा (ख, ग, घ)। १५. दुरूढा समाणा (क); अस्याध्ययनस्य १४ ८. ना० ११५।६० । सूत्रपि 'दुरूढा समाणा' इति पाठोस्ति । Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ अणं (मल्ली) १६५ वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ', सक्कारेत्ता सम्मणेत्ता पsि - विसज्जेइ || १९१. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणी कुंभएणं रण्णा विसज्जिया समाणा जेणेव साई - साई रज्जाई जेणेव [ साई साई ? ] नगराई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता 'सगाई - सगाई" रज्जाई उवसंपज्जित्ता णं विहरति ॥ १९२. तए णं मल्ली रहा संवच्छरावसाणे निक्खमिस्सामि त्ति मणं पहारेइ ॥ १६३. तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्क्स्स असणं चलइ || १६४. तए णं से सक्के देविदे देवराया आसणं चलियं पासइ, पासित्ता हिं परंजइ, परंजित्ता मल्लि ग्ररहं ग्रोहिणा ग्राभोएइ । इमेयारूवे प्रज्झथिए चितिए पत्थए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मिहिलाएं नयरीए कुंभगस्स रण्णो [ धूया पभावईए देवीए प्रत्तया ? ] मल्ली रहा निक्खमिस्सामित्ति मणं पहारेइ । तं जीयमेयं तीय-पच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं अरहंताणं भगवंताणं निक्खममाणाणं इमेयारूवं प्रत्थसंपयाणं दलइत्तए, [ तं जहा - संगहणी-गाहा तिण्णेव य कोडिसया, अट्ठासीइं च हुंति कोडीओो । सि च सय सहस्सा'), इंदा दलयंति रहाणं ॥ १ ॥ ] एवं संपेइ, संपेत्ता वेसमणं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - एवं खलु देवापिया ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे' 'मिहिलाए रायहाणीए कुंभगस्स रणधूया पभावईए देवीए प्रत्तया मल्ली रहा निक्खमिस्सामित्ति मणं पहारेइ जाव इंदा दलयंति रहाणं । तं गच्छह णं देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवं दीव भारहं वासं मिहिलं रायहाणि कुंभगस्स रण्णो भवणंसि इमेयारूवं श्रत्थसंपयाणं साहराहि, साहरित्ता खिप्पामेव मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि || १६५. तए णं से वेसमणे देवे सक्केणं देविदेणं देवरण्णा एवं वृत्ते समाणे तुट्ठे करयल " • परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं देवो ! तहत्ति प्राणाए farer ari पडणेइ, पडिसुणेत्ता जंभए देवे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छहणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवं दीवं भारहं वासं मिहिल १. सम्माई जाव (क, ख, ग ) । २. सयाई २ (ख) । ३. संपहारेइ (क); संपाहारेति ( ख ) ; पाहारेइ (ग) । ४. X(ख)। ५. सयसहस्सं ( ग, घ ) । ६. सं० पा० - वासे जाव असीइं च सयसहस्सा दलइत्तए । अत्र संक्षेपीकरणे किञ्चित् विपर्ययो जातः इति संभाव्यते । ७. सं० पा०—करयल जाव पडिसुणेइ । Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ नायाधम्मकहाओ रायहाणि कुंभगस्स रण्णो भवणंसि तिण्णि कोडिसया अट्ठासीइं च कोडीयो असीई सयसहस्साइं—इमेयारूवं अत्थ-संपयाणं साहरह, साहरित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ॥ १६६. तए णं ते जंभगा देवा वेसमणेणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा जाव' पडिसुणेत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाई दंडं निसिरंति, जाव' उत्तरवेउवियाई रूवाई विउव्वंति, विउव्वित्ता ताए उक्किदाए जाव' देवगईए वीईवयमाणा-वीईवयमाणा जेणेव जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे जेणेव मिहिला रायहाणी जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता कं भगस्स रण्णो भवणंसि तिणि कोडिसया जाव साहरंति, साहरित्ता जेणेव वेसमणे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट तमाणत्तियं° पच्चप्पिणंति ।। १६७. तए णं से वेसमणे देवे जेणेव सक्के देविदे देवराया तेणेव उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणइ ॥ १६८. तए णं मल्ली अरहा कल्लाकल्लि जाव मागहो पायरासो त्ति बहूणं सणाहाण य अणाहाण य पंथियाण य पहियाण य करोडियाण य कप्पडियाण य 'एगमेगं हिरण्णकोडिं अट्ठ य अणूणाई सयसहस्साई -इमेयारूवं अत्थ-संपयाणं" दलयइ॥ 88. तए णं कुंभए राया मिहिलाए रायहाणीए तत्थ-तत्थ तहि-तहिं देसे-देसे बहनो महाणससालाप्रो करेइ । तत्थ णं बहवे मणुया दिण्णभइ-भत्त-वेयणा विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेंति । जे जहा प्रागच्छंति, तं जहा - पंथिया वा पहिया वा करोडिया वा कप्पडिया वा पासंडत्था वा गिहत्था वा, तस्स य तहा पासत्थस्स वीसत्थस्स सुहासणवरगयस्स तं विउलं असण-पाण-खाइम साइमं परिभाएमाणा परिवेसेमाणा' विहरंति ।। २००. तए णं मिहिलाए नयरीए सिंघाडग'-'तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्ख इ–एवं खलु देवाणु प्पिया ! कुंभगस्स रणो भवणंसि सव्वकामगुणियं किमिच्छियं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइम १. ना० शा१६५। २, ३. राय० सू० १०। ४. ना. १।८।१६५। ५. सं० पा०-करयल जाव पच्चप्पिणंति। ६. ना० १।८।१६६। ७. काउडियाणं (वृपा)। ८. एगमेगं हत्थामासं ति वाचनान्तरे दृश्यते (वृ)। ६. परिवेसमाणा (क, ख)। १०. सं० पा०-सिंघाडग जाव बहजणो। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ egi rani (मल्ली) १६७ बहू समणाण माहणाण य सणाहाण य प्रणाहाण य पंथियाण य पहियाण य करोडियाण य कप्पडियाण य परिभाइज्जइ परिवेसिज्जइ' । संग्रहणी-गाहा वरवरिया घोसिज्जइ, किमिच्छयं दिज्जए बहुविहीयं । सुर-असुर देव-दाणव-नरिद- महियाण निक्खमणे ॥ १ ॥ २०१. तए णं मल्ली अरहा संवच्छरणं तिणि कोडिसया अट्ठासीइं च कोडीओ सीई सय सहस्साई - इमेयारूवं ग्रत्थ- संपयाणं दलइत्ता निक्खमामि त्ति मणं पहारेइ ॥ २०२. तेणं कालेणं तेणं समएणं लोगंतिया देवा बंभलोए कप्पे रिट्ठे विमाणपत्थ डे' सहि-सएहिं विमाणेहिं सएहि-सएहि पासायवडिसएहिं पत्तेयं पत्तेयं चउहिं सामाणियसाहस्सीहि तिहिं परिसाहि सत्तहिं प्रणिएहि सतहिं प्रणियाहिवईहिं सोलसहि प्राय रक्खदेवसाहस्सोहि अण्णेहि य बहूहिं लोगतिएहिं देवेहिं सद्धि परिवा माय-- गीय-वाइय- तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंगपडुप्पवाइय वेणं [ विउलाई भोगभोगाई ? ] भुंजमाणा विहरंति, तं जहासंग्रहणी - गाहा सारस्सय माइच्चा, वण्ही वरुणा य गद्दतोया य । तुसिया अव्वाबाहा, श्रग्गिच्चा चैव रिट्ठा य ॥१॥ २०३. तए णं तेसि लोगंतियाणं देवाणं पत्तेयं पत्तेयं ग्रासणाई चलति तहेव जाव' तं जीयमेयं लोगंतियाणं देवाणं अरहंताणं भगवंताणं निक्खममाणाणं संबोहणं करिए ति । तं गच्छामो णं ग्रम्हे वि मल्लिस्स अरहो संबोहणं करेमोत्त कट्टु एवं संपति, संपेहेत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता विमुग्धाणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं निसि - रंति, एवं जहा जंभगा जाव" जेणेव मिहिला रायहाणी जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे जेणेव मल्ली रहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्ख १. सं० पा० समणाण य जाव परिवेसिज्जइ । २. सूरासूरियं परिवेसिज्जइ - इति वाचनान्तरम् (वृ) । ३. च होंति (क, ख, ग, घ ) । ४. च सयसहस्सा ( क, ख, ग, घ ) । ५. पधारेति (ख, घ) । ६. विमाणे पत्थडे ( ख, ग, घ ) । ७. सं० पा०वाइय जाव रवेणं । ८. क्वचिद् दशविधा एते व्याख्यायन्ते, अस्माभिस्तु स्थानाङ्गानुसारेणैवमभिहिताः (वृ) । ६. ना० १।८।१६४ । १०. ना० १८१६६ । Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ मायाधम्मकहाओ पडिवण्णा सखि खिणियाइं 'दसद्धवण्णाइं° वत्थाई पवर परिहिया करयल'•परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° ताहि इटाहि •कंताहिं पियाहि मणुण्णाहि मणामाहि वग्गृहिं एवं वयासी-बुज्झाहि भगवं लोगणाहा! पवत्तेहि धम्मतित्थं जीवाणं हियसुहनिस्सेयसकरं भविस्सइ त्ति कटु दोच्चंपि तच्चपि एवं वयंति, मल्लि अरहं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसि पाउब्भूया तामेव दिसि पडिगया । २०४. तए णं मल्ली अरहा तेहिं लोगंतिएहिं देवेहिं संबोहिए समाणे जेणेव अम्मा पियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी–इच्छामि णं अम्मयानो ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे मुंडे भवित्ता •णं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।। २०५. तए णं कुंभए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव' अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं कलसाणं अण्णं च महत्थं महग्घं महरिहं विउल तित्थयराभि सेयं उवट्ठवेह । तेवि जाव उवट्ठवेंति ॥ २०६. तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिदे जाव अच्चुयपज्जवसाणा आगया ।। २०७. तए णं सक्के देविदे देवराया आभियोगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव" अण्णं च " •महत्थं महग्धं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवद्ववेह । तेवि जाव उवट्ठवेंति । तेवि कलसा 'तेसु चेव कलसेसु' अणुपविट्ठा । २०८. तए णं से सक्के देविदे देवराया कुंभए य राया मल्लि अरहं सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहं निवेसेंति", अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव" तित्थयरा भिसेयं अभिसिंचंति ॥ २०६. तए णं मल्लिस्स भगवनो अभिसेए वट्टमाणे अप्पेगइया देवा मिहिलं च १. सं० पा०-सखिखिणियाइं जाव वत्थाई। ७. राय० सू० २८०। अत्र वस्तुतः 'जाव परिहिए' इति संक्षेपो ८. सं० पा०-महत्थं जाव तित्थयराभिसेयं । युज्यते । पूर्वसूत्रष्वपि इत्थमेव लब्धत्वात् ॥ ६. जंबु वक्खारो ५। २. विभक्तिरहितं पदम् । १०. ना० १।८।२०५। ३. सं० पा०-करयल ° । ११. सं० पा०-अण्णं च तं विउलं । ४. सं० पा०-इटाहि जाव एवं । १२. ते चेव कलसे (ख, ग)। ५. सं० पा०-करयल ° । १३. निवेसेइ (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वइत्तए। १४. ना० १।८।२०५। Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभय (मल्ल) २ सब्भिरबाहिरियं जाव' सव्वम्रो समंता 'प्रधावंति परिधावति ॥ २१०. तए णं कुंभए राया दोच्चंपि उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयावेइ, जाव' सव्वाकारविभूसियं करेइ, करेत्ता कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मणोरमं सीयं उवट्ठवेह । तेवि उवट्ठवेति ॥ २११. तए णं सक्के देविदे देवराया ग्राभिोगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाप्पिया ! ग्रणेगखंभसय-सण्णिविट्ठ जाव' मणोरमं सीयं age | विजा वटुवेति । सावि सीया तं चैव सीयं प्रणुप्पविट्ठा ॥ २१२. तए णं मल्ली रहा सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ अब्भुट्टेत्ता जेणेव मणोरमा सीया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मणोरमं सीयं श्रणुपयाहिणीकरेमाणे ' मणोरमं सी दुइ, दुरुहिता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सणसणे || २१३. तए णं कुंभए अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुब्भे णं देवाप्पिया ! हाया जाव सव्वालंकारविभूसिया मल्लिस्स सीयं परिवहह । तेवि जाव परिवहति ॥ २१४. तए णं सक्के देविंदे देवराया मणोरमाए सीयाए दक्खिणिल्लं' उवरिल्लं बाह गेहइ, ईसाणे उत्तरिल्लं उवरिल्लं बाहं गेहइ, चमरे दाहिणिल्लं हेट्ठिल्लं, बी उत्तरिल्लं हेट्ठिल्लं, अवसेसा देवा जहारिहं मणोरमं सीयं परिवहति । संग्रहणी-गाहा पुव्वि उक्खित्ता, माणुसेहिं साहद्वरोम कूवेहिं । पच्छा वहंति सीयं प्रसुरिंदसुरिदनागिंदा ॥१॥ चलचवलकुंडलधरा, सच्छंदविउव्वियाभरणधारी । देविददाणविंदा, वहंति सीयं जिणिदस्स ||२|| २१५. तए णं मल्लिस्स रहो मणोरमं सीयं दुरुढस्स' समाणस्स इमे मंगला रहाणुपुबी संपत्थिया - एवं निग्गमो जहा जमालिस्स" ।। २१६. तए णं मल्लिस्स निक्खममाणस्स अप्पेगइया देवा मिहिलं रायहाणि अरह १. राय० सू० २८१; जंबु ० वक्खारो ५ । २. संपरिधावति (क, ख, ग, घ ) । ३. ना० १।१।१२८ । ४. ना० १।१।१२६ । ५. X ( क ); ° करेमाणा ( ग ) । ६. ना० १।८।१७६ । ७. दक्खिणिल्लेणं ( ग ) । REC ८. रोमपुलहि ( श्रायारचूला १५।२८ गा० १२) । ६. दुरुहस्स (ख, घ ) । १०. भगवत्यां ( |३३ ) यथा जमाले निष्क्रमणं तथेह वाच्यं, इहैव यथा मेघकुमारस्य, नवरं चमरधारितरुण्यादिषु शक्रेशानादीन्द्र प्रवेशतः इह विशेष : (वृ ) । ओ० सू० ६४-६८ । Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाम्रो अभितरवाहिरं आसिय-संमज्जिय-संमट्ठ-सुइ-रत्यंतरावणवीहियं करेंति 'जाव परिधावंति॥ २१७. तए णं मल्ली अरहा जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयारो पच्चोरुहइ, 'आभरणालंकारं प्रोमुयइ । २१८. तए णं पभावई हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरणालंकारं पडिच्छइ । २१६. तए णं मल्ली अरहा सयमेव पंचमुट्रियं लोय करइ॥ २२०. तए णं सक्के देविदे देवराया मल्लिस्स केसे पडिच्छइ, पडिच्छित्ता खीरोदग समुद्दे साहरइ॥ २२१. तए णं मल्ली अरहा नमोत्थु णं सिद्धाणं ति कटु सामाइयचरित्तं पडिवज्जइ । जं समयं च णं मल्ली अरहा सामाइयचरित्तं पडिवज्जइ, तं समयं च णं देवाण माणुसाण य निग्घोसे तुडिय-णिणाए' गीय-वाइय-निग्घोसे य सक्कवयणसंदेसेणं निलुक्के यावि होत्था । जं समयं च णं मल्ली अरहा सामाइयचारित्तं पडिवण्णे तं समयं च मल्लिस्स अरहो माणुसधम्मायो उत्तरिए मणपज्जवणाणे समुप्पण्णे ॥ २२२. मल्ली णं अरहा जे से हेमंताणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे पोससुद्धे तस्स णं पोससुद्धस्स एक्कारसीपक्खेणं पुव्वण्हकालसमयंसि अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं अस्सिणीहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं तिहि इत्थीसएहि-अभितरियाए परि साए, तिहि पुरिससएहि-बाहिरियाए परिसाए सद्धि मुंडे भवित्ता पव्वइए। २२३. मल्लि अरहं इमे अट्ठ नायकुमारा अणुपव्वइंसु, तं जहा १. आसिय अभितरवासविहि, गाहा जाव वृत्तिकृता निर्दिष्टो नगरवर्णको मेघकूमार परिधावति (क, ख, ग, घ); 'अप्पेगइया निष्क मणप्रकरणं नास्ति, किन्तु जन्मोत्सवदेवा मंचाइमंचकलियं करतीत्यादिमेघकुमार- प्रकरणे लभ्यते । द्रव्यं ११११७६ सूत्रम् । निष्क्रमणोक्तनगरवर्णकस्य' तथा 'अप्पेगइया वृत्तिकृता पाठान्तररूपेण निर्दिष्टा गाथा देवा हिरण्णवासं वासिसु एवं सुवन्नवास आदर्शषु प्रकटरूपेण न लभ्यन्ते वृत्तावपि वासिंसू एवं रयण-वइर-पुप्फ-मल्ल-गंध-चूण्ण- लिखिता न सन्ति । ना० १।८।२०६ । आभरणवासं वासिंसु' इत्यादि वर्षासमूहस्य २. प्राभरणालंकारं पभावई पडिच्छइ (क, ख, तथा 'अप्पेगइया देवा हिरण्णविहिं भाइंसु एवं ग, घ) असौ पाउ: संक्षिप्तलिपिपद्धत्या सुवण्णविहिं भाइंसु' इत्यादिविधिसमूहस्य कालक्रमेण अपूर्णो जातः। असौ च तीर्थकरजन्माभिषेकोक्त-संग्रहार्था याः क्वचिद् १।१।१४८ सूत्रमनुसृत्य पूरितः । गाथाः सन्ति ता अनुसृत्य सूत्रमध्येयं यावदप्पे- ३. णाए (ग)। गइया देवा आधावंति परिधावंतीत्येतदवसान- ४. वाइयपणिय (ग, घ)। मित्यर्थः । इदं च राजप्रश्न कृतादौ ५. सामाइयं (क)। (सू० २८१) द्रष्टव्यमिति (वृ)। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम अज्झयणं (मल्ली) गाहा नंदे य नंदिमित्ते, सुमित्त बलमित्त भाणु मित्ते य। अमरवइ अमरसेणे, महसेणे चेव अट्ठमए । २२४. तए णं ते भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया देवा मल्लिस्स अरहो निक्खमण-महिमं करेंति, करेत्ता जेणेव नंदीसरे' 'दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अट्ठाहियं महिमं करेंति, करेत्ता जामेव दिसि पाउब्भूया तामेव दिसि पडिगया॥ मल्लिस्स केवलणाण-पदं २२५. तए णं मल्ली अरहा जं चेव दिवसं पव्वइए, तस्सेव दिवसस्स पच्चावरण्हकाल समयंसि असोगवरपायवस्स अहे पूढविसिलापट्टयंसि सूहासणवरगयस्स सुहेणं परिणामेणं पसत्थाहिं लेसाहिं तयावरण-कम्मरय-विकरणकरं अपुवकरणं अणुपविट्ठस्स अणंते' 'अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे • केवल वरनाणदंसणे समुप्पण्णे ॥ २२६. तेणं कालेणं तेणं समएणं सव्वदेवाणं आसणाइं चलेंति, समोसढा धम्म सुणेति, सूणेत्ता जेणेव नंदीसरे दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अढाहियं महिम करेंति, करेत्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि ° पडिगया । कभए वि निग्गच्छइ। जियसत्तुपामोक्खाणं पव्वज्जा-पदं २२७. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेटुपुत्ते रज्जे ठावेत्ता पुरिससहस्स वाहिणीयानो [सीयाओ?] दुरूढा [समाणा ? ] सव्विड्डीए जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति जाव' पज्जुवासंति ॥ २२८. तए णं मल्ली अरहा तीसे महइमहालियाए परिसाए, कुंभगस्स रण्णो, तेसि च जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं धम्म परिकहेइ । परिसा जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। कुंभए समणोवासए जाव पडिगए, पभावई य॥ २२६. तए णं जियसत्तपामोक्खा छप्पि रायाणो धम्म सोच्चा निसम्म एवं वयासी आलित्तए णं भंते ! लोए, पलित्तए णं भंते ! लोए, प्रालित्त-पलित्तए णं भंते ! १. सं० पा०-नंदीसरे अट्ठाहियं करेंति जाव ४. सं० पा०-अट्ठाहियं महानंदीसरं जामेव पडिगया। दिसं पाउ जाव पडिगए। २. पुव्वावरण्ह° (क, ग, घ)। ५. ओ० सू०६६। ३. सं० पा०-अणंते जाव समुपण्णे । Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ नायाधम्मक हाओ लोए जराए मरणेण य जाव' पव्वइया जाव' चोद्दसपुव्विणो । प्रणते वरनाणदंसणे केवले [समुप्पाडेत्ता तो पच्छा ? ] सिद्धा ॥ मल्लिस सिस्ससंपदा-पदं २३०. तए णं मल्ली रहा सहस्संववणाम्रो उज्जाणाम्रो निक्खमइ, निक्खमित्ता हिया जणवयविहारं विहरइ || २३१. मल्लिस्स णं प्ररहयो भिसगपामोक्खा अट्ठावीसं गणा ग्रहावोसं गणहरा होत्था ॥ २३२. मल्लिस्स णं ग्ररहश्रो चत्तालीसं समणसाहस्सीप्रो उक्कोसिया समणसंपया हत्था, बंधुमइपामोक्खाओ पणपन्नं अज्जियासाहस्सीग्रो उक्कोसिया प्रज्जियासंपया होत्था, सावयाणं एगा रायसाहस्सी चुलसीइं सहस्सा, सावियाणं तिणि सयसाहसी पर्णाट्ठि च सहस्सा, छस्सया चोहसपुव्वीणं, वीसं सया ग्रोहिनाणी, बत्तीसं सया केवलनाणीणं, पणतीसं सया वेउब्वियाणं, ग्रहसया मणपज्जवनाणीणं, चोट्ससया वाईणं, वीसं सया प्रणुत्तरोववाइयाणं ॥ २३३. मल्लिस्स णं अरहो दुविहा अंतकरभूमी' होत्या, तं जहा - जुगत करभूमी परियायत करभूमी य । जाव वीसइमा पुरिसजुगाग्रो जुगंतकरभूमी दुवासपरियाए' अंतमकासी || २३४. मल्ली णं अरहा पणुवीसं धणूई उड्ड उच्चत्तेणं, वण्णेणं पियंगुसामे समचउरेंससंठाणे वज्जरिसनाराय-संघयणे मज्झदेसे सुहंसुहेणं विहरित्ता जेणेव सम्मेए पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सम्मेयसेलसिहरे पानोवगमणंणुवन्ते ॥ मल्लिस्स निव्वाण-पदं २३५. मल्ली णं रहा एगं वासस्यं प्रगारवासमज्भे पणपण्णं वाससहस्साई वासस्यऊणा केवलिपरियागं पाउणित्ता पणपण्णं वाससहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे चेत्तसुद्धे, तस्स णं चेत्तसुद्धस्स चउत्थीए पक्खेणं' भरणीए नक्खत्तेणं [ जोगमुवागएणं ? ] अद्धरत्तकालसमयंसि पंचहि अज्जिया एहिं प्रभितरियाए परिसाए, पंचहि अणगारसहिं - बाहिरियाए १. ना० १।१।१४६, १५० । २. भग० २।१ । ३. वातीणं ( ग ) । ४. अंतगड° (घ) । ५. 'दुमासपरियाए ' इति क्वचित् क्वचिच्च 'च उमासपरियाए ' इति दृश्यते ( वृ); दुवालस० (क) अशुद्धं प्रतिभाति । ६. सम्मेते (ग, घ ) । ७. पाओवगमणुववणे (ख); पाओवगमवणे (ग) । ८. X ( ख, ग ) । Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टम अज्झयणं (मल्ली) २०३ परिसाए, मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं वग्धारियपाणी 'पाए साहटु" खीणे वेयणिज्जे पाउए नामगोए सिद्धे । एवं परिनिव्वाणमहिमा भाणियव्वा जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए, नंदीसरे अट्ठाहियानो पडिगयाो ॥ निक्खेव-पदं २३६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्त। -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्ध ता निगमनगाथा उग्गतवसंजमवप्रो, पगिट्ठफलसाहगस्स वि जयिस्स । धम्मविसए वि सुहमा वि, होइ माया अणत्थाय ।।१।। जह मल्लिस्स महाबल-भवम्मि तित्थयरनामबंधे वि। तव-विसय-थेवमाया जाया जुवइत्त-हेउत्ति ॥२॥ १. x (ख, ग, घ)। २. व६०२। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं मायंदी उक्खेव-पदं जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स नायज्झयणस्स _अयम? पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी' । पुण्णभद्दे चेइए ।। ३. तत्थ णं मायंदी नाम सत्थवाहे परिवसइ-अड्ढे । तस्स णं भद्दा नामं भारिया। तीसे णं भद्दाए अत्तया दुवे सत्थवाहदारया होत्था, तं जहा - जिणपालिए य जिणरक्खिए य॥ मागंदिय-दारगाणं समुद्द-जत्ता-पदं ४. तए णं तेसिं मागंदिय-दारगाणं अण्णया कयाइ एगयो सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अम्हे लवणसमुदं पोयवहणणं एक्कारसवाराम्रो प्रोगाढा । सव्वत्थ वि य णं लट्ठा कयकज्जा अणहसमग्गा पुणरवि नियघरं हव्वमागया। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! दुवालसंपि लवणसमुदं पोयवहणेणं प्रोगाहित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता १. ना० १।१७। ५. पू०-ना० १।२।७ । २. नायज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं (क, ६. पू०-ना० १।३७ । ख, ग, घ)। ७. °वारा (ख, ग, घ)। ३. नयरी पुव्वत्तवन्नणं (ख); नयरी पुव्वुत्त ८. अणहसमुग्गा (ख); अण? ° (ग)। ___ (ग)। ६. दुवालसमंपि (क)। ४. एत्थ (ख)। २०४ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५. नवमं प्रज्झयणं (मायंदी) २०५ एवं वयासी एवं खलु अम्हे अम्मयाओ ! लवणसमुई पोयवहणेणं एक्कारसवाराओ' योगाढा। सव्वत्थ वि य णं लट्ठा कयकज्जा अगहसमग्गा पुणरवि ° नियघरं हव्वमागया। तं इच्छामो णं अम्मयानो ! तुब्भेहि अभणुण्णाया समाणा दुवालसंपि' लषणसमुदं पोयवहणेणं प्रोगाहित्तए । __तए णं ते मागंदिय-दारए अम्मापियरो एवं वयासी-इमे मे जाया ! अज्जय' •पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहु हिरणे य सुवण्णे य कसे य दूसे य मणिमोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव पासत्तमाओ कुलवंसायो पगाम दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउ । तं अणहोह ताव जाया ! विपुले माणुस्सए इड्डीसक्कारसमुदए। किं भे सपच्चावाएणं निरालंबणेणं लवणसमुद्दोत्तारेणं ? एवं खलु पुत्ता ! दुवालसमी जत्ता सोवसग्गा यावि भवइ । तं मा णं तुब्भे दुवे पुत्ता ! दुवालसंपि लवण समुदं पोयवहणेणं° प्रोगाहेह । मा हु तुम्भं सरीरस्स वावत्ती भविस्सइ ।। तए णं ते मागंदिय-दारगा अम्मापियरो दोच्चपि तच्चपि एवं वयासी- एवं खलु अम्हे अम्मयानो ! एक्कारसवारामो लवण' समुदं पोयवहणणं प्रोगाढा । सव्वत्थ वि य णं लट्ठा कयकज्जा अणहसमग्गा पुणरवि नियघरं हव्वमागया। तं सेयं खलु अम्हं अम्मयाप्रो ! दुवालसंपि लवणसमुदं पोयवहणणं ओगाहित्तए॥ ७. तए णं ते मागंदिय-दारए अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा ताहे अकामा चेव एयमद्वं अणुमण्णित्था ॥ ८. तए णं ते मागंदिय दारगा अम्मापिऊहिं अब्भणुण्णाया समाणा गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिज्छेज्जं च भंडगं गेण्हंति, जहा अरहन्नगस्स जाव' लवणसमुहूं बहूइं जोयणसयाइं प्रोगाढा ।। नावा-भंग-पदं ह. तए णं तेसिं मागंदिय-दारगाणं लवणसमुदं अणेगाई जोयणसयाइं प्रोगाढाणं समाणाणं अणेगाइं उप्पाइयसयाई पाउन्भूयाई, तं जहा-अकाले गज्जिए' 'प्रकाले विज्जुए अकाले ° थणियसद्दे कालियवाए जाव समुट्ठिए । १. सं० पा. वाराओ तं चेव जाव नियघरं। २. दुवालस (क, ख, ग, घ)। ३. सं० पा०-अज्जग जाव परिभाएत्तए। ४. दुवालसमंपि (क, ख)। ५. सं० पा०-लवण जाव ओगाहेह। ६. सं० पा०-लवण जाव ओगाहित्तए। ७. ना० १।८।६६-७० । ८. अगाले (क); अयाले (ख)। ६. सं० पा०-गज्जिय जाव थणियसहे। १०. तत्थ (क्व)। Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ नायाध महाओ १०. तए णं सा नावा तेणं कालियवाएणं प्राहुणिज्जमाणी- आहुणिज्जमाणी संचालिज्माणी - संचालिज्जमाणी संखोभिज्जमाणी- संखोभिज्जमाणी सलिल - तिक्ख-वेगेहिं अइट्टिज्जमाणी - श्रइट्टिज्जमाणी कोट्टिमंसि करतलाहते विव तिंदूस' तत्थेव तत्थेव श्रोवयमाणी य उप्पयमाणी य, उप्पयमाणी विव धरणीला सिद्धविज्जा विज्जाहरकन्नगा, श्रोवयमाणी विव गगणतलाओ भट्ठविज्जा विज्जाहरकन्नगा, विपलायमाणी विव महागरुल - वेग - वित्तासिय भुयगवरकन्नगा, धावमाणी विव महाजण - रसियस - वित्तत्था ठाणभट्ठा ग्रास किसोरी, निगुंजमाणी विव गुरुजण दिट्ठावराहा सुजणकुलकन्नगा, घुम्ममाणी विव वीचि - पहार-सय- तालिया, गलिय-लंबणा विव गगणतलाम्रो, रोयमाणी विव सलिलगंथि - विप्पइर-माण थोरंसुवाएहि नववहू उवरयभत्तुया, विलवमाणी विव परचक्करायाभिरोहिया परममहब्भयाभिदुया महापुरवरी, झायमाणी विव कवड- च्छोमण-पत्रोगजुत्ता जोगपरिव्वाइया, नीससमाणी विव महाकंतारविणिग्गय - परिस्संता परिणयवया अम्मया, सोयमाणी विव तव चरण- खीणपरिभोगा चवणकाले देववरवहू, संचुण्णियकट्ठ-कूवरा, भग्गमेढि - मोडिय सहस्समाला, सूलाइय' - वकपरिमासा, फलहंत र-तडतडेंत फुट्टंत-संधिवियलंतलोहकीलिया, सव्वंग-वियंभिया, परिसडियरज्जुविस रंतसव्वगत्ता, आमगमल्लगभूया, कयपुण्ण-जणमणोरहो विव चितिज्जमाणगुरुई" हाहाक्कय" - कण्णधारनावियवाणियगजण-कम्मकर:- विलविया नाणाविहरयण- पणिय - संपूण्णा बहूहिं पुरिससएहिं रोयमाणेहिं कंदमाणेहिं सोयमाणेहिं तिप्पमाणेहिं विलवमाणेहि एवं महं अंतोजलगयं गिरिसिहरमासाइत्ता संभग्गकूवतोरणा मोडियज्झयदंडा वलयसयखंडिया करकरस्स तत्थेव विद्दवं उवगया ॥ ११. तए णं तीए नावाए भिज्जमाणीए ते बहवे पुरिसा विपुल - पणिय-भंडमायाए अंतोजलंमि निमज्जाविया " यावि होत्था || १२. तए णं ते मागंदिय-दारगा छेया दक्खा पत्तट्ठा कुसला मेहावी" निउणसिप्पो १. अइयट्टि ० ( क, ख ) ; अइवट्टि° ( क्व ) । २. कोट्टिम (क, ख, घ) । ३. दूसए ( क ) । ४. वीयी ( क ) ; वीती ( ख, ग ) । ५. ताडिता हि स्त्री वेदनया घूर्णयन्तीत्येव - १२. ८. सूलातित (वृपा) । ६. पारिमासा ( क, ख ) | १०. ० खीलिया (क, ख, ग ) ११. ० गुरुती ( ख, ग, घ ) । हाहाकय ( क ) । ७. गंठि (घ) । ० मुपमानं द्रष्टव्यम् (वृ) । ६. पतितेति गम्यते ( वृ); क्वचित्तु 'गलितलं - १४. निवज्जाविया ( ख ) । बना' इत्येतावदेव दृश्यते । १५. मेहाविणो ( क ) । १३. कम्मगार (क); कम्मकार ( ग, घ ) 1 Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ नवमं अज्झयणं (मायंदी) वगया बहूसु पोयवहण-संपराएसु कयकरणा लद्धविजया अमूढा अमूढहत्था एगं महं फलगखंडं आसादेति ॥ रयणदीव-पदं १३. जंसि च णं पएसंसि से पोयवहणे विवण्णे तंसि च णं पएसंसि एगे महं रयणदीवे नामं दीवे होत्था-अणेगाइं जोयणाई आयामविक्खंभेणं अणेगाई जोयणाइं परिक्खेवेणं नाणादुमसंड-मंडिउद्देसे सस्सिरीए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ' णं महं एगे पासायव.सए 'यावि होत्था'...अब्भुग्गयमूसिय-पहसिए जाव सस्सिरीयरूवे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं पासायव.सए रयणदीव-देवया नाम देवया परिवसइ-पावा चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया । तस्स णं पासायवडेंसयस्स चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडा-किण्हा किण्होभासा ।। १४. तए णं ते माकंदिय-दारगा तेणं फलयखंडेणं 'ओवुज्झमाणा-अोवुज्झमाणा'११ रयणदीवंतेणं संवढा यावि होत्था ।। १५. तए णं ते मागंदिय-दारगा थाहं लभंति, मुहुत्तंतरं प्राससंति, फलगखंडं विसज्जेंति, रयणदीवं उत्तरंति, फलाणं मग्गण-गवेसणं करेंति, फलाइं आहारेंति, नालिएराणं मग्गण-गवेसणं करेंति, नालिएराई फोडेंति, नालिएरतेल्लेणं५ अण्णमण्णस्स गायाइं अब्भंगेति, पोक्खरणीग्रो प्रोगाहेंति, जलमज्जणं करेंति,. पोक्खरणीयो० पच्चुत्तरंति, पुढविसिलावट्टयंसि निसीयंति, निसीइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया चंपं नयरिं अम्मापिउापुच्छणं च लवणसमुद्दोत्तारणं च कालियवायसम्मुच्छणं च पोयवहणविवत्ति च फलयखंडस्सा १. बहुसु (ग, घ)। २. जेसि (क, ग, घ)। ३. तेसि (ख, ग, घ)। ४. तस्स णं (क, ख, घ)। ५. तत्थ (क, ख)। ६. होत्था (क); X (ख)। ७. ना० १११८६। ८. रयणद्दीव (ख)। ६. साहसिया (क्व °)। १०. पू०-ना० ११७।१३ । ११. प्रोबु° २ (ख)। १२. माकंदिय (क्व)। १३. लहंति (ख, ग)। १४. नालियराय (ख)। १५. तिल्लेणं (क); नालियर (ख), नालियरस्स (ग, घ)। १६. सं० पा० –करेंति जाव पच्चुत्तरंति । Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ नया धम्म हा सायणं च रयणदीवोत्तारं च प्रणुचितेमाणा प्रणुचिते माणा ग्रहय मणसंकप्पा' ● करतल पल्हत्थमुहा अट्टज्भाणोवगया • झियायंति ॥ रणदीवदेवया-पदं १६. तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय दारए ओहिणा ग्राभोएइ, ग्रसि-खेडग - वग्ग हत्था सत्तट्टतलप्पमाणं उड्ढं वेहासं उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए जाव देवराईए वीईवयमाणी - वीईवयमाणी जेणेव मागंदिय-दारया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रासुरत्ता" ते मागंदिय - दारए खर- फरुस -निट्ठरवयहि एवं वयासी - हंभो मागंदिय - दारया' ! जइ णं तुब्भे मए सद्धि विउलाई भोग भोगाई भुंजमाणा विहरह, तो भे ग्रत्थि जीवियं । ग्रहणणं तुब्भे o एसद्धिविलाई भोगभोगाई भुजमाणा नो विहरह, तो भे इमेणं नीलुप्पलगवलगुलिय' - सिकुसुमप्पगासेणं • खुरधारेणं ग्रसिणा रत्तगंडमंसुयाई माहि उवसोहियाई तालफलाणि" व सीसाई " एगंते एडेमि || १७. तए णं ते मागंदिय दारगा रयणदीवदेवयाए अंतिए एयम सोच्चा निसम्म भीया करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - देवा या वसंति" तस्स आणा उववाय वयण- निद्द से चिट्ठिस्सामो ॥ १८. तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए गेण्हर, जेणेव पासायवडेंस ए तेणेव उवागच्छइ, प्रसुभपोग्गलावहारं करेइ, सुभपोग्गलपक्खेवं करेइ, तो पच्छा तेहि" सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुजमाणी विहरइ, कल्लाकुल्लिं च श्रमयफलाई उवणेइ || रणदीव देवा मागंदिय-पुत्ताणं निद्देस - पर्द १६. तए णं सा रयणदीवदेवया सक्कवयण-संदेसेणं सुट्ठिएणं लवणाहिवइणा लवणसमुद्दे तिसत्तखुत्तो प्रणुपरियट्टेयव्वे त्ति जं किंचि तत्थ तणं वा पत्तं वा कटुं वा १. रयणुद्दीवृत्तारं ( क, ख ) । २. सं० पा० - मोहनणसंकप्पा जाव किया यंति । ३. फलग ( ख, ग, घ ); वृत्तौ 'खेडग' शब्दस्यार्थः फलकोस्ति । उत्तरवर्त्यादर्शेषु 'फलक' पदस्यैव मूलपाठे स्वीकृतिर्जाता | ४. राय० सू० १० । ५. आसुरुत्ता (क, ख ) । ६. ० दारया अप्पत्थियत्थिया ( क ) । ७. ता ( ग ) । ८. ता ( ग ) । ६. सं० पा०-- गवलगुलि जाव खुरधारेणं । १०. तालियफलाणि ( क ) । ११. छित्त्वेति वाक्यशेष: (वृ) । १२. सं० पा० - करयल जाव एवं । १३. वतिस्सइ ( ग ) । १४. एहिं ( ग ) । Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (मायंदी) २०६ कयवरं' वा असुइ पूइयं दुरभिगंधमचोक्खं, तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय तिसत्तखुत्तो एगते एडेयव्वं ति कटु निउत्ता ॥ तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! सक्कवयण-संदेसेणं सुटिएणं लवणाहिवइणा तं चेव जाव' निउत्ता। तं जाव' अहं देवाणुप्पिया ! लवणसमुद्दे तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ता जं किंचि तत्थ तणं वा पत्तं वा कटुं वा कयवरं वा असुइ पूइयं दूरभिगंधमचोक्खं, तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय तिसत्तखुत्तो एगते ° एडेमि ताव तुब्भे इहेव पासायवडेंसए सुहंसुहेणं अभिरममाणा चिट्ठह । जइ णं तुब्भे एयंसि अंतरंसि उव्विग्गा वा 'उस्सुया वा उप्पुया' वा भवेज्जाह तो णं तुब्भे पुरत्थिमिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह। तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा, तं जहा–पाउसे य वासारत्ते य। गाहातत्थ उ°—कंदल - सिलिंध - दंतो, निउर - वरपुप्फपीवरकरो। कुडयज्जुण-नीव-सुरभिदाणो, पाउसउऊ गयवरो साहीणो ।।१।। तत्थ य-सुरगोवमणि - विचित्तो, ददुरकुलरसिय-उज्झररवो। बरहिणवंद-परिणद्धसिहरो, वासारत्तउऊ पव्वओ साहीणो ॥२॥ तत्थ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बहूसु वावीसु य जाव' सरसरपंतियासु य बहूसु प्रालीघरएसु य मालीघरएसु य जाव कुसुमघरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणाअभिरममाणा विहरिज्जाह । जइ णं तुब्भे तत्थ वि उव्विग्गा वा उस्सुया वा उप्पुया वा भवेज्जाह तो णं तुब्भे उत्तरिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा, तं जहा-सरदो य हेमंतो य । गाहातत्थ उ-सण - सत्तिवण्ण - कउहो, नीलुप्पल - पउम - नलिण-सिंगो। ___ सारस - चक्काय - रवियघोसो, सरयउऊ गोवई साहीणो ॥३॥ तत्थ य–'सियकंद-धवलजोण्हो", कुसुमिय-लोद्धवणसंड-मंडलतलो। तुसार-दगधार-पीवरकरो, हेमंतउऊ ससी सया साहीणो ॥४॥ १. केयवरं (क)। (वृ); उप्पुया वा उस्सुया (वृपा)। २. पूयं (ख)। ७. य (क)। ३. ना० १।६।१६ । ८. °विंद (ग)। ४. जाव ताव (क)। ६. राय० सू० १७४ । ५. सं० पा० --लवणसमुद्दे जाव एडे मि। १०. राय० सू० १८२ । ६. ° उप्पया (क); उप्पित्था वा उस्सुया ११. °जुण्हो (ख); सितकुंदविमलजोण्हो (वृपा)। Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० नायाम्म हाओ तत्थ णं तुभे देवाणुप्पिया ! बहूसु वावीसु य' जाव सरसरपंतियासु य बहूसु आलीघरसु य मालीघरएसु य जाव कुसुमघरएसु य सुहंसुहेणं श्रभिरममाणाअभिरममाणा विहरिज्जाह । जइ णं तुब्भे तत्थ वि उव्विग्गा वा उस्सुया वा उप्पुया वा भवेज्जाह तो णं तुब्भे प्रवरिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ णं दो उऊ सया साहीणा तं जहा - वसंते य गम् य । o गाहा— तत्थ उ- सहकार चारुहारो, ऊसियतिलग - बकुलायवत्तो, तत्थ य - पाडल - सिरीस - सलिलो, किंसुय - कण्णियारासोगमउडो । वसंतउऊ नरवई साहीणो ||५|| मल्लिया वासंतिय धवलवेलो । सीयसुरभि - निल' - मगरचरित्रो, गिम्हउऊ सागरो साहीणी || ६ || तत्थ णं बहुसु' वावीसु य जाव सरसरपंतियासु य बहुसु बालीघरएसु य मालीघर सु य जाव कुसुमघरएसु य सुहंसुहेणं प्रभिरममाणा - अभिरममाणा' विहरेज्जाह । जइ णं तुभे देवाणुप्पिया ! तत्थ वि उव्विग्गा वा उस्सुया वा उप्पुया वा भवेज्जाह तो तुब्भे जेणेव पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छेज्जाह ममं पडिवालेमाणा-डिवाले माणा चिट्ठेज्जाह, माणं तुब्भे दक्खिणिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ णं महं एगे उग्गविसे चंडविसे घोरविसे' ग्रइकाए' महाकाए" मसि - महिस - मूसा - कालए नयणविसरोसपुणे" अंजणपुंज-नियरप्पगासे रत्तच्छे जमल-जुयलचंचल चलंतजीहे धरणितल- वेणिभूए उक्कड फुड-कुडिल- जडुल" - कक्खड - वियड-फडाडोव"-करणदच्छे लोहागर-धम्ममाण" - धमधमें घोसे प्रणागलियचंडविरोसे 'समुहिय - तुरिय चवलं " धमंते " दिट्ठीविसे सप्पे परिवसइ | माणं १. सं० पा० – वावसु य जाव विहरेज्जाह । २. अनिल ( क, ख, ग, घ ) ; इह वा अनिल शब्दस्य अकारलोपः प्राकृतत्वात् (वृ) । ३. सं० पा० - बहूसु जाव विहरेज्जाह । ४. भोगविसे (वृपा) । ५. घोरविसे महाविसे ( क ) | ६. अइकाय (क, ख, ग, घ ) । १२. कक्कड (क, ख ) । १३. फलाडोव ( ख ) ; फणाडोव (घ ) । १४. लोहमितिगम्यते । ७. ° काए जहा तेयनिसग्गे ( वृ); वृत्तिगत - व्याख्यया इति प्रतीयते वृत्तिकारस्य सम्मुखे ये आदर्शा आसंस्तेषु 'जहा तेय- १५. समूहि तुरियचवलं ( क ग ); समुहिं तुरियं तिसगे' इति संक्षिप्तः पाठः आसीत्, चवलं (ख) । अतएव वृत्तिकृता लिखितम् - जहा १६. धमघमंते ( ग ) । .तेय निसग्गेति शेषविशेषणानि यथा गोशालकचरिते तथेहाध्येतव्यानीत्यर्थः । तानि चैतानि - मसि - महिस 1 महिसा ( क, ख ) । o ८. ९. मूस (घ ) । १०. पुण्ण ( ख ) । ११. जडिल ( क्व० ) । Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अग्माणं (मायंदी) तुब्भं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ–ते मागंदिय-दारए दोच्चंपि तच्चंपि एवं वदति, वदित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता ताए उक्किट्ठाए' देवगईए लवणसमुई तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टेउं पयत्ता यावि होत्था ॥ मागंदियपुत्ताणं वणसंडगमण-पदं २१. तए णं ते मागंदिय-दारया तनो मुहुत्तेतरस्स पासायवडेंसए सई वा रइं वा धिई वा अलभमाणा अण्णमण्णं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! रयणदीवदेवया अम्हे एवं वयासी-एवं खलु अहं सक्कवयण-संदेसेणं सुट्ठिएणं लवणाहिवइणा' निउत्ता जाव' मा णं तुब्भं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ । तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! पुरथिमिल्लं वणसंडं गमित्तए -अण्णमण्णस्स एयम₹ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव पुरथिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छंति । तत्थ णं वावीसु य जाव' पालीघरएसु य जाव' सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरम माणा विहरंति ॥ २२. तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सई वा 'रई वा धिइं वा° अलभमाणा जेणेव उत्तरिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छंति । तत्थ णं वावीसु य जाव' आली घरएसु य सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरंति ॥ २३. तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सई वा 'रइं वा धिज्ञ वा अलभमाणा जेणेव पच्चथिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छति । तत्थ णं वावीसु य जाव'. आलीघरएस य" सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा विहरंति॥ २४. तए णं ते मागंदिय-दारगा तत्थ वि सई वा रइं वा धिइं वा अलभमाणा अण्ण मण्णं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे रयणदीवदेवया एवं वयासीएवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! सक्कवयण-संदेसेणं सुट्टिएणं लवणाहिवइणा" निउत्ता जाव" मा तुब्भं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ। तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं । तं सेयं खल अम्हं दक्खिणिल्लं वणसंडं गमित्तए त्ति कटट अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वणसंडे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तो णं गंधे निद्धाइ, से जहानामए-अहिमडे इ वा जाव" अणितराए चेव ॥ १. पू०-राय० सू० १० । २. पू०-ना० १६।२० । ३,४,५. ना० १।६।२०। ६. सं० पा०-सई वा जाव अलभमाणा। ७. ना० १।६।२०। ८. पू०-ना० १९२० । है. सं० पा०--सई वा जाव जेणेव । १०. ना० १।६।२०। ११. पू०-ना० ११९२० । १२. सं० पा०—सई वा जाव अलभमाणा। १३. पू०-ना० १०९।२०। १४. ना० १।६२० । १५. ना० ११८४२। १६. पू०-ना० १।८।४२ । Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ नायाधम्मकहाओ २५. तए णं ते मागंदिय-दारगा तेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सएहि-सएहिं उत्तरिज्जेहिं आसाइं 'पिहेंति, पिहेत्ता" जेणेव दक्खिणिल्ले वणसंडे तेणेव उवागया। तत्थ णं महं एग आघयणं' पासंति--अट्टियरासि-सय-संकुलं भीम-दरिसणिज्जं । एगं च तत्थ सूलाइयं पुरिसं कलुणाई कट्ठाई विस्सराई कूवमाणं' पासंति, भीया 'तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया जेणेव से सूलाइए पूरिसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं सलाइयं परिसं एवं वयासी-एस णं देवाणप्पिया ! कस्साघयणे? तुमं च णं के कसो वा इहं हव्वमागए ? केण' वा इमेयारूवं आवयं पाविए ? २६. तए णं से सूलाइए पुरिसे ते मागंदिय-दारगे एवं वयासी-एस णं देवाणु प्पिया ! रयणदीवदेवयाए आघयणे । अहं णं देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवानो दीवानो भारहानो वासाप्रो कागदए आसवाणियए विपुलं पणियभंडमायाए पोयवहणणं लवणसमुदं ओयाए । तए णं अहं पोयवहण-विवत्तीए निब्बुड्डु-भंडसारे एगं फलगखंडं आसाएमि । तए णं अहं अोवुज्झमाणे-अोवुज्झमाणे रयणदीवंतेणं संवढे । तए णं सा रयणदीवदेवया ममं पासइ, पासित्ता ममं गेण्हइ, गेण्हित्ता मए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणी विहरइ। तए णं सा रयणदीवदेवया अण्णया कयाइ अहालहुसगंसि अवराहसि परिकुविया समाणी मम एयारूवं आवयं पावेइ। तं न नज्जइ णं देवाणुप्पिया ! तुब्भं पि इमेसि सरी रगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ ? २७. तए णं ते मागंदिय-दारगा तस्स सलाइगस्स अंतिए एयमद्रं सोच्चा निसम्म बलियतरं भीया 'तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सूलाइयं पुरिसं एवं वयासी–कहण्णं देवाणुप्पिया ! अम्हे रयणदीवदेवयाए हत्थानो साहत्थि नित्थरेज्जामो ? २८. तए णं से सूलाइए पुरिसे ते मागंदिय-दारगे एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! १. पेहेंति २ (ख)। ५. सं० पा०-भीया जाय संजायभया। २. आहयणं (क); आवतेणं (ख, घ)। ६. केणइ (क); केणे (ख) । ३. सूलाइतयं (क); सूलाययं (ख), वृत्तौ ७. पाविएसि (क)। एकस्मिन्नादर्श 'सूलाइगं' अपरस्मिश्च ८. कागंदिए (घ); काकंदए (क्व)। 'सूलाइयंग' इति पाठ-संकेतो दृश्यते। ६. विपुल (ख, घ); विउल (ग)। शुलिकाभिन्नमिति च व्याख्यातमस्ति । १०. आवई (क, ख); आवति (ग, घ)। ४. कुब्वमाणं (ख,ग,घ) । वृत्तौ-कूजन्तंव्यक्तं ११. सं० पा०-भीया जाव संजायभया । शब्दायमानं, इति दृश्यते, तत: कुव्वमाणं १२. नित्थरिज्जामो (ख) । अशुद्धं प्रतिभाति । Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अभयणं ( मायंदी ) पुरत्थिमिल्ले वणसंडे सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे सेलए नामं ग्रासख्वधारी जक्खे परिवसइ । तए णं से सेलए जक्खे चाउद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु श्रागयसमए पत्तसमए महया - महया सद्देणं एवं वदइ- कं तारयामि ? कं पालयामि ? तं गच्छ णं तुभे देवाणुप्पिया ! पुरत्थिमिल्लं वणसंड सेलगस्स जक्खस्स महहिं पुप्फच्चणियं करेह, करेत्ता जन्नुपायवडिया पंजलिउडा' विणणं पज्जुवासमाणा विहरह । जाहे णं से सेलए जक्खे प्रागयसमए पत्तसमए एवं वएज्जा - कं तारयामि ? कं पालयामि ? ताहे तुब्भे 'एवं वदह" - म्हे तारयाहि म्हे पालयाहि । सेलए भे जक्खे परं रयणदीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थि नित्थारेज्जा । अण्णहा भे न याणामि इमेसि सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ ? से लगजक्ख-पदं २६. तए णं ते मागंदिय दारगा तस्स सूलाइयस्स पुरिसस्स ग्रंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्मा सिग्घं चंडं चवलं तुरियं वेइयं जेणेव पुरथिमिल्ले वणसंडे जेणेव पोखरणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोक्खरिणि श्रोगाहेंति, श्रोगाहेत्ता जलमज्जणं करेंति, करेत्ता जाई तत्थ उप्पलाई जाव' ताई गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता प्रालोए पणामं करेंति, करेत्ता महरिहं पुप्फच्चणियं करेंति, करेत्ता जन्नुपायवडिया' सुस्सू माणा नमसमाणा पज्जुवासंति || ३०. तए णं से सेलए जक्खे आगयसमए पत्तसमए एवं वयासी - कं तारयामि ? कं पालयामि ? ३१. तए णं ते मागंदिय दारगा उट्ठाए उट्ठेति, उट्ठेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी-ग्रम्हे तारयाहि श्रम्हे पालयाहि ॥ २१३ ३२. तए णं से सेलए जक्खे ते मार्गदिय-दारए एवं वयासी - एवं खलु देवाणु - पिया ! तुब्भं मए सद्धि लवणसमुद्दं मज्भंमज्भेणं वीईवयमाणाणं सा रयणदीवदेवया पावा चंडा रुद्दा खुद्दा साहसिया बहूहिं खरएहि य मउएहि य लोहि पडिलोमेहि य सिगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि उवसग्गं करेहिइ । तं जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! रयणदीवदेवयाए एयमट्ठ आढाह वा परियाणह वा अवयक्खह वा तो भे ग्रहं पट्टाओ' विहुणामि' | 'ग्रह णं" तुब्भे १. पंजलियडा (ख); अंजलिउडा ( ग ) । २. चिट्ठह ( क ) । ३. वदह (क); वइज्जह ( ख ) । ४. ना० १।२।१४ । ५. ०पडिया य ( ग ) । ६. सं० पा० - करयल ° । ७. वदइ ( क ) । ८. पट्टतो ( ख ); पुट्ठाओ (घ ) । ६. विधुणामि ( क ) ; विहूणामि ( ख ) । १०. ग्रहणं ( ग ) । Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ नायाधम्मकहाऔ रयणदीवदेवयाए एयमटुं नो अाढाह नो परियाणह नो अवयक्खह तो भे रयणदीवदेवयाए हत्थानो साहत्थि नित्थारेमि ॥ ३३. तए णं ते मागंदिय-दारगा सेलगं जक्खं एवं वयासी-जं णं देवाणु प्पिया वइस्संति' तस्स णं [प्राणा? ] उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठिस्सामो॥ ३४. तए णं से सेलए जक्खे उत्तरपरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ. अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं निस्सिरइ, दोच्चंपि वेउव्वियसमग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता एगं महं प्रासरूवं विउव्वइ, विउवित्ता मागंदिय-दारए एवं वयासी-हं भो मागंदिय-दारया ! पारुहह णं देवाणुप्पिया ! मम पटुंसि ।। ३५. तए णं ते मागंदिय-दारया हट्ठा सेलगस्स जक्खस्स पणामं करेंति, करेत्ता सेलगस्स पढे दुरूढा ॥ ३६. तए णं से सेलए ते मागंदिय-दारए पट्टे दुरूढे जाणित्ता सत्तट्ठतलप्पमाणमेत्ताई उड्ढं वेहासं उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए दिव्वाए देवगईए लवणसमुहं मझमझेणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव चंपा नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । रयणदीवदेवया-उवसग्ग-पदं ३७. तए णं सा रयणदीवदेवया लवणसमुदं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टइ, जं तत्थ तणं वा जाव' एगते एडेइ, जेणेव पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते मागंदिय-दारए पासायव.सए अपासमाणी जेणेव पुरथिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छइ जाव' सव्वो समंता मग्गण-गवेसणं करेइ, करेत्ता तेसि मागंदिय-दारगाणं कत्थइ सुई वा 'खुइं वा पउत्ति वा अलभमाणी जेणेव उत्तरिल्ले, एवं चेव पच्चथिमिल्ले वि जाव अपासमाणी ओहिं पउंजइ, ते मागंदिय-दारए सेलएणं सद्धि लवणसमुदं मझमझेणं वीईवयमाणे पासइ, पासित्ता आसुरुत्ता असिखेडगं गेण्हइ, गेण्हित्ता सत्त? तलप्पमाणमेत्ताइ उड्ढं वेहासं उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए देवगईए जेणेव मागंदिय-दारया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी-हंभो मागंदिय-दारगा ! अपत्थियपत्थया ! किण्णं तुब्भे जाणह ममं विप्पजहाय सेलएणं जक्खेणं सद्धि लवणसमुह मज्झमज्झणं वीईवयमाणा ? तं एवमवि गए। जइ णं तुन्भे ममं १. वतंति (ख); वत्तंति (ग, घ)। २. पाउप्पयइ (क)। ३. ना० १।९।१६ । ४. ना० १शक्षा२१ । ५. स० पा०--सुइ वा० । ६. सं० पा०-सत्तट्ट जाव उप्पयइ । ७. पू० -ना० १।६।३६ । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (मायंदी) २१५ अवयक्खह तो भे अत्थि जीवियं । अह णं नावयक्खह तो भे इमेणं नीलुप्पलगवल''गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेणं खुरधारेणं असिणा रत्तगंडमंसुयाइं माउ आहिं उवसोहियाइं तालफलाणि व सीसाइं एगते ° एडेमि ।। ३८. तए णं ते मागंदिय-दारगा रयणदीवदेवयाए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म अभीया अतत्था अणुव्विग्गा अक्खुभिया असंभंता रयणदीवदेवयाए एयमढें नो पाढंति 'नो परियाणंति 'नो अवयक्खंति'' प्रणाढामाणा' अपरियाणमाणा अणवयक्खमाणा सेलएणं जक्खेणं सद्धि लवणसमुदं मज्झमझेणं वीईवयंति ।। ३६. तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए जाहे नो संचाएइ बहूहि पडि लोमेहि उवसग्गेहि चालित्तए वा 'लोभित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे महुरेहिं सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि 'उवसग्गेउं पयत्ता यावि होत्था-हंभो मागंदिय-दारगा ! जइ णं तुब्भेहि देवाणुप्पिया ! मए सद्धि हसियाणि य रमियाणि य ललियाणि य कीलियाणि य हिडियाणि य मोहियाणि य ताहे णं तुब्भे सव्वाइं अगणेमाणा ममं विप्पजहाय सेलएणं सद्धि लवणसमुदं मझमझेणं वीईवयह ।। ४०. तए णं सा रयणदीवदेवया जिणरविखयस्स मणं ओहिणा प्राभोएइ, आभोएत्ता एवं वयासी-निच्चपि य णं अहं जिणपालियस्स अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा । निच्चं मम जिणपालिए अणिढे अकंते अप्पिए अमणुण्णे अमणाम । निच्चपि य णं अहं जिणरक्खियस्स इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा। निच्चपि य णं ममं जिणरक्खिए इट्टे कंते पिए मणुण्णे मणामे । जइ णं मम जिणपालिए रोयमाणि कंदमाणि° सोयमाणि तिप्पमाणि' विलवमाणि नावयक्खइ, किण्णं तुमपि जिणरक्खिया ! ममं रोयमाणि कंदमाणि सोयमाणि १. सं० पा०--गवल जाव एडेमि । ७. सग्गेहि य (ख)। २. आढायंति (क)। ८. उवसग्गेहि य पत्ता (क); उवसग्गे उपयत्ता ३. नावयक्खंति (क)। (ख); उवसग्गेहि य उपयत्ता (ग)। ४. अणाढायमाणा (क); अणाढेमाणा (ख); ६. एतच्च वाक्यं काक्वा व्याख्येयम्, ततः अणाढामीणा (ग)। उपालंभः प्रतीयते (वृ)। ५. उवसग्गेहि य (ख, ग, घ)। ६. लोभित्तए वा (क); खोभित्तए वा ११. ४ (ख, घ)। विपरिणामित्तए वा लोभित्तए वा (ख)। १२. सं० पा०-रोयमाणि जाव नावयक्खसि । Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ तिप्पमाणि विलवमाणि नावयक्खसि ? १. अतो आदर्शषु 'तए णं इति पदमस्ति । ततश्चाष्टौ श्लोकाः उल्लिखिताः सन्ति । वृत्त्यनुसारेण ते श्लोका वाचनान्तरवर्तिनः सन्ति, यथा-तए णं सा रयणदीवेत्यादि सूत्रं वाचनान्तरे रूपकविशेषेण द्वयं भ्रान्ति करोति' (वृ ) । तए णं सा रयणदीवेत्यस्मिन् सूत्रे 'जिणरक्खियस्स मणं ओहिणा आभोएइ', इति वाक्यमस्ति, थिष्ण ! निक्किa' ! अकयण्णुय ! अकलुण ! जिणरक्खिय ! मज्भं ! 'सा पवररयणदीवस्स, देवया ओहिणा जिणरक्खियस्स नाऊण ।" वधनिमित्तं उर्वार, मागंदिय दारगाण दोपि ॥ १ ॥ दोसकलिया सललिय', नाणाविह चुण्णवास-मीसं दिव्वं । घाण-मण-निव्वुइकरं सव्वोउय - सुरभिकुसुम-वुट्ठि पहुंचमाणी ||२|| नाणामणि- कणग-रयण- घंटियखिखिणि नेउर- मेहल-भूसणरवेणं । दिसा विदिसाओ पूरयंती वयणमिणं बेइ सा सकलुसा || ३ || हो ! वसु ! गोल ! नाह! दइत ! पिय ! रमण ! कंत! सामिय! निग्घिण ! नित्थक्क!" । सिढिलभाव !, निल्लज्ज ! लुक्ख ! हियय रक्खा ||४|| एवं सपणय-सरल-महुराई पुणो-पुणो लुइ । वणाई जंपमाणी, सा पावा मग्गओ समण्णेइ पावहियया ॥ ८ ॥ एते श्लोकाः सन्ति अथवा गद्यभागोसौ इति सुनिर्णीतं नासीत् । वृत्तिकृता एते श्लोकाः इति मतं प्रदर्शितम् — पद्यबन्धं विना १. सा रयणदीवदेवता, ओहिणा ५ जिरक्खियस्स मणं नाऊण (क ) ; ज्ञात्वाभावमिति शेषः (वृ ) । २. सलिलियं ( क ) ; सलिलयं (घ) । ३. मीसियं ( क्व० ) । ४. नित्थिक्क ( क ) । नहु जुज्जसि एक्क" अणाहं, अबंधवं तुज्भ चलण ओवायकारिय' उज्झिउमधन्नं । गुणसंकर ! हं तुमे विहूणा, न समत्था जीविरं खपि ||५|| इमस्स उ अणेगझस-मगर- विविधसावय-सयाउलघरस्स रयणागरस्स मज्झें । अप्पाणं वहेमि तुज्झ पुरग्रो, एहि नियत्ताहि जइ सि कुविग्रो खमाहि एगावराहं मे || ६ || तुज्झ य 'विगयघण- विमलस सिमंडलागार " सस्सिरीयं, सारयनवकमल- कुमुद - कुवलय" - दलनिकरसरिस वयणं पिवासागयाए सद्धा मे अवलोएहि ता इओ ममं नाह ! जा ते पेच्छामि वयणकमलं ॥७॥ निभनयणं । पेच्छिउं जे, निक्कव ( ख ) । ६. ० रक्खग ( ख ) । ७. प्रथम श्लोकेपि 'ओहिणा जिणरक्खियस्स नाऊण' इति पदमस्ति । अष्टमे श्लोके 'सप्पण सरल महुराई' इति पदमस्ति, 'ततेणं से रखिए' इत्यस्मिन् सूत्रे 'ते हि य सप्पणय सरल महुरभणिएहिं' इति वाक्यमस्ति । एतादृश पौनरुक्त्यं द्वयोर्वाचनयोः सम्मिश्रणेन जातमस्ति । अतएव एते श्लोकाः वाचनान्तरत्वेनादृताः । तए णं एक्कियं (क, ग, घ ) । नायाधम्मक हाओ ८. उववाय० (घ) । ६. मज्झेणं [ग] । १०. एक्का० (क, ख, घ)। तुकारादिनिपातानां पादपूर्णार्थानां निर्देशो न घटते । अपरिमितानि च छन्दःशास्त्राणि (वृ) । ११. विगयघण- विउल० ( ग ), विगयघणविमलससिमंडल (वृपा) । १२. कुवलय- विमउल (क, ख); कुवलय - विमल ( ग, घ ); विमउल (वृपा) । Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (मायंदी) २१७ जिणरक्खियविवत्ति-पदं ४१. तए णं से जिणरक्खिए चलमणे तेणेव भूसणरवेणं कण्णसुहमणहरेणं तेहि य सप्पणय-सरल-महुर-भणिएहि संजाय-विउण-राए रयणदीवस्स देवयाए तीसे सुंदरथण-जहण'-वयण-कर-चरण-नयण-लावण्ण'-रूव-जोवण्णसिरिं च दिव्वं सरभस-उवगूहियाइं बिब्बोय-विलसियाणि' य विहसिय-सकडक्खदिट्टि'-निस्ससिय-मलिय'-उवललिय -थिय-गमण-पणयखिज्जिय-पसाइयाणि य सरमाणे रागमोहियमती अवसे कम्मवसगए अवयक्खइ मग्गतो सविलियं ॥ ४२. तए णं जिणरक्खियं समुप्पण्णकलुणभावं मच्चु-गलत्थल्ल-णोल्लियमई अवय क्खंतं तहेव" जक्खे उ सेलए जाणिऊण सणियं-सणियं" उव्विहइ नियगपट्टाहि विगयसद्धे२ ॥ तए णं सा रयणदीवदेवया निस्संसा कलुणं जिणरक्खियं सकलुसा" सेलगपट्टाहि" ओवयंत-दास ! मनोसि त्ति जंपमाणी अपत्तं सागरसलिलं गेण्हिय बाहाहिं आरसंतं उड्ढे उव्विहइ अंबरतले ओवयमाणं च मंडलग्गेण पडिच्छित्ता नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण५ असिवरेण खंडाखंडिं करेइ, करेत्ता तत्थेव" विलवमाणं तस्स य सरस-वहियस्स घेत्तूणं अंगमंगाई सरुहिराई उक्खित्तबलि चउद्दिसि" करेइ, सा पंजली पहिट्ठा“॥ ४४. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवझायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारानो अणगारियं पव्वइए समाणे पुणरवि माणुस्सए कामभोगे प्रासयइ पत्थयइ पीहेइ अभिलस इ, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे जाव' चाउरतं संसारकंतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ-जहा व से जिणरक्खिए। १. जघण (ख)। नोपलभ्यते (वृपा)। २. लायण्ण (क, ख)। १२. विगयसत्थे (वृ); विगयसद्धे (वृपा)। ३. विलवियाणि (क, ख)। १३. अकलुणा (क)। ४. कडक्ख ° (क, ख)। १४. ° पुट्ठाहिं (घ)। ५. मणिय (वृपा)। १५. असीयप्पगासेण (ग)। ६. ललिय (वृपा)। १६. तत्थ (ग, घ)। ७. कम्मवसवेगनडिए (वृपा)। १७. चाउद्दिसि (क)। ८. सविलवियं (ग)। १८. पहट्ठा (क, ख)। ६. गलत्थ (क); गल्लत्थल्ल (ख)। १६. ना० १।३।२४। १०,११. 'तहेव, सणियं' इत्येतत् पदद्वयं वाचनान्तरे Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ नायाधम्मकहानी गाहा छलियो अवयक्खंतो, निरवयक्खो' गो अविग्घेणं । तम्हा पवयणसारे', निरावयक्खेण भवियव्वं ॥१॥ भोगे अवयक्खंता, पडंति संसारसागरे घोरे । भोगेहिं निरवयक्खा, तरंति संसारकंतारं ॥२॥ जिणपालियस्स चंपागमण-पदं ४५. तए णं सा रयणदीवदेवया जेणेव जिणपालिए तेणेव उवागच्छइ, बहुहिं अणुलो मेहि य पडिलोमेहि य खरएहि य मउएहि य सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि जाहे नो संचाएइ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा' जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ।। ४६. तए णं से सेलए जखे जिणपालिएण सद्धि लवणसमुदं मझमझेणं वीईवयइ, वीईवइत्ता जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चपाए नयरीए अग्गुज्जाणंसि जिणपालियं पट्ठामो ओयारेइ, ओयारेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणप्पिया ! चंपा नयरी दीसइ त्ति कटु जिणपालियं पुच्छइ, जामेव दिसि पाउब्भए तामेव दिसि पडिगए॥ ४७. तए णं से जिणपालिए चंपं नयरि अणुपविसइ, अणुविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं रोयमाणे" •कंदमाणे सोयमाणे तिप्पमाणे० विलवमाणे जिणरक्खिय-वावत्ति निवेदेड । तए णं जिणपालिए अम्मापियरो [य?] मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परियणेण सद्धि 'रोयमाणा कंदमाणा सोयमाणा तिप्पमाणा विलवमाणा बहई लोइयाइं मयकिच्चाई करेंति, करेत्ता कालेणं विगयसोया जाया । ४६. तए णं जिणपालियं अण्णया कयाइं सुहासणवरगयं अम्मापियरो एवं वयासी कहण्णं पुत्ता ! जिणरक्खिए कालगए ? ५०. तए णं से जिणपालिए अम्मापिऊणं लवणसमुद्दोत्तारं च कालियवाय-संमच्छणं च पोयवहण-विवत्तिं च फलहखंड-पासायणं च रयणदीवुत्तारं च रयणदीव १. निरवेक्खो (ग)। २. ° सारेण (ग); चारित्रे गम्यते (वृ)। ३. समाणी (क)। ४. दिसं (क)। ५. सं० पा०-रोयमाणे जाव विलवमाणे। लब्धे सतीति ६. वावित्ति (ख, ग)। ७. सं० पा० -नाइ जाव परियणेण । ८. रोयमाणाई (क, ख, ग, घ)। ६. फलगखंड (क)। Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (मायंदौ) २१६ देवया-गिण्हणं च भोगविभूई च रयणदीवदेवया-आघयणं' च सूलाइयपुरिसदरिसणं च सेलगजक्खग्राहणं च रयणदीवदेवया-उवसग्गं च जिणरक्खियवात्ति' च लवणसमद्दउत्तरणं च 'चंपागमणं च सेलगजक्खयापूच्छणं च" जहाभयमवितहमसंदिद्धं परिकहेइ॥ ५१. तए णं से जिणपालिए 'अप्पसोगे [जाए ?] जाव" विपुलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं 'समणे भगवं महावीरे" समोसढे । जिणपालिए धम्म सोच्चा पव्वइए । एगारसंगवी। मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, सर्द्वि भत्ताई अणसणाए छेएत्ता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववण्णे। दो सागरोवमाई ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव" सव्व दुक्खाणमंतं काहिइ ॥ ५३. एवामेव समणाउसो ! •जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झा याणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे ° माणुस्सए कामभोगे नो पुणरवि प्रासयइ पत्थयइ पीहेइ, सेणं इह भवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव' चाउरतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ-जहा व से जिणपालिए । निक्खेव-पदं ५४. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं जाव' १. अप्पाहणं (क, ख, ग, घ) । अत्र पूर्वक्रमानु- नोपलब्धम् । अत्र प्रथमं 'जाव' पदं अना सारेण 'प्राधयणं' इति पाठो युज्यते, वश्यकं प्रतिभाति । 'अप्पसोगे जाए जाव' द्रष्टव्यम्-२५ सूत्रम् । सम्भवतो लिपिदोषेण यद्येवं पाठः परिकल्पेत तदा 'जाव' पदं न 'आघयणं' इत्यस्य स्थाने 'अप्पाहणं' इति पूर्तिसूचकं भवति । जातम् । अत्र अस्पार्थोपि नावगम्यते । ५. समणे भगवया महावीरेणं (क); समणे (ख. २. विवत्ति (क, ख, ग, घ) । ४७ सूत्रानुसारेण ग,); समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव चंपा अत्र परिवर्तनं कृतम् । नयरी पुण्णभद्दे चेइए तेणेव समोसढे परिसा ३. सेलगजक्खआपुच्छणं च चंपागमणं च (क); निग्गया कूणिमो वि राया निग्गओ (घ)। सेलगजक्खआपुच्छणं च (ग)। ६. X (क, ख, ग)। ४. जाव अप्पसोगे जाव (क, ख, ग, घ); ७. ना० १११।२१२ । अस्यैवाध्ययनस्य ४० सत्रे 'विगयसोया ८. सं० पा०-समणाउसो जाव माणस्सए । जाया' इत्युल्लेखोस्ति । अत्र पुनरपि ६. ना० श२।७३ । 'अप्पसोगे' इत्युल्लेखो विद्यते । द्वयोरपि १०. ना० १।१७ । 'जाव' पदयोः पूर्तिस्थल एतत् तुल्यप्रकरणेषु Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० Sararaoneओ सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं नवमस्स नायज्भयणस्स श्रयमट्ठे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा - जह रयणदीवदेवी, तह एत्थं प्रविरई महापावा । जह लात्थी वणिया, तह सुहकामा इहं जीवा ॥ १ ॥ जह तेहि भीएहि, दिट्ठो प्राघायमंडले पुरिसो । संसारदुक्खभीया, पासति तहेव धम्मकहं ॥२॥ जहते तेस कहिया, देवी दुक्खाण कारणं घोरं । तत्तो चिय नित्थारो, सेलगजक्खाउ नन्नत्तो ॥ ३॥ तह धम्मकही भव्वाण, साहए दिट्ठविरइसहावा । सयलदुहहेउभूया, विसया विरयंति जीवा णं ॥४॥ सत्ताण दुहत्ताणं, सरणं चरणं जिणिदपण्णत्तं । आणंदरूव निव्वाण - साहणं तह य दंसेइ ॥५॥ जह तेसि तरियव्वो, रुहसमुद्दो तह संसारो । जह तेसि सगिहगमणं, निव्वाणगमो तहा एत्थ ॥ ६ ॥ जह सेलगपट्टा, भट्ठो देवी मोहियमई उ । सावय- सहस्सप उरम्मि, सायरे पाविप्रो निहणं ॥ ७ ॥ तह विरईइ नडिग्रो, चरणचुत्रो दुक्खसावयाइण्णो । निवss ' प्रगाह संसार-सागरं अनंतमविकालं" ||८|| जह देवीए ग्रक्खोहो, पत्तो सट्ठाण - जीवियसुहाई । तह चरण साहू, प्रक्खोहो जाइ निव्वाणं ॥ ६ ॥ १. अपारसंसारसायरे दारुणसरूवे ( ख ) । Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं चंदिमा उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं नवमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, दसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? परिहायमाण-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे' गोयमो एवं वयासी कहण्ण भंते ! जीवा वड्ढंति वा हायंति वा ? गोयमा ! से जहानामए बहुलपक्खस्स पाडिवय-चंदे पुण्णिमा-चंदं पणिहाय हीणे वण्णेणं हीणे सोम्माए' हीणे निद्धयाए हीणे कंतीए एवं-दित्तीए जुत्तीए छायाए पभाए प्रोयाए लेसाए हीणे मंडलेणं । तयाणंतरं च णं बीयाचंदे पाडिवय-चंदं पणिहाय हीणतराए वणेणं जाव हीणतराए मंडलेणं। तयाणंतरं च णं तइया -चंदे बीया -चंदं पणिहाय हीणतराए वण्णेणं जाव हीणतराए मंडलेणं। एवं खलु एएणं कमेणं परिहायमाणे-परिहायमाणे जाव अमावसा-चंदे चाउद्दसिचंदं पणिहाय नढे वण्णेणं जाव नटे मंडलेणं ॥ १. नयरे सामी समोसढे परिसा निग्गया (घ)। ५. लेस्साए (क, ख)। २. कहणं (ख, ग)। ६. पडिवयं (घ)। ३. पडिवय (क); पडिवया (ख, घ); ७. ततिया (ख, ग, घ) । पाडिवया (ग)। ८. बितिया (क, ख, ग, घ)। ४. सम्मेताए (क)। २२१ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ नायाधम्मकहाओ ३. एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा' 'पायरिय उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं° पव्वइए समाणे हीणे खंतीए एवं--मुत्तीए गुत्तीए अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं सच्चेणं तवेणं चियाए अकिंचणयाए हीणे बंभचेरवासेणं । तयाणंतरं च णं हीणतराए खंतीए जाव हीणतराए बंभचेरवासेणं । एवं खलु एएणं कमेणं परिहायमाणे-परिहायमाणे नढे खंतीए जाव नढे बंभचेर वासेणं॥ परिवड्ढमाण-पदं ४. से जहा वा सुक्कपक्खस्स पाडिवय-चंदे अमावसा-चंदं पणिहाय अहिए वण्णणं' 'अहिए सोम्माए अहिए निद्धयाए अहिए कंतीए एवं-दित्तीए जुत्तीए छायाए पभाए ओयाए लेसाए° अहिए मंडलेणं। तयाणंतरं च णं बीया-चंदे पाडिवय-चंदं पणिहा राए वण्णणं जाव अहिययराए मंडलेणं। एवं खलु एएणं कमेणं परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे जाव पुण्णिमा-चंदे चाउसि चंदं पणिहाय पडिपुण्णे वण्णणं जाव पडिपुण्णे मंडलेणं॥ ५. एवामेव समणाउसो! 'जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं° पव्वइए समाणे अहिए खंतीए एवं- मुत्तीए गुत्तीए अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं सच्चेणं तवेणं चियाए अकिंचणयाए अहिए ° बंभचेरवासेणं ।। तयाणंतरं च णं अहिययराए खंतीए जाव अहिययराए बंभचेरवासेणं । एवं खलु एएणं कमेणं परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे पडिपुण्णे खंतीए जाव पडिपुण्णे बंभचेरवासेणं। एवं खलु जीवा वड्ढंति वा हायंति वा ।। निक्खेव-पदं ६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं दसमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । -त्ति बेमि॥ १. सं० पा०-निग्गंथी वा जाव पव्वइए। २. पाडिवया (क, ख); पडिवया (ग, घ)। ३. सं० पा०-वण्णेणं जाव अहिए। ४. सं० पा०-समणाउसो! जाव पव्वइए। ५. सं० पा०-खंतीए जाव बंभचेरवासेणं । Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं (चंदिमा) २२३ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा-- जह चंदो तह साहू, राहुवरोहो जहा तह पमानो। वण्णाइगुणगणो जह, तहा खमाइसमणधम्मो ॥१॥ पुण्णोवि पइदिणं जह, हायंतो सव्वहा ससी नस्से । तह पुण्णचरित्तो वि हु, कुसीलसंसग्गिमाईहिं ।।२।। जणिय-पमानो साहू, हायंतो पइदिणं खमाईहिं।। जायइ नट्ठचरित्तो, ततो दुक्खाइ पावेइ ॥३॥ हीणगुणो वि ह होउं, सुहगरुजोगाइ-जणियसंवेगो।। पुण्णसरूवो जायइ, विवद्धमाणो ससहरोव्व ॥४॥ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं दसमस्स नायज्झयणस्स श्रयमट्ठे पण्णत्ते, एक्कारसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के प्रट्ठे पण्णत्ते ? एक्कारसमं अयणं दावद्दवे देवराहय-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे गोयमो एवं वयासीकहणं' भंते ! जीवा प्राराहगा वा विराहगा वा भवंति ? ३. गोयमा ! से जहानामए एगंसि समुहकूलंसि दावद्दवा नामं रुक्खा पण्णत्ताकिण्हा जाव' निउरंबभूया पत्तिया पुफिया फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा सिए ईव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठति । १. कह णं ( ख, ग, घ ) । २. ना० १।७।१३ । ३. रेरिज्जमाणा - रेरिज्जमाणा (क, ग ) । ४. दीविव्वगा ( ख, ग, घ ) । ५. इसि (क, घ) । o जया णं दीविच्चगा ईसि पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तया णं बहवे दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुफिया फलिया हरियग- रेरिज्जमाणा सिरीए ईव उवसोभेमाणा - उवसोभेमाणा • चिट्ठति । अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा जुण्णा झोडा परिसडिय - पंडुपत्त- पुप्फ-फला सुक्करुक्खओ विव मिलायमाणा - मिलायमाणा चिट्ठति ॥ एवामेव समणाउसो' ! जो म्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय ६. सं० पा०-- पत्तिया जाव चिट्ठति । ७. ज्झोडा (क, ख ); झोट्ठा ( ग ) । ८. समणातोसो ( ग ) । ६. सं० पा० - निग्गंथी जाब पव्वइए । - २२४ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं अज्झयणं (दावद्दवे) २२५ उवज्झायाणं श्रंतिए मुंडे भवित्ता प्रगाराम्रो प्रणगारियं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य सम्मं सहइ • खमइ तितिक्ख ग्रहियासेइ, बहूणं ग्रण्णउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्म सहइ जाव नो श्रहियासेइ - एस णं मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते ॥ देसा राहय-पदं ४. ५. o एवामेव समणाउसो ! जो ग्रम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा प्रायरियउवज्झायाणं प्रति मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए समाणे उत्थियाणं बहूणं हित्थाणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ, बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य नो सम्म सहइ जाव नो ग्रहियासेइ - एस णं मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते ॥ बहू सव्ववराहय-पदं ६. समाउसो ! जया णं नो दीविच्चगा नो सामुद्दगा ईसि पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तया णं सव्वे दावदवा रुक्खा जुण्णा झोडा परिसडिय पंडुपत्त- पुप्फ-फला सुक्करुक्खाग्रो विव मिलायमाणा - मिलायमाणा चिट्ठति । अप्पेगइया दावदवा रुक्खा पत्तिया पुफिया फलिया हरियग - रेरिज्जमास व उसोभेमाणा - उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ ७. समणाउसो ! जया णं सामुद्दगा' ईसि पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तया णं बहवे दावदवा रुक्खा जुण्णा झोडा' परिसडिय पंडुपत्तपुप्फ-फला सुक्करुक्खस्रो विव° मिलायमाणा - मिलायमाणा चिट्ठति । अप्पेगइया दावा रुक्खा पत्तिया पुफिया फलिया 'हरियग- रेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ एवमेव समणाउसो ! जो श्रम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा प्रायरिय-उवज्झायाणं तिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो ग्रणगारियं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणी बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं प्रणउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहइ जाव' नो ग्रहियासेइ - एस णं मए पुरिसे सव्वविराहए पण्णत्ते || सव्वा राहय-पदं समणाउसो ! जया णं दीविच्चगा वि सामुद्दगा वि ईसि पुरेवाया पच्छावाया ८. १. सं० पा० - सहइ जाव अहियासेइ । २. समुद्दगा (ख, घ ) । ३. सं० पा० - झोड़ा जाव मिलायमाणा । ४. सं० पा० - फलिया जाव उवसोभेमाणा । ५. सं० पा० - निग्गंथी वा जाव पव्वइए । ६. ना० १।११।३ । Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ मायाधम्मकहानो मंदावाया महावाया वायंति, तया णं सव्वे दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुप्फिया फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइए समाणे बहूण समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं अण्णउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ-एस णं मए पुरिसे सव्वआराहए पण्णत्ते । एवं खलु गोयमा ! जीवा पाराहगा वा विराहगा वा भवंति ।। निक्खव-पदं १०. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं एक्कारसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा जह दावद्दव-'तरुणो, एवं" साहू जहेह दीविच्चा। वाया तह समणा इय, सपक्ख-वयणाइं दुसहाई ।।१।। जह सामुद्दय-वाया, तहण्णतित्थाइ-कडुयवयणाई। कुसुमाइं संपया जह, सिवमग्गाराहणा तह उ ।।२।। जह कुसुमाइ-विणासो, सिवमग्ग-विराहणा तहा णेया। जह दीववायु-जोगे, बहु इड्डी ईसि य अणिड्डी ।।३।। तह साहम्मिय-वयणाण, सहणमाराहणा भवे बहुया। इयराणमसहणे, पुण सिवमग्ग-विराहणा थोवा ॥४॥ जह जलहिवाय-जोगे, थेविड्डी बहुयरा अणिड्डी य । तह परपक्खक्खमणे, आराहणमीसि बहु इयरं ॥५।। जह उभयवाय-विरहे, सव्वा तरुसंपया विणगृत्ति। अणिमित्तोभय-मच्छर-रूवेह विराहणा तह य ॥६॥ जह उभयवाय-जोगे, सव्वसमिद्धी वणस्स संजाया। तह उभयवयण-सहणे सिवमग्गाराहणा पुण्णा ।।७।। ता पुण्णसमणधम्माराहणचित्तो सया महापुण्णो। सव्वेण वि कीरंत, सहेज्ज सव्वं पि पडिकूलं ॥८॥ १. तरूणमेवं [क्व] । २. महासत्तो [क्व । Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं अज्झयणं उदगणाए उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं एक्कारसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, बारसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी । पुण्णभद्दे चेइए। __ जियसत्तू राया। धारिणी देवी। अदीणसत्तू कुमारे जुवराया वि होत्था । सुबुद्धी अमच्चे जाव' रज्जधुराचिंतए, समणोवासए ॥ फरिहोदग-पदं ३. तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमेणं एगे फरिहोदए यावि होत्था मेय-वसा-रुहिर-मंस-पूय-पडल-पोच्चडे मयग-कलेवर-संछण्णे अमणुण्णे वण्णेणं' 'ग्रमणुण्णे गंधेणं अमणुण्णे रसेणं अमणुण्णे ° फासेणं, से जहानामए–अहिमडे इ वा गोमडे इ वा जाव' मय-कुहिय-विणट्ठ-किमिण-वावण्ण-दुरभिगंधे किमिजालाउले संसत्ते असुइ-विगय-बीभच्छ-दरिसणिज्जे । भवेयारूवे सिया ? नो इणटे समढे । एत्तो अणि?तराए चेव 'अकंततराए चेव अप्पियतराए चेव अमणुण्णतराए चेव अमणामतराए चेव ° गंधेणं पण्णत्ते॥ जियसत्तुणा पाणभोयणपसंसा-पदं ४. तए णं से जियसत्तू राया अण्णया कयाइ हाए कयबलिकम्मे जाव' १. ना० ११८।४२ । २. सं० पा०-वणेणं जाव फासेणं । ३. ना० ११८।४२ । ४. सं० पा०-अणि?तराए चेव जाव गंधेणं । ५. ना० १११।२७ । २२७ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२५ नायाधम्मकहाओ अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे बहूहिं ईसर' जाव' सत्थवाहपभिईहिं सद्धि भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए सुहासणवरगए विउलं असणं' 'पाणं खाइम साइमं आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे एवं च णं° विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं समाण प्रायंते चोक्खे परम सुइभए तंसि विपुलं सि असण-पाण-खाइम-साइमंसि जायविम्हए ते बहवे ईसर जाव' सत्थवाहपभिइयो एवं वयासी–अहो णं देवाणु प्पिया ! इमे मणुण्णे असणपाण-खाइम-साइमे वण्णेणं उववेए गधेणं उववेए रसेणं उववेए° फासेणं उववेए अस्सायणिज्जे विसायणिज्जे 'पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिज्जे सव्विदियगाय-पल्हायणिज्जे ॥ ५. तए णं ते बहवे ईसर जाव' सत्थवाहपभिइयो जियसत्तुं रायं एवं वयासी तहेव णं सामी ! जण्णं तुब्भे वयह–अहो णं इमे मणुण्णे असण-पाण-खाइम साइमे वण्णेणं उववेए जाव सव्विदियगाय-पल्हायणिज्जे ॥ सुबुद्धिस्स उवेहा-पदं ६. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी-ग्रहो ण देवाणुप्पिया सुबुद्धी ! इमे मणुण्णे असण-पाण-खाइम-साइमे जाव" सव्विदियगाय-पल्हाय णिज्जे ।। ७. तए णं सुबुद्धी जियसत्तुस्स रण्णो एयमटुं नो पाढाइ" नो परियाणाइ ° तुसिणीए संचिट्ठइ॥ ८. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धि दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयासी-ग्रहो णं देवाणु प्पिया सुबुद्धी ! इमे मणुण्णे३ 'असण-पाण-खाइम-साइमे जाव सव्विदियगाय ° - पल्हायणिज्जे ॥ ६. तए णं से सुबुद्धी अमच्चे जियसत्तुणा रण्णा दोच्चंपि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे १. राईसर (ग)। ८. ना० ११७।६। २. ना० १७।६। ६. तुम्हे (ख); तुम्हं (ग, घ) । ३. सं० पा०--असणं जाव विहरइ । १०. ना० १।१२।४। ४. सं० पा.- भुत्तुत्तरागए जाव सुइभूए। ११. ना० १११२।४। ५. ना० ११७६ । १२. सं० पा०-आढाइ जाव तुसिणीए। ६. सं० पा०-उववेए जाव फासेणं। १३. सं० पा०–मणणे तं चेव जाव पल्हाय७. दीवणिज्जे पीणणिज्जे (क, घ); दीवणिज्जे णिज्जे । (ख); वीयणिज्जे दीवणिज्जे परियणिज्जे १४. ना० १।१२।४ । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसम अज्झयणं (उदगणाए) २२६ जियसत्तुं रायं एवं वयासी-नो खलु सामी ! अम्हं एयंसि मणुण्णंसि असणपाण-खाइम-साइमंसि केइ विम्हए। एवं खलु सामी ! सुब्भिसद्दा वि पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति, दुब्भिसद्दा वि पोग्गला सुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति। सुरूवा वि पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा वि पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति । सुन्भिगंधा वि पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति, दुब्भिगंधा वि पोग्गला सुब्भिगंधत्ताए परिणमंति । सुरसा वि पोग्गला दुरसत्ताए परिणमंति, दुरसा वि पोग्गला सुरसत्ताए परिणमति। सुहफासा वि पोग्गला दुहफासत्ताए परिणमंति, दुहफासा वि पोग्गला सुहफासत्ताए परिणमंति, परोग-वीससा-परिणया वि य ण सामी ! पोग्गला पण्णत्ता ।। १०. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिस्स अमच्चस्स एवमाइक्खमाणस्स भासमाणस्स पण्णवेमाणस्स परूवेमाणस्स एयमटुं नो आढाइ नो परियाणइ तुसिणीए संचिट्ठइ॥ जियसत्तुणा फरिहोदगस्स गरहा-पदं ११. तए णं से जियसत्तू राया अण्णया कयाइ हाए पासखंधवरगए महयाभड चडगर-ग्रासवाहिणिपाए' निज्जायमाणे तस्स फरिहोदयस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ ॥ १२. तए णं जियसत्तू राया तस्स फरिहोदगस्स असुभेणं गंधेणं अभिभूए समाणे सएणं उत्तरिज्जगेणं आसगं 'पिहेइ, पिहेत्ता" एगंतं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता बहवे ईसर जाव' सत्थवाहपभियओ एवं वयासी-अहो णं देवाणुप्पिया ! इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं अमणुण्णे गंधेणं अमणुण्ण रसेणं अमणुण्णे फासेणं, से जहानामए–अहिमडे इ वा जाव अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते ।। १३. तए ण ते बहवे ईसर जाव सत्थवाहपभियओ एवं वयासी-तहेव णं तं सामी ! जं णं तुब्भे वयह-अहो णं इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं अमणुण्णे गंधेणं अमणण्णे रसेणं अमणुण्णे फासेणं, से जहानामए-अहिमडे इ वा जाव अमणाम तराए चेव गंधेणं पण्णत्ते । १४. तए णं से जियसत्तू राया सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी-अहो णं सुबुद्धी ! इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं अमणुण्णे गंधेणं अमणुण्णे रसेणं अमणुण्णे फासेणं, से जहानामए-अहिमडे इ वा जाव अमणामत राए चेव गंधेणं पण्णत्ते ॥ १. ° वाहणियाए (क)। ५. राईसर (क, ख, घ)। २. पिहइ (क)। ६. ना० ११७।६। ३. ना० ११७६। ७. तुब्भे एवं (क, ख, ग, घ)। ४. ना० १।१२।३। ८,६. ना० १।१२।३। Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० नायाधम्मकहाओ सुबुद्धिस्स उवेहा-पदं १५. तए णं से सुबुद्धी अमच्चे' •जियसत्तुस्स रण्णो एयमटुं नो पाढाइ नो परिया णाइ° तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ १६. तए णं से जियसत्तू राया सुबुद्धि अमच्चं दोच्चपि तच्चंपि एवं वयासी- अहो णं सुबुद्धी ! इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं अमणुण्णे गंधेणं अमणुण्णे रसेणं अमणुण्णे फासेणं, से जहानामए-अहिमडे इ वा जाव' अमणामतराए चेव गंधणं पण्णत्ते ॥ १७. तए णं से सुबुद्धी अमच्चे जियसत्तुणा रण्णा दोच्चंपि तच्चपि एवं वुत्ते समाणे एवं वयासी-नो खलु सामी! अम्हं एयंसि फरिहोदगंसि केइ विम्हए। एवं खलु सामी ! सुब्भिसद्दा वि पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति', 'दुब्भिसद्दा वि पोग्गला सुन्भिसद्दत्ताए परिणमंति। सुरूवा वि पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा वि पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति । सुब्भिगंधा वि पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति, दुब्भिगंधा वि पोग्गला सुन्भिगंधत्ताए परिणमंति । सुरसा वि पोग्गला दुरसत्ताए परिणमंति, दुरसा वि पोग्गला सुरसत्ताए परिणमंति । सुहफासा वि पोग्गला दुहफासत्ताए परिणमंति, दुहफासा वि पोग्गला सुहफासत्ताए परिणमंति° । पयोग-वीससा-परिणया वि य णं सामी ! पोग्गला पण्णत्ता ॥ जियसत्तुस्स विरोध-पदं १८. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी-मा णं तुम देवाणुप्पिया ! अप्पाणं च परं च तदुभयं च बहूणि य असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिनिवेसेण य वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे विहराहि ॥ सुबुद्धिणा जलसोधण-पदं १६. तए णं सुबुद्धिस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्प ज्जित्था अहो णं जियसत्तू राया संते तच्चे तहिए अवितहे सब्भूए जिणपण्णत्ते भावे नो' उवलभइ । तं सेयं खलु मम जियसत्तुस्स रण्णो संताणं तच्चाणं तहियाणं अवितहाणं सब्भूयाणं जिणपण्णत्ताणं भावाणं अभिगमणद्वयाए एयमद्वं उवाइणावेत्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पच्चइएहिं पुरिसेहिं सद्धि अंतरावणाओं १. सं० पा०-अमच्चे जाव तुसिणीए। २. सं० पा०-अहो णं तं चेव । ३. ना० १।१२।३। ४. सं० पा०-परिणमति तं चैव । ५. सच्चे (ख)। ६. नो सद्दहइ (क)। ७. अभितरावणाओ (क)। Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसम अज्झयणं (उदगणाए) २३१ नवए घडए य पडए य गेण्हइ, गेण्हित्ता संझाकालसमयंसि विरलमणसंसि निसंत-पडिनिसंतंसि जेणेव' फरिहोदए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं फरिहोदगंगेहावेइ, गेण्हावित्ता नवएस पडएस' गालावेइ, गालावेत्ता नवएस घडएसु पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता सज्जखारं पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता लंछियमूहिए कारावेइ, कारावेत्ता सत्तरतं परिवसावेइ', परिवसावेत्ता दोच्चंपि नवएस पडएस' गालावेइ, गालावेत्ता नवएसु घडएसु पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता सज्जखारं पविखवावेइ, पक्खिवावेत्ता लंछिय-मुद्दिए कारावेइ, कारावेत्ता सत्तरत्तं परिवसावेइ, परिवसावेत्ता तच्चपि नवएस पडएसु गालावेइ, गाला. वेत्ता नवएसु घडएसु पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता सज्जखारं पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता लंछिय-मुद्दिए कारावेइ, कारावेता सत्तरत्तं ° संवसावेइ । एवं खलु एएणं उवाएणं अंतरा गालावेमाणे अंतरा पक्खिवावेमाणे अंतरा य संवसावेमाणे सत्तसत्त य राइंदियाइं परिवसावेइ । तए णं से फरिहोदए सत्तमंसि सत्तयंसि परिणममाणंसि उदगरयणे जाए यावि होत्था-अच्छे पत्थे जच्चे तणुए फालियवण्णाभे वण्णणं उववेए गंधेणं उववेए रसेणं उववेए फासेणं उववेए पासायणिज्जे २ •विसायणिज्जे पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिज्जे ° सव्विदियगाय-पल्हायणिज्जे ॥ सुबुद्धिणा जलपेसण-पदं २०. तए णं सुबुद्धो जेणेव से उदगरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलंसि प्रासादेइ, प्रासादेत्ता तं उदगरयणं वण्णेणं उववेयं गंधेणं उववेयं रसेणं उववेयं फासेणं उववेयं आसायणिज्ज विसायणिज्ज पीणणिज्जं दीवणिज्जं दप्पणिज्ज मयणिज्ज बिहणिज्जं° सव्विदियगाय-पल्हायणिज्जं जाणित्ता हट्टतुढे बहूहिं १. घडएस (क, ख, ग, घ)। अस्मिन्नेव सूत्रे ६. पडएस (क, ख, ग, घ)। 'अंतरावणाओ नवए घडए य पडए य ७. परिसावेइ (ख)। रोह' इति पाठोस्ति तथा 'गालावेई' इति ८. सं० पा०—घडएसु जाव संवसावेइ। स्यार्थोऽपि पडए' इति पदेन सर्वासू प्रतिषु 'घडएस' इत्येव पाठो लभ्यते। सम्बद्धोस्ति, तेन 'घडएसु गालावेइ' इत्यस्य ६. पूर्वं 'परिवसावेइ' पाठो विद्यते, अत्र 'संवस्थाने सर्वत्र 'पडएसू गालावेइ' इति पाठो सावंइ' पाठोस्ति । एतत परिवर्तनं किमर्थ युज्यते । सम्भवतो लिपिदोषेण अत्र वर्ण- कृतमिति न ज्ञायते। विपर्ययो जातः। १०. वसावेमाणे (ख, ग, घ)। २. गलावेइ (ख)। ११. सत्तम (ख)। ३. लंछिए (ख)। १२. सं० पा०-आसायणिज्जे जाव सविदिय । ४. करावेइ (ख)। १३. सं० पा०--आसायणिज्जं जाव सव्विदिय । ५. परिसवेइ (ख)। Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ भायाधम्मकहानो उदगसंभारणिज्जेहि दव्वेहिं संभारेइ, संभारेत्ता जियसत्तुस्स रण्णो पाणियघरियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुमं णं देवाणुप्पिया ! इमं उदगरयणं गेहाहि, गेण्हित्ता जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवणेज्जासि ।। जियसत्तुणा उदगरयणपसंसा-पदं २१. तए णं से पाणिय-घरिए सुबुद्धिस्स एयमटुं पडिसुणेइ', पडिसुणेत्ता तं उदगरयण गेण्हइ, गेण्हित्ता जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवट्ठवेइ ।। २२. तए णं से जियसत्त राया तं विपलं असण-पाण-खाइम-साइमं प्रासाएमाणे 'विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे एवं च णं° विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए वि य ण समाणे प्रायंते चोक्खे° परमसुइभूए तंसि उदगरयणंसि जायविम्हए ते बहवे राईसर जाव' सत्थवाहपभिइयो एवं वयासी----अहो णं देवाणुप्पिया ! इमे उदगरयणे अच्छे जाव' सविदियगाय-पल्हायणिज्जे ॥ २३. तए णं ते बहवे राईसर जाव' सत्थवाहपभिइनो एवं वयासी-तहेव णं सामी ! जण्णं तुब्भे वयह-'इमे उदगरयणे अच्छे जाव सव्विदियगाय °. पल्हायणिज्जे ॥ जियसत्तुणा उदगाणयणपुच्छा-पदं २४. तए णं जियसत्तू राया पाणिय-घरियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं तुमे देवाणुप्पिया ! उदगरयणे को प्रासादिते ? २५. तए णं से पाणिय-घरिए जियसत्तुं एवं वयासी- एस णं सामी ! मए उदगरयणे सुबुद्धिस्स अंतियाओ आसादिते ॥ २६. तए णं जियसत्तू सुबुद्धि अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- अहो णं सुबुद्धी ! केणं कारणेणं अहं तव अणि8 अकंते अप्पिए अमणुण्णे अमणामे जेणं तुम मम कल्लाकल्लिं भोयणवेलाए इमं उदगरयणं न उवट्ठवेसि ? तं एस णं तुमे देवाणुप्पिया ! उदगरयणे को उवलद्धे ? सुबुद्धिस्स उत्तर-पदं २७. तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी-एस णं सामी ! से फरिहोदए । १. पडिसुणाति (ख)। २. सं० पा०-आसाएमाणे जाव विहरइ । ३. सं० पा०-य णं जाव परमसुइभूए। ४. ना०१७।६। ५. ना० १।१२।१६ । ६. ना० ११७।६। ७. सं० पा०-जाव एवं चेव पल्हायणिज्जे। ८. ना० १।१२।१६। ६. कत्तो (ख); कतो (ग)। Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३३ बारसम अज्झयणं (उदगणाए) २८. तए णं से जियसत्तू सुबुद्धि एवं वयासी-केणं कारणेणं सुबुद्धी ! एस से फरिहोदए ? २६. तए णं सुबुद्धी जियसत्तु एवं वयासी-एवं खलु सामी ! तुब्भे तया मम एवमाइक्खमाणस्स भासमाणस्स पण्णवेमाणस्स परूवेमाणस्स एयमद्रं नो सद्दहह । तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था-अहो णं जियसत्तू राया संते तच्चे तहिए अवितहे सब्भूए जिणपण्णत्ते ° भावे नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ । तं सेयं खलु मम जियसत्तुस्स रण्णो संताणं तच्चाणं तहियाणं अवितहाणं सब्भूयाणं जिणपण्णत्ताणं भावाणं अभिगमणट्ठयाए एयमटुं उवाइणावेत्तए-एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता तं चेव जाव' पाणिय-धरियं सद्दावेमि, सद्दावेत्ता एवं वदामि-तुमं णं देवाणुप्पिया ! उदगरयणं जियसत्तुस्स रण्णो भोयणवेलाए उवणेहि । तं एएणं कारणेणं सामी ! एस से फरिहोदए । जियसत्तुणा जलसोधण-पदं ३०. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिस्स एवमाइक्खमाणस्स भासमाणस्स पण्णवेमाणस्स परूवेमाणस्स एयमटुं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, असदहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे अभितरठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! अंतरावणानो नवए घडए पडए य गेण्हह जाव' उदगसंभारणिज्जेहिं दबेहिं संभारेह । तेवि तहेव संभारेंति, संभारेत्ता जियसत्तुस्स उवणेति ॥ जियसत्तुस्स जिण्णासा-पदं ३१. तए णं से जियसत्तू राया तं उदगरयणं करयलंसि आसाएइ, आसाएत्ता प्रासायणिज्ज जाव' सव्विदियगाय-पल्हायणिज्ज जाणित्ता सुबुद्धि अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-सुबुद्धी ! एए णं तुमे संता तच्चा' तहिया अवितहासब्भूया भावा को उवलद्धा ? सुबुद्धिस्स उत्तर-पदं ३२. तए णं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी-एए णं सामी ! मए संता' 'तच्चा तहिया अवितहा सब्भूया ° भावा जिणवयणाओ उवलद्धा ॥ १. सं० पा० -संते जाव भावे । २. सं० पा०-संताणं जाव सन्भूयाणं । ३. ना० १।१२।१६,२० । ४. ना० १।१२।१६,२० । ५. ना० १।१२।४। ६. सं. पा.-तच्चा जाव सब्भूया। ७. सं० पा०-संता जाव भावा । Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाथाधम्मकहानी ३३. तए णं जियसत्तू सुबुद्धि एवं वयासो-तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तव अंतिए जिणवयणं निसामित्तए ।। जियसत्तुस्स समणोवासयत्त-पदं ३४. तए णं सुबुद्धी जियसत्तस्स विचित्तं केवलिपण्णत्तं चाउज्जामं धम्म परिकहेइ। ३५. तए णं जियसत्तू सुबुद्धिस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुटे सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी-सद्दहामि णं देवाणुप्पिया ! निग्गंथं पावयणं । पत्तियामि णं देवाणुप्पिया ! निग्गंथं पावयणं । रोएमि णं देवाणुप्पिया ! निग्गंथं पावयणं । अब्भुटेमि णं देवाणुप्पिया ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं देवाणुप्पिया ! तहमेयं देवाणुप्पिया ! अवितहमेयं देवाणुप्पिया ! इच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! पडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! ° से जहेयं तुब्भे वयह । तं इच्छामि णं तव अंतिए 'चाउज्जामियं गिहिधम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।। ३६. तए णं से जियसत्तू सुबुद्धिस्स अंतिए चाउज्जामियं गिहिधम्म पडिवज्जइ ।। ३७. तए णं जियसत्तू समणोवासए जाए-अहिगयजीवाजीवे जाव' पडिलाभेमाणे विहरइ॥ पव्वज्जा -पदं ३८. तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं । जियसत्तू राया सुबुद्धी य निग्गच्छइ । सुबुद्धी धम्म सोच्चा निसम्म एवं वयासो'–जं नवरं-जियसत्तुं आपुच्छामि 'तो पच्छा मुंडे भवित्ता णं अगाराप्रो अणगारियं ° पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! ३६. तए णं सुबुद्धी जेणेव जियसत्तू तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी एवं खलु सामी ! मए थेराणं अंतिए धम्मे निसंते । से वि य धम्मे 'इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तए णं अहं सामी ! संसारभउव्विग्गे भीए 'जम्मण १. परिकहेइ तमाइक्खइ, जहा-जीवा बझंति द्रष्टव्यम् -११०४५ सूत्रस्य पाद टिप्पणम् । जाव पंचाणुव्वयाई । द्रष्टव्यम्-११५।४५ ५. ना० ११५२४७ । सूत्रस्य प्रथमं पादटिप्पणम् । ६. निग्गच्छंति (क, ग)। २. सं० पा०-पावयणं जाव से जहेयं । ७. पू०-ना० १११११०१। ३. पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं जाव (क, ख, ८. सं० पा०—आपुच्छामि जाव पव्वयामि । ग, घ)। द्रष्टव्यम्-१।५।४५ सूत्रस्य ६. इच्छिए पडिच्छिए ३ (क); इच्छियपडिच्छिए पादटिप्पणम् । (ख, ग)। ४. पंचाणुव्वइयं जाव दुवालसविहं (क,ख,ग,घ)। १०. सं० पा०-भीए जाव इच्छामि । Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं अज्झयणं (उदगणाए) २३५ जर-मरणाणं ° इच्छामि णं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए' समाणे थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगारामो अणगारियं° पव्वइत्तए । ४०. तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धि एवं वयासी-अच्छसु ताव देवाणुप्पिया ! कइवयाई वासाइं उरालाई 'माणुस्सगाइं भोगभोगाइं° भुजमाणा तओ पच्छा एगयो' थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता' •णं अगारानो अणगारियं ° पव्वइस्सामो । ४१. तए णं सुबुद्धी जियसत्तुस्स रण्णो एयमद्वं पडिसुणेइ ।। ४२. तए णं तस्स जियसत्तुस्स रण्णो सुबुद्धिणा सद्धि विपुलाइं माणुस्सगाई काम भोगाई पच्चणब्भवमाणस्स दवालस वासाई वीइक्कंताई। ४३. तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं । जियसत्तू राया धम्म सोच्चा निसम्म एवं वयासी-जं नवरं देवाणुप्पिया ! सुबुद्धि अमच्चं आमंतेमि, जेट्टपुत्तं रज्जे ठावेमि', तए णं तुब्भण्ण' 'अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगारामो अणगारियं ° पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया! ४४. तए णं जियसत्तू राया जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूबुद्धि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु मए थेराणं अंतिए धम्मे निसंते जाव" पव्वयामि । तुम णं कि करेसि" ? ४५. तए णं सुबुद्धी जियसत्तु रायं एवं वयासी'२– जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संसारभउविगा जाव पव्वयह, अम्हं णं देवाणुप्पिया ! के अण्णे आहारे वा अालंबे वा ? अहं वि य णं देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विगे जाव° पव्वयामि । तं जइ णं देवाणुप्पिया ! जाव पव्वाहि। गच्छह णं देवाणुप्पिया ! जेट्रपत्तं ५ कूडबे ठावेहि, ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरुहित्ता णं ममं अंतिए पाउब्भवउ । सो वि तहेव पाउब्भवइ॥ १. सं० पा०-अब्भणुण्णाए जाव पव्वइत्तए। १०. ना० १।१२।३६ । २. तत्थ (क); अच्छासु (ख, ग); अच्छ (घ)। ११. पू०--ना० १।५।८६ । ३. कतिवयांति (ख, ग)। १२. सं० पा०-वयासी जाव के अन्ने आहारे ४. सं० पा०-उरालाइं जाव भंजमाणा। वा जाव पव्वयामि । ५. एगओ (ख, ग)। १३. ना० ११५८६। ६. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वइस्सामो। १४. पव्वामि (क, ग)। ७. जाव (क)। १५. °पुत्तं च (क, ख, ग)। ८. ठवेमि (ख, ग, घ)। ६. तुब्भे णं (ख, घ); सं० पा०-तुब्भण्णं जाव पव्वयामि । Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ ४६. तए णं जियसत्तू राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! अदीणसत्तुस्स कुमारस्स रायाभिसेयं उवट्ठवेह । ते वि तहेव उवट वेंति जाव' अभिसिंचति जाव पव्वाइए। ४७. तए णं जियसत्तू रायरिसी' एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता', बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता जाव सिद्धे ॥ ४८. तए णं सुबुद्धी एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बहुणि वासाणि सामण्णपरियाग पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता जाव' सिद्धे ॥ निक्खेव-पदं ४६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं बारसमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । -त्ति बेमि। वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा मिच्छत्त-मोहियमणा, पावपसत्ता वि पाणिणो विगुणा। फरिहोदगं व गुणिणो, हवंति वरगुरुपसायानो ॥१॥ १. ना० ११५।६३,६४। २. अभिसिंचंति (क, ख, ग)। ३. ना० ११५६५-६६ । ४. X (क, ख, ग)। ५. अहिज्जिऊण (ख)। ६. ना० १।५।१०५। ७. ना० ११५॥१०५ । Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं बारसमस्स नायज्झयणस्स श्रयमठ्ठे पण्णत्ते, तेरसमस्स णं भंते ! नायज्भयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं 'रायगिहे नयरे । गुण सिलए चेइए । समोसरणं" । परिसा निग्गया || ३. तेरसमं अज्झयणं मंडुक् ५. गोयमस्स पुच्छा-पदं ४. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - होणं भंते ! ददुरे देवे महिड्डिए महज्जुईए महब्बले महायसे महासोक्खे महाणुभागे ॥ दुरसणं भंते ! देवरस सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभावे गए ? कहिं विट्ठे ? गोमा ! सरीरं गए सरीरं प्रणुपविट्ठे कूडागारदिट्ठतो ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सोहम्मे कप्पे ददुरवाडिसए विमाणे सभाए सुहम्मा ए ददुरंसि सीहासणंसि ददुरे देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहि अग्गमहिसीहि परिसाहि एवं जहा सूरियाभे जाव' दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ । इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं प्रोहिणा आभोएमाणे जाव' नट्टविहि उवदंसित्ता पडिगए, जहा - सूरिया || १. 'घ' प्रतौ अत्र विस्तृतः पाठो विद्यते । २. राय० सू० ७ । ३. ४. राय० सू० १२३ । राय० सू० ७-१२० । २३७ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ नायाधम्मकहामो ६. दगुरेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभावे किण्णा लद्धे ? किण्णा पत्ते ? किण्णा अभिसमण्णागए ? भगवनो उत्तरे ददुरदेवस्स नंदभव-पदं ७. एवं खलु गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। ८. तत्थ णं रायगिहे नंदे नाम मणियारसेट्ठी-अड्ढे दित्ते' । नंदस्स धम्मपडिवत्ति-पदं ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! समोसढे । परिसा निग्गया। 'सेणिए वि निग्गए। १०. तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी इमीसे कहाए लट्ठ समाणे पायविहारचारेणं' जाव' पज्जुवासइ ।। ११. नंदे मणियारसेट्ठी धम्म सोच्चा समणोवासए जाए। १२. तए णंऽहं रायगिहाओ पडिनिक्खंते बहिया जणवयविहारेणं विहरामि ।। मिच्छत्तपडिवत्ति-पदं १३. तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी अण्णया कयाइ असाहुदंसणेण य अपज्जुवासणाए य अणणुसासणाए य असुस्सूसणाए य सम्मत्तपज्जवेहि परिहायमाणेहि-परिहायमाणेहि मिच्छत्तपज्जवेहिं परिवड्डमाणेहिं-परिवड्डमाणेहि मिच्छत्तं विप्पडिवण्णे जाए यावि होत्था ॥ १४. तए णं नंदे मणियारसेट्ठी अण्णया कयाइ गिम्हकालसमयंसि जेट्टामूलंसि मासंसि अट्टमभत्तं परिगेण्हइ, परिगेण्हित्ता पोसहसालाए •पोसहिए बंभचारी उमुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भ संथारोवगए ° विहरइ ॥ पोक्खरिणी-निम्माण-पदं १५. तए णं नंदस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि तहाए छुहाए य अभिभूयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्थाधण्णा णं ते •ईसरपभियओ, संपुण्णा णं ते ईसरपभियओ, कयत्था णं ते १. पू०-राय० सू० ६६७ । ६. विहारं (ख)। २. पू०-ना० ११५७ । ७. X(क, ख, ग)। ३. सेणिए राया निग्गए (क); राया निग्गओ ८. सं० पा०—पोसहसालाए जाव विहरइ । (ख); राया निग्गए (ग)। ६. तण्हा (ग)। ४. पायचारेणं (क, ख, ग)। १०. सं० पा०-धण्णा णं ते जाव ईसरपभियओ। ५. उवा० ११२० । Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्झयणं (मंडुक्के) २३६ ईसरपभियो, कयपुण्णा णं ते ईसरपभियो, कयलक्खणा णं ते ईसरपभियो कयविभवा णं ते ° ईसरपभियो, जेसिं णं रायगिहस्स बहिया बहुप्रो वावीओ पोक्खरिणीप्रो' दीहियारो गुंजालियानो सरपंतियानो' सरसरपंतियानो, जत्थ णं बहुजणो 'हाइ य पियइ य' पाणियं च संवहइ। तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उदियम्मि सरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते सेणियं रायं आपुच्छित्ता रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभागे वेब्भारपव्वयस्स अदूरसामंते वत्थुपाढग-रोइयंसि भूमिभागंसि नंदं पोक्खरिणि खणावेत्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पोसहं पारेइ, पारेत्ता हाए कयबलिकम्मे मित्त-नाइ'- नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि ° संपरिवुडे महत्थं 'महग्धं महरिहं रायारिहं° पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ जाव' पाहुडं उवट्ठवेइ, उवट्ठवेत्ता एवं वयासी-इच्छामि णं सामी ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे रायगिहस्स बहिया 'उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे वेब्भारपव्वयस्स अदूरसामंते वत्थुपाढगरोइयंसि भूमिभागंसि नंदं पोक्खरिणि ° खणावेत्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया! १६. तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी सेणिएणं रण्णा अब्भणुण्णाए समाणे हट्टतुट्टे रायगिहं नगरं मज्झमज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता वत्थुपाढय-रोइयंसि भूमिभागंसि नंदं पोक्खरिणि खणावेउं पयत्ते यावि होत्था ।। १७. तए णं सा नंदा पोक्खरणी अणुपुव्वेणं खम्ममाणा-खम्ममाणा पोक्खरणी जाया यावि होत्था --चाउक्कोणा समतीरा अणुपुव्वं सुजायवप्पसीयलजला संछन्नपत्त-भिसमुणाला बहुउप्पल-पउम-कुमुद-नलिण-सुभग-सोगंधिय-पुंडरीय-महापुंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त-पप्फुल्लकेसरोववेयार परिहत्थ-भमंत-मत्तछप्पय" १. सं० पा०-पोक्खरिणीओ जाव : सरसर- ७. सं० पा०-बहिया जाव खणावेत्तए। पंतियाओ। ८. खणमाणा (घ)। २. हायइ पियइ (क, ख) । ६. चउक्कोणा (क)। ३. ना० ११११२४ । १०. संच्छन्न (क, ख, ग, घ)। ४. सं० पा०-नाइ जाव संपरिबुडे । ११. विस० (ख, ग)। ५. सं० पा०-महत्थं जाव पाहुडं रायारिहं १२. पुप्फफलकेसरोविया (क); प्फुल्लप्पलकेसरो (क, ख, ग, घ); पाहुडं रायारिहं- वचिया (ख); फुल्लकेसरोववेया (घ)। अत्र लिपिदोषेण व्यत्ययो जात इति संभाव्यते। १३. महच्छप्पय (क)। ६. ना० ११५।२० । Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० नायाधम्मकहानी अणेग-सउणगण-मिहुण-वियरिय-सदुन्नइय-महुरसरनाइया पासाईया दरिस णिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ वणसंड-पदं १८. तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी नंदाए पोक्खरिणीए चउदिसिं चत्तारि वणसंडे रोवावेइ ॥ १६. तए णं ते वणसंडा अणुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविज्जमाणा संवड्विज्ज माणा य वणसंडा जाया-किण्हा जाव' महामेह-निउरंबभूया पत्तिया पुप्फिया•फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा सिरीए अईव ° उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ चित्तसभा-पदं २०. तए णं नंदे मणियारसेट्ठो पुरथिमिल्ले वणसंडे एगं महं चित्तसभं कारावेइ अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ" पासाईयं दरिसणिज्ज अभिरूवं पडिरूवं । तत्थ णं बहणि किण्हाणि य नीलाणि य लोहियाणि य हालिद्दाणि य° सुक्किलाणि य कटकम्माणि य पोत्थकम्माणि य चित्त-लेप्प-गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमाइं" उवदंसिज्जमाणाइं-उवदंसिज्जमाणाई चिटुंति । तत्थ णं बहूणि आसणाणि य सयणाणि य अत्थुय-पच्चत्थुयाई चिट्ठति।। तत्थ णं बहवे 'नडा य नट्टा य •जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग-कहग-पवग-लासगआइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्ल-तुंबवीणिया य° दिन्नभइ-भत्त-वेयणा तालायरकम्मं करेमाणा-करेमाणा विहरंति । रायगिहविणिग्गो एत्थ" णं बहुजणो तेसु पुवन्नत्थेसु पासण-सयणेसु सण्णिसण्णो" य संतुयट्टो य सुयमाणो य 'पेच्छमाणो य२ 'साहेमाणो य'३ सुहंसुहेणं विहरइ ।। १. सदुनइय (क, ग); सद्दनइय (ख, घ)। ७. संघातिम (क, ख, ग, घ)। असौ पाठः जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति (मुद्रित प्रति सू० ८. X(ग, घ)। ७४) राधारेण स्वीकृतः । ६. सं० पा०-नद्रा य जाव दिन्न । २. ना० १७।१३ । १०. तत्थ (क)। ३. सं० पा०-पुफिया जाव उवसोभेमाणा। ११. उच्चत्थुयसंनिसण्णो (क)। ४. करावेइ (ख)। १२. X(ख, ग, घ)। ५. पू०-ना० ११११८६ । १३. ४ (ख, ग); सोहेमाणो य (घ)। ६. सं० पा०—किण्हाणि य जाव सक्किलाणि । Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अभयणं (मंडुक्के) महाणसाला पद २१. तए णं नंदे मणियारसेट्ठी दाहिणिल्ले वणसंडे एगं महं महाणससालं कारावेइअगखंभसयसणिविट्ठे जाव' पडिरूवं । तत्थ णं बहवे पुरिसा दिन्नभइ भत्तवेयणा' विउलं असण- पाण- खाइम - साइमं उबक्खडेंति, बहूणं समण-माहणअतिहि-किवण-वणी गाणं परिभाएमाणा - परिभाएमाणा विहति ॥ तिगिच्छियसाला-पदं २२. तए णं नंदे मणियारसेट्ठो पच्चत्थिमिल्ले वणसंडे एवं महं तिगिच्छियसालं कारावेइ' – अणेगखंभसयसण्णिविट्ठे जाव' पडिरूवं । तत्थ णं बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ताय 'जाणुया य जाणुयपुत्ता य" कुसला य कुसलपुत्ता य दिन्नभइ - भत्त-वेणा बहूणं वाहियाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य तेइच्छकम्मं करेमाणा-करेमाणा विहरंति । अण्णे य एत्थ बहवे पुरिसा दिन्नभइ - भत्त-वेणा तेसिं बहूणं वाहियाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य श्रोसह-भेसज्ज-भत्तपाणेणं पडियारकम्मं करेमाणा विहति ॥ श्रलंकारियसभा-पदं २३. तए णं नंदे मणियारसेट्ठी उत्तरिल्ले वणसंडे एगं महं प्रलंकारियसभ कारावेइ——- प्रणेगखंभसयसण्णिविट्ठे जाव पडिरूवं । तत्थ णं बहवे प्रलंकारियमस्सा दिन्नभइ भत्त-वेयणा बहूणं समणाण य प्रणाहाण य गिलाणाण य रोगियाण यदुब्बाण य अलंकारियकम्मं करेमाणा - करेमाणा विहरति ॥ नंदस्स पसंसा-पदं २४. तए णं तीए नंदाए पोक्खरिणीए बहवे सणाहा य प्रणाहा य पंथिया य पहिया रोडिया' तणहारा य पत्तहारा य कट्ठहारा य - अप्पेगइया व्हायंति अप्पेगइया पाणियं पियंति अप्पेगइया पाणियं संवहंति" अप्पेगइया विसज्जियसेयजल-मल - परिस्सम - निद्द - खुप्पिवासा सुहंसुहेणं विहरति । रायगिहविणिग्गश्रो" १. ना० १1१1८६ । २. दिन्नभय ० ( ग ) सर्वत्र । ३. कारेइ (क, ग, घ) । ४. ना० १।१।८६ । ५. X ( क ) । ६. करेइ ( ख, ग ); कारेति (घ ) । २४१ ७. ना० ११८६ | ८. ६. करोडिकारवा ( ख, ग ) । १०. संवाहति (क, ख ) । ११. रायगनिग्गओ ( ख, ग ) । महणाय सनाहाण य ( क्व० ) । Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ नायाधम्मकहाओ वि यत्थ' बहुजणो 'कि ते" जलरमण-विविहमज्जण-कयलिलयाहरय'-कुसुमसत्थरय-अणेगसउणगण-कयरिभियसंकुलेसु सुहंसुहेणं अभिरममाणो-अभिरम माणो विहरइ ॥ २५. तए णं नंदाए पोक्खरिणीए' बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य अण्णमण्णं एवं वयासी-धण्णे णं देवाणु प्पिया ! नंदे मणियारसेट्टी, कयत्थे •णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारसेट्ठी, कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारसेट्ठी, कयपुण्णे णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारसेट्टी, कया णं लोया ! सुलद्धे माणुस्सए ° जम्मजीवियफले [नंदस्स मणियारस्स?] ? जस्स णं इमेयारूवा नंदा पोक्खरिणी चाउक्कोणा जाव पडिरूवा जाव" रायगिहविणिग्गयो जत्थ बहुजणो आसणेसु य सयणेसु य सण्णिसण्णो य संतुयट्टो य पेच्छमाणो य साहेमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ। तं धन्ने णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारसेट्टी, कयत्थे णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारसेट्ठी, कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारसेट्ठी, कयपुण्णे णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारसेट्टी, कया णं लोया ! सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले नंदस्स मणियारस्स ? २६. तए णं रायगिहे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ - धन्ने णं देवाणप्पिया ! नंदे मणियारसेट्ठी सो चेव गमओ जाव सुहंसुहेणं विहरइ ॥ २७. तए णं से नंदे मणियारसेट्टी बहुजणस्स अंतिए एयमद्रं सोच्चा निसम्म हदतटे __ 'धाराहत - कलंबगं विव' १२ समूसवियरोमकूवे परं सायासोक्खमणुभवमाणे विहरइ ॥ नंदस्स रोगुप्पत्ति-पदं २८. तए णं तस्स नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स अण्णया कयाइ सरीरगंसि सोलस रोगा यंका" पाउब्भूया। तं जहा १. जत्थ (क, ख); तत्थ (घ)। २. किं तत् 'यत् करोति' इति शेषः । ३. घरय (क)। ४. अभिरममाणे (क)। ५. पुक्खरणीए (क); पोक्खरणीए (ख)। ६. वा (क)। ७. धण्णेसि (क, घ)। ६. सं० पा०-कयत्थे जाव जम्म° । ६. ना० १।१३।१७। १०. पडिरूवा जस्स णं पुरथिमिल्ले तं चेव ___ चउसु वि वणसंडेसु (क, ख, ग, घ)। ११. ना० १।१३।१८-२४ । १२. सं० पा.-सिंघाडग जाव बहुजणो। १३. धाराहयकलंबकं पिव (ख, ग); ० कयंबक पिव (घ)। १४. रोगातका (क); रोयायंका (ख)। Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्झयण (मंडुक्के) गाहा सासे कासे जरे दाहे, कुच्छिसूले भगंदरे । अरिसा' अजीरए दिट्ठी-मुद्धसूले' अकारए । अच्छिवेयणा कण्णवेयणा कंडू दउदरे' कोढे ॥१॥] तिगिच्छा-पदं २६. तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी सोलसहिं रोयायंकेहिं अभिभूए समाणे कोडंबिय पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! रायगिहे नयरे सिंघाडग'- तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह° पहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह---एवं खलु देवाणुप्पिया ! नंदस्स मणियारस्स सरीरगंसि सोलस रोयायंका पाउब्भूया। [तं जहा–सासे जाव कोढे'] । तं जो णं इच्छइ देवाणुप्पिया ! विज्जो वा विज्जपुत्तो वा जाणो वा जाणुपुत्तो वा कुसलो वा कुसलपुत्तो वा नंदस्स मणियारस्स तेसि च णं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंक उवसामित्तए, तस्स णं नंदे मणियारसेट्ठी विउल अत्थसंपयाणं दलयइ त्ति कटु दोच्चपि तच्चपि घोसणं' घोसेह, घोसेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तेवि तहेव पच्चप्पिणंति ॥ ३०. तए णं रायगिहे नगरे इमेयारूवं घोसणं सोच्चा निसम्म बहवे वेज्जा य वेज्ज पत्ता य जाणया य जाणुयपुत्ता य कुसला य° कुसलपुत्ता य सत्थकोसहत्थगया य सिलियाहत्थगया य गलियाहत्थगया य प्रोसह-भेसज्जहत्थगया य सहिसएहि गिहेहितो निक्खमंति, निक्खमित्ता रायगिहं मझमझेणं जेणेव नंदस्स मणियारसे द्विस्स गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता नंदस्स मणियारसे ट्रिस्स सरीरं पासंति, पासित्ता तेसि रोगायंकाणं नियाणं पुच्छंति, पुच्छित्ता नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स बहूहि उव्वलणेहि य उव्वट्टणेहि य सिणेहपाणेहि" य वमणेहि य विरेयणेहि य सेयणेहि य अवदहणेहि य अवण्हावणेहि य अणुवासणाहि" य वत्थिकम्मेहि य निरूहेहि" य सिरावेहेहि य तच्छणाहि य पच्छणाहि य १. आयारो ६।८ सूत्रे षोडशरोगविवरणे भिन्न: ६. सरीरं हस्स (क) । क्रमो विद्यते । १०. उज्वेलणेहि (ग)। २. मुद्धिसूले (क); पुट्ठसूले (ग)। ११. सिणेहि य पाणेहि य (ख)। ३. दओदरे (ख)। १२, अवद्धाणाहि (क); अववहणेहि (ख)। ४ असो कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । अवद्दवेयणाहि (ग)।। ५. सं० पा०—सिंघाडग जाव पहेसु । १३. अवण्हावणाहि (क); अवण्हाणेहि (ख, घ)। ६. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांश: प्रतीयते। १४. वासणेहि (घ)। ७. उग्घोसणं (क) १५. निरूवेहि (ख)। ८. सं० पा०-वेज्जा य जाव कुसलपुत्ता । Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ नायाधम्मकहाओ सिरावत्थीहि' य तप्पणाहि य पुडवाएहि य 'छल्लीहि य वल्लीहि य मूलेहि य कंदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य अोसहेहि य भेसज्जेहि य इच्छंति तेसि सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंक' उवसामित्तए, नो चेव णं संचाएंति उवसामेत्तए । ३१. तए णं ते वहवे वेज्जा' य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य कुसलपुत्ता य जाहे नो संचाएंति तेसि सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंक उवसामित्तए, ताहे संता तंता परितंता' निविण्णा समाणा जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं° पडिगया । भगवनो उत्तरे ददुरदेवस्स दद्दुरभव-पदं ३२. तए णं नंदे मणियारसेट्ठी तेहिं सोलसेहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे नंदाए पुक्खरिणीए मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे तिरिक्खजोणिएहिं निबद्धाउए बद्धपएसिए अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे कालमासे कालं किच्चा नंदाए पोक्खरिणीए ददुरीए कुच्छिसि ददुरत्ताए उववण्णे ॥ ३३. तए णं नंदे' ददुरे गब्भाओ विणिमुक्के समाणे उम्मुक्कवालभावे विण्णय परिणयमित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते नंदाए पोक्खरिणीए अभिरममाणे-अभिरममाणे विहरइ ॥ ३४. तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य अण्णमण्णं" एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइधन्ने णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारे, जस्स णं इमेयारूवा नंदा पुक्खरिणी चाउक्कोणा जाव पडिरूवा॥ दद्दुरस्स जाइसरण-पदं ३५. तए णं तस्स ददुरस्स तं अभिक्खणं-अभिक्खणं बहुजणस्स अंतिए एयमद्रं १. सिरावेहेहि (क); अवरहसिरावत्थीहि ७. नंदे जीवे (घ) । (ख); सिरावेढेहि य (ग)। ८. ददुरीए (घ)। २. छल्लीहि य (ख); वल्लीहि य छल्लीहि य ६. उमुक्क० (ख, घ)। (घ)। १०. विण्णाय ° (घ)। ३. य आसज्जेहि य (क, ग); आइज्जेहि य ११. अण्णमण्णस्स (क, ग, घ) । (घ)। १२. ना० १।१३।१७।। ४. रोगातंक (क, ग)। १३. पडिरूवा जस्स णं पुरथिमिल्ले वणसंडे ५. विज्जा (क, ख, ग)। चित्तसभा अणेगखंभ(क, ख, ग, घ); पू०६. सं० पा०-परितंता जाव पडिगया। ना० १।१३।१८-२४ । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं प्रज्झयणं (मंडुक्के) २४५ सोच्चा निसम्म' इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-कहिं मन्ने मए इमेयारूवे सद्दे निसंतपुवेत्ति कटु सुभेणं परिणामेणं •पसत्थेणं अज्झवसाणेणं लेसाहिं विसुज्जमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सण्णिपुव्वे° जाईसरणे समु प्पण्णे, पुव्वजाइं सम्म समागच्छइ ॥ ३६. तए णं तस्स ददुरस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं इहेव रायगिहे नयरे नंदे नाम मणियारे-अड्ढे । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । तए णं मए समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वाइए सत्तसिक्खावइए'- 'दुवालसविहे गिहिधम्मे ° पडिवण्णे । तए णं अहं अण्णया कयाइ असाहुदंसणेण य जाव" मिच्छत्तं विप्पडिवण्णे। तए णं अहं अण्णया कयाइं गिम्हकालसमयंसि जाव पोसह उवसंपज्जित्ता ण विहरामि । एवं जहेव चिंता। आपुच्छणा। नंदापुक्खरिणी। वणसंडा । सभायो। तं चेव सव्वं जाव' नंदाए ददुरत्ताए उववण्णे । तं अहो णं अहं अधण्णे अपुण्णे' अकयपुण्णे निग्गंथाप्रो पावयणायो नटे भट्ठ परिब्भटे । तं सेयं खलु ममं सयमेव पुव्वपडिवण्णाइं पंचाणुव्वयाई उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तएएवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पुवपडिवण्णाइं पंचाणुव्वयाई आरुहेइ, पारुहेत्ता इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पइ मे जावज्जीवं छटुंछट्ठणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणस्स विहरित्तए, छट्ठस्स वि य ण पारणगंसि कप्पइ मे नंदाए पोक्खरिणीए परिपेरतेसु फासुएणं ण्हाणोदएण उम्मद्दणालोलियाहि" य५ वित्ति कप्पेमाणस्स विहरित्तए-इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ, जावज्जीवाए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ ।। भगवनो रायगिहे समवसरण-पदं ३७. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! गुणसिलए समोसढे । परिसा निग्गया ।। १. निसम्मा (ख, ग)। १०. अहन्ने (ख, ग)। २. से कहिं (क्व०)। ११. अकयत्थे (घ)। ३. ° पुव्व (ख)। १२. पंचाणुव्वयाई सत्तसिक्खावयाई (घ)। ४. स० पा०—परिणामेण जाव जाईसरणे । १३. आरुहइ (ख)। ५. पू०-ना० ११५७ । १४. उम्मद्दणो° (क, ख, ग); उम्मद्दणाई सं० पा०—सिक्खावइए जाव पडिवण्णे । लोलियाहि (घ)। ७. ना. १।१३।१३ । १५. 'मट्टियाए' इति शेषः। ८. ना० १११३।१४।। १६. सं० पा०-छटुंछ?णं जाव विहरइ । ६. ना० १११३।१५-३२ । Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ नायधम्मकाहाओ ३८. तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो ‘ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य' अण्णमण्ण एवमाइक्खइ-एवं खलु° समण भगवं महावीरे इडेव गणसिलए चेहए समोसढे। तं गच्छामो णं देवाणप्पिया। समणं भगवं महावीरं वंदामो' •णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो। एयं णे इहभवे परभवे य हियाए 'सुहाए खमाए निस्सेयसाए ° प्राणुगामियत्ताए भविस्सइ ॥ दद्दुरस्स समवसरणं पइ गमण-पदं ३६. तए णं तस्स ददुरस्स बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु समणे भगवं महावीरे समोसढे । तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि'- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता नंदाग्रो पोक्खरिणीयो सणिय-सणियं पच्चुत्तरेइ', जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताए उक्किट्टाए ददुरगईए वीईव यमाणे-वीईवयमाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। ४०. इमं च ण से णिए राया भंभसारे हाए जाव' सव्वालंकारविभूसिए हत्थिखंध वरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामरेहि य उद्धवमाणेहि महयाहय-गय-रह-भड-चडगर-[कलियाए ?] चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे मम पायवंदए हव्वमागच्छइ ॥ ददुरस्स मच्च-पदं ४१. तए णं से ददुरे सेणियस्स रण्णो एगेणं अासकिसोरएणं वामपाएणं अक्कते समाणे अंतनिग्घाइए कए यावि होत्था ॥ ४२. तए णं से दद्दुरे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमित्ति कटु एगंतमवक्कमइ, करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी-नमोत्थु णं अरहताणं जाव" सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवनो महावीरस्स जाव" सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं १. व्हाइ ३ (क, ख, ग); ण्हाणे य ३ (घ)। ६. उत्तरेइ, २ (ख)। ___ असौ पाठः ३४ सूत्रेण पूरितः । ७. उक्किट्ठाए ५ (क, ख)। २. सं० पा० -अण्णमण्णं जाव समणे । ८. भिभिसारे (क); भिभसारे(ख); भिभासारे ३. सं० पा०-वंदामो जाव पज्जुवासामो। ४. हिययाए (क, ख, ग) सं० पा०-हियाए ६. ना० ११५१। ___जाव आणुगामियत्ताए। १०,११. ओ० सू० २१ । ५ पू० --ना० १११३॥३७ । Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ तेरसम अज्झयणं (मंडुक्के) संपाविउकामस्स । पुविपि य णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए', 'थूलए मुसावाए पच्चक्खाए, थूलए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए, थलए मेहणे पच्चक्खाए°, थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए। तं इयाणि पि तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवं, सव्वं असण-पाण-खाइम-साइमं पच्चक्खामि जावज्जीवं । जंपि य इमं सरीरं इटुं कंतं जाव' मा णं विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु एयंपि य णं चरिमेहिं ऊसासेहि वोसिरामि त्ति कटु ॥ ४३. तए णं से दद्दुरे कालमासे कालं किच्चा जाव' सोहम्मे कप्पे ददुरवडिसए विमाणे उववायसभाए ददुरदेवत्ताए उववण्णे । एवं खलु गोयमा ! ददुरेणं सा दिव्वा देविड्ढी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया ॥ ४४. ददुरस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता । से णं ददुरे देवे महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ 'मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिइ। निक्खेव-पदं ४५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा संपन्नगुणो वि जो', सुसाहु-संसग्गवज्जियो पायं। पावइ गुणपरिहाणि, ददुरजीवोव्व मणियारो ॥१॥ अथवा तित्थयर-वंदणत्थं, चलिओ भावेण पावए सग्गं । जह ददुरदेवेणं, पत्तं वेमाणिय-सुरत्तं ॥२॥ १. सं० पा०-पच्चक्खाए जाव थूलए। २. ना० १।१।२०६। ३. ना० १११।२११ । १५. ना० ११ ४. सं० पा०-बूझिहिइ जाव अंतं । ५. ना० ११११७ । ६. जिप्रो (ख, ग)। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोदसमं अज्झयणं तेयली उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं तेरसमस्स नायज्झ यणस्स अयम? पण्णत्ते, चोद्दसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अट्रे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं तेयलिपुरं नाम नयरं । पमयवणे उज्जाणे । कणगरहे राया ॥ ३. तस्स णं कणगरहस्स पउमावई देवी ॥ ४. तस्स णं कणगरहस्स तेयलिपुत्ते नामं अमच्चे–'साम-दंड-भेय-उवप्पयाण नीति-सूपउत्त-नयोवहण्ण' विहरइ।। ५. तत्थ णं तेयलिपुरे कलादे नाम मूसियारदारए होत्था---अड्ढे जाव अपरिभूए। ६. तस्स णं भद्दा नाम भारिया ॥ ७. तस्स णं कलायस्स मूसियारदारगस्स धूया भद्दाए अत्तया पोट्टिला नाम दारिया होत्था--रूवेण य जोव्वणेण' य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठ सरीरा॥ पोट्टिलाए कोडा-पदं ६. तए णं सा पोट्टिला दारिया अण्णया कयाइ हाया सव्वालंकारविभूसिया चेडिया-चक्कवाल-संपरिवुडा उप्पि पासायवरगया आगासतलगंसि कणग'तिदूसएणं कीलमाणी-कीलमाणी विहरइ । १. ना० १।१७। ४. ना० ११५७ । २. सं० पा०-साम-दंड ° । असी अपूर्णः ५. अत्तिया (क, ख, ग)। __पाठः 'जाव' आदिपूर्तिसंकेत-रहितोस्ति । ६. X (ग)। ३. पू०-ना० १११।१६ । ७. कणगमयेण (घ)। २४८ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ पोइसमें प्रण्झयणं (तैयली) तेयलिपुत्तस्स प्रासत्ति-पदं ६. इमं च णं तेयलिपुत्ते अमच्चे ण्हाए प्रासखंधवरगए महया-भड-चडगर-पासवाह णियाए निज्जायमाणे कलायस्स मूसियारदारगस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ॥ १०. तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे मूसियारदारगस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे वीईवयमाणे पोट्टिलं दारियं उप्पि आगासतलगंसि कणग-तिंदूसएणं कीलमाणि पासइ, पासित्ता पोट्टिलाए दारियाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य अज्झोववण्णे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! कस्स दारिया कि नामधेज्जा वा ? ११. तए णं कोडुंबियपुरिसा तेयलिपुत्तं एवं वयासी-एस णं सामी ! कलायस्स मूसियारदारयस्स धूया भद्दाए अत्तया पोट्टिला नाम दारिया- रूवेण य' •जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठ ° सरीरा ॥ पोट्टिलाए वरण-पदं १२. तए णं से तेयलिपुत्ते आसवाहणियाओ पडिणियत्ते समाणे अभित रठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! कलायस्स मूसियारदारयस्स धूयं भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं मम भारिय त्ताए वरेह ॥ १३. तए णं ते अभितरठाणिज्जा पुरिसा तेयलिणा एवं वुत्ता समाणा हतुवा करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु "एवं सामी'! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तेयलिस्स अंतियानो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता° जेणेव कलायस्स मूसियारदारयस्स गिहे तेणेव उवागया॥ १४. तए णं से कलाए मूसियारदारए ते पुरिसे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतुढे आसणानो अब्भुढेइ, अब्भुढेत्ता सत्तट्ठपयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता आसणेणं उवणिमंते इ, उवणिमंतेत्ता आसत्थे वीसत्थे सुहासणवरगए एवं वयासी-संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! किमागमणपओयणं ? १५. तए णं ते अभितरठाणिज्जा पुरिसा कलायं मूसियारदारयं एवं वयासी अम्हे णं देवाणुप्पिया ! तव धूयं भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स भारियत्ताए वरेमो। तं जइ णं जाणसि' देवाणुप्पिया ! जुत्तं वा पत्तं वा ३. जाणासि (ग)। १. सं० पा०-रूवेण य जाव सरीरा। २. सं० पा०-करयल तहत्ति जेणेव । Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० नायाधम्मकहाओ सलाहणिज्ज वा सरिसो वा संजोगो वा दिज्जउ णं पोट्टिला दारिया तेयलिपुत्तस्स । तो' भण देवाणुप्पिया ! किं दलामो सुकं ।। १६. तए णं कलाए मूसियारदारए ते अभितरठाणिज्जे पुरिसे एवं वयासी-एस चेव णं देवाणुप्पिया ! मम सुंके जण्णं तेयलिपुत्ते मम दारियानिमित्तणं अणुग्गहं करेइ । ते अधिभतरठाणिज्जे पुरिसे विपुलेणं असण-पाण-खाइमसाइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ । १७. [तए णं ते अभितरठाणिज्जा पुरिसा ?] कलायस्स मूसियारदारयस्स गिहाम्रो पडिनियत्तंति', जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे तेणेव उवागच्छंति, उवा गच्छित्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं एयमटुं निवेइंति' । पोट्टिलाए विवाह-पदं १८. तए णं कलाए मूसियारदारए अण्णया कयाइं सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त मुहत्तंसि पोट्टिलं दारियं ण्हायं सव्वालंकारविभूसियं सीयं दुरुहेत्ता मित्त-नाइ - •नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिवुडे सानो गिहाम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सव्विड्ढीए तेयलिपुरं नयरं मज्झमज्झणं जेणेव तेयलिस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स सयमेव भारियत्ताए दलयइ ।। १६. तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं दारियं भारियत्ताए उवणीयं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्टे पोट्टिलाए सद्धि पट्टयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सेयापीएहि कलसेहिं अप्पाणं मज्जावेइ, मज्जावेत्ता अग्गिहोम कारेइ, कारेत्ता पाणिग्गहणं करेइ, करेत्ता पोट्टिलाए भारियाए" मित्त-नाइ-नियग-सयण-सबाध°-पारयण विउलेणं असण-पाणखाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ- गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ २०. तए णं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलाए भारियाए अणुरत्ते अविरत्ते उरालाई •माण स्सगाइं भोगभोगाइं भुजमाणे ° विहरइ ।। १. ता (क, घ)। ७. सं० पा०-नाइ०। २. सुक्कं (घ)। ८. पू०-ना० ११११३३ । ३. जाव (ख, घ)। ६. सेयपीएहि (ग)। ४. कोष्ठकान्तर्गतः पाठः प्रतिषु नोपलभ्यते। १०. भारियाए सद्धिं (घ)। ५. नियत्तंति २ (क, ख, ग); पडिनिक्खमइ ११. सं० पा०-नाइ जाव परियणं । (घ)। १२. सं० पा०-वत्थ जाव पडिविसज्जेइ । ६. निवेयंति (ख); निवेत्तेति (ग)। १३. सं० पा०-उरालाइं जाव विहरइ । Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौद्द समं अज्झयणं (तैयली) २५१ कणगरहस्स रज्जासत्ति-पदं २१. तए णं से कणगरहे राया रज्जे य रट्टे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य 'पुरे य" अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइ-अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियानो छिदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलियाओ छिदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिदइ, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिदइ, अप्पेगइयाणं° नासापुडाइं कालेइ, अप्पेगइयाणं अंगोवंगाइं वियत्तेइ ॥ पउमावईए अमच्चेण मंतणा-पदं २२. तए णं तीसे पउमावईए देवीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु कणगरहे राया रज्जे य' 'रटे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्ण जाए, जाए पुत्ते वियंगेइअप्पेगइयाणं हत्थंगुलियानो छिदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुटुए छिदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलियानो छिदइ,अप्पेगइयाणं पायंगुटुए छिदइ, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीनो छिदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाइं फालेइ, अप्पेगइयाणं ° अंगमंगाई वियत्तेइ । तं जइ णं अहं दारयं पयायामि, सेयं खलु मम तं दारगं कणगरहस्स रहस्सिययं चेव सारवखमाणीए संगोवेमाणीए विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य 'रटे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइ-अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियाओ छिदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगू?ए छिदइ, अप्पेगइयाणं पायंगलियानो छिदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिदइ, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाई फालेइ, अप्पेगइयाणं अंगोवंगाई वियत्तेइ । तं जद्द णं अहं देवाणुप्पिया ! दारगं पयायामि, तए णं तुम कणगरहस्स रहस्सिययं चेव अणुपुत्वेणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे संवड्ढेहि। तए णं से १. x (क, ख, ग, घ)। १।१।१६ सूत्रवद् अंगमंगाई। __ अत्रापि 'पुरे य' इति पाठो युज्यते । ५. वियंगेइ (क, ख, ग, घ); २१ सूत्रानुसारेण २. सं० पा० – एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्ठए अत्र 'वियत्तेइ' त्ति पाठेन भवितव्यम् । वि कण्णसक्कुलीयो वि नासापुडाइं। अतोऽस्माभिः स एव स्वीकृतः । ३. वियंगेइ (क, घ)। ६. रहस्सिगतं (क); रहसिययं (ख, ग)। ४. सं० पा०-रज्जे य जाव वियंगेइ जाव ७. सं० पा०-रज्जे य जाव वियत्तेइ । Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ errori दारए उम्मुक्कबालभावे' विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते 'तव मम य" भिक्खाभायणे भविस्सइ ॥ २३. तए णं से तेयलिपुत्ते श्रमच्चे पउमावईए देवीए एयमट्ठे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता पडिगए ॥ २५२ अवच्च परिवत्तण-पदं २४. तए णं पउमावई देवी पोट्टिला य ग्रमच्ची सममेव गव्भं गेहंति, सममेव परिवहति ॥ २५. तए णं सा पउमावई देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव' पियदंसणं सुरूवं दारगं पयाया । जं रर्याणि च णं पउमावई देवी दारयं पयाया तं यणि चणं पोट्टिला विश्रमच्ची नवण्हं मासाणं विणिहायमावन्नं दारियं पयाया || २६. तए णं सा पउमावई देवी प्रम्मधाई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह तुम्मो ! यलिपुत्तं रहस्सिययं चैव सद्दावेहि || २७. तए णं सा अम्मधाई तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता अंतेउरस्स अवदारेणं' निग्गच्छर, निग्गच्छित्ता जेणेव तेयलिस्स गिहे जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु° एवं वयासी– एवं खलु देवाणुप्पिया ! पउमावई देवी सहावेइ || २८. तए णं तेयलिपुत्ते श्रम्मधाईए अंतिए एगम सोच्चा हट्टतुट्ठे अम्मधाईए सद्धि सा गिहाम्रो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता अंतेउरस्स ग्रवदारेणं रहस्सिययं चेव प्रणुष्पविस, अणुप्पविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! जं मए कायव्वं ॥ २६. तए णं पउमावई देवी तेयलिपुत्तं एवं वयासी एवं खलु कणगरहे राया जाव " पुत्ते वियंगे | ग्रहं च णं देवाणुप्पिया ! दारणं पयाया । तं तुमं णं देवाणुपिया ! एवं दारगं गण्हाहि जाव" तव मम य भिक्खाभायणे" भविस्सइत्ति कट्टु तेयलिपुत्तस्स हत्थे दलयइ ॥ १. सं० पा० - उम्मुक्कबालभावे जाव जोब्वणगणुत्ते । २. तव य मम य ( क ) ; ३. भिक्खायभातणे ( ग ) । ४. ओ० सू० १४३ । ५. रहस्सियं ( क ग ) । ६. अवद्दारेण ( ग ) । 0 तव मम ( ग, घ ) । ७. सं० पा० – करयल जाव एवं । ८. सं० पा०—करयल जाव एवं । ६. देवाणु प्पिए (घ ) । १०. ना० १।१४।२१ । ११. ना० १।१४।२३ । १२. भिक्खायभायणे ( ग ) । Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोद्दसमं अज्झयणं (तेयली) २५३ ३०. तए णं तेयलिपुत्ते पउमावईए हत्थानो दारगं गेण्हइ, उत्तरिज्जेणं पिहेइ, अंतेउरस्स रहस्सिययं अवदारेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव पोट्टिला भारिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोट्टिलं एवं वयासीएवं खलु देवाणुप्पिए ! कणगरहे राया जाव' पुत्ते वियंगेइ । अयं च णं दारए कणगरहस्स पुत्ते पउमावईए अत्तए । तन्नं तुमं देवाणु प्पिए ! इमं दारगं कणगरहस्स रहस्सिययं चेव अणुपुव्वेणं सारक्खाहि य संगोवेहि य संवड्ढेहि य। तए ण एस दारए उम्मूक्कबालभावे तव य मम य पउमावईए याहारे भविस्सइ त्ति कट्ठ पोटिलाए पासे निक्खिवइ, निक्खिवित्ता पोटिलाए पासाग्रो तं विणिहायमावण्णियं दारियं गेण्हइ, गेण्हित्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ, पिहेत्ता अंतेउरस्स अवदारेणं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमावईए देवीए पासे ठावेइ जाव पडिनिग्गए। दारियाए मयकिच्च-पदं ३१. तए णं तीसे पउमावईए देवीए अंगपडियारियानो पउमावइं देवि विणिहाय मावण्णियं च दारियं पयायं पासंति, पासित्ता जेणेव कणगरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल' परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी –एवं खलु सामो ! पउमावई देवी मएल्लियं दारियं पयाया ॥ ३२. तए णं कणगरहे राया तीसे मएल्लियाए दारियाए नोहरणं करेइ, बहूई लोगियाइं मयकिच्चाई करेइ, करेत्ता कालेणं विगयसोए जाए । अमच्चपुत्तस्स उस्सव-पद ३३. तए णं से तेयलिपुत्ते कल्लं कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चारगसोहण' करेह जाव' ठिपडियं दसदेवसियं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ३४. तेवि तहेव करेंति, तहेव पच्चप्पिणंति ।। ३५. जम्हा णं अम्हं एस दारए कणगरहस्स रज्जे जाए तं होउ णं दारए नामेणं __ कणगज्झए जाव' अलंभोगसमत्थे जाए । पोट्टिलाए अप्पियत्त-पदं ३६. तए णं सा पोट्टिला अण्णया कयाइ तेयलिपुत्तस्स अणिट्ठा अकंता अप्पिया १. ना० १।१४।२१। ४. सं० पा०--चारगसोहणं जाव ठिइपडियं । २. संगोवाहि (ख, ग, घ)। ५. ना० ११११७६-७८ । ३. सं० पा०—करयल° । ६. ना० ११११८१-८८ । Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ नायाधम्मकहाओ अमणुण्णा अमणामा जाया यावि होत्था-नेच्छइ णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलाए नामगोयमवि सवणयाए, कि पुण दंसणं वा परिभोगं वा ? ३७. तए णं तीसे पोट्टिलाए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं तेयलिस्स पुदिव इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा आसि, इयाणि अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया। नेच्छइ णं तेयलिपुत्ते मम नाम गोयमवि सवणयाए, कि पुण दंसणं वा° परिभोगं वा ? [ति कट्ट ? ] श्रोहयमणसंकप्पा' 'करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ° झियायइ ।। पोट्टिलाए दाणसाला-पदं ३८. तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं अोहयमणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहिं अट्टज्माणो वगयं झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी-मा णं तुम देवाणुप्पिए! अोहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया झियाहि । तुम णं मम महाणसंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेहि, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-माहण'- अतिहि-किवण-०-वणीमगाणं देयमाणी य दवावेमाणी' य विहराहि ॥ ३६. तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तेणं अमच्चेणं एवं वुत्ता समाणी हट्ठा तेयलि पुत्तस्स एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता कल्लाकल्लि महाणसंसि विपुलं असण•पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-माहण-अतिहि किवण-वणीमगाणं देयमाणी य° दवावेमाणी य विहरइ॥ अज्जा-संघाडगस्स भिक्खायरियागमण-पदं ४०. तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयानो नाम अज्जानो इरियासमियानो •भासासमियानो एसणासमियामो आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमियानो उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमियानो मणसमियानो वइसमियानो कायसमियानो मणगुत्तानो वइगुत्तानो कायगुत्तानो गुत्ताग्रो गुत्तिदियालो° गुत्तबंभचारिणीप्रो बहुस्सुयानो बहुपरिवाराओ पुव्वाणुपुवि १. सं० पा०-नाम जाव परिभोगं । ६. देवावेमाणी (क)। २. सं० पा०-ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ। ७. समाणा (ख, ग)। ३. सं० पा०-ओहयमणसंकप्पं जाव झियाय- ८. सं० पाल-असणं जाव दवावेमाणी। माणि। ९. सं० पा०-इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभ४. सं० पा०-ओहयमणसंकप्पा । चारिणीयो। ५. सं० पा०-माहण जाव वणीमगाणं। Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोद्दसमं अज्झयणं (तेयली) २५५ चरमाणीओ जेणामेव तेयलिपुरे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं प्रोगिण्हंति, अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणीग्रो विहरंति॥ ४१. तए णं तासि सुव्वयाणं अज्जाणं एगे संघाडए पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ', 'बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, भायणवत्थाणि पडिलेहेइ, भायणाणि पमज्जेइ, भायणाणि प्रोग्गाहेइ, जेणेव सुव्वयानो अज्जारो तेणेव उवागच्छइ, सुव्वयानो अज्जाबो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामो णं तुब्भेहि अब्भणण्णाए तेयलीपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ।। ४२. तए णं ताो अज्जायो सुव्वयाहिं अज्जाहिं अब्भणुण्णाया समाणीयो सुव्वयाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिस्सयानो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंताए गतीए जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरो रिय सोहेमाणीयो तेयलीपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडमाणीओ तेयलिस्स गिहं अणुपविट्ठारो ॥ पोट्टिलाए अमच्चपसायोवाय-पुच्छा-पदं ४३. तए णं सा पोट्टिला तानो अज्जारो एज्जमाणोनो पासइ, पासित्ता हतुवा आसणाप्रो अब्भुढेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विपुलेणं असण-पाणखाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता एवं वयासी–एवं खलु अहं अज्जायो ! तेयलिपुत्तस्स अमच्चस्स पुदिव इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा आसि, इयाणि अणिट्ठा' अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया । नेच्छइ णं तेयलीपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण ° ईसणं वा परिभोगं वा ? तं तुब्भे णं अज्जाओ बहुनायाो बहुसिक्खियाओ' बहुपढियाओ बहूणि गामागरणगर - खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब- पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं° पाहिंडह, बहूणं राईसर- तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहपभिईणं ° गिहाई अणुपविसह । तं अत्थियाई भे अज्जायो ! केइ कहिंचि चुण्णजोए वा 'मंतजोगे वा कम्मणजोए' वा 'कम्मजोए वा" १. सं० पा०-करेइ जाव अडमाणीयो। २. सं० पा०-अणिट्ठा जाव दंसणं । ३. X (क)। ४. सं० पा०-गामागर जाव आहिंडह । ५. सं. पा.-राईसर जाव गिहाई। ६. x (ग)। ७. X (क, ख)। Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ नायाघम्मकहानो हियउड्डावणे वा काउड्डावणे' वा प्राभिओगिए वा वसीकरणे वा कोउयकम्मे वा भूइकम्मे वा मूले वा कंदे वा छल्ली वल्ली सिलिया वा गुलिया वा प्रोसहे वा भेसज्जे वा उवलद्धपुव्वे, जेणाहं तेयलिपुत्तस्स पुणरवि इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा भवेज्जामि? अज्जा-संघाडगस्स उत्तर-पदं ४४. तए णं तारो अज्जारो पोट्टिलाए एवं वुत्तानो समाणीओ दोवि कण्णे ठएंति', ठवेत्ता पोट्टिलं एवं वयासी-अम्हे णं देवाणुप्पिए ! समणोप्रो निग्गंथीयो जाव' गुत्तबंभचारिणीयो। नो खलु कप्पइ अम्हं एयप्पगारं कण्णेहिं वि निसामित्तए, किमंग पुण उवदंसित्तए वा आयरित्तए वा ?अम्हे णं तव देवाणुप्पिए! विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहिज्जामो । पोट्टिलाए साविया-पदं ४५. तए णं सा पोट्टिला तानो अज्जारो एवं वयासी-इच्छामि णं अज्जायो ! तुब्भं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्मं निसामित्तए । ४६. तए णं तायो अज्जासो पोट्टिलाए विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहेंति ॥ ४७. तए णं सा पोट्टिला धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठा एवं वयासी-सद्दहामि णं अज्जायो ! निग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह । इच्छामि णं अहं ___ तुब्भं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिए ! ४८. तए णं सा पोट्टिला तासिं अज्जाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव' गिहिधम्म पडिवज्जइ, तापो अज्जारो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ ।। ४६. तए णं सा पोट्टिला समणोवासिया जाया जाव' 'समणे निग्गंथे फासुएणं एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं प्रोसहभेसज्जेणं पाडिहारिए ण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं° पडिलाभेमाणी विहरइ ॥ पोट्टिलाए पव्वज्जा-पदं ५०. तए णं तीसे पोट्टिलाए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं १. कायउड्डावणे वा निण्हवणे वा (क, ख); ४. ना० १।१।१०१ । X (ग)। ५. ना० १११४१४७ । २. अंगुलियं ठावेंति (क्व); अंगुलियं छाएति ६. ना० ११५।४७ । सं० पा०-जाया जाव (क्व०)। पडिलाभेमाणी। ३. ना० १।१४।४०। Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोद्दसमं अज्झयण (तेपली) २१७ जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था --एवं खलु अहं तेयलिपुत्तस्स पुब्धि इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा आसि, इयाणि अणिट्ठा' 'अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया । नेच्छइ णं तेयलीपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा? तं सेयं खल मम सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए पव्वइत्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्रियम्मि सरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल'•परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट° एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए धम्मे निसंते', 'से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तं इच्छामि णं तुब्भेहिं ° अब्भणुण्णाया पव्वइत्तए॥ ५१. तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं एवं वयासी-एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! मुंडा पव्वइया समाणी कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जिहिसि । तं जइ णं तुमं देवाणुप्पिए ! ममं तारो देवलोगायो आगम्म केवलिपण्णत्ते धम्मे बोहेहि, तो हं विसज्जेमि। अह णं तुमं ममं न संबोहेसि, तो ते न विसज्जेमि ॥ ५२. तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तस्स एयमटुं पडिसुणेइ । तए ण तेयलिपुत्ते विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमतेइ जाव' सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पोट्टिलं हायं 'सव्वालंकारविभूसियं पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरुहित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिवडे सव्विड्डीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइय-रवेणं तेयलिपुरं मझमझेणं जेणेव सूव्वयाणं उवस्सए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाग्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता पोट्टिलं पुरनो कटु जेणेव सुव्वया अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम पोट्टिला भारिया इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा। एस णं संसारभउव्विग्गा" •भीया जम्मण-जर-मरणाणं इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए ५३. १. सं० पा०-अणिट्रा जाव परिभोगं । २. ना० १११।२४। ३. सं० पा०-करयल । ४. सं० पा०--निसंते जाव अब्भणण्णाया। ५. ता (क, ख, ग)। ६. सं० प्रा०-नाइ जाव आमंतेइ । ७. ना० ११७।६। ८. सं० पा०-ण्हायं जाव पुरिससहस्सवाहिणीयं । ६. सं० पा०-नाइ जाव संपरिबुडे । १०. ना० १११।३३। ११. सं० पा०-संसारभउन्विग्गा जाव पव्वइत्तए। Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ नायाधम्मक हाओ मुंडा भविता गारा अणगारियं पव्वइत्तए । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिसिणिभिक्खं । हासु मा पsिबंध करेहि ॥ ५४. तए णं सा पोट्टिला सुव्वयाहिं अज्जाहिं एवं वृत्ता समाणी हट्टा उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं श्रवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं श्रमुयइ, प्रमुत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, जेणेव सुव्वया प्रज्जाश्रो तेणेव उवागच्छइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - प्रालित्ते णं ग्रज्जा ! लोए एवं जहा देवाणंदा जाव' एक्कारस अंगाई ग्रहिज्जइ, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए प्रत्ताणं झोसेत्ता, सद्वि भत्ताइं प्रणसणेणं छेएत्ता आलोइय-पडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णय रेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा ॥ कणगरहस्त मच्च-पद ५५. तए णं से कणगरहे राया अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते यावि होत्था || ५६. तए णं ते ईसर - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि सेणावइ-सत्थवाहपभिइणो रोयमाणा कंदमाणा विलवमाणा तस्स कणगरहस्स सरीरस्स महया इड्ढी-सक्कार-समुदएणं ॰नीहरणं करेंति, करेत्ता ग्रण्णमण्णं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य जाव' मुच्छिए पुत्ते वियंगित्था | हे देवाप्पिया ! रायाहीणा रायाहिट्टिया रायाहीणकज्जा । श्रयं च णं तेयली श्रमच्चे कणगरहस्स रण्णो सव्वद्वाणेसु सव्वभूमियासु लद्धपच्चए दिन्नवियारे सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था । तं सेयं खलु अम्हं तेयलिपुत्तं श्रमच्चं कुमारं जाइत्तत्ति कट्टु श्रण्णमण्णस्स एयमट्ठे पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता जेणेव तेयलिपुत्ते श्रमच्चे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं एवं वयासी— एवं खलु देवाप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य जाव मुच्छिए पुत्ते वियंगित्था । हे णं देवाप्पिया ! रायाहीणा रायाहिट्टिया रायाहीणकज्जा । तुमं च णं देवाणुप्पिया ! कणगरहस्स रण्णो सव्वठाणेसु सव्वभूमियासु लद्धपच्चए दिन्नवियारे • रज्जधुराचितए होत्था । तं जइ णं देवाणुप्पिया ! प्रत्थि केइ १. भग० १५२, १५४, १५५ । २. सं० पा० - ईसर जाव नीहरणं । o ३. ना० १।१४ २१ । ४. वियंगेइ (क, ख, ग, घ ) । यद्यपि सर्वासु प्रतिषु अत्र 'वियंगे' इति पाठ: उपलभ्यते । अस्मिन्नेव सूत्रे 'वियंगित्था' इति पाठ: वर्तते, तदनुसारेण स एव पाठः अस्माभिरत्र स्वीकृत: । ५. सं० पा०-- रायाहीणा जाव रायाहीणकज्जा । ६. सं० पा० - सव्वठाणेसु जाव रज्जधुराचितए । Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५९ चोदसमं अज्झयणं (तेयली) कुमारे रायलक्खणसंपण्णे अभिसे यारिहे तण्णं तुमं अम्हं' दलाहि, जणं' अम्हे महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचामो ॥ कणगझयस्स रायाभिसेय-पदं ५७. तए णं तेयलिपुत्ते तेसि ईसरपभिईणं एयमढे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता कणगज्झयं कुमारं व्हायं जाव' सस्सिरीयं करेइ, करेत्ता तेसि ईसरपभिईणं उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! कणगरहस्स रण्णो पुत्ते पउमावईए देवीए अत्तए कणगज्झए नाम कुमारे अभिसेयारिहे रायलक्खणसंपण्णे, मए कणगरहस्स रण्णो रहस्सिययं संवड्डिए। एयं णं तुब्भे महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचह । सव्वं च से उट्ठाणपरियावणियं परिकहेइ ।। ५८. तए णं ते ईसरपभिइओ कणगज्झयं कुमारं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति ॥ ५६. तए णं से कणगज्झए कुमारे राया जाए-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर __ महिंदसारे जाव' रज्जं पसासेमाणे विहरइ ॥ तेयलिपुत्तस्स सम्माण-पदं ६०. तए णं सा पउमावई देवी कणगज्झयं रायं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं पुत्ता ! तव रज्जे • य रटे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य° अंतेउरे य, तुमं च तेयलिपुत्तस्स अमच्चस्स पभावेणं । तं तुमं णं तेयलिपुत्तं अमच्चं आढाहि परिजाणाहि सक्कारेहि सम्माणेहि, इंतं अब्भुटेहि, ठियं पज्जुवासेहि", वच्चंत" पडिसंसाहेहिए, अद्धासणेणं उवणिमंतेहि, भोगं च से अणुवढेहि ।। ६१. तए णं से कणगज्झए पउमावईए तहत्ति वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं आढाइ परिजाणाइ सक्कारेइ सम्माणेइ, इंतं अब्भुटेइ, ठियं पज्जुवासेइ, वच्चंतं पडिसंसाहेइ, अद्धासणेणं उवणिमंतेइ°, भोगं च से अणुवड्ढेइ ।। १. X (ग, घ)। ७. पसाहेमाणे (क्व)। २. जाणं (ग, घ)। ८. सं० पा०-रज्जे जाव अतेउरे। ३. प्रो० सू० ६३ । ६. पहावेणं (क, घ)। ४. संचिट्ठिए (ग)। १०. पज्जुवासाहि (ख, ग)। ५. तेसिं (क, ख, ग)। ११. वयंतं (ग, घ)। ६. वण्णओ जाव (क, ख, ग, घ) । ओ० सू० १२. पडिसाहेहि (क, ख)। १३. सं० पा०-आढाइ जाव भोगं । १४। Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० पोट्टि लदेवेण तेयलिपुत्तस्स संबोह-पदं ६२. तरणं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अभिक्खणं प्रभिक्खणं केवलिपण्णत्ते धम्मे बोइ, नो चेवणं से तेयलिपुत्ते संबुज्झइ ॥ ६३. तए णं तस्स पोट्टिलदेवस्स इमेयारूवे प्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकपे समुपज्जित्था - एवं खलु कणगज्झए राया तेयलिपुत्तं आढाइ जाव' भागवत ण से तेलते भिक्खणं प्रभिक्खणं संबोहिज्ज माणे विनोस । तं सेयं खलु ममं कणगज्झतेयलिपुत्ताओं विपरिणामित्त त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कणगज्भयं तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामेइ ॥ ६४. तए णं तेयलिपुत्ते कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सम्म दिगवतेयसा जलते पहाए कयबलिकम्मे कथकाउय-मंगल-पायच्छित प्रसवरगर बहूहिं पुरिसेहिं सद्धि संपरिवुडे साओ गिहाम्रो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कणगज्झए राया तेणेव पहारेत्थ गमणाए । ६५. तए णं तेय लिपुत्तं श्रमच्चं जे जहा बहवे राईसर-तलवर माडंबिय - कोडुंबिय - इभ से सेणावइ-सत्थवाह' पभियो' पासंति ते तहेव आढायंति परियाणंति भुट्ठेति, अंजलि पग्गहं" करेंति, इट्ठाहि कंताहिं जाव' वग्गूहिं 'ग्रालयमाणा य संव माणा " य पुरो य पिट्ठो य पासो य" समणुगच्छति ॥ ६६. तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव कणगज्झए तेणेव उवागच्छइ ।। ६७. तए णं से कणगज्जए तेयलिपुत्तं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता तो आढाइ" नो परिभुट्ठे, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे प्रणब्भुट्टेमाणे परम्मुहे याणा नो संचि ॥ ६८. तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे कणगज्झयस्स रण्णो अंजलि करेइ । 'तम्रो य णं'३ से कणगज्झए राया अणाढायमाणे " अपरियाणमाणे भुट्टेमाणे तुसिणीए परमु चिट्ठ | ८. ना० १।१।४८ । ६. आलवमाणे य संलवमाणे ( ग ) । नायाधम्मक हाओ १. ना० १।१४/६० । २. वड्ढेइ (क, ख, ग, घ ) । ३. ना० १।१।२४ । ४. सं० पा०-- हाए जाव पायच्छिते । ५. सं० पा० तलवर जाव पभियओ । ६. पतियो ( क ) ; पभिइओ ( ग, घ ) । ११. श्रायाति ( क ) । ७. परिगहिए ( क ); ० परिगहिय (घ ); १२. प्रणाययणमाणे ३ (क ); अपाढामीणे ३ ( ग ) । 0 • परिहं ( ख, ग ) । १३. तए णं (क, ख, घ) । १४. अणाढाइज्जमाणे ३ (क); अणाढ़ामीणे ( ख, ग ); अणादिज्ज़माणे (घ) । १०. य मग्गओ ( क, ख, ग, घ ) । अत्र 'मग्गओ य' इति पाठोऽतिरिक्तः सम्भाव्यते । पिट्ठओ यमग्गओ य एते द्वे अपि पदे समानार्थके स्तः । अस्याध्ययनस्यैव ७० सूत्रे 'मग्गओ य' इति पाठो नोपलभ्यते । Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोद्दसमं अज्झयणं (तेयली) २६१ ६९. तए णं तेयलिपुत्ते कणगज्झयं रायं विप्परिणयं जाणित्ता भीए' तत्थे तसिए उविग्गे ° संजायभए एवं वयासी–रुटे णं मम कणगज्झए राया। होणे' णं मम कणगज्झए राया। अवज्झाए' ण मम कणगज्झए राया। तन नज्जइ णं मम केणइ कु-मारेण मारेहिइ त्ति कटुं भीए तत्थे जाव सणियं-सणियं 'पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता" तमेव आसखंधं दुरूहइ, दुरूहित्ता तेयलिपुरं मज्झमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । ७०. तए णं तेयलिपुत्तं जे जहा ईसर जाव' सत्थवाहपभियत्रो पासंति ते तहा नो आढायंति नो परियाणंति नो अब्भट्ठति नो अंजलिपग्गह करेंति, इट्टाइं जाव' वग्गहिं नो आलवंति नो संलवंति नो पुरो य पिट्ठयो य पासो य समणु गच्छति ।। ७१. तए णं तेयलिपुत्ते अमच्चे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। जा वि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भवइ, तं जहा - दासे इ वा पेसे इ वा भाइल्लए इ वा, सा वि य णं नो आढाइ नो परियाणाइ नो अब्भुढेइ । जा वि य से अभितरिया परिसा भवइ, तं जहा-पिया इ वा माया इ वा 'भाया इ वा भगिणी इ वा भज्जा इ वा पुत्ता इ वा धूया इ वा सुण्हा इ वा, सा वि य णं नो आढाइ नो परियाणाइ नो अब्भुढेइ ।। तेलियपुत्तस्स मरणचेट्ठा-पदं ७२. तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव वासघरे जेणेव सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवा गच्छित्ता सयणिज्जसि निसीयइ, निसीइत्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं सयानो गिहाम्रो निग्गच्छामि तं चेव जाव अभितरिया परिसा नो पाढाइ नो परियाणाइ नो अब्भटेइ । तं सेयं खलु मम अप्पाणं जीवियाग्रो ववरोवित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तालउडं विसं आसगंसि पक्खिवइ । से य विसे नो कमइ ।। ७३. तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे नीलुप्पल- गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खर धारं असिं खंधंसि अोहरइ । तत्थ वि य से धारा प्रोएल्ला ॥ ७४. तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासगं गीवाए बंधइ, बंधित्ता रुक्खं दुरुहइ, दुरुहित्ता पासगं रुक्खे बंधइ, बंधित्ता अप्पाणं मुयइ । तत्थ वि य से रज्जू छिन्ना॥ १. सं० पा०-भीए जाव संजायभए । २. प्रीत्येति गम्यते (वृ)। ३. पाठान्तरेण दुर्ध्यातोहं (वृ) । ४. पच्चोरुहइ २ (ग)। ५. ना० १११४१६५ ६. ना० ११११४८ । ७. सं० पा०-माया इ वा जाव सुण्हा । ८. ना० ११४।६४-७१ । ६. सं० पा०-नीलुप्पल जाव असिं। . १०. ओइल्ला (ख); ओपल्ला (ग, घ); अवदीर्णा कुंठीभूता इत्यर्थः (वृ)। Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ महाओ ७५. तए णं से तेयलिपुत्ते महइमहालियं सिलं गीवाए बंधइ, बंधित्ता प्रत्थाहमतारम पोरिसीयं स उदगंसि अप्पाणं मुयइ । तत्थ वि से थाहे जाए || ७६. तए णं से तेयलिपुत्ते सुक्कंसि तणकूडंसि अगणिकायं पक्खिवइ, पक्खिवित्ता पाय । तत्थ वि य से अगणिकाए विज्झाए' । १. आवश्यकचूर्णी ( पृष्ठ ४६६,५०० ) समुद्धृते प्रस्तुताध्ययने अरण्यगमनस्य निर्देशोऽस्ति । तथा अन्यपि क्रमभेदो वर्तते । स च अतीव मननीयोस्ति, यथातातणकूडे अगि दातुं पविट्टो, तत्थवि न ति, ताहे अवि पविसति, तत्थ पुरतो छिण्णगिरिसिहरकंदरप्पवाते पिट्ठतो कपेमाणेव्व मेदिणितलं आकड्ढतव्व पादवगणे विफोडेमाणेव्व अंबरतलं सव्वतमोरासिव्व पिडिते पच्चक्खमिव सतं कर्तते भीमे भीमारखं करें महावारणे समुट्ठिते, दोसु चक्खुनिवाते पणुत्तविवमुक्को पुंखमेत्तवसेसा धरणितलपवेसाणि सराणि पतंति हुतवह जालासहस्ससंकुलं समंततो पलित्तंव धगधगेति सव्वारणं, अइरुग्गत बालसूरगुंजद्धपुंज नगरपगासं भियाति इंगालभूत हिं ताचितेति पोट्टिला जदि मे नित्था रेज्जति, एवं वयासी—आउसो पोट्टिला ! आहता आयाणाहि । ततेणं सा पोट्टिला पंचवण्णाई सखिखिणीयाई जाव एवं वयासी - आउसो तेतलिपुत्ता ! एहि ता प्रदानाहि, पुरतो छिण्णगिरि सिहरकंदरप्पवाते तं चैव जाव इंगालभूतं गिहं तं आउसो तेतलिपुत्ता ! कहिं वयामो ? तते से तेतली एवं वयासी - सद्धेतं खलु भो समणा वयंति, सद्धेयं खलु भो माहणा वयंति, अहमेगो असद्धेयं वदिस्सामि, एवं खलु अहं सह पुत्तेहि अपुत्तो को मे तं सद्द हिस्सति ? एवं सह मित्तेहि सह O दारेहिं सह वित्तेण सह परिग्गहेण सह दासेहिं जाव दाणमाणसक्कारोवयारसंगहिते तेतलिपुत्तस्स सयणपरियणेवि तगं गते को मे तं सद्दहिस्सति ? 1 ० एवं खलु तेतलिपुत्ते कणगज्झतेणं अवज्झात को मे तं सद्दहिस्सति ? कालक्कमणीति सत्थविसारदे लिपुत् विसादं गतेति को मे तं सद्दहिस्सति ? तणं तेतलिपुत्तणं तालपुडे विसे खइते सेविय पहितेत्ति को मे तं सद्दहिस्सति ? एवं असी वेहासे जले अग्गी जाव रण्णेवि पुरतो पवाने एमादि को मे तं सद्दहिस्सति ? जातिकुलरूवविणओवयारसालिणी पोट्टिला मुसिकारधूता मिच्छं विपडिवण्णा को मे तं सहिस्सति ? ताहे पोट्टिला भणति -- एहि ता आदाणाहि, भीतस्स खलु भो पवज्जा ताणं, आतुरस्स भेसज्जं किच्चं अभिउत्तस्स पच्चयकरणं संतस्स वाहणकिच्चं महाजले वाहणकिच्चं माइस्स रहस्स किच्चं उक्कंठितस्स देसगमणकिच्चं छुहितस्स भोयणकिच्चं पिवासितस्स पाणकिच्चं सोहातुरस्स जुवतिकिच्चं परं अभिजितुकामस्स सहाय किच्चं खंतस्स दंतस्स गुत्तस्स जितेंदियस्स एत्तो एगमवि न भवति । सुट्ठ-सुट्टु तणं तुमं तेतलिपुत्ता । एम आदाणाहित्ति कट्टु दोच्चपि तच्चपि एवं वयति, वइत्ता जामेव दिसि पाउब्भूया तामेव दिसि पडिगता । Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोद्दसमं अज्झयणं (तेयली) तेयलिपुत्तस्स विम्हयकरण-पदं ७७. तए णं से तेयलिपुत्ते एवं वयासी-सद्धेयं खलु भो ! समणा वयंति । सद्धेयं खलु भो ! माहणा वयंति । सद्धेयं खलु भो ! समण-माहणा वयंति । अहं एगो असद्धेयं वयामि । एवं खलु अहं सह पुत्तेहिं अपुत्ते । को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह मित्तेहिं अमित्ते। को मेदं सद्दहिस्सइ ? "सह अत्थेणं अणत्थे। को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह दारेणं अदारे । को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह दासेहि अदासे । को मेदं सद्दहिस्सइ ? सह पेसेहि अपेसे । को मेदं सद्दहिस्सइ? सह परिजणेणं अपरिजणे । को मेदं सद्दहिस्सइ ? ० एवं खलु तेयलिपुत्तेणं अमच्चेणं कणगज्झएणं रण्णा अवज्झाएणं समाणेणं तालपुडगे विसे पासगंसि पक्खित्ते । से वि य नो कमइ । को मेयं सहहिस्सइ ? तेयलिपुत्तेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसि-कुसुमप्पगासे खुरधारे असी° खधंसि अोहरिए । तत्थ वि य से धारा ओएल्ला । को मेयं सद्दहिस्सइ ? तेयलिपुत्तेणं पासगं गीवाए बंधित्ता' •रुक्खं दुरूढे, पासगं रुक्खे बंधित्ता अप्पा मूक्के । तत्थ विय से रज्जु छिन्ना । को मेयं सहहिस्सइ? तेयलिपुत्तेणं महइमहालियं 'सिलं गीवाए बंधित्ता अत्थाहमतारमपोरिसीयंसि उदगंसि अप्पा मुक्के । तत्थ वि य णं से थाहे जाए। को मेयं सद्दहिस्सइ ? तेयलिपुत्तेणं सुक्कंसि तणकूडंसि' 'अगणिकायं पक्खिवित्ता अप्पा मुक्के । तत्थ वि य से° अग्गी विज्झाए । को मेयं सद्दहिस्सइ ?-ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्माणोवगए° झियायइ ।। पोट्टिलदेवस्स संवाद-पदं ७८. तए णं से पोट्टिले देवे पोट्टिलारूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता तेयलिपुत्तस्स अदूर सामंते ठिच्चा एवं वयासी-हं भो तेयलिपुत्ता ! पुरो पवाए, पिट्टो हत्थिभयं, दूहयो अचक्खुफासे, मज्झे सराणि वरिसंति । गामे पलित्ते रण्णे झियाइ, रण्णे पलित्ते गामे झियाइ । आउसो तेयलिपुत्ता ! कओ वयामो ? १. सं० पा०–एवं अत्थेणं दारेणं दासेहिं पेसेहि परिजणेणं। २. सं० पा०-नीलुप्पल जाव खंधंसि । ३. सं० पा०-बंधित्ता जाव रज्जू । ४. सं० पा०-महालियं जाव बंधित्ता अत्थाह जाव उदगंसि। ५. सं० पा०-तणकूडे ० ६. स० पा०-ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ। ७. झियाति (क, ख, ग)। ८. पतंति (व) । Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ नायाधम्मक हाओ ७६. तए णं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलं एवं वयासी - भीयस्स खलु भो ! पव्वज्जा', उक्कंट्ठियस्स सदेसगमणं, छुहियस्स अन्नं, तिसियस्स पाणं, आउरस्स भेसज्जं माइयस्स रहस्सं अभिजुत्तस्स पच्चयकरणं, श्रद्धाणपरिसंतस्स वाहणगमणं, तरिउकामस्स पवहण किच्चं परं श्रभिउंजिउकामस्स सहायकिच्चं । खंत स दंतस्स जिइंदियस्स एत्तो एगमवि न भवइ ॥ ८०. तसे पोट्टले देवे तेयलिपुत्तं मच्चं एवं वयासी - सुट्टु णं तुमं तेयलिपुत्ता ! एयमहं प्रायाणाहि त्ति कट्टु दोच्चंपि तच्चपि एवं वयइ, वइत्ता जामेव दिसि पाउ भएतामेव दिसि पडिगए || लिपुत्तस्स जाईसरण पुव्वं पव्वज्जा-पदं ८१. तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स सुभेणं परिणामेणं जाईसरणे समुपपन्ने || ८२. तए णं तेयलिपुत्तस्स श्रयमेयारूवे ग्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकष्पे समुपज्जित्था - एवं खलु ग्रहं इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे पोक्खलावईए विजए पोंडरीगिणीए रायहाणीए महापउमे नामं राया होत्था । तए णं थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता' पव्वइए सामाइयमाइयाई चोट्सपुव्वाइं अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए महासु के कप्पे 'देवत्ताए उववण्णे" । तए णं हं ताम्रो देवलोगाम्रो ग्राउक्खणं भवक्खणं ठिइक्खणं प्रणंतरं चयं चइत्ता इहेव तेयलिपुरे तेयलिस्स ग्रमच्चस्स भद्दा भारियाए दारगत्ताए पच्चायाए । तं सेयं खलु मम पुव्वुद्दिट्ठाई महत्व - याई' सयमेव उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए - एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सयमेव महव्वाई प्रारुहेइ, ग्रारुहेत्ता जेणेव पमयवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, वागच्छत्ता सोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टयंसि सुहनिसण्णस्स श्रणुचिते माणस पुव्वाहीयाई सामाइयमाइयाई चोट्सपुव्वाई सयमेव अभिसमण्णागयाई ॥ केवलणाण-पदं ८३. तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स अणगारस्स सुभेणं परिणामेणं' पसत्येणं प्रज्भवसाणेणं साहि विसुज्झमाणीहि तयावरणिज्जाणं कम्माणं खप्रोवसमेणं कम्मरयविकरणकरं प्रपुव्वकरणं पविट्ठस्स केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे ।। १. सरणं इति गम्यते ( वृ) | २. छायरस ( क, ख, ग ) । ३. सं० पा० - भवित्ता जाव चोद्दरपुव्वाई | ४. देवे (क, ख, ग ) । ५. पुव्वदिट्ठाई ( ख ) । ६. पंच महत्वयाई (घ) । ७. पंच महव्वयाई (घ) । ८. सं० पा० - परिणामेणं जाव तयावर णि ज्जाणं । Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोदसमं अभयण (तेयलो) २६५ ८४. तए णं तेयलिपुरे नयरे महासन्निहिएहिं वाणमंत रेहिं देवेहिं देवीहि य देवदुंदुहीथ्रो समाहयाओ, दसद्धवण्णे कुसुमे निवाइए, चेलुक्वेवे' दिव्वे गीयगंधव्वfore a यावि हत्था ॥ कणगज्यस्स सावगधम्म-पदं ८५. तरणं से कणगज्झए राया इमोसे कहाए लट्ठे समाणे एवं वयासी एवं खलु तेयलिपुत्ते मए प्रवज्झाए मुंडे भवित्ता पव्वइए । तं गच्छामि णं तेयलिपुत्तं अणगारं वंदामि नमसामि, वंदित्ता नमसित्ता एयमहं विणणं भुज्जो - भुज्जो खामि एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पहाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि जेणेव पमयवणे उज्जाणे जेणेव तेयलिपुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमसित्ता एयम 'चणं" विणणं भुज्जो - भुज्जो खामेइ, खामेत्ता नच्चासणे' 'नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे पंजलिउडे भिमु विणणं पज्जुवासइ || ८६. तणं से तेयलिपुत्ते अणगारे कणगज्भयस्स रण्णो तीसे य महइमहालियाए परिसा धम्मं परिकइ ॥ ८७. तए णं से कणगज्झए राया तेयलिपुत्तस्स केवलिस्स अंतिर धम्मं सोच्चा निसम्मा पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं - दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता समणोवासए जाए - अभिगयजीवाजीवे ॥ लिपुत्तसिद्धि-पदं ८८. तणं तेयलिपुत्ते केवली बहूणि वासाणि केवलिपरियागं पाउणित्ता जाव सिद्धे ॥ निक्खेव पदं ८६. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं चोदसमस्स नायज्भयणस्स प्रयमट्ठे पण्णत्ते । - त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा जाव न दुक्खं पत्ता, माणब्भंसं च पाणिणो पायं । ताव न धम्मं गेहंति भावओो तेयलिसुयव्व ॥ | १ || १. X ( ग, घ ) । २. इमी से कहाए लट्टे कणगज्झए माताए समं निग्गते सव्विड्ढीए (आवश्यकचूर्णि पृ० ५०१)। ३. X ( ख, ग, घ ) । ४. सं० पा०--नच्चासपणे जाव पज्जुवासइ । ५. पु० ना० १/५/४७ ६. ना० १।१७ । Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं अज्झयण नंदीफले उक्खे व-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावी रेणं चोद्दसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्ते, पण्ण रसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए । जियसत्तू राया ॥ ३. तत्थ णं चंपाए नयरीए धणे नामं सत्थवाहे होत्था–अड्ढे जाव' अपरिभए। ४. तीसे णं चंपाए नयरीए उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए अहिच्छत्ता नाम' नयरी होत्था-रिद्धस्थिमिय-समिद्धा वण्णो । ५. तत्थ णं अहिच्छत्ताए नयरीए कणगकेऊ नाम राया होत्था-महया वण्णो ' । धणस्स घोसणा-पदं ६. तए णं तस्स धणस्स सत्थवाहस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-सेयं खलु मम विपुलं पणियभंडमायाए अहिच्छत्तं नरि वाणिज्जाए गमित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च - चउव्विहं भंडं गेण्हइ, गेण्हित्ता सगडी-सागडं सज्जेइ, सज्जेत्ता सगडी-सागडं भरेइ, भरेत्ता कोडंबियपूरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तब्भे देवाणप्पिया ! चंपाए नयरीए सिंघाडग जाव' महापहपहेसु [उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा?] १. ना० ११५७। २. नामं (ख, घ)। ३. ओ० सू०१। ४. ओ० सू० १४ । ५. ना० ११११९५। २६६ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं अज्झयणं (नंदीफले) एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! धणे सत्थवाहे विपुलं पणियं आदाय इच्छइ अहिच्छत्तं नयरिं वाणिज्जाए गमित्तए। तं जो णं देवाणुप्पिया ! चरए वा चीरिए वा चम्मखंडिए वा भिच्छुडे वा पंडुरंगे वा गोयमे वा गोव्वतिए वा 'गिहिधम्मे वा धम्मचिंतए" वा अविरुद्ध-विरुद्ध-बुड्डसावग-रत्तपड-निग्गंथप्पभिई पासंडत्थे वा गिहत्थे वा धणेणं सत्थवाहेणं सद्धि अहिच्छत्तं नयरि गच्छइ, तस्स णं धणे सत्थवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ, अणुवाहणस्स उवाहणाग्रो दलयइ, अकुंडियस्स कुंडियं दलयइ, अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ, अपक्खेवगस्स पक्खेवं दलयइ, अंतरा वि य से पडियस्स वा भग्गलुग्गस्स साहेज्ज दलयइ, सुहंसुहेण य अहिच्छत्तं संपावेइ त्ति कटु दोच्चंपि तच्चपि घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ७. तए णं ते कोडंबियपुरिसा धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा हतुवा चंपाए नयरीए सिंघाडग जाव' महापहपहेसु एवं वयासी-हंदि सुणंतु भगवंतो ! चंपानयरीवत्थव्वा ! बहवे चरगा ! वा जाव' •गिहत्था ! वा, जो णं धणेणं सत्थवाहेणं सद्धि अहिच्छत्तं नयरिं गच्छइ, तस्स णं धणे सत्थवाहे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलयइ जाव सुहंसुहेण य अहिच्छत्तं संपावेइ त्ति कटु दोच्चपि तच्चंपि घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं° पच्चप्पिणंति ।। ८. तए णं तेसि कोडुंबियपुरिसाणं अंतिए एयमढे सोच्चा चंपाए नयरीए बहवे चरगा य जाव गिहत्था य जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छंति ॥ ६. तए णं धणे सत्थवाहे तेसिं चरगाण य जाव' गिहत्थाण य अच्छत्तगस्स छत्तं दलयइ जाव अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ, दलयित्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! चंपाए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणंसि ममं पडिवालेमाणा पडिवालेमाणा चिट्ठह ॥ १०. तए णं ते चरगा य जाव गिहत्था य धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा" 'चंपाए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणंसि धणं सत्थवाहं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा° चिट्ठति ॥ १. पंडरंगे (क, ख); पंदुरागे (घ)। ६. ना० १।१९५। २. गिहत्थधम्मचितए (क); गिहधम्मचितए ७. सं० पा०-चरगा वा जाव पच्चप्पिणंति । (ख, ग)। ८. ना० १।१५।६। ३. रत्तपडी (क)। ६,१०,११,१२. ना० १।१५।६ । ४. घोसणयं (क); X (ख, ग); उग्घोसणं १३. ना० १।१५।६ । (घ)। १४. सं० पा०-समाणा जाव चिट्ठति । ५. सं० पा०-कोडुंबियपुरिसा जाव एवं । Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० धणस निस-पदं ११. तए णं धणे सत्थवाहे सोहणंसि तिहि करण - नक्खत्तंसि विउलं असण- पाणखाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधिपरियणं श्रमंते, आमंतेत्ता भोयणं भोयावेइ, भोयावेत्ता श्रपुच्छइ, आपुच्छित्ता सगडी - सागडं जोयावेइ', जोयावेत्ता चंपाओ नयरीश्रो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता नाइविप्पगिट्ठेहि अद्धाणेहिं वसमाणे वसमाणे सुहेहिं वसहि-पायरासेहि अंगं जणवयं मज्झमज्झेणं जेणेव देसग्गं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सगडी-सागडं मोयावेइ, सत्थनिवेस करेइ, करेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एयं वयासी - तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! मम सत्यनिवेसंसि महया - महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह — एवं खलु देवाणुप्पिया ! इमीसे आगामियाए' छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए बहुमज्भदेसभाए, एत्थ णं बहवे नंदिफला नाम रुक्खा - किण्हा जाव पत्तिया पुष्फिया फलिया हरिया रेरिज्ज - माणा सिरीए ई-ईव उवसोभेमाणा चिट्ठति - मणुण्णा वण्णेणं मणुण्णा गंधेणं मारसे मण्णा फासेणं मणुण्णा छायाए । तं जो णं देवाणुप्पिया ! तेसि नंदिफलाणं रुक्खाणं मूलाणि वा कंदाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा पुप्फाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा आहारे, छायाए वा वीसमइ, तस्स णं ग्रावाए भद्दए भवइ । तम्रो पच्छा परिणममाणा - परिणममाणा प्रकाले चेव जीविया ववरोवेंति । तं माणं देवाप्पिया ! केइ तेसि नंदिफलाणं मूलाणि वा जाव हरियाणि वा आहरउ, छायाए वा वीसमउ, माणं से वि अकाले चेव जीविया ववरोविज्जिस्सउ' । नायाम्म कहाओ भेणं देवाप्पिया ! अण्णेसि रुक्खाणं मूलाणि य जाव हरियाणि य ग्राहारेह, छायासु वीसमहत्ति घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चष्पिणह । तेवि तहेव घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । १२. तए णं धणे सत्थवाहे सगडी - सागडं जोएइ, जोएत्ता जेणेव नंदिफला रुक्खा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं नंदिफलाणं अदूरसामंते सत्यनिवेसं करेइ, करेत्ता दोच्चंपि तच्चपि कोडुं बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुभेणं देवाणुप्पिया ! मम सत्यनिवेसंसि महया - महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह-एए णं देवाणुप्पिया ! ते नंदिफला रुखा कहा जा मणुण्णा छायाए । १. सं० पा०- नाइ० । २. जोइ ( क ) | ३. द्रष्टव्यम् - १।१८।४४ सूत्रम् । ४. रुक्खा पण्णत्ता ( क, ख, ग, घ ) 1 ५. ना० १।१३।१६ । ६. ववरोविज्जिस्सइ (क, ख, ग ) । ७. ना० १।१५।११ । Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं अज्झयण (नंदीफले) २६६ तं जो णं देवाणुप्पिया ! एएसि नंदिफलाणं रुक्खाणं मूलाणि वा कंदाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा पुप्फाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा पाहारेइ जाव' अकाले चेव जीवियानो ववरोवेइ। तं मा णं तुब्भे तेसिं नंदिफलाणं मूलाणि वा जाव आहारेह, छायाए वा वीसमह, मा णं अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जिस्सह', अण्णेसि रुक्खाणं मूलाणि य जाव' आहारेह, छायाए वा वीसमह त्ति कटु घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि तहेव घोसणं घोसेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ निद्दसपालणस्प निगमण-पदं १३. तत्थ णं अत्थेगइया पुरिसा धणस्स सत्थवाहस्स एयमटुं सद्दहंति पत्तियंति ° रोयंति, एयमटुं सद्दहमाणा पत्तियमाणा रोयमाणा तेसिं नंदिफलाणं दूरंदूरेणं परिहरमाणा-परिहरमाणा अण्णेसिं रुक्खाणं मूलाणि य जाव' आहारंति, छायासु वीसमंति । तेसि णं आवाए नो भद्दए भवइ, तो पच्छा परिणममाणापरिणममाणा सुभरूवत्ताए' 'सुभगंधत्ताए सुभरसत्ताए सुभफासत्ताए सुभछायत्ताए ° भुज्जो-भुज्जो परिणमंति ।। एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा' निग्गंथी वा अायरियउवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइए समाणे ० पंचसु कामगुणेसु नो सज्जइ नो रज्जइ नो गिज्झइ नो मुज्झइ नो अज्झोववज्जइ. से णं इहभवे चेव बहणं समणाणं बहणं समणीणं बहणं सावगाणं बहणं सावियाण य अच्चणिज्जे भवइ, परलोए .वि य णं नो बहूणि हत्थछेयणाणि य कण्णछेयणाणि य नासाछेयणाणि य एवं-हिययउप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि उल्लंबणाणि य पाविहिइ, पुणो अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकंतारं• वीईवइस्सइ-जहा व ते पुरिसा ॥ निद्देसाऽपालणस्स निगमण-पदं १५. तत्थ णं अप्पेगइया पुरिसा धणस्स एयमद्वं नो सद्दहति नो पत्तियंति नो रोयंति, धणस्स एयमटुं असद्दहमाणा अपत्तियमाणा अरोयमाणा जेणेव ते नंदिफला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेसि नंदिफलाणं मूलाणि य जाव" १४. १. ना० १।१५।११। ७. सं० पा०-निग्गंथो वा जाव पंचसू । २. ववरोविजिजस्सति(क,ग);ववरोविस्संति(ख)। ८. पू०-ना० १२७६ । ३. ना० १।१५।११ । ९. सं० पा०-परलोए नो आगच्छइ जाव ४. सं० पा० -सद्दहति जाव रोयंति। वीईवइस्सइ (क, ख, ग, घ)। ५. ना० १।१५।११। १०. ना० १।१५.११ । ६. सं० पा०-सुभरूवत्ताए। Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० नायाधम्मकहाओ आहारंति, छायासु वीसमंति। तेसि णं आवाए भद्दए भवइ, तो पच्छा परिणममाणा-परिणममाणा' अकाले चेव जीवियानो ° ववरोवेति ।। १६. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथो वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइए समाणे पंचसु कामगुणेसु सज्जई रज्जइ गिज्झइ मुज्झइ अज्झोववज्जइ, सेणं इहभवे जाव' अणादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं संसारकंतारं भुज्जो-भुज्जो° अणुपरि यट्टिस्सइ-जहा व ते पुरिसा ॥ धणस्स अहिच्छत्तागमण-पदं १७. तए णं से धणे सत्थवाहे सगडी-सागडं जोयावेइ, जोयावेत्ता जेणेव अहिच्छत्ता नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहिच्छत्ताए नयरीए बहिया अग्गुज्जाणे सत्थनिवेसं करेइ, करेत्ता सगडी-सागडं मोयावेइ ।। १८. तए णं से धणे सत्थवाहे महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता बहुपुरिसेहिं सद्धि संपरिवुडे अहिच्छत्तं नयरिं मझमज्झेणं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं ° वद्धावेइ, वद्धावेत्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं उवणेइ ॥ १६. तए णं से कणगकेऊ राया हट्टतुटे धणस्स सत्थवाहस्स तं महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता धणं सत्थवाहं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता उस्सुक्कं वियरइ, वियरित्ता पडिविसज्जेइ, भंडविणिमयं करेइ, करेत्ता पडिभंडं गेण्हइ, गेण्हित्ता सुहंसुहेणं जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि ° अभिसमण्णागए विपुलाइं माणुस्सगाई •भोगभोगाइं पच्चणुभवमाणे ° विहरइ॥ धणस्स पव्वज्जा-पदं २०. तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं ॥ २१. धणे सत्थवाहे धम्म सोच्चा जेट्टपुत्तं कुडंबे ठावेत्ता पव्वइए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेत्ता, अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णे। १. सं० पा०-परिणममाणा जाव ववरोवेंति। ४. सं० पा०-करयल जाव वद्धावेइ। २. सं० पा०-सज्जइ जाव अणुपरियटिस्सइ। ५. सं० पा०-नाइ० । ३. ना० ११३।२४ । ६. सं० पा०—माणुस्सगाई जाव विहरइ । Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं अज्झयणं (नंदीफले) २७१ महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ' 'बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाण • मंतं करेहिइ ।। निक्खेव-पदं २२. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पण्णरसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ।। वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा चंपा इव मणुयगई, धणोव्व भयवं जिणो दएक्करसो । अहिच्छत्ता नयरिसमं, इह निव्वाणं मुणेयव्वं ।।१।। घोसणया इव तित्थंकरस्स सिवमग्गदेसणमहग्छ । चरगाइणो व्व एत्थं, सिवसुहकामा जिया बहवे ॥२॥ नंदिफलाइ व्व इहं, सिवपहपडिपण्णगाण विसया उ । तब्भक्खणाग्रो मरणं, जह तह विसएहि संसारो ॥३॥ तव्वज्जणेण जह इट्ठपुरगमो विसयवज्जणेण तहा । परमानंदनिबंधण-सिवपुरगमणं मुणेयव्वं ॥४॥ १. सं० पा०-सिज्झिहिइ जाव मंतं । २. ना० १११७॥ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव पदं १. ५. २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था || ३. तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए सुभूमिभागे नामं उज्जाणे होत्था || नागसिरी कहाणग-पदं ४. तत्थ णं चंपाए नयरीए तो माहणा भायरो परिवसंति, तं जहा --सोमे सोमदत्ते सोमभूई - प्रड्ढा जाव' अपरिभूया रिउव्वेय जउव्वेय-सामवेय-प्रथव्वणवेय जाव' भण्णसु य सत्थेसु सुपरिनिट्टिया || तेसि णं माहणाणं तम्रो भारिया होत्था, तं जहा - नागसिरी भूयसिरी क्खसि - सुकुमालपाणिपाया जाव तेसि णं माहणाणं इट्ठात्रों, तेहि माहिं सद्धिविले माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरति ॥ नागसिरीए तित्तालाउय उवक्खडण-पदं सोलसमं अयणं अवरकंका जइ णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पण्णरसमस्स नायज्यणस्स मट्ठे पण्णत्ते, सोलसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के पण्णत्ते ? ६. तए णं तेसि माहणाणं ग्रण्णया कयाइ एगयो समुवागयाणं जाव' इमेयारूवे महोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था - एवं खलु देवाणुप्पिया ! ग्रहं इमे विउले १. ना० १1१1७ । २. ना० १।५।७ । ३. ना० १।५।१३६ । ४. ना० १।१।१७ । ५. पू० - ना० १।१।१७ । ६. ना० १।३।७ । २७२ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २७३ धण'- कणग - रयण - मणि - मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सारसावएज्जे, अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसानो पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउ । तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! अण्णमण्णस्स गिहेसु कल्लाकल्लि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेउं परिभुजेमाणाणं विहरित्तए। अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसूणेति, कल्लाकल्लि अण्णमण्णस्स गिहेसु' विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति, परि जेमाणा विहरति ।। ७. तए णं तीसे नागसिरीए माहणीए अण्णया कयाइ भोयणवारए जाए यावि होत्था ॥ ८. तए णं सा नागसिरी विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडेइ, एगं महं सालइयं तित्तालाउयं' बहुसंभारसंजुत्तं नेहावगाढं उवक्खडेइ, एगं बिंदुयं करयलंसि पासाएइ, तं खारं कडुयं अखज्जं विसभूयं जाणित्ता एवं वयासीधिरत्थु णं मम नागसिरीए अधन्नाए अपुण्णाए दूभगाए दूभगसत्ताए दूभगनिंबोलियाए', जाए णं मए सालइए तित्तालाउए बहुसंभारसंभिए नेहावगाढे उवक्खडिए', सुबहुदव्वक्खए नेहक्खए य कए । तं जइ णं ममं जाउयानो जाणिस्संति तो णं मम खिसिस्संति । तं जाव ममं जाउयानो न जाणंति ताव मम सेयं एयं सालइयं तित्तालाउयं 'बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं'' एगते गोवित्तए, अण्णं सालइयं महुरालाउयं२ 'बहुसंभारसंभियं ° नेहावगाढं उवक्खडित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं एगते गोवेइ, गोवेत्ता अण्णं सालइयं महरालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं उवक्खडेड. उवक्खडेता तेसि माहणाणं ण्हायाणं .भोयणमंडवंसि सहासण वरगयाणं तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं परिवेसेइ।। ६. तए णं ते माहणा जिमियभुत्तुत्तरागया समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था । १०. तए णं तानो माहणीप्रो व्हायाप्रो जाव" विभूसियानो तं विपुलं असण-पाण१. सं० पा०-धण जाव सावएज्जे । ६. ता (ख); ताओ (घ)। २. गिहे (ग)। १०. जावताव (क, ख, घ)। ३. तित्त° (ग)। ११. बहुसंभारनेहकयं (क, ख, ग, घ)। ४. उवक्खडावेइ (क, ख, ग, घ)। १२. सं० पा०-महुरालाउयं जाव नेहावगाढं । ५. आसएइ (ग)। १३. सं० पा०-सालइयं जाव गोवेइ । ६. विसभूयमिति (क); विसब्भूयं (ख, ग)। १४. सं० पा० -- हायाणं जाव सुहासण • । ७. दूभगलिंबोलियाए (ग)। १५. ना० १।१।८१। 5. उवक्खडियाए (ख, ग)। Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ नायाधम्मकहानो खाइम-साइमं आहारेंति, जेणेव सयाइं गिहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्तानो जायाओ। धम्मरुइस्स तित्तालाउय-दाण-पदं ११. तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नाम थेरा जाव' बहुपरिवारा जेणेव चंपा नयरी जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा ° विहरति । परिसा निग्गया। धम्मो कहियो । परिसा पडिगया । १२. तए णं तेसि धम्मघोसाणं घेराणं अंतेवासी धम्मरुई नामं अणगारे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छ्ढसरीरे संखित्त-विउल ° तेयलेस्से मासंमासेणं खममाणे विहरइ॥ १३. तए णं से धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, एवं जहा गोयमसामी तहेव' भायणाई प्रोगाहेइ, तहेव धम्मघोस थेरं अापुच्छइ जाव' चंपाए नयरीए उच्च-नीमज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे जेणेव नागसिरीए माहणीए गिहे तेणेव अणुपवितु ॥ १४. तए णं सा नागसिरी माहणी धम्मरुइं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता तस्स सालइ यस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स एडणट्टयाए हट्टतुट्टा उदाए उद्वेइ, उद्वेत्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं सालइयं 'तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं" धम्मरुइस्स अणगारस्स पडिग्गहंसि" सव्वमेव निसिरइ॥ १५. तए णं से धम्मरुई अणगारे अहापज्जत्तमित्ति कटु नागसिरीए माहणीए गिहारो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चपाए नयरीए मज्झमज्झेणं पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव १. ना० १।१४।४० । २. सं० पा०-अहापडिरूवं जाव विहरति । ३. धम्मरुती (ग)। ४. सं० पा०-उराले जाव तेयलेस्से । ५. पोरुसीए (क); पोरसीए (ख); पोरसी याए (ग)। ६. पू०-भग० २।१०७ । ७. भग० २।१०७-१०६ । ८. तित्तकडुयस्स (क, ख, ग, घ); पूर्ववर्तिसूत्रेषु 'तित्तालाउयं' इति पाठोऽस्ति। अस्मिन् सूत्रे तस्य परिवर्तनं जातम । अत्रापि 'अलाउय' पदमपेक्षितमस्ति, तेनात्र पूर्ववर्तिपाठ एव स्वीकृतः । ६. तित्तकड्यं च बहुनेहावगाढं (क, ख, ग, घ)। १०. पडिग्गहगे (ख, ग); पडिग्गहए (घ)। ११. निस्सरइ (घ)। Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २७५ उवागच्छइ, धम्मघोसस्स [धम्मघोसाणं ?] अदूरसामते' अन्नपाणं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता अन्नपाणं करयलंसि पडिदंसेइ ।। तित्तालाउय-परिट्ठावण-पदं १६. तए णं धम्मघोसा थेरा तस्स सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स गंधेणं अभिभूया समाणा तो सालइयानो तित्तालाउयायो बहुसंभारसंभियानो नेहावगाढायो एगं बिंदुयं गहाय करयलंसि प्रासादेंति', तित्तगं' खारं कडुयं अखज्जं अभोज विसभूयं जाणित्ता धम्मरुइं अणगारं एवं वयासी-जइ णं तुमं देवाण प्पिया! एयं सालइयं तित्तालाउयं बहसंभार संभियं. नेहावगाढं ग्राहारेसि तो णं तुम अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि । तं मा णं तुमं देवाणुप्पिया! इमं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं ° आहारेसि, मा णं तुम अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि । तं गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! इमं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं एगंतमणावाए अचित्ते थंडिले परिढुवेहि, अण्णं फासुयं एसणिज्ज असण-पाण-खाइम-साइमं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेहि ॥ १७. तए णं से धम्मरुई अणगारे धम्मघोसेणं थेरेणं एवं वुत्ते समाणे धम्मघोसस्स थेरस्स अंतियानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सुभूमिभागानो उज्जाणाम्रो अदूरसामंते थंडिलं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता तओ सालइयानो तित्तालाउयानो बहुसंभारसंभियानो नेहावगाढायो एगं बिंदुगं गहाय थंडिलंसि निसिरइ ॥ १८. तए णं तस्स सालइयस्स 'तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स" गंधेणं बहूणि पिपीलिगासहस्साणि पाउब्भूयाणि"। जा जहा य णं पिपीलिगा आहारेइ, सा तहा अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जइ॥ अहिंसट्ठ तित्तालाउय-भक्खण-पदं १६. तए णं तस्स धम्मरुइस्स अणगारस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - जइ ताव इमस्स सालइयस्स •तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स° एगमि बिंदुगंमि पक्खित्तंमि अणेगाइं पिपीलिगासहस्साई १. अदूरसामते इरियावहियं पडिक्कमइ (घ)। २. आसाएंति (क): आसाइंति (घ)। ३. तित्तं (ख)। ४. अपिज्ज (क)। ५. विसभूयमित्ति (ख)। ६. सं० पा०--सालइयं जाव नेहावगाढं । ७. सं० पा०-सालइयं जाव आहारेसि । ८. थंडिल्ले (ख)। ६. ताओ (क, ख)। १०. बिंदु (क, ख)। ११. तित्तकडुयस्स बहुनेहावगाढस्स(क, ख, ग, घ)। १२. पाउ (क, ग, घ); पाउब्भूया (ख) । १३. सं.पा.-सालइयस्स जाव एगंमि । Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ नायाधम्मकहाओ ववरोविज्जति, तं जइ णं अहं एयं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं थंडिलंसि सव्वं निसिरामि तो' णं बहूणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं वहकरणं भविस्सइ। तं सेयं खलु ममेयं साल इयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं° नेहावगाढं सयमेव अाहारित्तए, ममं चेव एएणं सरीरएणं निज्जाउ त्ति कटु एवं संपेहेइ संपेहेत्ता मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, ससीसोवरियं कायं पमज्जेइ, तं सालइयं 'तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाद" बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं सव्वं सरीरकोटगंसि पक्खिवइ॥ धम्मरुइस्स समाहिमरण-पदं २०. तए णं तस्स धम्मरुइस्स तं साल इयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं ° नेहाव गाढं पाहारियस्स समाणस्स मुहुत्तंतरेणं परिणममाणंसि सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया-उज्जला वउला कक्खडा पगाढा चडा दुक्खा दहियासा॥ तए णं से धम्मरुई अणगारे अथामे अबले अवीरिए अपरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमित्ति कट्ट अायारभंडगं एगते ठवेइ, थंडिलं पडिलेहेइ, दब्भसंथारगं संथरेइ, दब्भसंथारगं दुरूहइ, पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-नमोत्थु णं अरहंताणं जाव' सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं धम्मघोसाणं थेराणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसगाणं। पुवि पि णं मए धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जाव" बहिद्धादाणे' [पच्चक्खाए जावज्जीवाए ? ], इयाणि पिणं अहं तेसिं चेव भगवंताणं अंतियं सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव बहिद्धादाणं पच्चक्खामि जावज्जीवाए जहा खंदरो जाव चरिमेहिं उस्सासेहि वोसिरामि त्ति कटु आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालगए॥ साहूहि धम्मरुइस्स गवेसणा-पदं २२. तए णं ते धम्मघोसा थेरा धम्मरुइं अणगारं चिरगयं जाणित्ता समणे निग्गंथे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! 'धम्मरुई अणगारे'१३ १. ता (क, ग); तए (ब)। ६. अतियं (क)। २. सं० पा०-साल इयं जाव नेहावगाढं। १०. ना० ११५१५६ । ३. तित्तकडुयं बहुनेहावगाढं (क, ख, ग, घ)। ११. परिग्गहे (क, ख, ग, घ) अत्रापि ११५४५६ ४. सं० पा०-सालइय जाव नेहावगाढं । वत् पाठर चना समालोचनीयास्ति । द्रष्टव्यम५. सं० पा०-उज्जला जाव दुरहियासा । ११श५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. अपुरिसकार° (ग)। १२. भग० २।६८,६६ । ७. संथारेइ (ग)। १३. धम्मरुइस्स अणगारस्स (ख)। ८. ओ० सू० २१ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकका) २७७ मासक्खमणपारणगंसि सालइयस्स' 'तित्तालाउयस्स बहुसंभारसंभियस्स ° नेहावगाढस्स निसिरणट्ठयाए बहिया निग्गए चिरावेइ। तं गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया ! धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वनो समंता मग्गण-गवेसणं करेह ॥ साहूहि धम्मरुइस्स समाहिमरण-निवेदण-पदं २३. तए णं ते समणा निग्गंथा' 'धम्मघोसाणं थेराणं जाव तहत्ति आणाए विणएणं वयणं° पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता धम्मघोसाणं थेराणं अंतियानो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वग्रो समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिले तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सरीरगं निप्पाणं निच्चेटुं जीवविप्पजढं पासंति, पासित्ता हा हा अहो ! अकज्जमिति कटु धम्मरुइस्स अणगारस्स परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, धम्मरुइस्स पायारभंडगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव धम्मघोसा थेरा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता गमणागमणं पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्हे तुम्भं अंतियाओ पडिनिक्खमामो, सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स परिपेरंतेणं धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वयो' 'समंता मग्गणगवसणं ° करेमाणा जेणेव थंडिले तेणेव उवागच्छामो जाव इहं हव्वमागया। तं कालगए णं भंते ! धम्मरुई अणगारे । इमे से आयारभंडए । धम्मरुइस्स सइसभा-पदं । २४. तए णं ते धम्मघोसा थेरा पुव्वगए उवयोगं गच्छंति, समणे निग्गंथे निग्गंथीयो य सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु अज्जो ! मम अंतेवासी धम्मरुई नाम अणगारे पगइभए पगइउवसंते पगइपयणकोहमाणमायालोभे मिउमद्दव-संपण्णे अल्लीणे भद्दए ° विणीए मासंमासेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे जाव' नागसिरीए माहणीए गिहं अणुपवितु । तए णं सा नागसिरी माहणी जाव तं सालइयं तित्तालाउयं बहुसंभारसंभियं नेहावगाढं धम्मरुइस्स अणगारस्स पडिग्गहंसि सव्वमेव ° निसिरह। तए णं से धम्मरुई अणगारे अहापज्जत्तमित्ति कटु नागसिरीए माहणीए गिहाम्रो पडिनिक्खमइ जाव' 'समाहिपत्ते कालगए। १. सं० पा०-सालइयस्स जाव नेहावगाढस्स। २. चिराइते (क); चिरगए (घ)। ३. सं० पा०--निग्गंथा जाव पडिसुणेति । ४. ना० १।१।२६ । ५. सं० पा०-सव्वओ जाव करेमाणा। ६. सं० पा०-पगइभद्दए जाव विणीए । ७. ना० १११६.१३ । ८. सं० पा०-माहणी जाव निसिरह। ६. ना० १।१६।१४ । १०. ना० १११६।१५-२१ । ११. अत्र 'कालं अणवखमाणे विहरइ' इति पाठो लभ्यते, किन्तु जाव शब्दसमर्पिते २१ सूत्रे 'समाहिपत्ते कालगए' इति पाठो वर्तते । तदनुसारेण अत्रास्माभिः स एव पाठः स्वीकृतः । Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ नायाधम्मक हाओ सेणं धम्मरुई अणगारे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता आलोइयपडिक्कं समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढे जाव' सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे देवत्ता उववण्णे । तत्थ णं प्रजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं साग रोमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं धम्मरुइस्स वि देवस्स तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । से णं धम्मरुई देवे ताम्रो देवलोगान प्राउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता • महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ || नागसिरीए गरिहा-पदं २५. तं धिरत्थु णं प्रज्जो ! नागसिरीए माहणीए अधन्नाए अपुष्णाए' दूभगाए दूभगसत्ताए दूभग निबोलियाए, जाए णं तहारूवे साहू साहुरूवे धम्म रुई अणगारे मासखमणपारणगंसि सालइएणं' तित्तालाउएणं बहुसंभारसं भिएणं नेहावगाढेणं अकाले चेव जीविया ववरोविए || O २६. तए णं ते समणा निग्गंथा धम्मघोसाणं थेराणं ग्रंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म चंपाए सिंघाडग-तिग- चउक्क-चच्चर-चउम्मुह महापहप हेसु बहुजणस्स एवमाक्खति एवं भासंति एवं पण्णवेति एवं परूवेंति - धिरत्थु णं देवापिया ! नागसिरीए जाव दूभर्गानबोलियाए, जाए णं तहारूवे साहू साहुरूवे धम्मरुई अणगारे साल इएणं' "तित्तालाउएणं बहुसंभारसंभिएणं • नेहावगाढे अकाले चेव जीवियाश्रो ववरोविए ॥ २७. तए णं तेसि समणाणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म बहुजणो ग्रण्णमण्णस्स एवम इक्खर एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ - धिरत्थु णं नागसिरीए माहणी जाव जीविया ववरोविए || नागसिरीए गिनिव्वासण-पदं २८. तए णं ते माहणा चंपाए नयरीए बहुजणस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म प्रासुरुत्ता रुट्टा कुविया चंडिक्किया० मिसिमिसेमाणा जेणेव नागसिरी माहणी तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता नागसिरिं माहणि एवं वयासी"हंभो नागसिरी ! अपत्थियपत्थिए ! दुरंतपंतलक्खणे ! हीणपुण्णचाउ से ! [सिरि- हरि-धि- कित्तिपरिवज्जिए ? ] धिरत्थु णं तव ग्रधन्नाए अपुण्णाए १. ना० १।१।२११ । २. सं०पा० -- देवलोगाओ जाव महाविदेहे । ३. सं० पा० - अपुण्णाए जाव निंबोलियाए । ४. सं० पा० साल इएणं जाव नेहावगाढेणं । ५. तिसम्मा (क, ख, ग ) । ६. सं० पा० - तिग जाव बहुजणस्स । ७. ना० १।१६/२५ । ८. सं० पा० साल इएणं जाव नेहावगाढेणं । ६. ना० १।१६।२६ । १०. सं० पा० - आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणा । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमण (अवरकंका) २७६ दूभगाए दूभगसत्ताए दूर्भागनिंबोलियाए, जाए णं तुमे तहारूत्रे साहू साहरूवे धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि सालइएणं तित्तालाउएणं जाव' जीविया ववरोविए ।" उच्चावयाहिं प्रक्कोसणाहिं ग्रक्कोसंति, उच्चावयाहिं उद्धसणाहि उद्धसेंति, उच्चावयाहिं निब्र्भच्छणाहिं निब्भच्छेति, उच्चावयाहिं निच्छोडणाहि निच्छोडेंति, तज्जेति तालेंति, तज्जित्ता तालित्ता सयाओ गिहाम्रो निच्छुभंति ॥ २६. तए णं सा नागसिरी सयाओ गिहाम्रो निच्छूढा समाणो चंपाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर- चउम्मुह - महापहप हेसु बहुजणेणं हीलिज्जमाणी खिसिज्ज माणी निदिज्जमाणी गरहिज्जमाणी तज्जिज्जमाणी पव्वहिज्जमाणी' धिक्कारिज्माणी थुक्कारिज्जमाणी कत्थइ ठाणं वा निलयं वा लभमाणी दंडीखंड - निवसणा* खंडमल्लय-खंडघडग - हत्थगया फुट्ट - हडाहड-सीसा मच्छियाचडगरेणं अन्निज्ज माणमग्गा गेहंगेहेणं देहं बलियाए वित्ति कप्पेमाणी विहरइ ॥ नागसिरीए भवभमण-पदं ३०. तए णं तीसे नागसिरीए माहणीए तब्भवंसि चेव सोलस रोगायंका" पाउब्भूया । [ तं जहा सासे कासे' "जरे दाहे, जोणिसूले भगंदरे । रिसा अजीरए दिट्ठी - मुद्धसूले अकारए || च्छिणा कण्णवेणा कंडू दउदरे • कोढे ॥ १ ॥ ] ३१. तए णं सा नागसिरी माहणी सोलसेहि रोगायकेहि अभिभूया समाणी श्रट्ट-दुहट्टवसट्टा कालमासे कालं किच्चा छुट्टाए पुढवीए उक्कोसं बावीससागरोवमट्ठिइएस् नरएसु नेरइयत्ताए उबवण्णा । सा णं तो अनंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववण्णा" । तत्थ णं सत्यवज्भा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा आहेसत्तमाए पुढवीए 'उक्कोसं तेत्तीस - सागरोवमट्ठिईएस" नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा । १. ना० १।१६।२५ । २. १।१८१८ सूत्रे निब्भच्छेइ । ३. तालिज्जमाणी वहिज्ज माणी (घ ) । ४. वसणा (क, ख, ग ) । ५. फट्ट ( ख ) । ६. देहबलियाए (क, ख, ग, घ ); देहबलिका ११ तया, अनुस्वारो नैपातिकः ( वृ ) । ७. रोयायका ( ख ) । ८. सं० पा० - कासे जोणिसूले जाव कोढे । ६. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । १०. उववज्जइ ( क, ख ) 1 उक्कोससाग रोवम ( क, ख ) । Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० नायाधम्मकहाओ सा णं तम्रोणंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चंपि मच्छेसु उववज्जइ। तत्थ वि य णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चपि अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसं तेत्तीससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जइ । सा णं तरोहितो' उव्वट्टित्ता तच्चपि मच्छेसु उववण्णा । तत्थ वि य णं सत्थवज्झा' दाहवक्कंतीए ° कालमासे कालं किच्चा दोच्चंपि छद्राए पूढवीए उक्कोसं बावीससागरोवमट्टिइएसु ने रइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा। तोणंतरं उव्वट्टिता उरगेसु, एवं जहा गोसाले तहा नेयव्वं जाव रयणप्पभानो पुढवीनो उव्वट्टित्ता 'सण्णीसु उववण्णा। तो उव्वट्टित्ता असण्णीसु उववण्णा । तत्थ वि य णं सत्थवज्झा दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि रयणप्पभाए पुढवीए पलिअोवमस्स असंखेज्जइभागट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा। तओ उव्वट्टित्ता जाइं इमाइं खहयरविहाणाई' जाव अदुत्तरं च खरबायर पुढविकाइयत्ताए, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो॥ सूमालिया-कहाणग-पदं ३२. साणं तप्रोणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए सागर दत्तस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि दारियत्ताए पच्चायाया ।। ३३. तए णं सा भद्दा सत्थवाही नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारियं पयाया सुकुमालकोमलियं गयतालुयसमाणं ।। ३४. तए णं तीसे णं दारियाए निव्वत्तबारसाहियाए अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्ज करेंति-जम्हा णं अम्हं एसा दारिया सुकुमालकोमलिया गयतालुयसमाणा, तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्ज सुकुमालिया-सुकुमालिया ।। १. अत्रापि पूर्वोक्तक्रमानुसारेण भूतकाल क्रिया- इमाई खहयरविहाणाइं (क, ख, ग, घ ) प्रयोगो युज्यते, किन्तु अादर्शेषु तथा नोप- एष संक्षिप्तपाठोऽस्ति । भगवत्यनुसारेण लभ्यते। अस्य स्थाने पाठः पूरितोस्ति । समर्पणसूत्रे २. तओहितो जाव (क, ख, ग, घ)। एतत् प्रायः पाठस्य संक्षेपः कृतो लभ्यते । अत्रापि पदमनावश्यक प्रतिभाति । स एव क्रमः अनुसृतोस्ति, किन्तु संज्ञिभवान३. सं० पा०-सत्थवज्झा जाव कालमासे । न्तरं खेचरयोनो जन्म नाभूत् । स्वीकृतपाठा४. उक्कोसेणं (क, ख, ग, घ)। वलोकनेन एतत् स्पष्टं भवति । ५. भग०१५।१८६ । ७. भग० १५२१८६। ६. सण्णीसु उववण्णा तो उव्वट्टित्ता जाइं ८. पू०-ना० १।१६।१२४ । Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २८१ ३५. तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति सूमालियत्ति ॥ ३६. तए णं सा सूमालिया दारिया पंचधाईपरिग्गहिया [तं जहा-खीरधाईए' 'मज्जणधाईए मंडावणधाईए खेल्लावणधाईए अंकधाईए] ' अंकानो अंक साहरिज्जमाणी रम्मे मणिकोट्टिमतले गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपगलया निवाय-निव्वाघायंसि 'सुहंसुहेणं ° परिवड्डइ । सूमालियाए सागरेण सद्धि विवाह-पदं ३७. तए णं सा सूमालिया दारिया उम्मुक्कबालभावा' 'विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता° रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्टसरीरा जाया यावि होत्था। ३८. तत्थ णं चंपाए नयरीए जिणदत्ते नाम सत्थवाहे-अड्ढे ।। ३६. तस्स णं जिणदत्तस्स भद्दा भारिया-सूमाला इट्ठा माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणा विहरइ॥ ४०. तस्स णं जिणदत्तस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सागरए नामं दारए सुकुमालपाणिपाए जाव' सुरूवे ।। ४१. तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे अण्णया कयाइ सयानो गिहाम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स अदूरसामतेणं वीईवयइ । इमं च णं सूमालिया दारिया पहाया चेडिया-चक्कवाल-संपरिवडा" उप्पि अागासतलगंसि कणग-तिदूसएणं 'कीलमाणी-कीलमाणी'' विहरइ ।। ४२. तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे सूमालियं दारियं पासइ, पासित्ता सूमालियाए दारियाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य जायविम्हए कोडुबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! कस्स दारिया ? किं वा नाम धज्जं से? ४३. तए णं ते कोडुबियपुरिसा जिणदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा हतुवा करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स धूया भद्दाए भारियाए अत्तया १. सं० पा०-खीरधाईए जाव गिरिकंदर- ६. इट्ठा जाव (ख, घ)। मल्लीणा। ७. ना० १११।१७ । २. असो कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांश: प्रतीयते। ८. साओ (क, ख, ग)। ३. X (ख)। ६. संघपरिवुडा (ग)। ४. सं० पा०-निव्वाघायंसि जाव परिवड्ढइ। १०. कीलमाणी (ख, ग)। ५. सं० पा०—उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण । ११. सं० पा०-करयल जाव एवं । Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ नायाधम्मक हाओ सूमालिया नाम दारिया - सुकुमालपाणिपाया जाव' रूवेण य जोव्वणेण य लावणे य उक्किट्ठा ॥ ४४. तए णं जिणदत्ते सत्थवाहे तेसि कोडुंबियाणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पहाए मित्त-नाइ परिवुडे चंपाए नयरीए मज्मणं जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागए ॥ ४५. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे जिणदत्तं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणा प्रभु, प्रभुत्ता ग्रासणेणं उवनिमंतेइ उवनिमंतेत्ता ग्रासत्थं वीसत्थं सुहासणवरगयं एवं वयासी-भण देवाणुप्पिया ! किमागमणपोयणं ? ४६. तए णं से जिणदत्ते सागरदत्तं एवं क्यासी - एवं खलु ग्रहं देवाणुप्पिया ! तव धूयं भद्दा प्रतियं मालियं सागरस्स भारियत्ताए वरेमि । जइ णं जाणह देवाप्पिया ! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा सरिसो वा संजोगो, ता दिज्जउ णं सूमालिया सागरदारगस्स । तए णं देवाणुप्पिया ! भण कि दलामो सुकं सूमालियाए ? ४७. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे जिणदत्तं सत्यवाहं एवं वयासी - एवं खलु देवाप्पिया ! सूमालिया दारिया एगा एगजाया' इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा जाव उंबरपुप्फं व दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? तं नो खलु ग्रहं इच्छामि सूमालियाए दारिवाए खणमवि विप्पोगं । तं जइ णं देवाप्पिया ! सागरए दारए मम घरजामाउए भवइ, तो णं ग्रहं सागरस्स सूमालियं दलयामि ॥ ४८. तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वृत्ते समाणे जेणेव ए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरगं' दारगं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - एवं खलु पुत्ता ! सागरदत्ते सत्थवाहे ममं एवं वयासी - एवं खलु देवाप्पिया ! सूमालिया दारिया - इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा जाव" उंबरपुप्फं व दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? तं नो खलु ग्रहं इच्छामि सूमालियाए दारियाए खणमवि विप्पनोगं । तं जइ णं सागरए दारए मम घरजामाउए भवइ, 'तो णं" दलयामि ॥ १. ना० १1८1६० । २. सागरदत्तस्स दारगस्स ( ख, ग ) । ३. दलामो ( क ) । ४. सुकं (ख); सुक्कं (घ) । ५. मम एगा धूया ( क ) ६. एगा जाया (ख, घ ) । ७. ना० १।१।१०६ । ८. सागरं ( ग, घ ) । ६. सं० पा० - इट्ठा तं चेव । १०. ना० १।१।१०६ । ११. जाव (ख, घ) । Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २८३ ४६. तए णं से सागरए दारए जिणदत्तणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए ॥ ५०. तए णं' जिणदत्ते सत्थवाहे अण्णया कयाइ सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त मुहत्तंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्तनाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं° पामतेइ, जाव' सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता सागरं दारगं हायं जाव' सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरूहावेइ', मित्त-नाई-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि ° परिवुडे सव्विड्डीए सयाओ' गिहारो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता चपं नरि मझमझेणं जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयानो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सागरगं दारगं सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स उवणेइ ॥ ५१. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता जाव' सम्माणेत्ता सागरगं दारगं सूमालियाए दारियाए सद्धि पट्टयं दुरूहावेइ, दुरूहावेत्ता सेयापीएहि कलसेहिं मज्जावेइ, मज्जावेत्ता अग्गिहोम करावेइ, करावेत्ता 'सागरगं दारयं'११ सूमालियाए दारियाए पाणि गेण्हावेइ॥ सागरस्स पलायण-पदं ५२. तए णं सागरए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं 'पाणिफासं पडिसंवेदेइ'१२, से जहानामए---असिपत्ते इ वा •करपत्ते इ वा खुरपत्ते इ वा कलंबचीरिगापत्ते इ वा सत्तिअग्गे इ वा कोतग्गे इ वा तोमरग्गे इ वा भिडिमालग्गे इ वा सूचिकलावए इ वा विच्छुयडंके इ वा कविकच्छू इ वा इंगाले इ वा मुम्मुरे इ वा अच्ची इ वा जाले इ वा अलाए इ वा सुद्धागणी इ वा भवे एयारूवे? नो इणढे समढे । एत्तो अणि?तराए चेव अकंततराए चेव अप्पियतराए चेव अमणण्णतराए चेव अमणामतराए चेव ० पाणिफासं संवेदेइ ।। ५३. तए णं से सागरए अकामए अवसवसे" मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ ॥ ५४. तए णं सागरदत्ते सत्थवाहे सागरस्स अम्मापियरो मित्त-नाइ- नियग-सयण १. णं से (ख, घ)। १०. होम (क, ख, ग, घ)। २. सं० पा०-नाइ० । ११. सागरस्स (क)। ३. ना० १।१४।५३ । १२. संपडिवेदेति (ख); पाणिं फासेंति संपडिवेदेति ४. ना० १११।४७ । (ग); संवेदेइ (क्व)। ५. द्रुहावेइ (क, ख)। १३. सं० पा०-असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ ६. सं० पा०-नाइ जाव पडिवुडे । __ वा एत्तो अणि?तराए चेव । ७. सातो (क, ख, ग, घ)। १४. अवसव्वसे (ख, ग); अपस्ववशः अपगतात्म८. ना० १।१६।५० । तंत्र इत्यर्थः (वृ)। ६. सीयापीयएहि (ख, ग); सीयापीएहिं (घ)। १५. सं० पा०-नाइ० । Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ नायाधम्मकहानो संबंधि-परियणं विपुलेणं' असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ- गंध मल्लालंकारेण य सक्कारेत्ता ° सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। ५५. तए णं सागरए सूमालियाए सद्धि जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ,उवागच्छित्ता सूमालियाए दारियाए सद्धि तलिमंसि' निवज्जइ ।। ५६. तए णं से सागरए दारए सुभालियाए दारियाए इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ, से जहानामए- असिपत्ते इ वा जाव' एत्तो अमणामतरागं चेव अंगफासं पच्चणब्भवमाणे विहरइ॥ ५७. तए णं से सागरए दारए सूमालियाए दारियाए अंगफासं असहमाणे अवसवसे' मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ॥ ५८. तए णं से सागरदारए सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सूमालियाए दारियाए पासाम्रो उद्वेइ, उद्वेत्ता जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणिज्जसि' निवज्जइ ।। ५६. तए णं सा सूमालिया दारिया तो मुहुत्तंत रस्स पडिबुद्धा समाणी पइव्वया" पइमणुरत्ता पइं पासे अपस्समाणी तलिमानो उठेइ, उद्वेत्ता जेणेव से सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरस्स पासे णुवज्जइ ॥ ६०. तए णं से सागरदारए सूमालियाए दारियाए दोच्चंपि इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ जाव अकामए अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ ॥ ६१. तए णं से सागरदारए सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सयणिज्जायो उढेइ, उद्वेत्ता वासघरस्स दारं विहाडेइ, विहाडेत्ता मारामुक्के विव काए जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए ।। सूमालियाए चिता-पदं ६२. तए णं सा सूमालिया दारिया तो मुहुत्तंत रस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणु रत्ता पई पासे ° अपासमाणी सयणिज्जारो उढेइ, सागरस्स दारगस्स सव्वो समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासइ, पासित्ता एवं वयासी-गए णं से सागरए त्ति कटु अोहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया ° झियायइ ।। १. विपुलं (क, ख, ग, घ)। २. सं० पा०---वत्थ जाव सम्माणेत्ता। ३. तलिगंसि (ख, ग)। ४. ना० १११६१५२। ५. अवसव्वसे (क, ख, ग)। ६. सयणीयंसि (क, ख, घ)। ७. पतिवया (ख, ग, घ)। ८. तलिगायो (ख); तलियग्गतो (ग)। ६. ना० १।१६।५२,५३ । १०. सं० पा०-पतिवया जाव अपासमाणी । पतिवया० (ग, घ)। ११. सं० पा०-पोहयमणसंकप्पा जाव झियायइ। Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २८५ ६३. तए णं सा भद्दा सत्थवाही कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' उट्ठियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते दासचेडि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुम देवाणुप्पिए ! बहूवरस्स मुधोवणियं' उवणेहि ।। ६४. तए णं सा दासचेडी भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ता समाणी एयमटुं तहत्ति पडि सुणेइ, पडिसुणेत्ता मुहधोवणियं गेण्हइ,गेण्हित्ता जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं' 'प्रोहयमणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहिं अट्टज्झाणोवगयं झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी-किण्णं तुमं देवाणुप्पिए ! प्रोहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया • झियाहि ? ६५. तए णं सा सूमालिया दारिया तं दासचेडिं एवं वयासी -एवं खलु देवाणुप्पिए ! सागरए दारए ममं सुहपसुत्तं जाणित्ता मम पासानो उद्वेइ, उद्वेत्ता वासघरदुवारं अवंगुणेइ 'अवंगुणेत्ता मारामुक्के विव काए जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसिं° पडिगए । तए णंह तो मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा •पतिव्वया पइमणुरत्ता पई पासे अपासमाणी सयणिज्जारो उद्धेमि सागरस्स दारगस्स सव्वो समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासघरस्स दारं ° विहाडियं पासामि, पासित्ता गए णं से सागरए ति कटु अोहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुहा अट्टज्माणोवगया ° झियायामि ।। ६६. तए णं सा दासचेडी सूमालियाए दारियाए एयमढे सोच्चा जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तस्स एयमटुं निवेदेइ ।। सागरदत्तेण जिणदत्तस्स उवालंभ-पदं ६७. तए णं से सागरदत्ते दासचेडीए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते रुद्र कूविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे जेणेव जिणदत्तस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिणदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया ! एयं जुत्तं वा पत्तं वा कुलाणुरुवं वा कुलसरिसं वा जण्णं सागरए दारए सूमालियं दारियं अदिट्ठदोसवडियं पइव्वयं विप्पजहाय इहमागए ? बहिं खिज्जणियाहि य रुंटणियाहि य उवालभइ ।। १. पू०-ना० ११११२४ । ६. सं० पा०-पडिबुद्धा जाव विहाडियं । २. म्हसोवणियं (क); सोहणियं (ख); ७. सं० पा०-ओहयमणसकप्पा जाव झिया___सोयणियं (ग)। यामि। ३. स० पा०-दारियं जाव झियायमाणि । ८. अदिदोसं (क, ग)। ४. सं० पा०-योहयमणसंकप्पा जाव झियाहि। ६. पइवयं (क, ख, ग, घ)। ५. अपंगुणेइ (ग) । सं० पा०-अवंगुणेइ जाव १०. X (क); कंटणियाहि (ग); रुढणियाहि पडिगए। (घ)। Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ सागरस्स पुणोगमण-व्वुदास-पदं ६८. तए णं जिणदत्ते सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स एयमट्ठे सोच्चा जेणेव सागरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरयं दारयं एवं वयासी - दुट्टु णं पुत्ता ! तुमे कयं सागरदत्तस्स गिहाश्रो इहं हव्वमागच्छंतेणं' । तं गच्छह णं तुमं पुत्ता ! 'एवमवि' गए" सागरदत्तस्स गिहे || ६६. तए णं से सागरए दारए जिणदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी -- अवियाई ग्रहं ताओ ! गिरिपडणं वा तरुपडणं वा मरुप्पवायं वा जलप्पवेसं वा जलणप्पवेसं वा विभक्खणं वा सत्थोवाडणं वा वेहाणसं' वा गिद्धपट्ठे वा पव्वज्जं वा विदेसगमणं वा अब्भुवगच्छेज्जा, नो खलु ग्रहं सागरदत्तस्स गिहं गच्छेज्जा" ॥ सूमालियाए दमगेण सद्धि पुणविवाह-पदं ! ७०. तणं से सागरदत्ते सत्थवाहे कुडुंतरियाए सागरस्स एयमट्ठे निसामेइ, निसामेत्ता लज्जिए विलीए विड्डे जिणदत्तस्स सत्यवाहस्स गिहाम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुकुमालियं दारिय सद्दावेइ, सद्दावेत्ता के निवेसेइ, निवेसेत्ता एवं वयासी - किणं तव पुत्ता सागरएणं दारएणं' ? ग्रहं णं तुमं तस्स दाहामि, जस्स गं तुमं इट्ठा कंता पिया मण्णा मणामा भविस्ससि त्ति सूमालियं दारियं ताहि इट्ठाहिं कंताहि पियाहि मणुष्णाहि मणामाहिं वग्गूहिं" समासासेइ, समासासेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ ७१. तणं से सागरदत्ते सत्थवाहे ग्रण्णया उप्पि श्रागासतलगंसि सुहनिसण्णे रायमग्गं प्रोलोएमाणे - प्रोलोएमाणे चिट्ठइ || o ११२ ७२. तए णं से सागरदत्ते एगं महं दमगपुरिसं पासइ - दंडिखंड - निवसणं" खंडमल्लगखंडघडग- हत्थगयं 'फुट्ट - हडाहड-सीसं मच्छिया सहस्सेहिं "" अन्निज्ज माणमग्गं ॥ ७३. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीतुम्भेणं देवाणुप्पिया ! एवं दमगपुरिसं विपुलेणं असण- पाण -खाइम - साइमेणं १. हव्वमागए (ख, घ) । २. एमवि ( क ) । ३. इत्थमपिगते - श्रस्मिन् कार्ये ( १ | १६ | २६६ ११. वसणं ( ख, ग ) । सूत्रस्य वृत्तिः) । ४. मरुप्प वेसं ( क ) ५. विणसं ( ख ) । नाय धम्मक हाओ ६. गेद्धपट्ठे ( ख, ग ) । ७. अणुगच्छेज्जा ( क ) । 5. दारणं मुक्का (घ) । ६. सं० पा० - इट्ठा जाव मणामा | १०. बहूहिं वग्गूहिं (घ) 1 १२. मच्छियासहस्सेहिं जाव (क, ख, ग, घ ) । आदर्शेषु पाठान्तररूपेण निदर्शितः पाठः उपलभ्यते, किन्तु अस्मिन् 'जाव' पदस्य विपर्ययो जातः । हत्थगयं जाव' इति पाठरचना युक्तास्ति । प्रस्तुताध्ययनस्य २६ सूत्रावलोकनेन एतत् स्पष्टं जायते । Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २८७ पलोभेह', गिहं अणुप्पवेसेह', अणुप्पवेसेत्ता खंडमल्लगं खंडघडगं च से एगते एडेह, एडेत्ता अलंकारियकम्मं करेह, हायं कयबलिकम्म' 'कय-कोउय-मंगलपायच्छित्तं° सव्वालंकारविभूसियं करेह, करेत्ता मणुण्णं असण-पाण-खाइम साइमं भोयावेह, मम अंतियं उवणेह ॥ ७४. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव से दमगपुरिसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं दमगं असण-पाण-खाइम-साइमेणं उवप्पलोभेति, उवप्पलोभेत्ता सयं गिह अणप्पसंति, अणप्पवेसेत्ता तं खंडमल्लगं खंडघडगं च तस्स दमगपुरिसस्स एगते एडेंति ।। ७५. तए णं से दमगे तंसि खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि य एडिज्जमाणंसि महया-महया सद्देणं आरसइ॥ ७६. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे तस्स दमगपुरिसस्स तं महया-महया पारसिय सई सोच्चा निसम्म कोडुंबियपुरिसे एवं बयासी-किन्नं देवाणुप्पिया ! एस दमगपुरिसे महया-महया सद्देणं आरसइ ? ७७. तए णं ते कोडुबियपुरिसा एवं वयंति--एस णं सामी ! तंसि खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि य एडिज्जमाणंसि महया-महया सद्देणं आरसइ । ७८. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे ते कोडुबियपुरिसे एवं वयासी-मा णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! एयस्स दमगस्स तं खंड मल्लगं खंडघडगं च एगते ° एडेह, पासे से ठवेह जहा 'अपत्तियं न भवइ । ते वि तहेव ठवेंति', ठवेत्ता तस्स दमगस्स अलंकारियकम्मं करेंति, करेत्ता सयपागसहस्सपागेहि तेल्लेहि अब्भंगेति, अब्भंगिए समाणे सुरभिणा गंधट्टएणं गायं उव्वटेंति, उव्वदे॒त्ता उसिणोदग-गंधोदएणं ण्हाणेति, सीग्रोदगेणं हाणेति, पम्हल-सुकुमालाए गंधकासाईए गायाई ल हेति, ल हेत्ता हंसलक्खणं पडगसाडगं परिहेति, सव्वालंकारविभूसियं करेंति, विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं भोयाति, भोयावेत्ता सागरदत्तस्स उवणेति"।। १. पडिलाभेह (घ) अशुद्ध प्रतिभाति । २. अणुपविसेह (ग)। ३. सं० पा०-कयबलिकम्मं जाव सव्वालंकार विभूसियं । ४. ना० १११।१२६ । ५. उवलोभेति (क)। ६. सं० पा०-खंड जाव एडेह । ७. णं पत्तियं (ख, ग, घ)। ८. ठावेंति (ख, ग)। ६. अभिगिए (ग)। १०. गंधोद्धएणं (क, घ); गंधुदएणं (ख); गंध दूएणं (ग); गंधवट्टएणं (क्व०) । अत्र लिपिदोषेण वर्णपरिवर्तनं जातम् । उद्वर्तनप्रकरणे उद्वर्तकवस्तुनिर्देशो युज्यते । अतः एवात्र 'गंधट्टएणं' इति पाठः स्वीकृतः । स्थानाङ्ग (३८७) पि एतत् तुल्यप्रकरणे असौ पाठ उपलभ्यते। ११. समीवे उवणेति (क्व)। Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ नाया महाओ ७६. तणं से सागरदत्ते सत्थवाहे सूमालियं दारियं पहायं जाव' सव्वालंकारविभूसियं करेत्ता तं दमगपुरिसं एवं वयासी - एस णं देवाणुप्पिया ! मम धूया इट्ठा कंता पिया मण्णा मणामा । एयं णं ग्रहं तव भारित्ताए दलयामि भद्दियाए भद्दश्रो भवेज्जासि' ।। दमगस्स पलायण-पदं ८०. तणं से दमगपुरिसे सागरदत्तस्स एयमट्ठे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सूमालियाए दारियाए सद्धि वासघरं प्रणुपविस, सूमालियाए दारियाए सद्वि तलिमंसि निवज्जइ ॥ ८१. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए इमेयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ, से जहानाम - असिपत्ते इ वा जाव' एत्तो अमणामतरागं चेव अंगफासं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ ॥ ८२. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए दारियाए अंगफासं असहमाणे वसवसे मुत्तमेत्तं संचि ॥ ८३. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सूमालियाए दारियाए पासा उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणिज्जं सि निवज्जइ ॥ ८४. तए णं सा सूमालिया दारिया तम्रो मुहत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी पइव्वया पइमरता पई पासे अपस्समाणी तलिमाश्रो उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव से सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दमगपुरिसस्स पासे णुवज्जइ || ८५. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियाए दारियाए दोच्चपि इमं एयारूवं श्रंगफासं पडसंवेदे जाव' कामए अवसवसे मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ ॥ ८६. तए णं से दमगपुरिसे सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सयणिज्जाओ 'प्रभु, प्रभुत्ता वासघराम्रो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता खंडमल्लगं खंडघडगं च गहाय मारामुक्के विव काए जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए || सूमालियाए पुणोचिता-पदं ८७. तए णं सा सूमालिया' 'दारिया तो मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणु १. ना० १।१।४७ । २. दलामि ( क ) । ३. भवेज्जाहि ( ग ) । ४. सं० पा० - सेसं जहा सागरस्स जाव सय णिज्जाओ । ५. ना० १।१६।५२ । ६. ना० १।१६।५२, ५३ । ७. पब्भुट्ठेइ २ ( क ग ) । ८. दिसं (क, ख ) । ६. सं० पा० - सूमालिया जाव गए । Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २८६ रत्ता पई पासे अपासमाणी सयणिज्जागो उद्वेइ, दमगपुरिसस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासइ, पासित्ता एवं वयासी - गए णं से दमगपुरिसे त्ति कटु अोहयमणसंकप्पा' करतल पल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ° झियायइ ।।। ८८. तए णं सा भद्दा कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते दासचेडि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं' 'वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिए ! बहूवरस्स मुहधोवणियं उवणेहि ॥ ८६. तए णं सा दासचेडी भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ता समाणी एयमटुं तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता मुहधोवणियं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं प्रोहयमणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहि अट्टज्झाणोवगयं झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी--किण्णं तुम देवाणुप्पिए ! अोहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया झियाहि ? १०. तए णं सा सूमालिया दारिया तं दासचेडिं एवं वयासी ---एवं खलु देवाणप्पिए ! दमगपुरिसे ममं सुहपसुत्तं जाणित्ता मम पासाप्रो उद्वेइ, उद्वेत्ता वासघरदुवारं अवंगुणेइ, अवंगुणेत्ता मारामुक्के विव काए जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णंहं तो मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पतिव्वया पइमणुरत्ता पई पासे अपासमाणी सयणिज्जायो उद्धेमि, दमगपुरिसस्स सव्वनो समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणी-करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासामि, पासित्ता गए णं से दमगपुरिसे त्ति कटु प्रोहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया झियायामि ॥ ६१. तए णं सा दासचेडी सूमालियाए दारियाए एयमढे सोच्चा जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तस्स एयमढें निवेदेइ ॥ सूमालियाए दाणसाला-पदं ६२. तए णं से सागरदत्ते तहेव संभंते समाणे जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं अंके निवेसेइ, निवेसेत्ता एवं वयासी-अहो णं तुमं पुत्ता ! पुरापोराणाणं' 'दुच्चिण्णाणं दुप्परक्कंताणं कडाणं पावाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं° पच्चणुब्भवमाणी विहरसि । तं मा णं तुम पुत्ता! अोहयमणसंकप्पा' 'करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया ° झियाहि । १. सं० पा०-ओहयमणसंकप्पा जाव झिया- ४. सं० पा०-पुरापोराणाणं जाव पच्चणुब्भयइ। माणी। २. पू०-ना० १।१।२४ । ५. सं० पा०-ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि । ३. सं० पा०-एवं जाव सागरदत्तस्स । Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० नायाधम्मक हाओ तुमं णं पुत्ता ! मम महासंसि विपुलं असण- पाण- खाइम साइमं उवक्खडावेहि, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण - माहण - प्रतिहि किवण - वणीमगाणं देयमाणी दवावेमाणी य° परिभाएमाणी विहराहि || ९३. तए णं सा सूमालिया दारिया एयमट्ठे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता [ कल्ला कल्लि ? ] महासंसि विपुलं असण- पाण- खाइम - साइम' उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता बहूणं समण - माण - अतिहि-किवण-वणीमगाणं देयमाणी य दवावेमाणी य परिभाएमाणी विहरइ ॥ प्रज्जा-संघाडगस्स भिक्खायरियागमण-पदं ६४. तेणं कालेणं तेणं समएणं गोवालिया अज्जाश्रो' बहुस्सुयाश्रो "बहुपरिवाराश्रो पुव्वाणुपुव्वि चरमाणीश्रो जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ग्रहापरूिवं ओग्गहं योगिण्हंति, गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणी विहरति । ६५. तए णं तासि गोवालियाणं प्रज्जाणं एगे संघाडए' जेणेव गोवालिया प्रज्जाश्रो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोवालिया अज्जाश्रो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामो णं तुब्भेहि प्रब्भणुण्णाए चंपाए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए प्रत्तिए । हासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि || ६६. तए णं ताम्रो अज्जाश्रो गोवालियाहिं अज्जाहि प्रब्भणुष्णाया समाणी भिक्खायरियं प्रमाणी सागरदत्तस्स गिहं प्रणुष्पविट्ठाओ । सूमालियाए सागरपसायोवाय- पुच्छा-पदं ६७. तए णं सूमालिया ताम्रो ग्रज्जा एज्जमाणीओ पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठा ग्रासणा भुइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता विपुलेणं प्रसण- पाणखाइम साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता एवं वयासी - एवं खलु ग्रज्जाश्रो ! ग्रहं सागरस्स प्रणिट्ठा' कंता अप्पिया अमणुष्णा श्रमणामा ! नेच्छइ णं सागरए दारए मम नाम गोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा ? o १. सं० पा० - जहा पोट्टिला जाव परिभाएमाणी । २. सं० पा० - साइमं जाव परिभाएमाणी । ६. पू० ना० १।१४,४१ । ७ पू० - ना० १।१४।४२ । ३. दलयमाणी (क, ग ); दलमाणी (ख, घ) । ४. पू० ना० १।१४।४० । ८. सं० पा०- अणिट्ठा जाव अमणामा । ५. सं० पा० - एवं जहेव तेयलिणाए सुव्वयाओ ε. सं० पा० - नामं वा जाव परिभोगं । हेव समोसढाओ तहेव संघाडओ जाव पट्टे व जासूमालिया । Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) २६१ जस्स-जस्स वि य णं देज्जामि' तस्स-तस्स वि य णं अणिट्ठाअकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा भवामि। तुब्भे य णं अज्जागो ! बहुनायाओ' 'बहुसिक्खियाप्रो बहुपढियानो बहूणि गामागर-णगर - खेड-कब्बड - दोणमुह-मडंब-पट्टण-प्रासम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं आहिंडह, बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेटि-सेणावइसत्थवाहपभिईणं गिहाई अणुपविसह। तं अत्थियाई भे अज्जायो ! केइ कहिंचि चुण्णजोए वा मंतजोगे वा कम्मणजोए वा कम्मजोए वा हियउड्डावणे वा काउड्डावणे वा प्राभियोगिए वा वसीकरणे वा कोउयकम्मे वा भूइकम्मे वा मूले वा कंदे वा छल्ली वल्ली सिलिया वा गुलिया वा प्रोसहे वा भेसज्जे वा ° उवलद्धपुव्वे, जेणं अहं सागरस्स दारगस्स इट्ठा कंता 'पिया मणुण्णा मणामा° भवेज्जामि ? प्रज्जा संघाडगस्स उत्तर-पदं ६८. "तए णं तारो अज्जानो सूमालियाए एवं वुत्तानो समाणीअो दोवि कण्णे ठएंति, ठएत्ता सूमालियं एवं वयासी-अम्हे णं देवाणुप्पिए ! समणीओ निग्गंथीओ जाव' गुत्तबंभचारिणीअो नो खलु कप्पइ अम्हं एयप्पगारं कण्णेहि वि निसामित्तए, किमंग पुण उवदंसित्तए वा आयरित्तए वा अम्हे णं तव देवाणुप्पिए ! विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहिज्जामो ।। सूमालियाए साविया-पदं ६६. तए णं सा सूमालिया ताओ अज्जायो एवं वयासी-इच्छामि णं अज्जायो ! तुब्भं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्म निसामित्तए । १००. तए णं तानो अज्जायो सूमालियाए विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहेंति ।। १०१. तए णं सा सूमालिया धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठा एवं वयासी—सदहामि णं अज्जायो ! निग्गंथं पावयणं जाव' से जहेयं तुब्भे वयह । इच्छामि णं अहं तुब्भं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्त सिक्खावइयं - दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जित्तए। अहासुहं देवाणु प्पिए ! १०२. तए णं सा सूमालिया तासि अज्जाणं अंतिए पंचाणव्वइयं जाव' गिहिधम्म पडिवज्जइ, ताो अज्जायो वंदइ नमसइ, वदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ ।। १. देज्जाहि (क)। साविया जाया तहेव चिंता तहेव सागरदत्तं २. स. पा०-अणिट्टा जाव अमणामा। आपुच्छति । ३. सं० पा०-बहुनायाओ एवं जहा पोट्टिला ६. ना० १।१४।४० । जाव उवलद्धे । ७. ना० १११०१। ४. सं० पा०-कंता जाव भवेज्जामि। 5. ना० १।१४।४७ । ५. सं० पा०-अज्जाओ तहेव भणंति तहेव Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ धम्मकाओ १०३. तए णं सा सूमालिया समणोवासिया जाया जाव' समणे निग्गंथे फासुएणं एसणिज्जेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं वत्थ-पडिग्गह- कंबल - पायपुंछणेणं सहभेज्जेणं पाsिहारिएण य पीढ - फलग - सेज्जा - संथारएणं पडिला भेमाणी विहरइ ॥ सूमालियाए पव्वज्जा - पदं १०४. तए णं तोसे सूमालियाए ग्रण्णया कयाइ पुव्त्ररत्तावरत्तकालसमयं सि डुबजागरियं जागरमाणीए प्रयमेयारूवे ग्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था - एवं खलु ग्रहं सागरस्स पुव्वि इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मामा सि, इयाणि प्रणिट्ठा अकंता अप्पिया अमगुण्णा श्रमणामा । नेच्छइ णं सागरए मम नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा ? जस्स-जस्स वि य णं देज्जामि तस्स तस्स वि य णं अणिट्ठा प्रकंता अप्पिया अण्णा श्रमणामा भवामि । तं सेयं खलु ममं गोवालियाणं अज्जाणं प्रतिए पव्वइत्तए – एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव सागरदत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए गोवालियाणं अज्जाणं अंतिए धम्मे निसंते, सेविय मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तं इच्छामि णं तुभेहि प्रब्भणुणाया पव्वइत्तए जाव' गोवालियाणं प्रज्जाणं प्रतिए पव्वइया || १०५. तए णं सा सूमालिया अज्जा जाया - इरियासमिया जाव' गुत्तबंभयारिणी बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम'- दसम दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं प्रप्पाणं भावेमाणी विहरइ ॥ o सूमालियाए श्रातावणा-पदं प्रज्जाओ १०६. तए णं सा सूमालिया अज्जा प्रण्णया कयाइ जेणेव गोवालिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी इच्छामि णं अज्जा ! तुब्भेहिं प्रब्भणुण्णाया समाणी चंपाए नयरीए बाहि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स प्रदूरसामंते छटुंछट्टेणं प्रणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुही प्रायवेमाणी विहरित्तए । १०७. तए णं तात्रो गोवालिया अज्जाओ सूमालियं अज्जं एवं वयासी - अम्हे गं १. ना० १।५।४७ / २. ना० १।१ २४ । ३. ना० १।१४।५३, ५४ । ४. ना० १।१४/४० । ५. सं० पा०-छट्टट्ठम जाव विहरइ । Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौलसम् अज्झयण (अवरकंका) २६३ अज्जो ! समणीओ निग्गंथी इरियासमियाओ जाव' गुत्तबंभचारिणीम्रो । न खलु म्हं कप्पइ बहिया गामस्स वा जाव' सण्णिवेसस्स वा छटुंछट्टेणं' • प्रणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुहीणं श्रायावेमाणीणं विहरितए । कप्पइ णं अम्हं अंतोउवस्सयस्स वइपरिक्खित्तस्स संघाडिबद्धियाए णं समतलपइयाए ' आयावेत्तए । १०८. तए णं सा सूमालिया गोवालियाए एयमद्वं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, मट्ठे प्रसद्दहमाणी प्रपत्तियमाणी अरोयमाणी सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छटुंछट्टेणं प्रणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सुराभिमुही आयावेमाणी ' विहरइ ॥ सूमालियाए नियाण-पदं १०६. तत्थ णं चंपाए ललिया नाम गोट्ठी परिवसइ - 'नरवइ दिन्न - पयारा" सम्मापिइ०नियण - निप्पिवासा वेसविहार-कय-निकेया' नाणाविह - प्रविणय पहाणा अड्डा Ta' बहुजणस्स परिभूया ॥ ११०. तत्थ णं चंपाए देवदत्ता नामं गणिया होत्था - सूमाला जहा ग्रंड -नाए" ॥ १११. तणं तीसे ललियाए गोट्ठीए ग्रण्णया कयाइ पंच गोट्ठिल्लगपुरिसा देवदत्ताए गणियाए सद्धिं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स " उज्जाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरति ॥ ११२. तत्थ णं एगे गोट्ठिल्लग पुरिसे देवदत्तं गणियं उच्छंगे धरेइ, एगे पिट्ठम्रो प्रायवत्तं धरेइ, एगे पुप्फपूरगं रएइ, एगे पाए रएइ, एगे चामरुक्खेवं करेइ ॥ ११३. तए णं सा सूमालिया अज्जा देवदत्तं गणियं तेहिं" पंचहिं गोट्ठिल्लपुरिसेहिं सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणि" पासइ, पासित्ता इमेयारूवे संकपे समुपज्जित्था - ग्रहो णं इमा इत्थिया पुरापोराणाणं" सुचिण्णाणं सुपरकंताणं कडाणं कल्लाणाणं कम्माणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्च १. ना० १।१४ ४० । २. ना० १।१।११५ । - छुट्टछट्टणं जाव विहरित्तए । ४. समतलवइयाए ( क ) ; ० पतियाए (ख, घ); • वतिया ( ग ) । ५. सं० पा०० - टुंछट्टेणं जाव विहरइ । ६. नरवइविदिण्णवियारा ( क, ख ) । ७. अम्मापि ० ( क, ख, ग ) । ८.निक्केया ( क ) ; विक्किया ( ख ); ३. सं० पा०-१ निक्किया ( ग ) । ६. ना० १।५।७ । १०. ना० १।३।५ । ११. x (ख, घ ) | १२. पाठान्तरे पाए रोवेइत्ति घृतजलाभ्यां आर्द्रति (वृ ) । १३. एहिं (क) । १४. भुंजाणी (क, ख, ग, घ ) । १५. सं० पा० - पुरापोराणाणं जाव विहरइ । o Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ नया मकाओ णुब्भवमाणी • विहरइ । तं जइ णं केइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियमबंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे प्रत्थि, तो णं ग्रहमवि प्रागमिस्सेणं भवग्गहणेणं इमेयारूवाई उरालाई • माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणी° विहरिज्जामि त्ति कट्टु नियाणं करेइ, करेत्ता आयावणभूमी पच्चोरुभइ || सूमालियाए बाउसियत्त-पदं ११४. तए णं सा सूमालिया प्रज्जा सरीरबाउसिया जाया यावि होत्था - भिक्खणंभिक्खणं हत्थे धोवेइ, पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंत राई धोवेइ, कक्खंतराई धोवेइ, गुज्भंत राई धोवेइ, जत्थ णं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा एइ, तत्थ वि य णं पुव्वामेव उदएणं प्रब्भुक्खेत्ता तम्रो पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ ॥ ११५. तए णं ताओ गोवालिया अज्जाश्रो सूमालियं अज्जं एवं वयासी - एवं खलु अज्जे ! ग्रम्हे समणीयों निग्गंथीयो इरियासमियायो जाव' बंभचेरधारिणी । नो खलु कप्पर म्हं सरीरबाउसियाए' होत्तए । तुमं च णं अज्जे ! सरीरबाउसिया' अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवेसि, पाए धोवेसि, सीसं धोस, मुहं धोवेसि, थणंतराई धोवेसि, कक्खंत राई धोवेसि, गुज्भंत राई धोवेसि, जत्थ णं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएसि, तत्थ वि य णं पुव्वामेव उदएणं अब्भुक्त्ता तो पच्छा ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा एसि । तं तुमं णं देवाप्पिए ! एयरस ठाणस्स आलोएहि निंदाहि गरिहाहि पडिक्कमाहि विट्टाहि विसोहि प्रकरणयाए अब्भुट्ठेहि, ग्रहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं • पडवज्जाहि ॥ ११६. तए णं सा सूमालिया गोवालियाणं श्रज्जाणं एयमट्ठ नो प्राढाइ नो परियाणाइ, 'अणाढायमाणी परियाणमाणी" विहरइ ॥ १० ११७. तए णं ताम्रो अज्जाश्रो सूमालियं अज्जं प्रभिक्खणं प्रभिक्खणं ही लेंति" निर्देति खिसेंति गरिहंति • परिभवंति अभिक्खणं अभिक्खणं एयमद्वं निवारेंति ।। १. सं० पा० - उरालाई जाव विहरिज्जामि । २. ० भूमीए ( ख, ग, घ ) । ३. ० बाउसा (क); • पाउसा ( ख, ग ); पाउसिया (घ ) । ४. ना० १।१४ । ४० । ५. ० पाउसिया ( ख, ग, घ ) । ६. पाउसिया (ख, घ ) । ७. सं० पा०-- धोवेसि जाव चेएसि । ८. सं० पा० - आलोएहि जाव पडिवज्जाहि । ६. प्रणाढाइमाणा अपरिजाणमाणा (क, घ); अणाढायमाणा परियाणमाणा ( ख ); अपरिजाणमाणा (ग) । १०. सं० पा० - हीलेंति जाव परिभवति । Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकका) २६५ सूमालियाए पुढोविहार-पदं ११८. तए णं तीसे सूमालियाए समणीहिं निग्गंथीहिं हीलिज्जमाणीए' निदिज्ज माणीए खिसिज्जमाणीए गरिहिज्जमाणीए परिभविज्जमाणीए अभिक्खणंअभिक्खणं एयमटुं° निवारिज्जमाणीए इमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था -जया णं अहं अगारमझे' वसामि, तया णं अहं अप्पवसा । जया णं अहं मुंडा भवित्ता पव्वइया, तया णं अहं परवसा। पुचि च णं ममं समणीग्रो प्राति परिजाणंति, इयाणि नो पाढंति नो परिजाणंति । तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' उट्रियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते गोवालियाणं अज्जाणं अंतियाग्रो पडिनिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते गोवालियाणं अज्जाणं अंतियानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ ११६. तए णं सा सूमालिया अज्जा अणोहट्टिया' अनिवारिया सच्छंदमई अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवेइ', 'पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराइं धोवेइ, कक्खंतराइं धोवेइ, गुझंतराइं धोवेइ, जत्थ णं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ, तत्थ वि य णं पुवामेव उदएणं अब्भुक्खेत्ता तो पच्छा ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेएइ। तत्थ वि य णं पासत्था पासत्थविहारिणी अोसन्ना प्रोसन्नविहारिणी कुसीला कुसीलविहारिणी संसत्ता संसत्तविहारिणी बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता, तीसं भत्ताई अणसणाए छेएत्ता, तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे अण्णयरंसि विमाणंसि देवगणियत्ताए उववण्णा। तत्थेगइयाणं देवीणं नवपलिनोवमाइं ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं सूमालियाए देवीए नवपलि प्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। दोवई-कहाणग-पदं १२०. तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जणवएस कंपिल्लपुरे नामं नयरे होत्था--वण्णप्रो॥ १. सं० पा०-हीलिज्जमाणीए जाव निवा- ५. पू०-ना० १।१।२४ । रिज्जमाणीए। ६. अणाहट्टिया (ख, घ)। २. सं० पा०-अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। ७. सं० पा०-धोवेइ जाव चेएइ। ३. अगारवास ° (ख)। ८. तत्थगतियाणं (क, ग)। ४. परिवसामि (क)। ६. ओ० सू० १। Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ नावाधम्मकहाओ १२१. तत्थ णं दुवए नामं राया होत्था-वण्णो '। १२२. तस्स णं चुलणी देवी । धट्ठज्जुणे कुमारे जुवराया ॥ १२३. तए णं सा सूमालिया देवी तानो देवलोगानो आउक्खएणं' •ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं° चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पंचालेसु जणवएसु कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो चुलणीए देवीए कुच्छिसि दारिय त्ताए पच्चायाया ॥ १२४. तए णं सा चुलणी देवी नवण्हं मासाणं' 'बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य राई दियाणं वीइक्कंताणं सुकुमाल-पाणिपायं जाव' ० दारियं पयाया। १२५. तए णं तीसे दारियाए निव्वत्तबारसाहियाए इमं एयारूवं नाम-जम्हा णं एसा दारिया दुपयस्स रण्णो धूया चुलणीए देवीए अत्तया, तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेज्जे दोवई ॥ १२६. तए णं तीसे अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिप्फन्न नामधेज्ज करेंति दोवई-दोवई॥ १२७. तए णं सा दोवई दारिया पंचधाईपरिग्गहिया जाव' गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपगलया निवाय-निव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्डइ ॥ १२८. तए णं सा दोवई रायवरकण्णा उम्मुक्कबालभावा •विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा ° उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था । १२६. तए णं तं दोवई रायवरकण्णं अण्णया कयाइ अंतेउरियानो ण्हायं जाव" सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करेत्ता दुवयस्स रण्णो पायवंदियं पेसेंति ।। तए णं सा दोवई रायवरकण्णा जेणेव दुवए राया तेणेव उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता दूवयस्स रणो पायग्गहणं करेइ॥ दोवईए सयंवर-संकप्प-पदं १३१. तए णं से दुवए राया दोवई दारियं अंके निवेसेइ, निवेसेत्ता दोवईए रायवर कण्णाए रूवे य जोवण्णे य लावण्णे य जायविम्हए दोवई रायवरकण्णं एवं वयासी-जस्स णं अहं तुमं पुत्ता ! रायस्स वा जुवरायस्स वा भारियत्ताए १३०. तएणता १. ओ० सू० १४ । २. सं० पा०-आउक्खएण जाव चइत्ता। ३. दुपयस्स (ख, ग)। ४. पयाया (क)। ५. सं० पा०-मासाणं जाव दारियं । १. ना० १३१२२० । ७. नामधेज्ज (ख, घ)। ८. ना० १।१६।३६ । ६. निव्वाय (क)। १०. सं० पा०-उम्मुक्कबालभावा __उक्किट्ठ सरीरा। ११. ना० ११११४७ । जाव Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालसमं अज्झयणं (अवरकंका) २६७ सयमेव दलइस्सामि, तत्थ णं तुमं सुहिया वा दुहिया वा भवेज्जासि। तए णं मम जावज्जीवाए हिययदाहे भविस्सइ। तं णं अहं तव पुत्ता ! अज्जयाए सयंवरं वियरामि । अज्जयाए णं तुमं दिन्नसयंवरा। ज णं तुम सयमेव रायं वा जवरायं वा वरेहिसि, से णं तव भत्तारे भविस्सइ त्ति कट ताहि इटाहि •कंताहि पियाहि मणुण्णाहिं मणामाहिं वगूहि ° आसासेइ, आसासेत्ता पडिविसज्जेइ ।। बारवईए दूयपेसण-पदं १३२. तए णं से दुवए राया दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तमं देवाणुप्पिया ! बारवई नयरिं । तत्थ णं तुमं कण्हं वासुदेवं समुद्दविजयपामोक्खे दस दसारे, बलदेवपामोक्खे पंच महावीरे, उग्गसेणपामोक्खे सोलस रायसहस्से, पज्जून्नपामोक्खायो अद्धट्ठामो कुमारकोडीओ, संबपामोक्खाप्रो सट्रि दृढतसाहस्सीओ, वीरसेणपामोक्खाग्रो एक्कवीसं वीरपुरिससाहस्सीओ', महासेणपामोक्खायो छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ, अण्णे य बहवे राईसर-तलवरमाडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहपभि इनो करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेहि, वद्धावेत्ता एवं वयाहि'--एवं खलु देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धूयाए, चूलणीए अत्तयाए, धट्ठज्जुणकुमारस्स भइणीए, दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्सइ। तं" णं तुब्भे दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा' अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह ।। १३३. तए णं से दूए करयल 'परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं ° कटट वयस्स रण्णो एयमढे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणप्पिया ! चाउग्घंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह । 'ते वि तहेव उवति " ॥ १३४. तए णं से दूए ण्हाए जाव" अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे चाउग्घंट आसरहं १. सं० पा०-इटाहि जाव आसासे इ। ८. सं० पा०-करयल जाव कटट । २. रायवरवीर ° (ख, ग); वीरसाहस्सीणं ६. सो वि तहेव उवट्ठवेति (क, ख, ग, घ); (१।५।६)। 'कोडुंबियपुरिसे' तथा 'उवट्ठवेह' एते क्रियापदे ३. वयह (क)। बहुवचनान्ते स्तः, तेनात्रापि बहुवचनान्ते ४. धिट्ट ° (ग)। क्रियापदे युज्यते । एवं प्रतीयते पाठपूरणे ५. ते (ख)। कश्चिद् विपर्ययो जातः। ६. अणुगिण्हमाणा (क, ग, घ)। १०. ना० १११।२७। ७. ° परिहीणा (ख, घ)। Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ मायाधम्मकहाओं दुरुहइ, दुरुहित्ता बहूहिं पुरिसेहि-सण्णद्ध'- बद्ध-वम्मिय-कवएहिं उप्पीलियसरासण-पट्टिएहि पिणद्ध-गेविजेहि प्राविद्ध-विमल-वरचिंध-पट्टेहिं ° गहियाउहपहरणेहि-सद्धि संपरिवुडे कंपिल्लपुरं नयरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, पंचालजणवयस्स मज्झमज्झेणं जेणेव देसप्पते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुरद्वाजणवयस्स' मझमज्झेणं जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बारवई नार मज्झमझेणं अणप्पविसइ, अणप्पविसत्ता जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटे अासरहं ठावेइ, ठावेत्ता रहाम्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता मणुस्सवगुरापरिक्खित्ते पायचारविहारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कण्हं वासुदेवं, समुद्दविजयपामोक्खे य दस दसारे जाव' 'छप्पन्न बलवगसाहस्सीयो" करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयइ–एवं खलु देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धयाए, चुलणीए अत्तयाए, धट्ठज्जुणकुमारस्स भइणीए, दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे अत्थि। तं णं तुब्भे दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे ° समोसरह ॥ १३५. तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स दूयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्टतुटू •चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण °-हियए तं दूयं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। कण्हस्स पत्थाण-पदं १३६. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरि तालेहि ॥ १३७. तए णं से कोडुंबियपुरिसे करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि ° कट्ट कण्हस्स वासुदेवस्स एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया“ भेरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामुदाइयं भेरि महया-महया सद्देणं तालेइ॥ १३८. तए णं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस सं० पा०-सण्णद्ध जाव गहिया । ५. सं० पा०-करयल तं चेव जाव समोसरह । २. सुरट्ट° (क, घ)। ६. सं० पा०-हट्टतुटू जाव हियए। ३. ना० १।१६।१३२। ७. सं० पा०-करयल० । ४. १३२ सूत्रानुसारेणाऽत्र 'सत्थवाहप्पभिइओ' ८. सामुदाणिया (ख, घ)। इति पाठः संगच्छते। Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अभयणं (अवर कंका) २६ o o दसारा जाव' 'महासेणपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सी श्रो" व्हाया जाव' सव्वालंकारविभूसिया जहाविभवइड्डिसक्कारसमुदएणं अप्पेगइया हयगया • एवं गयगया रह- सीया - संदभाणीगया अप्पेगइया पायविहारचारेणं' जेणेव कहे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल' परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु कण्हं वासुदेवं जएणं विजएणं वद्धावेंति । १३६. तए णं से कहे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासीखप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! ग्राभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह हय-गय"रह - पवरजोहकलियं चाउरंगिण सेणं सण्णा हेह, सण्णाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चपि । ते वि तहेव पच्चप्पिणंति ॥ १४०. तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणि रयणकुट्टिमतले रमणिज्जे पहाणमंडवंसि णाणामणि- रयण भत्ति चित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहणिसण्णे सुहोद एहि गंधोदहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं पुणो-पुणो कल्लाणग-पवर मज्जणविहीए मज्जिए जाव" ० अंजणगिरिकूडसन्निभं गयवई नरवई दुरूढे || १४१. तए णं से कण्हे वासुदेवे समुद्दविजयपामोक्खेहिं दसहिं दसारेहिं जाव" ग्रणंगसेणापामोक्खाहि गाहिं गणियासाहस्सीहिं सद्धि संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव दुंदुहि - निग्घोसनाइयरवेणं बारवई नयरिं मज्भंमज्भेणं निग्गच्छर, निग्गच्छित्ता सुरद्वाजणवयस्स मज्भंमज्झेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंचालजणवयस्स मज्भंमज्झेणं जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए || हत्थणाउरे दूयपेसण-पदं १४२. तए णं से दुवए राया दोच्चं पि दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरं" नयरं । तत्थ णं तुमं पंडुरायं सपुत्तयं १. ना० १।१६।१३२ । २. १३२ सूत्रानुसारेणाऽत्र 'सत्थवाहप्प भिइओ' इति पाठ: संगच्छते । ३. ना० १।१।४७ । ४. सं० पा० - हयगया जाव अप्पेगइया | ५. पायचारविहारेणं ( क, ख, ग ) । ६. सं० पा० - करयल जाव कण्हं । ७. अभिसेक्कं (क, ख, घ) । ८. सं० पा० - हयगय जाव पच्चष्पिणंति । ६. सं० पा०-- समत्तजालाकुलाभिरामे जाव अंजणगिरि० । १०. ओ० सू० ६३ । ११. ना० १ ५/६ १२. ना० १।१।३३ । १३. हरिथणपुरं (ख, घ) । Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ १४३. जुहिट्ठिल' भीमसेणं अज्जुणं नउलं सहदेवं, दुज्जोहणं भाइसय-समग्गं, गंगेयं विदुरं दोणं जयद्दहं सउणि कीवं आसत्थामं करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेहि, वद्धावेत्ता एवं वयाहि-एवं खलु देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धूयाए, चुलणीए अत्तयाए धट्ठज्जुणकुमारस्स भइणीए, दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्सइ । तं णं तुब्भे दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे ° समोसरह । तए णं से दूए' जेणेव हत्थिणाउरे नयरे जेणेव पंडुराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडुरायं सपुत्तयं-जुहिट्ठिलं भीमसेणं अज्जुणं नउलं सहदेवं, दुज्जोहणं भाइसय-समग्गं, गंगेयं विदुरं दोणं जयदहं सउणि कीवं आसत्थाम एवं वयइ-एवं खलु देवाणुपिया ! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो ध्याए, चुलणीए अत्तयाए, धट्ठज्जुणकुमारस्स भइणीए दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे अत्थि। तं णं तुब्भे दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह ॥ १४४. तए णं से पंडुराया जहा वासुदेवे नवरं- भेरी नत्थि जाव • जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । दूयपेसण-पदं १४५. एएणेव कमेणं __ तच्चं दूयं •एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! चंपं नयरिं । तत्थ णं १. जुहिटिल्लं (घ)। समोसरह । पंचम दूयं हथिसीसं नयरिं । २. भायसय ° (ख, घ)। तत्थ णं तुमं दमदंत रायं करयल जाव ३. सं० पा०-करयल जाव कटु तहेव जाव समोसरह । छटुं दूयं महुरं नयरिं। तत्थ णं समोसरह। तुम धरं रायं करयल जाव समोसरह । ४. सं० पा०–तए णं से दूए एवं वयासी जहा। सत्तमं दूयं रायगिहं नयरं। तत्थ ण तुम वासुदेवे नवरं भेरी नत्थि जाव जेणेव; सहदेवं जरासंधसुयं करयल जाव समोसरह । पू०-ना० १।१६।१३३,१३४ । अदम दूयं कोडिण्णं नयरं। तत्थ णं तुम ५. पू०-ना० १।१६।१३४ । रुप्पि भेसगसुयं करयल तहेव जाव समो६. ना० १।१६। १३५-१४१ । सरह । नवमं दूयं विराटं नयरिं । तत्थ णं ७. सं० पा०-तच्च दूयं चंपं नयरिं। तत्थ णं तमं कीयगं भाउसयसमग्गं करयल जाव तुमं कण्णं अंगरायं सल्लं नंदिरायं करयल समोसरह । दसमं दूयं अवसेसेसु गामागरतहेव जाव समासरह । चउत्थं दूयं सोत्तिमई नगरेसु अणेगाइं रायसहस्साइं जाव समोनयरिं । तत्थ णं तुमं सिसुपालं दमघोससुयं सरह । तए णं से दूए तहेव निग्गच्छइ जेणेव पंचभाइसयसंपरिवुडं करयल तहेव जाव गामागर तहेव जाव समोसरह । Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) तुमं कण्णं' अंगराय, सल्लं नंदिराय एवं वयाहि -कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । चउत्थं दूयं एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणप्पिया ! सोत्तिमई नयरि । तत्थ णं तुम सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसय-संपरिवुडं एवं वयाहि - कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । पंचमं दूयं एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! हत्थिसीसं नयरिं। तत्थ णं तुमं दमदंतं रायं एवं वयाहि-कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । छटुं दूयं एवं वयासी-गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! महुरं नयरिं । तत्थ णं तुमं धरं रायं एवं वयाहि-कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । सत्तमं दूयं एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! रायगिहं नयरिं । तत्थ णं तुमं सहदेवं जरासंधसुयं एवं वयाहि-कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । अट्ठमं दूयं एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! कोडिण्णं नयरं । तत्थ णं तुमं रुपि भेसगसुयं एवं वयाहि-कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । नवमं दूयं एवं क्यासी - गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! विराट नयरं । तत्थ णं कीयगं भाउसय-समग्गं एव वयाहि-कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । दसमं दूयं एवं वयासी--गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! अवसेसेसु गामागरनगरेसु । तत्थ णं तुमं अणेगाइं रायसहस्साइं एवं वयाहि-कंपिल्लपुरे नयरे' समोसरह । रायसहस्साणं पत्थाणं-पदं १४६. तए णं ते" बहवे रायसहस्सा पत्तेयं-पत्तेयं ण्हाया सण्ण द्ध-बद्ध-वम्मिय १. कण्हं (क्व)। रेंति सम्माणेति, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता २. शेष १३२-१३४ सूत्रवत् पूरणीयम् । पडिविसज्जेंति' [ख, ग, घ] । १३४ सूत्र त् ३-८. शेष १३२-१३४ सूत्रवत् पूरणीयम् । १४५ सूत्रपर्यन्तं 'क' प्रतौ एतावान् एव पाठः ९. शेष १३२-१३४ सूत्रवत् पूरणीयम् । अन्ति- उपलभ्यते - गच्छह णं तुम देवाणु रायगिह मात् 'समोसरह' इति पदादग्रे निम्नलिखितः नयरं । तत्थ णं तुम सहदेवं रायाणं अण्णे य पाठो लभ्यते, किन्तु पूर्वक्रमानुसारेण असौ जाव बहवे जाव बद्धावेत्ता एवं वयह-एवं संक्षिप्तपाठपद्धतावेव गभितोस्ति, तेना- खलु देवाणुप्पिया। कंपिल्लपुरे जाव समो. त्रास्माभिः पाठान्तररूपेण स्वीकृतः । 'तए सरह । एवं महुराए उग्गेणं उग्गसेण वा णं से दूए तहेव निग्गच्छइ जेणेव गामागर रायं। हत्थिणाउरे पंडु सपुत्तयं । वइराडए नगराई जेणेव अणेगाइं रायसहस्साई तेणेव णगरे दुज्जोहणं भाइसतसमग्गं सउणि उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी- सल्लगिं च जयदहं दोणं आसत्थामं अण्णे य। कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह । तए णं ताई दंतपुरी दंतवक्को । चंपाए पउमराया। तए अणेगाई रायसहस्साई तस्स दूयस्स अंतिए णं से दूए तहत्ति जाव पडिसुणे इ । एयमढे सोच्चा निसम्म हट्ठा तं दूयं सक्का- १०. ते वासुदेवपामोक्खा [क, ख, ग, घ] । Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माओ haar' हत्थिखंधव रगया' हय-गय-रह- पवरजोहक लियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा महयाभड चडगर-रह-पहकर विदपरिक्खित्ता सएहिं-सए हिं नगरेहिंतो अभिनिग्गच्छंति, अभिनिग्गच्छित्ता जेणेव पंचाले जणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए । दुवयस्स प्रातित्थ पद ३०२ १४७. तए णं से दुवए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छह तुमं देवापिया ! कंपिल्लपुरे नयरे बहिया गंगाए महानईए अदूरसामंते एगं महं सयंवरमंडवं करेह - प्रगखंभ-सयसन्निविट्ठ लीलट्ठिय-सालिभंजियागं जाव पासाईयं दरिसणिज्जं प्रभिरूवं पडिरूवं - करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चपिह । ते वि तहेव पच्चपिणंति || १४८. तए णं से दुवए राया [ दोच्चपि ? ] कोडुंबियपुरिसे सहावे, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आवासे करेह, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । ते वि तहेव पच्चष्पिणंति || १४६. तए णं से दुवए राया वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं श्रागमणं जाणेत्ता पत्तेयं-पत्तेयं हत्थिखंध वरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवडे मह्याभ ड चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते' अग्घं च पज्जं च गहाय सव्विड्डीए कंपिल्लपुराम्रो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताई वासुदेवपामोक्खाइं ग्रग्घेण य पज्जेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्मणेत्ता तेसि वासुदेवपामोक्खाणं पत्तेयं - पत्तेयं आवासे वियरइ ॥ १५०. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा जेणेव सया - सया प्रवासा तेणेव उवागच्छति, गच्छत्ता हत्संहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता पत्तेयं - पत्तेयं खंधावारनिवेस करेंति, करेत्ता सासु-सासु ग्रावासेसु प्रणुष्पविसंति, प्रणुप्पविसित्ता सएसु-सएसु आवासेसुळे आसणेसु य सयणेसु य सन्निसण्णा य संतुयट्टा य बहूहि नाहि उवगिज्जमाणा य उवनच्चिज्जमाणा य विहरति ॥ १५१. तए णं से दुवए राया कंपिल्लपुरं नयरं प्रणुप्पविस, अणुप्पविसित्ता विपुलं वासुदेवस्य प्रस्थानविषयकं सूत्रं पूर्वं साक्षात् उल्लिखितमस्ति तथैव पाण्डुराजस्यापि तेनासौ पाठः पाठान्तररूपेण स्वीकृतः । १. पू० - ना० १।१६।१३४ । २. पू० - ना० १1८।५७; १।१६।१५३ । ० ३. सं० पा० - रह महया । ४. ना० ११८६ | ५. X ( ग, घ ) । ६. सं० पा० - हत्थिखंध जाव परिवुडे । ७. आवासेसु य (क, ख, ग, घ ) । Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अञ्झयणं (अवरकंका) ३०३ असण-पाण-खाइम- साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! विपुलं असण-पाणखाइम-साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च पसन्नं च सुबहं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारं च वासुदेवपामोक्खाणं रायसहस्साणं आवासेसु साहरह । तेवि साहति ॥ १५२. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा तं विपुलं असण' - पाण- खाइम - साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च° पसन्नं च आसाएमाणा विसादेमाणा परिभाएमाणा परिभुजेमाणा विहरति । जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा ग्रायंता चोक्खा' 'परमसुइभूया° सुहासणवरगया बहूहि गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगिज्जमाणा य उवनच्चिज्जमाणा य° विहरति ॥ दोवई सयंवर - पदं १५३. तए णं से दुवए राया पच्चावरण्ह - कालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे सिंघाडग"• तिग- चउक्क-चच्चर-चउम्मुह - महापह - पहेसु वासुदेवपामोक्खाणं रायसहसाणं वासे हत्थखंधव रगया मह्या मया सद्देणं उग्घोसेमाणा एवं वयहएवं खलु देवाणुप्पिया ! कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' उट्ठियम्मि सूरे सहस्रस्सिम्मि दिणय रे तेयसा जलते दुवयस्स रण्णो धूयाए, चुलणीए देवीए अत्तियाए, धट्ठज्जुणस्स भगिणीए, दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्सइ । तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! दुवयं रायाणं अणुगिरहेमाणा व्हाया जाव सव्वालंकारविभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणे सेवरचामराहिं वीइज्जमाणा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंfrote aurए सद्धि संपरिवुडा महयाभड चडगर-रह- पहकर विद परिक्खित्ता जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता पत्तेयं पत्तेयं नामंकिएसु ग्रासणेसु निसीयह, निसीइत्ता दोवई रायवरकण्णं पडिवाले माणा - पडिवालेमाणा चिट्ठह त्ति घोसणं घोसेह, घोसेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिह || १५४. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव" पच्चपिणंति ॥ १. सं० पा० - असण जाव पसन्नं । २. सं० पा० - चोक्खा जाव सुहासणवरगया । ३. सं० पा० - गंधव्वेहि य जाव विहरति । ४. पुव्वावरण्ह ( ख, ग, घ ) । ५. सं० पा० - सिंघाडग जाव पहेसु । ६. पू० - ना० १।१।२४ । ७. ना० १।१४७ । ८. सं० पा० - सकोरेंट • सेयचामर हय-गयरह-मह्याभडचडगरेण जाव परिक्खित्ता । ६. नामकेसु (क, ख, ग, घ ) । १०. X ( क, ख, ग ) । ११. ना० १।१६ । १५३ । Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ नायाधम्मकहाओ । १५५. तए णं से दुवए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया ! सयंवरमंडवं आसिय-संमज्जिओवलित्तं पंचवण्ण'पुप्फोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क- धूव-डज्झत-सुरभिमघमघेत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं• गंधवट्टिभूयं मंचाइमंचकलियं करेह कारवेह, करेत्ता कारवेत्ता वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं पत्तेयंपत्तेयं नामंकियाइं आसणाई अत्थुयपच्चत्थुयाई रएह, रएत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तेवि जाव पच्चप्पिणंति ॥ १५६. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते व्हाया जाव' सव्वालंकारविभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणा हय-गय'- रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ता ° सव्विड्डीए जाव" दुंदुहि-निग्घोस-नाइयरवेणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता पत्तेयं-पत्तेयं नामंकिएसु पासणेसु निसीयंति दोवइं रायवरकण्णं पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिटुंति ।। तए णं से दुवए राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते पहाए जाव" सव्वालंकारविभूसिए हथिखंधवरगए सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते' कंपिल्लपुरं नगरं मझमज्झणं निग्गच्छइ, जेणेव सयंवरामंडवे जेणेव वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं करयल•परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ , वद्धावेत्ता कण्हस्स वासुदेवस्स सेयवरचामरं गहाय उववीयमाणे चिट्ठइ ।।। १५८. तए णं सा दोवई रायवरक ण्णा कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए" उट्टियम्मि सूरे १५७. १. सुगंध-वरगंधियं पंचवण्ण (क ख, ग, घ)। २. सं० पा०-तुरुक्क जाव गंधवट्टिभूयं । ३. नामंकाई (क, ख, ग, घ)। ४. पू०-ना० १।१।२४ । ५. ना० १११।१४७ । ६. सं० पा०-हयगय जाव परिवुडा। ७. ना० २११३३ । ८. नामंकेसु (ख, घ)। ६. पू०-ना० १११२४ । १०. ना० १२११४७ । ११. सं० पा०-सकोरेंट हयगय । १२. सं० पा०-करयल वद्धावेत्ता। १३. पू०-ना० १११।२४। Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झणं (अवरक का ) ३०५ सहस्रस्सिम्म दिणयरे तेयसा जलते जेणेव मज्जणघरे तेणेव उव छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता व्हाया कयबलिकम्मा कय- कोउय-मंगल- पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिया मज्जणघराम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव जिणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिणघरं प्रणुपविसइ, अणुपविसित्ता जिणपडिमाणं प्रच्चणं करेइ, करेत्ता' जिणघराम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अंतेउरे तेणेव उवागच्छइ ॥ १५६. तए णं तं दोवई रायवरकण्णं अंतेउरिया सव्वालंकारविभूसियं करेंति । 'किं ते ? वरपायपत्तनेउरा जाव' चेडिया-चक्कवाल- 'महयरग-विंद" - परिक्खित्ता ते उराम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला जेणेव चाउरघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धि चाउघंटं ग्रासरहं दुरूहइ || १६०. तए णं से धट्टज्जुणे कुमारे दोवईए रायवर कण्णाए सारत्थं करेइ ॥ १६१. तए णं सा दोवई रायवरकण्णा कंपिल्लपुरं नयरं मज्भंमज्झणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, रहाम्रो पच्चोरुहइ, पच्चीfear किड्डाविया लेहियाए सद्धि सयंवरामडवं श्रणुपविसइ, प्रणुपविसित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु तेसि वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायवरसहस्साणं पणामं करेइ ॥ १६२. तए णं सा दोवई रायवरकण्णा एवं महं सिरिदामगंड - किं ते ? पाडल १. जिण डिमाण अच्चण करेइ ति एकस्यां वाचनायामेतावदेव दृश्यते ( वृ ) । वाचनान्तरे सव्वालंकारविभूसिया तु व्हाया जाव मज्जर ओ पडिनिक्खमइ जेणामेव जिणघरे तेणामेव उवागच्छति जिणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जिणपरिमाणं आलोए पणाम करेइ, करेत्ता लोम हत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता एवं जहा सूरियाभे जिणपडिमाओ अच्चेति तहेव भाणियव्वं जाव घूवं डहइ २ वामं जाणुं चेइ, दाहिणं जाणं घरणितलसि निहट्ट तिक्खुतो मुद्धा धरणितलंसि निवेस [ निमेइ ( क ग ); निसीयइ (घ ); निवाडेइ ( राय० सू० २९२ ) ] ईसि पच्चुण्णमइ पृच्चुण्णमित्ता करयल परिगहियं अंजलि मत्थए कट्टु एवं वयासी - नमोत्थु णं अरहंताणं जाव संपत्ताणं वंदइ नमसइ नमसित्ता जिणघराओ पडिनिक्खमइ (वृपा, क, ख, ग, घ ) । २. किं तत् 'यत् करोति' इति शेषः । ३. ना० १।१।३३ । ४. मयहरिग ० ( क ); मयहरग (ख, घ); महरमंद (ग); यद्यपि पाठ संशोधन प्रयुक्तेषु आदर्श 'महर' • इतिपाठो लभ्यते किन्तु 'ओवाइयं' ७० सूत्रे 'महत्तरवंद' इति पाठोस्ति, तदनुसारेण 'महयरगवंद' इति पाठोऽस्माभिः स्वीकृतः । लिपिदोषेण यकारहकारयोर्विपर्ययः संजातः इति संभाव्यते । ५. सयवरमंडवे ( क, ख, ग, घ ) । ६. सं० पा०-- करयल ० । Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मक हाओ मल्लिय-चंपय जाव' सत्तच्छयाईहि गंधद्धणि मुयंतं परमसुहफासं दरिसणिज्जं - गेहइ ॥ १६३. तए णं सा किड्डाविया सुरूवा साभावियधंसं वोद्दहजणस्स उस्सुयकरं विचित्तमणि- रयण- बद्धच्छरुहं° वामहत्येणं चिल्लगं दप्पणं गहेऊण सललियं दप्पणसंतबिब - संदसिए" य से दाहिणेणं हत्थेणं दरिसए' पवररायसी हे । फुडविसयविसुद्ध - रिभिय- गंभीर-महुरभणिया सा तेसिं सव्वेसि पत्थिवाणं सम्मापिउवंस- सत्त-सामत्थ- गोत्त- विक्कंति-कंति' - बहुविहश्रागम माहप्प-रूव कुलसीलजाणिया कित्तणं करेइ । पढमं ताव वण्हिपुंगवाणं दसारवर - वीरपुरिस- तेलोक्कबलवगाणं, सत्तु" -सय सहस्स - माणाव मद्दगाणं 'भवसिद्धिय - वरपुंडरीयाणं' १३ चिल्लगाणं बल-वीरिय-रूव-जोवण्ण-गुण- लावण्ण कित्तिया कित्तणं करेइ । तो पुणो उग्गसेणमाईणं" जायवाणं भणइ - - सोहग्गरूवक लिए वरेहि वरपुरिसगंधहत्थीणं जो हु ते होइ हियय-दइो ॥ ३०६ दोवईए पंडव-वरण-पदं १६४. तए णं सा दोवई रायावरकण्णगा बहूणं रायवरसहस्साणं मज्यंमज्भेणं समइच्छमाणी- समइच्छमाणी" पुव्वकयनियाणेणं चोइज्जमाणी- चोइज्जमाणी जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता ते पंच पंडवे तेणं दसद्धवणे कुसुमदामेणं वेढियपरिवेढिए करेइ, करेत्ता एवं क्यासी - एए णं मए पंच पंडवा वरिया ॥ १६५. तए णं ताई वासुदेवपामोक्खाइं बहूणि रायसहस्साणि महया - महया सद्दे उग्घोसेमाणाइं-उग्घोसेमाणाई एवं वयंति - सुवरियं खलु भो ! दोवईए रायवरकण्णाए त्ति कट्टु सयंवरमंडवाश्री पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सया-सया प्रवासा तेणेव उवागच्छति ॥ १६६. तए णं धट्टज्जुणे कुमारे पंच पंडवे दोवई च" रायवरकण्णं चाउग्घंटं श्रासरहं १. ना० १।८।३० । २. १।५।३० सूत्रे 'सत्तच्छयाईहि' इति पाठो नोपलभ्यते तथा येषां पदानामपि क्रमभेदो वर्तते । ३. सं० पा० - सुरूवा जाव वामपत्येणं । ४. ० बिंबं ( ख, ग ) । ५. दंसिए (घ ) । ६. दरिसीएइ ( ख ) ; दरसिए (घ ) । ७. सव्व ( क, ख, ग ) । ८. कित्ति (वृपा) । - ६. दसदसार ( ग ) । पूर्णपाठः अस्याध्ययनस्य १३२ सूत्रे द्रष्टव्यः । १०. तिल्लोक ० ( क ) । ११. सक्क (घ ) । १२. माणोवमद्दगाणं (ख, घ ) । १३. भवसिद्धिपवर ० ( क्व ) । १४. १५. १६. X (ग) । माइयाणं ( क ) 1 समतिच्छमाणी ( ख, ग, घ ) ! Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं अवरकंका) ३०७ 'दुरुडावेइ, दुरुहावेत्ता' कंपिल्लपुरं नयरं मज्झमझेणं' 'उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता सयं भवणं अणुपविसइ ।। पाणिग्गहण-पदं १६७. तए णं से दुवए राया पंच पंडवे दोवइं च रायवरकण्णं पट्टयं 'दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता" सेयापीयएहि कलसेहि मज्जावेइ, मज्जावेत्ता अग्गिहोमं करावेइ', पंचण्हं पंडवाणं दोवईए य पाणिग्गहणं कारावेइ ।। १६८. तए णं से दुवए राया दोवईए रायवरकण्णाए इमं एयारूवं पीइदाणं दलयइ, तं जहा-अट्ठ हिरण्णकोडीग्रो जाव' पेसणकारीओ दासचेडीओ, अण्णं च विपूलं धण-कणग'-.रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सारसावएज्ज अलाहि जाव आसत्तमाअो कुलवंसाप्रो पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउं° दलयइ।। १६६. तए णं से दुवए राया ताई वासुदेवपामोक्खाई बहूइं रायसहस्साइं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध - मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मा णेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता ° पडिविसज्जेइ ।। पंडुरायस्स निमंतण-पदं १७०. तए णं से पंडू राया तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं करयल'" •परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरे नयरे पंचण्हं पंडवाणं दोवईए य देवीए कल्लाणकारे" भविस्सइ। तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! ममं अणुगिण्हमाणा अकालपरि हीणं चेव समोसरह ॥ १७१. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा पत्तेयं-पत्तेयं२ •ण्हाया सण्णद्ध बद्ध-वम्मिय-कवया" हत्थिखंधवरगया जाव" जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव. पहारेत्थ गमणाए॥ १. दुरुहेइ २ (क, ख, ग, घ)। अस्मिन्नर्थप्रसंगे ६. कारेइ (क, घ); करेइ (ग)। प्रेरणार्थक क्रियापदं युज्यते । आदर्शषु तथा ७. ना० १११।६१ टिप्पणगाथा । नोपलभ्यते। १।१६।५१ सूत्रस्य संदर्भण ८. सं० पा०-कणग जाव दलयइ । एतत् क्रियापदं मूलपाठे स्वीकृतम् । ६. सं० पा०-गंध जाव पडिविसज्जेइ । २. स. पा०--मझमझेणं जाव सयं । १०. सं० पा०-करयल जाव एवं । ३. X (ख, ग)। ११. कल्लाणकारी (क); कल्लाणकरे (घ)। ४. दुरुहेइ २ (क, ख, ग, घ)। द्रष्टव्यम्-~१६६ १२. सं० पा०-पत्तेयं जाव पहारेत्थ । सूत्रस्य पादटिप्पणम् । १३. पू०-ना० १।१६।१३४ । ५. करेइ (ख, घ); कारवेइ (ग)। १४. ना० १।१६।१४६ । Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ नायाधम्मकहाओ पंडुरायस्स आतित्थ-पदं १७२. तए णं से पंडू राया कोडुवियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया। हत्थिणाउरे नयरे पंचण्हं पंडवाणं पंच पासायडिसए कारेह-अब्भुग्गयमूसिय जाव' पडिरूवे ।।। १७३. तए णं ते कोडुबियपुरिसा पडिसुणेति जाव कारवेंति ।। १७४. तए ण से पंडू राया पंचहिं पंडवेहिं दोवईए देवीए सद्धि हय-गय-रह-पवर जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महयाभडचडगर-रह-पहकरविंदपरिक्खित्ते ° कंपिल्लपुरानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव हत्थिणाउरे तेणेव उवागए॥ १७५. तए णं से पंडू राया तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं आगमणं जाणित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीगच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरस्स नयरस्स बहिया वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आवासे—प्रणेगखंभसयसण्णिविट्ठ' कारेह, कारेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह । तेवि तहेव पच्चप्पिणंति ॥ १७६. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव हथिणाउरे तेणेव उवागए॥ १७७. तए णं से पंडू राया ते वासुदेवपामोक्खे 'बहवे रायसहस्से ° उवागए' जाणित्ता हट्टतुटे पहाए कयबलिकम्मे जहा दुवए जाव' जहारिहं आवासे दलयइ ।। १७८. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव सया-सया प्रावासा तेणेव उवागच्छंति तहेव जाव विहरंति ।। १७६. तए णं से पंडू राया हत्थिणाउरं नयरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता कोडुबिय पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणु प्पिया! विपुलं असण पाण-खाइम-साइमं आवासेसु उवणेह । तेवि तहेव उवणेति ।। १८०. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा हाया कयबलिकम्मा कय कोउय-मंगल-पायच्छित्ता तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं आसाएमाणा तहेव जाव विहरंति ॥ कल्लाणकार-पदं १८१. तए णं से पंडू राया ते पंच पंडवे दोवइं च देवि पट्टयं 'दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता सेया १. वण्णो जाव(क, ख, ग, घ);ना० १११८६। ७. ना०१।१६।१५० । २. सं० पा०-हयगय संपरिबुडे । ८. पू०-ना० १११६।१५१ । ३. पू०-ना० १२११८६ । ६. ना० १११६।१५२ । ४. सं० पा०-वासुदेवपामोक्खे जाव उवागए। १०. दुरुहेइ २(क, ख, ग, घ)। द्रष्टव्यम्-१६६ ५. आगए (ग)। सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. ना०१।१६।१४६ । Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) ३०६ पीएहि कलसेहिं ण्हावेइ,ण्हावेत्ता कल्लाणकारं करेइ,करेत्ता ते वासुदेवपामोक्खे बहवे रायसहस्से विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्ला लंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। १८२. तए णं ताई वासुदेवपामोक्खाइं बहूई रायसहस्साइं पंडूएणं रण्णा विसज्जिया समाणा जेणेव साइं-साइं रज्जाइं जेणेव साइं-साइं नगराइं तेणेव ° पडिगयाई ।। १८३. तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए सद्धि कल्लाकल्लि वारंवारेणं उरालाई भोगभोगाइं जमाणा° विहरंति ।। नारदस्स प्रागमण-पदं १८४. तए णं से पंड राया अण्णया कयाइं पंचहि पंडवेहिं कोंतोए देवीए दोवईए य सद्धि अंतोतेउरपरियालसद्धि संपरिबुडे सीहासणवरगए यावि विहरइ । १८५. इमं च णं 'कच्छल्लनारए-दसणणं अइभद्दए विणीए अंतो-अंतो य कलूस हियए 'मज्झत्थ-उवत्थिए" य अल्लीण-सोमपियदंसणे सुरूवे अमइल-सगलपरिहिए कालमियचम्म-उत्तरासंग-रइयवच्छे दंड-कमंडलु-हत्थे जडामउडदित्तसिरए जन्नोवइय-गणेत्तिय-मुंजमेहला-बागलधरे हत्थकय-कच्छभीए' पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे संवरणावरणि-अोवयणुप्पयणि-लेसणीसु य संकाणि-आभियोगि-पण्णत्ति-गमणि'-थंभिणीसु य बहूसु विज्जाहसुरी१२ विज्जासु विस्सुयजसे इ8 रामस्स य केसवस्स य पज्जुन्न-पईव-संब-अनिरुद्धनिसढ-उम्मय-सारण-गय-सुमुह-दुम्मुहाईण जायवाणं अट्ठाण य कुमारकोडीणं हियय-दइए संथवए कलह-जुद्ध-कोलाहलप्पिए" भंडणाभिलासी बहूसु य समरसयसंपराएसु दंसणरए समंतप्रो कलहं सदक्खिणं अणुगवेसमाणे असमाहिकरे दसारवर"-वीरपुरिस-तेलोक्कबलवगाणं आमंतेऊण तं भगवई पक्कमणि गगणगमणदच्छं उप्पइयो गगणमभिलंघयंतो गामागर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब दोणमुह-पट्टण-संबाह-सहस्समंडियं थिमियमेइणीयं निब्भर-जणपदं वसुहं १. सीया ° (क, ख, ग)। पाठोऽपि लभ्यते । २. कल्लाणालंकार (क) कल्लाणलंकारं (ख); १०. अभिओग (क, ख, ग, घ)। कल्लाणकरं (घ)। ११. गमण (ख); गमणी (घ)। ३. कारेइ (ख)। १२. X (ख)। ४. सं० पा०-बहूई जाव पडिगया। १३. दुमुहा० (घ)। ५. परिगयाइं (क)। १४. कोउहल ° (ख)। ६. सं० पा०-भोगभोगाइं जाव विहरति । १५. पूर्णपाठः अस्याध्ययनस्य १३२ सूत्रे द्रष्टव्यः। ७. कुंतीए (ख)। १६. थिमियमेयणीतलं (ग)। ८. मज्झत्थोवत्यिए (ग)। १७. निभय (ख)। ६. एकस्यां हस्तलिखितवृत्तौ 'कच्छवीए' इति Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० नायाधम्मकहाओ प्रोलोइंते रम्मं हथिणाउरं उवागए पंडुरायभवणंसि'' 'झत्ति-वेगेण" समो वइए॥ १८६. तए णं से पंडू राया कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता पंचहिं पंडवेहि कुंतीए य देवीए सद्धि प्रासणानो अब्भुढेइ, अब्भुढेत्ता कच्छुल्लनारयं सत्तट्ठपयाइं पच्चुग्गच्छइ, पच्चुग्गच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता महरिहेणं 'अग्घेणं पज्जेणं पासणेण य उवनि मंतेइ ।। १८७. तए णं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दभोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयइ, निसीइत्ता पंडुरायं रज्जे य' 'रटे य कोसे य कोडागारे य बले य वाहणे य पुरे य ° अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ । १८८. तए णं से पंड राया कोंती देवी पंच य पंडवा कच्छुल्लनारयं पाढंति' परिया णंति अब्भटेति ° पज्जुवासंति । १८९. तए णं सा दोवई देवी कच्छुल्लनारयं 'अस्संजयं अविरयं अप्पडिहयपच्चखाय पावकम्मंति' कटु नो पाढाइ नो परियाणइ नो अब्भुटेइ नो पज्जुवासइ । १६०. तए णं तस्स कच्छुल्लनारयस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-- अहो णं दोवई देवी रूवेण य° •जोव्वणेण य ° लावण्णण य पंचहि पंडवेहि अवत्थद्धा समाणी ममं नो आढाइ 'नो परियाणइ नो अब्भुटेइ ° नो पज्जुवासइ। तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करेत्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पंडुरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पयणि" विज्ज आवाहेइ, आवाहेत्ता ताए उक्किट्ठाए" तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धयाए जइणाए छेयाए ° विज्जाहरगईए लवणसमुदं मझमझेणं पुरत्थाभि मुहे वीईवइउं पयत्ते यावि होत्था । नारदस्स अवरकंका-गमण-पदं १६१. तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरथिमद्ध-दाहिणड्ड-भरहवासे अवर कंका नाम रायहाणी होत्था । १. कच्छुल्लनारए जाव पंडुस्स रण्णो भवणंसि ६. अस्संजय-अविरय-अप्पडिहयअपच्चक्खायपाव(क) अस्य संक्षिप्तपाठस्य परम्पराया कम्मति (क, ग)। उल्लेखो वृत्तावपि लभ्यते, यथा-इह ७. सं० पा०--रूवेण य जाव लावण्णण । क्वचिद् यावत् करणादिदं दृश्यम् (वृ)। प. अठुद्धा (ख)। २. भइवेगेणं (ख, ग, घ)। ६. सं० पा०-पाढाइ जाव नो पज्जुवासइ । ३. x (ग, घ)। १०. उप्पणि (ख, ग)। ४. सं० पा०-रज्जे य जाव अंतेउरे । ११. सं० पा० - उक्किट्टाए जाव विज्जाहरगईए। ५. सं० पा०-आढंति जाव पज्जुवासंति । Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) १६२. तत्थ णं अवरकंकाए रायहाणीए पउमनाभे नामं राया होत्था -- महयाहिमवंतमहंत - मलय-मंदर-महिंदसारे वणो ॥ १९३. तस्स णं पउमनाभस्स रण्णो सत्त देवीसयाई प्रोरोहे होत्था || १६४. तस्स णं पउमनाभस्स रण्णो सुनाभे नामं पुत्ते जुवरायावि होत्था || १६५. तए णं से पउमनाभे राया तो अंतेउरंसि ओरोह संपरिवुडे सीहासणवरगए विहरइ ॥ १६६. तए णं से कच्छुल्लनारए जेणेव प्रवरकंका रायहाणी जेणेव पउमनाभस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स रण्णो भवणंसि झत्ति वेगेण समोइए || १६७. तए णं से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता असणा भुट्ठे, ग्रभुट्टेत्ता अग्घेणं' पज्जेणं • ग्रासणेणं उवनिमंतेइ ॥ १६८. तणं से कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयइ', 'निसीइत्ता पउमनाभं रायं रज्जेय रट्ठे य कोसे य कोट्टागारे य बले य वाहणे य पुरे य अंतेउरे य° कुसलोदतं प्रापुच्छइ । १६६. तएण से पउमनाभे राया नियगोरोहे जायविम्हए कच्छुल्लनारयं एवं वयासी -- तुमं देवाणुप्पिया ! बहूणि गामागर-नगर-खेड- कब्बड - दोणमुह-मडंब पट्टणग्राम-निगम-संवाह-सण्णिवेसाई ग्राहिंडसि, बहूण य राईसर - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ - सत्थवाहपभिईणं • गिहाई अणुपविससि तं प्रत्थि - या ते कहिंचि देवाणुपिया ! एरिसए ओरोहे दिट्ठपुब्वे, जारिसए णं मम मोरोहे ? o २००. तए णं से कच्छुल्लनारए पउमनाभेणं एवं वृत्ते समाणे ईसि विहसियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी - सरिसे णं तुमं पउमनाभा ! तस्स गडदरस्स | देवाप्पिया ! से गडदरे ? १. ओ० सू० १४ । २. सं० पा० - प्रग्वेणं जाव असणेणं । ३. सं० पा० - निसीयइ जाव कुसलोदतं । ३११. उमनाभा ! से जहानामए अगडददुरे सिया । सेणं तत्थ जाए तत्थेव वुड्ढे अण्णं श्रगडं वा तलागं वा दहं वा सरं वा सागरं वा अपासमाणे मण्णइ - प्रयं चेव अगडे वा तलागे वा दहे वा सरे वा सागरे वा । तए णं तं कूवं अण्णे सामुद्दए दुरे हव्वमागए । तए णं से कूवदद्दुरे तं सामुद्दयं ददुरं एव वयासी-से के तुम देवाप्पिया ! कत्तो वा इह हब्वमागए ? तए णं से सामुद्दए दद्दुरे तं कूवददुरं एवं वयासी -- एवं खलु देवाणुप्पिया ! अहं सामुद्दए ददुरे । ४. सं० पा० - बहूणि गामाणि जाव गिहाई । ५. सं० पा० – एवं जहा मल्लिणाए । Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ नायाधम्मकहानो तए णं से कूवदद्दुरे तं सामुद्दयं ददुरं एवं वयासी-केमहालए णं देवाणुप्पिया.! से समुद्दे ? तए णं से सामुद्दए ददुरे तं कूवददुरं एवं वयासी–महालए णं देवाणुप्पिया ! समुद्दे । तए णं से कूबददुरे पाएणं लीहं कड्ढेइ, कड्ढे त्ता एवं वयासी-एमहालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? नो इणदे समटे । महालए णं से समझे। तए णं से कवददुरे पुरथिमिल्लानो तीरायो उप्फिडित्ता णं पच्चत्थिमिल्लं तीरं गच्छइ, गच्छित्ता एवं वयासी-एमहालए णं देवाणुप्पिया ! से समुद्दे ? नो इणद्वे समढे । एवामेव तुमं पि पउमनाभा! अण्णेसि बहूणं राईसर जाव' सत्थवाहप्पभिईणं भज्ज वा भििण वा धूयं वा सुण्हं वा अपासमाणे जाणसि जारिसए मम चेव णं ओरोहे, तारिसए णो अण्णेसि । एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे नयरे दुपयस्स रण्णो धूया चुलणीए देवीए अत्तया पंडुस्स सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवई नामं देवी रूवेण य' 'जोवण्णेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किटूसरीरा । दोवईए णं देवीए छिन्नस्सवि पायंगुट्ठस्स अयं तव अोरोहे सयंपि कलं न अग्घइ त्ति कटु पउमनाभं आपुच्छइ', 'आपुच्छित्ता जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए। दोवईए साहरण-पदं २०१. तए णं से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयस्स अंतिए एयमहूँ सोच्चा निसम्म दोवईए देवीए रूवे य जोवण्णे य लावण्णे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता पुव्वसंगइयं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्टइ।। २०२. तए णं पउमनाभस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पुव्वसंगइओ देवो जाव पागयो। भणंतु णं देवाणुप्पिया ! जं मए कायव्वं ॥ २०३. तए णं से पउमनाभे° पुव्वसंगइयं देवं एवं वयासी-एवं खलु देवाणु प्पिया ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे' 'नयरे दुपयस्स रण्णो धूया चुलणीए देवीए अत्तया पंडुस्स सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवई नामं देवी रूवेण य १. ना० ११५।६। २. सं० पा०-रूवेण य जाव उक्किट्टसरीरा। ३. सं० पा०---आपुच्छइ जाव पडिगए। ४. सं० पा०-पोसहसालं जाव पुव्वसंगइयं । ५. ना० १२११५४-५७ । ६. सं० पा०-हत्यिणाउरे जाव सरीरा। Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकका) जोवण्णेण य लावणेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठ ° सरीरा। तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! दोवइं देवि 'इह हव्वमाणीयं ॥ तए णं से पुव्वसंगइए देवे पउमनाभं एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिया। एवं भूयं वा भव्वं वा भविस्सं वा जण्णं दोवई देवी पंच पंडवे मोत्तूणं अण्णेणं पुरिसेणं सद्धि उरालाई 'माणुस्सगाई भोगभोगाइं में जमाणी° विहरिस्सइ । तहावि य णं अहं तव पियट्टयाए दोवइं देवि इहं हव्वमाणेमि त्ति कटु पउमनाभं प्रापुच्छइ, अापुच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए' 'तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिग्याए उद्धयाए दिव्वाए° देवगईए लवणसमुहं मझमझेणं जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । २०५. तेणं कालेणं तेणं समएणं हथिणाउरे नयरे जुहिडिल्ले राया दोवईए देवीए सद्धि उप्पि अागासतलगंसि सुहप्पसुत्ते यावि होत्था ।। २०६. तए णं से पुव्वसंगइए देवे जेणेव जुहिट्ठिल्ले राया जेणेव दोवई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोवईए देवीए प्रोसोवणि दलयइ, दलइत्ता दोवई देवि गिण्हइ, गिण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए' "तुरियाए चवलाए चंडाए जवणाए सिग्याए उद्धयाए दिव्वाए ° देवगईए जेणेव अवरकंका जेणेव पउमनाभस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमनाभस्स भवणंसि असोगवणियाए दोवइं देवि ठावेइ, ठावेत्ता ओसोवणि अवहरइ, अवहरित्ता जेणेव पउमनाभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी-एस णं देवाणु प्पिया ! मए हत्थिणाउरायो दोवई देवी इहं हव्वमाणीया तव असोगवणियाए चिटुइ । अयो परं तुमं जाणसि त्ति कटु जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए ॥ दोवईए चिता-पदं २०७. तए णं सा दोवइ देवी तो मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी तं भवणं असोगवणियं च अपच्चभिजाणमाणी एवं वयासी-नो खलु अम्हं 'एसे सए भवणे" नो खलु एसा अम्हं सगा असोगवणिया। तं न नज्जइ णं अहं केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा अण्णस्स रण्णो असोगवणियं साहरिय त्ति कटु ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया ० झियायइ।। १. माणीयं (क, ख, ग)। २. सं० पा०-उरालाई जाव विहरिस्सइ । ३. सं० पा०-उक्किद्राए जाव देवगईए। ४. ओसोवणियं (ख)। ५. सं० पा०-उक्किट्ठाए जाव देवगईए। ६. अमरकंका (ख, ग, घ)। ७,८. दिसं (क)। ६. इमे सए पासाए (घ)। १०.सं० पा०-ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ। Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ नायाधम्मकहानो पउमनाभस्स प्रासासण-पदं २०८. तए णं से पउमनाभे राया पहाए जाव' सव्वालंकारविभूसिए अंतेउर-परियाल संपरिवडे जेणेव असोगवणिया जेणेव दोवई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दोवइं देवि प्रोयमणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहिं अट्टज्झाणोवगयं ° झियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी- किन्नं तुमं देवाणुप्पिए ! अोहयमणसंकप्पा' 'करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ° झियाहि ? एवं खलु तुम देवाणप्पिए ! मम पुव्वसंगइएणं देवेणं जंबुद्दीवाओ दोवानो भारहाप्रो वासाम्रो हत्थिणाउरायो नयरानो जुहिट्ठिलस्स रण्णो भवणानो साहरिया । तं मा णं तुमं देवाणुप्पिया ! प्रोहयमणसंकप्पा' 'करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ? झियाहि । तुमं णं मए सद्धि विपुलाई भोगभोगाई • जमाणी विहराहि ।। २०६. तए णं सा दोवई देवी पउमनाभं एवं वयासी--एव खल देवाणुप्पिया! जबूद्दीवे दीवे भारहे वासे बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे मम पियभाउए परिवसइ । तं जइ णं से छण्हं मासाणं मम कूवं नो हव्वमागच्छइ, तए णं अहं' देवाणुप्पिया ! जं तुमं वदसि, तस्स प्राणा-अोवाय-वयणनिद्देसे चिट्ठिस्सामि ।। २१०. तए णं से पउमनाभ दोवईए देवीए एयमढे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता दोवइं देवि कण्णतेउरे'ठवेई॥ २११. तए णं सा दोवई देवी छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं आयंबिल-परिग्गहिएणं तवो कम्मेणं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ ।। दोवईए गवसणा-पदं २१२. तए णं से जुहिट्ठिल्ले राया तो मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धे समाणे दोवइं देवि पासे अपासमाणे सयणिज्जाओ उढेइ, उद्वैत्ता दोवईए देवीए सव्वग्रो समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करेत्ता दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा खुई वा पवत्ति वा अलभमाणे जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडु रायं एवं वयासीएवं खलु तारो ! ममं आगासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा 'किण्णरेण वा किंपुरिसेण" वा महोरगेण १. ना० ११११४७ । ६. सं० पा०-भोगभोगाई जाव विहराहि । २. सं० पा०-ओहयमणसंकप्पं जाव झियाय- ७. हं (क, ख)। ___माणि । ८. कण्णतेउरंसि (क)। ३. सं० पा०-प्रोहयमणसंकप्पा जाव झियाहि। ६. ठावेइ (ग)। ४. झियासि (क)। १०. पग्गहिएणं (ग)। ५. संपा०-प्रोहयमणसंकप्पा जाव झियाहि। ११. किपुरिसेण वा किन्नरेण (ख. ग.)। Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकका) ३१५ २१३. वा गंधव्वेण वा हिया वा निया वा अवविखत्ता वा। तं इच्छामि णं तायो ! दोवईए देवीए सव्वनो समंता मग्गण-गवेसणं करित्तए । तए णं से पंडू राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चरचउम्मुह-महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयहएवं खलु देवाणुप्पिया ! जुहिटिलस्स रणो अागासतलगंसि सूहपसूत्तस्स पासाम्रो दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्णरेण' वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा निया वा अवक्खित्ता' वा। तं जो णं देवाणुप्पिया ! दोवईए देवीए सुई वा खुइं वा पत्ति वा परिकहेइ, तस्स णं पंडू राया विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ त्ति कटु घोसणं घोसावेह, घोसावेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। २१४. तए णं ते कोडुबियपुरिसा जाव' पच्चप्पिणंति ।। २१५. तए णं से पंडू राया दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा खुइं वा पवत्ति वा अलभमाणे कोति देवि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुम देवाणप्पिए ! बारवई नरि कण्हस्स वासुदेवस्स एयमटुं निवेदेहि-कण्हे णं वासूदेव दोवईए मग्गण-गवसण करज्जा, अण्णहान नज्जइ दोवईए देवीए 'सुई वा खुई वा पवत्ती वा ॥ २१६. तए णं सा कोंती देवी पंडुणा एवं वुत्ता समाणी जाव पडिसुणेइ, पडिसूणेत्ता ण्हाया कयबलिकम्मा हत्थिखंधवरगया हत्थिणाउरं नयरं मझमझणं निगच्छइ, निगच्छित्ता कुरुजणवयस्स" मझमझेणं जेणेव सुरद्वाजणवए जेणेव बारवई नयरी जेणेव अग्गुज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधानो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीगच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बारवइं नरि, जेणेव कण्हस्स वासूदेवस्स गिहे तेणेव ° अणुपविसह, अणुपविसित्ता कण्हं वासुदेवं करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट° एवं वयह–एवं खलु सामी ! तुब्भं १. कयं (ख, ग)। ८. सुई वा खुइ वा पत्ति वा उवलभेज्जा (क, २. जुहिट्ठिल्लस्स (घ)। ख, घ)। ३. किनरेण (ग, घ)। ६. ना० ११५।१३ । ४. अक्खित्ता (क, ख, ग, घ)। २२० सूत्रा- १०. हत्थिणउरं (घ)। नुसारी पाठः स्वीकृतः। १ . कुरुजणवयं (ग, घ)। ५. ना० १३१६।२१३ । १२. सं० पा०-नयरि अणुपविसह । ६. सं० पा०-सुई वा जाव अलभमाणे। १३. सं० पा०-करयल ° । ७. णं परं (क, ग, घ)। Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ २१८. पिउच्छा कोंती देवो हत्थिणाउरानो नयरामो इहं हव्वमागया तुम्भं दसणं कंखइ॥ २१७. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव' कहेंति ।। तए णं कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसाणं अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म हट्ठतुटे हत्थिखंधवरगए' बारवईए नयरीए मझमझेणं जेणेव कोंती देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधानो पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता कोंतीए देवीए पायग्गहणं करेइ, करेत्ता कोंतीए देवीए सद्धि हत्थिखधं दुरुहइ, दुरुहित्ता बारवईए नयरीए मझमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं गिहं अणुप्पविसइ॥ २१६. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंति देविं हायं कयवलिकम्म जिमियभुत्तुत्तरागयं' •वि य णं समाणि आयंतं चोक्खं परमसुइभूयं° सुहासणवरगयं एवं वयासी संदिसउ णं पिउच्छा ! किमागमणपोयणं? २२०. तए णं सा कोंती देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता ! हत्थिणा उरे नयरे जुहिट्ठिलस्स रण्णो अागासतलए सुहप्पसुत्तस्स पासायो दोवई देवी न नज्जइ केणइ अवहिया •निया' अवविखत्ता वा । तं इच्छामि णं पुत्ता ! दोवईए देवीए सव्वग्रो समंता मग्गण-गवेसणं कयं ॥ २२१. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंति पिउच्छं एवं वयासी-जं नवरं-पिउच्छा ! दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा' 'खुइं वा पत्ति वा ° लभामि, तो णं अहं पायालाओ वा भवणानो वा अद्धभरहायो वा समंतओ दोवइं देवि साहत्थि उवणेमि त्ति कटु कोंति पिउच्छं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥ २२२. तए णं सा कोंती देवी कण्हेणं वासुदेवेणं पडिविसज्जिया समाणी जामेव दिसि पाउब्भूया तामेव दिसि पडिगया ।। २२३. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बारवईए' 'नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्कचच्चर-चउम्मूह-महापहपहेस महया-महया सट्टेणं उरघोसेमाणा-उरघोसेमाणा एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! जुहिट्ठिलस्स रण्णो अागासतलगंसि १. ना० १।१६।२१६ । २. °वरगए हयगय (क); °वरगए हयगय जाव (ख, घ)। पूर्णपाठः अस्याध्ययनस्य १५७ सूत्रे द्रष्टव्यः । ३. सं० पा०-जिमियभुत्तुत्तरागयं जाव सुहा सण । ४. सं० पा.-अवहिया वा जाव अवक्खित्ता। ५. सं० पा०-सुई वा जाव लभामि । ६. सं० पा०-बारवई एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ जाव पच्चप्पिणति पंदुस्स जहा। Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) ३१७ सुहपसुत्तस्स पासायो दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा निया वा अवक्खित्ता वा। तं जो णं देवाणुप्पिया ! दोवईए देवीए सुई वा खुइं वा पत्ति वा परिकहेइ, तस्स णं कण्हे वासुदेवे विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ त्ति कटट घोसणं घोसावेह, घोसावेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। २२४. तए णं ते कोडुबियपुरिसा जाव'० पच्चप्पिणंति ।। २२५. तए णं से कण्हे वासुदेवे अण्णया अंतोतेउरगए अोरोह'- संपरिवुडे सीहासण वरगए ° विहरइ ।। दोवईए उवलद्धि-पदं २२६. इमं च णं कच्छुल्लनारए जाव' झत्ति-वेगेण समोवइए। २२७. 'तए णं से कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लनारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणायो अब्भटेइ, अभद्रुत्ता अग्घेणं पज्जेणं पासणणं उवनिमंतेइ ।। २२८. तए णं कच्छुल्लनारए उदगपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयइ°, निसीइत्ता कण्हं वासुदेवं कुसलोदंतं पुच्छइ॥ २२६. तए णं से कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लनारयं एवं वयासी-तुमं णं देवाण प्पिया ! बहणि गामागर"- नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-पासम-निगम-संबाहसण्णिवेसाइं आहिंडसि, बहूण य राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्रिसेणावइ-सत्थवाहपभिईणं गिहाइं° अणुपविससि, तं अत्थियाइं ते कहिंचि दोवईए देवीए सुई वा खुई वा पवित्ती वा° उवलद्धा? २३०. तए णं से कच्छुल्लनारए कण्हं वासुदेव एवं वयासो-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अण्णया धायइसंडदीवे पुरथिमद्धं दाहिणड्ड-भरहवासं अवरकंका-रायहाणि गए। तत्थ णं मए पउमनाभस्स रण्णो भवणंसि दोवई-देवी-जारिसिया दिट्रपूव्वा यावि होत्था । २३१. तए णं कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लनारयं एवं वयासी-तुब्भं चेव णं देवाणुप्पिया ! एयं पुवकम्मं ॥ २३२. तए णं से कच्छुल्लनारए कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे उप्पयणि विज्ज आवाहेइ, आवाहेत्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। १. ना० ११६।२२३ । २. सं० पा०--ओरोह जाब विहरइ । ३. ना० १।१६।१८५ । ४. सं० पा०-समोवइए चाव निसीइत्ता। ५. सं० पा०-गामागर जाव अणुपविससि । ६. सं० पा०-सुई वा जाव उवलद्धा। ७. अवरकंक (ग)। Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ नायाधम्मकहाओ सपंडवस्स कण्हस्स पयाण-पदं २३३. तए णं से कण्हे वासुदेवे दूयं सदावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो-गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! हत्थिणाउरं नयरं पडुस्स रणो एयमटुं निवेएहि-एवं खलु देवाणुप्पिया ! धायइसंडदीवे पुरथिमद्धे दाहिणड्ड-भरहवासे अवरकंकाए रायहाणीए पउमनाभभवणंसि दोवईए देवीए पउत्ती उवलद्धा, तं गच्छंतु पंच पंडवा चाउरंगिणोए सेणाए सद्धि संपरिखुडा पुरथिम-वेयालीए ममं पडिवाले माणा चिटुंतु ॥ २३४. तए णं से दूए भणइ जाव' पडिवालेमाणा चिट्ठह । तेवि जाव' चिट्ठति ।। २३५. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो-गच्छह णं तब्भे देवाणप्पिया ! सन्नाहियं भेरि तालेह । तेवि तालेति ।। २३६. तए णं तीए सन्नाहियाए भेरीए सई सोच्चा समुद्दविजयपामाक्खा दस दसारा जाव छप्पन्नं बलवगसाहस्सोयो सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया उप्पीलियसरासण-पट्टिया पिणद्ध-गेविज्जा आविद्ध-विमल-वरचिंध-पट्टा गहियाउहपहरणा अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया गयगया जाव' पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं ° वद्धावेंति ॥ कण्हस्स देवाराधण-पदं २३७. तए णं से कण्हे वासुदेवे हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्ज माणेणं सेयवर चामराहिं वोइज्जमाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते ° बारवईए नयरीए मझमझेणं निगच्छइ, निगच्छित्ता जेणेव परत्थिमवेयाली तेणेव उवागच्छइ. उवागच्छित्ता पंचहि पंडवेहि सटि एययो मिलइ, मिलित्ता खंधावारनिवेसं करेइ, करेत्ता पोसहसालं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता सुट्ठियं देवं मणसीकरेमाणे-मणसीकरेमाणे चिट्ठइ॥ २३८. तए णं कण्हस्स वासुदेवस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि सुट्टिो जाव' आगो। 'भणंतु णंदेवाणुप्पिया ! जं मए कायव्वं ।। १,२. ना० १।१६।२३३ । ३. ना० १।१६।१३२ । ४. सं० पा०–सण्णद्धबद्ध जाव गहियाउह । ५. ओ० सू० ५२ । ६. सं० पा०-करयल जाव वद्धाति । ७. सं० पा०-सेयवर हयगय मया भडचडगर पहकरेणं। ८. पोसहसालं करेइ, करेत्ता पोसहसाल (ग,घ)। ६. ना० ११११५४-५७ । १०. भण (ख, ग, घ)। Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ सोलपमं अज्झयण (अवरकंका) कण्हस्स मग्गजायणा-पदं २३६. तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्ठियं देवं एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिया ! दोवई देवी' 'धायईसंडदीवे पुरथिमद्धे दाहिणड्ड-भरहवासे अवरकंकाए रायहाणीए° पउमनाभभवणंसि' साहिया' तण्णं तुम देवाणु प्पिया ! मम पंचहि पंडवेहिं सद्धि अप्पछट्ठस्स छण्हं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियराहि, जेणारं 'अवरकंकं रायहाणि दोवईए कूवं गच्छामि ।। २४०. तए णं से सुटिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया ! जहा चेव पउमनाभस्स रण्णो पुव्वसंगइएणं देवेणं दोवई देवी' 'जंबुद्दीवानो दीवानो भारहायो वासानो हत्थिणाउराम्रो नयरानो जुहिट्ठिलस्स रण्णो भवणाप्रो ° साहिया, तहा चेव दोवइं देवि धायईसंडायो दीवारो भारहायो 'वासाम्रो अवरकंकानो रायहाणीओ पउमनाभस्स रण्णो भवणाओ° हत्थिणाउरं साहरामि ? उदाहु--पउमनाभं रायं सपुरबलवाहणं लवणसमुद्दे पक्खिवामि? २४१. तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्टियं देवं एवं वयासी--मा णं तमं देवाणप्पिया ! •जहा चेव पउमनाभस्स रण्णो पुव्वसंगइएणं देवेणं दोवई देवी जंबुद्दीवारो दीवाओ भारहानो वासानो हत्थिणाउरानो नयरानो जुहिट्ठिलस्स रण्णो भवणाओ साहिया, तहा चेव दोवई देवि धायईसंडासो दीवानो भारहायो वासाम्रो अवरकंकायो रायहाणीग्रो पउमनाभस्स रण्णो भवणायो हत्थिणाउरं ° साहराहि। तुम णं देवाणुप्पिया ! मम लवणस मुद्दे पंचहि पंडवेहिं सद्धि अप्पछट्ठस्स छण्हं रहाणं मग्गं वियराहि । सयमेव णं अहं दोवईए कूवं गच्छामि । २४२. तए णं से सुटिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं होउ । पंचहिं पंडवेहि सद्धि अप्पछट्ठस्स छण्हं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियरइ ।। कण्हेण दूयपेसण-पदं २४३. तए णं से कण्हे वासुदेवे चाउरंगिणिं सेणं पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता पंचहि पंडवेहिं सद्धि अप्पछ? छहिं रहेहिं लवणसमुई मज्झमझेणं वीईवयइ, वीईवइत्ता जेणेव अवरकंका रायहाणी जेणेव अवरकंकाए रायहाणीए अग्गुज्जाणे १. सं० पा०-देवी जाव पउमनाभ ० । ६. सं० पा०-देवी जाव साहिया । २. नाभस्स भवणंसि (ख, ग, घ)। ७. सं० पा०---भारहाओ जाव हत्थिणारं । ३. साहरिया (घ)। ८. सं० पा०-देवाणुप्पिया जाव साहराहि । ४. जेण अहं(ख) जाणं हं (ग); जणं अहं (घ)। ६. गच्छिस्सामि (ख)। ५. अवरकक ° (क);अवरकंका रायहाणी (ख)। Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० नायाधम्मक हाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता दाख्यं सारहि सहावे, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! ग्रवरकंकं रायहाणि विसाहि, ग्रणुष्पविसित्ता पउमनाभस्स रण्णो वामेणं पाएणं पायपीठं अक्कमित्ता' कुंतग्गेणं लेहं पणामेहि, पणामेत्ता तिवलियं भिउडि निडाले साहट्टु आसुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे एवं वयाहि-हंभो परमनाभा ! पत्थिय पत्थिया ! दुरंतपंतलक्खणा! हीणपुण्णचाउद्दसा ! सिरि- हरि-धि- कित्ति-परिवज्जिया ! प्रज्ज न भवसि । किण्णं तुमं न याणसि हस्स वासुदेवस्स भगिणि दोवई देवि इहं हव्वमाणेमाणे ? तं ' एवमवि गए" पच्चप्पिणाहि णं तुमं दोवई देवि कण्हस्स वासुदेवस्स ग्रहव णं जुद्धसज्जे निग्गच्छाहि । एस णं कण्हे वासुदेवे पंचहि पंडवेहिं सद्धि अप्पछट्ठे दोवईए देवीए कूवं हव्वमागए । २४४. तए णं से दारुए सारही कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वृत्तं समाणे तुट्ठे पडिसुणेइ, पडणेत्ता प्रवरकंकं रायहाणि अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव पउमनाभे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी- एस णं सामी ! मम विणयपडिवत्ती, इमा अण्णा मम सामिस्स समुहाणत्ति त्ति कट्टु ग्रासुरुते वामपारणं पायपीढं अक्कम, ग्रक्कमित्ता कुंतग्गेणं लेहं पणामेइ, पणामेत्ता" "तिवलियं भिउडि निडाले साहट्टु श्रासुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे एवं वयासी हंभो पउमनाभा ! पत्थियपत्थिया ! दुरंत पंतलक्खणा ! हीणपुण्णचाउद्दसा ! सिरि-हिरि-धिइ कित्ति-परिवज्जिया ! प्रज्ज न भवसि । किणं तुमं न याणासि कण्हस्स वासुदेवस्स भर्गिणि दोवई देवि इहं हव्यमाणमाणे ? तं एवमवि गए पच्चप्पिणाहि गं तुमं दोवई देवि कहस्स वासुदेवस्स ग्रहव णं जुद्धसज्जे निग्गच्छाहि । एस णं कण्हे वासुदेवे पंच पंडसिद्धिप्पछट्ठे दोवईए देवीए कूवं हव्वमागए || o उमनाभेण दूयस्स श्रवमाण-पदं २४५. तए णं से पउमनाभे दारुणं सारहिणा एवं वृत्ते समाणे ग्रासुरुते रुट्ठे कुविए Sister मिसिमिसेमाणे तिर्वाल भिउडिं निडाले साहट्टु एवं वयासी- १. अक्कमित्ता ( ख ) ; अवक्कमित्ता (घ ) । २. याणासि (ख, घ ) । ३. हव्यमाणमाणे (क, ख ); हव्वमाणीते (घ ) । ४. द्रष्टव्यम् - ६८ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ५. हट्टजाव ( क ) । ६. सं० पा०—करयल जाव वद्भावेत्ता । ७. स्वमुखा |ज्ञप्तिः (वृ) । ८. आसुरुते ५ ( क ) । ९. अवक्कमइ (ख, घ) । १०. सं० पा० - पणामेत्ता जाव कुवं । Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) ३२१ णप्पिणामि' णं ग्रहं देवाणुपिया ! कण्हस्स वासुदेवस्स दोवई । एस णं अहं सयमेव जुज्भसज्जे निग्गच्छामि त्ति कट्टु दारुयं सारहिं एवं वयासी – केवलं भो ! रायसत्थेसुदूर ग्रवज्भेत्ति कट्टु सक्कारिय सम्माणिय श्रवदारेणं निच्छुभावेइ || यस्स पुणो श्रागमण-पदं २४६. तए णं से दारुए सारही पउमनाभेणं रण्णा ग्रसक्कारिय सम्माणिय अवदारणं • निच्छूढे समाणे जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्था अंजलि कट्टु जपणं विजएणं वद्भावे, वद्धावेत्ता कण्हं वासुदेवं एवं वयासी एवं खलु ग्रहं सामी ! तुब्भं वयणं श्रवरकंकं रायहाणि गए जाव प्रवदारेणं निच्छुभावेइ || पउमनाभस्स पंडवेहिं जुद्ध-पदं २४७. तए गं से पउमनाभे वलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाप्पिया ! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह | तयानंतरं च णं छेयायरिय उवदेस मइ'- कप्पणा-विकप्पेहिं सुणिउणेहि उज्जलवत्थ- हत्थ - परिवत्थियं सुसज्जं जाव' ग्राभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेइ, पडिकप्पेत्ता उवणेति ॥ २४८. तए णं से पउमनाहे सण्णद्ध - बद्ध-वम्मिय - कवए उप्पीलिय- सरासण- पट्टिए पिणद्ध-गेविज्जे प्राविद्ध- विमल - वरचिंध- पट्टे गहियाउह-पहरणे 'प्राभिसेक्कं हृत्थिरयणं", दुरुहइ, दुरुहित्ता हय-गय-रह-पवरजोहक लियाए चाउरंगिणीए सेणा सद्धि संपरिवुडं मह्याभड चडगर-रह-पहकर विदपरिक्खित्ते. जेणेव कहे वासुदेवे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ २४६. तए णं से कहे वासुदेवे पउमनाभं राय" एज्जमाणं पासइ, पासित्ता ते पंच १. अप्पिणामि ( ख, ग, घ ) । २. सं० पा० - असक्कारिय जाव निच्छू । ३. सं० पा० - करयल ० । ४. ना० १।१६।२४४-२४६ । ५. सं० पा० - मइविकप्पणाहिं जाव उवर्णेति । श्रादर्शेषु 'मइविकप्पणाहिं' इति पाठो लभ्यते । वृत्तौ 'म विगप्पणाविगप्पेहि' इति पाठ उल्लिखितोस्ति, किन्तु व्याख्यायां 'कल्पना - ६. ओ० सू० ५७ । ७. सं० पा० - सण्णद्ध ० । विकल्पा:' इति दृश्यते, तेन कप्पणा-विकप्पेहि, इति स्वीकृतः पाठः समीचीनः प्रतिभाति । ८. अभिसेयं (क, ख, ग, घ ) । दुइ ( ग ) । सं० पा० - हय गय० । रायाणं ( ख, ग ) । ६. १० १९. Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ नायाधम्मकहाओ पंडवे एवं वयासी-हंभो दारगा ! किण्णं तुब्भे पउमनाभेणं सद्धिं जुज्झिहिह' उदाहु पेच्छिहिह ? २५०. तए णं ते पंच पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-अम्हे णं सामी ! जुज्झामो, तुब्भ पेच्छह ॥ २५१. तए णं ते पंच पंडवा सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया उप्पीलिय-सरासण-पट्टिया पिणद्ध-गेविज्जा अाविद्ध-विमल-वरचिंधपट्टा गहियाउह ° -पहरणा रहे दुरुहंति, दुरुहित्ता जेणेव पउमनाभे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी----अम्हे वा पउमनाभे वा राय त्ति कटु पउमनाभेणं सद्धि संपलग्गा यावि होत्था ॥ धंडवाणं पराजय-पदं २५२. तए णं से पउमनाभे राया ते पंच पंडवे खिप्पामेव हय-महिय-पवरवीर-घाइय विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे ° दिसोदिसि पडिसेहेइ॥ २५३. तए णं ते पंच पंडवा पउमनाभेणं रण्णा हय-महिय-पवर वीर-घाइय-विवडिय चिध-धय-पडागा किच्छोवगयपाणा दिसोदिसिं° पडिसेहिया समाणा अत्थामा 'अबला अवीरिया अपुरिसक्कारपरक्कमा ° अधारणिज्जमित्ति कटु जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति ।। कण्हेण पराजय-हेउ-कहणपुव्वं जुज्झ पदं २५४. तए णं से कण्हे वासुदेवे ते पंच-पडवे एवं वयासी-कहण्णं तुब्भे देवाणु प्पिया ! पउमनाभेणं रण्णा सद्धि संपलग्गा? २५५. तए णं ते पंच पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एव खलु देवाणु प्पिया ! अम्हे तब्भेहि अब्भणुण्णाया समाणा सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया रहे दुरुहामो, दरुहेत्ता जेणेव पउमनाभे तेणेव उवागच्छामो, उवागच्छित्ता एवं वयामो-- अम्हे वा पउमनाभ वा रायत्ति कटु" "पउमनाभणं सद्धि संपलग्गा । तए णं १. जुझिहह (क, ख); जुज्झिह (ग); जुज्झि- वृत्तिकारेण अष्टमाध्ययने पूर्णः पाठो हेह (घ)। व्याख्यातः। अत्र च आदर्शषु यथा पाठसंक्षेपो २. उयाहु (ग, घ)। लब्धस्तथैव व्याख्यातः। ३. पेच्छिहह (क);पिच्छिह (ख);पच्छिहिह (घ)। ६. सं० पा०-पडागे जाव दिसोदिसि । ४. सं० पा०–सण्णद्ध जाव पहरणा। ७. सं० पा०-पवरविवडिय जाव पडिसेहिया । ५. पवरपवडियधयचिंध (क); पवरविडिय° ८. सं० पा०- अत्थामा जाव अधारणिज्ज । (ख, ग, घ) । असौ लेखनपद्धतौ पाठसंक्षेपः अयामा° (ग, घ)। कृतोस्ति । १।८।१६५ सूत्रे असौ पूर्णः पाठः ९. पूर्णपाठः अस्याध्ययनस्य २५१ सूत्रे द्रष्टव्यः । उपलभ्यते । अत्रासौ तमनुसृत्य पूर्णतां नीतः १०. सं० पा०-कटु जाव पडिसेहेइ । Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसम अज्झयणं (अवरकंका) ३२३ से पउमनाभे राया अम्हं खिप्पामेव हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि ° पडिसेहेइ ॥ २५६. तए णं से कण्हे वासुदेवे ते पंच पंडवे एवं वयासी-जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! एवं वयंता-'अम्हे' णो पउमनाभे रायत्ति कटु पउमनाभेणं सद्धि संपलग्गंता तो णं तुब्भे नो पउमनाभे हय-महिय-पवर' वीर-घाइय-विवडियचिंध-धयपडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि ° पडिसेहित्था । तं पेच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! 'अहं' णो पउमनाभे रायत्ति कटु पउमनाभेणं रण्णा सद्धि जुज्झामि [त्ति ? ] रहं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव पउमनाभे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेयं' गोखी रहार-धवलं तगसोल्लिय-सिंदुवार-कुंदेंदुसण्णिगासं निययस्स बलस्स हरिस-जणणं रिउसेण्ण-विणासणकरं पंचजण्ण' संखं परामुसइ, परामुसित्ता मुहवायपूरियं करेइ ॥ २५७. तए णं तस्स पउमनाभस्स तेण संखसद्देणं बल-तिभाए हय- महिय-पवरवीर घाइय-विवडियचिव-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि पडिसेहिए । २५८. तए णं से कण्हे वासुदेवे अइरुग्गयवालचंद-इंदधणु-सण्णिगासं, वरमहिस-दरिय-दप्पिय-दढघणसिंगग्गरइयसारं, उरगवर-पवरगवल-पवरपरहुय-भमरकुल-नीलि-निद्ध-धंत-धोय-पढें, निउणोविय-मिसिमिसिंत-मणिरयण-घंटियाजालपरिक्खित्तं, तडितरुणकिरण-तवणिज्जबद्धचिधं, दद्दरमलयगिरिसिहर-केसरचामरवाल-अद्धचंदचिधं, काल-हरिय-रत्त-पोय सुक्किल-बहुण्हारुणि-संपिण्णद्धजीवं, जीवियंतकरं° धणुं परामुसइ, परामुसित्ता धणुं पूरेइ, पूरेत्ता धणुसदं करेइ ।। २५६. तए णं तस्स पउमनाभस्स दोच्चे बल-तिभाए तेणं धणुसद्देणं हय-महिय' १. सं० पा०-पवर जाव पडिसेहित्था । पाठे अस्य सूचना 'बेढो' इति पदेन प्रदत्ता२. पेच्छंतु (क)। स्ति । वृत्तिकारेणापि सूचितमिदम्, यथा३. वृत्तौ शङ्कविशेषणानि पाठान्तरत्वेन उल्लि- वेष्टन एकवस्तुविषय पदपद्धतिः । स चेह खितानि सन्ति, यथा --- शङ्कविशेषणानि क्व- धनुविषयो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिप्रसिद्धोऽध्येतव्यः, चिद् दृश्यन्ते- 'सेयं' ० । तद्यथा ---अइरुग्गय ° (वृ) । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते४. पंचयण्णं (क, ख) पंचजण्ण (ग)। स्तृतीये वक्षस्कारे मागधतीर्थकुमारसाधने ५. सं० पा० -हए जाव पडिसेहिए। वृत्तिकारसूचितः पाठो लभ्यते । सोपि वृत्ति६. सं० पा०-व सुदेवे धणुं परामुसइ वेढो। व्याख्यातपाठसंवादी एव । विस्तृतः पाठो वृत्त्यनुसारेण स्वीकृतः । मूल- ७. सं० पा०-हयमहिय जाव पडिसेहिए। Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ नायाधम्मक हाओ "पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसिं° पडिसेहिए। पउमनाभस्स पलायण-पदं २६०. तए णं से पउमनाभे राया तिभागबलावसेसे अत्थाम' अबले अवोरिए अपुरि सक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु सिग्धं तुरियं चवलं चडं जइण वेइयं जेणेव अवरकंका' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अवरकक रायहाणि अणु पविसइ, अणुपविसित्ता बाराई पिहेइ, पिहेत्ता रोहासज्जे चिट्ठइ ।। कण्हस्स नरसिंहरूव-पदं २६१. तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव अवरकंका तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रह ठवेइ, ठवेत्ता रहाप्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ एगं मह नरसीह रूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता महया-महया सद्देणं पायदद्दरियं करेइ ।। २६२. तए णं कण्हेणं वासुदेवेणं महया-महया सद्देणं पायदद्दरएणं कएणं समाणेणं अवरकंका रायहाणी संभग्ग-पागार'-गोउराट्टालय-चरिय-तोरण-पल्हत्थिय पवरभवण-सिरिघरा सरसरस्स धरणियले सण्णिवइया ।। पउमनाभस्स सरण-पदं २६३. तए णं से पउमनाभे राया अवरकंकं रायहाणि संभग्ग- पागार-गोउराट्टालय चरिय-तोरण-पल्हत्थियपवरभवण-सिरिघरं सरसरस्स धरणियले सण्णिव इयं पासित्ता भीए दोवई देवि सरणं उवेइ । २६४. तए णं सा दोवई देवी पउमनाभं रायं एवं वयासी-किण्णं तुम देवाणु प्पिया ! न जाणसि कण्हस्स वासुदेवस्स उत्तमपुरिसस्स विप्पियं करेमाणे ? 'ममं इहं हव्वमाणेमाणे” तं 'एवमवि गए" गच्छ" णं तुमं देवाणुप्पिया ! पहाए उल्लपडसाडए ओचलगवत्थनियत्थे अंतेउर-परियालसंपरिडे' अग्गाइं वराइं रयणाई गहाय ममं पुरोकाउं कण्हं वासुदेवं करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु ° पायवडिए सरणं उवेहि । पणिवइय-वच्छला णं देवाणु प्पिया! उत्तमपुरिसा ॥ १. प्रथामे (ग, घ)। ७. X (क, ख, ग)। २. अमरकंका (क)। ८. X (ख, ग, घ)। ३. दाराई (ख)। ६. द्रष्टव्यम्-६८ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. समोहणइ (क, ख, घ)। १०. गच्छह (ग, घ)। ५. पायार (क, घ); पगार (ख)। ११. परियाल ° (क)। ६. सं० पा०-संभग्गं जाव पासित्ता। १२. सं० पा०-करयल । Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) ३२५ २६५. तए णं से पउमनाभे दोवईए देवीए ‘एवं वुत्ते समाणे' हाएर उल्लपडसाडए प्रोचूलगवत्थनियत्थे अंतेउर-परियालसंपरिवुडे अग्गाइं वराई रयणाइं गहाय दोवइं देवि पुरोकाउं कण्हं वासुदेवं करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ठ पायवडिए सरणं उवेइ, उवेत्ता एवं वयासी-दिट्ठा णं देवाणप्पियाणं इड्डी' जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार ° -परक्कमे। तं खामेमि णं देवाणुप्पिया ! खमंतु णं देवाणुप्पिया !* *खंतुमरहंति णं देवाणुप्पिया ! ° नाइ' भुज्जो एवंकरणयाए त्ति कटु पंजलिउडे पायवडिए कण्हस्स वासुदेवस्स दोवइं देवि साहत्थि उवणेइ ।। सदोवई-पंडवस्स कण्हस्स पच्चावट्टण-पदं २६६. तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमनाभं एवं वयासी-हंभो पउमनाभा ! अपत्थिय पत्थिया ! दुरंतपंतलक्खणा! हीणपुण्णचाउद्दसा ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्तिपरिवज्जिया ! किण्णं तुमं न जाणसि मम भगिणि दोवई देवि इहं हव्वमाणेमाणे ? तं 'एवमवि गए" नत्थि ? ते ममाहितो इयाणि भयमत्थि ? त्ति कटु पउभनाभं पडिविसज्जेइ, दोवई देवि गण्हइ, गेण्हित्ता रहं दुरुहेइ, दुरुहित्ता जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंचण्हं पंडवाणं दोवई देवि साहत्थि उवणेइ॥ २६७. तए णं से कण्हे वासुदेवे पंचहि पंडवेहि सद्धि अप्पछटे छहिं रहेहि लवणसमुदं ___ मज्झमझेण जेणेव जंबुद्दोवे दीवे जेणेव भारहे वासे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । वासुदेव-जुयलस्स संखसद्देण मिलण-पदं २६८. तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धे भारहे वासे चंपा नामं नयरी होत्था । पुण्णभद्दे चेइए॥ २६९. तत्थ णं चंपाए नयरीए कविले नामं वासुदेवे राया होत्था-महताहिमवंत महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णो । २७०. तेणं कालेणं तेणं समएणं मुणिसुब्बए अरहा" चंपाए पुण्णभद्दे समोसढे । कविले वासुदेवे धम्म सुणेइ ॥ १. एयमटुं पडिसुणे इ २ (ख, ग, घ)। ६. X (ग, घ)। २. सं० पा०—हाए जाव सरण उवेइ २ करयल ७. हव्वमाणे (ख, ग, घ)। ___ एवं व। ८. द्रष्टव्यम्-६८ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ३. सं० पा०-इड्ढी जाव परक्कमे । ६. अभयमत्थि (घ)। ४. सं० पा०-देवाणुप्पिया जाव नाइ। १०. ओ० सू० १४ । ५. नाहं (क, ख, ग, घ)। एतत् पदं १।५।१२३ ११. अरिहा (क)। सूत्रस्याधारण स्वीकृतम् । Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ नायाधम्मकहाओ २७१. तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयस्स अरहनो अंतिए धम्म सुणेमाणे कण्हस्स वासुदेवस्स संखसई सुणेइ । २७२. तए णं तस्स कविलस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-किमण्णे धायइसंडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पण्णे, जस्स णं अयं संखसद्दे ममं पिव मुहवायपूरिए वियंभइ' ? कविला वासुदेवा भद्दाइ ! मुणिसुव्वए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासीसे नणं कविला वासुदेवा ! ममं अंतिए धम्म निसामेमाणस्स (ते ?) संखसह प्राकणित्ता' इमेयारूवे अज्झत्थिए' 'चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-किमण्णे धायइसंडे दीवे भारहे वासे दोच्चे वासुदेवे समुप्पण्णे, जस्स णं अयं संखसद्दे ममं पिव मुहवायपूरिए ° वियंभइ ? से नणं कविला वासुदेवा ! अटे समढे ? हंता ! अत्थि । तं नो खलु कविला ! एवं भूयं वा भव्वं वा भविस्सं वा जण्णं एगखेत्ते एगजुगे एगसमए णं दुवे अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा उप्पज्जिसु वा उप्पज्जति वा उप्पज्जिस्संति वा। एवं खलु वासुदेवा ! जंबुद्दीवानो दीवानो भारहाप्रो वासाप्रो हत्थिणाउराम्रो नय राम्रो पंडुस्स रण्णो सुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवई देवी तव पउमनाभस्स रण्णो पुव्वसंगइएणं देवेणं अवरकंकं नरि साहरिया। तए णं से कण्हे वासूदेवे पंचहि पंडवेहि सद्धि अप्पछट्टे छहि रहेहि अवरककं रायहाणि दोवईए देवीए कवं हव्वमागए। तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स पउमनाभेणं रण्णा सद्धि संगामं संगामेमाणस्स अयं संखसद्दे तव 'मुहवायपुरिए इव'५ वियंभइ॥ २७३. तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयं अरहं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-गच्छामि णं अहं भंते ! कण्हं वासुदेवं उत्तमपुरिसं सरिसपुरिसं पासामि ॥ २७४. तए णं मुणिसुब्बए अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी-नो खलु देवाणप्पिया ! एवं भूयं वा भव्वं वा भविस्सं वा जण्णं अरहंता वा अरहतं पासंति, चक्कवटी वा चक्कट्टि पासंति, बलदेवा वा बलदेवं पासंति, वासुदेवा वा वासुदेवं १. वियंभेइ (क)। (ख); मुहवायइट्ठे कते इहेव (ग); मुहवाया २. सदाति (ख); सद्दाइ सुणेइ (घ)। इव (घ); अस्मिन्नेव सूत्रे कपिलवासुदेव३. अकिण्णित्ता (ख)। चिंतनसमये 'ममं पिव मुहवायपूरिए' इति ४. सं० पा०-अज्झथिए किमण्णे जाव वियभइ। पाठोस्ति । तस्याधारणवासौ पाठः स्वीकृतः । ५. मुहवायाइ8 इव (क); मुहवायइट्टे एवं ६. ४ (क)। Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अभय (अवर कंका) ३२७ पासंति । तहवि य णं तुमं कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमुदं मज्भंमज्भेणं वीईवयमाणस्स सेयापीयाई धयग्गाई' पासिहिसि ॥ २७५. तए णं से कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयं ग्ररहं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता हत्थिबंधं दुरुहइ, दुरुहित्ता 'सिग्घं तुरियं चवलं चंडं जइणं वेइयं' जेणेव वेलाउले तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स लवणसमुदं मज्भंमज्झेणं वीईवयमाणस्स सेयाप याइं धयग्गाई पासइ, पासित्ता एवं वयइ एस णं मम सरिसपुरिसे उत्तमपुरिसे कहे वासुदेवे लवणसमुदं मज्भंमज्झेणं वीवइति कट्टु पंचयण्णं संखं परामसइ, परामुसित्ता मुहवायपूरियं करेइ ।। २७६. तए णं से कहे वासुदेवे कविलस्स वासुदेवरस संखसद्दं 'ग्रायण्णेइ, ग्रायण्णेत्ता * पंचयण्णं संखं परामुसइ, परामुसित्ता मुहवाय ° पूरियं करेइ || २७७. तए णं दोवि वासुदेवा संखसद्द - सामायारि करेति ॥ कविलेण पउमनाभस्स निव्वासण-पदं २७८. तए णं से कविले वासुदेवे जेणेव ग्रवरकंका रायहाणी तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता अवरकंकं रायहाणि संभग्ग - पागार-गोउराट्टालय - चरिय-तोरणपल्हत्थियपवरभवण - सिरिघरं सरसरस्स धरणियले सण्णिवइयं • पासइ, पासित्ता पउमनाभं एवं वयासी - किण्णं देवाणुप्पिया ! एसा ग्रवरकंका रायहाणी संभग्ग - पागार-गोउराट्टालय - चरिय- तोरण- पल्हत्थियपवरभवण- सिरिघरा सरसरस्स धरणियले सण्णिवइया ? २७६. तए णं से पउमनाभे कविलं वासुदेवं एवं वयासी - एवं खलु सामी ! जंबुद्दीवाओ दीवाओ भारहाग्र वासाग्रो इहं हव्वमागम्म कण्हेणं वासुदेवेणं तुब्भे परिभूय ग्रवरकंका • रायहाणी संभग्ग - गोउराट्टालय- चरिय-तोरण- पल्हत्थियपवरभवण - सिरिघरा सरसरस्स धरणियले सण्णिवाडिया " | २८०. तए णं से कविले वासुदेवे पउमनाभस्स ग्रंतिए एयमट्ठे सोच्चा पउमनाभं एवं वयाणी - हंभो पउमनाभा ! अपत्थियपत्थिया ! दुरंतपंतलक्खणा! हीणपुण्णचाउद्दसा ! सिरि-हिरि - धिइ कित्ति - परिवज्जिया ! किण्णं तुमं न जाणसि मम सरिसपुरिसस्स कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणे ? - श्रासुरुत्ते" "रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निलाडे साहट्टु • १. धयाई (घ ) । २. सिग्धं (क, घ ) । ३. वेलाकूले ( क्व ) । ४. आकण्णे २ (क) । ५. सं० पा० - पंचयण्णं जाव पूरिय । ६. समायारि ( ख, ग ) । ७. सं० पा० - संभग्ग तोरण जाव पासइ । ८. सं० पा० - संभग्ग जाव सण्णिवइया । ६. सं० पा० - अवरकंका जाव सण्णिवाडिया | १०. सण्णिवाइया (घ ) । ११. × (क, ग, घ) 1 १२. सं० पा० - आसुरुते जाव पउमनाभं । Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ नामक हाओ पउमनाभं निव्विसयं श्राणवेइ, पउमनाभस्स पुत्तं श्रवरकंकाए रायहाणीए मह्या महया रायाभिसेएणं अभिसिंचइ', ग्रभिसिंचित्ता जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए || अपरिक्खणीयपरिक्खा-पदं २८१. तए णं से कहे वासुदेवे लवणसमुदं मज्भंमज्भेणं 'वीईवयमाणे - वीईवयमाणे गंग उवागए" [ उवागम्म ? ] ते पंच पंडवे एवं वयासी - गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! गंगं महानई उत्तरह जाव ताव ग्रहं सुट्टियं लवणाहिवई पासामि || २८२. तए णं ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वृत्ता समाणा जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एगट्टियाए। मग्गण - गवेसणं करेंति, करेत्ता एगट्टियाए गंगं महानई उत्तरंति, उत्तरिता अण्णमण्णं एवं वयंति - पहू णं देवाप्पिया ! कण्हे वासुदेवे गंगं महानई बाहाहिं उत्तरित्तए, उदाहू नो पहू उत्तरितए ? त्ति कट्टु एगट्ठियं * 'णूमेंति, णूमेत्ता" कण्हं वासुदेवं पडिवालेमाणा - पडिवाले माणा चिट्ठति ॥ २८३. तए णं से कहे वासुदेवे सुट्टियं लवणाहिवई पासइ, पासित्ता जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एगट्टियाए सव्वग्रो समंता मग्गण - गवेसणं करेइ, करेत्ता एगट्टियं प्रपासमाणे एगाए बाहाए रहं सतुरगं ससारहिं गेहइ, एगाए बहाए गंगं महानरं वार्साट्ठि जोयणाई श्रद्धजोयणं च वित्थिण्णं उत्तरिउ पत्ते यावि होत्था | २८४. तए णं से कण्हे वासुदेवे गंगाए महानईए बहुमज्भदेसभाए संपत्ते समाणे संते तंते परितंते बद्धसेए जाए यावि होत्या || २८५. तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स इमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थि ए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था - ग्रहो णं पंच पंडवा महाबलवगा जेहिं गंगा महानई वासट्ठि जोयणाई ग्रद्धजोयणं च वित्थिण्णा बाहाहि उत्तिणा । १. सं० पा० - अभिसिंचइ जाव पडिगए । २. ववइ २ (क, ख, ग ); वीईवयइ गंग • (घ) ३. एगट्टियाए नावाए ( क, ख, ग, घ ) । वृत्तौ ' एगट्टियंति नौः' इति व्याख्यातमस्ति । अस्यानुसारेण 'एगट्टिया' पदं नौ वाचकमस्ति । प्रतिषु 'नावाए' इति पदस्यापि उल्लेखो लभ्यते । स च बहुषु स्थानेषु सारल्यार्थं परिवर्तितपदवद् विद्यते । ४. एगट्टियाओ ( ग ) । ५ ण मुयंति ( क ); ण मुचति (ख); मुस्संति २ (घ) । ६. सं० पा० - प्रज्भत्थिए जाव समुपज्जित्था । ७. बावट्ठ (क, ग) । Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौलसमं अज्झयणं (अवरकका) ३२६ इच्छंतएहिण पंचहि पंडवेहि पउमना भे हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडिय चिध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसोदिसि ° नो पडिसेहिए। २८६. तए णं गंगादेवी कण्हस्स वासुदेवस्स इमं एयारूवं अज्झत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं० जाणित्ता थाहं वियरड ।। २८७. तए णं से कण्हे वासुदेवे मुहुत्तंतरं समासासेइ, समासासेत्ता गंगं महानदि बासद्धि जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिण्णं बाहाए ° उत्तरइ,उत्तरित्ता जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंच पंडवे एवं वयासी-अहो णं तुब्भे देवाणप्पिया ! महाबलवगा, जेहिं णं तुब्भेहिं गंगा महानई बासढि जोयणाइं अद्धजोयणं च वित्थिण्णा वाहाहिं ° उत्तिण्णा । इच्छंतएहिं णं तुम्भेहिं पउमनाहे 'हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिध-धय-पडागे किच्छोवगयपाणे दिसो दिसि नो पडिसेहिए। २८८. तए णं ते पंच पंडवा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे तुब्भेहिं विसज्जिया समाणा जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छामो, उवागच्छित्ता एगट्टियाए मग्गण-गवेसणं करेमो, 'करेत्ता एगट्टियाए गंगं महानइं उत्तरेमो, उत्तरेत्ता अण्णमण्णं एवं वयामो--पहू णं देवाणु प्पिया ! कण्हे वासुदेवे गंगं महानई बाहाहि उत्तरित्तए, उदाहु नो पहू उत्तरित्तए ? त्ति कटु एगट्ठियं ° णूमेमो, तुब्भे पडिवालेमाणा चिट्ठामो ॥ कण्हेण पंडवाणं निव्वासण-पदं २८६. तए णं से कण्हे वासुदेवे तेसि पंचपंडवाणं एयमटुं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते •रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निडाले साहट्ट ° एवं वयासी-ग्रहो णं जया मए लवणसमुदं दुवे जोयणसयसहस्सवित्थिण्णं वीईवइत्ता पउमनाभं हय-महिय- पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि ° पडिसे हित्ता अवरकंका संभग्गा, दोवई साहत्थि उवणीया, तया णं तुब्भेहि मम माहप्पं न विण्णायं, इयाणि जाणिस्सह त्ति कट्ठ लोहदंड परामुसइ, पंचण्हं पंडवाणं रहे सुसूरेइ", सुसूरेत्ता [पंच पंडवे ? ] निव्विसए प्राणवेइ । तत्थ णं रहमद्दणे नामं कोटे निविट्ठे ।। १. इत्यंतएहि (ख, घ); एत्थंतएहिं (ग)। २. सं० पा०-हयमहिय जाव नो पडिसेहिए। ३. सं० पा०-अज्झत्यियं जाव जाणित्ता। ४. सं० पा०-बाढेि जाव उत्तरइ। ५. सं० पा०-बासट्टि जाव उत्तिण्णा। ६. सं० पा०-पउमनाहे जाव नो पडिसेहिए। ७. सं० पा०-करेमो तं चेव जाव णमेमो। ८. सं० पा०-ग्रासुरुत्ते जाव तिवलियं एवं । ६. सं० पा०-हयमहिय जाव पडिसेहित्ता। १०. सुमुचूरेइ (ख); सुसुसूरेइ (ग) चूरेइ (घ)। Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० हा २०. तए णं से कहे वासुदेवे जेणेव सए खंधावारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सणं खंधावारेणं सद्धि अभिसमण्णागए यावि होत्था |! २६१. तए णं से कहे वासुदेवे जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता [ सयं भवणं ? ] प्रणुप्पविसइ || २९२. तए णं ते पंच पंडवा जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल' परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी -- एवं खलु ताओ ! श्रम्हे hi निव्विसया आणत्ता || o २३. तए णं पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी -- कहण्णं पुत्ता ! तुब्भे कण्हेणं वासुदेवेणं निव्विसया आणत्ता ? २६४. तए णं ते पंच पंडवा पंडुं रायं एवं वयासी – एवं खलु ताओ ! अम्हे प्रवरकंका पडिनियत्ता लवणसमुदं दोण्णि जोयणसयसहस्साई वीईवइत्था । तए से कहे वासुदेवे हे एवं वयइ-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! गंगं महानई उत्तरह जाव तावग्रहं सुट्ठियं लवणाहिवई पासामि, एवं तहेव जाव' चिट्ठामो ॥ २६५. तण से कहे वासुदेवे सुट्ठियं लवणाहिवई दट्ठूण जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छइ, तं चेवं सव्वं नवरं कण्हस्स चिता न बुज्झइ जाव' निव्विसए श्राणवे ॥ २६६. तए णं से पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी - दुट्टु णं' पुत्ता ! कयं कण्हस्स वासुदेव विप्पियं करेमाणेहिं ॥ २६७. तए णं से पंडू राया कोंति देवि सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुमं देवाप्पिए ! बारवई नयरिं कण्हस्स वासुदेवस्स एवं निवेएहि -- एवं खलु देवाणुपिया ! तुमे पंच पंडवा निव्विसया प्राणत्ता । तुमं च णं देवाणुप्पिया ! दाहिणड्डूभ रहस्स सामी । तं संदिसंतु णं देवाणुप्पिया । ते पंच पंडवा करं देवादिसं वा 'विदिसं वा " गच्छंतु ? २८. तणं सा कोंती पंडुणा एवं वृत्ता समाणी हत्थिबंधं दुरुहइ, जहा हेट्ठा जाव' संदिसंतु णं पिउच्छा ! किमागमणपश्रयणं ? २६६. तए णं सा कोंती देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - एवं खलु तुमे पुत्ता ! पंचपंडवा निव्विसया ग्राणत्ता । तुमं च णं दाहिणड्डूभरहस्स" "सामी । तं १. द्रष्टव्यम् - अस्यैवाध्ययनस्य १६६ सूत्रम् । २. सं० पा० - करयल जाव एवं । ३. ना० १।१६।२८२ । ४. वुच्चइ (घ ) । ५. ना० १।१६।२८३, २८४, २८६-२६० । ६. ण तुमं ( ख ) । ७. X ( क, ग, घ ) । ८. X ( क, ख, ग ) । ६. ना० १।१६।२१६-२१६ । १०. सं० पा० - दाहिणड्ढभरहस्स जाव दिसं । Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) ३३१ संदिसंतु णं देवाणु प्पिया ! ते पंच पंडवा कयरं देसं वा° दिसं वा विदिसि वा गच्छंत ? ३००. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंति देवि एवं वयासी-अपूइवयणा' णं पिउच्छा ! उत्तमपुरिसा--वासुदेवा बलदेवा चक्कवट्टी। तं गच्छंतु णं पंच पंडवा दाहिणिल्लं वेयालि तत्थ पंडुमहुरं निवेसंतु, ममं अदिट्ठसेवगा भवंतु त्ति कटु कोंति देवि सक्कारेइ सम्माणेइ', 'सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥ ३०१. तए णं सा कोंती देवी' •जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता° पंडुस्स एयमटुं निवेएइ ।। ३०२. तए णं पंडू राया पंच पंडवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- गच्छह णं तुब्भे पुत्ता ! दाहिणिल्लं वेयालि । तत्थ णं तुब्भे पंडुमहुरं निवेसेह ॥ पंडुमहुरा-निवेसण-पदं ३०३. तए णं ते पंच पंडवा पंडुस्स रण्णो 'एयमटुं° तहत्ति पडिसूणेति, पडिसूणेत्ता सबलवाहणा हय-गय"- रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवडा महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ता' हत्थिणाउराओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव दविखणिल्ले वेयाली तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पंडुमहुरं नगरि निवेसंति । तत्थवि णं ते विपुलभोग-समिति समण्णागया यावि होत्था । पंडुसेण-जम्म-पदं ३०४. तए णं सा दोवई देवी अण्णया कयाइ अावण्णसत्ता जाया यावि' होत्था । ३०५. तए णं सा दोवई देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सुरूवं दारगं पयाया--सूमाल कोमलयं गयतालुयसमाणं ।। ३०६. तए णं तस्स णं दारगस्स निव्वत्तबारसाहस्स अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्जं करेंति° जम्हा णं अम्हं एस दारए पंचण्हं पंडवाणं पुत्ते दोवईए देवीए अत्तए, तं होउ णं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं 'पंडुसेणे-पंडुसेणे"। १. अपूईवयणा (ख, ग)। २. सं. पा.-सम्माणेइ जाव पडिविसज्जेइ। ३. सं० पा०.--देवो जाव पंडुस्स । ४. सं० पा०-रण्णो जाव तहत्ति । ५. सं० पा०-हयगय जाव हत्थिणाउराओ। ६. नगरं (ख)। ७. तत्थ (ग, घ)। ८. वि (ख, घ)। ६. प्रो० सू० १४३ । १०. सं० पा०-सूमाल निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं । सर्वास्वपि प्रतिष एतावानेव पाठो विद्यते, किन्तु १।१६।३३,३४ सूत्रानुसारेण अस्य पूर्तिः कृता। ११. पंडुसेणे (ग)। Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ नायाधामक हाओ ३०७. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्ज करेंति' पंडुसेणत्ति ॥ ३०८. तए णं तं पंडुसेणं दारयं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासजायगं चेव सोहणंसि तिहि-करण-मुहत्तं सि कलायरियस्स उवणेति ।। ३०६. तए णं से कलायरिए पंडुसेणं कुमारं लेहाइयायो गणियप्पहाणाम्रो सउणरुय पज्जवसाणाप्रो बावत्तरि कलाप्रो सुत्तो य अत्थनो य करणो य सेहावेइ सिक्खावेइ ° जाव' अलंभोगसमत्थे जाए । जुवराया जाव' विहरइ ॥ पंडवाणं दोवईए य पव्वज्जा-पदं ३१०. थेरा समोसढा। परिसा निग्गया। पंडवा निग्गया। धम्म सोच्चा एवं वयासी-जं नवरं- देवाणुप्पिया ! दोवइं देवि प्रापुच्छामो। पंडुसेणं च कुमारं रज्जे ठावेमो । तो पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भक्त्तिा' •णं अगारापो अणगारियं पव्वयामो। अहासुहं देवाणप्पिया ! ३११. तए णं ते पंच पंडवा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दोवई देवि सद्दावेति, सदावेत्ता एवं वयासी- एवं खलु देवाणुप्पिए ! अम्हेहि थेराणं अंतिए धम्मे निसंते जाव पव्वयामो । तुम णं देवाणुप्पिए ! कि करेसि ? तए णं सा दोबई ते पंच पडवे एवं वयासी-जइ णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! संसार-भउव्विग्गा जाव' पव्वयह, मम के अण्णे पालंबे वा पाहारे वा पडिबंधे वा° भविस्सइ ? अहं पि य णं संसारभउव्विग्गा देवाणुप्पिएहि सद्धि पव्वइस्सामि ॥ ३१३. तए णं ते पंच पंडवा •कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! पंडुसेणस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेहं उवट्ठवेह ° । पंडुसेणस्स अभिग्रो जाव" राया जाए जाव२ रज्जं पसाहेमाणे विहरइ॥ ३१४. तए णं ते पंच पंडवा दोवई य देवी अण्णया कयाइ पंडुसेणं रायाणं आपुच्छंति ।। ३१५. तए णं से पंडुसेणे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- १. कयं (क); X (ख, ग)। ७. ना० ११८६ । २. सं० पा०-बावत्तरि कलाओ जाव अलंभोग- ८. ना० १।५।६० । समत्थे। ६. सं० पा०-आलंबे वा जाव भविस्सइ। ३. ना० ११८५-८८ । १०. सं० पा०-पंडवा । ४. राय० सू० ६७४ । ११. ना० ११११११७-११६ । ५. सं० पा०-भवित्ता जाव पब्बयामो। १२. प्रो० सू० १४ । ६. पव्वामो (क, ग)। Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकंका) खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! निक्खमणाभिसेयं करेह जाव' पुरिससहस्सवाहिणीओ सिबियाप्रो उवट्ठवेह जाव' सिबियानो पच्चोरुहंति', जेणव थेरा" •भगवंतो तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता थेरं भगवंतं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - आलित्ते णं भंते ! लोए जाव' समणा जाया, चोद्दस्स पुव्वाई अहिज्जंति, अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि छट्टट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावमाणा विहरति ।। ३१६. तए णं सा दोवई देवी सीयानो पच्चोरुहइ जाव' पब्वइया । सुव्वयाए अज्जाए सिस्सिणियत्ताए दलयंति, एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, बहूणि वासाणि छट्ठम दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ॥ ३ १७. तए णं ते थेरा भगवंतो अण्णया कयाइ पंडुमहुरानो नयरीनो सहस्संबवणाम्रो उज्जाणागो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरंति ।। अरिट्टनेमिस्स निव्वाण-पदं ३१८. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी जेणेव सुरद्वाजणवए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुरट्ठाजणवयंसि संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ ३१६. तए णं बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ, भासइ पण्णवेइ परूवेइ-एवं खलू ___ देवाणुप्पिया ! अरहा अरिट्ठनेमी सुरट्ठाजणवए' संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ ३२०. तए णं ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अणगारा बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिया! अरहा अरिट्ठनेमी पुव्वाणुपुदि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे "सुहंसुहेणं बिहरमाणे सुरद्वाजणवए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ। तं सेयं खलु अम्हं [थेरे भगवंते ? ] अापुच्छित्ता अरहं अरिट्ठनेमि वंदणाए गमित्तए, अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी १. ना० १२१११२१-१२६ । २. ना० १११११३०-१४४ । ३. द्रष्टव्यम्-ना० १११।१४५-१४८ सूत्रम् । ४. सं० पा०-थेरा जाव आलित्ते। २. ना० १११११४६। ६. ना० १।१६।३१५ । ७. दलयइ (क, ख, ग, घ)। ८. सहसंब° (ख, ग)। ६. सं० पा०-सुरट्टाजणवए जाव विहरइ। १०. सं० पा०-दूइज्जमाणे जाव विहरइ। Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ इच्छामो णं तुभेहिं अब्भणुण्णाया समाणा अरहं अरिटुनेमि' 'वंदणाए गमित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! ३२१. तए ण ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अणगारा थेरेहिं अब्भणुण्णाया समाणा थेरे भगवते वंदति नमसंति, वंदित्ता नमसित्ता थेराणं अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता मासंमासेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेण गामाणुगामं दुइज्जमाणा' 'सुहसुहेणं विहरमाणा° जेणेव हत्थकप्पे' नयरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हत्थकप्पस्स बहिया सहस्संबवणे उज्जाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा ° विहरंति ॥ ३२२. तए णं ते जुहिट्ठिलवज्जा चत्तारि अणगारा मासक्खमणपारणए पढमाए पोरि सीए सज्झायं करेंति, बीयाए झाणं झायंति एवं जहा गोयमसामो', नवरंजुहिदिलं पापुच्छंति जाव' अडमाणा बहुजगसद्द निसामेति -एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरहा अरिट्ठनेमी उज्जतसेलसिहरे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं पंचहि छत्तीसेहि अणगारसएहिं सद्धि कालगए' सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्ख ° पहोणे ॥ पंडवाणं निव्वाण-पदं ३२३. तए णं ते जुहिट्ठिलवज्जा चत्तारि अणगारा बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हत्थकप्पानो नयरात्रो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे जेणेव जुहिट्ठिले अणगारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भत्तपाणं पच्चुवेक्खंति, पच्चुवेक्खित्ता गमणागमणस्स पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एसणमणेसणं पालोएंति, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिदंसेंति, पडिदंसेत्ता एवं वयासो--एव खलु देवाणुप्पिया ! परहा अरिद्वनेमी उज्जतसेलसिहरे मासिएणं भत्तणं अपाणएणं पंचहिं छत्तीसेहिं अणगारसएहि सद्धि ° कालगए। तं सेयं खलु अम्हं देवाणु प्पिया ! इमं पुव्वगहियं भत्तपाणं परिद्ववेत्ता सेत्तुज्ज पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहित्तए, संलेहणा-झूसणा-झोसियाणं कालं अणवेक्खमाणाणं विहरित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तं पुव्वगहियं भत्तपाणं एगते परिहवेंति, परिट्ठवेत्ता जेणेव सेत्तुज्जे पव्वए तेणेव १. सं. पा.-अग्नेिमि जाव गमित्तए। २. सं० पा०-दुइज्जमाणा जाव जेणव। ३. हत्थीकप्पे (क)। ४. स. पा.-उज्जाणे जाव विहरति । ५. भ० २।१०७। ६. भ० २।१०८, १०६ । ७. सं० पा०-कालगए जाव पहोणे । ८. पचूवेक्खइंति (ख); पच्चक्खंति (घ)। ६. सं० पा०-देवाणुप्पिया जाव कालगए। १०. अणवकंखमाणाणं (घ)। ११. सेत्तुजे (क्व)। Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (अवरकका) उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेत्तुज्ज पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहंति', 'दुरुहित्ता सेलेहणा-झूसणा-झोसिया ° कालं अणवकंखमाणा विहरंति ।। ३२४. तए णं ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अणगारा सामाइयमाइयाइ चोद्दसपुवाई अहिज्जित्ता, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसेत्ता जस्सट्ठाए की रइ नग्गभावे जाव' तमट्ठमाराहेति, पाराहेत्ता अणतं' केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धा बुद्धा मुत्ता अंतगडा परिनिव्वुडा सव्वदुक्खप्पहीणा ° ॥ दोवईए देवत्त-पदं ३२५. तए णं सा दोवई अज्जा सुव्वयाणं अज्जियाणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइं अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए [अत्ताणं झोसेत्ता ? ] आलोइय-पडिक्कता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए उववण्णा । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं दुवयस्स वि देवस्स दससागरोवमाइं ठिई ।। ३२६. से णं भंते ! दुवए देवे तानो' 'देवलोगाप्रो पाउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्ख एणं अणंतरं चयं चइत्ता जाव' महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चि हिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाण मंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं ३२७. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं जाव" सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं सोलसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । --त्ति बेमि ।। वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा सुबह वि तव-किलेसो, नियाण-दोसेण दूसिओ संतो। न सिवाय दोवईए, जह किल सूमालिया-जम्मे ॥१॥ अथवा अमणुण्णमभत्तीए, पत्ते दाणं भवे अणत्थाय । जह कडुय-तुंब-दाणं, नागसिरि-भवम्मि दोवईए ।।२।। १. सं० पा०-दुरुहंति जाव कालं । २. ओ० सू० १५४ । ३. सं० पा० -अणते णाणे समुप्पण्णे जाव सिद्धा। ४. अहिज्जइ २ (क, ख, ग, घ)। ५. सं० पा०-ताओ जाव विदेहे वासे जाब अंतं ६. ना० १।१।२१२। ७. ना० ११७। Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं अज्झयणं प्राइण्णे उक्खे व-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सोलसमस्स नायज्झ___ यणस्स अयम? पण्णत्ते, सत्तरसमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था वण्णो ' । ३. तत्थ णं कणगकेऊ नामं राया होत्था-वण्णगो' ।। ४. तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति—अड्डा जाव' बहुजणस्स अपरिभूया यावि होत्था ।। कालियदीव-जत्ता-पदं ५. तए णं तेसिं 'संजत्ता-नावावाणियगाणं' अण्णया कयाइ एगयओ' •सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था-सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुदं पोयवहणेणं अोगाहेत्तए त्ति कटुं° जहा अरहन्नए जाव लवणसमुदं अणेगाइं जोयणसयाइं प्रोगाढा यावि होत्था॥ ६. तए णं तेसिं' संजत्ता-नावावाणियगाणं लवणसमुदं अणेगाइं जोयणसयाई १. ना० १।१७। २. ओ० सू० १। ३. ओ० सू० १४ । ४. संजुत्ता (ग)। ५. ना० ११५७ । ६. संजुत्ता वाणियगाणं (ख, ग)। ७. सं० पा०–एगयओ जहा अरहन्नए जाव लवणसमुहूं। ८. ना० १।८।६६-७० । ६. सं० पा०-तेसिं जाव बहुणि । Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं अज्झयणं (आइण्णे) प्रोगाढाणं समाणाणं ° बहूणि उप्पाइयसयाइं पाउब्भूयाइं, तं जहा --अकाले गज्जिए अकाले विज्जुए अकाले थणियसद्दे ° कालियवाए य समुत्थिए । ७. तए णं सा नावा तेणं कालियवाएणं आहुणिज्जमाणी'-आहुणिज्जमाणी संचालिज्जमाणी-संचालिज्जमाणी संखोहिज्जमाणी-संखोहिज्जमाणी' तत्थेव परि भमइ॥ ८. तए णं से निज्जामए नट्ठमईए नट्ठसुईए नट्ठसण्णे मूढदिसाभाए जाए यावि होत्था—न जाणइ कयरं देसं वा दिसं वा 'विदिसं वा" पोयवहणे 'अवहिए त्ति कटु ओहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्माणोवगए ° झियायइ ।। ६. तए णं ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गन्भेल्लगा य संजत्ता-नावा वाणियगा य जेणेव से निजामए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता एवं वयासीकिण्णं तुम देवाणुप्पिया ! प्रोहयमणसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्माणोव गए झियायसि ? १०. तए णं से निज्जामए ते बहुवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भेल्लगा य संजत्ता-नावावाणियगा य एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! नट्ठमईए नट्ठसुईए नट्ठसण्णे मूढदिसाभाए जाए यावि होत्था-न जाणइ कयरं देसं वा दिसं वा विदिसं वा पोयवहणे ° अवहिए त्ति कटु तो अोहयमण संकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्माणोवगए झियामि ।। ११. तए णं से कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भेल्लगा य संजत्ता-नावावाणियगा य तस्स निज्जामयस्संतिए एयमढे सोच्चा निसम्म भीया तत्था उव्विग्गा उद्विग्गमणा व्हाया कयबलिकम्मा करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° बहूणं इंदाण य खंधाण य 'रुद्दाण य सिवाण य वेसमणाण य नागाण य भूयाण य जक्खाण य अज्ज-कोट्टकिरियाण य बहूणि उवा इय-सयाणि ° उवायमाणा"-उवायमाणा चिट्ठति ॥ १२. तए णं से निज्जामए तो मुहुत्तंत रस्स लद्धमईए लद्धसुईए लद्धसण्णे अमूढदिसा भाए जाए यावि होत्था । १, सं० पा० -जहा माकंदियदारगाणं जाव ७. स० पा०-ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ । कालियवाए। ८. सं० पा०-प्रोहयमणसंकप्पे जाव झियायसि । २. यत्थ (ग, घ)। ६. सं० पा०- नट्ठ मईए जाव अवहिए। ३. अणुत्तिज्जमाणी (ख); आधुलिज्जमाणी १०. सं० पा०-ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि । (ग); आहुणियमाणी (घ)। ११. सं० पा० -- करयल ° । ४. संखोभेज्जमाणी (क)। १२. सं० पा०-जहा मल्लिनाए जाव उवाय५. ४ (क)। माणा। ६. अवहित्ति (क); अवहिति त्ति (ख)। १३. उवाइमाणा (१।८७२) Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ नायाधम्मकहाओ १३. तए ण स निज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गन्भेल्लगा य संजत्ता नावावाणियगा य एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! लद्धमईए' लद्धसूईए लद्धसण्णे अमूढदिसाभाए जाए। अम्हे णं देवाणप्पिया ! कालिय दीवंतेणं संछूढा' । एस णं कालियदीवे आलोक्कइ' । कालियदीवे आस-पेच्छण-पदं १४. तए णं ते कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भेल्लगा य संजत्ता-नावावाणियगा य तस्स निज्जामगस्स अंतिए एयमटुं सोच्चा हट्टतुट्ठा पयक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबेत्ता एगट्टियाहिं कालियदीवं उत्तरंति। तत्थ णं बहवे हिरण्णागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासंति, किं ते ?हरिरेणु-सोणिसुत्तग-"सकविल-मज्जार-पायकुक्कुड-बोंडसमुग्गयसामवण्णा। गोहमगोरंग-गोरपाडल-गोरा, पवालवण्णा य धूमवण्णा य केइ ॥१॥ तलपत्त - रिट्ठवण्णा य, सालिवण्णा य भासवण्णा य केइ। जंपिय-तिल-कीडगा य, सोलोय-रिट्ठगा य पुंड-पइया य कणग पिट्ठा य केइ ॥२॥ चक्कागपिट्ठवण्णा, सारसवण्णा य हंसवण्णा य केइ। केइत्थ अब्भवण्णा, पक्कतल" - मेघवण्णा य बाहुवण्णा केइ ।।३।। संझाणुरागसरिसा, सुयमुह - गुंजद्धराग- सरिसत्थ केइ । एलापाडल - गोरा, सामलया - गवलसामला पुणो केइ ॥४॥ बहवे अण्णे अणिद्देसा, सामा कासीसरत्तपीया, अच्चंतविसुद्धा वि य णं आइण्णगजाइ-कुल-विणीय-गयमच्छरा। हयवरा जहोवएस-कम्मवाहिणो वि य णं । सिक्खा विणीयविणया, लंघण-वग्गण-धावण-धोरण-तिवई जईण-सिक्खिय-गई। कि ते ? मणसा वि उव्विहंताई अणेगाइं आससयाई पासंति ° ॥ १५. तए ण ते आसा' वाणियए पासंति, तेसिं गंधं आघायंति, आघाइत्ता भीया १. सं० पा० -- लद्धमईए जाव अमूढदिसायाए। कारेणापि सूचितमिदम् यथा-वेढो त्ति २. संबुढा (ख); संबूढा (ग)। वर्णनार्था वाक्यपद्धतिः (वृ)। ३. ओलोकिज्जइ (घ)। ५. पविरल (वृपा)। ४. सं० पा०-आइण्णवेढो । विस्तत: पाठो ६. बह ० (वपा)। वत्त्यनुसारेण स्वीकृतः । मूलपाठे अस्य सूचना ७. आसा ते(क, घ);आसाए(ग);आसाओ (क्व)। 'आइण्णवेढो' इति पदेन प्रदत्तास्ति । वृत्ति- ८, अग्घायंति (ख, ग)। Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा तो अणेगाइं जोयणाइं उब्भमंति । ते णं तत्थ पउर-गोयरा पउर-तणपाणिया निब्भया' निरुव्विग्गा' सुहंसुहेणं विहरंति ॥ संजत्तियाणं पुणरागमण-पदं १६. तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा अण्णमण्णं एवं वयासी-किण्णं अम्हं देवाणु प्पिया ! प्रासेहिं ? इमे णं बहवे हिरण्णागरा य सुवण्णागरा य रयणागरा य वइरागरा य । तं सेयं खलु अम्हं हिरण्णस्स य सुवण्णस्स य रयणस्स य वइरस्स य पोयवहणं भरित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता हिरण्णस्स य सूवण्णस्स य रयणस्स य वइरस्स य तणस्स य कदस्स य अन्नस्स य पाणियस्स य पोयवहणं भरेंति, भरेत्ता पयक्खिणाणुकलेणं' वाएणं जेणेव गभीरए पोयपट्टण तेणंव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पोयवहण लबति, लंबेत्ता सगडी-सागडं सज्जेति, सज्जेत्ता तं हिरण्णं च सवण्णं च रयणं च वइरंच एगट्टियाहि पोयवहणाश्रो संचारेंति, संचारेत्ता सगडी-सागडं संजोएंति, जेणेव हत्थिसीसए नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थिसीसयस्स नयरस्स बहिया अग्गुज्जाणे सत्थनिवेसं करेंति, करेत्ता सगडी-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं •महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं ° पाहुडं गेण्हंति, गेण्हित्ता हत्थिसीसयं नयरं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव से कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्थं 'महग्धं महरिहं विउलं रायारिहं ° पाहुडं उवणेति ॥ आसाण आणयण-पदं १७. तए णं से कणगकेऊ राया तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं तं महत्थं' 'महग्ध महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं° पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते संजत्ता-नावावाणियगे एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! गामागर-नगर-खेड-कब्बडदोणमुह-मडब-पट्टण-पासम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं° पाहिंडह, लवणसमुई च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेणं अोगाहेह । तं अत्थियाइं च केइ भे" कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुवे ? १. निब्भया निब्भेया (ग)। २. निउद्विग्गा (ख)। ३. दक्खिणाणु ° (ख, ग)। ४. गंभीर (ख, ग, घ)। ५. पोयवहणपट्टणे (ग)। ६. सं० पा०-हिरणं जाव वइरं । ७. जोएंति (क, ख, घ)। ८. हत्थिसीसे (घ)। है. सं० पा०-महत्थं जाव पाहुडं । १०. सं० पा०—महत्थं जाव पाहडं। ११. स० पा०-महत्थ जाव पडिच्छइ । १२. सं० पा०-गामागर जाव आहिंडह । १३. हे (ग)। Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ नायाधम्मकहाओ १८. तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा कणगकेउं एवं बयासी--एवं खलु अम्हे देवाणुप्पिया ! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव' कालियदीवंतेणं संछुढा । तत्थ णं बहवे हिरण्णागरे य' "सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासामो। कि ते ? हरिरेणु जाव' अम्हं गंधं आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उद्विग्गा उविग्गमणा तयो अणेगाई जोयणाइं उन्भमंति । तए णं सामी ! अम्हेहि कालियदीवे 'ते आसा' अच्छेरए दिट्ठपुव्वे ।। तए णं से कणगकेऊ तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं अंतिए एयमहूँ सोच्चा निसम्म ते संजत्ता-नावावाणियए एवं वयासी—गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! मम कोडंबियपुरिसेहिं सद्धि कालियदीवानो ते आसे आणेह । २०. तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा एवं सामि ! त्ति प्राणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति ।। २१. तए णं से कणगकेऊ कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संजत्ता-नावावाणियएहि द्धि कालियदीवानो मम आसे प्राणेह । तेवि पडिसुणेति ॥ २२. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सगडी-सागडं सज्जेति, सज्जेत्ता तत्थ णं बहणं वीणाण य वल्लकीण य भामरीण य कच्छभीण य भभाण य छब्भामरीण य चित्तवीणाण य अण्णसिं च बहण सोइंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेति । बहूणं किण्हाण य” नीलाण य लोहियाण य हालिहाण य° सुक्किलाण य कट्टकम्माण य चित्तकम्माण य पोत्थकम्माण य लेप्पकम्माण य गथिमाण य वेढिमाण य पूरिमाण य संघाइमाण य अण्णेसिं च बहूर्ण चक्खिदियपाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेति । बहूण कोट्ठपुडाण य पत्तपुडाण य चोयपुडाण य तगरपुडाण य एलापुडाण य हिरिवेरपुडाण य उसीरपुडाण य चंपगपुडाण य मरुयगपुडाण य दमगपुडाण य जातिपुडाण य जुहियापुडाण य मल्लियापुडाण य वासंतियापुडाण य केयइपुडाण य कप्पूरपुडाण य पाडलपुडाण य° अण्णेसिं च बहूणं घाणिदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं १. ना० १११७।४-१३। ख, ग, घ) । यद्यपि सर्वेष्वपि आदर्शपु असौ २. सं० पा०-हिरण्णागरे य जाव बहवे; पाठो विद्यते, तथापि अर्थमीमांसया नासी हिरण्णागरा ° (ख, ग)। सगच्छते । एतादृशप्रसंगे तथा प्रदर्शनात् । ३. यत्थ (ख); अत्थि (घ)। द्रष्टव्यम् --१।८।१०४ सूत्रम् । तेनासौ पाठः ४. एतत् क्रियापदं १४ सूत्रानुसारेण स्वीकृतम्। पाठान्तरत्वेन स्वीकृतः।। ५. ना० १।१७:१४,१५ । ७. सं० पा०-किण्हाण य जाव सुक्किलाण । ६. नावावाणियगा कणगकेउं एवं वयासी (क, ८. सं० पा०-कोट्ठपुडाण य जाव अण्णेसि । Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तर सम अज्झयणं (आइण्णे) भरेति । बहुस्स खंडस्स य गुलस्स य 'सक्कराए य मच्छंडियाए य' पुप्फुत्तरपउत्तराए अण्णास च जिभिदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगड़ी-सागडं भरेति । बहूणं कोयवाण' य कंबलाण य पावाराण य नवतयाण य 'मलयाण य" मसूराण य 'सिलावदाण य जाव हंसगब्भाण य” अण्णेसि च फासिदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेति, भरेत्ता सगडो-सागडं जोयंति, जोइत्ता जेणेव गंभीरए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, सगडी-सागडं माएंति, मोएत्ता पोयवहणं सज्जेंति, सज्जत्ता तेसि उक्किट्ठाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं कट्ठस्स य 'तणस्स य" पाणियस्स य तंदूलाण य समियस्स य गोरसस्स य जाव अण्णसि च बहणं पोयवहणपाउग्गाणं पोयवहणं भरेंति, भरेत्ता दक्खिणाणकलेणं बाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेति, लंबेत्ता ताई उक्किट्ठाइं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाइं, एगट्ठियाहि कालियदीवं उत्तरैति । जहि-जहि च णं ते आसा ग्रासयति वा सयंति वा चिटुंति वा तुयट्टति वा तहितहिं च णं ते कोडुबियपुरिसा तानो वीणाम्रो य जाव चित्तवीणायो य अण्णाणि य वणि सोइंदिय पाउग्गाणि य दव्वाणि समुदीरेमाणा-समुदीरेमाणा ठवेंति, तेसि च परिपेरंतेणं पासए' ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया चिट्ठति । जत्थ-जत्थ ते पासा पासयंति वा सयंति वा चिटुंति वा ° तुयटुंति वा तत्थतत्थ णं ते कोड बियपुरिसा बहूणि किण्हाणि य नीलाणि य लोहियाणि य हालिद्दाणि य सुक्किलाणि य कट्टकम्माणि य जाव संघाइमाणि य अण्णाणि य वहूणि चविखदिय-पाउग्गाणि य दव्वाणि ठवेति, तेसिं परिपेरतेणं पासए ठवेति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया चिट्ठति । जत्थ-जत्थ ते पासा पासयंति वा सयंति वा चिटुंति वा तुयटुंति वा तत्थ-तत्थ णं ते कोडुंबियपुरिसा तेसि बहूणं कोट्ठपुडाण य जाव पाडलपुडाण य अण्णेसि १. सक्करा तणस य पाणियस्स य गोरसस्स य पूर्तिस्थलं नोपलभ्यते । प्रज्ञापनाया: प्रथमपदे तंदूलाण य समियस्स य जाव अण्णेनि च हंसगब्भ' इति पदं मध्यवति विद्यते । अन्तिम पोयवहणपाओग्गाण य (क); ° मुच्छडियाए पदं 'सूरकते' अस्ति । उत्तराध्ययनस्य 36 य तणस्त य पाणियरस य गोरसस्स य तंदुलाण अध्ययनेपि एवमेव । य समियस्स य जाव अण्णसिं च पोयवहण- ५. X (ख, ग, घ)। पाओग्गाण य (ख)। ६. ना० १।८।६६ । २. कोयगाण (वृ); कोयहा (वा ?) णि ७. x (ख, घ)। (आधारचूला ५।१४)। ८. पासे (ख, घ)। . ३. मसगाण य (वृपा)। ६. सं० पा०-आसयंति वा जाव तुयट्टति ४. 'सिलावठाण य जाव हंसगब्भाण य' अस्य Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ मायाधम्मकहानी च बहूणं घाणिदिय-पा उग्गाणं दवाणं पुंजे य नियरे य करेंति, करेत्ता तेसि परिपेरतेणं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया चिटुंति । जत्थ-जत्थ ते आसा पासयंति वा सयंति वा चिटुंति वा तुयटृति वा तत्थ-तत्थ णं ते कोडुंबियपुरिसा गुलस्स जाव पुप्फुत्तर-पउमुत्तराए अण्णेसिं च बहूणं जिभिदियपाउग्गाणं दव्वाणं पंजे य नियरे य करेंति, करेत्ता वियरए खणंति, खणित्ता गलपाणगस्स 'खंडपाणगस्स बोरपाणगस्स'२ अण्णेसिं च बहणं पाणगाणं वियरए भरेंति, भरेत्ता तेसिं परिपेरंतेणं पासए ठवेंति', 'ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया ° चिटुंति । जहि-जहिं च णं ते आसा पासयंति वा सयंति वा चिटुंति वा तुयटृति वा तहिंतहिं च णं ते कोडुंबियपुरिसा बहवे 'कोयवया जाव सिलावट्टया अण्णाणि य फासिदिय-पाउग्गाइं अत्थुय-पच्चत्थुयाई ठवेंति, ठवेत्ता तेसिं परिपेरंतेणं 'पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया ° चिट्ठति ।। २३. तए णं ते आसा जेणेव ते उक्किट्ठा सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधा तेणेव उवागच्छंति ।। अमुच्छिय-आसाणं सायत्त-विहार-पदं २४. तत्थ णं अत्येगइया प्रासा अपुवा णं इमे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधत्ति कटु तेसु उक्किट्ठेसु सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु अमुच्छिया अगढिया अगिद्धा अणज्झोववण्णा तेसि उक्किट्ठाणं सद्द- फरिस-रस-रूव ° -गंधाणं दूरंदूरेणं प्रवक्कमंति । ते णं तत्थ पउर-गोयरा पउर-तणपाणिया निब्भया निरुव्विग्गा सुहंसुहेणं विहरंति ॥ निगमण-पदं २५. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय उवझायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइए समाणे ° सद्दफरिस-रस-रूव-गंधेसु नो सज्जइ नो रज्जइ नो गिज्झइ नो मुज्झइ नो अज्झोववज्झइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव' चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ॥ १. सं० पा०-परिपेरतेण जाव चिटुंति । २. खंडपाणगस्स पोरपाणगस्स (क); वोरपाण- गस्स य खंडपाणगस्स य (ख): खडपाणगस्स संक्षेपीकरणेऽस्य विपर्ययो जातः । ५. सं० पा०-परिपेरतेण जाव चिटुंति । ६. गंधाति (ख, घ)। ७. सं० पा०- सद्द जाव गंधाणं । ८. सं० पा०-निग्गंथो वा । ६. ना०१।२७६। ३. सं० पा०-ठवेंति जाव चिट्ठति । ४. अस्य सूत्रस्य पूर्वपाठापेक्षया 'कोयवया जाव हंसगन्मा' एवं पाठो यूज्यते । संभवतः Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तरसमं अज्झयण (आइण्णे) ३४३ मुच्छिय-प्रासाणं परायत्त-पदं २६. तत्थ णं अत्थेगइया आसा जेणेव उक्किट्ठा सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधा तेणेव उवागच्छंति । तेसु उक्किट्ठेसु सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु मुच्छिया गढिया गिद्धा अज्झोववण्णा आसेविउं पयत्ता यावि होत्था ।। २७. तए णं ते आसा ते उक्किट्ठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे प्रासेवमाणा तेहिं बहूहिं कूडेहि य पासेहि य गलएसु य पाएसु य बझंति ।। २८. तए णं ते कोडंबियपुरिसा ते आसे गिण्हंति, गिण्हित्ता एगद्वियाहिं पोयवहणे संचारेंति, कट्टस्स य' 'तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स य जाव' अण्णेसिं च बहूणं पोयवहणपाउग्गाणं पोयवहणं ° भरेंति ।। २६. तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबेत्ता ते पासे उत्तारेंति, उत्तारेत्ता जेणेव हत्थिसीसे नयरे जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं° वद्धावेंति ते प्रासे उवणेति ।। ३०. तए णं से कणगकेऊ राया तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं उस्संक' वियरइ, सक्कारेइ सम्माणे इ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ ३१. तए णं से कणगकेऊ राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ।। ३२. तए णं से कणगकेऊ राया प्रासमद्दए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! मम आसे विणएह ॥ ३३. तए णं ते आसमद्दगा तहत्ति पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता ते आसे बहूहि मुहबंधेहि य कण्णबंधेहि य नासाबंधहि य वालबंधेहि य खुरबंधेहि य 'कडगबंधेहि य खलिणबंधेहि य" प्रोवीलणाहि य 'पडयाणेहि य'' अंकणाहि य वेत्तप्पहारेहि य लयप्पहारेहि य कसप्पहारेहि य छिवप्पहारेहि य विणयंति, विणइत्ता कणगकेउस्स रण्णो उवणेति ॥ ३४. तए णं से कणगकेऊ राया ते प्रासमद्दए सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ । १. सं० पा०-कटुस्स य जाव भरेंति । २. ना० ११८६६ । ३. स० पा०-करयल जाव वद्धाति । ४. उस्सुक्क (क, ग, घ)।। ५. X (क); ° खलीण ° (ख, ग)। ६. अधिलाणेहि (क); पावलणेहि (ख); अहि___ लाणबंधेहि (ग); अहिलाणेहि (घ, वृपा)। ७. X (क); पलियाणेही य (ख)। ८. वित्त ° (ख, ग, घ)। ६. x (ख, ग)। Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मक हाम्रो ३५. तए णं ते अासा वहूहि मुहबंधेहि य जाव' छिवप्पहारेहि य बहूणि सारीर माणसाइं दुक्खाइं पार्वति ।। निगमण-पदं ३६. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवझायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराअो अणगारियं° पव्वइए समाणे इढेसु सद्द-फरिसरस-रूव-गंधसु सज्जइ रज्जइ गिज्झइ मुज्झइ अझोववज्झइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं "बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं° सावियाण य हीलणिज्जे जाव' चाउरतं संसारकतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्सइ । गाहा कल-रिभिय-महुर-तंती-तल-ताल-वंस-कउहाभिरामेसु । सद्देसु रज्जमाणा', रमंति सोइंदिय - वसट्टा ॥१॥ सोइंदिय-दुईतत्तणस्स ग्रह ‘एत्तिनो हवइ'' दोसो। दीविग-रुयमसहंतो, वहबंधं तित्तिरो पत्तो ॥२॥ थण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-गव्विय-विलासियगईसु। रूवसु रज्जमाणा, रमंति चक्खिदिय-वसट्टा ॥३॥ चक्विंदिय-दुइंतत्तणस्स ग्रह एत्तिनो हवइ दोसो। जं" जलणंमि जलंते, पडइ पयंगो अबुद्धीओ ।।४।। अगरुवर-पवरधूवण - उउयमल्लाणुलेवणविहीसु। गंधेसु रज्जमाणा, रमति घाणिदिय-वसट्टा ॥५।। घाणिदिय-दुईतत्तणस्स अह एत्तियो हवइ दोसो। जं प्रोसहिगधेणं, बिलामो निद्धावई उरगो ॥६॥ तित्त-कडयं कसायं, महरं बहुखज्ज-पेज्ज-लेझेसु। पासायंमि उ गिद्धा, रमति जिभिदिय-वसट्टा ॥७॥ जिभिदिय-दुइंतत्तणस्स अह एत्तिो हवइ दोसो। जं गललग्गुक्खित्तो, फुरइ थलविरेल्लियो" मच्छो ।।८।। १. ना० १।१७।३३ । ८. भयमसहंतो (ग); खमसहंतो (घ, वृ) । २. सं. पा०-निग्गंथो वा पव्वइए। ६. मईसु (क)। ३. सं० पा०-समणाणं आव सावियाण । १०. सं (क)। ४. ना० १।३।२४ । ११. कटुय (घ)। ५. कदुहा° (क); ककुहा° (ख); ककुदा° १२. अंबिलमहुरं (घ)। (घ, वृ)। १३. आसायंति (ख)। ६. रयमाणा (ख)। १४. ° विरिल्लिओ (क,ख,ग); विरल्लिओ(घ)। ७. तत्तियो हवति (क, ग);हवइ एत्तियो (ख)। Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं अज्झयणं (आइण्णे) उउ-भयमाणसुहेसु य, सविभव-हिययमण-निव्वुइकरेसु'। फासेसु रज्जमाणा, रमंति फासिंदिय-वसट्टा ॥६॥ फासिदिय-दुईतत्तणस्स अह एत्तिनो हवइ दोसो। जं खणइ मत्थयं कंजरस्स लोहंकुसो तिक्खो ॥१०॥ कल-रिभिय-महुर-तंती-तल-ताल-वंस-कउहाभिरामेसु । सद्देसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ।।११।। थण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-गव्विय-विलासियगईस। रूवेसु जे न रत्ता, वसट्टमरणं न ते मरए ।।१२।। अगरुवर - पवर - धूवण - उउयमल्लाणुलेवणविहीसु । गंधेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ।।१३।। तित्त-कडुयं, कसायं, महुरं बहुखज्ज-पेज्ज-लेज्झेसु । प्रासायंमि 'न गिद्धा', वसट्टमरणं न ते मरए ॥१४॥ उउ-भयमाणसुहेसु य, सविभव हिययमण-निव्वुइकरेसु । फासेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥१५।। सद्देसु य भद्दय-पावएसु सोयविसयमुवगएसु । तुद्वेण व रुद्रुण व, समणेण सया न होयव्वं ॥१६।। रूवेसु य भद्दय' - पावएसु चक्खुविसयमवगएसु । तुद्वेण व रुद्रुण व, समणेण सया न होयव्वं ।।१७।। गंधसू य भद्दय-पावएस घाणविसयमूवगएसू ।। तट्रेण व रुट्रण व, समणण सया न होयब्वं ॥१८॥ रसेसु य भद्दय-पावएसु जिब्भविसयमुवगएसु । तु?ण व रु?ण व, समणेण सया न होयव्वं ।।१६।। फासेसु य भद्दय-पावएसु कायविसयमुवगएसु । तुद्वेण व रुद्रुण व, समणेण सया न होयव्वं ॥२०॥ १. °सुहेहि (क, ख)। २. सविहव (क, ग)। ३. ° करेहिं (क, ख, ग)। ४. ° मईसु (ग)। ५. घाणेसु (ख)। ६. अगिद्धा (क, ख, ग)। ७. णेब्बुय° (क)। ८. भद्देसु य (ख)। ६. भद्दग (क, ग)। १०. होउब्वं (ग)। ११. एतद् गाथा-विंशतिक वृत्तिकृता प्रस्तुतवाच नायां न स्वीक्रियते--यथा—अथेन्द्रियासंवृतानां स्वरूपस्य इन्द्रियासंवरदोषस्य चाभिधायक गाथाकदंबकं वाचनान्तरेऽधिकम्पलभ्यते । Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ ३७. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तरसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा जह सो कालियदीवो, अणुवमसोक्खो तहेव जइ-धम्मो। जह पासा तह साहू, वणियव्व अणुकूलकारिजणा ॥१॥ जह सद्दा इ-अगिद्धा, पत्ता नो पासबंधणं आसा। तह विसएसु अगिद्धा, बझंति न कम्मणा साहू ॥२॥ जह सच्छंदविहारो, आसाणं तह इहं वरमुणीणं । जर-मरणाइ-विवज्जिय, सायत्ताणंदनिव्वाणं ॥३॥ जह सद्दाइसु गिद्धा, बद्धा आसा तहेव विसयरया । पावेंति कम्मबंध, परमासुह-कारणं घोरं ॥४॥ जह ते कालियदीवा, णीया अण्णत्थ दुहगणं पत्ता। तह धम्म-परिब्भद्रा, अधम्मपत्ता इहं जीवा ॥५।। पावेंति कम्म-नरवइ-वसया संसारवाहियालीए। अासप्पमद्दएहिं व, नेरइयाईहिं दुक्खाई ।।६।। १. ना० १२१२७ । २. ° वाहयालीए (घ)। Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झयणं सुंसुमा उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तरसमस्स नायज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, अट्ठारसमस्स णं भंते नायज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था-वण्णो ' । ३. तत्थ णं धणे नामं सत्थवाहे । भद्दा भारिया ॥ ४. तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स पुत्ता भद्दाए अत्तया पंच सत्थवाहदारगा होत्था, तं जहा-धणे धणपाले धणदेवे धणगोवे धणरक्खिए । ५. तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुंसुमा नाम दारिया होत्था-सूमालपाणिपाया ।। चिलाय-दासचेडस्स विग्गह-पदं ६. तस्स णं धणस्स सत्थवाहस्स चिलाए नामं दासचेडे होत्था-अहीणपंचिंदिय सरीरे मंसोवचिए बालकीलावणकुसले यावि होत्था ।। ७. तए णं से दासचेडे सुसुमाए दारियाए बालग्गाहे जाए यावि होत्था, सुसुमं दारियं कडीए गिण्हइ, गिण्हित्ता बहूहिं दारएहि य दारियाहि य डिभएहि य डिभियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धि अभिरममाणे-अभिरममाणे विहरइ । ८. तए णं से चिलाए दासचेडे तेसि बहूणं दारयाण य दारियाण य डिभयाण य १. ना० १।१७। २. ओ० सू०१। ३. धणवाले (क, ख)। ४. होत्था समालपाणिपाया (ख, ग)। ३४७ Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ नायाधम्मक हाओ डिभियाण य कुमारयाण य कुमारियाण य अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ, 'अप्पेगइयाणं वट्टए अवहरइ, अप्पेगइयाणं याडोलियाओ' अवहरइ, अप्पेगइयाणं तिदूसए अवहरइ, अप्पेगइयाणं पोत्तुल्लए अवहरइ, अप्पेगइयाणं साडोल्लए अवहरइ,° अप्पेगइयाणं पाभरणमल्लालंकारं अवहरइ, अप्पेगइए पाउसइ अवहसइ निच्छोडेइ निब्भच्छेइ तज्जेइ तालेइ॥ ६. तए णं ते बहवे दारगा य दारिया य डिभया य डिभिया य कुमारया य कुमारिया य रोयमाणा य कंदमाणा य सोयमाणा य तिप्पमाणा य विलवमाणा य साणं साणं अम्मापिऊणं निवेदेति ।। चिलायस्स गिहाम्रो निक्कासण-पदं १०. तए णं तेसि बहूर्ण दारयाण य दारियाण य डिभयाण य डिभियाण य कुमारयाण य कुमारियाण य अम्मापियरो जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता धणं सत्थवाहं बहूहि खिज्जणियाहि य रुंटणाहि य उवलंभणाहि य खिज्जमाणा य रुंटमाणा य उवलंभमाणा' य धणस्स सत्थवाहस्स एयमटुं निवेदेति ।। ११. तए णं से धणे सत्थवाहे चिलायं दासचेडं एयमट्ठ भुज्जो-भुज्जो निवारेइ, नो चेव णं चिलाए दासचेडे उवरमइ ।। १२. तए णं से चिलाए दासचेडे तेसिं बहूणं दारयाण य दारियाण य डिभयाण य डिभियाण य कुमारयाण य कुमारियाण य अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ' अप्पेगइयाणं वट्टए अवहरइ, अप्पेगइयाणं आडोलियानो अवहरइ, अप्पेगइयाणं तिदूसए अवहरइ, अप्पेगयाणं पोत्तुल्लए अवहरइ, अप्पेगइयाणं साडोल्लए अवहरइ, अप्पेगइयाणं ग्राभरणमल्लालंकारं अवहरइ, अप्पेगइए पाउसइ अवहसइ निच्छोडेइ निब्भच्छेइ तज्जेइ० तालेइ॥ १३. तए णं ते बहवे दारगा य दारिया य डिभया य डिभिया य कुमारया य कुमारिया य रोयमाणा य कंदमाणा य सोयमाणा य तिप्पमाणा य विलवमाणा य साणं-साणं° अम्मापिऊणं निवेदेति ।। १४. तए णं ते आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चडिक्किया मिसिमिसेमाणा जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता बहूहि खिज्जणाहि य 'रुंटणाहि य १. खल्लए (ग)। २. सं० पा० --एवं वए आडोलियानो तिदूसए पोत्तुल्लए साडोल्लए। ३. अप्पोडियाओ (ख) आलोडियाओ (क्व)। ४. उवलंभणियाहि (ख); उवलभणायाहि (ग)। ५. उवालभमाणा (क); उवलभमाणा (ख, ग)। ६. सं० पा०-अवहरइ जाव तालेइ। ७. स० पा०--रोयमाणा य जाव अम्मापिऊणं । ८. सं० पा०—खिज्जणाहि य जाव एयम। Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झयण (सुंसुमा) ३४६ उवलंभणाहि य खिज्जमाणा य रुंटमाणा य उवलंभमाणा य धणस्स सत्थवाहस्स ° एयमटुं निवेदेति ।। १५. तए णं से धणे सत्थवाहे बहूणं दारगाणं दारियाणं डिभयाणं डिभियाणं कुमार याणं कुमारियाणं अम्मापिऊण अंतिए एयमटुं सोच्चा पासुरुत्त रुऐ कूविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे चिलायं दासचेडं उच्चावयाहि पाउसणाहि पाउसइ उद्धंसइ निभच्छेइ निच्छोडेइ तज्जेइ उच्चावयाहिं तालणाहिं तालेइ सानो गिहाम्रो निच्छुभइ॥ चिलायस्स दुव्वसण-पवत्ति-पदं १६. तए णं से चिलाए दासचेडे साओ गिहाम्रो निच्छुढे समाणे रायगिहे नयरे सिंघा डग'- तिग-चउक्क चच्चर-चउम्मुह-महापह° पहेसु देवकुलेसु य सभासु य पवासु य जूयखलएसु य वेसाघरएसु य पाणधरएसु य सुहंसुहेणं परिवट्टइ। १७. तए णं से चिलाए दासचेडे अणोहट्टिए' अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारी 'मज्जप्पसंगी चोज्जप्पसंगी" जूयप्पसंगी वेसप्पसंगी परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था ॥ चोरपल्ली -पदं १८. तए णं रायगिहस्स नयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरस्थिमे दिसीभाए सोहगुहा नाम चोरपल्ली होत्था-विसम-गिरिकडग-कोलब'-सण्णिविट्ठा 'वंसीकलंकपागार'-परिक्खित्ता छिण्णसेल-विसमप्पवाय-फरिहोवगूढा एगदुवारा अणेगखंडी विदितजण-निग्गमप्पवेसा अभितरपाणिया सुदुल्लभजल-पेरंता सुबहुस्सवि कूवियबलस्स प्रागयस्स दुप्पहंसा यावि होत्था ।। १६. तत्थ णं सीहगुहाए चोरपल्लीए विजए नामं चोरसेणावई परिवसई--अहम्मिए" अहम्मिटे अहम्मक्खाई अहम्माणुए अहम्मपलोई अहम्मपलज्जणे अहम्मसीलसमुदायारे अहम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ । हण-छिद-भिद-वियत्तए लोहियपाणी चंडे रुद्दे खुद्दे साहस्सिए उक्कंचण-वंचण-माया-नियडि-कवड-कूडसाइ-संपयोग-बहुले निस्सीले निव्वए निग्गुणे निप्पच्चक्खाणपोसहोववासे बहूण १. X (ख, ग, घ)। २. सं० पा०-सिंघाडग जाव पहेसु । ३. परिवड्ढइ (घ)। ४. अणोहट्ठए (ख); अणाहट्टिए (घ); अणोहट्टए (वृ)। ५. चोज्जप्पसंगी मंसप्पसगी (घ) । ६. कोडंब (ग)। ७. वंशीकृतप्राकारा: (वृपा) । ८. पवेस (ख)। ६. वाचनान्तरे पुन रेवं पठ्यते---जत्थ चउरंग बलनि उत्तावि कुविय-बलाह्य-महिय-पवरवीरघाइय-विवडिय-चिधज्झयपडागा कीरति १०. सं० पा०-अहम्मिए जाव अहम्मकेऊ । Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० नायाधम्मकहाभो दुप्पय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खि-सरिसिवाणं घायाए वहाए उच्छायणयाए ° अहम्मकेऊ समुट्ठिए बहुनगर-निग्गय-जसे सूरे दढप्पहारी साहसिए सद्दवेही ।। २०. से णं तत्थ सीहगृहाए चोरपल्लीए पंचण्डं चोरसयाणं आहेवच्चं 'पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ॥ २१. तए णं से विजए 'तक्कर-सेणावई' बहुणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेय गाण य संधिच्छेयगाण य खत्तखणगाण य रायावगारीण य अणधारगाण य बालघायगाण य वीसंभघायगाण य जयकाराण य खंडरक्खाण य अण्णेसिं च बहूणं छिण्ण-भिण्ण-बाहिराहयाणं कुडंगे यावि होत्था ॥ २२. तए णं से विजए चोरसेणावई रायगिहस्स दाहिणपुरत्थिमं जणवयं बहूहिं गामघाएहि य नगरघाएहि य गोगहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंथकुट्टणेहि य खत्तखणणेहि य उवीलेमाणे-उवीलेमाणे विद्धंसेमाणे-विद्धंसेमाणे नित्थाणं निद्धणं करेमाणे विहरइ॥ चिलायस्स चोरपल्ली-गमण-पदं २३. तए णं से चिलाए दासचेडए रायगिहे बहूहि अत्थाभिसंकीहि य चोज्जाभि संकीहि य दाराभिसंकीहि य धणिएहि य जूयक रेहि य परब्भवमाणे-परब्भवमाणे रायगिहाम्रो नगरानो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सीहगुहा चोरपल्ली तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विजयं चोरसेणावई उवसंपज्जित्ता णं विहरई॥ २४. तए णं से चिलाए दासचेडे विजयस्स चोरसेणावइस्स अग्ग-प्रसिलटिग्गाहे जाए यावि होत्था। जाहे वि य णं से विजए चोरसेणावई गामघायं वा 'नगरघायं वा गोगहणं वा बंदिग्गहणं वा° पंथकोट्टि वा काउं वच्चइ" ताहे वि य णं से चिलाए दासचेडे सुबहुंपि कूवियबलं हय-महिय-पवर वीरघाइय-विवडियचिध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि ° पडिसेहेइ, पडिसेहेत्ता पुणरवि लद्धढे कयकज्जे अणहसमग्गे सीहगुहं चोरपल्लि हव्वमागच्छइ । १. सं० पा०-आहेवच्चं जाव विहरइ । २. तक्करे चोरसेणावड (घ)। ३. तक्करसेणावइ (क)। ४. X (ग)। ५. कोट्टणेहि (क)। ६. निद्धाणं (क)। ७. चोरा° (घ)। ८. धणएहि (ख)। ६. जुइ ° (ख, ग)। १०. सं० पा०-गामघायं वा जाव पंथकोट्टि । ११. वयइ (घ)। १२. सं० पा०-हयमहिय जाव पडिसेहेइ। Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झयण (सुंसुमा) ३५१ २५. तए णं से विजए चोरसेणावई चिलायं तक्करं बहूओ चोरविज्जायो य चोरमंते य चोरमायाप्रो य चोरनिगडीयो य सिक्खावेइ ॥ विजयस्स मच्चु-पदं २६. तए णं से विजए चोरसेणावई अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते यावि होत्था ॥ २७. तए णं ताइं पंचचोरसयाई विजयस्स चोरसेणावइस्स महया-मया इड्डी-सक्कार समुदएणं नीहरणं करेंति, करेत्ता बहुइं लोइयाइं मयकिच्चाई करेंति, करेत्ता' 'कालेणं ° विगयसोया जाया यावि होत्था ॥ चिलायस्स चोरसेणावइत्त-पदं २८. तए णं ताइं पंचचोरसयाइं अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! विजए चोरसेणावई कालधम्मुणा संजुत्ते । अयं च णं चिलाए तक्करे विजएणं चोरसेणावइणा बहूमो चोरविज्जायो य' 'चोरमंते य चोरमायाओ य चोरनिगडीयो य° सिक्खाविए। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! चिलायं तक्करं सीहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिचित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता चिलायं सीहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणाव इत्ताए अभिसिंचंति ॥ २६. तए णं से चिलाए चोरसेणावई जाए--अहम्मिए' 'अहम्मिढे अहम्मक्खाई अहम्माणुए अहम्मपलोइ अहम्मपलज्जणे अहम्मसीलसमुदायारे अहम्मेण चेव वित्ति कप्पेमार्ण विहरइ।। ३०. तए णं से चिलाए चोरसेणावई चोरनायगे बहणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खत्तखणगाण य रायावगारीण य अणधारगाण य बालघायगाण य वीसंभघायगाण य जयकाराण य खंडरक्खाण य अण्णेसि च बहूणं छिण्ण-भिण्ण-बाहिराहयाणं ° कुडंगे यावि होत्था । ३१. से णं तत्थ सीहगुहाए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसयाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ।। ३२. तए णं से चिलाए चोरसेणावई° रायगिहस्स नयरस्स दाहिणपुरथिमिल्लं जणवयं 'बहुहिं गामघाएहि य नगरघाएहि य गोगहणेहि य बंदिग्गहणेहि य १. सं० पा०-करेत्ता जाव विगयसोया। ४. सं० पा०-चोरनायगे जाव कुडंगे। २. सं० पा०-चोरविज्जाओ य जाव सिक्खा- ५. सं. पा.-एवं जहा विजो तहेव सव्व विए। जाव रायगिहस्स। ३. सं० पा०-अहम्मिए जाव विहरइ । ६. सं० पा०–जणवयं जाव नित्थाणं । Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ नाया महाओ वित्तखणणेहि य उवीलेमाणे - उवीले माणे विद्वंसेमाणे विद्वंसेमाणे ' नित्थाणं निद्धणं करेमाणे विहरइ ॥ चिलायस्स धणस्स गिहे चोरिय-पदं ३३. तए से चिलाए चोरसेणावई ग्रण्णया कयाइ विपुलं असण- पाण- खाइमसाइमं उवक्खडावेत्ता ते पंच चोरसए ग्रामंतेइ तम्रो पच्छा पहाए कयबलिकम्मे भोणमंडवंसितेहि पंचहि चोरसएहि सद्धि विपुलं असण- पाणखाइम साइमं सुरं च' 'मज्जं चं मंसं च सीधुं च पसन्नं च ग्रासाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ, जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूव-पुष्फ-गंध-मल्लालंकारेण सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! रायगिहे नयरे धणे नामं सत्थवाहे ग्रड् ढे । तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुंसुमा नाम दारिया - ग्रहीणा जाव' सुरूवा । तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! धणस्स सत्थवाहस्स हिं विलुंपामो । तुब्भं विपुले धण - कणग - ० रयण-मणि-मोत्तियसंख-सिल-प्पवाले ममं सुसुमा दारिया || ३४. तए णं ते पंच चोरसया चिलायस्स [ एयमट्ठे ? ] पडिसुर्णेति ॥ ३५. तए णं ते चिलाए चोरसेणावई तेहिं पंचहि चोरसएहिं सद्धि ग्रल्लं' चम्म दुरुहइ, दुरुहित्ता पच्चावरण्ह - कालसमयंसि पंचहि चोरसएहिं सद्धि सण्णद्ध - • बद्ध - वम्मिय - कव उप्पीलिय - सरासणपट्टिए पिणद्ध - गेविज्जे ग्राविद्ध-विमलवरचिंधपट्टे गहियाउह-पहरणे माझ्य गोमुहिएहि फलएहि, निक्किट्ठा हिं सिलट्ठीहि श्रंसगए हिं" तोणेहिं, सज्जीवेहिं धणूहि, समुक्खित्तेहिं सरेहि, समुल्ललियाहिं दाहाहिं ", ग्रोसारियाहिं ऊरुघंटियाहिं, छिप्पतूरेहिं" वज्जमाणेहिं महा मा उक्किसीहनाय"-" बोल- कलकलरवेणं पक्खुभिय- महासमुहवयं पिव करे माणा सीहगुहाम्रो चोरपल्लीश्रो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता रायगिहस्स दूरसामंते १. सं० पा० - सुरं च जाव पसन्नं । २. द्रष्टव्यम् - ११७१६ सूत्रम् । ३. दारिया होत्था (क, ख, ग, घ ) । ४. ना० १।१।१७ । ५. सं० पा० गाव सिलवाले । अस्याध्ययनस्य ३८ सूत्रे 'कणग जाव सावएज्जं ' इति पाठोस्ति । अत्रापि तथैव युज्यते, किन्तु संक्षेपीकरणे संभवत: पदभिन्नना जाता । ६. अल्ल ( ख, ग, घ ) । ७. पुव्वावरण्ह ( ग, घ ) । ८ ९. १०. ११. १२. १३. सं० पा० - मण्णद्ध जाव गहिया० । सीहि (क); असिलट्ठेहिं ( ख ) । सागएहिं ( क ); अंसं गएहिं ( ग ) । दावाहिं (क) एतत् प्रहरणं बंगभाषायां 'दाव' इति उच्यते । छिप्पंत रेहि (क); छिप्पत्तरेहि ( ग ) । सं० पा० - सीहनाय जाव समुद्दरवभूयं । Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झयणं (सुंसुमा) ३५३ एग महं गहणं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता दिवसं खवेमाणा चिट्ठति ॥ ३६. तए णं से चिलाए चोरसेणावई अद्धरत्त-कालसमयंसि 'निसंत-पडिनिसंतंसि" पंचहिं चोरसएहिं सद्धि माइय-गोमुहिएहिं फलएहिं जाव' मूइयाहिं ऊरुघंटियाहिं जेणेव रायगिहे नयरे पुरथिमिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ, उदगवत्थि परामुसइ प्रायंते चोखे परमसुइभूए तालुग्घाडणि विज्ज आवाहेइ, आवाहेत्ता रायगिहस्स दुवारकवाडे उदएणं अच्छोडेइ, अच्छोडेता कवाडं विहाडेइ, विहाडेत्ता रायगिहं अणप्पविसइ, अणप्पविसित्ता महया-महया सणं उग्घोसेमाणेउग्योसेमाणे एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! चिलाए नामं चोरसेणावई पंचहिं चोरसएहि सद्धि सीहगुहाओ चोरपल्लीग्रो इहं हव्वमागए धणस्स सत्थवाहस्स गिहं घाउकामे । तं जे णं नवियाए माउयाए दुद्धं पाउकामे, से णं निगच्छउ त्ति कटु जेणेव धणस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणस्स गिहं विहाडेइ ॥ ३७. तए णं से धणे चिलाएणं चोरसेणावइणा पंचहि चोरसएहि सद्धि गिहं घाइज्ज माणं पासइ, पासित्ता भीए तत्ये तसिए उव्विग्गे संजायभए पंचहि पुत्तेहिं सद्धि एगंतं प्रवक्कमइ ।। ३८. तए णं से चिलाए चोरसेणावई धणस्स सत्थवाहस्स गिहं घाएइ, घाएत्ता सुबहुं धण-कणग'-'रयण-मणि-मोत्तिय - संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संत-सार-सावएज्ज संसुमं च दारियं गेण्हइ, गेण्हित्ता रायगिहाम्रो पडिनिक्खमई, पडिनिक्ख मित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव पहारेत्थ गमणाए । नगरगुत्तिरहिं चोरनिग्गह-पदं ३६. तए णं से धणे सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुं धण-कणगं सुसुमं च दारियं अवहरियं जाणित्ता महत्थं महग्धं महरिहं पाहुडं गहाय जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्धं महरिहं पाहुडं उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! चिलाए चारसेणावई सीहगुहायो चोरपल्लीप्रो इहं हव्वमागम्म पंचहिं चोरसएहि सद्धि मम गिहं घाएत्ता सुबहुं धण-कणगं सुसुमं च दारियं गहाय' 'रायगिहाम्रो पडिनिक्खमित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव ° पडिगए। तं इच्छामो १. निसण्णपडिनिसण्णंसि (क)। २. ना० १११८१३५ । ३. सं० पा०-कणग जाव सावएज्जं। ४. असौ पाठः ३८ सूत्रस्य संक्षेपोस्ति । ५. चोरसेणावई ५ (ख, ग)। ६. असो पाठः ३८ सूत्रस्य संक्षेपोस्ति । ७. सं० पा०-गहाय जाव पडिगए। Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ नायाधम्मकहाओ णं देवाणुप्पिया ! सुसुमाए दारियाए कूवं गमित्तए। तुब्भं णं देवाणुप्पिया ! से विपले धण-कणगे, ममं संसमा दारिया ॥ ४०. तए णं ते नगरगुत्तिया धणस्स एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता सण्णद्ध-बद्ध वम्मिय-कवया जाव' गहियाउहपहरणा महया-महया उक्किट्ठ- सीहनाय-बोलकलकलरवेण पक्खुभिय-महा ° समुद्द-रवभूयं पिव करेमाणा रायगिहाम्रो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव चिलाए चोरसेणावई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चिलाएणं चोरसेणावइणा सद्धि संपलग्गा यावि होत्था । ४१. तए णं ते नगरगुत्तिया चिलायं चोरसेणावइं हय-महिय-पवरवीर-घाइय विवडियचिध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि पडिसेहेति ॥ ४२. तए ण ते पंच चोरसया नगरगुत्तिएहि हय-महिय- पवरवीर-घाइय-विवडिय__ चिध-धय-पडागा किच्छोवगयपाणा दिसादिसि ° पडिसेहिया समाणा तं विपुलं धण-कणगं विच्छड्डमाणा य विप्पकिरमाणा य सव्वप्रो समंता विप्पलाइत्था । ४३. तए णं ते नगरगुत्तिया तं विपुलं धण-कणगं गण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छति ॥ चिलायस्स चोरपल्लीतो पलायण-पदं ४४. तए णं से चिलाए तं चोरसेन्नं तेहि नगरगुत्तिएहि हय-महिय-पवर वीर घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसि पडिसेहियं [पासित्ता ?] ° भीए तत्थे सुसुमं दारियं गहाय एगं महं अगामियं' दीहमद्धं अडवि अणुप्पविद्वे ॥ ४५. तए णं से धणे सत्थवाहे सुसुमं दारियं चिलाएणं अडवीमुहि अवहीरमाणि पासित्ता णं पंचहिं पुत्तेहिं सद्धि अप्पछटे सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवए चिलायस्स पयमग्गविहिं 'अणुगच्छमाणे अभिगज्जते' हक्कारेमाणे पुक्कारेमाणे अभितज्जे माणे अभितासेमाणे पिट्ठो अणुगच्छइ ।। ४६. तए णं से चिलाए तं धणं सत्थवाहं पंचहिं पुत्तेहिं सद्धि अप्पछटुं सण्णद्ध-बद्ध वम्मिय-कवयं" समणुगच्छमाणं पासइ, पासित्ता अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे जाहे नो संचाएइ सुसुमं दारियं निव्वाहित्तए ताहे संते १. ना० १।१८।३५ ।। २. सं० पा०-उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं । ३. सं० पा०-हयमहिय जाव पडिसेहेंति। ४. सं० पा०-हयमहिय जाव पडिसेहिया। ५. सं० पा०-पवर जाव भीए । ६. द्रष्टव्यम-अस्याध्ययनस्य ३७ सूत्रम । ७. आगामियं (ख, ग, घ)। ८. अडवीमुहं (घ)। ६. द्रष्टव्यम्-अस्याध्ययनस्य ३५ सूत्रम् । १०. अभिगच्छंते अणुगिज्जमाणे (ख, ग)। ११. द्रष्टव्यम्-अस्याध्ययनस्य ३५ सूत्रम् । ११. द्रष्टव्यम् Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झयणं (सुसुमा) ३५५ तंते परितते' नीलुप्पल'- गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खरधारं असि परामुसइ, परामुसित्ता सुंसुमाए दारियाए उत्तमंगं छिदइ, छिदित्ता तं गहाय तं अगामियं अडवि अणुप्पवितु ॥ ४७. तए णं से चिलाए तीसे अगामियाए अडवीए तण्हाए [छुहाए ? ] अभिभूए समाणे पम्हट्ठ-दिसाभाए सीहगुहं चोरपल्लि असंपत्ते अंतरा चेव कालगए ।। निगमण-पदं ४८. एवामेव समणाउसो'! जो अम्हं निग्गथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झा याणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं° पव्वइए समाणे इमस्स ओरालियसरीरस्स वंतासवस्स पित्तासवप्स खेलासवस्स सुक्कासवस्स सोणियासवस्स" 'दुरुय-उस्सास-निस्सासस्स दुख्य-मुत्त-पुरीस-पूय-बहुपडिपुण्णस्स उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणियसंभवस्स अधुवस्स प्रणितियस्स असासयस्स सडण-पडण-विद्धसणधम्मस्स पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जस्स ° वण्णहेउं वा 'रूवहेउं वा बलहेउं वा विसयहेउं वा पाहारं° अाहारेइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणोणं बहणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे जाव' चाउरंतं संसारकंतारं अणपरि यट्टिस्सइ-जहा व से चिलाए तक्करे । धणस्स सुसुमाकए कंदण-पदं ४६. तए णं से धणे सत्थवाहे पंचहिं पुनेहिं [सद्धि ? ] अप्पछटे चिलायं तीसे अगामियाए अडवीए सव्वनो समंता परिधाडेमाणे-परिधाडेमाणे संते तंते परितंते नो संचाएइ चिलायं चोरसेणावई साहत्थि गिण्हित्तए। से णं तो पडिनियत्तइ, पडिनियत्तित्ता जेणेव सा सुसुमा चिलाएणं जीवियाग्रो ववरोविया तेणेव उवागच्छइ. उवागच्छित्ता संसमंदारियं चिलाएणं जीवियायो बवरोवियं पासइ, पासित्ता परसुनियत्ते व्व चंपगपायवे निव्वत्तमहे व्व इंदलट्री विमुक्क-संधिबंधणे धरणितलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति पडिए ° ॥ ५०. तए णं से धणे सत्थवाहे [पंचहि पुत्तेहिं सद्धि ? ] अप्पछडे आसत्थे कुवमाणे कंदमाणे विलवमाणे महया-मया सद्देणं कुहुकुहुस्स परुन्ने सुचिरकालं वाहप्पमोक्खं करेइ॥ १. परिसते (ख, ग)। ६. सं० पा०-वण्णहेउं वा जाव आहारेइ। २. सं० पा०-नीलुप्पल ° । ७. ना० १।३।२४ । ३. आगामियं (ख, ग, घ)। ८. ववरोविएल्लिया (ग, घ)। ४. सं० पा०-समणाउसो जाव पव्वइए। ६. सं० पा०-चंपगपायवे । ५. सं० पा०--सोणियासवस्स जाव विद्धसण- १०. बाहमोक्ख (क, ग, घ)। धम्मस्स। Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहानो Trer धणेणं अडवि-लंघण→ सुया-मंससोणियाहार-पदं ५१. तए णं से धणे सत्थवाहे पंचहि पुत्तेहि [सद्धि ? ] अप्पछटे चिलायं तीसे अगामियाए अडवीए सव्वओ समंता परिधाडेमाणे तण्हाए छुहाए य परब्भाहते समाणे तीसे अगामियाए अडवीए सव्वग्रो समंता उदगस्स मग्गण-गवेसणं करेमाणे' संते तंते परितंते निविण्णे तीसे अगामियाए अडवीए उदगं अणासाएमाणे जेणेव सुसुमा जीवियानो ववरोविएल्लिया' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जेट्ठ पुत्तं धणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता ! संसुमाए दारियाए अट्ठाए चिलायं तक्करं सवप्रो समंता परिधाडेमाणा तण्हाए छुहाए य अभिभूया समाणा इमोरो अगामियाए अडवीए उदगस्स मग्गणगवेसणं करेमाणा नो चेव ण उदग प्रासादेमो। तए ण उदग प्रणासाएमाणा नो संचाएमो रायगिहं संपावित्तए । तण्णं तुब्भ ममं देवाणप्पिया ! जीवियाग्रो ववरोवेह, मम मंसं च सोणियं च पाहारेह, तेणं आहारेणं अवथद्धा" समाणा तो पच्छा इमं अगामियं अडवि नित्थरिहिह', रायगिहं च संपावेहिह, मित्त-नाइ- नियग-सयण-संबंधि-परियणं' अभिसमागच्छिहिह", अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य ग्राभागी भविस्सह ॥ ५२. तए ण से जेटे पुत्ते धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ते समाणे धणं सत्थवाहं एवं वयासी-तुभेणं तानो ! अम्हं पिया गुरुजणया देवयभूया ठवका पइट्टवका संरक्खगा संगोवगा। तं कहण्णं अम्हे तानो ! तुब्भे जीवियाग्रो ववरोवेमो, तुभं णं मसं च सोणियं च आहारेमो ? तं तुब्भे ण तारो! 'ममं जीवियानो ववरोवेह, मंसं च सोणियं च आहारेह, अगामियं'१२ अडविं नित्थरिहिह, रायगिहं च संपावेहिह, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं अभिसमागच्छिहिह °, अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य प्राभागी भविस्सह ।। १. परिघावेमाणे (घ)। दोषात् 'धणे' इति जातमिति संभाव्यते। २. परिभमते (क); परभते (ख, घ); परडभए ७. अवबद्धा (ख)। (घ) द्रष्टव्यम् - १११११८४ । ८. नित्थरिहह (क); नित्वरेहिह (ग)। ३ करेइ (क, ख, ग, घ) ! ६. संपावेहह (क)। ४. x (क, ख, ग); अडवीए उदगस्स मग्गण- १०. सं० पा०-नाइ° । गराणं करेमाणे नो चेव ण उदग आसाएइ ११. अभिसमागच्छिहह (क, ख, घ)। तए णं (घ)। १२. चिन्हाङ्कितपाठः ५१ सूत्रात् किञ्चित् ५. वबराषिया (घ)। संक्षिप्तोऽस्ति। ६. धणे (क, ख, ग, घ); यद्यपि सर्वासु प्रतिषु १३. नित्थरेह (क); नित्थरह (ख, ग)। 'धणे' इति पाठः उपलभ्यते, परं ज्येष्ठपुत्रस्य सं० पा०-तं चेव सव्वं भणइ जाव अत्थस्स। विशेषणत्वेन 'धणं' इत्येव उपयुज्यते । लिपि Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५७ अद्वारसमं अभयणं (सुंसुमा) ५३. तए णं धणं सत्थवाहं दोच्चे पुत्ते एवं वयासी - मा णं ताम्रो ग्रम्हे जे भायरं गुरुदेव जीविया ववरोवेमो तस्स णं मंसं च सोणियं च ग्राहारेमो । तं तुब्भेणं ताम्रो ! ममं जीविया ववरोवेह', 'मंसं च सोणियं च ग्रहारेह, गामियं विनिरिहिह, रायगिह च संपावेहिह, मित्त-नाइ नियग-सयणसंबंधि- परियणं ग्रभिसमागच्छहिह, प्रत्यस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य° अभागी भविस्सह । एवं जाव पचमे पुत्ते || ५४. तए णं से धणे सत्थवाहे पंचपुत्ताणं हियइच्छियं जाणित्ता ते पंचपुत्ते एवं वयासी - माणं म्हे पुत्ता ! एगमवि जीवियाग्रो ववरोवेमो । एस णं सुसुमाए दरिया सरीरे निप्पा' निच्चेट्टे जीवविप्पजढे । त सेयं खलु पुत्ता ! ग्रम्हं सुसुमाए दारियाए मंसं च सोणिय च प्राहारेत्तए । तए णं म्हे तेणं प्रहारेण अवथद्धा समाणा रायगिहं संपाणिस्सामो ॥ ५५. तए णं ते पंचपुत्ता धणे सत्यवाहेण एवं वृत्ता समाणा एथमट्ठे पडिसुर्णेति ॥ ५६. तए णं धणे सत्थवाहे पंचहिं पुत्तेहिं सद्धि अरणि करेइ, करेत्ता सरग करेइ, करेत्ता सरएणं श्ररणि महेश, महत्ता रिंग पांडेइ, पाडेता रिंग संधुक्केइ ' संधुक्त्ता दारुयाई पक्खिवइ, पक्खिवित्ता रिंग पज्जालेइ, सुंसुमाए दारियाए मंसं च सोणियं च ग्राहारेइ । तेणं ग्राहारेणं अवथद्धा समाणा रायगिहं नवरं संपत्ता मित्त-नाइ' - नियग-सयण संबंधि-परियण अभिसमण्णागया, तस्स य विउलस्स धण-कण - रयण-मणि-मोत्तिय संख-सिल प्पवाल- रत्तरयण-संतसार-सावएज्जस्स ग्राभागी जाया । o O ५७. तए णं से धणे सत्थवाहे सुंसुमाए दारियाए बहूई लोइयाई मयकिच्चाई करेइ, करेत्ता कालेणं ° विगयसोए जाए यावि होत्था ॥ ५८. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नयरे गुणसिलए इए समोसढे ॥ ५६. तणं धणे सत्थवाहे सपुत्ते धम्मं सोच्चा पव्वइए । एक्कारसंगवी । मासियाए हाए सोहम्मे कप्पे उववण्णे । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ || निगमण-पदं ६०. जहा वियणं जंबू ! धणेणं सत्थवाहेणं नो वण्णहेउं वा नो रूवहेउं वा नो १. सं० पा० - ववशेवेह जाव आभागी । २. सं० पा०-निपाणे जाव जीवविप्पजढे । ३. संधुक् २ (क ) | ४. सं० पा० - नाइ । ५. सं० पा०-- रयण जाव आभागी । ६. जाया यावि होत्या ( ख, ग ) । ७. सं० पा० - लोइयाई जाव विगयसोए । Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ नायाधम्मकहाऔ बलहेउं वा नो विसयहेउं वा सुसुमाए दारियाए मंससोणिए आहारिए, नन्नत्थ' एगाए रायगिह-संपावणट्टयाए । एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा •आयरियउवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइए समाणे ° इमस्स पोरालियसरीरस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स [खेलासवस्स ? ] सुक्कासवस्स सोणियासवस्स 'दुरुय-उस्सास-निस्सासस्स दुरुय-मुत्त-पुरीस-पूयबहुपडिपुण्णस्स उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणियसंभवस्स अधुवस्स अणितियस्स असासयस्स सडण-पडण-विद्धंसणधम्मस्स पच्छा पुरं च णं° अवस्सविप्पजहियव्वस्स नो वण्णहेउं वा नो रूवहेउं वा नो बलहे उं वा नो विसयहेउं वा पाहारं आहारेइ, नन्नत्थ एगाए सिद्धिगमण-संपावणट्टयाए, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे जाव' चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ-जहा व से सपुत्ते धणे सत्थवाहे ॥ ६२. एवं खलु जंवू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठारसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धृता निगमनगाथा जह सो चिलाइपुत्तो सुंसुमगिद्धो अकज्ज-पडिबद्धो। धण-पारद्धो पत्तो, महाडवि वसण-सयकलियं ॥१॥ तह जीवो विसय-सुहे, लुद्धो काऊण पावकिरियानो। कम्मवसेणं पावइ, भवाडवीए महादुक्खं ॥२॥ धणसेट्ठी विव गुरुणो, पुत्ता इव साहवो भवो अडवी। सुयमंसमिवाहारो, रायगिहं इह सिवं नेयं ॥३॥ जह अडवि-नियर-नित्थरण-पावणत्थं तएहि सयमसं। भुत्तं तहेह साहू, गुरूण आणाइ अाहारं ।।४।। भव-लंघण-सिव-साहणहेउं भुंजंति ण गेहीए। वण्ण-बल-रूव-हेउं, च भावियप्पा महासत्ता ॥५॥ १. अण्णत्थ (ख, ग)। २. रायगिहं (क्व)। ३. सं० पा०-निग्गंथी वा । ४. सं० पा०-सोणियासवस्स जाव अवस्स । ५. ना० ११२।७६ । ६. ना० १।१७ । Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणवीसइमं अज्झयणं पुंडरोए उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठारसमस्स नायज्झ यणस्स अयमढे पण्णत्ते, एगूणवीसइमस्स णं भंते ! नायज्झयणस्स के अटे पण्णते ? २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे, सीयाए महानईए उत्तरिल्ले कले, नीलवंतस्स [वासहरपव्वयस्स ? ] दाहिणेणं, उत्तरिल्लस्स सीयामुहवणसंडस्स पच्चत्थिमेणं, एगसेलगस्स वक्खारपव्वयस्स पुरस्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खलावई नामं विजए पण्णत्ते ।। ३. तत्थ णं पुंडरीगिणी' नामं रायहाणी पण्णत्ता-नवजोयणवित्थिण्णा दुवालस जोयणायामा जाव' पच्चक्खं देवलोगभूया पासाईया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा॥ ४. तीसे णं पुंडरीगिणीए नयरीए उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए नलिणिवणे नामं उज्जाणे ॥ ५. तत्थ णं पुंडरीगिणीए रायहाणीए महापउमे नाम राया होत्था ।। ६. तस्स णं पउमावई नामं देवी होत्था ।। ७. तस्स णं महापउमस्स रण्णो पुत्ता पउमावईए देवीए अत्तया दुवे कुमारा होत्था, . ___ तं जहा-पुंडरीए य कंडरीए य - सुकुमालपाणिपाया । पुंडरीए जुवराया ॥ .. कंडरीयस्स पव्वज्जा-पदं ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं । महापउमे राया निग्गए। धम्म सोच्चा १. ना० १।१७। २. पुंडरिगिणी (क, ख, ग)। ३. ना० ११५२। ४. पू०—ओ० सू० १४३ । ३५६ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० नायाधम्मकहाओ पुंडरीयं रज्जे ठवेत्ता पव्वइए। पुंडरीए राया जाए, कंडरीए जुवराया। महा पउमे अणगारे चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ ।। ६. तए णं थेरा बहिया जणवय विहारं विहरति ।। १०. तए णं से महापउमे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता जाव' सिद्धे ।। ११. तए णं थेरा अण्णया कयाइ पुणरवि पुंडरीगिणीए' रायहाणीए नलिण [णि ? ] वणे उज्जाणे समोसढा। पुंडरीए राया निग्गए। कंडरीए महाजणसई सोच्चा जहा महाबलो जाव' पज्जुवासइ । थेरा धम्म परिकहेंति । पुंडरीए समणोवासए जाए जाव पडिगए। १२. तए णं कंडरीए थेराणं अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हतूट्रे उट्राए उट्रेइ, उदेता थेरे तिक्खत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जाव ० से जहेयं तुब्भे वयह। जं नवरं-पुंडरीयं रायं पापुच्छामि । 'तप्रो पच्छा मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं ° पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! १३. तए णं से कडरोए थेरे वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता थेराण अंतियानो पडिनिक्खमइ, तमेव चाउग्धंट पास रहं दुरुहइ' 'महया भड-चडगर-पहकरेण पुंडरीगिणीए नयरीए मज्झमज्झणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटायो ग्रासरहाओ° पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पुंडरीए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी- एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए थेराणं अंतिए धम्मे निसंते, से" •वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराग्रो अणगारियं° पव्वइत्तए । १४. तए णं से पुंडरीए राया कंडरीयं एवं वयासी-मा णं तुम भाउया ! इयाणि १. ना० ११२८४ । ७. स० पा०-आपुच्छामि तए णं जाव पव्व२. पुंडरगिणीए (ग)। यामि । ३. भग० ११।१६४-१६६ । ८. कंडरीए जाव [क, ख, ग, घ] । ४. उवा० ११५२ । ६. सं० पा०-दुरुहइ जाव पच्चोरुहइ । ५. सं० पा०-कंडरीए उट्ठाए उढेइ उठूत्ता १०. सं० पा०-करयल जाव एवं । जाव से जहेयं । ११. सं० पा०-से धम्मे अभिरुइए। तए णं ६. ना० १११११०१। देवा जाव पव्वइत्तए। Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीस इमं अज्झयणं (पुंडरीए) मंडे भवित्ता णं अगारानो अणगारियं पव्वयाहि । 'अहं णं तुम महाराया भिसेएणं' अभिसिंचामि ।। १५. तए णं से कंडरीए पुंडरीयस्स रण्णो एयमटुं नो आढाइ •नो परियाणाइ' ० तुसिणीए संचिट्ठइ॥ १६. तए णं से पुंडरीए राया कंडरीयं दोच्चंपि तच्चपि एवं वयासो'--'मा णं तुम भाउया ! इयाणि मुंडे भवित्ता णं अगारामो अणगारियं पव्वयाहि । अहं णं तुमं महारायाभिसेएणं अभिसिंचामि ।। १७. तए णं से कंडरीए पुंडरीयस्स रण्णो एयमटुं नो अाढाइ नो परियाणाइ° तुसिणीए संचिट्ठइ॥ १८. तए णं पुंडरीए कंडरीयं कुमारं जाहे नो संचाएइ बहूहिं आघवणाहि य पण्णव णाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे अकामए चेव एयमटुं अणुमन्नित्था जाव' निक्खमणाभिसेएणं अभिसिंचइ जाव' •थेराणं सीसभिक्खं दलयइ । पव्वइए। अणगारे जाए। एक्कारसंगवी ॥ १६. तर णं थेरा भगवंतो अण्णया कयाइ पुंडरीगिणीनो नयरीनो नलिणिवणामो उज्जाणाप्रो पडिनिक्खमंति, बहिया जणवयविहारं विहरति ।। कंडरीयस्स वेयणा-पदं २०. तए णं तस्स कंडरीयस्स अणगारस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य "तुच्छेहि य लहेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कतेहि य पमाणाइक्कतेहि य निच्चं पाणभोयणेहि य पयइसुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउन्भूया-उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। पित्तज्जर-परिगयसरीरे° दाहवक्कंतीए यावि विहरइ॥ २१. तए णं थेरा अण्णया कयाइ जेणेव पोंडरीगिणी नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता नलिणीवणे समोसढा । पुंडरीए निग्गए। धम्मं सुणेइ॥ कंडरीयस्स तिगिच्छा-पदं २२. तए ण पुंडरीए राया धम्म सोच्चा जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छइ. १. सं० पा०-मडे जाव पव्वयाहि । २. अहण्णं (ग)। ३. महयामहया रायाभिसेएण (ख, ग)। ४. स. पा०-आढाइ जाव तुसिणीए। ५. द्रष्टव्यम्-१।११३६ सूत्रम् । ६. सं० पा०-वयासी जाव तुसिणीए । ७. ना० १११२८ । ८. ना० ११५।३०। है. सं० पा०-जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कंतीए। १०. शेलकाध्ययने 'कंडु-दाह-पितज्जर-परिगय सरीरे' इति पाठो लभ्यते । Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामक हाओ उवागच्छित्ता कंडरीयं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता कंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगं सव्वाबाहं सरोगं पासइ, पासित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - ग्रहणं भंते! कंडरीयस्स अणगारस्स अहापवत्ते हिं' ओसह - भेसज्ज - भत्त-पाणेहिं तेगिच्छं ग्राउंटामि । तं तुब्भे णं भंते ! मम जाणसालासु समोसरह ।। २३. तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयस्स [ एयमट्ठे ? ] पडिसुर्णेति', 'पडि सुणेत्ता जेणेव पुंडरीयस रण्णो जाणसाला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं • उवसंपज्जित्ता णं विहरति ॥ २४. तए णं पुंडरीए राया " तेगिच्छिए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुब्भेणं देवाप्पिया ! कंडरीयस्स फासू- एसणिज्जेणं प्रोसह - भेसज्ज - भत्त-पाणेणं तेगिच्छं आउट्टेह ॥ ३६२ २५. तए णं ते तेगिच्छिया पुंडरीएणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्ठा कंडरीयस्स ग्रहापवत्र्त्तेहिं श्रोसह-भेसज्ज - भत्त-पाणेहिं तेगिच्छं ग्राउट्टेति, मज्जपाणगं च से उवदिसति ॥ २६. तए णं तस्स कंडरीयस्स ग्रहापवत्तेहिं सह-भे सज्ज - भत्त-पाणेहिं मज्जपाणएण य से रोगायंके उवसंते यावि होत्था - हट्ठे बलियस रीरे जाए ववगयरोगायके ॥ कंडरीयस्स पमत्तविहार-पदं २७. तए णं थेरा भगवंतो 'पुंडरीयं रायं प्रापुच्छंति, प्रापुच्छित्ता" बहिया जणवयविहारं विहरति ॥ २८. तए णं से कंडरीए ताओ रोयायंकाप्रो विप्पमुक्के समाणे तंसि मणुण्णंसि असणपाण- खाइम - साइमंसिमुच्छिए गिद्धे गढिए अज्भोववण्णे नो संचाएइ पुंडरीयं पुच्छित्ता बहिया प्रब्भुज्जएणं' जणवयविहारेणं • विहरित्तए तत्थेव ग्रोसन्ने जाए || पुंडरीएण पडिबोह-पदं २६. तए णं से पुंडरीए इमीसे कहाए लट्ठे समाणे पहाए अंतेउर - परियाल - संपरिवुडे जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवाच्छइ, उवागच्छित्ता १. अहापत्ते हि (ख); ग्रहावत्ते हि (ग); अहापवित्तहिं (घ) । २. सं० पा०० - भेसज्जेहिं जाव तेगिच्छं । ३. सं० पा० - पडिसुर्णेति जाव उवसंपज्जित्ता । ४. स० पा० जहा मंडुए सेलगस्स जाव बलियासरीरे जाए । ५. १।५।११६ सूत्रे 'गल्लसरीरे' इति पाठोस्ति । ६. पोंडरीयं पुच्छति २ ( ख, ग ) । जाव विह ७. सं० पा० - अब्भुज्जएणं रित्तए । ८. परियाल सद्धि (क, घ) 1 Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणवीस इमं अयणं (पुंडरीए ) ३६३ कंडरी तिवखुत्तो श्रायाहिण -पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासी - धन्नेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे । सुद्धे णं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्म- जीवियफले जे णं तुम रज्जं च' रट्टं च कोसं च कोट्ठागारं च बलं च वाहणं च पुरं च ० तेउरं च विछडेत्ता विगोवइत्ता, दाणं च दाइयाणं परिभायइत्ता, मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए, ग्रहणं ग्रधन्ने कत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे रज्जे य' रट्ठे य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य पुरे य° अंतेउरे य माणुस्सएस्य कामभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए ग्रज्भोववण्णे नो संचाएमि जाव पव्वइत्तए । तं धन्नेसि णं तुमं देवाणुप्पिया' ! कयत्थे कयपुणे कयलक्खणे ° । सुलद्धे णं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्मजीवियफले ॥ ३०. तए णं सेकंडरीए अणगारे पुंडरीयस्स एयमद्वं नो अढाइ नो परियाणाई सिणी चिट्ट || 0 ३१. तए णं से कंडराए अणगारे पोंडरीएणं दोच्चंपि तच्चपि एवं वुत्ते समाणेअकामए अवसवसे लज्जाए गारवण य पुंडरीयं प्रापुच्छइ, आपुच्छित्ता थेरेहिं सद्धि हि जणवयविहारं विहरइ ॥ कंडरीयस्स पव्वज्जा - परिच्चाय-पदं ३२. तए णं सेकंडरीए थेरेहिं सद्धि कंचि कालं उग्गंउग्गेणं विहरित्ता तम्रो पच्छा समणत्तण-परितंते समणत्तण- निव्विण्णे समणत्तण- निब्भच्छिए समणगुण-मुक्कजोगी थेराणं ग्रंतिया सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणेव पुंडरीगिणी नयरी जेणेव पुंडरीयस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सोगणियाए सोगवरपायवस्स ग्रहे पुढविसिलापट्टगंसि निसीयइ, नीसीइत्ता ग्रहयमणसंकप्पे" करतलपल्हत्थमुहे अज्झाणोवगए भियायमाणे संचि ॥ ३३. तए णं तस्स पोंडरीयस्स अम्मधाई जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरीयं अणगारं असोगवरपायवस्स हे पुढविसिलापट्टगं सि ओहह्यमणसंकष्पं जाव" भियायमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव पुंडरीए राया १. सं० पा०- रज्जं च जाव अंतेउरं । २. सं० पा० - विगोवइत्ता जाव पव्वइए । ३. सं० पा० – रज्जे य जाव अंतेउरे । ४. सं० पा० - मुच्छिए जाव अज्झोववण्णे । ५. राय० सू० ६६५ । ६. सं० पा० देवाणुप्पिया जाव सुलद्धे । ७. सं० पा०- आढाइ जाव संचिट्ठइ | ८. द्रष्टव्यम् — १।१।३६ सूत्रम् । 8. वसव्वसे ( ग ) । सं० पा० - ओहह्यमणसंकप्पे जाव झियाय माणे । ११. ना० १।१६।३२ । १०. Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीय रायं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! तव पियभाउए' कंडरीए अणगारे असोगवणियाए असोगवर पायवस्स अहे पुढविसिलापट्टे अोहयमणसंकप्पे जाव झियायइ॥ ३४. ताणं से पंडरी अम्मधाईए एयमद सोच्चा निसम्म तहेव संभंते समाणे उदाए उट्टेइ, उद्वेत्ता अंतेउर-परियालसंपरिवडे जेणेव असोगवणिया' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरीयं अणगारं तिक्खुत्ता' •ायाहिण-पयाहिण करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता ° एवं वयासी-धन्नेसि णं तुम देवाणुप्पिया ! 'कयत्थे कयपुण्ण कयलक्खणे सुलद्धे णं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्म-जीवियफले जाव' अगाराप्रो अणगारियं° पव्वइए, अहं ण अधन्ने अकयत्ये अकयपुण्णे अकयलक्खणे जाव' नो संचाएमि पव्वइत्तए । तं धन्नेसि णं तुम देवाणुप्पिया ! जाव सुलद्धे णं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्म-जीवियफले ।। ३५. तए णं कंडरोए पुंडरीएणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्टइ। दोच्चंपि तच्चपि पुंडरीएणं एवं वुत्ते समाण तुसिणीए ° संचिट्ठइ ।। ३६. तए णं पुंडरीए कंडरीयं एवं वयासी-अट्ठो भते ! भोगेहिं ? हंता ! अट्टो॥ ३७. तए णं से पुंडरीए राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया ! कंडरीयस्स महत्थं •महग्धं महरिहं विउलं ° रायाभिसेयं उवट्ठवेह जाव" रायाभिसेएणं अभिसिंचति ॥ पुडरीयस्स पव्वज्जा-पदं ३८. तए णं से पुंडरीए सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, सयमेव चाउज्जामं धम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता कंडरीयस्स संतियं आयारभंडगं गण्हइ, गेण्हित्ता इम एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पइ मे थेरे वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं अंतिए चाउज्जामं धम्म उवसंपज्जित्ता णं तो पच्छा आहारं आहारित्तए त्ति कटु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता णं पुंडरीगिणीए" पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव पहारेत्थ गमणाए । १. पिउभाउए (ख, ग); भाउए (घ)। २. सं० पा०–असोगवणिया जाव कंडरीयं। ३. सं० पा०--तिक्खुत्तो जाव एवं । ४. सं० पा०-देवाणुप्पिया जाव पव्वतिए । ५,६. ना० १।१६।२६ । ७. द्रष्टव्यम्-२६ सूत्रम् । ८. ना० १।१६।२६ । ६. सं० पा०-तच्च पि जाव संचिट्टइ। १०. हंते (ग)। ११. सं० पा०-महत्थं जाव रायाभिसेयं । १२. ना० १११।११७,११८ । १३. पोंडरिगिणीए (क, ख)। Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं अज्झयणं (पुंडरीए) ३६५ कंडरीयस्स मच्चु-पदं ३६. तए णं तस्स कंडरीयस्स रण्णो तं पणीयं पाणभोयणं पाहारियरस समाणस्स अइजागरएण य अइभोय-प्पसंगण य से पाहारे नो सम्म परिणमइ ।। ४०. तए णं तस्स कंडरीयस्स रण्णो तंसि आहारंसि अपरिणममाणंसि पुव्वरत्ता वरत्तकालसमयंसि सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया--उज्जला विउला' 'कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा ° दुरहियासा। पित्तज्जर-परिगय-सरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहरइ॥ ४१. तए णं से कडरीए राया रज्जे य रतु य अंतेउरे य •माणुस्सएसु य कामभोगेस मुच्छिए गिद्धे गढिए ° अज्झोववण्णे अट्टदुहट्टवसट्टे अकामए अवसवसे कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयसि नेरइयत्ताए उववण्णे ॥ निगमण-पदं ४२. एवामेव समणाउसो' ! •जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं° पव्वइए समाणे पुणरवि माणस्सए कामभोए आसाएइ पत्थयइ पीहेइ अभिलसइ, से णं इह भवे चेव वहणं समणाण बहण समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य होलणिज्जे निंदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं प्रागच्छइ बहणि दंडणाणि य मंडणाणि य तज्जणाणि य तालणाणि य जाव' चाउरंतं संसार. कतारं भुज्जो-भुज्जो° अणुपरियट्टिस्सइ - जहा व से कंडरीए राया। पुंडरीयस्स आराहणा-पदं ४३. तए णं से पंडरीए अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं अंतिए दोच्चंपि चाउज्जामं धम्म पडिवज्जइ, छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाण झियाइ, तइयाए पोरिसोए जाव उच्च-नीय-मज्झिमाइं कूलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडमाणे सीयलुक्ख पाणभोयणं पडिगाहेइ, पडिगाहेत्ता अहापज्जत्तमित्ति कटु पडिनियत्तेइ, जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदसेत्ता थेरेहि भगवंतेहि अब्भणुण्णाए समाणे अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे १. भोय (ख, ग)। २. परिणए (ख, ग, घ)। ३. स० पा०—विउला पगाढा जाव दूरहियासा। ४. स० पा० -- अंतेउरे य जाव अज्झोववण्णे। ५. सं० पा०- समणाउसो जाव पव्वइए। ६. सं. पा०-पासाएइ जाव प्रणपरियट्रिस्सइ। ७. ना०-१३।२४ । ८. ना० १११६१३ । Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहानो बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं' तं फासु-एसणिज्ज असण-पाण-खाइम-साइमं सरीरकोटुगंसि पक्खिवइ । ४४. तए णं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स तं कालाइक्कंतं अरसं विरसं सीयलुक्खं पाणभोयण पाहारियस्स समाणस्स पूव्वरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजागारय जागरमाणस्स से आहारे नो सम्मं परिणमह ।। ४५. तए णं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगंसि वेयणा पाउन्भूया -उज्जला •विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा ° दुरहियासा । पित्तज्जर-परिगय-सरीरे दाहववकंतीए विहरइ॥ ४६. तए णं से पुंडरीए अणगारे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट ° एवं वयासीनमोत्थु णं अरहताणं भगवंताणं जाव' सिद्धिगइणामधेज्ज ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं थेराणं भगवंताणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसयाणं। पुवि पि य णं मए थेराणं अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जाव बहिद्धादाणे पच्चक्खाए', 'इयाणि पि णं अहं तेसिं चेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव बहिद्धादाणं पच्चक्खामि । सव्वं असण-पाण-खाइम-साइम पच्चक्खामि चउव्विहं पि अाहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए । जंपि य इम सरीरं इदं कंतं तं पि य ण चरिमेहि उस्सास-नीसासेहि वोसिरामि त्ति कटु आलोइय-पडिक्कते कालमासे कालं किच्चा सव्वदसिद्धे उववण्णे । तो अणंतरं उव्वट्टित्ता महाविदेहे वासे सिज्झि हइ 'बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ ° सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।। निगमण-पदं ४७. एवामेव समणाउसो ! •जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं° पव्वइए समाणे माणुस्सएहि १. अत्तणेणं (ख)। अस्य विसंवादी वर्तते । मेघकुमारराधिकारात् २. सं० पा०-उज्जला जाव दुरहियासा। पूरितोसौ पाठ: तेनात्रापि विसंवादो जातः । ३. सं० पा०-करयल जाव एवं । द्रष्टव्यम्---११५।५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. ओ० सू० २१ । ७. सं० पा०-पच्चक्खाए जाव आलोइय० । ५. ना० १५५६ । चिह्नांकितः पाठः १।१।२०६ सूत्रेण पूरितः । ६. मिच्छादसणसल्ले (क, ख, ग, घ) अस्या- ८. पू०-ना० १.११२०६ ।। ध्ययनस्य ३८,४३ सूत्रे 'चाउज्जामं धम्म ६. सं० पा० -सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाण । पडिवजनई' इति पाठोस्ति । उपलब्धपाठश्च १०. सं० पा०-समणाउसो जाव पव्वहा । Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं अज्झयणं (पुंडरीए) ३६७ कामभोगेहि नो सज्जइ नो रज्जइ' 'नो गिज्झइ नो मुज्झइ नो अज्झोवज्झइ ° नो विप्पडिघायमावज्जइ, से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण य अच्चणिज्जे वंदणिज्जे [नमंसणिज्जे ? ] पूर्याणज्जे सक्कारणिज्ज सम्माणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं [विणएणं ?] पज्जुवासणिज्जे भवइ, परलोए वि य णं नो आगच्छइ बहूणि दंडगाणि य मुंडणाणि य तज्जणाणि य तालणाणि य जाव चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्सइ-जहा व से पुंडरीए अणगारे । निक्खेव-पदं ४८. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं प्राइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं जाव' सिद्धिगइनामधेनं ठाणं संपत्तेणं एगूणवीसइमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा वाससहस्संपि जइ, काऊणं संजमं सुविउलंपि। अंते किलिदभावो, न विसज्ड कंडरीउ व्व ॥१॥ अप्पेण वि कालेणं, केइ जहा गहिय-सील-सामण्णा। साहंति नियय-कज्ज, पुंडरीय-महारिसि व्व जहा ।।२।। ४६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स पढमस्स सुयखंधस्स अयमढे पण्णत्ते । –त्ति बेमि। परिसेसो एयस्स' सुयखंधस्स एगूणवीसं अज्झयणाणि एक्कासरगाणि' एगूणवीसाए दिवसेसु समप्पंति । १. सं० पा०-रज्जइ जाव नो विप्पडिघाय० । ४. ना० १।३।२४ । २. विणिग्याय° (क)। ५. ना० १।१७। ३. 'पज्जुवासणिज्जे' इति पदानन्तरं सर्वासु ६. ना० १।१७ । प्रतिषु 'त्ति कटु' इति पाठोस्ति, किन्तु ७. तस्स णं (ख, ग)। [११२।७३] सूत्रानुसारं अत्र ‘भवइ' इति ८. नायज्झयणाणि (क)। पाठो युज्यते। ६. एक्कारसाणि (ख), एक्करसगाणि (ग)। Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ सुयक्खंधो पढमो वग्गो पढमं अज्झयणं काली उक्खव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नयरे होत्था-वण्णो ।। २. तस्स णं रायगिहस्स नय रस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं गुण - सिलए नामं चेइए होत्था–वण्णो । ३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवग्रो महावी रस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मा नाम थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा जाव' चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगया पंचहि अणगारसएहि सद्धि संपरिवुडा पुव्वाणुपुद्वि चरमाणा गामाणुगामं दुइज्जमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए" तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति । परिसा निग्गया। धम्मो कहियो। परिसा जामेव दिसि पाउन्भूया, तामेव दिसि पडिगया ।। ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स [जेटे ? ] अंतेवासी अज्जजब नाम अणगारे जाव' अज्जमूहमस्स थेरस्स नच्चासण्ण नाइदुरे १. ओ० सू० १ । २. तत्थ (ख, ग)। ३. ओ० सू० २-१३ । ४. ना० १११।४। ५. सं० पा०-चेइए जाव संजमेणं । ६. सं० पा०-अणगारे जाव पज्जुवासमाणे । ७. ना० १४१४६,७ । Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ पढमो वग्गो-पढमं अज्झयणं (काली) सुस्सूसमाणे नमसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं° पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स पढमस्स सुयक्खधस्स नायाणं अयमद्वे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! . सुयक्खंधस्स धम्मकहाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अट्ठ पण्णत्ते? ५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं धम्मकहाणं दस वग्गा पण्णत्ता तं जहा१. चमरस्स अग्गमहिसीणं पढमे वगे। २. बलिस्स वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो अग्गमहिसीणं बीए वग्गे। ३. असुरिंदवज्जियाणं दाहिणिल्लाणं 'इंदाणं अग्गमहिसीणं तईए वग्गे । ४. उत्तरिल्लाणं असुरिंदवज्जियाणं भवणवासि-इंदाणं अग्गमहिसीणं चउत्थे वग्गे। ५. दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं पंचमे वग्गे। ६. उत्तरिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं छट्टे वग्गे । ७. चंदस्स अग्गमहिसीणं सत्तमे वग्गे । ८. सूरस्स अग्गमहिसीणं अट्ठमे वग्गे। ६. सक्कस्स अग्गमहिसीणं नवमे वग्गे । १०. ईसाणस्स य अग्गमहिसीणं दसमे वग्गे । जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं धम्मकाएं देस वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के पट्टे पण्णत्ते ? ७. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा-काली, राई, रयणी, विज्जू", मेहा ॥ ८. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, पढ़मस्से णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? । ६. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सेणिए राया । चेल्लणा देवी । सामी समोसढे । परिसा निग्गया जाव" परिसा पज्जुवासइ ।। १, २, ३. ना० १।१।७। ७, ८, ६. ना० १।११७ । ४. X (क, ख, ग)। १०. विज्जा (क, ग)। ५. X (क, ख, ग)। ११, १२. ना० ११११७ ६. भवणवइ (क)। १३. ओ० सू० ५२ । Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० कालीदेवी-पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं काली देवी चमरचंचाए रायहाणीए कालिवडेंसगभवणे कालंसि सीहासणसि चउहि सामाणियसाहस्सोहिं चउहिं महयरियाहिं' सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं सत्तहिं प्रणिएहि सत्तहिं प्रणियाहिवईहिं सोलसहिं प्राय रक्खदेवसाहस्सीहिं अण्णेहि य बहूहिं कालिवडस े - भवणवासी हिं कालीए भगवप्रो वंदण-पदं सुकुमारेहिं देवेहिं देवीहिय सद्धि संपरिवुडा महयाहय - नट्ट- गीय- वाइयतंती - तल-ताल-तुडिय - घण-मुइंग पडुप्पवादियरवेणं दिव्वाई भोग भोगाई भुंजाणी विहरइ । इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं श्रहिणा 'आभोमाणी - प्रभो एमाणी" पासइ || ११. एत्थ' समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए ग्रहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ- चित्तमाणंदिया पीइमणा' 'परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाण -हिया सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता पायपीढाम्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयायो ओमुयइ, प्रोमुइत्ता तित्थगराभिमुही सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं श्रंचेइ, ग्रंवेत्ता दाहिणं जाणं धरणियसि निहट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणियलंसि निवेसेइ, ईसि पच्चुन्नमइ, पच्चुन्नमित्ता कडग - तुडिय-थंभिया भुयाम्रो साहरइ, साहरित्ता करयल ' • परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - नमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव' सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवो महावीरस्स जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामस्स । वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगया, पासउ मे समणे भगवं महावीरे तत्थगए इयं त कट्टु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमा निसा || o १२. तए णं तीसे कालीए देवीए इमेयारूवे" संकप्पे समुप्पज्जित्था - सेयं खलु मे १. महरियाहिं (क, ख, ग, घ ) ; महरियाहिं ( क्व ) । द्रष्टव्यम् - १।१६।१५ सूत्रस्य पादटिपणम् । २. ० वडेंसय ( ख, ग ) । ३. सं० पा० - महया हय जाव विहरइ । ४. आभोमाणी ( क, ख, ग, घ ) । ५. जत्थ (क, घ ) ; यत्थ ( ग ) । ६. सं० पा० पीइमणा जाव हियया । ७. निमेइ (क, ग ) । माओ ८. प्रज्भतिथए चितिए पत्थिए मणोगए समणं भगवं महावीरं वंदित्तए " पा० - करयल जाव कट्टु । ६,१० ओ० सू० २१ । ११. सं० पा० – इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था । १२. वंदित्ता ( क, ख, ग, घ ); सं० पा० - वंदि - त्तए जाव पज्जुवासित्तए । असौ पाठ: 'रायपसेणइय' सूत्रस्य वृत्त्यनुसारेण पूरितः । द्रष्टव्यम् -'रायप सेणइय' वृत्ति पृ० ५१, ५२ । सं० Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो-पढम अझयणं (काली) 'नमंसित्तए सक्कारित्तए सम्माणित्तए कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं' पज्जुवासित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता आभियोगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे' विहरइ एवं जहा सूरियाभो तहेव आणत्तियं देइ जाव' दिव्वं सुरवराभिगमणजोग्गं करेह' 'य कारवेह य करेत्ता य कारवेत्ता य खिप्पामेव एवमाणत्तियं ' पच्चप्पिणह । ते वि तहेव करेत्ता जाव' पच्चप्पिणंति, नवरं-जोयणसहस्सवित्थिण्णं जाणं । सेसं तहेव । तहेव नामगोयं साहेइ, तहेव नट्टविहिं उवदंसेइ जाव' पडिगया । गोयमस्स पसिण-पदं १३. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-कालीए णं भंते ! देवीए सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभाए कहिं गए ? कहिं अणुप्पविट्ठे ? गोयमा ! सरोरं गए सरीरं अणुप्पवितु । कूडागारसाला दिटुंतो। अहो णं भंते ! काली देवी महिड्डिया महज्जुइया महब्बला महायसा महासोक्खा महाणुभागा। १४. कालीए णं भंते ! देवीए सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे ? किण्णा पत्ते ? किण्णा अभिसमण्णागए ? भगवनो उत्तरे काली-पदं १५. 'गोयमाति ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे ग्रामलकप्पा नामं नयरी होत्था-वण्णो । अंबसालवणे चेइए। जियसत्तू राया। १६. तत्थ णं आमलकप्पाए नयरीए काले 'नाम गाहावई होत्था--अड्ढे जाव' अपरिभूए॥ १७. तस्स णं कालस्स गाहावइस्स कालसिरी नामं भारिया होत्था-सुकुमाल पाणिपाया जाव" सुरूवा॥ १६. तस्स णं कालस्स गाहावइस्स धूया कालसिरीए भारियाए अत्तया काली नामं १. पू०-राय० सू०६। ७. पू०-राय० सू० ६६७ । २. राय० सू०६। स० पा०-एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं । ३. सं० पा०-करेह करेत्ता जाव पच्चप्पिणह। ५. ओ० सू० १ । ४. राय० सू० १०.४६ । ६. ना० ११५७ । ५. राय० सू० ४७.१२० । १०. ना० १११।१७। ६. राय० सू० १२३ । Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ नायाधम्मकहाओ दारिया होत्था-वड्डा वड्डुकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुयत्थणी' निविण्णवरा वरगपरिवज्जिया' वि होत्था ॥ कालीए पव्वज्जा-पदं १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससोहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए जीवदए दीवो ताणं सरणं गई पइट्टा धम्मवरचाउरंत-चक्कवट्टी अप्पडिहय-वरनाणदंसणधरे वियदृच्छउमे अरहा जिणे केवली जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी नवहत्थुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे जल्लमल्लकलंकसेयरहियसरीरे सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे सोलसहि समणसाहस्सीहिं अट्ठत्तीसाए अज्जियासाहस्सीहि सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुवि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे सुहसुहेणं विहरमाणे प्रामलकप्पाए नयरीए बहिया ° अंबसालवणे समोसढे। परिसा निग्गया जाव पज्जवासइ॥ २०. तए णं सा कालो दारिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्ठ तुट्ठ-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण ० हियया जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट° एवं वयासी-एवं खलु अम्मयानो ! पासे अरहा पूरिसादाणीए प्राइगरे तित्थगरे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव आमलकप्पाए नयरीए अंबसालवणे अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ। तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाया समाणी पासस्स णं अरहनो पुरिसादाणीयस्स पायवंदिया गमित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंधं करेहि ॥ २१. तए णं सा काली दारिया अम्मापिईहिं अब्भणुण्णाया समाणी हट्ठ तुट्ठ-चित्त माणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण हियया व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई १. पुतत्थणी (ग)। २. वरपरिवज्जिया (घ); वरवज्जिया (७)। ३. सं० पा०-जहा वद्धमाणसामी नवरं नव- हत्थुस्से हे ° (क, ख, ग, घ)। . ४. पू०--ओ० सू० १६ । ५. ओ० सू० ५२ । ६. सं० पा० -हद जाव हियया । ७. सं० पा०-करयल जाव एवं । ८. सं० पा०-आइगरे जाव विहरइ । ६. सं० पा०-हट्ट जाव हियया। Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो - पढम अज्झयणं (काली) ३७३ पवर परिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा चेडिया-चक्कवाल- परिकिण्णा सानो गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणपवरं दुरूढा ॥ २२. तए णं सा काली दारिया धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा समाणी एवं जहा देवई ' तहा' पज्जुवासइ ।। २३. तए णं पा रहा पुरिसादाणीए कालीए दारियाए तीसे य महइमहालियाए परिसा धम्मं कहे || २४. तए णं सा काली दारिया पासस्स ग्ररहम्रो पुरिसादाणीयस्स प्रति धम्मं सोच्चा निसम्म दु तु चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण हियया पास रहं पुरिसादाणीयं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, जाव' से जहेयं तुब्भे वयह । जं नवरं - देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो श्रापुच्छामि, तए णं ग्रहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगारा अणगारियं पव्वयामि । सुहं देवाप्पिए! 0_ २५. तए णं सा काली दारिया पासेणं अरया पुरिसादाणीएणं एवं वृत्ता समाणी - चित्तमादिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाण हिया पासंग्रहं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूह, दुरुहित्ता पासस्स अरहो पुरिसादाणीयस्स अंतिया बसालवणाश्रो चेइया पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव ग्रामलकप्पा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ग्रामलकप्पं नयर मज्भंमज्भेणं जेणेव बाहिरिया उाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ, वेत्ता धमिया जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - एवं खलु श्रम्मयाश्रो ! मए पासस्स अरहो प्रतिए निसं । सेविय धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तए णं श्रहं अम्मयान' ! संसारभउब्विग्गा भीया जम्मण - मरणाणं इच्छामि णं तुब्भेहिं १. दोवइ (क, घ ) । २. अंत० ३।८।१५ । ३. सं० पा० - हट्ठ जाव हियया । ४. ना० १।१।१०१ । ५. सं० पा० - अंतिए जाव पव्वयामि । ६. सं० पा० - हट्ट जाव हियया । ७. अभिरुतिए ( ख ); अभिरुतिते ( ग ); अभि रुचिए (घ) । ८. अम्मापयातो ( ग ) । Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माओ भगुणाया समाणी पासस्स रहओ अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराश्रो श्रणगारियं पव्वइत्तए । हासुहं देवाप्पिए ! मा पडिबंध करेहि || २६. तए णं से काले गाहावई विउलं असण- पाणखाइम - साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि- परियणं आमंतेइ, ग्रामंतेत्ता तो पच्छा हाए जाव' विपुलेणं पुप्फ-वत्थ - गंध - मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तस्सेव मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधिपरियणस्स पुर कालिं दारियं सेयापीएहिं कलसेहि व्हावेइ, व्हावेत्ता सव्वा लंकार - विभूसियं करेइ, करेत्ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरूहेइ, दुखहेत्ता मित्तनाइ - नियग-सयण-संबंधि- परियणेणं सद्धि संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव' दुंदुहिनिग्घोस-नाइयरवेणं ग्रामलकप्पं नयरिं मज्भंमज्भेणं निग्गच्छर, निग्गच्छित्ता जेणेव बसालवणे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्ताईए तित्थगराइसए पासइ, पासित्ता सीयं ठवेइ, ठवेत्ता कालि दारियं सीयाम्रो पच्चोरुहेइ ॥ २७. तए णं तं कालि दारियं सम्मापियरो पुरनो काउं जेणेव पासे रहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वंदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी – एवं खलु देवाणुप्पिया ! काली दारिया ग्रहं धूया इट्टा कंता जाव उंबरपुप्फं पिव दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? एस णं देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गा इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता' •णं श्रगारा अणगारियं पव्वइत्तए । तं एयं णं देवाणुप्पियाणं सिस्सिणिभिक्खं दलयामो । पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणिभिक्खं । हासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ ३७४ २८. तए णं सा काली कुमारी पासं ग्ररहं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव ग्राभरणमल्लालंकारं प्रमुयइ, श्रमुत्ता सयमेव लोयं करेइ, करेत्ता जेणेव पासे रहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासं अरहं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - लित्ते णं भंते ! लोए १. ना० १।७।६ । २. ना० १।१।३३ । ३. पच्चोरुहइ ( क, ख, ग, घ ) । ४. ना० १।१।१४५ । ५. सं० पा० - भवित्ता जाव पव्वइत्तए । ६. 'लोए' अतोग्रे "एवं जहा देवाणंदा जाव” ० समर्पणवाक्यमस्ति किन्तु भगवतीसूत्रे ( १५२) देवाणंदा प्रकरणे समर्पितः पाठः संक्षिप्तोस्ति, तेन एतद्वाक्यं पाठान्तररूपेण स्वीकृतमस्माभिः । अस्य पूर्तिस्थल निर्देश: प्रस्तुतसूत्रादेव कृतः । Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो-पढमं अज्झयणं (काली) ३७५ जाव' तं इच्छामि णं देवाणुप्पिएहि सयमेव पवावियं जाव' धम्ममाइक्खियं ॥ २६. तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालिं सयमेव पुप्फचूलाए अज्जाए सिस्सि णियत्ताए दलयइ॥ ३०. तए णं सा पुप्फचूला अज्जा कालिं कुमारि सयमेव पवावेइ जाव' धम्म माइक्खइ॥ ३१. तए णं सा काली पुप्फचूलाए अज्जाए अंतिए इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्म° उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ ३२. तए णं सा काली अज्जा जाया-इरियासमिया जाव' गुत्तबंभयारिणी।। ३३. तए णं सा काली अज्जा पुप्फचूलाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, बहूहि चउत्थ - छट्टट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ ॥ कालीए बाउसियत्त-पदं ३४. तए णं सा कालो अज्जा अण्णया कयाइ सरीरबाउसिया जाया यावि' होत्था । अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराणि धोवेइ, कक्खतराणि धोवेइ, गुज्झतराणि धोवेइ, जत्थ-जत्थ वि य ण ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ, तं पुवामेव अब्भुक्खित्ता तो पच्छा प्रासयइ वा सयइ वा ॥ ३५. तए णं सा पुप्फचूला अज्जा कालि अज्ज एवं वयासो-नो खलु कप्पइ देवाण प्पिए ! समणीण निग्गथोणं सरीरबाउसियाणं होत्तए । तमं च ण देवाणप्पिा! सरीरबाउसिया जाया अभिक्खणं-अभिक्खणं हत्ये धोवसि", "पाए धोवसि, सीसं धोवसि, मुहं धोवसि, थणंतराणि धोवसि, कक्खंतराणि धोवसि, गुज्झतराणि धोवसि, जत्थ-जत्थ वि य णं ठाणं वा सेज्ज वा निसोहियं वा चेएसि, तं पृव्वामेव अब्भुक्खित्ता तो पच्छा ° 'प्रासयसि वा सयसि" वा । तं तुम देवाणप्पिए ! एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पायच्छित्तं पडिवज्जाहि" ॥ १. ना० १११।१४६ । २. पव्वाविउ (ख, ग)। ३. ना० १।१।१४६ । ४. सं. पा०-पवावेइ जाव उवसंपज्जित्ता। ५. ना० १११११५० । ६. ना० १३१४।४०। ७. सं० पा.-च उत्थ जाव विहरइ । ८. ४ (ख)। ६. पाउसिया (ख, ग, घ)। १०. सं० पा-धोवसि जाव आसयसि । ११. आसयाहि वा सयाहि (क, ख, ग, घ); आदर्शेषु तुबाद्यर्थवाचकं क्रियापदमस्ति, किन्तु प्रसंगापातेनात्र तिबाद्यर्थवाचक क्रियापदं युज्यते, तेन तथा परिगृहीतम् । १२. ना० १।१६।११५। १३. पडिवज्जेहि (ख); पडिवज्जिहि (ग) Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहानो ३६. तए णं सा काली अज्जा पुप्फचूलाए अज्जाए एयमद्वं नो अाढाइ' 'नो परिया णाइ° तुसिणीया संचिट्ठइ । ३७. तए णं तानो पुप्फचूलाग्रो अज्जायो कालि अज्ज अभिक्खणं-अभिक्खणं हीति ___ निदंति खिसंति गरहंति अवमन्नंति अभिक्खणं-अभिक्खणं एयमटुं निवारेति ।। कालीए पुढोविहार-पदं ३८. तए णं तीसे कालीए अज्जाए समणीहिं निग्गंथीहि अभिक्खणं-अभिक्खणं हीलिज्जमाणीए जाव निवारिज्जमाणीए इमेयारूवे अज्झथिए' चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्था-जया णं अहं अगारमझे वसित्था तया णं अहं सयवसा, जप्पभिइं च णं अहं मुंडा भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइया तप्पभियं च णं अहं परवासा' जाया। तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पाडिक्कयं' उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पाडिक्कं उवस्सयं गेण्हइ । तत्थ णं अणिवारिया अणोहट्टिया सच्छंदमई अभिक्खणं - अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, 'पाए धोवेइ, सीसं धोवेइ, मुहं धोवेइ, थणंतराणि धोवेइ, कक्खंतराणि धोवेइ, गुज्झतराणि धोवेइ, जत्थजत्थ वि य णं ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ, तं पुत्वामेव अब्भुक्खित्ता तो पच्छा आसयइ वा सयइ वा ॥ कालीए मच्चु-पदं ३६. तए णं सा काली अज्जा पासस्था पासत्थविहारी ओसन्ना प्रोसन्नविहारी कुसीला कुसीलविहारी अहाछंदा अहाछंदविहारी संसत्ता संसत्तविहारी बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसेइ, झसेत्ता तीसं भत्ताइ अणसणाए छेएइ, छेएत्ता तस्स ठाणस्स प्रणालोइयपडिक्कता" कालमासे कालं किच्चा चमरचंचाए रायहाणीए कालिवडिसए भवणे उववायसभाए देवसयणिज्जसि देवदूसंतरिया अंगुलस्स 'असंखेज्जाए भागमेत्ताए" प्रोगाहणाए कालोदेवित्ताए उववण्णा ।। १. सं० पा०-आढाइ जाव तुसिणीया। एक्कयं (घ)। २. ना० २।१।३७ । ६. पू०-ना० ११११२४ । ३. सं० पा०-प्रज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था। ६. सं० पा०-धोवेइ जाव आसयइ । ४. अगारवास ° (ख, ग, घ)। १०. अपडिक्कंता (ख)। ५. परव्वसा (क, ख, घ)। ११. असंखेज्जए० (ख); असंखेज्जए भागमेत्तए ६. पू०-ना० १११।२४। (ग); असंखेज्जइ° (घ)। ७. पाडिक्कं (क); पडिक्कयं (ख, ग); पाडि Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो-पढम अज्झयण (काली) ३७७ ४०. तए णं सा काली देवी अहुणोववण्णा समाणी पंचविहाए पज्जत्तीए •पज्जत्तभावं गच्छति [तं जहा -अाहारपज्जत्तोए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणपाण पज्जत्तीए ° भासमणपज्जत्तीए'।।। ४१. तए णं सा काली देवी चउण्हं सामाणिय-साहस्सीणं जाव' सोलसण्हं आयरक्ख देवसाहस्सीणं अण्णेसि च बहूणं कालिवडेंसगभवणवासीणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं कारेमाणी जाव' विहरइ।। ४२. एवं खलु गोयमा ! कालीए देवीए सा दिव्वा देविड्डो दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणभावे लढे पत्ते अभिसमण्णागए। ४३. कालोए णं भंते ! देवीए केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! अड्डाइज्जाइं पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। ४४. काली णं भंते ! देवी तारो देवलोगानो अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं ४५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जावसंपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। -त्ति बेमि॥ १. सं० पा०--जहा सूरियाभो जाव भासमण- ४. द्रष्टव्यम्-१।१।११८ सूत्रम् । पज्जत्तीए। ५. ना० ११११११८। २. असो कोष्ठकत्तिपाठः व्याख्यांशः प्रतीयते। ६. ना० १४१७ । ३. ना० २।१।१०। Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ahi hai राई ४६. जइ गं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स प्रयमट्ठे पण्णत्ते, बिइयस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? ४७. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए । सामी समोसढे । परिसा निग्गया जाव' पज्जुवासइ ॥ ४८. तेणं कालेणं तेणं समएणं राई देवी चमरचंचाए रायहाणीए एवं जहा काली तव गया, नट्टविहि उवदंसित्ता पडिगया ॥ ४६. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता पुव्वभवपुच्छा' ।। 0 ५०. गोयमाति ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी' एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं ग्रामलकप्पा नयरी अंबसालवणे इए । जियसत्तू राया । राई गाहावई । राइसिरी भारिया । राई दारिया । पासस्स समोसरणं । राई दारिया जहेव काली तहेव निक्खता ॥ तणं सा राई अज्जा जाया ' || ५१. ५२. तए णं सा राई अज्जा पुप्फचूलाए ग्रज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस गाई हिज्ज || १,२. ना० १।१०७ । ३. ओ० सू० ५२ । ४. ना० २।११०-१२ । ५. सं० पा० - पुव्वभवपुच्छा एवं । पू० - ना० २।१।१३,१४ । ३७८ ६. ना० २।१।१८-३१ । ७. सं० पा० – तहेव सरीरबाउसिया तं चैव सव्वं जाव अंतं । ८. पू० ना० २।१।३२ । ६. ५० - ना० २।१।३३ । Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो-तइयं अज्झयणं (रयणी) ३७६ ५३. तए णं सा राइ अज्जा अण्णया कयाइ सरीरबाउसिया जाया या वि होत्था । ५४. तए णं सा राई अज्जा पासत्था' तस्स ठाणस्स प्रणालोइयपडिक्कता कालमासे कालं किच्चा चमरचंचाए रायहाणीए रायवंडिसए भवणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिया अंगुलस्स असंखेज्जाए भागमेत्ताए प्रोगाहणाए राईदेवित्ताए उववण्णा जाव' ° अंतं काहिइ ।। ५५. एवं खलु जंबू ! 'समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स बिइयज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ तइयं अज्झयणं रयणी ५६. जइ णं भंते ! "समणेणं भगवया महावोरेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स बिइयज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, तइयस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठ पण्णत्ते ? ० ५७. एवं खलु जंबू ! रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । 'सामी समोसढे ॥ ५८. तेणं कालेणं तेणं समएणं रयणी देवी चमरचंचाए रायहाणीए आगया। ५६. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पुत्वभवपुच्छा ॥ गोयमाति ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासीएवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं ° आमलकप्पा नयरी। अंबसालवणे चेइए। जियसत्तू राया। रयणे गाहावई। रयणसिरी भारिया। रयणी दारिया । सेसं तहेव जाव" अंत काहिइ ।। १. पू०-ना० २१११३४-३८ । २. पू०-ना० १।१।३६ । ३. ना० २।१।४०.४४ । ४. सं० पा०-बिइयज्झयणस्स निक्खेवओ। ५. ना० १।१७। ६. सं० पा-तइयज्झयणस्स उक्खेवओ। ७. सं० पा०—एवं जहेव राई तहेव रयणी वि। ८. पू०-ना० २।११४७ । ६. पू०- ना० २।११४८ । १०. पू०-ना० २।१।४६ । ११. ना० २।११५०-५४ । । Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं विज्जू ६१. एवं विज्जू वि-पामलकप्पा नयरी। विज्जू गाहावई। विज्जूसिरी भारिया। विज्जू दारिया। सेसं तहेव' । पंचमं अज्झयणं मेहा ६२. एवं मेहा वि-आमलकप्पाए नयरीए मेहे गाहावई। मेहसिरी भारिया । मेहा दारिया। सेसं तहेव' ।। ६३. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते ॥ ३. ना० १।०७। १. ना० २।१।४६-५४ । २. ना० २।१।४६-५४ । ३८० Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ वग्गो पढमं अज्झयणं सुंभा १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स , दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? ० __ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा ---सुंभा, निसुंभा, रंभा, निरंभा, मदणा ।। ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । सामी समोसढे । परिसा निग्गया जाव' पज्जुवासइ ॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सुभा देवी बलिचंचाए रायहाणीए संभवडेंसए भवणे संभंसि सीहासणंसि' विहरइ । काली गमएणं जाव' नट्टविहिं उवदसेत्ता पडिगया ॥ ६. पुन्वभवपुच्छा ।। ७. सावत्थी नयरी । कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। सुंभे गाहावई । सुभसिरी भारिया । सुंभा दारिया । सेसं जहा कालीए' नवरं अट्ठाइं पलिग्रोवमाइं ठिई। ८. एवं खलु जंबू ! 'समणेणं भगवया महावीरेणं दोच्चस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते ॥ २-५ अज्झयणाणि ६. एवं' ---सेसा वि चत्तारि अज्झयणा । सावत्थोए। नवरं-माया पिया ध्या सरिनामया। १०. एवं खल जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं बिइयस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते॥ १. स० पा०-दोच्चस्स वग्गस्स उवक्खेवओ। ५. ना० २१११८-४४ । २. ओ० सू० ५२ । ६. सं० पा०-निक्खेवओ अज्झयणस्स । ३. पू०--ता० २।१।१० । ७. ना० २।२।१-८ । ४. ना० २।१।११,१२ । ८. सं० पा०-निवखेवओ बिइयवग्गस्स । ३८१ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो वग्गो पढम अज्झयणं प्रला १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं बिइयस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, तइयस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं तइयस्स वग्गस्स चउपण्णं अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा–पढमे अज्झयणे जाव चउपण्णइमे अज्झयणे । जइण भते समणण भगवया महावीरेण धम्मकहाणं तइयस्स वग्गस्स चउपण्ण अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते? ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए सामी समोसढे परिसा निग्गया जाव' पज्जुवासइ ।। तेणं कालेणं तेणं समएणं अला देवी धरणाए रायहाणीए अलावडेंसए भवणे अलंसि सीहासणंसि एवं कालीगमएणं जाव' नट्टविहिं उवदंसेत्ता पडिगया। पुव्वभवपुच्छा ॥ वाणारसीए नयरीए काममहावणे चेइए । अले गाहावई । अलसिरी भारिया। अला दारिया। सेसं जहा कालीए, नवरं-धरणअग्गमहिसित्ताए उववाओ। साइरेगं अद्धपलिग्रोवमं ठिई सेसं तहेव ॥ ८. एवं खल जंबू ! ५ समणेणं भगवया महावीरेणं तइयस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ° । १. सं० पा०-उक्खेवओ तइयवग्गस्स। २. ओ० सू० ५२। ३ ना० २।१।१०-१२ । ४. ना० २।१।१८-४४ । ५. सं० पाo--निक्खेवओ पढमज्झयणस्स । ३८२ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो (१३-५४ अज्झयणाणि) ३८३ २-६ प्रज्झयणाणि ६. एवं'–कमा', सतेरा, सोयामणी', इंदा, घणविज्जुया वि सव्वाग्रो एयायो धरणस्स अगमहिसीओ। ७-१२ अज्झयणाणि १०. एए' छ अज्झयणा वेणुदेवस्स वि अविसेसिया भाणियव्वा । १३-५४ अज्झयणाणि ११. एवं-- हरिस्स अग्गिसिहस्स पुण्णस्स जलकंतस्स अमियगतिस्स वेलंबस्स ° घोसस्स वि एए' चेव छ-छ अज्झयणा । एवमेते दाहिणिल्लाणं चउपण्णं अज्झयणा भवंति । सव्वानो वि वाणारसीए काममहावणे चेइए। १२. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावोरेणं धम्मकहाणं तइयस्स वग्गस्स अयमद्धे पण्णत्ते ॥ १. ना०२।३।१-८ । २. सक्का (ठाणं ६।५५, भ० १०.७६)। ३. सोयमणी (क, ख); सोयमाणी (ग, घ); सोतामणी (ठाणं ६।५५)। ४. ना० २।३।१-८। ५. स० पा०-एवं जाव घोसस्स । ६. ना० २।३।१-८ । ७. सं० पा०-तइयवग्गस्स निक्खेवओ। Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वग्गो पढमं अज्झयणं रूया १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं तइयस्स वग्गस्स अयमद्वे पण्णत्ते, चउत्थस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठ पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं चउत्थस्स वग्गस्स चउप्पण्णं अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा-पढमे अज्झयणे जाव चउप्पण्णइमे अज्झयणे ॥ __'जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं चउत्थस्स वग्गस्स चउपण्णं अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेण के अटे पण्णत्ते ? ४. एवं खलु जंबू ! तेण कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव' परिसा पज्जुवासइ।। तेणं कालेणं तेणं समएणं रूया देवो भूयाणंदा रायहाणो रूयगवडेंसए भवणे रूयगंसि सीहासणंसि जहा कालीए तहा, नवरं-पुत्वभवे चंपाए पुण्णभद्दे चेइए रूयगगाहावई रूयगसिरी भारिया रूया दारिया । सेसं तहेव, नवरं-भूयाणंद अग्गमहिसित्ताए उववाग्रो । देसूणं पलिग्रोवमं ठिई ।। ६. ५ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते। --त्ति वेमि ° ॥ १. सं० पा०-चउत्थस्स उक्खेवओ। २. X (क, ख, ग, घ)। पूर्वक्रमेण एतत् सूत्रं युज्यते। ३. प्रो० सू० ५२। ४. ना० २।१।१०-४४ । ५. सं० पा०-निक्खेवओ। ३८४ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वग्गो (७-५४ अज्झयणाणि) ३८५ २-६ अज्झयणाणि ७. एवं'- सुरूयावि, रूयंसावि, रूयगाव ईवि, रूयकंतावि, रूयप्पभावि ।। ७-५४ अज्मरणाणि ८. एयायो चेव उत्तरिल्लाणं इंदाणं'- वेणुदालिप्स हरिस्सहस्स अग्गिमा णवस्स विसिट्ठस्स जलप्पभस्स अमितवाहणा पमंजणस्स महाघोसस्स भाणियब्वायो। "एवं खलु जंवू ! समग भगवया महायोरेण धम्मकहाण व उत्थस्य बग्गस्स अयमट्ठ पण्णत्ते ॥ १. एवं खलु (क, ख, ग, घ)। ना० २।४।१-६। २. ना० २।४।१-६। ३. सं० पा०—भाणियव्वाओ जाव महाघोसस्स। ४. सं० पा०-निक्खेवप्रो चउत्थवग्गस्स । Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वग्गो पढमं अज्झयणं कमला १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं चउत्थस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स वग्गस्स° बत्तीसं अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा १. कमला २. कमलप्पभा चेव, ३. उप्पला य ४. सुदंसणा। ५. रूववई ६. बहुरूवा, ७. सुरूवा ८. सुभगावि य ।।१।। ६. पुण्णा १०. बहुपुत्तिया चेव, ११. उत्तमा १२. तारयावि' य । १३. पउमा १४. वसुमई चेव, १५. कणगा १६. कणगप्पभा ।।२।। १७. वडेंसा १८. केउमई चेव, १६. 'वइरसेणा २०. रइप्पिया" । २१. रोहिणी २२. नवमिया चेव, २३. हिरी २४. पुप्फवईवि य ॥३॥ २५. 'भुयगा २६. भुयगावई' चेव, २७ महाकच्छा २८. फुडा इय। २६. सुघोसा ३०. विमला चेव, ३१. सुस्सरा य ३२. सरस्सई ॥४॥ ३. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं पंचमस्स वग्गस्स बत्तीसं अज्झयणा पण्णत्ता, पंचमस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमझयणस्स के अटे पण्णत्ते ? ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ॥ १. सं० पा०--पंचम वग्गस्स उक्खेवओ। एवं ___ खलु जंबू ! जाव बत्तीसं । २. बहुपुण्णिया (क, ख, घ)। ३. भारियावि (क, घ)। ४. रतणप्पभा (ठाणं ४।१६५)। ५. रतिसेणा रतिष्पभा (ठाणं ४।१६७); रति सेणा रइप्पिया (भ० १०:८६) । ६. सुभगा सुभगावती (ख)। ७. सं० पा०-उक्खेवेओ पढमज्झयणस्स। ८. ओ० सू० ५२। ३८६ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८७ सत्तमो वग्गो-पढम अज्झयणं (सूरप्पभा) ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं कमला देवी कमलाए रायहाणीए कमलवडेंसए भवणे कमलसि सीहासणंसि सेसं जहा कालीए तहेव', नवरं - पुत्वभवे नागपुरे नगरे सहसंबवणे उज्जाणे कमलस्स गाहावइस्स कमलसिरोए भारियाए कमला दारिया पासस्स अंतिए निक्खंता। कालस्स पिसायकुमारिदस्स अग्गमहिसी। अद्धपलिग्रोवमं ठिई। २-३२ प्रज्झयणाणि ६. एवं सेसा वि अज्झयणा दाहिणिल्लाणं इंदाणं' भाणियब्वायो। नागपुरे सहसंब वणे उज्जाणे । मायापियरो धूया-सरिनामया। ठिई अद्धपलिग्रोवमं । छट्टो वग्गो १-३२ अज्झयणाणि १. छट्ठो वि वग्गो पंचमवग्ग-सरिसो, नवरं-महाकालाईणं' उत्तरिल्लाणं इंदाणं' अग्गमहिसीनो। पुत्वभवे सागेए नगरे। उत्तरकुरु-उज्जाणे। मायापियरो धूया-सरिनामया । सेसं तं चेव ।। सत्तमो वग्गो पढमं अज्झयणं सूरप्पभा १. ५ जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं छस्स वग्गस्स अयमदे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठ पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं सत्तमस्स वग्गस्स चत्तारि अझयणा पण्णत्ता, तं जहा—सूरप्पभा, प्रायवा, अच्चिमाली, पभंकरा ॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं सत्तमस्स वग्गस्स चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, सत्तमस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अट्टे पण्णत्ते ? १. ना० २।१।१०-४४ । २. ठाणं २।३६४-३७० । ३. महाकायाई णं (ख)। ४. ठाणं २०३६४-३७१। ५. सं० पा०–सत्तमस्स वग्गस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि । ६. सं० पा० ... पढमज्झयणस्स उक्खेवओ। Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ Sarara महाओ ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव' परिसा पज्जुवासइ ॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरप्पभा देवी सूरंसि विमाणंसि सूरप्पभंसि सीहासणंसि । सेसं जहा कालीए तहा, नवरं - पुव्वभवो प्ररक्खुरीए नयरीए सूरप्पभस्स गाहावइस्स सूरसिरीए भारियाए सूरप्पभा दारिया । सूरस्स महसी । ठिई पलिओवमं पंचहि वाससएहिं ग्रन्भहियं । सेसं जहा कालीए ॥ २-४ श्रवणाणि ६. एवं - प्रायवा, अच्चिमाली, पभंकरा । सव्वाश्री प्ररक्खुरीए नयरीए ॥ १. अठमो वग्गो पढमं श्रज्भयणं चंदपभा "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेण धम्मकहाणं सत्तमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, ग्रट्ठमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेण भगवया महावीरेण के पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेण श्रमस्स वग्गस्स चत्तारि या पण्णत्ता, तं जहा - चंदप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा ॥ ३. • जइणं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं श्रट्टमस्स वग्गस्स चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, अट्टमस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्भयणस्स के पणते ? • ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव' परिसा पज्जुवासइ ॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदप्पभा देवी चंदप्पभंसि विमाणंसि चंदप्प सीहासणंसि । सेसं जहा कालीए, नवरं - पुब्वभवो महुराए नयरीए भंडिवडेंस ए १. ओ० सू० ५२ । २. २८५ सूत्रपद्धत्या अत्रापि 'सूरप्पभंसि' इति पाठो युज्यते । ३. ना० २।१।१०-४४ । ४. सं० पा० एवं सेसाओवि । ५. सं० पा० - अट्टमस्स उक्खेवप्रो । एवं खलु जंबू जाव चत्तारि । ६. सं० पा० - पढमज्झयणस्स उम्खेवओ । ७. ओ० सू० ५२ । ८. ना० २।१।१०-४४ । Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमो वग्गो (१.८ अज्झयणाणि) ३८६ उज्जाणे । चंदप्पभे गाहावई । चंदसिरी भारिया। चंदप्पभा दारिया। चंदस्स अग्गम हिसी। ठिई अद्धपलिग्रोवमं पप्णासवाससहस्सेहि अब्भहियं । २-४ अज्झयणाणि ६. एवं'- दोसिणाभा, अच्चिमाली, पकरा °, महुराए नयरीए । मायापियरो धूया-सरिसनामा ॥ नवमो वग्गो १-८ अज्झयणाणि १. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं अट्ठमस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के __ अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं नवमस्स वग्गस्स ° अट्ट अज्झ यणा पण्णत्ता, तं जहागाहा १. पउमा २. सिवा ३. सई ४. अंजू, ५. रोहिणी ६. नवमिया इ य । ७. अयला ८. अच्छरा ।। ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं नवमस्स वग्गस्स अट्ट अज्झयणा पण्णत्ता, नवमस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अटे पण्णते? ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ । ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं पउमावई देवी सोहम्मे कप्पे पउमवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए पउमंसि सीहासणंसि जहा कालीए । १. सं० पा० --एवं सेसाओवि । ५. नमिया (घ)। २. सं० पा० ---नवमस्स उक्खेवओ। एवं खलु ६. अमला (ठाणं ८।२७; भ० १०१२) । ___ जंवू ! जाव अट्ठ । ७. सं० पा० - पढमझयणस्स उक्खेवओ। ३. सिया (क, ग)। ८. ओ० सू० ५२ । ४. सूती (क, ख, ग); सची (ठाणं ८।२७)। ६. ना० २।१।१०-४४ । Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नायाधम्मकहाओ ६. एव अट्ठ वि अज्झयणा काली-गमएणं नायव्वा, नवरं-सावत्थीए दोजणीयो। हत्थिणाउरे दोजणीयो। कंपिल्लपुरे दोजणीअो। साएए दोजणीयो । पउमे पियरो विजया मायरानो । सव्वानो वि पासस्स अंतियं पव्वइयायो। सक्कस्स अग्गमहिसीनो । ठिई सत्त पलिओवमाइं । महाविदेहे वासे अंतं काहिति ॥ दसमो वग्गो १-८ अज्झयणाणि १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं नवमस्स वग्गस्स __ अयमद्वे पण्णत्ते, दसमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणणं भगवया महावीरेणं के __ अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं दसमस्स वग्गस्स अट्ठ अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा १. कण्हा य २. कण्हराई, ३. रामा तह ४. रामरक्खिया। ५. वसू या ६. वसुगुत्ता ७. वसुमित्ता ८. वसुंधरा चेव ईसाणे ॥१॥ ३. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं दसमस्स वग्गस्स अट्र __ अज्झयणा पण्णत्ता, दसमस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ ॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं कण्हा देवी ईसाणे कप्पे कण्हवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए कण्हंसि सीहासणंसि, सेसं जहा कालीए॥ ६. एवं अट्ठ वि अज्झयणा काली-गमएणं नायव्वा, नवरं-पुव्वभवो वाणारसीए नयरीए दोजणीयो। रायगिहे नयरे दोजणीयो । सावत्थीए नयरीए दोजणीयो। कोसंबीए नयरीए दोजणीग्रो। रामे पिया धम्मा माया। सव्वाश्रो वि पासस्स अरहनो अंतिए पव्वइयायो । पुप्फचूलाए अज्जाए सिस्सिणियत्ताए । ईसाणस्स १. सं० पा०-दसमस्स उक्खेवओ। एवं खलु २. सं० पा०--पढमस्स उक्खेवो। जंबू जाव अट्ट। ३. ओ० सू० ५२। Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो वग्गो (१-८ अज्झयणाणि) ३६१ अग्गमहिसीनो । ठिई नवपलिग्रोवमाइं । महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति ॥ ७. एवं खलु जंबू ! "समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं दसमस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते ० ॥ ८. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं जाव' सिद्धिगइ नामधेनं ठाणं संपत्तेणं धम्मकहाणं अयम8 पण्णत्ते । परिसेसो धम्मकहा-सुयक्खंधो सम्मत्तो।। दसहि वग्गेहिं नायाधम्मकहानो समत्तानो॥ ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर-२२६६४३ । अनुष्टुप् श्लोक-७०६१, अक्षर ३१ । १. सं० पा०-निक्खेवओ दसमवग्गस्स । २. ना० ११११७। Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसायो Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं आणंदे उक्खेव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम' नयरी होत्था-वण्णो ' । २. पुण्णभद्दे चेइए–वण्णो । तेणं कालेणं तेणं समएण' समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नाम थेरे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे बलसंपण्णे रूवसंपण्णे विणयसंपण्णे नाणसंपण्णे दसणसंपण्णे चरित्तसंपण्णे लज्जासंपण्णे लाघवसंपण्णे अोयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे जियणिद्दे जिइंदिए जियपरीसहे जीवियासमरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे महवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे वेयप्पहाण नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे सोयप्पहाणे नाणप्पहाणे दंसणप्पहाणे चरित्तप्पहाणे अोराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छृढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से चउदसपुव्वी चउनाणोवगए पंचहि अणगारसएहि सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामागुणामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, चंपानयरीए बहिया १. नामं (ख)। २. हुत्था (ग)। ३. ओ० सू० १। ४. ओ० सू०२-१३ । ५. स० पा०—समएणं अज्जसुहम्मे समोसरिए जाव जंबू मज्जुवासमाणे। असौ बिन्दुमध्य वर्ती पाठः क्रमश; रायपसेणइय-प्रोवाइयसूत्राभ्यां पूरितः। प्रस्तुतसूत्रस्य वृतौ 'नायाधम्मकहाओ' सूत्रात् पूरणस्य सूचना कृतास्ति । अस्माभिः पूरिते पाठे ततः किञ्चिद् भेदो विद्यते, नास्ति क्वचिद मौलिको भेदः। ३६५ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसााओ पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हइ, अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स थेरस्स जे? अंतेवासी अज्जजंबू नामं अणगारे कासव' गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कणगपलगनिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे अोराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छृढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढं जाणू अहोसिरे झाणकोट्टोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। तए णं से अज्जजंबू नाम अणगारे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्ण कोऊहल्ले उठाए उढेइ, उद्वेत्ता जेणेव अज्जसुहम्मे थेरे तेणेव उवागाछइ, उवागच्छित्ता अज्जसुहम्मं थेरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे ° पज्जुवासमाण एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स नायाधम्मकहाणं अयम? पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भंते ! अंगस्स उवासगदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अट्टे पण्णते? ६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमरस अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा आणंदे कामदेवे य, गाहावतिचुलणीपिता। सुरादेवे चुल्लसयए, गाहावइकुंडकोलिए। सद्दालपुत्ते महासतए, नंदिणीपिया लेइयापिता ।१॥ १. व्या०वि०-विभक्तिरहितं पदम् । २. पज्जुवासइ (क)। ३. ना० १।१७। ४. संपाविउकामेणं (समावओ १।२)। ५,६. ना०१।१७। ७. लेतियापिया (क, ग); सालेइणीपिया (ख)। उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहाआणंदे कामदेवे अ, गाहावतिचूलणीपिता। सुरादेवे चुल्लसतए, गाहावतिकुंडकोलिए। सद्दालपुत्ते महासतए णदिणीपिया सालेइयापिता। (स्थानांग १०१११२)। स्थानांग सूत्रे दशमाध्ययनस्य नाम 'साले इयापिता' लभ्यते। अत्र एकस्यां प्रतौ 'सालेइणीपिया' नाम उपलब्धमस्ति, किन्तु 'सालइयापिता' नाम नोपलभ्यते। स्यादसौ वाचनाभेदः अथवा लिपिदोषेणासौ विपर्ययो जातः ; इति अनुसंधेयमस्ति। in International Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अयणं ( आनंदे ) ७. ३६७ जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दस ग्रयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! समणेणं भागवया महावीरेणं जाव' संपत्ते के प्रट्ठे पण्णत्ते ? श्राणंदगाहावइ-पदं ८. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नाम नयरे होत्था वण ॥ एत्थ णं ĉ. तस्स वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए, दूइपलासए नामं चेइए' ॥ दित्ते वित्ते १०. तत्थ णं वाणियगामे नयरे जियसत्तू राया होत्था - वण । ११. तत्थ णं वाणियगामे नयरे ग्राणंदे नामं गाहावई परिवसइ - ग्रड्ढे विच्छिण्णवि उलभवण-सयणासण जाणवाहणे बहुधण - जायरूव- रयए आयोगपोगसंपत्ते विच्छडियपउरभत्तपाणे बहुदासी - दास - गो-महिस-गवेल गप्पभूए बहुजणस्स परिभू ॥ o १२ . तस्स णं आणंदस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्तानो, 'चत्तारि हिरण्णकोडोस्रो वढिपत्ताश्रो " चत्तारि हिरण्णकोडीग्रो पवित्थरउत्ता, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था || १३. से णं आणंदे गाहावई वहूणं राईसर - तलवर - माडंबिय कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठिसेणावेइ-सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्भेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वियणं 'कुटुंबस्स मेढी पमाणं श्राहारे प्रालंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए प्रलंबणभूए चक्खुभूए "" सव्वकज्जवड्ढाव" यावि होत्था ।। १२. ना० १।१७ । ३. ओ० सू० १४ । ४. चेतिते (क); चेइए होत्या (घ ) । ५. ओ० सू० १४ । ६. सं० पा०—अड्ढे जाव अपरिभूए । ७. X( क ) । ८. ईसर ( क, ख, ग ) ; ईसराणं (घ ); राईसर (ओ० सू० १८ ) । स० पा० - राईसर जाव सत्थवाहाणं । य' इति पाठो लभ्यते, किंतु अर्थसंगत्या 'कुडुंबेस य मंतेषु य' इति पाठ उपयुक्तोस्ति । ज्ञाता (१।१६ ) सूत्रे तथा रायपसेणइय (६७५) सूत्रेपि इत्थमेवपाठो विद्यते । ज्ञातावृत्तौ अर्थ संगतिरित्थं कृतास्ति - कुटुम्बेषु च स्वकीयपरकीयेषु विषयभूतेषु च मंत्रादयो निश्चयान्तास्तेषु आप्रच्छनीयः । १०. कुटुंबस्स मेढीभूए ( क ग ); कुटुंबस्स मेढीभू जाव ( ख ) । (घ) । ६. यद्यपि सर्वास्वपि प्रतिषु ' मंतेसु य कुडुंबेसु ११. मेढीभूते सव्व Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ उवासगदसामो १४. तस्स णं आणंदस्स गाहावइस्स सिवणंदा' नाम भारिया होत्था-अहीण •पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुम्माण-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंग-सुंदरंगी ससि-सोमाकार-कंत-पिय-दसणा° सुरूवा, पाणंदस्स गाहावइस्स इद्रा, पाणंदेणं गाहावइणा सद्धि अणरत्ता अविरत्ता इ?' 'सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे ° पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ॥ १५. तस्स णं वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरित्थमे दिसीभाए, एत्थ णं कोल्लाए नाम सण्णिवेसे होत्था-रित्थिमिए' जाव पासादिए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ १६. तत्थ णं कोल्लाए सण्णिवेसे आणंदस्स गाहावइस्स बहवे मित्त-नाइ-नियग सयण-संबंधि-परिजणे परिवसइ-अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए ।। महावीर-समवसरण-पदं १७. तेणं का नेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' 'जेणेव वाणियगामे नयरे जेणेव दूइपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ° ॥ १८. परिसा निग्गया । १६. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव" पज्जुवासइ।। २०. तए णं से पाणंदे गाहावई इमोसे कहाए लद्धठे समाणे-"एवं खलु समणे'२ •भगवं महावीरे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव वाणियगामस्स नयरस्स बहिया दूइपलासए चेइए अहापडिरूव प्रोग्गहं अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" तं महप्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्सवि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुपिप्या ! समणं १. सिवानंदा (ख,घ)। २. सं० पा०-अहीण जाव सुरूवा । ३. सं० पा०-इढे जाव पंचविहे । ४. कोलाते (क,ग)। ५. रिद्धित्थमिए (ख)। ६. प्रो० सू०१॥ ७. बहुवे (ग)। ८. उवा० १।११। ६. सं० पा०-महावीरे जाव समोसरिए । १०. ओ० सू० १६, २२ । ११. ओ० सू० ५३-६६ ।। १२. सं० पा०-समणे जाव विहरइ तं महा फलं गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि । १३. पू०-ओ० सू० ५२। Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ पढम अज्झयणं (आणंदे) भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं° पज्जुवासामि–एवं संपेहेइ, संपेहित्ता ण्हाए' 'कयबलिकम्मे कय-कोउय मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई 'पवर परिहिए'' ० अप्पमहग्घाभरणालंकियरोरे 'सयानो गिहायो' पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं 'वाणियगामं नयर' मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव दूइपलासए' चेइए, जेणेव समणे भगवं महावो रे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता पच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे ° पज्जुवासइ ।। २१. तए णं समणे भगवं महावीरे पाणंदस्स गाहावइस्स तोसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्म परिकहेइ ।। २२. परिसा पडिगया, राया य गए । आणंदस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं २३. तए णं से आणंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हतु?'- चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उढेइ, उद्वेत्ता समण भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सदहामि ण" भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गयं पावयण, अभट्टेमि ण भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेय भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! ० हेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए १. सं० पा०-हाए सद्धप्पावेसा अप्प० । ७. प्रो० स० ७१-७७ । २. अत्र नायाधम्मकहाओ (१।१।३३) सूत्रे ८. पडिगओ (क); गया (ख)। 'पवर परिहियानो' पाठो विद्यते । तत्र ६. सं० पा०—हद तुटू जाव एवं वयासी। वृतौ-प्रवरमिहानुस्वारलोपो दृश्यः, इति १०. सं० पा० -सद्दहामि णं जाव से जहेयं । व्याख्यातमस्ति । एतत् उपयुक्तं प्रतिभाति । ११. वदह त्ति (क); वदह त्ति कट्ट (ख,ग,घ); ३. सयातो गिहातो (ग)। रायपसेणइयसूत्रे (६६५) अत्र किञ्चि४. वाणियागामं नगरं (क)। दधिकः पाठो लभ्यते-त्ति कटु वंदइ ५. ०पलासे (क,ग)। नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी६. सं० पा०–णमंसइ जाव पज्जुवासइ । Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० उवासगदसायो बहवे राईसर-तलवर-माडंविय-कोडुंबिय-इब्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगारानो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं ० पव्वइत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि। अहासुहं देवाणु प्पिया ! मा पडि बंध करेहि ।। २४. तए ण से आणंदे गाहावई समणस्स भगवप्रो महावारस्स अंतिए तप्यढमयाए' थूलयं' पाणाइवायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं-न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा ।। २५. तयाणंतरं च णं थूलयं मुसावायं पच्चक्खाइ जावज्जोवाए दुविहं तिविहेण-- न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा ।।। २६. तयाणंतरं च णं थूलय' अदिण्णादाणं पच्चक्खाइ जावज्जोवाए दुविहं तिवि हेणं-न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा ।। २७. तयाणंतरं च णं सदारसंतोसोए परिमाणं करेइनन्नत्थ एक्काए सिवनंदाए भारियाए, अवसेसं सव्वं मेहुणविहिं पच्चक्खाइ ।। २८. तयाणंतरं च णं इच्छापरिमाणं करेमाणे-- (१) हिरण्ण-सुवण्णविहिपरिमाणं१३ करेइ-नन्नत्थ चउहि हिरण्णकोडीहिं निहाणपउत्ताहि, चउहि वडिपउत्ताहिं, चउहि पवित्थरपउत्ताहि. अवसेसं सव्वं हिरण्ण-सुवण्णविहिं पच्चक्खाइ। १. सं० पा०-मुंडे जाव पव्वइत्तए। ३. करेह (घ) । २. गिहिधम्म (क,ख,ग,घ) । दिग्व्रत-शिक्षाव्रता- ४. ° मताते (ग)। नामतिचारनिरूपणप्रसंगे वत्तिकारेण समा- ५. थूल (क)। लोच्यपाठः समुदधतोस्ति । तत्र व्रतग्रहण- ६. पच्चक्खामि (ख,ग,घ)। संकल्यावसरे व्रतग्रहणानन्तरं च उभयत्रापि ७. तदा (ग)। 'सावगधम्म' इति पाठो विद्यते, यथा- ८. थूलं (क)। "कथमन्यथा प्रागुक्त दुवालसविह सावगधम्म ६. थूल (क,ग); थूलगं (घ)। पडिवज्जिस्सामीति? कथं वा वक्ष्यति- १०. ० संतोसिए (क,ख); ० संतोसिते (ग,घ);३५ दुवालसविहं सावगधम्म पडिव्वज्जति त्ति" सूत्रे इकारस्य दीर्घत्वं लभ्यते । (वृ), अग्रिमस्थलेषु 'गिहिधम्म' इत्येवपाठः ११. असेसं (क)। प्रतिषु लभ्यते। तत्र वृतौ नास्ति काचिद् १२. मेथुन ° (क); मेथुण ° (घ)। व्याख्या, तेन क्वचित्-क्वचित् गिहिधम्म' १३. सुवण्णपरिमाणं (ग,घ)।। पाठोऽपि स्वीकृतः । नानयोः कश्चिद अर्थ- १४. पच्चक्खामि (ख,ग) अग्रे सर्वत्रापि । भेदोस्ति। Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (आणंदे) ४०१ (२) तयाणंतरं च णं चउप्पयविहिपरिमाणं करेइ–नन्नत्थ चउहिं वएहि' दसगोसाहस्सिएणं वएणं', अवसेसं सव्वं च उप्पयविहिं पच्चक्खाइ। (३) तयाणंतरं च णं खेत्त-वत्थुविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ पंचहि हलसएहिं नियत्तणसतिएणं हलेणं, अवसेसं सव्वं खेत्त-वत्थुविहिं पच्चक्खाइ। (४) तयाणंतरं च णं सगडविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ पंचहि सगडसएहि' दिसायत्तिएहि, पंचहिं सगडसएहिं संवहणिएहि, अवसेसं सव्वं सगडविहि' पच्चक्खाइ। (५) तयाणंतरं च णं वाहणविहिपरिमाणं करेइनन्नत्थ चउहिं वाहणेहिं दिसायत्तिएहि, चउहिं वाहहिं संवहणिएहि', अवसेसं सव्वं वाहणविहिं पच्चक्खाइ॥ २६. तयाणंतरं च णं उवभोग-परिभोगविहिं पच्चक्खायमाणे(१) उल्लणियाविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ 'एगाए गंधकासाईए', अवसेसं सव्वं उल्लणियाविहिं पच्चक्खाइ। (२) तयाणंतरं च णं दंतवणविहिपरिमाणं करेइ–नन्नत्थ एगेणं अल्ललट्ठीमहु एणं', अवसेसं सव्वं दंतवणविहिं पच्चक्खाइ। (३) तयाणंतरं च णं फलविहिपरिमाणं करेइ–नन्नत्थ एगेणं खीरामलएणं, अवसेसं सव्वं फलविहिं पच्चक्खाइ। (४) तयाणंतरं च णं अब्भंगणविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ सयपागसहस्स पागेहि तेल्लेहि", अवसेसं सव्वं अन्भंगणविहिं पच्चक्खाइ ॥ (५) तयाणंतरं च णं उव्वट्टणाविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ एगेणं सुरभिणा गंधट्टएणं", अवसेसं सव्वं उव्वट्टणाविहिं पच्चक्खाइ। (६) तयाणंतरं च णं मज्जणविहिपरिमाणं करेइनन्नत्थ अढहिं उट्टिएहि" १. वतेहिं (ग)। १०. अभि (घ)। २. वतेणं (ग)। ११. तिल्लेहिं (घ)। ३. सगडसागडेहि (क); सगडीसएहिं (ख)। १२. उव्वट्टण (क्व)। ४. सगडविहं (घ)। १३. गंधवट्टएणं (क,ख,घ)। एतत् परिवर्तन ५. संवा ° (ख)। संभवतो लिपिदोषेण जातम् । वृत्तौ अस्य ६. वहण ° (क)। मौलिकं रूपं सुरक्षितमस्ति, यथा-- गन्ध७. एगाते गंधकासातीते (क,ग)। द्रव्याणामुपलकुष्ठादीनाम्, 'अट्टओ' ति चूर्ण ८. अल्लल्लट्ठो° (ग)। गोधूमचूर्ण वा गन्धयुक्तम् । स्थानांगे ६. x(क,ग)। अनपोरादर्शयोरग्रे सर्वत्रापि (३।८७) पि 'गंधट्टएणं' इति प्रयोगो लभ्यते । 'सव्वं' पाठो नास्ति । अत्र लिपेः संक्षेपी- १४. उव्वट्टिएहिं (क)। उद्वतितः इति विशेषणेन करणमेव कारणं संभाव्यते । अरघट्टपरिवर्तिभिः उदकघटः इत्यर्थः सूच्यते। Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ उवासगदसाओ 'उदगस्स घडेहि", अवसेसं सव्वं मज्जणविहिं पच्चक्खाइ। (७) तयाणंतरं च णं वत्थविहिपरिमाणं करेइ-'नन्नत्थ एगेणं' 'खोमजुयलेणं, अवसेसं सव्वं वत्थविहिं पच्चक्खाइ। (८) तयाणंतरं च णं बिलेवणविहिपरिमाणं करेइ -नन्नत्थ अगरु'-कुंकुम चंदणमादिएहि', अवसेसं सव्वं विलेवणविहिं पच्चक्खाइ । (8) तयाणंतरं च णं पुप्फविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ एगेणं सुद्धपउमेणं मालइकुसुमदामेण वा, अवसेसं सव्वं पुप्फविहिं पच्चक्खाइ । (१०) तयाणंतरं च णं आभरणविहिपरिमाणं करेइनन्नत्थ मट्टकण्णेज्जएहि नाममुद्दाए य, अवसेसं सव्वं आभरणविहि पच्चक्खाइ। (११) तयाणंतरं च णं धूवणविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्थ अगरु-तुरुक्क-धूवमा दिएहि, अवसेस सव्वं धूवणविहिं पच्चक्खाइ। (१२) तयाणंतरं च णं भोयणविहिपरिमाणं करेमाणे(क) पेज्ज-विहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ एगाए कट्टपेज्जाए, अवसेसं सव्वं पेज्जविहिं पच्चक्खाइ। (ख) तयाणंतरं च णं भक्खविहिपरिमाणं करेइनन्नत्थ एगेहि घयपुण्णेहि खंडखज्जएहि वा, अवसेसं सव्वं भक्खविहि पच्चक्खाइ। (ग) तयाणंतरं च णं प्रोदणविहिपरिमाणं करेइनन्नत्थ कलमसालि मोदणेणं, अवसेसं सव्वं प्रोदणविहि पच्चक्खाइ। (घ) तयाणंतरं च सूवविहिपरिमाणं करेइ.-नन्नत्थ कलायसूवेण" वा 'मुग्गसूवेण वा माससूवेण" वा अवसेसं सव्वं सूवविहिं पच्चक्खाइ। (ङ) तयाणंतरं च णं घयविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ सारदिएणं गोघय मंडेणं, अवसेस सव्वं घयविहिं पच्चक्खाइ। (च) तयाणतरं च णं सागविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ वत्थुसाएण वा तुंबसाएण वा सुत्थियसाएण" वा मंडुक्कियसाएण वा, अवसेसं सव्वं सागविहिं पच्चक्खाइ ॥ १. उदगघडेहि (क)। २. नन्नत्थेकेणं (क,ग)। ३. अगुरु (क,घ)। ४. ° मातितेहिं (क); माइतेहिं (घ)। ५. मालई ° (घ)। ६. अगुरु (क, घ)। ७. भक्खण ° (ख)। ८. भक्खण ° (क,ख)। ६. सूय ° (क,ग,घ)। १०. कालाय ° (क)। ११. मुग्गमाससूवेण (क)। १२. वुसातेण (क); वत्थुसातेण (ग); चुच्चुसाएण १३. सुत्थिया ° (ग); सूवत्थिय ° (घ)। Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (आणंदे) ४०३ (छ) तयाणंतरं च णं माहुरयविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ एगेणं पालंकामाहुरएणं', अवसेसं सव्वं माहुरयविहिं पच्चक्खाइ। (ज) तयाणंतरं च णं तेमणविहिपरिमाणं' करेइ - नन्नत्थ सेहंब दालियंबेहि, अवसेसं सव्वं तेमणविहिं पच्चक्खाइ । (झ) तयाणंतरं च णं पाणियविहिपरिमाणं' करेइ-नन्नत्थ एगेणं अंतलिक्खोदएणं, अवसेसं सव्वं पाणियविहिं पच्चक्खाइ । () तयाणंतरं च णं मुहवासविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ पंचसोगंधि एण' तंबोलेणं, अवसेसं सव्वं मुहवासविहिं पच्चक्खाइ ॥ ३०. तयाणंतरं च णं चउन्विहं अणट्ठादंडं पच्चक्खाइ, तं जहा-१. अवज्झाणाचरित' २. पमायाचरितं' ३. हिंसप्पयाणं ४. पावकम्मोवदेसे ॥ अतियार-पदं ३१. आणंदाइ ! समणे भगवं महावीरे आणंदं समणोवासगं एवं वयासी-एवं खलू आणंदा ! समणोवासएणं' अभिगयजीवाजीवेणं 'उवलद्धपुण्णपावेणं आसवसंवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्ख कुसलेणं असहेज्जेणं, देवासुर-णागसुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णर-किरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहि देवगणेहिं निग्गंथानो पावयणानो अणइक्कमणिज्जेणं सम्मत्तस्स पंच 'अतियारा पेयाला' जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा -१. संका २. कंखा ३. विति गिच्छा१२ ४. परपासंडपसंसा ५. परपासंडसंथवो" ॥ ३२. तयाणंतरं च णं थूलयस्स पाणाइवायवेरमणस्स" समणोवासएणं 'पंच अतियारा १. ० माचुरतेणं (क); °माधुरतेणं (ग)। १०. सं० पा०–अभिगयजीवाजीवेणं जाव अण२. जेवण ° (क); जेमण° (ख,ग,घ)। 'तेमण' इक्क मणिज्जेणं ।। इति पाठो वृत्त्याधारण स्वीकृतः । 'ग' प्रतौ ११. अतियारपेयाला (क,ग); अतिचारा पेयाला वारद्वयमपि जेमण' शब्दस्य जकारोपरि (घ)। पेयालत्ति सारा: प्रधाना: स्थूलत्वेन सूक्ष्माक्षरेण 'ते' इति लिखितमस्ति । शक्यव्यपदेशत्वात् (उवासगदसाओ वृत्ति); ३. पाणित ° (ग)। पेयालं प्रेज्जल पमाणम्मि (देशीनाममाला ४. सोगंधितेणं (ग); °सोगधेणं (घ)। ६।५७) । ५. अनत्थ° (ख)। १२. • गिच्छा (क)। ६. यरियं (ख)। १३. शङ्काकाङ्क्षाविचिकित्साऽन्यदृष्टिप्रशंसा७. यरियं (क,ख)। संस्तवाः सम्यग्दृष्टेरतिचाराः (तत्त्वार्थसूत्र ८. दि (क); °ति (ग)। ७१८)। ६. वासतेणं (ग,घ)। १४. पाणायिवाय • (क); पाणादिवाय ° (ग)। Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा- १. बंधे २. वहे ३. छविच्छेदे' ४. अतिभारे' ५. भत्तपाणवोच्छेदे । ३३. 'तयाणंतरं च ण 'थलयस्स मुसावायवेरमणस्स" समणोवासएणं 'पंच अतियारा' जाणियव्वा", न समायरियव्वा, तं जहा --१. सहसाभक्खाणे २. रहस्सब्भक्खाणे ३. 'सदारमंतभेए ४. मोसोवएसे'° ५. कूडलेहकरणे ॥१ ३४. तयाणंतरं च णं थूलयस्स अदिण्णादाणवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. तेणाहडे २. तक्करप्पनोगे ३. विरुद्ध रज्जातिक्कमे ४. कूडतुल-कूडमाणे ५. तप्पडिरूवगववहारे ।। ३५. तयाणंतरं च णं सदारसंतोसीए समणोवासएणं पंच प्रतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा-१. इत्तरियपरिग्गहियागमणे" २. अपरिग्गहियागमणे ३. अणंगकिड्डा" ४. परवीवाहकरणे" ५. 'कामभोगे तिव्वाभिलासे ।। ३६. तयाणंतरं च णं इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं पंच" अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. खेत्तवत्थुपमाणातिक्कमे २. हिरण्णसुवण्णपमाणातिक्कमे ३. धण धण्णपमाणातिक्कमे ४. दुपयच उप्पयपमाणातिक्कमे ५. कुवियपमाणातिक्कमे ।। १. पंचतियारपेयाला (क), पंचतियारा पेयाला ११. वाचनान्तरे तु -- कन्नालीयं, गवालीयं, भूमा लियं, नासावहार, क डसक्खेज्ज संधिकरणे त्ति २. °च्छेए (क,ख,घ)। पठ्यते । "अावश्यकादौ पुनरिमे स्थूलमृषा३. अयि ° (क), अइ° (ख,घ)। वादभेदा उक्ताः" ततोयमर्थः संभाव्यते-- ४. °वोच्छेए (क,ख); °बोच्छेए (घ)। एत एव प्रमादसहसाकाराऽनाभोगैरभिधीय५. थूलगमुसावाय° (क,ग,घ) । माना मृषावादविरतेरतिचारा: भवन्त्याकूटया ६. पंचतियारा (क,ग,घ)। अस्मिन् सूत्रे तथा च भंगा इति (वृ)। उत्तरवर्तिअतिचारसूत्रेषु 'पेयाला' शब्दः १२ तक्करपओगे (क,घ)। साक्षात् लिखितो नास्ति । १३. कूडतुल्ल (घ)। थलगमूसावायस्स पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा - १४. इत्तिरिय° (क,ग)। कण्णालियं, गोवालियं, भोमालियं, णासा- १५. ° कीडा (ख,घ)। वहारो, कूडसक्खेज्ज संधिकरणे । थूलगमुसा- १६. परविवाह ° (क्व) । वायरस पंच अतियारा जाणियव्वा (ख)। १७. कामभोगे तिव्वाभिनिवेसे (क); कामभोएस ८. सहसब्भक्खाणे (क) तिव्वाभिनिवेसे (ख)। ६. रहसब्भक्खाणे (क); रहसाभक्खाणे (ख,घ)। १८. इमे पंच (क) । १०. मोसोवएसे सदारमंतभेए (क)। Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०५ पढमं अज्झयणं (आणंदे) ३७. ' तयानंतरं च णं दिसित्रयस्स समणोवास एवं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा १. उड्ढदिसिपमाणातिक्कमे २. ग्रहोदिसिपमाणातिक्कमे ३. तिरियदिसिपमाणातिक्कमे ४ खेत्तवुड्ढी ५. सतिअंतरद्धा' | ३८. तयानंतरं च णं उवभोगपरिभोगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - 'भोयणओ कम्म य" । भोयणओ' समणोवासएणं पंच प्रतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा -- १. सचित्ताहारे २. सचित्तपडिबद्धाहारे ३. अप्पउलियोसहिभक्खणया ४. दुप्पउलियोसहिभक्खणया ५. तुच्छोस हिभक्खणया । कम्मणं समणोवास एणं पण्णरस कम्मादाणाई जाणियव्वाई, न समायरियव्वाई, तं जहा - १. इंगालकम्मे २. वणकम्मे ३. 'साडी कम्मे ४. भाडीकम्मे ५. फोडी कम्मे " ६. दंतवाणिज्जे ७. लक्खवाणिज्जे ८. रसवाणिज्जे 8. विसवाणिज्जे १०. केसवाणिज्जे ११. जंतपीलणकम्मे १२. निल्लंछणकम्मे १३. दवग्गिदावणया १४. सरदहतलागपरिसोसणया १५. सतीजणपोसणया " || ३६. तयानंतरं च णं णद्वादंडवेरमणस्स समणोवासएणं पंच प्रतियारा जाणियव्वा, न समायरियन्वा तं जहा - १. कंदप्पे २. कुक्कुइए" ३. मोहरिए ४. संजुत्ताहिकरणे ५. उवभोगपरिभोगातिरित्ते" ॥ १. वृत्तिकृता अत्र एकं महत्त्वपूर्णं सूचनं कृतमस्ति - दिव्रतं शिक्षाव्रतानि च यद्यपि पूर्वं नोक्तानि तथापि तत्र तानि द्रष्टव्यान्यतिचारभणस्यान्यवा निरवकाशता स्यादिति, कथमन्यथा प्रागुक्तम् - दुबालमविहं सावगधम्मं पडिवज्जिस्सामीति ? कथं वा वक्ष्यति दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवज्जइति, अथवा सामायिकादीनामित्वरकालीनत्वेन प्रतिनियतकालकरणीयत्वात् न तदैव तान्यसौ प्रतिपन्नवान् दिव्रतं च विरतेरभावात् उचितावसरे तु प्रतिपत्स्यते इति भगवतस्तदतिचारवर्जनोपदेशन मुपपन्नम् । यच्चोक्तं द्वादशविधं गृहिधर्मं प्रति- १०. पत्स्ये, यच्च वक्ष्यति द्वादशविधं श्रावकधर्मं प्रतिपद्यते, तद् यथाकालं तत्करणाभ्युपगमानवद्य वसेयम् (वृ) 1 २. दिसि विदिति (ख, घ) । ३. उड्ढदिसा इक्कमे (वृपा ) । ४. सइ ° (ख, घ ) । ५. भोयणओ य कम्मो य ( क ) ; भोयणतो कम्मतो ( ख ) । ६. तत्थ णं भोयणओ ( ख ) । ७. व्या० वि० - अपउलि + ओसहि° = अप्पउलिओसहि ८. साडीकम्मे य भाडीकम्मे य फोडी कम्मे (ख) | 8. 'दंतवाणिज्जे' इत्यनन्तरं पाठभिन्नता दृश्यते ११. १२. १३. • केसवाणिज्जे विसवाणिज्जे ( क ) ; रसवाणिज्जे लक्खवाणिज्जे ( ग ) ; केसवाणिज्जे रसवाणिज्जे लक्ख वाणिज्जे विसवाणिज्जे (घ ) । ० तलाय ० ( क ); तडायसोसणया ( ख ); तलाव सोसणया (घ ) । असति ० ( क, ग ); असइ ० (घ ) । कुक्कुतिए ( क ) । ० • भोगाइरित्ते ( क ) । Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ उवासगदसाओ ४०. तयाणंतरं च णं सामाइयस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा-१. मणदुप्पणिहाणे २. वइदुप्पणिहाणे ३. कायदुप्पणि हाणे ४. सामाइयस्स सतिप्रकरणया ५. सामाइयस्स अणवट्टियस्स करणया । ४१. तयाणतरं च णं देसावगासियस्स' समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा -- १. प्राणवणप्पोगे २. पेस [सा ? ]णवणप्पोगे' ३. सद्दाणुवाए ४. रूवाणुवाए ५. बहियापोग्गलपक्खेवे॥ तयाणंतरं च णं पोसहोववासस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा - १. अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारे २. अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारे ३. अप्पडिले हिय-दुप्पडिलेहियउच्चारपासवणभूमी ४. अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमी ५. पोस होववासस्स' सम्म अणणुपालणया ॥ ४३. तयाणंतरं च णं अहासंविभागस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. सचित्तनिक्खेवणया २. सचित्तपिहणया ३. कालातिक्कमे° ४. परववदेसे' ५. मच्छरियया ॥ तयाणतरं च णं अपच्छिममारणंतियसंलेहणाझूसणाराहणाए१५ पंच प्रतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. इहलोगासंसप्पओगे २. परलोगासंसप्पओगे ३. जीवियासंसप्पनोगे ४. मरणासंसप्पयोगे ५. कामभोगासंस प्पनोगे। आणंद-अभिग्गह-पदं ४५. तए णं से आणंदे गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावयधम्म पडिवज्जति, पडिव ज्जित्ता समणं १. वय ° (घ)। पाठः समीचीनः प्रतिभाति । २. ० कासियस्स (ग)। ४. पोग्गलक्खेवे (क)। ३. क, ख, घ, आदर्शषु 'पेसवण' इति पाठो ५. संथारए (ग)। लभ्यते, किन्तु 'पेसवण' शब्दस्यार्थो दुरधि- ६. पोसहस्स (ग)। गमोस्ति । प्रेषणस्यार्थः 'पेसण' शब्देनापि ७. वृत्तो 'सम्म' शब्दो न व्याख्यातो दृश्यते । सूचितो भवेत् । ग' आदर्श 'पेसणवण' इति ८. निक्खिवणयाए (क)। पाठो विद्यते । वृत्त्यनुसारेण अत्रापि आनयन- ६. पिहणयाए (क); ०पेहणया (ख, घ)। स्यार्थोस्ति, यथा ---"बलाद् विनियोज्य: १०. कालातिकम्मदाणे (ख)। प्रेष्यस्तस्य प्रयोगो यथाऽभिगृहीतप्रविचारदेश- ११. परओवदेसे (ख)। व्यतिक्रमभयात् त्वयाऽवश्यमेव तत्र गत्वा मम १२. मच्छरया (ख)। गवाद्यानेयम्" (वृ) तेनात्र ‘पेसणवण' इति १३. ° राहणयाते (क) । Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .पढमं अज्झयणं (आणंदे) ४०७ भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी ---नो खलु मे भंते ! कप्पइ अज्जप्पभिई अण्णउत्थिए वा अण्णउत्थिय-देवयाणि वा अण्णउत्थिय-परिग्गहियाणि वा अरहंत चेइयाई वंदित्तए वा नमंसित्तए वा, पुव्वि प्रणालत्तेणं अालवित्तए वा संलवित्तए वा, तेसिं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा दाउं वा अणुप्पदाउं वा, नन्नत्थ रायाभियोगेण गणाभियोगेण बलाभियोगेण देवयाभियोगेण गुरुनिग्गहेणं वित्तिकतारेण । कप्पइ मे समणे निग्गंथे 'फासु-एसणिज्जेणं' असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थपडिग्गह-कंबल-पायछणणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं प्रोसह-भेसज्जेण य पडिलाभेमाणस्स विहरित्तए-त्ति कटु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ, अभिगिण्हित्ता पसिणाइं पुच्छइ, पुच्छित्ता अट्ठाई अादियइ, आदित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ णमसइ, वदित्ता णमंसित्ता, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियायो दुइपलासाग्रो चेइयाग्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव वाणियगामे नयरे, [जेणेव सए गिहे जेणेव सिवगंदा भारिया ?] तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिवणंद भारियं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए ! मए" समणस्स भगवग्रो महावो रस्स अंतिए धम्मे निसंते । से वि य धम्मे मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । तं गच्छाहिणं तुम देवाणप्पिए! समणं भगवं महावीर वंदाहिर •णमंसाहि सक्कारेहि सम्माणेहि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासाहि, समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जाहि ।। सिवणंदाए वंदणढ-गमण-पदं ४६. तए णं सा सिवणंदा भारिया पाणंदेणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठ१. अज्जप्पभिईए (ख); अज्जपभिई (घ)। ८. पिया (घ)। २. ° उत्थिया (ग, घ)। ६. मते (ग)। ३. चेइयाई (क, ख, ग); कोष्ठकसंकेतितासु १०. अभिरुतिते (ग)। तिसृष्वपि प्रतिषु 'अरहंतचेइयाई' पाठस्य ११. गच्छ (क, ख, घ); गच्छह (ग)। स्थाने केवलं 'चेइयाइं' इति पाठो लभ्यते। १२. सं० पा०-वंदाहि जाव पज्जूवासाहि । वृत्तौ 'अरहंत' शब्दो व्याख्यातोऽस्ति । १३. सं० पा० -हद्वतुट्ठा कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, ४. वित्ती° (क, ग)। २त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव लहकरण जाव ५. फासुतेसणिज्जेणं (क); फासुएणं एसणिज्जेणं पज्जुवासइ । प्रस्तुतसंक्षिप्तपाठस्य सूचकचिन्ह (ख)। नोपलभ्यते । अस्य पूति: औपपातिकस्य ६. सप्तमाध्ययनानुसारेण असौ पाठः उपयुक्तः (पू०८०), प्रस्तुतसूत्रवतिसप्तमाध्ययनस्य प्रतिभाति । (७।३३) तथा भगवत्याः (६।१४१-१४५) ७. सिवनंदा (क), सिवानंद (घ)। आधारेण कृतास्ति । Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ उवासगदसाओ •चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति आणंदस्स समणोवासगस्स एयमढं विणएणं पडिसुणेइ ।। ४७. तए णं से आणंदे समणोवासए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-- खिप्पामेव भो! देवाणप्पिया ! लहकरणजुत्त-जोइयं समखुरवालिहाण-समलिहियसिंगएहि जंबूणयामयकलावजुत्त-पइविसिट्टएहि रययामयघंट-सुत्तरज्जुगवरकंचणखचियनत्थपग्गहोग्गहियएहिं नीलुप्पलकयामेलएहि पवरगोणजुवाणएहिं नाणामणिकणग-घटियाजालपरिगयं सुजायजुगजुत्त-उज्जुग-पसत्थसुविरइयनिम्मियं पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। ४८. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा आणंदेणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुटु चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति प्राणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्त-जोइयं जाव' धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति॥ ४६. तए णं सा सिवणंदा भारिया बहाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा चेडियाचक्कवालपाकिण्णा धम्मिय जाणप्पवर दुरुहइ, दहित्ता वाणियगाम नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव दुइपलासए चेहए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियानो जाणप्पवरायो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहे विणएणं पंजलियडा पज्जुवासइ ।। ५०. 'तए णं'२ समणे भगवं महावीरे सिवणंदाए तोसे य' महइमहालियाए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ । सिवणंदाए गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं ५१. तए णं सा सिवणंदा भारिया समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टत?- चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस१. उवा० १।४७ । ५. ओ० सू० ७१-७७ । २. ततो (क, ख)। ६. कहेइ (क, ख, ग, घ)। ३. X (क)। ७. सं० पा०-हट्ठतुट्ठ जाव गिहिधर्म । ४. महति ° (क)। Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयण (आणंदे) ४०६ विसप्पमाणहियया उट्ठाए उढेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीसद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भटेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवि तहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जडेयं तब्भे वदह । जहा णं देवाणप्पियाणं अंतिए बहवे गईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबियइन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभि इया मुंडा भवित्ता अगारानो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडा भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयंदुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ ५२. तए णं सिवणंदा भारिया समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिवखावइयं-दुवालसविहं° गिहिधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसं' पाउब्भूया, तामेव दिसं' पडिगया । गोयमपुच्छा-पदं ५३. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-पहू णं भंते ! आणंदे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे •भवित्ता अगारासो अणगारियं° पव्वइत्तए ? नो इणढे समढे। गोयमा ! आणंदे णं समणोवासए बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पाउणिहिति', पाउणित्ता' 'एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, स४ि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा° सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि १. दिसि (ख, घ)। २. दिसि (क, ख, घ)। ३. सं० पा०-मुंडे जाव पव्वइत्तए। ४. पव्वतित्तते (ग)। ५. तिणट्टे (क, ग)। ६. परियायं (घ)। ७. पाहुणीहिति (क)। ८. सं० पा०-पाउणित्ता जाव सोहम्मे । Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० उवासगदसायो पलिग्रोवमाइंठिई पण्णत्ता'। तत्थ णं आणंदस्स वि समणोवासगस्स चत्तारि पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता [भविस्सई ? ] ।। भगवओ जणवयविहार-पदं ५४. तए णं समणे भगवं महावीरे 'अण्णदा कदाइ' 'वाणियगामाप्रो नयराओ दुइपलासाो चेइयानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ॥ आणंदस्स समणोवासग-चरिया-पदं ५५. तए णं से पाणंदे समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसव-संवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्खकुसले असहेज्जे, देवासुरणाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णर-किपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहि निग्गंथानो पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे, निग्गंथे पावयणे हिस्संकिए णिक्कंखिए निव्वितिगिच्छे लढे गहियढे पुच्छियढे अभिगयढे विणिच्छियढे अट्टिमिंजपेमाणुरागरत्ते, अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे अयं परमटे सेसे अणद्वै ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउर-परघरदार-प्पवेसे चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेत्ता समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं° पडिलाभे माणे विहरइ॥ सिवणंदाए समणोवासिय-चरिया-पदं ५६. तए णं सा सिवणंदा भारिया समणोवासिया जाया- अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा आसव-संवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्ख कुसला असहेज्जा, देवासुर-णाग-सूवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्वमहोरगाइएहि देवगणेहि निग्गंथाप्रो पावयणाप्रो अणइक्कमणिज्जा, निग्गथे पावयणे णिस्संकिया णिक्कंखिया निव्वितिगिच्छा लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा अभिगयट्ठा विणिच्छियट्ठा अट्टिमिंजपेमाणुरागरत्ता, अयमाउसो ! निग्गंथे १. अतोग्रवर्ती 'पण्णत्ता' पर्यन्तः पाठः अत्र ३. सं० पा० - अण्णदा कदाइ बहिया जाव अनावश्यकः प्रतीयते, असौ चतुरशीतितमे सूत्रे विहरइ । ° कयायि (क); अन्नया कयाइ प्रासंगिकोस्ति । किन्तु सर्वासु प्रतिपु कथम- (ख); अन्नया कयाई (घ)। पि समागतोसौ लभ्यते । ४. सं० पा०-अभिगयजीवाजीवे जाव पडि२. पूर्ववाक्ये 'उववज्जिहिति' इति भविष्यत्- लाभेमाणे। कालीनं क्रियापदं युज्यते । ५. सं० पा०-जाया जाव पडिलाभेमाणी। Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (आणंदे) पावयणे अट्ठ अयं परमटे सेसे अणटे ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियत्तंतेउरपरघरदार-प्पवेसा चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेत्ता समणे निग्गथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुंछणेणं अोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथार एणं° पडिलाभमाणी विहरइ ।। आणंदस्स धम्मजागरिया-पदं ५७. तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स उच्चावएहि 'सोल-व्वय-गुण-वेरमण पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावमाणस्स चोद्दस संवच्छ राई वीइक्कंताई। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा' वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं वाणियगामे नयरे बहूणं राईसर- तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य पापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे °, सयरस वि य णं कुडुबस्स •मेढी पमाणं आहारे पालंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए अालंबणभूए चक्ख भूए सव्वकज्जवट्टावए°, त एतण वक्खवेण ग्रह ना संचाएमि समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियम्मि अह पंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास-किसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिणय रे ते यसा ° जलते विपुलं' असण-पाण-खाइम-साइमं •उवक्खडावेत्ता, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरिजणं ग्रामंतेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं विपलेणं असणपाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंधमल्लालंकारेण य सवकारेत्ता सम्माणेत्ता, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स पुरो° जेडपुत्तं कुडुबे ठवेत्ता, तं मित्त'- नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं° जेट्टपुत्तं च आपुच्छित्ता, १. °वतेहि (ग)। २. सीलगुणव्वय (क)। ३. अंतरे (क, ग)। ४. सं० पा०-राईसर जाव सयस्स । ५. सं० पा० - कुडुंबस्स जाव प्राधारे तं। ६. अंतितं (ग)। ७. मम (घ)। ८. सं० पा०-कल्लं जाव जलते। ६. विउलं (ख)। १०. सं० पा०-साइमं जहा पूरणो जाव जेट्टपुत्तं । ११. सं० पा०-मित्त जाव जेट्टपुत्तं । Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ उवासगदसाओ 'कोल्लाए सण्णिवेसे' नायकुलंसि' पोसहसालं पडिलेहित्ता, समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए --एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्ल' पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते ° विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं आमतेइ, आमंतेत्ता ततो पच्छा ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए° अप्पमहग्याभरणालं कियसरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए, तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं सद्धि तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं प्रासादेमाणे विसादेमाणे परिभाएमाणे परि जेमाणे विहरइ। जिमियभुत्तुत्तरागए णं आयंते चोक्खे परमसुइब्भूए, तं मित्त'- नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं विपुलेणं असण-पाण-खाइमसाइमेणं वत्थ-गंधमल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणे इ, तस्सेव मित्त-नाइनियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स° पुरो जेट्टपुत्तं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु पुत्ता ! अहं वाणियगामे नयरे बहूण जाव' पापुच्छणिज्जे पडिपच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुड़बस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्डावए, त एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं° विहरित्तए। तं सेयं खलु मम इदाणि तुमं सयस्स कुडुंबस्स मेढिं पमाणं आहारं आलंबणं चक्खं ठावेत्ता, 'तं मित्त-नाइ-नियगसयण-संबंधि-परिजणं तुमं च आपुच्छित्ता कोल्लाए सण्णिवेसे नायकुलं सि पोसहसालं पडिले हित्ता समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। ५८. तए णं [से ? ] जेट्टपुत्ते आणंदस्स समणोवासगस्स तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेति ॥ ५६. तए णं से आणंदे समणोवासए तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणस्स° पुरो जेट्टपुत्तं कुडुबे" ठावेति, ठावेत्ता एवं वयासी-मा णं पुरओ। १. कोल्लागसण्णि ° (ग)। २. नातकुलसि (ग)। ६. सं० पा०-बहूणं राईसर जहा चिंतियं जाव ३. स० पा०-कल्लं विउलं असणं। कल्लं विहरित्तए। विउलं तहेव जिमि यभुत्तुत्तरागए (क, ख)। ७,८. उवा० १११३ । ४. सं० पा० --- हाए जाव अप्पमहग्घा । ६. सं० पा०-ठावेत्ता जाव विहरित्तए। ५. सं० पा०-तं मित्त जाव विउलेणं पुप्फ ५ १०. सं० पा०- मित्त जाव पूरओ। सक्कारेइ सम्माणेइ, २त्ता तस्सेव मित्त जाव ११. कुटुंबे (ग); कुडंबे (घ)। Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (प्राणंदे) देवाणुप्पिया! तुब्भे अज्जप्पभिई केइ ममं बहूसु कज्जेसु य 'कारणेसु य मंतेसु य कुडंबेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य° पापुच्छउ वा पडिपुच्छउ वा, ममं अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडेउ वा उवक्करेउ वा ।। ६०. तए णं से पाणंदे समणोवासए जेटुपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च प्रापुच्छइ, आपुच्छित्ता सयानो गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता वाणियगामं नयरं मझमज्झणं' निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे, जेणेव नायकुले, जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए 'बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए° दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ पाणंदस्स उवासगपडिमा-पडिवत्ति-पदं ६१. तए णं से पाणंदे समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। ६२. [तए णं से आणंदे समणोवासए ?] पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं __ अहामग्गं अहातच्च सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ६३. तए णं से पाणंदे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं •उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ ° पाराहेइ ॥ ६४. तए णं से पाणंदे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के 'लुक्खे निम्मसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडिया भूए° किसे धमणिसंतए जाए। पाणंदस्स अणसण-पदं ६५. तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्ता वरत्तकाल१. सं० पा०-कज्जेसु यापुच्छउ वा। ६. उपासकप्रतिमानां विवरणं ज्ञातुं द्रष्टव्या २. मज्झ मज्झ (क)। दशाश्रुतस्कन्धस्य सप्तमीदशा ।। ३. द्रुहति (क)। ७. सं० पा० -एक्कारसमं जाव आराहेइ । ४. सं० पा०—पोसहिए ° । ८. सं० पा०-सुक्के जाव किसे । ५. भगवती (२।५६) सूत्रानुसारेण कोष्ठकान्त- ६. सं० पा०--पुव्वरत्ता जाव धम्मजागरियं । र्गतपाठक्रमः संभाव्यते । Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ उवासगदसाओ समयंसि ° धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं इमेणं' 'एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्ध किडिकिडियाभूए किसे ° धम्मणिसंतए जाए। तं अत्थि ता' मे उहाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव ‘य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा-जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-असणा-झुसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स, कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए - एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतिय संलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए° कालं अणवकंखमाणे विहरइ ॥ आणंदस्स प्रोहिनाणुप्पत्ति-पदं ६६. तए णं तस्स पाणंदस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ सुभेणं अज्झवसाणेणं, सुभेणं परिणामेणं, लेसाहिं विसुज्झमाणीहि, तदावरणिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं अोहिणाणे समुप्पण्णे--पुरथिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणइ पासइ । १० दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणइ पासइ । पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्त जाणइ पासइ ° । उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणइ पासइ। उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणइ पासइ । अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुतं" नरयं चउरासीतिवाससहस्सट्ठितियं जाणइ पासइ । गोयमस्स आगमण-पदं ६७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए । ६८. परिसा निग्गया जाव' पडिगया ।। १. सं० पा०-इमेण जाव धम्मणिसंतए। २. जा (ग)। ३. सयमेव (क)। ४. णो (क)। ५. उवा० ११५७ । ६. सं० पा०-मारणतिय जाव कालं । ७. सुहेणं (क); सोभणेणं (ग)। ८. ° समुद्दे ण (क)। ६. ° सतियं (क, ख); ° सइयं (ग)। १०, सं० पा०-एवं दक्खिणे णं पच्चत्थिमे णं च । ११. लोलुयं अच्चुतं (ख)। १२. ओ० सू० ५२,७८-८० । Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (आणंदे) ४१५ ६९. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स जे?' अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे गोयमसगोत्ते णं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे कणगपुलगनिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे अोराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से छटुंछट्ठणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ७०. तए णं से भगवं गोयमे छटुक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बिइयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाई, पडिलेहेइ पडिलेहेत्ता भायणाई पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाइं उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे ?] छट्रक्खमणपारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्च-नीच-मज्झिमाई कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए। अहासुंह देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।। ७१. तए ण भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवनो महावीरस्स अतियाो दूइपलासापो चेइयायो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्ख मित्ता अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरनो रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाणियगामे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडइ ।। ७२. तए णं से भगवं गोयमे वाणियगामे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घर समुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे अहापज्जत्तं भत्तपाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेत्ता वाणियगामाग्रो नयराम्रो पडिणिग्गच्छइ, पडिणिग्गच्छित्ता कोल्लायस्स सण्णिवेसस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे बहुजणसई निसामेइ । बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइएवं खल देवाणप्पिया ! समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतेवासी आणंदे नाम समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिम' 'मारणंतिय-संलेहणा-झूसणा-झूसिए, भत्तपाणपडियाइक्खिए कालं० प्रणवकंखमाणे १. जेटे जहा पण्णत्तीए तहा भिक्खायरियाए ३. इरिय (क्व) । जाव अडमाणे (क, ग)। ४. सं० पा०-अपच्छिम जाव अणवकखमाणे। २. भायणवत्थाई (क्व)। Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसामो ७३. तए णं तस्स गोयमस्स बहुजणस्स अंतिए एयमटुं' सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे' अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-तं गच्छामि णं आणंदं समणोवासयं पासामि - एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे 'जणेव पोसहसाला, जेणेव पाणंदे समणोवासए", तेणेव उवागच्छइ ।। ७४. तए णं से आणंदे समणोवासए भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुटू-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण ° हियए भगवं गोयमं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी- एवं खलु भंते ! अहं इमेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठिचम्मावणः किडिकिडियाभूए किसे ° धमणिसंतए जाए, णो संचाएमि देवाणु प्पियस्स अंतियं पाउन्भवित्ता णं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादे (सु ? ) अभिवंदित्तए। 'तुब्भे णं भंते ! इच्छाक्कारेणं अणभित्रोएणं इनो चेव एह, जेणं देवाणु प्पियाणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदामि णमंसामि ॥ ७५. तए णं से भगवं गोयमे जेणेव पाणंदे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ । पाणंद-गोयम-संवाद-पदं ७६. तए णं से आणंदे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ णमंसइ, वदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-अत्थि णं भंते ! गिहिणो गिहमझावसंतस्स प्रोहिणाणे समुप्पज्जइ ? हंता अत्थि । जइ णं भंते ! गिहिणों गिहमज्झावसंतस्स अोहिणाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते ! मम वि गिहिणो गिहमज्भावसंतस्स अोहिणाणे" समुप्पण्णे-पुरत्थिमे णं लवणसमुद्दे पचजोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंत वासधरपव्वयं जाणामि पासामि । उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणामि पासामि । १. एवं (ख)। ५. सं० पा०-उरालेणं जाव धमणिसंतए। २. अतमेथारूवे (क); अय इमेयारूवे (ख)। ६. इच्छाकारेणं (घ)। ३. जेणेव आणंदे समणोवासए जेणेव पोसहसाला ७. अभियोगेणं (क,ख) । (क, ख, ग, घ); महाशतकाध्ययने-'जेणेव ८. जा णं (क,ख,ग); जहा णं (घ)। महासयगस्स समणोवासगस्स गिहे जेणेव ६. सं० पा० -गिहिणो जाव समुप्पज्जइ । महासयए समणोवासए' अयं क्रमो विद्यते। १०. प्रोहिण्णाणे (ग)। अत्राप्यसौ क्रमो युज्यते । ११. सं० पा०-पंचजोयणसयाई जाव लोलुय४. सं० पा०-हट्ठतृट्ठ जाव हियए। च्चुयं । Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (आणंदे) ४१७ अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए ° लोलुयच्चुतं' नरयं जाणामि पासामि । . तए णं से भगवं गोयमे पाणंदं समणोवासयं एवं वयासी-अत्थि णं आणंदा ! गिहिणो' गिहमज्झावसंतस्स ओहिणाणे समुपज्जइ । नो चेव णं एमहालए। तं णं तुमं आणंदा ! एयस्स ठाणस्स पालोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणाए अब्भुट्टाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि ॥ ७८. तए णं से आणंदे समणोवासए भगवं गोयमं एवं वयासी–अत्थि णं भंते ! जिणवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं भावाणं आलोइज्जइ' निदिज्जइ गरिहिज्जइ विउट्टिज्जइ विसोहिज्जइ अकरणयाए अब्भुद्धिज्जइ पडिक्कमिज्जइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं ° पडिवज्जिज्जइ ? नो इणटे समढ़े। जइ णं भंते ! जिणवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं° भावाणं नो आलोइज्जइ 'नो पडिक्कमिज्जइ नो निदिज्जइ नो गरिहिज्जइ नो विउट्टिज्जइ नो विसोहिज्जइ अकरणयाए नो अब्भुट्ठिज्जइ अहारिहं पायच्छित्तं ° तवोकम्मं नो पडिवज्जिज्जइ, तं णं भंते ! तुब्भे चेव एयस्स ठाणस्स आलोएह' •पडिक्कमेह निदेह गरिहेह विउट्टेह विसोहेह अकरणाए अब्भुढेह अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं ° पडिवज्जेह ॥ तए णं से भगवं गोयमे आणं देणं समणोवासएणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छसमावण्णे पाणंदस्स समणोवासगस्स अंतियानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव दूइपलासे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे", तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवनो महावीरस्स अदरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमइ, पडिक्कमित्ता एसणमणेसणं आलोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदंसित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता ७६. १. लोलूयं अच्चूतं (ख)। ५. सं० पा०-आलोइज्जइ जाव पडिवज्जि२. सं० पा०-गिहिणो जाव समुप्पज्जइ। ज्जइ।। ३, सं० पा०-आलोएहि जाव तवोकम्म । प्रत्र ६. सं० पा० --संताणं जाव भावाण; सच्चाणं स्थानांगे प्रस्तुतवृत्तौ च किञ्चित् पाठभेदो विद्यते-पायच्छित्तं तवोकम्म (स्थानांग ७. सं० पा०- आलोइज्जइ जाव तवो कम्म । ३।३३८) तवोकम्मं पायच्छित्तं (वृत्ति ८. तवे ° (क) । अध्ययन ३) प्रतिष 'आलोएहि जाव तवो- ६. सं० पा०-आलोएह जाव पडिवज्जेह। कम्म' इति पाठसंक्षेपो लभ्यते, तेन स्थानां- १०. पडिवज्जह (क,ख,घ)। गानुसारी पाठ एव मूले स्वीकृतः । ११. वितिगिछ° (क); वितिगिच्छा ° (ख,घ ४. सच्चाणं (क), संभासे (ख) । १२. महावीरे जाव भत्तपाणं (ग)। Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ उवसगदाओ एवं वयासी - एवं खलु भंते ! अहं तुम्भेहिं ग्रम्भणुष्णाए' समाणे वाणियगामे art भिक्खायरियाए ग्रडमाणे ग्रहापज्जत्तं भत्तपाणं पडिग्गाहेमि, पडिग्गाहेत्ता वाणियगामाश्रो नयराम्रो पडिणिग्गच्छामि, पडिणिग्गच्छित्ता कोल्लायस्स सण्णिवेसस्स दूरसामंतेणं वीईवयमाणे बहुजणसद्दं निसामेमि । बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ - एवं खलु देवाप्पिया ! समणस्स भगवो महारवीस्स अंतेवासी आणंदे नामं समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिममारणं तियसंलेहणा - भूसणा-भूसिए भत्तपाण -पडियाइक्खिए कालं श्रणवकखमाणे विहरइ । तणं मम बहुजणस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म प्रयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - तं गच्छामि णं आणंद समणोवासयं पासामि एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे, जेणेव पोसहसाला, जेणेव आणंदे समणोवासए तेणेव उवागच्छामि । तए णं से आणंदे समणोवासए ममं एज्जमाणं पासइ, पासिता हट्ट तुट्ठचित्तमादिए पी मणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाणहियए ममं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी एवं खलु भंते ! ग्रहं इमेणं प्रोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लक्खे निम्मंसे ग्रचिम्मावणद्धे fasasara fre धमणिसंतए जाए, जो संचाएमि देवाणुप्पियस्स अंतियं पाउ भवित्ताणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादे [सु ? ] अभिवंदित्तए । तुब्भे णं भंते ! इच्छक्कारेणं अणभियोगेणं इश्रो चेव एह, जेणं देवाणुप्पियाणं तिक्खुत्तो मुद्भाणं पादे वंदामि णमसामि । तणं ग्रह जेणेव प्राणंदे समणोवासए, तेणेव उवागच्छामि । तए णं से प्राणंदे समणोवास ममं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - प्रत्थि णं भंते! गिहिणो गिहमज्भावसंतस्स प्रोहिणाणे समुप्पज्जइ ? हंता प्रत्थि । जइ णं भंते ! गिहिणो हिमज्भावसंतस्स प्रोहिणाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते! ममवि गिहिणो गिहमज्भावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पण्णे- पुरत्थि मे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । दविखणे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि । उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणामि पासामि । ग्रहे जाव १. सं० पा० - अब्भणुण्णाए तं चैव सव्वं कहेइ जाव । Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (आणंदे) ४१६ इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीतिवाससहस्सद्वितियं जाणामि पासामि। तए णं अहं पाणंदं समणोवासयं एवं वइत्था-अत्थि णं आणंदा ! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पज्जइ। नो चेव णं एमहालए । तं णं तुम आणंदा ! एयस्स ठाणस्स पालोएहि जाव' अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि। तए णं से पाणंदे ममं एवं वयासी–अत्थि णं भंते ! जिणवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं भावाणं आलोइज्जइ जाव' अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जिज्जइ ? नो इणटे समढे। जइ णं भंते ! जिणवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं भावाणं नो आलोइज्जइ जाव' अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं नो पडिवज्जिज्जइ, तं णं भंते ! तुब्भे चेव एयस्स ठाणस्स पालोएह जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेह ° ॥ ८०. तए णं अहं पाणंदेणं समणोवासएणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए विति गिच्छसमावण्णे आणंदस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पडिणिक्खमामि, पडिणिक्खमित्ता जेणेव इहं तेणेव हव्वमागए। 'तं णं भंते ! किं पाणंदेणं समणोवासएणं तस्स ठाणस्स आलोएयव्वं पडिक्कमेयव्वं निदेयव्वं गरिहेयव्वं विउट्टेयव्वं विसोहेयव्वं अकरणयाए अब्भुट्टेयव्वं अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेयव्वं ? उदाहु मए ? भगवो उत्तर-पदं ८१. गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एव वयासी-गोयमा ! तुम चेव णं तस्स ठाणस्स आलोएहि जाव' 'अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° पडिवज्जाहि, पाणंदं च समणोवासयं एयमटुं खामेहि ॥ गोयमस्स खामणा-पदं ८२. तए णं से भगवं गोयमे समणस्स भगवो महावीरस्स तह त्ति एयमद्वं विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स अोलाएइ पडिक्कमइ निदइ गरिहइ १. उवा० ११७७ । २,३,४. उवा० ११७८ । ५. तए णं (ख); ते णं (घ)। ६. संपा०-आलोएयव्वं जाव पडिवज्जेयव्वं । ७. सं० पा०-पालोएहि जाव पडिवज्जाहि । ८. उवा० ११७७ । ९. सं० पा०-आलोएइ जाव पडिवज्जइ। Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० उवासगदसाओ विउट्ट इ विसोहइ प्रकरणयाए अब्भुट्ठइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं ° पडिवज्जइ, आणंदं च समणोवासयं एयमढें खामेइ ॥ भगवनो जणवयविहार-पदं ८३. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ बहिया जणवयविहार' विहरइ ।। आणंदस्स समाहिमरण-पदं ८४. तए णं से आणंदे समणोवासए बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमानो सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं' असित्ता, सर्द्धि भत्ताई' अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरथिमे णं 'अरुणाभे विमाणे" देवत्ताए उववण्णे। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं पाणंदस्स वि देवस्स चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ८५. आणंदे णं भंते ! देवे ताओ" देवलोगारो आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ॥ निक्खेव-पदं ८६. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ° ॥ १. जणवतं विहारं (घ)। २. अप्पाणं (ग)। ३. भत्ताति (क, ग)। ४. वडिंसगस्स (घ)। ५. अरुणे विमाणे (क);अरुणेहिं विमाणेहिं (ख) । ६. तत्थ णं आणंदे (क)। ७. ततो (ख)। ८. देवलोगलोगाओ (क)। ६. सं० पा--निक्लेवो पढमस्स । Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं कामदेवे उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स' अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठ पण्णते? कामदेवगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी। पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया ।। ३. तत्थ णं चंपाए नयरोए कामदेवे नाम गाहावई परिवसइ-अड्ढे जाव' बहुजणस्स अपरिभूए॥ ४. तस्स णं कामदेवस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीअो निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीग्रो वड्डिपउत्ताओं', छ हिरण्णकोडीअो पवित्थरपउत्तानो, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था॥ ५. से णं कामदेवे गाहावई बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव" सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था । १. ना० १।१७। दसगोसाहस्सिएणं वएणं । २. वग्गस्स (क)। ४. उवा० ११११ । ३. सं० पा०-कामदेवे गाहावई। भद्दा भारिया। ५. ड्ढि (ख,घ)। छ हिरणकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वड्डि- ६. उवा० १११३ । पउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्वया ७. उवा० १११३ । ४२१ Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ उवासगदसायो ६. तस्स णं कामदेवस्स गाहावइस्स भद्दा नाम भारिया होत्था- अहीण-पडिपुण्ण __ पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ° ।। महावीर-समवसरण-पदं ७. २०तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ८. परिसा निग्गया ॥ ६. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ॥ १०. तए णं से कामदेवे गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे-“एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" तं महप्फलं खल भो! देवाणप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणु प्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयानो गिहारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं चंपं नयरि मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ॥ ११. तए णं समणे भगवं महावीरे कामदेवस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ । १२. परिसा पडिगया, राया य गए॥ १. उवा० १।१४ । २. सं० पा०--समोसरणं जहा आणंदो तहा निग्गयो। तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ। सा चेव वत्तव्वया जाव जेट्ठपुत्तं । ३. ओ० सू० १६,२२ । ४. ओ० सू० ५३-६६ । ५. ओ० सू०७१-७७ । Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभय (कामदेवे ) कामदेव गिहिधम्म- पडिवत्ति-पदं १३. तए णं कामदेवे गाहावई समणस्स भगवप्रो महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ- चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाणहिए उठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो श्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं व्यासो - सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं प्रभुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते! प्रवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा गं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर - माडंबिय कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठिसेणावइ-सत्थवाहपभिइया मुंडा भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचारमि मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइत्तए । ग्रहं णं देवापियाति पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं - दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवज्जिस्सामि । ग्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि || १४. तए णं से कामदेवे गाहावई समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए' सावयधम्मं परिवज्जइ ॥ भगवो जणवयविहार-पदं १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ चंपाए नयरीए पुण्णभद्दाश्रो चेया पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ कामदेवस्स समणोवासग-चरिया-पदं १६. तए णं से कामदेवे समणोवासए जाए - अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण- पाण -खाइम साइमेणं वत्थ-पडिग्गह- कंबल - पायपुंछणेणं ओसह-भेज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ - फलग - सेज्जा संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरs || ४२३ भद्दा समणोवासिय चरिया-पदं १७. तए णं सा भद्दा भारिया समणोवासिया जाया - अभिगयजीवाजीवा जाव समणे निग्गंथे फासू- एसणिज्जेणं असण पाण- खाइम - साइमेणं वत्थ - पडिग्गह १. पू० - उवा० १।२४-५३ । २. उवा० ११५५ ३. उवा० ११५६ । Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ उवासगदसाओ कंबल-पायपुंछणेणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पोढ-फलग-सेज्जा-संथार एणं पडिलाभेमाणी विहरइ । कामदेवस्स धम्मजागरिया-पदं १८. तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स उच्चावएहि सील-व्वय-गुण-वेरमण पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावमाणस्स चोद्दस संवच्छराई वीइक्कंताई। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं चंपाए नयरीए बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्डावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवो महावीरस्स प्रतिय धम्मपण्णोत्त उवसपज्जित्ता ण विहारत्तए। है. तए णं से कामदेवे समणोवासए° जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता' 'सयानो गिहारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता चपं नयरिं मज्झमज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मूक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए° समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ कामदेवस्स पिसायरूव-कय-उवसग्ग-पदं २०. तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे मायी मिच्छदिट्ठी' अंतियं पाउन्भूए ।। २१. तए णं से देवे एगं महं पिसायरूवं विउव्वइ । तस्स णं दिव्वस्स' पिसायरूवस्स इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते-सीसं से गोकिलंज-संठाण-संठियं', सालि १,२. उवा० १।१३। ५. मिच्छा ° (क,घ)। ३. पू०-उवा० १२५७-५६ । ६. देवस्स (ख,घ)। ४. सं० पा०--आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला ७. पुस्तकान्तरे विशेषणांतरमुपलभ्यते - तेणेव उवागच्छइ, २त्ता जहा आणंदो जाव 'विगयकप्पयनिभं', क्वचित्तु, 'वियडकोप्परसमणस्स। निभं' (वृ)। Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (कामदेवे) ४२५ भसेल्ल-सरिसा से केसा कविलतेएणं' दिप्पमाणा, 'उट्टिया-कभल्ल-संठाण-संठियं'२ निडालं, मुगुंसपुच्छं व तस्स भुमकानो फुग्गफुग्गाओ' विगय-बीभत्स'दंसणाओ, सीसघडिविणिग्गयाइं अच्छीणि विगय-बीभत्स-दसणाई, कण्णा जह सुप्प-कत्तरं चेव विगय-बीभत्स -दंसणिज्जा, उरब्भपुडसंनिभा से नासा, झुसिरा जमल-चुल्ली-संठाण-संठिया दो वि तस्स नासापुडया", 'घोडयपुच्छं" व तस्स मंसूई कविल-कविलाई विगय-बीभत्स-दसणाइं, 'उटा उस्स चेव लंबा १६, फालसरिसा से दंता, जिब्भा जह सुप्प-कत्तरं चेव 'विगय-बीभत्सदंसणिज्जा", हल-कुड्डाल-संठिया से हणुया, गल्ल-कडिल्लं व तस्स खड्डे फुट्ट 'कविलं फरुसं महल्लं", मुइंगाकारोवमे से खंधे, पुरवरकवाडोवमे से वच्छे, कोट्ठिया-संठाण-संठिया दो वि तस्स बाहा, निसापाहाण-संठाण-संठिया दो वि तस्स अग्गहत्था, निसालोढ-संठाण-संठियाप्रो हत्थेसु अंगुलीयो, सिप्पि-पुडगसंठिया से नखा", पहाविय-पसेवनो" व्व उरम्मि" लंबंति दो वि तस्स थणया, पोट्टं प्रयकोटयो व्व वढू, 'पाण-कलंद'२-सरिसा से नाही", सिक्कग-संठाणसंठिए से नेत्ते, किण्णपुड-संठाण-संठिया दो वि तस्स वसणा, जमल-कोट्टिया १. कविला तेएण (क,ग,घ)। (वृपा)। २. महल्लउदिया ० (क,ख,ग); महल्लउट्रिया- १५. वृत्तावत्र अतिरिक्तपाठस्य उल्लेखोस्ति, कभल्लसरिसोवमं (वृषा)। पाठान्तरे-'हिंगुलयधाउकंदरबिलं व तस्स ३. भुमगाग्रो (ख); भुम्मकाओ (घ)। वयणं'। ४. फग्गुपुग्गाओ (क); जडिलजडिलाओ, १६. कुडा (क); कुडाल (ख); कूडा (ग); ____ जडिल कुडिलानो (वृपा)। कुद्दाल (घ)। ५. बीभच्छ (ख,घ)। १७. खंडं (क,ख)। ६. बीभच्छ (ख,घ)। १८. कविलफरुसं महल्लं (क,ग); कविलफरिस७. जहा (ख)। महल्लं (घ)। ८. बीभच्छ (ख,घ)। १६. नहा (ख); नक्खा (ग,घ); वाचनान्तरे तु ६. हुरप्पपुडसंठाणसंठिया (वपा)। इदमपरमधीयते-अडियालसंठिमो उरो १०. वत्तावत्र अतिरिक्तपाठस्य उल्लेखोस्ति, तस्स रोमविलो (ब)। वाचनान्तरे ---महल्लकुब्ब [कुच्च] संठिया दो २०. पसेवउ (क)। वि से कवोला। २१. उरंसि (ख,घ)। ११. ° पुंछ (क्व)। २२. पाणालंद (क,ग)। १२. बीभच्छ (ख,घ)। २३. नाभी (क,घ); वाचनान्तरेऽधीतं-भग्गकडी १३. घोडयपुच्छ व तस्स कविलफरुसाओ उड्ढलो विगयवंकपिट्ठी असरिसा दो वि तस्स मानो दाढियाओ (वपा)। फिसगा (वृ)। १४. उट्टा से घोडगस्स जह दोवि विलंबमाणा Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ संठाण-संठिया दो वि तस्स ऊरू, 'अज्जुण-गुटुं' व तस्स जाणूई कुडिल-कुडिलाई विगय-बीभत्स-दसणाई, जंघाओ कक्खडीओ लोमेहि उवचियानो, अहरीसंठाण-संठिया दो वि तस्स पाया, प्रहरी-लोढ-संठाण-सठियानो पाएसु अंगुलीयो, सिप्पि-पुडसंठिया से नखा॥ लडह-मडह-जाणुए, विगय-भग्ग-भुग्ग-भुमए', अवदालिय-वयण-विवरनिल्लालियग्गजाहे. सरड-कयमालियाए 'उंदरमाला-परिणद्ध-सकचिधे, नउल-कयकण्णपूरे, सप्प-कयवेगच्छे', अप्फोडते, अभिगज्जते, भीम-मुक्कट्टहासे', 'नाणाविह-पंचवण्णेहिं लोमेहि उवचिए" एग महं नीलुप्पल-गवलगुलियअयसिकुसुमप्पगासं खुरधार असि गहाय जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-हभो! कामदेवा ! समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया ! दुरंत-पंत-लक्खणा ! हीणपुण्णचाउद्दसिया ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया ! सग्गकामया ! मोक्खकामया ! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकंखिया ! मोक्खकखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई" वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुम अज्ज सीलाइं" 'वयाई वेरमणाइ पच्चक्खाणाइं° पोसहोववासाइं न छड्डेसि" न भंजे सि, 'तो तं" अहं अज्ज इमेणं नीलुप्पल- गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण ° असिणा खंडाखंडिं करेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया" ! अट्ट-दुहट्ट१. प्रज्जुणागुलु (क)। ८. भीममुवकअट्टहासे (ख,घ)। २. नक्खा (ग,घ)। ६. ४ (क)। ३. जण्णुए (क)। १०. आसुरुते (क)। ४. इह अन्यदपि विशेषणचतुष्टयं वाचनान्तरे तु ११. ° पत्थया (क)। अभिधीयते-मसिमूसगमहिसकालए भरिय- १२. दुरंत ४ जाव परिवज्जिया (क,ग)। मेहवन्ने लंबोटे निगयदंते (वृ)। १३. जं सीलाइं (क्व)। ५. निद्दालिय अग्गजीहे (ख)। १४. सं० पा० - सीलाई जाव पोसहोववासाई । ६. उल (क)। १५. छड्डुसि (ख); छंडेसि (घ)। ७. पाठान्तरेण-सप्पकयवेगच्छे मूसगकयभूभ- १६. भंजसि (क)। लए विच्छ्य कयवेयच्छे सप्पकयजण्णोवईए १७. तो ते (क,ग,घ); तो (ख) । अभिन्न मुहनयणनखवरवरचित्तकत्तिनियंसणे १८. सं० पा०-नीलुप्पल जाव असिणा । (व)। १६. ४(क,ख)। Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२७ बीअं अज्झयणं (कामदेवे) __ वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। २३. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं' पिसायरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए अतत्थे अणुव्विग्गे अखुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ ॥ २४. तए णं से दिव्वे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं' 'अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीय° धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुम अज्ज सीलाई 'वयाइं वेरमणाई, पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडिं करेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव ° जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ॥ २५. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं पिसायरूवेणं दोच्चं पि तच्चं पि ___ एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ।। २६. तए णं से दिव्वे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे तिवलियं भिउडि निडाले साहट्ट कामदेवं समणोवासयं नीलुप्पल- गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण ° असिणा खंडाखंडि करेइ॥ २७. तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्ख ° दुरहियासं वेयणं सम्म सहइ 'खमइ तितिक्खइ° अहियासेइ ।। कामदेवस्स हत्थिरूव-कय-उवसग्ग-पदं २८. तए णं से दिव्वे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्ग अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं° विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे" नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथानो पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं १. देवेण (ख,घ)। ७. उवा० २।२४ । २. देवेणं (ख,घ)। ८. तिउडियं (क)। ३. सं० पा०-अभीयं जाव धम्मज्झाणोवगयं । ६. सं० पा० -नीलूप्पल जाव असिणा। ४. उवा०२।२२। १०. सं० पा०-उज्जलं जाव दुरहियासं। ५. सं० पा० --सीलाई वयाइं न छड्डेसि तो ११. सं० पा०-सहइ जाव अहियासेइ । जीवियाओ। १२. सं० पा०-अभीयं जाव विहरमाणं । ६. उवा०२।२३। १३. जाव (ग,घ,) अशुद्धं प्रतिभाति । Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ उवासगदसाओ सणियं पच्चोसवकइ, पच्चीसविकत्ता पोसहसालारो पडिणिवखमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ', विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइ-सत्तंगपइट्ठियं सम्म संठियं सुजातं पुरतो' उदग्गं पिटुतो वराह' अयाच्छि अलंबकुच्छि पलंब-लंबोदराधरकर अब्भुग्गय-मउल-मल्लियाविमल-धवलदंतं कंचणकोसी-पविट्रदंतं आणामिय'-चाव-ललिय-संवेल्लियग्गसोंडं कुम्म-पडिपुण्ण चलणं वीसतिनखं अल्लीण-पमाणजुत्तपुच्छं मत्तं मेहमिव गुलगलेतं मण-पवण-जइणवेग-- दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो! कामदेवा! समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया ! दुरंत-पंत-लक्खणा ! हीणपुण्णचाउद्दसिया ! सिरि-हिरिधिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया ! सग्गकामया ! मोक्खकामया! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकंखिया ! मोवखकखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! नो खल कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि ° न भंजेसि, तो तं 'अहं अज्ज''० सोडाए गेण्हामि, गेण्हित्ता पोसहसालानो नीणेमि, नीणेत्ता उड्ढे वेहासं उव्विहामि, उव्विहित्ता तिक्खेहि दंतमुसलेहि पडिच्छामि, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुम देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ॥ २१. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए प्रतत्थे अणुविग्गे अखुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्झाणो वगए° विहरइ ।। ३०. तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं२ 'अतत्थं अणुव्विग्गं १. विप्पहयंति (क) सर्वत्र; विप्पयहती (ग) ७. गुलगुलेंतं (घ) सर्वत्र। ८. सं० पा०-समणोवासया तहेव भणइ जाव २. पुरओ (क)। न भंजेसि । ३. वसहं (ग)। ६. x (क,ख,ग,घ)। ४. x (क,ग); अइया (अजिया) कुच्छी १०. अज्ज अहं (क,ख,ग,घ)। (ना० १११११५६)। ११. सं० पा०--अभीए जाव विहरइ । ५. अणोमिय (क)। १२. सं० पा०-अभीयं जाव विहरमाणं । ६. ° नक्खं (ग)। Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीग्रं अज्झयणं (कामदेवे) ४२९ अखुभियं प्रचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! कामदेवा' ! 'समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं सोंडाए गेण्हामि, गेण्हेत्ता पोसहसालानो नीणेमि, नीणेत्ता उड्ढं वेहासं उविहामि, उविहित्ता तिक्खेहिं दंतमुसलेहिं पडिच्छामि, पडिच्छेत्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ॥ ३१. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' ० विहरइ ॥ ३२. तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता श्रासुरत्ते रुद्रे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवं समणोवासयं सोंडाए गेण्हेति', गेण्हित्ता उड्ढं वेहासं उव्विहइ', उवि हित्ता तिखेहि दंतमुसलेहि पडिच्छइ, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेइ ।। ३३. तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं 'विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ ° अहियासेइ। कामदेवस्स सप्परूव-कय-उवसग्ग-पदं ३४. तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथानो पावयणायो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते. सणियं-सणियं पच्चोसक्कड, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमड पडिणिक्खमित्ता दिव्वं हत्थिरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं सप्परूवं विउब्वइ-उग्गविसं चंडविसं घोरविसं महाकायं मसीमूसाकालगं नयणविसरोसपुण्णं अंजणपुंज-निगरप्पगासं रत्तच्छं लोहियलोयणं जमलजुयलचंचलचलंतजीह धरणीयलवेणिभूयं उक्कड-फुड-कुडिल-जडिल-कक्कस-वियड १. सं० पा-कामदेवा तहेव जाव सो वि विहरइ। २. उवा०२।२२ । ३. उवा० २।२३। ४. उवा० २।२४ । ५. गिण्हइ (ख,घ)। ६. उव्वहइ (क)। ७. सं० पा०-उज्जलं जाव अहियासेइ । ८. सं० पा०-संचाएइ जाव सणियं । ६. उग्गविसं दिदिविसं जाव सप्परूवं (क,ग); उगविसं दिदिविसं (घ)। १०. चंचलजीहं (ख)। Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० फडाडोवकरणदच्छं लोहागर-धम्ममाण-धमधमेंत घोसं णागलियदिव्वपचंडरोसंदिव्वं सप्रूवं विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया' ! ग्रप्पत्थियपत्थिया ! दुरंत-पंत- लक्खणा ! हीणपुणच उसिया । सिरि-हिरि - धिइ कित्ति-परिवज्जिया ! धम्मकामया पुण्णकामया ! सग्गकामया ! मोक्खकामया ! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया सग्गकखिया ! मोaai खिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुम जसीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि ° न भंजेसि, तो ते अज्जेव ग्रहं सरसरस्स कायं दुरुहामि दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेमि, वेढित्ता तिक्खाहि विसपरिगताहिं दाढाहिं उरंसि चेव निकुट्टेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट दुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि || ० ३५. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं सप्परूवेणं एवं वृत्ते समाणे श्रभीए * ● तत्थे विग्गे अखुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्झाणो गए विहरइ || ३६. "तए गं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं प्रणुव्विग्गं अभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो ! कामदेवा । समणोवासया ! जाव' जइ गं तुमं प्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रज्जेव ग्रहं सरसरस्स कार्य दुरुहामि, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेमि, वेढित्ता तिक्खाहिं विसपरिगताहिं दाढाहिं उरंसि चेव निकुट्टेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे काले चेव जीवियाश्रो ववरोविज्जसि ॥ उवासगदमाओ ३७. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं सप्परूवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभी जाव० विहरइ || १. सं० पा० - समणोवासया जाव न भंजेसि । २. भंजसि (क,ग) । ३. विसमपरिगताई (क) 1 ४. सं० पा० - अभीए जाव विहरइ । ५. सं० पा० सो वि दोच्चं पि तच्चं पि भणइ, कामदेवो वि जाव विहरइ । ६. उवा० २।२२ । ७. उवा० २।२३ । Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अभयणं (कामदेवे ) ४३१ ३८. तए णं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता सुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवस्स सरसरस्स कार्य दुरूह, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेइ, वेढित्ता तिक्खाहिं विपरिगताहि दाढाहिं उरंसि चेव निकुट्टेइ || ३६. तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं "विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ || देवरूव विव्वण-पदं ४०. तए णं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं तत्थं अणुव्विग्गं खुभयं चलियं असंतं तुसिणीयं धम्मज्भाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेव समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियंसणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसाला पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्तादिव्वं सप्रूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउब्वाइ हार-विराइय-वच्छं "कडग-तुडिय-थंभियभुयं श्रंगय-कुंडल- मट्ठ- गंड- कण्णपीढधारि विचित्तहत्याभरणं विचित्तमाला - मउलि-मउडं कल्लाणग-पव रवत्थपरिहियं कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणं भासुरबोंदि पलंबवणमालधरं दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघाएणं दिव्वेण संठाणेणं दिव्ory इड्डीए दिव्वाए जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाग्रो उज्जोवेमाणं पभासेमाणं पासाई' 'दरिस णिज्जं प्रभिरूवं पडिरूवं - दिव्वं देवरूवं विउव्वित्ता" कामदेवस्स समणोवासयस्स पोसहसाल अणुप्पविसर, प्रणुष्पविसित्ता अंतलिक्खपडिवणे सखिखिणियाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए कामदेव समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! घण्णेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! पुणेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयत्थेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयलक्खसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! सुलद्धे णं तव देवाणुप्पिया ! माणुस्सए जम्मजीवियफले, जस्स णं तव निग्गंथे पावयणे इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया । o ० १. उवा० २।२४ । २. सं० पा० – उज्जलं जाव अहियासेइ । ३. सं० पा० - अभीयं जाव पासइ । ४. सं० पा०-हारविराइयवच्छं जाव दस दिसाओ । ५. ६. पासति ( ख ) । X ( ख ) । ७. संपुणे (क, ग ) । सं० पा० - पुणे कयत्थे कलक्खणे सुद्धे । o Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ उवासगदसाओ एवं खलु देवाणुप्पिया ! सक्के देविदे देवराया' वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासणे दाहिणड्डलोगाहिवई बत्तीस-विमाण-सयसहस्साहिवई एरावणवाहणे सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइय-मालमउडे नव-हेम-चारुचित्त-चंचल-कुंडल-विलिहिज्जमाणगंडे भासुरबोंदी पलंबवणमाले सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे सभाए सोहम्माए° सक्कंसि सीहासणंसि चउरासीईए सामाणियसाहस्सीण', 'तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसोणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, चउण्हं चउरासीणं आयरक्ख-देवसाहस्सीणं °, अण्णसि च बहणं देवाण य देवीण य मझगए एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ-एवं खलु देवा ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए कामदेवे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी' 'उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ । नो खलु से सक्के केणइ देवेण वा 'दाणवेण वा' जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथानो पावयणाश्रो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा। तए णं अहं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एयमटुं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे इहं हव्वमागए । तं अहो णं देवाणुप्पियाणं इड्डी जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे 'लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए। तं दिवा णं देवाणुप्पियाणं इड्डी' 'जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्ते ० अभिसमण्णागए। तं खामेमि णं देवाणप्पिया ! खमंतु णं देवाणप्पिया ! खंतुमरिहंतिणं देवाणुप्पिया! नाइं भुज्जो करणयाए त्ति कट्ठ पायवडिए पंजलिउडे' एयमटुं भुज्जो-भुज्जो खामेइ, खामेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं पडिगए ॥ कामदेवस्स पडिमा-पारण-पदं ४१. तए णं से कामदेवे समणोवासए निरुवसग्गमिति कटु पडिमं पारेइ ।। १. देवराया सतक्कत जाव सकसि (क); देव- ५. दाणवेण वा जा गंधव्वेण वा (क); दाणवेण रोया सतक्कतं जाव सक्कंसि (ग); वा गंधव्वेण वा (ग)। सं० पा०--देवराया जाव सक्कंसि । ६. लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया (क्व)। २. सं० पा०-साहस्सीणं जाव अण्णेसि । ७. सं० पा०-इड्ढी जाव अभिसमण्णागए। ३. सं० पा०-बंभचारी जाव दब्भसंथारोवगए। ८. मरुहंती (क)। ४. सक्का (क, ख, ग, घ)। ६. पंजलियडे (क)। Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (कामदेवे) ४३३ कामदेवस्स भगवनो षज्जुवासणा-पदं ४२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे • विहरइ ॥ ४३. तए णं से कामदेवे समणोवासए इमीसे कहाए लद्धटे समाणे – “एवं खलु समणे भगवं महावीरे' 'पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरोए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे • विहरइ।” तं सेयं खलु मम समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता ततो पडिणियत्तस्स पोसह पारेत्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता [पोसहसालारो पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता ?] सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए मणस्सवगुरापरिक्खित्ते सयानो गिहारो पडिणिक्खमित्ता चंप नरि मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए', जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए° पज्जुवासइ॥ १. सं० पा० -- महावीरे जाव विहरइ । मणुस्सवग्गुरा (ग); प्रतिषु ऊर्व मुटुंकित: २. ओ० सू० १६,२२ । पाठो विद्यते, किन्तु नासौ प्रसंगानुसारी प्रति३. सं. पा०---महावीरे जाव विहर इ । भाति । कामदेवः संप्रति पौषधिको वर्तते । ४ 'संपेहेत्ता' इति पाठस्याग्रे कोष्ठ कान्तर्गतपाठो अतएव 'अप्पमहग्घाभरणालकियसरीरे' नासौ युज्यते । १६ मूत्र-'पयाओ गिहायो पाठः पोषधावस्थायां संगच्छते। शंखधावपडिणिक्वमइ, पडिणिक व मित्ता चंप नयरि केणापि पोषधावस्थायां भगवतो दर्शनं कृतम्। मझमझेणं निगच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव तत्र 'सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई पवर पोस हसाला, तेणेव उवागच्छइ, इति पाठोस्ति, परिहिए', (भगवती १२।१५) एतावान् एव तेन अवापि 'पोपहसालाओ पडिणिक्खमित्ता' पाठो विद्यते । भगवतीवृत्तावपि एतावतः, एष पाठः आवश्यकोस्ति । भगवती (१२।१५) पाठस्यैव व्याख्या समुपलभ्यते । प्रस्तुताध्ययने सत्रेपि इत्यमेव पाठयोजना विद्यते--पोसह- (सू० १६) 'उम्मुक्कमणिसुवण्णे' एव पाठोसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता स्ति, तदा आभरणालंकरणं कथं प्रासंगिक सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिए स्यात् ? असावत्र प्रवाहरूपेणं आयातः इति साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ । संभाव्यते। ५. सुद्धप्पा अप्प मणुस्सवग्गुरा (क); सुद्धप्प- ६. चंपा (ख)। वेसाई अप्यमहरघा मणु स्सवग्गुरा (ख, घ); ७. सं० पा०-चेइए जहा संखे जाव पज्जुवासइ। सूद्धपावेसाइंवत्थाई अप्पमहग्घाई जाव अप्प Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ उवासगदसाओ ४४. तए णं समणे भगवं महावीरे कामदेवस्स समणोवासयस्स तीसे य' महइमहालियाए परिसाए जाव धम्मं परिकहेइ ॥ o भगवया कामदेवस्स उवसग्ग- वागरण-पदं ४५. कामदेवाइ ! समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी - से नूणं कामदेवा ! तुब्भं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउ भए । तणं से देवे एगं महं दिव्वं पिसायरूवं विउब्वइ, विउव्वित्ता ग्रासुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल - गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं° ग्रसिं गहाय तुमं एवं वयासी हंभो ! कामदेवा' ! • समणोवासया ! जाव' जइ गं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चवखाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं श्रज्ज ग्रहं इमेणं नीलुप्पलगवलगुलिय-यसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण प्रसिणा खंडाखंडि करेमि, जहा तुमं देवाप्पिया ! अट्ट दुहट्ट - वसट्टे ग्रकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । ० तुमं तेणं दिव्वेणं पिसायरूवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि । तणं से दिव्वे पिसायरूवे तुमं अभीयं जाव पासइ पासित्ता दोच्चं पि तच्च पितुमं एवं वयासी - हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! जाव" जइ णं तुमं श्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं ग्रहं ग्रज्ज इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-प्रयसि कुसुमप्पगासेण खुरधारेण प्रसिणा खंडाखंडि करेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! ग्रट्ट दुहट्टवसट्टे काले चेव जो विया ववरोविज्जसि । तणं तुमे तेणं दिव्वेणं पिसायरूवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभी जाव" विहरसि । तसे दिव्वे पिसायरूवे तुमं अभीयं जाव" पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुट्ठे afar is free मिसिमिसीयमाणे तिवलियं भिउडि निडाले साहट्टु तुमं १. सं० पा० - तीसे य जाव धम्म कहा सम्मत्ता | २. प्रो० सू० ७१-७७ । ३. पिसातरूवं ( ग ) । ४. सं० पा० - नीलुप्पल जाव असि । ५. सं० पा०कामदेवा जाव जीवियाओ । ६. उवा० २।२२ । ७. उत्रा० २।२३ । ८. सं० पा० - एवं वण्णगरहिया तिण्णि वि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ । ६. उवा० २।२४ । १०. उवा० २।२२ । ११. उवा० २।२३ । १२. उवा० २।२४ । Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (कामदेवे) ४३५ नीलुप्पल-गवलगुलिय-प्रयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडिं करेइ। तए णं तुमे तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्मं सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि। तए णं से दिव्वे पिसायरूवे तुमं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ, तुमं निग्गंथाओ पावयणायो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाप्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्ख मित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइ, विउवित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव तुमे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुमं एवं वयासी हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज सोंडाए गेण्हामि, गेण्हित्ता पोसहसालानो नीणेमि, नीणेत्ता उड्ढं वेहासं उठिवहामि, उव्विहित्ता तिक्खेहि दंतमुसलेहि पडिच्छामि, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ।। तए णं तुमे तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरसि । तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे तुमं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि तुमं एवं वासी-हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डुसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं सोंडाए गेण्हामि, गेण्हित्ता पोसहसालाप्रो नीणेमि, निणित्ता उड्ढं वेहासं उव्विहामि, उविहित्ता तिक्खेहिं दंतमुसलेहिं पडिच्छामि, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुम देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । तए णं तुमे तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि। तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे तुमं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुद्र कविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे तुमं सोंडाए गेण्हति, गेण्हित्ता उडढं वेहासं उव्विहइ, उविहित्ता तिक्वेहि दंतमुसलेहि पडिच्छइ, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेइ । १. उवा० २।२७ । २. उवा० २।२४ । ३. उवा० २।२२। ४. उवा० २।२३ । ५: उवा० २।२४ । ६. उवा० २।२२। ७. उवा० २।२३ । ८. उवा० २।२४ । Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ उवासगदसाओ तए णं तुमे तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्मं सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि। तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे तुम अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएति निग्गंथाम्रो पावयणायो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाग्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं हत्थिरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं सप्परूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव तुमं, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुमं एवं वयासी-हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अज्जव अहं सरसरस्स कायं दुरुहामि, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेमि, वेढित्ता तिक्खाहिं विसपरिगताहिं दाढाहिं उरंसि चेव निकुट्टेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्टावसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि। तए णं तुमे तेणं दिव्वेणं सप्परूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि । तए णं से दिव्वे सप्परूवे तुमं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि तुम एवं वयासी-हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाइं वयाई वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छडेसि न भंजेसि, तो ते अज्जेव अहं सरसरस्स कायं दुरुहामि, दूरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेमि, वेढित्ता तिक्खाहि विसपरिगताहिं दाढाहि उरंसि चेव निकुट्टेमि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि। तए णं तमे तेणं दिव्वेणं सप्परूपेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि । तए णं से दिव्वे सप्परूवे तुमं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुद्वे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे तुभं सरसरस्स कायं दुरुहइ, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेइ, वेढेत्ता तिक्खाहि विसपरिगताहिं दाढाहिं उरंसि चेव निकुट्टेइ।। तए णं तुमे तं उज्जलं जाव वेयणं सम्म सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि। तए णं से दिव्वे सप्परूवे तुमं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ १. उवा० २।२७ । २. उवा० २।२४ । ३. उवा० २।२२ । ४. उवा० २।२३ । ५. उवा० २।२४ । ६. उवा० २।२२। ७. उवा० २।२३ । ८. उवा० २।२४। ६. उवा० २।२७ । १०. उवा० २।२४। Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ati ri ( कामदेवे ) ४३७ तुमं निग्गंथा पावयणाश्रो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा, ता संते तंते परितते सनियं-सणियं पच्चीसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसह - साला पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउब्वइ, विउव्वित्ता पोसहसालं ग्रणुष्पविसइ, प्रणुप्प - विसित्ता तलिक्खपडिवण्णे सखिखिणियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए तुमं एवं वयासी - हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! धण्णेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! पुणेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयत्थेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयलवखणेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! सुलद्धे णं तव देवाणुप्पिया ! माणुस्सए जम्मजीवियफले, जस्स णं तव निग्गंथे पावयणे इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया | एवं खलु देवाणुपिया ! सक्के देविदे देवराया जाव एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ एवं खलु देवा ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए कामदेवे समणोवासए पो सहसा लाए पोसहिए बंभचारी उम्मुक्कमणिसुवणे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथा - रोवगए समणस्स भगवप्रो महावीरस्स ग्रंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । नो खलु से सक्के केणइ देवेण वा दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथाग्रो पावयणाश्रो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा । तणं श्रहं सक्क्स्स देविंदस्स देवरण्णो एयम असद्दहमाणे प्रपत्तियमाणे एमाणे इहं हव्वमागए । तं ग्रहो णं देवाणुप्पियाणं इड्डी जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णा गए । तं दिट्ठा णं देवाणुप्पि - याणं इड्डी जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार- परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए । तं खामिणं देवाणुप्पिया ! खमंतु णं देवाणुप्पिया ! खंतुमरिहंति णं देवाणुप्पिया ! नाइं भुज्जो करणयाए त्ति कट्टु पायवडिए पंजलिउडे एयमट्ठे भुज्जो - भुज्जो खामेइ, खामेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं पडिगए । से नूणं कामदेवा ! अट्ठे समट्ठे ? हंता थि || भगवया कामदेवस्स पसंसा-पदं ४६. ज्योति ! समणे भगवं महावीरे बहवे समणे निग्गंथे य निग्गंथी य आमं तेत्ता एवं वयासी - जइ ताव प्रज्जो ! समणोवासगा गिहिणो गिहमज्भावसंता दिव्व माणुस - तिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्मं सहति खमंति तितिक्खति ' o २. सं० पा० - सहति जाव अहियासेंति । १. उवा० २।४० । Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८ उवासगदसाओ अहियासेंति, सक्का पुणाई अज्जो ! समणेहि निगंथेहि दुवालसंगं गणिपिडगं अहिज्जमाणेहि दिव्व-माणुस-तिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्म सहित्तए' 'खमि त्तए तितिक्खित्तए ° अहियासित्तए । ४७. ततो ते बहवे समणा निग्गथा य निग्गंथीयो य समणस्स भगवनो महावीरस्स तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेति ।। कामदेवस्स पडिगमण-पदं ४८. तए णं से कामदेवे समणोवासए हट्टतुट्ठ- चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमण स्सिए हरिसवस-विसप्पमाहियए° समणं भगवं महावीरं पसिणाई पुच्छइ, अट्ठमादियइ, समणं भग महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिण करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए, तामेव दिसं पडिगए। भगवनो जणवयविहार-पदं ४६. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ चंपायो नयरीनो पडिणिवखमइ, पडिणिक्ख मित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। कामदेवस्स उवासगपडिमा-पडिवत्ति-पदं ५०. तए' णं से कामदेवे समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरई ॥ ५१. 'तए णं से कामदेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तइ आराहेइ । ५२. तए णं से कामदेवे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तम, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ५३. तए णं से कामदेवे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। कामदेवस्स अणसण-पदं ५४. तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासयस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरतावरत्तकाल १. सं० पा०-सहित्तए जाव अहियासित्तए। २. सं० पा०-हट्टतुट जाव समण । ३. तपो (क, ग, घ)। ४. सं० पा०-विहरइ तएणं । Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोअं अज्झयणं (कामदेवे) ४३६ समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-'एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अदिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उढाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उदाणे कम्मे बले वीरिए परिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्ल पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणतियसंलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ ।।° कामदेवस्स समाहिमरण-पदं ५५. तए णं से कामदेवे समणोवासए बहूहि' सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहि अप्पाणं ° भावेत्ता वीस वासाइंसमणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एवकारस य उवासगपडिमानो सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिमगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरस्थिमे णं अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववण्णे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता। कामदेवस्स वि देवस्स चत्तारि पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ से णं भते ! कामदेवे तानो देवलोगानो आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं ५७. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं दोच्चस्स अज्झ यणस्स अयमट्ठ पण्णत्ते ॥ १. उवा० ११५७ । २. सं० पा०-बहूहि जाव भावेत्ता। ३. अप्पाणं (क, ख, ग, घ)। ४. तओ चेव (ख)। ५. सं० पा०-निक्खेवो। Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयण चुलणोपिता उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? ० चुलणोपियगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी। कोट्ठए' चेइए। जियसत्तू राया ॥ ३. "तत्थ णं वाणारसीए नयरीए चुलणीपिता' नाम गाहावई परिवसइ-अड्ढे ___जाव बहुजणस्स अपरिभूए ।। ४. तस्स णं चुलणीपियस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरणकोडीअो निहाणपउत्तानो, अट्ठ हिरण्णकोडीग्रो वड्डिपउत्तानो, अट्ठ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्तानो, अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था । ५. से णं चुलणीपिता गाहावई बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे सयस्स वि य ण कुटुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था ॥ १. सं० पा०-उक्खेवो। २. ना० १६१।७। ३. क्वचित् कोष्ठकं चैत्यमधीतं क्वचिन्महा कामधनमिति (वृ)। ४. सं० पा०-तत्य णं वाणारसीए चूलणिपिया नाम गाहावई परिवसई अड्ढे सामा भारिया अटू हिरण्णकोडीयो निहाणपउत्ताओ अट्ठ वड्ढिय ° अट्ठ पवित्थरप °। अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं जहा आणदो ईसर जाब सब्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था। ५. चुल णिपिता (ग, घ)। ६. उवा० ११११ । ७,८. उवा० १११३ । ४४० Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (चुलणीपिता) ६. तरस णं चुलणीपियस्स गाहावइस्स सामा' नाम भारिया होत्था-- अहीण पडिपुष्ण-पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ° ॥ महावीर-समवसरण-पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' जेणेव वाणारसी नयरी जेणेव कोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ८. परिसा निग्गया। ६. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ । १०. तए णं से चुलणीपिया गाहावई इमीसे कहाए लद्धढे समाणे- “एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुब्बि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव वाणारसीए नयरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं योगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" तं महप्फलं खलु भो! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए? तं गच्छामि णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभ रणालंकियसरीरे सयानो गिहारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्स वग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेण वाणारसि नरि मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव कोटुए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलि उडे पज्जुवासइ ।। १. सोमा (ख)। पडिवज्जइ। गोयमपुच्छा। तहेव सेसं जहा २. उवा० १११४। कामदेवस्स जाव पोसहसालाए। ३. सं० पा०—सामी समोसढे । चुलणीपिया वि ४. ओ० सू० १६, २२ । जहा आणंदे तहा निग्गओ। तहेव गिहिधम्म ५. ओ० सू०५३-६६।। Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ उवास गदसाओ ११. तए णं समणे भगवं महावीरे चुलणीपियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव' धम्मं परिकहेइ || १२. परिसा पडिगया, राया य गए ॥ चुलीपयस्स गिधम्म- पडिवत्ति-पदं १३. तए णं से चुलणीपिता गाहावई समणस्स भगवप्रो महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ट - चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण -पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीसहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमिणं भंते! निग्गथं पावयणं, अब्भुमि णं भंते! निस्गंथ पावयणं । एवमेयं भंते ! तह मेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असद्धिमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुम्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर - तलवर - माडंवियकोडुंबिय इभ-सेट्ठि सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराश्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु ग्रहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अंगाराम्रो अणगारयं पव्वत्तए । ग्रहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं - दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवज्जिस्सामि । हासु देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि || १४. तए णं से चुलणीपिता गाहावई समणस्स भगवप्रो महावीरस्स प्रति सावयधम्मं पडिवज्जइ ॥ भगवो जणवयविहार-पदं १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ वाणारसीए नयरीए कोट्टयाओ या पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ चुलणी पियस्स समणोवासग-चरिया-पदं १६. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए जाए – अभिगयजीवाजीवे जाव' सम निग्गंथे फासू- एस णिज्जेणं असण- पाण- खाइम साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबलपायपुंछणेणं प्रोसह - भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ - फलग - सेज्जा - संथारएणं पडिला भेमाणे विहरइ ॥ १. प्रो० सू० ७१-७७ । २. पू० उवा० १।२४- ५३ । ३. उवा० १५५ । Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (चुलणीपिता) ४४३ सामाए समणोवासिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा सामा भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुंछणेणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा संथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ ॥ चलणीपियरस धम्मजागरिया-पदं १८. तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासगस्स उच्चावएहि सील-व्वय-गुण-वेरमण पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वीइक्कताई। पण्णरसमस्स संवच्छ रस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जिथा-एवं खलु अहं वाणा रसीए नयरीए बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेण वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवग्रो महावीरस्स प्रतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । १६. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणं च पापुच्छइ, अापुच्छित्ता सयानो गिहारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता वाणारसि नरिं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दव्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता° पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी •उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दभसंथारोवगए° समणस्स भगवग्रो महावी रस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसपज्जित्ता ण विहरइ ।। चुलणीपियस्स देव-कय-उवसग्ग-पदं २०. तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतिय पाउन्भूए॥ • जेट्टपुत्त २१. तए णं से देवे एग महं नीलुप्पल - गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं १. उवा० ११५६ । ६. द्वितीयाध्ययनस्य विंशतितमे सूत्रे अस्याग्रे २,३. उवा० १११३ । 'मायी मिच्छदिवो' एतद् विशेषणद्वयं विद्यते । ४. पू०-उवा० ११५७-५६ । ७. सं० पा०-नीलुप्पल जाव असि । ५. सं० पा०-बंभयारी समणस्स । Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवास गदसाओ असि गाय चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! चुलणीपिता ! समणोवासया' ! ● अप्पत्थियपत्थिया ! दुरंत-पंत- लक्खणा ! हीणपुण्णचाउसिया ! सिरि- हरि-धिइ कित्ति-परिवज्जिया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया ! सग्गकामया ! मोक्खकामया ! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकखिया ! मोक्ख कंखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइ पोसहोववासाइ चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्त वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुमं ग्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न° भंजेसि, तो ते ग्रहं ग्रज्ज जेट्टतं 'साथ गिहाओ " नीणेमि नीणेत्ता तव अग्गो घाए मि, घाएत्ता तो मससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाइयंसि हेमि', श्रद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएणय आइंचामि', जहा गं तुमं श्रट्ट दुहट्ट - वसट्टे अकाले चेव जीविया ववरोविज्जसि || o २२. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे ग्रभीए प्रत्ये अणुव्विग्गे ग्रखुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्भाणो गए विहरइ ॥ २३. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं तत्थं श्रणुव्विग्गं अखुभियं चलियं असंभतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी हंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासया ! " जाव" ज णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रहं प्रज्ज जेट्टपुत्तं साओ गिहाम्रो नीर्णामि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता तम्रो मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहेमि, ग्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य श्राइंचामि, जहा णं तुमं श्रट्ट दुहट्टवसट्टे अकाले चैव जीविया ववरोविज्जसि || २४. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्ते समाणे अभी जाव" ० विहरइ ॥ ४४४ १. सं० पा० - समणोवासया जहा कामदेवो जाव न भजेसि । २. ततो ( क ) ; तम्रो ( ख ) । ३. सातो गिहातो (क, ग);सयातो गिहाम्रो (घ) । ४. ततो ( क ) । ५. दहेमि ( ख ) । ६. श्रसिचामि ( ख, ग ) । ७. सं० पा० - अभीए जाव विहरइ । ८. सं० पा० - अभीयं जाव पासइ । ६. सं० पा०-- समणोवासया ! तं चैव भइ सो जाव विहरइ । १०. उवा० २।२२ । ११. उवा० २।२३ । Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (चुलणोपिता) ४४५ २५. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे चलणीपियस्स समणोवासयस्स जेट्ठपुत्तं गिहायो' नीणेइ, नीणेत्ता अग्गो घाएइ, घाएत्ता तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता चुलणीपियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य प्राइंचइ । २६. तए णं से चुलणोपिता समणोवासए तं उज्जलं' विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहिया वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ ° अहियासेइ ।। मज्झिमपुत्त २७. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता चुलणी पियं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! चुलणीपिता ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाइं वे रमणाई पच्चक्खाणाइंपोसहोववासाई नछड्डेसि न भंजेसि, 'तो ते अहं अज्ज मज्झिम पत्तं साम्रो गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि. घाएत्ता" तो मंससोल्ले करेमि, करेत्ता यादाणभरियंसि कडाहयंसि अहहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य प्राइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ॥ २८. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ॥ २६. तए णं से देवे चलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्च पि तच्चं पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी- हंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासया ! जाव" जइ णं तमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चवखाणाई पोसहोववासाइं न छड्डे सि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिमं पुत्तं सानो गिहायो नीणे मि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता तओ मससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाण भरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य १. उवा० २।२४। ४. उवा० २।२४ । २. यत्र उत्तमपुरुषक्रियाप्रयोगस्तत्र सर्वत्रापि ५. उवा० २।२२ । 'साओ गिहाओ' इतिपाठो लभ्यते । यत्र च ६. ततो ते (क); ततो (ख)। प्रथमपूरुषक्रियाप्रयोगोस्ति तत्र केवलं ७. स०पा०- घाएत्ता जहा जेट्रपुत्तं तहेव भणइ, 'गिहायो' पाठो लभ्यते, किन्तु यत्र श्रमणो- तहेव करेइ । एवं कणीयसंपि जाव अहियासे इ। पासकाः घटितघटनां मनसि चिन्तयन्ति श्राव- ८. उवा० २।२३ । यन्ति च तत्र 'साओ गिहायो' पाठो युज्यते। ६. उवा० २।२४ । ३. स. पा०-उज्जलं जाव अहिपासेइ । १०. उवा० २।२२ । Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसायो सोणिएण य ग्राइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ॥ ३०. तए णं से चुलणीपिया समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ।। ३१. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुद्र कूविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे चलणीपियस्स समणोवासयस्स मज्झिम पत्त गिहाम्रो नीणेइ, नाणेत्ता अग्गयो घाएइ, घाएत्ता तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता चुलणोपियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य प्राइंचइ ।। ३२. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।। °कणीयसपुत्त ३३. तए णं से देवे चुलणोपियं समणोवासयं अभीय जाव' पासइ, पासित्ता चुलणापियं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! चुलणीपिता ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सोलाइ वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं सानो गिहायो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता तो मंससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडायंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा ण तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जोवियानो ववरोविज्जसि ॥ ३४. तए णं से चुलणोपिता समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ॥ ३५. तए णं से देवे चुलणोपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि चुलणोपियं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! चुलणीपिता ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुम अज्ज सोलाइं वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइ न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं सानो गिहारो नाणेमि, नोणता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता तयो मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहे मि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण १. उवा० २।२३ । २. उवा० २।२४। ३. उवा० २।२७। ४. उवा० २।२४ । ५. उवा० २।२२। ६. उवा० २।२३। ७. उवा० २।२४ । ८, उवा० २।२२। Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अभयण (चुलणीपिता) य सोणिएण य ग्राइंचामि, जहा णं तुम अट्ट दुहट्ट - वसट्टे प्रकाले चेव जीवियाश्रो ववरोविज्जसि || ३६. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभी जाव' विहरइ || ३७. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं प्रभीयं जाव' पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते for ifsform मिसिमिसीयमाणे चुलणीपियस्स समणोवासयस्स कणीयसं पुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गश्रो घाएइ, घाएता तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता ग्रादाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहे, अद्दहेत्ता चुलणीपियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ ॥ ३८. तए से चुलणीपिता समणोवासए तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ हियासेइ || ४४७ o • भद्दा सत्यवाही ३६. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता चउत्थं पिचुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासया ! जाव' जइ गं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि° न भंजेसि, 'तो ते" अहं ग्रज्ज जा इमा' माया भद्दा सत्यवाही देवतं 'गुरु-जणणी" "दुक्कर- दुक्करकारिया " तं" साम्रो गिहाम्रो नीम, नीणेत्ता तव अग्गश्रो घाएमि, घाएत्ता तो मससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि हेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेणं य सोणिएण य ग्राइंचामि, जहा गं तुमं ग्रट्ट दुहट्ट - वसट्टे अकाले चेव जीवियाश्रो ववरोविज्जसि ॥ ४०. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्तं समाणे अभीए जाव" विहरइ || १. उवा० २।२३ । २. उवा० २।२४ । ३. उवा० २।२७ । ४. उवा० २।२४ । ५. उवा० २।२२ । ६. सं० पा० - मं जाव न भंजेसि । ७. तओ ( ख, ग ) । 5. इमा तव (क्व ) । ६. गुरुजणणी ( क ); गुरु जणणी ( ख, ग ) । १०. दुक्करकारिया ( ग ) । ११. तं ते ( क, ख, ग, घ ); डा० ए० एफ० रुडोल्फ होरनल द्वारा प्रस्तुतसूत्रस्य पाठसंशोधनप्रयुक्तादर्शेषु एकस्मिन् आदर्श 'ते' पाठो नोपलभ्यते । तदाधारेण अस्माभिरत्र तस्याग्रहणं कृतम् । १२. उवा० २।२३ । Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ ४१. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी हंभो ! चुलणीपिता ! समणोवासया' ! 'जाव' जइ णं तुमं प्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जा इमा माया भद्दा सत्थवाही देवतं गुरु-जणणी दुक्कर- दुक्करकारिया, तं साग्रो गिहाओ नीम, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता तम्रो मससोल्ले करेमि, करेत्ता दाणभरियंसि कडाहयंसि अहेमि, ग्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा गं तुमं ग्रहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाम्रो ववरोविज्जसि || चुलणीपियरस कोलाहल - पदं ૪૪૬ ४२. तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे ग्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे • समुपज्जित्था - ग्रहो णं इमे पुरिसे प्रणारिए ग्रणारियबुद्धी ग्रणारियाई पावाई कम्माई समाचरति', 'जेणं ममं जेट्ठ पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेइ, नीता मम अग्ग घाएइ, घाएत्ता 'तम्रो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कासि ग्रहे, ग्रहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य ग्राइं चइ, 'जेणं ममं " मज्झिम पुत्तं साओ गिहाम्रो' 'नीणेइ, नोणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घात्ता तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहसि s, ग्रत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जेणं ममं कणीयसं पुत्तं साओ गिहाम्रो" नीणेइ, नीणेत्ता मम श्रग्गो घाएइ, घाएत्ता तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता ग्रादाणभरियंसि काहयंसि अहेर, ग्रहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य० इंचइ, जा वि य णं इमा" ममं माया भद्दा सत्थवाही देवतं 'गुरु-जणणी दुक्कर- दुक्करकारिया, तंपि य णं इच्छइ" साओ गिहाओ नीणेत्ता मम अग्गश्रो घाएत्तए - तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिव्हित्तए ११२ १. उवा० २।२४ । २. सं० पा० - समणोवासया तहेव जाव ववरो विज्जसि । ३. उवा० २।२२ । ४. सं० पा० – इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था । ५. समातरति (क, ग); समायरइ (ख, घ ) । ६. जेण ( ग ) । O ७. सं० पा०-- -घाएत्ता जहा कयं तहा विचितेइ जाव गायं । ८. जेणेव मम (क, ख, ग, घ ) । ६. सं० पा० - गिहाओ जाव सोणिएण । १० सं० पा० गिहाओ तहेव जाव आइंचइ । ११. इमं (ख) । १२. गुरु जणणी (क, ख, ग, घ ) । १३. इच्छेति (ग) । Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૪૨ इयं अभय (चुलणीपिता) ति कट्टु उद्धाविए', से वि य आगासे उप्पइए, तेण च खंभे प्रसाइए, महया - महया सद्देणं कोलाहले कए । भद्दाए पसिण-पदं ४३. तए णं सा भद्दा सत्यवाही तं कोलाहलसद्दं सोच्चा निसम्म जेणेव चुलणीपिया समणोवास, तेणेव उवागच्छइ', उवागच्छित्ता चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी - कण्णं पुत्ता ! तुमं महया - महया सद्देणं कोलाहले कए ? चुलणीपियस्स उत्तर-पदं ४४. तए ण से चुलणीपिया समणोवासए अम्मयं भदं सत्थवाहिं एवं वयासी - एवं खलु अम्मो ! न याणामि के वि पुरिसे ग्रासुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एवं महं नीलुप्पल - गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असं गाय ममं एवं वयासी - हंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासया' ! जाव' जइ गं तुम' अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाईन छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रहं अज्ज जेट्ठपुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेमि, नीत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता तो मंससोल्ले करोमि, करेत्ता प्रादाणभरियंस का हेमि, श्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आईचामि जहा गं तुमं - दुहट्ट - वसट्टे प्रकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । तणं ग्रहं ते पुरिसेणं एवं वृत्ते समाणे प्रभीए जाव विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव" पासइ, पासित्ता ममं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी हंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासयार ! "जाव" जइ णं तुमं प्रज्ज सीलाई क्याई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न जे, तो जाट्ट-दुहट्ट - वसट्टे अकाले चेव जीविया ववरोविज्जसि । १. उट्ठाइए ( ख ); उट्ठाएइते (घ) ; डा० ए० एफ रुडोल्फ होरनल संपादिते पुस्तके प्रस्तुतसूत्रे 'उट्ठाइए' इति पाठ: स्वीकृतोऽस्ति, लिपितिभ्रमकारणेन बहुषु आदर्शेषु मुद्रित पुस्तकेषु च 'उद्धा' स्थाने 'उट्ठा' एव लभ्यते । अग्रे 'भग्गव' इति पाठस्य व्याख्यायां वृत्तिकारेणापि 'उद्भावनात्' इति उल्लिखतमस्ति । २. य (घ) । ३. उवागते (क) । ४. सुरुते ( ग, घ ) । ५. सं० पा० - नीलुप्पल जाव असि । o ६. समणोवासया अपत्थिय पत्थिया ! ४ ( क ) । ७. उवा० २।२२ । ८. सं० पा० - तुमं जाव वत्ररोविज्जसि । ६. देवेणं (क, ख, ग, घ ); अस्मिन् सूत्रे सर्वत्र । १०. उवा० २।२३ । ११. उवा० २।२४ । १२. स० पा० - समणोवासया तहेव जाव गायं आइंचइ | १३. उवा० २।२२ । १४. उवा० २।२२ । Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० उवासगदसामो तए णं अहं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि। तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ममं जेट्रपत्तं गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य ° पाइंचइ। तए णं अहं तं उज्जलं जाव वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि ° अहियासेमि। "एवं मज्झिमं पुत्तं जाव' वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि। एवं कणीयसं पुत्तं जाव' वेयणं सम्म सहामि खमामि तितिक्खामि ° अहियासेमि। तए णं से परिसे ममं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता ममं चउत्थं पि एवं वयासीहंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासया ! जाव 'जइ णं तुमं अज्ज सोलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि ° न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जा इमा माया देवतं गुरु-जणणी दुक्कर-दुक्करकारिया, तं सानो गिहाम्रो नीणमि, नीणंत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता तो मंससोल्ले करमि, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडाहयसि अहमि. अहहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्ट अकाल चेव जोवियानो ° ववरोविज्जसि। तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव३ पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि ममं एवं वयासी-हंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासया ! जाव" जइ णं तुम अज्ज५ °सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छडेसि न १. उवा० २।२३ । ८. उवा० २।२४। २. उवा० २।२४ । ६. सं० पा०-समणोवासया अप्पत्थियपत्थिया ३. सं० पा०-उज्जलं जाव अहियासेमि । जाव न भजेसि । ४. उवा० २।२७। १०. उवा० २।२२। ५. सं. पा०-एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं ११. सं० पा०-गुरु जाव ववरोविज्जसि । जाव कणीयसं जाव आइंचइ । अहं तं उज्जलं १२. उवा० २।२३ । जाव अहियासेमि । १३. उवा० २।२४। ६. उवा० ३।२७-३२ । १४. उवा० २।२२। ७. उवा० ३।३३.३८ । १५. सं० पा०-अज्ज जाव ववरोविज्जसि । Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (चुलणीपिता) ४५१ भंजेसि, तो जाव तुमं पट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जोवियानो° ववरोविज्जसि ॥ तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि ममं एवं वृत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -ग्रहो णं इमे पुरिसे अणारिए' प्रणारियबुद्धी अणारियाइं पावाई कम्माइं ° समाचरति, जे णं मम जेट्रंपत्तं सानो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडाहयंसि अहह इ, अहहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जे णं मम मज्झिमं पुत्तं सानो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य ग्राइंचइ, जेणं ममं कणीयसं पत्तं सायो गिहायो नीणेड, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, धाएत्ता तनो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अहहे इ, अहहेत्ता ममं गायं संसेण य सोणिएण य ° पाइंचइ, तुब्भे वि य णं इच्छइ सानो गिहाम्रो नीणेत्ता मम अग्गयो घाएत्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिव्हित्तए त्ति कट्ट उद्घाविए। से वि य आगासे उप्पइए मए वि य खंभे आसाइए, महया-मया सद्देणं कोलाहले कए। पायच्छित्त-पर्द ४५. तए णं सा भद्दा सत्थवाही चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-नो खलू केइ पुरिसे तव' जेट्टपुत्तं सानो गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो घाएइ, नो खलु केइ पुरिरो तव मज्झिमं पुत्तं सानो गिहाप्रो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गयो घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुत्तं सानो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो घाएइ, एस णं केइ पुरिसे तव उवसग्गं करेइ, एस णं तुमे विदरिसणे दिटे । तं णं तुम इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि । 'तं ण तुमं पुत्ता ! एयस्स ठाणस्स अालोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° पडिवज्जाहि ॥ ४६. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए अम्माए भद्दाए सत्थवाहीए तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ १. सं० पा०-ग्रणारिए जाव समाचरति । ५. तण्णं (क); तेणं (घ)। २. सं० पा०--गिहाओ तहेव जाव कणीयसं ६. सं० पाo-आलोएहि जाव पडिवज्जाहि । जाव आइंचइ। ७. अम्मगाते (ग, घ)। ३. सं० पा० --तव जाव कणीयसं । ८. सं० पा०-आलोएइ जाव पडिवज्जइ। ४. विद्दरिसणे (ग)। Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ उवासगदसाओ निदइ गरिहइ विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अब्भुटेइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° पडिवज्जइ ।। चुलणीपियस्स उवासगपडिमा-पदं ४७. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ ४८. "तए णं से चुलणीपिता समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं महाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ। ४६. तए णं से चलणीपिता समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छटुं, सत्तम, अट्ठमं, नवमं, दसमं एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ° ॥ ५०. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं' अोरालेणं' विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । चुलणोपियस्स अणसण-पदं ५१. तए णं तस्स चुलणोपियस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्टाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्रियम्मि सरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा १. सं० पा०---पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं ४ ३. सं० पा.-उरालेणं जहा कामदेवे जाव जहा आणंदो जाव एक्कारस वि। सोहम्मे। २. अस्य स्थाने १।६४ सूत्रे 'इमेणं एयारूवेणं' ४. उवा० ११५७ । पाठो विद्यते। Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (चुलणीपिता) जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ ॥ चुलगोपियस्त समाहिमरण-पदं ५२. तए णं से चुलणोपिता समणोवासए बहूहि सोल-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पासहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाग्रो सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सर्द्धि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा ° सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरस्थिमे णं अरुणप्पभे विमाणे देवत्ताए उववण्णे । चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं ५३. १ एव खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठ पण्णत्ते ° ।। १. सं० पा०-निक्खेवो। Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं सुरादेये उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, चउत्थस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ° ? सुरादेवगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नाम नयरी । कोदए चेइए। जियसत्तू राया ।। ३. तत्थ णं वाणारसीए नयरीए सुरादेवे नाम गाहावइ परिवसइ- अड्ढे जाव' बहुजणस्स अपरिभूए ।। तस्स णं सुरादेवस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीग्रो वडिपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीअो पवित्थरपउत्तानो, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था । ५. से णं सुरादेवे गाहावई बहूणं जाव' पापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि यणं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था ।। १. सं० पा०-उखेवो। सढे। जहा पाणंदो तहेव पडिवज्जइ गिहि२. ना० ११११७ । धम्म । जहा कामदेवो जाव समणस्स । ३. कामधनम् (वृपा)। ५. उवा० २११ । ४. सं० पा०-सुरादेवे गाहावइ अड्ढे । छ ६. उवा० १११३ । हिरणकोडीग्री जाव उव्यया दसगोपाहस्सि- ७. उवा०१।१३ । एणं वएणं तस्स धन्ना भारिया सामी समो ४५४ Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (सुरादेवे) ४५५ ६. तस्स णं सुरादेवस्स गाहावइस्स धन्ना नामं भारिया होत्था-- अहीण-पडिपुण्ण पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ।। महावीर-समवसरण-पदं ७. तेण कालेणं तेणं समएणं समणे में गवं महावीरे जाव जेणेव वाणारसी नयरी जेणेव कोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गह प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ८. परिसा निग्गया ॥ ६. कणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ॥ १०. तए णं से सुरादेवे गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे- “एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुवाणपव्वि चरमाण गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव वाणारसीए नयरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं योगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ।" तं महप्फलं खलु भो ! देवाणु प्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-बंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासण्णयाए ? एगरस वि पारियरस धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलरस अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणु प्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पहाए कयवलिकम्मे कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयानो गिहारो पडिणिवखमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेटमल्लदामेण छत्तण रिज्जमाणण मणुस्सवग्गुरापाराखत्त पादविहारचारेणं वाणारसिं नयरि मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव कोट्टए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे,तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलि उडे पज्जूवासइ॥ ११. तए णं समणे भगवं महावीरे सुरादेवस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्म परिकहेइ । १२. परिसा पडिगया, राया य गए। १. उवा० १११४॥ २. प्रो० सू० १६, २२ । ३. ओ० सू० ५३-६६ । ४. ओ० सू० ७१-७७ । Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ उवास गदसाओ सुरादेवस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३. तए णं से सुरादेवे गाहावई समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुटु-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उद्वेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भटेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठिसेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइत्तए । अहं णं देवाणप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं--दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि। अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि ॥ १४. तए णं से सुरादेवे गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए' सावयधम्म पडिवज्जइ॥ भगवप्रो जणवय विहार-पवं १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ वाणारसीए नयरीए कोट्टयानो चेइयानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्ख मित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। सुरादेवस्स समणोवासग-चरिया-पदं १६. तए णं से सुरादेवे समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ॥ धन्नाए समणोवासिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा धन्ना भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह ३. उवा० ११५६ । १. पू०-उवा० ११२४-५३ । २. उवा० ११५५ । Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (सुरादेवे) ४५७ कंबल-पायपुंछणेणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-प.लग-सेज्जा संथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ ।। सुरादेवस्स धम्मजागरिया-पदं १८. तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छ राई वीइक्कंताई । पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए बहणं जाव' यापुच्छणिज्जे पडिपूच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्डावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । १६. तए णं सुरादेवे समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च पापुच्छइ, आपुच्छित्ता सयानो गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता वाणारसि नरि मज्झमज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए ° समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। सरादेवस्स देव-कय-उवसग्ग-पदं २०. तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे ___ अंतियं पाउब्भवित्था ।। जेट्टपुत्त २१. तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल- गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं ° असि गहाय' सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया'! दुरंत-पंत-लक्खणा ! हीणपुण्णचाउद्दसिया ! १. उवा० १६१३ । लिखितः पाठोतिरिक्तो विद्यते-'जेणेव पोसह२. उवा० १११३ । साला जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव ३. पू०-उवा० ११५७-५६ । उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रासुरत्ते रु? कुविए ४. सं० पा०-नीलुप्पल जाव असि । चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवं' । ५. द्वितीयाध्ययनस्य द्वाविंशतितमे सूत्रे निम्न- ६. पत्थिया ४ (क, ख, ग, घ)। Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवास गदाओ सिरि-हरि-धि- कित्ति - परिवज्जिया ! धम्मकामया ! पुष्णकामया ! सग्गकामया ! मोवखकामया ! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकखिया ! मोक्कखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मक्ख पिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई वयाई वेरमगाई पच्चवखाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडितए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा तं जइ गं तुमं ग्रज्ज सीलाई ' • वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते श्रहं ग्रज्ज जेट्ठपुत्तं साम्रो गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गग्रो घाएमि, धाता पंच मंससोल्ले करेंमि, करेत्ता ग्रादाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहेमि, अत्ता तव गायं मसेण य सोणिरुण य श्राईचामि, जहा णं तुमं 'ग्रट्ट दुहट्ट - वसट्टे अकाले चैव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ॥ o २२. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए अतत्थे खुभिए चलिए असंभते तुसिणीए धम्मज्भाणोवगए विहरइ || २३. तण से देवे सुरादेवं समणोवासवं ग्रमीयं तत्थं अणुव्विग्गं ग्रखुभियं श्रच - लियं असंभतं तुसिणीयं धम्मज्भाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्च पि तच्च पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी- हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं श्रज्ज सीलाई क्याई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाईन छड्डेसि न भजसि, तो ते ग्रहं अज्ज जट्टपुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीर्णमि, नीणेत्ता तव अग्गश्रो वामि, धाएत्ता पंच मंससोल्ले करेमि, करेत्ता दाभरियंसि कासि ग्रहेमि, श्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य इंचामि, जहा णं तुगं श्रट्ट दुहट्ट बसट्टे प्रकाले चेव जीविया ववरोविज्जसि || २४. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेण दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्तं समाणे अभी जाव विहरइ ॥ २५. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता ग्रासुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे सुरादेवस्स समणोवासयस्स पुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नोणेत्ता श्रग्गो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता दाणभरियंसि कडाहयंसि अहेर, अहेत्ता सुरादेवस्स समणोवासयस्स गायं सेय सोणिय आइंचइ ॥ ४५८ १. सं० पा० - सोलाई जाव न भजेसि । २. X ( क, ख, ग, घ ) । ३. सं० पा० - एवं मज्झिमयं, कणीयसं, एक्के Fh पंच सोल्लया । तहेव करेइ, जहा चुकणीपियस्स, नवरं एक्केक्के पंच सोल्लया । ४. उवा० २।२२ । ५. उवा० २:२३ | ६. उवा० २।२४ । Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं श्रज्झयणं (सुरादेवे ) ४५६ २६. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तं उज्जलं विउलं कवकसं पगाढं चंड दुक्खं दुरहियासं वेणं सम्म सहइ खमइ तितिवखइ ग्रहियासेइ || ● मज्झिमपुत्त २७. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता सुरादेव समणोवासयं एवं वयासी- हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ गं तुमं ग्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चवखाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रहं प्रज्ज मज्झिमं पुत्तं सात्र गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेमि, करेत्ता श्रादाणभरियंसि सिमि, श्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य ग्राइंचामि, जहा तुम हट्ट-सट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि || २८. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तैणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे श्रभीए जाव' विहरइ ॥ २६. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि सुरादेव समणोवासयं एवं वयासी- हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं श्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भजेसि, तो ते अहं ग्रज्ज मज्झिमं पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेमि, नीणेत्ता तव ग्रग्गो घाएमि, धाएत्ता पंच मंससोल्ले करेमि, करेत्ता श्रादाण भरियंसि कडाहयंसि ग्रहेमि, ग्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य प्राचामि जहा णं तुमं ग्रट्ट दुहट्टवसट्टे ग्रकाले चेव जीविया ववरोविज्जसि || ३०. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ॥ ३१. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता ग्रासुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे सुरादेवस्स समणोवासयस्स मज्झिमं पुत्तं हाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गग्रो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाह्यंसि अहेर, प्रदत्ता सुरादेवस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य ग्राइंचइ ॥ ३२. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ ग्रहियासेइ ।। १. उवा० २।२४ । २. उवा० २।२२ । ३. उवा० २।२३ । ४. उवा० २।२४ । ५. उवा० २।२२ । ६. उवा० २।२३ । ७. उवा० २।२४ । ८. उवा० २।२७ । Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० ० कणीयसपुत्त ३३. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं श्रज्ज सीलाई वाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रहं ग्रज्ज कणीयसं पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेमि नीणेत्ता तव अग्गो वामि, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेमि, करेत्ता ग्रादाणभरियंसि ssion हेम, ग्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएणय ग्राइंचामि, जहा णं तुम हट्टवसट्टे अकाले चेव जीविया ववरोविज्जसि ।। ३४. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ || ३५. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी- हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव जइ गं तुमं ग्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोवासाईन छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रहं ग्रज्ज कणीयसं पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीम, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरिति कडाह्यंसि हेमि, श्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण याचामि, जहा गं तुमं श्रट्ट दुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीविया ववरोविज्जसि || ३६. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभी जाव विहरs || ३७. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता आसुरते रु कुविए चंडिक्कए मिसिमिसोयमाणे सुरादेवस्स समणोवासयस्स कणीयसं पुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गश्रो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता प्रादाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहे, ग्रहेत्ता सुरादेवस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ । उवासगदसा श्रो ३८. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ हियासेइ ॥ १. उवा० २।२४ । २. उवा० २।२२ । ३. उवा० २।२३ । ४. उवा० २।२४ । ܘ ५. उवा० २।२२ । ६. उवा० २।२३ । ७. उवा० २।२४ । ८. उवा० २।२७ । Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (सुरादेवे) ४६१ सोलसरोगायंक ३६. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता चउत्थं पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि', तो ते अहं अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायके पक्खिवामि, [तं जहा-१. सासे २. कासे' ३. जरे ४. दाहे ५. कुच्छिसूले ६. भगंदरे ७. अरिसए ८. अजीरए ६. दिट्ठिसूले १०. मुद्धसूले ११. अकारिए १२. अच्छिवेयणा १३. कण्णवेयणा १४. कडुए १५. उदरे° १६. कोढे । ] ' जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ।। ४०. तए णं से सुरादेवे समणोवासए' 'तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव ' विहरइ॥ ४१. "तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायके पक्खिवामि जाव जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ० ववरोविज्जसि ।। सुरादेवस्स कोलाहल-पदं ४२. तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-अहो णं इमे पुरिसे अणारिए प्रणारियबुद्धी अणारियाई पावाइं कम्माइं ° समाचरति, जे णं ममं जेट्टपुत्तं" सानो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो धाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले" करेइ, करेत्ता आदाण १. उवा० २।२४ । भणइ जाव ववरोविज्जसि । २. उवा० २।२२। १०. उवा० २।२४ । ३. परिच्चयसि (क, ख, ग, घ)। ११. उदा० २।२२। ४. सरीरस्स (क, ख, ग, घ)। १२. उवा० ४१३६। ५. सं० पा०-कासे जाव कोढे । १३. सं० पा०-अणारिए जाव समाचरति । ६. असौ कोष्ठकवर्तिपाठः व्याख्यांशः प्रतीयते। १४. सं० पा०-जेट्टपुत्तं जाव कणीयस जाव ७. सं० पा०--समणोवासए जाव विहरइ। आइंच।। ८. उवा० २।२३। १५. मंससोल्लया (क, ख, ग, घ)। है. सं० पा०-एवं देवो दोच्चं पि तच्च पि Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ उवासगदसाओ भरियं सि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जे णं ममं मज्झिमं पुत्तं सानो गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मसेण य सोणिएण य पाइंचइ, जे णं मम कणीयसं पुत्तं सानो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गना घाएइ, घाएत्ता पंच मससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहइ, अद्दहेत्ता मम गायं मसेण य सोणिएण य° आइंचइ, जे वि य इमे सोलस रोगायंका, ते वि य इच्छइ मम सरीरंसि' पक्खिवित्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए ति कट्ट उद्धाविए, से वि य आगासे उप्पइए, तेण य खभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए॥ धन्नाए पसिण-पदं ४३. तए णं सा धन्ना भारिया कोलाहलसई सोच्चा निसम्म जेणेव सुरादेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी--किण्णं' देवाणु प्पिया ! तुब्भे णं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ? सुरादेवस्स उत्तर-पदं ४४. तए णं से सुरादेवे समणोवासए धन्नं भारियं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए ! न याणामि के वि पुरिसे' °ासुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्कए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असि गहाय ममं एवं वयासी-हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुम अज्ज सीलाइं वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्तं सानो गिहारो नीणे मि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि । तए णं ग्रह तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासिता ममं दोच्चं पि तच्चं पि १. सरीरगंसि (क)। ४. सं० पा०-पूरिसे तहेव कहेइ जहा चूलणी२. कोलाहलं (क, ख, ग, घ); ३४३ सूत्रे पिया धन्ना वि पडिभणइ जाव कणीयसं। 'कोलाहलसई' इति पाठो विद्यते । अत्रापि ५. उवा० २।२२ । तथैव युज्यते । आदर्शषु संक्षिप्तलेखने ६. उवा० २।२३ । 'कोलाहलं' पाठो जातः इति प्रतीयते । ७. उवा० २।२४ । ३. किण्णं तुमं (ग)। Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घउत्थं अज्झयणं (सुरादेवे) ४६३ एवं वयासी-हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववामाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो जाव तमं अट्ट-दुपट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि । तए णं अहं तेण पुरिसेणं दोच्च पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि। तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिस यमाणे मनं जेटुपुत्तं निहायो नोणे इ, नोणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घारत्ता पंच मंससोल्ने कोइ, करेता प्रादाण मरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, ग्रहहेत्ता मम गाय मसेण य सोणिपण याइचइ । तए ण अहं त उज्जल जाव वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि। एवं मज्झिमं पुत्तं जाव' वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । एवं कणीयस्सं पुत्तं जाव' वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासे मि। तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता ममं च उत्थं पि एवं वयासी-हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोलवासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अह अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायके पविखवामि जाव जहा णं तमं अट-दहद-वस प्रकाले चेव जीवियाग्रा ववरोविज्जसि। तए ण अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाण अभीए जाव विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव" पास इ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि मम एवं वयासी-हभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छडेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायं के पक्खिवामि जाव जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जोवियागो ववरोविज्जसि । तए णं तेण पुरिसेणं दोच्च पि तच्चं पि ममं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे १. उवा० २।२२। २. उवा० २।२३। ३. उवा० २।२४ । ४. उवा० २.२७ । ५. उवा० ४।२७-३२ । ६. उवा० ४।३३-३८ । ७. उवा० २।२४ । ८. उदा० २।२२। ६. उवा० ४१३६ । १०. उवा० २.२३ । ११. उदा० २।२४ । १२. उवा० २।२२ । १३. उवा० ४.३९। Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ उवासगदसाओ अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-अहो णं इमे पुरिसे अणारिए प्रणारियबुद्धी प्रणारियाई पावाइं कम्माइं समाचरति, जे ण ममं जेटुं पुत्तं सानो गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणरियसि कडाहयं स अद्दहेइ, अइहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य पाइंचइ, जेणं मम मज्झिम पत्तं साम्रो गिहायो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मसेण य सोणिएण य आइंचइ, जे णं ममं कणीयसं पुत्तं साम्रो गिहायो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ,करेत्ता प्रादाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइचइ, जे वि य इमे सोलस रोगायंका, ते वि य इच्छइ मम सरीरंसि पक्खिवित्तए, तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिण्हित्तए त्ति कटु उद्धाविए, से वि य आगासे उप्पइए, मए वि य खंभे प्रासाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए । पायच्छित्त-पदं ४५. तए णं सा धन्ना भारिया सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासो-नो खलु केइ पुरिसे तव जेट्टपुत्तं सानो गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव मज्झिमं पुत्तं साप्रो गिहानो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुत्त सानो गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गयो घाएइ°, नो खलु देवाणुप्पिया ! तुब्भं के वि पुरिसे सरीरंसि जमगसमगं सोलस रोगायंके पक्खिवइ, एस णं के वि पुरिसे तुब्भं उवसग्गं करेइ', 'एस णं तुमे विदरिसण दिटे । तं णं तुम इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि । तं गं तुमं पिया ! एयस्स ठाणस्स पालोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि ॥ ४६. तए णं से सुरादेवे समणोवासए धन्नाए भारियाए तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स पालोएइ पडिक्कमइ निदइ गरिहइ विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अब्भुटेइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ ।। १. यद्यपि 'तुम्भे, तूभं' इत्यादिबहवचनान्ता: २. सरीरगंसि (क)। प्रयोगा व्याकरणे दृश्यन्ते, तथापि प्रस्तुतागमे ३. सं० पा० -- करेइ । सेसं जहा चुलणीपियस्स एकवचनान्ता अपि प्रयुक्ताः सन्ति । महाशत- तहा भद्दा भणइ। एवं सेसं जहा चुलणीकाध्ययने २७ सूत्रे 'तुब्भं, तुमं, विहरसि' एते पियस्स निरवसेसं जाव सोहम्मे । प्रयोगाः एकस्मिन्नेव प्रसङ्ग प्राप्ताः सन्ति । Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (सुरादेवे) सुरादेवस्स उवासगपडिमा-पदं ४७. तए णं से सुरादेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। ४८. तए णं से सुरादेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासत्तं अहाकप्पं ___अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ४६. तए णं से सुरादेवे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ५०. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। सुरादेवस्स अणसण-पदं ५१. तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं अत्थि ता मे उठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता में अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झसणा-झुसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, काल अणवकंखमाणस्स विहरित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ ।। सुरादेवस्स समाहिमरण-पदं ५२. तए णं से सुरादेवे समणोवासए बहूहि सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्का रस य उवासगपडिमाओ सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए १. उवा० ११५७ । Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ उवासगदसाओ प्रत्ताणं भूसित्ता, सट्ठि भत्ताइं प्रणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा • सोहम्मे कप्पे अरुणकंते विमाणे उववण्णे । चत्तारि पलिश्रोमाई ठिई । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चि सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ || निक्खेव पदं ५३. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण उवासगदसाणं चउत्थस्स अयणस्स मट्ठे पण्णत्ते ॥ १. सं० पा० - निक्खेवो । Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचमं अज्झयण चुल्लसयए उक्खेव-पदं १. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं च उत्थस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ° ? चुल्लसययगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं पालभिया' नाम नयरी। संखवणे उज्जाणे । जियसत्तू राया ॥ ३. "तत्थ णं पालभियाए नयरीए चुल्लसयए नाम गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव' बहुजणस्स अपरिभूए । ४. तस्स णं चुल्लसययस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीअो वड्डिपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीअो पवित्थरपउत्ताओ, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ।। ५. से णं चुल्लसयए गाहावई बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था ।। ६. तस्स णं चुल्लसययस्स गाहावइस्स बहुला नाम भारिया होत्था-अहीण १. सं० पा०-उवखेवो । २. ना० १११।७। ३. आलंभिया (क, घ)। ४. सं० पा०-चूल्लसयए गाहावई अड्ढे जाव छ हिरण्णकोडीओ जाव छ व्वया दसगो साहस्सिएणं बहुला भारिया। ५. उवा० ११११ । ६. उवा० १११३ । ७. उवा० १११३ । ४६७ Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ उवासगदसाओ पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ॥ महावीर-समवसरण-पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' जेणेव आलभिया नयरी जेणेव संखवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं ओगिण्डित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ८. परिसा निग्गया । ६. कुणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ ।। १०. तए णं से चुल्लसयए गाहावई इमीसे कहाए लढे समाणे- “एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुवाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव आलभियाए नयरीए बहिया संखवणे उज्जाणे अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" तं महप्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किंमग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणप्पिया ! समण भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माण मि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि-एवं संपेहेइ, सपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयानो गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं पालभियं नयरिं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव संखवणे उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ ॥ ११. तए णं समणे भगवं महावीरे चुल्लसययस्स गाहावइस्स तोसे य महइमहालि याए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ । १२. परिसा पडिगया, राया य गए। १. उवा० २।२४। ३. ओ० सू० १६, २२ । २. सं० पा०—सामी समोसढे जहा आणंदो तहा ४. ओ० सू० ५३-६६ । गिहिधम्म पडिवज्जइ। सेसं जहा कामदेवो ५. ओ० सू० ७१-७७ । जाव धम्मपण्णत्ति । Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचमं ग्रज्भयणं (चुल्लसय ए ) चुल्लस्ययस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३. तए णं चुल्लसयए गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म - चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्प माणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - सद्दहामि गं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंयं पावयणं, रोएमि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अभुमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! परिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं ग्रंतिए बहवे राईसर - तलवर - माडंबिय कोडुंबिय इन्भ-सेट्ठिसेणावइ सत्थवाहपभिइया मुंडा भवित्ता अगाराम्रो ग्रणगारियं पव्वइया, नो खलु ग्रहं तहा संचारमि मुंडे भवित्ता अगाराम्रो ग्रणगारियं पव्वइत्तए । अहं देवाप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं - दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवज्जिस्सामि । ग्रहासु देवाणुपिया ! मा पडिबंध करे हि ॥ १४. तए ण से चुल्लसयए गाहावई समणस्स भगवप्रो महावीरस्स अंतिए सावयधम्मं पडिवज्जइ ॥ भगवो जणवयविहार पदं १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ प्रालभियाए नयरीए संखवणाश्रो उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ चुल्लसययस्स समणोवासग चरिया-पदं १६. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए जाए - अभिगयजीवाजीवे जाव' सम निग्गंथे फासू - एसणिज्जेणं असण- पाणखाइम साइमेणं वत्थ-पडिग्गह- कंबल - पायपुंछणेण श्रोसह भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ - फलग - सेज्जा-संथारएणं पडिला भेमाणे विहरइ ॥ ४६६ बहुलाए समणोवा सिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा बहुला भारिया समणोवासिया जाया - अभिगयजीवाजीवा जाव समणे निग्गंथे फासू- एसणिज्जेणं असण पाण- खाइम - साइमेणं वत्थ-पडिग्गह १. पू० - १।२४- ५३ । २. उवा० १।५५ । ३. उवा० १।५६ । Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० उवास गदसाओ कंबल-पायपुंछणेणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथार एणं पडिलाभमाणी विहरइ ।। चुल्लसयय-धम्मजागरिया-पदं १८. तए णं तस्स चुल्लसययस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सील-व्वय-गुण-वे रमण पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छ राई वीइक्कंताई। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खल अहं पालभियाए नयरीए बहूणं जाव' पापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । १६. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणं च प्रापुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पालभियं नयरि मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं ° धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। चुल्लसयगस्स देव-कय-उवसग्ग-पदं २०. तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पा उब्भूए । जेपुट्ठत्त २१. तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं ' असि गहाय एवं वयासी हंभो ! चुल्लसयगा! समणोवासया' ! 'अप्पत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! होणपुण्णचाउद्दसिया ! सिरि-हिरि-धिइकित्ति-परिवज्जिया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया ! सग्गकामया ! मोक्ख १. उवा० १११३ । २. उवा० १।१३ । ३. पू०-उवा० ११५७-५६ । ४. सं० पा०-अंतियं जाव असि । ५. सं० पा०-समणोवासया जाव न भंजेसि । Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (चुल्लसयए) ४७१ कामया ! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकंखिया ! मोक्खकंखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तइ वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झितए वा परिच्चइत्तएवा, तं जइ णं तुमं श्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते [ श्रहं ? ] ग्रज्ज जेट्ठपुत्तं सागिहाम्रो नोमि', 'नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहेमि, ग्रहेत्ता तव गायं मंसेण यसोणिण य आइंचामि, जहा णं तुमं ग्रट्ट दुहट्ट - वसट्टे प्रकाले चेव जीवि - या ववरोविज्जसि ॥ तत् २२. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्तं समाणे अभी खुभि चलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्भाणोवगए विहरइ ॥ २३. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं प्रखुभियं अचलियं असंभतं तुसिणीयं धम्मज्भाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्च पि तच्च पि चुल्लसययं समणोवासयं एवं वयासी – हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं ग्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रहं प्रज्ज जेट्ठपुत्तं साम्र गिहाम्रो नीमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहसि हेमि, अहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिय ग्राइंचामि, जहा गं तुमं ग्रट्ट दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि || २४. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ॥ २५. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता ग्रासुरत्ते रुट्ठे कुवि चंडिfear मिसिमिसीयमाणे चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स जेट्ठपुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयसि अहेर, अहेत्ता चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ || २६. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ ग्रहियासेइ || १. सं० पा० - नीणेमि, एवं जहा चुलणीपियं, नवरं एक्क्के सत्त मंनसोल्लया जाव कणीयसं जाव आइंचामि । २. उवा० २।२२ । ३. उवा० २।२३ । ४. उवा० २।२४ । Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ • मज्झिमपुत्त २७. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता चुल्लसगं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं प्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रहं अज्ज मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता ग्रादाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहेमि, अहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य ग्राइं चामि, जहा णं तुमं श्रट्ट दुहट्ट-वसट्टे प्रकाले चेव जीविया ववरोविज्जसि || २८. तणं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ || २६. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि चुल्लसयगं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! चुल्लसयया ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रहं अज्ज मज्झिमं पुत्तं साओ गिहा नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता श्रादाणभरियंसि कडाहयंसि हेमि, ग्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं श्रट्ट दुहट्ट वसट्टे अकाले चेव जीवियाश्रो ववरोविज्जसि || ३०. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ॥ ३१. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता ग्रासुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स मज्झिम पुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता श्रादाणभरियंसि कडाह्यंसि अहेर, ग्रहेत्ता चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ ॥ उवास गदसा ३२. तणं से चुल्लसयए समणोवासए तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ || १. उवा० २।२४ । २. उवा० २।२२ । ३. उवा० २।२३ । ४. उवा० २।२४ । ५. उवा० २।२२ । ६. उवा० २।२३ । ७. उवा० २।२४ । ८. उवा० २।२७ । Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम अज्झयणं (चुल्लसयए) ४७३ °कणीयसपुत्त ३३. तए ण से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता चुल्ल सयगं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! चुल्लसयगा! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज ! सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं सानो गिहाम्रो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अदहेमि, अहहेत्ता तव गाय मसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरो विज्जसि ॥ ३४. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ॥ ३५. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि चुल्लसयगं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! चुल्लसयगा ! रामणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं प्रत्तं सानो गिहारो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करे मि, करेत्ता आदाणभरियसि कडायसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य प्राइचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ॥ ३६. तर णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाण अभीए जाव' विहरइ ।। ३७. तए णं से दवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीय जाव पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसीमिसीयमाणे चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स कणीयस पुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नोणेत्ता अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स गायं मसेण य सोणिएण य° ग्राइंचइ । ३८. तए ण से चल्लसयए समणोवासए' 'तं उज्जलं जाव वेयणं सम्म सहइ खमह तितिक्खइ° अहियासेइ ।। १. उवा० २।२४। २. उवा० २।२२। ३. उवा० २।२३। ४. उवा० २।२४। ५. उवा० २।२२। ६. उवा० २।२३। ७. उवा०।२४ । ८. सं० पा०-समणोवासए जाव अहियासेइ। ६. उवा० ।२७। Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ उवासगदसायो हिरण्णकोडी-विपकिरण ३६. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता चउत्थं पि चुल्लसयगं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासिया ! 'जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई बयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जाग्रो इमायो छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीग्रो वड्विपउत्तानो, छ हिरणकोडीयो पवित्थरपउत्तानो, तानो सानो गिहायो नीणमि, नीणेत्ता पालभियाए नयरीए सिंघाडग'- तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह ° पहेसु सव्वनो समंता विप्पइरामि', जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरो विज्जसि ॥ ४०. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ॥ ४१. तए ण से देवे चुल्लसयग समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्च पि तच्चं पि' 'एवं वयासी-- हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जानो इमाओ छ हिरण्णकोडीअो निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीअो वडिपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीअो पवित्थरपउत्ताओ, तानो साओ गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता पालभियाए नयरीए सिंघाडगतिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु सव्वो समंता विप्पइरामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ॥ चुल्लसयगस्स कोलाहल-पदं ४२. तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्तस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-अहो णं इमे पुरिसे अणारिए प्रणारियबुद्धी प्रणारियाई पावाई कम्माइं समाचरति, जे णं ममं जेटुं पुत्तं सानो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता १. उवा० २।२४ । २. स. पा०-समणोवासया जाव न भंजेसि। ३. उवा० २।२२। ४. सं० पा०--सिंघाडग जाव पहेसु । ५. विप्पयिरामि (क, ग)। ६. उवा० २।२३ । ७. उवा० २।२४ । ८. सं० पा०-तच्च पि तहेव भणइ जाव ववरोविज्जसि। ६. उवा० २।२२। १०. सं० पा०-अणारिए जहा चुलणीपिया तहा चितेइ जाव कणीयसं जाव आइंच।। Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (चुल्लसयए) मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरि यंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य प्राइंचइ, जे णं ममं मज्झिमं पुत्तं सानो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता मम गायं मंसेण य सोणिएण य ग्राइंचइ, जे णं ममं कणीयसं पुत्तं सायो गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता मम गायं मंसेण य सोणिएण य ° आइंचइ, जानो वि य णं इमामो ममं छ हिरण्णकोडीअो निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडोओ वडिपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, तानो वि य णं इच्छइ ममं सानो गिहारो नीणेत्ता पालभियाए नयरीए सिंघाडग'-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु सव्वओ समंता विप्पइरित्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिस गिण्हित्तए त्ति कटु उद्धाविए', 'से वि य आगासे उप्पइए, तेण य खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ।। बहुलाए पसिण-पदं ४३. तए णं सा बहुला भारिया त कोलाहलसई सोच्चा निसम्म जेणेव चुल्लसयए समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुल्लसयगं समणोवासयं एवं वयासो-किण्णं देवाणु प्पिया ! तुब्भे णं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ? चुल्लस यगस्स उत्तर-पदं तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहुलं भारियं एवं वयासी-एवं खलु बहुले ! न याणामि के वि पुरिसे आसुरत्ते रुद्रु कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एग महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असि गहाय मम एवं वयासी-हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छईसि न भंजेसि. तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्त सानो गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि। तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि । १. सं० पा०---सिंघाडग जाव विप्पइरित्तए। २. सं० पा०-उद्धाविए जहा सुरादेवो । तहेव भारिया पूच्छइ, तहेव कहेइ । सेसं जहा चुलणीपियस्स जाव सोहम्मे । ३. उवा० २।२२ । ४. उवा० २।२३ । Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७६ उवासगदसाओ तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता ममं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो जाव तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ।। तए णं अहं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि। तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ममं जेट्टपुत्तं गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गयो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ । तए ण अहं तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्म सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि। एवं मज्झिमं पुत्तं जाव' वेयणं सम्म सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि। एवं कणीयसं पुत्तं जाव वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता ममं चउत्थं पि एवं वयासी-हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जाप्रो इमानो छ हिरण्णकोडीअो निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीओ वड्डिपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीनो पवित्थरपउत्तानो, तानो सानो गिहाम्रो नीणेमि, नीणेत्ता पालभियाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चरचउम्मुह-महापहपहेसु सव्वनो समंता विप्पइरामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि । तए णं अहं तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव" पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि ममं एवं वयासी-हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो जाव तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि। १. उवा० २।२४। २. उवा० २।२२। ३. उवा० २।२३। ४. उवा० २।२४ । ५. उवा० २।२७ । ६. उवा० ५।२७-३२। ७. उवा० ५॥३३-३८ । ८. उवा० २।२४ । ९. उवा० २।२२। १०. उवा० २।२३ । ११. उवा० २।२४ । १२. उवा० २।२२। Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम अज्झयणं (चुल्लसयए) ४७७ तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि ममं एवं वुत्तस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-अहो णं इमे पुरिसे प्रणारिए अणारियबुद्धी अणारियाइं पावाई कम्माइं समाचरति, जे णं ममं जेटुं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जे णं ममं मज्झिमं पुत्तं सानो गिहाम्रो तीणेड. नीणेत्ता मम अग्गयो घाएइ. घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेड, करेत्ता प्रादाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जे णं ममं कणीयसं पुत्तं सानो गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ,करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अहहेइ, अद्द हेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य पाइंचइ,जानो वि य णं इमामो ममं छ हिरण्णकोडीअो निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीओ वड्डिपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीग्रो पवित्थरपउत्तानो, तारो वि य णं इच्छइ ममं सानो गिहायो नीणेत्ता अालभियाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु सव्वनो समंता विप्पइरित्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए त्ति कटु उद्धाविए, से वि य आगासे उप्पइए, मए वि य खंभे प्रासाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए। पायच्छित्त-पदं ४५. तए णं सा बहुला भारिया चुल्लसयगं समणोवासयं एवं वयासी - नो खलु केइ पुरिसे तव जेटुपुत्तं सानो गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव मज्झिमं पुत्तं सानो गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गग्रो घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुत्तं सानो गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो घाएइ, नो खलु देवाणुप्पिया ! तुम्भं के वि पुरिसे तव छ हिरण्णकोडीअो निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीनो वड्डिपउतानो, छ हिरण्णकोडीनो पवित्थरपउत्तानो, सानो गिहारो नीणेत्ता पालभियाए नयरीए सिंघाडग-तिय - चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु सव्वनो समंता विप्पइरइ, एस णं केइ पुरिसे तव उवसग्गं करेइ, एस णं तुमे विदरिसणे दिटे, तं णं तुम इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि । तं णं तुम पिया ! एयस्स ठाणस्ण अालोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउदाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि ।। ४६. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहुलाए भारियाए तह त्ति एयमद्वं विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ निंदइ गरिहइ Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ उवासगदसायो विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अब्भुटेइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ॥ चुल्लसयगस्स उवासगपडिमा-पदं ४७. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ ४८. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं सहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ४६. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसम, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ५०. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। चुल्लसयगस्स अणसण-पदं ५१. तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेण पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पूरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उढाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्ला पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयस जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं प्रणवकखमाणे विहरइ ॥ १. उवा० ११५७ । Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (चुल्लसयए) ४७६ चुल्लसययस्स समाहिमरण-पदं ५२. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहुहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा ° सोहम्मे कप्पे अरुणसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववणे । 'तत्थ णं अत्यगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिअोवमाइं ठिई पण्णत्ता । चुल्लसयगस्स वि देवस्स चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ५३. से णं भंते ! चल्लसयए तापो देवलोगाग्रो अाउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे ° सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ॥ निक्खेव-पदं ५४. • एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण उवासगदसाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ० ॥ १. सं० पा०-चत्तारि पलिओवमाइं ठिई । सेस २. सं० पा०-निक्खेवो । तहेव जाव सिज्झिहिति । Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ8 अज्झयणं कुडकोलिए उक्खेव-पदं १. 'जइ णं भंते समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, छट्ठस्स णं भंते ! अज्झ यणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? ० कुंडकोलियगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कंपिल्लपुरे नयरे । सहस्संबवणे उज्जाणे । जियसत्तू राया ।। ३. "तत्थ णं कंपिल्लपुरे नयरे कुंडकोलिए नाम गाहावई परिवसइ---अढे जाव' बहुजणस्स अपरिभूए । ४. तस्स णं कुडकोलियस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीनो निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीओ वड्विपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीअो पवित्थरपउत्तानो, छब्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ॥ ५. से णं कुंडकोलिए गाहावई बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्डावए यावि होत्था ।। १. सं० पा०-उक्खेवो। छ वढिपउत्ताओ, छ पवित्थरप उत्ताओ, २. ना० १५१७ । छव्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । ३. अस्यानन्तरमतिरिक्तपाठः-'पुढविसिलापट्टए ५. उवा० १११ । चेइए' (ग)। ६. उवा० १११३ । ४. सं० पा०- कुंडकोलिए गाहावई । पूसा ७. उवा० १११३ । भारिया छ हिरणकोडीग्रो निहाणपउत्ताओ, ४८० Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (कुंडकोलिए) ४८१ ६. तस्स णं कंडकोलियस्स गाहावइस्स पूसा नामं भारिया होत्था-अहीण पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ° ।। महावीर-समवसरण-पदं ७. •तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं ओग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । ८. परिसा निग्गया ।। ६. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ ।। तए णं से कुंडकोलिए गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे-"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुवाणुपुटिव चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव कंपिल्लपुरस्स नयरस्स बहिया सहस्संबवणे उज्जाणे अहापडिरूवं प्रोग्गहं अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" तं महप्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं-महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कराबलिकम्मे कय-कोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्याभरणालंकियसरोरे सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं कंपिल्लपुर नयरं मज्झमझणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव सहस्संबवणे उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमसमाणे अभिमूह विणएणं पंजलिउड पज्जूवासइ ।। ११. ताणं समणे भगवं महावीरे कंडकोलियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहा लियाए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ॥ १. उवा० १।१४।। ३. ओ० सू० १६, २२ । २. सं० पा०-सामी समोसढे । जहा कामदेवो ४. ओ० सू० ५३-६६ । तहा सावयधम्म पडिवज्जइ सा सव्वेव ५. ओ० सू० ७१-७७ । वत्तन्वया जाव पडिलाभेमाणी विहरइ । Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ १२. परिसा पडिगया, राया य गए । कुंड कोलियरस गिहिधम्म- पडिवत्ति-पदं १३. तए णं कुंडकोलिए गाहावई समणस्स भगवप्रो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ट - चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो श्रायाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि गं भंते! निग्गंथं पावयणं प्रभुट्ठेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं, भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठिसेणावइ-सत्थवाहपभिइया मुंडा भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु श्रहं तहा संचामि मुंडे भवित्ता प्रगाराओ प्रणगारियं पव्वइत्तए । श्रहं णं देवापियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं - दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवज्जिस्सामि । हासू देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ १४. तणं से कुंडकोलिए गाहावई समणस्स भगवत्रो महावीरस्स अंतिए' सावयधम्मं पडिवज्जइ ॥ भगवो जणवयविहार-पदं १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ कंपिल्लपुराम्रो नयराम्रो सहस्संबवणा उज्जाणा पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ उवसगदाओ कुंड कोलियरस समणोवासग-चरिया-पदं १६. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए जाए- अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गंथे फासू- एसणिज्जेणं असण- पाणखाइम - साइमेणं वत्थ- पडिग्गह-कंबल - पायपुंछणेणं श्रोसहभे सज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ- फलग - सेज्जा - संथारएणं पडिला भेमाणे विहरइ ॥ पूसाए समणोवा सिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा पूसा भारिया समणोवासिया जाया - अभिगयजीवाजीवा १. पू० उवा० १।२४- ५३ । २. उवा० १।५५ । Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (कुंडकोलिए) ४८३ जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्यपडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग सेज्जा-संथारएणं° पडिलाभेमाणी विहरइ ।। देवेण नियतिवाद-समत्थण-पदं १८. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए अण्णदा कदाइ पच्चावरण्हकालसमयंसि' जेणेव असोगवणिया, जेणेव' पुढविसिलापट्टए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ १६. तए णं तस्स कंडकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था ॥ २०. तए णं से देवे नाममुद्दग" च उत्तरिज्जगं' च पुढविसिलापट्टयानो गेण्हइ, गेण्हित्ता 'अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाई पवर परिहिए कुंड कोलियं समणोवासयं एवं वयासी -हंभो ! कुंडकोलिया ! समणोवासया ! संदरी णं देवाणुप्पिया ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-नत्थि उदाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता' सव्वभावा', मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उट्ठाणे इ वा 'कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार -परक्कमे इ वा अणियता" सव्वभावा ।। कुंड कोलिएण नियतिवाद-निरसण-पदं २१. तए णं से कंडकोलिए समणोवासए तं देवं एवं वयासी-जइ णं देवाणप्पिया ! सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सम्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवरो महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अत्थि उटाणे इ वा" 'कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा अणियता १. °उवा ११५६ । मूलपाठः २०४० सूत्रानुसारी स्वीकृतः । २. पुव्वा ° (ख, घ)। ८. नियया (ख, घ)। ३. जेणामेव (क)। ६. सव्वेभावा (ग)। ४ नामामुद्दगं (क, ख, ग)। १०. सं० पा०-उदाणे इ वा जाव परक्कमे । ५. नाममुई (क, ख, घ); नामामुदं (ग)। ११. अनियता (क, घ); अणियया (ख)। ६. उत्तरिज्जं (ख, ग, घ)। १२. पण्णत्ति (ग)। ७. सखिखिणि अंतलिक्खपडिवण्णे (क, ख, ग, १३. सं० पा०-उदाणे इ वा जाव नियता। घ); पाठसंक्षेपकरणेनात्र परिवर्तनं जातम् । १४. स० पा०-उवाले इषा जावपणियता। Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ उवासगदसायो सव्वभावा, तुमे णं देवाणुप्पिया! इमा एयारूवा दिव्या देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणभावे किण्णा' लद्धे ? किण्णा पत्ते ? किण्णा अभिसमण्णागए ? कि उठाणेणं' •कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कार-परक्कमेणं ? उदाहु अणुदाणणं' 'कम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं ° अपुरिसक्कारपरक्कमेणं ? देवेण नियतिवाद-समत्थण-पद २२. तए णं से देवे कुंड कोलियं समणोवासयं एवं वयासी -- एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए इमा एयारूवा' दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे अणुट्ठाणेणं' अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं 'लद्धे पत्ते अभिसम ण्णागए॥ कुंडकोलिएण नियतिवाद-निरसण-पदं २३. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए तं देवं एवं वयासी--जइ णं देवाणप्पिया ! तुमे 'इमा एयारूवा' दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे अणट्ठाणण' 'अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएण' अपूरिसक्कारपरक्कमेण 'लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए", जेसि णं जीवाणं नत्थि उट्ठाणे इ वा" °कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा परिसक्कार -परक्कमे इवा, ते किं न देवा ? 'अह तुब्भे'१२ इमा एयारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणभावे उढाणेणं" 'कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कार -परक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तो जं वदसि सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्तीनत्थि उढाणे इ वा 'कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा° णियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवनो महावीरस्स धम्म १. किणा (क)। परक्कमेणं । २. सं० पा०-उढाणेणं जाव पुरिसक्कारपर- ६. लद्धा पत्ता अभिसम गणागया (क, ख, ग, घ)। क्कमेणं । १०. सं० पा०--उदाणे इ वा जाव परक्कमे । ३. सं० पा.- अणुढाणेणं जाव अपुरिसक्कार- ११. 'क' प्रतौ अस्यानन्तरं--'अह ते एवं भवति, परक्कमेण । तो जं वदसि ०' एवं पाठो विद्यते । 'ग' प्रती ४. इमेयारूवा (क, ख, ग, घ)। 'अह तुब्भे इमा एयारूवा दिव्वा देविड्ढी ३ ५. सं० पा० -अणुट्ठाणेणं जाव. अपुरिसक्कार- उढाणेण जाव परक्कमेणं लद्धा ३ । तं ते एवं परक्कमेणं। न भवति, तो जं वदसि' ० ।। ६. लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया (क्व)। १२. अह णं देवाणुप्पिया तुमे (ख, घ)। ७. इमेयारूवा (क, घ); इमे एयारूवा (ग)। १३. सं० पा०-उट्ठाणेणं जाव परक्कमेणं । ८. स. पा.-अणुट्टाणेणं जाव अपुरिसक्कार- १४. सं० पा०-उट्ठाणे इ वा जाव णियता। Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभय ( कुंडकोलिए) पण्णत्ती प्रत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसकार- परक्कमे इ वा ग्रणियता सव्वभावा, तं ते मिच्छा ॥ देवरस पडिगमण-पदं २४. तए णं से देवे कुंडकोलिएणं समणोवासएणं एवं वृत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिविच्छासमावण्णं कलुससमावण्णे नो संचाएइ कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स किंचि मोक्खमाइक्खित्तए, नाममुद्दगं च उत्तरिज्जयं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं पडिगए || महावीर समवसरण -पदं २५. तेणं काणं तेणं समएणं सामी समोसढे ॥ २६. तए णं से कुंडकालिए समणोवासए इमोसे कहाए लट्ठे समाणे - "एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव कंपिल्लपुरस्स नयरस्स बहिया सहस्संबवर्ण उज्जा ग्रहापडिरूवं प्रोग्गहं योगिन्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ ।” ४८५ तं सेयं खलु मम समणं भगवं महावीरं वंदित्ता णमंसित्ता ततो पडिणियत्तस्स पोस पारेत त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता [ पोसहसाला पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता ? | सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते सयाओ गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता कंपिल्लपुरं नयरं मज्मणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणं उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो श्रायाहिण-पयाहिण करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ || २७. तए णं सगणे भगवं महावीरे कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स तीसे य महइमहालिया परिसाए जाव धम्मं परिकहेइ | महावीरेण पुववृत्तंत- परूवण-पदं २८. कुंडकोलियाइ ! समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियं समणोवासयं एवं क्यासी— १. सं० पा० उट्ठाणे इ वा जाव अणियता । २. संकिए जाव कलुससमावण्णे ( ग ) । ३. ठावेइ (घ) । ४. लट्टे हट्ट (क, ख, ग, घ ); अत्र 'हट्ट' शब्द: किमर्थमुल्लिखितः इति न ज्ञायते । कामदेव वर्णने नासौ उपलभ्यते । सं० पा– लट्ठे जहा कामदेवो तहा निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ | धम्मकहा । ५. ओ० सू० ७१-७७ ॥ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६ उवासगदसाओ से नूणं कुंडकोलिया ! कल्लं' तुम्भं पच्चावरण्हकालसमयंसि' असोगवणियाए एगे देवे अंतियं पाउन्भवित्था। तए णं से देवे नाममुद्दगं च' 'उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयानो गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाई पवर परिहिए तुमं एवं वयासी-हंभो ! कंडकोलिया ! समणोवासया ! संदरी णं देवाणुप्पिया ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-नत्थि उठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवो महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा अणियता सव्वभावा। तए णं तुमं तं देवं एवं वयासी - जइ णं देवाणुप्पिया ! सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव पुरिसक्कार-परकम्मे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवग्रो महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अत्थि उट्ठाणे इ वा जाव पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा अणियता सव्वभावा, तुमे णं देवाणुप्पिया ! इमा एयारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे किण्णा लद्ध ? किण्णा पत्ते ? किण्णा अभिसमण्णागए ? कि उट्ठाणेणं जाव पुरिसक्कार-परक्कमेणं? उदाहु अणुटाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरकम्मेणं ? तए णं से देवे तुमं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए इमा एयारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए। तए णं तुमं तं देवं एवं वयासी जइ णं देवाणुप्पिया! तुमे इमा एयारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, जेसि णं जीवाणं नत्थि उढाणे इ वा जाव परक्कमे इ वा, ते किं न देवा? अह तुब्भे इमा एयारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे उट्ठाणेणं जाव परक्कमणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तो जं वदसि सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव' नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवो महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उढाणे इ वा जाव अणियता सव्वभावा, तं ते मिच्छा। तए णं से देवे तुम एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छासमावण्णे कलुससमावण्णे नो ३. सं० पा०-नामुद्दगं च तहेव जाव पडिगए। २. पुव्वावरण्ह ° (ख, घ)। Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८७ छटुं अग्झयणं (कुंडकोलिए) संचाएइ तुब्भे किंचि पमोक्खमाइक्खित्तए, नाममुद्दगं च उत्तरिज्जयं च पढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं° पडिगए। से नूणं कुंडकोलिया ! अढे समढे ? हंता अस्थि॥ महावीरेण कुंडकोलियस्स पसंसा-पदं २६. प्रज्जोति ! समणे भगवं महावीरे [बहवे ? ] ' समणा निग्गंथा य निग्गंथीयो य आमंतेत्ता एवं वयासी-जइ ताव अज्जो! गिहिणो गिहिमज्झावसंता' अण्णउत्थिए अटेहि य हेऊहि य पसिणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य निप्पट्ठ-पसिणवागरणे करेंति, सक्का पुणाई अज्जो ! समणेहिं निग्गथेहि दुवालसंगं गणिपिडगं अहिज्जमाणेहि अण्णउत्थिया अटेहि य" 'हेऊहि य पसि णेहि य कारणेहि य वागरणे हि य° निप्पट्ठ-पसिणवागरणा करेत्तए। ३०. तए णं [ते बहवे ? ]" समणा निग्गंथा य निग्गंथीयो य समणस्स भगवग्रो महावीरस्स तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेति ।। ३१. 'तए ण से कुंडकोलिए समणोवासए समण भगवं महावीरं वदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पसिणाई पुच्छइ, पुच्छिता अट्ठमादियइ, अट्ठमादित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए। भगवो जणवयविहार-पदं ३२. सामी बहिया जणवयविहारं विहरइ । कुडकोलियस्स धम्मजागरिया-पदं ३३. तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स बहूहिं' 'सोल-व्वय-गुण-वेरमण पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं° भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराई १. हंता अत्थि अस्य पाठस्यानन्तरमेतावान पाठः इति पाठस्यानन्तरं-'अज्जोति ! समणे उपलभ्यते, यथा-त धन्ने सि णं तुमं जहा भगवं महावीरे' इति सूत्रमस्ति (सू० २।४६) कामदेवो तहा पसंसिओ (क); अत्रापि इत्थमेव युज्यते। तं धन्नेसि णं तुम जहा कामदेवो (ख, घ); २. महावीरे बहवे (२०४६) । तं धन्ने सि णं तुम जहा कामदेवो जाव ३. गिहिमज्झे वसंता (क, ग); ° वसंता णं पडिगता (ग); असो अत्र अप्रासंगिकः (ख, वृ)। प्रतीयते। कामदेवाध्ययने 'तं धन्नेसि णं तुम' ४. सं० पा०-अटेहि य जाव निप्पट्ट । इत्यादि वाक्यानि देवो ब्रवीति (सू० २।४०)। ५. ते बहवे समणा (२।४७) । अत्र च भगवतो महावीरस्य संवादप्रसंगे असौ ६. २।४८ सूत्रस्य क्रमः अस्माद् भिन्नोस्ति । पाठोस्ति, किन्तु कामदेवाऽध्ययने 'हंता अत्थि' ७. सं० पा०-बहूहिं जाव भावेमाणस्स । Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ उवासगदसाओ वीइक्कंताई। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा बट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ' 'पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणरस इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं कंपिल्लपुरे नयरे बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कडंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवडावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता ण विहरित्तए॥ ३४. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणं च प्रापुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता कंपिल्लपुरं नयरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ कुंडकोलियस्स उवासगपडिमा-पदं ३५. "तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ ३६. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ ।। ३७. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए दोच्चं उवासगपउिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छठें, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्प अहामग्गं अहातच्च सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तोरेइ कित्तेइ प्राराहेइ॥ ३८. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं १. सं० पा०-कदाइ जहा कामदेवो तहा जेट्ठ- ४. पू०-उवा० ११५७-५६ । पत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्म- ५. सं० पा०-एवं एक्कारस उवासगपडिमाओ। पण्णत्ति। तहेव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणज्झए विमाणे २. उवा० १।१३। जाव अंतं काहिइ। ३. उवा० १११३ । Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (कुंडकोलिए) ४८६ पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकि डियाभूए किसे धमणिसंतए जाए ।। कुडकोलियस्स अणसण-पद ३६. तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल- . समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चितिर पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था –एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेण सुकके लुक्वे निम्मंसे अट्टिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। त अत्थि ता मे उट्ठाण कम्मे बले वोरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे उढाणे कम्मे बले वोरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-असिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणव कंखमाणे विहरइ ।। कुडकोलियस्स समाहिमरण पदं ४०. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए बहूहि सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्का रस य उवासगपडिमानो सम्मं कारणं फासित्ता, मासियाए सलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, पालाइय-पडिक्कते, समाहिपत्त, कालमासे काल किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरस्थिमे णं अरुणज्झए विमाणे देवत्ताए उववण्णे। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। ४१. से णं भंते ! कुंडकोलिए ताओ देवलागाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाण° अंतं काहिइ ॥ निक्खेव-पदं ४२. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं छट्ठस्स अझयणस्स अयमढे पण्णत्ते ° ॥ १. उवा० ११५७ । २. सं० पा०-निक्खेवो। Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं सद्दालपुत्ते उक्खेव-पदं १. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? सद्दालपुत्त-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं° पोलासपुरं नाम नयरं । सहस्संबवणं उज्जाणं । जियसत्तू राया ॥ ३. तत्थ णं पोलासपुरै नयरे सद्दालपुत्ते नामं कुंभकारे' आजीवियोवासए' परिवसइ । आजीवियसमयंसि लढे गहिय? पुच्छिय? विणिच्छियढे अभिगयट्ठ अट्ठिमिजपेमाणुरागरत्ते। "अयमाउसो ! आजीवियसमए अटे अयं परमद्वे सेसे अणद्वे" त्ति आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ४. तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीवियोवासगस्स एक्का हिरण्णकोडी निहाणपउत्तानो एक्का हिरण्णकोडी वड्डिपउत्तानो, एक्का हिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ताओ, एक्के वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं ।। ५. तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स अग्गिमित्ता नामं भारिया होत्था । ६. तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीवियोवासगस्स पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया पंच कुंभारावणसया होत्था ॥ १. सं० पा०-उक्खेवो। (ग); आजीवियओवासगे (घ)। २. ना० ११११७। ५. ति एवं (ग)। ३. कुंभकारे इड्ढे (ख)। ६ कुंभकारा° (ख, घ)। ४. आजीवितोवासते (क); आजीवितोवासए ४१० Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते ) ८ . १ तस्स' णं बहवे पुरिसा दिण्ण भइ भत्तवेयणा कल्ला कल्लिं' बहवे करए य वारए पिए य घडए य अद्धघडए य कलसए य अलिंजरए य जंबूलए य उट्टिया य करेंति । अण्णे य से बहवे पुरिसा दिण्ण भइ भत्तवेयणा कल्ला कल्लि' तेहि बहूहि करएहि य' वारएहि य पिहडएहि य घडएहि य हि कलसहि य अलिंजरएहि य जंबूलएहि य° उट्टियाहि य रायमसि वित्ति कप्पेमाणा विहरति ॥ ७. सद्दालपुत्तस्स देववेसंस-पदं तए णं से सद्दालपुत्ते ग्राजीविनोवासए अण्णदा कदाइ पच्चावरण्हकालसमयं सि' जेणेव असोगवणिया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स प्रतियं धम्मपणत्ति उवसंपज्जिता णं विहरइ ॥ ६. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविश्रवासगस्स एक्के देवे अंतियं पाउन्भवित्था || ८. १०. तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवणे सखिखिणियाई' पंचवण्णाई वत्थाई पवर • परिहिए सद्दालपुत्तं आजीविनोवासयं एवं वयासी - एहिइ णं देवाणुप्पिया ! कल्लं इह महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे तीयप्पडुपण्णाणागयजाणए" अरहा जिणे केवल सव्वष्णू सव्वदरिसी तेलोक्कचहिय" - महिय - पूइए" सदेवमणुयासुरस्त लोगस्स अच्चणिज्जे पूयणिज्जे" वंदणिज्जे" "णमंसणिज्जे सक्का रणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जे तच्च-कम्मसंपयासंपत्ते । तं गं तुमं वंदेज्जाहि" णमंसेज्जाहि सक्कारेज्जाहि सम्माणेज्जाहि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जाहि, पाडिहारिएणं पीढ - फलग-सेज्जासंथारएणं उवनिमंतेज्जाहि । दोच्चं पि तच्च पि एवं वयइ", वइत्ता जामेव दिसं" पाउब्भू, तामेव दिसं पडिगए || १. डा० होर्नल संपादित पुस्तके 'तत्थ' पाठो लभ्यते । १०. तीयपच्चुपण्णाणागय ० ( क ); तीयपडपण्णा२. कल्लाकल्लं (क, ख, ग ) । (ख) | ३. हेमशब्दानुशासन (१/२०१) पिठरे हो ११. प्राचीन लिप्यां वकार- चकारयोः सादृश्यात् केषुचिदादर्शषु 'वहिय' इति पाठोपि दृश्यते । वारश्च डः' । ४. कल्ला कल्लं ( ग ) । १२. पूतिते ( क ) । ५. सं० पा० - करएहि य जाव उट्टियाहि । ६. पुव्वा (ख, घ) । ७. एगे (ख ) । ८. स० पा० - सखिखिणियाई जाव परिहिए । ६. एहीति (क, ग ); एही (ख, घ) । o १३. × (क, ख, ग ) । १४. सं० पा० - वंदणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे । १५. सं० पा० - वंदेज्जाहि जाव पज्जुवा सेज्जाहि । १६. वयासी ( ग, घ ) । १७. दिसि (ख, घ ) । Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ उवासगदसाओ सद्दालपुत्तस्स संकप्प-पदं ११. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीवियोवासगस्स तेणं देवेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे - एवं खलु ममं धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते-से णं महामाहणे उप्पण्णणाणदसणधरे •तीयप्पडुपण्णाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कचहिय-महिय-पूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूयणिज्जे वंदणिज्जे णमंसणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाण मंगलं देवयं चेइयं पज्जवासणिज्जे तच्च-कम्मसंपया-संप उत्ते. से ण कल्लं इह हव्वमागच्छिस्सति । तए ण तं अहं वंदिस्सामि' •णमंसिस्सामि सक्कारेस्सामि सम्माणेस्सामि कल्लाणं मंगल देवय चेइयं° पज्जुवासिस्सामि पाडिहारिएण' •पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं ° उवनिमंतिस्सामि ।। महावीर-समवसरण-पदं १२. तए णं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अह पंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास-किसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्रियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा° जलते समणे भगवं महावीरे' जाव जेणेव पोलासपरे नयरे जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छड उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं योगिण्डित्ता संजमेणं तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ ॥ १३. परिसा निग्गया । १४. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ ।। १५. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीवियोवासए इमीसे कहाए लट्ठ समाणे - "एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव पोलासपुरस्स नयरस्स बहिया सहस्संबवणे उज्जाणे अहापडिरूवं प्रोग्गह अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ॰ विहरइ।" तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि •णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि १. सं० पा०-उप्पण्णणाणदंसणधरे जाव तच्च- ४. सं० पा०-कल्लं जाव जलंते । कम्मसंपया। ५. सं० पा०-महावीरे जाव समोसरिए । २. सं० पा०--वदिस्सामि जाव पज्जुवासि. ६. ओ० सू० १६, २२ । स्सामि। ७. सं० पा०--जाव पज्जुवासइ । ३. सं० पा०--पाडिहारिएणं जाव उवनिमंति- ८. ओ० सू० ५३-६६ । स्सामि। ६. सं० पा०-महावीरे जाव विहरइ । १०. सं० पा०-वंदामि जाव पज्जुवासामि। Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सहालपत्ते) ३६३ कल्लाण मंगलं देवयं चेइयं • पज्जुवासामि-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए' 'कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल ° पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए ° अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे मणुस्सवग्गुरापरिगए सानो' गिहायो पडिणिवखमइ. पडिणिक्खमित्ता पोलासपरं नयरं मज्जा निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, रेत्ता वंदड णमंस इ. वंदित्ता णमंसित्ता •णच्चासणे णाइदूरे सुस्सूसमाणं णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ॥ १६. तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीवियोवासगस्स तीसे य महइ' 'महालियाए परिसाए जाव'धम्म परिकहेइ । महावीरस्स देवसंदेस-निरूवण-पदं १७. सद्दालपुत्ताइ ! समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीवियोवासयं एवं वयासी से नणं सद्दालपुत्ता ! कल्लं तुम पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया, तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता गोसालस्स मखलिपुत्तस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता ण विहरसि । तए णं तुम्भं एगे देवे अतियं पाउब्भवित्था। तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणियाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए तुम ° एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता" ! •एहिइ ण देवाणुप्पिया ! कल्लं इहं महामाहणे जाव तच्च-कम्मसंपया-संपउत्ते । तं णं तुमं वंदेज्जाहि णमसेज्जाहि सक्कारेज्जाहि सम्माणेज्जाहि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जाहि, पाडिहारिएणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं उवनिमतेज्जाहि । दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयइ, वइत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए, तामेव दिसं पडिगए। तए णं तुभं तेणं देवेणं एवं बुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे –एवं खलु मम धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते -से णं महामाहणे जाव' तच्च-कम्मसंपया-संपउत्ते, से णं १. सं० पा०-हाए जाव पायच्छित्ते । ८. पूव्वा (ख, घ)। २. सं० पा०-सुद्धप्पावेसाइं जाव अप्पमहग्घा। ९. सं० पा०-असोगवणिया जाव विहरसि । ३. सयाप्रो (घ)। १०. सं० पा०-अंतलिक्खपडिवणे एवं बयासी। ४. सं० पा०-णमंसित्ता जाव पज्जुवासइ। ११. सं० पा०-सद्दालपुत्ता त चेव सव्व जाव ५. सं० पा०- महइ जाव धम्मकहा समता। पज्जवासिस्सामि । ६. प्रो० सू० ७१-७७ । १२. उवा० ७।१०। ७. °दि (ग)। १३. उवा० ७.११ । Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ उवासगदसाओ कल्लं इह हव्वमागच्छिस्सति । तए णं तं अहं वंदिस्सामि णमंसिस्सामि सक्कारेस्सामि सम्माणेस्सामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासिस्सामि, पाडिहारिएणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं उवनिमंतिस्सामि । से नूणं सद्दालपुत्ता ! अट्ठ समढे? हंता अत्थि। तं नो खलु सदालपुत्ता ! तेणं देवेणं गोसालं मखलिपुत्तं पणिहाय एवं वुत्ते ।। सद्दालपुत्तस्स निवेदण-पदं १८. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीवियोवासयस्स समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे - एस णं समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे' •तीयप्पडुपण्णाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कचहिय-महिय-पूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूयणिज्जे वंदणिज्जे णमंसणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जे तच्च-कम्मसपया-संपउत्ते । तं सेयं खलु ममं समणं भगवं महावोरं वंदित्ता णमंसित्ता पाडिहारिएणं पीढ-फलग' •सेज्जा-संथारएणं ° उवनिमतेतए--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता उट्ठाए उद्वेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु भंते ! मम पोलासपुरस्स नयरस्स बहिया पंच कुंभारावणसया । तत्थ णं तुब्भे पाडिहारियं पीढ'- फलग सेज्जा °-संथारयं ओगिण्हित्ता' णं विहरह ।। महावीरेण सद्दालपुत्त-संबोधण-पदं १६. तए णं से समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स अजीवियोवासगस्स एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सद्दालपुत्तस्स आजीवियोवासगस्स 'पंचसु कुंभारावणसएसु" फासु-एसणिज्ज पाडिहारियं पीढ-फलग'- सेज्जा °-संथारय प्रोगिण्हित्ता णं विहरइ॥ २०. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीवियोवासए अण्णदा कदाइ वाताहतयं कोलालभंड अंतो सालाहितो बहिया नीणेइ, नीणेत्ता प्रायवंसि दलयइ ।। १. सं० पा.---उप्पण्णण्णाणदंसणधरे जाव ५. पंचकुंभ • (ख, घ)। तच्चकम्मसंपया। ६. सं० पा०-फलग जाव संथारयं । २. सं० पा०-पीढ-फलग जाव उवनिमंतेत्तए। ७. वायाहतयं (क, ग); पायाहययं (ख) । ३. सं० पा०-पीढ जाव संथारयं । ८. आतपंसि (ख)। ४. तुगिण्हित्ता (क)। Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम प्रज्झयणं (सद्दालपुसे) ४६५ २१. तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीवियोवासयं एवं वयासी सद्दालत्ता ! एस ण कोलालभंड कहकतो? २२. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीवियोवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी एस णं भंते ! पुदिव मट्टिया आसी, तो पच्छा उदएणं तिम्मिज्जइ', तिम्मिज्जित्ता छारेण य करिसेण य एगयनो मीसिज्जइ, मीसिज्जित्ता चक्के आरुभिज्जति', तो बहवे करगा य वारगा य पिहडगा य घडगा य अद्ध घडगा य कलसगा य अलिंजरगा य जंबूलगा य° उट्टियानो य कज्जति ॥ २३. तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीवि प्रोवासयं एवं वयासी सद्दालपुत्ता ! एस णं कोलालभंडे कि उट्ठाणेणं' 'कम्मेणं बलेणं वीरिएणं' पुरिसक्कार-परक्कमेणं कज्जंति, उदाहु अणुट्ठाणेणं' 'प्रकम्मेणं अबलेणं अवीरि कारपरक्कमेणं कज्जति ? २४. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीवियोवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी भंते ! अणुट्टाणेणं • अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं ° अपुरिसक्कारपरक्कमेणं। नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा° पुरिसक्कार परकम्मे इ वा, नियता सव्वभावा । २५. तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीवियोवासयं एवं वयासी सद्दालपुत्ता ! जइ णं तुब्भं केइ पुरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंडं अवहरेज्ज' वा विक्खिरेज्ज वा भिदेज्ज वा अच्छिदेज्ज" वा परिढुवेज्ज वा, अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरेज्जा, तस्स णं तुमं पुरिसस्स कं" दंडं वत्तेज्जासि ? भंते ! 'अहं णं तं पुरिसं आप्रोसेज्ज वा हणेज्ज वा बंधेज्ज वा महेज्ज" वा १. X (क, ख, ग) प्रायो बहुषु आदर्शेषु केवलं ५. सं० पा०-उट्ठाणेण जाव पुरिसक्कार। 'कतो' पाठो लभ्यते, उत्तरसूत्रे 'कज्जति' ६. सं० पा०-अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कार । इति प्रयोगो विद्यते, तेन प्रश्नसूत्रे 'कहं कतो' ७. सं०पा०- अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कार । इति पाठः उपयुज्यते। ८. सं० पा०-उदाणे इ वा जाव परिसक्कार २. नमिज्जइ (ख): तिमिज्जइ (ग); निमिज्जइ ६. 'ख, ग' प्रत्योः 'जन' स्थाने सर्वत्र 'ज्जा' (घ): पार्टी रणार्थे 'तिम्म' घाविद्यते। विद्यते । तेन 'तिम्मिज्जइ' पाठः स्वीकृतः । 'त-न' १०. विच्छेदेज्ज (वृपा)। वर्णयोः प्राचीनलिप्यां सादृश्येन परिवर्तन ११. किं (ख, घ)। जातमिति प्रतीयते। १२. अहण्णं (ग, घ)। ३. आरोहिज्जइ (ख); आरुहिज्जति (घ)। १३. गहेज्ज (ग)। ४. सं० पा०-करगा य जाव उट्टियाओ। Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ तज्जेज्ज वा तालेज्ज वा निच्छोडेज्ज वा निब्भच्छेज्ज वा, अकाले चेव जीवि याप्रो ववरोवेज्जा ॥ २६. सद्दालपुत्ता ! नो खलु तुब्भं केइ पुरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलाल भंडं अवहरइ वा' विक्खिरइ वा भिदइ वा अच्छिदइ वा परिवेइ वा; अग्गिमित्ताए भारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ ; नो वा तुमं तं पुरिसं आप्रोसेसि' वा हणेसि वा' बंधेसि वा महेसि वा तज्जेसि वा तालीस वा निच्छोडसि वा निब्भच्छसि वा० अकाले चेव जीवियानो ववरोवेसि, जइ नत्थि उट्ठाणे इ वा' 'कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार °-परक्कमे इ वा, नियता सव्वभावा । 'अहं णं तुब्भं केइ पुरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंडं अवहरेइ वा विक्खिरेइ वा भिदेइ वा अच्छिदेइ वा° परिटुवेइ वा, अग्गिमित्ताए वा' 'भारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणे ° विहरइ, तुमं वा तं पुरिसं प्राग्रोसेसि वा "हणेसि वा बंधेसि वा महेसि वा तज्जेसि वा तालेसि वा निच्छोडेसि वा निब्भच्छेसि वा, अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोवेसि, तो जं वदसि नत्थि उदाणे इ वा" कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा, नियता सव्वभावा, तं ते मिच्छा। २७. एत्थ णं से सद्दालपुत्ते आजीवियोवासए संबुद्धे ।। सद्दालपुत्तस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं २८. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीवियोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसह. वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुब्भं अंतिए धम्म निसा मेत्तए। २६. तए णं समणे भगवं महावारे सद्दालपुत्तस्स आजीवियोवासगस्स तोसे य महइमहालियाए परिसाए जाव" धम्म परिकहेइ । ३०. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीवियोवासए समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए . धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतु?" चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए १. पक्कोल्लयं (ग, घ)। २. स० पा०-अवहरइ वा जाव परिदृवेइ । ३. पातोससि (क, ग)। ४. सं० पा०----हणेसि वा जाव अकाले । ५. सं० पा०-उठाणे इ वा जाव परक्कमे। ६. निमिया (क); णितिया (ग)। ७. अहण्णं (क, ग, घ)। ८. सं० पा०-वाताहतं वा जाव परिवेड। ६. सं० पा०-अग्गिमित्ताए वा जाव विहरइ । १०. सं० पा० ---आओसेसि वा जाव ववरोवेसि । ११. सं० पा०--उदाणे इ वा जाव नियता । १२. ओ० सू०७१-७७ ॥ १३. सं० पा०-हट्टतुटु जाव हियए जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ, नवरं एगा Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते) ४६७ हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उठेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथ पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भुटेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-से ट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगारापो अणगारिय पव्वइत्तए । अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ ३१. तए णं से सद्दालपुत्ते समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए' पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमसइ, वदित्ता णमसित्ता जणव पोलासपरे नयरे', जेणेव सए गिहे, जेणेव अग्गिमित्ता भारिया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अग्गिमित्तं भारियं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए' ! 'मए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते । से वि य धम्मे मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए ° । तं गच्छाहि णं तुमं समणं भगवं महावीरं वंदाहि •णमंसाहि सक्कारेहि सम्माणेहि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं • पज्जुवासाहि, समणस्स भगवो महावी रस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जाहि ॥ ३२. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया सद्दालपुत्तस्स समणोवासगस्स तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेइ॥ हिरण्णकोडी निहाणपउत्ता एगा हिरण्णकोडी ३. सं० पा०-देवाणुप्पिए समणे भगवं महावीरे वड्डिषउत्ता एगा हिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ता जाव समोसढे तं । अस्य पाठस्य पतिः एगे वए दसगोसाहस्सिएणं जाव समणं । प्रथमाध्ययनस्य ४५ सूत्रेण जायते । तत्र १. पू०-उवा० १।२४-४५ । 'समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे' एता२. नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोला- दृशः पाठो नास्ति । संभवतः पाठस्य संक्षेपी सपुरं नयरं मझमझेणं (क, ख, ग, घ); करणे किंचित् परिवर्तनं जातम् । प्रथमाध्ययनस्य ४५ सूत्रानुसारेण असौ पाठः ४. सं० पा०-वंदाहि जाव पज्जुवासाहि । अनावश्यकः प्रतिभाति । नास्यार्थसंगतिरपि ५. गिधिधम्म (ग)। विद्यते। Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ उवासादसामो अग्गिमित्ताए वंदणट्ठ-गमण-पदं ३३. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्त-जोइयं समखुरवालिहाण-समलिहियसिंगएहिं जंबूणयामयकलावजुत्त-पइविसिट्ठएहि रययामयघंटसुत्तरज्जुग-वरकंचणखचिय-नत्थपग्गहोग्गहियएहिं' नीलुप्पलकयामेलएहि पवरगोणजुवाणएहिं नाणामणिकणग-घंटियाजालपरिगयं सुजायजुगजुत्तउज्जुग-पसत्थसुविरइयनिम्मियं पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।।। तए णं ते कोडुबियपुरिसा सद्दालपुत्तेणं समणोवासएणं एवं वत्ता समाणा हतूट्र-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्त-जोइयं जाव' धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ३५. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया बहाया 'कयबलिकम्मा कय-को उय-मंगल ° पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिया ° अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा चेडिया चक्कवालपरिकिण्णा धम्मियं जाणप्पवरं दुरहइ, दुरुहित्ता पोलासपुरं नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियायो जाणप्पवरानो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुतो • अायाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता ° वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे" 'सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहे विणएणं° पंजलियडा" ठिइया चेव पज्जुवासइ॥ ३६. तए णं समणे भगवं महावीरे अग्गिमित्ताए तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्म परिकहेइ ॥ १. पुस्तकान्तरे यानवर्णको दृश्यते (वृ)। ८. सं० पा०-सुद्धप्पावेसाइं जाव अप्प२. ° खइय (ख)। महग्घा । ३. नत्थापग्गहो° (ख, ग)। ६. सं० पा०-तिक्खुत्तो जाव वंदइ । ४. ° कयामलएहिं (ख); ° कयमालएहिं (ग)। १०. सं० पा०-णाइदूरे जाव पंजलियडा। ५. सं०पा०-कोडुबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति। ११. पंजलिउडा (ख, घ)। ६. उवा० ११४७ । १२. ओ० सू० ७१-७७ । ७. सं० पा०-हाया जाव पायच्छित्ता। Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते) ४६६ अग्गिमित्ताए गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं ३७. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुटु' चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया उढाए उद्वेइ, उद्वेत्ता ° समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं', 'पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भटेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते । अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेय भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से ° जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा' 'राइण्णा खत्तिया मारणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई अण्ण य बहवे राईसरतलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं° पव्वइया. नो खलु अहं तहा संचाएमि देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्व इत्तए° । अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ ३८. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जइ,पडिज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया, तामेव दिसं पडिगया । भगवो जणवयविहार-पदं ३६. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ पोलासपुरानो नगराओ सहस्संबवणाओ उज्जाणाप्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवय विहारं विहरइ ।। सद्दालपुत्तस्स समणोवासग-चरिया-पदं ४०. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे' जाव' 'समणे १. सं० पा०-हट्टतुट्ठा समणं । २. सं० पा०-पावयणं जाव जहेयं । ३. सं० पा०-भोगा जाव पव्वइया। ४. सं० पा०-भवित्ता जाव अहं । ५. पडिवज्जामि (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा.-अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ। ७. उवा० ११५५ । Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० उवासगदसाओ निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबलपायपुंछणेणं अोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ॥ अग्गिमित्ताए-समणोवासिय-चरिया-पदं ४१. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुंछणेणं अोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा संथारएणं पडिलाभमाणी विहरइ । गोसालस्स प्रागमण-पदं ४२. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते इमीसे कहाए लट्ठ समाणे-एवं खलु सद्दालपुत्ते आजीवियसमयं वमित्ता समणाणं निग्गंथाणं दिट्ठि पवणे, तं गच्छामि णं सद्दालपुत्तं आजीवियोवासयं समणाणं निग्गंथाणं दिढेि वामेत्ता पुणरवि माजीवियदिदि गेण्हावित्तए त्ति कटट–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता आजीवियसंघपरिवुडे जेणेव पोलासपुरे नयरे, जेणेव आजीवियसभा, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंडगनिक्खेवं करेइ, करेत्ता कतिवएहिं आजीविएहिं सद्धि जेणेव सद्दालपुत्ते समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ ।। ४३. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाति नो परिजाणति', अणाढामाणे अपरिजाणमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ गोसालेण महावीरस्स गुणकित्तण-पदं ४४. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तेणं समणोवासएणं प्रणाढिज्जमाणे अपरिजाणिज्जमाणे पीढ-फलग-सेज्जा-संथारटुयाए समणस्स भगवनो महा वीरस्स गुणकित्तणं करेइ'-आगए णं देवाणुप्पिया ! इहं महामाहणे ? ४५. तए णं से सद्दालपुते समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी-के णं देवाणुप्पिया ! महामाहणे? तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी–समणे भगवं महावीरे महामाहणे । १. उवा० ११५६ । २. पडिवण्णे (क, घ)। ३. कतिवतेहिं (क); कइवएहिं (ख, घ)। ४. अढाति (क, ग)। ५. परिजाणाति (घ)। ६. अणाढामीणे (क); अणाढायमाणे (ख, घ)। ७. करेमाणे सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी (क्व)। Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते) ५०१ hi देवाप्पिया ! एवं वच्चइ – समणे भगवं महावीरे महामाहणे ? एवं खलु सद्दालपुत्ता ! समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे' • तीयप्पडुपण्णाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वष्णू सव्वदरिसी तेलोक्क- महिय - पूइ सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूयणिज्जे वंदणिज्जे नमसणिज्जे सक्कार णिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जे • तच्च-कम्मसंपया संपउत्ते । से तेणट्टेणं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइसमणे भगवं महावीरे महामाहणे || ४६. आगए णं देवाणुप्पिया ! इहं महागोवे ? केणं देवाप्पिया ! महागोवे ? समणे भगवं महावीरे महागोवे । से द्वेणं देवाप्पिया' ! एवं वुच्चइ - समणे भगवं महावीरे महागोवे ? एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे ससाराडवीए बहुवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे विलुप्पमाणे धम्ममएणं दंडेणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे निव्वाणमहावाडं साहत्थि संपावेइ । सेट्टेणं सद्दालपुत्ता ! एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे महागोवे || ४७. आगए णं देवाणुप्पिया ! इहं महासत्थवाहे ? hi देवाणुप्पिया ! महासत्थवाहे ? सद्दालपुत्ता ! समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे । सेकेणट्टेणं देवाप्पिया ! एवं वुच्चइ - समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे ? एवं खलु देवाणुपिया ! समणे भगवं महावीरे संसाराडवीए बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे " " खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे • विलुप्पमाणे उम्मग्गपडिवण्णे' धम्ममएणं' पंथेणं' सारक्खमाणे निव्वाणमहासाहत्थि संपावे । से तेणट्टेणं सद्दालपुत्ता ! एवं वुच्चइ - समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे ॥ ४८. आगए " णं देवाणुप्पिया ! इहं महाधम्मकही ? १. सं० पा० – उप्पण्णणाणदंसणघरे जाव महियपूइए जाव तच्च । २. सं० पा० देवाणुपिया जाव महागोवे । ३. आगदे (क ) । ४. से के (क, ख, ग, घ ) । ५. सं० पा० - विणस्समाणे जाव विलुप्पमाणे । ६. × (क) । o ७. धम्ममतेणं (क, ग ) । ८. पथेणं (घ) । ६. निव्वाणमहापट्टणाभिमुहे (ख, घ ) । १०. महासार्थवाहालापकानन्तरं पुस्तकान्तरे इदमपरमधीयते – वृत्तावस्योल्लेखस्यानुसारेण 'महाधम्मकही' इत्यालापकः पाठान्तररूपेण स्वीकृतोऽस्ति । Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ उवासगदसाओ ४६. आप के' णं देवाणुप्पिया ! महाधम्मकही ? समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही। से केणटेणं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही ? एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे महइमहालयंसि संसारंसि बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे विलुप्पमाणे उम्मग्गपडिवण्णे सप्पहविप्पणद्वे मिच्छत्तबलाभिभूए अट्ठविहकम्मतमपडल-पडोच्छण्णे बहूहि अद्वेहि य' 'हेऊहि य पसिणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य निप्पट-पसिण वागरणेहि य चाउरंतानो संसारकंतारामो साहत्थि नित्थारेइ। से तेणटेणं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही। प्रागए णं देवाणुप्पिया ! इहं महानिज्जामए ? के णं देवाणुप्पिया ! महानिज्जामए ? समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए। से केण?ण' 'देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए? एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे संसारमहासमुद्दे बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे 'खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे ° विलुप्पमाणे बुड्डमाणे निबुड्डमाणे उप्पियमाणे धम्ममईए नावाए निव्वाणतीराभिमुहे साहत्थि संपावेइ। से तेण?णं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए ॥ विवाद-पट्रवणा-पसिण-पदं ५०. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसाल मंखलिपुत्तं एवं वयासी-तुब्भे' णं देवाणुप्पिया ! इयच्छेया इयदच्छा इयपट्ठा" इयनिउणा इयनयवादी इयउवएसलद्धा" इयविण्णाणपत्ता। पभू णं तुब्भे मम धम्मायरिएणं धम्मोवएसएणं समणेणं भगवया महावीरेणं सद्धि विवादं करेत्तए ? नो इण? समढ़े। १. से के (क, ख, ग, घ)। ८. धम्ममतीते (क, ग)। २. पडल (क)। ६. तुब्भं (ग)। ३. सं० पा०-अट्रेहि य जाव वागरणेहि। १०. इयच्छेयाओ (ख)। ४. से के (क, ख, घ)।। ११. इयपत्तट्ठा (वृपा)। ५. सं० पा०–केणटेणं एवं । १२. अस्यानन्तरं वृतौ 'इयमेधाविणो' अस्य ६. सं० पा०–विणस्समाणे जाव विलुप्पमाणे। पाठान्तरस्य उल्लेखोस्ति । ७. उप्पिमाणे (क)। १३. णं भंते ! (क, ग)। Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते) ५०३ से केणद्वेण देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-नो खलु पभू तुब्भे मम धम्मायरिएणं' •धम्मोवएसएणं समजेणं भगवया° महावीरेण सद्धि विवादं करेत्तए ? सद्दालपुत्ता ! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे जुगवं' 'बलवं अप्पायंके थिरग्गहत्थे पडिपण्णपाणिपाए पिदंतरोरुसंघायपरिणए घणनिचियवद्रवलियखंधे लंघण-वग्गण-जयण-वायाम-समत्थे चम्मेढ़-दुघण-मुट्ठिय-समाहय-निचियगत्ते उरस्सबलसमन्नागए तालजमलजुयलबाहू छए दक्खे पत्तढे ° निउणसिप्पोवगए एगं महं अयं वा एलयं वा सूयरं वा कुक्कुडं वा तित्तरं वा वट्टयं वा लावयं वा कवोयं वा कविजलं' वा वायसं वा सेणय" वा, हत्थंसि वा पायंसि वा खुरंसि वा पुच्छंसि वा पिच्छंसि वा सिंगंसि वा विसाणं सि वा रोमसि वा जहि-जहिं गिण्हइ, तहि-तहिं निच्चलं निप्फंद करेइ, एवामेव समणे भगवं महावीरे ममं बहूहिं अटेहि य हेऊहि य' •पसिणेहि य कारणे हि य° वागरणेहि य जहि-जहिं गिण्हइ, तहि-तहिं निप्पटू-पसिणवागरणं करेइ। से तेण?णं सद्दालपुत्ता ! एवं वुच्चइ-नो खलु पभू अहं तव धम्मायरिएणं 'धम्मोवएसएणं समणेणं भगवया° महावीरेणं सद्धि विवादं करेत्तए । ५१. तए णं से सद्दालपुत्ते ! समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी- जम्हा ण 'देवाणुप्पिया ! तुब्भे" मम धम्मायरिस्स धम्मोवएसगस्स समणस्स भगवो ° महावीरस्स संतेहि तच्चेहि तहिएहि सन्भूएहिं भावेहिं गुणकित्तणं करेह, तम्हा णं अहं तुब्भे पाडिहारिएणं पीढ"- फलग-सेज्जा-संथारएणं उवनिमंतेमि, नो चेव णं धम्मो त्ति वा तवो त्ति वा। तं गच्छह णं तुब्भे मम कुंभारावणेसु पाडिहारियं पीढ-फलग •सेज्जा-संथारयं° अोगिण्हित्ता णं" विहरह ।। ५२. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स एयमटुं पडिसुणेइ, १. सं० पा०-धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं । ६. सं० पा०-हेऊहि य जाव वागरणेहि । २. सं० पा०--जुगवं जाव निउणसिप्पोवगए। १०. सं० पा०-धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं । ३. तितरं (घ)। ११. तुब्भे देवाणुप्पिया (क)। ४. कविजलि (घ)। १२. सं० पा०-धम्मायरिस्स जाव महावीरस्स। ५. सण्हं (क); सेण्णयं (ख) । १३. करेसि (ख)। ६. निष्पंदं (क)। १४. सं० पा०-पीढ जाव संथारएणं । ७. धरेइ (क, ख, ग)। १५. सं० पा०-फलग जाव ओगिण्हित्ता। ८. एवमेव (ख, ग)। १६. णं उवसंपज्जित्ता णं (क, ख, ग, घ)। Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ उवासगदसामो पडिसुणेत्ता कुंभारावणेसु पाडिहारियं पीढ'- फलग-सेज्जा-संथारयं प्रोगि ण्हित्ता णं विहरइ॥ ५३. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तं समणोवासयं जाहे नो संचाएइ बहूहि आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए' वा, ताहे संते तंते परितंते पोलासपुरानो नयरामो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ॥ सद्दालपुत्तस्स धम्मजागरिया-पदं ५४. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स बहूहिं सील'- व्वय-गुण-वेरमण पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं ° भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छरा वीइक्कता। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स 'अण्णदा कदाइ" पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था—एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए॥ तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च पापुच्छइ, आपुच्छित्ता सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पोलासपुरं नयरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए ° समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति' उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ १. सं० पा०-पीढ जाव ओगिण्हित्ता। क्वचिच्च पूर्ववर्तिशब्दः। अत्रापि इत्थमेव २. विपरिणावित्तए (ग)। विद्यते । तेत द्वितीयाध्ययनस्याधारेणात्र ३. सं० पा०-सील जाव भावेमाणस्स। 'दब्भसंथारोवगए' इति पर्यन्तं पाठः पूरितः । ४. X (क, ख, ग, घ)। ६. उवा० १।१३। ५. सं. पा०-पुव्वरत्तावरत्तकाले जाव पोसह- ७. उवा० १११३ । सालाए समणस्स । संक्षेपीकरणपद्धती प्रायो ८. पू०-उवा० ११५७-५६ । नैकरूपता लभ्यते । क्वचित् 'जाव' शब्दा- ६. धम्म (क) । नन्तरं संक्षिप्तपाठस्य अन्तिमशब्दो निविश्यते Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुते ) सद्दालपुत्तस्स देवरूव कय-उवसग्ग-पदं ५६. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउ भवित्था || o • पुत ५७. तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल' - गवलगुलिय-श्रयसि कुसुमप्पगासं खुरधारं असि गहाय सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया ! दुरंत-पंत- लक्खणा! हीणपुण्णचाउद्दसिया ! सिरि-हिरि - धिइ कित्ति - परिवज्जिया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया सग्गकामया ! मोक्खकामया ! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकंखिया ! मोक्ख कंखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुमं ग्रज्ज सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चवखाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते हं अज्ज जेट्ठपुत्तं सा गिहाम्रो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घात्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहेमि, अत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएग य आइंचामि, जहा गं तुमं श्रट्ट दुहट्टवसट्टे प्रकाले चैव जीविया ववरोविज्जसि ।। ५८. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए प्रत्थे खुभि चलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्भाणोवगए विहरइ ॥ ५६. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं प्रतत्थं अणुव्विग्गं प्रखुभियं अचलियं असंभतं तुसिणीयं धम्मज्भाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्च पि तच्च पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं श्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते श्रहं श्रज्ज जेट्ठपुत्तं साओ गिहा नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहेमि, श्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट दुहट्ट - वसट्टे अकाले चेव जीवियाश्रो ववरोविज्जसि ॥ १. सं० पा० - नीलुप्पल एवं जहा चुलणीपियस्स तव देवो उवसग्गं करेइ नवरं एक्क्के पुत्ते मंससोल्लए करेइ जाव कणीयसं नव ५०५ घाएइ, २ ता जाव श्राइंचइ । २. उवा० २।२२ । Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ ६०. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ॥ तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुद्रे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स जेट्टपुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गो घाएइ, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स गायं मसेण य सोणिएण य प्राइंचइ ।। ६२. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।। मज्झिमपुत्त ६३. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव* जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिम पुत्तं साम्रो गिहायो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ॥ ६४. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ॥ ६५. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासीहंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव जद्द णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिमं पुत्तं सानो गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ॥ ६६. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ ॥ १. उवा० २।२३। २. उवा० २।२४ । ३. उवा० २।२४। ४. उवा० २।२२। ५. उवा० २।२३। ६. उवा० २।२४ । ७. उवा० २।२२। ८. उवा० २।२३। Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयण (सद्दालपुत्ते) ५०७ ६७. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स मज्झिमं पुत्तं गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गओ घाएइ, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता सद्दालपुत्तस्स समणोवास यस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ । ६८. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ॥ °कणीयसपुत्त ६६. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं सानो गिहायो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहेता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ॥ ७०. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ॥ ७१. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव' जइ ण तुमं अज्ज सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं सानो गिहायो नीणमि, नीणत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियं सि कडायंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ॥ ७२. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ॥ १. उवा० २।२४ । २. उवा० २।२७ । ३. उवा० २।२४। ४. उवा० २।२२। ५. उवा० २।२३ । ६. उवा० २।२४ । ७. उवा० २।२२ । ८. उवा० २।२३। Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०८ उवासगदसाओ ७३. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसीमिसीयमाणे सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स कणीयसं पुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गो घाएइ, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयसि अद्दहेइ, अहहेत्ता सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य ° पाइंचइ ।। ७४. 'तए णं से सद्दालपुते समणोवासए तं उज्जलं जाव वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ॥ प्रग्गिमित्ताभारिया ७५. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता चउत्थं पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुम अज्ज सोलाइं वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि ° न भंजेसि, 'तो ते'' अहं अज्ज जा इमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहाइया धम्मविइज्जिया धम्माणुरागरत्ता समसुहदुक्खसहाइया, तं सानो गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्लए करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट - वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ° ववरोविज्जसि ॥ ७६. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव" विहरइ॥ ७७. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव" पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणो १. उवा० २।२४। ५. सं० पा०-समणोवासिया अप्पत्थियपत्थिया २. पूर्ववर्ति क्रमानुसारेण (३।३८) स्वीकृतं सूत्र- जाव न भंजसि । मत्र युज्यते, किन्तु आदर्शेषु नास्य संकेतः ६. उवा० २।२२ । प्राप्तोस्ति । संभवतः संक्षेपीकरणे परित्यक्त- ७. तओ (क, ख, ग, घ)। मिदमभूत् । अस्य स्थाने आदर्शेषु निम्नप्रकारं ८. तं ते (क, ख, ग, घ) । सूत्रं लभ्यते-'तए णं से सद्दालपुत्ते समणो- ६. x (क, ख, ग, घ)। वासए अभीए जाव विहरइ' । नैतद् अत्र १०. सं० पा०-दुहट्ट जाव ववरोविज्जसि । उपयुक्तमस्ति । ११. उवा० २।२३। ३. उवा० २।२७ । १२. उवा० २।२४। ४. उवा० २।२४। Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुते ) वासया' ! 'जाव' जइ णं तुमं प्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहवासान छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं प्रज्ज जा इमा श्रग्गिमित्ता भारिया धम्मसाइया धम्मविइज्जिया धम्माणुरागरत्ता समसुहदुक्खसहाइया, तं साओ गिहाम्रो नीमि, नीणेत्ता तव प्रग्गश्रो घाएमि, घाएता नव मंससोल्ले करेमि, कता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं ग्रट्ट दुहट्ट - सट्टे का चैव जीविया ववरोविज्जसि ॥ 0 सद्दालपुत्तस्स कोलाहल -पदं ७८. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वुत्तस्स समाणस्स ग्रयं प्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जि - त्था' - होणं इमे पुरिसे प्रणारिए प्रणारियबुद्धी प्रणारियाई पावाई कम्माई समाचरति, जेणं ममं जेट्टं पुत्तं, जेणं ममं मज्झिमयं पुत्तं, जेणं ममं कणीयसं पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अहेव, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य° ग्राइंचइ, जा वि य णं ममं इमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहाइया धम्मविइज्जिया धम्माणुरागरत्ता' समसुहदुक्ख सहाइया', तंपि य इच्छइ सानो गिहाम्रो नीणेत्ता ममं अग्गो घाएत्तए । तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिहित्तए त्ति कट्टु उद्भाविए, से वि य आगासे उप्पइए, तेण च खंभे प्रासाइए, महया - महया सद्देणं कोलाहले कए || O श्रग्गिमित्ताए पसिण-पदं ७६. तणं सा श्रग्गिमित्ता भारिया तं कोलाहलसद्दं सोच्चा निसम्म जेणेव सद्दालपुत्ते समणोवास, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी - कण्णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे णं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ? सद्दालपुत्तस्स उत्तर-पदं ८०. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए अग्निमित्तं भारियं एवं वयासो - एवं खलु देवाप्पिए ! न याणामि के वि पुरिसे श्रासुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए १. सं० पा० -- समणोवासया त चेव भणइ । २. उवा० २।२२ । ३. सं० पा० -- समुप्पज्जित्था एवं जहा चुलणीपिया तव चिते । ५०६ ४. सं० पा० पुत्तं जाव आइंचइ । ५. सं० पा० भारिया जाव सम О 1 ६. ममसुहदुक्ख ० ( ख ) । ७. सं० पा० -- उद्धाविए जहा चुलणीपिया तहेव सव्वं भाणियव्वं । नवरं अग्गिमित्ता भारिया कोलाहलं सुणित्ता भइ । सेसं जहा चुलणीपिया वत्तव्वया सव्वा नवरं अरुणच्चए विमाणे उववातो जाव महाविदेहे । Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय ममं एवं वयासीहंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्तं सानो गिहारो नीणमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य ग्राइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता ममं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासीहंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्रेसि न भजेसि, तो ते अहं अज्ज जेटुपुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य पाइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि । तए णं अहं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरामि। तए णं से परिसे ममं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता आसूरत्ते रुदे कविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ममं जेट्टपुत्तं गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ । तए णं अहं तं उज्जलं जाव वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । एवं मज्झिमं पुत्तं जाव वेयणं सम्म सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । एवं कणीयसं पुत्तं जाव वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि। तए ण से पुरिसे ममं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता ममं चउत्थं पि एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव" जइ णं तुमं अज्ज १. उवा० २।२२। २. उवा० २।२३। ३. उवा० २।२४। ४. उवा० २।२२ । ५. उवा० २।२३ । ६. उवा० २।२४। ७. उवा० २।२७ । ८. उवा० ७१६२-६७ । ६. उवा० ७१६८-७३ । १०. उवा० २।२४ । ११. उवा० २।२२। Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समं अभयणं (सद्दालपुत्तै ) ५११ सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तोते अहं अज्ज जाइमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहाइया धम्मविइज्जिया धम्माणुरागरत्ता समसुहदुक्खसहाइया तं साम्रो गिहाम्रो नीमि, नीर्णत्ता तव अग घाम, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि करेत्ता आदाणभरियंसि asia, दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य ग्राइंचामि, जहा णं अ-दु-वस काले चेव जीविया ववरोविज्जसि । तग्रहं ते पुरिसेणं एवं वृत्ते समाणे प्रभीए जाव विहरामि । तसे पुरिसे ममं ग्रभीयं जाव' दोच्चं पि तच्च पि ममं एवं वयासीहंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं ग्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो जाव तुमं श्रट्ट दुहट्ट - वसट्टे ग्रकाले चेव जोविया ववरोविज्जसि । तणं ते पुरिसेणं दोच्चं पि तच्वंपि ममं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - ग्रहो णं इमे पुरिसे अणारिए प्रणारियबुद्धो प्रणारियाई पावाई कम्माई समाचरति, जेणं ममं जेट्ठपुत्तं, जेणं ममं मज्झिमयं पुत्तं, जेणं ममं कणीयसं पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि काह्यंसि ग्रहेइ, ग्रहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, तुमं पियणं इच्छइ साम्रो गिहाओ नीणेत्ता मम अग्गश्रो घाएत्तए, तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिव्हित्तए त्ति कट्टु उद्घाविए से वि य आगासे उपइएमए विखंभे आसाइए, महया - महया सद्देणं कोलाहले कए || पायच्छित्त-पदं ८१. तए णं सा श्रग्गिमित्ता भारिया सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी -नो खलु पुरिसे तव पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता तव ग्रग्गश्रो घाएइ, न खलु केइ पुरिसे तव मज्झिमयं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता तव अघाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुत्तं सा गिहाम्रो नीणेइ, नीत्ता तव अग्गो घाएइ, एस णं केइ पुरिसे तव उवसग्गं करेइ, एस णं तुमं विदरिस दिट्ठे । तं गं तुमं इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि । णं तुमं पिया ! एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि वाहि विसोहि प्रकरणयाए अन्भुट्ठाहि प्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं विज्जाहि ॥ ८२. तए गं से सद्दालपुत्ते समणोवासए अग्निमित्ताए भारियाए तह त्ति एयमट्ठ १. उवा० २।२४ । २. उवा० २।२२ । Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ उवासगदसाओ विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ निंदइ गरिहइ विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अब्भुढेइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ। सद्दालपुसस्स उवासगपडिमा-पदं ८३. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ ८४. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं महाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ । ८५. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं पंचम, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिम अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ८६. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए॥ सद्दालपुत्तस्स प्रणसण-पदं ८७. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स अण्णदा कदाइ, पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उहाणे कम्मे बले वीरिए परिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे,जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स, कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए---एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते अपच्छिममारणंतिय संलेहणा-असणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ ।। सद्दालपुत्तस्स समाहिमरण-पदं ८८. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता वीसं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते) एक्कारस य उवासगपडिमानो सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सढि भत्ताइ अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणच्चए विमाणे देवत्ताए उववण्णे । चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ° महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥ निक्खव-पदं ८६. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते ° ।। १. सं० पा० -निक्खेवो। Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं महासतए उक्खे व-पदं १. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, अट्ठमस्स णं भंते ! अझ यणस्स के अटे पण्णत्ते ? महासतयगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया ॥ ३. तत्थ णं रायगिहे नयरे महासतए' नाम गाहावई परिवसइ-अड्ढे जाव' बहुजणस्स अपरिभूए । ४. तस्स णं महासतयस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरण्णकोडीयो सकंसाओ निहाणपउ त्तानो, अट्ट हिरण्णकोडीयो सकसानो वडिपउत्तानो, अट्ठ हिरण्णकोडीयो सकसानो पवित्थरपउत्तानो, अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था । ५. से णं महासतए गाहावई बहूणं जाव' यापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि यणं कुडुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्डावए यावि होत्था ॥ ६. तस्स णं महासतयस्स गाहावइस्स रेवतीपामोक्खायो तेरस भारियानो होत्था -- १. सं० पा०-उक्खेवो। अट्ठ हि वड्ढि अट्ठ हि सकंसाओ पवि अट्ठवया २. ना० ११११७ । दसगोसाहस्सिएणं वएणं । ३. महासतते (क); महासययं (ख)। ५. उवा० १।११। ४. सं० पा०–अड्ढे जहा आणंदो नवरं अट्ठ ६,७. उवा० १।१३ । हिरणकोडीओ सकसानो निहाणपउत्ताओ ८. रेवई ० (ख, घ)। ५१४ Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (महासतए) ५१५ अहीण'- पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरामो जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमा णीग्रो विहरंति ॥ ७. तस्स णं महासतयस्स रेवतीए भारियाए कोलहरियानो' अट्ठ हिरण्णकोडीओ, अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। अवसेसाणं दुवालसण्ह भारियाणं कोलहरिया एगमेगा हिरण्णकोडी, एगमेगे य वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ॥ महावीर-समवसरण-पदं ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे ॥ ६. परिसा निग्गया ॥ १०. • कूणिए राया जहा, तहा सेणियो निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ ॥ ११. तए णं से महासतए गाहावई इमीसे कहाए लढे समाणे-“एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव रायगिहस्स नय रस्स बहिया गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" तं महप्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगलाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं रायगिह नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव गुणसिलए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउ सई॥ १. सं० पा०-अहीण जाव सुरूवाओ। २. उवा० १।१४। ३. कोलघरियाओ (ख)। ४. कोलघरिया (क, ख, ग, घ)। ५. सं० पा०-जहा आणंदो तहा निगच्छइ । तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ। ६. ओ० सू० ५३-६६ । Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१६ उवासगदसाओ १२. तए णं समणे भगवं महावीरे महासतयस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ।। १३. परिसा पडिगया, राया य गए । महासतयस्स गिहिधम्म पडिवत्ति-पदं १४. तए णं महासतए गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट-चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उढेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-- सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भुटेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंविय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठिसेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइत्तए । अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-- दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ तए णं से महासतए गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए'० सावयधम्म पडिवज्जइ, नवरं-अट्ठ हिरण्णकोडीअो सकंसायो । अट्ट वया। रेवतीपामोक्खाहिं तेरसहिं भारियाहि अवसेसं मेहुणविहिं पच्चक्खाइ । इमं च णं एयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हति ---कल्लाकल्लि 'च णं' कप्पइ मे बेदोणियाए' कंसपाईए हिरण्णभरियाए संववहरित्तए ।। महासतयस्स समणोवासग-चरिया-पदं १६. तए णं से महासतए समणोवासए जाए- अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबलपायपुंछणेणं प्रोसहभेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे ° विहरइ॥ १. ओ० सू० ७१-७७ । २. पू०-उवा० २४-४५ । ३. सकंसाओ उच्चारेति (क, ख, ग)। ४. पच्चक्खाइ सेसं सव्वं तहेव (क, ख, ग, घ)। ५. X (ख)। ६. पेदोणि ° (क)। ७. सं० पा०-अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ । ८. उवा० ११५५ । Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१७ स्सयाई अट्ठमं अज्झयण (महासतए) भगवनो जणवयविहार-पदं १७. तए णं समणे भगवं महावीरे बहिया जणवयविहारं विहरई॥ रेवतीए चिता-पदं १८. तए णं तोसे रेवतीए गाहावइणीए अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंब जागरियं जागरमाणीए ° इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलू अहं इमासि दुवालसण्हं सपत्तीणं' विधातेणं नो संचाएमि' महासतएणं समणोवासएणं सद्धि पोरालाइ मा भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरित्तए । ते सेयं खलु ममं एयायो दुवालस वि सवत्तोयो अग्गिपयोगेण वा सत्थप्पोगेण वा विसप्पनोगेण वा जीवियानो ववरोवित्ता एतासि एगमेगं हिरण्णकोडि एगमेगं वयं सयमेव उवसंपज्जित्ता णं महासतएणं समणोवासएणं सद्धि अोरालाई 'माणुस्सयाइं भोगभोगाई भंजमाणी° विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तासि दुवालसण्हं सवत्तीणं अंतराणि य छिद्दाणि य 'विरहाणि य० पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहर।। रेवतीर सबतो-उद्दवण-पदं १६. तए णं सा रेवती गाहावइणी अण्णदा कदाइ तासि दुवालसण्हं सवत्तीणं अंतरं जाणित्ता छ सवत्तीयो सत्थप्पोगेणं उद्दवेइ, छ सवत्तीपो विसप्पप्रोगेणं उद्दवे इ, उद्दवेत्ता तासि दुवालसण्हं सवतीणं कोलघरियं एगमेगं हिरण्णकोडि, एगमेगं वयं सयमेव पडिवज्जित्ता महासतएणं समणोवासएणं सद्धि ओरालाई माणुस्सयाई भोग भोगाइं भुंजमाणी विहरइ ॥ रेवतीए मंसमज्जासायण-पदं २०. तए णं सा रेवती गाहावइणी मंसलोलुया मंसमुच्छिया •मंसगढिया मंसगिद्धा १. प्राक्तनेषु अध्ययनेषु भगवतो विहारसूत्रं पूर्व ७. सवत्तीयाओ (ख)। तदुत्तरं च श्राव कभवनसूत्रं लभ्यते । इह च ८. एताणं (क); एयासि (ख, घ) । पूर्व थावकभवनसूत्र तदुत्तरं च भगवतो ६. स० पा०-उरालाई जाव विहरित्तए । विहारसूत्रं वर्तते । असो क्रमः समीचीनः १०. विहराणि य विवराणि य (क); विवराणि प्रतिभाति । य (ख)। २. कयाइं (घ)। ११. सत्यप्पतोतेणं (क, ग)। ३. सं० पा०-कुडुंब जाव इमेयारूवे । १२. सं० पा०-मंसमुच्छिया जाव अज्झोववण्णा। ४. पत्तीणं (क); सवत्तीणं (ख)। मंसेसु मुच्छिया (क, ख, घ); मंससमुच्छिया ५. विघाएणं (ख, घ)। ६. संबादेमि (ख)। (ग)। Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१८ उवासगदसाओ सोवण बहुविहेहिं मंसेहिं सोल्ले हि य तलिएहि य' भज्जिएहि य' 'सुरं च महुं च मेरगं च मज्जं च सीधुं च पसण्णं च ' ग्रासाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुं जेमाणी विहरइ ॥ श्रमाघाय-पदं २१. एणं रायगिहे नयरे अण्णदा कदाइ श्रमाघार घुट्टे यावि' होत्था || २२. तए णं सा रेवती गाहावइणी मंसलोलुया मंसमुच्छिया मंसगढिया मंसगिद्धा मंसभोववण्णा कोलघरिए पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुभे देवाणुप्पिया ! ममं कोलहरिए हितो' वएहितो कल्ला कल्लिं दुवे-दुवे गोणपोयए उद्दवे, उद्दवेत्ता ममं उवणेह || २३. तए णं ते कोलघरिया पुरिसा रेवतीए गाहावइणीए तह त्ति एयमट्ठ विणणं पडिसुगंति, पडिणित्ता रेवतीए गाहावइणीए कोलहरिएहितो वएहितो कल्ला कल्लि दुवे- दुवे गोणपोयए' वहेंति' वहेत्ता रेवतीए गाहावइणीए उवणेंति ।। २४. लए णं सा रेवती गाहावइणी तेहिं गोणमंसेहि" सोल्लेहि य तलिएहि य भजिएहि सुरं च महुं च मेरगं च मज्जं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी विहरइ ॥ महासतगस्स धम्मजागरिया-पदं २५. तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स बहूहि सील- व्वय" गुण- वेरमणपच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं • भांवेमाणस्स चोद्दस संबच्छरा asia । पण्णरसमस्त संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे प्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु ग्रहं रायगिहे नयरे बहूणं जाव" श्रापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी जाव" सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं ग्रहं नो संचाएमि समणस्स भगव महावीरस्स प्रतियं धम्मपणत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित " || १. मंसेहिय ( क, ख, ग, घ ) । २. x (क, ग, घ ) । ३. x (घ) । ४. सुरं च पसन्नं च (क) । ५. वि (क ) । ६. घोलघरिए ( क ) । ७. कोल्ल (घ ) । ८. गोणपोतल ( क ) । ६. उवहंति ( ख ) ; गर्हिति ( ग, घ ) । १०. गोमंसेहिं (क, ग ) । ११. सं० पा० - सीलव्वय जाव भावेमाणस्स । १२. स० पा० -वीइक्कंता एवं तहेव जेट्टपुत्तं ठs जाव पोसहसालार धम्मपण्णत्त । १३. उवा० १।१३ । १४. उवा० १।१३ । १५. पू० - उषा० १।५७-५६ । Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्भयणं (महासतए) ५१६ २६. तए णं से महासतए समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परि जणं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहिता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवो महावीरस्स प्रतियं० धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ महासतगस्स अणुकूल-उवसग्ग-पदं २७. तए णं सा रेवती गाहावइणी मत्ता लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं 'विकड़ माणी-विकमाणी' जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोहुम्मायजणणाई सिंगारियाइं इत्थिभावाइं उवदंसेमाणी'-उवदसेमाणी महासतयं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो! महासतया ! समणोवासया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया ! सग्गकामया ! मोक्खकामया ! धम्मकंखिया! पुण्णकंखिया ! सग्गकंखिया ! मोक्खकंखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! 'किं " तुभं देवाणप्पिया ! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जंणं तुम मए सद्धि अोरालाई 'माणुस्सयाइं भोगभोगाइं ° भुंजमाणे नो विहरसि ? २८. तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमद्वं नो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ ।। २६. तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो ! •महासतया ! समणोवासया ! कि णं तुब्भं देवाणप्पिया ! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुमं मए सद्धि ओरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाइं भुंजमाणे नो विहरसि ? १. कड्ढिज्जमाणी-कड्ढिज्जमाणी (क); विकट्ट- (ख, ग, घ) । ___ माणी-विकट्टमाणी (ख)। ६. अपरियाणिज्जमीणे (क); अपरियाणिज्जमाणे २. दंसेमाणी २ (ख)। (ख,ग,घ)। ३. किणं (घ)। ७. सं० पा०-हंभो ! तं चेव भणइ सो वि तहेव ४. सं० पा०--उरालाइं जाव भुंजमाणे । जाव अणाढायमाणे । ५. अणाढाइज्जमीणे (क); अणाढाइज्जमाणे ८. पू०-उवा० ५।२७ । Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० उवास गदसाओ ३०. तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए दोच्च पि तच्च पि एवं वृत्ते समाणे एयमट्ठे नो श्राढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियामाणे विहरइ ॥ ३१. तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतएणं समणोवासएण प्रणाढाइज्जमाणी परियाणिज्माणी जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया || महासत गस्स उवासगपडिमा -पदं ३२. तए णं से महासतए समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता गं विहरइ | ३३. तए णं से महासतए समणोवासए पढमं उवास गपडिमं अहासुत्तं महाकप्पं अहामगं हातच्च सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ ॥ ३४. तए णं से महासतए समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठ, सत्तमं मं नवमं दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं महासुतं ग्रहाकप्पं ग्रहामग्गं अहातच्च सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ राहे ॥ o ३५. तए णं से महासतए समणोवासए तेणं श्रोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लक्खे निम्मंसे अचम्मावणद्धे किडिविडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए ॥ महासतगस्स श्रणसण-पदं ३६. तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासयगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स श्रयं अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समु o ज्जित्था एवं खलु श्रहं इमेणं प्रराणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मे सुक्के लक्खे निम्मंसे अट्टिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धर्माणिसंतए जाए । तं प्रत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार- परकम्मे सद्धा इ-संवेगे, तंजावता मे अस्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे सद्धा-धि-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा १. सं० पा० पढम अहासुत्त जाव एक्कारस्स ३. स० पा० - उरालेण तवोकम्मेण जहा वि । आणंदो तहेव अपच्छिम | २. सं० पा० - उरालेणं जाव किसे । ४. उवा० ११५७° । Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अभयणं (महासतए) ५२१ असणा-झसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए -- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते ० 'अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा झसिए' भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकखमाणे विहरइ ।। महासतगस्स अोहिनाणप्पत्ति-पदं ३७. तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स सुभेणं अज्झवसाणणं' 'सुभेणं परिणामेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहि, तदावरणिज्जाणं कम्माणं° खग्रोवसमेणं प्रोहिणाणे समुप्पण्णे पुरथिमे णं लवणसमुद्दे जोयणसाहस्सियं खेत्तं जाणइ पासइ, 'दक्खिणे णं लवणसमुद्दे जोयणसाहस्सियं खेत्तं जाणइ पासइ, पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे जोयणसाहस्सियं खेतं जाणइ पासइ° उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासहरपव्वयं जाणइ पासइ, [उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणइ पासइ?] * अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीइवाससहस्सद्विइयं जाणइ पासइ ।। महासतगस्स पुणर वि अणुकूल-उवसग्ग-पदं ३८. तए णं सा रेवती गाहावइणी अण्णदा कदाइ मत्ता' 'लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं विकड्डमाणी-विकड्डमाणी 'जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए", तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महासतयं समणोवासयं एवं वयासी-भो ! महासतया ! समणोवासया ! किं णं तुब्भं देवाणुप्पिया ! धम्मेण वा पुण्णण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुम मए सद्धि अोरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाइं भुंजमाणे नो विहरसि ? ३९. तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमद्वं नो अाढाइ नो १. ° संलेहणाए झूसियसरीरे (क,ख,ग,घ)। ५. स० पा०—मत्ता जाव उत्तरिज्जय । २. सं० पा०-अज्झवसाणेणं जाव खओव- ६. जेणेव महासत्तए समणोवासए जेणेव समेणं। पोसहसाला (क,ख,ग,घ)। अत्र संभवतो ३. सं० पा०–एवं दक्खिणे णं पच्चत्थिमे णं लिपिदोषेण क्रमपरिवर्तनं जातम् । किन्तु उत्तरे ण। पूर्वसूत्रस्य (सू. २६) अनुसारेण स्वीकृतपाठ ४. कोष्ठकान्तर्वर्ती पाठः प्रयुक्तादर्शेषु कस्मि- एव उपयुज्यते । न्नपि नोपलभ्यते । 'अहे इमीसे रयणप्प- ७. सं० पा०- महासतयं तहेव भणइ जाव भाए"जाणइ पासइ' एष पाठः 'क' प्रतौ दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो ! नास्ति। संभवतः सक्षिप्तलिपिपद्धत्या तहेव। परिवर्तनमिदं जातम् । अत्र द्वावपि पाठौ ८. पू०-उवा० ८।२७ । युज्यते। Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ उवासगदसाओ परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ ।। ४०. तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो ! महासतया ! समणोवासया' ! किं णं तुब्भं देवाणुप्पिया ! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुम मए सद्धि अोरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुंजमाणे नो विहरसि ? ० महासतगस्स विक्खेव-पदं ४१. तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते' रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे प्रोहिं पउंजइ, पउंजित्ता प्रोहिणा आभोएइ, आभोएत्ता रेवति गाहावइणि एवं वयासी-हंभो ! रेवती ! अप्पत्थियपत्थिए ! दुरंत-पंत-लक्खणे! हीणपुण्णचाउद्दसिए ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिए! एवं खलु तुमं अंत सत्तरत्तस्स अलसएणं' वाहिणा अभिभूया समाणी अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा असमाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीतिवाससहस्सटिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि ॥ तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतएणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणी --- रुद्रु णं ममं महासतए समणोवासए ! हीणे णं ममं महासतए समणोवासए ! अवज्झाया णं अहं महासतएणं समणोवासएणं, न नज्जइ णं' अहं केणावि' कु-मारेणं मारिज्जिस्सामि-त्ति कट्ट भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणेव सए गिहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रोहयमणसंकप्पा' 'चिंतासोगसागरसंपविट्ठा करयल पल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठिया ° झियाइ ॥ ४३. तए णं सा रेवती गाहावइणी अंतो सत्तरत्तस्स अलसएणं' वाहिणा अभिभूया अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीतिवाससहस्सटिइएसु नेरइएसु ने रइयत्ताए उववण्णा ।। ४२. १. पू०-उवा० ८।२७ । २. आसुरुत्त (क,ख,ग,घ)। ३. आलस्सएणं (क); आलस्सएणं (ख)। ४. समाणी एवं च (क,ग,घ); समाणी एवं वयासी (ख); किन्तु प्रकरणानुसारेण नेवं युज्यते । ५. X(ग, घ)। ६. केणति (क); केण वि (ख, घ)। ७. सं० पा०-ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ। ८. आलस्सएण (क); आलसएणं (ख); अलस्सएणं (ग)। Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२३ अट्ठमं अज्झयणं (महासतए) महावीर-समवसरण-पदं ४४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए । ४५. परिसा पडिगया ।। महासतगस्स अंतिए गोतम-पेसण-पदं ४६. गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-एवं खल गोयमा ! इहेव रायगिहे नयरे ममं अंतेवासी महासतए नाम समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिममारणंतियसंलेहणाए झूसियसरीरे भत्तपाण-पडियाइक्खिए, कालं अणवकंखमाणे विहरइ॥ तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स रेवती गाहावइणी मत्ता' 'लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं° विकमाणी-विकमाणी जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोहुम्माय जणणाई सिंगारियाइं इत्थिभावाइं उवदंसेमाणी-उवदंसेमाणी महासतयं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! महासतया ! समणोवासया' ! कि णं तुब्भं देवाणुप्पिया! धम्मेण वा पुण्णण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुमं मए सद्धि अोरालाई माणुस्सयाई भोग भोगाइं भंजमाणे नो विहरसि ? तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमटुं नो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ। तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी। तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते रु? कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे अोहिं पउंजइ, पउंजित्ता प्रोहिणा प्राभोएइ, अाभोएत्ता रेवति गाहावइणि एवं वयासी - 'हभो ! रेवती ! अप्पत्थियपत्थिए ! दुरंत-पंत-लक्खणे! हीणपुण्णचाउद्दसिए ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिए ! एवं खलु तुम अंतो सत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूया समाणी अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा असमाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीतिवाससहस्सट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए ° उववज्जिहिसि । नो खलु कप्पइ गोयमा ! समणोवासगस्स अपच्छिम मारणंतियसंलेहणा १. सं० पा०—मत्ता जाव विकड्ढमाणी। ३. पू०-उवा० ८।२७। २. सं० पा.-मोहम्माय जाव एवं वयासी ४. सं. पा०-वयासी जाव उववज्जिहिसि । तहेव जाव दोच्चं पि। ५. सं० पा० ---अपच्छिम जाव झसियस्स। Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ उवासगदसाओ झूसणा ° -झूसियस्स' भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स' परो संतेहिं तच्चेहि तहिएहिं सब्भूएहि अणिद्वेहि अकतेहि अप्पिएहिं अमणुण्णेहिं अमणामेहिं वागरणेहि वागरित्तए। तं गच्छ णं देवाणुप्पिया ! तुमं महासतयं समणोवासयं एवं वयाहि---नो खलू देवाणप्पिया ! कप्पइ समणोवासगस्स अपच्छिम मारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसियस्स ° भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स परो संतेहि "तच्चेहि तहिएहिं सब्भूएहि अणिडेहिं अकंतेहि अप्पिएहिं अमणुण्णेहिं अमणामेहि वागरणेहि° वागरित्तए तुमे य णं देवाणुप्पिया ! रेवती गाहावइणी संतेहिं तच्चेहि तहिएहिं सब्भूएहिं अणिटेहिं अकतेहिं अप्पिएहिं अमणुण्णेहि अमणामेहिं वागरणेहिं वागरिया। तं णं तुमं एयस्स ठाणस्स अालोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि प्रकरणयाए अब्भुट्ठाहि° अहारिहं" पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि ॥ गोतमरस आगमण-पदं ४७. तए ण से भगवं गोयमे समणस्स भगवनो महावीरस्स तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणे इ, पडिसुणेत्ता तो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिह नयरं मझमझेणं अणप्पविसह, अणप्पविसित्ता जेणेव महासतगस्स समणोवासगस्स गिहे जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ ।। महासतगस्स वंदण-पदं ४८. तए णं से महासतए समणोवासए भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ट तुटु-चित्तमाणदिए पीइमाणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण ° हियए भगवं गोयम वंदइ नमसइ ।। महावीरुत्तस्स कहण-पदं ४६. तए णं से भगवं गोयमे महासतयं समणोवासयं एवं वयासी-एवं खलू देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खइ भासइ पण्णवेद परूवेइनो खलु कप्पइ देवाणुप्पिया ! समणोवासगस्स अपच्छिम "मारणंतियसलेहणा ७. जहारिहं (क, ख, ग, घ)। ८. अस्यानन्तरं 'जेणेव पोसहसाला' इति पाठः अपेक्ष्यते । किन्तु कस्मिन्नप्यादर्श नोपलब्धो १. झूसियस्स सरीरस्स (ख, ग, घ)। २. पडिगयाइक्खितस्स (क)। २. x (ग)। ४. सं० पा०-अच्छिम जाव भत्तपाण । ५. सं० पा०-संतेहिं जाव वागरित्तए । ६. सं० पा०-आलोएहि जाव प्रहारिहं । स्ति । ६. सं० पा०-हट जाव हियए। १०. सं० पा०-अपच्छिम जाव वागरित्तए। Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमं अयणं ( महासतए) भूसणा-भूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स परो संतेहि तच्चेहिं तहिएहि सब्भूएहि णिहि तेहि अप्पिएहि मणुष्णेहि श्रमणामेहिं वागरणेहिं वारित्तए । तुमे णं देवाप्पिया ! रेवती गाहावइणी संतेहि' 'तच्चेहि तहिएहि सभूएहिं प्रणिहितेहि अप्पिएहि मणुण्णेहिं श्रमणामेहिं वागरणेहिं वागरिया । तं गं तुमं देवाणुप्पिया ! एयस्स ठाणस्स झालोएहि पडिक्क माहि निदाह गरिहाहि विट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए प्रभुद्वाहि ग्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं परिवज्जाहि ॥ महासतगस्स पायच्छित्त-पदं ५०. तए णं से महासतए समणोवासर भगवत्रो गोयमस्स तह त्ति एयमट्ठे विणणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ निंदइ गरिहइ विउ विसोइ प्रकरणयाए प्रभु ग्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं विज्जइ ॥ ० गोयमस्स पडिणिक्खमण-पदं ५१. तए णं से भगवं गोयमे महासतगस्स समणोवा सगस्स ग्रंतिया पडिणिक्खमइ, डिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मज्भंमज्भेणं निग्गच्छइ, निम्गच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदनमंसइ, वंदित्ता नमसित्ता संजमेणं तवसा श्रप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ भगवो जणवयविहार-पदं ५२५ ५२. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ रायगिहाम्रो नराम्रो पडिणिas, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ महासतगस्स प्रणसण-पदं ५३. तए णं से महासतए समणोवासए बहूहिं सील- व्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाणपोसहवासेहिं प्रप्पाणं • भावेत्ता वोसं वासाई समणोवासगपरियायं पाउ णित्ता एक्कारस य उवासगपडिमा सम्मं कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं सित्ता, सट्ठि भत्ताई प्रणसणाए छेदेत्ता, ग्रालोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणवडेंसए" विमाणे १. सं० पा० - संतेहिं जाव वागरिया ! २. सं० पा० - आलोएहि जाव पडिवज्जाहि । ३. पडिच्छति ( क ) । ४. सं० पा० - आलोएइ जाव अहारिहं । ५. जहारिहं (क, ख, ग, घ ) । ६. सं० पा० - सीलव्वयगुणेहिं जाव भावेत्ता । ७. ० वडिसए ( ख, ग, घ ) । Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ उवासगदसाओ देवत्ताए उववण्णे। चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं ५४. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं अट्टमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते ।। १. सं० पा०-निक्खेवो। Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं नंदिणोपिया उक्खे व-पदं १. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ?' नंदिणीपियगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया ॥ ३. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए नंदिणीपिया नाम गाहावई परिवसइ-अड्ढे 'जाव* बहुजणस्स अपरिभूए । तस्स णं नंदिणीपियस्स गाहावइस्स ° चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्तानो, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वड्डिपउत्तानो, चत्तारि हिरण्णकोडीअो पवित्थर पउत्तानो, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था । ५. से णं नंदिणीपिया गाहावई बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था ।। १. सं० पा०-उक्खेवो। २. ना० १११।७। ३. सं० पा०–अड्ढे । चत्तारि । ४. उवा० १।११। ५. सं० पा०-अस्सिणी भारिया। सामी समोसढे जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ । सामी बहिया विहरइ । ६. उवा० १११३ । ७. उवा० १।१३। ५२७ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ उवासगदसाओ ६. तस्स णं नंदिणीपियस्स गाहावइस्स अस्सिणी नामं भारिया होत्था- अहीण पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ।। महावीर-समवसरण-पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । ८. परिसा निग्गया। ६. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ । १०. तए णं से नंदिणीपिया गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे -“एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नयरीए बहिया कोट्टए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" तं महाफलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमसामि सक्कारेमि सम्माणमि कल्लाण मंगल देवयं चेदयं पज्जवासामि-- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पहाए कयबलिकम्मे कय-कोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालं कियसरीरे सयानो गिहाम्रो पडिणिवखमइ, पडिणिवखमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं सावत्थि नयरिं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव कोट्टए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ॥ ११. तए णं समणे भगवं महावीरे नंदिणीपियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहा लियाए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ।। १२. परिसा पडिगया, राया य गए । नंदिणीपियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३. तए णं से नंदिणीपिया गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्म १. उवा० १११४ । २. ओ० सू० ५३-६६ । ३. ओ० सू० ७१-७७ । Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (नंदिणीपिया) ५२६ निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उद्वेइ, उद्वेता समगं भगवं महावीरं तिक्खु त्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते ! निगंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भटेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भते ! इच्छिप-पडिच्छि घमेयं भंते ! से जहेयं तब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भसेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइत्तए। अहं णं देवाणप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि। अहासुहं देवाणु प्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ १४. तए णं से नंदिणीपिया गाहावई समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए' सावय धम्म पडिवज्जइ॥ भगवनो जणवयविहार-पदं १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ सावत्थीए नयरीए कोट्ठयानो चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। नंदिणीपियस्स समणोवासगचरिया-पदं १६. तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए जाए'... अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुंछणेणं अोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ ।। अस्सिणीए समणोवासिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा अस्सिणी भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुंछणणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जासंथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ ।। १. पू०-उवा० ११२४-५३ । २. सं० पा०-जाए जाव विहरइ । ३. उवा० ११५५। ४. उवा० ११५६ । Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३० नंदिणीपियस्स धम्मजागरिया-पदं १८. तए णं तस्स नंदिणीपियस्स समणोवासगस्स बहूहि सील व्वय-गुण- वेरमणपच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोइस संवच्छराई वीइक्कंताई', 'पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे ग्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु अहं सावत्थीए नयरीए वहूणं जाव' प्रापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेण वक्खेवेणं ग्रहं नो संचाएमि समणस्स भगव महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्त उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए | १६. तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए जेट्ठपुत्तं मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधिपरिजणं च ग्रापुच्छइ, ग्रापुच्छित्ता सयाम्रो गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सार्वत्थिनयर मज्भंमज्भेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपावणभूमि पडिलेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरूह, दुरुहित्ता पोसहसा लाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगव महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्त उवसंपज्जित्ता णं विहरइ || नंदिणी पियस्स उवासगपडिमा पदं २०. तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरs || २१. तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए पढमं उवासगपडिमं ग्रहासुतं महाकप्पं अहामग्गं हातच्च सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तोरेइ कित्तेइ प्राराहेइ || २२. तणं से नंदिणोपिया समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठ, सत्तमं मं नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं ग्रहासुत्तं हाकप्पं ग्रामग्गं हातच्च सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ ग्राहेइ | २३. तए गं से नंदिणीपिया समणोवासए तेणं मोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवम्मेणं सुक्के लक्खे निम्मंसे अचिम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धर्माणिसंतए जाए । १. सं० पा०-- गुण जाव भावेमाणस्स । २. सं० पा० वी इक्कंताई तहेव जेट्ठपुत्तं ठवे । धम्मपत्ति । वीसं वासाइं परियागं नाणत्तं अरुणगवे विमाणे उववाओ महा उवासगदसाओ विदेहे वासे सिज्झिहिइ । ३. उवा० १।१३ । ४. उवा० १।१३ । ५. पू० उवा० १।५७-५६ । Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (नंदिणीपिया) ५३१ नंदणीपियस्स अणसण-पदं २४. तए णं तस्स नंदिणीपियस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था- एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठि चम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उटाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उदाणे कम्मे बले वारिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थो विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-सियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ॥ नंदणोपियस्स समाहिमरण-पदं २५. तए णं से नंदिणोपिया समणोवासए बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाइं समणोवासगपरियायं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्म काएण फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सर्टि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणगवे विमाणे देवत्ताए उववण्णे। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता। नंदिणीपि यस्स वि देवस्स चत्तारि पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता॥ २६. से णं भंते ! नंदिणोपिया तारो देवलोगाप्रो अाउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्ख एणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! • महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥ निक्खेव-पदं २७. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं नवमस्स अज्झय गत्ते ॥ १. उवा० ११५७ । २. सं० पा०--निक्खेवो। Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव - पर्द १. ' जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंग उवासगदसाणं नवमस्स ग्रज्यणस्स श्रयमट्ठे पण्णत्ते, दसमस्स णं भंते ग्रज्झयस के पण्णत्ते ? • दसमं अयणं लेइयापिता लेइयापितागाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी | कोट्ठए चेइए । जियसत्तू राया ॥ ३. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए लेतियापिता नामं गाहावई परिवसइ --ग्रड्ढे " जाव' बहुजणस्स परिभूए ॥ ४. तस्स णं लेइयापियस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्तानो, चत्तारि हिरण्णकोडी वढिपत्ता, चत्तारि हिरण्ण कोडीओ पवित्थरपउताओ, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ॥ ५. सेणं लेइयापिता गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्ढावए यावि हत्था || १. सं० पा० उक्खेवो । २. ना० १।१।७ । ३. सालिहीया पिया ( ख ) 1 ४. सं० पा - प्रड्ढे । चत्तारि । ५. उवा० १।११ । ६. सं०पा० - फग्गुणी भारिया । सामी समोसढे । जहा आणंदो तहेव गिहिधम्मं पडिवज्जइ । जहा कामदेवो तहा जेट्ठ पुत्त ५३२ ठवेत्ता पोसहसालाए । समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ | नवरं निश्वसग्गो एक्कारस्स वि उवासगपडिमाओ तहेव भाणियव्व ओ । एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं जाव सोहम्मे । ७. उवा० १।१३ । ८. उवा० ११३ | Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम अझयणं (लेइयापिता) ६. तरस णं लेतियापियरस गाहावइरस फागुणी नामं भारिया होत्था- अहीण __पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ।। महावीर-समवसरण-पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । ८. परिसा निग्गया ॥ ६. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ ।। १०. तए णं से लेतियापिता गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे-“एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुवि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नयरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।” त महप्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किंमग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जूवासणयाए ? एगस्स वि पारियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्काराम सम्माणाम कल्लाण मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासामि-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे सयानो गिहारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं सावत्थि नरिं मझमझेणं निग्गच्छइ,निग्गच्छिता जेणामेव कोट्टए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ॥ ११. तए णं समणे भगवं महावीरे लेतियापियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालि __याए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ।। १२. परिसा पडिगया, राया य गए । लेतियापियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं २३. तए णं से लेतियापिया गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्म - सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस ३. ओ० सू०७१-७७ । १. उवा० १११४ । २. ओ० सू० ५३.६६ । Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ विसप्पमाणहियए उट्टाए उद्वेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीसद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोमि णं भंते ! निगंथं पावयणं. अब्भदेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माइंबिय-कोडुबियइब्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयंदूवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि ।। ग्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ।। १४. तए णं से लेतियापिता गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए' सावय धम्म पडिवज्जइ॥ भगवनो जणवय विहार-पदं । १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ सावत्थीए नयरीए कोट्टयानो _चेइयानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। लेतियापियस्स समणोवासग-चरिया-पदं १६. तए णं से लेतियापिता समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबलपायपुछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ॥ फग्गुणीए समणोवासिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा फग्गुणी भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा जाव' समणे निगंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुछणेणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथार एणं पडिलाभेमाणी विहरइ॥ लेतियापियस्स धम्मजागरिया-पदं १८. तए णं तस्स लेतियापियस्स समणोवासगस्स बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण ३. उवा० ११५६ । १. पू०-उवा० १।२४-५३ । २. उवा० ११५५। Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम अज्झयण (लेइयापिता) ५३५ पच्चवखाण-पोसहोववासे हि अप्पाणं भावमाणस्स चोद्दस संवच्छ राई वीइक्कंताई पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -एवं खलु अहं सावत्थीए नयरीए बहूणं जाव पापुच्छणिज्जे पडिपूच्छणिज्जे सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए॥ १६. तए णं से लेतियापिता समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सावत्थि नरि मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ लेतियापियस्स उवासगपडिमा-पदं २०. तए णं से लेतियापिता समणोवासए पढमं उवासगपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ २१. तए णं से लेतियापिता समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं महाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ ।। २२. तए णं से लेतियापिता समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ॥ २३. तए णं से लेतियापिता समणोवासए तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। लेतियापियस्स अणसण-पदं २४. तए णं तस्स लेतियापियस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल ३. पू०-उवा० ११५७-५६ । १. उवा० १६१३। २. उवा० १११३ । Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसायो समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्टिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पूरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उदाणे कम्मे बले वीरिए परिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव' य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइविखए कालं अणवकंखमाणे विहरइ ॥ लेतियापियस्स समाहिमरण-पदं २५. तए णं से लेतियापिता समणोवासए बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाइं समणोवासगपरियायं पाउणित्ता. एक्कारस य उवासगपडिमानो सम्मं कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सद्धि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा ° सोहम्मे कप्पे अरुणकीले विमाणे देवत्ताए उववण्णे। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता । लेतियापियस्स वि देवस्स चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ २६. से णं भंते ! लेतियापिता तारो देवलोगारो आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥ निक्खेव-पदं २७. एवं खलु जंबू ! समणे णं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ॥ १. उवा० ११५७ । २. अध्ययननिगमनानन्तरमादर्शेषु पाठान्तररूपेण स्वीकृतं संग्रहवाक्यमुपलभ्यते । वृत्त्यनुसारेण नैतत् संभाव्यते-दसण्ह वि पण्णरसमे संवच्छरे वद्रमाणे णं चित्ता। दसह वि वीसं वासाइं समणोवासयपरियानो (क, ख, ग, घ)। Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं (लेइयापिता) २८. 'एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाण अयम? पण्णत्ते॥ परिसेसो उवासगदसाणं सत्तमस्स अंगस्स एगो सुयखंधो। दस अज्झयणा एक्कसरगा दससु चेव दिवसेसु उद्दिस्संति । तओ सुयखंधो समुद्दिस्सइ। तो सुयखंधो अणुण्णविज्जइ दोसु दिवसेसु अंगं तहेव ।। ग्रन्थ-परिमाण अक्षर परिमाण-८७८१२ अनुष्टुप् श्लोक-परिमाण-२७४४ ला १. आदर्शषु एतद् निगमनवाक्यं नोपलभ्यते, २. अतोग्रे एताः संग्रहगाथा आदर्शषु नोप किन्तु वृत्ती अस्योल्लेखो विद्यते--‘एवं खलु लभ्यन्ते । वृत्तौ पुस्तकान्तरप्राप्ते रुल्लेखोस्ति, जंब'! इत्यादि उपासकदशानिगमनवाक्यम- यथा-पुस्तकान्तरे संग्रहगाथा उपलभ्यन्ते ध्येयमिति । ताश्चेमाः वाणियगामे चंपा, दुवे य वाणारसीए नयरीए। आलभिया य पुरवरी, कम्पिल्लपुरं च बोद्धव्वं ॥१॥ पोलासं रायगिह, सावत्थीए पुरीए दोन्नि भवे। एए उवासगाणं, नयरा खलु होति बोद्धव्वा ॥२॥ सिवनन्द-भद्द-सामा, धन्न-बहुला पूस-अग्गिमित्ता य । रेवइ-अस्सिणि तह, फग्गुणी य भज्जाण नामाई ॥३॥ प्रोहिण्णाण-पिसाए, माया वाहि-धण-उत्तरिज्जे य । भज्जा य सुव्वया, दुव्वया निरुवसग्गया दोन्नि ॥४॥ अरुणे अरुणाभे खलु, अरुणप्पह-अरुणकंत-सिटे य । अरुणज्झए य छठे, भूय-वडिसे गवे कीले ॥५॥ Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तगडदसा Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो पढमं अभयणं गोयमे उक्खेव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम' नयरी । पुण्णभद्दे चेइए...वण्णो ' । २. तेण कालेणं तेणं समएणं अज्जमुहम्मे समोसरिए। परिसा निग्गया। धम्मो कहियो । परिसा जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि ° पडिगया । ३. तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अंतेवासी अज्जजंबू जाव' पज्जुवास माणे एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं आदिकरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अयमढे पण्णत्ते, अट्ठमस्स णं भंते ! अंगस्स अंतगडदसाणं समजेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? ४. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पण्णत्ता ।। ५. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्टमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पण्णत्ता ? १. नाम (क, ख)। २. चेतिते (क); चेतिए वणसंडे (ख)। ३. ओ० सू० २-१३ । ४. सं० पा०—निग्गया जाव पडिगया। ५. ना० ११६, ७। ६. पज्जुवासइ (क, ख, ग); ना० १३१७ ___ सूत्रानुसारेण अयं पाठः स्वीकृतः । ७. १।१७। ८,९. ना० ॥१७॥ ५४१ Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ अंतगड साओ ६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस प्रज्भयणा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी - गाहा १. गोयम २ समुह ३. सागर, ४. गंभीरे चेव होइ ५. थिमिए य । ६. अयले ७. कंपिल्ले खलु, ८. प्रक्खोभ 8. पसेई १०. विहू || १ || ७. जइणं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स अंग अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस ग्रज्भयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्ते के अट्ठे पण्णत्ते ? गोयम-पदं ८. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था - दुवाल - जोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा धणवति - मइ' - णिम्मया चामीकर- पागारा नाणामणि- पंचवण्ण-कविसीसगमंडिया सुरम्मा अलकापुरि-संकासा पमुदियपक्कीलिया पच्चक्खं देवलोगभूया पासादीया दरिसणिज्जा ग्रभिरूवा पडि रूवा ॥ ६. तीसे णं बारवईए' णयरीए बहिया उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए, एत्थ णं रेवयए नाम पव्वए होत्था - वणो ॥ १०. तत्थ णं रेवयए पव्वए नंदणवणे नामं उज्जाणे होत्था - वण्णो' || ११. [तस्स णं उज्जाणस्स बहुमज्भदेसभाए ? ] सुरप्पिए नामं जक्खायतणे होत्था - [ चिराइए पुव्वपुरिस- पण्णत्ते ? ] पोराणे ॥ १२. से णं एगेणं वणसंडेणं [ सव्वग्रो समंता संपरिक्खित्ते ? ] ॥ १३. [ तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्भदेस भाए, एत्थ णं महं एगे ? ] असोगवरपायवे || १४. तत्थ णं बारवईए णयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया परिवसइ - महयाराय वणओ । से णं तत्थ समुद्द विजयपामोक्खाणं दसण्हं दसाराणं बलदेवपामोक्खाणं" पंचण्हं महावीराणं", पज्जुण्णपामोवखाणं अद्भुद्वाणं कुमारकोडीणं, संबपामोक्खाणं १,२. ना० १ १/७ । ३. X ( क ) । ४. समा ( क ) । ५. बारवती ( क ) । ६. तत्थ ( ख ) । ७. ना० १।५।३ । ८. ना० १|५|४ | ६. ओ० सू० १४ । १०. ० पामुक्खाणं ( ख ) 1 ११. नायाधम्मका १।५।६ सूत्रात् अस्य क्रमो भिन्नोस्ति । Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो-पढम अज्झयणं (गोयमे) सट्ठीए दुइंतसाहस्सीणं, महासेणपामोक्खाणं' छप्पण्णाए' बलवगसाहस्सीणं', वीरसेणपामोक्खाणं एगवीसाए वीरसाहस्सीणं, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसण्हं रायसाहस्सीणं, रुप्पिणीपामोक्खाणं 'सोलसण्हं देवीसाहस्सीणं" अणंगसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीण', अण्णेसि च बहूणं, ईसर- तलवरमाडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ ° -सत्थवाहाणं बारवईए नयरीए अद्धभरहस्स य समंतस्स आहेवच्चं •पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ।। १५. तत्थ णं बारवईए नयरीए अंधगवण्ही' नामं राया परिवसइ-महयाहिमवंत महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णो ॥ १६. तस्स णं अंधगवण्हिस्स रण्णो धारिणी नामं देवी होत्था-वण्णो ॥ १७. तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि जावर नियगवयणमइवयंत सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा । एवं जहा महब्बले", नवरं - गोयमो नामेणं । अढण्हं रायवरकण्णाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेंति । अट्टो दायो । १८. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिनेमी आदिकरे जाव" संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । चउन्विहा देवा आगया । कण्हे वि निग्गए । १६. तए णं तस्स गोयमस्स कुमारस्स' 'तं महाजणसदं च जणकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था ° । जहा मेहे" तहा णिग्गए। धम्म सोच्चा८ •निसम्म हट्टतुट्टे जं १. महसेण ° (क, ख)। २. छप्पण्णाय (ग)। ३. बलवय ° (क्व)। ४. बत्तीसाए महिला साहस्सीणं (ना०११५६)। ५. गणिता० (ख)। ६. सं० पा० -ईसर जाव सत्यवाहाणं । ७. समत्यस्स (क्व)। ८. सं० पा०-आहेवच्चं जाव विहरइ। ६. ° पिण्हू (घ)। १०. ओ० सू० १४॥ ११. प्रो० सू० १५। १२. भ० ११११३३ । १३. भ० ११२१३३-१६१ । १४. अतोग्रे संग्रहणीगाथा लभ्यते-- सुमिणइंसण-कहणा, जम्मं बालत्तणं कलाओ य । जोव्वण-पाणिग्गहणं, कण्णा पासायभोगा य ।। (क, ख, ग, घ)। अस्याः संग्रहणी-गाथायाः केचिद् विषया मूलपाठे एव समायाताः, तेन पुनरुक्तेनिवारणाय नासौ मूले गृहोता। १५. ना० ११।१०। १६. सं० पा०—कुमारस्स । १७. ना० १६११६५-६६ । १८. सं० पा०-सोच्चा । Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४४ अंतगडद साओ नवरं - देवाणुप्पिया ! ग्रम्मापियरो प्रपुच्छामि' । तम्रो पच्छा देवाणुप्पियाणं ति मुंडा भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वयामि ॥ २०. तए णं से गोयमे कुमारे एवं जहा मेहे जाव' प्रणगारे जाए - इरियासमिए ' जाव' इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरप्रो काउं विहरइ ॥ २१. तए णं से गोयमे ग्रण्णया कयाइ रहयो ग्ररिनेमिस्स तहारूवाणं थेराणं तिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइ ग्रहिज्जइ, ग्रहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ'-छट्टम - दसम दुवाल सेहिं मासद्धमासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मे हिं भावेमाणे विहरइ ॥ अप्पा २२. 'तए णं' रहा' अरिनेमी अण्णया कयाइ बारवईश्रो नयो नंदणवणाओ पक्खिमइ, बहिया जणवयविहारं विहरइ || २३. तए णं से गोयमे अणगारे ग्रण्णया कयाइ जेणेव ग्ररहा अरिट्ठनेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ग्ररहं रिट्टनेमिं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते ! भेहि भगुणाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । एवं जहा खंदप्रो तहा वारस भिक्खुपडिमा फासेइ । गुणरयणं पि तवोकम्मं तहेव फासेइ निरवसेसं । जहा" खंदस्रो तहा" चितेइ । तहा आपुच्छइ । तहा थेरेहिं सद्धि सेत्तुं दुरूहइ ॥ १ २४. तए णं से गोयमे अणगारे वारस वासाई" सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासि याए संलेहणाए प्रत्ताणं भूसित्ता सद्वि भत्ताई प्रणसणाए छेदित्ता जाव " केवलवरणाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तम्रो पच्छा सिद्धे ॥ निक्खेव पदं २५. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं अट्ठमस्स अंग अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स प्रज्भयणस्स अयम पण्णत्ते || १. सं० पा० आच्छामि देवाणुपियाणं । २. ना० १ १ । १४६ - १५१ । ३. रिवासमिए ( क ) ; ईरियासमिए ( ग ) । ४. ना० १ । १ । १६४ । ५. अहिज्जेइ ( ख, ग ) । ६. सं० पा० - चउत्थ जाव भावेमाणे । ७. ता (क); ते (ख) । ८. अरिहा ( ख, ग ) । ६. भग० २।५७-६८ । १०. जधा ( ख ) । इरियासमिते ( ख ); ११. तधा ( ख, ग ) । १२. सेतुज्जं ( क, ख, ग ) । १३. सं० पा० - मासियाए संलेहणाए बारसवासाइं परियाए जाव सिद्धे । १४. वरिसाई ( ख ); वरिसा य ( ग ) । १५. भ० ६ १५१ । १६. ना० १।१।७ । Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीप्रो वग्गो-- १-८ अभयणाणि २- १० प्रज्भयणाणि समुद्दादि-पदं २६. एवं जहा गोयमो' तहा सेसा । अंधगवण्ही पिया, धारिणी माया । समुद्दे, सागरे, थिमि, गंभीरे, अयले, कंपिल्ले, प्रक्खोभे, पसेणई, विण्हू एए एगगमा ॥ बीओ वग्गो १८ ज्यणाणि उक्खेव पदं १. जइ णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढ़मस्स वग्गस्स मट्ठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवा महावीरेण के अट्ठे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं अट्टमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स टु अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - संग्रहणी-गाहा ५४५ १. अक्खोभ २. सागरे खलु, ३. समुद्द ४. हिमवंत ५. प्रचलनामे य । ६. धरणे य ७. पूरणे य, ८. प्रभिचंदे चेव श्रट्ठमए ॥ १ ॥ प्रक्खोभादि-पदं ३. तेणं कालेणं तेणं समएणं 'बारवई नामं नयरी होत्था" । अंधगवण्ही पिया | धारिणी माया । जहा पढमे वग्गे तहा सव्वे ग्रट्ट ग्रज्भयणा । गुणरयणं तवोकम्मं । सोलस वासाईं परिया । सेत्तुजे मासियाए संलेहणाए सिद्धा ॥ १. अं० १।६-२५ । २. वह (क, ख, ग ); अंधगविण्डु (घ ) । ३. सं० पा० - जइ दोच्चस्स वग्गस्स उक्खेवओ । ४. तृतीय वर्गक्रमतोऽसौ गाथा 'तेणं कालेणं तेणं समएण' इति सूत्रात् प्राग् गृहीता । आदर्शषु ५. aat गाथा 'धारिणी माया' इति पाठानन्तरमुल्लिखितमस्ति । बारवईए नयरीए ( क, ख, ग, घ ) । अस्य पास्य परिवर्तन १८ आधारेणकृतम् । Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो पढम अज्झयणं प्रणीयसे उक्खेव-पदं १. जई •णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयमद्वे पण्णत्ते तच्चस्स णं भते ! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते? ' २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा–१. अणोयसे २. अणंतसेणे अजियसेणे ४. अणिहयरिऊ ५. देवसेणे' ६. सत्तुसेणे ७. सारणे ८. गए ६. समुद्दे १०. दुम्मुहे ११. कूवए १२. दारुए १३. अणाहिट्ठी ।। ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अटे पण्णत्ते ? अणीयसादि-पदं ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं भद्दिलपुरे नामं नगरे होत्था वण्णो ॥ ५. तस्स णं भद्दिलपुरस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए सिरिवणे नामं उज्जाणे होत्था वण्णो ' । जियसत्तू राया । १. स. पा.-जातच्चस्स उक्खेवओ। २. देवजसे (क)। ३. अणाहि? (क)। ४. ओ० सू०१। ५. ना० २०४। ५४६ Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो-पढमं अज्झयणं (अणीयसे) ६. तत्थ णं भद्दिलपुरे नयरे नागे नाम गाहावई होत्था–अड्ढे जाव' अपरिभूए । ७. तस्स णं नागस्स गाहावइस्स सुलसा नाम भारिया होत्था-सूमाला जाव' सुरूवा।। ८. तस्स णं नागरस गाहावइस्स पुत्ते सुलसाए भारियाए अत्तए अणीयसे नाम कुमारे होत्था-सूमाले जाव' सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा दढपइण्णे जाव' गिरिकंदरमल्लीणे विव चंपगवरपायवे णिव्वाघायंसि सुहंसुहेणं परिवड्डइ ।। ६. तए णं तं अणीयसं कुमारं सातिरेगअट्ठवासजायं [जाणित्ता ? ] अम्मापियरो कलायरियस्स उवणेति जाव' भोगसमत्थे जाए यावि होत्था ।। १०. तए णं तं अणीयसं कुमारं उम्मुक्कबालभावं जाणित्ता अम्मापियरो सरिसि याणं 'सरिव्वयाणं सरित्तयाणं सरिसलावण्ण-रूव-जोवण्ण-गुणोववेयाणं सरिसएहिंतो इब्भकुलहितो आणिल्लियाणं° बत्तीसाए इब्भवरकण्णगाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेति ॥ ११. तए णं से नागे गाहावई अणीयसस्स कुमारस्स इमं एयारूवं पीइदाणं दलयइ, तं जहा- बत्तीस हिरण्णकोडीओ जहा महब्बलस्स जाव' उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं भोगभोगाइं भुजमाणे विहरइ । १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी' 'जेणेव भद्दिलपुरे नयरे जेणेव सिरिवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे • विहरइ । परिसा निग्गया। १३. तए णं तस्स अणीयसस्स कुमारस्स तं महा" जणसदं च जणकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था । जहा गोयमे" तहा अणगारे जाए°, नवरं-सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ। बीसं वासाई परियायो। सेसं तहेव जाव सेत्तुंजे पव्वए मासियाए संलेहणाए 'अत्ताणं झूसित्ता सर्टि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवरणाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तो पच्छा ° सिद्धे ।। १. ना० १५७ । २. ओ० सू० १५ । ३. अणीयसेणे (क)। ४. ओ० सू० १४३ । ५. राय० सू० ८०४ । ६. राय० सू० ८०६-८०६ । ७. सं० पा०-सरिसियाणं जाव बत्तीसाए। ८. भ० ११।१५६-१६१ । है. सं० पा०-समोसढे सिरिवणे उज्जाणे अहा जाव विहरइ । पू०-ना० ११५।१०। १०. सं० पा०--तं महा जहा गोयमे तहा। ११. अं० १११६, २०। १२. अं. श२१-२४ । १३. सं० पा०-संलेहणाए जाव सिद्ध । Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४८ अंतगडदसाम्रो १४. एवं खल जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अदमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमद्धे पण्णत्ते ।। २-६अज्झयणाणि १५. एवं जहा अणीयसे । एवं सेसा वि । अज्झयणा एक्कगमा । बत्तीसप्रो दारो। वीसं वासा परियाग्रो । चोद्दस पुव्वा । सेत्तुजे सिद्धा। सत्तमं अभयणं सारणे सारण-पदं १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे, नवरं-वसुदेवे राया। धारिणी देवी। सीहो सुमिणे। सारणे कुमारे। पण्णासो दायो। चोद्दस पुव्वा । वीसं वासा परियाओ। सेसं जहा गोयमस्स जाव' सेत्तुंजे सिद्धे। अट्ठमं अज्झयणं गए उक्खे व-पदं १७. जइ •णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स तच्चस्स वग्गस्स सत्तमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । अट्ठमस्स णं भंते ! अझयणस्स अंतगडदसाणं के अट्रे पण्णत्ते ? ० १८. एवं खलु जंबू तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे जाव' अरहा अरिढ़ने मी समोसढे ।। छण्हं अणगाराणं तव-संकप्प-पदं १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहनो अरिडणेमिस्स अंतेवासी छ अणगारा भायरों सहोदरा होत्था-सरिसया सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पल-गवल-गुलिय १. पुवी (ग)। २. अ० ११२१-२४ । ३. सं० पाo-जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स । ४. अं० ३।१२। ५. भायरा (क, ख, ग)। Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४६ तइओ वग्गो- अट्ठमं अज्झयणं (गए) प्रयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुम'-कुंडलभद्दलया नलकूबर' समाणा।। २०. तए ण ते छ अणगारा जं चेव दिवसं मुंडा भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइया, तं चेव दिवसं अरहं अरिदृणेमि वंदंति णमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामो णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुणाया समाणा जावज्जीवाए छदैछदेणं अणिक्खित्तणं तवोकम्मेणं संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरित्तए॥ ग्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ।। २१. तए णं ते छ अणगारा अरहया अरिटणेमिणा अब्भणण्णाया समाणा जावज्जीवाए छटुंछटेणं' 'अणि क्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ।। छण्हं पि देवईए गिहे पवेस-पदं २२. तए णं ते छ अणगारा अण्णया कयाई छट्टक्खमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेंति, "बीयाए पोरिसीए झाणं झियायंति, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंता मुहपोत्तियं पडिलेहंति, पडिलेहित्ता भायणवत्थाई पडिलेहंति, पडिलेहित्ता भायणाई पमज्जंति, पमज्जित्ता भायणाई उग्गाहेंति उग्गाहेत्ता जेणेव अरहा अरिट्ठने मी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अरई अरिटनेमि वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी° - इच्छामोणं भंते ! छट्टक्खमणस्स पारणए तुब्भेहि अब्भणुण्णाया समाणा तिहिं संघाडपहि बारवईए नयरीए 'उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए ° अडित्तए । तए ण ते छ अणगारा अरहया अरिट्ठणेमिणा अब्भणुण्णाया समाणा अरहं अरिटनेमि वंदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता अरहो अरिट्टनेमिस्स अंतियानो सहसंबवणाम्रो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता तिहि संघाडएहिं अरियम •चवलमसंभंता जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरो रियं सोहेमाणा-सोहेमाणा जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता बारवईए नयी। उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं ° अडंति । २४. तत्थ णं एगे संघाडए बारवईए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कलाई १. दब्भकुसुम (वृषा)। २. नलकूबर (क, ख, ग)। ३. ४ (ख, ग)। ४. अरहा ख, ग)। ५. सं० पा०-छट्ठछट्टेणं जाव विहरति । ६. सं० पा०-जहा गोयमो जाव इच्छामो। ७. स० पा०-नयरीए जाव अडित्तए। ८. सं० पा०-अतुरियं जाव अडंति । Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रत गडदसाओ घरसमुदाणस्स' भिक्खायरियाए प्रमाणे वसुदेवस्स रण्णो देवईए देवीए a || o २५. तए णं सा देवई देवी ते अणगारे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ट तुट्टचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाण हियया आसणा ग्रब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता सत्तट्ठ पदाई प्रणुगच्छइ, तिक्खुत्तो श्रायाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव भत्तघरए तेणेव वागया सीकेसराणं मोयगाणं थालं भरेइ, ते अणगारे पडिलाभेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ || ५५० २६. तयागतरं च गं दोच्चे संघाडए बारवईए" "नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए ग्रडमाणे वसुदेवस्स रण्णो देवईए देवीए विट्ठे ॥ २७. तए णं सा देवई देवी ते अणगारे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठा ग्रासणाश्रो प्रभु, प्रभुत्ता सत्तट्ठ पदाई अणुगच्छइ, तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव भत्तधरए तेणेव उवागया सीहकेसराण मोयगाणं थालं भरेइ, ते अणगारे पडिलाभेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ || २८. तयानंतरं च णं तच्चे संघाडए बारवईए नगरीए उच्च - नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए प्रमाणे वसुदेवस्स रण्णो देवईए देवीए || देवई पुनरागमणसंका-पदं २६. तणं सा देवई देवी ते अणगारे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठा ग्रासणा प्रभु, प्रभुता सत्तट्ठ पदाई प्रणुगच्छइ, तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव भत्तघरए तेणेव उवागया सीकेसराणं मोयगाणं थालं भरेइ, ते अणगारे पडिलाइ, पडिला भेत्ता एवं वयासी - किण्णं देवाणुप्पिया ! कण्हस्स वासुदेवस्स इमीसे बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिण्णाए जाव पच्चक्खं देवलोगभूयाए समणा निग्गंथा उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए प्रमाणा १. ० समुद्दणस्स ( ख, ग, घ ) । २. ग्रमाणे २ (क ) | ३. गिहं ( ख, ग ) । ४. सं० पा० - हट्ट जाव हियया । o ५. सं० पा० - बारवईए उच्च जाव पडिविसज्जेइ | ६. सं० पा० उच्च जाव पडिलाभेइ । ७. अं० १५ । ८. सं० पा० - उच्च जाव अडमाणा । Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो----अट्ठ मं अज्झयणं (गए) ५५१ भत्तपाणं नो लभंति, जणं' ताई चेव कुलाई भत्तपाणाए भुज्जो-भुज्जो अणुप्पविसंति ? संका-समाधाण-पदं ३०. तए णं ते अणगारा देवई देवि एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिए ! कण्हस्स वासुदेवस्स इमीसे बारवईए नयरीए जाव' देवलोगभूयाए समणा निग्गथा उच्च-नीय मज्झिमाई कुलाइ घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए° अडमाणा भत्तपाणं णो लभंति, णो चेव णं ताई चेव कुलाइं दोच्चं पि तच्चं पि भत्तपाणाए अणुपविसंति । एवं खलु देवाणुप्पिए ! अम्हे भद्दिलपुरे नगरे नागस्स गाहावइस्स पुत्ता सुलसाए भारियाए अत्तया छ भायरो सहोदरा सरिसया 'सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पलगवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुम-कुंडलभद्दलया. नलकूबर-समाणा अरहनो अरिट्टनेमिस्स अतिए धम्म सोच्चा संसारभउव्विग्गा भीया जम्मणमरणाणं मुंडा भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं • पव्वइया। तए णं अम्हे जं चेव दिवसं पव्वइया तं चेव दिवसं अरह अरिट्टनेमि वंदामो नमसामो, इमं एयारूवं अभिग्गहं प्रोगिण्हामो'-इच्छामो णं भंते ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाया समाणा' जावज्जीवाए छटुंछद्रेणं अणिक्खत्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरित्तए । अहासुहं। तए णं अम्हे अरहया अरिट्ठणेमिणा अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छटुंछद्रेणं जाव' विहरामो। तं अम्हे अज्ज छट्टक्खमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए 'सज्झायं करेत्ता, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइत्ता, तइयाए पोरिसीए" अरहया अरिट्ठनेमिणा अब्भणुण्णाया समाणा तिहिं संघाडएहिं बारवईए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए° अडमाणा तव गेहं अणुप्पविट्ठा। तं णो खलु देवाणुप्पिए! ते चेव णं अम्हे । अम्हे णं अण्णे-देवई देवि एवं वदंति, वदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया। १. तेणं (घ)। ७. गिण्हामो (क)। २. अं० ११८। ८. सं० पा०-समाणा जाव अहासुहं । ३. सं० पा० -उच्च जाव अडमाणा। ६. अं० ३।२०। ४. ताई ताई (क)। १०. सं० पा०-पोरिसीए जाव अडमाणा। ५. सं० पा०-सरिसया जाव नलकूबरसमाणा। ११. पू०-अं० ३।२२। ६. सं० पा०-मुंडा जाव पव्वइया। Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ अंतगडदसाओ पुत्त-बोह-पदं ३१. तए णं तीसे देवईए देवीए अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे-एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे अतिमुत्तेणं कुमारसमणेणं बालत्तणे वागरिया-तुमण्णं देवाणुप्पिए ! अट्ठ पुत्ते पयाइस्ससि' सरिसए जाव' नलकूबर-समाणे, नो चेव णं भरहे वासे अण्णासो अम्मयानो तारिसए पुत्ते पयाइस्सति। तं णं मिच्छा। इमं णं पच्चक्खमेव दिस्सइ-भरहे वासे अण्णाओ वि अम्मयाओ खलु एरिसए' पुत्ते पयायाओ। तं गच्छामि णं अरहं अरिटणेमि वंदामि, वंदित्ता इमं च णं एयारूवं वागरणं पुच्छिस्सामीत्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह । ते वि तहेव ° उववेति । जहा देवाणंदा जाव' पज्जुवासइ ।। ३२. तए णं अरहा अरिट्टणेमी देवई देवि एवं वयासी-से नूणं तव देवई ! इमे छ अणगारे पासित्ता अयमयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे-एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे अइमुत्तेणं कुमारसमणेणं बालत्तणे वागरिया तं चेव जाव निग्गच्छित्ता मम अंतियं हव्वमागया । से नूणं देवई ! अट्ठ समढे ? हंता अत्थि ॥ ३३. एवं खलु देवाणुप्पिए ! तेणं कालेणं तेणं समएणं भद्दिलपुरे नयरे नागे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे ।।। ३४. तस्स णं नागस्स गाहावइस्स सुलसा नाम भारिया होत्था । ३५. तए णं सा सुलसा गाहावइणी बालत्तणे चेव नेमित्तिएणं वागरिया-एस णं दारिया णिदू भविस्सइ ।। ३६. तए णं सा सुलसा बालप्पभिई चेव हरि-णेगमेसिस्स पडिमं करेइ, करेत्ता कल्लाल्लि हाया" •कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल ° -पायच्छित्ता उल्लपडसाडया महरिहं पुप्फच्चणं करेइ, करेत्ता जण्णुपायपडिया पणामं करेइ, करेत्ता तो पच्छा आहारेइ वा नीहारेइ वा चरइ वा ।। १. पयाइसिसि (घ)। ८. अं० ३।३१। २. अं० ३।१६। ६. जेणेव मम (क, ख, ग, घ)। ३. भारहे (ख, ग, घ)। १०. चेव हरिणेगमेसी देवभत्ता यावि होत्था ४. X (क)। (ग, घ)। ५. एदिसए जाव (क, ख, ग, घ)।। ११. सं० पा०-हाया जाव पायच्छित्ता। ६. सं०पा०-लहुकरणजाणपवरं जाव उवट्ठति । १२. पुप्फच्चणियं (क)। ७. भ० ६।१४४, १४६ । १३. बरइ (क्व)। Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो — अट्टमं अज्झयणं ( गए ) ५५३ ३७. तए णं तीसे सुलसाए गाहावइणीए भत्तिबहुमाणसुस्सुसाए हरि-गमेसी देवे हिए या होत्या ॥ ३८. तए णं से हरि-णेगमेसी देवे सुलसाए गाहावइणीए अणुकंपणट्टयाए सुलसं गाहावइणि तुमं च ' दो वि समउउयाम्रो' करेइ ॥ ३६. तए णं तुब्भे दो वि समामेव गन्भे गिरहह, समामेव गभे परिवहह, समामेव दारए पयाय || ४०. तए णं सा सुलसा गाहावइणी विणिहाय मावण्णे दारए पयायइ' ।। ४१. तए णं से हरि-गमेसी देवे सुलसाए गाहावइणीए ऋणुकंपणट्टयाए ' विणिहायमावणे दारए करयल-संपुडेणं गेहइ, गेण्हित्ता तव अंतियं' साहरइ । तं समयं चणं तुमं पि नवहं मासाणं सुकुमालदारए पसवसि । जे 'वि य णं” देवाणुपिए ! तव पुत्ता ते वि य तव अंतिमान करयल - संपुडेणं गेण्हइ, गेण्हित्ता सुलसाए गाहावइणीए अंतिए साहरइ । तं तव चेव णं देवई ! एए पुत्ता । णो सुलसाए गाहावइणीए । देवईए-हरिस-पदं ४२. तए णं सा देवई देवी रहो रिट्ठमिस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म " "- चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण ० - हिया रहं रिट्ठमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव ते छ अणगारा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते छप्पि अणगारे" वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता ग्रागयपण्हया" पप्पुयलोयणा" कंचुयपरिक्खित्तया" दरियवलय-बाहा धाराहय- कलंब"- पुप्फगं विव समूससिय" - रोमकूवा ते छप्पि अणगारे " अणिमिसादिट्ठी पेहमाणी- पेहमाणी सुचिरं निरिक्खइ, निरिक्खित्ता वंदइ नमसइ, १. चणं ( ग, घ ) । २. समुदुयाओ ( क ) ; (ख); सगब्भयाओ ( ग, घ ) । ३. सममेव ( ख ) । ४. पयाह ( क ) । ५. पयाति (क, ख ) । ६. ० कंपणट्ठाए (क, ख, ग ) । ७. माण ( क ) । ८. अंतियाओ ( क ) । ६. वि अण्णे (क, ख, ग ) । समामेव समगभाओ १०. निसम्मा (क, ख, ग ) । ११. सं० पा० - हट्ठतुट्ठ जाव हियया । १२. अणगारा ( ख, ग, घ ) । १३. पन्हुया (क, ख ); पण्हुयाए ( ग ) ; पण्हवा (घ) । १४. पप्फुल्ल ० (घ ) । १५. ० पडिक्खित्तिया (क, ख, ग ) ; ० पडिणिक्खितिया (घ ) । १६. कयंब (वृ) । १७. समूसविय (क, ख, ग ) । १८. अणगारा ( ख, ग, घ ) । Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंत गडदसाओ दत्ता नमसत्ता जेणेव रहा' अरिट्ठणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मितवखुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, दत्ता नसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बारवई नयर प्रणुष्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागया, धमिया जाणप्पवराम्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव सए वासघरे' जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागया सयंसि सयणिज्जंसि निसीयइ || देवई पुत्ताभिलासा- पदं ४३. तए णं तीसे देवईए ५५४ देवीए अयं प्रज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए कप्पे समुप्पण्णे - एवं खलु ग्रहं सरिसए जाव नलकूबर-समाणे सत्त पुत्ते पयाया, नो चेव णं मए एगस्स वि बालत्तण' समणुब्भूए । एस वि य णं कण्हे वासुदेवे छण्हं छण्हं मासाणं ममं प्रतियं पायवंदए हव्वमागच्छइ । तं धण्णाश्रो णं ता अम्मया, पुण्णा णं ताम्रो अम्मयाश्रो, कयपुण्णाओ णं ताम्रो अम्मयाश्रो, कयलक्खणाओ णं ताम्रो अम्मयाश्रो, जासि मण्णे णियग-कुच्छि-संभूयाई' थणदुद्ध-लुद्धयाइं महुर-समुल्लावयाई मम्मण-पजंपियाई' 'थण-मूला " कक्खदेसभाग ग्रभिसरमाणाइं" मुद्धयाई" पुणो य कोमलकमलोव मेहि हत्थेहिं गिव्हिऊण उच्छंगे" णिवेसियाई देति समुल्लावए सुमहुरे पुणो- पुणो मंजुलप्पभणिए । ग्रहं o अण्णा अण्णा कयपुण्णा कयलक्खणा एत्तो एक्कतरमवि ण पत्ता - ग्रहय" "मणसंकप्पा" करयल पल्हत्थमुही ग्रट्टज्भाणोवगया • झियायइ || कहस्स चिताकारण पुच्छा-पदं ४४. इमं च णं कण्हे वासुदेवे पहाए" कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ते सव्वालंकार • विभूसिए देवईए देवीए पायवंदए हव्वमागच्छइ ॥ ४५. तए णं से कहे वासुदेवे देवई देवि पासइ, पासित्ता देवईए देवीए पायग्गहणं करेइ, करेत्ता देव देवि एवं वयासी- ग्रण्णया णं ग्रम्मो ! तुम्भे ममं पासेत्ता १. अरिहा ( क ) । २. दुहति ( क ) 1 ३. वासघर ए ( ख, ग ) | ४. श्र० ३।१६ । ५. बालत्तए ( ख ) । ६. समुब्भूए ( ख, ग, घ ) । 1 ७. संभूययाई (ख) ८. पपिराई ( क ) । C. थणमूल (क, ग, घ ) । १०. अतिसरमाणाई (क, ख, ग, घ ) । ११. भवन्तीति गम्यते ( वृ); मुद्धयाई थणियं पियंति ( ना० १/२/१२ ) ; पण्यं प्रियंति ( उ०४/१० ) । १२. उच्छंग ( ख, ग ) । १३. सं० पा०- - ओहय जाव भियायइ । १४. ० संकप्पा भूमिगयदिट्ठीया (वृ ) । १५. सं० पा०-हाए जाव विभूसिए । Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो वग्गो - अट्टमं ज्भयणं ( गए ) ५५५ तुट्ठा जाव' भवह, किण्णं अम्मो ! ग्रज्ज तुम्भे ग्रहयमणसंकप्पा जाव' झियायह ? देवईए चिताकारण- निवेदण-पदं ४६. तणं सा देवई देवी कण्हं वासुदेवं एवं क्यासी- एवं खलु अहं पुत्ता ! सरिसए जाव' नलकूबर-समाणे सत्त पुत्ते पयाया, नो चेव णं मए एगस्स वि बालत्तणे प्रभू । तुमं पिणं पुत्ता ! छण्हं छण्हं मासाणं ममं अंतियं पायवंदए हव्वमागच्छसि । तं धण्णाश्रो णं ताम्रो अम्मया जाव कियामि । कण्हल्स देवाराहण-पदं ४७. तए णं से कहे वासुदेवे देवई देवि एवं वयासी - मा णं तुब्भे अम्मो ! हमणसंकप्पा जाव' भियायह । अहण्णं तहा घत्तिस्सामि जहा णं ममं सहोदरे कणीयसे भाउए भविस्सति त्ति कट्टु देवई देवि ताहिं इट्ठाहि" वग्गूहिं समासासेइ | तो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पोसहसाला तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल पमज्जइ, उच्चारपासवणभूमि पडिले हेइ, दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता अट्ठमभत्तं परिण्हइ, परिहित्ता पोसहसा लाए पोसहिए बंभयारी हरि-गमेसि देवं मणसीकरेमाणे- मणसीकरेमाणे चिट्ठइ || ४८. तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स अट्टमभत्ते परिणममाणे हरि-गमेसिस्स देव आसणं चलइ जाव" ग्रहं इहं हव्वमागए । संदिसाहि णं देवाणुप्पिया ! किं करेमि ? कि दलयामि ? किं पयच्छामि ? किं वा ते हियइच्छियं ? ४६. तए णं से कण्हे वासुदेवे तं हरि-गमेसि देवं अंतलिक्खपडिवण्णं पासित्ता तु पोसहं पारेइ पारेता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! सहोदरं कणीयसं भाउयं विदिणं ॥ ५०. तए णं से हरि-णेगमेसी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - होहिइ णं देवाणुप्पिया ! तव देवलोयचुए सहोदरे कणीयसे भाउए । से णं उम्मुक्क" बालभावे विण्णय १. अं० ३।२५ । २. अं० ३।४३ । ३. श्रं० ३।१६ । ४. अं० ३।४३ । ६. पू० - ना० १।१।५३ । ५. अं० ३।४३ । १०. ना० १।१।५५-५७ । ६. जत्तिस्सामि (ग); वत्तिस्सामि (घ ) ; घइ - ११. सं० पा०- उम्मुक्क जाव अणुप्पत्ते । सामि ( मुद्रित वृ ) । ७. पू० अ० ३ । ५१ । ८. सं० पा० - जहा अभओ । नवरं हरिणेगमे सिस्स अट्ठमभत्तं पगेण्हइ जाव अंजलि । Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ परिणयमेत्ते जोव्वणग ° मणुप्पत्ते अरहनो अरि?णेमिस्स अंतियं मुंडे' भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइस्सइ-कण्हं वासुदेवं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वदइ, वदित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए। कण्हेण देवईए पासासण-पदं ५१. तए णं से कण्हे वासुदेवे पोसहसालारो पडिणिवत्तइ, पडिणिवत्तित्ता जेणेव देवई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवईए देवीए पायग्गहणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी-होहिइ णं अम्मो ! मम सहोदरे कणीयसे भाउए त्ति कटु देवइं देवि ताहिं इट्टाहिं कताई पियाहिं मण्णुणाहिं मणामाहिं वग्गूहिं प्रासासेइ, पासासेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए । गयसुकुमालस्स जम्म-पदं ५२. तए णं सा देवई देवी अण्णया कयाइं तंसि तारिसगंसि वासघरंसि जाव' सीहं सुमिणे पासित्ता पडिबुद्धा जाव गब्भं परिवहइ ।। ५३. तए णं सा देवई देवी नवण्हं मासाणं जासुमण-रत्तबंधुजीवय-लक्खारस सरसपारिजातक-तरुणदिवायर-समप्पभं सव्वणयणकंत-सुकुमालपाणिपायं जाव सूरूव गयतालुसमाण दारय पयाया। जम्मण जहा महकुमार जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए गयतालुसमाणे, तं होउ णं अम्हं एयस्स दारगस्स नामधेज्जे गयसुकुमाले ॥ ५४. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामं कयं-गयसुकुमालो त्ति । सेसं जहा __ मेहे जाव" अलंभोगसमत्थे जाए यावि होत्था । सोमिलध्याए कण्णतेउर-पक्खेव-पदं ५५. तत्थ णं बारवईए नयरीए सोमिले नाम माहणे परिवसइ-अड्ढे । रिउव्वेय जाव" बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठिए यावि होत्था ॥ ५६. तस्स सोमिल-माहणस्स सोमसिरी नाम माहणी होत्था-सूमालपाणिपाया ।। ५७. तस्स णं सोमिलस्स धूया सोमसिरीए माहणीए अत्तया सोमा नाम दारिया १. सं० पा०--मुंडे जाव पव्वइस्सइ । २. देवती (क, ख)। ३. जावपाढया (क)। भ० ११११३३ । ४. भ० ११११३३-१४५ । ५. सूमालं (वृ)। ६. ओ० सू० १४३ । ७. ना० ११११७४-८१। ८. गयतालुय ° (क)। ६. गयसुकुमाले, गयसुकुमाले (क, ख)। १०. ना० ११११८२-८८ । ११. ओ० सू०६७। Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो-अट्ठमं अज्झयणं (गए) होत्था-सूमालपाणिपाया जाव' सुरूवा, रूवेणं' •जोव्वणेणं लावण्णेणं उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा यावि होत्था । ५८. तए णं सा सोमा दारिया अण्णया कयाइ हाया जाव' विभूसिया, बहूहिं खुज्जाहि जाव' महत्तरविंद-परिक्खित्ता सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायमगंसि कणगतिदूसएणं कीलमाणी चिट्ठइ ।। ५६. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे । परिसा निग्गया। ६०. तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लट्ठ समाणे पहाए जाव' विभूसिए गयसुकुमालेणं कुमारणं सद्धि हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उदुव्वमाणीहिं बारवईए नयरीए मझमझेणं अरहनो अरि?णेमिस्स पायवंदए निग्गच्छमाणे सोमं दारियं पासइ, पासित्ता सोमाए दारियाए रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णण य जायविम्हए' कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! सोमिलं माहणं जायित्ता सोमं दारियं गेण्हह, गेण्हित्ता कण्णंतेउरंसि पक्खिवह । तए णं एसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स भारिया भविस्सइ । तए णं कोडुंबिय पुरिसा तहेव पक्खिवंति ॥ ६१. तए णं से कण्हे वासुदेवे बारवईए नयरीए मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे' जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्टनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता अरहयो अरिट्ठनेमिस्स नच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे पंजलिउडे अभिमुहे विणएणं° पज्जुवासइ ।।। धम्मदेसणा-पदं ६२. तए णं अरहा अरिट्ठणेमी कण्हस्स वासुदेवस्स गयसुकुमालस्स कुमारस्स तीसे य °महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्म कहेइ, तं जहासव्वानो पाणाइवायाग्रो वेरमणं, सव्वानो मुसावायानो वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाम्रो वेरमणं, सव्वानो परिग्गहातो वेरमणं । कण्हे पडिगए। १. ओ० सू० १५। २. सं० पा०-रूवेणं जाव लावण्णणं । ३. अं० ३।४४ । ४. ओ० सू० ७०। ५. अं० ३।४४॥ ६. जायविम्हए तएणं कण्हे वासुदेवे (घ)। ७. सं० पा०-उज्जाणे जाव पज्जुवासइ । पू०-ना० १११६६ । ८, सं० पा०-तीसे य धम्मकहा। Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ अंतगडदसाओ गयसुकुमालस्स पव्वज्जासंकप्प-पदं तए णं से गयसुकुमाले अरहो अरिढनेमिस्स अंतिए धम्म सोच्चा' •निसम्म हतुढे अरहं अरिट्टनेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अभटेमिणं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तद्रमेयं भंते ! अवितरमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वयह । नवरि देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो प्रापुच्छामि। तग्रो पच्छा मुंडे भवित्ता णं अगाराग्रो अणगारियं पव्वइस्सामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ गयसुकुमालस्स अम्मापिऊणं निवेदण-पदं ६४. तए णं से गय सुकुमाले अरहं अरिट्टनेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणामेव हत्थिरयणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधवरगए महयाभड-चडगर-पहकरेणं बारवईए नयरीए मझमज्झणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधानो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणामेव अम्मापियरो तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं पायवडणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्मयानो ! मए अरहो अरिटनेमिस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। ६५. तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अम्मापियरो एवं वयासी-धन्नोसि तुम जाया ! संपुण्णोसि तुमं जाया ! कयत्थोसि तुमं जाया ! कयलक्खणोसि तुमं जाया ! जणं तुमे अरहनो अरिटुनेमिस्स अंतिए धम्मे निसंते से वि य ते धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । ६६. तए णं से गयसुकुमाले अम्मापियरो दोच्चं पि एवं वयासी-एवं खल अम्मयानो ! मए अरहओ अरिटनेमिस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुब्भेहि अब्भणण्णाए समाणे अरहो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराम्रो अणगारियं पव्वइत्तए॥ १. सं० पा०–सोच्चा जं नवरं अम्मापियरो आपुच्छामि जहा मेहो महेलियावज्जं जाव वड्ढियकुले । Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो -- प्रट्टमं अभयणं ( गए ) देवईए सोगाकुलदसा-पदं ६७. तए णं सा देवई देवी तं प्रणिट्ठे अनंतं अप्पियं श्रणुष्णं श्रमणामं असुयपुव्वं फरुसं गिर सोच्चा निसम्म इमेणं एयारूवेणं मणोमाणसिएणं महया पुत्तदुक्वेणं अभिभूया समाणी सेयागयरोमकूपगलंत - चिलिणगाया सोयभर - पवेवियंगी नित्तेया दीण-विमण-वयणा करयल-मलिय व्व कमलमाला तक्खणप्रोलुग्गदुब्बलसरीरलावण्णसुन्न- निच्छाय गय सिरीया पसिढिल भूसण- पडतखुम्मियसंचण्णिधवलवलय- पब्भट्ट - उत्तरिज्जा सूमालविकिरण के सहत्था मुच्छावसagar - गरुई परसुनियत्त व्व चंपगलया निव्वत्तमहे व्व इंदलट्ठी विमुक्कसंधिबंधा कोट्टतसि सव्वगेहिं वसत्ति पडिया || देवईए गयसुकुमालस्स य परिसंवाद - पर्द ६८. तए णं सा देवई देवी ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचणभिंगारमुहविणिग्गय-सीयलजलविमलधाराए परिसिंचमाणनिव्वावियगायलट्ठी उक्खेवय-तालविट-वीयणगजणिवाणं सफुसिएणं अंतेउर-परिजणेणं प्रासासिया समाणी मुत्तावलि - सन्निगास पवडंत-सुधाराहिं सिंचमाणी पोहरे, कलुण-विमण-दीणा रोयमाणीकंदमाणी तिप्पाणी सोयमाणी विलवमाणी गयसुकुमालं कुमारं एवं वयासी -- तुमं सि णं जाया ! ग्रम्हं एगे पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए प्रणुमए भंडकरंडगसमाणे रणे रणभूए जीवि - उस्सासिए हियय-गंदि-जणणे उंबरपुप्फं व दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पयोगं सहितए । तं भुंजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तम्रो पच्छा ग्रम्हेहिं कालगएहिं परिणयवए वड्ढिय कुलवंसतंतुकज्जम्मि निरावयक्खे अरहो अरिट्टनेमिस्स प्रतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारयं पव्वइस्ससि || - ६६. तए णं से गयसुकुमाले प्रम्मापिऊहिं एवं वृत्ते समाणे सम्मापियरो एवं क्यासीतहेव णं तं अम्मो ! जहेव णं तुब्भे ममं एवं वयह - " तुमं सिणं जाया ! अहं गेपुते इट्ठे कंते पिए मणुष्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय - उस्सासिए हियय-दिजणणे उंत्ररपुष्पं व दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पयोगं सहित्तए । तं भुंजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सर कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तम्रो पच्छा ग्रम्हे हिं तेन 'एगे' इति विशेषणस्य संगतिर्भविष्यति । १. देवक्या अन्येषां पुत्राणां बालत्वं नानुभूतम् । केवलं गजसुकुमालस्यैव लालन-पालनं कृतम् । ५५६ Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ कालगएहिं परिणयवए वड्डिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयक्खे अरहो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइस्ससि ।" एवं खलु अम्मयानो ! माणुस्सए भवे अधुवे अणितिए असासए वसणसरोवहवाभिभूते विज्जुलयाचंचले अणिच्चे जलबुब्बुयसमाणे कुसग्गजलबिंदुसन्निभे संझन्भरागसरिसे सुविणदसणोवमे सडण-पडण-विद्धंसण-धम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे । से के णं जाणइ अम्मयानो ! के पुवि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयागो ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अरहयो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराप्रो अणगारियं पव्व इत्तए। ७०. तए णं तं गयसुकुमालं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी - इमे य ते जाया ! अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहु हिरण्णे य सुवण्णे य कसे य दूसे य मणिमोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसानो पगामं दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउ । तं अणुहोही ताव जाया ! विपुलं माणुस्सगं इड्डिसक्कारसमुदयं । तो पच्छा अणुभूयकल्लाणे अरहनो अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइस्ससि ॥ ७१. तए णं से गयसुकुमाले अम्मापियरं एवं वयासो-तहेव णं तं अम्मयात्रो ! जं णं तुब्भे ममं एवं वयह --' इमे ते जाया ! अज्जग-पज्जग-पिउपज्जयागए सुबहु हिरण य सूवण्णे य कसे य दुसे य मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयणसंतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाप्रो कुलवंसायो पगाम दाउं पगाम भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं अणुहोही ताव जाया ! विपुलं माणुस्सगं इड्डिसक्कारसमुदयं । तनो पच्छा अणुभूयकल्लाणे अरहनो अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइस्ससि ।" एवं खल अम्मयानो ! हिरण्णे य जाव सावएज्जे य अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए दाइयसाहिए मच्चुसाहिए, अग्गिसामण्णे चोरसामण्णे रायसामण्ण दाइयसामण्णे मच्चुसामण्णे सडण-पडण-विद्धंसणधम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे । से के णं जाणइ अम्मयानो ! के पुवि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अरहो अरिहनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइत्तए॥ ७२. तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति गयसुकुमालं कुमारं बहूहि विसयाणुलोमाहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउव्वेयकारियाहिं पण्णवणाहिं पण्णवेमाणा एवं Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो - श्रमं अज्झयणं ( गए ) ५६१ वयासी –एस णं जाया ! निग्गंथे पावयणे सच्चे श्रणुत्तरे केवलिए पडिपुणे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खपहीणमग्गे, ग्रहीव एतदिट्ठिए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो इव भुयाहिं दुत्तरे, तिक्खं कमियव्वं, गरुश्रं लंबेयव्वं, सिधाख्वयं चरियव्वं । नो खलु कप्पइ जाया ! समणाणं निग्गंथागं ग्राहाकम वा उद्देसिए वा कीयगडे वा ठविए वा रइए वा दुब्भिक्खभत्ते वा कंतारभत्ते वा वलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते वा मूलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा बीयभोयणे वा हरियभोयणे वा भोत्तए वा पायए वा । तुमं चणं जाया ! सुहसमुचिए नो चेव णं दुहसमुचिए, नालं सीयं नालं उण्हं नाल खुहं नालं पिवासं नालं वाइय- पित्तिय-सिंभिय- सन्निवाइए विविहे रोगायंके, उच्चावए गामकंटए, बावीसं परीसहोवसग्गे उदिण्णे सम्मं ग्रहियासित्तए । भुंजाहि ताव जाया ! माणुस्सए कामभोगे । तम्रो पच्छा भुत्तभोगी अरहो मिस्स प्रति मुंडे भवित्ता अगाराम्रो ग्रगारियं पव्वइस्ससि ॥ ७३. तए णं से गयसुकुमाले कुमारे सम्मापिऊहिं एवं वुत्ते समाणे अम्मापियरं एवं वयासी—तहेव णं तं अम्मयाश्रो ! जं णं तुब्भे मम एवं वयह - "एस णं जाया ! निग्गंथे पावणे सच्चे प्रणुत्तरे केवलिए पडिपुणे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, ग्रहीव एतदिट्टिए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुया - कवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो इव भुयाहिं दुत्तरे, तिक्खं कमियव्वं, गरुग्रं लंबेयव्वं, ग्रसिधारव्वयं चरियव्वं । नो खलु कप्पर जाया ! समणाणं निग्गंथाणं ग्राहाकम्मिए वा उद्देसिए वा की यगडे वा ठविए वा रइए वा दुब्भिक्खभत्ते वा कंतारभत्ते वा वलियाभत्ते वा गिलाणभत्ते वा मूलभोयणे वा कंदभोयणे वा फलभोयणे वा बीयभोयणे वा हरियभोयणे वा भोत्तए वा पायए वा । तुमं चणं जाया ! सुहसमुचिए नो चेव णं दुहसमुचिए, नालं सीयं नालं उन्ह नाल खुहं नालं पिवासं नालं वाइय - पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइए विवि रोगायंके, उच्चावए गामकंटए बावीसं परीसहोवसग्गे उदिण्णे सम्मं श्रहियासित्तए । भुंजाहि ताव जाया ! माणुस्सर कामभोगे । तम्रो पच्छा भुत्तभोगी रहन मिस्स तिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि ।" एवं खलु अम्मया ! निग्गंथे पावयणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपबिद्धाणं परलोगनिष्पिवासाणं दुरणुचरे पाययजणस्स, नो चेव णं धीरस्स । निच्छियववसियस्स एत्थ किं दुक्करं करणयाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाश्रो ! Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ अंतगडदसायो तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अरहो अरिटुनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइत्तए । ७४. तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्ध? समाणे जेणेव गयसुकुमाले तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गयसुकुमालं आलिंगइ, प्रालिगित्ता उच्छंगे निवेसेइ', निवेसेत्ता एवं वयासी-'तुमं णं ममं सहोदरे कणीयसे भाया। तं मा णं तुमं देवाणुप्पिया ! इयाणि अरहनो' 'अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं ° पव्वाहि । अहण्णं तुमे बारवईए नयरीए महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचिस्सामि ।। ७५. तए णं से गयसुकुमाले कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ ७६. तए णं से गयसुकुमाले कण्हं वासुदेवं अम्मापियरो य दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिया ! माणुस्सया काम भोगा असुई वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा दुरुय-उस्सास-नीसासा दुरुय-मुत्तपुरीस-पूय-बहुपडिपुण्णा उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्कसोणियसंभवा अधुवा अणितिया असासया सडण-पडण-विद्धंसणधम्मा पच्छा पुरं च णं अवस्स ° विप्पजहणिज्जा। से के णं जाणइ देवाणुप्पिया ! के पुवि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अरहयो अरिट्टनेमिस्स अंतिए 'मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं° पव्व इत्तए॥ गयसुकुमालरस एगदिवस रज्ज-पदं ७७. तए णं तं गयसुकुमालं कण्हे वासुदेवे अम्मापियरो य जाहे नो संचाएइ बहु याहिं विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकलाहि य प्राघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य° आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे अकामाई चेव गयसुकुमाल कुमार एवं वयासी तं इच्छामो णं ते जाया ! एगदिवसमवि रज्जसिरिं पासित्तए । ७८. "तए णं गयसुकुमाले कुमारे कण्हं वासुदेवं अम्मापियरं च अणुवत्तमाणे तुसि___णीए संचिट्ठइ॥ १. गेण्हति २ (क)। २. तुमं ममं (क, ख)। ३. सं० पा०-अरहो मुंडे जाव पव्वाहि। ४. पव्वयाहि (क्व)। ५. सं० पा०-कामा खेलासवा जाव विप्पजहि- यव्वा । ६. सं० पा० - अतिए जाव पव्वइत्तए। ७. सं० पा०-बहुयाहि अणुलोमाहिं जाव आघ वित्तए । ८. सं० पा०-निक्खमणं जहा महब्बलस्स जाव तमाणाए तहा जाव संजमइ । Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो-अट्रमं अज्झपर्ण (गए) ५६३ ७६. तए णें कण्हे वासुदेवे कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! गयसुकुमालस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह ॥ ८०. तए णं ते कोडुबियपुरिसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठति । ८१. तए णं से कण्हे वासुदेवे' गयसुकुमालं कुमारं' महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अजलिं कटु एवं वयासी-जय-जय नंदा! जय-जय भद्दा ! जय-जय नंदा भदं ते, अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि, इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं बारवईए नयरीए अण्णेसिं च बहूणं गामागर-नगर-खेडकब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-पासम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टितं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाय- नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहराहि त्ति कटु जय-जय-सदं पउंजंति ॥ ८२. तए णं से गयसुकुमाले राया जाए जाव' रज्ज पसासेमाणे विहरइ ॥ ८३. तए णं तं गयसुकुमाल रायं कण्हे वासुदेवे अम्मापियरो य एवं वयासी भण जाया ! कि दलयामो ? किं पयच्छामो ? किं वा ते हिय-इच्छिए सामत्थे? गयसुकुमालस्स पव्वज्जा-पदं ८४. तए णं से गयसुकुमाले राया कण्हं वासुदेवं अम्मापियरो य एवं वयासी इच्छामि णं देवाणु प्पिया ! कुत्तियावणाप्रो रयहरणं पडिग्गहं च प्राणियं कासवियं च सदावियं । निक्खमणं जहा महब्बलस्स ।। ८५. तए णं से गयसुकुमाले कुमारे अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्म पडिवज्जइ-तमाणाए तह गच्छइ, तह चिट्ठइ, तह निसीयइ, तह तुयट्टइ, तह भुंजइ, तह भासइ, तह उट्ठाए उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहि सत्तेहिं संजमेणं° संजमइ ॥ ८६. तए णं से गयसुकुमाले अणगारे जाए-इरियासमिए जाव' गुत्तबंभयारी॥ ८७. तए णं से गयसुकुमाले जं चेव दिवसं पव्वइए तस्सेव दिवसस्स पच्चावरण्ह कालसमयंसि जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं १,२. पू०-ना० ११११११८ । ३. ना०-११११११६ । ४. भग०११११६८; ना० १११।१२२-१५० । ५. ना०-१।१।१६४ । ६. पुव्वावरण्ह ° (ख, ग, घ)। Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ अंतगडदसाओ अरिट्ठणेमि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे महाकालंसि सुसाणंसि एगराइयं महापडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ गयसुकुमालस्स महापडिमा-पदं ८८. तए णं से गयसुकुमाले अणगारे अरहया अरि?णेमिणा अब्भणुण्णाए समाणे अरहं अरिडणेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता अरहो अरिट्ठणेमिस्स अंतिए सहसंबवणाप्रो उज्जाणाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव महाकाले सुसाणे तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता थंडिल्लं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ,पडिलेहेत्ता ईसि पन्भारगएणं कारणं वग्धारियपाणी अणिमिसनयणे सुक्कपोग्गल -निरुद्ध दिट्ठी' ० दो वि पाए साहटु एगराई महापडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ सोमिलकय-उवसग्ग-पदं ८६. इमं च णं सोमिले माहणे सामिधेयस्स अट्ठाए बारवईयो नयरीनो बहिया पुव्वणिग्गए । समिहानो य दब्भे य कुसे य पत्तामोड य गेण्हइ, गेण्हित्ता तो पडिणियत्तइ', पडिणियत्तित्ता महाकालस्स सुसाणस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे-वीईवयमाणे संझाकालसमयंसि पविरलमणुस्संसि' गयसुकुमालं अणगारं पासइ, पासित्ता तं वेरं सर इ, सरित्ता प्रासुरुत्ते रुद्रु कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे एवं वयासी-एस णं भो ! से गयसुकुमाले कुमारे अपत्थिय पत्थिए, दुरंत-पंत-लक्खणे, हीणपुण्णचाउद्दसिए, सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति -परिवज्जिए, जेणं मम धूयं सोमसिरीए भारियाए अत्तयं सोमं दारियं अदिट्टदोसपत्तियं कालवत्तिणि विप्पजहेत्ता मुंडे जाव पव्वइए । तं सेयं खलु मम गयसुकुमालस्स कुमारस्स वेरनिज्जायणं करेत्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता दिसापडिलेहणं करेइ, करेत्ता सरसं मट्टियं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव गयसुकुमाले अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता गयसुकुमालस्स" अणगारस्स मत्थए मट्टियाए" पालि १. सं० पा०-काएणं जाव दो वि पाए। २. एग० (भ० ३।१०५)। ३. निविट्ठ ० (भ० ३।१०५)। ४. पत्तामोडयं (वृ)। ५. पडिनिक्खमति (क)। १. °माणूसंसि (क)। ७. सं० पा०-अपत्थिय जाव परिवज्जिए। ८. अं० ३।२०। ६. मत्तियं (ख, ग)। १०. सूमालस्स (क, ख)। ११. X (क); मट्टिया (ख)। Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो –— अट्टमं अज्झयणं ( गए ) ५६५ बंधइ, बंधित्ता जलंतीम्रो चिययाओ फुल्लिय कंसुयसमाणे खइरिगाले कहल्लेणं' गेह, गण्हित्ता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता भीए तत्थे तसिए उब्विग्गे संजाय भए तो खिप्पामेव प्रवक्कमइ, प्रवक्कमित्ता जामेव दिसं पाउ भए तामेव दिसं पडिगए । गयसुकुमालस्स सिद्धि-पदं ६०. तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स सरीरयंसि वेयणा पाउन्भूया -- उज्जला' • विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा || १. तणं सेगसुकुमाले अणगारे सोमिलस्स माहणस्स मणसा वि अप्पदुस्समाणे तं उज्जलं जाव' दुरहियासं वेयणं ग्रहियासेइ ॥ ६२. तए तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स तं उज्जलं जाव दुरहियासं वेयणं ग्रहिया माणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थज्भवसाणेणं तदावर णिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं प्रपुव्वकरणं अणुप्पविट्ठस्स प्रणते प्रणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुणे केवलवरणाणदंसणे सप । तो पच्छा सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतयडे परिनिव्वुए सव्वदुक्ख • - प्पही || ६३. तत्थ णं 'ग्रहासं निहिएहि देवेहिं सम्मं प्राराहिए' त्ति कट्टु दिव्वे सुरभिगंधोद बुट्टे दसद्धवणे कुसुमे निवाडिए; चेलुक्वेवे कए ; दिव्वे य गीयगंधव्वणिणाए कवि हो । कण्हेण वुड्ढस्स साहिज्जकरण-पदं ६४. तए णं से कण्हे वासुदेवे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्टियम्मि सूरे सहस्रस्सिम्मिदियरे तेयसा जलते पहाए जाव' विभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धुव्वमाणीहिं महयाभड - चडगर - पहकरवंद - परिक्खित्ते बारवई नयरि मज्भंमज्भेणं जेणेव हारिनेमी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।। ६५. तणं से कहे वासुदेवे बारवईए नयरीए मज्भंमज्भेणं निग्गच्छमाणे एक्कं पुरिसं" - जुण्णं जरा-जज्जरिय-देह" उरं भूसियं पिवासियं दुब्बलं° किलंतं १. कभल्लेणं ( ख, ग, घ ) । २. सं० पा०-- उज्जला जाव दुरहियासा । o ३. अं० ३।६० । ४. ग्रं० ३।६० | ५. सं० पा० - अणुत्तरे जाव केवल ° । ६. सं० पा० - सिद्धे जाव प्पहीणे । ७. ना० १।१।२४ । ८. अं० ३।४४ । ६. पुरिसं पासइ (क, ख, ग, 1 १०. सं० पा० – देहं जाव किलंतं । Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ महइमहालयानो इट्टगरासीनो एगमेगं इट्टगं गहाय बहिया रत्थापहाम्रो अंतोगिहं अणुप्पविसमाणं पासइ॥ तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स पुरिसस्स अणुकंपणट्ठाए हत्थिखंधवरगए चेव एग इट्टगं गेण्हइ, गेण्हित्ता बहिया रत्थापहायो अंतोगिहं अणुप्पवेसेइ ।। ६७. तए णं कण्हेणं वासुदेवेणं एगाए इट्टगाए गहियाए समाणीए अणेगेहि पुरिससएहिं से महालए इट्टगस्स रासी बहिया रत्थापहाम्रो अंतोघरंसि अणुप्पवेसिए॥ कण्हस्स गयसकुमाल-दंसणाभिलासा-पदं १८. तए णं से कण्हे वासुदेवे बारवईए नयरीए मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव अरहा अरिटुनेमी तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता' अरहं अरिटुनेमि तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता गयसुकुमालं अणगारं अपासमाणे अरहं अरिढणेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-कहि णं भंते ! से ममं सहोदरे कणीयसे भाया गय सुकुमाले अणगारे 'जं णं" अहं वंदामि नमसामि ? गयसुकुमालस्स सिद्धि-सूयणा-पदं ६६. तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी -साहिए णं कण्हा ! गयसुकुमालेणं अणगारेणं अप्पणो अढे ।। १००. तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठनेमि एवं वयासी-कहण्णं भंते ! गयसूमालेणं अणगारेणं साहिए अप्पणो अटे? १०१. तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी -एवं खलु कण्हा ! गयसुकुमालेणं अणगारेणं ममं कल्लं पच्चावरण्हकालसमयंसि' वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी- इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहि अब्भणण्णाए समाणे महाकालंसि सुसाणंसि एगराइयं महापडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए जाव एगराई महापडिम° उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं तं गयसुकुमालं अणगारं एगे पुरिसे पासइ, पासित्ता प्रासुरुत्ते *गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए मट्टियाए पालि बंधइ, बंधित्ता जलंतीयो १. अणुपविसमाणं (ख, ग)। २. अण्णेहिं (क)। ३. सं० पा०-उवागच्छित्ता जाव वंदइ । ४. जा णं (क, ख, ग); जेणं (ग)। ५. कह णं (क, ख, ग)। ६. पुव्वावरण्ह ° (ग, घ)। ७. सं० पा०-इच्छामि णं जाव उवसंपज्जित्ता। ८. अं० ३१८८। ६. सं० पा० -आसुरुत्ते जाव सिद्धे। पू० ३८६ Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो - अट्टमं अज्झयणं ( गए ) ५६७ चिया फुल्लिय किंसुयसमाणे खइरिंगाले कहल्लेणं गेण्हइ, गण्हित्ता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता भीए तत्थे तसिए Boor संजाय भए तो खिप्पामेव प्रवक्कमइ, श्रवक्कमित्ता जामेव दिसं पाउ भूए तामेव दिसं पडिगए । तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स सरीरयंसि वेयणा पाउन्भूश्रा - उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा । तणं से गयसुकुमाले अणगारे तस्स पुरिसस्स मणसा वि श्रप्पदुस्समाणे तं उज्जलं जाव दुरहियासं वेयणं ग्रहियासेइ | तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स तं उज्जलं जाव दुरहियासं वेयणं हियमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसंत्यज्भवसाणेणं तदावरणिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुव्वकरणं प्रणुष्पविट्ठस्स प्रणते प्रणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे । तो पच्छा सिद्धे । तं एवं खलु कण्हा ! गयसुकुमालेणं ग्रणगारेणं साहिए अपणो अट्ठे ॥ १०२. तए णं से कहे वासुदेवे ग्रहं ग्ररिद्वर्णामि एवं वयासी - केस' णं भंते ! से पुरिसे पत्थिय पत्थिए, दुरंत-पंत-लवखणं, हीणपुण्णचाउछ सिए, सिरि-हिरिfas - कित्ति परिवज्जिए, जेणं ममं सहोदरं कणीयसं भायरं गयसुकुमाल गारं अकाले चैव जीवियाश्रो ववरोवेइ ? १०३. तए णं रहा रिट्ठनेमी कण्हें वासुदेवं एवं वयासी - मा णं कण्हा ! तुमं तस्स पुरिसस्स पदोसमावज्जाहि । एवं खलु कण्हा ! तेण पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स साहिज्जे दिण्णे । कहणं भंते! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स साहिज्जे दिण्णे ? १०४. तए णं रहा ग्ररिनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - से नूणं कण्हा ! तुमं ममं पायवंदए हव्वमागच्छमाणे बारवईए नयरीए एगं पुरिसं - जुण्णं जराजज्जरिय- देहं ग्राउरं झूसियं पिवासियं दुब्बलं किलंतं महइमहालयाश्रो गरासी एगमेगं इट्टगं गहाय बहिया रत्थापहाम्रो अंतोहिं प्रणुप्पविसमाणं पाससि । तए णं तुमं तस्स पुरिसस्स प्रणुकंपणट्ठाए हत्थिखंधव रगए चेव एगं इट्टगं गेण्हसि, गेण्हित्ता बहिया रत्थापहाम्रो अंतोहिं प्रणुष्पवेससि । तणं तु एगए इट्टगाए गहियाए समाणीए प्रोगेहि पुरिससएहिं से महलाए इगस्स रासी बहिया रत्थापहाम्रो अंतोघरंसि प्रणुपवेसिए । जहा णं १. सेकेणं (घ) । २. सं०पा० - अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए । - पुरिसं पाससि जाव अणुपवेसिए । ३. सं० पा० Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ कण्हा ! तुमे तस्स पुरिसस्स साहिज्जे दिण्णे, एवामेव कण्हा ! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स अणेगभव-सयसहस्स-संचियं कम्म उदीरेमाणेणं बहुकम्मणिज्जरत्थं साहिज्जे दिण्णे ।। १०५. तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिटुनेमि एवं वयासी-से णं भंते ! पूरिसे मए कहं जाणियव्वे ? १०६. तए णं अरहा अरिटणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी -जे णं कण्हा ! तुम बारवईए नयरीए अणुप्पविसमाणं पासेत्ता ठियए' चेव ठिइभेएणं कालं करिस्सइ, तण्णं तुमं जाणिज्जासि 'एस णं से परिसे' ॥ १०७. तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्टनेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव आभिसेयं हत्थिरयणं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थि दुरुहइ', दुरुहित्ता जेणेव बारवई नयरी जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । सोमिलस्स अकालमच्चु-पदं १०८. तए णं तस्स सोमिल माहणस्स कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे-एवं खलु कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठणेमि पायदए निग्गए । तं नायमेयं अरहया, विण्णायमेयं अरहया, सुय मेयं अरहया, सिट्टमेयं अरहया भविस्सइ कण्हस्स वासुदेवस्स । तं न नज्जइ णं कण्हे वासुदेवे ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्सइ त्ति कटु भीए तत्थे तसिए उव्विग्गे संजायभए सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ । कण्हस्स वासुदेवस्स बारवई नयरि अणुप्पविसमाणस्स परओ सपक्खि सपडिदिसि हव्वमागए। १०६. तए णं से सोमिले माहणे कण्हं वासुदेवं सहसा पासेत्ता भीए तत्थे तसिए उविग्गे संजायभए ठियए चेव ठिइभेयं कालं करेइ, धरणितलंसि सव्वंगेहिं 'धस' त्ति सण्णिवडिए॥ ११०. तए णं से कण्हे वासुदेवे सोमिलं माहणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी-एस णं भो ! देवाणुप्पिया ! से सोमिले माहणे अपत्थियपत्थिए जाव सिरि-हिरिधिइ-कित्ति-परिवज्जिए, जेणं ममं सहोयरे कणीयसे भायरे गयसुकुमाले अणगारे अकाले चेव जीवियानो ववरोविए त्ति कटु सोमिलं माहणं पाणेहिं कड्ढावेइ, १. ठितते (क, घ)। २. द्रुहति (क)। ३. पू०-ना० ११११२४ ।। ४. केणवि (ख, घ)। ५. दिसं (क, घ)। ६. ६० सूत्रे 'ठिइभेएणं' इति पाठोस्ति । अत्र सम्भवतः कालस्य विशेषणं कृतं स्यात् । ७. अं० ३८६। Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ वग्गो - ६- १३ प्रज्भयणाणि ५६६ ढावेत्ता तं भूमि पाणिएणं अब्भोक्खावेइ, अब्भोक्खावेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए । सयंहिं श्रणुप्पविट्ठे ॥ निक्खें व पदं १११. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं मस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स अट्ठमज्भयणस्स ग्रयमट्ठे पण्णत्ते ॥ ६-१३ अज्झयणाणि उक्खव-पदं ११२. * जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं प्रट्टमस्स अंगस्स तच्चस्स वग्गस्स अट्टमस्स ग्रयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते । नवमस्स णं भंते ! अंतगडदसाण के अट्ठे पण्णत्ते ? • ग्रज्भयणस्स सुमुहादि-पदं ११३. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया जहां पढमए जाव विहरइ || ११४. तत्थ णं बारवईए बलदेवे नामं राया होत्था - वण्णो ॥ ११५. तस्स णं बलदेवस्स रण्णो धारिणी नामं देवी होत्था - वण्णओ || o ११६. तए णं सा धारिणी देवी ग्रण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि जाव" नियगवयणमइवयं तं सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा । जहा गोयमे, नवरंसुकुमारे। पण्णा कण्णा । पण्णासो दाश्रो । चोद्दस पुव्वाई हिज्जइ । वीसं वासाइं परियाओ । सेसं तं चेव जाव' सेत्तुंजे सिद्धे ॥ ११७. निक्खेवओ | ११८. एवं दुम्मुवि । कूवए वि । तिणि वि बलदेव - धारिणी- सुया । दारुवि एवं चैव नवरं - वसुदेव - धारिणो सुए । एवं - प्रणाहिट्ठी वि वसुदेव धारिणी - सुए || १. ना० १।१।७ २. सं० पा० - नवमस्स उक्खेवओ । ३. ग्रं० १।१४ । ४. ओ० सू० १४ । - ५. प्रो० सू० १५ । ६. सं० पा० - धारिणी । सीहं सुमिणे । ७. भ० ११।१३३ । ८. अं० १।१७-२४ । Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वग्गो १-१० अज्झयणाणि उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं तच्चस्स वग्गस्स अयमद्वे पण्णत्ते, चउत्थस्स बग्गस्स अंतगडदसाणं समजेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - संगहणी-गाहा १. जालि २. मयालि ३. उवयालो, ४. पुरिससेणे ५. वारिसेणे य । ६. पज्जुण्ण ७. संब ८. अणिरुद्ध ६. सच्चणेमि य १०. दढणेमी ॥१॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं अज्झयणस्स के अद्वे पण्णते ? जालिपभिति-पदं ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नयरी। तीसे णं बारवईए नयराए जहा पढम जाव कण्हे वासुदेव पाहवच्च जाव' कारमाण पालमाण विहरइ॥ ५. तत्थ णं बारवईए नगरीए वसुदेवे राया। धारिणी देवी--वण्णो जहा गोयमो', नवरं--जालिकुमारे । पण्णासो दायो। बारसंगी। सोलस वासा परियायो । सेसं जहा गोयमस्स जाव सेत्तुंजे सिद्धे ॥ १,२,३. ना० १३१७ । ४. अं० ११६-१४। ५. अं० १११४ । ६. ओ० सू० १५। ७. अं० १।१७। ८. अं० १२१७-२४ । Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो वग्गो-१-१० अज्झयणं ५७१ ६. एवं-मयाली उवयाली पुरिससेणे य वारिसेणे य । एवं-पज्जुण्णे वि, नवरं-कण्हे पिया', रुप्पिणी माया। एवं-संबे वि, नवरं-जंबवई माया। एवं-अणिरुद्धे वि, नवरं–पज्जुण्णे पिया, वेदब्भी माया। एवं-सच्चणेमी, नवरं-समुद्दविजए पिया, सिवा माया। एवं- दढणेमी वि' सव्वे एगगमा ।। निक्खेव-पदं ७. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्म अंगस्स अंतगडदसाण चउत्थस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते ॥ ३. सं० पा०-चउत्थस्स वग्गस्स निक्खेवओ। १. से पिया (ख, ग, घ)। २. से माया (ख, ग, घ)। Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वग्गो पढमं अज्झयणं पउमावई उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स अयमद्वे पण्णते, पंचमस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा १. पउमावई य २. गोरी, ३. गंधारी ४. लक्खणा ५. सुसीमा य । ६. जंबवइ ७. सच्चभामा, ८. रुप्पिणी ६. मूलसिरि १०. मूलदत्ता वि ॥१॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? पउमावई-पदं ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नगरी। जहा पढमे जाव' कण्हे वासुदेवे अाहेवच्चं जाव' कारेमाणे पालेमाणे विहरइ॥ ५. तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई नाम देवी होत्था-वण्णो ॥ १,२,३. ना० १११।७। ४. अ०१८-१४ । ५. अं० १११४ । ६. प्रो० सू० १५ । ५७२ Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वग्गो-पढमं अज्झयणं (पउमावई) ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठणेमी समोसढे जाव' संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । कण्हे वासुदेवे निग्गए जाव' पज्जुवासइ॥ ७. तए णं सा पउमावई देवो इमोसे कहाए लट्ठा समाणी हट्टतुट्ठा जहा देवई देवी जाव' पज्जुवासइ॥ ८. तए णं अरहा अरिढणेमी कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावईए य देवीए तीसे महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्म कहेइ, तं जहा-सव्वाग्रो पाणाइवायानो वेरमणं, सव्वानो मुसावायाप्रो वेरमणं, सव्वानो अदिण्णा दाणागो वेरमणं, सव्वाअो परिग्गहातो वेरमणं ° । परिसा पडिगया ॥ ६. तए णं कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठणेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इमीसे णं भंते ! बारवईए नगरीए नवजोयणवित्थिण्णाए जाव' देवलोगभूयाए किंमूलाए विणासे भविस्सइ ? १०. कण्हाइ ! परहा अरिटणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु कण्हा ! इमीसे बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिण्णाए जाव' देवलोगभूयाए सुरग्गि दीवायणमूलाए विणासे भविस्सइ ।। ११. कण्हस्स वासुदेवस्स अरहो अरि?णेमिस्स अंतिए एयं सोच्चा निसम्म अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-धण्णा णं ते जालिमयालि-उवयालि-पुरिससेण -वारिसेण - पज्जुण्ण-संब-अणिरुद्ध - 'दढणेमि-सच्चणेमि'-प्पभियग्रो कुमारा जे णं चइत्ता हिरण्णं जाव दाणं दाइयाणं परिभाएत्ता अरहो अरिढणे मिस्स अंतियं मुंडा भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं° पव्वइया । अहण्णं अधण्णे अकयपुण्णे रज्जे य° •रटे य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य पुरे य° अंतेउरे य माणुस्सएसु य कामभोगेसु मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे नो संचाएमि अरहो अरिट्ठणेमिस्स" अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं° पव्वइत्तए ।। १२. कण्हाइ ! अरहा अरिढणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी--से नूणं कण्हा ! तव अयं अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-धण्णा णं ते १. अं० १।१८। २. अं० ३।६१। ३. अं० ३।३१। ४. सं० पा०-पउमावईए य धम्मकहा। ५. अं०१८। ६. अं० १०८। ७. चतुर्थवर्ग-प्रथमाध्ययनस्य गाथातश्चात्र द्वयो नम्नो र्व्यत्ययोस्ति । ८. ना० ११५५४५। ६. सं० पा०--मुंडा जाव पव्वइया । १०. सं० पा०-रज्जे य जाव अंतेउरे । ११. सं० पा०—अरिट्रनेमिस्स जाव पब्वइत्तए। Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसाओ जालि भइकुमारा जाव पव्वइया । ग्रहणं प्रधणे जाव' नो संचाएमि हरिमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अंगाराम्रो प्रणगारियं पव्वइत्तए । से नूणं कण्हा ! प्रत्थे समत्थे ? हंता थि । तं नो खलु कण्हा ! एतं भूतं वा भव्वं वा भविस्सइ वा जण्ण वासुदेवा चइत्ता हिरण्णं जाव' पव्वइस्संति ।। भव्वं वा भविस्सइ वा जण्ण १३. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'न एतं भूतं वा वासुदेवा चइत्ता हिरणं जाव पव्वइस्संति ? १४. कण्हाइ ! रहा रिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - एवं खलु कण्हा ! सव्वे वियणं वासुदेवा पुव्वभवे निदाणकडा । से एतेणट्टेणं कण्हा ! एवं वुच्चइ 'न एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सइ वा जगणं वासुदेवा चइत्ता हिरण्णं जाव पव्वइस्संति ॥ ५७४ १५. तए णं से कहे वासुदेवे अरहं अरिट्टणेमि एवं वयासी - अहं णं भंते ! इतो कालमासे कालं किच्चा कहि गमिस्सामि ? कहिं उववज्जिस्सामि ? १६. तए णं अरहा रिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - एवं खलु कण्हा ! तुमं बारवईए नए सुरग्गि'-दीवायण- कोव - निदड्डाए अम्मापि - नियग-विप्पहूणे रामेण बलदेवेण सद्धि दाहिणवेयालि अभिमुहे जुहिट्ठिल्लपामोक्खाणं पंचण्हं पंडवाणं पंडुरायपुत्ताणं पासं पंडुमहुरं संपत्थिए कोसंबवणकाणणे नग्गोहवरपायवस्स हे पुढविसिलापट्टए पीयवत्थ - पच्छाइय- सरीरे जराकुमारेणं तिक्खेणं कोदंड - विप्प मुक्केणं उसुणा वामे पादे विद्धे समाणे कालमासे कालं किच्चा तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए उज्जलिए नरए नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि ॥ १७. तए गं से कहे वासुदेवे ग्ररहयो ग्ररिट्ठणेमिस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म ग्रह" मणसं कप्पे करतल पल्ह्त्थमुहे प्रदृज्भाणो गए • भियाइ || १८. कण्हाइ ! ग्ररहा रिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - माणं तुमं देवाणुपिया ! ग्रहयमणसं कप्पे जाव" भियाह । एवं खलु तुमं देवाणुप्पिया ! तच्चा पुढवी उज्जलियाम्रो नराम्रो प्रणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे वे भार वा श्रागमेसाए उस्सप्पिणीए पंडेसु जणवएसु सयदुवारे नगरे o १. ० ५।११ । २. अं० ५।११ । ३. ना० ११५/४५ । ४. सं० पा० - भूतं वा जाव पव्वइस्संति । ५. सं० पा० - भूतं जाव पव्वस्संति । ६. सुरदीवायण ( क, ख, ग ) । ७. निदद्धाते ( ख, ग ) । ८. कोसंबकाणणे (क, ख, ग, घ, वृपा) । ६. मुक्केणं ( क ) । १०. सं० पा० - प्रोहय जाव भियाइ | ११. अं० ५।१७ । Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६. पंचमो वग्गो-पढमं अज्झयण (पउमावई) ५७५ बारसमे अममे नामं अरहा भविस्ससि । तत्थ तुमं बहूई वासाई केवलिपरियागं पाउणेत्ता सिज्झिहिसि बुज्झिहिसि मुच्चिहिसि परिनिव्वाहिसि सव्वदुक्खाणं अंतं काहिसि ॥ तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहयो अरिढणेमिस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हतुटे जाव' अप्फोडेइ, अप्फोडेत्ता वग्गइ, वग्गित्ता तिवई छिदइ, छिदित्ता सीहणायं करेइ, करेत्ता अरहं अरिटणेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव आभिसेक्कं हत्थि दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव बारवई नयरी जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए । प्राभिसेयहत्थिरयणायो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सए सोहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसोयति, निसीइत्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बारवईए नयरोए सिंघाडग तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु हत्थिखंधवरगया महयामहया सद्देणं ° उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! बारवईए नयरीए नवजोयणविच्छिण्णाए जाव देवलोगभूयाए सुरग्गि-दीवायणमूलाए विणासे भविस्सइ; तं जो णं देवाणुप्पिया ! इच्छइ बारवईए नयरीए राया वा जुवराया' वा ईसरे वा तलवरे वा माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठी वा देवी' वा कुमारो वा कुमारी वा अरहनो अरितुणेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगारानो अणगारियं° पव्वइत्तए, तं णं कण्हे वासुदेवे विसज्जेइ । पच्छातुरस्स वि य से अहापवित्तं वित्ति अणुजाणइ । महया इड्डिसक्कारसमुदएणं य से निक्ख मणं करेइ । दोच्चं पि तच्चं पि घोसणयं घोसेह, घोसेत्ता ममं एयं पच्चप्पिणह ।। २०. तए णं ते कोडंबिया जाव पच्चप्पिणंति ।। २१. तए णं सा पउमावई देवी अरहयो अरिट्टनेमिस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव' हरिसवस-विसप्पमाणहियया अरहं अरिदृमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयण', से जहेयं तुब्भे वयह । जं नवरं-देवाणुप्पिया ! कण्हं वासुदेवं प्रापुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा" •भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं° पव्वयामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ।। १. अं०३।२५। २. सं० पा०-सिंघाडग जाव उग्घोसेमाणा। ३. अं० ११८। ४. जुगराया (क, ख)। ५. X (क, ख)। ६. सं० पा० --मुंडे जाव पव्वइत्तए । ७. अं० ५।१६। ८. अं० ३।२५। ६. पू-ना० १११।१०१ । १०. सं० पा०-मुंडा जाव पव्वयामि। Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७६ अंतगडदसाओ २२. तए णं सा पउमावई देवी धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव बारवई नयरी जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियाओ जाणप्पवरानो पच्चोरहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणा' अरहनो अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडा' भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं' पव्वइत्तए। अहासुहं देवाणु प्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ २३. तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! पउमावईए देवीए महत्थं महग्धं महरिहं निक्खमणाभिसेयं उवद्ववेह, उवद्ववेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।। २४. तए णं ते कोडंबियपुरिसा जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। २५. तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमावई देवि पट्टयं दुरुहेइ, अट्ठसएणं सोवण्णकलसाणं जाव' महाणिक्खमणाभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता पुरिससहस्सवाहिणि सिबियं दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता बारवईए नयरीए मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवयए पव्वए जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयं ठवे इ, 'पउमावई देवि सीयानो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिटणेमि तिक्खुतो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदिता नमंसित्ता एवं वयासी-एस णं भंते ! मम अग्गहिसी पउमावई नाम देवी इट्टा कता पिया मणण्णा मणाभिरामा जाव' उंबरपप्फ पिव दल्लहा सवणयाए, किमंग पण पासणयाए ? तण्णं अहं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणिभिक्खं दलयामि। पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणिभिक्खं । अहासुहं देवाणु प्पिया ! मा पडिबंध करेह ।। २६. तए णं सा पउमावई उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव १. सं० पा०-करयल । प्रतीयते । २. समाणी (घ)। ४. अं० ५।२३ । ३. सं० पा०-मुंडा जाव पव्वयामि । अत्र ५. पट्टयंसि (घ)। 'पव्वयामि' इति क्रियापदं अशुद्ध प्रतिभाति । ६. राय० सू० २८० । 'इच्छामि' क्रियापदस्य योगे सर्वत्रापि 'पव्व- ७. पउमावई देवी (क, ख, ग, घ)। इत्तए' इति पाठो दृश्यते । अर्थदृष्ट्याप्यसो ८. ना० १।१।१४५ । युक्तः । अत्र लिपिदोषेण परिवर्तनं जातमिति Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो वग्गो-२-८ अज्झयणाणि ५७७ आभरणालंकारं प्रोमुयइ, प्रोमुयित्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणेव अरहा अरिटणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिडणेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-प्रालित्ते णं भंते ! लोए जाव' तं इच्छामि णं देवाणुप्पिएहि धम्ममाइक्खिय ।। २७. तए णं अरहा अरिडणेमी पउमावई देवि सयमेव पव्वावेइ, पव्वावेत्ता सयमेव जक्खिणीए अज्जाए सिस्सिणित्ताए दलयइ ।। २८. तए णं सा जविखणी अज्जा पउमावइं देवि सयमेव पवावेइ सयमेव मुंडावेइ सयमेव सेहावेति धम्ममाइक्खइ-एवं देवाणुप्पिए ! गंतव्वं जाव' संजमेणं ° संजमियव्वं ॥ २६. तए णं सा पउमावई देवी तमाणाए तह चिट्ठइ जाव' संजमेणं संजमइ ॥ ३०. तए णं सा पउमावई अज्जा जाया । इरियासमिया जाव गुत्तबंभयारिणी ॥ ३१. तए णं सा पउमावई अज्जा जविखणीए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, बहूहि चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्ध मासखमणेहि विविहेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ॥ ३२. तए णं सा पउमावई अज्जा बहुपडिपुण्णाई वीसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसेइ, झूसेत्ता सढि भत्ताई अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे जाव' तमटुं पाराहेइ, चरिमुस्सासेहिं सिद्धा । २-८ अझयणाणि गोरिपभिति-पदं ३३. तेणं कालेणं तेणं समएणं वारवई नयरी। रेवयए पव्वए। उज्जाणे नंदणवणे ॥ ३४. तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे वासुदेवे ॥ ३५. तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स गोरी देवी-वण्णो ॥ ३६. अरहा समोसढे । कण्हे णिग्गए। गोरी जहा पउमावई तहा" निग्गया। धम्म कहा । परिसा पडिगया। कण्हे वि ॥ १. ना० १११११४६ । २. पू०-ना० १।१।१४६ । ३. सं० पा०-पव्वावेइ जाव संजमियव्वं । ४. पू०-ना० १।१।१५० । ५. ना० १११११५० । ६. पू०-ना० १।१।१५१ । ७. ना० १११११५१ । ८. ना० १११४१४०। ६. प्रो० सू० १५४ । १०. ओ० सू० १५॥ ११. अ० १७ ॥ Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ ३७. तए णं सा गोरी जहा पउमावई तहा निक्खता जाव' सिद्धा || ३८. एवं - गन्धारी, लक्खणा, सुसीमा, जंबवई, सच्चभामा, रुप्पिणी । वि पउमावईसरिसा ॥ ६, १० प्रज्भयणाणि मूलसिरी - मूलदत्ता-पदं ३६. तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए रेवयए पव्वए नंदणवणे उज्जाणे हे वासुदेवे ॥ ४०. तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हस्स वासुदेवस्स पुत्ते जंबवईए देवीए प्रत्तए संबे नामं कुमारे होत्था - प्रहीणपडिपुण्ण पंचेंदियसरीरे ॥ ४९. तस्स णं संबस्स कुमारस्स मूलसिरी नामं भारिया होत्था - वण्णो ॥ ४२. रहा समोसढे । कण्हे निग्गए । मूलसिरी विनिग्गया, जहा पउमावई । जं नवरं - देवाणुप्पिया ! कण्हं वासुदेवं श्रपुच्छामि जाव सिद्धा । ४३. एवं मूलदत्ता वि । उक्खेव - पदं १. संगहणी - गाहा जइ • णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं ग्रमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पंचमस्स वग्गस्स प्रथमट्ठे पण्णत्ते । छट्टुस्स णं भंते ! वग्गस्स के श्रट्टे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! समणं भगवया महावीरेणं श्रट्टमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्ठस्स वग्गस्स सोलस ग्रयणा पण्णत्ता, तं जहा - २. अंतगड साओ छट्टो वग्गो १,२ ग्रयणाणि १. अं० ५।२१-३२ । २. अं० ५।७, २१-३२ । ३. ओ० सू० १५ । ४. अं० ५।२१-३२ । ९. मकाइ २. किंकमे चेव, ३. मोग्गरपाणी य ४. कासवे । ५. खेमए ६. धिइहरे चेव, ७. केलासे ८. हरिचंद ॥ १ ॥ ५. ० ५। ३६-४२ । ६. सं० पा० - जइ छट्टस्स उक्खेवओ नवरं सोलस । ७. खेमे ( ग ) । Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टो वग्गो - तइयं अज्भयणं ( मोग्गरपाणी ) ३. मकाइ- किंकम-पदं ४. ५. ६. ७. ८. ६. " ६. वारत १०. सुदंसण ११. पुण्णभद्द तह १२. सुमणभद्द १३. सुपट्टे । १४. मेहे १५. ऽतिमुत्त १६. अलक्के, अज्झयणाणं तु सोलसयं ॥ २ ॥ जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्टस्स वग्गस्स सोलस प्रज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! प्रज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । सेणिए राया ॥ तत्थ णं मकाई नामं गाहावर्डे परिवसइ अड्ढे जाव' अपरिभू || तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे ग्रादिकरे गुणसिलए जाव' संजणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । परिसा निग्गया । ५७६ त से मकाई गाहावई इमीसे कहाए लट्ठे जहा पण्णत्तीए गंगदत्ते' तहेव इमो वि पुत्तं कुडुंबे ठवेत्ता पुरिससहरसवाहिणीए सीयाए निक्खते जाव* अणगारे जाए - इरियासमिए ॥ तणं से मकाई अणगारे समणस्स भगवप्रो महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं तिए समाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई ग्रहिज्जइ । सेसं जहा खंदगस्स गुणरणं तवोकम्मं । सोलसवासाइं परिया । तहेव विउले सिद्धे || किंकवि एवं चैव जाव' विउले सिद्धे । तइयं कयणं १. ना० १।५।७ । २. ना० १|१|६४ | ३. भ० १६/६८-७१ । ४. ना० १।५।२६-३५ । मोग्गरपाणी श्रज्जुण-मालागार - पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । सेणिए राया । चेल्लणा देवी || ११. तत्थ णं रायगिहे नयरे अज्जुणए नामं मालागारे परिवसइ - प्रड्ढे जाव' अपरिभू || १२. तस्स णं अज्जुणयस्स मालायारस्स बंधुमई नामं भारिया होत्था - सुमाल - पाणिपाया || १३. तस्स णं प्रज्जुणयस्स मालायारस्स रायगिहस्स नयरस्स बहिया, एत्थ गं ५. पू० - ना० १।५।३५-३७ । ६. भ० २।५७-६६ । ७. अं० ६।४८ । ८. ना० १।५।७ । Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडदसा महं एगे पुप्फारामे होत्था-किण्हे जाव' महामेहनिउरुंबभूए दसद्धवण्ण कुसुमकुसुमिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ १४. तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते, एत्थ णं अज्जुणयस्स मालायारस्स अज्जय पज्जय-पिइपज्जयागए अणेगकुलपुरिस-परंपरागए मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था-पोराणे दिव्वे सच्चे जहा पूण्णभद्दे ॥ १५. तत्थ णं मोग्गरपाणिस्स पडिमा एगं महं पलसहस्सणिप्फण्णं अशोमयं मोग्गरं गहाय चिट्टइ॥ प्रज्जुणस्स जक्खपज्जुवासणा-पदं १६. तए णं से अज्जुणए मालागारे बालप्पभिई चेव मोग्गरपाणि-जक्खभत्ते यावि होत्था । कल्लाकल्लि पच्छियपिडगाई गेण्हइ, गेण्हित्ता रायगिहामो नयरायो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पुप्फारामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुप्फुच्चयं करेइ, करेत्ता' अग्गाइं वराइं पुप्फाइं गहाय, जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स महरिहं पुप्फच्चणं करेइ, करेत्ता जण्णुपायपडिए पणामं करेइ, तो पच्छा रायमगंसि वित्ति कप्पेमाणे विहरइ। गोटीए प्रणाचार-पदं १७. तत्थ णं रायगिहे नयरे ललिया नाम गोट्ठो परिवसइ-अड्डा जाव अपरिभूता जं कयसुकया यावि होत्था ।। १८. तए णं रायगिहे नगरे अण्णया कयाइ पमोदे घुटे यावि होत्था ॥ १६. तए णं से अज्जुणए मालागारे कल्लं पभूयतराएहि पुप्फेहिं कज्जं इति कटु पच्चूसकालसमयंसि बंधुमईए भारियाए सद्धि पच्छियपिडयाइं गेहइ, गेण्हित्ता सयानो गिहारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नगरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुप्फारामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बंधुमईए भारियाए सद्धि पुप्फुच्चयं करेइ ।। २०. तए णं तीसे ललियाए गोट्ठीए छ गोट्ठिला पुरिसा जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागया अभिरममाणा चिटुंति ।। २१. तए णं से अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धि पुप्फुच्चयं करेइ, १. ओ० सू० ४। २. मो० सू० २। ३. जक्खस्स भत्ते (घ)। ४. पत्थिय° (क्व)। ५. अतोग्रे १२ सूत्रे 'पत्थियं भरेइ, भरेत्ता' इति पाठो लभ्यते। ६. पुप्फच्चणियं (क)। ७. ना० ११५७। Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२. छट्ठो वग्गो --तइयं अज्झयणं (मोग्गरपाणी) ५८१ 'पत्थियं भरेइ, भरेत्ता' अग्गाई वराइं पुप्फाई गहाय जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ ।। तए णं ते छ गोट्ठिल्ला पुरिसा अज्जुणयं मालागारं बंधुमईए भारियाए सद्धि एज्जमाणं पासंति, पासित्ता अण्णमण्णं एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया ! अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धि इहं हव्वमागच्छइ । तं सेयं खलु देवाण प्पिया ! अम्ह अज्जणयं मालागारं अवोडय-बंधणयं करेत्ता बंधमईए भारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणाणं विहरित्तए त्ति कटु एयमÉ अण्णमण्णस्स पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता कवाडंतरेसु निलुक्कंति, निच्चला निप्फंदा तुसिणीया पच्छण्णा चिट्ठति ।। २३. तए णं से अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धि जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, अालोए पणामं करेइ, महरिहं पुप्फच्चणं करेइ, जण्णुपायपडिए पणामं करेइ॥ २४. तए णं छ गोटिल्ला पुरिसा दवदवस्स कवाडंतरेहितो निग्गच्छंति निग्गच्छित्ता अज्जणयं मालागारं गेण्हंति, गेण्हित्ता अवप्रोडय' बंधणं करेंति । बंधमईए मालागारीए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणा विहरंति ।। अज्जुणस्स पडिसोध-पदं २५. तए णं तस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स अयमज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था—एवं खलु अहं बालप्पभिई चेव मोग्गरपाणिस्स भगवनो कल्लाकल्लि जाव' पुप्फच्चणं करेमि, जण्णुपायपडिए पणामं करेमि, तो पच्छा रायमग्गंसि वित्ति कप्पेमाणे विहरामि । तं जइ णं मोग्गरपाणी जक्खे इह सण्णिहिए होते, से णं किं मम एयारूवं आवइं पावेज्जमाणं पासते ? तं नत्थि णं मोग्गरपाणी जक्खे इह सण्णिहिए। सुव्वत्तं णं एस कटे ॥ २६. तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे अज्जुणयस्स मालागारस्स अयमेयारूवं अज्झत्थियं जाव' वियाणेत्ता अज्जुणयस्स मालागारस्स सरीरयं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता तडतडस्स बंधाई छिदइ, छिदित्ता तं पलसहस्सणिप्फण्णं अनोमयं मोग्गरं गेण्हइ, गेण्हित्ता ते इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएइ ।।। तए णं से अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं अण्णाइटे समाणे रायगिहस्स नगरस्स परिपेरंतेणं कल्लाकल्लि इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएमाणे घाएमाणे विहरइ ॥ २७. तएण १. ४ (घ)। २. उवउडग (क, ग); अवउड (ख)। ३. अं० ६।१६ । ४. सुव्वत्ते (ख, ग)। ५. अं० ६।२५ । ६. तडतडतडस्स (ख)। Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८२ अंतगडदसामो रायगिहे आतंक-पदं २८. तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग'-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह ° -महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासेइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ -- एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्जुणए मालागारे मोग्ग रपाणिणा अण्णाइटे समाणे रायगिहे नयरे बहिया इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएमाणे-घाएमाणे विहरइ ।। २६. तए णं से सेणिए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्जुणए मालागारे जाव' घाएमाणे-घाएमाणे विहरइ। तं मा णं तुब्भे केइ कट्ठस्स वा तणस्स वा पाणियस्स वा पुप्फफलाणं वा अट्ठाए सइरं निग्गच्छ इ । मा णं तस्स सरीरयस्स वावत्ती भविस्सइ त्ति कटु दोच्चं पि तच्चं पि घोसणयं घोसेह, घोसेत्ता खिप्पामेव ममेयं पच्चप्पिणह ।। ३०. तए णं ते कोडुबियपुरिसा जाव' पच्चप्पिणंति ।। ३१. तत्थ णं रायगिहे नगरे सुदंसणे नामं सेट्ठी परिवसइ--अड्ढे ।। ३२. तए णं से सुदंसणे समणोवासए यावि होत्था-अभिगयजीवाजीवे जाव' विहरइ ॥ भगवनो समोसरण-पदं ३३. तेणं कालेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणु गामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ३४. तए णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ जाव' किमंग पुण विपुलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? सुदंसणस्स वंदणठें गमण-पदं ३५. तए णं तस्स सुदंसणस्स बहुजणस्स अंतिए एयं सोच्चा निसम्म अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था-एवं खलु समणे भगवं महावीरे १. सं० पा०-सिंघाडग जाव महापहपहेसु । २. अं० ६।२८ । ३. अं०६।२६। ४. ना० १५०४७। ५. सं० पा०-भगवं जाव समोसढे विहरइ । ६. ओ० सू० ५२। Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टो वग्गो - तइयं अज्झयणं ( मोग्गरपाणी ) = जाव' विहरइ । तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि – एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल - • परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी – एवं खलु अम्मयाश्रो ! समणे भगवं महावीरे जाव' विहरइ । तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि नम॑सामि सक्कारेसि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं ' पज्जुवासामि ॥ ० ३६. तए णं सुदंसणं सेट्ठि सम्मापियरो एवं वयासी – एवं खलु पुत्ता ! अज्जुणएं मालागारे' 'मोग्गरपाणिणा जक्खेणं अण्णाइट्ठे समाणे रायगिहस्स नयरस्स परिपेतेणं कल्ला कल्लि बहिया इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएमाणे- घाएमाणें विहरइ । तं मागं तुमं पुत्ता ! समणं भगवं महावीरं वंदए निग्गच्छाहि, मा णं तव सरीरयस्स वावत्ती भविस्सइ । तुमण्णं इह गए चेव समणं भगवं महावीरं दाहि || ३७. तए णं से सुदंसणे सेट्ठी अम्मापियरं एवं वयासी - किण्णं अहं अम्मया ! समण भगवं महावीरं इहमागयं इह पत्तं इह समोसढं इह गए चेव वंदिस्सामि ? तं गच्छामि णं ग्रहं अम्मयात्रो ! तुब्भेहिं ग्रब्भणुण्णाए समाणे समणं भगवं महावीरं वंद || ३८. तए णं सुदंसणं सेट्ठि सम्मापियरो जाहे नो संचाएति बहूहिं प्राघवणाहि पण्णवणाहि सण्णवणाहि विण्णवणाहि परूवणाहिं प्राघवेत्तर पण्णवेत्तए सणवेत्त विण्णवेत्तए परूवेत्तए ताहे एवं वयासी - ग्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मापबंध करेहि || ३६. तए णं से सुदंसणे अम्मापिईहि ग्रब्भणुष्णाए समाणे पहाए सुद्धप्पावेसाई' • मंगललाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकिय • सरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिवखमित्ता पायविहारचारेणं रायगिहं नगरं मज्मणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणस्स दूरसामंतेणं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए । सुदंसणस्स श्रज्जुणकय उवसग्ग-पदं ४०. तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे सुदंसणं समणोवासयं दूरसामंतेणं वीईवयमाणं १. ना० १।१।६७ । २. द्रष्टव्यः अग्रिमः पाठः । ३. सं० पा० - करयल ० । ४. ना० १।१।६७ । ५. सं० पा० - नमसामि जाव पज्जुवासामि । ६. सं० पा० - मालागारे जाव घाएमाणे । ७. सं० पा० – विष्णवणाहिं जाव परूवेत्तए । ८. 'सुद्ध' त्ति शुद्धात्मा यावत्करणात् वेसियाई पवर वत्थाई परिहिए ° (वृ); सं० पा० - सुद्धप्पावेसाई जाव सरीरे । Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतगडद साओ तं वीवयमाणं पास, पासित्ता आसुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे सहस्सणिफणं प्रोमयं मोग्गरं उल्लाले माणे - उल्लालेमाणे जेणेव सुदंसणे समणोवासए तेणेव पहारेत्थ गमणाए || ४१. तए णं से सुदंसणे समणोवासए मोग्गरपाणि जक्खं एज्जमाणं पासइ, पासिता अभी तत्थे अणुव्विग्गे अक्खुभिए अचलिए असंभंते वत्थं तेणं भूमि पमज्जइ, पमज्जित्ता करयल' परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - नमोत्थु णं अरहंताणं जाव' सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवग्रो महावीरस्स जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविकामस्स । पुव्विपि णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए, थूलए मुसावाए [ पच्चक्खाए जावज्जीवए ? ], थूलए ग्रदिण्णादाणे [ पच्चक्खाए जावज्जीवाए ? ], सदा संतो से कए जावज्जीवाए, इच्छापरिमाणे कए जावज्जीवाए । तं इदाणि पिणं तस्सेव अंतियं सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, मुसावायं प्रदत्तादाणं मेहुणं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, सव्वं कोहं जाव' मिच्छादंसण सल्लं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, सव्वं असणं पाणं खाइम साइमं चव्विहं पि श्राहारं पच्चक्खामि जावज्जोवाए । जइ णं एत्तो उवसग्गाओ मुच्चिस्सामि तो मे कप्पइ पारेत्तए । ग्रहणं एत्तो उवसग्गाओ नमुच्चिस्सामि 'तो मे तहा ं पच्चक्खाए चेव त्ति कट्टु सागारं पडिमं पडवज्जइ ॥ ५८४ ४२. तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे तं पलसहस्सणिफण्णं श्रोमयं मोग्गरं उल्लाले - माणे - उल्लालेमाणे जेणेव सुदंसणे समणोवासए तेणेव उवागए | नो चेव णं संचाएइ सुदंसणं समणोवासयं तेयसा समभिपडित्तए || उवसग्गनिवारण-पदं ४३. तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे सुदंसणं समणोवासयं सव्वप्रो समंता' परिघोलेमाणे- परिघोलेमाणे जाहे नो चेव णं संचाएइ सुदंसणं समणोवासयं तेयसा समभिपत्तिए, ताहे सुदंसणस्स समणोवासयस्स पुरम्रो सपक्खि सपडिदिसिं ठिच्चा सुदंसणं समणोवासयं प्रणिमिसाए दिट्ठीए सुचिरं निरिक्खइ, निरिक्खित्ता अज्जुणयस्स मालागारस्स सरीरं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता तं पलसहस्सणिप्फण्णं १. सं० पा० - करयल । २. प्रो० सू० २१ । ३. ओ० सू० ११७ । ४. तओ मे ( क ) । ५. अयोमयं ( ख ) । ६. सम्मंताओ ( क, ख ) । Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टो वग्ग - इयं अवणं ( मोग्गरपाणी) प्रोमयं मोग्गरं गहाय जामेव दिसं' पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए || ४४. तणं से प्रज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं विप्पमुक्के समाणे 'धस' धरणियसि सव्वंहिं निवडिए । ४५. तणं से सुदंसणे समणोवासए 'निरुवसग्ग' मिति कट्टु पडिमं पारेइ || सुदंसणस प्रज्जुणस्य भगवन पज्जुवासणा-पदं ४६. तए णं से अज्जुणए मालागारे तत्तो मुहुत्तंतरेणं श्रासत्ये समाणे उट्ठेइ, उट्ठेत्ता सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी - तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! के कहि वा संपत्थिया ? ४७. तए णं से सुदंसणे समणोवासए अज्जुणयं मालागारं एवं वयासी - एवं खलु देवाप्पिया ! अहं सुदंसणे नामं समणोवासए - अभिगयजीवाजीवे गुणसिलए चेइए समणं भगवं महावीरं वंदए संपत्थिए | ४८. तए णं से प्रज्जुणए मालागारे सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी - तं इच्छामि णं देवाप्पिया ! अहमवि तुमए सद्धि समणं भगवं महावीरं वंदित्तए जाव पज्जुवासित्तए । हासु देवाप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ ४६. तए णं सुदंसणे समणोवासए ग्रज्जुणएणं मालागारेणं सद्धि जेणेव गुण सिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रज्जुण एणं मालागारेणं सद्धि समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ जाव' पज्जुवासइ ॥ ५०. तए णं समणे भगवं महावारे सुदंसणस्स समणोवासगस्स श्रज्जुणयस्स मालागा - रस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मज्झगए विचित्तं धम्ममाइक्खइ° । सुदंसणे पडिए । प्रज्जुणस्स पव्वज्जा-पदं ५१. तए णं से प्रज्जुणए मालागारे समणस्स भगवप्रो महावीरस्स ग्रंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हदु तुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदिता नमसित्ता एवं वयासी - सद्दहामि गं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं १. दिसि ( ख, ग ) । २. संनिवडिए ( क ) । ३. पू० ना० ११५१४७ । ४. गच्छामि ( क ) । ५. ० ६।३५ । ५८५ ६. श्रं० ६।३५ । ७. सं० पा० तीसे य धम्मकहा । पू- ओ० सू० ७१-७७ । ८. सं० पा०-हदु° । ६. सं० पा० - पावणं जाव अब्भुट्ठेमि । Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८६ अंतगडदसायो भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भटेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ।। ५२. तए णं से अज्जुणए मालागारे उत्तर पुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्क मित्ता° सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जाव' अणगारे जाए', 'से णं वासीचंदणकप्पे समतिणमणि-लेढुकंचणे समसुहदुक्खे इहलोग-परलोग-अप्पडिबद्धे जीविय-मरण-निरवकंखे संसारपारगामी कम्मनिग्घायणट्ठाए एवं च णं° विहरइ । अज्जुणअणगारस्स तितिवखा-पदं ५३. तए णं से अज्जुणए अणगारे जं चेव दिवसं भुडे' •भवित्ता अगाराप्रो अणगा रियं पव्वइए तं चेव दिवसं समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं ओगेण्हइ -- कप्पइ मे जावज्जीवाए छटुंछटेणं अणि विखत्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स विहरित्तए त्ति कटु अयमेयारूवं अभिग्गह, योगेण्हइ प्रोगेण्हित्ता जावज्जीवाए 'छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ ।। ५४. तए णं से अज्जुणए अणगारे छटुक्खमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, •बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए जहा गोयमसामी जाव रायगिहे नगरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खाय रियं° अडइ ।। ५५. तए ण तं अज्जुणयं अणगारं रायगिहे नथरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए° अडमाणं बहवे इत्थीयो य पुरिसा य डहरा य महल्ला य जुवाणा य एवं वयासी-इमेण मे पिता मारिए। इमेण मे माता मारिया । इमेण मे भाया भगिणी भज्जा पुत्ते धूया सुण्हा मारिया । इमेण मे अण्णयरे सयण-संबंधि-परियणे मारिए त्ति कटट अप्पेगइया अक्कोसंति, अप्पेगइना हीलंति निदति खिसंति गरिहंति तज्जति तालेति ।। १. सं० पा०-उत्तर ० । २. ना० ११५३४, ३५ । ३. सं० पा०-अणगारे जाए जाव विहरइ । पू०-ना० ११५॥३५,३६ । ४. सं० पा०-मुंडे जाव पव्वइए। ५. ओग्गहं (क, ख, ग)। ६. X (क, ख, ग)। ७. ओग्गहं (क, ख, ग)। ८. 'अभिग्गहं ओगेण्हेइ' इति द्विरुक्तः पाठोस्ति। ६. सं० पा० -जावज्जीवाए जाव विहरइ । १०. X (घ)। ११. सं० पा०-करेइ जहा गोयमसामी जाव अडइ। १२. भ० २।१०७ १०८। १३. सं० पा०-उच्च जाव अडमाणं । Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टो वग्गो - ४- १४ अज्झयणाणि ५८७ ५६. तए णं से अज्जुणए अणगारे तेहि बहूहिं इत्थीहि य पुरिसेहि य डहरेहि य महल्ले हिय जुवाणएहि य श्राश्रोसिज्जमाणे जाव' तालेज्जमाणे तेसि मणसा विपस्समाणे सम्मं सहइ सम्मं खमइ सम्मं तितिक्खइ सम्मं ग्रहियासेइ, सम्मं सहमाणे सम्मं खममाणे सम्मं तितिक्खमाणे सम्मं ग्रहियासेमाणे रायगिहे नयरे उच्च णीय-मज्झिम-कुलाई प्रमाणे जइ भत्तं लभइ तो पाणं न लभइ, ग्रह पाणं लभइ तो भत्तं न लभइ ॥ ५७. तए णं से अज्जुणर अणगारे प्रदीणे ग्रविमणे प्रकलुसे ग्रणाइले प्रविसादी अपरितंतजोगी डइ, ग्रडित्ता रायगिहाओ नगराम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरें तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवम्रो महावीरस्स दूरसामंते गमनागमणाए पडिक्कमेइ, पडिक्कमेत्ता एसणमणेसणं आलोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता समणेण भगवया महावीरेणं श्रब्भणुण्णाए समाणे प्रमु च्छिए अगिद्धे अगढिए प्रणभोववण्णे बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं तमाहारं प्राहारे । ५८. तए णं समणे भगवं महावीरे ग्रण्णया रायगिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्त बहिया जणवयविहारं विहरइ || अज्जुणणगारस सिद्धि-पदं ५६. तए णं से अज्जुणए अणगारे तेणं प्रोरालेणं विपुलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुणे छम्मासे सामण्णपरियागं पाउणइ, पाणिता श्रद्धमासियाए संलेहणाए अप्पाणं भूसेइ, भूसेत्ता तीसं भत्ताइं अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता जस्सट्ठाए की रइ नग्गभावे जाव' सिद्धे || ४-१४ अज्झयणाणि कासवादि-पदं ६०. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए । सेणिए राया । कासवे नामं गाहावई परिवसइ । जहा मकाई' । सोलस वासा परिया विपुले सिद्धे ॥ । १. आतोसिज्जमाणे (क, ख, ग, ) । २. ग्रं० ६।५५ । ३. ० जोती (क, ख, ग, ) । ४. स० पा० - जहा पडिदसेइ | ५. ओ० सू० १५४ । ६. अं० ६।५-८ । गोयमसामी तहा Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ अंतगडदसामो ६१. एवं'-खेमए वि गाहावई, नवरं-कायंदी नयरी। सोलस वासा परियायो । विपुले पव्वए सिद्धे ॥ ६२. एवं-धिइहरे वि गाहावई कायंदीए नयरीए। सोलस वासा परियायो । विपुले सिद्धे ॥ ६३. एवं'–केलासे वि गाहावई, नवरं-साएए नयरे । बारस वासाइं परियायो । विपुले सिद्धे ॥ ६४. एवं-हरिचंदणे वि गाहावई साएए नयरे । बारस वासा परियायो। विपुले सिद्धे ।। ६५. एवं—वारत्तए वि गाहावई, नवरं-रायगिहे नगरे । बारस वासा परियायो । विपुले सिद्धे ।। ६६. एवं-सुदंसणे वि गाहावई, नवरं - वाणियग्गामे नयरे । दूइपलासए चेइए । पंच वासा परियाओ। विपुले सिद्धे ।। ६७. एवं'-पुण्णभद्दे वि गाहावई वाणियग्गामे नयरे । पंचवासा परियायो । विपुले सिद्धे ।। ६८. एवं-सुमणभद्दे वि गाहावई सावत्थीए नयरोए। बहुवासाइं परियायो । विपुले सिद्ध ॥ ६६. एवं सुपइट्ठ वि गाहावई सावत्थीए नयरीए । सत्तावीसं वासा परियायो । विपुले सिद्धे ।। ७०. एवं-मेहे वि गाहावई रायगिहे नयरे । बहूई वासाइ परियायो। विपुले सिद्धे ॥ १-१०. अं०६।४.८। Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणरसमं अज्झयणं अइमुत्ते प्रइमुत्तकुमार-पदं ७१. तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुरे नगरे । सिरिवणे उज्जाणे ॥ ७२. तत्थ णं पोलासपुरे नयरे विजये नाम राया होत्था ।। ७३. तस्स णं विजयस्स रण्णो सिरि नामं देवी होत्था-वण्णओ' ।। ७४. तस्स णं विजयस्स रण्णो पुत्ते सिरीए देवीए अत्तए अतिमुत्ते नाम कुमारे होत्था--सूमालपाणिपाए । गोयमस्स भिक्खायरिया-पदं ७५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' सिरिवणे •उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ° विहरइ ॥ ७६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवरो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूती अणगारे जहा पण्णत्तीए जावपोलासपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं ° अडइ ॥ गोयम-अइमुत्तकुमार-संवाद-पदं ७७. इमं च णं अइमुत्ते कुमारे ण्हाए जाव' सव्वालंकारविभूसिए बहूहिं दारएहि य दारियाहि य डिभएहि य डिभियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धि १. ओ० सू० १५। २. पू०-ओ० सू० १४३ । ३. अं० ६।३३ । ४. सं० पा०–सिरिवणे विहरइ । ५. भ० २।१०६-१०६ । ६. सं० पा०-उच्च जाव अडइ । ७. अं० ३।४४ । ५८६ Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० अंतगडदसाओ संपरिवुडे सानो गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव इंदढाणे तेणेव उवागए। तेहिं बहूहिं दारएहि य संपरिवुडे अभिरममाणे-अभिरममाणे विहरइ ॥ ७८. तए णं भगवं गोयमे पोलासपुरे नयरे उच्च'- नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमु दाणस्स भिक्खायरियाए° अडमाणे इंदट्ठाणस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ॥ ७६. तए णं से अइमत्ते कमारे भगवं गोयमं अदरसामंतेणं वीईवयमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागए, भगवं गोयम एवं वयासी-के णं भंते ! तुब्भे? कि वा अडह ? ८०. तए णं भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी-अम्हे णं देवाणुप्पिया ! समणा निग्गंथा इरियासमिया जाव' गुत्तबंभयारी उच्च'- नीय-मज्झिमाई कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए ° अडामो॥ ८१. तए णं अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी-एह णं भंते ! तुब्भे जा णं' अहं तुम्भं भिक्खं दवावेमी त्ति कटु भगवं गोयमं अंगुलीए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। ८२. तए णं सा सिरिदेवी भगवं गोयम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्टा पासणाग्रो अब्भुढेइ, अब्भुद्वेत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागया । भगवं गोयमं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता पडिविसज्जेइ ।। ८३. तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी-कहिं णं भंते ! तुब्भे परिवसह ? ८४. तए णं से भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव' सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे इहेव पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया सिरिवणे उज्जाणे अहापडिरूवं प्रोग्गहं योगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं° भावेमाणे विहरइ । तत्थ णं अम्हे परिवसामो ।। प्राइमुत्तकुमारस्स पव्वज्जा-पदं ८५. तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी--गच्छामि णं भंते ! अहं तुब्भेहिं सद्धि समणं भगवं महावीरं पायवंदए । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ।। १. सं० पा०-उच्च जाव अडमाणे । २. ना० १।१।१६४ । ३. सं० पा-उच्च जाव अडामो। ४. जेणेवहं (ख, घ)। ५. धम्मोवएसए धम्मनेयरी (क); ०धम्मे नेतारी (ख, घ)। ६. ओ० सू० १६ । ७. सं० पा.-संजमेणं जाव भावेमाणे। Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो वग्गो-पणरसमं अज्झयणं (अइमुत्ते) ५६१ ८६. तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवया गोयमेणं सद्धि जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावोरं तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ जाव' पज्जुवासइ ।। ८७. तए णं भगवं गोयमे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागए', उवागच्छित्ता समणस्स भगवनो महावीरस्स अदरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमेइ. पडिक्कमेत्ता एसणमणेसणं आलोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं ° पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ८८. तए णं समणे भगवं महावीरे अइमुत्तस्स कुमारस्स तीसे य' •महइमहालियाए परिसाए मझगए विचित्तं धम्ममाइक्ख इ° ॥ ८६. तए णं से अइमुत्ते कुमारे समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हतुट्टे एवं वधासी -सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जाव' जं नवरं-देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो प्रापुच्छामि तए णं ग्रहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ।। ६०. तए णं से अइमुत्ते कुमारे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागए जाव" इच्छामि णं अम्मयानो ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइत्तए । तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-वाले सि ताव तुमं पुत्ता ! असंबुद्धे, कि णं तुम जाणसि धम्म ? १२. तए णं से अइमुत्ते कूमारे अम्मापियरो एवं वयासी---एवं खल अहं अम्मयाग्रो! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि ।। ६३. तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-कहं णं तुमं पुत्ता ! जं चेव जाणसि तं चेव न जाणसि ? जं चेव न जाणसि तं चेव जाणसि ? ६४. तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-जाणामि अहं अम्म यानो ! जहा जाएणं अवस्स मरियव्वं, न जाणामि अहं अम्मयाप्रो ! काहे वा कहिं वा कहं वा कियच्चिरेण वा ? न जाणामि णं अम्मयायो ! केहि कम्माययणेहि जीवा नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवेसु उववज्जंति, १. अं०६।३५ । २. सं० पा०-उवागए जाव पडिदंसेइ । ३. सं० पा०-तीसे य धम्मकहा। ४. पू०-०६।५१। ५. ना० १११।१०१। ६. अ० ५।२१। ७. अं० ३।६४-६६ । ८. X (क)। ६. जाणासि (ख, ग)। १०. केवचिरेण (क, ख, ग, घ,)। ११. कम्मायारेहिं (क); कम्मायाणेहिं (ख, ग); कम्मावयणेहिं (वृपा)। Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ अंतगडदसाओ जाणामि णं अम्मयायो ! जहा सएहिं कम्माययणेहिं जीवा नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवेसु° उववज्जति । एवं खलु अहं अम्मयानो ! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि । तं इच्छामि णं अम्मयाअो! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए जाव' पव्वइत्तए । ६५. तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहिं आघवणाहि 'य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्ण वित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे अकामकाई चेव अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी -तं इच्छामो ते जाया ! एगदिवसमवि रायसिरि पासेत्तए॥ ६६. तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापिउवयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ । अभिसेयो जहा महब्बलस्स' निक्खमणं जाव' सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाई अहिज्जइ । बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, गुण रयणं तवोकम्म जाव विपुले सिद्धे ।। सोलसमं अज्झयणं अलक्के अलक्क-पदं ६७. तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नयरी, काममहावणे चेइए। १८. तत्थ णं वाणारसीए अलक्के नाम राया होत्था ।। ६६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' विहरइ। परिसा निग्गया । १००. तए णं अलक्के राया इमोसे कहाए लढे हट्टतुटे जहा कोणिए जाब" पज्जुवा सइ । धम्मकहा ।। २. सं० पा०–नेरइय जाव उववज्जति । ३. अं० ६१६० । ४. सं० पा०-आघवणाहिं० । ५. महाबलस्स (क, घ)। भ० ११।१६८। ६. भ० ११११६८,१६६ । ७. X (क, ख. ग,)। ८. अं० १।२३,२४। ६. अं० ६।३३। १०. ओ० सू० ५४-६६ । Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो वग्गो-सोलसमं अज्झयणं (अलक्के) १०१. तए णं से अलक्के राया समणस्स भगवरो महावीरस्स अतिए जहा उद्दायणे' तहा निक्खते, नवरं--जेट्टपुत्तं रज्जे अभिसिंचइ । एक्कारस अगाई। बहू वासा परियानो जाव विपुल सिद्धे । निक्खेव-पदं १०२. एवं खलु जंबू ! समणणं भगवया महावोरण अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं' छट्ठमस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते ।। ३. स० पा०-समणेणं जाव छस्स । १. भग० १३।१०८-११६ । २. अं० ६६६ । Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वग्गो १-१३ अज्झयणाणि उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! 'समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छठुस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, सत्तमस्स वग्गस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? २. एव खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा १. नंदा तह २. नंदवई', ३. नंदुत्तर ४. नंदिसेणिया चेव ५. मरुता ६. सुमरुता ७. महमरुत्ता ८. मरुदेवा य अट्ठमा ॥१॥ ६. भद्दा य १०. सुभद्दा य, ११. सुजाया १२. सुमणाइया १३. भूयदिण्णा य बोधव्वा, सेणियभज्जाण नामाइं ॥२।। ३. जइ णं भंते समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अटे पण्णत्ते ? नंदादि-पदं ४. एवं खलु जंबू ! तेण काल गं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया-वण्णयो । ५. तस्स णं सेणियस्स रण्णो नंदा नाम देवी होत्था-वण्णो । सामी समोसढे । परिसा निग्गया। ६. तए णं सा नंदा देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा हट्टतुट्ठा कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता जाणं दुरुहइ, जहा पउमावई जाव' एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता वीसं वासाई परियायो जाव सिद्धा॥ ७. एवं तेरस वि देवीग्रो नंदागमेण नेयव्वाग्रो ।। १. सं० पा० जइ ण भंते ! सत्तमस्स वग्गस्स ५. ओ० सू०१५। उक्खेवओ जाव तेरस । ६. अ० ५।२१-३१। २. नंदमती (क); नंदसती (ख)। ७. अं० ५।३२ ३. सं० पा०-जइ णं भंते ! तेरस । ८. अं० ७।३-६ । ४. प्रो० सू० १४ । ५९४ Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अटूट्ठमो वग्गो पढमं श्रज्भयणं कालो उक्खेव - पर्द १. जइ णं भंते' ! समणेण भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्स प्रथमठ्ठे पण्णत्त, अट्टमस्स वग्गस्स के अट्ठे पण्णत्तं ? २. एवं खलु जंबू ! समणं भगवया महावोरेणं ग्रमस्स अंगस्स अंतगड दसाणं अट्ठमस्स वग्गस्स दस ग्रज्झषणा पण्णत्ता, तं जहा संगहणी-गाहा ७. ह. १. काली २. सुकाली ३. महाकाली, ४. कण्हा ५. सुकण्हा ६. महाकण्हा । वीरहा य बोधव्वा, ८. रामकण्हा तहेव य । पिउसे कहा नवमी, दसमी १०. महासेणकण्हा य ॥ १ ॥ ३. जइ' णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं प्रट्टमस्स ग्रंगस्स अंतगडदसाणं • दस अज्झणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! प्रज्भयणस्स अंतगडदसाण के अ पण्णत्ते ? कालीए रयणावलितव-पदं ४. एवं खलु जबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था । पुण्णभद्दे चेइए || ५. तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए राया - वण्णो ॥ ६. तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रण्णो भज्जा, कोणियस्स रण्णो चुल्लमाउया, १. सं० पा० - जइ गं भते ! अट्टमस्स वग्गस्स उक्खेवओ जाव दस । २. सं० पा० - जइ दस । ३. ओ० सू० १४ । ५६५ Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंत गडदसाओ काली नामं देवी होत्था - वण्णो' । जहा नंदा जाव' सामाइयमाइयाई एक्का रस अंगाई हिज्जइ । बहूहि चउत्थ-छट्टम - दसम दुवाल से ह मासमासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणी' विहरइ ॥ ७. तए णं सा काली ग्रज्जा ग्रण्णया कयाइ जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं वयासी- इच्छामि णं प्रज्जाश्रो ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी रयणावलिं तवं उवसंपज्जित्ता णं विहरितए । हासुहं देवाप्पिए ! मा पडिबधं करेहि || ८. तए णं सा काली अज्जा ग्रज्जचंदणाए ग्रब्भणुष्णाया समाणी रयणावलिं तवं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा ५६६ दुवालसमं चोदसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ | करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ | सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । बावीस मं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । चवीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । छवीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । अट्ठावीस इमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । तीस मं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । बत्तीस मं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । चोत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चोत्तीसं छट्टाई करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ | चउत्थं छट्ठ मं टु छट्टाई चउत्थं छट्ठ अट्टमं दसमं ग्रद्वारसम वीसइमं १. ओ० सू० १५ । २. अं० ७५,६ । ३. सं० पा० - चउत्थ जाव अप्पाण ४. भावेमाणा ( ग ) । ५. अट्ठारसं ( क ) । Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो वग्गो-पढमं अज्झयणं (काली) ५.६७ चोत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । बत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । तीसइम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । अट्ठावीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । छव्वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चउवीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। बावीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चोदसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । बारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । दसम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चउत्थ करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । अट्ठ छट्ठाई करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । अट्टम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । करेइ, करेता सव्वकामगुणियं पारेइ । चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। एवं खलु एसा रयणावलीए तवोकम्मस्स पढमा परिवाडी एगेणं संवच्छरेणं तिहिं मासेहिं बावीसाए य अहोरत्तेहिं अहासूत्तं' 'ग्रहाअत्थं अहातच्च अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं काएणं फासिया पालिया सोहिया तोरिया किट्टिया आराहिया भवइ ।। तयाणंतरं च णं दोच्चाए परिवाडीए चउत्थं करेइ, करेत्ता विगइवज्ज पारेइ। छटुं करेइ, करेत्ता विगइवज्ज पारेइ । एवं जहा पढमाए परिवाडीए तहा बीयाए वि, नवरं-सव्वपारणए' विगइवज्ज पारेइ। एवं खलु एसा रयणावलीए तवोकम्मस्स बिइया परिवाडी एगेणं संवच्छरेणं तिहि मासेहिं बावीसाए य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव' ° पाराहिया भवइ ।। छद्र १. सं० पा०-अहासुत्तं जाव आराहिया। २. सव्वत्थपारणए (ख, ग, घ)। ३. सं० पा...-पारेइ जाव आराहिया ! ४. अं० ८८ Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ श्रतगडदसाग्र १०. तयानंतरं च णं तच्चाए परिवाडीए चउत्थं करेइ, करेत्ता अवार्ड पारेइ । सेसं तहेव | नवरं अलेवार्ड पारेइ || ११. एवं चउत्था परिवाडी । नवरं सव्वपारणए आयंबिलं पारे । सेसं तं चेव ॥ संगहणी - गाहा 'पढमंमि सव्वकामं, पारणयं बिइयए विगइवज्जं । तइयंमि अलेवार्ड, आयंबिलमो चउत्थम्मि ||१|| १२. तए णंसा काली अज्जा रयणावली- तवोकम्मं पंचहि संवच्छरेहिं दोहि य माहिं अट्ठावीसाए य दिवसेहिं ग्रहासुतं जाव प्राराहेत्ता जेणेव प्रज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ग्रज्जचंदणं ग्रज्जं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता बहूहिं चउत्थ जाव ग्रप्पाणं भावेमाणी विहरइ || १३. तए णं सा कालो धज्जा तेणं प्रोरालेणं' 'विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं वण्णेणं मंगल्लेणं सस्सिरोएण उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्का लुक्खा निम्मंसा श्रचिम्मावणद्धा fastesयाभूया किसा धमणिसंतया जाया यावि होत्था 'जीवंजीवेण गच्छइ जाव' सुहुहुयासणे" इव भासरासिपलिच्छण्णा तवेणं, तेएणं, तवतेयसिए व ईव उवसोमाणी उवसोमाणी चिट्ठइ ॥ १४. तए णं तीसे कालीए प्रज्जाए ग्रण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले श्रयमज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था, जहा खंदयस्स चिंता जाव अथ उट्टा कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अज्जचंदणं अज्जं प्रापुच्छित्ता ग्रज्जचंदणाए अज्जाए अब्भणुष्णायाए समाणीए संलेहणा - भूसणा-भूसियाए भत्तपाण- पडिया इक्खियाए कालं प्रणवकंखमाणीए विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ग्रज्जचंदण प्रज्जं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं ग्रज्जो ! तुम्भेहि अम्भणुण्णाया समाणी संलेहणा - भूसणा-भूसियाए भत्तपाण -पडियाइविखयाए कालं अणवकंखमाणीए विहरित्तए । हासुहं ॥ ० १. पढमंसि सव्वकामपारणयंसि ( क ) ; पढमंसि सव्वगुणिए पारणकं (वृपा) । २. अं० ३. ग्रं० ८६ । ४. सं० पा० - उरालेणं जाव धम्मणिसंतया । ५. भ० २।६४ | ६. से जहा इंगाल जाव सुहुयहुयासणे ( क, ख, ग, घ ) । ७. भ० २०६६ । ८. ना० ११।२४ । ६. सं० पा० - संलेहणा जाव विहरित्तए । Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टम वग्गो बीयं ग्रज्झयणं ( सुकाली) १५. तए णं सा काली ग्रज्जा ग्रज्जचंदणाए ग्रब्भणुण्णाया समाणा संलेहणा-भूसणाभूसिया जाव' विहरइ || १६. तए णं सा काली प्रज्जा प्रज्जचंदणाए अतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस हिज्जत हुडपुण्णाई श्रद्ध संवच्छराई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए ग्रत्ताणं भूसित्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता, जस्साए कीरइ नग्गभावे जाव' चरिमुस्सासेहिं सिद्धा || १७. निक्खेवओ || बीयं यणं सुकाली सुकालीए कणगावलितव-पदं १८. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी । पुण्णभद्दे चेइए । कोणिए राया ॥। १६. तत्थ णं सेणियस्स रण्णो भज्जा, कोणियस्स रण्णो चुल्लमाउया, सुकाली नाम देवी होत्था । जहा काली तहा सुकाली वि निक्खता जाव' बहूहि जाव' तवकस्मेहिं पाणं भावेमाणी विहरइ || २०. तए णं सा सुकाली अज्जा अण्णया कयाइ जेणेव प्रज्जचंदणा श्रज्जा' तेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं वयासी । - इच्छामि णं श्रज्जाओ ! तुब्भेहिं १. प्र० ८ १४ | २. ओ० सू० १५४ । ३. चरिमुसासनिस्सासहिं ( ख, ग ) । ४,५. प्र० ८।६ । भगुणाया समाणी कणगावली - तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । एवं जहा रयणावली तहा कणगावली वि, नवरं - तिसु ठाणेसु श्रट्टमाई करेइ, जहि रयणावलीए छट्टाई | एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा बारस य ग्रहोरत्ता । चउन्हं पंच रिसा नव मासा अट्ठारस दिवसा । सेसं तहेव । नव वासा परियाओ जाव' सिद्धा ॥ ५६६ ६. सं० पा० - प्रज्जा जाव इच्छामि । ७. ग्रं० ८।१२-१६ । ८. प्र० ८ १६ । Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० महाकालीए खुड्डागसीह निक्कीलियतव-पदं २१. एवं - महाकाली वि, नवरं - खुड्डागं सीहनिक्कीलियं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा - चउत्थं छट्ठ चउत्थं मं छट्ठ दसमं अट्टमं तइयं अयणं महाकाली बारसमं चोदसमं दसमं १. अं० ८६-८ । करेइ, करेइ, करेइ, करेइ, करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेत्ता करेत्ता दुवालसमं करेइ, दसमं करेइ, चोद्दसमं करेइ, कत्ता दुवाल सं करेइ, करेत्ता सोलसमं करेइ, करेत्ता चोदसमं करेइ, करेत्ता अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता सोलसमं करेइ, करेत्ता वीस मं करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता ग्रद्वारसमं वीस मं करेइ, करेत्ता सोलसमं करेइ, करेत्ता करेत्ता अट्ठारसमं करेइ, चोदसमं करेइ, करेत्ता सोलसमं करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणयं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुण सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं कामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुण सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणयं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणि सव्वकामगुण सव्वकामगुणियं तगडदसाओ पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ । पारेइ । पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ । पारेइ । पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ । Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०१ करेइ, अट्ठमो वग्गो-पंचमं अज्झयणं (सुकण्हा) बारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। अट्टमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । दसमं करइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । करेत्ता सव्वकामगणियं पारेइ। अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगणियं पारे । चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छटुं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । तहेव चत्तारि परिवाडीयो। एक्काए परिवाडीए छम्मासा सत्त य दिवसा । चउण्हं दो वरिसा अट्ठावीसा य दिवसा जाव' सिद्धा ॥ चउत्थं अज्झयणं कण्हा कण्हाए महालयसीहनिक्की लियतव-पदं २२. एवं– कण्हा वि, नवरं-महालयं सीहणिक्कीलियं तवोकम्मं जहेव खड्डागं, नवरं-चोत्तीस इमं जाव नेयव्वं । 'तहेव अोसारेयव्वं । एक्काए वरिसं छम्मासा अट्ठारस य दिवसा । चउण्हं छव्वरिसा दो मासा बारस य अहोरत्ता। सेसं जहा कालीए जाव' सिद्धा। पंचमं अज्झयणं सुकण्हा सुकण्हाए भिक्खुपडिमा-पदं २३. एवं—सुकण्हा वि, नवरं-सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। १. अं० ८।१२-१६ । २. अं० ८।६-८ । ३. X (क)। ४. अं० ८।१२-१६ । ५. अं० ८१६-८। Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ अतगडदसाओ पढमे सत्तए एक्केक्कं भोयणस्स दत्ति पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स । दोच्चे सत्तए दो-दो भोयणस्स दो-दो पाणयस्स पडिगाहेइ । तच्चे सत्तए तिण्णि-तिण्णि दत्तीयो भोयणस्स, तिण्णि-तिण्णि दत्तीग्रो पाणयस्स। चउत्थे सत्तए चत्तारि-चत्तारि दत्तीग्रो भोयणस्स, चत्तारि-चतारि दत्तीग्रो पाणयस्स। पंचमे सत्तए पंच-पंच दत्तीओ भोयणस्स, पंच-पंच दत्तीयो पाणयस्स । छट्टे सत्तए छ-छ दत्तीपो भोयणस्स, छ-छ दत्तीग्रो पाणयस्स । सत्तमे सत्तए सत्त-सत्त दत्तीग्रो भोयणस्स, सत्त-सत्त दत्तीग्रो पाणयस्स पडिगाहेइ। एवं खलु एवं सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं एगूणपण्णाए रातिदिएहि एगेण य छण्णउएण भिक्खासएणं ग्रहासुत्तं जाव पाराहेत्ता जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता अज्जचंदणं अज्जं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं अज्जायो ! तुन्भेहि अब्भणुण्णाया स माणी अट्टमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरेत्तए।। अहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंध करेहि ॥ २४. तए णं सा सुकण्हा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णाया समाणी अट्टमियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइपढम अट्ठए एक्केक्कं भोयणस्स दत्ति पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स जाव अट्टमे अट्ठए अट्ठट्ठ भोयणस्स पडिगाहेइ, अट्ठट्ठ पाणयस्स । एव खलु एयं अट्ठमियं भिक्खुपडिमं चउसट्ठीए रातिदिएहि दोहि य अट्ठासीएहि भिक्खासएहि अहासुत्तं' पाराहेत्ता जाव' नवनवमियं भिवखुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइपढमे नवए एक्केक्कं भोयणस्स दत्ति पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स जाव नवमे नवए नव-नव दत्तीग्रो भोयणस्स पडिगाहेइ, नव-नव पाणयस्स । एवं खलु एयं नवनवमियं भिक्खुपडिम एक्कासीतिए राइंदिएहिं चउहि य पंचत्तरहि भिक्खासएहि अहासुत्तं' आराहेत्ता जाव' दसदसमियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइपढमे दसए एक्केक्क भोयणस्स दत्ति पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स जाव १. अं० ८।८। २. पू० --अं० ८।२३ । ३. अं० ८।२३। ४. पाणस्स (क, ख, ग, घ)। ५. पू.---१० ८।२३ । ६. अ० ८।२३ । Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टम वग्गो - अभयणं ( महाकण्हा ) दसमे दसए दस-दस दत्तीग्रो भोयणस्स पडिगाइ, दस-दस पाणयस्स । एवं खलु एयं दस दसमियं भिक्खुपडिमं एक्केणं राइदियसएणं श्रद्धछट्ठेहि य भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव' आराहेइ, आराहेत्ता बहूहिं चउत्थ छट्ठट्ठम-दसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विविहेहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ ॥ २५. तए णं सा सुकण्हा प्रज्जा तेणं श्रोरालेणं तवोकम्मेणं जाव' सिद्धा || २६. निक्खेव || चट्ठ अभयणं महाकण्हा महाकण्हाए खुड्डागसव्वग्रोभद्द-पदं २७. एवं – महाकण्हा वि, नवरं - खुड्डागं सव्वग्रोभ पडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ- च उत्थं करेइ, १. ०८ । २. पू० प्र० ८ १३ । ३. ग्रं० ८।१३-१६ । करेत्ता छट्ठ करेइ, करेत्ता श्रमं करेइ, करेत्ता दसमं करेइ, करेत्ता दुवालसमं करेइ, करेत्ता मं करेइ, करेत्ता करेत्ता दसमं करेइ, दुवालसमं करेइ, चउत्थं करेइ, करेत्ता करेत्ता छट्ट करेइ, करेता दुवालसमं करेs, करेत्ता चउत्थं करे.इ करेत्ता छट्ठ करेइ, करेत्ता काम सव्वकामगुणयं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणयं सव्वकामगणियं ४. ग्रं० ८६-८ । ५. X ( क, ख, ग, घ ) । पारेइ | पारेइ | पारे । पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ । पारेइ | ६०३ पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ | Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ अतगड दसायो अट्ठमं करेइ, करेत्ता करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छटुं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। अट्ठमं करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। दसमं करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्व कामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। दसमं करेइ, सव्वकामगुणियं पारेइ । दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छटुं करेइ, करेत्ता सव्वकामगणियं पारे । अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । एवं खलु एयं खुड्डागसव्वोभद्दस्स तवोकम्मस्स पढमं परिवाडि तिहिं मासेहि दसहि य दिवसेहि अहासुत्तं जाव' पाराहेत्ता दोच्चाए परिवाडीए चउत्थं करेइ, करेत्ता विगइवज्जं पारेइ, पारेत्ता जहा रयणावलीए तहा एत्थ वि चत्तारि परिवाडीयो । पारणा तहेव । चउण्हं कालो संवच्छरो मासो दस य दिवसा। सेसं तहेव जाव सिद्धा। २८. निक्खेवओ। सत्तमं अज्झयणं वीरकण्हा वीरकण्हाए महालयसव्वओभद्दपडिमा-पदं २६. एवं'-वीरकण्हा वि, नवरं—महालयं सव्वोभदं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहाचउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । छटुं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । ३. अं० ८।६-८। १. अं० ८।८। २. अं० ८।१२-१६ । Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टम वग्गो - सत्तमं अभयणं (वीरकण्हा ) करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता दुवालसमं चोदसमं सोलसमं दसमं दुवालसमं चोसम सोलसमं चउत्थं छट्ठ मं सोलसमं चउत्थं छट्ठ अम दसमं करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेत्ता करेइ, करेइ, कत्ता करेइ, करेत्त दुवालसमं करेइ, करेत्ता चोदसमं करेइ, करेत्ता अट्टमं दसमं करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेइ, करेत्ता छट्ठ करेइ, करेता चोदसमं करेइ, करेत्ता सोलसमं करेइ, करेत्ता चउत्थ करेइ, करेत्ता छट्ठ करेइ, करेत्ता अट्टमं करेइ, करेत्ता दसमं करेइ, करेत्ता दुवालसमं करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेइ, करेत्ता करेत्ता करेइ, छट्ठ अट्ठमं दस मं दुवालसमं चोदसमं करेइ, सोलसमं करेइ, चउत्थं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुण सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुण सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुण व्वकामगुण सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणिय सव्वकामगुणयं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुण काम सव्वकामगुणियं सव्वकामगुण सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणयं सव्वकामगुणिय सव्वकामगुण सव्वकामगुणियं पारेइ । पारेइ । पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ । पारेइ | पारेइ । पारेइ | पारेइ | पारेइ । पारेइ | पारेइ । पारेइ | पारेइ । पारेइ | पारेइ | पारेइ | पारेइ । पारेइ । पारेइ | पारेइ | पारेइ । पारेइ । पारे । पारेइ । पारे । पारेइ । पारे । पारेइ । पारेइ | पारेइ | पारे । पारेइ । ६०५ Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०६ अंतगडदसाओ दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोद्दसम करेइ, करेता सव्वकामगुणिय पारेइ। सोलसम करेइ, करेता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। चोद्दसम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। सोलसम करेत्ता सव्वकामगुणिय पारे। चउत्थं करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दसमं करेइ, करेत्ता पारे। एक्काए कालो अट्ठ मासा पंच य दिवसा। चउण्हं दो वासा अट्ठ मासा वीस य दिवसा । सेसं तहेव जाव' सिद्धा ।। करेइ, करेइ, करेइ, अट्ठम अझयणं रामकण्हा रामकण्हाए भद्दोत्तरपडिमा-पदं ३०. एवं'–रामकण्हा वि, नवरं-भद्दोत्तरपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा दुवालसमं करेइ, करेत्ता सबकामगुणिय पारेइ। चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगणियं पारेइ । सोलसम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । अट्ठारसम करइ, करेत्ता पारेइ। वीसइम करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । सोलसम करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे। अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। वीसइम करेइ, करेत्ता पारेइ। दुवालसम करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। करेइ, करेइ, १. अं० ८।१२-१६। २. ० ८।६-८। Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन स-काणिय पारे। स अट्ठमो वग्गो--नवम अज्झयणं (पिउसेणकण्हा) वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसम करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ। चोदसम करेइ, करेत्ता। पारे।। सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । अट्ठारसम करेत्ता सव्वकार पारेइ। चोदसम करेत्ता सव्वकामगणियं पारेइ । सोलसम करेत्ता सव अट्ठारसमं ___ करेइ, करेत्ता पारेइ। वीसइम करेत्ता पारेइ। दुवालसम करेत्ता पारेइ। अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । वीस इमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोइसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणिय पारेइ । एक्काए कालो छम्मासा वोस य दिवसा। च उहं काला दा वारसा दा मास वोस य दिवसा' । सेसं तहेव जहा कालो जाव' सिद्धा ।। करेड. करेइ, सव्व नवमं अज्झयणं पिउसेणकण्हा पिउसेणकण्हार मुत्तावलितव-पदं ३१. एवं'–पिउसेणकण्हा वि, नवरं-मुत्तावलि तवोकम्म उवसंपज्जिता णं विहरइ तं जहा १. 'दिवसा' शब्दस्य पश्चात् वाचनान्तरे प्रतिमात्रयस्य लक्षण-गाथा उपलभ्यते, यथा आई दोण्ह चउत्थं, पाई भद्दोत्तराए बारसमं । बारसमं सोलसमं, वीस इमं चेव चरिमाई ॥१॥ पढम तइय तो जाव, चरिमय ऊणमाइओ पूरे । पचय परिवाडीओ, खुडग-भदुत्तराए य ॥२॥ पढमं तु चउत्थं, जाव चरिमयं ऊणमाइओ पूरे । सत्त य परिवाडीओ, महालए सव्वओभद्दे ।।३।। २. अं० ८।१२-१६ । ३. अं० ८।६-८। Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०५ अंतगडदसामो करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणिय सव्व करेइ, करेइ, सव्वकामगुणियं सव्वक सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं करेइ, पारेइ । पारेइ । पारे। पारेइ। पारेइ। पारे। पारेइ । पारेइ। पारे । पारे। पारेइ । पारेइ । पारेइ । पारे। पारेइ । पारेइ । पारे। पारेइ। पारेइ। पारेइ। करेत्ता स चउत्थं करेइ, करेइ, चउत्थं करेइ, अट्ठमं करेइ, चउत्थं करेइ, दसमं करेइ, चउत्थं करेइ, दुवालसमं करेइ, चउत्थ चोदृसम चउत्थ सोलसम चउत्थ करेइ, अटारसमं करेइ, चउत्थं करेइ, वोसइमं करेइ, चउत्थं करेइ, बावोसइमं करेइ, चउत्थं करेइ, चउवीसइमं करेइ, चउत्थं करेइ, छव्वीसइमं करेइ, चउत्थं करेइ, अट्ठावीसइमं करेइ, चउत्थ करेइ, तीसइमं करेइ, चउत्थं करेइ, बत्तीसइमं करेइ, चउत्थं करेइ, चोत्तीसइमं करेइ, चउत्थं करेइ, बत्तीसइमं करेइ, यं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं पारेइ। सव्व करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता करेत्ता सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं सव्वकामगुणियं पारेइ। पारेइ । पारेइ । पारेइ । पारेइ । पारेइ। पारेइ । पारेइ । पारेइ । पारे । पारे । Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोग्गो - दस अपणं ( महासेण कण्हा ) एवं तहेव ओसारेइ जाव चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे । एक्का कालो एक्कास मासा पण्णरस य दिवसा । चउण्हं तिष्णि वरिसा दस य मासा । सेसं जाव' सिद्धा || महासे कहाए प्रायं बिलवड्ढमाणतव-पदं ३२. एवं'– महासेणकण्हा वि, नवरं --आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, तं जहा आयंबिलं प्राबिलाई दसमं अयणं महाका तिणि आयंबिलाई चत्तारि प्रायबिलाई पंच आयंबिलाई छ प्राविलाई करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ, करेत्ता चउत्थं १. ० ८।१२- १६ । २. प्र० ८ ६-८ । करेइ, करेइ, करेइ, करेइ, करेत्ता करेता करेत्ता करेत्ता ३. अं० ८८ । ४. ग्रहासुतं जाव सम्म काएणं फासेइ जाव चउत्थ च उत्थं चउत्थं चउत्थं करेइ । करेइ । एवं एक्कुतरियाए वड्ढोए ग्रायंबिलाई वड्ढति चउत्थंतरियाई जाव श्रायंबिलसयं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ ॥ ३३. तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा ग्रायंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं चोद्दसहिं वासेहिं तिहि य मासेहि वोसहि य ग्रहोरतेहिं 'ग्रहासुत्तं जाव' प्राराहेत्ता" जेणेव अज्जचंदणा श्रज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ' - छट्ठट्ठम दसम दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि विविहेहि तवोकम्मेहिं अप्पाणं • भावेमाणी विहरइ || करेइ | करेइ । करेइ । करेइ | ३४. तए णं सा महासेणकव्हा अज्जा तेणं प्रोरालेणं जाव' तवेणं तेएणं तवतेय - सिरीए ईव - ईव उवसोमाणी चिट्ठइ || ६०६ आराहेत्ता (क, ख, ग, घ ) । ५. सं० पा० - चउत्थ जाव भावेमाणी । ६. महसेणकण्हा ( क, ख, ) । ७. ग्रं० ८।१३ । Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० अंतगडदसाओ ३५. तए णं तोसे महासेणकण्हाए अज्जाए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले चिता जहा खंदयस्स जाव' अज्जचंदणं अज्ज प्रापुच्छइ ।। ३६. "तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णाया समाणी संलेहणा-झूसणा-झूसिया भत्तपाण-पडियाइक्खिया° कालं अणवकंख माणी विहरइ॥ ३७. तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता, बहुपडिपुण्णाइं सत्तरस वासाइं परियायं पाल इत्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे जाव तमटुं पाराहेइ, पाराहेत्ता चरिम उस्सासनिस्सासेहिं सिद्धा॥ संगहणी-गाहा अट्ठ य वासा आई, एक्कोत्तरयाए जाव सत्तरस । एसो खलु परियाअो, सेणियभज्जाण नायव्वो ॥१॥ निक्खेव-पदं ३८. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठ मस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयम? पण्णत्ते ॥ परिसेसो अंतगडदसाणं अंगस्स एगो सुयखंधो। अट्ठ वग्गा। अट्ठसु चेव दिवसेसु उद्दिस्सति । तत्थ पढम बिइयवग्गे दस-दस उद्देसगा । तइयवग्गे तेरस उद्देसगा । चउत्थपंचमवग्गे दस-दस उद्देसगा। छट्ठवग्गे सोलस उद्देसगा। सत्तमवग्गे तेरस उद्देसगा। अट्ठमवग्गे दस उद्देमगा। सेसं जहा नायाधम्मकहाणं ॥ ग्रन्थ परिमाण कुल अक्षर-४००५१ अनुष्टुप् श्लोक-१२५१ अ० १६ १. भ० २।६६ । २. पु०-०८।१४ । ३. सं० पा०-जाव संलेहणा कालं । ४. अत्ताणं (क)। ५. ओ० सू० १५४ । ६. चरिमउस्सासेहि (ख, ग)। ७. ना० ११७। प. उद्दिस्सिज्जति (क्व)। Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोववाइयदसानो Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो वग्गो पढमं अज्झयणं जाली उक्खेव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । अज्जसुहम्मस्स समोसरणं । परिसा निग्गया जाव' जंबू पज्जुवासमाणे' एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमदे। पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तिण्णि वग्गा पण्णत्ता ॥ जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तो वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कइ अझयणा पण्णत्ता? ४. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अणत्तरोववाइय दसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा १. ना० १११।६,७ । २. पज्जवासइ (क, ख, ग, घ); ना० ११११७ सूत्रानुसारेण अयं पाठः स्वीकृतः। ३,४. अ० ३।७५। ५. सुधम्मे (क, ख, ग)। ६,७. अ०३।७५ । ८. तिण्णि (ख)। ६. अ० ३७५। Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४ संग्रहणी - गाहा ५. जालि-पदं ६. ७. ८. ६. १. जालि २. मयालि ३. उवयाली, ४ पुरिससेणे य ५. वारिसेणे य । ६. दीहदंते य ७. लट्ठदंते य, ८. 'वेहल्ले 8. वेहाय से १०. प्रभए इ य कुमारे ॥ १ ॥ जइ णं भंते ! समणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स दस ग्रयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! प्रज्झयणस्स प्रणुत्तरोववाइयदसाणं समणेण भगवया महावीरेण जाव संपत्ते के अट्ठे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे - रिद्धत्थिमियसमिद्धे । गुणसिलए चेइए । सेणिए राया । धारिणी देवी । सीहो सुमिणे । जाली कुमारो । जहा हो । अदृट्टो दाश्रो ।। • " तए णं से जालाकुमारे उपि पासाववरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव' माणुस्सर कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ ।। o सामी समोसढे । सेणियो निग्गयो । जहा मेहो तहा जाली वि निग्ग । तहेव निक्खतो जहा मेहो" । एक्कारस अंगाई ग्रहिज्जइ । गुणरयणं तवोकम्मं 'जहा खंदयस्स" । एवं जा चेव खंदगस्स वत्तव्वया, सा चैव चिंतणा, आपुच्छणा । थेरेहिं सद्धि विउलं पव्वयं तहेव दुरुहइ, नवरं - सोलस वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूर-गहगण- नक्खत्त-तारारूवाण" सोहम्मीसाण" - "सणं कुमार- माहिद- बंभ-लंतग-महासुक्क सहस्साराणयपाणय - आरणच्चए कप्पे नवयगेवेज्जविमाणपत्थडे उड्ढं दूरं वीईवइत्ता विजयविमाणे देवत्ताए उववण्णे || १. उमालि (क, ख ); ओवयाली ( ग ) । २. विहल्ले विहाय से ( ग, घ, ) । तणं तेरा भगवतो जालि अणगारं कालगयं जाणित्ता परिणिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, करेत्ता पत्त-चीवराई गेव्हंति । तहेव उत्तरंति" जाव" इमे से प्रायारभडए || अणुत्तरोववाइयदसाओ ६. पू०न० १११।६१-६२ । ७. सं० पा० - जाव उप्पि पासा विहरइ | ३. अ० ३।७५ । ११. X ( क ) । भ० २।६१-६३ । ४. अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स ( ख, ग, घ ) । १२. खंदय (क, ख, घ) | भ० २।६४-६६ । ५. रिद्धि ( ख, ग, घ, ) । १३. पाउणिय ( ख ) । महावीरे जाव (घ) | १०. ना० १ १ ६६-१५१ । ८. ना० १।१।६३ । ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं १७. भ० २।७० । १४. पू० - ना० १।१।२११ । १५. सं० पा० - सोहम्मीसाण जाव आरणच्चुए । १६. ओतरति ( ख ) । Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो दग्गो-२-१० अज्झयणाणि ६१५ १०. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावोरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता° एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी जाली नाम अणगारे पगइभद्दए। से ण जाली अणगारे कालगए कहिं गए? कहिं उववण्णे ? ११. एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी तहेव जहा खंदयस्स जाव' कालगए उड़ढं चंदिम-सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाण जाव विजए विमाणे देवत्ताए उववण्णे ।। १२. जालिस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १३. से णं भंते ! तानो' देवलोयानो आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं कहि गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। निक्खेव-पदं १४.. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते ।। २-१० अज्झयणाणि मयालिपभिति-पदं १५. एवं सेसाण वि नवण्हं भाणियव्वं, नवरं-सत्त धारिणिसुग्रा, वेहल्लवेहायसा चेल्लणाए, अभए नंदाए । 'सव्वेसि सेणियो पिया | आइल्लाणं पंचण्हं सोलस वासाइं सामण्णपरियायो। तिण्हं बारस वासाई। दोण्हं पंच वासाइं"। आइल्लाणं पंचण्हं प्राणुपुवीए उववाग्रो विजए वेजयंते जयंते अपराजिए १. स० पा०-गोयमे जाव एवं। २. पू०-ना० ११११२०६ । ३. भ० २०७१ । ४. अ० १।८। ५. ततो (ख)। ६. अ० ३३७५ । ७. अट्टण्हं (क, ख,)। ८. छ (ख,ग)। ६. °वेहासा (क, ख); विहल्लवेहासे (ग)। १०. ४ (क, ख)। ११. अतोऽग्रे 'मासियाए सलेहणाए' इति पाठः द्वितीयवर्गस्य ६ सूत्रानुसारेण अध्याहर्तव्यः । Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोववाइयदसाओ सव्वड्डसिद्धे । 'दोहदंते सव्वदृसिद्धे" उक्कमेणं सेसा। अभनो विजए । सेसं जहा पढमे ॥ निक्खव-पदं १६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते ।। १. ४ (क)। २. पढमे । अभयस्स नाणत्त, रायगिहे नयरे सेणिए राया, नंदा देवी, सेसं तहेव [क, ख, ग] । असौ पाठो वाचनान्तरस्य प्रतीयते । अस्मिन नानात्वस्य संकेतोऽस्ति, किन्तु यन्नानात्वं प्रशितं तत सर्व पूर्वमायातमेव । ३. अ०३।७५ । Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं प्रणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स प्रथमट्ठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स प्रणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं भगवया महावीरेण जाव संपत्ते के अट्ठे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावोरेणं जाव संपत्तेणं प्रणुत्तरोववाइयदसाणंदोच्चस्स वग्गस्स तेरस श्रज्भयणा पण्णत्ता, तं जहा २. दोच्चो वग्गो १-१३ अज्झयणाणि गहणी - गाहा १. दीहसेणे २. महासेणे, ३. 'लट्ठदंते य ४. गूढदंते य" ५. सुद्धदंते य । ६. हल्ले ७. दुमे ८. दुमसेणे, ६. महादुमसेणे यहिए || १ || १०. सीहे य ११. सीहसेणे य, १२. महासीहसेणे य ग्रहिए । १३. पुण्णसेणे य बोधव्वे, तेरसमे होइ ग्रयणे ॥२॥ जइ णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं प्रणुत्तरोववाइयदसाणंदोच्चस्स वग्गस्स तेरस ग्रज्भयणा पण्णत्ता, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्झयणस्स समणेण भगवया महावीरेणं जाव संपत्ते के ट्ठे पण्णत्ते ? दीहादि-पदं ३. ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए । सेणिए राया । धारिणी देवी । सीहो सुमिणे । जहा जाली तहा जम्मं बालत्तणं १२. अ० ३।७५ । ३. गूढदंते य लट्ठदंते य (क); गूहदंते य ( ख ) । ४. अ० ३।७५ । ६१७ Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोदवाइयदसायो कलाप्रो, नवरं--दीहसेणो कुमारो सव्वेव वत्तव्वया जहा जालिस्स जाव' अंतं काहिइ ॥ ५. एवं तेरस वि रायगिहे नयरे । सेणियो पिया। धारिणी माया । तेरसह वि सोलस वासा परियाओ। प्राणपुव्वीए विजए दोण्णि, वेजयंते दोण्णि, जयंते दोण्णि, अपराजिए दोण्णि, सेसा महादुमसेणमादी पंच सव्वट्ठसिद्धे ।। निक्खव-पदं ६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते । मासियाए संलेहणाए दोसु वि वग्गेसु ॥ १. अ० ११६-१३। २. अ० ३।७५॥ Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं प्रणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स णं वग्गस्स प्रथमट्ठे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स त्ववाइयदसाण समणेणं भगवया महावीरेण जाव' संपत्ते के द्वे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं प्रणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दसं ग्रज्भयणा पण्णत्ता, तं जहा संग्रहणी - गाहा तच्चो वग्गो पढमं श्रज्भयणं धणे १. धण्णे य २. सुणक्खत्ते य, ३. इसिदासे य ग्राहिए । ४. पेल्लए ५. रामपुत्ते य, ६. चंदिमा ७ पिट्ठिमा इ य ॥ १ ॥ पेढालपुत्ते अणगारे, 'नवमे पोट्टिले वि य" । ८. १०. वेहल्ले दसमे वुत्ते, इमे य दहिया || २ || ३. जइ णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं प्रणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! प्रज्भयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्ते के प्रट्टे पण्णत्ते ? घण्णस्स गिहवास-पदं ४. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नामं नयरी होत्था - १,२,३. अ० ३।७५ । ४. पुट्टिमा ( ग, घ ) । ५. अणगारे पुट्टिले इ य ( क ) । ६१६ ६. अ. ३।७५ । ७. कागंदी (क, ख ) । Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० अणुत्तरोववाइयदसाओ रिद्धस्थिमियसमिद्धा' । सहसंबवणे उज्जाणे-सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे। जियसत्तू राया ॥ ५. तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नाम सत्थवाही परिवसइ-अड्डा जाव' अपरि भूया ।। ६. तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते धण्णे नामं दारए होत्था-अहोणपडिपुण्ण पंचेंदियसरीरे जाव सूरूवे। पचधाईपरिग्गहिए जहा महब्बलो जाव' बावरि कलाप्रो अहीए जाव' अलंभोगसमत्थे जाए यावि होत्था ।।। ७. तए णं सा भद्दा सत्थवाही धण्णं दारयं उम्मुक्कबालभावं जाव प्रलंभोगसमत्थं वा वि जाणित्ता बत्तीसं पासायवडेसए कारेइ---अब्भुग्गयमूसिए जाव पडिरूवे । तेसि मज्झे एगं च णं महं भवणं कारेइ-अणेगखंभसयसण्णिविढे जाव' पडिरूवं ॥ ८. तए णं सा भद्दा सत्थवाही तं धण्णं दारयं बत्तीसाए इब्भवरकण्णगाणं एगदिव सेणं पाणि गेण्हावेइ । बत्तीसग्रो दारो ।। ६. तए णं से धण्णे दारए उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहि मुइंगमत्थएहिं जाव" विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ ।। धण्णस्स पव्वज्जा-पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । परिसा निग्गया। राया जहा कोणियो 'तहा निग्गयो'१२ ।। ११. तए णं तस्स धण्णस्स दारगस्स तं महया जणसई वा जाव" जणसन्निवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणो १. पू०-प्रो० सू०१। २. पू०-ना० ११५४ । ३. ना० ११५७ । ४. ओ० सू० १४३ । ५. भ० ११११५४-१५६; राय० सू० ८०४ ८०७। ६. राय० सू०८०८,८०६; ओ० सू० १४७, १४८। ७. राय० सू० ८१०। ८. ना० १३१८६ । ६. ना० १३१८६ १०. पू०- ना० १११।६०-६२ । ११. ना० १११।६३ । १२. X (क)। ओ० सू० ५४-६६ ।। १३. सं. पा.--जहा जमाली तहा निग्गओ। नवर पायचारेणं । जाव जं नवरं अम्मयं भई सत्थवाहि आपुच्छामि। तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए पव्वयामि जाव जहा जमाली तहा आपुच्छइ। मुच्छिया । वुत्तपडिवुत्तया जहा महब्बले जाव जाहे नो संचाएइ जहा थावच्चापुत्तस्स जियसत्तुं आपूच्छइ । छत्तचामराओ। सयमेव जियसत्त निक्खमणं करेति जहा थावच्चापुत्तस्स कण्हो जाव पव्वइए। अणगारे जाए इरियासमिए जाव गुत्तबंभचारी। १४. ओ० सू० ५२। Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चो वग्गो-पढमं अज्झयणं (धण्णे) ६२१ गए संकप्पे समुप्पज्जित्था-किण्णं अज्ज काकंदीए नयरीए इंदमहे इ वा जण्ण एते बहवे उग्गा भोगा जाव' निग्गच्छंति एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कंचुइपुरिसं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया ! अज्ज काकंदीए नयरीए इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति ? १२. तए णं से कंचुइपुरिसे समणस्स भगवो महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए धण्णं दारयं एवं वयासी'-एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज समणे भगवं महावीरे काकंदीए नयरीए बहिया सहसंबवणे उज्जाणे अहापडिरूवं प्रोग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तए णं एते बहवे उग्गा भोगा जाव' निग्गच्छंति ॥ १३. तए णं से धण्णे दारए कंचुइपुरिसस्स अंतियं एयमढे सोच्चा निसम्म हट्टतुटे जाव' पायचारेणं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरे तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिगं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ॥ १४. तए णं समणे भगवं महावीरे धण्णस्स दारयस्स तोसे य महइमहालियाए इसि परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ।। १५. तए णं से धणे दारए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुटे समणं भगवं महावोरं तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जाव' अम्मयं भई सत्थवाहि आपूच्छामि, तए णं अहं देवाणप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वयामि । अहासूह देवाणप्पिया ॥ १६. जहा जमाली तहा आपुच्छइ । १७. तए णं सा भद्दा सत्थवाही तं अणिटुं अकंतं अप्पियं अमणुण्णं अमणामं असुय पूवं फरुसं गिरं सोच्चा निसम्म धसत्ति सव्वंगेहिं संनिवडिया । वृत्तपडिवृत्तया जहा महब्बले ॥ १८. तए णं तं धण्णं दारयं भद्दा सत्थवाहो जाहे नो संचाएइ जाव" जियसत्तुं १. पू०-भ०६।१५८ । २. भ० ६।१५८ । ३. पू०-भ० ६।१५६ । ४. भ० ६।१५९; ओ० सू० ५२ । ५. भ. ६।१६२ । ६. भ० ६।१६३ । ७. भ० ४।१६४ । ८. पू०-भ० ६।१६५-१६७ । ६. पू०-भ० ६।१६८ । १०. भ० ११।१६६; ना० १११११०६-११३ । ११. ना० १।५।१६,२० । Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ अणुत्तरोववाइयदसाओ आपुच्छइ-इच्छामि णं देवाणुप्पिया! धण्णस्स दारयस्स निक्खममाणस्स छत्त मउड-चामराम्रो य विदिन्नायो।। १९. तए णं जियसत्तू राया भई सत्थवाहिं एवं वयासी-अच्छाहि णं तुम देवाणु प्पिए ! सुनिव्वुत-वीसत्था, अहण्णं सयमेव धण्णस्स दारयस्स निक्खमणसक्कारं करिस्सामि । सयमेव जियसत्तू निक्खमणं करेइ, जहा थावच्चापुत्तस्स कण्हो ॥ २०. तए णं से धण्णे दारए सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ जाव' पव्वइए । २१. तए णं से धण्णे दारए अणगारे जाए-इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्लपारिट्ठावणियासमिए मणसमिए वइसमिए कायसमिए मणगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए ° गुत्तबंभयारी ॥ धण्णस्स तवचरिया-पदं २२. तए णं से धण्णे अणगारे जं चेव दिवसं मुंडे भवित्ता अगारासो अणगारियं पव्वइए, तं चेव दिवसं समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एव वयासो-इच्छामि' णं भंते ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे जावज्जीवाए छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणे' विहरित्तए छट्ठस्स वि य णं पारणयंसि कप्पइ मे" आयंबिलं पडिगाहेत्तए, नो चेव णं अणायंबिलं । तं पि य संसटुं, नो चेव णं असंसटुं। तं पि य णं उज्झियधम्मियं, नो चेव णं अणुज्झिय-धम्मियं । तं पि य जं अण्णे बहवे समण-माहणअतिहि-किवण-वणीमगा नावकखात। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ २३. तए णं से धण्णे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अभणुण्णाए समाणे हट्टतुट्टे जावज्जीवाए छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं आयंबिलपरिग्गहिएणं' तवो कम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।।। २४. तए णं से धण्णे अणगारे पढम-छट्ठखमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, जहा गोयमसामी तहेव पापुच्छइ, जाव' जेणेव काकंदी नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता काकंदीए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई १. ना० १।५।२२-३३ । २. ना० ११५॥३४ । ३. एवं खलु इच्छामि (ख, ग)। ४. भावेमाणस्स (ख, ग)। ५. X (क, ख)। ६. पडिगहित्तए (क)। ७. X (क, ख, ग)। ८. भ० २।१०७-१०६ । ९. सं० पा०-उच्च जाव अडमाणे । Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चो वग्गो-पढम अज्झयणं (धण्णे) ६२३ घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए ° अडमाणे आयंबिल' •पडिगाहेति, नो चेव णं अणायंबिलं । तं पि य संसटुं, नो चेव णं असंसटुं । तं पि य उज्झियधम्मियं, नो चेव णं अणुज्झिय-धम्मियं तं पि य जं अण्णे बहवे समण-माहण अतिहि-किवण-वणीमगा० नावखंति । २५. तए णं से धण्णे अणगारे ताए अब्भुज्जयाए पययाए पयत्ताए पग्गहियाए एसणाए एसमाणे जइ भत्तं लभइ तो पाणं न लभइ, अह पाणं लभइ तो भत्तं न लभइ।। २६. तए णं से धण्णे अणगारे अदीणे अविमणे अकलुसे अविसादी अपरितंत-जोगी जयण-घडण-जोगचरित्ते अहापज्जत्तं समुदाणं पडिगाहेइ, पडिगाहेत्ता काक दीनो नयरीनो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जहा गोयमे जाव' पडिदंसेइ ॥ २७. तए णं से धण्णे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे अमुच्छिए 'अगिद्धे अगढिए ° अणज्झोववण्णे बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं पाहारं पाहारेइ, अाहारेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाण विहरइ॥ २८. तए णं समणे भगवं महावोरे अण्णया कयाइ कायंदीपो नयरीनो सहसंबवणामो उज्जाणाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ २६. तए णं से धणे अणगारे समणस्स भगवो महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ३०. तए णं से धण्णे अणगारे तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेण सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महाणभागेणं तवोकम्मेण सूक्के लुक्खे निम्मसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसतए जाए यावि होत्था । जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता वि गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामीति गिलाइ । से जहानामए कट्टसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा पत्त-तिल-भंडगसगडिया इ वा एरंडकट्ठसगडिया इ वा, इंगालसगडिया इ वा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससदं गच्छइ, ससदं चिट्ठइ, एवामेव धण्णे अणगारे ससई गच्छइ, ससदं चिट्ठइ, उवचिए तवेणं, अवचिए मंस-सोणिएणं, हुयासणे विव भासरासिपडिच्छण्णे तवेणं, तेएणं, तव-तेयसिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणेउवसोभेमाणे • चिट्ठइ॥ १. सं०५।०-पायंबिलं नो अणायंबिलं जाव नावखंति। २. X (घ)। ३. अह (क)। ४. तहा (ख, ग) । भ० २।११० । ५. सं० पा०--अमुच्छिए जाव अणज्झोववण्णे । ६. सं० पा०-उरालेणं जहा खंदओ जाव सुहय चिट्ठइ। Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ अणुत्तरोववाइयदसाओ धण्णस्स तवजणिय-सरीरलावण्ण-पदं ३१. धणस्स णं अणगारस्स पायाणं अय मेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था --से जहानामए सुक्कछल्ली इ वा कट्ठपाउया इ वा जरग्गोवाहणा इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स पाया सुक्का लुक्खा' निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए ॥ धण्णस्स णं अणगारस्स पायंगुलियाणं अयमेयारूवे तव रूव-लावण्णे होत्था--से जहानामए कलसंगलिया इ वा मुग्गसंगलिया इवा माससंगलिया इ वा तरुणिया छिण्णा उण्हे दिण्णा सक्का समाणो मिलायमाणी चिदति, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स पायंगुलियानो' सुक्काओ 'लुक्खाग्रो निम्मंसायो अद्वि-चम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस °-सोणियत्ताए । ३३. धण्णस्स णं अणगारस्स जंघाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-से जहानामए काकजंघा इ वा ढेणियालियाजंघा इ वा', 'एवामेव धण्णस्स अणगारस्स जंघानो सुक्कानो लुक्खाग्रो निम्मंसाग्रो अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस °-सोणियत्ताए । ३४. धण्णस्स अणगारस्स जाणणं अयमयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-से जहा- नामए कालिपोरे इ वा मऊरपोरे इ वा ढेणियालियापोरे इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स जाणू सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस -सोणियत्ताए॥ ३५. धण्णस्स णं अणगारस्स ऊरूणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था –से जहा नामए 'सामकरिल्ले इ वा" बोरीकरिल्ले इ वा सल्लइकरिल्ले इ वा 'सामलिकरिल्ले इ वा" तरुणएर छिण्णे उण्हे दिण्णे सुक्के समाणे मिलायमाणे १. इदं पदं प्रयुक्तादर्शषु नोपलभ्यते; ३७ वृत्तौ ७. सं० पा. ---एव जाव सोणियत्ताए । 'उदरवर्णने' एवामेव उदरं सुकं लुखं ८. X (वृ)। निम्मंसं इत्यादि पूर्ववत्' इत्युल्लेखेन तथा ६. पोरिकरिले (क)। ५१ सूत्रे शीर्षस्य वर्णने सर्वेसु आदर्शषु १०. सेल्लत्ति ° (ख) । वतौ च तमा दर्शनेन अस्माभिः सर्वत्र ११. वृत्तिकारेणात्र पाठान्तरनिर्देशः कृतः.. स्वीकृतमिदम् । पाठान्तरेण सामकरिल्ले इ वा (वृ) । आदर्शेषु २. विलायमाणी (क)। असौ पाठः 'से जहानामए' अस्यानन्तरमेव ३. पायंगुलीओ (ख, ग)। वर्तते। ४. सं० पा०-सुक्काओ जाव सोणियत्ताए। १२. तरुणाए (क); तरुणे (ग); तरुणिए (क्व)। ५. स० पा०-इ वा जाव नो सोणियत्ताए। १३. सं० पा०-उण्हे जाव चिइ । ६. कालपोरे (क, घ)। Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२५ तच्चो वग्गो-पढम अज्झयणं (धण्णे) चिट्ठइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स ऊरू' 'सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस ° -सोणियत्ताए । ३६. धण्णस्स णं अणगारस्स कडिपत्तस्स अयमेयारूवे' तव-रूव-लावण्णे होत्था से जहानामए उट्टपदे इ वा जरग्गपए" इ वा महिसपए' इ वा', 'एवामेव धण्णस्स अणगारस्स कडिपत्ते सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस ° -सोणियत्ताए ॥ ३७. धण्णस्स णं अणगारस्स उदर-भायणस्स अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था से जहानामए सुक्क-दिए इ वा भज्जणय-कभल्ले इ वा कट्ठ-कोलंबए इ वा, एवामेव धणस्स अणगारस्स उदरं [उदर-भायणं ? ] सुक्क 'लुक्खं निम्मसं चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव ण मंस °-सोणियत्ताए। ३८. धण्णस्स णं अणगारस्स 'पासुलिय-कडयाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्ण होत्था—से जहानामए थासयावलो इ वा पाणावली इवा'११ मंडावली इवा •एवामेव धण्णस्स अणगारस्स पासुलिय-कडया सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ३९. धण्णस्स णं अणगारस्स पिट्टि-करंडयाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था से जहानामए कण्णावलो इ वा गोलावली" इ वा वट्टावलो" इ वा, एवामेव 'धण्णस्स अणगारस्स पिट्ठि-करंडया सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ४०. धण्णस्स णं अणगारस्स 'उर-कडयस्स' अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था १. सं० पा०--ऊरू जाव सोणियत्ताए। ८. सुत्रस्य प्रारम्भे 'उदरभायणस्स' इति २. कडिपट्टस्स (ख, ग, घ, वृ पा)। प्रयुक्तमस्ति । अत्रापि तथैव किं न स्यात् ? ३. इमेयारूवे (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा-सुक्क । ४. ° पादे (ग)। १०. पांसुलियकडलाइं (ख)। ५. °पादे (ग); लाक्षणिकदृष्ट्यात्र ११. X (क); पीणावली (ख, ग, घ)। 'जरग्गवपए' इति पाठो युज्यते । वृत्तिकारस्य १२. सं पा०-मुंडावली इ वा । सम्मुखे 'जरग्गपए' इति पाठ आसीत्, यथा- १३. पिट्ठ (ग, वृ)। जरगपएत्ति जरद्गवपाद: (वृ)। वृत्ति- १४. गोणवाली (क) । कारेण यथा पाठो लब्धः तथा व्याख्यात १५. वयावली (वृ)। इति सम्भाव्यते। १६. सं० पा०-एवामेव । ६. °पादे (ग)। १७. उरकरडयस्स (क, ग); उरकरंडस्स (ख)। ७. सं० पा०-इ वा जाव सोणियत्ताए। असौ पाठो वृत्त्याधारण स्वीकृतः । Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ अगुत्तरोववाइयदसाओ से 'जहानामए चित्तकट्टरे' इ वा वीयणपत्ते' इवा तालियंटपत्ते इ वा, एवामेव' •धण्णस्स अणगारस्स उर-कडए सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्टि चम्म छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस - सोणियत्ताए | O . ४१. धण्णस्स णं अणगारस्स बाहाणं प्रयमेयारूवे तव - रूव- लावणे होत्या- - से जहानामए समिसंगलिया इ वा वाहायासंग लिया' इ वा 'अगत्थिय संगलिया इवा," एवामेव धण्णस्स अणगारस्स बाहाओ सुक्काओ लुक्खाग्रो निम्मंसाग्रो चिम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस - सोणियत्ताए । ४२. धण्णस्स णं अणगारस्स हत्थाणं प्रयमेयारूवे तव रूव-लावण्णे होत्था - से जहानामए सुक्कछगणिया इ वा वडपत्ते इ वा पलासपत्ते इवा, एवामेव ' • धण्णस्स अणगारस्स हत्था सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि चम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस - सोणियत्ताए ॥ ४३. धण्णस्स णं णगारस्स हत्थंगुलियाणं श्रयमेयारूवे तव रूव लावण्णे होत्था - से जहानामए कलसंगलिया इ वा मुग्गसंगलिया इ वा माससंगलिया इ तरुणिया छणा प्रायवे दिण्णा सुक्का समाणी ' मिलायमाणी चिट्ठति", एवामेव" • धण्णस्स अणगारस्स हत्थंगुलियाम्रो सुक्कायो लुक्खाओ निम्मंसानो चिम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस - सोणियत्ताए । ४४. धण्णस्स णं णगारस्स गीवाए अयमेयारूवे तव रूव- लावण्णे होत्था -से जहानामए करगीवाइ वा कुंडियागीवा इ वा उच्चत्थवणए" इ वा, एवामेव " • धण्णस्स अणगारस्स गीवा सुक्का लुक्खा निम्मंसा प्रद्वि-चम्म छिरत्ताए पणायति, नो चेवणं मंस - सोणियत्ताए ° ॥ ४५. धण्णस्स णं णगारस्स हणुयाए श्रयमेयारूवे तव रूव- लावण्णे होत्था-से जहानामए लाउफले इ वा हकुवफले" इ वा अंबगट्टिया" इ वा " प्रायवे दिण्णा सुक्का समाणी मिलायमाणी चिट्ठइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स हणुया १. चित्तपट्ट रे ( क ); वित्तयकट्टरे (ख); चित्तकदूरे ( ग ) । २. वीइण ० ( ग ) ; वीयणय (घ) वियण (वृ) । ३. सं० पा० - एवामेव • । ४. X ( ख ); पहाया ० ( ग ) । ५. X ( क ) । ६. सं० पा० - एवामेव । o ७. सुक्कछगलिया (क ) ; सुक्खच्छगणिया ( ख, ग ) । ८. सं० पा० - एवामेव । ९. X ( क, ख, ग ) ; मिलायंति (घ ) । १०. सं० पा० एवामेव । ११. उच्चट्ट वणए ( क ) ; काछवणए ( ख ) 1 १२. सं० पा०- एवामेव । १३. हेकुव० हंकुव० हेकुच ° हकुन० (क्व ) । १४. अंबगठिया (क, घ) । १५. सं० पा० - बगट्टिया इ वा एवामेव । Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चो वग्गो-पढमं अज्झयणं (धण्णे) ६२७ सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंससोणियत्ताए ° ॥ धण्णस्स णं अणगारस्स उट्ठाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-से जहानामए सुक्कजलोया इ वा सिलेस-गुलिया इ वा अलत्त'-गुलिया इ वा, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स उट्ठा सुक्का लुक्खा निम्मंसा चम्म-छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए ° । ४७. धण्णस्स णं अणगारस्स जिब्भाए अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-से जहानामए वडपत्ते इ वा पलासपत्ते' इ वा सागपत्ते इ वा, एवामेव 'धण्णस्स अणगारस्स जिब्भा सुक्का लुक्खा निम्मंसा चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए ° ॥ ४८. धण्णस्स णं अणगारस्स नासाए अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-से जहा नामए अंबगपेसिया इ वा अंबाडगपेसिया इ वा माउलुंगपेसिया इ वा तरुणिया •छिण्णा आयवे दिण्णा सुक्का समाणी मिलायमाणी चिट्ठइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स नासा सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए ° | ४६. धण्णस्स णं अणगारस्स अच्छीणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था से जहा नामए वीणाछिद्दे इ वा वद्धीसगछिद्दे इ वा पाभाइयतारिगा' इ वा, एवामेव" 'धण्णस्स अणगारस्स अच्छीओ सुक्कामो लुक्खायो निम्मंसानो अट्टि-चम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए । ५०. धण्णस्स णं अणगारस्स कण्णाणं अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-से जहानामए मूलाछल्लिया इ वा वालुंकछल्लिया इ वा कारेल्लयछल्लिया" इवा, एवामेवर 'धण्णस्स अणगारस्स कण्णा सुक्का लुक्खा निम्मंसा चम्म छिरत्ताए पण्णायंति, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए ॥ ५१. धण्णस्स णं अणगारस्स सीसस्स अयमेयारूवे तव-रूव-लावण्णे होत्था-से जहा नामए तरुणगलाउए इ वा तरुणगएलालुए इ वा सिण्हालए" इ वा तरुणए" १. अलत्तग (ग)। ८. सं० पा०–एवामेव । २. सं० पा०-एवामेव । ६. केसाणं (क)। ३. X (क): पलासपत्ते इ वा (ग); उंबरपत्ते १०. बालंका (क)। (घ)। ११. क्वचिच्च नीतिपदं दृश्यते न चावगम्यते (वृ)। ४. सं० पा०-एवामेव । १२. सं० पा०-एवामेव । ५. सं० पा०-तरुणिया ० एवामेव । १३. पिण्हालुए (क्व)। ६. पव्वीस ° (क, ख)। १४. स० पा०-तरुणए जाव चिट्ठइ । ७. पभयातारगा (७); पाभाइयतारा (वृपा)। Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ अणुत्तरोववाइयदसाओ •छिण्णे प्रायवे दिण्णे सुक्के समाणे मिलायमाणे चिट्ठइ, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स सीसं सुक्क' लुक्खं निम्मंसं अट्ठि-चम्म-छिरत्ताए पण्णायइ, नो चेव णं मंस-सोणियत्ताए। धण्णे णं अणगारे सुक्केणं भुक्खेणं पायजंघोरुणा, विगय-तडि-करालेणं कडिकडाहेणं, पिट्ठिमस्सिएणं' उदरभायणेणं, जोइज्जमाणेहिं पासुलि'-कडएहिं, 'अक्खसुत्तमाला तिव' गणेज्जमाणेहिं पिढिकरंडगसंधीहिं, गंगातरंगभूएणं उरकडगदेसभाएणं, सक्कसप्पसमाणाहिं बाहाहि सिढिलकडाली 'विवलंबतेहि य अग्गहत्थेहि, कंपणवाइग्रो विव वेवमाणीए सीसघडीए पम्माणवयणकमले उब्भडघडमुहे उच्छुद्धणयणकोसे" जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामि त्ति गिलाइ । से जहानामए इंगालसगडिया इ वा२ 'कट्ठसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा तिलंडासगडिया इ वा एरंडसगडिया इ वा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससदं गच्छइ, ससई चिट्ठइ, एवामेव धण्णे अणगारे ससई गच्छइ, ससई चिट्टइ, उवचिए तवेणं, अवचिए मंससोणिएणं°, हुयासणे इव भासरासिपलिच्छण्णे तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे-उवसोभेमाणे चिट्ठइ॥ सेणियस्स महादुक्करकारय-पुच्छा-पदं ५३. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए । सेणिए राया। ५४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । परिसा निग्गया। सेणिए निग्गए। धम्मकहा । परिसा पडिगया ।। ५५. तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी १. x (ख, ग)। ६. अक्खमाला तिवा (क); मालाविव (ग); २. 'मंस-सोणियत्ताए' अतोग्रे सर्वासु प्रतिसु माला तिवा (घ) । 'एवं सव्वत्थ । नवरं उपरभायणं कण्णा ७. X (क)। जीहा उट्ठा एएसि अट्टी न भणइ, चम्म- ८. सढिल° (क, ख, ग)। छिरत्ताए पण्णायइत्ति भणइ इति पाठोस्ति। ६. विचलंतेहिं (क); विवचलतेहिं (ख) । परं अस्माभिस्तु सर्वत्र पूर्णः पाठः लिखितः, १०. पव्वात ° (क, ग); पम्माय ° (ख) । अतोनावश्यकत्वेनासौ पाठान्तररूपेण ११. उच्छुडु° (क्व)। स्वीकृतः । १२. सं० पा०-जहा खधग्रो तहा जाव ३. अणगारे णं (क. ख, ग, घ)। हयासणे; स्कन्दकप्रकरणे (भ० २१६४) प्रारम्भे ४. पट्टी • (क); पिट्ठमवस्सिएणं (वृ)। 'इंगालसगडिया' इति पाठो नास्ति । तेनास्य ५. पांसुलि (ग, घ)। पूर्तिः नायाधम्मकहाओ सूत्रात् कृता । Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चो वग्गो – पढम प्रज्झयणं ( घण्णे ) ६२६ इस णं भंते! इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं कतरे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव ? एवं खलु सेणिया ! इमासि णं इंदभूइपामोक्खाणं चोट्सहं समणसाहस्सीणं धणे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव ।। ५६. से केणट्टे भंते ! एवं वुच्चइ, इमासि णं इंदभूइपामोक्खाणं चोदसन्हं साहसी धणे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव ? भगवो उत्तर-पदं ५७. एवं खलु सेणिया ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कायंदी नामं नयरी होत्था । धणे दारए उप्पि पासायवडेंसए' विहरइ । तणं अहं अण्णा कयाई पुव्वाणुपुवीए चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे जेणेव कायंदी नयरी जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागए । ग्रहापडिरूवं हं गिव्हित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरामि । परिसा निग्गया । तहेव जाव' पव्वइए जाव' बिलमिव पण्णगभूएणं प्रप्पाणेणं श्राहारं • आहारेइ | धण्णस्स णं अणगारस्स सरीरवण्ण सव्वो जाव' तवतेयसिरीए ई-ईव उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्ठइ । से तेणद्वेणं सेणिया ! एवं वुच्चइ 'इमासि णं इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं धणे अणगारे महादुक्करकारए चैव महाणिज्जरतराए चेव || सेणिएण घण्णस्स थवणा-पदं ५८. तणं से सेणिए राया समणस्स भगवप्रो महावीरस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म ट्टट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो श्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव धण्णे अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता घण्णं श्रणगारं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी -- धण्णे सि णं तुमं देवाणुप्पिया ! सुपुणे' • सिणं तुमं देवाणुप्पिया ! सुकयत्थे" सि णं तुमं देवाणुप्पिया! कयलक्ख सिगं तुमं देवाणुप्पिया ! सुलद्धे णं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्मजीवियफलेत्ति कट्टु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे १. सं० पा० - इमासि जाव साहस्सीणं । २. पू० - ३।४-६ ३. सं० पा० - संज मेणं जाव विहरामि । ४. अ० ३।११-२१ । ५. अ० ३।२१-२७ । o ६. सं० पा० - बिलमिव जाव आहारेइ । ७. अणगारस्स पादाणं ( क, ख, ग, घ ) । ८. अ० ३।३१-५२ । ६. सं० पा० - सुपुणे सुकत्थे कलक्खणे । १०. सकतत्थे (क); सकयत्थे ( ख ) ; कयत्थे (घ) । Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० अणुत्तरोववाइयदसामो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं पडिगए। धण्णस मण-पदं ५६. तए णं तस्स धण्णस्स अणगारस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजाग रियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं इमेणं अोरालेणं तवोकम्मेणं' धमणिसंतए जाए। जहा खंदो' तहेव चिंता। आपुच्छणं। थेरेहिं सद्धि विउलं पव्वयं दुरुहइ । मासिया संलेहणा। नव मासा परियानो जाव कालमासे कालं किच्चा उड्ढे चंदिम - सूर-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जाव'० नवयगेवेज्जविमाणपत्थडे उडढं दुरं वीईवइत्ता सव्वदसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे । थेरा तहेव प्रोयरंति जाव इमे से आयारभंडए । भंतेति ! भगवं गोयमे तहेव आपुच्छति, जहा खंदयस्स भगवं वागरेइ जाव' सव्वट्ठसिद्धे विमाणे उववण्णे ।। ६१. धण्णस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा ! तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ६२. से णं भंते ! तारो देवलोगानो कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥ निक्खेव-पदं ६३. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं पढमस्स अज्झय णस्स अयमढे पण्णत्ते॥ ६०. १,२. पू०-अ०३।३० । ३. भ० २०६६-६६ । ४. अ० ११८। ५. सं. पा०-चंदिम जाव नवय° । ६. अ० १।८। ७. भ० २१७० । ८. भ० २१७१। 8. अ०३।७५। Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं सुणक्खत्ते सुणक्खत्त-पदं ६४. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झय___णस्स अयम? पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? ६५. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकदी नयरी। जियसत्तू राया ।। ६६. तत्थ णं काकदीए नयरीए भद्दा नाम सत्थवाही परिवसइ-अड्डा ।। ६७. तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुणक्खत्ते नाम दारए होत्था-- अहीण-पडिपुण्ण पंचेदियसरीरे जाव' सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा धण्णो तहेव । बत्तीसो दामो जाव' उप्पि पासायवडेंसए विहरइ ।। तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं । जहा धण्णे तहा सुणक्खत्ते वि निग्गए। जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव' अणगारे जाए-इरियासमिए जाव' गुत्तबंभयारी।। 8. ताणं से सणक्खत्ते जं चेव दिवसं समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मंडे •भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं° पव्वइए तं चेव दिवसं अभिग्गह तहेव जाव' बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं आहारं पाहारेइ, आहारेत्ता संजमेणं 'तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ ७०. सामी बहिया जणवयविहारं विहरइ। एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ६८. १. ओ० सू० १४३ ॥ २. अ० ३।६६। ३. ना० १।५२८-३५। ४. अ० ३।२१। ५. स० पा० ---मुंडे जाव पव्वइए । ६. अ० ३।२२-२७ । ७. सं० पा०-संजमेणं जाव विहरइ । ६३१ Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ अणुत्तरोववाइयदसाओ ७१. तए णं से सुणक्खत्ते अणगारे तेणं अोरालेणं' तवोकम्मेणं' जहा खंदो' अईव अईव उवसोभेमाणे चिट्ठइ ॥ ७२. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए । सेणिए राया। सामी समोसढे । परिसा निग्गया। राया निग्गयो। धम्मकहा। राया पडिगो । परिसा पडिगया। तए णं तस्स सुणक्खत्तस्स अणगारस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था, जहा खंदयस्स । बहू वासा परियायो। गोयमपुच्छा। तहेव कहेइ जाव सव्वट्ठसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे । तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ । ३-१० अज्झयणाणि इसिदासादि-पदं ७४. एवं सुणक्खत्तगमेणं सेसा वि अट्ठ अज्झयणा भाणियन्वा, नवरं-आणुपुव्वीए दोण्णि रायगिहे, दोण्णि साकेते, दोण्णि वाणियग्गामे, नवमो हत्थिणपुरे, दसमो रायगिहे । नवण्हं भद्दाप्रो जणणीयो। नवण्ह वि बत्तीसपो दायो । नवण्हं निक्खमणं थावच्चात्तस्स सरिसं। वेहल्लस्स पिया करेइ । छम्मासा वेहल्लए। नव धण्णे । सेसाणं बहू वासा । मासं संलेहणा। सव्वट्ठसिद्धे । सव्वे महाविदेहे सिज्झिस्संति ॥ निक्खेव-पदं ७५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सहसंबुद्धेणं लोगणाहेणं लोगप्पदीवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं सरणदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं' धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदसणधरेणं जिणेणं जाणएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयएणं तिण्णेणं तारएणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स अयम? पण्णत्ते ।। १,२. पू० ३।३०। ३. भ० २१६४। ४. भ०२।६६-७१ ।। ५. ठिई से णं भते (क, ख, ग, ष)। ६. पू०-ना० १।५।२२-३३ ; ७. 'निक्खमणं' इति शेषः । ८. X (ख)। ६. ४ (क)। Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसेसो ६३३ परिसेसो अणुत्तरोववाइयदसाणं एगो सुयखंधो। तिण्णि वग्गा। तिसु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जंति। तत्थ पढमे वग्गे दस उद्देसगा। बिइए वग्गे तेरस उद्देसगा। तइए वग्गे दस उद्देसगा । सेसं जहा नायाधम्मकहाणं तहा नेयव्वं ॥ Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पराहावागरणार्ड Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं पढम पासवदारं उखेव-पदं १. जंबू! इणमो अण्हय-संवर-विणिच्छयं पवयणस्स निस्संदं । वोच्छामि णिच्छयत्थं, सुहासियत्थं महेसीहिं ॥१॥ १. वृत्तिकारेण पुस्तकान्तरवर्ती उपोद्घातग्रन्थः उल्लिखितः । तत्र 'जंबू' इति पदं युक्तमस्ति । किञ्च तस्मिन् प्रस्तुतसूत्रस्य प्रारम्भः सुधर्मजम्ब-संवादपूर्वक: कृतोस्ति । किन्तु वृत्तिकृता स्वीकृते पाठे सुधर्मस्वामिनो नास्ति कोपि उल्लेखः । तं विना केवलं 'जंबू' इति पदं कथं युक्तं स्यात् ? इति सम्भाव्यते पुस्तकान्तरवयुपोद्घातग्रन्थस्य सम्बन्धि 'जंबू' पदं प्रस्तुतवाचनायामपि प्रविष्टम् ।। २. पुस्तकान्तरेषु उपोद्घातग्रन्थ उपलभ्यते, यथातेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था । पुण्णभद्दे चेइए। वणसंडे । असोगवरपायवे । पुढविसिलापट्टए । तत्थण चंपाए नयरीए कोणिए नाम राया होत्था। धारिणी देवी। तेणं कालेणं तेण समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नाम थेरे-जाइसंपण्णे कूलसंपण्णे बलसंपण्णे रूवसंपण्णे विणयसंपण्णे नाणसंपण्णे दसणसंपण्ण चरित्तसंपण्णे लज्जासंपण्णे लाघवसंपण्णे ओयसी तेयंसी वच्चसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोभे जियनिद्दे जिइंदिए जियपरीसहे जीवियास-मरण-भय-विप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे वेयप्पहाणे नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे सोयप्पहाणे नाणप्पहाणे दंसणप्पहाणे चरित्तप्पहाणे चोद्दसपुब्बी चउनाणोवगए पंचहि अणगारसएहिं सद्धि संपरिबुडे पुव्वाणपवि चरमाणे गामाणगामं दूइज्जमाणे जेणेव चंपा नगरी तेणेव उवागच्छद जाव ६३७ Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ पंचविहो पण्णत्तो, जिणेहिं इह हिंसा - मोसमदत्तं', अब्बंभ - अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति । परिसा ग्गिया । धम्मो कहिओ । जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया । तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अंतेवासी अज्जजंबू नामं अणगारे कासव गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव संखित्तविपुलतेयलेस्से अज्जसुहम्मस्स थेरस्स श्रदूरसामंते उड्ढजाणू जाव संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणे विहरइ । तणं से अज्जजंबू जायसड्ढे जायसंसए जायको हल्ले, उप्पण्णसड्ढे ३, संजायसड्ढे ३, समुप्पण्णसड्ढे ३, उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव अज्जसुहम्मे थेरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जसुहम्मं थेरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, नसित्ता नच्चासन्ने नाइदूरे विणएणं पंजलिपुडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी - जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं णवमस्स श्रंगस्स अणुत्त रोववाइयदसाणं अयमट्टे पण्णत्ते, दसमस्स णं अंगस्स पहावागरणाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठ पण्णत्ते ? हो प्रणादीनो । परिग्गहं चेव ॥२॥ जारिसप्रो, जंनामा', जह य को जारिसं फलं देति । जेवि य करेंति पावा, पाणवहं तं निसामेह ||३|| पाणवहस्स सरूव-पदं २. पाणवहो नाम एस निच्चं जिणेहिं भणिश्रो- पावो चंडो रुद्दो खुद्द साहसिप्रो' णारि निग्घिणो निस्संसो महभयो पइभस्रो प्रतिभश्रो बीहणश्रो तासण अज्जो' उब्वेयणो य निरवयक्खो निद्धम्मो निष्पिवासो निक्कलुणो निरय पण्हावागरणाई जंबू ! दसमस्स श्रंगस्स समणेणं जाव संपत्तेणं दो सुयक्खंधा पण्णत्ता अण्हयदारा य संवरदारा य । पढमस्स णं भंते ! सुयक्खंधस्स समणेणं जाव संपत्तेणं कइ प्रज्भयणा पण्णत्ता ? जंबू ! पढमस्स णं सुयक्खंधस्स समणेणं जाव संपत्तेणं पंच अज्झयणा पण्णत्ता । दोच्चस्स णं भंते ! एवं चेव । एएसि णं भंते ! अण्हय-संवराणं समणेणं जाव संपत्ते के अट्टे पण्णत्ते ? तणं ग्रज्जहम्मे थेरे जंबूनामेणं अणगारेणं एवं वृत्ते समाणे जंबूअणगारं एवं वयासीजंबू ! इणमो इत्यादि || ( वृ) । ३. विणिच्छियं (घ) । १. मोसादत्तं ( क ) । २. जण्णामा ( क ) । ३. पाणिवहं ( ग ) । ४. साहस्सिओ ( ग ) । ५. व्याकरणदृष्ट्या ‘अण्णज्जो' इति पदं युक्त स्यात् । Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झवणं (पढप आसवदारं) ६३६ वास-गमण-निधणो मोह-महब्भय-पवड्डो' 'मरण वेमणंसो' पढम अधम्मदारं॥ पाणवहस्स तीसनाम-पदं ३. तस्स य नामाणि इमाणि' गोण्णाणि होति तीसं, तं जहा-१, २. पाणवहुम्मु लणा' सरीरानो ३. अवीसंभो ४. हिंसविहिंसा तहा ५. अकिच्चं च ६. घायणा ७. मारणा य ८. वहणा ६. उद्दवणा १०. तिवायणा य ११. प्रारंभ-समारंभो १२. 'आउयकम्मस्स उवद्दवो" [भेय-णिट्ठवण-गालणा य संवट्टग-संखेवो] १३. मच्चू १४. असंजमो १५. कडग-मद्दणं १६. वोरमणं १७. परभव-संकामकारओ १८. दुग्गतिप्पवायो १६. पावकोवो य २०.पावलोभो २१.छविच्छेप्रो" २२. जीवियंतकरणो २३. भयंकरो २४. अणकरो२२५. वज्जो २६. परितावण-अण्हरो २७. विणासो २८. निज्जवणा" २६. लुंपणा५ ३०. गुणाणं विराहणत्ति । अवि य तस्स एवमादीणि"नामधेज्जाणि होति तीसं पाणवहस्स कलुसस्स कडुयफल-देसगाई ॥ पाणवहस्स पगार-पदं ४. तं च पुण करेंति केई पावा असंजया अविरया अणिहुय-परिणाम-दुप्पयोगी" १. पयो (क, ग); पयट्टओ (क्व); पदस्य पर्यायवाचित्वेन निर्दिष्टानि सन्ति, प्रकर्षक: (वृ); वृत्तिकारण 'प्रकर्षक: यथा--आउयकम्मस्स भेओ प्रवर्तकः' इत्युल्लेखः कृतः । उत्तरवादशेषु गालणा 'प्रवर्तक' पदस्याधारेण 'पयट्टओ' इति संवट्टगो पाठः प्रचलितोभूत् । पवड्ढओ (वृपा)। संखेवो। २. मरण वेमणसो (ख, ग); मरणावेमणस्सो वृत्तिकारेणापि लिखितमिदम् - एतेषां च (वृ); वृत्तिकारेण असौ पाठ एकपदत्वेन उपद्रवादीनामेकतरस्यैव गणनया नाम्नां व्याख्यातः, किन्तु अस्माभिः 'एस मारे' त्रिशत पुरणीयाः । (११२४) इति आचाराङ्गसूत्रसन्दर्भण १०. पावलो (वृ)। पृथक्पदत्वेन गृहीतः । ११. छविच्छेयकरो (वृ) । ३. X (क)। १२. अणकरो य (ग)। ४. X (क)। १३. सावज्जो (वृपा)। ५. पाणवहं उम्मूलणा (घ)। १४. निज्जवणो (ग)। ६. उदृवण (क)। १५. लुंपणो (घ)। ७. णिवायणा (क)। १६. एवमातीणि (ग)। ८. कम्मस्सुवद्दवो (क, ख)। १७. दुप्पओया (क)। ६. अत्र कोष्ठकवर्तीनि भेदादिपदानि 'उवहव' णिढवणं Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० पहावागरणाई पाणवहं भयंकर' बहुविहं परदुक्खुप्पायणप्पसत्ता इमेहिं तसथावरेहिं जीवेहि पडिणिविट्ठा, 'कि ते' ?. ५. पाठी - तिमि - तिमिगिल - प्रणेगस - विविहजातिमंदुक्क - दुविहकच्छभ - णक्क- दुविहगाह - दिलिवेढय मंदुय - सीमागार - पुलुय - सुंसुमार - बहुप्पगारा ' जलयर विहाणाकते य एवमादी || मगर - ६. कुरंग-रुरु-सरभ-चमर-संबर - हुरब्भ - ससय- पसय-गोण- रोहिय" - हय-गय-खरकरभ-खग्ग- वानर-गवय - विग - सियाल - कोल" - मज्जार- कोलसुणक" "सिरियंदलयआवत्त" - कोकंतिय- गोकण्ण-मिय महिस - वियग्ध - छगल-दीविय-साण-तरच्छप्रच्छ-भल्ल-सद्दूल-सीह-चिल्लला " चउप्पयविहाणाकए य एवमादी | ७. अयगर" - गोणस - वराहि- मउलि" - कानोदर - दब्भपुप्फ-प्रासालिय"-' महोरगा उरगविहाणाक" य एवमादी ॥ ८. छीरल - सरंब - सेह-सल्लग" -'गोधा-उंदुर-उल- सरड - जाहग-मुगुंस - खाडहिल - वाइ- घरोलिया सिरीसिवगणे य एवमादी || ६. - कादंबक-बक-बलाका-सारस-प्राडासेतीय-कुलल- बंजुल - पारिप्पव-कीव" - सणदीविय" - हंस-धत्तर" -भास - कुलीकोस" - कोंच " - दगतुंड ढेणियालगसूईमुह-कविल १. बहुविभयंकरं (वृ); भयंकरं (वृपा ) । २. बहुविह बहुप्पयार (क, ख ); बहुविहं वा (वृपा) । ४. पाढीण ( क ) 1 बहुगारं (ग, घ ) । ३. कथं तं प्राणवधं कुर्वन्तीत्यर्थः (वृ); तद्यथेति १६. अयकर ( क, ख, ग, घ ) । १७ माउलि ( ख, ग, च) । १८. यासालिय (ख, घ, च) ; १६. महोरगारग विहाणगकए ( ख, ग, घ, च) । २०. सरंग (ख, च ) । २१. सेल्लग ( ख, ग, घ, च) । २२. गोधुंदर (क, ख, ग ) । २३. वाउप्पिय (ख, घ ) । २४. घरोलिय (क, ख, ग ) ; घोरोलिय (घ ) । २५. कादंबकीबक ( क ) 1 २६. कीर ( ग ) । २७. पिपिय ( क ) ; दीपिय ( ग ); पीपिय (वृ ) । २८. धातरि ( ख ) । २६. कुडीकोस ( ग ) । ३०. कुंच (ख, घ) । ५. तिमि ( क ) । ६. मदुय ( क ) ; मदुक ( ख ) ; मंडुय ( ग, घ ) । ७. सीमागर ( क ) । ८. बहुप्रकारश्चेति कर्मधारयोऽतस्तान् घ्नतीति वक्ष्यमाणेन योगः । इह च द्वितीयाबहुवचनेप्येकाराभावः छान्दसत्वात् (वृ) । ६. जलचर विधानककृतांश्च, इह च कशब्द - लोपेन विधान शब्दस्यान्तदीर्घत्वम् (वृ) । १०. उरब्भ ( ख ) । ११. रोहिस (वृपा) । १२. कोक (वृपा) । १३. ० सुणका (क, ख, ग, घ ) । १४. सिरिकंदलगावत्त ( ख ) ; आवर्त्ताश्च (वृ) | १५. चिल्लल (क, ख, ग, घ ) ; चित्तला ( वृपा ) । श्रीकन्दलका Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४१ पढमं अज्झणं (पढमं आसवदार ) पिंगलक्खग' कारंडग'- चक्कवाग उक्कोस- गरुल- पिंगुल - सुय-वरहिण - मयणसाल-नंदीमुह-नंदमाणग-कोरंग - भिंगारग कोणालग - जीवजीवक - तित्तिर- वट्टकलावक- कपिजलक' - कवोतग पारेवग - चिडिग- ढिंककुक्कुड वेसर- मयूरगचउरग-हरपोंडरीय-सालग" - वीरल्ल - सेण- वायस - विहंगभेणासि चास-वगुलिचम्मल विततपक्खी खहय रविहाणाकते य एवमादी || १०. जल-थल - खग-चारिणो उ पंचिदिए पसुगणे विय-तिय- चउरिदिए य" विविहे जीवे, पिजीविए, मरणदुक्खपडिकूले वराए हणंति बहुसंकिलिकम्मा" ॥ पाणवहस्स कारण-पदं ११. इमेहिं विविहेहि कारणेहिं, 'किं ते " ? - चम्म वसा-मंस - मेय-सोणिय - जग फिफिस मत्थुलिंग" हियय-त-पित्त-जि-ह-न-कण्ण-पहारुणि नक्क-धमणि-सिंग दाढि - पोप्फस- दंतट्ठा, पिच्छ - विस-विसाण-वाल हे उ" ।। १२. हिंसंति य भमर - मधुकरिगणे रसेसु गिद्धा, तहेव तेइंदिए सरीरोवकरणट्ट्याए, fraणे बेइदिए" बहवे वत्थोहरपरिमंडणट्टा, ग्रण्णेहि य एवमाइएहि बहूहि कारणसहिं हाइह हिंसति तसे पाणे || १. पिंगलक्ख ( क ) 1 २. कारंड (घ, च) 1 - ३. पंगुल ख, ग, घ, च) । ४. वरिहिण ( ख, ग, घ, च) । ५. जीवक ( क ) ; जीवजीवक (क्व ) । ६. कापिंजलक (क ) । ७. परिवयग (ख, घ, च) । १३. इमे य एगिदिए" वराए तसे य अण्णे तदस्सिए चेव तणुसरीरे समारंभति-प्रत्ताणे सरणे हे अबंधवे कम्मनिगल " - बद्धे ग्रकुसलपरिणाम मंदबुद्धिजण- दुव्विजाण, पुढविम पुढविसंसिए, जलमए जलगए, ग्रणलाणिल तणवणस्स तिगणनिस्सिए य 'तम्मय-तज्जिए" चेव तदाहारे तप्परिणत वण्ण-गंध-रस- फासबोंदरूवे चक्खुसे चक्खुसे य तसकाइए असंखे ॥ - १२. X ( क, ख, घ ) । १३. सत्त्वा इति गम्यते ( वृ) । १४. किं तत् प्रयोजनम् ? तद्यथेति वा (वृ) | १५. मत्थुलुंग (क, घ ) | १६. हितय (क, घ, च) । ८. मसर ( क ) ; विसर (च); मेसर ( ग, घ ) । १८. बिंदिए ( ख ) । ६. हयपोंडरीय ( ख, ग, घ, च), - १७. ० है ( क च ) । 'हणति बहुसंकिलिदुम्मा' इति अध्याहर्तव्यमत्र । १०. करकरल्लग (क); करकरग ( ख, ग, घ, च); २०. ० नियल ( क ) 1 करग (वृपा) । ११. य (ग, च) । १६. एगिदिए बहवे (घ, च) । २१. तन्मयजीवाश्चेति ( वृपा ) । Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ पण्हावागरणाई १४. थावरकाए य सुहुम-बायर-पत्तेयसरीर-नाम-साधारणे अणते हणंति अविजाणतो य परिजाणो य जीवे इमेहि विविहेहिं कारणेहिं, 'किं ते ?करिसण-पोक्खरणी-वावि-वप्पिण-कूव-सर-तलाग-चिति-वेदि-खातिय-आरामविहार-थूभ-पागार- दार - गोउर - अट्टालग - चरिय-सेतु-संकम'-पासायविकप्पभवण-घर-सरण-लेण-श्रावण - चेतिय - देवकल - चित्तसभ-पव-पायतण-पावसहभूमिघर-मंडवाण य कए, भायण-भंडोवगरणस्स विविहस्स य अट्ठाए पुढविं हिंसंति मंदबुद्धिया ।। १५. जलं च मज्जणय-पाण-भोयण-वत्थधोवण-सोयमादिएहिं ।। १६. पयण-पयावण-जलावण-विदंसणेहिं अगणि ।। १७. सुप्प-वियण-तालयंट-पेहुण-मुह-करयल-सागपत्त वत्थमादिएहिं अणिलं ।। १८. अगार-परियार-भक्ख - भोयण - सयण - प्रासण-फलग-मुसल -उक्खल-तत-वितत आतोज्ज- वहण - वाहण-मंडव-विविहभवण-तोरण-विडंग'-देवकुल- जालय-अद्धचंद-निज्जूह-चंदसालिय-वेतिय" -णिस्सेणि-दोणि-चंगेरि-खील-मेढक-सभ-प्पवपावसह-गंध-मल्ल - अणुलेवण-अंबर-जुय- नंगल-मइय-कुलिय-संदण-सीया-रहसगड-जाण-जोग्ग - अट्टालग - चरिअ - दार-गोपुर- फलिह-जंत-सूलिय"-लउडमुसुंढि-सतग्घि-बहुपहरण-आवरण-उवक्खराण कते । अण्णेहि य एवमादिएहिं बहूहि कारणसतेहिं हिंसंति ते" तरुगणे, भणियाभणिए य एवमादी सत्ते सत्तपरिवज्जिया उवहणति दढमूढा दारुणमती ।। १६. कोहा माणा माया लोभा 'हस्स रती अरती सोय" वेदत्थ-'जीव-धम्म-अत्थ कामहेउं',१९ सवसा अवसा अट्ठा अणट्ठाए य तसपाणे थावरे य हिंसंति मंदबुद्धी। सवसा हणंति, अवसा हणंति, सवसा अवसा दुहनो हणंति । १. कि तत् तद्यथेति वा (वृ)। १०. निज्जूहग (घ)। २. पोक्खरिणी (क, ग)। ११. वेदिय (क्व)। ३. वेति (क, ख)। १२. मलिय (क)। ४. गोपुर (क, ग)। १३. चरित (क, ग)। ५. संकमण (ख)। १४. सूलय (क, ख, घ, वृपा); मूसलय (ग)। ६. एतदादिभिः कारण रिति प्रक्रमः (वृ)। १५. मुसढि (क, घ)। ७. जलण जलावण (ख, च)। १६. कए (क, ग, घ)। ८. तालएंट (क, घ); तालवंट (ख); तालविंट १७. X (क, ग)। (च)। १८. इह पंचमीलोपो दृश्यः । ६. विटंग (ख)। १६. जीयकामत्थधम्महेउ (क, ख, घ, च)। Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (पढमं आसवदार) ६४३ अट्ठा हणंति, अणट्ठा हणंति, अट्ठा अणट्ठा दुहनो हणंति ।। हस्सा हणंति, वेरा हणति, रतीए' हणंति 'हस्सा वेरा रतीए'' हणंति । कुद्धा हणंति, लुद्धा हणंति, मुद्धा हणंति, कुद्धा लुद्धा मुद्धा हणंति । अत्था हणंति, धम्मा हणंति, कामा हणंति, अत्था धम्मा कामा हणंति ।। पाणवहस्स कत्तार-पदं २०. कयरे ? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मा 'दीवित बंधप्पलोग - तप्प- गल - जाल - वीरल्लग - प्रायसीदब्भवग्गुरा - कूडछेलिहत्था हरिएसा ऊणिया" य वीदंसग-पासहत्था वणचरगा लुद्धगा य महुघात-पोतघाया एणीयारा पएणीयारा सर-दह - दीहिन - तलाग - पल्लल-परिगालण- मलणसोत्तबंधण-सलिलासयसोसगा 'विस-गरलस्स य दायगा" उत्तण-वल्लर-दवग्गि णिय-पलीवका ।। २१. करकम्मकारी इमे य बहवे मिलक्ख्या , के ते? - सक जवण सवर बब्बर काय' 'मुरुंड उड्ड"२ भडग निण्णग पक्काणिय कुलक्ख गोड" सीहल पारस कोंच अंध दविल चिल्लल पुलिंद आरोस डोंब पोक्कण' गंधहारग बहलीय जल्ल रोम" मास" बउस मलया य चुचुया य चूलिय कोंकणगा" मेद पल्हव" मालव मग्गर आभासिया प्रणक्क चीण ल्हासिय खस १. रती य (क, ख, ग, घ, च)। ६. मिलक्खुजाती (क, ख, ग, घ, च) । २. हस्सवेरा रती य (क, ख, ग, घ, च); अत्र १०. किं (क, ख, ग, घ, च)। एकारपरिवर्तनेन यकारो जातः । अस्याला- ११. गाय (ख)। पकस्यानुसारेण 'हस्सा वेरा रतीए' एष पाठ १२. मुरंडोद (ख, ग, घ, च); मुरुड-उद (व)। उपयुक्तोस्ति, किन्तु लिपिकरणे परिवर्तनं १३. भित्तिय (ख, ग); तित्तिय (ख)। जातम्, तेन 'हस्सा' स्थाने 'हस्स' तथा १४. गोंड (ख, ग, घ, च) । 'रतीए' स्थाने 'रतीय' इति जातम् । १५. बिल्लल (ख, ग, घ, च, वृ)। ३. कयरे ते (क); घ्नन्तीति प्रश्नः (वृ)। १६. पोक्काण (क, ख, ग, घ) । ४. कूरकम्मा वाउरिया (ग, च, वृपा)। १७. राम (क, ख)। ५. दीविय (क); देविय (वृपा)। १८. मोस (क्व)। ६. अयमालापकः क्वचित् कथंचिद् दृश्यते (व); १९. कोंकणग (क)। • छेलियाहत्था (ग)। २०. मेत (क, ख, ग, घ, च)। ७. कुणिका (क्व); साउणिया (वृपा)। २१. पल्लव (क, घ): पण्हव (ख, वृ)। 5. विसगरदायगा (क); विसगरलदायगा (ख); २२. महुर (च, वृ) । विसगरस्स ° (घ)। Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૪૪ पहावागरणाई खासिय नेदर' मरहट्ट' मुट्ठिय प्रारब डोंविलग कुहण केकय हूण रोमग रुरु मरुगा' चिला विसयवासी य पावमतिणो, जलयर-थलयर - 'सणहपय उरग" - खहचर - संडासतोंड - जीवोवघायजीवी, सण्णी य असणणो य पज्जत्ता असुभलेस्सपरिणामा' ॥ २२. एते अण्णे य एवमादी करेंति पाणातिवाय करणं, पावा पावाभिगमा पावरुई ' पाणवह करती पाणवहरूवाणुद्वाणा पाणवहकहासु अभिरमंता तुट्ठा पावं करेत्तु होंतिय बहुप्गारं ॥ पाणवहस्स फल विवाग-पदं २३. 'तस्स य पावस फल विवागं प्रयाणमाणा वड्ढेंति - महब्भयं प्रविस्साम-वेयणं दीहकाल बहुदुक्ख संकडं नरय-तिरिक्ख जोणि । इम्रो उक्खए चुया" सुभकम्मबहुला उववज्जंति नरएसु हुलितं - महालएसु, वयरामय-कुड्डु-रुंदनिस्संधि - दारविरहिय' - निम्मद्दव भूमितल -खरामस्स" - विसमणिरयघरचारएसु”, महोसिण-सयावतत्त" - दुग्गंध - विस्स- उब्वेयणगेसु बीभच्छ" -दरिसणिज्जे, निच्च हिमपडलसोयलेसु", कालोभासेसु" य, भीम - गंभीर - लोमहरिसणेसु, णिरभिरामेसु निप्पडियार-वाहि-रोग-जरा- पीलिएसु", प्रतीवनिच्चंधकारतिमिसेसु, पतिभएसु, ववगय-गह- चंद-सूर-णक्खत्त - जोइसेसु, मेयवसामंसपडलपुच्चड पूयरुहिरुक्कण्ण-विलीण चिक्कण- रसियावावण्ण-कुहियचिक्खल्लकद्दमेसु, कुकूलानल" - पलित्त- जाल - मुम्मुर - सिक्खुरकरवत्तधार सुनिसित विच्छुयडंक १. मेहर ( ख, ग, च ) | २. मढा (वृपा ) | ३. एतानि च प्रायो लुप्तप्रथमा बहुवचनानि । ४. सणहफतोरंग ( क, ख, ग ); सणफतोरग (घ, च) । १९ ५. ६. पावरुती (ख, घ, च) । दुखणं ( क ) । परिणामे ( क, ख, घ ) । ७. ८. 'तस्स' इति पदादारभ्य 'चुया' इति पदान्त: पाठ: वृत्तिकारेण सर्वेषु आदर्शषु नोपलब्ध:, यथा -- तस्सेत्यादि सूत्रं च क्वचिदेव दृश्यते (वृ) । ६. पार ° (क, घ); यार ० ( ग ); वार ° (च ) । - १०. निमद्दव ( ख, ग, घ, च) । ११. खरामंस (क, घ) ; खरामस (ग, च); खरामरिस (क्व ) | १२. नारएसु ( ख ) । १३. सइयतत्त ( क ) । १४. उब्बेयजणगेसु (क्व ) । १५. विभत्थ ( ख, ग ) । १६. ० सीयले सु य (क, ग, घ, च ) 1 १७. काला ० ( क ) । १८. जलपीलिएसु (क); जरपोलिएसु ( ग, घ ) । १६. तिमिसु ( क ) । २०. कुक्कुला ० ( क ) । Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयण ( पढमं आसवदारं ) निवातोवम्म'-फरिस अतिदुस्सहेसु, अणुबद्ध-निरंतरवेयणेसु, जमपुरिससंकुलेसु ॥ प्रत्ताणसरण-कडुयदुक्खपरितावणेसु, २४. तत्थ य तोमुहुत्तलद्धि-भवपच्चएणं निव्वत्तेंति य' ते सरीरं, हुंडं बीभच्छसिणिज्जं बीहणगं द्वि-पहारु णह - रोमवज्जियं 'असुभगंध - दुक्खविसहं ॥ २५. ततो य पज्जत्तिमुवगया इंदिएहिं पंचहि वेदेति सुभाए वेयणाए उज्जल-बलविउल-उक्कड - खर- फरुस - पयंड घोर - बीहणग- दारुणाए, किं ते ? - कंदुमहाकुंभियपयणपउलण - तवगतलणभट्ठभज्जणाणि य, लोहकडाहकढणाणि य, को-बलिकरण - कोट्टणाणि य, सामलितिक्खग्ग-लोहकंटक-अभिसरणापसरणाणि फालण- विदालणाणि य, अवकोडकबंधणाणि य, लट्ठिसयतालणाणि य, गलगबलुल्लंबणाणि य, सूलग्गभेयणाणि य, ग्राएसपवंचणाणि, विमाणाणि य, विघुट्ठपणिज्जणाणि, वज्भसयमातिकाणि य ।। २६. एवं ते पुव्वकम्मकयसंचयोवतत्ता निरयग्गि-महग्गिसंपलित्ता गाढदुक्खं महब्भयं कक्कसं असायं सारीरं माणसं च तिव्वं दुविहं वेदेति वेयणं, पावकम्मकारी बहूणि पविम-सागरोवमाणि कलुणं पालेंति ते ग्रहाउं" जमकाइय" तासिता यस करेंति भीया, किं ते ?श्रविभाव"-सामि-भाय-वप्प - ताय 'जियवं" मुय मे " मरामि दुब्बलो वाहिपीहिं किं दाणिऽसि ? - १. ० डंडक ० ( क, ख, ग, घ, च) । २. उ ( ग, घ ) । ३. दुद्दरिसणिज्जं (ख, वृ ) । ४. सुभदुक्खविस (क, ख, ग, घ, च, वृपा) । १३. अविहाव (वृ) । ५. तिउल (वृपा) । १४. जितवं ( ग ) । ६. कोट्टकिरिया ( वृपा ) । १५. जियवम्मुय (ख, च ) । ७. अहिसरणोसारणाणि ( क ); ( ख, ग, घ, च) । ८. विदारणाणि ( क ग ) । ६. अवकोडग ( ग ) । एवं दारुणे द्दिय मा देहि मे पहारे, उसासेत " मुहुत्तयं मे देहि, पसायं करेहि", मा रूस, वीसमामि, गेविज्जं मंच" में मरामि, गाढं तण्हाइप्रो" ग्रहं देहि पाणीयं, १०. X ( ख, घ, च) । ११. अहाउयं (वृ) | १२. जमकातिय ( क, ख, ग, घ, च) । ६४५ • सारणाणि १६. ० नं (ख ) । १७. करेह (ख, ग, घ, च, वृ) । १८. मुयह (क, ख, ग, घ, च) । १६. तण्हातिओ (ख, घ) । Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्हावागरण ता हंत' ! पिय इमं जलं विमलं सीयलं ति घेत्तूण य नरयपाला' तवियं तउयं से देंति कलसेण अंजलीसु, दळूण य तं पवेवियंगमंगा अंसुपगलंतपप्पुयच्छा छिण्णा तण्हा' इयम्ह कलुणाणि जपमाणा, विपेक्खंता दिसोदिसं", अत्ताणा असरणा अणाहा अबंधवा बंधुविप्पहूणा विपलायंति य मिगा व वेगेण भयुव्विग्गा', घेत्तूण बला पलायमाणाणं निरणुकंपा मुहं विहाडेत्तु लोहडंडेहि कलकलं एहं वयणसि छुभंति केइ जमकाइया हसंता ।। २७. तेण य दड्डा संता रसंति य भीमाई विस्सराइं, रुदंति य कलुणगाइं पारेवतगा व, एवं पलवित-विलाव-कलुणो कंदिय-बहुरुन्न-रुदियसद्दो परिदेविय"-रुद्धबद्धकारव-संकुलो णीसट्ठो "रसिय-भणिय-कुविय-उक्कूइय-निरयपालतज्जियगेण्ह, क्कम, पहर, छिंद, भिंद, उप्पाडेहि, उक्खणाहि", कत्ताहि, विकत्ताहि य, भंज", हण, विहण, विच्छभोच्छुभ", 'पाकड्ड, विकड्ड", किं ण जंपसि"? सराहि पावकम्माइ दुक्कयाइ'—एवं वयणमहप्पगब्भो पडिसुयासद्द-संकुलो तासयो' सया निरयगोयराण महाणगर-डज्झमाण-सरिसो निग्घोसो सुच्चए अणिट्रो तहियं नेरइयाणं जाइज्जताणं जायणाहिं, किं ते ?असिवणदब्भवणजंतपत्थरसूइतलखारवाविकलकलेंतवेयरणिकलंबवालुयाजलिय गृहनिरंभण-उसिणोसिणकंटइल्लदुग्गमरहजोयणतत्तलोहपहगमणवाहणाणि ।। २८. इमेहि विविहेहिं आयुहेहिं", किं ते ? मोग्गर मुसुंढि" करकच सत्ति हल गय मुसल चक्क कोंत तोमर सूल लउल भिडिमाल सवल पट्टिस चम्मट्ठ" दुहण मुट्ठिय असिखेडग खग्ग चाव नाराय १. हंता (क्व)। च, वृ); अत्र वृत्तेः पाठान्तरं मूलपाठत्वेन २. निरयवाला (क्व)। स्वीकृतम् । “भुज्जो' इति पदापेक्षया 'भंज' ३. तण्ह (क, ख, घ, च)। इति पदं क्रियापदप्रयोगे प्रासङ्गिकमस्ति । ४. वचनानीति गम्यते (वृ)। १३. विच्छुब्भोच्छुब्भ (क); विछुभउछुभ (वृ); ५. दिसि (क, घ)। निछुभ° (वृपा)। ६. भउब्विग्गा (क) १४. आकट्ठ विकट्ठ (ख. ग, घ, च) । ७. कलकल (ग, घ, च); त्रपुकमिति गम्यते। १५: जानासि (वृपा)। ८. रुयंति (क, ग); रुवंति (घ); रोवंति (च)। १६. विहणओ तासणओ पइन्भओ अइन्भओ(वृपा)। ६. ° वयगा (क, ग)। १७. सुव्वए (ख, ग, घ)। १०. परिवेदिय (क, ख, घ); परिवेविय (वृपा)। १८. आउहेहिं ° (क, ग)। ११. उग्घाडेहुक्खणाहि (क); उप्पाडेहुक्खणाहि १६. मुसंढि (क)। (ख, ग, घ, च)। २०. सद्दल (वृ)। १२. भुज्जो; भुज्जो (क); भुज्जो (ख, ग, घ, २१. चम्मेढ (क, घ)। Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (पढमं आसवदारं) कणक कप्पणि वासि परसु टंकतिक्ख निम्मल', अण्णेहि य एवमादिएहिं असुभेहिं वेउव्विएहिं पहरणसतेहिं अणुबद्धतिव्ववेरा परोप्परं वेयणं उदीरेंति अभिहणंता॥ २६. तत्थ य मोग्गरपहारचुण्णिय-मुसुंढिसंभग्गमहितदेहा जंतोपीलण'-फुरंत-कप्पिया के इत्थ सचम्मका विगत्ता णिम्मूलुल्लूण-कण्णो?णासिका छिण्णहत्थपादा असिकरकय-तिक्खकोंत-परसु-प्पहारफालिया वासीसंतच्छितंगमंगा कलकलखारपरिसित्त-गाढडज्झतगत्ता कुंतग्गभिण्ण-जज्जरिय-सव्वदेहा विलोलंति महीतले विसूणियंगमंगा'। तत्थ य विग-सुणग-सियाल-काक-मज्जार - सरभ-दीविय-वियग्घ-सद्ल-सीहदप्पिय-खुहाभिभूतेहिं णिच्चकालमणसिएहि घोरारसमाणभीमरूवेहि अक्कमित्ता दढदाढागाढडक्ककड्डिय' - सुतिक्खनहफालियउद्धदेहा विच्छिप्पंते समंतप्रो विमुक्कसंधिबंधणा वियंगिमंगा।। कंक-कुरर-गिद्ध-घोरकट्ठवायसगणेहि य पुणो खरथिरदढणक्ख-लोहतुडेहि अोवतित्ता पक्खाहय-तिक्खणक्खविक्खित्तजिब्भ-अंछियनयण' -निद्दयोलुग्गविगतवयणा', उक्कोसंता य, उप्पयंता निपतंता भमंता पुव्वकम्मोदयोवगता पच्छाणुसएण' डज्झमाणा, णिदता पुरेकडाई कम्माइं पावगाई, तहि-तहिं तारिसाणि प्रोसण्णचिक्कणाई दुक्खाइं अणुभवित्ता, ततो य आउक्खएणं उव्वट्टिया समाणा बहवे गच्छंति तिरियवसहि-दुक्खुत्तारं" सुदारुणं जम्मण-मरण-जरा वाहि-परियट्टणारहट्टं जलथलखहचर-परोप्पर-विहिसणपवंचं ।। ३०. इमं च जगपागडं वराका दुक्खं पावेंति दीहकालं, कि ते ? सीउण्हतण्हखुहवेयण-अप्पडीकारअडविजम्मण-णिच्चभउव्विग्गवास- जग्गणवधबंधण-तालणंकण-निवायण-अट्टिभंजण-नासाभेय-प्पहार -दूमण-छविच्छेयण अभियोगपावण - कसंकुसार -निवाय - दमणाणि वाहणाणि य, मायापिति१. ततस्तैरिति व्याख्येयम्, तृतीया बहुवचन- ८. ओलुत्तविगयगत्ता (वृपा)। लोपदर्शनात् (वृ)। ६. पच्छणुसएण (ख, ग, घ)। २. पिलुण (ख, च)। १०. तारिसाहि (क)। ३. °ल्लूय (क)। ११. दुक्खुत्तरं (ख)। ४. ° फालिय (वृ); वृत्तिकारेण विभक्तिरहितं १२. ° पगडं (ख, ग, च)। पदं लब्धम् । तेन अग्रिमपदेन सह समास: १३. पावंति (क, ख, घ, च)। सूचितः। १४. ताडणंकण (च)। ५. निग्गयग्गजीहा (वृपा)। १५. नासाभेद (ख, घ, च)। ६. दिढ (क)। १६. कस-+अंकुश+पार । ७. •जिब्भंछिय° (क, ख, ग, घ, च)। Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४८ पण्हावागरणाई विप्पयोग - सोयपरिपीलणाणि य, सत्थग्गिविसाभिघाय' - गलगवलाबलणमारणाणि य, गलजालुच्छिपणाणि' पउलण-विकप्पणाणि य, जावज्जीविगवंधणाणि पंजर-निरोहणाणि य, सज्जूह-निद्धाडणाणि धमणाणि दोहणाणि य, कडंड-गलबंधणाणि वाड-परिवारणाणि य, पंकजलनिमज्जणाणि वारिप्प वेसणाणि य, प्रोवायणिभंग-विसमणिवडण-दवग्गिजाल-दहणाइयाई॥ ३१. एवं ते दुक्खसय-संपलित्ता नरगाग्रो आगया इहं सावसेसकम्मा तिरिक्ख पंचेदिएसु पावंति पावकारी कम्माणि पमाद-राग-दोस-बहुसंचियाइं अतीव अस्साय -कक्कसाइं॥ ३२. भमर-मसग-मच्छियाइएसु य जाई -कुलकोडिसयसहस्सेहिं नवहिं चउरिदियाण तहि-तहि चेव जम्मण'-मरणाणि अणुभवंता कालं संखेज्जकं भमंति नेरइय समाणतिव्वदुवखा फरिस-रसण-घाण-चक्खुसहिया ॥ ३३. तहेव तेइंदिरासु -- कुंथु -पिपीलिका-अवधिकादिकेसु य जाती-कुलकोडिसय सहस्सेहि अहिं अणूणएहि तेइंदियाण तहि-तहिं चेव जम्मण-मरणाणि अणुहवंता कालं संखेज्जकं भमंति नेरइयसमाणतिव्वदुक्खा फरिस-रसण"-घाण-संपत्ता ॥ ३४. 'तहेव बेइंदिएसु'१५-गंडूलय-जलुय -किमिय-चंदणगमादिएसु य जाती-कुलकोडि सयसहस्सेहि सत्तहि अणूणएहि बेइदियाण तहि-तहि चेव जम्मण-मरणाणि अणुहवंता कालं संखेज्जकं भमंति नेरइयसमाण तिव्वदुक्खा फरिस-रसण संपउत्ता ।। ३५. पत्ता एगिदियत्तणं पि य-पूढवि-जल-जलण-मारुय-वणप्फति-सहम-बायरं च पज्जत्तमपज्जत्तं पत्तेयसरीरणामसाहारणं च । पत्तेयसरी रजीविएसु य, तत्थवि कालमसंखज्जगं भमंति, अणंतकालं च अणंतकाए फासिदियभाव-संपउत्ता दुक्खसमुदयं इमं अणिटुं पार्वति" पुणो-पुणो तहि-तहि चेव परभव-तरुगणगहणे" १. विसघाय (क)। १०. जाइ (ग, च)। २. ° लुछिपणाणि (क); °छुपणाणि (ग); ११. जणण (क)। ___ छिपणाणि (च)। १२. जंतु (क)। ३. सयूह (ग)। १३. अवहिकाइकेसु (ख, घ, च)। ४. कुदंड (ख, ग, च)। १४. रस (क)। ५. वाडग (ग, घ, च)। १५. X (क, ख, घ)। ६. परियालणाणि (क)। १६. गंदूयल (क, ग, घ, च)। ७. विसमपडण (क)। १७. जलूय (ग)। ८. असाय (ग, च)। १८. पाविति (ग); पावंति (च)। ६. मच्छिमाइएसु(ख, घ); मच्छिगाइ° (ग,च)। १६. तरुगणगणे (वृ); तरुगणगहणे (वृपा)। Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पढम आसवदारं) कोद्दालकुलियदालण-सलिलमलण-खंभण-रुंभण-अणलाणिल-विविहसत्थघट्टणपरोप्पराभिहणण-मारणविराहणाणि य अकामकाई परप्पयोगोदीरणाहि य कज्जप्पोयणेहि य पेस्सपसु-निमित्तं प्रोसहाहारमाइएहिं उक्खणण-उक्कत्थणपयण-कोट्टण- पीसण - पिट्टण - भज्जण - गालण-ग्रामोडण-सडण -फुडण- भंजण छेयण-तच्छण-विलुंचण-पत्तज्झोडण-अग्गिदहणाइयाति ।। ३६. एवं ते भवपरंपरादुक्खसमणुबद्धा अडंति संसार-बीहणकरे जीवा पाणाइवाय निरया अणंतकालं ।। ३७. जेवि य इह माणुसत्तणं आगया कहंचि नरगाो ' उव्वट्टिया अधण्णा, ते वि य दीसंति पायसो विकय-विगल-रूवा खुज्जा वडभा य वामणा य बहिरा काणा कुंटा य पंगुला 'विग्रला य मूका य मम्मणा य अंधिल्लग"-एगचक्खुविणिहयसचिल्लया वाहिरोगपीलिय-अप्पाउय - सत्थवज्झ-वाला कुलक्खणुक्किण्णदेहदुब्बल-कुसंघयण-कुप्पमाण-कुसंठिया कुरूवा किविणा य हीणा हीणसत्ता' निच्चं सोक्खपरिवज्जिया असुह-दुक्खभागी णरगाग्रो उव्वट्टिया इहं सावसेस कम्मा ॥ ३८. एवं णरग-तिरिक्खजोणि कुमाणुसत्तं च हिंडमाणा पावंति अणंतकाई दुक्खाई पावकारी॥ ३६. एसो सो पाणवहस्स फलविवागो इहलोइलो पारलोइनो अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असानो वाससहस्सेहिं मुच्चती', न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति"-एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य पाणवहस्स फलविवागं । निगमण-पदं ४०. एसो सो पाणवहो' चंडो रुद्दो खुद्दो प्रणारिओ निग्घिणो निस्संसो महब्भनो बीहणो २ तासणो अणज्जो उव्वेयणो" य निरवयक्खो६ निद्धम्मो १. ० पयोगो° (ख, ग, च)। २. ° यणाहि (क)। ३. नरगा (ख, ग, घ, च)। ४. अवि य जलमूया (वृपा) । ५. अंधेल्लग (क)। ६. सपिसल्लया (वृपा)। ७. दीणा निस्सत्ता (क)। ८. ततः प्राणीति शेषः (व)। ६. तमिति शेषः (व)। १०. अस्मादिति शेषः (व)। ११. पाणिवधो (ख, ग, घ, च)। १२. बीभणओ (क, ग); बीभाणओ (ख, घ)। १३. तासओ (क, ख, ग, घ)। १४. द्रष्टव्यम्-प० ११२ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । १५. उव्वेवणमो (क, ख, ग, घ, च)। १६. णिरावकंखो (ख)। Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० पण्हावागरणाई निप्पिवासो निक्कलुणो निरयवास-गमण-निधणो' मोह-महब्भय-पवड्डनो मरण वेमणंसो'। पढमं अहम्मदारं समत्तं । -त्ति बेमि॥ १. निबंधणो (क)। २. पयट्टओ (क, ख); पय?ओ (ग, घ)। ३. वेमणस्सो (ख, ग, घ, च); द्वितीयसूत्रवर्तीनि एतानि विशेषणानि अत्र न सन्ति, वृत्तिकारेणापि न व्याख्यातानि-साहसिओ पइभओ अतिभओ। Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं बीअं आसवदारं उक्खे व-पदं १. जंबू ! बितियं च' अलियवयणं-लहुसगलहु-चवल-भणियं भयंकर-दुहकर अयसकर-वेरकरगं अरतिरति-रागदोस-मणसंकिलेस-विय रणं अलिय-नियडिसाति-जोयवल नीयजण-निसेवियं निसंसं' अप्पच्चयकारकं परमसाहु-गरहणिज्जं परपीलाकारकं परमकण्हलेस्ससहियं' दुग्गइविणिवायवड्डणं' भव पुणब्भवकरं चिरपरिचियमणुगतं दुरंत'। बितियं अधम्मदारं ।। अलियवयणस्स तीसनाम-पदं २. तस्स य नामाणि गोण्णाणि होति तीसं, तं जहा-१. अलियं २. सढं ३. अणज्ज ४. मायामोसो ५. असंतकं ६. कूडकवडमवत्थु ७. निरत्थयमवत्थगं च ८. विद्देसगरहणिज्जं ६. अणुज्जगं' १०. कक्कणा य ११. वंचणा य १२. मिच्छापच्छाकडं च १३. साती १४. अोच्छन्नं १५. उक्कूलं च १६. अट्ट' १७. अब्भक्खाणं च १८. किब्बिसं १६. वलयं २०. गहणं च २१. मम्मणं च २२. नूमं २३. नियती २४. अप्पच्चो २५. असमग्रो २६. असच्चसंधत्तणं २७. विवक्खो २८. अवहीयं २६. उवहि-असुद्धं ३०. अवलोवो त्ति । १. ४ (ख, ग)। २. निस्संसं (ग)। ३. ° लेससहियं (क)। ४. ° पवड्ढणं (क)। ५. दुरंतं कीत्तितं (ख, ग, घ, च)। ६. मायामोहं (क)। ७. अणज्जुगं (च)। ८. ओत्थत्तं (क, वृषा)। ६. उक्कलं (वृपा)। १०. आट्ट (ख)। ११. नियडी (ग, च)। १२. आणाइयं (वृपा)। Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ पण्हावागरणाई अवि य तस्स एयाणि एवमादीणि नामधेज्जाणि होति तीसं सावज्जस्स अलियस्स वइजोगस्स अणेगाई ।। अलियवयणस्स पगार-पदं ३. तं च पुण वदंति केई अलियं पावा अस्संजया अविरया कवडकुडिल-कडुय चडुलभावा' कुद्धा लुद्धा 'भया य” हस्सट्टिया' य सक्खी चोरा चारभडा खंडरक्खा जियजूईकरा य गहिय-गहणा कक्कगुरुग'-कारगा कुलिंगी उवहिया वाणियगा य कूडतुला कूडमाणी कूडकाहावणोवजीवी पडकार-कलायकारुइज्ज। वंचणपरा चारिय-चडुयार - नगरगुत्तिय-परिचारग-दूटुवायि-सूयकअणवलभणिया य पुव्वकालियवयण-दच्छा साहसिका लहुस्सगा असच्चा गारविया असच्चट्ठावणाहिचित्ता उच्चच्छंदा अणिग्गहा अणियता छंदेण मुक्क वायी भवंति अलियाहि जे अविरया ।। ४. अवरे नथिकवादिणो वामलोकवादी भणंति-सुण्णंति । नत्थि जीवो । न जाइ इह 'परे वा लोए । न य किचिवि फुसति पुण्णपावं । नत्थि फलं सुकय-दुक्कयाणं । पंचमहाभूतियं सरीरं भासंति ह" वातजोगजुत्तं । पंच य खंधे भणंति केई। मणं च मणजीविका वदंति । वाउजीवोत्ति एवमासु। सरीरं सादियं सनिधणं इह भवे 'एगे भवे', तस्स विप्पणासम्मि सव्वनासोत्ति-एवं जपंति मुसावादी॥ ५. तम्हा दाणव्वय"-पोसहाणं तव-संजम-बंभचेर-कल्लाणमाइयाणं नत्थि फलं, नविय पाणवह-अलियवयणं, न चेव चोरिक्ककरण-परदारसेवणं वा सपरिग्गहपावकम्मकरणं पि नत्थि किंचि", न नेरइय-तिरिय-मणुयाण जोणी, न देवलोगो वत्थि, न य अत्थि सिद्धिगमणं, अम्मापियरो वि नत्थि, नवि अत्थि पुरिसकारो, १. चटुल० (ख, ग, घ, च)। ७. चाटुयार (ख); चटुयार (ग, च)। २. अस्मिन् कर्तृपदप्रकरणे वृत्तिकृता चतुर्थ्यन्त ८. नगरगोत्तिय (ग)। पञ्चम्यन्त वा व्याख्यातं 'भया य' इति पदं ६. जगदिति गम्यते (वृ)। नैव संगच्छते । सम्भवतः ‘भयट्ठा' अथवा १०. परेच्च (क, च); परिच्च (घ)। 'भयट्टा य' इति पदं प्रासीत्, किन्तु लिपि- ११. हे (वृ)। करणक्रमे परिवर्तितमिवाभाति । १२. X (ख, ग, च)। ३. हस्सट्ठि (क); हस्सट्ठाय (वृपा)। १३. विप्पणासे (क); विप्पणासंसि (च)। ४. ° जुयकरा (ख)। १४. दाणवत (क, च)। ५. ° कुरुग (क); ° कुरग (ख, ग, च); १५. नेवि (ख, च) । ° कुरूग (घ)। १६. परदारा° (क)। ६. कूडतुल (ग)। १७. किंपि (क, च)। Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बी अज्झयणं (बीअं आसवदार) ६५३ पच्चक्खाणमवि नत्थि, नवि अत्थि कालमच्च, अरहंता चक्कवट्टी बलदेववासुदेवा नत्थि, नेवत्थि केइ रिसयो, धम्माधम्मफलं च नवि अस्थि किचि बहुयं च थोवं' वा। तम्हा एवं विजाणिऊण जहा सुबहु-इंदियाणुकूलेसु सव्वविसएसु वट्टह । नत्थि काइ किरिया वा अकिरिया वा- एवं भणंति नत्थिकवादिणो वामलोगवादी ।। ६. इमं पि बिइयं कुदंसणं असब्भाववाइणो पण्णवेति मूढा-संभूतो अंडकारो लोको। सयंभुणा सयं च निम्मियो। एवं एतं अलियं, पयावइणा इस्सरेण य कयं ति केई । एवं विण्हुमयं कसिणमेव य जगं ति केई॥ ७. एवमेके वदंति मोसं-एको पाया प्रकारको वेदको य सुकयस्स दुक्कयस्स य करणाणि कारणाणि सव्वहा सवहिं च निच्चो य निक्कियो निग्गुणो य अणुवलेवोत्ति वि य ॥ एवमाहंसु असब्भावं-जंपि इहं किंचि जीवलोके दीसइ सुकयं वा दुक्कयं वा एयं जदिच्छाए वा, सहावेण वावि दइवतप्पभावओ वावि भवति, 'नत्थेत्थ किंचि कयकं तत्तं । लक्खण-विहाण नियती य कारिया-एवं केइ जपंति इड्डिरससातगारवपरा, बहवे करणालसा परूवेति धम्मवीमंसएणं मोसं ।। ६. अवरे अहम्मानो रायदुटुं अब्भक्खाणं भणंति अलियं-चोरोत्ति अचोरियं करेंतं, डामरिप्रोत्ति वि य एमेव उदासीणं, दुस्सीलोत्ति य परदारं गच्छतित्ति मइलिति सीलकलियं, अयंपि गुरुतप्पग्रोत्ति, अण्णे एवमेव भणंति उवहणता', मित्तकलत्ताई सेवंति अयंपि लुत्तधम्मो, इमो वि वीसंभघायो पावकम्मकारी अकम्मकारी अगम्मगामी, अयं दुरप्पा बहुएसु य पातगेसु जुत्तोत्ति-एवं जपति मच्छरी भद्दके व गुण-कित्ति-नेह-परलोग-निप्पिवासा ॥ १०. एवं ते अलियवयणदच्छा परदोसुप्पायणप्पसत्ता वेढेति अक्खइय-बीएण अप्पाणं कम्मवंधणेण मुहरी असमिक्खियप्पलावी, निक्खेवे अवहरंति परस्स अत्थंमि गढियगिद्धा, अभिजुजंति य परं असंतएहिं, लुद्धा य करेंति कूडसक्खित्तणं, असच्चा प्रत्यालियं च कन्नालियं च भोमालियं च तहा गवालियं च गरुयं भणंति अहरगतिगमणं ।। १. थोवकं (क)। २. जाणिऊण (ख, ग, घ, च)। ३. केयि (ख, घ, च); केति (ग)। ४. अण्णो अलेवओत्ति (वृपा)। ५. नत्थि किंचि कयं तत्त (वृपा)। ६. चोरित्ति (क)। ७. तद्धतिकीर्त्यादिकमिति गम्यते (व)। ८. पावगेसु (ग, च)। ६. भणंति (क)। १०. मच्छरीया (ग)। ११. वा (ग, च)। १२. दूषणः इति गम्यम् (वृ) । Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ पण्हावागरणाई ११. अण्णंपि य जाति-रूव-कुल-सील-पच्चय-मायाणिगुणं चवला पिसुणं परमट्ठभेदकं असंतकं विद्देसमणत्थकारकं पावकम्ममूलं दुद्दिटुं दुस्सुयं अमुणियं निल्लज्जं लोकगरहणिज्जं वह-बंध-परिकिलेस-बहुलं जरा-मरण-दुक्खसोयनेम्म असुद्धपरिणाम-संकिलिटुं भणंति अलियाहिसंधि-निविट्ठा', असंतगुणुदीरका य संतगुणनासका य हिंसाभूतोवघातितं अलियसंपउत्ता वयणं सावज्जमकुसलं साहुगरह णिज्ज अधम्मजणणं भणंति अणभिगत-पुन्नपावा ।। १२. पुणो य अधिकरण-किरिया-पवत्तगा बहुविहं अणत्थं अवमदं अप्पणो परस्स य करेंति, एमेव' जंपमाणा महिससूकरे य साहेति घायगाणं, ससय-पसय-रोहिए य साहेति वागुरीण', तित्तिर-वट्टक-लावके य कविंजल-कवोयके य साति साउणीणं, भस-मगर-कच्छभे य साहेति मच्छियाणं, संखके खुल्लए य साहेति मगराणं', अयगर-गोणस-मंडलि-दव्वीकर. मउली य साहेति' बालवीणं, गोहासेहा य सल्लग-सरडगे य साहेति लुद्धगाणं, गयकुल-वानरकुले य साहेति पासियाणं, सुक-बरहिण-मयणसाल-कोइल-हंसकुले सारसे य साहेति पोसगाणं, वध-बंध-जायणं च साहेति गोम्मियाणं, धण-धन्न-गवेलए य साहेति तक्कराणं, गाम-नगर-पट्टणे य साहेति चारियाणं पारघाइय-पंथधातियानो साहेति य गंठिभेयाणं, कयं च चोरियं नगरगोत्तियाणं, लंछण-निल्लंछण-धमण-दहणपोसण-वणण-दुमण-वाहणादियाइं 'साहेति बहूणि'° गोमियाणं, धातु-मणि-सिलप्पवाल-रयणागरे य साहेति आगरीणं, पुप्फविहिं फलविहिं च साहेति मालियाणं, अग्घमहुकोसए य साहेति वणचराणं, जंताई विसाइंमूलकम्म-अाहेवण"-प्राभिप्रोगमंतोसहिप्पयोगे चोरिय-परदारगमण-बहपावकम्मकरणं अोखंदे गामघाति याओ वणदहण-तलागभेयणाणि बुद्धि-विसय-विणासणाणि वसीकरणमादियाई भयमरण-किलेस-दोसजणणाणि" भाव-बहुसंकिलिट्ठ-मलिणाणि भूतघातोवघा तियाइंसच्चाणि वि ताई हिसकाई वयणाइं उदाहरंति ॥ १३. पुट्ठा व अपुट्टा वा परतत्तिवावडा य असमिक्खियभासिणो उवदिसंति सहसा -- उद्या गोणा गवया दमंतु, परिणयवया अस्सा हत्थी गवेलग-कुक्कुडा य किज्जंतु, १. संकिलिट्ठा (ख, ग); संनिविट्ठा (च)। पथघायग' ० इति पाठो दृश्यते । अत्रापि २. एवमेव (ख)। तथाविधः पाठः परिकल्प्यते । ३. वगुरीणं (क); वग्गुरीणं (ख)। ६. निलंछण (क)। ४. मग्गिणा (वृपा)। १०. बहूणि साहेति (क)। ५. साहंति (क); साहिति (ख)। ११. पाहिचणं, आविंधणं च (वृपा)। ६. बालियाण (वृषा)। १२. अोखंधे (क, ख, ग, घ, च)। ७. साहिति (क)। १३. विस (क, ग, घ, च)। ८. तृतीयाध्ययनस्य तृतीये सूत्रे 'पुरघाय- १४. कर्तुरिति गम्यते (वृ)। Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ hati अज्झणं (बी आसवदारं ) ६५५ किणावेध' य, विक्केह, पयह, सयणस्स देह, पिय, धय', दासि दास भयकभाइल्लकाय सिस्सा पेसकजणो कम्मकरा किंकरा य एए, सयण-परिजणो य की अच्छंति ? भारिया भे करेत्तु कम्मं, गहणाई वणाई खेत्त - खिलभूमि-वल्लराई उत्तण-घण-संकडाइ डज्कंतु सूडिज्जंतु य, रुक्खा भिज्जंतु जंतभंडाइयस्स कारण बहुविहस्स' य अट्ठाए, उच्छू दुज्जंतु, पीलियंतु य तिला, पयावेह य इट्टकाओं घरट्टयाए", च्छेत्ताइं कसह, कसावेह य लहुं गाम-नगरखेड - कब्बडे निवेसेह अडवीदेसेसु विपुलसी मे, पुप्फाणि य फलाणि य कंदमूलाई कालपत्ताइं गेण्हह", करेह संचयं परिजणट्टयाए", साली वीहो जवा य लुच्चतु मलिज्जंतु उप्पणिज्जंतु य, लहुं च पविसंतु य कोट्ठागारं, अप्पमहुक्कोसगा य हम्मंतु पोयसत्था, सेणा निज्जाउ जाउ " डमरं, घोरा वट्टंतु य संगामा, पवहंतु य सगड-वहणाई, उवणयणं चोलगं विवाहो जन्नो अमुगम्मि होउ दिवसेसु करणेसु मुहुत्तेसु नक्खत्तेसु तिहिम्मिय, प्रज्ज होउ ण्हवणं मुदितं बहुखज्जपेज्जकलियं, कोउकं विण्हावणकं संतिकम्माणि कुणह, ससि - रवि-गहोव राग - विसमेसु सज्ज -परियणस्य नियकस्स य जीवियस्स परिरक्खणट्टयाए पडिसीसकाई च देह, देह् य सीसोवहारे" विविहोसहि-मज्ज-मंस-भक्खण्णपाण-मल्लाणुलेवणपईवजलिउज्जल सुगंधधूवावकार - पुप्फफल-समिद्धे, पायच्छित्ते करेह, पाणाइवायकरणेण बहुविहेणं, विवरीयुप्पाय - दुस्सिमिण पावसउण प्रसोमग्गहचरियमंगलनिमित्त पडिघायहेउं वित्तिच्छेयं करेह, मा देह किंचि दाणं, 'सुट्ठहश्रोसुट्ठहो" सुट्ठछिण्णो भिण्णोत्ति उवदिसंता ।। १४. "एवं विविहं करेंति अलियं मणेण वायाए कम्मुणा य अकुसला अणज्जा लियाणा प्रतियधम्मणिरया अलियासु कहासु अभिरमंता तुट्ठा ग्रलियं करेत्तु होंति य बहुप्पयारं ॥ १. किणावेव ( क ) । २. देध ( ख ) । ३. वाचनान्तरेण खादत पिबत दत्त च (वृ) । ४. करेंतु (क, वृपा) । ५. च्छेत ( क ) । ६. पाठांतरेण गहनानि वनानि छिद्यन्ताम् (वृ) । ७. वाचनान्तरे तु यत्र भांडस्य उक्तरूपस्य कारणात् (वृ) । ८. बहुविधस्य च कार्यसमूहस्येति गम्यम् (वृ) | C. इट्टगाओ ( क ) 1 १०. मम घरट्टयाए ( ख, ग, घ, च) । ११. गेह (क) । १२. परिजणस्स अट्ठाए ( ख, ग, च) । १३. अप्पुणिज्जंतु ( क ) । १४. निज्जा ( क ) । १५. जाओ (क) । १६. देवतानामिति गम्यते ( वृ ) । १७. पुप्फाडल ( क ) । १८. विपरीत उप्पाय (ख); ( ग, घ, च) । १६. सुट्ठहओ (क, ग, घ, च) । २०. एवंविहं (क, ख ) ; एवं तिविहं (ग, वृपा ) । विवरीउप्पाय Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्हावागरणाई अलियवयणस्स फलविवागपदं १५. तस्स य अलियस्स फलविवागं अयाणमाणा वडढेति महब्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्खसंकडं नरय-तिरिय-जोणि । तेण य अलिएण समणुबद्धा पाइद्धा पुणब्भवंधकारे भमंति भीमे दुग्गतिवसहिमुवगया ॥ १६. तेय दीसंतिह दुग्गगा दुरंता परव्वसा अत्थभोगपरिवज्जिया असुहिता 'फुडियच्छवी बीभच्छा विवन्ना'' खरफरुस-विरत्त-ज्झाम-झुसिरा निच्छाया लल्ल-विफल-वाया असक्कतमसक्कया अगंधा अचेयणा दुभगा अकंता काकस्सरा हीणभिण्णघोसा विहिंसा जडबहिरंधया' य मम्मणा अकंत-विकय-करणा णीया णीयजण-निसेविणो लोग-गरहणिज्जा भिच्चा असरिसजणस्स पेस्सा दुम्मेहा लोक-वेद-अज्झप्प-समयसुतिवज्जिया नरा धम्मबुद्धि-वियला ॥ १७. अलिएण य 'ते डज्झमाणा" असंतएणं अवमाणण-पट्ठिमंस-अहिक्खेव-पिसूणभेयण गुरु - बंधव - सयण - मित्तवक्खारणादियाइं अब्भक्खाणाई बहुविहाई पावेंति अमणोरमाइं हियय-मण-दूमकाई जावज्जीवं दुरुद्धराई अणि?खरफरुसवयणतज्जण-निब्भच्छण-दोणवदणविमणा कुभोयणा कुवाससा कुवसहीसु किलिस्संता नेव सुहं नेव निव्वइं उबलभंति अच्चंत-विपूल-दुक्खसय-संपलित्ता। १८. एसो सो अलियवयणस्स फलविवाग्रो इहलोइनो पारलोइयो अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असानो वाससहस्सेहि मुच्चइ, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति-एवमासु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य अलिय-वयणस्स फलविवागं ॥ निगमण-पदं १६. एयं तं बितियंपि अलियवयणं लहुसगलहु-चवल-भणियं भयंकर-दुहकर अयसकर-वेरकरगं अरतिरति-रागदोस-मणसंकिलेस-वियरणं अलिय-नियडिसादि-जोगबहुलं नीयजण-निसेवियं निस्संसं अप्पच्चयकारक परमसाहगरहणिज्जं परपीलाकारकं परमकण्हलेससहियं दुग्गतिविनिवायवडणं भवपुणब्भवकरं चिरपरिचियमणुगयं दुरंत । बितियं अधम्मदारं समत्तं । -त्ति बेमि ॥ १. फुडियच्छविबीभच्छविवन्ना (ख,ग,घ,च,व)। ४. तेण य डज्झमाणा (ग)। २. जडबहिरमूका (क, ख, ग, घ, च, वृपा)। ५. अणुवमाणि (वृ); अमणोरमाई (वपा)। ३. ° विकत (ख, ग, च); अकृतानि विकृतानि ६. दुद्धराइं (क) । च विरूपतयाकृतानि (वपा)। ७. संपउत्ता (ग)। Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं तइयं पासवदारं उक्खव-पदं १. जंबू ! तइयं च अदिण्णादाणं'-हर-दह-मरण-भय-कलुस-तासण-परसंतिगऽ भेज्जलोभमूलं काल-विसम-संसियं अहोऽच्छिण्णतण्ह-पत्थाण-पत्थोइमइयं अकित्तिकरणं अणज्ज छिद्दमंतर'-विधुर-वसण-मग्गण-उस्सव-मत्त-प्पमत्तपसुत्त-वंचणाखिवण-घायणपर-अणिहुयपरिणामतक्करजणबहुमयं अकलुणं रायपुरिसरक्खियं सया साहुगरहणिज्जं पियजण-मित्तजण-भेदविप्पीतिकारक रागदोसबहुलं पुणो य उप्पूर-समर-संगाम-डमर-कलि-कलह-वेहकरणं दुग्गतिविणिवायवड्डणं भव-पुणब्भवकरं चिरपरिचितमणुगयं दुरंतं । तइयं अधम्मदारं ।। अदिण्णादाणस्स तीसनाम-पदं २. तस्स य णामाणि गोण्णाणि होति तीसं, तंजहा–१. चोरिक्क २. परहर्ड ३. अदत्तं ४. कूरिकडं ५. परलाभो ६. असंजमो ७. परधणम्मि गेही ८. लोलिक्का' ६. तक्करत्तणं ति य १०. अवहारो ११. हत्थलहुत्तणं" १२. पावकम्मकरणं १३. तेणिक्का १४. हरण-विप्पणासो १५. आदियणा १६. लुंपणा धणाणं १७. अप्पच्चो १८. अोवीलो १६. अक्खेवो २०. खेवो १. अदिन्नदाणं (क, ख, घ)। टुककृतं' दृश्यते (वृ)। २. वाचनान्तरे त्विदमेव पठ्यते-छिद्रविषम- ५. परलोभो (क, ख, ग, घ, च)। पापकं च (व)। ६. लोलिक्कं (ग)। ३. वंचणक्खिवण (ग, च)। ७. हत्थलत्तणं (वृ); हत्थलहुत्तणं (वृपा)। ४. कूरिकर (क) कूरिकयं (ख); क्वचित्तु 'कुरु- ८. तेणक्कं (ग)। Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ चोरिय-चोरपगार- पदं ३. पहावागरणाई २१. विक्खेवो २२. कूडया २३. कुलमसी य २४. कंखा २५. लालप्पणपत्थणा य २६. 'आससणाय वसणं" २७. इच्छा मुच्छा य २८. तण्हा गेही २९. नियडिकम्मं ३०. ग्रपरच्छति । विय तस्स एयाणि एवमादीणि नामधेज्जाणि होंति तीसं प्रदिण्णादाणस्स' पाव-कलिकलुस-कम्मबहुलस्स गाई || रण्णो परधनहरण-पदं ४. विपुलबल - परिग्गहा य बहवे रायाणो परधणम्मि गिद्धा चउरंग - समत्त बलसमग्गा निच्छिय-वरजोह - जुद्धसद्धिय-'ग्रहमहमिति' दप्पिएहि सेन्नेहि " संपरिवुडा पउम-सगड सूइ चक्क सागर - गरुलवू हाइएहि " प्रणिएहिं उत्थरंता अभिभूय हरति परधणाई || ५. तं च पुण करेंति चोरियं तक्करा परदव्वहरा छेया कयकरण- लद्धलक्खा साहसिया लहुस्सगा अतिमहिच्छ-लोभगत्था, दद्दर- प्रोवीलका य गेहिया अहिमरा अणभंजका' भग्गसंधिया रायदुद्रुकारी य विसयनिच्छूढा' लोकवज्झा, उद्दहक' - गामघाय- पुरघाय-पंथघायग-प्रालीवग" - तित्थभेया लहुहत्थ-संपउत्ता जूईकरा' खंड रक्ख-त्थी चोर- पुरिसचोर-संधिच्छेया य गंथिभेदग - परधणहरणलोमावहार-प्रक्खेवी हडकारक" - निम्मद्दग- गूढचोर-गोचोर-ग्रस्सचोरगदासिचोरा य एकचोरा प्रोकड्डक-संपदायक - उच्छिपक-सत्थघायक - बिलकोलीकारका य निगाह - विप्पलं पगा" बहुविहतेणिक्कहरणबुद्धी, " एते प्रणेय एवमादी परस्स दव्वाहि जे अविरया || त्थं जुद्ध-पदं अवरे रणसीसलद्धलक्खा संगामम्मि प्रतिवयंति सण्णद्धबद्धपरियर- उप्पीलिय १. आसासणाय वसणं ( क च ) ; वसण ( वृ); ६. परधणलोमावहारप्रक्खेवहडकारगा ( वृपा ) । आणाय वसणं (वृपा ) । २. अदिणदणस्स (क, ग) । ३. घथा ( क ) । ४. अणभंजक (ख, ग, घ, वृ) । ५. ० निच्छूढ (क, ग, घ ) । ६. उद्दोहक (वृ); उद्दहक (वृपा ) । ७. प्रादीवक ( ख ) । ८. जूइकरा (क, घ); जूकिरा (ख, च ) । १०. विलुपका (ख, घ, च) । ११. बहुविहतहवहरण बुद्धी ( वृपा ) । १२. गिद्धा सए दव्वे असंतुट्टा परविसए अभिहणंति लुद्धा परघणस्स कज्जे (क, ख, ग, घ, च, वृपा ) । १३. विभत्त (वृ); समत्त ( वृपा ) | १४. भिच्चेहिं (वृ); सेन्नेहि (वृपा ) | १५. ० बूहतिएहि (क, ग, घ, च); (ख); वाचितेहिं (वृ) । 0 बूहाहिए हि Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइय अज्झयण (तइयं आसवदार) ६५६ चिंधपट्ट-गहियाउहपहरणा माढि-गुड-वम्मगुडिया' प्राविद्धजालिका कवयकंकडइया' उरसिरमुह-बद्धकंठतोण-माइयवरफलगरचित-पहकर-सरभसखरचावकर-करंछिय-सुनिसितसरवरिसचडकरक-मुयंतघणचंडवेग-धारानिवायमग्गे, अणेगधणुमंडलग्ग-संधित-उच्छलियसत्तिकणग-वामकरगहियखेडगनिम्मलनिक्किट्ठखग्ग - पहरंतकोंत - तोमर - चक्क-गया-परसु-मुसल-लंगल-सूललउल' - भिडिमाल-सब्बल-पटिस-चम्मेट - दघण-मोदिया-मोग्गर-वरफलिहजंतपत्थर - दुहण-तोण - कुवेणी- पीढकलिए, ईली - पहरण-मिलिमिलिमिलंतखिप्पंत-विज्जुज्जलविरचितसमप्पहणतले, फुडपहरणे, महारण-संख-भेरिवरतूर-पउरपडपडहाहय-णिणाय-गंभीरणंदित-पक्खुभियविपुलघोसे, हय-गयरह-जोह-तुरिय-पसरित-रउद्धत-तमंधकारबहुले, कातरनर-णयणहिययवाउलकरे, विलुलिय - उक्कडवर - मउड - तिरीड - कुंडलोडुदामाडोवियपागडपडाग-उसियज्झय-वेजयंति-चामरचलंत-छत्तंधकारगंभीरे, यहेसियहत्थिगुलुगुलाइय-रहघणघणाइय - पाइक्कहरहराइय-अप्फोडियसीहनाय-छेलियविघुटुक्कुट्ठ-कंठकयसद-भीमगज्जिए, सयराहहसंत-रुसंत-कलकलरवे, आसूणियवयण-रुद्दभीम-दसणाधरोट्ठ-गाढदट्ठ-सप्पहारणुज्जयकरे, अमरिसवसतिव्वरत्त-निद्दारितच्छे, वरदिट्ठि-कुद्धचेट्ठिय-तिवलीकुडिलभिउडि-कयनिलाडे, वधपरिणय-नरसहस्स-विक्कम-वियंभियबले, वग्गंततुरंग-रहपहाविय-समरभडावडिय-छेय-लाघव-पहारसाधित - समूसवियवाहुजुयल-मुक्कट्टहास-पुक्कत -बोलबहुले, फुरफलगावरणगहिय-गयवरपत्थेत-दरियभडखल-परोप्परवलग्गजद्धगविय - विउसितवरासिरोसतूरियाभिमहपहरेंत - छिन्नकरिकर-वियंगितकरे. अवइद्ध-निसद्धभिन्न-फालिय-पगलिय-रुहिरकय-भूमिकहम-चिलिच्चिलपहे, कुच्छिदालिय - गलंत-निभेलितंत-फुरुफुरंत"-विगल-मम्माहय-विकय२गाढदिन्नपहारमुच्छित - रुलंत - विब्भल - विलावकलुणे हयजोह - भमंततुरगउद्दाममत्तकुंजर-परिसंकितजण - निवुक्कच्छिन्नधय - भग्गरहवर - नट्ठसिरकरि १. माढिवरवम्मगुडिया(वृ); माढिगुडवम्मगुडिया ७. °धय (ख, च)। (वृपा)। ८. फुक्कंत (ख, घ, च)। २. कवया (ख, च)। ६. फलफलगा (क, ग, घ); फडफलगा (च)। ३. कंककडइया (क)। १०. विभंगितकरे (क, ख, ग, घ, च)। ४. निवायमंते (वृपा)। ११. फुरफरेंत (क, घ)। ५. लउड° (ख)। १२. विहिय (ख, च)। ६. मुट्ठि (क); मोट्ठि (ख)। १३. बेभल (ख, ग, घ, च)। Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० पावागरणाई कलेवराकिण - पडिय पहरणविकिण्णाभरणभूमिभागे', नच्चंतकबंधपउरभयंकरवायस - परिलें तगिद्ध मंडल - भमंतच्छायंधकारगंभीरे । लं टाक-पदं ६. ७. वसु- वसु - विकंपितव्व पच्चक्खपिउवणं परमरुद्द - बीहणगं दुप्पवेसतरगं अभिवति' संगामसंकडं परधणं महंता ॥ सामुद्दियचोर-पदं - अवरे पाइक्कचोरसंघा सेणावई चोरवंदपागड्डिका य अडवीदेसदुग्गवासी कालहरित-रत्त-पीत - सुक्किल -प्रणेगसर्याचधपट्ट-बद्धा परविसए अभिहणंति लुद्धा धस्स कज्जे || रयणागरसागरं उम्मीसहस्समालाकुलाकुलविग्रोयपोत कल करेंत कलियं, पायाल सहस्स - वायवस वेगसलिल उद्धम्ममाण- दगरय रयंधकारं वरफेणपउरधवलपुलं पुलसमुट्टियट्टहासं, मारुयविच्छुब्भमाणपाणिय- जलमालुप्पील- हुलियं, अवि य" समंतश्रो खुभिय-लुलिय-खोखुब्भमाण- पक्खलिय-चलियविपुलजलचक्कवालमहानईवेगतुरियापूरमाण- गंभीरविपुलश्रावत्तचवल-भममाणगुप्पमाणुच्छलंतपच्चोणियत्तपाणिय- पधावियखरफरुसपयंडवाउलियसलिल फुट्टंतवीचि कल्लोलसंकुल, महामगरमच्छ - कच्छभ प्रहार गाह- तिमि सुंसुमार सावय-समायसमुद्धायमाणक- पूरघोरपउरं, कायरजण हिययकंपणं, घोरमारसंतं महभयं भयंकरं पतिभयं उत्तासणगं श्रणोरपारं आगासं चैव निरवलंब, उप्पाइयपवणधणियनोल्लिय उवरुवरितरंगदरिय प्रतिवेगवेग' चक्खु पहमुत्थरंतं, कत्थइ गंभीर विपुल गज्जिय- गुंजिय-निग्धाय-गरुयनिवतित-सुदी हनीहारि-दूर सुव्वंतगंभीरधुगधुगेंतसद्दं, पडिपहरुभंत - जक्ख रक्खस कुहंडपिसायरुसियतज्जायउवसग्गसहस्ससंकुलं', बहुप्पाइयभूयं, विरचितबलिहोमधू व उवचार- दिन्नरुधिरच्चणाकरणपयत - जोगपयय-चरियं परियंतजुगंतकाल कप्पोवमं, दुरंतं, महानईनईवर - महाभीमदरिसणिज्जं दुरणुचरं विसमप्पवेसं दुक्खुत्तारं दुरासयं लवणसलिल पुण्णं सिय- सिय-समूसियगेहिं दच्छत रेहिं वाहणेहिं अइवइत्ता समुद्दम हणंति गंतॄण जणस्स पोते ॥ १. ० विणिकिण्णा ( क ) । २. अभिवदंति ( क ) ; अभिवयंति ( ग ) ; अतिपतंति (वृ) । ३. ० पागट्टिका (ख, च ) । ४. हुलियकं पिय (क, ग ); हुलिकं तं पिय (ख, घ); हुलियं तं पिय (च) । ५. लुप्ततृतीयैकवचनदर्शनात् (वृ) । ६. ० पिसायप डिगज्जिय° ( वृ ) ; ° पिसाय रुसि - तज्जा ० ( वृपा) । ro ७. उद्दवाभिभूयं (वृपा) । ८. दुरणुच्चरं ( ग ) । ६. हत्थतर केहि (क, ख, ग, घ, च) । Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (तइय आसवदार) ६६१ दारुणचोर-पदं परदव्वहरणनिरणुकंपा निरवयक्खा गामागर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुहपट्टणासम-णिगम-जणवते य धणसमिद्धे हणंति, थिरहियय-छिण्णलज्जा वंदिग्गहगोग्गहे य गेण्हंति, दारुणमतो णिक्किवा णियं हणंति, छिदंति गेहसंधि, निक्खिताणि य हरंति धगधन्नदश्वजायाणि जगवयकुलाणं णिग्घिणमती परस्स दव्वाहि जे अविरया ।। अदिण्णादाणस्स प.लविवाग-पदं तहेव केई अदिण्णादाणं' गवेसमाणा कालाकालेसु संचरंता चियका-पज्जलियसरस-दरदड-कड्डिय-कलेवरे, रुहिरलित्तवयण-अक्खत'-खातियपीत-डाइणिभमंतभयकर-जंबुखिखियंते, घूयकय-घोरसद्दे, वेयालुट्ठिय-निसुद्ध-कहकहतपहसित-बीहणक-निरभिरामे, अतिदुब्भिगंध-बीभच्छदरिसणिज्जे, सुसाणे वणसुन्नघर - लेण - अंतरावण - गिरिकंदर - विसमसावय - समाकुलासु वसहीसु किलिस्संता, सीतातव-सोसिय-सरीरा दड्डच्छवी निरय-तिरिय-भवसंकडदक्खसंभार-वेयणिज्जाणि पावकम्माणि संचिणंता, दुल्लहभक्खन्नपाणभोयणा पिवासिया झंझिया किलंता मस-कुणिम-कंद-मूल-जंकिंचिकयाहारा उव्विग्गा उप्पूया असरणा अडवीवास उर्वति वालसत-संकणिज्जं। अयसकरा तक्करा भयंकरा 'कास हरामो' त्ति अज्ज दव्वं इति सामत्थं करेंति गुज्झं । बहुयस्स जणस्स कज्जकरणेसु विग्धकरा मत्त-पमत्त-पसुत्त-वीसत्थछिदृघाती वसणब्भुदएसु हरणबुद्धी विगव्व रुहिरमहिया परिति नरवतिमज्जायमतिक्कता सज्जणजणदुगुंछिया" सकम्मेहिं पावकम्मकारी असुभपरिणया य दुक्खभागी निच्चाविल-दुहम निव्वुइमणा इहलोके चेव किलिस्संता परदव्वहरा नरा बसणसयसमावण्णा ।। १०. तहेव केइ" परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिता य हया य बद्धरुद्धा य तरितं अति १. परदव्वहरा नरा निरणुकंपा (क, ख, ग, ८. पासुत्त (क, च)। घ, च, वृपा)। ६. वगव्व (क)। २. अदिण्णदाणं (क, ग, घ, च)। १०. °मतिक्कमंता (क)। ३. अदर (वृपा)। ११. ° दुग्गंछिया (ख, घ); ° दुगंछिया (ग)। ४. खतिय° (क, ख, घ)। १२. निच्चाइल (क, ग, घ); निच्चाउल ५. °खिक्खियंते (क, ख, ग, घ, च)। (ख, वृपा)। ६. दुरभिगंध (व)। १३. केयि (क, ख, घ)। ७. अफुया (ख)। १४. तुरियं (ग); तुरितं (च)। Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ पण्हावागरणाई धाडिया पुरवरं समप्पिया चोरग्गाह-चारभड-चाडुकराण तेहि य कप्पडप्पहारनिद्दय-प्रारक्खिय-खर-फरुस-वयण-तज्जण-गलत्थल्ल-उत्थल्लणाहिं विमणा चारगवसहिं पवेसिया निरयवसहिसरिसं ।।। तत्थवि गोम्मिकप्पहार-दूमण-निब्भच्छण-कडुयवयण-'भेसणग-भयाभिभूया'' अक्खित्त-नियंसणा मलिणदंडिखंडवसणा उक्कोडा-लंच-पास-मग्गण-परायणेहि गोम्मिकभडेहि विविहेहि बंधणेहिं, किं ते ? हडि-नियड'-बाल रज्जुय-कुदंडगवरत्त'-लोहसंकल-हत्थंदय-वज्झपट-दामक-णिक्कोडणेहि.अण्णेहि य एवमादिएहिं गोम्मिक'-भंडोवकरणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं संकोडण-मोडणाहि वझति मंदपूण्णा॥ १२. संपुड-कवाड-लोहपंजर-भूमिघर-निरोह-कूव-चारग-खीलग - जुय-चक्क-वितत बंधण-खंभालण-उद्धचलणबंधण-विहम्मणाहि य विहेडयंता, अवकोडकगाढउरसिरबद्ध-उद्धपूरित-फुरंतउरकडग" मोडणामेडणाहि" बद्धा य नीससंता, सीसावेढ - ऊरुयाल-चप्पडगसंधिबंधण" - तत्तसलागसूइयाकोडणाणि तच्छणविमाणणाणि य खार-कडुय-तित्त-नावण-जायण-कारणसयाणि बहुयाणि पावियंता, उरखोडीदिन्नगाढपेल्लण-अट्ठिकसंभग्ग-सपंसुलिगा", गल-कालकलोहदंड उर-उदर-वत्थि-पट्ठि-परिपीलिता, मच्छंत-हियय-संचुण्णियंगमंगा। १३. प्राणत्तीकिकरहि केति अविराहिय-वेरिएहिं जमपुरिस-सन्निहेहिं पहया ते तत्थ मंदपुण्णा, चडवेला-वज्झपट्ट-पाराइ-छिव-कस-लत-वरत्त-वेत्त-प्पहारसयतालियंगमगा, किवणा५ लंबतचम्म-वण-वेयण-विमुहियमणा, घणकोट्टिम-नियल"जयलसंकोडिय-मोडिया य कीरति निरुच्चारा, एया अण्णा य एवमादीओ वेयणाप्रो पावा 'पावेंति अदंतिदिया“ वसट्टा बहुमोहमोहिया परधणम्मि लुद्धा १. तेहि (क)। मोटनानं डनाभ्यामित्येतदुत्तरत्र योज्यते २. भेसणगाभिभूया (वृ); भेसणगभयाभिभूता । (वृपा)। ११. मोडणाहिं (ख, ग, घ, च)। ३. नियल (ख, ध, च)। १२. गुरुयाल (क); ऊरुयावल (वृपा)। ४. वरत्ता (ख)। १३. चप्पडसंधि° (ख, घ, च)। ५. गोमिक (क)। १४. सपंसुलिग्गा (क)। ६. भोडणेहिं (ख, घ, च)। १५. इह थकारस्य छकारादेशो छान्दसत्वात ७. कीलग (च)। (व)। ८. जूय (ग)। १६. किविणा (क)। ६. उद्धपुरीय (क, वृपा)। १७. नियड (ख)। १०. इह प्रथमाबहुवचनलोपो दृश्यस्ततश्च १८. पावंतदंतिदिया (ख, घ)। Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अभयण ( तइयं आसवदारं ) फासिंदिय विसय तिव्वगिद्धा, इत्थिगय - रूव - सद्द-रस-गंध- इट्ठ-रति-महितभोगतन्हाइया य धणतोसगा गहिया य जे नरगणा ॥ १४. पुणरवि ते कम्मदुव्वियड्डा उवणीया रायकिकराणं तेसिं वधसत्थगपाढयाणं विलउलीकारकाणं लंचसय गेहगाणं कूड - कवड - माया - नियडि प्राय रण- पणिहिवंचण विसारयाणं बहुविहन लियसयजंपकाणं परलोकपरम्मुहाणं निरयगतिगामियाणं || १५. तेहिं य प्राणत्त-जीयदंडा तुरियं उग्घाडिया पुरवरे सिंघाडग-तिय- चउक्कचच्चर-चउम्मुह-महापह- पहेसु वेत्त-दंड-लउड-कटु-लेट्ठ- पत्थर-पणालिपणोल्लि मुट्ठि-लया-पाद-पहि-जाणु- कोप्पर-पहारसंभग्ग-महियगत्ता अट्ठारसकम्मकारणा' जाइयंगमंगा कलुणा सुक्कोट्ठकंठगलकतालुजिब्भा जायंता पाणीयं विगयजीवियासा तहादिता वरागा तंपि य ण लभंति वज्झपुरिसेहिं धाडियंता ॥ १६. तत्थ य खरफरुसपडहघट्टित-कूडग्गह- गाढरुट्ठनिसट्टपरामट्ठा वज्झकर कुडिजुयनियत्था, सुरतकणवीर- गहिय- विमुकुल' - कंठे गुणवज्भदूत-प्राविद्ध-मल्लदामा मरणभयुप्पण्ण सेयमाय तणेहुत्तुपियकिलिन्नगत्ता चुण्णगुंडियसरीरा रयरेणुभरियकेसा कुसुंभगोक्खिणमुद्धया' छिण्णजीवियासा घुण्णंता वज्झपाणिपीता तिलतिलं चेव छिज्जमाणा सरीरविक्कित्त' - लोहिमोलित्त कागणिमसाणि खावियंता पावा खरकरसह तालिज्जमाणदेहा वातिकनरनारिसंपरिवुडा पेच्छिज्जंता य नागरजणेण, वज्झनेवत्थिया पणेज्जंति नयरमज्भेण, किवणकलुणा प्रत्ताणा असरणा अणाहा अबंधवा बंधुविष्षहीणा विपेक्खता दिसोदिसिं, मरणभयुव्विग्गा आघायण-पडिदुवार- संपाविया अण्णा सूलग्ग -विलग्ग - भिण्णदेहा ॥ १. तरियं (क, ग, घ ) । २. मथि ० ( क, ख ) | ३. चोरः चोरापको मन्त्री, अन्नदः स्थानदश्चैव, भेदज्ञः काणकक्रयी । अमार्गदर्शन भलनं कुशलं तर्जा, चोरः सप्तविधः स्मृतः ॥ १ ॥ राजभागोऽवलोकनम् । शय्या, पदभङ्गस्तथैव च ॥ २॥ विश्रामः पादपतनं, आसनं गोपनं तथा । खण्डस्य खादनं चैव, ६६३ पद्याऽग्न्युदकरज्जूना, तथाऽन्यमाहाजिकम् ||३|| प्रदानं ज्ञानपूर्वकम् । एताः प्रसूतयो ज्ञेया, अष्टादश मनीषिभिः ॥ ४ ॥ ( वृ) ४. तहातिता (क, च) | ५, विमुक्कल (ख, च ) | ६. कुसुंभगोखिन्न • (क); कुसुमगोखण्ण मुद्धया (क्व ); कुसुंभगोक्किन्न ० ( क्व ) । ७. वज्भयाणभीया (क, वृपा) । ८. सरीरविक्कित ( ख, ग ); सरीरविक्कत (घ, च) । Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ पण्हावागरणाइ १७. ते य तत्थ कीरंति परिकप्पियंगमंगा, उल्लंबिज्जति रुक्खसालेहिं केई कलुणाई विलवमाणा, अवरे चउरंग-धणियबद्धा पव्वयकडगा पमुच्चंते दूरपात-बहुविसमपत्थरसहा, अण्णे य गयचलण-मलण-निमद्दिया कीरंति पावकारी, अटारसखंडिया य कीरंति मुंडपरसूहि, केई उक्कत्तकण्णोट्ठनासा' उप्पाडियनयणदसणवसणा जिब्भंछिय-छिण्णकण्णसिरा पणिज्जते', छिज्जते य असिणा, निव्विसया छिण्णहत्थपाया य पमुच्चंते, जावज्जीवबंधणा' य कीरंति केइ परदव्वहरणलुद्धा कारग्गलनियलजुयलरुद्धा चारगाए-हतसारा सयणविप्पमुक्का मित्तजणनिरक्कया निरासा बहुजणधिक्कारसद्दलज्जाविता अलज्जा' अणुबद्धखुहापरद्धा' सीउण्हतण्हवेयणदुहट्टघट्टिय-विवण्णमुह-विच्छवीया विहलमइलदुब्बला किलता कासंता वाहिया य प्रामाभिभूयगत्ता परूढनहकेसमंसुरोमा छग-मुत्तम्मिणियगम्मि खुत्ता तत्थेव मया अकामका बंधिऊण पादेसु कड्डिया खाइयाए छुढा ॥ १८. तत्थ य वग-सुणग-सियाल-कोल-मज्जारवंद-संदंसगतुंड-पक्खिगणविविहमुहसय विलुत्तगत्ता कय-विहंगा॥ १६. केइ किमिणा य कुथितदेहा अणिट्ठवयणेहिं सप्पमाणा-सुठुकयं जं मउति पावो, तुद्वेण जणेण हम्ममाणा" लज्जावणका य होंति सयणस्सवि दीहकालं मया संता॥ पुणो परलोगसमावण्णा नरगे गच्छंति निरभिरामे अंगारपलित्तककप्प-अच्चत्थसीतवेदण-अस्सामोदिण्ण-सततदुक्खसयसमभिदुते ॥ ततोवि उव्वट्टि या समाणा पुणोवि पवज्जति तिरियजोणि । तहिपि निरयोवम" अणुभवंति वेयणं ते ॥ २२. अणंतकालेण जति नाम कहिंचि मणुयभावं लभंतिणेगेहि णिरयगतिगमण तिरियभव-सयसहस्स-परियट्टएहि । तत्थवि य भवंतऽणारिया नीचकुलसमुप्पण्णा आरियजणेवि लोगवज्झा तिरिवखभूता य अकुसला कामभोगतिसिया जहिं १. पमुच्चति (ख, घ)। ८. ° तण्हा ° (क)। २. उविखत्त ° (ख); उविकत्त° (घ, च)। ६. संडास तुंड (क, घ, च)। ३. प्रणीयन्ते आघातस्थानमिति गम्यते (व)। १०. भण्णमाणा (क)। ४. जावज्जीय ° (क)। ११. निरओवमं (ख)। ५. निरिक्कया (क, ग)। १२. अणुहवंति (क, घ)। ६. अणज्जा (क)। १३. लहंति (ख, घ, च)। ७. ° पारद्ध (ख, ग, वृ); परद्ध (घ, वृपा)। १४. परियहिं (ग)। Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (तइयं आसवदार) निबंधति निरयवत्तिणि', भवप्पवंचकरण-पणोल्लि', पुणोवि 'संसार-णेमे' धम्मसुति-विवज्जिया अणज्जा कूरा मिच्छत्तसुति-पवण्णा य होंति एगंतदंडरुइणो, वेढेता कोसिकारकीडो व्व अप्पगं अट्ठकम्मतंतु-घणबंधणेणं ।। २३. एवं नरग-तिरिय-नर-अमर-गमणपेरंतचक्कवालं जम्मणजरमरणकरण गंभीरदूक्ख-पखुभियपउरसलिलं संजोगवियोगवीची'-चितापसंगपसरिय-वहबंधमहल्लविपुलकल्लोल-कलुणविलवित-लोभकलकलितबोलबहुलं अवमाणणफेणतिव्वखिसण-पुलंपुलप्पभूयरोगवेयण-पराभवविणिवात--फरुसधरिसणसमावडियकढिणकम्मपत्थर - तरंगरंगत - निच्चमच्चुभय - तोयपटुं कसायपायाल-संकुलं भवसयसहस्सजलसंचयं अणंतं उव्वेयणयं अणोरपारं महब्भयं भयंकरं पइभयं अपरिमियमहिच्छ-कलुसमतिवाउवेगउद्धम्ममाण-प्रासापिवासपायाल-कामरतिरागदोसबंधण-बहुविहसंकप्पविपुलदगरयरयंधकार, मोहमहावत्तभोगभममाणगुप्पमाणव्वलंतबहगब्भवास - पच्चोणियत्तपाणिय - पधावितवसणसमावण्णरुण्णचंडमारुयसमाहयाऽमणुण्णवीचोवाकुलित - भंगफुट्टतनिट्ठकल्लोलसंकुलजलं, पमायबहुचंडदुटुसावयसमाहय -उठायमाणगपूरघोरविद्धंसणत्थबहुलं, अण्णाणभमंतमच्छपरिहत्थ - अनिहुतिदियमहामगरतुरियचरियखोखुब्भमाण - संतावनिच्चय - चलतचवलचंचल-अत्ताणाऽसरणपुवकयकम्मसंचयोदिण्णवज्जवेइज्जमाण-दुहसयविपाकघुण्णतजलसमूह, इड्डिरससायगारवोहारगहियकम्मपडिबद्धसत्त' - कडिज्जमाणनिरयतलहुत्तसण्ण विसण्णबहुलं, अरइरइभयविसायसोगमिच्छत्तसेलसंकडं, अणातिसंताणकम्मबंधण किलेसचिक्खल्लसुदुत्तारं, अमरनरतिरियनिरयगतिगमणकुडिलपरियत्तविपुलवेलं, हिंसालय - अदत्तादाण - मेहुणपरिग्गहारंभ-करणकारावणाणुमोदण-अट्ठाविहअणि?कपिडित-गुरुभारोक्कंतदुग्गजलोघदूरणिवोलिज्जमाण'-उम्मग्गनिमग्गदुल्लभतलं, सारीरमणोमयाणि १. °वत्तणि (ख, ग, घ, च) । त्ययादिति'-वृत्तिकृता विवरणमिदं व्याख्या२. पणोल्लि-प्रणोदीनि, अत्र द्वितीयाबहुवचन- गतमूलपदमाश्रित्य कृतम् । लोपो दृश्यः (वृ)। ४. जम्मजरा° (ग, च)। ३. संसारणेममूले (क, ख, घ); संसारावत्त- ५. वीई (क); वीति (ख, घ)। णेममूले (ग, च): वृत्तिकृता 'नेम त्ति मूलं' ६. पबाहिय ° (वृपा)। इति व्याख्यातम् । अनेन ज्ञायते मूलमिति ७. पवात (क); पम्मात ० (ख, ग, घ)। पदं व्याख्याङ्गमस्ति, न तु मूलपाठाङ्गम् । ८. °वेज्जमाण (ख, वृ)। उत्तरकालीनादर्शषु अस्य पदस्य मूलपाठे ६. गारवापहार ° (ख)। समावेशो जातः। 'इह च मलाइति वाच्ये १०. अदत्तदाण (क, ख, ग, घ)। मल इत्युक्त प्राकृतत्वेन लिङ्गव्य- ११. पोलिज्जमाण (क. ग)। Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ पावागरणाई दुक्खाणि उप्पियंता, सातस्सायपरितावणमयं उब्वुड्डुनिवडुयं करेंता, चउरंतमहंतमणवयग्गं रुद्दं संसारसागरं अट्ठियप्रणालंबणपतिठाणमप्पमेयं, चुलसीति - जोणिसय सहस्सगुविलं, प्रणालोकमंधकार, प्रणतकालं निच्चं उत्तत्थ-सुण्ण-भयसण संपत्ता वसंत उव्विग्गवासवसहिं || २४. जहि-जहिं प्राउयं निबंधंति पावकारी बंधवजण - सयण मित्तपरिवज्जिया अट्ठा भवंतऽणादेज्ज - दुब्विणीया कुट्ठाणासण कुसेज्ज-कुभोयणा सुइणो कुसंघयण-कुप्पमाण-कुसंठिया कुरूवा बहुकोह -माण - माया - लोभा बहुमोहा धम्मसण्ण सम्मत्त - परिभट्ठा' दारिद्दोवद्दवाभिभूया, निच्चं परकम्मकारिणो जीवत्थ रहिया किविणा परपिंडतक्कका दुक्खलद्धाहारा ग्ररस - विरस- तुच्छकयकुच्छिपूरा, परस्स पेच्छंता रिद्धिसक्कार भोयणविसेस - समुदयविहिं निदंता अप्पकं कयंत च परिवयंता इह य' पुरेकडाई कम्माई पावगाई, विमणा सोए उज्झमाणा परिभूया होंति सत्तपरिवज्जिया य, छोभा सिप्प-कलासमयसत्य - परिवज्जिया जहाजायपसुभूया प्रचियत्ता णिच्चनीयकम्मोवजीविणो लोयकुच्छणिज्जा मोहमणोरह - निरासबहुला ग्रासापास पडिबद्धपणा प्रत्थोपायाण - कामसोक्खे य लोयसारे होंति प्रपच्चंतगा य सुट्ठवि य उज्जमंता, तद्दिवसुज्जुत्त-कम्मकयदुक्ख संठविय सित्थ पिंड-संचयपरा खोणदव्वसारा, निच्चं अधुवधण धण्ण- कोस- परिभोग-विवज्जिया, रहिय-काम-भोग - परिभोग- सव्वसोक्खा पर सिरिभोगोवभोगनिस्साण :- मग्गणपरायणा वरागा प्रकामिकाए विर्णेति दुक्खं, णेव सुहं णेव निव्वुति उवलभंति, प्रच्चंत विपुल दुक्ख सय-संपलित्ता परस्स दव्वेहिं जे अविरया ॥ २५. एसो सो प्रदिण्णादाणस्स फलविवागो इहलोश्रो पारलोइयो अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भस्रो बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो प्रसाश्रो वाससहस्सेहिं मुच्चति न य वेत्ता प्रथि हु मोक्खोत्ति - एवमाहंसु णायकुलणंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो', कहेसी य प्रदिण्णादाणस्स फलविवागं ॥ निगमण-पदं २६. एयं तं ततियंपि श्रदिण्णादाणं' हर दह-मरण-भय-कलुस - तासण-परसंतिकऽभेज्ज १. आउ (क, ख, ग ) । २. मट्ठा ( ख, ग, घ ) । ३. किवणा ( ख, ग, घ ) । ४. X (ख, घ, च) । ५. पावकारिण: (वृपा) - ६. ० निसण्ण ( ख, ग ) । ७. महभयो (ख, च ) | ८. वरवीर (ख, घ, च) 1 C. अदिण्णदास (क, ख, ग, घ ) । १०. अदिष्णदाणं (क, ख, ग, घ, च) । Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (तइयं आसवदार) लोभमूलं' •काल - विसम - संसियं अहोऽच्छिण्णतण्ह - पत्थाण-पत्थोइमइयं अकित्तिकरणं अणज्ज छिद्द मंतर-विधुर-वसण-मग्गण-उस्सव-मत्त-प्पमत्त-पसुत्तवंचणाखिवण - घायणपर - अणिहुयपरिणाम - तक्करजणबहुमयं अकलुणं रायपुरिसरक्खियं सया साहुगरहणिज्जं पियजण-मित्तजण-भेदविप्पीतिकारक रागदोसबहुलं पुणो य उप्पूर-समर-संगाम-डमर-कलि-कलह-वेहकरणं दुग्गतिविणिवायवड्डणं भव-पुणब्भवकरं • चिरपरिगतमणुगतं दुरंतं । ततियं अहम्मदारं समत्तं । --त्ति बेमि ॥ (क, ग); ०ऽभिज्ज° २. सं० पा०-एवं जाव चिरपरिगत । १. ०भिज्जणा (ख, घ, च)। Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं चउत्थं पासवदारं उक्खेव-पदं १. जंबू ! अबंभं च च उत्थं ----सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स पत्थणिज्ज, पंक-पणग' पासजालभूयं, थी-पुरिस-नपुंसगवेदचिधं तव-संजम-बंभचेर-विग्धं भेदाययणबहुपमादमूलं कायरकापुरिससेवियं सुयणजणवज्जणिज्जं उड्ढे नरग-तिरियतिलोक्कपइट्ठाणं, जरा-मरण-रोग-सोगबहुलं वध-बंध-विधाय-दुविघायं दंसण चरित्तमोहस्स हेउभूयं चिरपरिचियमणुगयं' दुरंतं । चउत्थं अधम्मदारं ।। प्रबंभस्स तीसनाम-पदं २. तस्स य णामाणि गोण्णाणि इमाणि होति तीसं, तं जहा-१. अभं २. मेहणं ३. चरंत ४. संसग्गि ५. सेवणाधिकारो ६. संकप्पो ७. बाहणा' पदाणं ८. दप्पो ६. मोहो १०. मणसंखोभो ११. अणिग्गहो १२. वुग्गहो १३. विघाओ १४. विभंगो १५. विब्भमो १६. अधम्मो १७. असीलया १८. गामधम्मतत्ती १६. रती २० रागो' २१ कामभोग-मारो २२. बेरं २३ रहस्सं २४. गुज्झं २५. बहुमाणो २६. बंभचेर-विग्घो २७. वावत्ति २८. विराहणा २६. पसंगो ३०. कामगुणो त्ति। अवि य तस्स एयाणि एवमादीणि नामधेज्जाणि होति तीसं ।। १. पणय (ग)। २. भेदायण (ख, ग, घ, च)। ३. चिरपरिगय ° (क, ख, ग, घ, च, वृपा)। ४. चउत्थं (व); चरंतं (वपा)। ५. पाहणा (क)। ६. विम्गहो (ख, च)। ७. रागचिंता (क, ख, ग, घ, च वृपा)। ६६८ Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अग्झपणं (च उत्थं पासवदार) सुरगणस्स प्रबंभ-पदं तं च पुण निसेवंति सुरगणा समच्छरा मोह-मोहिय-मती, असुर-भयग'-गरुलविज्जु-जलण-दीव-उदहि-दिस-पवण-थणिया। अणवण्णिय-पणवण्णिय-इसिवादिय-भूयवादियकंदिय-महाकंदिय-कहंड-पतगदेवा', पिसाय-भूय-जक्ख-रक्खसकिन्नर-किंपुरिस - महोरग - गंधव्व - तिरिय- जोइस-विमाणवासि-मणुयगणा, जलयर-थलयर-खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता वितण्हा कामभोगतिसिया.तण्हाए बलवईए महईए समभिभया गढिया य अतिमूच्छिया य, अबंभे प्रोसण्णा, तामसेण भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंति 'अण्णोण्णं सेवमाणा॥ चक्कवट्टिस्स प्रबंभ-पदं ४. भुज्जो असुर-सुर-तिरिय-मणुय-भोगरति-विहार-संपउत्ता य चक्कवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह -णग-णगर-णियम-जणवय-पुरवरदोणमुह-खेड-कब्बड-मडंब-संबाह-पट्टण-सहस्समंडियं थिमिय-मेयणियं एगच्छत्तं ससागरं भंजिऊण वसुहं नरसीहा नरवई नरिंदा नरवसभा मरुय-वसभकप्पा, अब्भहियं रायतेय-लच्छीए दिप्पमाणा सोमा रायवंस-तिलगा। रवि-ससि-संख-वरचक्क - सोत्थिय - पडाग-जव-मच्छ-कुम्म-रहवर-भग-भवणविमाण-तुरय-तोरण-गोपुर-मणि-रयण-नंदियावत्त-मुसल-णंगल-सुरइयवरकप्परुक्ख-मिगवति-भद्दासण-सुरुचि - थूभ-वरमउड-सरिय - कुंडल-कुंजर-वरवसभदीव-मंदिर-गरुल-द्धय-इंदकेउ - दप्पण - अट्ठावय - चाव-बाण-नक्खत्त-मेह-मेहलवीणा-जुग-छत्त-दाम-दामिणि-कमंडलु-कमल-घंटा-वरपोत-सुइ-सागर-कुमुदगारमगर-हार-गागर-नेउर-णग-णगर-वार- किन्नर - मयुर - वररायहंस - सारसचकोर-चक्कवागमिहुण-चामर - खेडग -पव्वीसग-विपंचि-वरतालियंट-सिरियाभिसेय-मेइणि-'खग्ग-ग्रंकूस-विमलकलस -भिंगार-वद्धमाणग-पसत्थ-उत्तमविभत्तवर-पुरिसलक्खणधरा। बत्तीसं रायवरसहस्साणुजायमग्गा चउसट्ठिसहस्सपवरजुवतीण णयणकता १. भुयंग (क)। ५. अण्णमण्णं ° (च); अण्णोण्णस्स सेवणया २. दिसि (ख, च)। ___ (वृ); अण्णोण्णं सेवमाणा (वृपा)। ३. पतंग० (क, ख, ग, घ, च)। ६. भरध (क, ग)। ४. अणुमुक्का (क, ख, ग, घ, च); आदर्शेषु ७. तुरत (क); तुरग (ख, घ, च)। एतत् पदं लभ्यते. किन्तु नैतत् शुद्धमस्ति। ८. सुरुवि (क, घ, च) उन्मुक्तपदस्य प्राकृतरूपं 'उम्मुक्क' इति ६. खग्गंकुस (क, ख, ग, घ, च)। जायते । न उम्मुक्का=अणुम्मुक्का। १०. वरराय ° (क, ग)। Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० पण्हावागरणाई रत्ताभा पउमपम्ह - कोरंटगदाम - चंपक-सुतवितवरकणकनिहसवण्णा सुजायसव्वंगसंदरंगा महग्घ-वरपट्टणग्गय - विचित्तराग-एणि - पेणि-णिम्मिय-दगल्लवरचीणपट- कोसेज्ज-सोणीसत्तक - विभसियंगा वरसरभिगंध - वरचण्णवासवरकुसुमभरिय-सिरया' कप्पिय-छेयायरियसुकय-रइतमाल-कडगंगय-तुडियपवरभूसण-पिणद्धदेहा एकावलिकंठसुरइयवच्छा पालंबपलंवमाणसुकयपडउत्तरिज्जमुद्दियापिंगलंगुलिया उज्जल-नेवत्थ-रइय-चिल्लग-विरायमाणा तेएण दिवाकरोव्व दित्ता सारय-नवथणिय-महुर-गंभीर-निद्धघोसा उप्पण्णसमत्तरयणचक्करयणप्पहाणा नवनिहिवइणो समिद्धकोसा चाउरता चाउराहिं सेणाहिं समणुजाइज्जमाणमग्गा तुरगवती गयवतो रहवती नरवती विपुलकुलविस्सुयजसा सारयससिसकल-सोमवयणा सूरा तेलोक्क-निग्गय-पभावलद्धसद्दा समत्तभरहाहिवा नरिंदा, ससेलवण-काणणं च हिमवंत-सागरंत धीरा भुत्तूण भरहवासं, जियसत्तू पवररायसीहा पुव्वकडतवप्पभावा निविट्ठ-संचियसुहा अणेगवाससयमायुवंतो भज्जाहि य जणवयप्पहाणाहिं लालियंता अतुल-सद्दफरिस-रस-रूव-गंधे य अणुभवित्ता तेवि उवणमंति मरणधम्म, 'अवितित्ता कामाण ॥ बलदेव-वासुदेवस्स प्रबंभ-पदं __ भुज्जो बलदेव-वासुदेवा य पवरपुरिसा महाबलपरकम्मा महाधणुवियड्डका महासत्तसागरा दुद्धरा धणुद्धरा नरवसभा रामकेसवा भायरो सपरिसा वसुदेवसमुद्दविजयमादियदसाराणं, पज्जुण्ण - पयिव' - संब-अनिरुद्ध - निसह - उम्मुयसारण-गय-सुमुह-दुम्मुहादीण जायवाणं अट्ठणावि कुमारकोडीणं हिययदयिया, देवीए रोहिणीए देवीए देवकीए य आणंदहिययभावनंदणकरा सोलस रायवरसहस्साणुजातमग्गा सोलसदेवीसहस्स-वरणयण-हिययदयिया णाणामणिकणग-रयण-मोत्तिय-पवाल-धण-धन्नसंचय - रिद्धि - समिद्धकोसा, हय-गय-रहसहस्ससामी गामागर - णगर-खेड - कब्बड - मडंब - दोणमुह-पट्टणासम-संबाहसहस्सथिमियनिव्वयपमूदितजण - विविहसस्सनिष्फज्जमाणमेइणि - सर-सरियतलाग-सेल-काणण-प्रारामुज्जाण-मणाभिरामपरिमंडियस्स दाहिणड्डवेयड्डगिरि विभत्तस्स लवणजलहिपरिगयस्स छव्विहकालगुणकमजुत्तस्स" अद्धभरहस्स १. पएणि (क, ख, घ, च)। ७. अतित्ता कामभोगाणं (क)। २. खोमिय (वृपा) ८. भुज्जो भुज्जो (ग)। ३. सिरिया (क); सिरसा (च)।। ६. पयंब (ख, घ); पइंव (ग) । ४. कंडलकडगंगय (क); कुंडलंगय (वृपा)। १०. सास ° (क, ग, घ)। ५. सागर (वृपा)। ११. °काम जुत्तस्स (ख, ग, घ, च)। ६. संचय° (क, ख, घ)। Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (च उत्थं आसवदारं) ६७१ सामिका, धीरकित्तिपुरिसा पोहबला अइबला अनिया अपराजियसत्तमद्दणा रिपुसहस्स-माणमहणा साणुक्कोसा अमच्छरी अचवला अचंडा मितमंजुलपलावा 'हसिय-गंभीर-महुरभणिया अब्भुवगयवच्छलासरण्णा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुम्माण-पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगा ससि-सोमागार-कंतपियदंसणा अमरिसणा' पयंडडंडप्पयार-गंभीर-दरिसणिज्जा तालद्धय-उन्विद्धगरुलकेऊ बलवग-गज्जंत-दरित - दप्पित - मूट्रियचाणरमरगा रिट्रवसभघाती-केसरिमहविप्फाडगा' दरितनागदप्पमहणा जमलज्जुणभंजगा महासउणि-पूतणरिऊ कंसमउडमोडगा जरासंध-माणमहणा। तेहि य 'अविरल-सम-सहिय-चंदमंडलसमप्पभेहिं सूरमिरीयिकवयं विणिम्मुयंतेहि सपतिदंडेहिं आयवत्तेहि धरिज्जतेहिं विरायंता। ताहि य पवरगिरिगुहरविहरणसमुद्धियाहिं निरुवहयचमर-पच्छिमसरीरसंजाताहिं अमइल - सियकमल - विमुकुलुज्जलित-रयतगिरिसिहर-विमलससिकिरणसरिस-कलहोय-निम्मलाहिं पवणाहयचवलचलिय-'सललिय-पणच्चिय-- वीइपसरिय-खीरोदगपवरसागरुप्पूरचंचलाहिं माणससरपसर-परिचियावासविसदवेसाहिं कणगगिरिसिहर-संसिताहिं प्रोवायुप्पाय चवलजयिणसिग्घवेगाहिं हंसवधूयाहिं चेव कलिया", नाणामणिकणग-महरिहतवणिज्जुज्जलविचित्तडंडाहिं सललियाहि नरवतिसिरिसमुदयप्पकासणकरीहिं" वरपट्टणुग्गयाहिं समिद्धरायकुल-से वियाहि कालागुरुपवर - कुंदुरुक्क - तुरुक्क - धूववसवास १. महुरपरिपुण्णसच्चवयणा (वृपा)। लियदंडसज्जिएहिं वयरामय-वत्थि-णि उण२. अमसणा (क, ग, च)। जोइय - अट्ठसहस्सवरकंचणसलागनिम्मिएहिं ३. केसिमुह (वपा)। सुविमलरयय सुटठच्छइएहिं णि उणोविय४. मरीयि ° (ख); सुचिमरीयि (वपा)। मिसिमिसिंत-मणि-रयण-सूर-मंडल-वितिमिर५. वाचनान्तरे पुनरातपत्रवर्णकं एवं दृश्यते- कर-निग्गय-पडिहय-पूणरवि पच्चोवयंतचंचल अब्भपडलपिंगलुज्जलेहिं अविरल-सम-सहिय- मरीइकवयं विणिम्मुयतेहिं (वृ) । चंदमंडलसमप्पभेहिं मंगलसयभक्ति-च्छेय- ६. कुहर ० (ख, ग, घ, च)। विहरण चित्तियखिखिणि - मणि - हेमजाल - विरइय- विचरणं गवामिति गम्यते (व)। परिगय-पेरंत-कणय-घंटिय-पयलिय-खिणिखि- ७. आमलित (पा)। णित-सुमहुर-सुइसुह-सद्दालसोहिएहिं सपयरग- ८. सललिय-पवत्त (७)। मुत्तदाम-लंबंतभूसणेहिं नरिंद-वामप्पमाण- ६. वीयि ° (क)। रुदपरिमंडलेहि सीयायव-वायवरिस-विस- १०. वासुदेव-बलदेवा इति प्रक्रमः (वृ)। दोसणासएहि तमरय-मलबहुल-पडल-धाडण- ११. ०प्पगासण ° (ग)। पहाकरेहिं मुद्धसुहसिवच्छायसमणुबद्धेहिं वेरु Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७२ पण्हावागरणाई विसद'-गंधुद्धयाभिरामाहिं चिल्लिकाहिं' उभयोपासंपि चामराहि उक्खिप्पमाणाहिं सुहसीतलवातवीतियंगा। अजिता अजितरहा हल-मुसल-कणगपाणी' संख-चक्क-गय-सत्ति-णंदगधरा पवरुज्जलसुकय-विमलकोत्थुभ-तिरीडधारी कुंडल उज्जोवियाणणा पुंडरीयणयणा एगावलीकंठरइयवच्छा सिरिवच्छसुलंछणा वरजसा सव्वोउय-सुरभिकुसुम-सुरइयपलंब-सोहंत-वियसंत-चित्तवणमालरइयवच्छा, अट्ठसयविभत्तलक्खण-पसत्थसुंदरविराइयंगमंगा मत्तगयरिंद-ललियविक्कम-विलसियगती कडिसुत्तगनील-पीत-कोसेज्जवाससा पवरदित्ततेया सारयनवथणिय-महुरगंभीरनिद्धघोसा नरसीहा सीहविक्कमगई अत्थमिय-पवररायसीहा सोमा वारवइपुण्णचंदा पुवकडतवप्पभावा" निविट्ठसंचियसुहा अणेगवाससयमायुवंतो भज्जाहि य जणवयप्पहाणाहिं लालियंता अतुलसद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे अणुभवेत्ता ते वि उवणमंति मरणधम्म, अवितित्ता कामाणं ।। मंडलिय-नरवरेंदस्स प्रबंभ-पदं ६. भुज्जो मंडलिय-नरवरेंदा सबला सतेउरा सपरिसा सपुरोहिय-अमच्च दंडनायक-सेणावति-मंतनोतिकुसला नाणामणि रयण-विपुलधण-धन्न-संचयनिही समिद्धकोसा रज्जसिरि विपुलमणुभवित्ता विक्कोसंता बलेण मत्ता ते वि उवणमंति मरणधम्म, अवितित्ता कामाणं ।। जुगलियाणं लावण्णनिरूवणपुरस्सरं अबंभ-पदं ७. भज्जो उत्तरकुरु-देवकुरु-वणविवर-पायचारिणो नरगणा भोगुत्तमा भोगलक्खण धरा भोगसस्सिरीया पसत्थसोम्मपडिपुण्णरूवदरिसणिज्जा' सुजात-सव्वंगसंदरंगा रत्तुप्पलपत्तकंत-कर-चरण-कोमलतला सुपइट्ठिय-कुम्मचारुचलणा अणुपुव्वसुसंहयंगुलीया" उन्नततणुतंबनिद्धनक्खा संठियसुसिलिट्ठगूढगोंफा एणी-कुरुविंद-वत्त-वट्टाणुपुव्वजंघा समुग्ग-निसग्गगूढजाणू५ वरवारणमत्त-तुल्लविक्कम-विलासितगती वरतुरग-सुजायगुज्झदेसा पाइण्णहयव्व १. विसय (क, घ, च)। २. चिल्लकाहिं (क, ग)। ३. चकक० (ख, ग)। ४. गोथभ (क, घ, च)। ५. अत्थमिया (क, ख, ग, घ, च, वृ); अत्थमिय (वृपा)। ६. पुण्णयंदा (क, ख, घ)। ७. पुवकय ° (ग, च)। ८. निविड° (ग)। ६. ° सोम ° (ख, ग, घ, च)। १०. ° सुमाहयं ° (क); आणुपुव्वीसुजायपीवरंगु लीया (वृपा) । ११. निमुग्ग ° (वृपा)। Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (चउत्थं आसवदार) ६७३ निरुवलेवा पमुइयवरतुरग-सोह-अतिरेगवट्टियकडी' साहतसोणंद-मुसल-दप्पणनिगरियवरकणग-च्छरुसरिस-वरवइरवलियमझा उज्जुग-सम-सहिय-जच्चतणु-कसिण-णिद्ध-आदेज्ज-लडह-सूमाल-मउयरोमराई झस-विहग-सुजातपीणकुच्छो झसोदरा पम्हविगडनाभा सन्नतपासा संगयपासा सुंदरपासा सुजातपासा मितमाइय-पीणरइयपासा अकरंडुय-कणगरुयगनिम्मल-सुजाय-निरुवहयदेहधारी कणगसिलातल-पसत्थ-समतल-उवइय-विच्छिण्णपिहुलवच्छाजुयसन्निभपीणरइयपीवरपउद्य-संठियसुसिलिट्टविसिट्टलढसुनिचितघणथिरसुबद्धसंधी पुरवरफलिहवट्टियभुया भुयईसरविपुलभोग-प्रायाणफलिह-उच्छू ढदीहबाहू रत्ततलोवइयमउय-मसल-सुजायलक्खण-पसत्थ-अच्छिद्दजालपाणी पीवरसुजायकोमलवरंगुली तंबतलिणसुइरुइलनिद्धनक्खा निद्धपाणिलेहा चंदपाणि नेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्कपाणिलेहा दिसासोवत्थियपाणिलेहा' 'रवि-ससि-संखवरचक्क-दिसासोवत्थिय-विभत्त-सुविरइय-पाणिलेहा" वरमहिस-वराह-सीहसदुल-रिसह-नागवर-पडिपुण्णविउलखंधा चउरंगुलसुप्पमाण-कंबुवरसरिसगीवा अवट्ठिय-सुविभत्त-चित्तमंसू उवचिय-मंसल-पसत्थ-सद्लविपुलहणुया प्रोयवियसिल-प्पवाल-बिंबफलसन्निभाधरोट्ठा पंडुरससिसकल-विमलसंख-गोखीर-फेणकुंद-दगरय-मुणालिया-धवलदंतसेढी अखंडदंता अप्फुडियदंता अविरलदंता सुणिद्धदंता सुजायदंता एगदंतसेढिव्व अणेगदंता हुयवहनिद्धंतधोयतत्ततवणिज्जरत्ततलतालुजीहा गरुलायत-उज्जुतुंगनासा अवदालियपोंडरीयनयणा कोकासियधवलपत्तलच्छा आणामियचावरुइल-किण्हब्भराजिसंठिय-संगयायय-सजाय भुमगा अल्लीणपमाणजुत्तसवणा सुसवणा पीणमंसलकवोलदेसभागा अचिरुग्गयबालचंदसंठियमहानिडाला उडुवतिरिव पडिपुण्णसोमवयणा छत्तागारुत्तमंगदेसा' घणनिचियसुबद्धलक्खणुण्णयकूडागारनिपिडियग्गसिरा' हुयवहनिद्धंतधोयतत्ततवणिज्ज-रत्तकेसंतकेसभूमी सामलीपोंडघणनिचियछोडिय-मिउ-विसद-पसत्थसुहुम-लक्खण-सुगंध-सुंदर-भुयमोयग-भिंग-नील - कज्जल - पहट्ठभमरगण-निद्ध १. ०कडी गंगावत्त-दाहिणावत्त-तरंगभंगूर-रवि. नास्ति । किरण-बोहियविकोसायं तपम्ह - गंभीरविगड- २. °वरफलिह (ग)। नाभा (क,ख,ग,घ,च); वृत्तिकृता किञ्चित- ३. दिसासुट्ठिय० (क)। पुरोवर्तिनः 'पम्हविगडनाभा' इति पाठस्य ४. ४ (क)। व्याख्यायां विवृतमिदम् -इदं च विशेषणं न ५. पंडर ° (क, ग, घ) । पुनरुक्तम् । पूर्वोक्तस्य नाभिविशेषणस्य ६. X (क, ख, ग)। बाहुल्येनापाठादिति (वृ)। एतेन प्रतीयते केषु ७. ° रुत्तिमंग ° (क, ग)। चिदादर्शषु नाभिवर्णकं पाठद्वयमुपलभ्यते, ८. ° सन्निभ° (क) । किन्तु बहुलेषु आदर्शेषु असो टिप्पणगतः पाठो ६. नेलग (क); नेल (ख)। Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ पण्हावागरणाई निगुरुंब-निचिय-कुंचिय-पयाहिणावत्त-मुद्धसिरया सुजात-सुविभत्त-संगयंगा लक्खणवंजणगुणोववेया पसत्थबत्तीसलक्खणधरा हंसस्सरा कुंचस्सरा दुंदुभिस्सरा सीहस्सरा 'योघस्सरा' मेघस्सरा' सुस्सरा सुस्सरनिग्घोसा वज्जरिसहनारायसंघयणा समच उरंससंठाणसंठिया छायाउज्जोवियंगमंगा छवी निरातका कंकग्गहणी कवोतपरिणामा सउणिपोस'-पिट्ठतरोरुपरिणया पउमुप्पल सरिसगंधसास-सुरभिवयणा अणुलोमवाउवेगा अवदाय-निद्ध-काला 'विग्गहिय-उण्णयकुच्छी अमयरसफलाहारा तिगाउय-समूसिया तिपलिग्रोवमट्टितीका तिण्णि य पलिग्रोवमाइं परमाउं पालयित्ता ते वि उवणमंति मरणधम्म, अवितित्ता कामाणं ॥ जुगलिणीणं लावण्णनिरूवणपुरस्सरं प्रबंभ-पदं ८. पमया वि य तेसि होंति-सोम्मा सुजाय-सव्वंग-सुंदरीनो पहाणमहिलागुणेहि जुत्ता' अतिकंत-विसप्पमाण-मउय-सुकुमाल-कुम्मसंठिय-सिलिट्ठ चरणा उज्जुमउय-पीवरसुसंहतंगुलीनो अब्भुण्णत-रतिद-तलिण-तंव-सुइ-णि द्वनक्खा रोमरहिय-वट्टसंठिअ-अजहण्ण-पसत्थ-लक्खण-अकोप्प-जंघजुयलासुणिम्मित-सुनिगूढजण्ण मंसल-पसत्थ-सुबद्ध-संधी कयलीखंभातिरेकसंठिय-निव्वणसुकुमाल-मउयकोमल-अविरल-सम-सहित-वट-पीवर-निरंतरोरू अढावयवीचिपटसंठियपसत्थविच्छिण्णपिहुलसोणी वयणायामप्पमाणदुगुणिय-विसालमंसलसुबद्धजहणवरधारिणीयो० वज्जविराइय-पसत्थलक्खणनिरोदरीयो तिवलिवलित-तणुनमियमज्झियानो उज्जुय-सम-सहिय-जच्च-तणु-कसिण-निद्ध-प्रादेज्ज-लडहसुकुमाल-मउय सुविभत्तरोमराई' गंगावत्तग-पदाहिणावत्त-तरंगभंग-रविकिरणतरुण-बोधितअकोसायंतपउम-गंभीरविगडनाभी अणुब्भडपसत्थजातपीणकुच्छी सन्नतपासा संगतपासा सुंदरपासा२ सुजातपासा मियमायिय-पीणरइतपासा अकरंडुय-कणगरुयगनिम्मल -सुजाय-निरुवहयगायलट्ठी कंचणकलसपमाण-सम १. उज्जस्सरा (ग)। ८. सुसाहतंगुलीओ (क, ग, घ, च)। २. मेघस्सरा ओघस्सरा (घ)। ___६. पट्ठिसंठिय (क); ° पडिसंठिय (ख, घ)। ३. वाचनान्तरे सिंहघोसादिकानि विशेषणानि १०. ० वरजहण ० (क)। पठ्यन्ते (व)। ११. रोमराती (क); ° रोमरातीओ (ग)। ४. मुद्रितवृत्ती --पसत्यच्छवि, हस्तलिखितवृत्तौ- १२. X (क, ख, ग, घ, च); सन्नतपार्वादिछवित्ति प्रशस्तत्वचः। विशेषणानि पूर्ववत् (वृ); वृत्तिसङ्केतानु५. सगुणि° (क)। सारेणासौ पाठः स्वीकृतः । ६. विग्गहितुण्णय ° (ख, ग)। १३. अकरंदुय (क, ख)। ७. संजुत्ता (क)। १४. रुयि ° (ख). रुय ° (घ)। Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७५ चउत्थं अज्झयणं (चउत्थं आसवदारं) सहिय-लट्ठचूचुयनामेलग-जमल-जुयल-वट्टियपनोहरायो भयंगअणुपुव्वतणुयगोपुच्छवट्ट-सम-संहिय-नमिय-आदेज्ज-लडहबाहा तंबनहा मंसलग्गहत्था कोमलपीवरवरंगुलीया निद्धपाणिलेहा ससि-सूर-संख-चक्क-वरसोत्थिय-विभत्त-सुविरइय-पाणिलेहा पीणुण्णयकक्खवत्थिप्पदेस-पडिपुण्णगलकवोला चउरंगुलसुप्पमाण-कबुवरसरिसगीवा मंसलसंठियपसत्थहणुया दालिमपुप्फप्पगास-पीवरपलंबकुंचितवराधरा सुंदरोत्तरोट्ठा दधि-दगरय-'कुंद-चंद-वासंतिमउल-अच्छिदृविमलदसणा रत्तुप्पल-रत्तपउमपत्त-सुकुमालतालुजीहा कणवीरमउल कुडिलऽब्भुण्णय-उज्जुतुंगनासा सारदनवकमल-कुमुत-कुवलयदलनिगरसरिसलक्खणपसत्थ-अजिम्हकंतनयणा' पानामियचावरुइल-किण्हब्भराइसंगय-सुजाय-तणुकसिण-निद्धभमगा अल्लीणपमाणजुत्तसवणा सुस्सवणा पीणमट्ठ'-गंडलेहा चउरंगुल विसाल - समनिडाला कोमुदिरयणिकरविमलपडिपुण्णसोमवदणा छत्तुन्नय-उत्तिमंगा' अकविल-सुसिणिद्ध-दीहसि रया छत्त-ज्झय-जूव-थूभ-दामिणिकमंडल-कलस-वावि-सोत्थिय-पडाग-जव-मच्छ- कुम्म-रहवर - मकरज्झय-अंकथाल अंकुस-अढावय-सुपइट-अमर-सिरियाभिसेय-तोरण- मेइणि-उदधिवर-पवरभवण-गिरिवर-वरायंस-सुल लियगय -उसभ-सीह-चामर- पसत्थबत्तीसलक्खणधरीमो हंससरिच्छगतीनो कोइल-महयरि-गिरायो कता सव्वस्स अणमयानो ववगयवलिपलितवंग-दुव्वन्न-वाधि-दोहग्ग-सोयमुक्काओ", उच्चत्तेण य नराण थोवणमूसियानो, सिंगारागारचारुवेसा सुंदर-थण-जहण-वयण-कर-चरण २. णयणा लावण्णरूवजोव्वणगणोववेया नंदणवणविवरचारिणीप्रो व्व अच्छ राम्रो उत्तरकुरुमाणुसच्छरायो अच्छेरगपेच्छणिज्जियाओ तिणि य पलिग्रोवमाई परमाउं पालयित्ता ताऽवि उवणमंति मरणधम्म, अवितित्ता कामाणं ।। प्रबंभस्स फलविवाग-पदं ६. मेहुणसण्णासंपगिद्धा य मोहभरिया सत्थेहि हणंति एक्कमेक्कं विसयविसउदीर एसु। अवरे परदारेहि" हम्मति विसुणिया धणनासं सयणविप्पणासं च पाउ १. चंद-कुंद (च)। २. अजिम्म ° (क, घ, च)। ३. पीणमट्ठसुद्ध (ख)। ४. ° वयणा (ख, घ, च)। ५. ° उत्तमंगा (ग, च)। ६. सललिय० (क, ग, वृ)। ७. सरिसगतीओ (च)। ८. अणुगयाओ (ख)। ६. वाहि (घ)। १०. दोभग्ग (घ, च)। ११. ° मुक्का (क, ख, घ)। १२. चलण (ख, च)। १३. ताओ (च)। १४. प्रवृत्ता इति गम्यते (व)। Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७६ पण्हावागरणाइ णंति । परस्स दारानो जे अविरया मेहुणसण्णसंपगिद्धा य मोहभरिया अस्सा हत्थी गवा य महिसा मिगा य मारेंति एक्कमेक्कं, मणुयगणा वानरा य पक्खी य विरुझंति, मित्ताणि' खिप्पं भवंति सत्तू, समये धम्मे गणे य भिदंति पारदारी। धम्मगुणरया य बंभयारो खणेण उल्लोट्टए' चरित्तो', जसमंतो सुव्वया य पावंति अयसकित्ति, रोगत्ता वाहिया य वड्डेति रोयवाही, दुवे य लोया दूाराहगा भवति-इहलाए चेव परलोए-परस्स दाराओ जे अविरया। १०. तहेव केइ परस्स दारं गवेसमाणा गहिया हया य बद्धरुद्धा य एवं जाव' नरगे गच्छंति निरभिरामे विपुलमोहाभिभूयसण्णा ।। ११. मेहुणमूलं च सुव्वए तत्थ-तत्थ वत्तपुव्वा” संगामा बहुजणक्खयकरा" सीयाए दोवतीए कए, रुप्पिणीए, पउमावईए, ताराए, कंचणाए, रत्तसुभद्दाए, अहिल्लि याए', सुवण्णगुलियाए, किण्णरीए, सुरूवविज्जुमतीए, रोहणीए य ॥ १२. अण्णेसु य एवमादिएसु बह्वो महिलाकएसु सुव्वंति अइक्कता संगामा गाम धम्ममूला॥ १३. 'इहलोए ताव नट्ठा"' 'परलोए वि'१२ य नट्ठा महयामोहतिमिसंधकारे घोरे, तसथावर-सुहुमबादरेसु पज्जत्तमपज्जत्तक-साहारणसरीर-पत्तेयसरीरेसु य, अंडज-पोतज-जराउय-रसज-संसेइम-समुच्छिम-उब्भिय-उववाइएसु य, नरगतिरिय-देव-माणुसेसु, जरा-मरण-रोग-सोग"-बहुले, पलिअोवम-सागरोवमाइं अणादीयं प्रणवदग्गं दीहमद चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियटृति जीवा मोहवस सण्णिविट्ठा ॥ १४. एसो सो अबंभस्स फलविवागो इहलोइलो पारलोइयो य अप्पसुहो बहुदुक्खो महन्भनो बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असानो वाससहस्सेहि मुच्चती, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य अबंभस्स फलविवागं ।। निगमण-पदं १५. एयं तं अबंभंति चउत्थं सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स पत्थणिज्ज, पंक-पणग१. राज्ञः सकासादिति गम्यते (व)। ६. अहित्तियाए (क, ख, ग, घ); अहित्रिका २. मित्ता (क, ग, घ)। अप्रतीता (वृ)। ३. उल्लट्टए (क); उल्लोट्ठए (ग)। १०. बहुओ (क, ख)। ४. चरित्ताओ (ग, च)। ११. X (क, ग, घ)। ५. अकित्ति (व); अयसकित्ति (वृपा)। १२. परलोयम्मि (ख, घ)। ६. पण्हा० ३।१०-२० । १३. X (क, ख, घ)। ७. वृत्तपुवा (ख)। १४. सं० पा०-पत्थणिज्ज एवं चिरपरि । ८. जणक्खयकरा (क, ख, ग, घ, च)। Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (चउत्थं आसवदारं) पासजालभूयं थी-पुरिस-नसगवेदचिधं तव-संजम-बंभचेरविग्घं भेदाययणबहुपमादमूलं कायरकापुरिससेवियं सुयणजणवज्जणिज्जं उड्ढं नरग-तिरियतिलोक्कपइट्ठाणं जरा-मरण-रोग-सोगबहुलं वध-बंध-विधाय-दुविघायं दसणचरित्तमोहस्स हेउभूयं ° चिरपरिचियमणुगयं' दुरंतं । चउत्थं अधम्मदारं समत्तं। -त्ति बेमि ॥ १. चिरपरिजिय ° (ग, घ); चिरपरिगय ° (वृपा) Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं पंचमं प्रासवदारं उक्खेव-पदं १. जंबू ! एत्तो' परिग्गहो पंचमो उ नियमा–णाणामणि-कणग-रयण-महरिह परिमल-सपुत्तदार-परिजण - दासी-दास - भयग-पेस-हय-गय-गो-महिस-उट्ट-खरअय-गवेलग-सीया-सगड-रह-जाण-जुग्ग - संदण - सयणासण-वाहण-कुविय-धणधण्ण-पाण-भोयण - अच्छायण - गंध-मल्ल-भायण-भवणविहिं चेव बहुविहीयं, भरहं णग-णगर-णियम-जणवय-पुरवर-दोणमुह-खेड-कब्बड-मडंब-संबाह-पट्टणसहस्समंडियं थिमियमेइणीयं, एगच्छत्तं ससागरं भुंजिऊण वसुहं अपरिमियमणंततण्हमणुगय-महिच्छसार-निरयमूलो, लोभकलिकसाय-महक्खंधो', चितासयनिचिय-विपुलसालो, 'गारव-पविरल्लियग्गविडवो', नियडि-तयापत्तपल्लवधरो, पुष्फफलं जस्स कामभोगा, प्रायासविसूरणाकलह-पकंपियग्गसिहरो, नरवतिसंपूजितो, बहुजणस्स हिययदइयो इमस्स मोक्खवर-मोत्तिमग्गस्स पलिहभूप्रो' । चरिमं अहम्मदारं ॥ परिग्गहस्स तीसनाम-पदं २. तस्स य नामाणि गोमाग होंति तीसं, तं जहा-१. परिग्गहो २. संचयो ३. 'चयो ४.उवचयो" ५. निहाणं ६. संभारो ७. संकरो ८. पायरो ६. पिंडो १. इत्तो (ग)। २. निगम (च)। ३. महाखंधो (ख, च)। ४. चिंतायास ° (वृ); चिंतासय ° (वृपा)। ५. गोरव-पविरेल्लि° (ध, वृपा)। ६. फलिह ° (ग, च)। ७. नामाणि इमाणि (ख, च)। ८. चओ उवचओ (क, ग)। ६. आयारो (क, ख, घ, च)। ६७८ Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचमं अज्झयण (पंचमं आसवदार) ६७६ १०. दव्वसारो ११. तहा' महिच्छा १२. पडिबंधो १३. लोहप्पा १४. महद्दी १५. उवकरणं १६. संरक्खणा य १७. भारो १८. संपायुप्पायको १६. कलिकरंडो २० पवित्थरो २१. अणत्थो २२. संथवो २३. अगुत्ती २४. आयासो २५. अविनोगो २६. अमुत्ती २७. तण्हा २८. अणत्थको २६. आसत्ती ३०. असंतोसो त्ति। अवि य तस्स एयाणि एवमादीणि नामधेज्जाणि होति तीसं ॥ देवाणं परिग्गह-पदं ३. तं च पुण परिग्गरं ममायंति लोभघत्था भवनवरविमाणवासिगो परिग्गहरुयी' परिग्गहे विविहकरणबुद्धी, देवनिकाया य-असुर-भुयग-गरुल-विज्जु-जलण-दीव-उदहि - दिसि' -पवणथणिय-प्रणवण्णिय-पणवण्णिय- इसिवाइय-भूतवाइय -कंदिय-महाकंदिय-कुहंडपतगदेवा, पिसाय-भूय-जक्ख- रक्खस- किन्नर-किंपुरिस -महोरग -गंधव्वा य तिरियवासी। पंचविहा जोइसिया य देवा,-बहस्सती-चंद-सूर-सुक्क-सनिच्छरा,राहु-धूमके उबुधा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकणगवण्णा, जे य गहा जोइसम्मि' चारं चरंति, केऊ य गतिरतीया, अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा, नाणासंठाणसंठियायो य तारगाग्रो, ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम-मंडलगती उवरिचरा। उड्डलोगवासी दुविहा वेमाणिया य देवा-सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंदबंभलोग-लंतक-महासुक्क-सहस्सार-पाणय - पाणय-पारणच्चुय-कप्पवरविमाणवासिणो सुरगणा गेवेज्जा अणुत्तरा य दुविहा कप्पातीया विमाणवासी महिड्डिका उत्तमा सुरवरा। एवं च ते चउब्विहा सपरिसा वि देवा ममायंति भवण-वाहण-जाण-विमाणसयणासणाणि य नाणाविहवत्थभूसणाणि य पवरपहरणाणि य नाणामणिपंचवण्णदिव्वं च भायणविहि नाणाविह - कामरूव - वे उब्विय-अच्छ रगणसंघाते दीवसमुद्दे दिसानो चेतियाणि वणसंडे पव्वते गामनगराणि य पारामुज्जाणकाणणाणि य कूव-सर-तलाग-वावि-दीहिय-देवकुल-सभ-प्पव-वसहिमाइयाई १. तह (क, च)। २. महंती (वृ०); महद्दी (वृपा) । ३. ° रुती (क, ग)। ४. दिस (क, ग, घ)। ५. पतत° (क); पतंग ° (च)। ६. जोइसियम्मि (ख, घ)। ७. देवतगणा (ख, घ, च)। ८. दिसाओ विदिसाओ (ग, च)। Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० पहावागरणाई बहुकाई कित्तणाणि य परिगेण्हित्ता परिग्गहं विपुलदव्वसारं देवावि सइंदगा न तित्ति न तुट्ठि उवलति प्रच्चंत - विपुल-लोभाभिभूतसन्ना' । वासहर- इसुगार - वट्टपव्वय - कुंडल- रुयगवर माणुसुत्तर- कालोदधि- 'लवण-सलिल * दहपति - रतिकर - अंजणकसेल - दहिमुहप्रोवातुप्पाय' - कंचणक- चित्त - विचित्तजमक - वरसिहरि - कूडवासी || मस्साणं परिग्गह-पदं ४. वक्खार - ग्रकम्मयभूमीसु, सुविभत्तभागदेसासु कम्मभूमिसु जेऽवि य नरा चाउरतचक्कवट्टी वासुदेवा बलदेवा मंडलीया इस्सरा तलवरा सेणावती इब्भा सेट्ठी रट्टिया पुरोहिया कुमारा दंडणायगा माडंबिया सत्थवाहा कोडुंबिया श्रमच्चा एए ग्रण्णे य एवमादी परिग्गहं संचिणंति प्रणतं प्रसरणं दुरंतं प्रधुवमणिच्चं प्रसासयं पावकम्मनेम्मं ग्रवकिरियव्वं विणासमूलं वहबंधपरिकिलेसबहुलं प्रणतसं किलेस करणं ते तं धण-कणग-रयण - निचयं पिंडिता' चेव लोभघत्था संसारं प्रतिवर्यति सव्वदुक्ख - संनिलयणं ।। परिग्गहत्थं सिक्खापदं ५. परिग्गहस्सेव य अट्ठाए सिप्पसयं सिक्खए बहुजणो कलाश्रो य बावर्त्तारं सुनिपुणा लेहाइयाम्रो सउणरुयावसाणाम्रो गणियप्पहाणाश्रो, चउसट्ठि च महिलागुणे रतिजणणे, सिप्पसेवं, असि - मसि - किसी वाणिज्जं, ववहारं, प्रत्थसत्थईसत्थ-च्छरुप्पगयं, विविहाम्रो य जोगजुंजणाश्रो " य, अण्णेसु एवमादिए सु बहूसु कारणसएसु जावज्जीवं नडिज्जए", संचिणंति मंदबुद्धी || परिग्गहोणं पवित्ति-पदं ६. परिग्गहस्सेव य अट्टाए करंति पाणाण वहकरणं अलिय नियडि-साइ- संपओगे परदव्व-अभिज्जा सपरदारगमणसेवणाए प्रयास - विसूरणं कलह - भंडण - वेराणि य श्रवमाण -विमाणणाओ इच्छ- महिच्छ-प्पिवास - सतततिसिया तह - गेहि-लोभघथा प्रत्ताण - अणिग्गहिया करेंति कोहमाणमायालोभे कित्तणिज्जे ॥ १. भूतसत्ता (च) । ८. मनसंकिलेस C. पिंडता ( ख ) । २. इक्खुगार (ख, घ, च) । ३. लवणसमुद्द ( क ) । १०. अविचयंति (ख, घ ) । ४. दहिमुहवातुप्पा (क); ° उवातुप्पाय (च ) । ११. परिग्रहाय शिक्षत इति प्रतीतम् (वृ) । ५. X ( क, ख, ग, घ ) | १२. बहुवचनार्थत्वादेकवचनस्य (वृ) | १३. x (ख, घ) ; ° अभिगमण • ( ग ) । ६. अकिरियव्वं ( क ); अविकिरियव्वं (घ ) । ७. मनंतं परि० ( क ) । (क) । Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (पंचमं आसवदार) ६८१ ७. परिग्गहे चेव होति नियमा सल्ला दंडा य गारवा य कसाय-सण्णा य कामगुण अण्हगा य इंदियलेसानो। सयण-संपयोगा सचित्ताचित्तमीसगाई दव्वाइं अणंतकाई इच्छंति परिघेत्तुं । सदेवमणुयासुरम्मि लोए लोभपरिग्गहो जिणवरेहि भणियो, नत्थि एरिसो पासो पडिबंधो' सव्वजोवाण सव्वलोए ।। परिग्गहस्स फलविवाग-पदं ८. परलोगम्मि य नट्ठा' तमं पविट्ठा, महया मोहमोहियमती, तिमिसंधकारे, तसथावर-सुहुमबादरेसु, पज्जत्तमपज्जत्तग- साहारणसरीर-पत्तेयसरीरेसु य, अंडज-पोतज - जराउय-रसज-संसेइम-समुच्छिम-उब्भिय-उववाइएसु य, नरगतिरिय-देव-माणुसेसु, जरा - मरण-रोग-सोग-बहुले, पलिग्रोवम-सागरोवमाई अणादीयं प्रणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अणु ° परियदृति जीवा मोहवससण्णिविट्ठा ।। ६. एसो सो परिग्गहस्स फलविवाग्रो इहलोइनो पारलोइओ अप्पसुहो बहक्खो महब्भनो बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असानो वाससहस्सेहिं मुच्चई, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति-एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य परिग्गहस्स फलविवागं । निगमण-पदं १०. एसो सो परिग्गहो पंचमो उ नियमा-नाणामणि-कणग-रयण-महरिह परि मल-सपुत्तदार-परिजण-दासी - दास-भयग-पेस-हय-गय-गो-महिस-उट्ट-खर-अयगवेलग - सीया-सगड-रह-जाण-जुग्ग-संदण-सयणासण-वाहण-कुविय-धण-धण्णपाण-भोयण-अच्छायण-गंध-मल्ल-भायण-भवणविहिं चेव बहुविहीयं, भरह णग-णगर-णियम-जणवय- पुरवर-दोणमुह-खेड-कब्बड-मडंब-संबाह-पट्टणसहस्समंडियं थिमियमेइणीयं, एगच्छत्तं ससागरं भुंजिऊण वसुहं अपरिमियमणंततण्हमणुगय-महिच्छसार-निरयमूलो, लोभकलिकसाय-महक्खंधो, चितासयनिचियविपूलसालो, गारव-पविरल्लियग्गविडवो, नियडि-तयापत्तपल्लवधरो, पुप्फफलं जस्स कामभोगा, अायासविसूरणाकलह-पकंपियग्गसिहरो, नरवतिसंपूजितो, बहुजणस्स हिययदइनो° इमस्स मोक्खवर-मोत्तिमग्गस्स फलिहभूयो। चरिमं अधम्मदारं समत्तं। १. पडिबंधो अस्थि (ख, ग, घ, च)। २. ४.१३ सूत्रे अतःप्राग् 'इहलोए ताव नट्ठा' पाठो विद्यते, अत्र तु स न दृश्यते । ३. सं० पा.-एवं जाव परियटॅति । ४. परलोइओ (ख, ग, घ, च)। ५. अवेतित्ता (ग)। ६. सं० पा०-एवं जाव इमस्स । Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८२ पण्हावागरणाई एएहिं पंचहि असंवरेहिं रयमादिणित्तु अणुसमयं । चउविहगतिपेरंतं, अणुपरियदृति संसारं ।।१।। सव्वगई - पक्खंदे, काहेति अणंतए अकयपुण्णा । जे य ण सुणंति धम्म, सोऊण य जे पमायति ।।२।। अणुसिटुंपि' बहुविहं, मिच्छदिट्ठी णरा अबुद्धीया । बद्ध निकाइयकम्मा, सुणेति धम्मं न य करेंति ॥३॥ कि सक्का काउ जे, ज णच्छह प्रोसह मूहा पाउ। जिणवयणं गणमहरं, विरेयणं सव्वदक्खाणं ॥४॥ पंचेव' उज्झिऊणं, पंचेव य रक्खिऊण भावेण । कम्मरय - विप्पमुक्का, सिद्धिवरमणुत्तरं जंति ।।५।। ३. पंचेव य (च)। १. °अचिणित्तु (वृ)। २. अणुसटुं (क, ग, घ); अणुसिट्ठा (वृ)। Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठें अज्झयणं पढमं संवरदारं उक्खव-पदं १. जंबू ! एत्तो संवरदाराई, पंच वोच्छामि आणुपुव्वीए । जह भणियाणि भगवया, सव्वदुहविमोक्खणट्ठाए ॥१॥ पढम होइ अहिंसा, बितियं सच्चवयणंति पण्णत्तं । दत्तमणुण्णायसंवरो, य बंभचेरमपरिग्गहत्तं च ॥२॥ तत्थ पढम अहिंसा, तसथावरसव्वभूयखेमकरी। तीसे सभावणाए, किंचि वोच्छं गुणुद्देस ।।३।। २. ताणि उ इमाणि सुव्वय-महव्वयाई 'लोकहिय-सव्वयाई" सुयसागर-देसियाई तव-संजम-महन्वयाई सीलगुणवरव्वयाई सच्चज्जवव्वयाई नरग-तिरिय-मणुयदेवगति-विवज्जकाई सव्वजिणसासणगाई कम्मरयविदारगाइं भवसयविणासणकाई दुहसयविमोयणकाई सुहसयपवत्तणकाई कापुरिसदुरुत्तराई सप्पुरिसनिसेवियाई निव्वाणगमणमग्ग-सग्गपणायगाई' संवरदाराइं पंच कहियाणि उ भगवया ॥ अहिंसा-पज्जवनाम-पदं ३. तत्थ पढमं अहिंसा, जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स भवति १. लोए धिइअव्वयाई (व); लोयहियसव्वयाई ग, च)। (वृपा)। ३. सप्पुरिसतीरियाई (वृपा)। २. विवज्जियकाई (क); विवज्जयकाई (ख, ४. पयाणगाई (वृपा)। Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्हावागरणाई दीवो ताणं सरणं गती पइट्ठा निव्वाण निव्वुई समाही सत्ती कित्ती कंती रती य विरती य सुयंग तित्ती दया विमुत्ती खंती समत्ताराहणा महंती बोही बुद्धी धिती समिद्धी रिद्धी विद्धी ठिती पुट्ठी नंदा भद्दा विसुद्धी लद्धी विसिट्ठदिट्ठी कल्लाणं मंगलं पमोनो विभूती रक्खा सिद्धावासो प्रणासवो केवलीणं ठाणं सिव-समिई-सील-संजमो त्ति य सीलपरिघरो' संवरो य गुत्ती ववसायो उस्सयो य जणो, प्रायतणं जयणमप्पमानो। प्रासासो वीसासो, अभयो सवूस्स वि अमाघारो। चोक्खपवित्ता सुती पूया विमल-पभासा य निम्मलतर त्ति । एवमादीणि निययगुण-निम्मियाइं पज्जवणामाणि होति अहिंसाए भगवतीए ॥ अहिंसा-थुइ-पदं ४. एसा सा भगवती अहिंसा, जा सा-- भीयाणं पिव सरणं, पक्खीणं पिव गयणं । तिसियाणं पिव सलिलं, खुहियाणं पिव असणं। समुद्दमज्झे व पोतवहणं, चउप्पयाणं व प्रासमपयं । दुहट्टियाणं व प्रोसहिबलं, अडवीमज्झे व सत्थगमणं ।। ५. एत्तो विसिट्टतरिका अहिंसा, जा सा पढवि-जल-अगणि - मारुय - वणप्फइ-बीज-हरित-जलचर-थलचर-खहचर-तसथावर-सव्वभूय-खेमकरी ॥ १. नेव्वाणं (क)। २. नेव्वुई (क, ख)। ३. सीलायारो (क); सीलघरो (ख, घ, च)। ४. उस्सतो (क)। ५. चोक्खा पवित्ती (क)। ६. गमणं (क, ग, वृ)। ७. दुहटियाणं (च, ग)। Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (पढम संवरदारं) ६८५ अहिंसा-माहप्प-पदं ६. एसा भगवती अहिंसा, जा सा अपरिमियनाणदंसणधरेहिं सीलगुण-विणय-तव-संजमनायकेहि तित्थंकरेहिं सव्वजगवच्छलेहि तिलोगमहिएहि जिणचंदेहि सुट्ठदिट्ठा, ओहिजिणेहि विण्णाया, उज्जुमतीहिं विदिट्ठा, विपुलमतीहिं विदिता', पुव्वधरेहि अधीता, वेउव्वीहि पतिण्णा। आभिणिबोहियनाणीहि सुयनाणीहि मणपज्जवनाणीहि केवलनाणीहिं ग्रामोसहिपत्तेहि खेलोसहिपत्तेहि जल्लोसहिपत्तेहिं विप्पोसहिपत्तेहि सव्वोसहिपत्तेहि बीजबुद्धीहि कोदबुद्धीहि पदाणुसारीहि संभिण्णसोतेहि सुयधरेहि मणबलिएहिं वयिबलिएहिं कायबलिएहिं नाणबलिएहिं दंसणबलिएहिं चरित्तबलिएहिं खीरासवेहि महुअासवेहिं सप्पिासवेहि अक्खीणमहाणसिएहिं चारणेहिं विज्जाहरेहि चउत्थभत्तिएहिं 'छट्ठभत्तिएहिं अट्ठमभत्तिएहिं एवं-दसम-दुवालसचोद्दस-सोलस - अद्धमास - मास - दोमास-चउमास-पंचमास"-छम्मासभत्तिएहि उक्खित्तचरएहि निक्खित्तचरएहिं अंतचरएहिं पंतचरएहिं लूहचरएहिं समुदाणचरएहि अण्णइलाएहि मोणचरएहि संसट्ठकप्पिएहितज्जायससट्ठकप्पिएहि उवनिहिएहि सुद्धेसणिएहि संखादत्तिएहिं दिट्ठलाभिएहि अदिट्ठलाभिएहिं पुट्ठलाभिएहि आयंबिलिएहि पुरिमड्डिएहिं एक्कासणिएहिं निव्वितिएहिं भिण्णपिंडवाइएहि परिमियपिंडवाइएहि अंताहारेहिं पंताहारेहिं अरसाहारेहि विरसाहारेहि लहाहारेहिं तुच्छाहारेहि अंतजीवीहिं पंतजीवीहि लूहजीवीहि तुच्छजीवीहि उवसंतजीवीहि पसंतजीविहि विवित्तजीवी हिं अक्खीरमहुसप्पिएहि अमज्जमंसासिएहिं ठाणाइएहिं पडिमट्ठाईहि ठाणुक्कडिएहि वीरासणिएहि सज्जिएहि डंडाइएहि लगंडसाईहिं एगपासगेहि अायावएहि अप्पाउएहि अणिठ्ठभएहिं अकंडूयएहि धुतकेसमंसु-लोमनखेहि सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्केहि समणुचिण्णा। सुयधरविदितत्थकायबुद्धीहि । धीरमतिबुद्धिणो य जे ते प्रासी विस-उग्गतेयकप्पा निच्छय-ववसाय-पज्जत्तकयमतीया णिच्चं सज्झायज्झाण-अणबद्धधम्मज्झाणा पंचमहव्वयचरित्तजुत्ता समिता समितीसु समितपावा छव्विहजगवच्छला" निच्चमप्पमत्ता, एएहि अण्णेहि य जा सा अणुपालिया भगवती ॥ १. सव्वजगजीव ° (क)। ७. ठाणुक्कुडुएहिं (क)। २. विविदिता (घ)। ८. समनुपालितेति सम्बन्धः (वृ)। ३. सप्पियासवेहि (ख, ग, घ, च)। ६. मिच्छत्तकयमतीया (ख, घ); विणीयपज्जत्त४. एवं जाव (क, ख, ग, घ)। कयमतीया (वृपा)। ५. अक्खित्त° (क)। १०. छविहजगजीववच्छला (क)। ६. पडिमट्ठाइएहिं (ख, घ, च)। ११. एएहि य (घ, च)। Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ उंछगवेसणा-पदं ७. इमं च पुढवि- दग प्रगणि मारुय तरुगण तस थावर- सव्वभूय-संजमदयट्टयाए सुद्ध उंछं गवेसियव्वं अकतमकारित मणाहूयमणुद्दिट्ठ, ग्रकीयकडं, नवहिय कोडीहिं सुपरिसुद्ध, दसहि य दोसेहिं विप्पमुक्कं उग्गमउप्पायणेसणासुद्ध, ववगय-चुयचइय' - चत्तदेहं च, फासूयं च । ८. ह. न निसज्ज कहापणक्खासुग्रोवणीयं न तिमिच्छा - मंत-मूल- भेसज्जहेउ', न लक्खपाय - सुमिण जोइस निमित्त कह - कुह कप्पउत्तं ॥ विभा, नवि रक्खणाते, नवि सासणाते, नवि डंभण- रक्खण- सासणाते भिक्खं गवेसियव्वं ॥ नव वंदणाते, नवि माणणाते, नवि पूयणाते, नवि वंदण माणण- पूयणाते भिक्खं गवेसियव्वं ॥ १०. नवि हीलणाते, नवि निंदणाते, नवि गरहणाते, नवि होलण- निंदण- गरहणाते भिक्खं गवेसियव्वं ॥ ११. नवि भेसणाते, नवि तज्जणाते, नवि तालणाते, नवि भेसण - तज्जण तालणाते भिक्खं गवेसियव्वं ॥ १२. नवि गारवेणं, नवि कुहणयाते, नवि वणीमयाते, नवि गारव - कुहण-वणीमाते भिक्खं गवेसियव्वं ॥ पण्हावागरणाई १३. नवि मित्तयाए, नवि पत्थणाए, नवि सेवणाए, नवि मित्तत-पत्थण- सेवणाते भिक्खं गवेसियव्वं ॥ १४. अण्णा अगढिए प्रदुट्ठे प्रदीर्णे अविमणे प्रकलुणे प्रविसाती अपरिदंतजोगी जयण-घडण करण- चरिय-विनय गुण जोगसंपत्ते भिक्खू भिक्खेसणाते निरते ।। १५. इमं च सव्वजगजीव- रक्खणदयट्ठाए पावयणं भगवया सुकहियं प्रत्तहियं पेच्चाभावियं आगमेसिभद्दं सुद्धं नेयाज्यं प्रकुडिलं प्रणुत्तरं सव्वदुक्खपावाण विश्रमणं || हिंसाए पंचभावणा-पदं १६. तस्स इमा पंच भावणाओ पढमस्स वयस्स होंति पाणातिवायवेरमणपरिरक्खट्टयाए । १७. पढमं — ठाणगमणगुणजोगजुंजण - जुगंत रनिवातियाए दिट्ठीए इरियव्वं कीड १. चयिय ( क ) ; चाविय ( क्व ) । २. भेसज्जकज्जहेउं (क, ख, ग, घ, च ) । ३. अद्दीणे (वृ) ! Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (पढमं संवरदारं) ६८७ पयंग-तस-थावर-दयावरेण, निच्चं पुप्फ-फल-तय-पवाल-कंद-मूल-दगमट्टियबीज-हरिय-परिवज्जएण' सम्म'। एवं खु सव्वपाणा न होलियब्वा, न निंदियव्वा, न गरहियव्वा, न हिंसियव्वा, न छिदियब्बा, न भिदियव्वा, न वहेयव्वा, न भयं दुक्खं च किचि लब्भा पावेउं जे। एवं इरियासमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, असबलमसंकिलिट्ठ-निव्वण चरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू ।। १८. बितियं च-मणेण पावएणं पावगं अहम्मियं दारुणं निस्संसं वह-बंध परिकिलेसबहुलं भय-मरण-परिकिलेससंकिलिटुं न कयावि मणेण पावएणं" पावगं किंचि विझायव्वं । एवं मणसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, असबलमसंकिलिट्ठ-निव्वणचरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू ।। ततियं च वतीते पावियाते पावगं न किचि वि भासियव्वं । एवं वतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, असबलमसंकिलिट्ट-निव्वण चरित्तभावणाए अहिंसनो संजो सुसाहू ॥ २०. चउत्थं-- अाहारएसणाए' सुद्धं उंछं गवेसियव्वं अण्णाए 'अगढिए अदुवै प्रदीणे अविमणे अकलुणे अविसादी", अपरितंतजोगी जयण-घडण-करण-चरिय-विणयगुण-जोगसंपउत्ते१ भिक्खू भिक्वेसणाए जुत्ते समुदाणेऊण भिक्खचरियं उंछं घेत्तूण अागते गुरुजणस्स पासं, गमणागमणातिचार-पडिक्कमण-पडिक्कते, आलोयण-दायणं च दाऊण गुरुजणस्स जहोवएसं निरइयारं च अप्पमत्तो पुणरवि असणाए पयतो पडिक्कमित्ता पसंतासीण-सुहनिसण्णे", मुत्तमेत्तं च झाण-सुहजोग-नाण-सज्झाय-गोवियमणे धम्ममणे अविमणे सुहमणे अविग्गहमण समाहिमण सद्धासंवेगनिज्जरमण पवयणवच्छल्लभावियमण उठेऊण य पहट्टतुट्टे जहराइणियं" निमंतइत्ता य साहवे भावो य, विइण्णे" य १. परिवज्जिएणं (क)। ८. 'अद्दीणे' त्यादि तु पूर्ववत् (व) । २. समं (ग, घ)। ६. X (क, ख, ग, घ, च)। ३. खलु (क, ग)। १०. अविसाती (ख, घ, च)। ४. निसंसं (ख, घ)। ११. संपओगजुत्ते (क, ख, ग, घ, च)। ५. पावतेणं (ख)। १२. पयत्तो (क, ख, घ, च)। ६. आहारं एसणाए (क, ग, घ, च)। १३. सुनिसण्णा (घ)। ७. अकहिए असिट्टे (क, ख, ग, घ, च, वृ); १४. जहारायणियं (क, ग)। एते पदे वृत्तेर्वाचनान्तरस्य तथा अस्यैवाध्यय- १५. विदिण्णे (क, ख, घ, च)। नस्य चतुर्दशसूत्रस्याधारेण स्वीकृते । Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ पहावागरणाई गुरुजणेणं, उपविट्ठ संपमज्जिऊण ससोसं कायं तहा करतलं, अमुच्छिए गिद्धे अगढिए अगरहिए अणझोववण्णे प्रणाइले अलुद्धे अणत्तट्टिते असुरसुरं अचवचवं अदुयमविलंबियं' अपरिसाडि आलोयभायण जयं पयत्तेणं ववगयसंजोगमणिंगालं च विगयधूमं अक्खोवंजण-वणाणुलेवणभूयं संजमजायामायानिमित्तं संजयभारवहणट्ठयाए भुजेज्जा पाणधारणट्ठयाए' संजए ण समियं । एवं आहारसमितिजोगणं भाविग्रो भवति अतरप्पा, असबलमसंकिलिट्ठ निव्वण-चरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू ॥ २१. पंचमगं -पीढ-फलग-सिज्जा-संथारग-वत्थ-पत्त-कंबल-दंडग-रयहरण-चोलपट्टग मुहपोत्तिग-पायपुंछणादी। एयंपि संजमस्स उवबूहणट्ठयाए वातातव-दंसमसगसोय-परिरक्खणट्ठयाए उवगरणं रागदोसरहियं परिहरितव्वं संजतेणं' णिच्चं पडिलेहण-पप्फोडण-पमज्जणाए अहो य रायो य अप्पमत्तेण होइ समयं निक्खिवियव्वं च गिव्हियव्वं च भायण-भंडोवहि-उवगरण । एवं आयाणभंडनिक्खेवणासमितिजोगेण भावियो भवति अतरप्पा, असबलमसं किलिट्ठ-निव्वण-चरित्तभावणाए अहिंसए संजते सुसाहू ॥ निगमण-पदं २२. एवमिणं संवरस्स दारं सम्म संवरियं होति सुप्पणिहियं इमेहिं पंचहि वि कारणेहिं मण-वयण-काय-परिरक्खएहिं ।। २३. णिच्चं आमरणंतं च एस जोगो णेयव्वो धितिमया मतिमया अणासवो अकलुसो अच्छिद्दो अपरिसावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुण्णातो॥ २४. एवं पढमं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं आराहियं प्राणाते लयं भवति ।। २५. एवं नायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवितं सुदेसितं पसत्थं । पढमं संवरदारं समत्तं । —त्ति बेमि॥ १ अदुय ° (च)। २. मायनिमित्तं (क, ख, ग, घ)। ३. ° रक्खणट्ठयाए (क)। ४. उवगहणट्टयाए (क, ख, च)। ५. संजमेणं (ग)। Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं बीयं संवरदारं उक्खेव-पदं १. जंबू ! बितियं च सच्चवयणं-सुद्धं सुइयं सिवं सुजायं सुभासियं सुव्वयं सुकहियं सुदिटुं सुपतिट्ठियं सुपतिट्ठियजसं सुसंजमियवयणबुइयं सुरवर-नरवसभ-पवरबलवग-सुविहियजण-बहुमयं परमसाहुधम्मचरणं तव-नियम-परिग्गहियं सुगतिपहदेसगं च लोगुत्तमं वयमिणं विज्जाहरगगणगमणविज्जाण साहकं सग्गमग्गसिद्धिपहदेसक अवितह, तं सच्चं उज्जुयं अकुडिलं भूयत्थं, अत्थतो विसुद्धं उज्जोयकरं पभासकं भवति सव्वभावाण जीवलोगे अविसंवादि जहत्थमधुरं पच्चक्खं दइवयं व जं तं अच्छेरकारकं अवत्थंतरेसु बहुएसु माणुसाणं ।। सच्चस्स माहप्प-पदं २. सच्चेण महासमुद्दमज्झे चिटुंति, न निमज्जंति मूढाणिया वि पोया ॥ ३. सच्चेण य उदगसंभमंमि वि' न बुज्झइ, न य मरंति, थाहं च ते लभंति ॥ ४. सच्चेण य अगणिसंभमंमि विन डज्झति उज्जुगा' मणसा॥ ५. सच्चेण य तत्ततेल्ल-तउय-लोह-सीसकाई छिवंति धरेंति', न य डझंति मणसा॥ ६. पव्वयकडकाहिं मुच्चंते, न य मरंति सच्चेण य परिग्गहिया ।। 1. असिपंजरगया समरानो वि णिइंति अणहा य सच्चवादी। १. दरियवं (ख, ग); देवयं (च)। २. ४ (क, ख, ग, घ, च)। ३. वचनपरिणामान्नोह्यन्ते (व) । ४. ४ (क)। ५. उज्जगा (क, ख, घ)। ६. अंजलिभिरिति गम्यते (व)। ७. असिपंजरसत्तिपंजरगया (क, च)। ६८६ Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्हावागरणाई ८. वहबंधभियोगवेरघोरेहि पमुच्चंति य, अमित्तमज्झाहिं निइंति' अणहा य सच्चवादी॥ 8. सादेव्वाणि य देवयानो करेंति सच्चवयणे रताणं ॥ सच्चस्स थुइ-पदं १०. तं सच्चं' भगवं तित्थगरसुभासियं दसविहं चोद्दसपुव्वीहिं पाहुडत्थविदितं 'महरिसीण य समयप्पदिण्णं" देविंद-नरिंद-भासियत्थं वेमाणियसाहियं महत्थं मंतोसहिविज्जसाहणटुं चारणगण-समण-सिद्धविज्जं मणुयगणाणं च वंदणिज्ज 'अमरगणाणं च अच्चणिज्जं असुरगणाणं च पूयणिज्ज," अणेगपासंड-परिग्गहियं, जं तं लोकम्मि सारभूयं । गंभीरतरं महासमूहाप्रो, थिरतरगं मेरुपव्वयायो। सोमतरं चंदमंडलाओ, दित्ततरं सूरमंडलाओ। विमलतरं सरयनहयलाओ, सुरभितरं गंधमादणाम्रो । ११. जे वि य लोगम्मि अपरिसेसा मंता जोगा जवा य विज्जा य जंभका य अत्थाणि य सत्थाणि य सिक्खायो य ागमा य सव्वाणि वि ताई सच्चे। सावज्जसच्च-पदं १२. सच्चपि य संजमस्स उवरोहकारकं किंचि न वत्तव्वं-हिंसा-सावज्जसंपउत्तं भेय-विकहकारकं अणत्थवाय-कलहकारकं अणज्ज अववाय-विवायसंपउत्तं बेलंबं प्रोजधेज्जबहुलं निल्लज्ज लोयगरहणिज्जं दुद्दिढ़ दुस्सुयं दुम्मुणियं ॥ १३. अप्पणो थवणा, परेसु निंदा-- नसि मेहावी, न तंसि धण्णो । नसि पियधम्मो, न तं कुलीणो। नसि दाणपती, न तंसि सूरो। नसि पडिरूवो, न तंसि लट्ठो। न पंडिग्रो, न बहुस्सुप्रो, न वि य तं तवस्सी। १. नइंति (क)। २. भगवंत (क, ख, ग, घ, च)। ३. ०पइण्णं (व); महरिसिसमयपइण्णचिण्णं (वृपा)। ४. X (क)। ५. सव्वाइं (ख, च)। ६. अवरोहकारकं (ख)। ७. अमुणियं (ख, ग, घ, च)। ८. त्वमिति गम्यते (वृ)। Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (बीयं संवरदारं ) ६६१ नावि पर लोग णिच्छियमतीऽसि सव्वकालं, जाति-कुल- रूव वाहि-रोगेण वा विजं होइ वज्जणिज्जं दुहिलं' उवयारमतिकतं - एवंविहं सच्चपि न वत्तव्वं ॥ प्रणवज्जसच्च पदं १४. ग्रह केरिसकं पुणाई सच्चं तु भासियव्वं ? जं तं दव्वेहिं पज्जवेहिय गुणेहिं कम्मेहिं सिप्पेहिं आगमेहि य नामक्खाय-निवाश्रोवसग्ग-तद्धिय-समास-संधिपद-उ-जोगिय- उणादि - किरिया विहाण धातु-सर- विभत्ति-वण्णजुत्तं दसविहं पि सच्चं जह भणियं तह य कम्मुणा होइ । तिकल्लं दुवालसविहा होइ भासा, वयपि य होइ सोलसविहं । एवं अरहंतमणुष्णायं समिक्खियं संजएणं कालम्भि य वत्तव्वं ॥ १५. इमं च अलिय- पिसुण- फरुस - कडुय-चवल-वयण- परिरक्खणट्ट्याए पावयणं भगवा सुकहियं तहियं पेच्चाभाविकं ग्रागमेसिभद्दं सुद्धं नेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाणं विप्रोसमणं ॥ सच्चस्स पंचभावणा-पदं १६. तस्स इमा पंच भावणाम्रो बितियस्स वयस्स अलियवयणवेरमण - परिरक्खणट्टयाए॥ १७. पढमं - सोऊणं संवरट्ठ परमट्ठे सुट्टु जाणिऊण न वेगियं न तुरियं न चवलं न कडुयं न फरुसं न साहसं न य परस्स पीलाकरं सावज्जं सच्चं च हियं च मियं च ' गाहकं च" सुद्धं संगयमकाहलं च समिक्खितं संजतेण कालम्मि य वत्तव्वं । एवं प्रणुवी समितिजोगेण भाविप्रो भवति अंतरप्पा, संजय-कर-चरण-नयणवयणो सूरो सच्चज्जव संपण्णो || १८. बितियं -- कोहो ण सेवियव्वो । कुद्धो चंडिक्कियो मणूसो अलियं भणेज्ज, पिसुणं भणेज्ज, फरुसं भणेज्ज, ग्रलियं पिसुणं फरुसं भणेज्ज । कलहं करेज्ज, वेरं करेज्ज, विकहं करेज्ज, कलहं वेरं विकहं करेज्ज । सच्च हणेज्ज, सीलं हणेज्ज, विणयं हणेज्ज, सच्चं सीलं विणयं हणेज्ज । सो भवेज्ज, वत्थं भवेज्ज, गम्मो भवेज्ज, वेसो वत्युं गम्मो भवेज्ज । १. दुहओ (क, ख, ग, घ, च, वृपा) । २. रस (वृपा) । ३. परिरक्खणाए ( क ) । ४. अयिवयणस्स (क, ख, ग, घ, च); एतद् विहाय सर्वेष्वपि संवरद्वारेषु समस्तं पदमुपलभ्यते । अत्रापि तथैव युज्यते । असमस्त पदस्यार्थो भ्रान्ति जनयति । ५. वेतितं (क); वेइयं ( ख, ग, च) । ६. गाहगं ( क ) । o ७. अणुवीति • ( क ); अणुवीयि ० (ख, घ े; अणुवीय (च) । ८. कोधो (ख, घ) | Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૨૨ पण्हावागरणाइ एयं अण्णं च एवमादियं भणेज्ज कोहग्गि-संपलित्तो, तम्हा कोहो न सेवियव्वो। एवं खंतीए' भावियो भवति अंतरप्पा, संजय-कर-चरण-नयण-वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो॥ १६. ततियं-लोभो न सेवियव्वो। लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं खेत्तस्स व वत्थुस्स व कतेण । लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं कित्तीए व लोभस्स व कएण। लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं इड्ढीए व सोक्खस्स व कएण। लद्धो लोलो भणेज्ज अलियं भत्तस्स व पाणस्स व कएण । लद्धो लोलो भणज्ज अलिय पीढस्स व फलगस्स व कएण। लद्धो लोलो भणेज्ज अलियं सेज्जाए व संथारकस्स' व कएण। लद्धो लोलो भणज्ज अलियं वत्थस्स व पत्तस्स व कएण। लूद्धो लोलो भणेज्ज अलियं कंबलस्स व पायपुंछणस्स व कएण । लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं सीसस्स व सिस्सिणीए व कएण। अण्णेसु य एवमादिएसु बहुसु कारणसतेसु लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं, तम्हा लोभो न सेवियव्वो। एवं मुत्तीए भाविश्नो भवति अंतरप्पा, संजय-कर-चरण-नयण-वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो । २०. चउत्थं न भाइयव्वं । भोतं खु भया अइंति लहुयं, भीतो अबितिज्जयो मणसो, भोतो भूतेहिं व घेपेज्जा, भीतो अण्णं पि हु भेसेज्जा, भीतो तव-संजमं पि हु मुएज्जा, भीतो य भरं न नित्थरेज्जा, सप्पुरिसनिसेवियं च मग्गं भीतो न समत्थो अणुचरिउं । तम्हा न भाइयव्वं भयस्स वा वाहिस्स वा रोगस्स वा जराए वा मच्चुस्स वा अण्णस्स व एवमादियस्स' । एवं धेज्जेण भावियो भवति अंतरप्पा, संजय-कर-चरण-नयण-वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो॥ २१. पंचमक-हासं न सेवियव्वं । अलियाइं असंतकाई जति हासइत्ता । परपरि भवकारणं च हासं, परपरिवायप्पियं च हासं, परपीलाकारगं च हासं, भेदविमुत्तिकारकं च हासं, अण्णोण्णजणियं च होज्ज हासं, अण्णोण्णगमणं च होज्ज मम्म, अण्णोण्णगमणं च होज्ज कम्म, कंदप्पाभियोगगमणं च होज्ज हास, प्रासुरियं किव्विसत्तं च जणेज्ज हासं, तम्हा हासं न सेवियव्वं । १. खंतीय (ख); खंतीय (ग, घ, च)। ४. मुत्तीय (ख, घ)। २. संथारस्स (क)। ५. भावितव्वं (क); भातियव्वं (ग)। ३. लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं अण्णेसु (क, ख, ६. एगस्स (वृ); एवमादियस्स (वृपा)। ग, घ, च)। Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (बीयं संवरदारं) एवं मोणेण भाविओ भवइ अंतरप्पा, संजय-कर-चरण-नयण-वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो ॥ निगमण-पदं २२. एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ सुप्पणिहियं इमेहिं पंचहि वि कारणेहिं मण-वयण-काय-परिरक्खिएहिं ॥ २३. निच्चं आमरणंतं च एस जोगो णेयव्वो धितिमया मतिमया अणासवो अकलुसो अच्छिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुण्णाप्रो ।। २४. एवं बितियं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं 'पाराहियं आणाए अणुपालियं भवति ॥ २५. एवं नायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवितं सुदेसितं पसत्थं । बितियं संवरदारं समत्तं । --त्ति बेमि ॥ १. X (क, ख, ग, घ)। २. अणुपालियं आणाए आराहियं (क, ख, ग, घ, च)। Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं तइयं संवरदारं उक्खव-पदं १. जंबू ! दत्ताणुण्णायसंवरो नाम होति ततियं-सुव्वतं' महन्वतं गुणव्वतं परदव्व हरणपडिविरइकरणजुत्तं अपरिमियमणंततण्हामणुगय-महिच्छ-मणवयणकलुस आयाणसुनिग्गहियं सुसंजमियमण-हत्थ-पायनिहुयं निग्गंथं णेट्ठिकं निरुत्तं निरासवं निब्भयं विमुत्तं उत्तमनरवसभ-पवरबलवग-सुविहियजणसंमतं परम साहुधम्मचरणं ॥ अदत्तस्स अग्गहण-पदं २. जत्थ य गामागर-नगर-निगम-खेड-कव्वड-मडंब-दोणमुह-संवाह-पट्टणासमगयं च किंचि दव्वं मणि-मुत्त-सिल-प्पवाल-कंस-दूस-रयय-वरकणग-रयणमादि पडियं पम्हुटुं विप्पणटुं न कप्पति कस्सति कहेउं वा गेण्हिउं वा । अहिरण्ण सुवण्णिकेण समलेठ्ठकंचणेणं अपरिग्गहसंवुडेणं लोगंमि विहरियव्वं ॥ ३. जे पि य होज्जा हि दव्वजातं 'खलगतं खेत्तगत रण्णमंतरगतं व किंचि पुप्फ फल-तय-प्पवाल-कंद-मूल-तण-कट्ठ-सक्कराइं अप्पं व बहुं व अणुं व थूलगं वा न कप्पति प्रोग्गहे अदिण्णमि गिहिउं जे ॥ १. दत्तमणुण्णायं ० (क); दत्तमणुण्णाय ° पदानि एकरूपाणि सन्ति । एकस्मिन् (ख, ग, घ, च)। क्वचित्प्रयुक्तादर्श 'सुव्वयं' इति पाठोपि २. सुव्वत (क, ख, ग, घ, च); वृत्तिकारेण लब्धः । तेनासौ पाठः स्वीकृतः। 'सुव्वय' इति पाठो लब्धः, तेन 'हे सुव्रत' ३. खव्वड (क) इति सम्बोधनत्वेन व्याख्यातः। वस्तुतोऽत्र ४. कासती (क, घ)। 'सुव्वयं महब्वयं गुणव्वयं' एतानि त्रीण्यपि ५. वाचनान्तरे-जलथलगयं खेत्तमंतरगयं(व)। Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ अणं (तइयं संवरदारं) ६६५ ४. हणिहणि प्रोग्गहं अणुण्णविय हियव्वं । वज्जेयव्वो य सव्वकालं प्रचियत्तघरप्पवेसो, अचियत्तभत्तपाणं श्रचियत्तपीढ-फलग-सेज्जा- संथारग-वत्थ-पत्तकंबल - दंडग - रयहरण- निसेज्ज- चोलपट्टग-मुहपोत्तिय पायपुंछणाइ-भायण - भंडोवह उवकरणं परपरिवाओ परस्स दोसो परववएसेणं जं च गेण्हइ, परस्स नासेइ जं च सुकयं, दाणस्स य अंतरातियं, दाणविप्पणासो, पेसुण्णं चेव मच्छरित्तं च ॥ श्रदत्तादाणवेरमणस्स प्रजोग्गता-पदं ५. जे वि य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारंग - वत्थ- पाय' - कंबल - रोहरण-निसेज्जचोलपट्टग - मुहपोत्तिय पायपुंछणादि-भायण-भंडोवहि-उवकरणं' संविभागी प्रसंगहरुई, 'तव-वइतेणे" य रूवतेणे य, आयारे चेव भावतेणे य, सद्दकरे झंझकरे कलहकरे वेरकरे विकहकरे असमाहिकारके, सया अप्पमाणभोई' सततं प्रणुबद्धवेरे य निच्चरोसी से तारिसए नाराहए वयमिणं ॥ प्रदत्तादाणवेरमणस्स जोग्गता-पदं ६. ग्रह केरिसए पुणाई प्राराहए वयमिणं ? जे से उवहि भत्तपाण - ' दाण-संगहण ' ' - कुसले ग्रच्चतबाल - दुब्बल - गिलाण - वुड्ढखमके पवत्ति-आयरिय- उवज्झाए सेहे साहम्मिए तवस्सी-कुल- गण - संघ - चेइयट्ठे य निज्जरट्ठी वेयावच्चं प्रणिस्सियं दसविहं बहुविहं करेति, न य प्रचियत्तस्स घरं पविसइ, न य अचियत्तस्स 'गेण्हइ भत्तपाणं", न य प्रचियत्तस्स सेवइ पीढ-फलग-सेज्जा-संथारग वत्थ-पाय - कंबल - दंडग-रनोहरण- निसेज्ज-चोलपट्टयमुहपोत्तिय पायपुंछणाइ-भायण - भंडोव हि उवगरणं, न य परिवार्य परस्स जंपति, यावि दोसे परस्स गेण्हति, परववएसेणवि न किंचि गेण्हति, न य विपरिणामेति कंचि जणं, न यावि णासेति दिण्ण-सुकयं, दाऊण य काऊण य न होइ पच्छाताविए, संविभागसीले संगहोवग्गहकुसले, से तारिसए प्राराहए वयमिणं ॥ ७. इमं च परदव्वहरणवेरमण-परिरक्खणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं प्रत्तहियं पेच्चाभाविकं ग्रागमेसिभद्दं सुद्धं नेयाउयं प्रकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाण faraj || १. पत्त (च) । २. रोहरण ( ख, ग, घ, ) । ३. प्रतीत्येति गम्यते (वृ) । ४. तव तेणे य वइ ० ( क, ख, ग, घ ) । ५. भोती (क, ग) । ६. संगहणदाण (क, ग, च) । ७. हिं (क, ग ) । ८. भत्तपाणं गेहइ (ख, घ, च) । ६. किंचि ( क ) । १०. विओवसमणं ( क, ख, ग, घ, च) । Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्हावागरणाइ अदत्तादाणवेरमणस्स पंचभावणा-पदं ८. तस्स इमा पंच भावणा ततियस्स वतस्स होंति परदव्वहरणवेरमण-परि रक्खणट्ठयाए॥ ६. पढम-देवकुल-सभ-प्पवा-गावसह-रुक्खमूल-पाराम-कंदरा - आगर-गिरिगुह 'कम्मत-उज्जाण'-जाणसाल-कुवितसाल-मंडव - सुण्णघर - सुसाण-लेण'-पावणे, अण्णमि य एवमादिमि दगमट्टिय-बीज-हरित-तसपाण-असंसत्ते अहाकडे फासुए विवित्त पसत्थे उवस्सए होइ विहरियव्वं ।। आहाकम्म-बहुले य जे से आसित्त-संमज्जिप्रोसित्त-सोहिय-छायण-दुमण-लिंपणअणलिंपण-जलण-भंडचालण', अंतो बहिं च असंजमो जत्थ वट्टती', संजयाण अट्ठा 'वज्जेयव्वे हु उवस्सए" से तारिसए सुत्तपडिकुटे । एवं विवित्तवासवसहिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, निच्चं अहिकरणकरण-कारावण-पावकम्मविरते दत्ताणण्णाय'-प्रोग्गहरुई ।। बितियं-पारामुज्जाण-काणण-वणप्पदेसभागे जं किंचि इक्कडं व कढिणगं व जंतुगं व 'परा-मेरा" - कुच्च - कुस - डब्भ - पलाल - मूयग - वल्लय"-पुप्प- फलतय-पवाल-कंद-मूल-तण-कट्ठ-सक्कराइं गेण्हइ सेज्जोवहिस्स अट्टा, न कप्पए प्रोग्गहे अदिण्णंमि गेण्हिउं जे । हणिहणि ओग्गहं अणुण्णविय गेण्हियव्वं । एवं प्रोग्गहसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, निच्चं अहिकरण-करणकारावण-पावकम्मविरते दत्ताणुण्णाय-प्रोग्गहरुई॥ ततियं --- पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगट्टयाए रुक्खा न छिदियव्वा, न य छेदणेण३ भेयणेण य सेज्जा कारेयव्वा । जस्सेव उवस्सए वसेज्ज सेज्ज तत्थेव गवेसेज्जा, न य विसमं समं करेज्जा, न निवाय-पवाय-उस्सुकत्तं, न डंसमसगेसु खुभियव्वं, अग्गी धूमो य न कायव्वो। एवं संजमबहुले संवरबहुले संवुडबहुले समाहिबहुले धीरे काएण फासयंते सययं अज्झप्पज्झाणजुत्ते समिए एगे चरेज्ज धम्म । ११. १. वसहि (क, ख, घ)। ७. वट्टति (च)। २. गिरिगुहा (च)। ८. वज्जेयवो हु उवस्सओ (ग)। ३. कम्मतुज्जाण (क, ग, घ), कम्मं उज्जाण ६. दत्तमणुण्णाय (क, ख, ग, घ, च); सर्वत्र । (ख, च)। १०. ° रुती (क, ग)। ४. लयण (ख)। ११. परमेर (क); परंमेरा (ख); परमेरा (घ) । ५. मट्टिया (ख, घ)। १२. पव्वय (ख, घ); वल्वजः तृणविशेषः (वृ)। ६. एतेषां समाहारद्वन्द्वः विभक्तिलोपश्च दृश्यः १३. छेदण (ख, ग, घ, च)। (व)। १४. निव्वाय (ख)। Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अग्झयणं (तइयं संवरदार, ६६७ एवं सेज्जासमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, निच्चं अहिकरण-करणकारावण-पावकम्मविरते दत्ताणण्णाय-प्रोग्गहरुई। चउत्थं-साहारणपिंडपातलाभे भोत्तव्वं संजएण समियं, न सायसूयाहिक, न खद्धं, न वेइयं', न तुरियं, न चवलं, न साहसं, न य परस्स पीलाकरं सावज्ज, तह भोत्तव्वं जह से ततियवयं न सीदति। साहारणपिडवायलाभे सुहुमं 'अदिण्णादाणवय-नियम-वेरमण । एवं साहारणपिंडवायलाभ समितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, निच्चं अहिकरण-करण-कारावण-पावकम्मविरते दत्ताणुण्णाय-प्रोग्गहरुती॥ १३. पंचमगं--साहम्मिएसु विणो पउंजियव्वो, उवकारण-पारणासु विणतो पउंजियव्वो, वायण-परियट्टणासु विणो पउंजियव्वो, दाण-गहण-पुच्छणासु विणो पउंजियव्वो, निक्खमण-पवेसणासु विणग्रो पउजियव्वो, अण्णेसु य एवमाइएसु बहुसु कारणसएसु विणो पउंजियव्वो। विणलो वि तवो तवो वि धम्मो, तम्हा विणो पउंजियव्वो गुरूसु साहूसु तवस्सीसु य । एवं विणएण भावियो भवति अंतरप्पा, णिच्च अहिकरण-करण-कारावण पावकम्मविरते दत्ताणुण्णाय-प्रोग्गहरुई ।। निगमण-पदं १४. एवमिणं संवरस्स दारं सम्म संवरियं होइ सुपणिहियं 'इमेहि पंचहि वि कारणेहि मण-वयण-काय-परिरक्खिएहिं॥ १५. निच्चं आमरणतं च एस जोगो णेयव्वो धितिमया मतिमया अणासवो अकलूसो अच्छिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुण्णायो॥ १६. 'एवं ततियं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं 'पाराहियं प्राणाए अणुपालियं" भवति।। एवं नायमूणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवियं" सुदेसियं पसत्थं । ततिय संवरदारं समत्तं । -त्ति बेमि ॥ -- १. वेतितं (क)। २. अदिण्णादाणविरमणवनियमणं (व); अदिण्णादाणवयनियमवेरमणं (वपा)। ३. अणुपालियं आणाए आराहियं (च)। ४. एवं जाव आघवियं (क, ख, ग, घ)। Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं यणं चउत्थं संवरदारं उक्खेव - पदं १. जंबू ! एत्तो य बंभचेरं उत्तम तव नियम णाण- दंसण चरित्त सम्मत्त - विजयमूलं जम-नियम - गुणप्प हाणजुत्तं हिमवंत-महंत-तेयमंतं पसत्थ - गंभीर - थिमित-मज्भं प्रज्जवसाहुजणाचरितं मोक्खमग्गं विसुद्ध - सिद्धिगति - निलयं 'सासयमव्वाबाहमपुणब्भवं पत्थं सोमं सुभं सिवमचलमक्खयकरं " जतिवर - सारक्खियं सुचरियं सुसाहिय नवरि मुणिवरेहिं महापुरिस-धीर - सूर धम्मिय - धितिमंताण य सया विसुद्ध भव्वं भव्वजणाणुचिणं' निस्संकिय निब्भयं नित्तुसं निरायासं निरुवलेवं निव्वुतिघरं नियम-निप्पकंप तवसंजममूलदलिय णेम्मं पंचमहव्वयसुरक्खियं समितिगुत्तिगुत्तं भाणवरकवाडसुकयं' ग्रज्झप्पदिण्णफलिहं संणद्धोत्थइयदुइ सुगतिपदेस गं" लोगुत्तमं च वयमिणं पउमसरतलागपालिभूयं महासगड रगतुंबभूयं महाविडिमरुक्खक्खंधभूयं महानगरपागारकवाडफलिहभूयं रज्जुपद्धो व इंदकेतू विसुद्ध गगुणसंपिणद्धं ॥ बंभचेरमा हप्प-पदं २. जंमि य भग्गंमि होइ सहसा सव्वं संभग्ग-मथिय- चुण्णिय - कुसल्लिय-पल्लट्ट १. यम ( ग, घ ) 1 २. सासयमपुणब्भवं पसत्थं सोमं सुहं सिवमक्खयकरं (वृ); सासयमव्वा वामपुणब्भवं पसत्थं सोमं सुहं सिवमचल मक्खयकरं ( वृपा ) । ३. संरक्खियं ( ख ) । ४. सुभासि ( ग ) । ५. वीर (क, ख, घ) । ६. भव्वजणसमुच्चिणं ( क, ख ) । ७. नीसंक ( ख ) । ८. ० सुक्कयरक्खणं (च) । ६. सण्णद्धवद्धोच्छइय° (च) । १०. ० देसगं च (क, ख, ग, घ, च) । ६६८ Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (चउत्थं संवरदार) ६६६ पडिय-खंडिय-परिसडिय-विणासियं विणयसीलतवनियमगुणसमूह, तं बंभ भगवंतंगहगण-नक्खत्त-तारगाणं वा जहा उडुपती', मणि-मुत्त-सिल-प्पवाल-रत्तरयणागराणं च जहा समुद्दो, वेरुलियो चेव जह मणीणं, 'जह मउडो चेव भूसणाणं, वत्थाणं चेव खोमजुयलं, अरविदं चेव पुप्फजेटुं, गोसीस चेव चंदणाणं, हिमवंतो चेव प्रोसहीणं, सीतोदा चेव निन्नगाणं, उदहीसु जहा सयंभुरमणो, रुयगवरे चेव मंडलिकपव्वयाण पवरे, एरावण इव कुंजराणं, सीहो व्व जहा मिगाणं पवरो, पवकाणं चेव वेणुदेवे, धरणो जह पण्णगइंदराया', कप्पाणं चेव बंभलोए, सभासु य जहा भवे सुहम्मा, ठितिसु लवसत्तम व्व पवरा, दाणाणं चेव अभयदाणं, किमिरायो चेव कंबलाणं, संघयणे चेव वज्जरिसभे, संठाणे चेव समचउरसे, झाणेसु य परमसुक्कज्झाणं, णाणेसु य परमकेवलं तु सिद्धं, लेसासु य परमसुक्कलेस्सा, तित्थकरो चेव जह मुणीणं, वासेसु जहा महाविदेहे, गिरिराया चेव मंदरवरे, ३. पण्णइंदराया (क, घ, च) । १. उलूपती (क); उदूपती (ग, घ)। २. जहा (ख, ग)। Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०० पण्हावागरणाई वणेसु जह नंदणवणं पवरं, दुमेसु जह जंबू सुदंसणा वीसुयजसा-जीसे नामेण य अयं दीवो, तुरगवती गयवती रहवती नरवती जह वीसुए चेव राया, रहिए चेव जहा महारहगते। एवमणेगा गुणा अहीणा भवंति एक्कमि बंभचेरे ।। ३. जमि य आराहियंमि पाराहियं वयमिणं सव्वं । सीलं तवो य विणो य, संजमो य खंती गुत्ती मुत्ती। तहेव इहलोइय-पारलोइय-जसो य कित्ती य पच्चयो य । तम्हा निहुएण बंभचेरं चरियव्वं सव्वो विसुद्धं जावज्जीवाए जाव सेयट्ठिसंजोत्ति-एवं भणियं वयं भगवया। तं च इम पंचमहव्वय-सुव्वयमूलं, समणमणाइलसाहुसुचिण्णं । वेरविरामण-पज्जवसाणं, सव्वसमुद्द-महोदधितित्थं ॥१॥ तित्थकरेहि सुदेसियमग्गं, नरयतिरिच्छविवज्जियमग्गं । सव्वपवित्त-सुनिम्मियसारं, सिद्धिविमाण-अवंगुयदारं ॥२॥ देवनरिंदनमंसियपूयं, सव्वजगुत्तममंगलमग्गं । दुद्धरिसं गुणनायगमेक्क, मोक्खपहस्स वडिसकभूयं ॥३॥ जेण सुद्धचरिएण भवइ सुबंभणो सुसमणो सुसाहू । स इसी स मुणी स संजए स एव भिक्खू, जो सुद्धं चरति बंभचेरं ।। बंभचेरथिरीकरण-पदं ४. इमं च रति-राग-दोस-मोह-पवड्दणकरं किमज्झ-पमायदोस-पासत्थसीलकरणं अब्भंगणाणि य तेल्लमज्जणाणि य अभिक्खणं कक्खसीसकरचरणवदणधोवणसंबाहण-गायकम्म-परिमद्दण-अणुलेवण-चुण्णवास-धूवण - सरीरपरिमंडण-बाउसिक-हसिय-भणिय-नट्ट गीयवाइयनडनट्टकजल्लमल्लपेच्छण-वेलंबक जाणि य सिंगारागाराणि य अण्णाणि य एवमादियाणि तव-संजम-बंभचर-घातोवघातियाइं अणुचरमाणेणं बंभचेरं वज्जयव्वाइं सव्वकालं । भावेयव्वो भवइ य अंतरप्पा इमेहि तव-नियम-सील-जोगेहिं निच्चकालं, कि ते ?अण्हाणक-ऽदंतधोवण' - सेयमलजल्लधारण - मूणवय-केसलोय-खम-दम-अचेलगखप्पिवास - लाघव - सितोसिण-कट्ठसेज्ज-भूमिनिसेज्ज-परघरपवेस-लद्धावलद्ध १. संमोह (क, च)। वर्जयितव्या इति योगः (व)। २. छान्दसत्वाच्च प्रथमाबहुवचनलोपो दृश्यः, ३. अदंतधोवण (च)। Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (चउत्थं संवरदारं ) ७०१ माणावमाण- निंदण- दंस मसगफास नियम-तवगुणविणयमादिएहिं जहा से थिरतरगं होइ बंभचेरं ॥ इमं च प्रबंभचे रविरमण' - परिरक्खणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं प्रत्तहित पेच्चाभाविकं ग्रागमेसिभद्दं सुद्धं नेयाउयं प्रकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाण विप्रसवणं ॥ ५. बंभचेरस्स पंचभावणा-पदं ६. तस्स इमा पंच भावणाओ चउत्थवयस्स होंति प्रबंभचेरवेरमण परिरक्खणट्टयाए । पढमं - - सयणासण- घरदुवारअंगण आागास गवक्ख साल अभिलोयणपच्छवत्थुक- पाहण कहाणिकावकासा, अवकासा जे य वेसियाणं, अच्छंति are sftrarat अभिक्खणं मोह - दोस-रति- रागवड्डणीग्रो, कहिंति य कहाम्रो बहुवा, तेहु वणिज्जा । इत्थिसंसत्त-संकिलिट्ठा, अण्णे वि य एवमादी अवकासा ते हु वज्जणिज्जा जत्थ मणोविब्भमो 'वा भंगो वा" भंसणा वा श्रट्ट रुदं च होज्ज भाणं तं तं वज्जेज्ज वज्जभीरू प्रणायतणं अंतपंतवासी । एवमसंसत्तवासवसही समितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, ग्रारतमणविरयगामधम्मे जितेंदिए वंभचेरगुत्ते ॥ ७. ८. ε. बितियं -- नारीजणस्स मज्भे न कहेयव्वा कहा - विचित्ता विब्बोय - विलाससंपउत्ता हास- सिंगार - लोइयकह व्व मोहजणणी, न प्रवाह विवाह वरकहा, ' इत्थीणं वा सुभग-दुब्भग-कहा, चउसट्ठि" च महिला गुणा, न वण्ण-देस जातिकुल रूव-नाम-नेवत्थ- परिजणकहव्व इत्थियाणं, अण्णा वि य एवमादिया कहा सिंगार - कलुणाग्र तव - संजम - बंभचेर घातोवघातिया अणुचरमाणेण भरं न कहेयव्वा, न सुणेयव्वा, न चितेयव्वा । १. बंभचेर (क, ग, घ ); बंभविरमण ( ख ) । २. व्व भंगो व्व (क) 1 ३. ० कहाविव (क, ख, ग, घ, च ) । एवं इत्थीकहविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, प्रारमणविरयगामधम्मे जितेंदिए बंभचेरगुत्ते ॥ - ततियं - नारीण हसिय भणिय चेट्ठिय विप्पेक्खिय- गइ विलास कीलियं, विब्बोइय-नट्ट-गीत-वाइय- सरीरसंठाण वण्ण कर चरण नयण लावण्णरूव-जोवण्ण- पयोहर अधर - वत्थ-अलंकार-भूसणाणि य, गुज्झोकासियाई', अण्णाणि य एवमादियाई तव संजम - बंभचेर - घातोवघातियाई प्रणुचरमाणेण बंभचेरं न चक्खुसा न मणसा न वयसा पत्थेयव्वाइं पावकम्माई । - - - ४. दुभंग ( ख, ग, घ ) । ५. चोर्याट्ठि ( ख, ग, घ ) । ६. गुज्झोवकासियाई (क, ख, ग, घ, च) । Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ पण्हावागरणाई एवं इत्थीरूवविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, आरतमण विरयगामधम्मे जितेंदिए बंभचेरगुत्ते॥ १०. चउत्थं-पुव्वरय-पुव्वकीलिय-पुव्वसग्गंथ'-गंथ-संथुया जे ते आवाह-विवाह चोल्लकेसु य तिथिसु जण्णेसु उस्सवेसु य सिंगारागार-चारुवेसाहिं इत्थीहिं' हाव-भाव-पललिय - विक्खेव - विलास-सालिणीहि अणुकुलपेम्मिकाहिं सद्धि अणुभूया सयण-संपनोगा, उदुसुह-वरकुसुम-सुरभिचंदण-सुगंधिवर-वास-धूवसुहफरिस-वत्थ-भूसणगुणोववेया, रमणिज्जागोज्ज-गेज्ज'-पउरनड-नट्टक-जल्लमल्ल-मट्रिक-वेलंबग- कहग - पवग - लासग - प्राइक्खग - लंख - मंख-तुणइल्लतुंबवीणिय-तालायर-पकरणाणि य बणि महुरसर-गोत-सुस्सराइं, अण्णाणि य एवमाइयाइं तव-संजम-बंभचेर-घातोवघातियाई अणुचरमाणेण बंभचेरं न ताइं समणेण लब्भा दटुं न कहेउं नवि सुमरिउं जे। एवं पुन्वरयपुव्वकीलियविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, आरयमण-विरतगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते ॥ ११. पंचमगं—आहारपणीय-निद्धभोयण-विवज्जए संजते सुसाहू ववगयखीर-दहि सप्पि-नवनीय-तेल्ल-गुल-खंड-मच्छंडिक-महु-मज्ज-मस-खज्जक-विगति-परिचत्तकयाहारे न दप्पणं न बहुसो न नितिकं न सायसूपाहिकं न खलु, तहा भोत्तव्वं जह से जायामाता य भवति, न य भवति विब्भमो भंसणा य धम्मस्स। एवं पणीयाहारविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, प्रारयमणविरतगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते ।। निगमण-पदं १२. एवमिणं संवरस्स दारं सम्म संवरियं होइ सुप्पणिहितं इमेहिं पंचहि वि ___ कारणेहिं मण-वयण-काय-परिरक्खिएहिं ॥ १३. णिच्चं अामरणंतं च एस जोगो णेयव्वो धितिमता मतिमता अणासवो अकलुसो अच्छिद्दो अपरिस्सावी" असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणु ण्णाप्रो॥ १. ० संगंथ (ख, ग, घ, च)। ६. गेय (ग)। २. ४ (ख,ग,घ,च); स्त्रीभिरिति गम्यते (वृ)। ७. आहारं भुंजीतेतिशेषः (वृ) । ३. विच्छेव (क, ख, घ, च)। ८. एसो (क, ख, ग, घ)। ४. ° पेम्मकाहिं (क)। ६. णायव्वो (ख, घ)। ५. सुगध° (क, ख, ग, घ, च)। १०. अपरिस्सादी (क) अपरिस्साती (ख,घ,च)। Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (च उत्थं संवरदार) ७०३ १४. एवं' चउत्थं संवरदारं फासितं पालितं सोहितं तीरितं किट्टितं पाराहितं आणाए अणुपालितं भवति ।। १५. एवं नायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्ध सिद्धवरसासणमिणं प्रावियं सुदेसितं पसत्थं । चउत्थं संवरदारं समत्तं । ----त्ति बेमि॥ १. एयं (क, ख, घ)। Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव पदं १. दसमं श्रयणं पंचमं संवरदारं जंबू ! अपरिग्गहो' संवुडे य समणे प्रारंभ-परिग्गहातो विरते, विरते कोहमाणमायालोभा । एगे असंजमे। दो चेव राग-दोसा । तिण्णि य दंडा, गारवा य, गुत्तीओ, तिणि' य विराहणा । चत्तारि कसाया, झाणा, सण्णा, विकहा तहा य हुंति चउरो । पंचय करिया, समिति- इंदिय-महव्वयाइं च । छज्जीवनिकाया, छच्च लेसा । सत्त भया । अट्ठय मया । नव चैव य बंभचेरगुत्ती । दसप्पकारे य समणधम्मे । एक्कारस य उवासगाणं' । वारस य भिक्खुपडिमा । किरियठाणा य । भूयगामा | परमाधम्मिया । गाहासोलसया । श्रसंजम - प्रबंभ - णाय - असमाहिठाणा । सबला । परिसहा । सूयगडज्भयण-देव-भावण- उद्देस-गुण-पकप्प- पावसुत - मोहणिज्जे । सिद्धातिगुणा य । जोगसंग हे, 'सुरिदा । तेत्तीसा श्रासातणा" । [ आदि एक्काइयं करेत्ता एक्कुत्तरियाए ' वड्डिएसु तीसातो जाव उ भवे तिकाहिका " ] १. अपरिग्गह (क, ग, घ, च) । २. तिन्नि तिन्नि (क, ग, घ, च) । ३. प्रतिमा भवन्तीति गम्यम् (वृ) | ४. तेत्तीमा आसातणा सुरिंदा (क, ख, ग, घ, च) ; आदर्शेषु यद्यपि 'तेत्तीसा आसातणा सुरिंदा' एवं पाठो दृश्यते किन्तु अर्थ मीमांसया नैव सङ्गच्छते । 'जोगसंगहे सुरिंदा' एष क्रमः स्यात् तदार्थसङ्गतिर्जायते । यथा - ' तिण्णि दंडा गारवा य गुत्तीओ, तिष्णि य विराहणाम्रो' एवं एकस्यां संख्यायामनेकेषां विष ७०४ याणामुल्ले खोस्ति तथा द्वात्रिंशत् संख्यायामपि द्वयोर्विषयोरुल्ले खोस्ति, द्रष्टव्यमिह 'समवाओ' (३२/१,२) यथा - 'बत्तीस जोगसंगहा पण्णत्ता' तथा 'बत्तीसं देविंदा पण्णत्ता' । अत्र 'देविंदा' इति पदस्य स्थाने 'सुरिंदा' इति पदं प्रयुक्तमस्ति । ५. एएसुत्ति वाक्यशेष: ( वृ ) | ६. वृद्धया इति गम्यते ( वृ) । ७. असौ पाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं (पंचमं संवरदारं) ७०५ विरती-पणिहोसु अविरतीसु य, एवमादिसु बहसु ठाणेसु जिणपसत्थेसु अवितहेसु सासयभावेसु अवट्ठिएसु संकं कंखं निराकरेत्ता सद्दहते सासणं भगवतो अणियाणे अगारवे अलुद्धे अमूढमण-वयण-कायगुत्ते ।।। जो सो वीरवरवयणविरतिपवित्थर-बहविहप्पकारो सम्मत्तविसद्धमलो धितिकंदो विणयवेइओ निग्गततिलोक्कविपुलजसनिचियपीणपीवरसुजातखंधो पंचमहव्वयविसालसालो भावणतयंत' - ज्झाण-सुभजोग -नाण-पल्लववरंकुरधरो बहुगुणकुसुमसमिद्धो सीलसुगंधो अणण्हयफलो' पुणो य मोक्खवरबीजसारो मंदरगिरि-सिहरचूलिका इव इमस्स मोक्खवर-मोत्तिमग्गस्स सिहरभूत्रो संवरवरपायवो । चरिमं संवरदारं ॥ प्रकप्पदव्वजाय-पदं ३. जत्थ न कप्पइ गामागर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासमगयं च किंचि अप्पं व बहुं व अणुं व थूलं व तस-थावरकाय-दव्वजायं मणसा वि परिघेत्तुं ।' न हिरण्ण-सुवण्ण-खेत-वत्यु, न दासी-दास-भयक-पेस-हय-गय-गवेलगं व, न जाण-जुग्ग-सयणासणाई, न छत्तकं न कुंडिया' 'न पाणहा न पेहुण-वीयण तालियंटका॥ ४. न यावि अय-तउय-तंब - सीसक-कंस - रयत - जातरूव-मणि - मुत्ताधारपुडक संख-दंतमणि-सिंग-सेल-काय-वइर'-चेल-चम्म-पत्ताई महारिहाई परस्स अज्झो ववायलोभजणणाइं परियड्डिउं गुणवत्रो ॥ ५. न यावि पुप्फ-फल-कंद-मूलादियाइं, सणसत्तरसाई सम्बधण्णाइं तिहिं वि जोगेहिं परिघेत्तुं प्रोसहभेसज्जभोयणट्ठयाए संजएणं । किं कारणं?--- अपरिमितणाणदंसणधरेहिं सील-गुण-विणय-तव-संजमनायकेहि तित्थयरेहि १. भावणतयं (घ, ७); ° तयंत (वपा) । वृत्तिकृत्ता 'वर' इति पदं लब्धम्, तेन २. अणण्हव ° (वृ)। 'काचवरः प्रधानकाचः' इति व्याख्यातम् । ३. परिघेत्तू (क, ख, ग, घ)। वस्तुतोत्र 'वइर' इति पदमासीत् । लिपि४. कोंडिका (ख, घ)। दोषेण तद् विपर्ययो जातः । निसीहज्झयणस्स ५. नोवाहणा (ख); न वाहणा (ग, च); एकादशोद्देशे प्रथमे सूत्रे 'कायपायाणि वा.' __नोपाणहा (क्व)। वइरपायाणि वा' इति पदद्वयं सुस्पष्टमस्ति । ६. न कल्पते परिग्रहीतुमिति शेषः । अत्रापि पात्रप्रकरणे तथैव युज्यते । ७. हारपुलक (क)। आचारचूलाया: , पाषणाध्ययने 'वर' ८. लेस (वृपा)। पदस्य उल्लेखो नास्ति । ६. वर (क, ख, ग, घ, च, वृ); एतत् पदं १०. गुणवयाइं (क)। वृत्तिरचनात् पूर्वमेव विपर्यस्त जातम् । Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ पावागरणाई सव्वजग-जीव- वच्छलेहि तिलोय महिएहिं जिणर्वारिदेहिं एस जोणी जगाणं दिट्ठा न कप्पते' जोणिसमुच्छेदोत्ति, तेण वज्जंति समणसीहा ॥ सणिहि-पदं - ६. जंपि य ओदण - कुम्मास गंज- तप्पण-मंथु भुज्जिय- पलल-सूप - सक्कुलि-वेढिम-वरसरक' - चुण्णकोसग - पिंड - सिरिणि वट्ट मोयग खीर. दहि- सप्पि - नवनीत-तेल्लगुड-खंड -मच्छंडिय. मधु मज्ज-मंस-खज्जक वंजणविधिमादिकं पणीयं उवस्सए परघरे व रण्णे न कप्पति तंपि सणिहिं काऊण सुविहियाणं || प्रकम्प भोयण-पदं ७. जंपि य उद्दिठविय-रचितग-पज्जवजात-पकिण्ण पाउकरण- पामिच्चं, मीसककीड - पाहुडं वा, दाणट्ट- पुण्णपगडं, समण-वणीमगट्टयाए व कयं पच्छाकम्मं पुरेकम्मं नितिकं मविखयं प्रतिरिक्तं मोहरं चेव सयंगाहमाहड' मट्टिश्रोवलित्तं, अच्छेज्जं चेव प्रणीसट्टं, जं तं तिहीसु' जण्णेसु ऊसवेसु य अंतो व्व बहिं व होज्ज समाए ठवियं हिंसा सावज्ज-संपत्तं न कप्पति तंपि य परिघेत्तुं ॥ कपभोयण-पदं ८. ग्रह केरिसयं पुणाइ कप्पति ? जं तं एक्कारसपिंडवायसुद्धं किणण-हणण- पयण- कयकारियाणु मोयण-नवकोहि सुपरिसुद्ध, दसहि य दोसेहिं विप्पमुक्कं उग्गम उप्पायणे सणासुद्धं, ववगय-चुय-चइय-चत्तदेहं च फासूयं च ववगयसंजोग मणिगालं, विगयधूमं, छट्ठा - निमित्तं, छक्कायपरिरक्खणट्ठा हणिहणि फासुकेण भिक्खेण वट्टियव्वं ॥ गाविस णिहि-पदं ६. जंपि य समणस्स सुविहियस्स उ रोगायंके बहुप्पकारंमि समुप्पण्णे, वाताहिकपित्तसिंभाइरित्तकुविय तहसण्णिवायजाते, उदयपत्ते उज्जल-बल- विउल-तिउलकक्खड - पगाढ- दुक्खे, प्रसुभ- कडुय - फरुस - चंडफलविवागे महब्भये जीवियंतकरण सव्वसरीर-परितावणकरे न कप्पति" तारिसे वि तह अप्पणी परस्स वा श्रोसहभेसज्जं भत्त-पाणं च तंपि सष्णिहिकयं ॥ १. कप्पती (क, ग, घ, च) । २. विसारक ( क ) । ३. गुल ( ग, घ, च) । ४. काउ ( ग ) । ५. सयगाह ० ( घ च ) । ६. तिहिसु ( क च ) । ७. चयिय ( क ) ; चविय (घ ) । हणि-हणि (क, ग, घ ) । ८. ० जाते व्व (क, ग, घ, च) । ε. १०. कप्पती ( क ) । Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अयणं (पंचमं संवरदाएं) उवगरणधारण विहि-पदं १०. जंपि य समणस्स सुविहियस्स तु पडिग्गहधारिस्स भवति भायण-भंडोवहिउवगरणं पडिग्गहो पायबंधणं पायकेसरिया पायठवणं च पडलाई तिण्णेव, यत्ताणं च गोच्छओ, तिण्णेव य पच्छाका, रोहरण - चोलपट्टक-मुहणंतकमादीयं । एवं पिय संजमस्स उववू हणट्टयाए वायायव - दंस-मसग सीय- परिरक्खणयाए उवगरणं रागदोसरहियं परिहरियव्वं संजएण णिच्चं, पडिले हण- पष्फोs - मज्जणाए ग्रहो य राम्रो य अप्पमत्तेण होइ सततं निक्खिवियव्वं च गिहियव्वं च भायण - भंडोवहि-उवगरणं ॥ समणस्स सरूवनिरूवण-पदं ११. एवं से संजते विमुत्ते निस्संगे निष्परिग्गहरुई निम्ममे निन्नेह - बंधणे सव्वपावविरते वासीचंदण- समाणकप्पे सम-तिण' - मणि-मुत्त' - लेट्ठ-कंचण-समे समे य माणा माणणाए समियरए समित- रागदोसे, समिए समितीसु, सम्मदिट्ठी, समय जे सव्वपाणभूतेसु, से हु समणे, सुयधारते उज्जुए संजते सुसाहू, सरणं सव्वभूयाणं, सव्वजगवच्छले सच्चभासके य, संसारंते ठिते य, संसारसमुच्छिष्णे सततं मरणाणुपारए, पारगे य सव्वेसि संसयाणं, पवयणमायाहि अहिं अटुकम्मगंठीविमोयके, अट्टमयमहणे ससमयकुसले य भवति सुह- दुक्ख - निव्विसेसे, अब्भितर बाहिरंभि सया तवोवहाणंभि य सुट्ठज्जुत्ते, खंते दंते य हियनिरते', ईरियासमिते भासासमिते एसणासमिते प्रयाण - भंड- मत्त - निक्खेवणासमिते उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणजल्ल- परिद्वावणियासमिते मणगुत्ते गुत्ते कायगुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारि चाई' लज्जू धन्ने तवस्सी खंतिखमे जितिदिए सोधिए अणियाणे प्रबहिल्लेस्से श्रममे किंचणे छिण्णगंथे ' निरुवलेवे, सुविमल - वरकंसभायणं व मुक्कतोए, संखे विव निरंगणे विगय-राग-दोस- मोहे, कुम्मो व इंदिए गुत्ते, जच्चकंचणं" व जायरूवे, पुक्खरपत्तं व निरूवलेवे, १. तण (क ) । २. मुत्ते ( ख ) । ३. उज्जते (क्व ); उद्यतो वा ( वृ ) । ४. पारके (क, ख, घ, च) । ५. निरते ( वृपा) । ६. चागी (ख, घ, च) । ७. सोधिके (क, ख, घ, च) । ८. छिण्णसोए (वृपा) । ९. चेव (क, ख, ग, घ, च) । १०. इव (क, ग) । ११. ० कंचणगं (क, ग, घ ) । ७०७ Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०८ पण्हावागरणाई चंदो इव सोमभावयाए, सूरो व्व दित्ततेए, अचले जह मंदरे गिरिवरे, अक्खोभे सागरो व्व थिमिए, पुढवीव सव्वफाससहे, तवसावि' य भास रासिछन्ने व्व' जातते ए, जलिययासणो विव तेयसा जलते, गोसीसचंदणं पिव सीयले सुगंधे य, हरयो विव समियभावे, उग्घसिय सुनिम्मलं व प्रायंसमंडलतलं पागडभावेण सुद्धभावे, सोंडीरे कुंजरे' व्व, वसभे व्व जायथामे, 'सीहे वा जहा मिगाहिवे होति दुप्पधरिसे, सारयसलिलं व सुद्धहियए, भारंडे चेव अप खग्गिविसाणं व एगजाते, खाणुं चेव उड्डकाए, सुन्नागारे व्व अप्पडिकम्मे, सुन्नागारावणस्संतो निवायसरणप्पदीवज्झाणमिव निप्पकंपे, जहा खुरो चेव एगधारे, जहा अही चेव एगदिट्ठी, अागासं चेव निरालंबे, विहगे विव सव्वरो विप्पमुक्के, कय-परनिलये जहा चेव उरए, अपडिबद्धे अनिलो व्ब, जीवो व्व अप्पडिहयगती, १. सोमताए (वृ); सोमभावयाए (वृपा); २. पुढवी विव (घ, च)। अोवाइयसुत्ते (सू० २७) 'चदो इव सोमलेसा' ३. ० इ (ख, ग, घ, च)। तथा कप्पसूते 'चंदो इव सोमलेसे' आयारो ४. हरतो (ख, घ, च)। तह आयारचूला परिशिष्ट ३, पृ० १६ ५. कुंजरो (ग, च)। तथा जंबुद्दीवपण्णत्तीए 'चंदो इव सोमदंसणे' ६. सीहे ब्व (क); सीहो वा (ख, घ) सीहो इति पाठो विद्यते, प्रायारो तह आयारचूला व्व (च)। परिशिष्ट ३, पृ० १७ । ७. विहंगे (ख, च)। Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झणं (पंचमं संवरदारं ) ७०६ गामे - गामे एगरायं, नगरे-नगरे य पंचरायं दूइज्जते य, जितिदिए जितपरीस हे निब्भए' विऊ' सच्चित्ताचित्तमीसकेहिं दव्वेहिं विरायं गते, संचयतो विरए, मुत्ते लहुके निरवकखे जीवियमरणासविप्पमुक्के, निस्संधि निव्वणं चरितं धीरे काएण फासयंते, सततं अज्झष्पभाणजुत्ते निहुए एगे चरेज्ज धम्मं ।। १२. इमं च परिग्गहवेरमण - परिरक्खणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं प्रत्तहियं पेच्चाभाविकं श्रागमेसिभ सुद्धं नेयाज्यं प्रकुडिलं प्रणुत्तरं सव्वदुक्खपावाण विप्रोसमणं ॥ परिग्गहस्स पंचभावणा-पदं १३. तस्स इमा पंचभावणाओ चरिमस्स वयस्स होंति परिग्गहवेरमण- रक्खणट्टयाए । १४. पढमं - सोइदिएण सोच्चा सद्दाई मणुण्ण-भद्दगाई, किं ते ? वरमुरय-मुइंग-पणव- ददुर-कच्छभि- वीणा - विपंची- वल्लयि- वद्धीसक-सुघोसनंदि - सूसर परिवादिणी-वंस तूणक पव्वक तंती - तल-ताल-तुडियनिग्घोस गीयवाइयाई, नडनट्टक- जल्ल- मल्ल- मुट्ठिक - वेलं'बक कहक पवक-लासग ग्राइक्खकलंख-मंख-तूणइल्ल- तुंबवीणिय-तालायर - पकरणाणि य, बहूणि महुरसर- गीतसुस्सराई, कंची - मेहला कलाव पतरक- पहेरक-पायजालग घंटियखिखिणिरयणोरुजालय-छुद्दिय- नेउर चलणमालिय- कणगनियल - जालग भूसणसद्दाणि, लीलच कम्ममाणा णुदीरियाई, तरुणीजणहसिय भणिय- कलरिभित-मंजुलाई, गुणवयाणि य बहूणि महुरजणभासियाई, अण्णेसु य एवमादिएसु ससु मण-भद्दसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं न रज्जियव्वं न गिज्झियव्व न मुज्झियव्वं न विणिग्घायं श्रावज्जियव्वं न लुभियध्वं न तुसियव्वं न हसियव्वं न सई च मई च तत्थ कुज्जा । पुणरवि सोइदिएण सोच्चा सद्दाई मणुण्ण- पावकाई, किं ते ? - प्रक्कोस - फरुस - खिंसण- प्रवमाणण तज्जण निब्भंछण दित्तवयण तासणउक्कूजिय-रुण्ण-रडिय - कंदिय निग्घुट्ठर सिय-कलुणविलवियाई", अण्णेसु य एवमादिसु ससु मणुण्ण - पावएसु न तेसु समणेण रूसियव्वं न हीलियव्वं न निदियव्वं न खिसियव्वं न छिदियव्वं न भिदियव्वं न वहेयव्वं न दुगंछावत्तिया व लब्भा उप्पाए । एवं सोतिदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा, मणुण्णाऽमणुण्ण-सुब्भि-दुब्भिरागोस - पणियिप्पा साहू मण वयण- कायगुत्ते संबुडे पणिहितिदिए चरेज्ज धम्मं ॥ १. निभओ ( ग ) । २. विउसे (च ); विसुद्ध ( वृपा) । ३. निहते ( क ) ; निहुके (ख, घ, च) । ४. मेहल (क, ग, घ, च ) । ५. करुण ० ( क ) । Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० पण्हावागरणाई १५. बितियं-चक्खुइंदिएण पासिय रूवाणि मणुण्णाइं भद्दकाई, सचित्ताऽचित्त मीसकाई–कट्ठ पोत्थे य चित्तकम्मे लेप्पकम्मे सेले य दंतकम्मे य, पंचहि वण्णेहि अणेगसंठाण-संठियाई, गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघातिमाणि य मल्लाई बहुविहाणि य अहियं नयण-मणसुहकराई, वणसंडे पव्वते य गामागरनगराणि य खुद्दिय-पुक्खरणि-वावी-दीहिय-गुंजालिय-सरसरपंतिय-सागर-बिलपंतियखातिय-नदि-सर-तलाग-वप्पिणी-फुल्लुप्पल-पउम' परिमंडियाभिरामे, अणेगसउणगण - मिहुणविचरिए, वरमंडव - विविहभवण - तोरण-चेतिय-देवकुल-सभप्पवावसह-सुकयसयणासण-सीय-रह-सगड-जाण-जुग्ग-संदण-नरनारिगणे य सोमपडिरूवदरिसणिज्जे, अलंकियविभूसिए, पुवकयतवप्पभावसोहग्गसंपउत्ते, नड-नट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय- वेलबग-कहक-पवग - लासग-आइक्खग - लंख-मंखतूणइल्ल-तुंबवीणिय-तालायर-पकरणाणि य बहूणि सुकरणाणि, अण्णेसु य एवमादिएसु रूवेसु मणुण्ण-भद्दएसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं न 'रज्जियव्वं न गिझियव्वं न मुज्झियव्वं न विणिग्घायं आवज्जियव्वं न लुभियव्वं न तुसियव्वं न हसियव्वं न सई" च मइं च तत्थ कुज्जा। पुणरवि चक्खिदिएण पासिय रूवाइं अमणुण्ण-पावकाई, किं ते ? - गंडि-कोढिक-कुणि-उदरि-कच्छुल्ल-पइल्ल-कुज्ज - पंगुल-वामण-अंधिल्लग - एगचक्खुविणिहय-सप्पिसल्लग-वाहिरोगपीलियं, विगयाणि य मयककलेवराणि, सकिमिणकुहियं च दव्वरासि, अण्णेसु य एवमादिएसु अमणुण्ण-पावतेसु न तेसु समणेण रूसियव्वं 'न हीलियव्वं न निदियव्वं न खिसियव्वं न छिदियव्वं न भिदियव्वं न वहेयव्वं ° न दुगुंछावत्तिया व लब्भा उप्पातेउ। एवं चक्खिदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा', 'मणुण्णाऽमणुण्ण-सुब्भिदुब्भि-रागदोस-पणिहियप्पा साहू मण-वयण-कायगुत्ते संवुडे पणिहितिदिए ° चरेज्ज धम्म ॥ १६. ततियं-घाणिदिएण अग्घाइय गंधाति मणुण्ण-भद्दगाइं, किं ते ? जलय-थलय-सरसपुप्फफलपाणभोयण-कोट्ठ-तगर-पत्त-चोय-दमणक-मरुय - एलारस-पिक्कमंसि-गोसीस-सरसचंदण-कप्पूर - लवंग-अगरु-कुंकुम - कक्कोल -उसीर- . सेयचंदण-सुगंधसारंगजुत्तिवरधूववासे उउय-पिंडिम-णिहारिम-गंधिएसु, अण्णेसु १. खादिय (क, ग)। २. पउमसंड (ख, घ)। ३. रज्जियव्वं जाव न सई (क, ख, ग, घ)। ४. मतक° (ख, घ, च)। ५. सं० पा०-रूसियव्वं जावन । ६. सं० पा०-अंतरप्पा जाव चरेज्ज। ७. कुट्ठ (क, ग)। ८. पक्कमसि (ख) विक्कमंसि (च)। ६. उदुय (क, घ)। Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७११ दसमं अज्झयणं (पंचमं संवरदारं) य एवमादिएसु गंधेसु मणुण्ण-भद्दएसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं न रज्जियव्वं न गिज्झियव्वं न मुज्झियव्वं न विणिग्घायं आवज्जियव्वं न लुभियव्वं न तुसियव्वं न हसियव्वं ° न सतिं च मई च तत्थ कुज्जा। पुणरवि घाणिदिएण अग्घाइय गंधाणि अमणुण्ण-पावकाइं, कि ते ?अहिमड-अस्समड-हत्थिमडगोमड-विग-सुणग-सियाल-मणुय-मज्जार-सीह-दीवियमयकुहियविणट्ठकिविण-बहुदुरभिगंधेसु, अण्णेसु य एवमादिएसु गंधेसु अमणुण्णपावएसु न तेसु समणेण रूसियव्वं न हीलियव्वं 'न निदियव्वं न खिसियव्वं न छिदियव्वं न भिदियव्वं न वहेयव्वं न दुगुंछावत्तिया व लब्भा उप्पाएउ । एवं घाणिदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा, मणुण्णाऽमणुण्ण-सुब्भि-दुब्भिरागदोस-पणिहियप्पा साहू मण-वयण-कायगुत्ते संवुडे ° पणिहिएंदिए' चरेज्ज धम्म ।। १७. चउत्थं ---जिभिदिएण साइय रसाणि उ मणुण्ण-भद्दकाइं, कि ते ? - उग्गाहिम-विविहपाण-भोयण-गुलकय-खंडकय-तेल्लघयकय-भक्खेसु बहविहेस लवणरससंजुत्तेसु महु-मंस-बहुप्पगारमज्जिय-निट्ठाणग-दालियंब-सेहंब-दुद्ध-दहिसरय-मज्ज-वरवारुणी-सीहु-काविसायणक-साकट्ठारस-बहुप्पगारेसु भोयणेसु य मणुण्णवण्ण-गंध-रस-फास-बहुदव्वसंभितेसु, अण्णेसु य एवमादिएसु रसेसु मणण्णभद्दएसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं 'न रज्जियव्वं न गिज्झियव्वं न मुज्झियव्वं न विणिग्घायं पावज्जियव्वं न लुभियव्वं न तुसियव्वं न हसियव्वं न सई च मइं च तत्थ कुज्जा। पूणरवि जिब्भिदिएण सायिय रसातिं अमणुण्ण-पावगाई, कि ते ?अरस-विरस-सीय-लुक्ख-णिज्जप्प-पाण-भोयणाई दोसीण-वावण्ण-कुहिय-पूइयअमणुण्ण-विणट्ठ-पसूय-बहुदुब्भिगंधियाइं तित्त-कडुय-कसाय-अंबिल-रस-लिंडनीरसाइं, अण्णेसु य एवमाइएसु रसेसु अमणुण्ण-पावएसु न तेसु समणेण रूसियवं •न हीलियव्वं न निदियव्वं न खिसियव्वं न छिदियव्वं न भिदियव्वं न वहेयव्वं न दुगंछावत्तिया व लब्भा उप्पाएउं । एवं जिभिदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा, मणुण्णाऽमणण्ण-सब्भि-दब्भिरागदोस-पणिहियप्पा साहू मण-वयण-कायगुत्ते संवुडे पणिहितिदिए ° चरेज्ज धम्म ॥ १८. पंचमगं--फासिदिएण फासिय फासाइं मणुण्ण-भद्दकाई, किं ते ? - १. सं० पा०-सज्जियव्वं जाव न सति । २. सं० पा०-हीलियव्वं जाव पणिहिएदिए। ३. पिहियपंचेंदिए (ख)। ४. सं० पा०-सज्जियव्वं जाव न सइं। ५.णिज्जप (क, ख, ग)। ६. सं० पा०- रूसियव्वं जाव चरेज्ज। Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ पहा वागरणाई दगमंडव-हार-सेयचंदण - सीयलविमलजल - विविहकुसुमसत्थर - ओसीर - मुत्तिय - मुणाल- दोसिणा पेहुण उक्खेवग तालियंट-बीयणग- जणियसुहसीयले य पवणे गिम्हाले, सुहफासाणि य बहूणि सयणाणि ग्रासणाणि य, पाउरणगुणे य सिसिरकाले अंगार - पतावणा य आयव- निद्ध-मउय-सीय - उसिण - लहुया य जे उदुसुहफासा अंग सुह- निव्वुइकरा ते', अण्णेसु य एवमादिएसु फासेसु मणुण्णभद्दसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं न रज्जियव्वं न गिज्भियव्वं न मुज्झियव्वं न विणिग्धाय वज्जियव्वं न लुभियव्वं न अज्भोववज्जियव्वं न तुसियव्वं न हरियव्वं न सति च मति च तत्थ कुज्जा । - पुणरवि फासिदिएण फासिय फासाति मणुण्ण- पावकाई, किं ते ? – अणेगबंध-वह-तालणंकण-प्रतिभारारोहणए, अंगभंजण- सूईनखप्पवेस-गायपच्छणण'-लक्खारस-खारतेत्ल - कलकलत उ-सी सक - काललोहसिंचण हडिबंधण - रज्जु - निगल - संकल- हत्थंडुय' - कुंभिपाक-दहण - सीहपुच्छण उब्बंधण सूलभेयगयचलणमलण -करचरणकण्णनासोसीसछेयण' - जिब्भंछण - वसणनयण हिययंतदंतभंजण'-जोत्तलयक सप्पहार पादपहि जाणुपत्थर निवाय पीलण कविकच्छुअगणि-विच्छुय डक्क- वायातवदंस मसकनिवाते, 'दुट्टणिसेज्जा दुनी हिया कक्खड'-गुरु-सीय-उसिण - लुक्खेसु बहुविहेसु, अप्सु य एवमाइएस फासेसु श्रमण- पावसु न तेसु समणेण रूसियव्वं न हीलियव्वं न निदियव्वं न गरहियव्वं न खिसियव्वं न छिदियध्वं न भिदियव्वं न वहेयव्वं न दुगुंछावत्तियं च लब्भा उप्पाएउं । एवं फासिंदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा, मणुण्णामणुष्ण-सुब्भि-दुब्भिरागदोस - पणिहियप्पा साहू मण वयण कायगुत्ते संवुडे पणिहितिदिए चरेज्ज धम्मं ॥ निगमण-पदं १६. एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ सुप्पणिहियं इमेहिं पंचहिवि कारणेहिं मण - वयण - काय परिरक्खि एहिं ॥ २०. निच्चं आमरणंतं च एस जोगो णेयव्वो धितिमया मतिमया अणावसो अकलुसो १. तान् स्पृष्ट्वा इति प्रकृतम् (वृ ) । २. पूर्ववर्तिषु १४ - १७ सूत्रेषु एतत् पदं नास्ति । तत्र लिपिकाले त्रुटितमथवात्र अतिरिक्तमस्ति । ३. ० पच्छण (क, घ ) । ४. सिसक (क, ख, ग, घ, च) । - ५. हत्थंदुय ( ख, ग ) । ६. कण्णनासोटू (क, ग, घ ) । O o ७. ° हिययदंत (क, ग ); ° हियएदंत (घ ) । दुट्टणिसेज्जदुनिसीहिय ( क, ख, ग, घ, च) । ८. C. कक्कड ( क ) । Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द समं अज्झयणं (पंचमं संवरदार) ७१३ अच्छिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुण्णातो ।। २१. एवं पंचमं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं पाराहियं 'आणाए अणुपालियं" भवति ।। २२. एवं नायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवियं सुदेसियं पसत्थं—पंचमं संवरदारं समत्तं । -त्ति बेमि ।। २३. 'एयाई वयाति' पंचवि सुव्वय-महव्वयाइं हेउसय-विवित्त-पुक्कलाई कहिया अरहंतसासणे पंच समासेण संवरा, वित्थरेण उ पणवीसति । समिय-सहियसंवुडे सया जयण-घडण-सुविसुद्ध-दसणे एए अणुचरिय संजते चरमसरीरधरे भविस्सतीति। परिसेसो पण्हावागरणाणं एगो सुयक्खंधो, दस अज्झयणगा एक्कस रगा, दससु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जति, एगंतरेसु आयंबिलेसु निरुद्धेसु आउत्तभत्तपाणएणं । अंगं जहा आयारस्स ।। पण्हावागरणं दसमं अंगं सुत्तो समत्तं । ग्रन्थ परिमाण कुल अक्षर-४१३३८ अनुष्टुप् श्लोक-१२६१ अ० १६ १. अणुपालियं आणाए आराहियं (क, ख, ग, घ, च)। २. वताइं (ख)। ३. वाचनान्तरे पुननिगमनमन्यथाऽभिधीयते यदुत एतानि पंचापि सुव्रत ! महाव्रतानि लोकध्र तिदव्रतानि श्रुतसागरदर्शितानि तपः संयमव्रतानि शीलगुणधरव्रतानि सत्याव व्रतानि नरकतिर्यङ मनजदेवगतिविवर्जकानि सर्वजिनशासनकानि कर्म रजोविदारकाणि भवशतविमोचकानि दुःखशतविनाशकानि सुखशतप्रवर्तकानि कापूरुषदुरुत्तराणि सत्पुरुषतीरितानि निर्वाणगमनस्वर्गप्रयाणकानि पंचापि संवरद्वाराणि समाप्तानीति ब्रवीमि (व)। Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्da-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था - वण्णो । पुण्णभद्दे चेइए' ॥ २. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतेवासी ग्रज्जसुहम्मे नाम अणगारे जाइसंपण्णे वण्णो, चउद्दसपुब्वी चउनाणोवगए पंचहि अणगारसहि सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्वि' चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नयरी० जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ग्रहापडिरूवं' ओग्गहं ओगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ । परिसा निग्गया । धम्मं सोच्चा निसम्म जामेव दिसं पाउ भूया तामेव दिसं पडिगया || पढमो सुक्खंधो पढमं श्रवणं मियापु o ते काणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अंतेवासी अज्जजंबू नामं अणगारे सत्तुस्सेहे जहा गोयमसामी तहा जाव झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ || १. नाम (क, ख ) । २. ओ० सू० १ । ३. चेतिते ( क ); चेईए ( ग ); चेइए तहा वणी (घ) । ४. ना० १।१।४ । ५. ० पु०वी ( क, ख ); सं० पा० - पुव्वाणुपुव्वि जाव जेणेव । ६० सं० पा० ग्रहापडिरूवं जाव विहरइ | ७. ओ० सू० ८२ । ७१७ Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१८ विवागसुयं तए णं अज्जजंबू नामे' अणगारे जायसड्ढे जाव' जेणेव अज्जसुहम्मे अणगारे तेणेव उवागए तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जाव' पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दसमस्स अंगस्स पण्हावागरणाणं अयम? पण्णत्ते, एक्कारसमस्स णं भंते ! अंगस्स विवागसुयस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? तए णं अज्जसुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं एक्कारसमस्स अंगस्स विवाग सुयस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, तं जहा-दुहविवागा य सुहविवागा य ।। ६. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं एक्कारसमस्स अंगस्स विवागसुयस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, तं जहा-दुहविवागा य सुहविवागा य। पढमस्स णं भंते ! सुयक्खंधस्स दुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अद्रे पण्णत्ते ? ७. तएणं अज्जसुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा १. 'मियउत्ते" य २.उज्झियए, ३.अभग्ग" ४.सगडे२ ५. बहस्सई ६. नंदी। ७. उंबर ८. सोरियदत्ते य, ६. देवदत्ता य १०. अंजू य" ॥१॥ ८. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं दुहविवागाणं दस १. नामं (ग) ९. ना० ११११७ । २. प्रो० सू० ८३। १०. मियापुत्ते (ख, घ)। ३. प्रो० सू० ८३ । ११. अभग्गे (ख)। ४. पज्जुवासइ (क, ख, ग, घ)। एतादृशे १२. सगते (ग)। प्रसंगे प्रायेण 'पज्जुवासमाणे' इति पाठो १३. ठाणं (१०।१११) सूत्रे विपाकाध्ययननामसु लभ्यते, लिपिदोषात् 'पज्जुवासई' इति जातः विपर्ययो दृश्यते, तद्यथासंभाव्यते। मियापुत्ते य गोत्तासे, अंडे सगडेति यावरे । ५,६. ना० ११११७ माहणे णंदिसेणे, सोरिए य उदुंबरे ॥ ७. ना० ११११७ सहसुद्दाहे आमलए, कुमारे लेच्छई इति । ८. सुधम्मे (क)। १४. ना० २११७ । Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (मियापुत्ते) ७१६ अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा–मियउत्ते जाव' अंजू य । पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स दुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पण्णत्ते ? मियापुत्त-वण्णग-पदं ६. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं मियग्गामे नामं नयरे होत्था–वण्णो ' । १०. तस्स णं मियग्गामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए चंदणपायवे नाम उज्जाणे होत्था-सव्वोउय-पप्फ-फल-समिद्धे-वण्णग्रो॥ ११. तत्थ णं सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था-चिराइए जहा पुण्णभद्दे ।। १२. तत्थ णं मियग्गामे नयरे विजए नाम खत्तिए राया परिवसइ-वण्णयो । १३. तस्स णं विजयस्स खत्तियस्स मिया नाम देवी होत्था-अहीण-पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरा-वण्णप्रो॥ १४. तस्स णं विजयस्स खत्तियस्स पुत्ते मियाए देवीए अतए मियापुत्ते नामं दारए होत्था—जातिअंधे जातिमूए जातिबहिरे जातिपंगुले हुंडे य वायव्वे । नत्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी वा नासा वा । केवलं से तेसि अंगोवंगाणं आगिती आगितिमत्ते॥ १५. तए णं सा मियादेवी तं मियापुत्तं दारगं रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरद्द ।। गोयमस्स जाइग्रंधपुरिसविसए पुच्छा-पदं १६. तत्थ णं मियग्गामे नयरे एगे जाइअंधे पुरिसे परिवसइ । से णं एगेणं सचक्खएणं पूरिसेणं पुरनो दंडएणं' 'पकड्डिज्जमाणे-पकड्डिज्जमाणे'१० फुट्ट-हडाहड-सीसे मन्छिया-चडगर-पहकरेणं अणिज्जमाणमग्गे मियग्गामे नयरे गेहे-गेहे कोलूण वडियाए वित्ति कप्पेमाणे विहरइ ।। १७. तेण कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे" "पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे १. वि० १११७। २. प्रो० सू०१। ३. ना० ११३१३ । ४. ओ० सू० २। ५. ओ० सू० १४ ॥ ६. ओ० सू० १५ । ७. मियपुत्ते (क)। ८. वायवे (क, घ)। ६. डंडएणं (क, ग)। १०. पगड्ढिज्जमाणे २ (ख); पगडिज्जमाणे २ (घ)। ११. सं० पा०–महावीरे जाव समोसरिए। Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० विवागसुयं गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे मियग्गामे नयरे चंदणपायवे उज्जाणे ° समोसरिए । परिसा निग्गया ।। १८. तए णं से विजए खत्तिए इमीसे कहाए लद्धद्वे समाणे जहा कूणिए तहा निग्गए जाव' पज्जुवासइ॥ १६. तए णं से जाइअंधे पुरिसे तं महयाजणसदं च जणवहं ए जणबोलं च जणकलकलं च ° सणेत्ता तं परिसं एवं वयासी-किण्णं देवाणप्पिया ! अज्ज मियग्गामे नयरे इंदमहे इ वा 'खंदमहे इ वा उज्जाण-गिरिजत्ता इ वा, जो णं बहवे उग्गा भोगा" एगदिसि एगाभिमुहा० निग्गच्छंति ? २०. तए णं से पुरिसे तं जाइअंधं पुरिसं एवं वयासो-नो खलु देवाणप्पिया ! अज्ज मियग्गामे नयरे इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा उज्जाणगिरिजत्ता इ वा, जनो णं बहवे उग्गा भोगा एगदिसि एगाभिमुहा० निग्गच्छंति । एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे •भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इह चेव मियग्गामे नयरे चंदणपायवे उज्जाणे अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ० विहरइ । तए णं एए जाव' निग्गच्छंति ॥ २१. तए णं से अंधे पुरिसे तं पुरिसं एवं वयासी-गच्छामो णं देवाणप्पिया ! अम्हे वि समणं भगवं" •महावीरं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो ॥ २२. तए णं से जाइअंधे पुरिसे तेणं पुरो दंडएणं पुरिसेणं पकड्डिज्जमाणे पकड्रिज्जमाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव 'उवागच्छइ, उवागच्छित्ता १२ तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ जाव' पज्जुवासइ॥ २३. तए णं समणे भगवं महावीरे विजयस्स रण्णो तीसे य महइमहालियाए परिसाए मझगए विचित्तं० धम्ममाइक्खइ । परिसा" पडिगया विजए वि गए॥ १. ओ० सू० ५४-६६ । १०. वि० १११।१६। २. सं० पा०-जणसइं च जाव सुणेत्ता। ११. सं० पा०-.-भगवं जाव पज्जुवासामो। ३. सं० पा०-इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छति। १२. उवागए २ (ख, ग)। ४. पू०-ना० ११११६६ । १३. ना० १११।१६। ५. पू०-ना० १।११६६ । १४. सं० पा०-तीसे य० । ६. सं० पा०-इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति। १५. धम्म परिकहेइ (ख)। ७. ८. पू०-ना० ११११९६ । १६. परिसा जाव (क, घ)। 8. सं० पा०-समणे जाव विहरइ। Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२१ पढम अज्झयणं (मियापुत्ते) २४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे जाव' संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ २५. तए णं से भगवं गोयमे तं जाइअंधं पुरिसं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे जाय संसए जायकोउहल्ले. उप्पण्णसडढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोउहल्ले, संजायसडढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णकोऊहल्ले उठाए उद्वेइ, उद्वेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे ° एवं वयासी-अत्थि णं भंते ! केइ पुरिसे जाइग्रंधे जायग्रंधारूवे' ? हंता अत्थि ॥ भगवया मियापुत्तरूव-निरूवण-पदं २६. कहं णं भंते ! से पूरिसे जाइअंधे जायअंधारूवे ? एवं खलु गोयमा ! इहेव मियग्गामे नयरे विजयस्स खत्तियस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए मियापुत्ते नाम दारए जाइअंधे जायअंधारूवे । नत्थि णं तस्स दारगस्स 'हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी वा नासा वा केवलं से तेसि अंगोवंगाणं अागिती प्रागितिमेत्ते । तए णं सा मियादेवी' 'तं मियापुत्तं दारगं रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणणं ° पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ ।। गोयमस्स मियापुत्तदसण-पदं २७. तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! अहं तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मियापुत्तं दारगं पासित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! २८. तए णं से भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए' समाण हतूटे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अतुरिय' मचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरो रियं ° सोहेमाणे १. ओ० सू० ८२। २. सं० पा०—जायसड्ढे जाव एवं। ३. जाइअंधारूवे (घ)। ४. सं० पा०---दारगस्स जाव आगितिमेत्ते । ५. सं० पा०—मियादेवी जाव पडिजागरमाणी। ६. अणुण्णाते (क)। ७. सं० पा०—अतुरियं जाव सोहेमाणे। Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसु सोहेमाणे जेणेव मियग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मियग्गामं नयरं मज्भंमज्भेणं जेणेव मियादेवीए गिहे तेणेव उवागच्छइ ।। २६. तए णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ' चित्तमाणंदिया पीइमा परमसोमणस्सिया हरिसवस - विसप्पमाण हियया ग्रासणाश्रो प्रभु, प्रभुत्ता सत्तट्टपयाई अणुगच्छइ, प्रणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो श्रायाहिणपयाहिण करेइ, वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - संदिसंतु णं देवाप्पिया ! किमागमणप्पओयणं ? ३०. तए गं से भगवं गोयमे मियं देवि एवं वयासी-ग्रहं णं देवाणुप्पिए ! तव पुत्तं पासिउं हव्वमागए ॥ ३१. तए णं सा मियादेवी मियापुत्तस्स दारगस्स अणुमग्गजायए चत्तारि पुत्ते सव्वालंकारविभू सिए करेइ, करेत्ता भगवो गोयमस्स पाएसु पाडेइ, पाडेत्ता एवं वयासी- एए णं भंते ! मम पुत्ते पासह ॥ ७२२ ३२. तए णं से भगवं गोयमे मियं देवि एवं वयासी नो खलु देवाणुप्पिए ! ग्रहं एए तव पुत्ते पासिउं हव्वमागए । तत्थ णं जे से तव जेट्ठे पुत्ते मियापुत्ते दारए जाइग्रंधे जायअंधारूवे, जं गं तुमं रहस्सि यंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरसि तं णं ग्रहं पासिउं हव्वमागए ॥ ३३. तए णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी-से के णं गोयमा ! से तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा, जेण एसमट्ठे मम ताव रहस्सीकए' तुब्भं हव्व मक्खाए, ओणं भेजा ? ३४. तए णं भगवं गोयमे मियं देवि एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिए ! मम धम्मायरिए समणे भगवं महावीरे तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा, जेणं एसमट्ठे तव ताव रहस्सीकए मम हव्वमक्खाते, जो णं ग्रहं जाणामि । जावं चणं मियादेवी भगवया गोयमेण सद्धि एयम संलवइ, तावं च णं मियापुत्तस्स दारगस्स भत्तवेला जाया यावि होत्या || ३५. तए णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी - तुब्भे णं भंते ! " इहं चेव" चिट्ठह, जाणं ग्रहं तुब्भं मियापुत्तं दारगं उवदंसेमि त्ति कट्टु जेणेव भत्तघर ' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वत्थपरियट्टय करेइ, करेत्ता कट्ठसगडियं १. सं० पा० - हतुहियया । २. जेणं तव (क, ख, ग, घ ); प्रतिषु एतत् पदं लिपिदोषात् समुल्लिखित प्रतिभाति । अग्रे तुब्भं इति पाठदर्शनात् । ३. रहस्सकडे (क) । ४, सं० पा० - भगवं जाव जत्रो णं [ ख, ग ]; भगवं जओ णं ( क ) ; महावीरे जाव ततेणं (घ) । ५. इहच्चेव ( क ) । ६. भत्तपाणघर ए (घ) । ७. 5. o परियट्ट (वृ) । सगड ( ग ) । Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (मियापुत्ते) ७२३ गिण्हइ, गिण्हित्ता विउलस्स असण-पाण-खाइम-साइमस्स भरेइ, भरेत्ता तं कट्ठसगडियं अणुकड्डमाणी-अणुकड्ढमाणी जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगव गोयम एवं वयासी-एह णं 'भंते ! तुब्भे मए सद्धि' अणगच्छह, जाणं अहं तुब्भं मियापुत्त दारगं उवदंसेमि ।। ३६. तए णं से भगवं गोयमे मियं देवि पिओ समणगच्छह ।। ३७. तए णं सा मियादेवा तं कट्ठसगडियं अणुकड्डमाणी-अणुकड्डमाणी जेणेव भूमिघरए' तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता चउप्पुडण वत्थेणं मुहं बंधमाणी भगवं गोयम एवं वयासी--तुब्भे वि णं भंते ! मुहपोत्तियाए मुहं बधह ।। ३८. तए णं से भगवं गोयमे मियादेवीए एवं वुत्ते समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधेइ॥ ३६. तए णं सा मियादेवी परंमुही भूमिघरस्स दुवारं विहाडेइ। तए णं गंधे निग्गच्छइ, से जहानामए–'अहिमडे इ वा गोमडे इ वा सुणहमडे इ वा मज्जारमडे इ वा मणुस्समडे इ वा महिसमडे इ वा मूसगमडे इ वा प्रासमडे इ वा हत्थिमडे इ वा सीहमडे इ वा वग्घमडे इ वा विगमडे इ वा दीविगमडे इ वा मय-कूहिय-विण?-दुरभिवावण्ण-दुभिगंधे किमिजालाउलसंसत्ते असूइ-विलीण-विगय-बीभत्सदरिसणिज्जे भवेयारूवे सिया ? नो इणद्वे समटे । एत्तो अणि?तराए चेव अकंततराए चेव अप्पियतराए चेव अमणण्णतराए चेव अमणामतराए चेव गध पण्णत्तं ।। तए णं से मियापूने दारए तस्स विउलस्स असण-पाण-खाइम-साइमस्स गंधणं अभिभए समाणे तंसि विउलंसि असण-पाण-खाइम-साइमंसि मच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे तं विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं आसएणं आहारेइ, आहारेत्ता खिप्पामेव विद्धंसेइ, विद्धंसेत्ता तो पच्छा पूयत्ताए य सोणियत्ताए य पारिणामेइ, तं पि य णं पूयं च सोणियं च आहारेइ ।। गोयमेण मियापुत्तस्स पुन्वभवपुच्छा-पदं ४१. तए णं भगवओ गोयमस्स तं मियापुत्तं दारगं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए' पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था- अहो णं इमे दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं 'पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया ४०. १. तुब्भे भंते मम (ख, ग, घ) । २. भूमिघरे (ख, घ)। ३ चउप्पालेणं (ग)। ४. अहिमडे इ वा सुप्पकडेवरे इ वा (व); सं० पा०-अहिमडे इ वा जाव ततो वि अणि? तराए चेव जाव गंधे। ५. X (क, ख, ग)। ६. पावफलविवागं (ग)। Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ विवागसुयं वा। पचक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेदिति' त्ति कटु मियं देवि पापुच्छइ, आपुच्छित्ता मियाए देवीए गिहाम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता मियग्गामं नयरं मज्झमज्झणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मियग्गामं नयरं मझमज्झेणं अणुप्पविसामि, जेणेव मियाए देवीए गिहे तेणेव उवागए। तए णं सा मियादेवी ममं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठा, तं चेव सव्वं जाव' पूयं च सोणियं च आहारेइ । तए णं मम इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-अहो णं इमे दारए पुरा' •पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे ° विहरइ॥ ४२. से णं भंते ! पुरिसे पुव्वभवे के आसि ? किं नामए वा किं गोत्ते वा ? 'कयरंसि गामंसि वा नयरंसि वा ? किं वा दच्चा किं वा भोच्चा कि वा समायरित्ता, केसि वा पुरा' •पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे ° विहरइ ? मियापुत्तस्स एक्काइभव-वण्णग-पदं ४३. गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सयदुवारे नामं नयरे होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धे वण्णो । ४४. तत्थ णं सयदुवारे नयरे धणवई नामं राया होत्था-वण्णयो । ४५. तस्स णं सयदुवारस्स नयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरथिमे दिसीभाए विजय वद्धमाणे नामं खेडे होत्था-रिद्धस्थिमियसमिद्धे ॥ ४६. तस्स णं विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई प्राभोए यावि होत्था । ४७. तत्थ णं विजयवद्धमाणे खेडे एक्काई नाम रट्ठकूडे होत्था-अहम्मिए अधम्मा १. वेत्ति (ख); वेयह (घ)। ७. ओ० सू०१। २. वि०१।१२६-४० । ८. ओ० सू० १४ । ३. सं० पा०-पुरा जाव विहरइ। ६. °वड्ढमाणस्स (क, ख, ग) सर्वत्र । ४. गोए (घ)। १०. एकायि (क, ग)। ५. कयरं गाम (क); कयरं गामं कि कए (ख)। ११. सं० पा०--अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। ६. सं० पा०—पुरा जाव विहरइ। Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२५ पढमं अज्झयण (मियापुत्ते) णुए अधम्मिट्ठ अधम्मक्खाई अधम्मपलोई अधम्मपलज्जणे अधम्मसमुदाचारे अधम्मेणं चैव वित्ति कप्पेमाणे दुस्सीले दुव्वए° दुप्पडियाणंदे ।। ४८. से ण एक्काई रट्रकडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंचण्ह गामसयाणं 'पाहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पाले माणे" विहरइ॥ ४६. तए णं से एक्काई रट्टकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई बहूहिं करेहि य भरेहि य विद्धीहि य उक्कोडाहि य पराभवेहि य देज्जेहि य भेज्जेहि य कुंतेहि य लंछपोसेहि य पालीवणेहि य पंथकोट्टेहि य अोवीलेमाणेओवीलेमाणे विहम्मेमाणे-विहम्मेमाणे तज्जेमाणे-तज्जेमाणे तालेमाणे-तालेमाणे निद्धणे करेमाण-करेमाणे विहरइ ॥ ५०. तए ण से एक्काई रटूकड विजयवद्धमाणस्स खेडस्स बहणं राईसर- तलवर माडंबिय-कोडुविय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ° -सत्थवाहाणं, अण्णेसि च बहूणं गामेल्लगपुरिसाणं बहूसु 'कज्जेसु य कारणेसु य मंतेसु य गुज्झएस य निच्छएसु य' ववहारेसु य सुणमाण भणइ 'न सुणेमि,' असुणमाण भणइ 'सुणेमि,' "पस्समाणे भणइ 'न पासेमि,' अपस्समाणे भणइ ‘पासेमि,' भासमाणे भणइ 'न भासेमि।' अभासमाणे भणइ 'भासेमि,' गिण्हमाणे भणइ 'न गिण्हेमि,' अगिण्हमाणे भाइ 'गिण्हेमि,' जाणमाणे भणइ 'न जाणेमि,' अजाणमाणे भणइ 'जाणेमि' ० ॥ तए णं से एक्काई र?कूडे एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहं 'पावं कम्म" कलिकलुसं समज्जिणमाणे विहरइ ।। ५२. तए णं तस्स एक्काइस्स" रट्ठकूडस्स अण्णया कयाइ सरीरगसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउब्भूया, [त जहा सासे कासे जरे दाहे, कुच्छिसूले भगंदले"। अरिसा" अजीरए दिट्ठी-मुद्धसूले५ अकारए। अच्छिवेयणा कण्णवेयणा कंडू उदरे कोढे ॥१॥] ४ १. आहेवच्च जाव पालेमाणे (क, ख, ग)। १०. एगाइयस्स (क, ख, ग, घ) २. वित्तिहि (वृपा)। ११. रोयायंका (क); रोयातका (ख) । ३. पराभएहि (क, ग)। १२. जोणिसूले (ग); 'जोणिसूले' त्ति अपपाठः ४. देज्जए (क)। ___ 'कुच्छिसूले' इत्यस्यान्यत्र दर्शनात् (वृ)। ५. कुत्तेहि (क, घ)। १३. भगंदरे (ख, ग, घ)। ६. सं० पा०-राईसर जाव सत्थवाहाणं । १४. अरसा (ख)। ७. कज्जेसु कारणेसु मंतेसु गुज्झएसु निच्छएसु १५. महसूले (क, ग)। (क); ° गुज्झसु° (घ) । ८. सं० पा०–एवं पस्समाणे भासमाणे गिण्ह १६. कंदू (ख)। माणे जाणमाणे। १७. दओदरे (क)। ६. पावकम्मं (ग)। १६. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते। Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२६ विवागसूर्य ५३. तए णं से एक्काई रट्ठकूडे सोलसहि रोगायकेहि अभिभूए समाणे कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! विजयवद्धमाणे खेडे सिंघाडग-तिग- चउक्क- चच्चर-चउम्मुह- महापहपहेसु महया - महया सद्दणं उग्घो से माणा - उग्घोसे माणा एवं वयह - इहं खलु देवाणुप्पिया ! एक्काइस्स' रट्ठकूडस्स सरीरगंसि सोलस रोगायका पाउन्भूया, [तं जहा - सासे जा कोढे ]', तं जो णं इच्छइ देवाणुप्पिया ! वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा 'जाणुओ वा जाणुयपुत्तो" वा तेगिच्छिग्रो वा तेगिच्छियपुत्तो वा एक्काइस्स रटूकूडस्स तेसि सोलसहं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंक उवसामित्तए, तस्स णं एक्काई रटूकूडे विलं अत्यसंपयाणं दलयइ । दोच्चं पि तच्च पि उग्घोसेह, उग्घोसेत्ता एयमापत्तियं पच्चपिह || ५४. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव' तमाणत्तियं पच्चपिणंति || ५५. तए णं विजयवद्धमाणे खेडे इमं एयारूवं उग्घोसणं सोच्चा निसम्म बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ताय जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य सत्यको हत्थगया 'सएहि सएहिं " गिहेहितो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता विजयवद्धमाणस्स खेडस्स मज्भंमज्भेणं जेणेव एक्काई रटूकूडस्स गिहे तेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एक्काई - रट्ठकूडस्स सरीरंगं परामुसंति, परामुसित्ता तेसि रोगायकाणं निदाणं पुच्छंति, पुच्छित्ता एक्काई - रट्ठकूडस्स बहूहि प्रब्भं हिय उव्वट्टणाहि य सिणेहपाणेहि य वमणेहि य विरेयणेहि य सेयणेहि" य प्रवहणाहि य प्रवण्हाणेहि य अणुवासणाहि य बत्थिकम्मेहि य निरूहेहि" य सिरावेहेहि यतच्छणेहि य पच्छणेहि य सिरबत्थी हि" य तप्पणाहि य पुडपागेहि य छल्लीहि य बल्ली हि य" मूलेहि य कंदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य सिलिया गुलियाहि य प्रसहेहि य भेसज्जेहि य इच्छंति तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, नो चेवणं संचाएंति उवसा मित्तए । १. एक्काइस्स (घ ) । २. असी कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते ३. जाणओ वा जाणुपुत्तो ( ख, ग, घ ) । ४. उवसमित्त ( क ) । ५. वि० १।१।५३ । ६. सहितो ( क्व ) । ७. गेहेहिंतो ( क ) । ८. एगाती ( क ) । C. रोगाणं ( ख, ग, घ ) । । १०. उवट्टणेहि ( ख ) । ११. सेयणाहि ( क ); सेवणे हि ( ख ) । १२. श्रवणाहिं ( क, ख, ग ); अवद्दणेहि (घ ) । १३. निरु भेहि (ग); निरुहेहि ( वृ) । १४. सिरोत्थीहि (वृ) । १५. X ( ख, ग, घ ) । Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभय (मियापुत्तै ) ७२७ ५६. तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य ते गिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति तेसि सोलसन्हं रोगायंकाणं एगमवि गायक उवसामित्ताए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया || ५७. तए णं एक्काई रट्ठकूडे वेज्ज -पडियाइक्खिए परियारगपरिचत्ते निव्विण्णो सहभेसज्जे' सोलस रोगायं केहि अभिभूए समाणे रज्जे य रट्ठे यां कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य, पुरे य° अंतउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे रज्जं च रटुं च ' कोसं च कोट्ठागारं च बलं च वाहणं च पुरं च अंतेउरं च° ग्रासाएमाणे पत्येमाणे पीहेमाणे प्रभिलसमाणे दुहट्टवसट्टे अड्डाइज्जाई वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसे सागरोवमट्ठिएसुनेरइएस' नेरइयत्ताए उववणे ॥ मियापुत्तस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ५८. से णं तो प्रणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव मियग्गामे नयरे विजयस्स खत्तियस्स मियाए देवी कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे || ५६. तए णं ती से मियाए देवीए सरीरे वेयणा पाउब्भूया उज्जला' "विउला कक्कसा पगाढा चंडा दुक्खा तिव्वा दुरहियासा जप्पभिदं च णं मियापुत्ते दार मियाए देवी कुच्छिसि गब्भत्ताए: उववण्णे, तप्पभिदं च णं मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स प्रणिट्टा कंता अप्पिया श्रमगुण्णा श्रमणामा जाया यावि होत्था || ६०. तए णं तीसे मियाए देवीए ग्रण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियाए" जागरमाणीए इमे एयारूवे ग्रज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थर मणोगए कप्पे समुप्पण्णे" - एवं खलु ग्रहं विजयस्स खत्तियस्स पुव्वि कंता पिया मण्णा मणामा घेज्जा वेसासिया अणुमया प्रासि । जप्पभिई चणं मम इमे गब्भे कुच्छिसि गब्भत्ताए उववण्णे, तप्पभिदं च णं ग्रहं विजयस्स खत्तियस्स प्रणिट्टा अकंता अप्पिया ग्रमणण्णा श्रमणामा जाया यावि होत्था । नेच्छइ णं विजए खत्तिए मम नामं वा गोयं वा गिव्हित्तए", किमंग दंसणं वा परिभोगं वा ? तं सेयं खलु मम एयं गब्भं वहूहि गन्भसाडणाहि य १. निवट्टोसह (क्व ) । २. सं० पा० -- रट्ठे य जाव अंतेउरे । ३. सं० पा० - रट्टु च । ४. आसयमाणे ( क ) ; आसायमाणे (ख, घ ) । ५. वीमाणे (घ) । ६. नरसु ( ग ) । ७. सं० पा० – उज्जला जाव दुरहियासा । ८. जलता (क, ग, घ ) । ६. पुत्तत्ताए ( क ) 1 १०. कुडुंबजागरियं ( क ) 1 ११. समुप्पज्जित्था (घ ) । १२. गिहित्तए वा ( क ) । Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२८ विवागसुयं पाडणाहि य गालणाहि य मारणाहि य साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा मारित्तए वा-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता बहूणि खाराणि य कडुयाणि य तूवराणि य गब्भसाडणाणि य पाडणाणि य गालणाणि य मारणाणि य खायमाणी य पियमाणी' य इच्छइ तं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा मारित्तए वा, नो चेव णं से गब्भे सडइ वा पडइ वा गलइ वा मरइ वा॥ ६१. तए णं सा मियादेवी जाहे नो संचाएइ तं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा मारित्तए वा ताहे संता तंता परितंता प्रकामिया असयंवसा तं गब्भं दुहंदुहेणं परिवहइ ।। ६२. तस्स ण दारगस्स गब्भगयस्स चेव अट्ठ नालीग्रो अभितरप्पवहानो, अट्ठ नालीप्रो बाहिरप्पवहाओ, अट्ठ पूयप्पवहायो, अट्ठ सोणियप्पवहारो, दुवे दुवे कण्णंतरेसु, दुवे दुवे अच्छिअंतरेसु, दुवे दुवे नक्कतरेसु, दुवे दुवे धमणिपतरेसु अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयं च सोणियं च 'परिसवमाणीयो-परिसवमाणोनो चेव चिट्ठति ।। ६३. तस्स णं दारगस्स गब्भगयस्स चेव अग्गिए नामं वाही पाउन्भूए । जे णं से दारए पाहारेइ, से णं खिप्पामेव विद्धंसमागच्छई, पूयत्ताए य सोणियत्ताए य परिणमइ, तं पि य से पूयं च सोणियं च पाहारेइ ।। ६४. तए णं सा मियादेवी अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया जातिअंधे जातिमूए जातिबहिरे जातिपंगुले हुंडे य वायव्वे । नत्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छो वा नासा वा । केवलं से तेसिं अंगोवंगाणं आगिती आगितिमेत्ते ।। ६५. तए णं सा मियादेवी तं दारग हुंडं अंधारूवं पासइ, पासित्ता भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया अम्मधाइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासो गच्छह णं देवाणुप्पिया ! तुम एयं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झाहि ।। ६६. तए णं सा अम्मधाई मियादेवीए तहत्ति एयमढे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव विजए खत्तिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-एवं खलु सामी ! मियादेवी नवण्हं मासाणं 'बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया-जातिअंधे जातिमूए जातिबहिरे जातिपंगुले १. पीयमाणी (ख, ग, घ)। २. गभंतर° (क, ग); अब्भंतर° (ख)। ३. परिस्सवमाणीओ (क)। ४. X (क, घ)। ५. ज (क)। ६. विद्धसेति (घ)। ७. सं० पा०-जातिअंधे जाव आगितिमेत्ते । ८. सं० पा०-मासाणं जाव प्रागितिमेत्ते । Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अयणं (मियापुत्ते) ७२६ हुंडे य वायव्वे । नत्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी वा नासा वा । केवलं से तेसि अंगोवंगाणं आगिती • प्रागितिमेत्ते । तणं सामियादेवी तं दारगं हुई अंधारूवं पासइ, पासिता भीया तत्था सिया उब्विगा संजायभया ममं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छहणं तुमं देवाणुप्पिया ! एयं दारगं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झाहि । तं संदिसह णं सामी ! तं दारगं ग्रहं एगंते उज्झामि उदाहु मा ।। ६७. तए णं से विजए खत्तिए तीसे ग्रम्मधाईए प्रति एयमट्ठे सोच्चा तहेव संभ उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव मियादेवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मियं देवि एवं वयासी - देवाणुप्पिए ! तुब्भं 'पढमे गव्भे" । तं जइ णं तुमं एवं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झसि, तो णं तुब्भं पया नो थिरा भविस्सइ, तो गं तुमं एयं दारगं रहस्सियगंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेण पडिजागरमाणीडिजागरमाणी विहराहि, तो णं तुब्भं पया 'थिरा भविस्स" ।। ६८. तए णं सा मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेइ, पडित्ता तं दारगं रहस्तियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागराणी- पडिजागरमाणी विहरइ ॥ ६६. एवं खलु गोथमा ! मियापुत्ते दारए पुरा पोराणाणं' दुच्चिण्णाणं दुप्प डिक्कंताणं सुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥ मियापुत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ७०. मियापुत्ते णं भंते ! दारए इम्रो कालमासे कालं किच्चा कहि गमिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! मियापुत्ते दारए छव्वीसं वासाई परमाउं पालइत्ता कालमासे काल किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्डगिरिपायमूले सीहकुलंसि सीहत्ता पच्चायाहि' । सेणं तत्थ सीहे भविस्सइ - ग्रहम्मिए साहसिए सुबहु पाव' कम्मं कलिकलुस १. उक्क रुडिया (घ ) । २. पढमगब्भे (क, ख, ग ) ; पढमं गब्भे (क्व ) 1 ३. नो प्रथिरा भविस्संति ( क, ख ) । ४. सं० पा० - पोराणाणं जाव पच्चणुभव माणे । ५. इहं ( क ) । बहुनगरनिग्गयजसे सूरे दढप्पहारी समज्जिणइ, समज्जिणित्ता कालमा से o o ६. पाहिति ( क ) । ७. सं० पा० - प्रहम्मिए । जाव साहस्सिए । सिंहवर्णनत्वात् 'अहम्मिट्टे अहम्मत्रखाई' इत्यादिनि विशेषणानि अन्यत्रोक्तान्यपि इह न घटन्ते । ८. सं० पा-पावं जाव समज्जिणइ | Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३० विवागसुयं कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्टिइएसु' •नेरइएसु ने रइयत्ताए ° उववज्जिहिइ । से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता सिरीसवेसु उववज्जिहिइ । तत्थ णं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइत्ताए उववज्जिहिइ । से ण तो अणंतरं उव्वट्टित्ता पक्खीसु उववज्जिहिइ । तत्थ वि कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए सत्त सागरोवम ट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तो सीहेसु, तयाणंतरं चोत्थीए, उरगो, पंचमीए, इत्थीग्रो, छट्ठीए, मणुओ, अहेसत्तमाए। तो अणंतरं उव्वट्टित्ता से जाई इमाइं जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मच्छ - कच्छभ-गाह-मगर-सुंसुमाराईणं अड्डतेरस जाइकुलकोडिजोणिपमुहसयसहस्साइं, तत्थ णं एगमेगंसि जोणिविहाणंसि अगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ । से णं तनो अणंतरं उव्वट्टित्ता चउपएसु उरपरिसप्पेसु भुयपरिसप्पेसु खहयरेसु चरिदिएसु तेइंदिएसु बेइंदिएसु वणप्फइ-कडुयरुक्खेसु कडुयदुद्धिएसु वाउ-तेउआउ-पुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो' •उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ । से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता सुपइट्टपुरे नयरे गोणत्ताए पच्चायाहिइ । से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे अण्णया कयाइ पढमपाउसंसि गंगाए महानईए खलीणमट्टियं खंणमाणे तडीए पेल्लिए समाणे कालगए तत्थेव सुपइट्ठपुरे नयरे सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाइस्सइ । से णं तत्थ उम्मुक्क बालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते. जोव्वणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म मुंडे भवित्ता अगारामा अणगारियं पव्वइस्सइ। से णं तत्थ अणगारे भविस्सइ–इरियासमिए' •भासासमिए एसणासमिए आयाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्लपारिट्ठावणियासमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्त बंभयारी। १. सं० पा०-द्विइएसू जाव उववज्जिहिइ। २. सं० पा०-सागरोवम । ३. सं० पा० सागरोवम° । ४. पुढवी (क, ख, ग, घ)। ५. सं० पा०-खुत्तो । ६. तडीए पडीए (घ)। ७. पुमत्ताए (ख)। ८. सं० पा-उम्मुक्क जाव जोव्वणग° । ६. रियासमिते (क); सं० पा०-इरियासमिए जाव बंभयारी। Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३१ पढमं अज्झयणं (मियापुत्ते) से णं तत्थ बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उव्ववज्जिहिइ । से णं तो अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाइं कुलाइं भवंति---अड्डाई अपरिभूयाइं तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाहिति । जहा दढपइण्णे जाव' सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं ७१. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । --त्ति बेमि ॥ १. पू०-ओ० सू० १४१ । ___३. ओ० सू० १४२-१५४ । २. दढपइन्ने सच्चेव वत्तव्वया कलाओ ४. ना० १४१७ । जाव ( क, ख, ग, घ) Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! प्रज्भयणस्स समणेण भगवया महावीरेण के पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू- अणगारं एवं क्यासी - एवं खलु जंबू ! तेणं काणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नयरे होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धे ॥ ३. तस्स णं वाणियगामस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए दुइपलासे नामं उज्जाणे होत्था ॥ ४. तत्थ णं दूइपलासे सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था ॥ ५. तत्थ णं वाणियगामे नयरे' मित्ते नाम राया होत्था - वण्णो ॥ ६. तस्स णं मित्तस्स रण्णो सिरी नामं देवी होत्था - वणो ॥ ७. तत्थ णं वाणियगामे कामज्झया नामं गणिया होत्था - ग्रहीण - पडिपुण्णपंचिदियसरीरा लक्खण- वंजण- गुणोववेया माणुम्माण- पमाण पडिपुण्ण-सुजायसव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकार - कंत पिय- दंसणा सुरूवा बावत्तरिकलापंडिया' १. ना० १।१।७ । २. अज्झयणस्स दुहविवागाणं ( ख, ग, घ ) । ३. वाणियग्गामे ( ख ग घ ) । ४. पू० - ओ० सू० १ । ५. X (ख, घ) । बीयं अयणं उभिए ६. ओ० सू० १४ । ७. ओ० सू० १५ । ७३२ ८. सं० पा० - अहीण जाव सुरूवा । ६. चउसट्टीकलापंडिया ( ना० (११३३८); 'बावत्तरीकलापंडिय'त्ति लेखाद्या शकुनिरुतपर्यन्ता गणितप्रधानाः कलाः प्रायः पुरुषाणामेव अभ्यासयोग्याः । स्त्रीणां तु विज्ञेया एव प्राय: ( वृ ) । Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ati अभri ( उज्झियए) o गणियागुणोववेया एगूणतीसविसेसे रममाणी एक्कवीस रइगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयारकुसला नवंगसुत्तपडिवोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारागारचारुवेसा गीयरइगंधव्वणट्टकुसला संगय-गय- भणिय हसिय-विहियविलास-सल लिय-संलाव - निउणजुत्तोवयारकुसला सुंदरथण- जहण-वयण-करचरण - नयण लावण्ण-विलासकलिया ऊसियज्भया सहस्सलभा विदिण्णछत्तचामर वालवीयणीया कण्णीरहप्पयाया यावि होत्था । बहूणं गणिया सहस्साणं आहेवच्चं 'पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं प्राणा- ईसर - सेणावच्चं कारेमाणी पालेमाणी विहरइ ॥ ८. तत्थ णं वाणियगामे विजय मित्ते नामं सत्थवाहे परिवसइ - ग्रड्ढे ' ।। ६. तस्स णं विजयमित्तस्स सुभद्दा नाम भारिया होत्या ॥ १०. तस्स णं विजयमित्तस्स पुत्ते सुभद्दाए भारियाए प्रत्तए उज्भियए नाम दारए होत्था - प्रहीण-पडिपुण्ण-पंचिदिय सरीरे लक्खण- वंजण-गुणोववेए माणुम्माणपमाण- पडिपुण्ण-सुजाय सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे ॥ ११. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा निग्गया । या निगो, जहा कूणिग्रो' निग्गयो । धम्मो कहियो । परिसा पडिगया राया य ग ॥ o १. सं० पा० - संगयगय पू० - ना० १३८ पादटिप्पणमपि । गोयमेण उज्झ्यियस्स पुग्वभवपुच्छा-पदं १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामंणगारे गोयमगोत्तेणं जाव संखित्तविउलतेयले से छट्टछट्टेणं प्रणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ १३. तए णं भगवं गोयमे छट्टक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं भियाइ, तइयाए पोरिसीए प्रतुरियमचवलमसंभंते पत्तियं पडिले, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाई पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणाई पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाई उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता २. सं० पा० - सुंदरथण । ३. सं० पा० आहेवच्चं जाव विहरइ । ४. पू० -- ओ० सू० १४१ । ५. होत्था । अहीण (घ) । ७३३ o ६. सं० पा० – अहीण जाव सुरूवे । ७. समोसरिए ( क ) ; समोसरणं ( ग ) । ८. ओ० सू० ५-६६ । ६. ओ० सू० ८२ । १०. सं० पा०- - छुट्टछट्टेणं जहा पण्णत्तीए पढम जाव जेणेव । Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसु नमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे छमणपारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्च-नीय - मज्झिमाई कुलाई घरसमुदास भिक्खायरियाए प्रत्तिए । हासु देवाणुपिया ! मा पडिबंधं ॥ १४. तएण भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेण प्रब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवो महावीरस्स प्रतिया दूइपलासाश्रो उज्जाणाश्रो पडिनिक्खमइ, ७३४ निमित्त तुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरोरियं सोहेमाणे- सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाणियगामे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए माणे जेणेव रायमग्गे तेणेव प्रोगाढे । तत्थ बहवे हत्यो पासइ - सण्णद्ध - बद्धवम्मिय - गुडिए उप्पी लियकच्छे उद्दामियघंटे नाणामणिरयण- विविह-गवेज्जउत्तरकच इज्जे पडिकप्पिए झयपडागवरपंचामेल-आरूढहत्थारोहे गहियाउहप्पहरणे । प्रणेय तत्थ बहवे ग्रासे पासइ - सण्णद्ध - बद्धवम्मिय-गुडिए ग्राविद्धगुडे ओसारियपक्खरे उत्तरकंचुइय-श्रोचूलामुहचंडाघर' - चामर-थासग परिमंडियकडीए आरूढनस्सारोहे गहियाउहप्पहरणे | प्रणेय तत्थ बहवे पुरिसे पासइ सण्णद्ध - बद्धवम्मियकवए उप्पी लियस रासणपट्टीए पिणद्धगेवेज्जे' विमलवरबद्ध - चिंधपट्टे गहियाउहप्पहरणे | तेसि च णं पुरिसाणं मज्भगयं एवं पुरिसं पासइ अवप्रोडयबंधणं उक्खित्त - कण्णनासं नेहतुप्पियगत्तं वज्भ - करकडि जुयनियच्छं कंठेगुणरत्त- मल्लदामं चुणगुंडियगातं चुण्णयं वज्झपाणपीयं तिल-तिलं चेव छिज्जमाणं कागणिमंसाई खावितं पावं खक्खरसएहिं हम्ममाणं प्रणेगनर-नारी- संपरिवुडं चच्चरेचच्चरे खंडपडहएणं उग्घोसिज्जमाणं इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणेइ' - नो खलु देवाणुप्पिया ! उज्भियगस्स दारगस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्झइ, अप्पणो से सयाई कम्माई अवरभंति ॥ १५. तए णं भगवप्रो गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता प्रयमेयारूवे ग्रज्झत्थिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था ग्रहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं १. चूला ० ( ख ) । २. पिषिद्ध ० ( क, ख, ग ) । ३. उक्खत्त (क, ख, ग ); उक्कत्त (घ ) । ४. बद्ध (क, ख ) । ५. कक्खरग ० (क, ग ); कक्कर ° (ख, घ ) । ६. पडणे (क्व ) । ७. केयी (क, घ) । ८. सं० पा०- -पुरिसे जाव निरयपडिरूविय । Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अभयण ( उज्झियए) ७३५ o पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ । न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा । पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कट्टु वाणियगामे नयरे उच्च-नीय मज्झिम-कुलाई अडमाणे ग्रहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ, गहित्ता वाणियगामे नयरे मज्भंमज्भेणं' पडिनिक्खमइ, प्रतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरोरियं सोहेमाणे- सोहेमाणे जेणेव दूइपलासए उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवो महावीरस्स दूरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमइ, पडिक्कमित्ता एसणमणेसणं आलोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी एवं खलु ग्रहं भंते ! तुब्भेहि भगुणाए समाणे वाणियगामे नयरे जाव' तहेव सव्वं निवेइ' ।। १६. से णं भंते ! पुरिसे पुव्वभवे के ग्रासि ? किं नामए वा किं गोत्ते वा ? करंसि गामंसि वा नयरंसि वा ? किं वा दच्चा किं वा भोच्चा किं वा समायरित्ता, केसि वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुष्पडिक्कंताणं सुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ? उभययस्स गोत्तासभव-वण्णग-पदं १७. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे' वासे हत्थिणाउरे नाम नयरे होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धे ॥ १८. तत्थ णं हत्थिणाउरे नयरे सुनंदे नामं राया होत्था - महयाहिमवंत-महंत मलयमंदर-महिंदसारे ॥ १६. तत्थ णं हत्थिणाउरे नयरे बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे गोमंडवे होत्थाअगखंभसयसंनिविट्ठे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे || २०. तत्थ णं बहवे नगरगोरुवा सणाहा य प्रणाहा य 'नगरगावीओ य नगरबलीवद्दा य नगरवसभा य पउरतण- पाणिया निब्भया निरुव्विग्गा य नगरपड्डिया सुहंसुणं परिवसति ॥ २१. तत्थ णं हत्थिणाउरे नयरे भीमे नामं कूडग्गाहे होत्था - ग्रहम्मिए जाव " पाणंदे || १. स० पा० - मज्भंमज्भेणं जाव पडिदंसेइ । २. वि० १।२।१३-१५ । ३. वेएइ (क, ख, ग ) । ४. सं० पा० - आसि जाव पच्चणुभवमाणे । ५. पू० - वि० १ १ ४३ । ६. भरहे (क) । ७. पू० - प्रो० सू० १ । ८. पू० - ओ० सू० १४ । ६. नगरबलद्दा य नगरपडियाओ य महिसिओ य यवसभाण ( ग ) । १०. वि० १ १ ४७ । Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं २२. तस्स णं भीमम्स कूडग्गाहस्स उप्पला नामं भारिया होत्था-अहीण-पडिपुण्ण पंचिदियसरीरा॥ २३. तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अण्णदा कयाइ प्रावण्णसत्ता जाया यावि होत्था ॥ तए णं तीसे उप्पलाए कडग्गाहिणीए तिण्डं मासाणं बहपडिपण्णाणं अयमेयारूवे दोडले पाउब्भए --धण्णायो णं ताओ अम्मयायो, संपण्णानो णं तायो अम्मयात्रो, कयत्थानो णं तायो अम्मयाग्रो, कयपण्णाश्रो ताग्रो अम्मयानो, कयलक्खणाम्रो णं तायो अम्मयानो, कयविहवानो णं तानो अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासि माणुस्सए जम्मजीवियफले °, जानो णं बहूणं नगरगोरूवाणं सणाहाण य प्रणाहाण य नगरगावियाण य नगरबलीवदाण य नगरपड्डियाण य नगरवसभाण य ऊहेहि य थणेहि य वसणेहि य छप्पाहि य ककुहेहि य वहेहि य कण्णेहि य अच्छीहि य नासाहि य जिब्भाहि य प्रोटेहि य कंबलेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिए हि य परिसुक्केहि य लावणेहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च प्रासाएमाणीग्रो वीसाएमाणीग्रो परिभाएमाणीयो परिभंजेमाणीग्रो दोहलं विणेति । तं जइ णं अहमवि बहूणं नगर गोरूवाणं सणाहाण य अणाहाण य नगरगावियाण य नगरबलीवदाण य नगरपड्डियाण य नगरवसभाण य ऊहेहि य थणेहि य वसणेहि य छेप्पाहि य ककुहेहि य वहेहि य कण्णेहि य अच्छीहि य नासाहि य जिब्भाहि य प्रोटेहि य कंबलेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य परिसुक्केहि य लावणेहि य सुरं च महं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभजेमाणी दोहलं० विणिज्जामि त्ति कटट तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा अोलुग्गा अोलुग्गसरीरा नित्तेया दीणविमणवयणा' पंडुल्लइयमुही प्रोमंथिय-नयणवदणकमला जहोइयं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकाराहारं अपरि जमाणी करयलमलियव्व कमलमाला अोहय मणसंकप्पा करतलपल्हत्थमही अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया ° झियाइ । १. पू०---वि० ११२।७।। ८. सिधं (ख)। २. सं० पा० -- अम्मयाओ जाव सुलद्धे जाओ। ६. सं० पा०-नगर जाव विणिज्जामि । ३. सं० पा० - सणाहाण य जाव वसभाण। १०. दीणविभणहीणा (व); दीपविमणवयणा ४. कक्कुहेहि (क)। (वपा)। ५. सोल्लिएहि (वृ)। ११. ° मुहा (घ)। ६. भज्जेहि (ग)। १२. सं० पा०-मोहय जाव झियाइ । ७. लावणिएहि (क, ग)। Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं (उज्झियए) ७३७ २५. इमं च णं भीमे कूडग्गाहे जेणेव उप्पला कूडग्गाहिणी' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता [उप्पलं कूडग्गाहिणि ?] अोहय मणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहिं अट्टज्माणोवगयं भूमिगयदिट्ठीयं झियायमाणि ° पासइ, पासित्ता एवं वयासीकिं णं तुमं देवाणुप्पिए ! प्रोहय मणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोव गया भूमिगयदिट्टीया • झियासि ? २६. तए णं सा उप्पला भारिया भीमं कूडग्गाहं एवं वयासी-एवं खलु देवाणु प्पिया ! ममं तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दोहले पाउन्भूए-धण्णानो णं तारो अम्मयानो, संपुण्णाम्रो णं ताओ अम्मयात्रो, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयानो,कयपुण्णासो णं तानो अम्मयानो, कयलक्खणाप्रो णं तारो अम्मयानो, कयविहवामो णं तारो अम्मयानो, सुलद्धे णं तासिं माणुस्सए जम्मजीवियफले, जागो णं बहूणं' 'नगरगोरूवाणं सणाहाण य अणाहाण य नगरगावियाण य नगरबलीवदाण य नगरपड्डियाण य नगरवसभाण य ऊहेहि य थणेहि य वसणेहि य छप्पाहि य ककुहेहि य वहेहि य कण्णेहि य अच्छीहि य नासाहि य जिब्भाहि य प्रोटेहि य कंबलेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य परिसुक्केहि य° लावणेहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणीग्रो वीसाएमाणीग्रो परिभाएमाणीग्रो परिभजेमाणीयो दोहलं विणेति । तए णं अहं देवाणुप्पिया ! तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि °सुक्का भुक्खा निम्मंसा अोलुग्गा अोलुग्गसरीरा नित्तेया दीणविमणवयणा पंडुल्लइयमुही प्रोमंथिय-नयणवदणकमला जहोइयं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकाराहारं अपरिभुजमाणी करयलमलियव्व कमलमाला ओहयमणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया ° झियामि ॥ २७. तए णं से भीमे कूडग्गाहे उप्पलं भारियं एवं वयासी-मा णं तुमं देवाणु प्पिया! ओहय"मणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया ° झियाहि । अहं णं तहा करिस्सामि जहा णं तव दोहलस्स संपत्ती भविस्सइ ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं वग्गूहिं समासासेइ । २८. तए णं से भीमे कूडग्गाहे अद्धरत्तकालसमयंसि एगे अबीए सण्णद्ध- बद्धवम्मिय कवए उप्पीलियसरासणपट्टीए पिणद्धगेवेज्जे विमलवरबद्ध-चिंधपट्टे गहिया १. कूडग्गाही (क, ख)। ६. सं० पा०-ओहय । २. सं० पा०-ओहय जाव पासइ । ७. करीहामि (क)। ३. सं० पा०-ओहय जाव झियासि । ८. अड्ढ ° (क, ग)। ४. सं० पा०-बहूणं गोरूवाणं ऊहे जाव ६. अव्वितीए (ग)। ___ लावणेहि। १०. सं० पा०–सण्णद्ध जाब पहरणे । ५. संपा०-अविणिज्जमाणंसि जाव झियामि । Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३८ विवागमय उह°प्पहरणे सानो गिहारो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता 'हत्थिणाउरं नयरं" मझमझणं जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागए बहूणं नगरगोरूवाणं 'सणाहाण य अणाहाण य नगरगावियाण य नगरबलीवदाण य नगरपड्डियाण य नगर - वसभाण य -अप्पेगइयाणं ऊहे छिदइ, अप्पेगइयाणं थणे छिदइ, अप्पेगइयाणं वसणे छिदइ. अप्पेगडयाणं छप्पा छिदइ. अप्पेगइयाणं ककहे छिदइ. अप्पेगडयाणं वहे छिदइ, अप्पेगइयाणं कण्णे छिदइ, अप्पेगइयाणं नासा छिदइ, अप्पेगइयाणं जिब्भा छिदइ, अप्पेगइयाणं प्रोटे छिदइ°, अप्पेगइयाण कंबलए छिदइ, अप्पेगइयाणं अण्णमण्णाइं अंगोवंगाई वियंगेइ, वियंगेत्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उप्पलाए कूडग्गाहिणीए उवणेइ ।। २६. तए णं सा उप्पला भारिया तेहिं बहू हिं गोमंसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य परिसुक्केहि य लावणेहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी तं दोहलं विणेइ ।। ३०. तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी संपुण्णदोहला संमाणियदोहला विणीयदोहला विच्छिण्णदोहला संपण्णदोहला तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ ।।। ३१. तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया । ३२. तए णं तेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया महया [चिच्चो ? ] सद्देणं' विघटे विस्सरे प्रारसिए॥ ३३. तए णं तस्स दारगस्स आरसियसई सोच्चा निसम्म हस्थिणाउरे नयरे बहवे नगरगोरूवा' 'सणाहा य अणाहा य नगरगावीअो य नगरबलीवद्दा य नगरपड्डियायो य नगर वसभा य भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सव्वो समंता विपलाइत्था ॥ ३४. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं नामधेज्ज करेंति -- जम्हा ण अम्हं इमेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महया चिच्चीसद्देणं विघटे विस्सरे आरसिए, तए णं एयस्स" दारगस्स पारसियसई सोच्चा निसम्म हत्थिणाउरे १. हत्थिणाउरे नयरे (क्व)। ७. वुट्टे (ख); विदु? (ग)। २. सं. पा०-नगरगोरूवाणं जाव वसभाण। ८. वीसरेणं (ख); चिच्चीसरे (ग); विसरे ३. सं० पा--छिदइ जाव अप्पेगइयाणं । (घ)। ४. विगत्तेत्ति (क)। ६. सं० पा०-- नगरगोरूवा जाव वसभा। ५. वोच्छिन्न ° (ख, घ)। १०. विप्पलाइत्था (क, घ)। ६. ३४ सूत्रे पुनरावर्त्तने 'चिच्चीसद्देणं' इति ११. तस्स (क)। पदमस्ति । तदत्र कथं न स्यात? Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ati अणं (उज्झियए) नयरे बहवे नगरगोरूवा' 'सणाहा य प्रणाहा य नगरगावीश्रो य नगरबलीवद्दा नगरपडियाय नगरवसभा य° भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सव्व समंता विपलाइत्था, तम्हा णं होउ ग्रम्हं दारए गोत्तासे नामे || ३५. तए णं से गोत्तासे दारए उम्मुक्कबालभावे जाए यावि होत्था || ३६. तए णं से भी कूडग्गाहे प्रण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते ॥ ३७. तए णं से गोत्तासे दारए बहूणं मित्त-नाइ - नियग-सयण संबंधि- परियणेणं सद्धि संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे भीमस्स कूडग्गाहस्स नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूई लोइयमय किच्चाई करेइ || ३८. तए णं से सुनंदे राया गोत्तासं दारयं प्रण्णया कयाइ सयमेव कूडग्गाहत्ताए वे ॥ ३६. तए णं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहे जाए यावि होत्था -- अहम्मिए जाव || ४०. तए णं से गोत्तासे' कूडग्गाहे' कल्ला कल्लि अद्धरत्तकालसमयंसि एगे अबीए सण्णद्ध - बद्धवम्मियकवए जाव' गहियाउहप्पहरणे साम्रो गिहाम्रो 'निज्जाइ, निज्जाइत्ता" जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहूणं नगरगोरूवाणं साहा अाहाण य जाव वियंगेइ, वियंगेत्ता जेणेव सए गेहे तेव उवागए ॥ ४१. तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे तेहि बहूहिं गोमंसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जि - एहि परिहि लावणेहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ || ४२. तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे एयकम्मे एय पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहु पावकम्मं समज्जिणित्ता पंचवाससयाई परमाउं पालइत्ता अट्टदुहट्टोव गए' कालमासे कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसं तिसागरोवमठिइएस नेरइएसु इयत्ताए उववण्णे ॥ उज्ययस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ४३. तए णं सा विजयमित्तस्स सत्यवाहस्स सुभद्दा नाम भारिया जायनद्या यावि होत्था - जाया जाया दारगा विणिहायमावज्जति ॥ १. सं० पा०-- नगरगोरूवा भीया । २. वि० १।१।४७ । ३. गोतामे दारए (क, ख, ग, घ ) । ४. X ( क ) । ५. वि० १।२।१४ । ६. निग्गच्छइ २ (घ) । ७३६ ७. वि० १।२।२८ | ८. अहट्टवसट्टे (घ ) । ६. ° निहुया (क, घ); निड्डुया (ग); यत्प्रसूतिका निदु: ( अभिधान चिन्तामणि ३।१९३) । १०. तस्याः इति गम्यम् (वृ) । Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० विवागसुयं ४४. तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे दोच्चाए पुढवीए अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव वाणिय गामे नयरे विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे ॥ ४५. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया ॥ ४६. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही तं दारगं जायमेत्तयं चेव एगते उक्कुरुडियाए' उज्झावेइ, उज्झावेत्ता दोच्चं पि गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवड्ढेइ॥ ४७. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो ठिइवडियं च चंदसूरदसणं' च जागरियं च महया इड्डीसक्कारसमुदएणं करेंति ॥ ४८. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे निव्वत्ते संपत्ते बारसाहे अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्जं करेंति--जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव एगते उक्कुरुडियाए उज्झिए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए उज्झियए नामेणं ॥ ४६. तए णं से उज्झियए दारए पंचधाईपरिग्गहिए, [तं जहा-खीरधाईए मज्जण धाईए मंडणधाईए कीलावणधाईए अंकधाईए] ' जहा दढपइण्णे जाव निव्वाय निव्वाघाय-गिरिकंदरमल्लीणे व्व चंपगपायवे सुहंसुहेणं विहरइ ।।। ५०. तए णं से विजयमित्ते सत्थवाहे अण्णया कयाइ गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च-चउव्विहं भंडं गहाय लवणसमुदं पोयवहणेण उवागए। ५१. तए णं से विजयमित्त तत्थ लवणसमुद्दे पोयविवत्तोए निब्बुड्डभंडसारे अत्ताणे असरणे कालधम्मुणा संजुत्ते ।। ५२. तए णं तं विजयमित्तं सत्थवाहं जे जहा बहवे ईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय इब्भ-सेट्ठि-सत्थवाहा लवणसमुद्दपोयविवत्तियं निब्बुड्डभंडसारं कालधम्मुणा संजुत्तं सुणेति, ते तहा हत्थनिक्खेवं च बाहिरभंडसारं च गहाय एगंतं अवक्कमंति ॥ ५३. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही विजयमित्तं सत्थवाहं लवणसमुद्दपोयविवत्तियं निब्बुड्डभंडसारं कालधम्मुणा संजुत्तं सुणेइ, सुणेत्ता महया पइसोएणं अप्फुण्णा १. उक्करुडियाए (ग)। २. संवड्ढेमाणीति (क)। ३. ठियपडियं (क); ठियपडिकम्मं (घ)। ४. चंदसूरपासणियं (वृ)। ५. इमेयारूवं (घ)। ६. असो कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांश: प्रतीयते। ७. ओ० सू० १४४, वाचनान्तर पृ० १५१, १५२। ८. भंडगं (घ)। ६. लवणसमुद्दे पोय ° (क, ख, ग, घ)। Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं (उज्झियए) ७४१ समाणो परसुनियत्ता इव' चंपगलया धस त्ति धरणीयलंसि सव्वंगेहि सन्निवडिया ॥ ५४. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही मुहत्तंतरेणं अासत्था समाणी बहूहि मित्त- नाइ नियग-सयण-संबंधि-परियणेहिं सद्धि ° परिवुडा रोयमाणी कंदमाणी विलव माणी विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स लोइयाई मयकिच्चाई करेइ॥ ५५. तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ लवणसमुद्दोत्तरणं च सत्थविणासं च पोयविणासं च पइमरणं च अणुचितेमाणी-अणुचितेमाणी कालधम्मुणा संजुत्ता। ५६. तए णं ते नगरगुत्तिया सुभदं सत्थवाहिं कालगयं जाणित्ता उज्झियगं दारगं सानो गिहाओ निच्छु ति, निच्छुभेत्ता तं गिहं अण्णस्स दलयंति ॥ ५७. तए णं से उज्झियए दारए सानो गिहारो निच्छूढे समाणे वाणियगामे नगरे सिंघाडग' . •तिग - चउक्क - चच्चर - चउम्मुह-महापह° पहेसु जूयखलएसु वेसघरएसु पाणागारेसु य सुहंसुहेणं परिवड्डइ ॥ ५८. तए णं से उज्झियए दारए अणोहए' अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारे मज्जप्पसंगी 'चोर-जूय"-वेस-दारप्पसंगी जाए यावि होत्था । ५६. तए णं से उज्झियए अण्णया कयाइ कामज्झयाए गणियाए सद्धि संपलग्गे जाए यावि होत्था, कामज्झयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भंजमाणे विहरइ ॥ ६०. तए णं तस्स मित्तस्स रण्णो अण्णया कयाइ सिरीए देवीए जोणिसूले पाउब्भए यावि होत्था, नो संचाएइ मित्ते राया सिरीए देवीए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए ॥ ६१. तए णं से मित्ते राया अण्णया कयाइ 'उज्झियए दारए कामज्झयाए गणियाए गिहाम्रो निच्छुभावेइ, निच्छुभावेत्ता कामज्झयं गणियं अभितरियं ठवेइ ठवेत्ता कामज्झयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ॥ ६२. तए णं से उज्झियए दारए कामज्झयाए गणियाए गिहारो निच्छुभेमाणे" १. विव (क्व)। २. सं० पा०-मित्त जाव परिवूडा। ३. सं० पा०-सिंघाडग जाव पहेसु । ४. जूयखंधएसु (क)। ५. वेसियाघरएसु (घ)। ६. अणोहट्टिए (क, ख)। ७. वत्ती'चोर-जूय' इति पदे व्याख्याते नरूस्तः। ८. उज्झियदारए (क, घ); अत्र विभक्ति व्यत्ययो दृश्यते, अन्यथा व्याकरणदृष्ट्या 'उज्झिययं दारयं' इति पाठो युक्तः स्यात् । ६. अभितरयं (ख, घ)। १०. निच्छुभमाणे समाणे (क); निच्छुभे समाणे Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं कामज्झयाए गणियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अण्णत्थ कत्थइ सुई च रइं च धिइं च अविदमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेस्से तदज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तयप्पियकरणे तब्भावणाभाविए कामज्झयाए गणियाए वहूणि अंतराणि य छिहाणि य विवराणि य पडिजागरमाणे-पडिजागरमा ६३. तए णं से उज्झियए दारए अण्णया कयाइ 'कामज्झयाए गणियाए" अंतरं लभेइ, लभेत्ता कामज्झयाए गणियाए गिह रहसियं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता काम झयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणस्सगाई भोगभोगाइं भजमाणे विहरड ।। ६४. इमं च णं मित्ते राया ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते जेणेव कामज्झयाए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तत्थ णं 'उज्झियगं दारगं” कामज्झयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणं पासइ, पासित्ता प्रासुरुत्ते रुद्रे कूविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलि भिउडि निडाले साहट्ट उज्झियगं दारगं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता अट्ठि-मुट्ठि-जाणु-कोप्परपहारसंभग्ग-महियगत्तं करेइ, करेत्ता अवप्रोडग-बंधणं करेइ, करेत्ता एएणं विहाणेणं वज्झं आणवेइ ॥ ६५. एवं खलु गोयमा ! उज्झियए दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कं ताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥ उज्झिययस्स प्रागामिभव-वण्णग-पदं ६६. उज्झियए णं भंते ! दारए इअो कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? .कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! उज्झियए दारए पणुवीसं वासाइं परमाउं पाल इत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूल भिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ ! ६७. से णं तनो अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्डगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववज्जिहि ॥ ६८. से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अन्झोववण्णे १. कामज्झियागणियं (घ)। २. अंतराणि (ख)। ३. उज्झियए दारए (क, ख, ग, घ)। ४. विहरमाणं (क, ख, ग)। ५. भग्ग (क)। ६. सं० पा०-पुरा जाव विहरइ । ७. पणवीसं (ग)। Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बी अभय (उज्झियए) ૭૪૨ जाए-जाए वाणरपेल्लए वहेइ । तं एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे' कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे नयरे गणियाकुलसि पुत्तत्ता पच्चायाहिइ || ६६. तए णं तं दारयं सम्मापियरो जायमेत्तकं वद्धेहिति', नपुंसकम्मं सिक्खावेहिति ॥ ७०. तए णं तस्स दारयस्स सम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्जं करेहिति - होउ णं म्हं इमे दारए पियसेणे नामं नपुंसए || ७१. तए णं से पियसेणे नपुंसए उम्मुक्कबालभावे विष्णयपरिणमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते रूवेण य जोब्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठे उक्किदुसरीरे भविस्सइ || ७२. तए णं से पियसेणे नपुंसए इंदपुरे नयरे बहवे राईसर- "तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ- सत्थवाह' पभियत्रो बहूहि य विज्जापओगेहि य मंतपग्रोगेहिय चुण्णपप्रोगेहिय हियउड्डावणेहिय निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभियोगिएहिं ग्राभियोगित्ता उरालाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमाणे विहरिस्सइ ॥ ७३. तए णं से पियसेणे नपुंसए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहु पावकम्मं समज्जिणित्ता एक्कवीसं वासस्यं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । ततो सिरीसिवेसु, संसारो तहेव जहा पढमे जाव' वाउ-तेउ आउ - पुढवीसु प्रणेगसयस हस्सखुत्तो उद्दाइत्ता- उद्दाइत्तातत्थेव भुज्जो - भुज्जो पच्चायाइस्सइ । • से णं तत्रो अणंतरं उब्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए महिसत्ताए पच्चायाहिइ । से णं तत्थ अण्णया कयाइ गोल्लिएहिं जीविया ववरोविए समाणे तत्थेव चंपाए नयरीए सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए ' पच्चायाहिइ । से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहि बुज्झिहिइ, अणगारे भविस्सर, सोहम्मे कप्पे, जहा पढमे जाव अंतं काहि || निक्खेव पदं ७४. “एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं बिइयस्स अज्झयणस्स प्रयमट्ठे पण्णत्ते । -त्ति बेमि° ॥ १. एयसमुदाचारे (वृ) । २. मत्ताए ( क ग ) । ३. वड्ढे हिंति ( क ) । ४. सं० पा० - राईसर जाव पभियओ । ५. वि० १ १ ७० सं० पा० - जाव पुढवी । ६. पुमत्ताए ( क ग ) 1 ७. वि० १।१।७० । ८. सं० पा०- निक्खेवो । ६. ना० १।१७ । Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं अभग्गसेणे उक्खेव-पदं १. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू ! तेणं ___कालेणं तेणं समएणं पुरिमताले नामं नयरे होत्था-रिद्धस्थिमियसमिद्धे । ३. तस्स णं पुरिमतालस्स नय रस्स उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं अमोहदंसी उज्जाणे ॥ ४. तत्थ णं अमोहदंसिस्स जक्खस्स प्राययणे होत्था ॥ ५. तत्थ णं पुरिमताले नयरे महब्बले नाम राया होत्था ॥ ६. तस्स णं पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए देसप्पंते अडवि-संसिया, एत्थ णं सालाडवी नामं चोरपल्ली होत्था-विसमगिरिकंदर-कोलंब-संनिविट्ठा वंसीकलंक-पागारपरिक्खित्ता छिण्णसेल-विसमप्पवाय-फरिहोवगूढा अभितरपाणीया सुदुल्लभजलपेरंता अणेगखंडी विदियजणदिन्न-निग्गमप्पवेसा सुबहुस्स' वि कुवियजणस्स दुप्पहंसा यावि होत्था । ७. तत्थ णं सालाडवीए चोरपल्लीए विजए नामं चोरसेणावई परिवसइ-अहम्मिए" अहम्मिट्र ग्रहम्मक्खाईअधम्माणए अधम्मपलाइ अधम्मपलज्जण अधम्मसीलसमुदायारे अधम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ-हण-छिद-भिंद-वियत्तए° १. सं० पा०-तच्चस्स उक्खेवो। २. ना० ११११७। ३. पू०-ओ० सू० १। ४. सुबहुयस्स (क)। ५. सं० पा०-अहम्मिए जाव लोहियपाणी। ७४४ Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (अभग्गसेणे ) ७४५ लोहि पाणी बहुनयरनिग्गयजसे सूरे दढप्पहारे साहसिए सद्दवेही ग्रसि- लट्ठिपढममल्ले । से णं तत्थ सालाडवीए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसयाणं ग्राहेवच्च' "पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं प्राणा- ईसर - सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ॥ v ८. तए णं से विजए चोरसेणावई बहूणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण' य खंडपट्टाण* य, अण्णेसि च बहूणं छिण्ण- भिण्ण-बाहिराहिया कुडंगे या होत्था || ६. तए णं से विजए चोरसेणावई पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरत्थिमिल्लं जणवयं बहूहिं गामघाएहि य नगरघाएहि य गोग्गहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंथकोट्टे हि खत्तखणणेहि य 'ओवीलेमाणे - प्रोवीलेमाणे " " विहम्मेमाणे - विहम्मेमाणे " तज्जेमाणे- तज्जेमाणे तालेमाणे- तालेमाणे नित्थाणे निद्धणे निक्कणे" करेमाणे विहरइ, महब्बलस्स रण्णो ग्रभिक्खणं ग्रभिक्खणं कप्पायं गेहइ || १०. तस्स णं विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरी नामं भारिया होत्था - ग्रहीणपडि पुण्ण - पंचिदियसरीरा ॥ ११. तस्स णं विजयस्स चोरसेणावइस्स पुत्ते खंदसिरीए भारियाए श्रतए अभग्गसेणे नामं दार होत्था - ग्रहणपडिपुण्ण - पंचिदियसरीरे ॥ १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुरिमताले नयरे समोसढे । परिसा निग्गया । राया निग्गयो । धम्मो कहियो । परिसा राया य गयो || गोयमेण भग्गणस्स पुग्वभवपुच्छा-पदं १३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवश्रो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी गोयमे जाव" 'रायमग्गंसि श्रोगाढे", तत्थ णं बहवे हत्थी पासइ", ग्रण्णे य तत्थ बहवे से पास" प्रणेय तत्थ बहवे पुरिसे पासइ - सण्णद्ध - बद्धवम्मियकवए" । तेसिं चणं पुराणं मज्भगयं एवं पुरिसं पासइ - श्रवग्रोडय" बंधणं उक्त्ति कण्णनासं नेहतुप्पियगत्तं वज्झकर कडि - जुयनियच्छं कंठेगुणरत्त- मल्लदामं चुण्णगुंडिय १. सं० पा० --- आहेवच्चं जाव विहरइ । २. गठियाण (क, ख, ग, घ ) । ३. संधिच्छेयाण (क, ख, ग, घ ) । ४. खंडपाडियाण (वृपा) । ५. उवीलेमाणे २ (घ, वृ) । ६. विद्धसेमाणे २ अत्थापहारेहिं ( ख ) ; अत्था- १२, १३, १४, पू० - वि० १।२।१४ । १५. X ( क, ख, ग, घ ) । पहारेहि य विद्धंसेमाणे २ (घ) । ७. X ( क, वृ) । १६. सं०पा० - अवओडय जाव उग्घोसिज्जमाणं । ८. पू० - ० सू० १५ । ६. पू० - वि० ११२।१० । १०. वि० १२ १२-१४ । ११. रायमग्गं समवगाढे (ख, घ); रायमग्गं समोसढे ( ग ) । Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४६ विवागसुयं गातं चुण्णयं वज्झपाणपीयं तिल-तिलं चेव छिज्जमाणं कागणिमंसाइं खावियंतं पावं खक्खरसएहिं हम्ममाणं अणेगनर-नारी-संपरिवुडं चच्चरे-चच्चरे खंडपडहएणं ° उग्घोसिज्जमाणं [इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणेइ-नो खलु देवाणुप्पिया ! अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्झइ, अप्पणो से सयाई कम्माइं अवरज्झति' ?||| १४. तए णं तं पुरिसं रायपुरिसा पढमंसि चच्चरंसि निसियाति, निसियावेत्ता अट्ट चुलप्पिउए अग्गो घाएंति, घाएत्ता कसप्पहारेहिं 'तासेमाणा-तासेमाणा' कलुणं काकणिमंसाइं खाति, रुहिरपाणं च पाएंति। तयाणंतरं च णं दोच्चंसि चच्चरंसि अट्ठ चुल्लमाउयाओ अग्गो घाएंति, 'घाएत्ता कसप्पहारेहिं तासेमाणा-तासेमाणा कलुणं काकणिमसाई खावेंति, रुहिरपाणं च पाएंति । एवं तच्चे चच्चरे अट्ठ महापिउए, चउत्थे अट्ठ महामाउयानो, पंचमे पुत्ते, छ8 सुण्हायो, सत्तमे जामाउया, अट्ठमे धूयायो, नवमे नत्तुया, दसमे नत्तुईओ, एक्कारसमे नत्तुयावई, बारसमे नत्तुइणीग्रो, तेरसमे पिउस्सियपइया, चोइसमे पिउस्सियायो, पण्णरसमे माउस्सियापइया, सोलसमे माउस्सियानो, सत्तरसमे मामियाओ, अट्ठारसमे अवसेस [स्स ?] * मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणं [स्स?] अग्गो घाएंति, घाएत्ता कसप्पहारेहि तासेमाणा-तासेमाणा कलुणं काकणिमसाइं खाति, रुहिरपाणं च पाएंति ॥ १५. तए ण 'भगवो गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता" अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे - अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कटु पुरिमताले नयरे उच्चनीय-मज्झिम-कुलाई अडमाणे अहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुरिमताले नयरे मज्झमझेणं पडिनिक्खमइ जाव समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं भंते ! "तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे पुरिमताले नयरे जाव' तहेव सव्वं निवेएइ ° ॥ १. द्रष्टव्यम्-वि० १।२।१४ सूत्रम् । सारेण अयं पाठो लिखितः । २. तालेमाणा २ (घ)। ६. सं० पा०-समुप्पण्णे जाव तहेव निग्गए। ३. सं० पा०-घाएंति २।। ७. वि० १।२।१५। ४. पूर्वक्रमेण अत्रापि षष्ठी विभक्तियुज्यते। ८. सं० पा.-तं चेव जाव से णं । ५. से भगवं गोयमे तं पुरिसं पासइ। (क, ख, ६. वि० १।३।१३-१५ । ग, घ)। १।११४१ तथा १।२।१५ सूत्रानु Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झणं (अभग्ग सेणे ) ७४७ १६. से णं भंते ! पुरिसे पुव्वभवे के आसी' ? किं नामए वा किं गोते वा ? करंसि गामंसि वा नयरंसि वा ? किंवा दच्चा किंवा भोच्चा किंवा समायरित्ता, केसि वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुष्पडिकंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ? अभग्गसेणस्स निन्नयभव-वण्णग-पदं १७. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पुरिमताले नाम नयरे होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धे ॥ १८. तत्थ णं पुरिमताले नयरे उदिप्रोदिए नामं राया होत्था - महया हिमवंत-महंतमलय- मंदर-महिंदसारे ॥ १६. तत्थ णं पुरिमताले निन्नए नामं ग्रंडय - वाणियए होत्था - प्रड्ढे जाव' अपरिभू, ग्रहम्मिए अधम्माणुए ग्रधम्मिट्ठे ग्रधम्मक्खाई अधम्मपलोई ग्रधम्मपलज्जणे अधम्मसमुदाचारे प्रधम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणे दुस्सीले दुव्वए' पाणंदे || o २०. तस्स णं निन्नयस्स अंडय - वाणियस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइ भत्त-वेयणा कल्लाकल्लि कुद्दालिया य पत्थियपिडए" य गिण्हंति, गिव्हित्ता पुरिमतालस्स नरस्स परिपेतेसु बहवे काइडए य घूइडए य पारेवइडए य टिट्टिभis arise मयूरिडए य कुक्कुडिडए य, अण्णेसि च बहूणं जलयरथलयर- खहयरमाईणं अंडाई' गेण्हंति, गेण्हित्ता पत्थियपिडगाई भरेंति, भरेत्ता जेणेव निन्नए अंडवाणियए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता निन्नयस्स वाणियस्स उवर्णेति ॥ २१. तए णं तस्स निन्नयस्स ग्रंडवाणियगस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइ भत्त-वेयणा बहवे काइअंडए य जाव" कुक्कुडिअंडए य, अण्णेसि च बहूणं जलयर-थलयरखयरमाईणं अंडए' तवएसु य कवल्लीसु य कंडुसु य भज्जणएसु य इंगालेसु य तलेंति भज्जेति सोल्लेंति, तलेत्ता भज्जेत्ता सोल्लेत्ता य रायमग्गे अंतरावणंसि डणिणं वित्ति कप्पेमाणा विहरंति । अपणा विणं से निन्नयए अंडवाणियए तेहि बहूहिं काइडएहि य जाव कुक्कुडिग्रंडहिय सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं १. सं० पा०-- आसी जाव विहरइ । २. अंड (क, ग ) । ३. ओ० सू० १४१ । ४. सं० पा०- - अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे । ५. पत्थियापडिए (क, ख, ग, घ ) । ६. अंडयाइं ( क ) । ७. वि० १।३।२० । ८. अंडयाई ( क ) । 8. कंदुसु ( क ) ; कंदूएसु ( ग ) । Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४८ विवागसुयं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च प्रासाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परि जे माणे विहरइ॥ २२. तए णं से निन्नए अंडवाणियए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता एगं वाससहस्सं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं' सत्तसागरोवमठिइएसु नरएसु नेरइयत्ताए उववण्णे।। प्रभग्गसेणस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्स चोर सेणावइस्स खंदसिरीए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववणे ॥ २४. तए णं तीसे खंदसिरीए भारियाए अण्णया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउन्भूए-धण्णाओ णं तारो अम्मयानो' 'जागो बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं, अण्णाहि य चोरमहिलाहिं सद्धि संपरिवुडा हाया 'कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल °-पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी विहरंति। जिमियभुत्तुत्तरागया पुरिसनेवत्था सण्णद्ध-बद्ध वम्मियकवइया उप्पीलियसरासणपट्टीया पिणद्धगवेज्जा विमलवरबद्ध-चिंधपट्टा गहियाउह° पहरणावरणा भरिएहि, फलएहि निक्कट्ठाहिं असीहिं, अंसागएहितोणेहि,सज्जीवेहि अंसागएहिं धणूहि, समुक्खित्तेहिं सरेहि, समुल्लालियाहिं दामाहि", ओसारियाहि" ऊरुघंटाहिं, छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठि"- सीहणाय-बोलकलकल-रवेणं पक्खुभियमहा ° समुद्दरवभूयं पिव करेमाणीयो सालाडवीए चोरपल्लीए सव्वो समंता अोलोएमाणीप्रो-प्रोलोएमाणीप्रो आहिंडमाणीप्रोआहिंडमाणीयो दोहलं विणेति । तं जइ अहं पि जाव दोहलं विणिएज्जामि" १. उक्कोस (क); उक्कोसे (ख, ग, घ)। ६. समुल्लासियाहिं (वृ)। २. पू.-वि० ११२।२४ । १०. दामाहि दाहार्हि (ख); दाहाहिं (वृपा)। ३. जाणं (क, ख, ग, घ)। ११. लंबियाहिं (क, ग)। ४. सं० पा०—ण्हाया जाव पायच्छित्ता। १२. वज्जमाणेणं २ (ख, ग, घ)। ५. गयाओ (ख, ग, घ)। १३. सं० पा०-उक्किट्ठि जाव समुद्द ° ; उक्किट्ठ ६. नेवत्थिया (क, ख, ग, घ)। ७. सं० पा०–सण्णद्धबद्ध जाव प्पहरणा । १४. विणेज्जामि (क); विणीज्जामि (ख, ग, घ)। ८. निक्किट्ठाहिं (ख)। Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (अभग्ग सेणे ) त्ति कट्टु तंसि दोहलंसि प्रविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा जाव' श्रट्टज्झाणोवगया भूमि यदिट्टीया भियाइ ॥ २५. तए णं से विजए चोरसेणावई खंदसिरिभारियं प्रहयमणसंकप्पं जाव' भियायमाणि पासइ, पासित्ता एवं वयासी - किं णं तुमं देवाणुप्पिए ! हयमणसंकप्पा tra भूमि यदिट्टीया झियासि ? २६. तए णं सा खंदसिरी विजयं चोरसेणावई एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम तिहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दोहले पाउब्भूए जाव भूमिगयदिट्ठीया भियामि ॥ २७. तए णं से विजए चोरसेणावई खंदसिरीए भारियाए अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म खंदसिरिभारियं एवं वयासी - ग्रहासुहं देवाणुप्पिए ! त्ति एयमट्ठ ss | २८. तणं सा खंदसिरिभारिया विजएणं चोरसेणावइणा अब्भणुण्णाया समाणी तुट्ठा बहूहि मित्त' - नाइ - नियग-सयण-संबंधि परियणमहिलाहिं०, अण्णाहि बहूहिं चोर महिलाहिं सद्धि संपरिवुडा व्हाया जाव' विभूसिया विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसा माणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागया पुरिसवत्था सणद्ध - बद्धवम्मियकवइया जाव' आहिंडमाणी दोहलं विणे || २६. तए णं सा खंदसिरिभारिया संपुण्णदोहला संमाणियदोहला विणीयदोहला विच्छिण्णदोहला संपण्णदोहला तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ ॥ ३०. तए णं खंदसिरी चोरसेणावइणी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया ।। ३१. तए णं से विजए चोरसेणावई तस्स दारगस्स महया इड्डीसक्कारसमुदएणं दसरत्तं ठिइवडियं' करेइ ॥ ३२. तए णं से विजए चोरसेणावई तस्स दारगस्स एक्कारसमे दिवसे विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि परियणं श्रमंतेइ, आमंतेत्ता जाव' तस्सेव मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधिपरियणस्स पुरो एवं वयासी - जम्हा णं ग्रम्हं इमंसि दारगंसि गब्भगयंसि समासि इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूए, तम्हा णं होउ ग्रम्हं दारए अभग्गसेणे नाणं । १. वि० १।२।२४ । २. वि० १।२।२५ । ३. वि० १।३।२४ । ४. सं० पा०-मित्त जाव अण्णाहि । ५. वि० १।३।२४ । ७४६ ६. वि० १।३।२४ । ७. वोच्छिण्ण ० ( क, ख, घ ) । ८. ठितिपडितं (क, वृ) । ६. ना० १।७।६ । Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५० विवागसुयं ३३. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचधाईपरिग्गहिए जाव' परिवड्ढइ ।। ३४. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था। 'अट्ठ दारियानो जाव अट्ठो दाो । उप्पि भुंजइ ।। ३५. तए णं से विजए चोरसेणावई अण्णया कयाइ कालधम्मूणा संजुत्ते ।। ३६. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचहिं चोरसएहि सद्धि संपरिवुडे रोयमाण कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेणावइस्स महया इड्डीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूई लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ, करेत्ता केणइ कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था ॥ ३७. तए णं ताई पंच चोरसयाई अण्णया कयाइ अभग्गसेणं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया-महया चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचति ।। ३८. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे चोरसेणावई जाए अहम्मिए जाव' महब्बलस्स रणो अभिक्खणं-अभिक्खणं कप्पायं गिण्हइ ।। ३६. तए णं ते जाणवया पुरिसा अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा बहुगामघायणाहिं ताविया समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिया ! अभग्गसेणे चोरसेणावई परिमतालस्स नयरस्स उत्तरिल्लं जणवयं बहूहि गामघाएहिं जाव निद्धणं करेमाणे विहरइ। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्बलस्स रण्णो एयमटुं विण्णवित्तए । ४०. तए णं ते जाणवया पुरिसा एयमढे अण्णमण्णणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता महत्थं महग्ध महरिहं रायारिहं पाहुडं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुरिमताले नयरे तेणेव उवागया" महब्बलस्स रण्णो तं महत्थं जाव पाहुडं उवणेति, १. वि० १।२।४६ । मिति, 'उप्पि भुजइ' त्ति अस्यायमर्थः२. 'अद्वदारियाओ' त्ति, अस्यायमर्थः-तए 'तए णं से अभग्गसेणे कुमारे उप्पि पासायण तस्स अभग्गसेणस्स कुमारस्स वरगए फुट्टमाणेहि मुयगमथएहि वरतरुणिअम्मापियरो अभग्गसेणं कुमार सोहणंसि संप उत्तेहि बत्तीसइबद्धहि नाडएहिं उवगिज्ज माणे विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवतिहिकरणणक्खत्तमुहुत्तंसि अट्टहिं दारयाहिं माणे विहरइ' त्ति (व)। सद्धि एगदिवसेण पाणि गिहाविसु' त्ति, ३. x (क)। यावत्करणादिदं दृश्य-'तए ण तस्स ४. वि. १३१७-६ । अभग्गसेणस्स कुमारस्स अम्मापियरो इमं ५. घायावणाहिं (ख, ग, घ)। एयारूवं पीईदाणं दलयति' त्ति 'अट्ठओ ६. तासिता (क)। दामो' त्ति अष्टपरिमाणमस्येति अष्टको ७. वि० ११३।६। दायो -दान वाच्य इति शेषः, स चैवम्'अट्ठ हिरण्णकोडीओ अट्र सवण्णकोडोओ' ८. निवेयित्तए (क); निवेएत्तए (ग)। इत्यादि यावत् 'अट्ठ पेसणकारियाओ अण्णं ६. अण्णोण्णं (ग)। च विपुलधणकणगरयणमणिमोत्तियसंख- १०. उवागया जेणेव महब्बले राया तेणेव उवागया सिलप्पवालरत्तरयणमाइयं संतसारसावएज्ज' (ख, ग, घ)। Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (अभग्गसेणे) ७५१ उवणेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए ° अंजलि कटु महब्बलं रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! सालाडवीए चोरपल्लीए अभग्गसेणे चोरसेणावई अम्हे बहूहिं गामघाएहि य जाव' निद्धणे करेमाणे विहरइ । तं इच्छामि णं सामी ! तुझं बाहुच्छायापरिग्गहिया निब्भया निरुन्विग्गा सुहंसुहेणं परिव सित्तए त्ति कट्ठ पायवडिया पंजलिउडा' महब्बलं रायं एयमटुं विण्णवेंति ॥ ४१. तए णं से महब्बले राया तेसिं जाणवयाणं पुरिसाणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते' •रुटे कुविए चंडिक्किए ° मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निडाले साहटु दंडं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! सालाडविं चोरपल्लि विलुपाहि, विलुपित्ता अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गेण्हाहि, गेण्हित्ता ममं उवणेहि ॥ ४२. तए णं से दंडे तह त्ति एयमढे पडिसुणेइ । ४३. तए णं से दंडे बहुहिं पुरिसेहि सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवएहिं जाव गहियाउह पहरणेहिं सद्धि संपरिवुडे मगइएहि फलएहि , निक्कट्ठाहिं असीहिं, अंसागएहिं तोणेहिं, सज्जीवेहिं अंसागएहिं धहिं, समुक्खित्तेहिं सरेहि, समुल्लालियाहिं दामाहि, ओसारियाहिं ऊरुघंटाहिं °, छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठि- सीहणाय-बोल-कलकल-रवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव ° करेमाणे पूरिमताल नयरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ ४४. तए णं तस्स अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स चारपुरिसा इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा जेणेव सालाडवी चोरपल्ली, जेणेव अभग्गसेणे चोरसेणावई तेणेव उवागया करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु अभग्गसेणं चोरसेणावई ° एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्बलेणं रण्णा महयाभडचडगरेणं दडे प्राणत्ते-गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! १. सं० पा०—करयल ° । १०. वि० २३।२४ अस्य स्थाने 'भरिएहि' इति २. वि० ११३१६ । पाठः। शब्दभेदेपि अनयोः वत्तिकारेण ३. पंजलिय डा (क)। एक एव अर्थः कृतः-'भरिएहि' इति हस्त४. जाणवदाणं (क)। पाशितैः, 'मगइएहि' ति हस्तपाशितैः । ५. सं० पा०-आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे; ११. सं० पा०--फलएहि जाव छिप्पतूरेण । आसरत्ते (ग, घ)। १२. उक्किट्ठ (ख, ग, घ); सं० पा०-उक्किट्टि ६. मिसेमिसेमाणे (ख)। जाव करेमाणे। ७. उवणेहिंति (क); उवणेहिं (ख, ग, घ)। १३. पाहारेत्थ (क)। ८. पुरिसेहिं सद्धि (क, ग घ)। १४. सं० पा०-करयल जाव एवं । ६. वि० १।२।१४ । Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५२ विवागसुयं सालाडविं चोरपल्लि विलुंपाहि, अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गेण्हाहि, गेण्हित्ता ममं उवणेहि। तए णं से दंडे महयाभडचडगरेणं जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ ४५. तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तेसिं चारपुरिसाणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म पंच चोरसयाइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्बलेणं रण्णा महयाभडचडगरेणं दंडे आणत्ते जाव' तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं तं दंडं सालाडविं चोरपल्लि असंपत्तं अंतरा चेव पडिसेहित्तए॥ ४६. तए णं ताई पंच चोरसयाइं अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स तहत्ति' 'एयमटुं° पडिसुणेति ॥ ४७. तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता पंचहिं चोरसएहिं सद्धि ण्हाए 'कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल °-पायच्छित्ते भोयणमंडवंसि तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च प्रासाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परि जेमाणे विहरइ। जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभूए पंचहिं चोरसएहिं सद्धि अल्लं चम्म दुरुहइ, दुरुहित्ता सण्णद्ध-बद्ध वम्मियकवएहिं उप्पीलियसरासणपट्टीएहिं पिणद्धगेवेज्जेहिं विमलवरबद्ध-चिंधपट्टेहि गहियाउह पहरणेहि मगइएहिं जाव' उक्किटिसीहनाय-बोल-कलकलरवेणं पच्चावरण्हकालसमयंसि सालाडवीयो चोरपल्लीग्रो निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणिए तं दंडं पडिवालेमाणे-पडिवालेमाणे चिट्ठइ ।। ४८. तए णं से दंडे जेणेव अभग्गसेणे चोरसेणावई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा सद्धि संपलग्गे यावि होत्था ।। ४६. तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तं दंडं खिप्पामेव हय-महिय- पवरवीर घाइय-विवडियचिधधयपडागं दिसोदिसिं° पडिसेहेति ॥ ५०. तए णं से दंडे अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा हय- महिय-पवरवीर-घाइय विवडियचिधधयपडागे दिसोदिसि ° पडिसेहिए समाणे अथामे अबले अवीरिए १. वि० ११३।४४ । ५. सं० पा०–सण्णद्धबद्ध जाव पहरणेहिं । २. आगते ततेणं अभग्गसेणे ताइं पंचचोरसयाइं ६. पहरणे (क, घ)। एवं वयासी (क,ख,ग) गमणाए पागते ततेणं ७. वि. १।३।४३ । से अभग्गसेणे ताई पचचोरसयाई एवं वयासी ८. पू०-१३।४३ । ६. सं० पा०-महिय जाव पडिसेहेति । ३. सं० पा०-तहत्ति जाव पडिसुणेति । १०. विप्पडिसेहेइ (व)। ४. सं० पा०-हाए जाव पायच्छित्ते। ११. सं० पा०-हय जाव पडिसेहिए। Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइय अज्झयणं (अभग्गसेणे) ७५३ अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु जेणेव पुरिमताले नयरे, जेणेव महब्बले राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु महब्बलं रायं° एवं वयासी-एवं खलु सामी! अभग्गसेणे चोरसेणावई विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणिए, नो खल से सक्का केणविर सबहाणवि ग्रासबलेण वा हत्थिबलेण वा जोहबलेण वा 'रहबलेण वा चाउरंगेणं पि' [ सेण्णबलेणं ?] उरंउरेणं गिण्हित्तए । ताहे सामेण य भेएण य उवप्पयाणेण य विस्सम्भमाणेउं पवत्ते यावि होत्था। जे वि य से अधिभतरगा सीसगभमा, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं च विउलेणं-धण-कणग-रयण-संतसार-सावएज्जेणं भिदइ, अभग्गसेणस्स य" चोरसेणावइस्स अभिक्खणं-अभिक्खणं महत्थाई महग्घाइं महरिहाइं रायारिहाई पाहुडाइं पेसेइ, अभग्गसेणं चोरसेणावई वीसम्भमाणेइ। ५१. तए णं से महब्बले राया अण्णया कयाइ पुरिमताले नयरे एगं महं महइमहालियं कडागारसालं कारेइ.५ - अणेगखंभसयसन्निविट्ठ पासाईयं दरिसणिज्ज अभिरूवं पडिरूवं ।। ५२. तए णं से महब्बले राया अण्णया कयाइ पुरिमताले नयरे उस्सुक्क २ •उक्करं अभडप्पवेसं अदंडिमकुदंडिमं अधरिमं अधारणिज्ज अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदामं गणियावरनाडइज्जकलियं अणेगतालाचराणुचरियं पमुइयपक्कीलियाभिरामं जहारिहं° दसरत्तं पमोयं उग्घोसावेइ, उग्घोसावेत्ता कोडुबियपूरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सालाडवीए चोरपल्लीए। तत्थ णं तुब्भे अभग्गसेणं चोरसेणावई करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयह"-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पूरिमताले नयरे महब्बलस्स रण्णो उस्सुक्के जाव दसरत्ते पमोए उग्घोसिए । तं किं णं देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारे य इहं हव्वमाणिज्जउ उदाहु सयमेव गच्छित्था५ ? १. सं० पा०-करयल ° । २. केणइ (ख, ग, घ)। ३. X (क)। ४,५,६. वा (ग)। ७. पयत्ते (क)। ८. सीसगसमा (घ); तान् इति शेषः (बू)। ६. सावएजेणं (क, ग)। १०. X (क, ग)। ११. करेइ (क, ख, घ)। १२. सं० पा०–उस्सुक्कं जाव दसरत्तं; उस्सुकं (क) सर्वत्र। १३. सं० पा०-करयल जाव एवं । १४. वदाह (क)। १५. गच्छित्ता (क, ख, ग, घ); मुद्रितवृत्ती Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुर्यं o ५३. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा महब्वलस्स रण्णो करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामि ! त्ति प्राणाए विणणं वयणं पडिसुर्णेति, पडणेत्ता पुरिमतालाओ नयराम्रो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता श्रद्धाणेहिं सुहेहिं वसहिपाय रासेहिं जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अभग्गसेण चोरसेणावई करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्बलस्स रण्णो उस्सुक्के जाव' दसरत्ते पमोए उग्घोसिए । तं किं णं देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारे य इहं हव्वमाणिज्जउ उदाहु सयमेव गच्छित्था ? 0 ५४. तए णं से ग्रभग्गसेणे चोरसेणावई ते कोडुंबियपुरिसे एवं वयासी - ग्रहं णं देवाप्पिया ! पुरिमतालं नयरं सयमेव गच्छामि । ते कोडुंबियपुरिसे सक्कारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जेइ ॥ ७५४ 0 ५५. तए णं से ग्रभग्गसेणे चोरसेणावई बहूहि मित्त - नाइ - नियग-सयण-संबंधिपरियणेहिं सद्धि • परिवुडे पहाए' कयबलिकम्मे कयकोउय- मंगल - पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए सालाडवीश्रो चोरपल्ली पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव पुरिमताले नयरे, जेणेव महब्बले राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु महब्बलं रायं जपणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता महत्थं' महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं उवणेइ ॥ ५६. तए णं से महब्बले राया अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स तं महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं पडिच्छर, प्रभग्गसेणं चोरासेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ विसज्जेइ, कूडागारसालं च से आवसहि" दलयइ ॥ ५७. तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई महब्बलेणं रण्णा विसज्जिए समाणे जेणेव कूडागारसाला तेणेव उवागच्छइ । ५८. तए णं से महब्बले राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी 'उदाहु सयमेव गच्छत्ता उताहो स्वयमेव गमिष्यसि । हस्तलिखितवृत्ती - 'गच्छत्था स्वयमेव गमिष्यथ' इत्यस्ति । १. सं० पा० – करयल जाव पडिसुर्णेति । २. नातिविक ० ( ख ) ; नाइविंग ० ( वृ ) । ३. सं० पा० - करयल जाव एवं । ४. वि० १।३। ५२ । ५. सं० पा०—मित्त जाव परिवुडे । ६. सं० पा० - हाए जाव पायच्छित्ते । ७. सं० पा०- करयल ० । ८. सं० पा० - महत्थं जाव पाहुडं । ६. सं० पा० - महत्थं जाव पडिच्छइ । १०. वसहिं (क) । Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (अभग्गसेणे) गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह, उवक्खडावेत्ता तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं च अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स कूडागारसालाए उवणेह ।। ५६. तए णं ते कोडुबियपुरिसा करयल' परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट° जाव' उवणेति ॥ ६०. तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई बहूहि मित्त'- नाइ-नियग-सयण-संबंधि परियणेहिं ° सद्धि संपरिवुडे पहाए जाव' सव्वालंकारविभूसिए तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाए माणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभंजेमाणे पमत्ते विहरइ ॥ ६१. तए णं से महब्बले राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे" देवाणुप्पिया ! पुरिमतालस्स नयरस्स दुवाराइं पिहेह, पिहेत्ता अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गिण्हह, गिण्हित्ता ममं उवणेह । ६२. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं ° पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता पुरिमतालस्स नयरस्स दुवाराइं पिहेंति, अभग्गसेणं चोरसेणावइं जीवग्गाहं गिण्हति, गिण्हित्ता महब्बलस्स रण्णो उवणेति ।। ६३. तए णं से महब्बले राया अभग्गसेणं चोरसेणावइं एएणं विहाणेणं वज्झं प्राणवेडा ६४. एवं खलु गोयमा ! अभग्गसेणे चोरसेणावई पुरा पोराणाणं 'दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे ° विहरइ ।। अभग्गसेणस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ६५. अभग्गसेणे णं भंते ! चोरसेणावई कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! अभग्गसेणे चोरसेणावई सत्ततीसं वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोस सागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए ° उववज्जिहिइ। १. सं० पा०--करयल ° । २. वि०१।३।५८ । ३. सं० पा०-मित्त । ४. वि० १३।५५ । ५. तुमं (ग)। ६. सं० पा०-करयल जाव पडिसुणेति । ७. सं० पा०-पोराणाणं जाव विहरइ । ८. सं० पा०-उक्कोस नेरइएसु । Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुय से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता, एवं संसारो जहा पढमे जाव' 'वाउ-तेउ-प्राउपुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ । तो उव्वट्टित्ता वाणारसीए नयरीए सूयरत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ सोयरिएहिं जीवियाग्रो ववरोविए समाणे तत्थेव वाणारसीए नयरीए सेट्रिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ । से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावो, एवं जहा पढमे जाव' अंतं काहिइ ॥ निक्खेव-पदं ६६. "एवं खलु जंबू ! समणणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं तइयस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ १. वि० ११११७० सं० पा०-जाव पुढवी। २. वि० ११११७०। ३. सं० पा०-निखेवयो। ४. ना० १।१७। Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं सगडे उक्खे व-पदं १. जइ णं भंते' ! 'समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, चउत्थस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी ° -एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएण साहंजणी नामं नयरी होत्था-रिद्धत्थिमियसमिद्धा ।। ३. तीसे णं साहंजणीए नयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए देवरमणे नामं उज्जाणे होत्था । ४. तत्थ णं अमोहस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था-पोराणे॥ ५. तत्थ णं साहंजणीए नयरीए महचंदे नाम राया होत्था-महयाहिमवंत-महंत मलय-मंदर-महिंदसारे ।। ६. तस्स णं महचंदस्स रण्णो सुसेणे नामं अमच्चे होत्था-साम-भेय-दंड-उवप्पयाण नीति-सुप्पउत्त-नयविहण्णू। ७. तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुदरिसणा नामं गणिया होत्था-वण्णो । ८. तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुभद्दे नाम सत्थवाहे होत्था-अड्ढे ॥ ६. तस्स णं सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा नाम भारिया होत्था-अहीण-पडिपुण्ण पंचिदियसरीरा॥ १०. तस्स णं सुभद्दस्स सत्थवाहस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सगडे नाम दारए होत्था -- अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे ।। १. सं० पा०--चउत्थस्स उक्खेवग्रो। २. ना० १।१७। ३. पू०-ना० १।१।१६ । ४. वि० ११२७ । ७५७ Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५८ विवागसुयं ११. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए । परिसा राया य निग्गए। धम्मो कहियो। परिसा गया। सगडस्स पुव्वभवपुच्छा-पदं १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवनो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जाव रायमग्गं प्रोगाढे। तत्थ णं हत्थी, आसे, अण्णे य बहवे पूरिसे पासइ । तेसिं च णं परिसाणं मझगयं पासइ एगं सइत्थियं पूरिसं अवग्रोडयबंधणं उक्खित्तकण्णनासं जाव' खंडपडहेण उग्घोसिज्जमाणं 'इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणेइ–नो खलु देवाणुप्पिया ! सगडस्स दारगस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्झइ, अप्पणो से सयाई कम्माइं अवरज्झति ।। सगडस्स छन्नियभव-वण्णग-पदं १३. तए णं भगवो गोयमस्स° चिंता तहेव जाव भगवं वागरेइ-एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे छगलपुरे नाम नयरे होत्था ॥ १४. तत्थ णं सीहगिरी नामं राया होत्था-महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर महिंदसारे ॥ १५. तत्थ णं छगलपुरे नयरे छन्निए नाम छागलिए परिवसइ-अड्ढे जाव' अपरिभूए, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे ।। तस्स णं छन्नियस्स छागलियस्स बहवे [बहूणि ? ] अयाण य एलयाण" य रोज्झाण य 'वसभाण य२ ससयाण य सूयराण य 'पसयाण य सिंहाण य'१३ हरिणाण य मयूराण य महिसाण य सयबद्धाणि सहस्सबद्धाणि य जहाणि वाडगंसि संनिरुद्धाइं" चिट्ठति। १. समोसरणं (क, ख, घ)। ८. वि० ११२१५,१६। २. वि० १।२।१२-१४। ६. प्रो० सू० १४१ । ३. रायमग्गे (ख, घ)। १०. वि० ११११४७ । ४. पू०-वि० १०२।१४ । ११. एलाण (क, ख, ग, घ)। ५. उक्खत्त (ख); उक्कड (ग); उवक्खित्त १२. पसयाण य (क); X (ख, ग)। (घ)। १३. सिंहाण य (क); X (ख, ग); पसुयाण ° ६. वि० ११२।१४। ७. सं० पा.-उग्घोसिज्जमाणं जाव चिंता। १४. निरुद्धाई (क); निरुद्धा (ख, ग)। (घ)। Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५६ चउत्थं अज्झयणं (सगडे) अण्णे य तत्थ बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा बहवे अए य जाव महिसे य सारक्खमाणा संगोवेमाणा' चिटुंति । अण्णे य से बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा बहवे अए य जाव महिसे य जीवियाओ ववरोति, ववरोवेत्ता मंसाइं कप्पणीकप्पियाइं करेंति, करेत्ता छन्नियस्स छागलियस्स उवणति । अण्ण य से बहवे परिसा ताई बहयाई अयमसाइं जाव महिसमसाइय तवएस य कवल्लीसु य कंदुसुय भज्जणेसु य इंगालेसु य तलेंति य भज्जेंति य सोल्लति य, तलेत्ता य भज्जेत्ता य सोल्लेत्ता य तो रायमगंसि वित्ति कप्पेमाणा विहरंति। अप्पणा वि य" णं से छन्निए छागलिए तेहिं बहूहिं अयमंसेहि य जाव महिसमंसेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणे वोसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ ॥ १७. तए णं से छन्निए छागलिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्म कलिकलुसं समज्जिणित्ता सत्त वाससयाइं परमाउं पाल इत्ता कालमासे कालं किच्चा चोत्थीए पुढवीए उक्कोसेणं दससागरोवमठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ॥ सगडस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं १८. तए णं सा सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा भारिया जायनिंदुया यावि होत्था जाया-जाया दारगा विणिहायमावज्जति ॥ १६. तए णं से छन्निए छागलिए चोत्थीए पुढवीए अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव साहंजणीए नयरीए सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे ॥ २०. तए णं सा भद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। २१. तए णं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तं चेव सगडस्स हेटुओ ठवेंति, दोच्चं पि गिण्हावेंति, अणुपुव्वेणं सारक्खंति संगोवेंति संवड्डेति, जहा उज्झियए जाव' १. संगोयमाणा (क)। ३. कप्पिणी ° (ख)। २. चिटुंति । अण्णे य से बहवे पुरिसा अयाण ४. कंडुसु (ख, ग)। य जाव गिहंसि संनिरुद्धा चिटुंति (क, ग, ५. ४ (क)। घ); असौ पाठः नावश्यक: प्रतिभाति । ६. वि०१२।४७,४८ । अस्यार्थः पूर्वपाठे समागतोस्ति । Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० विवागसुयं जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव सगडस्स हेट्टयो ठविए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए सगडे नामेणं । सेसं जहा उज्झियए। सुभद्दे लवणसमुद्दे कालगए, माया वि कालगया। से वि सानो गिहारो निच्छूढे ।। २२. तए ण से सगडे दारए साओ गिहारो निच्छूढे समाणे साहंजणीए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु जूयखलएसु वेसघरएसु पाणागारेसू य सहसहेणं परिवा॥ २३. तए णं से सगडे दारए अणोहट्टए अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारे मज्जप्पसंगी चोर-जूय-वेस-दारप्पसंगी जाए यावि होत्था ।। २४. तए णं से सगडे अण्णया कयाइ ° सुदरिसणाए गणियाए सद्धि संपलग्गे यावि होत्था॥ २५. तए णं से सुसेणे अमच्चे तं सगडं दारगं अण्णया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए गिहायो निच्छुभावेइ, निच्छुभावेत्ता सुदरिसणं गणियं अभितरियं ठवेइ,' ठवेत्ता सुदरिसणाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ॥ २६. तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए गणियाए गिहारो निच्छुभेमाणे सुदरिसणाए गणियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अण्णत्थ कत्थइ सुई च रइंच धिइंच अलभमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेस्से तदझवसाणे तदट्रोवउत्ते तयप्पियकरणे तब्भावणाभाविए सुदरिसणाए गणियाए बहुणि अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरइ ।। २७. तए णं से सगडे दारए अण्णया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए अंतरं लभेइ, लभेत्ता सुदरिसणाए गणियाए गिहं रहसियं° अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता सुदरिसणाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ ॥ २८. इमं च णं सुसेणे अमच्चे ण्हाए जाव' विभूसिए मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते जेणेव सदरिसणाए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सगडं दारयं सूदरिसणाए गणियाए सद्धि उरालाई भोगभोगाइं भुजमाणं पासइ, पासित्ता प्रासूरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निडाले साहट्ट सगडं दारयं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता अट्ठि -मुट्ठि-जाणु-कोप्पर-पहारसंभग्गं° १. वि० ११२।४६-५६ । सुदरिसणाए गिहं। २. सं० पा.-समाणे सिंघाडग तहेव जाव ५. वि० १२।६४ । सुदरिसणाए। ६. मणुस्सवग्गुराए (ख, ग, घ)। ३. ठावेइ (क)। ७. वि० १५२१६४ । ४. सं० पा०-निच्छुभेमाणे अण्णत्थ कत्थइ ८. सं० पा०-अट्टि जाव महियगत्तं । सुई वा अलभ अण्णया कयाइ रहस्सियं Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (सगडे) ७६१ महियगत्तं करेइ, करेत्ता अवप्रोडयबंधणं करेइ, करेत्ता जेणेव महचंदे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु महचंद रायं एवं वयासो-एवं खलु सामी ! सगडे दारए मम अंतेउरंसि अवर ॥ २६. तए णं से महचंदे राया सुसेणं अमच्चं एवं वयासी--तुमं चेव णं देवाणप्पिया ! सगडस्स दारगस्स दड वत्ताह' ।। ३०. तए णं से सुसेणे अमच्चे महचंदेणं रण्णा अब्भणुण्णाए समाणे सगडं दारयं सूदरिसणं च गणियं एएणं विहाणेणं वज्झं प्राणवेइ ॥ ३१. तं एवं खलु गोयमा ! सगडे दारए पुरा पोराणाणं 'दुचिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥ सगडस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ३२. सगडे णं भंते ! दारए कालगए कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! सगडे णं दारए सत्तावण्णं वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे एगं महं अयोमयं तत्तं समजोइभूयं इत्थिपडिमं अवतासाविए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयत्ताए उववज्जिहि॥ ३३. से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता रायगिहे नयरे मातंगकुलसि जमलत्ताए' पच्चायाहिइ॥ ३४. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्ज करिस्संति -तं होउ णं दारए सगडे नामेणं, होउ णं दारिया सुदरिसणा नामेणं ॥ ३५. तए णं से सगडे दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणप्पत्ते भविस्सइ॥ ३६. तए णं सा सुदरिसणावि दारिया उम्मुक्कबालभावा विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणप्पत्ता रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्रसरीरा भविस्सइ॥ १. स० पा०-करयल जाव एवं । २. अंतेपुरियंसि (क, घ)। ३. वर्तहिं (क, घ)। ४. सं० पा०-पोराणाणं जाव विहरइ। ५. जुगलत्ताए (घ)। ६. पयायाहिति (ग)। ७. निव्वत्तवारसगस्स (क, ख, ग, घ)। ८. ०प्पत्ते अलं भोगसमत्थे यावि (व)। Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ विवागसुयं ३७. तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे सुदरिसणाए भइणीए' सद्धि उरालाइं माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरिस्सइ ।। ३८. तए णं से सगडे दारए अण्णया कयाइ सयमेव कूडग्गाहत्तं उवसंपज्जित्ता णं विहरिस्सइ॥ ३६. तए णं से सगडे दारए कूडग्गाहे भविस्सइ-अहम्मिए जाव' दुप्पडियाणंदे, एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ', संसारो तहेव जाव 'वाउ-तेउ-ग्राउ-पुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ । से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता वाणारसीए नयरीए मच्छत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तत्थ मच्छबंधिएहि वहिए तत्थेव वाणारसीए नयरीए सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ। बोहिं, पन्वज्जा, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ॥ निक्खेव-पदं ४०. "एवं खलु जंबू ! समणणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ १. भारियाए (क, ख); X (ग)। २. वि० ११११४७ । ३. उववन्ने (क, ख, ग, घ); अशुद्ध प्रतिभाति । ४. वि० १।११७०; सं० पा०-जाव पुढवी। ५. सं० पा०—निक्खेवो । ६. ना० ११११७ । Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं बहस्सइदत्ते . उक्खव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाण चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्टे पण्णत्ते ? तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी ° ---एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नामं नयरी होत्था-रिद्धत्थिमियसमिद्धा । बाहिं चंदोतरणे उज्जाणे । सेयभद्दे जक्खे ॥ तत्थ णं कोसंबीए नयरीए सयाणिए नाम राया होत्था-महयाहिमवंत-महंतमलय-मंदर-महिंदसारे । मियावई देवी ।। तस्स णं सयाणियस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए उदयणे नामं कुमारे होत्थाअहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे जुवराया। तस्स णं उदयणस्स कुमारस्स पउमावई नामं देवी होत्था ।। __ तस्स णं सयाणियस्स सोमदत्ते नामं पुरोहिए होत्था-रिउव्वेय-यज्जुव्वेय सामवेय-अथव्वणवेयकुसले ॥ ७. तस्स णं सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ता नाम भारिया होत्था । ८. तस्स णं सोमदत्तस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए बहस्सइदत्ते नामं दारए होत्था अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे ॥ ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे ॥ १. सं० पा०—पंचमस्स अज्झयणस्स उक्खेवओ। ५. पू०-वि० ०२।१०। २. ना० ११११७ । ६. समवसरणं (क, ख, ग, घ); वि० श२।११ ३. पू०-प्रो० सू० १४ । सूत्राधारेण असौ पाठः स्वीकृतः । ४. पू०-वि० १।२।१०। ७६३ Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ गोमेण बहस्सइदत्तस्स पुव्वभव पुच्छा-पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे तहेव जाव' रायमग्गमोगाढे तहेव पासइ हत्थी, ग्रासे, पुरिसमज्भे पुरिसं । चित्ता । तहेव पुच्छइ पुव्वभवं । भगवं वागरेइ बहस्सइदत्तस्स महेसरदत्तभव-वण्णग-पदं ११. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे सव्वोभद्दे नामं नयरे होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धे ॥ १२. तत्थ णं सव्वग्रोभद्दे नयरे जियसत्तू नामं राया होत्या ।। १३. तस्स णं जियसत्तुस्स रण्णो महेसरदत्ते नामं पुरोहिए होत्था - रिउब्वेय - यज्जुव्वेय- सामवेय-अथव्वणवेयकुसले यावि होत्था ॥ १४. तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए जियसत्तुस्स रण्णो रज्जबलववड्ढणट्टयाए कल्लाकल्लि' एगमेगं माहणदारयं, एगमेगं खत्तियदारयं, एगमेगं वइस्सदारयं, एगमेगं सुदारयं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता तेसि जीवंतगाणं चेव हिययउंडए गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता जियसत्तस्स रण्णो संतिहोमं करेइ || १५. तए णं से महेस रदत्ते पुरोहिए अट्टमीचा उद्दसीसु दुवे-दुवे माहण- खत्तिय वइस्ससुद्दे, उन्हं मासाणं चत्तारि चत्तारि छण्हं मासाणं श्रट्ट अट्ठ, संवच्छरस्स सोलस - सोलस । विवागसूर्य - जावियणं जियसत्तू राया परबलेणं अभिजुज्जइ', ताहे ताहे वियणं से महेसरदत्ते पुरोहिए ट्ठसय माहणदारगाणं, असयं खत्तियदारगाणं, असयं वइस्सदार गाणं, असयं सुदारगाणं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता तेसि जीवंतगाणं चेव हियय उंडियाओ गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता जियसत्तुस्स रण्णो तिहो करेइ । तए णं से परबले खिप्पामेव विद्धंसेइ " वा पडिसेहिज्जइ वा ॥ १६. तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहु पावकम्मं समज्जिणित्ता तीसं वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा पंचमाए" पुढवीए उक्कोसेणं सत्तरससागरोवमट्टिइए नरगे उववण्णे ॥ १. वि० १।२।१२- १४ । २. x (घ) । ३. पू० - वि० १।२1१४-१६ । ४. पू० ओ० सू० १ । ५. महिस्सर० ( क ) । ६. रिव्वेद ( क ) । ७. कल्लं कल्लं (क); कल्ला कल्लं ( ग ) । ८. अभिजुंजइ ( ख, ग ) । ६. जीवंतकाणं ( क ); जीवंताणं ( ख ) । १०. विद्वंसइ ( ख, ग ); विद्धसिज्जइ (क्व ) । ११. पंचमी ( ग ) | Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अभयणं (बहस्सइदत्ते ) बहस्सइद तस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं १७. से णं तो अनंतरं उवट्टित्ता इहेव कोसंबोए नयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ता भारिया पुत्तत्ताए उववण्णे || १८. तए णं तस्स दारगस्स सम्मापियरो निव्वत्तवारसाहस्स ' इमं एयारूवं ' ' नामधेज्जं करेंति - जम्हा णं ग्रम्हं इमे दारए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तर, तम्हाणं होउ म्हं दारए बहस्सइदत्ते नामेणं ॥ १६. तणं से बहस्सइदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव' परिवढइ || २०. तए णं से बहस्सइत्ते दारए उम्मुक्कवालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते होथा । से णं उदयणस्स कुमारस्स पियबालवयस्सए यावि होत्था सहजायए सहवडियए सहपं सुकीलियए । २१. तण से याणिए राया अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते || २२. तए णं से उदय कुमारे बहूहि राईसर - तलवर माडंबिय - कोडुंबिय इब्भ-सेट्ठिसेणावइ-सत्थवाहपभिईहिं सद्धि संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे सयाणियस्स रण्णो महया इड्डीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूई लोइयाई मयकिच्चाई करेइ || - २३. तए णं ते बहवे राईसर - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ ०सत्थवाहप्पभित उदयणं कुमारं महया - महया रायाभिसेएणं अभिसिचति ॥ २४. तए णं से उदयणे कुमारे राया जाए - महयाहिमवंत-महंत मलय-मंदर महिंदसारे । २५. तए णं से बहस्सइदत्ते दारए उदयणस्स रण्णो पुरोहियकम्मं करेमाणे सव्वद्वाणेसु सव्वभूमियासु अंतेउरे य दिण्णवियारे जाए यावि होत्था || २६. तणं से वहस्सइदत्ते पुरोहिए उदयणस्स रण्णो अंतेउरं वेलासु य प्रवेलासु य कालेसु य अकालेसु य राम्रो य विआले य पविसमाणे ग्रण्णया कयाइ पउमाईए देवीए सद्धि संपलग्गे यादि होत्था । पउमावईए देवीए सद्धि उरालाई माणुस्साई भोग भोगाई भुजमाणे विहरइ ॥ २७. इमं च णं उदयणे राया पहाए जाव' विभूसिए जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहस्सइदत्तं पुरोहियं पउमावईए देवीए सद्धि उरालाई माणुस्साई भोगभोगाई भुंजमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुते तिवलियं भिडि निडाले साहट्टु बहस्सइदत्तं पुरोहियं पुरिसेहिं गिण्हावेइ", "गिण्हावेत्ता १. एमेयारूवं (घ ) । २. वि० १।२।४६ । ७६५ ३. सं० पा० - राईसर जाव सत्यवाह । ० ४. सं० पा० - राईसर जाव सत्थवाह' I ५. पू० – प्रो० सू० १४ । ६. वि० १।२।६४ । ७. सं० पा० - गिण्हावेइ जाव एएणं । Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ विवागसुयं अट्ठि-मुट्ठि-जाणु-कोप्परपहार-संभग्ग-महियगत्तं करेइ, करेत्ता अवप्रोडगबंधणं करेइ, करेत्ता ° एएणं विहाणेणं वज्झं आणवेइ ॥ २८. एवं खलु गोयमा ! बहस्सइदत्ते पुरोहिए पुरा पोराणाणं' 'दुच्चिण्णाणं दुप्प डिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणु भवमाणे ° विहरइ॥ बहस्सइदत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं २६. बहस्सइदत्ते णं भंते ! पुरोहिए इनो कालगए समाणे कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! बहस्सइदत्ते णं पुरोहिए चोसट्टि वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे' कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए 'उक्कोससागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता, एवं संसारो जहा पढमे जाव' वाउ-तेउ-ग्राउपुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाइस्सइ । तो हत्थिणाउरे नयरे मियत्ताए पच्चायाइस्सइ । से णं तत्थ वाउरिएहि वहिए समाणे तत्थेव हत्थिणाउरे नयरे सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए' पच्चायाहिइ। बोहिं, सोहम्मे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। निक्खेव-पदं ३०. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तणं दुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। --त्ति बेमि° ॥ १. सं० पा०-पोराणाणं जाव विहरइ। ५. वि० ११११७० । २. दारए (क, ख, ग, घ)। ६. पुमत्ताए (क)। ३. सूलिभिण्णे (घ)। ७. सं० पा०-निक्खेवो। ४. सं० पा०-पुढवीए संसारो तहेव पुढवी। ८. ना० १।१७ । Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ad अभयणं नंदिवर्द्धणे उक्खेव पदं १. जइ णं भंते ! ' समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स प्रयमट्ठे पण्णत्ते, छट्ठस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेण के अट्ठे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू- अणगारं एवं वयासी -एवं खलु जंबू तेणं कालेणं तेणं समएणं महुरा नाम नयरी । भंडीरे उज्जाणे । सुदरिस जक्खे । सिरिदामे राया । बंधुसिरी भारिया । पुत्ते नंदिवद्धणे कुमारे-ग्रहीण - पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे जुवराया' ॥ o ३. तस्स सिरिदामस्स सुबंधू नामं श्रमच्चे होत्था - 'साम-दंड-भेय उवप्पयाणनीतिसुप्पउत्त- नयविहणू" । ४. तस्स णं सुबंधुस्स अमच्चस्स बहुमित्तपुत्ते नामं दारए होत्था - ग्रहीण - पडिपुण्ण पंचिदियसरीरे ॥ ५. तस्स णं सिरिदामस्स रण्णो चित्ते नामं अलंकारिए' होत्था - सिरिदामस्स रणो चित्तं बहुविहं अलंकारियकम्मं " करेमाणे सव्वट्ठाणेसु य सव्वभूमियासु य अंतेउरे दिवारे या होत्था || १. सं० पा० - छट्टस्स उक्खेवो । २. ना० १।१।७ । ३. सुदरसणे ( ख, ग ); सुदंसणे ( क्व ) । ४. सं० पा० प्रहीण जाव जुवराया । ५. जुगराया ( क ) । ० ६. सामदंड (क, ख, ग, घ ) ; पू० - ना० १ । १ । १६ । ७. पू० - वि० १।२।१० । ८. अलंकारए (क, ख, ग ) । ६. × (क) । १०. अलंकारि कम्मं ( क ) । ७६७ Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६८ विवागसुयं ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । परिसा निग्गया, राया निग्गयो जाव' परिसा पडिगया॥ गोयमेण नंदिवद्धणस्स पुव्वभवपुच्छा-पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवरो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जाव' रायमग्गमोगाढे । तहेव हत्थो, प्रासे, पुरिसे पासइ । तेसिं च णं पुरिसाणं मज्झ गयं एगं पुरिसं पासइ जाव' नर-नारीसंपरिवुडं ॥ ८. तए णं तं पुरिसं रायपुरिसा चच्चरंसि तत्तंसि अयोमयंसि समजोइभूयंसि सीहासणंसि नि तयाणंतरं च णं पुरिसाणं मझगयं बहूहि अयकलसेहिं तत्तेहिं समजोइभूएहिं, अप्पेगइया तंबभरिएहि, अप्पेगइया तउयभरिएहि, अप्पेगइया सीसगभरिएहि, अप्पेगइया कलकल भरिएहि, अप्पेगइया खारतेल्लभरिएहि महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति । तयाणंतरं च तत्तं अयोमयं समजोइभूयं अयोमयं संडासगं गहाय हारं पिणद्धति । तयाणंतरं च णं अद्धहार •पिणद्धति तिसरियं पिणद्धति पालंब पिणद्धति कडिसुत्तयं पिणद्धति पढें पिणद्धति मउडं पिणद्धति ° । चित्ता तहेव जाव' वागरेइनंदिवद्धणस्स दुज्जोहणभव-वण्णग-पदं ६. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सीहपुरे नामं नयरे होत्था--रिद्धत्थिमियसमिद्धे । १०. तत्थ णं सीहपुरे नयरे सीहरहे नामं राया होत्था ॥ ११. तस्स णं सीहरहस्स रण्णो दुज्जोहणे नामं चारगपाले होत्था-अहम्मिए जाव' दुप्पडियाणंदे ॥ १२. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स इमेयारूवे चारगभंडे होत्था१३. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे अयकुंडीअो-अप्पेगइयायो तंब भरियायो. अप्पेगइयायो तउयभरियाग्रो. अप्पेगइयायो सीसगभरियाग्रो. अप्पेगइयाग्रो कलकलभरियाओ, अप्पेगइयानो खारतेल्लभरियाग्रो-अगणिकायंसि अद्दहियानो चिट्ठति ॥ १. वि० ११२।११। २. वि० ११२।१२-१४ । ३. वि० ०२।१४। ४. सं० पा०--अद्धहारं जाव पटें मउडं। ५. वि० श२।१५,१६ । ६. पू०-ओ० सू० १। ७. चारगपालए (घ)। ८. वि० १११।४७ । Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठ अभियणं (नंदिवद्धणे) ७६६ १४. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे उट्टियानो- अप्पेगइयाओ आसमुत्त भरियायो, अप्पेगइयायो हत्थिमुत्तभरियायो, अप्पेगइयाो उट्टमुत्तभरियायो, अप्पेगइयानो गोमुत्तभरियायो, अप्पेगइयायो महिसमुत्तभरियानो, अप्पेगइयायो अयमुत्तभरियाओ, अप्पेगइयानो एलमुत्तभरियानो-बहुपडिपुण्णासो चिट्ठति ।। १५. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे हत्थंडुयाण य पायंडुयाण य हडीण' य नियलाण य संकलाण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता' चिट्ठति ।। १६. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे वेणुलयाण' य वेत्तलयाण य चिचाल याण य छियाण य कसाण य वायरासीण' य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति ॥ १७. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे सिलाण य लउडाण य मोग्गराण य कणंगराण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति ।। १८. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे तंतीण य वरत्ताण य वागरज्जण य वालयसुत्तरज्जूण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति ॥ १६. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे असिपत्ताण य करपत्ताण य खुरपत्ताण य कलंबचीरपत्ताण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिटुंति ॥ २०. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे लोहखीलाण य कडसक्कराण य चम्मपट्टाण य अलीपट्टाण' य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिटुंति ।। २१. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे सूईण य डंभणाण य कोट्टिल्लाण य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिट्ठति ।। २२. तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालस्स बहवे सत्थाण" य पिप्पलाण य कुहाडाण य नहच्छेयणाण य दब्भाण" य पुंजा य निगरा य संनिक्खित्ता चिटुंति ।। २३. तए णं से दुज्जोहणे चारगपाले सीहरहस्स रण्णो बहवे चोरे य पारदारिए य गंठिभए य रायावकारी य अणहारए" य बालघायए य विस्संभघायए य जइगरे५ विद्यते। १. हढीण (क)। घटाण (हस्त० वृ)। २. संनिकिट्ठा (क)। १०. कोडिल्लाण (ख)। ३. वेलुलयाओ (ग)। ११. एकस्यां हस्तलिखितवृत्तौ 'पच्छाण' इति ४. वेत्तलयाओ (ग)। ५. पादरासीण (क)। १२. कुठाराण (ग)। ६. लउलाण (वृ)। १३. दब्भणाण (ख); डब्भणाण (ग); दन्भ७. कणगराण (ख, ग, घ); काणंगराण (वृपा)। तिणाण (घ)। ८. तंताण (ख)। १४. अणधारए (क, घ)। ६. अलाण (क); अलपडाण (ग); अल्लपल्लाण १५. जूयिकरे (क); जूयगरे (ख, ग) : (मुद्रित वृ); अलीण (हस्त० वृ); अली Page #827 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७० विवागसुयं य संडपट्टे य पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता उत्ताणए पाडेइ, लोहदंडेणं मुहं विहाडेइ, विहाडेत्ता अप्पेगइए तत्ततंबं पज्जेइ, अप्पेगइए तउयं पज्जेइ, अप्पेगइए सीसगं पज्जेइ, अप्पेगइए कलकलं पज्जेइ, अप्पेगइए खारतेल्लं पज्जेइ, अप्पेगइयाणं तेणं चेव अभिसेगं करेइ ।। अप्पेगइए उत्ताणए पाडेइ, पाडेत्ता प्रासमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए हत्थिमुत्तं पज्जेइ', प्पेगडए उदमत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए गोमत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए महिसमतं पज्जेइ, अप्पेगइए अयमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए ° एलमुत्तं पज्जेइ । अप्पेगइए हेट्ठामुहए पाडेइ छडछडस्स' वम्मावेइ, वम्मावेत्ता अप्पेगइए तेणं चेव प्रोवील दलयइ। अप्पेगइए हत्थंडुयाई बंधावेइ, अप्पेगइए पायंडुए बंधावेइ, अप्पेगइए हडिबंधणं करेइ, अप्पेगइए नियलबंधणं करेइ, अप्पेगइए संकोडियमोडियए' करेइ, अप्पेगइए संकलबंधणं करेइ, अप्पेगइए हत्थच्छिण्णए करेइ', 'अप्पेगइए पायच्छिण्णए करेइ, अप्पेगइए नक्कछिण्णए करेइ, अप्पेगइए उछिण्णए करेइ, अप्पेगइए जिब्भछिण्णए करेइ, अप्पेगइए सीसछिण्णए करेइ, अप्पेगइए ° सत्थोवाडियए करेइ ।। अप्पेगइए वेणुलयाहि य', 'अप्पेगइए वेत्तलयाहि य, अप्पेगइए चिचालयाहि य, अप्पेगइए छियाहि य, अप्पेगइए कसाहि य, अप्पेगइए ° वायरासीहि य हणावेइ। अप्पेगइए उत्ताणए कारवेइ, कारवेत्ता उरे सिलं दलावेइ, दलावेत्ता तो लउड छुहावेइ, छुहावेत्ता पुरिसेहिं उक्कंपावेइ । अप्पेगइए तंतीहि य", 'अप्पेगइए वरत्ताहि य, अप्पेगइए वागरज्जूहि य, अप्पेगइए वालय ° सुत्तरज्जूहि य हत्थेसु य पाएसु य बंधावेइ, अगडंसि 'प्रोचूलं बोलगं१२ पज्जेइ। अप्पेगइए असिपत्तेहि य", "अप्पेगइए करपत्तेहि य, अप्पेगइए खुरपत्तेहि य अप्पेगइए° कलंबचीरपत्तेहि य पच्छावेइ, पच्छावेत्ता खारतेल्लेणं अब्भंगावेइ । १. खंडपट्टे (क, ख, ग, घ)। २. सं० पा०-पज्जेइ जाव एलमुत्तं । ३. थलथलस्स (क, घ)। ४. हत्थुडु (ख); हत्थंड ° (ख); हत्थियं (घ)। ५. मोडिए (व)। ६. संपा०-करेइ जाव सत्थोवाडियए। ७. सं० पा०-वेणलयाहि य जाव वायरासीहि। ८. सिर (क)। ६. लउलं (क, घ); नउलं (ख)। १०. ओकंपावेइ (क)। ११. सं० पा०-तंतीहि य जाव सुत्तरज्जूहि । १२. ओलंवालगं (क); उचूलंपालगं (ख); उचूलवालगं (ग) उचूलपाणग (घ); ओचूल वालगं (ह० व)। १३. पाययति खादयतीत्यादि लौकिकीभाषा कारयतीति तु भावार्थः (व)। १४. सं० पा०-असिपत्तेहि य जाव कलंबचीर पत्तेहि। Page #828 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठ अज्झयणं (नंदिवद्धणे) ७७१ अप्पेगइयाणं निलाडेसु य अवसु य कोप्परेसु य जाणू सु य खलुएसु य लोहकीलए य कडसक्करानो य दवावेइ अलिए भंजावेइ। अप्पेगइए सूईयो य डंभणाणि' य हत्थंगुलियासु य पायंगुलियासु य कोट्टिल्लएहिं पाउडावेइ, पाउडावेत्ता भूमि कंडुयावेइ। अप्पेगइए सत्थेहि य अप्पेगइए पिप्पलेहि य अप्पेगइए कुहाडेहि य अप्पेगइए° नहच्छेयणेहि य अंग पच्छावेइ, दबभेहि य कुसेहि य उल्लवद्धेहि य वेढावेइ, प्रायवंसि दलयइ, दलइत्ता सुक्के समाणे चडचडस्स उप्पाडेइ ॥ २४. तए णं से दुज्जोहणे चारगपाले एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता एगतीसं वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठोए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ॥ नंदिवद्धणस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं २५. से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव महुराए नयरीए सिरिदामस्स रण्णो बंधु सिरीए देवीए कुच्छिसि पुत्तताए उववण्णे ॥ २६. तए णं बंधुसिरी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव' दारगं पयाया। २७. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहे इमं एयारूवं नामधेज्ज करेंति होउ णं अम्हं दारगे नंदिवद्धणे" नामेणं ॥ १. दलावेइ (क)। २. अल (क); अलए (घ)। ३. दंभणाणि (क, घ)। ४. कड्यावेइ (ख, ग)। ५. सं० पा० -सत्थेहि य जाव नहच्छेयणेहि । ६. उल्लवज्झेहि (क); उल्लदब्भेहि (ख); । उलदज्झेहि (घ); ओल्लबद्धेहि (क्व)। ७. पावं (क)। ८. पुमत्ताए (क)। ६. प्रो० सू० १४३ । १०. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ); प्रस्तुतागमस्य प्रथमाध्ययनस्य सप्तमे सूत्रे 'नंदी' इति पदमस्ति । वृत्तिकृतात्र 'नंदिवर्द्धन' इति नाम सूचितम् –'नंदी' त्ति सूत्रत्वादेव नंदिवर्द्धनो राजकुमार; (वृ)। प्रस्तुताध्ययनस्य द्वितीये सूत्रे 'पुत्ते नंदिवद्धणे कुमारे' इति पाठोस्ति । अध्ययनपरिसमाप्तौ च वृत्तिकृता पुनरस्यैव नाम्नः उल्लेखः कृतोस्ति-षष्ठाध्ययनविवरणं नंदिवर्द्धनस्याधिकारो हि समाप्तः (वृ)। किंतु अस्याध्ययनस्य सप्तविंशतितमसूत्रादारभ्य मूलपाठे सर्वत्र 'नंदिसेण' नाम्नः उल्लेखोस्ति । स्थानाङ्गसूत्रे (१०।१११) 'नंदिसेण' नाम्नः उल्लेखोस्ति । द्वयोरप्यागमयोवृत्तिकारः अभयदेवसूरिरस्ति । वृत्तिकारस्याभिमतेन प्रस्तुतसूत्रे 'नंदिवर्द्धनः' इति नामवास्ति'नंदिसेणे य' ति मथुरायां श्रीदामराजसुतो नदिसेणो युवराजो विपाकश्रुते च नंदिवर्द्धनः श्रूयते (स्थानाङ्गवृत्ति) स्थानाङ्गप्रसिद्धस्य 'नदिसेण' नाम्नः प्रस्तुतसूत्रे समावेशो जातः । अतएव नाम्नोमिश्रणमत्र परिलक्ष्यते । Page #829 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ विवागसुयं २८. तए णं से नंदिवद्धणे' कुमारे पंचधाईपरिवुडे जाव' परिवड्ढइ ।। २६. तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे उम्मुक्कबालभावे •विण्णय-परिणय मेत्ते जोव्वण गमणुप्पत्ते ° विहरइ जाव जुवराया जाए यावि होत्था॥ ३०. तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे रज्जे य जाव' अंतेउरे य मुच्छिए गिद्धे गढिए अझोववण्णे इच्छइ सिरिदामं रायं जीवियाग्रो ववरोवेत्ता सयमेव रज्जसिरि कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए॥ ३१. तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे सिरिदामस्स रण्णो बहूणि अंतराणि य छिद्दाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणे विहरइ॥ तए णं से नंदिवद्धणे कुमारे सिरिदामस्स रण्णो अंतरं अलभमाणे अण्णया कयाइ चित्तं अलंकारियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुमं णं देवाणुप्पिया ! सिरिदामस्स रण्णो सव्वट्ठाणेसु य सव्वभूमियासु य अंतेउरे य दिण्णवियारे सिरिदामस्स रण्णो अभिक्खणं-अभिक्खणं अलंकारियं कम्मं करेमाणे विहरसि, तं णं तुमं देवाणुप्पिया ! सिरिदामस्स रण्णो अलंकारियं कम्मं करेमाणे गीवाए खुरं निवेसेहि। तो णं अहं तुम अद्धरज्जियं करिस्सामि । तुम अम्हेहिं सद्धि उरालाई भोग भोगाइं भंजमाणे विहरिस्ससि ॥ ३३. तए णं से चित्ते अलंकारिए नंदिवद्धणस्स कुमारस्स वयणं एयमटुं पडिसुणेइ ।। ३४. तए णं तस्स चित्तस्स अलंकारियस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्था जइ णं मम सिरिदामे राया एयमटुं आगमेइ, तए णं मम न नज्जइ केणइ असुभेणं कु-मारेणं मारिस्सइ त्ति कटु भीए तत्थे तसिए उव्विगे संजायभए जेणेव सिरिदामे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरिदामं रायं रहस्सियगं करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासी-एवं खलु सामी ! नंदिवद्धणे२ कुमारे रज्जे य जाव" अंतेउरे मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे इच्छइ तुब्भे जीवियानो ववरोवित्ता सयमेव रज्जसिरि कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए । ३५. तए णं से सिरिदामे राया चित्तस्स अलंकारियस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म १. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। ६. ता (ख, घ); तं (ग)। २. वि० ११२।४६ । १०. नंदिसेणस्स (क, ख, ग घ)। ३. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। ११. सं० पा०-इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था । ४. सं० पा०-उम्मूकबालभावे जाव विहरह। १२. सं० पा०-करयल जाव एवं । ५. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। १३. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। ६. वि० ११११५७ । १४. वि० १।११५७ । ७,८. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ)। Page #830 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ अज्झणं (नंदिवद्धणे ) ७७३ आसुरुते' 'रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलि भिउडि निडाले • साहट्टु नंदिवद्धणं कुमारं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता एएणं विहाणेणं वज्भं प्रणवेइ || ३६. तं एवं खलु गोयमा ! नंदिवद्धणे कुमारे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं सुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥ o नंदिवर्द्धणस्स प्रागामिभव-वण्णग-पदं ३७. नंदिवद्धणे' कुमारे इओ चुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! नंदिवद्धणे कुमारे सट्ठि वासाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्ठिइएस नेरइएस नेरइयत्ताए उववज्जिहि । संसारो तहेव । तओ हत्थिणाउरे नयरे मच्छत्ताए उववज्जिहि । से णं तत्थ मच्छिएहिं वहिए समाणे तत्थेव सेट्ठिकुले पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ । बोहि, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहि सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिइ || निक्खेव - पदं ३८. “ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते । - त्ति बेमि ॥ १. सं० पा०-- प्रासुरुत्ते जाव साहट्टु । २. नंदिसेणं ( क, ख, ग, घ ) । ५, ६. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ ) । ७. पू० - वि० १ १/६६ । ८. सं० पा० निक्खेवो । ३. नंदिसेणे (क, ख, ग, घ ) । ४. पुत्ते (क); सं० पा० - कुमारे जाव विहरइ । ६. ना० १।१।७ । Page #831 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं उंबरदत्ते उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! 'समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी –एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे । 'वणसंडे उज्जाणे'३ । 'उंबरदत्ते जक्खे ॥ ३. तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया। ४. तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था–अड्ढे । गंगदत्ता भारिया ॥ ५. तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नामं दारए होत्था-अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे ॥ ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समोस रणं जाव' परिसा पडिगया । गोयमेण उंबरदत्तस्स पुत्वभवपुच्छा-पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे तहेव' जेणेव पाडलिसंडे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पाडलिसंडं नयरं पुरथिमिल्लेणं दुवारेणं अणुप्प १. सं० पा०-सत्तमस्स उक्खेवओ। २. ना० १।१७। ३. वणसंडं उज्जाणं (क, ख, ग)। ४. उंबरदत्तो जक्खो (क)। ५. पू०-ओ० सू० १४३ । ६. वि०-१२।११। ७. पू०-वि० श॥१२-१४ । ७७४ Page #832 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (उंबरदत्त) ७७५ विसइ, अणुप्पविसित्ता तत्थ णं पासइ एगं पुरिसं-कच्छुल्ल कोढियं दापोयरियं' भगंदलिय परिसिल्लं कासिल्लं सासिल्लं सोगिलं 'सूयमुहं सूयहत्थं सूयपायं सडियहत्थंगुलियं सडियपायंगुलियं सडियकण्णनासियं रसियाए य पूएण य थिविथिवितं वणमुहकिमिउत्तुयंत-पगलंतपूयरुहिरं लालापगलंतकण्णनासं अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयकवले य रुहिरकवले य किमियकवले य वममाणं कट्ठाइं कलुणाई वीसराई कूवमाणं' मच्छियाचडगरपहकरेणं अणिज्जमाणमग्गं फुट्टहडाहडसीसं दंडिखंडवसणं खंडमल्लखंडघडहत्थगयं गेहे-गेहे देहंबलियाए वित्ति कप्पेमाणं पासइ। तया भगवं गोयमे ! उच्च-नीय- मज्झिम-कूलाई अडमाणे° अहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ पाडलिसंडायो नयरानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तपाणं आलोएइ, भत्तपाणं पडिदसेइ, समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाएं 'समाणे अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे ° बिलमिव पण्णगभूते" अप्पाणणं आहारमाहारइ, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ८. तए णं से भगवं गोयमे दोच्चं पि छटुक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ जाव" पाडलिसंडं नयर दाहिणिल्लेणं दुवारेणं अणुप्पविसइ, तं चेव पुरिसं पासइ-कच्छुल्लं तहेव जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ॥ ६. तए णं से भगवं गोयमे तच्चं पि छटुक्खमणपारणगंसि तहेव जाव पाडलिसंडं नयरं पच्चत्थिमिल्लेणं दुवारेणं अणुपविसमाणे तं चेव पुरिसं पासइ कच्छुल्लं॥ १०. १५०तए णं से भगवं गोयमे चउत्थं पि छट्टक्खमणपारणगंसि तहेव जाव पाडलिसंडं नयरं उत्तरेणं दुवारेणं अणुपविसमाणे तं चेव पुरिसं पासइ - कच्छुल्लं"। १. उदरियं (वृ), मुद्रितवृत्तौ दोउयरियं; दोउरियं ६. सं० पा०-अब्भणण्णाए जाव बिलमिव । (क्व)। १०. भूतेणं (क्व)। २. भगंदरिय (ग, घ)। ११. वि० ११२।१३,१४ । ३. सुयमुहं सुयहत्थं (घ)। १२. वि० १७१७ । ४. नासेयं (क)। १३. वि० ११७।८। ५. थिविथिवेतं (क)। १४. पू०- वि० १७७ । ६. कूयमाणं (ह० वृ)। १५. स० पा०---चउत्थं छद्र उत्तरेणं इमेयारूवे। ७. फुड० (क)। १६. वि० ११७।८। ८. सं० पा० -नीय जाव अडइ। १७. पू०-वि० ११७७ । Page #833 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७६ faarri o ११. तए णं भगवो गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता इमेयारूवे प्रज्झत्थिए चितिए after पथि मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे - ग्रहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं' • दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ । न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा । पच्चक्खं खलु प्रयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कट्टु जाव' समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - एवं खलु ग्रहं भंते ! छट्ठक्खमणपारणगंसि जाव' रियंते जेणेव पाडलिसंडे नयरे तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता पालिसंडं नयरं पुरत्थिमिल्लेणं दुवारेणं अणुपविट्ठे । तत्थ गं एवं पुरिसं पासामि कच्छुल्लं जाव' देहंबलियाए वित्ति कप्पेमाणं । 'तए णं" ग्रहं दोच्चछट्ठक्खमणपारणगंसि दाहिणिल्लेणं दुवारेणं तहेव । तच्च छट्ठक्खमणपारणगंसि पच्चत्थिभिल्लेणं दुवारेणं तहेव । तए णं श्रहं चोत्थछट्ठक्खमणपारणगंसि उत्तरदुवारेणं प्रणुप्पविसामि तं चेव पुरिसं पासामि कच्छुल्ल जाव देबलियाए वित्ति कप्पेमाण' । चिता ममं ॥ १२. " से णं भंते! पुरिसे पुव्वभवे के ग्रासि ? किं नामए वा कि गोत्ते वा ? करंसि गामसि वा नयरंसि वा ? किंवा दच्चा किंवा भोच्चा किंवा समायरित्ता, केसि वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं प्रसुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ? उंबरदत्तस्स घण्णंत रिभव-वण्णग-पदं १३. गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी – एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विजयपुरे नामं नयरे होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धे || १४. तत्थ णं विजयपुरे नयरे कणगरहे नामं राया होत्था ।। १५. तस्स णं कणगरहस्स रण्णो धण्णंतरी नामं वेज्जे होत्था - टुंगाउब्वेयपाढए [ तं जहा - १. कुमारभिच्चं २. सालागे ३. सल्लहत्ते ४. कायतिगिच्छा ५. जंगोले ६. भूयविज्जे ७. रसायणे ८. वाजीकरणे ] ' सिवहत्थे सुहहत्थे लहुहत्थे | १६. तए णं से धण्णंतरी वेज्जे विजयपुरे नयरे कणगरहस्स रण्णो अंतउरे य, अण्णेसि च बहूणं राईसर - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय इब्भ- सेट्ठि सेणावइ- सत्थवाहाणं, असि च बहूणं दुब्बलाण य गिलाणाण य वाहियाण य रोगियाण य सणाहाण १. सं० पा० पोराणाणं जाव एवं । २. वि० १।२।१५ । ३. वि० १।२ । १३,१४ । ४. वि० १९७७ । ५. तं (क, घ) । ६. कप्पेमाणे विहरइ (क, ख, ग, घ ) । ७. सं० पा० – पुव्वभवपुच्छा वागरेइ । ८. कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । Page #834 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (उंबर दत्ते) ७७७ य अणाहाण य समणाण य माहणाण य भिक्खगाण' य करोडियाण य कप्पडियाण य पाउराण य–अप्पेगइयाणं मच्छमसाइं उवदिसइ', अप्पेगइयाणं कच्छभमसाइ, अप्पेगइयाणं गाहमंसाइं. अप्पेगइयाणं मगरमसाई, अप्पेगइयाणं सुंसुमारभंसाई, अप्पेगइयाणं अयमसाई, एवं- एलय-रोज्झ-सूयर-मिग-ससय-गोमहिसमसाइं उवदिसइ, अप्पेगइयाणं तित्तिरमंसाइं उवदिसइ, अप्पेगइयाणं वट्ट क-लावक-कवोय-कुक्कुड-मयूरमंसाइं उवदिसइ, अण्णेसिं च बहूणं जलयर-थल -यर-खहयरमाईणं मंसाइं उवदिसइ । अप्पणा वि णं से धण्णंतरी वेज्जे तेहिं बहूहिं मच्छमंसेहि य जाव मयूरमंसेहि य, अण्णेहि य बहूहिं जलयर-थलयर-खहयरमंसे हि य, मच्छरसएहि य जाव मयूररसएहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ ।। १७. तए णं से धण्णंतरी वेज्जे एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहं पावं कम्म समज्जिणित्ता बत्तीसं वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ॥ उंबरदत्तस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं १८. तए णं सा गंगदत्ता भारिया जायनिंदुया यावि होत्था--जाया-जाया दारगा विणिधायमावज्जति ॥ १६. तए णं तीसे गंगदत्ताए सत्थवाहीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कंडबजागरियं जागरमाणीए अयं अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे-एवं खलु अहं सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं सद्धि बहूई वासाइं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि । तं धण्णाप्रो णं तानो अम्मयाअो, संपुण्णाओ णं तारो अम्मयात्रो, कयत्थानो णं तानो अम्मयानो, कयपुण्णाओ णं तानो अम्मयानो, कयलक्खणाओ णं तायो अम्मयानो, कयविहवाओं णं ताओ अम्मयायो, सूलद्धे णं तासि अम्मयाणं माणुस्सए जम्मजीवियफले, जासिं मण्णे नियगकुच्छिसंभूयगाई थणदुद्धलुद्धयाई महुरस मुल्लावगाइं मम्मणपजंपियाई थणमूला' कक्खदेसभागं अभिसरमाणयाई' मुद्धयाई पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गिण्हिऊण उच्छंगे निवेसियाई देंति समुल्लावए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पभणिए । १. भिक्खुयाण (क, ख); भिक्खुणाण (ग); भिक्खाचरे (घ)। २. उवदंसेइ (घ)। ३. एला (क, घ); वि० १।४।१६ सूत्रे कतिचन पदानि अधिकानि दृश्यन्ते । ४. थणमूल (क, ख, घ)। ५. अतिसर० (क, ख, ग, घ)। Page #835 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७८ विवागसुयं अहं णं अधण्णा अपूण्णा अकयपूण्णा एत्तो एगतरमविन पत्ता । तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते सागरदत्तं सत्थवाह अापूच्छित्ता सुबह पृष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं सद्धि पाडलिसंडामो नयरानो पडिनिक्खमित्ता बहिया जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छित्ता, तत्थ णं उंबरदत्तस्स जक्खस्स महरिहं पुप्फच्चणं करेत्ता जाणुपायपडियाए प्रोयाइत्तए-जइ णं अहं देवाणुप्पिया ! दारगं वा दारियं वा पयामि, तो णं अहं तुब्भं जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं च अणुवड्डिस्सामि त्ति कटु अोवाइयं प्रोवाइणित्तए--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहि सद्धि बहूइं वासाई उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणी जाव एत्तो एगमवि न पत्ता । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाया जाव प्रोवाइणित्तए ।। २०. तए णं से सागरदत्त सत्थवाहे गंगदत्तं भारियं एवं वयासी-ममं पि ण देवाण प्पिए ! एस चेव मणोरहे कहं णं तुमं दारगं वा दारियं वा पयाएज्जासि ? गंगदत्ताए भारियाए एयमटुं अणुजाणइ ।। २१. तए णं सा गंगदत्ता भारिया सागरदत्तसत्थवाहेणं एयमद्रं अब्भणण्णाया समाणी सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय बहूहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरियणमहिलाहिं सद्धि सयाओ गिहाम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पाडलिसंडं नयरं मझमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुक्खरिणी' तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुवखरिणीए तीरे सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं ठवेइ, ठवेत्ता पुक्खरिणि प्रोगाहेइ, अोगाहेत्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिडं करेइ, करेत्ता बहाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता उल्लपडसाडिया पुक्खरिणीनो पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता तं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकार गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उंबरदत्तस्स जक्खस्स पालोए पणामं करेइ, करेत्ता लोमहत्थयं परामुसइ, परामुसित्ता उंबरदत्तं जक्खं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुखेत्ता पम्हल'-'सुकुमाल-गंधकासाइयाए ° १. ना० १।१२४ । २. उव्वाएत्तए (ग); प्रोवायइत्तए (क्व)। ३. पोक्खरिणी (क); पुक्खरणी (ग)। ४. पुक्खरिणिं (क, ग); पुक्खरणीए (ख) । ५. सं० पा०-पम्हल ° । Page #836 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (उंबरदत्त) ७७६ गायलट्ठी अोलूहइ, अोलू हित्ता सेयाइं वत्थाइं परिहेइ, परिहेत्ता महरिहं पुप्फारुहणं मल्लारुहणं गंधारुहणं चुण्णारुहणं करेइ, करेत्ता धूवं डहइ, डहित्ता जण्णुपायवडिया एवं वयइ---जइ णं अहं देवाणुप्पिया ! दारगं वा दारियं वा पयामि, तो णं' 'अहं तुब्भं जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं च अणवडिस्सामि त्ति कट्ट प्रोवाइयं ° अोवाइणइ, प्रोवाइणित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ॥ २२. तए णं से धण्णंतरी वेज्जे तो नरयाओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे पाडलिसंडे नयरे गंगदत्ताए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे ।। तए णं तीसे गंगदत्ताए भारियाए तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउब्भूए-धण्णाओ णं ताओ 'अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं तायो अम्मयाओ. कयत्थानो ण तायो अम्मयाग्रो, कयपूण्णाग्रो ण ताम्रो अम्मयानो. कयलक्खणानो णं ताओ अम्मयानो, कयविहवाओ ण तायो अम्मयानो. सुलद्धे णं तासि अम्मयाणं माणुस्सए जम्मजीविय फले, जानो णं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उववखडाति, उववखडावेत्ता बहूहि मित्त'- नाइनियग-सयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं सद्धि ° परिवुडाओ तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च पुप्फ- वत्थ गंध-मल्लालंकारं गहाय पाडलिसंडं नयरं मझमज्झेणं पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पुक्खरिणी प्रोगाहेंति, ओगाहेत्ता ण्हायाओं कयबलिकम्माप्रो कयकोउय-मंगल - पायच्छित्तानो तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं बहुहि मित्त- नाइ-नियगसयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं सद्धि प्रासाएंति वीसाएंति परिभाएंति परिभति, दोहलं विणेति-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरदत्तं सत्थवाहं एवं वयासीधण्णाम्रो ण तायो अम्मयाओ जाव दोहलं विणेति, तं इच्छामि णं देवाणप्पिया ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाया जाव दोहलं विणित्तए॥ २४. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे गंगदत्ताए भारियाए एयमटुं अणुजाणइ ॥ २५. तए णं सा गंगदत्ता सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी विउलं १. सं० पा०--तो णं जाव ओयाइणइ। २. सं० पा०-ताओ जाव फले । ३. सं० पा०-मित्त जाव परिवुडाओ। ४. सं० पा०-पुप्फ जाव गहाय । ५. सं० पा०-हायाओ जाव पायच्छित्ताओ। ६. सं० पा०-मित्त जाव सद्धि । ७. ना० ११११२४॥ Page #837 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८० विवागसुयं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च सुबहुं पुप्फवत्थ-गंध-मल्लालंकारं परिगेण्हावेइ, परिगेण्हावेत्ता बहूहि' 'मित्त-नाइनियग-संयण-संबंधि-परियणमहिलाहिं सद्धि २ पहाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता' जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ जाव धूवं डहेइ, डहेत्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ ।। २६. तए णं तानो मित्त- नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियण महिलाओ गंगदत्तं सत्थवाहिं सव्वालंकारविभूसियं करेंति ।। २७. तए णं सा गंगदत्ता भारिया ताहि मित्त - नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियण महिलाहिं,' अण्णाहि य बहूहि नगरमहिलाहिं सद्धि तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी दोहलं विणेइ, विणेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया । २८. तए णं सा गंगदत्ता सत्थवाही संपुण्णदोहला तं गम्भं सुहंसुहेणं परिवहइ । २६. तए णं सा गगदत्ता भारिया नवण्हं मासाणं 'बहुपडिपुण्णाणं दारगं° पयाया। ठिइवडिया जाव' जम्हा णं अम्हं इमे दारए उंबरदत्तस्स जक्खस्स प्रोवाइयलद्धए तं होउ णं दारए उंबरदत्त नामेणं ।। ३०. तए णं से उबरदत्ते पंचधाईपरिग्गहिए परिवड्दए । ३१. तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे १० अण्णया कयाइ गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च-चउव्विहं भंडं गहाय लवणसमुदं पोयवहणेण उवागए। ३२. तए णं से सागरदत्ते तत्थ लवणसमुद्दे पोयविवत्तीए निब्बुडभंडसारे अत्ताणे असरणे कालधम्मुणा संजुत्ते" ।। ३३. १२०तए णं सा गंगदत्ता सत्थवाही अण्णया कयाइ लवणसमुद्दोत्तरणं च सत्थविणासं च पोयविणासं च पइमरणं च अणुचितेमाणी-अणुचितेमाणी कालधम्मुणा संजुत्ता ।। १. सं० पा०-बहूहिं जाव हाया। ८. स० पा०-मासाणं जाव पयाया। २,३. पू०-वि० १।७।२१ । ६. वि० ११३।३१,३२ । ४. वि० श७२१ १०. सं० पा०-जहा विजय मित्ते जाव कालमासे ५. सं० पा० -मित्त जाव महिलाओ। कालं किच्चा। ६. सं० पा०---मित्त । ११. पू०-वि० ११२।५३,५४ । ७. पू०-वि० ११२।३०; पसत्थदोहला ५ १२. सं० पा०-गंगदत्ता वि । (क, ख, ग, घ)। Page #838 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अझयणं (उंबरदत्ते) ७८१ ३४. तए णं ते नगरगुत्तिया गंगदत्तं सत्थवाहिं कालगयं जाणित्ता उंबरदत्तं दारगं ___ सानो गिहाम्रो निच्छु भेति, निन्छु भत्ता तं गिहं अण्णस्स दलयंति ॥ ३५. तए णं तस्स उवरदत्तस्स दारगस्स अण्णया कयाइ सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउब्भूया, [तं जहा-सासे कासे जाव' कोढे] || ३६. तए णं से उंबरदत्ते दारए सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे 'कच्छुल्ले जाव देहबलियाए वित्ति कप्पेमाणे विहरइ॥ ३७. एवं खलु गोयमा ! उबरदत्ते दारए पुरा पोराणाणं' 'दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणु भवमाणे ° विहरइ ॥ उंबरदत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ३८. 'उंबरदत्ते णं भंते ! दारए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! उंबरदत्ते दारए बावरि वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । संसारो तहेव। तो हत्थिणाउरे नयरे कुक्कुडत्ताए पच्चायाहिइ । 'से णं गोहिल्लएहि वहिए' तत्थेव हत्थिणाउरे नयरे सेट्ठिकुलंसि उववज्जिहिइ । बोही । सोहम्मे कप्पे । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। निक्खेव-पदं ३६. १०एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव" संपत्तेणं दुहविवागाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ १. सं० पा०-उंबरदत्ते निच्छुढे जहा दारए (घ); प्राक्तनाध्ययनक्रमेणायं पाठो उज्झियए। गृहीतः । २. वि० १४१३५२। ८. उववणे (क, ख, ग, घ)। भाविप्रश्नप्रसङ्ग३. कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । त्वेन असौ पाठः असङ्गत: प्रतिभाति । ४. वि०१७।७। ६. तहेव जाव पुढवी (ख, ग, घ); पू०-वि० ५. सडियहत्थं जाव विहरइ (क, ख, ग, घ)। १।१७० । ६. सं० पा०--पोराणाणं जाव विहरइ। १०. जायमत्ते चेव गोट्रिवहिए (घ)। ७. तए णं उंबरदत्ते दारए (क, ख); से णं ११. सं० पा०-निक्खेवो। उंबरदत्ते दारए (ग); तए णं से उंबरदते १२. ना० १४१७ । C. तह Page #839 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव पदं १. २. ३. ४. ५. ६. ७. अट्टमं अयणं सोरियदत्ते जइ णं भंते ! ' समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स श्रयमट्ठे पण्णत्ते, अट्टमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणं भगवया महावीरेण के अट्ठे पण्णत्ते ? तणं से हम्मे अणगारे जंबू- अणगारं एवं वयासी' - एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं सोरियपुरं नयरं । सोरियवडेंसगं उज्जाणं । सोरियो क्खो । सोरियदत्ते राया ॥ तस्स णं सोरियपुरस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं एगे मच्छंधपाए' होत्या ॥ तत्थ णं समुद्ददत्ते नामं मच्छंधे परिवसइ - ग्रहम्मिए जाव' दुप्पडियाणंदे || तस्स णं समुद्ददत्तस्स समुद्ददत्ता नामं भारिया होत्था - ग्रहीण-पडिपुण्णपंचिदियसरीरा ।। १. सं० पा० - टूमस्स उक्खेवओ । २. ना० १।१।७ । ३. मच्छंधे पाए ( ख ) ; मच्छवधपाडए (घ ) । ४. वि० १।१।४७ । तस्स णं समुद्ददत्तस्स मच्छंधस्स पुत्ते समुद्ददत्ताए भारियाए प्रत्तए सोरियदत्ते नामं दार होत्था - ग्रहीण - पडिपुण्ण - पंचिदियसरीरे ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव' परिसा पडिगया || - ०. ५. पू० - ओ० सू० १५ । ६. पू० - वि० १ २ १० । ७. वि० १।४ । ११ । ७८२ Page #840 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमं अज्झयगं (सोरियदत्ते) ७८३ सोरियदत्तस्स पुव्वभवपुच्छा-पदं ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स जेटे सीसे जाव' सोरिय पुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई [अडमाणे ?] अहापज्जत्तं समुदाणं गहाय सोरियपुरानो नयरानो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता तस्स मच्छंधपाडगस्स अदूरसामतेणं वीईवयमाणे महइमहालियाए मणुस्सपरिसाए मज्झगयं पासइ एगं पुरिसं-सुक्क भुक्खं निम्मंसं अट्टिचम्मावणद्धं किडिकिडियाभूयं नीलसाडगनियत्थं मच्छकंटएणं गलए अणुलग्गेणं कट्ठाई कलुणाई वीसराई उक्कूवमाणं अभिक्खणं-अभिक्खणं पूयकवले य रहिरकवले य किमियकवले य वममाणं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था—अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं "दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फल वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे ° विहरइ-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ । पुव्वभवपुच्छा जाव' वागरणं ॥ सोरियदत्तस्स सिरीयभव-वण्णग-पदं ६. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे नंदिपुरे नाम नयरे होत्था । मित्ते राया ॥ १०. तस्स णं मित्तस्स रणो सिरीए नाम महाणसिए होत्था-अहम्मिए जाव' दप्पडियाणंदे ॥ ११. तस्स णं सिरीयस्स महाणसियस्स बहवे मच्छिया य वागुरिया य साउणिया य दिण्णभइ-भत्त-वेयणा कल्लाकल्लि बहवे सण्हमच्छा य जाव पडागाइपडागे य, अए य जाव' महिसे य, तित्तिरे य जाव" मयूरे य जीवियानो ववरोवेंति, ववरोवेत्ता सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेति, अण्णे य से बहवे तित्तिरा य जाव मयूरा य पंजरंसि संनिरुद्धा चिटुंति, अण्ण य बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्तवेयणा ते बहवे तित्तिरे य जाव मयूरे य जीवंतए१२ चेव 'निप्पक्खेंति, निप्पक्खेत्ता' सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेति ।। १. वि० १।२।१२-१४ । २. कूवमाणं (घ)। ३. किमिकवले (ख)। ४. सं० पा०-पोराणाणं जाव विहरइ । ५. वि० १।२।१५,१६ । ६. वि० १११४४७ । ७. सोउरिया (ख)। ८. कल्लंकल्लं (क, ग)। ६. पण्ण पद १। १०. वि. ११७।१६ । ११. वि० ११७।१६। १२. जीवियए (ख)। १३. निप्पेखंति २ (क); निप्पंखेइ २ (घ)। Page #841 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसु १२. तए णं से सिरोए महाणसिए बहूणं जलयर - थलयर - खहयराणं मंसाई कप्पणीकप्पियाई करेइ, तं जहा - सहखंडियाणि य 'वट्टखंडियाणि य दीहखंडियाणि " यहस्सखंडियाणि य, हिमपक्काणि य जम्मपक्काणि य घम्मपक्काणि य मापकाणि य कालाणि य हेरंगाणि य महिद्वाणि य ग्रामलरसियाणि य मुद्दियारसियाणि कविट्ठरसियाणि य दालिमरसियाणि य मच्छरसियाणि य तलियाणि य भज्जियाणि य सोल्लियाणि य 'उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता " अण्णेय बहवे मच्छरसए य एणेज्जरसए य तित्तिररसए य जाव' मयूररसए य, अण्णं च विउलं हरियसागं उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता मित्तस्स रण्णो भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए उवणेति । अप्पणा विणं से सिरीए महाणसिए तेसि च बहूहिं जलयर-थलय र खयरमंसेहि च रसिएहि य हरियसागेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाई च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ || १३. तए णं से सिरीए महाणसिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहु पावं कम्मं कलिकलुसं° समज्जिणित्ता तेत्तीस वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्टीए पुढवीए उववण्णे ।। ७८४ सोरियदत्तस्स वत्तमाणभव-वण्णग-पदं १४. तए णं सा समुद्ददत्ता भारिया निंदू यावि होत्था - जाया जाया दारगा विणिघायमावज्जंति । जहा गंगदत्ताए चिता, प्रापुच्छणा, ग्रोवाइयं, दोहलो जाव' दारगं पयाया जावळे जम्हा णं म्हं इमे दारए सोरियस्स जक्खस्स ओवाइयलद्धए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए सोरियदत्ते नामेणं ॥ १५. तए णं से सोरियदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव" उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते यावि होत्था || १६. तए णं से समुद्ददत्ते ग्रण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुते ॥ १७. तए णं से सोरियदत्ते दारए बहूहि मित्त" - नाइ - नियग-सयण-संबंधि परियणेहि सद्धि संपरिवुडे • रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे समुद्ददत्तस्स नीहरणं करेइ, कत्ता बहूई लोइयाई मयकिच्चाई करेइ, अण्णया कयाइ सयमेव मच्छंधमहतरगत्तं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ १. दीह भंडियाण वट्टखंडियाण ( क ) । २. थे पक्काणि (क, ख, ह०वृ); पक्काणि (ग); घमपक्काणी(घ,ह०वृ);वेगपक्काणि ( मु०वृ) । ३. हराणि (घ) । ४. उवक्खडावेत्ता (क, घ) । ५. वि० १।७।१६ । सं० पा० - सुबहु जाव समज्जिणित्ता । ६. ७. ओवालय ( क ) । ८. वि० १।७।१६-२६ । ६. वि० १।७।२६ । १०. वि० १।३।३३,३४ । ११. सं० पा०-मित्त " | Page #842 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (सोरियदत्ते) ७८५ १८. तए णं से सोरियदत्ते दारए मच्छंधे जाए अहम्मिए जाव' दुप्पडियाणंदे। १६. तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स बहवे पुरिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा कल्लाकल्लि' एगट्ठियाहिं जउणं महाणइं प्रोगाहेति, प्रोगाहेत्ता बहूहिं दहगलणेहि य दहमलणेहि य दहमद्दणे हि य दहमहणेहि य दहवहणेहि य दहपवहणेहि य मच्छंधुलेहि य' 'पयंचुलेहि य" 'पंचपुलेहि य जंभाहि य' 'तिसराहि य भिसराहि य' घिसराहि य विसराहि य हिल्लिरीहि य 'भिल्लिरीहि य गिल्लिरीहि य" झिल्लिरीहि य जालेहि य गले हि य कूडपासेहि य 'वक्कबंधेहि य सुत्तबंधेहि य" बालबंधहिय बहवे सहमच्छे जाव पडागाइपडागे य गेण्हति एगट्रियाओ"भरति, भरेत्ता कूलं गाहेंति,गाहेत्ता मच्छखलए" करेंति,करेत्ता प्रायवंसि दलयंति । अण्ण य से बहवे रिसा दिण्णभइ-भत्त-वेयणा प्रायव-तत्तएहि मच्छेहि सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य रायमग्गंसि वित्ति कप्पेमाणा विहरति । अप्पणा वि णं से सोरियदत्ते बहूहि सोहमच्छेहि य जाव पडागाइपडागेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महं च मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे परि जेमाणे विहरइ ।। २०. तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स अण्णया कयाइ ते मच्छे सोल्ले य तलिए य भज्जिए य आहारेमाणस्स मच्छकंटए गलए लग्गे यावि होत्था । २१. तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे महयाए वेयणाए अभिभूए समाणे कोडं बियपूरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सोरियपूरे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह° पहेसु य महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! सोरियदत्तस्स मच्छकंटए गले लग्गे। तं जो णं इच्छइ वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुनो वा जाण्यपुत्तो वा तेगिच्छियो वा तेगिच्छियपुत्तो वा सोरियदत्तस्स मच्छियस्स १. वि० २११४७। ६. तिसिराहि य भिसिराहि य (ग)। २. कल्लंकल्लं (घ)। ७. X (क, ख, घ)। ३. X (क, ख, ग)। ८. णक्खबंधेहि य (ग); णक्खबंधेहि य ४. पर्यधुलेहि य (ख); X (ग)। वक्कबंधेहि य बालबंधेहि य (घ)। ५. पंचपुलेहि य बम्भारिएहिं य (क); पंचपुलेहि ६. पण्ण ° पद° १। य जम्भाहि य (ख); पंचन्नलेहि य बम्भाहि १०. एगट्ठियं (क, ख, ग)। य (ग); प्रपंचपुलादयः मत्स्यबंधनविशेषाः ११. मच्छक्खलए (क, ख)। (मु० वृ); प्रपंचुलादयः ० (ह० वृ); १२. मच्छंधियस्स (क, ख, ग, घ)। बंधुंलादयः ° (ह० वृ)। १३. सं० पा-सिंघाडग जाव पहेसु । Page #843 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८६ विवागसुयं मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, तस्स णं सोरियदत्ते विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ ॥ २२. तए णं ते कोडुबियपुरिसा जाव' उग्घोसंति ।। २३. तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य इमं एयारूवं उग्घोसणं' निसामेंति, निसामेत्ता जेणेव सोरियदत्तस्स गेहे जेणेव सोरियदत्ते मच्छंधे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता बहूहि उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मियाहि य पारिणामियाहि य बुद्धीहिं परिणामेमाणा-परिणामेमाणा वमणेहि य छडुणेहि य प्रोवीलणेहि य कवलग्गाहेहि य सल्लुद्धरणेहि य विसल्लकरणेहि य इच्छंति सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, नो संचाएंति नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा ।। २४. तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य जाहे नो संचाएंति सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स मच्छकंटगं गलाओ नोहरित्तए, ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। २५. तए णं से सोरियदत्ते मच्छंधे वेज्जपडियाइक्खिए परियारगपरिचत्ते निव्वि णोसहभेसज्जे तेणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे सुक्के भुक्खे जाव' किमियकवले य वममाणे विहरइ ॥ २६. एवं खलु गोयमा ! सोरियदत्ते पुरा पोराणाणं 'दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥ सोरियदत्तस्स आगामिभव-वण्णग-पदं २७. सोरियदत्ते णं भंते ! मच्छंधे इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा ! सत्तरि वासाइं परमाउं पाल इत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। संसारो तहेव । हत्थिणाउरे नयरे मच्छत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओ मच्छिएहिं जीवियाओ १. वि० १।८।२१। २. उग्घोसणं उग्घोसेज्जतं (ख, घ)। ३. मच्छंधे (क, ख, ग, घ)। ४. परिगया (क)। ५. वि. १८८। ६. सं० पा०-पोराणाणं जाव विहरइ। ७ वि० १११७० । तहेव जाव पुढवी (क)। ८. उववण्णे (क, ख, ग, घ)। भाविप्रश्न प्रसंगत्वेन असौ पाठः असंगप्रति प्रतिभाति । Page #844 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८७ अट्ठम अज्झयणं (सोरियदत्ते) ववरोविए तत्थेव सेट्टिकुलंसि उववज्जिहिइ । बोही । सोहम्मे कप्पे । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ॥ निक्खेव-पदं २८. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । –त्ति बेमि ॥ १. सं० पा०-निक्खेवो। २. ना० १।१७। Page #845 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं यणं देवदत्ता उक्खेव पदं १. जइ णं भंते । समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं अट्ठमस्स अभयणस्स श्रयमट्ठे पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! प्रज्झयणस्स समणेण भगवया महावीरेण के पण्णत्ते ? o २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू- अणगारं एवं क्यासी – एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रोहीडए' नामं नयरे होत्था - रिद्धत्थिमियसमिद्धे । पुढवीवडेंसए उज्जाणे । धरणो जक्खो । वेसमणदत्ते राया। सिरी देवी । पूसनंदी कुमारे जुवराया ॥ ३. तत्थ णं रोहीडए नयरे दत्ते नामं गाहावई परिवसइ - ग्रड्ढे । कण्हसिरी भारिया || ४. तस्स णं दत्तस्स धूया कण्हसिरीए श्रत्तया देवदत्ता नामं दारिया होत्था - प्रहीणपुण-पंचिदिसरा' ॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव' परिसा पडिगया || देवदत्ताए पुग्वभवपुच्छा-पदं ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवप्रो महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी छट्टक्खमणपारणगंसि तहेव जाव' रायमग्गमोगाढे हत्थी आसे पुरिसे पासइ । तेसिं १. सं० पा० - उक्खेवओ नवमस्स । २. ना० १।१।७ ३. रोहीत के (क, ग) सर्वत्र । ४. वेसमणदत्तो (ख, घ) । ५. सर्वासु प्रतिषु 'अहीण जाव उक्किट्ठसरीरा' ७८८ इति पाठोस्ति । वि० १।४।१० तथा १।४।३६ सूत्रानुसारेण पाठद्वयोमिश्रणं संभाव्यते । अस्माभिरत्र एको गृहीतः । ६. वि० १।४।११ । ७. वि० १।२।१३,१४ । Page #846 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (देवदत्ता) ७८९ पुरिसाणं मझगयं पासइ एगं इत्थियं-अवनोडयबंधणं उक्खित्त'- कण्णनासं नेहतुप्पियगत्तं वज्झ-करकडि-जुयनियच्छं कंठेगुणरत्त-मल्लदामं चुण्णगुंडियगातं चुण्णयं वज्झपाणपीयं सूले भिज्जमाणं पासइ, पासित्ता भगवो गोयमस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था, तहेव निग्गए जाव' एवं वयासी-एस णं भंते ! इत्थिया पुन्वभवे का आसि' ? देवदत्ताए सीहसणभव-वण्णग-पदं ७. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे मारहे वासे सुपइट्ठ नाम नयरे होत्था-रिद्धस्थिमियसमिद्धे । महासेणे राया। ८. तस्स णं महासेणस्स रण्णो धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्था ॥ ६. तस्स णं महासेणस्स रण्णो पुत्ते धारिणीए देवीए अत्तए सीहसेणे नामं कुमारे होत्था-अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरे जुवराया। १०. तए णं तस्स सीहसेणस्स कुमारस्स अम्मापियरो अण्णया कयाइ पंच पासायवडे सयसयाई करेंति-अब्भुग्गयमूसियाई॥ ११. तए णं तस्स सीहसेणस्स कुमारस्स अम्मापियरो अण्णया कयाइ सामापामो क्खाणं पंचण्हं रायवरकन्नगसयाणं एग दिवसे पाणि गिण्हावेसु। पंचसो दाओ॥ १२. तए णं से सीहसेणे कुमारे सामापामोक्खेहि पंचहि देवीसएहि सद्धि उप्पि पासायवरगए जाव' विहरइ ।। १३. तए णं से महासेणे राया अण्णया कयाइ कालधम्मणा संजुत्ते। नीहरणं । राया जाए। १४. तए णं से सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अवसेसानो देवीयो नो अाढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे विहरइ॥ १५. तए णं तासि एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणाई पंचमाइसयाइं इमीसे कहाए लट्ठाइं सवणयाए"- एवं खलु सीहेसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए गिद्धे १. सं० पा०—उक्खित्त जाव सूले । २. वि० ११२।१५। ३. पू०-वि० ११२।१६। ४. महसेणे (क)। ५. ओरोधे (क)। ६. पू०-ना० ११११८६ । ७. सम्मा० (क) सर्वत्र । ८. पंचसयओ (वृ)। ६. ना० १११६३। १०. जाए महया (घ)। ११. समणयाए (ख); समाणाई (घ)। Page #847 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसयं गढिए अज्झोववण्णे अम्हं धूयाओ नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे विहरइ। तं सेयं खलु अम्हं सामं देवि अग्गियओगेण वा विसप्पओगेण वा सत्थप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्तए-एवं संपेहेंति, संपेहेत्ता सामाए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणीओ पडिजागरमाणीओ विहरंति ॥ १६. तए णं सा सामा देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा सवणयाए- "एवं खलु ममं [एगूणगाणं ? ] पंचण्हं सवत्तीसयाणं [एगूणाई ? ] पंचमाइसयाइं इमीसे कहाए लद्धट्राइंसवणयाए अण्णमण्णं एवं वयासी-एवं खल सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए जाव' पडिजागरमाणीओ विहरंति" तं न नज्जइ णं ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्संती ति कटु भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया जेणेव कोवघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ओहय मणसंकप्पा करतलपल्हत्थ मुही अट्टज्माणोवगया भूमिगयदिट्ठीया ° झियाइ ॥ १७. तए णं से सीहसेणे राया इमीसे कहाए लट्ठ समाणे जेणेव कोवघरए, जेणेव सामा देवी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामं देवि ओहय मणसंकप्पं करतलपल्हत्थमुहिं अट्टज्झाणोवगयं भूमिगयदिट्ठीयं झियायमाणि° पासइ, पासित्ता एवं वयासी किं णं तुमं देवाणुप्पिए ! ओहय"मणसंकप्पा करतलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया • झियासि ? तए णं सा सामा देवी सीहसेणेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा उप्फेणउप्फेणियं' सीहसणं रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! ममं एगूणगाणं पंच सवत्तीसयाणं एगणाइं पंच माइंसयाइं इमीसे कहाए लद्धदाइं सवणयाए अण्णमण्णं सद्दावेत्ता एवं वयासी–“एवं खलु सोहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अम्हं धूयाओ नो आढाइ नो परिजाणइ जाव" अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणीओ-पडिजागरमाणीओ विहरति ।" तं न नज्जइ णं सामी ! ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्संती ति कट्ट भीया जाव झियामि ॥ १. विरहाणि (क, ग, घ)। २. सवणयाए एवं वयासी (क, ग, घ); समाणी एवं वयासी (ख); अत्र श्रवणप्रसङ्गोऽस्ति, न तु कथनस्य । तेन ‘एवं वयासी' इति पाठः प्रकृतो नास्ति, सम्भवतो लिपिदोषेण जातः। ३. वि० १।६।१५। ४. सं० पा०-ओहय जाव झियाइ । ५. सं० पा०-ओहय जाव पासइ । ६. सं० पा०-ओहय जाव झियासि । ७. उप्फेणाउप्फेणियं (क)। ८. समाणाइं (ख, ग); समाणाई सवणयाए (घ)। ६. सद्दावेंति २ (क, ख, ग, घ)। १०. वि० १।९।१५। ११. वि. श।१६। Page #848 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६१ नवमं अज्झणं (देवदत्ता ) १६. तए णं से सीहसेणे राया सामं देवि एवं वयासी - मा णं तुमं देवाणुप्पिया ! हमणसंकप्पा जाव' भियाहि । अहं णं 'तह घत्तिहामि जहा णं तव नत्थि कत्तो वि सरीरस्स आवाहे वा पबाहे वा भविस्सइ त्ति कट्टु ताहिं इट्ठाहि ताहि पाहि माहिं मणामाहिं वग्गूहिं समासासेइ, समासासेत्ता तो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - गच्छहणं तुभे देवाणुप्पिया ! सुपइट्ठस्स नयरस्स बहिया एवं महं कूडागारसाल -- प्रणेगक्खंभसयसंनिविट्ठ पासादीयं दरिसणिज्जं प्रभिरूवं use करेह 'ममं यमाणत्तियं" पच्चष्पिणह ॥ २०. तसे कोडुंबियपुरिसा करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामि ! ति प्राणाए विणणं वयणं पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता सुपइट्ठनय रस्स बहिया पच्चत्थिमे दिसीभाए एवं महं कूडागारसाल - प्रणंगवखंभसयसंनिविट्ठ पासादीयं दरिसणिज्जं प्रभिरूवं पडिरूवं करेंति, जेणेव सीहसेणे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चष्पिणंति || २१. तए णं से सीहसेणे राया ग्रण्णया कयाइ एगुणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणाई पंच माइसयाई श्रामतेइ || २२. तए णं तासि एगुणगाणं पंच देवीसयाणं एगूणाई पंच माइसयाई सीह सेणेणं रण्णा आमंतियाइ समाणाई सव्वालंकारविभूसियाई जहाविभवेणं जेणेव सुपट्टे नरे, जेणेव सीहसेणे राया तेणेव उवेंति ॥ २३. तए णं से सीहसेणे राया एगूणपंचण्हं देवीसयाणं एगुणगाणं पंचण्हं माइसयाणं कूडागारसालं आवासं दलयइ ॥ २४. तए णं से सीहसेणे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासीगच्छहणं तुभे देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवणेह, सुबहु पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं च कूडागारसालं साहरह || २५. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव" साहरति ॥ १. वि० १६ १६ । २. तह घत्तीहामि ( क ) ; तहा पत्तिहामि ( ग ) ; तहा बत्तीहामि (घ ); तहा जत्तिहामि (क्व ); ० जत्तीहामि ( ह० वृ) • यतीहामि (ह० वृ ) | ३. इ (,खग) । ४. सालं करेह (क, ख, ग, घ ) । ५. एयमट्ठे (क, ख, ग ) । ६. सं० पा०—करयल जाव पडिसुर्णेति । ७. सुपइट्टिय (क, ख, ग, घ ) । ८. ● सालं जाव करेंति (क, ख, ग, घ ) । ९. उवर्णेति ( क ) ; उवागच्छति (घ ) । १०. आवसहं ( क, ख ); श्रावहं ( ग ) । ११. वि० १६ २४ | Page #849 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ विवागसुयं २६. तए णं तासि एगुणगाणं पंचण्हं देवोसयाणं 'एगूणाई पंच माइस याइं" सव्वालंकारविभूसियाई तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुंच मेरगं च जाइं च सीधं च पसण्णं च आसाएमाणाई वीसाएमाणाइं परिभाएमाणाई परिभुंजेमाणाई गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगीयमाणाई - उवगीयमाणाई विहरंति ॥ २७. तए णं से सीहसेणे राया अद्धरत्तकालसमयंसि बहूहिं पुरिसेहिं सद्धि संपरिवुडे जेणेव कूडागारसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कूडागारसालाए दुवाराई पिहेइ, पिहेत्ता कूडागारसालाए सव्वो समंता अगणिकायं दलयइ ।। २८. तए णं तासिं एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणगाइं पंच माइसयाइं सीहसेणेणं रण्णा पालीवियाइं समाणाई रोयमाणाइं कंदमाणाइं विलवमाणाइं अत्ताणाई असरणाई कालधम्मुणा संजुत्ताई॥ २६. तए णं से सोहसेणे राया एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं •पावं कम्म कलिकलसं समज्जिणित्ता चोत्तीसं वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णे ॥ देवत्ताए वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ३०. से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव रोहीडए' नयरे दत्तस्स सत्थवाहस्स कण्हसिरीए भारियाए कुच्छिसि दारियत्ताए उववण्णे ।। ३१. तए णं सा कण्हसिरो नवण्हं मासाणं 'बहुपडिपुण्णाणं ° दारियं पयाया सूमाल सुरूवं ॥ ३२. तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहियाए विउलं असणं पाणं खाइमं साइम उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता जाव' मित्त-नाइ-नियग-सयण संबंधि-परियणस्स पुरनो नामधज्ज करेंति-होउ णं दारिया देवदत्ता नामेणं ।। ३३. तए णं सा देवदत्ता दारिया पंचधाईपरिग्गहिया जाव परिवड्इ ॥ ३४. तए णं सा देवदत्ता दारिया उम्मुक्कबालभावा* *विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वण गमणुप्पत्ता रूवेण जोव्वणेण लावण्णेण य° अईव-अईव उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था । १. पंच माइसयाइं जाव (क, ख, ग, घ)। २. सं० पा०—सुबहु जाव समज्जिणित्ता। ३. रोहीतए (क, ख, ग)। ४. सं० पा०-मासाणं जाव दारियं । ५. वि० १।३।३२ । ६. वि० १।२।४६। ७. सं० पा०-उम्मुक्कबालभावा जोवणेण रूवेण लावण्णण य जाव अईव । Page #850 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (देवदत्ता) ७६३ ३५. तए णं सा देवदत्ता दारिया अण्णया कयाइ ण्हाया जाव' विभूसिया बहूहिं खुज्जाहिं जाव' परिक्खित्ता उप्पि आगासतलगंसि' कणगतिंदूसएणं कीलमाणी विहरइ॥ ३६. इमं च णं वेसमणदत्ते राया हाए जाव' विभूसिए आसं 'दुरुहति, दुरुहित्ता बहूहिं पुरिसेहि सद्धि संपरिवुडे अासवाहणियाए निज्जायमाणे दत्तस्स गाहा वइरस गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ॥ ३७. तए णं से वेसमणे राया दत्तस्स गाहावइस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं° वीईवयमाणे देवदत्तं दारियं उप्पि आगासतलगंसि कणगतिदूसएणं कीलमाणि पासइ, पासित्ता देवदत्ताए दारियाए 'रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य” जायविम्हए कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-कस्स णं देवाणुप्पिया ! एसा दारिया ? किं च नामधेज्जेणं ? तए णं ते कोडुंबियपुरिसा वेसमणरायं करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ° एवं वयासो-एस णं सामी ! दत्तस्स सत्थवाहस्स धूया कण्हसिरीए भारियाए अत्तया देवदत्ता नाम"दारिया रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा॥ ३९. तए णं से वेसमणे राया आसवाहणियानो पडिनियत्ते समाणे अभितरठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी--गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! दत्तस्स धूयं कण्हसिरीए भारियाए अत्तयं देवदत्तं दारियं पूसनंदिस्स जुवरण्णो भारियत्ताए वरेह, जइ वि य सा सयरज्जसुंका॥ ४०. तए णं ते अब्भितरठाणिज्जा पुरिसा वेसमणेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति प्राणाए विणएणं वयणं° पडिसुणति, पडिसुणत्ता ण्हाया जाव" सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिया संपरिवुडा जेणेव दत्तस्स गिहे तेणेव उवागया । ४१. तए ण से दत्ते सत्थवाहे ते अभितरठाणिज्जे पुरिसे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हठ्ठठे पासणाप्रो अब्भुटेइ, अब्भुट्ठत्ता सत्तट्ठ पयाइं पच्चुग्गए" प्रासणेणं १. वि० १२।६४ । ६. वा (घ)। २. ओ० सू० ७०। १०. सं० पा०—करयल। ३. °तलंसि (क)। ११. नामेणं (क)। ४. वि० ११२।६४ । १२. सयं० (ख, घ)। ५. द्रुति (क)। १३. सं० पा०-करयल जाव पडिसूणेति । ६. आसवाहिणियाए (ग)। १४. ओ० सू० २०; पू०–ना० १।१६।१३४ । ७. स० पा०-राया जाव वीईवयमाणे। १५. अब्भुग्गए (ख, ग)। ८. रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य (ग, घ)। Page #851 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवाग स्यं उवनिमंतेइ, उवनिमंतेत्ता ते पुरिसे आसत्थे वीसत्थे सुहासणवरगए एवं वयासी सदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! कि आगमणप्पोयणं ? ४२. तए णं ते रायपुरिसा दत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-अम्हे णं देवाणुप्पिया ! तव धूयं कण्हसिरीए अत्तयं देवदत्तं दारियं पूसनंदिस्स जुवरण्णो भारियत्ताए वरेमो । तं जइ णं जाणसि देवाणुप्पिया ! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा, सरिसो वा संजोगो, दिज्जउ णं देवदत्ता दारिया पूसनंदिस्स जुवरणो। भण देवाण प्पिया! कि दलया ४३. तए णं से दत्ते ते अभितरठाणिज्जे पुरिसे एवं वयासी-एवं चेव णं देवाण प्पिया ! ममं सुकं जं णं वेसमणे राया मम दारियानिमित्तेणं अणुगिण्हइ । ते अभित रठाणिज्जे पुरिसे विउलेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥ ४४. तए णं ते अभित रठाणिज्जा पुरिसा जेणेव वेसमणे राया तेणेव उवागच्छंति, वेसमणस्स रण्णो एयमटुं निवेदेति ॥ ४५. तए णं से दत्ते गाहावई अण्णया कयाइ सोभणंसि तिहि-करण-दिवस-नक्खत्त महत्तंसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्तनाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आमंतेइ, हाए' 'कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल ° -पायच्छित्ते सुहासणवरगएणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धि संपरिवडे तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाण परिभुजेमाणे एवं च णं विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए वि य णं आयंते चोक्खे परमसुइभूए तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं 'विउलेणं पप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता देवदत्तं दारियं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियसरीरं पुरिससहस्सवाहिणि' सीयं दुरुहेइ, दुरुहेत्ता सुबहुमित्त - नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणणं सद्धि संपरिवडे सव्विड्डीए जाव' दुंदुहिनिग्घोस-नाइयरवेणं रोहीडयं नयरं मझमझणं जेणेव वेसमणरण्णो गिहे, जेणेव वेसमणे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट वेसमणं रायं जएणं विजएणं ° वद्धावेइ, वद्धावेत्ता वेसमणस्स रण्णो देवदत्तं दारियं उवणेइ॥ १. सुक्कं (ख, ग, घ)। ५. °वाहिणी (ख, ग)। २. स० पा०-हाए जाव पायच्छित्ते । ६. सं० पा०-मित्त जाव सद्धि । ३. विउलगंधपुप्फ जाव अलंकारेणं (क,ख,ग,घ)। ७. ओ० सू० ६७ । ४. वि० शश६४। ८. सं० पा०-करयल जाव वद्धावेइ। Page #852 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (देवदत्ता) ७६५ ४६. तए णं से वेसमणे राया देवदत्तं दारियं उवणीयं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्टे विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणं आमतेइ जाव' सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पूसनंदि कुमारं देवदत्तं च दारियं पट्टयं दुरुहेइ', दुरुहेत्ता सेयापीएहिं कलसेहि मज्जावेइ, मज्जावेत्ता वरनेवत्थाई करेइ, करेत्ता अग्गिहोमं करेइ', करेत्ता पूसनंदि कुमारं देवदत्ताए दारियाए पाणि गिण्हावेइ ॥ ४७. तए णं से वेसमणदत्ते राया पूसनंदिकुमारस्स देवदत्तं दारियं सव्विड्डीए जाव' दंदुहिनिग्घोस-नाइयरवेणं महया इड्डीसक्कारसमुदएणं पाणिग्गहणं कारेइ', कारेत्ता देवदत्ताए दारियाए अम्मापियरो मित्त -'नाइ-नियग-सयण-संबंधि°. परियणं च विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ॥ ४८. तए णं से पूसनंदी कुमारे देवदत्ताए भारियाए" सद्धि उप्पि पासाय वरगए फुट्ट माणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीस इबद्धनाडएहि उवगिज्जमाणे". उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे-उवलालिज्जमाणे इढे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे° विहरइ ।। ४६. तए णं से वेसमणे राया अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते। नीहरणं जाव राया जाए पूसनंदी॥ ५०. तए णं से पूसनंदी राया सिरीए देवीए माइभत्ते यावि होत्था। कल्लाकल्लि जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरीए देवीए पायवडणं करेइ, करेत्ता सयपाग-सहस्सपागेहिं तेल्लेहि अभंगावेइ, अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए-चउव्विहाए संवाहणाए संवाहावेइ, संवाहावेत्ता सुरभिणा गंधट्टएणं" उव्वट्टावेइ, उव्वट्टावेत्ता तिहिं उदएहिं मज्जावे इ, १. वि० ११६।४५ । ६. विउलं (क, ख, ग, घ)। २. X (क, घ)। १०. दारियाए (क, ख)। ३. द्रूहेति (क); द्रुति (ख); दुरहेति (ग); ११. सं० पा०-उवगिज्जमाणे जाव विहरइ । दुरूहेत्ति (घ)। १२. वि० १।५।२२-२४ । ४. सेयापीतएहि (क)। १३. चम्मसुहाए (ख)। ५. कारेइ (क)। १४. गंधदूएणं (क); गंधवट्टएणं (ख, ग, वृ); ६. ओ० सू० ६७ । ठाणेपि ३।८७ सूत्रे 'गंधट्टएणं' इति पाठोस्ति । ७. करेइ (क, ख, ग, घ)। १५. उव्वट्टेइ (ग)। ८. सं० पा०—मित्त जाव परियणं । Page #853 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं ५१. [तं जहा-उसिणोदएणं 'सीओदएणं गंधोदएणं'"] विउलं असणं पाणं खाइम साइमं भोयावेइ, भोयावेत्ता सिरोए देवीए ण्हायाए' 'कयबलिकम्माए कयकोउयमंगल ° -पायच्छित्ताए जिमियभुत्तुत्तरागयाए तओ पच्छा हाइ वा भुंजइ वा, उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ ।। तए णं तोसे देवदत्ताए देवीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुबजागरियं जागरमाणोए इमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे-एवं खलु पूसनंदो राया सिरीए देवीए माइभत्ते जाव' विहरइ । तं एएणं वक्खेवेणं नो संचाएमि अहं पूसनंदिणा रण्णा सद्धि उरालाई माणस्सगाई भोगभोगाइं भजमाणी विहरित्तए। तं सेयं खल मम सिरिदेवि अग्गिपयोगेण वा सत्थप्पयोगेण वा विसप्पनोगेण वा" जीवियानो ववरोवेत्ता पसनंदिणा रण्णा सद्धि उरालाइं माणस्सगाई भोगभोगाइं भंजमाणोए विहरित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सिरीए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणी विहरइ ।। ५२. तए णं सा सिरी देवो अण्णया कयाइ मज्जाइया विरहियसयणिज्जसि सुहपसुत्ता जाया यावि होत्था । ५३. इमं च णं देवदत्ता देवी जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरि देवि मज्जाइयं विरहियसयणिज्जंसि सुहपसुत्तं पासइ, पासित्ता दिसालोयं करेइ, करेत्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोहदंडं परामुसइ, परामसित्ता लोहदंडं तावेइ, तत्तं समजोइभयं फूल्लकिसूयसमाणं संडासएणं गहाय जेणेव सिरी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरीए देवीए प्रवाणंसि पक्खिवइ । ५४. तए णं सा सिरी देवी महया-महया सद्देणं प्रारसित्ता कालधम्मुणा संजुत्ता। ५५. तए णं तोसे सिरोए देवोए दासचेडोयो प्रारसियसई सोच्चा निसम्म जेणेव सिरी देवो तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता देवदत्त देवि तो प्रवक्कममाणि पासंति, पासित्ता जेणेव सिरी देवो तेणव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सिरि देवि निप्पाणं निच्चेटुं जोवियविप्पजढं पासंति, पासित्ता हा हा ! अहो ! अकज्ज १. गंधोदएणं सीओदएण (क, ग); कोष्ठकवर्ती ६. पडिजागरमाणा (क, ग)। पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ७. मज्जातीता (क); मज्जावीता (घ)। २. सं० पा०-हायाए जाव पायच्छित्ताए। ८. तए णं तं (क, ख)। ३. वि० १।६।५०। ६. पुप्फकिंसुय° (ग)। ४. सिरिदेवी (क, ख, ग, घ)। १०. पक्खिवेइ (ख, ग)। ५. वा मंतपओगेण वा (घ)। Page #854 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (देवदत्ता) ७६७ मिति कट्ट रोयमाणीग्रो कंदमाणीयो विलवमाणीयो जेणेव पूसनंदी राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पूसनंदि रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! सिरी देवी देवदत्ताए देवीए अकाले चेव जीवियाओ ववरोविया ॥ ५६. तए णं से पूसनंदी राया तासि दासचेडीणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म महया माइसोएणं अप्फुण्णे' समाणे परसुनियत्ते विव चंपगवरपायवे धस त्ति धरणीय लंसि सव्वंगेहि संनिवडिए॥ ५७. तए णं से पूसनंदी राया मुहुत्तंतरेण पासत्थे समाणे बहूहिं राईसर- तलवर माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेटि-सेणावइ° -सत्थवाहेहिं मित्त'- नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणेण य सद्धि रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे सिरीए देवीए महया इड्डीए नीहरणं करेइ, करेत्ता आसुरुत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे देवदत्तं देवि पुरिसेहिं गिण्हावेइ, एएणं' विहाणेणं वझं आणवेइ॥ ५८. तं एवं खलु गोयमा ! देवदत्ता देवी पुरा पोराणाण' 'दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कं ताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणी' विहरइ ।। देवदत्ताए अागामिभव-वण्णग-पदं ५६. देवदत्ता णं भंते ! देवी इयो कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! असीइं वासाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। संसारो [तहेव जाव" ? ] वणस्सई। तो अणंतरं उव्वट्टित्ता गंगपुरे नयरे हंसत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ साउणिएहि वहिए समाणे तत्थेव गंगपुरे नयरे सेट्टिकुलसि उववज्जि , हिइ । बोही । सोहम्मे । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। निक्खेव-पदं ६०. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। –त्ति बेमि ॥ १. अप्पुण्णे णं (क)। २. स० पा०-राईसर जाव सत्थवाहेहि । ३. सं० पा०-मित्त जाव परियणेण । ४. ततेणं (ख, घ); तेणं (क्व)। ५. सं० पा०-पोराणाणं जाव विहर।। ६. उववण्णे (क, ख, ग, घ)। ७. वि० ११११७०। ८. सं० पा०-निक्खेवो। ६. ना० ११११७ । Page #855 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं अंजू उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! 'समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, दसमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी ° -एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्डमाणपुरे नामं नयरे होत्था। विजयवड्डमाणे उज्जाणे । माणिभद्दे जक्खे । विजयमित्ते राया ॥ ३. तत्थ णं धणदेवे नाम सत्थवाहे होत्था–अड्ढे । पियंगू नामं भारिया। अंज दारिया जाव' उक्किट्ठसरीरा। समोसरणं परिसा जाव गया ।। अंजूए पुव्वभवपुच्छा-पदं ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जाव' अडमाणे विजयमित्तस्स रण्णो गिहस्स असोगवणियाए अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे पासइ एगं इत्थियं-सुक्क भुक्खं निम्मंसं किडिकिडियाभूयं अट्ठिचम्मावणद्धं नीलसाडगनियत्थं कट्ठाई कलुणाई वीसराई कूवमाणि पासइ, पासित्ता चिंता तहेव जाव' एवं वयासी-सा णं भंते ! इत्थिया पुव्वभवे का आसि ? वागरणं॥ १. सं० पा०-दसमस्स उक्खेवरो। २. ना० ११११७। ३. वि० ११४.३६। ४. वि० १।४।११। ५. वि० ११२।१२-१४ । ६. नियच्छं (ख)। ७. विस्सराइं (ख, घ); विसराइं (ग); ८. वि० ११२।१५।। ६. पू०-वि० ११२।१६ । ७६८ Page #856 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं (अंजू) ७६६ अंजूए पुढविसिरीभव-वण्णग-पदं ५. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे नाम नयरे होत्था । ६. तत्थ णं इंददत्ते राया । पुढविसिरी' नाम गणिया होत्था-वण्णप्रो' । ७. तए णं सा पुढविसिरी गणिया इंदपुरे नयरे बहवे राईसर'-'तलवर-माडंबिय कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह °प्पभियो बहूहि य विज्जापोगेहि य मंतपओगेहि य चुण्णप्पप्रोगेहि य हियउड्डावणेहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभियोगिएहिं° आभियोगित्ता' उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ॥ ८. तए णं सा पुढविसिरी गणिया एयकम्मा एयप्पहाणा एयविज्जा एयसमायारा सुबहुं पावं कम्म कलिकलुसं° समज्जिणित्ता पणतीसं वाससयाई परमाउं पाल इत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीसं सागरोवम ट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा ।। अंजू ए वत्तमाणभव-वण्णग-पदं ६. सा णं तनो अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव वड्डमाणपुरे नयरे धणदेवस्स सत्थवाहस्स पियंगुभारियाए कुच्छिसि दारियत्ताए उववण्णा ॥ १०. तए णं सा पियंगुभारिया नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारियं पयाया। नामं अंजू । सेसं जहा देवदत्ताए। ११. तए णं से विजए राया पासवाहणियाए निज्जायमाणे जहा वेसमणदत्ते तहा अंजु पासइ, नवरं-अप्पणो अट्ठाए वरेइ जहा तेयली जाव" अंजूए भारियाए सद्धि उप्पि पासायवरगए जाव' विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरइ॥ १२. तए णं तीसे अंजूए देवीए अण्णया कयाइ जोणिसूले पाउन्भूए यावि होत्था ॥ १३. तए णं से विजए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह १. पुहवि (क, ग)। ६. सं० पा०-सुबहुं जाव समज्जिणित्ता। २. वि० ११२।७। ७. अंजूसिरी (घ)। ३. सं० पा०--राईसर जाव प्पभियो । ८. वि० १।६।३२-३५ । ४. सं० पा० -- बहूहिं चुण्णप्पओगेहिं जाव आभि- ६. वि० १।६।३६-४६ । ___ ओगित्ता । द्रष्टव्यम्-वि० १।२।७२। १०. ना० १।१४।१६, २० । ५. अहिओगेत्ता (ग)। ११. वि० ११९४८ । Page #857 -------------------------------------------------------------------------- ________________ του विवागसु णं तुमं देवाणुप्पिया ! वढमाणपुरे नयरे सिंघाडग'- 'तिग- चउक्क चच्चरचउम्मुह महापहपसु महया - महया सद्देणं उग्घोसेमाणा - उग्घोसेमाणा° एवं वह एवं खलु देवाणुप्पिया ! विजयस्स रण्णो अंजूए देवीए जोणिसूले पाउए । तं जो णं इच्छइ वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुप्रोवा जाणुयपुत्तो वा गच्छ वा गिच्छियपुत्तो वा अंजूए देवीए जोणीसूले उवसामित्तए तस्स णं वेसमणदत्ते राया विउलं प्रत्थसंपयाणं दलयइ ॥ १४. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा • जाव' उग्घोसेंति ॥ १५. तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य इमं एयारूवं उग्घोसणं सोच्चा निसम्म जेणेव विजए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता उप्पत्तियाहि वेणइयाहिं कम्मियाहिं पारिणामियाहि बुद्धीहिं परिणामेमाणा इच्छंति ग्रंजूए देवोए जोणिसूलं उवसामित्त, नो संचाएंति उवसामित्तए || १६. तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य गिच्छियपुत्ताय जाहे नो संचाएंति अंजूए देवीए जोणिसूलं उवसामित्तए, ता संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया | १७. तए णं सा अंजू देवी ताए वेयणाए अभिभूया समाणी सुक्का भुक्खा निम्मंसा कट्ठाई कलुणाई वीसराइं विलवइ ॥ १८. एवं खलु गोयमा ! अंजू देवी पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं सुभाणं पावाणं काणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणी विहरs || अंजू प्रागामिभव-वण्णग्र-पदं १६. अंजू णं भंते ! देवी इम्रो कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहि उवज्जहि ? गोयमा ! अंजू णं देवी नउई वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएस नेरइयत्ताए उववज्जिहि । एवं संसारो जहा पढमे तहा नेयव्वं जाव वणस्सई । सा णं तत्र प्रणंतरं उव्वट्टित्ता सव्वग्रोभद्दे नयरे मयूरत्ताए पच्चायाहिइ | १. सं० पा० - सिंघाडग जाव एवं । २. सं० पा० - गिच्छियपुत्तो वा जाव उग्धो सेंति । ३. वि० १।१०।१३ । ४. जुए देवीए बहवे उप्पत्तियाहिं ( क, ख, ग, घ ) । ५. सं० पा०-- पोराणाणं जाव विहरइ । ६. उववण्णा (क, ख, ग, घ ) । ७. वि० १।१।७० । Page #858 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं (अंजू) ८०१ से णं तत्थ साउणिएहिं वहिए समाणे तत्थेव सव्वोभद्दे नयरे सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिए पव्वइस्सइ । केवलं बोहि बुज्झिहिइ । पव्वज्जा । सोहम्मे । से णं तो देवलोगानो अाउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा ! महाविदेहे वासे जहा पढमे जाव' सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।। निक्खव-पदं २०. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमद्धे पण्णत्ते । 'सेवं भंते ! सेवं भंते" ! –त्ति बेमि ॥ १. पुमत्ताए (क)। २. वि० ११११७०। ३. ना० १११७ । ४. सेणं भते (ख); सेयं भंते (ग)। Page #859 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ सुयक्खंधो पढमं अज्झयणं सुबाहू उक्खे व-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए। सुहम्मे समोसढे । जंबू जाव' पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं अयमढे पण्णत्ते, सुहविवागाणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अद्वे पण्णत्ते ? २. तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा सुबाहू भद्दनंदी य, सुजाए य सुवासवे । तहेव जिणदासे य, धणवई य महब्बले । भद्दनंदी महच्चंदे, वरदत्ते 'तहेव य ॥ १॥ ३. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अ? पण्णत्ते ? १. वि० १२११३,४ । २. पज्जुवासइ (क, ख, ग, घ)। ३. ना० १।१७। ४. ना० १११७ । ५. X (क, ख, ग, घ); मुद्रितप्रत्यनुसार ___ गृहीतोयं पाठः । ६. ना० १११७ । ८०२ Page #860 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (सुबाह) ८०३ सुबाहुकुमार-पदं ४. तए णं से सुहम्मे जंबू-अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था-रिद्धत्थिमियसमिद्धे ॥ ५. तस्सणं हत्थिसीसस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं पुप्फकरंडए नाम उज्जाणे होत्था-सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे ।। तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स' जक्खाययणे होत्था -दिव्वे ॥ तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे अदोणसत्तू नाम राया होत्था-महयाहिमवत-महंत मलय-मंदर-महिंदसारे ॥ ८. तस्स णं अदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं पोरोहे यावि होत्था । तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासभवणंसि सीहं सुमिणे पासइ, जहा मेहस्स जम्मणं तहा भाणियव्वं ।। १०. •'तए णं से सुबाहुकुमारे बावत्तरिकलापंडिए जाव अलंभोगसमत्थे जाए यावि होत्था ॥ ११. तए णं तं सुबाहुकुमारं अम्मापियरो बावत्तरिकलापंडियं जाव' ० अलंभोग समत्थं वा जाणंति, जाणित्ता अम्मापियरो पंच पासायवडेंसगसयाइंकारेंतिअब्भुग्गयमूसियपहसियाई" । एगं च णं महं भवणं कारेंति एवं जहा महब्बलस्स रण्णो, नवरं--पूप्फचलापामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकन्नगसयाणं१२ एगदिवसेणं पाणि गिण्हावेति । तहेव पंचसइनो दारो जाव" उप्पि पासायवरगए फट्टमाहि५ 'मुइंगमत्थएहि वरतरुणिसंपउत्तेहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहिं उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे-उवलालिज्जगाणे इडे सद्दफरिस-रस-रूव-गंधे विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे ° विहरइ ।। १. तत्थ (क)। ८. ओ० सू० १४६ । २. जहस्स (क)। ६. वा वि (क, ख, ग)। ३. सीसए (क, घ)। १०. करेंति (क, ख); करेति (ग); करावेंति ४. वासघरंसि (क्व)। (घ)। ५. ना० १११।१८-३२, ७२-८७; नवर अकाल- ११. पू०-ना० ११११८६ । मेघदोहदवक्तव्यता नास्ति (वृ) । १२. कन्नासयाणं (घ)। ६. सं० पा०-सुबाहुकुमारे जाव अलंभोगस- १३. गिण्हावेंसु (क, ग)। मत्थं । १४. भ० ११११५८-१६१ ।। ७. ओ० ० १४८ । १५. सं० पा०-फुट्टमाणेहि जाव विहरइ । Page #861 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे । परिसा निग्गया । अदी सत्तू जहा कूणि तहा निग्गए । सुबाहू वि जहा जमाली तहा रहेणं frore जाव' धम्म कहियो । राया परिसा गया ॥ ८०४ १३. तए णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवश्रो महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म ट्टट्ठे उट्ठाए उट्ठेइ जाव एवं वयासी -- सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । जहा णं देवाणुप्पियाणं श्रंतिए वहवे राईसर - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय इन्भ - सेट्ठि सेणावइ-सत्थवाहप्पभियश्री मुंडे भवित्ता प्रगाराम्रो अणगारियं पव्वयति नो खलु अहं तहा संचाएमि पव्वइत्तए, ग्रहं णं देवाणुप्पियाणं तिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं -- दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जामि । हासुहं देवाप्पिया ! मा पडिबंध करेह || ० १४. तए णं से सुबाहू समणस्स भगवप्रो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं - दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता तमेव चाउरघंट ग्रासरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए ।। सुबाहुस्स पुव्वभवपुच्छा-पदं १५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवग्रो महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई जाव एवं वयासी - ग्रहो णं भंते ! सुबाहुकुमारे इट्ठे इट्टरूवे कंते कंतरूवे पिए पियरूवे मणुण्णे मणुण्णरूवे मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे सुभगे सुभगरूवे पियदंसणे सुरूवे । बहुजणस्स विणं भंते ! सुबाहुकुमारे इट्ठे इट्टरूवे कंते कंतरूवे पिए पियरूवे मगुणे मणुण्णरूवे मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे सुभगे सुभगरूवे पियदंसणे सुरू | साहुजणस्स वियणं भंते! सुबाहुकुमारे इट्ठे इट्टरूवे कंते कंतरुवे पिए पियरूवे मणुष्णे मणुण्णरूवे मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे सुभगे सुभगरूवे पियदसणे सुरूवे । O सुवाहुणा भंते! कुमारेणं इमा एयाख्वा उराला माणुसिड्डी" किण्णा लद्धा ? कणा पत्ता ? किण्णा अभिसमण्णागया ? के वा एस ग्रासि पुव्वभवे " ? किं १. समोसरणं ( क, ख, ग, घ ) । २. ओ० सू० ५५ ६६ । ३. भ० ६।९१५८-१६३ । ४. ना० १।१।१०१ । ५. पू० राय० सू० ६६५ । ६. सं० पा० - राईसर जाव नो खलु ग्रहं । ७. वि० १।१।२४, २५ । ८. सं० पा० - इरूवे जाव सुरूवे । ९. इमे ( क, ख ) । १०. माणुस्सिड्ढी ( ख ) ; माणुस्सरिद्धी (घ ) । ११. सं० पा० - पुन्वभवे जाव अभिसमण्णागया । Page #862 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (सुबाहू) ८०५ नामए वा किं वा गोएणं ? कयरंसि वा गामंसि वा सण्णिवेसंसि वा ? कि वा दच्चा किं वा भोच्चा किं वा समायरित्ता, कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अतिए एगमवि पायरियं सुवयणं सोच्चा निसम्म सुबाहुणा कुमारेण इमा एयारूवा उराला माणुस्सिड्डी लद्धा पत्ता' अभिसमण्णागया ? सुबाहुस्स सुमुहभव-वण्णग-पदं १६. 'गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी'१७. एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे नाम नयरे होत्था-रिद्धत्थिमियसमिद्धे ।। १८. तत्थ णं हत्थिणाउरे नयरे समुहे नाम गाहावई परिवसइ--अड्ढे । १९. तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नाम थेरा जाइसंपण्णा जाव' पंचहि समणसएहि सद्धि संपरिवुडा पुव्वाणुपुवि चरमाणा गामाणुगामं दूइज्जमाणा जेणेव हत्थिणाउरे नयरे जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ग्रहापडिरूवं प्रोग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावे माणा विहरति ।। २०. तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी सुदत्ते नाम अणगारे अोराले' 'घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छृढसरीरे संक्खित्त विउल °-तेयलेस्से मासंमासेणं खममाणे विहरइ॥ २१. तए णं से सुदत्ते अणगारे मासखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, जहा गोयमसामी तहेव 'धम्मघोसे थेरे' प्रापुच्छइ जाव अडमाणे सुमुहस्स गाहावइस्स गिहे अणुप्पवितु ॥ २२. तए णं से सुमुहे गाहावई सुदत्तं अणगारं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हतदे आसणानो अब्भटेइ, अब्भुट्ठत्ता पायवीढायो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयायो प्रोमयइ, प्रोमइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता सुदत्तं अणगारं सत्तट्र पयाई पच्चुग्गच्छइ', पच्चुग्गच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता 'जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयहत्थेणं" विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेस्सा मीति तुटे पडिलाभमाणे वि तुटे पडिलाभिए वि तुढे ॥ १. X (क, ख, ग)। (ख); 'सुहम्मे थेरे' त्ति धर्मघोषस्थविरा२. ना० १.११४ । नित्यर्थः, धर्मशब्दसाम्याच्छन्दद्वयस्याप्ये३. उवागया (ग)। कार्थत्वात् (ब)। ४. सं० पा०-उराले जाव लेस्से । ७. वि० ११२।१३,१४ । ५. खवमाणे (क)। ८. अणुगच्छइ (घ)। ६. सुहम्मे थेरे (क); सुदत्ते थेरे धम्मघोसे ६. X (क, ख, ग)। Page #863 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवाग सुर्य २३. तए णं तस्स सुमुहस्स' गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धेणं 'गाहगसुद्धेणं दायगसुद्धेणं" तिविणं तिकरणसुद्धेणं सुदत्ते अणगारे पडिलाभिए समाणे संसारे परितीकए', मणुस्साए निबद्धे, गेहंसि य से इमाई पंच दिव्वाई पाउब्भूयाई, [तं जहा --- वसुहारा वुट्ठा, दसद्धवण्णे कुसुमे निवातिते", चेलुक्खेवे कए, ग्राहयात्री देवदुंदुभो, तरावि य णं श्रागासंसि 'अहो दाणे अहो दाणे " घुट्टे य' । ]हत्थिणाउरे सिंघाडग ँ--तिग-चउक्क चच्चर- चउम्मुह महापह पहेसु बहुजणो ग्रण्णमण्णस्स एवं इक्खइ एवं भासेइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ - धण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई पुणे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई एवं - कत्थे कयलक्खणे ण सुलद्धे णं सुमुहस्स गाहावइस्स जम्मजीवियफले, जस्स णं इमा एयारूवा उराला माणुस्सिड्डी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया || o तं धणे णं देवाणुपिया ! सुमुहे गाहावई पुण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई एवं- कयत्थे णं कयलक्खणे णं सुलद्धे णं सुमुहस्स गाहावइस्स जम्मजीवियफले, जस्स णं इमा एयारूवा उराला माणुस्सिड्डी लद्धा पत्ता अभि ८०६ समण्णा गया || २४. तए से सुमुहे गाहावई बहूई वाससयाई प्राउयं पालेइ, पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव हत्थिसीसे नयरे प्रदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे | २५. तए णं सा धारिणी देवी सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ग्रोहीरमाणी - श्रोही रमाणी तहेव सीहं पासइ, सेसं तं चैव जाव उप्पि पासाए विहरइ । तं एवं खलु गोयमा ! सुबाहुणा इमा एयारूवा माणुसिड्डी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया || २६. पभू णं भंते ! सुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता प्रगारा अणगारयं पव्वइत्तए ? हंता पभू ॥ २७. तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ || २८. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ हत्थिसीसाओ नयराओ पुप्फकरंडयउज्जाणाओ कयवणमालपियजक्खाययणाश्रो पडनिक्खमइ, पडनिमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ १. 'तस्स सुमुहस्स' त्ति विभक्तिपरिणामात् 'तेन सुमुहेने' ति द्रष्टव्यम् (बृ.) । २. दायगसुद्धेणं पडिगासुद्धेणं (घ ) । ३. परित्तक (घ ) । ४. निवाडिए ( क्व ) | ५. अहोदाणं २ (घ) । ६. कोष्ठकवर्त्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ७. सं० पा० - सिंघाडग जाव पहेसु । ८. सं० पा० - गाहावई जाव तं धणे । ६. वि० २।११६-११ । Page #864 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०७ पढमं अज्झयणं (सुबाहू) २६. तए णं से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे जाव' पडिलाभेमाणे विहरइ॥ ३०. तए णं से सुबाहुकुमारे अण्णया कयाइ चाउद्दसट्ठमुट्ठिपुण्णमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारं दुरूहइ, दुरूहित्ता अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए अट्ठमभत्तिए पोसहं पडिजागरमाणे विहरइ ॥ सुबाहुकुमारस्स पवज्जा-पदं ३१. तए णं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था—धण्णा णं ते गामागर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बडदोणमुह-मडब-पट्टणासम-संबाह °-सण्णिवेसा, जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरइ। धण्णा णं ते राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्टि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभियो, जे णं समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए मुंडा' भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं° पव्वयंति । धण्णा णं ते राईसर - तलवर - माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइसत्थवाहप्पभियो, जे णं समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं 'सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं ° गिहिधम्म पडिवज्जति। धण्णा ण ते राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभियग्रो, जे णं समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए धम्म सुणेति । तं जइ णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणपुवि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागच्छेज्जा" 'इह समोस रेज्जा इहेव हत्थीसीसस्स नयरस्स बहिया पप्फकरंडयउज्जाणे कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे अहापडिरूवं प्रोग्गह अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ° विहरेज्जा, तए णं अहं समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वएज्जा। ३२. तए णं समणे भगवं महावीरे सुबाहुस्स कुमारस्स इमं एयारूवं १. ओ० सू० १६२ । २. पडिगिण्हइ (क)। ३. ०वरत्तकाले (क, ख)। ४. सं० पा०-गामागर जाव सण्णिवेसा। ५. सं० पा० – मुंडा जाव पव्वयति । ६. सं० पा०-पंचाणुव्वइय जाव गिहिधम्म । ७. सं० पा० - इहमागच्छेज्जा जाव विहरेज्जा। ८. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वएज्जा। Page #865 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०८ विवागसुयं अज्झत्थियं जाव' वियाणित्ता पुव्वाणुपुट्वि' 'चरमाणे गामाणुगामं ° दुइज्जमाणे जेणेव हत्थिसीसे नयरे जेणेव पुप्फकरंडयउज्जाणे जेणेव कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गह प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा राया निग्गए। ३३. तए ण तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स त महया जणसई वा जाव जणसण्णिवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं जहा जमाली तहा° निग्गयो । धम्मो कहियो । परिसा राया पडिगया । ३४. तए णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुटू जहा मेहो तहा अम्मापियरो आपुच्छइ । निक्खमणाभिसेग्रो तहेव जाव' अणगारे जाए इरियासमिए जाव' गुत्तबंभयारी ।। सुबाहुकुमारस्स आगामिभव-वण्णग-पदं ३५. तए णं से सुबाहू अणगारे समणस्स भगवनो महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थछट्टट्ठमतवोवहाणेहि अप्पाण' भावेत्ता, बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए सलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेएत्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववण्णे ॥ ३६. से णं तो देवलोगानो आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिइ, केवलं बोहि बुज्झिहिइ, तहारूवाणं थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं ° पव्वइस्सइ । से णं तत्थ बहूई वासाइं सामण्णं पाउणिहिइ। आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालगए सणंकुमारे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तारो माणुस्सं, पव्वज्जा, बंभलोए। माणुस्सं, महासुक्के । माणुस्सं, आणए । माणुस्सं, पारणे। माणुस्सं सव्वट्ठसिद्धे । से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता महाविदेहे वासे जाइं कुलाइं भवंति अड्डाई १. वि० २।१।३१ । २. सं० पा०-पुव्वाणुपुब्वि जाव दूइज्जमाणे। ३. सं० पा०-तं मया जहा पढमं तहा। ४. भ०६।१५८ । ५. ना० १११।१०१-१५१ । ६. रियासमिए (क)। ७. वि० ११११७० । ८. अत्ताणं (ख)। ६. सं० पा०-भवित्ता जाब पव्वइस्सइ । १०. उववण्णे (क, ख, ग, घ)। Page #866 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०8 पढम अज्झयणं (सुबाहू) जहा दढपइण्णे' सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खा णमंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं ३७. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । -त्ति बेमि ।। १. पू० ओ० सू० १४१-१५४ । २. ना० ११११७। Page #867 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं भद्दनंदी १. बितियस्स उक्खेवनो। एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे नयरे । थूभकरंडग उज्जाण । धण्णो जक्खो । धणावहो राया। सरस्सई देवी। सुमिणदंसणं कहणा, जम्मं बालत्तणं कलाओ य । जोव्वणं पाणिग्गहणं, दानो पासाय भोगा य ॥१॥ जहा सुबाहुस्स, नवरं-भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा णं पंचसया । सामीसमोसरणं । सावगधम्म । पुत्वभवपुच्छा । महाविदेहे वासे पुंडरीगिणी' नयरी । विजए कुमारे । जुगबाहू तित्थयरे' पडिलाभिए । मणुस्साउए निबद्धे । इह उप्पण्णे । सेसं जहा सुबाहुस्स जाव' महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ । निक्खेवनो॥ तच्चं अज्झयणं सुजाए तच्चस्स उक्खेवनो। वीरपुरं नयरं । मणोरमं उज्जाणं। वीरकण्हमित्ते राया। सिरी देवी । सुजाए कूमारे। बलसिरीपामोक्खा पंचसया। सामीसमोसरणं । पुव्वभवपुच्छा। उसूयारे नयरे। उसभदत्ते गाहावई । पुप्फदंते अणगारे पडिलाभिए । मणुस्साउए निबद्धे । इहं उप्पण्णे जाव' महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ। निक्खेवनो॥ १. पुंडरिंगिणी (क); पुंडरगिणी (घ)। २. तित्थंकरे (ख)। ३. वि० २।१।६-३६ । ४. वीरकिण्ह° (क)। ५. वि०२।१।६-३६ । ८१० Page #868 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयण सुवासवे चउत्थस्स उक्खेवो। विजयपुरं नयरं । नंदणवणं उज्जाणं । असोगो जक्खो। वासवदत्ते राया। कण्हा देवी । सुवासवे कुमारे । भद्दापामोक्खाणं पंचसया जाव पुन्वभवे । कोसंबो नयरी । धणपाले राया। वेसमणभद्दे अणगारे पडिलाभिए । इह जाव' सिद्धे । पंचमं अज्झयणं जिणदासे पंचमस्स उक्खेवओ। सोगंधिया नयरी। नीलासोगं उज्जाणं। सुकालो जक्खो । अप्पडिहनो राया। सकण्णा देवी। महचंदे कूमारे । तस्स अरहदत्ता भारिया। जिणदासो पत्तो। तित्थयरागमणं । जिणदासो पुव्वभवो। मज्झमिया नयरी। मेहरहे राया। सुधम्मे अणगारे पडिलाभिए जाव' सिद्धे ।। छठं अज्झयणं धणवई १. छट्ठस्स उक्खेवनो। कणगपुरं नयरं। सेयासोयं उज्जाणं । वीरभद्दो जक्खो। पियचंदो राया। सुभद्दा देवी। वेसमणे कुमारे जुवराया। सिरिदेवीपामोक्खा पंचसया। तित्थयरागमणं । धणवई जुवरायपुत्ते जाव पुव्वभवो। मणिवइया नयरी। मित्तो राया। संभूतिविजए अणगारे पडिलाभिए जाव' सिद्धे । १. वि०२।१०९-३६ । २. सुकोसलो (ग)। ३. वि० २।१।६-३६ । ४. मणिवया (घ)। ५. वि० २।१२९-३६। Page #869 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयण महब्बले १. सत्तमस्स उवखेवनो। महापुरं नयरं। रत्तासोगं उज्जाणं । रत्तपायो जक्खो। बले राया। सुभद्दा देवी। महब्बले कुमारे । रत्तवईपामोक्खा पंचसया। तित्थयरागमणं जाव पुव्वभवो। मणिपुरं नयर । नागदत्ते गाहावई। इंदपुत्ते अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। अट्ठमं अज्झयणं भद्दनंदी १. अट्ठमस्स उक्खेवयो। सुघोस नयरं । देवरमणं उज्जाणं । वीरसेणो जक्खो । अज्जुणो राया । तत्तवई देवी । भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा पंचसया जाव पुव्वभवे । महाघोसे नयरे । धम्मघोसे गाहावई । धम्मसीहे अणगारे पडिलाभिए जाव' सिद्धे ।। नवमं अज्झयणं महच्चंदे १. नवमस्स उक्खेवओ। चंपा नयरी । पुण्णभद्दे उज्जाणे । पुण्णभद्दे जक्खे । दत्ते राया। रत्तवती देवी। महचंदे कुमारे जुवराया। सिरिकंतापामोक्खा णं पंचसया जाव पुन्वभवो । तिगिंछी नयरी। जियसत्तू राया। धम्मवीरिए अणगारे पडिलाभिए जाव' सिद्धे ॥ १. वि० २।१।९-३३ । २. वेरसेणो (क)। ३. वि० २।१।६-३६ । ४. वि०२।१।६-३६ । ८१२ Page #870 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं वरदत्ते १. दसमस्स उक्खेवरो। तेणं कालेणं तेणं समएणं साएयं नाम नयरं होत्था। उत्तरकूरुउज्जाणे। पासामित्रो जक्खो । मित्तनंदी राया। सिरिकता देवी। वरदत्ते कुमारे । वरसेणापामोक्खा पंच देवीसया। तित्थयरागमणं । सावगधम्मं । पुत्वभवपुच्छा। सयदुवारे नयरे । विमलवाहणे राया। धम्मरुई अणगारे पडिलाभिए। मणुस्साउए निबद्धे । इहं उप्पण्णे। सेसं जहा सुबाहुस्स कुमारस्स। चिंता जाव पव्वज्जा । कप्पंतरिते जाव' सव्वट्ठसिद्धे । तो महाविदेहे जहा दढपइण्णे जाव' सिज्झिहिइ बुझिहिइ मूच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ॥ २. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते । सेवं भंते ! सेवं भंते ! परिसेसो विवागसुयस्स दो सुयक्खंधा दुहविवागो सुहविवागो य । तत्थ दुहविवागे दस अज्झयणा एक्कसरगा दससु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जति । एवं सुहविवागे वि । सेसं जहा पायारस्स ।। ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर ५६७१८, अनुष्टुप्-श्लोक १७७२ अक्षर १४, ३. ना० १११७ । १. वि० २।१६-३६ । २. ओ० सू०१४१-१५४ । ८१३ Page #871 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #872 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #873 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #874 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार-स्थल नायाधम्मकहाओ संक्षिप्त-पाठ पूर्त-स्थल पूर्ति आधार-स्थल अंतिए जाव पव्वयामि २।११२५ ११।१०१ अंतेउरे य जाव अज्झोववण्णे १।१६।४१ १।१६।२८ अगडे वा जाव सागरे ११८१५४ ११८।१५४ अग्गिसामण्णे जाव मच्चुसामण्णे १११११११ १।१।१११ अग्घेणं जाव आसणेणं १।१६।१६७ १।१६।१८६ अच्चणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे ११२७६ ओ० सू०२ अज्जग जाव परिभाएत्तए शक्षा५ १।१।११० अज्जाओ तहेव भणंति तहेव साविया जाया तहेव चिंता तहेव सागरदत्तं आपुच्छति । १।१६।६८-१०४ १।१४।४४-५० अज्झथिए ११८७६ ११११४८ अज्झत्थिए किमण्णे जाव वियंभइ १।१६।२७२ १।१६।२७२ अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था १।११५३,५६,१५४,१५५,१६६,२०४,२०५; १।२।१२,७१,११५।११८,१२४;११७२५; १।१६।११८,२८५२।११३८ अज्झत्थिय जाव जाणित्ता १।१६।२८६ ११११४८ अट्टदुहट्टवसट्टमाणसगए जाव रयणि शश१५५ १।१४१५४ अट्टमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि २।८।१,२ २।२।१,२ अट्ठाई जाव नो वागरेइ ११५२६६ ११५६६ अट्ठाई जाव वागरेइ ११५२६६ ११५।६६ अढाहियं महानंदीसरं जामेव दिसं पाउ जाव पडिगए १८२२६ ११८।२२४ अड्डा जाव अपरिभूया ११५७ ओ० सू० १४१ अड्डा जाव भत्तपाणा ११३८ ओ० सू० १४१ १।१४८ Page #875 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनंते जाव समुपणे अणते गाणे समुप्पण्णे जाव सिद्धा अणगारवण्णओ भाणियव्वो अणगारे जाव इहमागए अणगारे जाव पज्जवासमाणे अतिराए चैव जाव गंघेणं अणिट्ठा जाव अमणामा अणिद्रा जाव दंसणं अणिद्रा जाव परिभोगं अणुत्तरे पुणरवि तं चैव जान तओ पड़ा मुत्तभोगी समणस्स भगवओ अण्णाए जाव निंबोलियाए अब्भणुण्णाए जाव पव्वइत्तए अन्भुज्जए जाव विहरित्तए अम्भुट्ठेसि जाव वंदसि अभिसिंचइ जाव पडिगए अभिसिंचइ जाव राया जाए विहरइ जाव पव्वइस्ससि १।१।११३ अण्णं च तं विलं १६/२०७ अण्णमण्णं जाव समणे १।१३।३८ अस्थिया जाव ताहि इद्वाहि जाव अणवर १।१।१४३ अत्थामा जान अधारणिज्ज० १।१६।२५३ १।८।१२८ अपत्थिय जाव परिवज्जिए अपत्थियपत्थर जाव वज्जिए अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया अमच्ये जाव तुसिणीए अम्मयाओ जाव पव्वइत्तए अम्मयाओ जाव सुद्धे अपमेयारूवे जाव समुपज्जित्था अरहणग जाव वाणियगाणं अरहण्णग संज्जत्तगा अरिनेमि जाव गमित्तए अरिनेमिस्स जाव पब्वद्दत्तए अवगुणे जाव पडिगए ११८/२२५ १।१६।३२४ १।१।१९४ १५२६६ २।१।४ १।१२।३ १।१६ १७ १।१४।४३ १।१४।५० १।५।१२२ १८७४ १।१६।२५ १।१२।३६ ११५ ११८: १।१६।२८ ११५२६७ १।१६।२८० १।५।१३-१५ १।१२।१५ १|१|१०६ १।१।१२ १।५।६५ १२०६७ शबाब४ १।१६/३२० ११५/२० १।१६।६५ वृत्ति ११५८४ ओ० सू० १६४ प्रो० सू० ५२ १।१।७ ११८४२ १।११४६ १।१४।३६ १।१४।३६ १।१।११२ १२६२०५ १।५।५३ ओ० सू०६८ १।१६।२१ १।५।१२२ उवा ०।२।२२ १।५।१२२ १।१६।८ १।१।१०४ १।५।१२४ १।५।६६ १।१।१६१ १।१।११७-११ १।१२।७ १।१।१०७ १।१।३३ १।१।४८ ११८६४ १२८/६६ १।१६।३३४ १|१|१०६ १।१६/६१ Page #876 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।२७६ १३५१६६-१०१ १।१८।१२ १।१६।२२० १।८।१६६ १।१६।२४६ ११८।१७२ १।२।१२ १।१४।३६ २२।२० १२।५२,५३ १।१२।४ १।१६।२६२ १।५।३४-३८ १११८८ १।१६।२१६ १।१६।२१ १।१६।२४५ १०८१५६ १।२।१२ १।१४।३८ १।२।१४ १।२।३७,३८ १।२।१४ ११७१२२ १।१६।१५२ १७६ १।१६।१५१ अवरकंका जाव सणि वाडिया अवसेसं तहेव जाव सामाइयमाइयाई अवहरइ जाव तालेइ अवहिया जाव अवक्खित्ता अवीरिए जाव अधारणिज्ज° असक्कारिय जाव निच्छुढे असक्कारिया जाव निच्छूढा असणं जाव अणुवड्ढेमि असणं जाव दवावेमाणी असणं जाव परिभंजेमाणी असणं जाव परिवेसेइ असणं जाव विहरइ असणं मित्तनाइ चउण्ह य सुण्हाणं कुलघर जाव सम्माणित्ता असण जाव पसन्न असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा एत्तो अणि?तराए चेव असोगवणिया जाव कंडरीयं अहं जाव अणेगभूयभावभविए अहं जाव सुया अहं रज्जं च जाव ओसन्न जाव उउबद्ध पीढ० विहरामि अहम्मिए जाव अहम्मकेऊ अहम्मिए जाव विहरइ अहाकप्पं जाव किट्टेत्ता अहापडिरूवं जाव विहरइ (ति) अहापवत्तेहिं जाव मज्जपाणएण अहासुत्तं जाव सम्म अहिमडे इ वा जाव अणि?तराए अमणामतराए अहीण जाव सुरूवे अहो णं तं चेव आइगरे जाव विहरह आइण्ण वेढो वृत्ति १।१६।५२ १।१६।३४ १६५७६ ११५७६ १।१६।३३ १२५७६ ११५७६ १।५।१२४ १।१८।१६ १।१८।१६ १।१।२०१ १११।९७१।१६।११ ११।११६ १११।२०१ १।५।११७,११८ वृत्ति १।१८।१६ १।१।१६८ १।१४ ११५।११५ १।१।१६८ १।८।४२ १।१११६ १।१२।१६ २।१२० १।१७।१४ वृत्ति ओ० सू० १५ १।१२।१३ १।१।९५ वत्ति Page #877 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आएहि य जाव परिणामेमाणा आउक्खणं जाव चइत्ता आढति जाव पज्जुवासंति आढाइ जाव तुसिणीए आढाइ जाव तुसिणीया आढाइ जाव नो पज्जुवासइ आढाइ जाव भोगं आढाव चिट्ठ आढायंति आढायंति जाव संलवेंति आपुच्छर जाव पडिगए आपुच्छणिज्जं जाव वड्डावियं आपुच्छामि जाव पव्वयामि आपुच्छामि तणं जाव पव्वयामि आरोग्गट्टी जाव दिट्ठे आलंबे वा जाव भविस्सइ आलिघरएसु य जाव कुसुमघरएसु आलोएहि जाव पडिवज्जाहि सति वा जाव तुट्टति आए जाव अपरियट्टिस्सइ आसाएमाणीओ जाव परिभुंजे माणीओ आसाएमाणी जाव विहरइ आसाएमाणे जाव विहरइ आसायणिज्जं जाव सव्विदिय ० आसायणिज्जे जाव सव्विदिय ० आसिय जाव गंधवट्टिभूयं आसिय जाव परिगीयं आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणा आसुरुते जाव तिवलियं आसुरुते जाव तिवलियं एवं आसुरुत्ते जाव पउमनाभं आते जाव मिसिमिसेमाणे आहारे वा जाव पव्वयामो आहेवच्चं जाव अभिरमेत्था आहेवच्च जाव पालेमाणे ४ १८१०४ १।१६।१२३ १।१६।१८८ १।१२।७ १।१६।१५ २।१।३६ १।१६।१६० १।१४।६१ १ १६ ३० १।१।१५५ १।१।१५४ १।१६।२०० १७१४२ १।१२।३८ १।१६।१२ १।१।२६ १।१६।३१२ १।३।१६ १।१६।११५ १।१७।२२ १।१६/४२ १।२।१७ १।२।१४ १।१२।२२ १।१२।२० १।१२।१६ ११५२६७ १।१।७६ १।१६।२८ ५।८।१५६ १११६।२८६ १।१६।२८० १।५।१२२ १।८।१३ १।१।१६७ ११५२६ १८१६८ १।१।२१२ १।१६ १८६ १८१७० १/८/१७० १।१६।१८६ १।१४।६० १८१७० १।१।१५४ १।१।१५४ १।१।१६१ १।७।६ १।१।१०१ १।१।१०१ १।१।२० १८१८६ वृत्ति वृत्ति १।१७।२२ ११६/४४ १।१८१ १1१1८१ १।१८१ १।१२।४ १|१२|४ १।१।३३ वृत्ति १ । १ । १६१ १८१०६ १८१०६ १८१०६ १।१।१६१ ११५५६० १।१।१५७ १।१।११८ Page #878 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहेवच्चं जाव विहरइ ११३८ आहेवच्चं जाव विहरइ १।१८।२० आहेवच्चं जाव विहरसि १११११५७ इट्ठा जाव मणामा १११६७० इट्ठा तं चेव १।१६।४८ इट्ठाहिं जाव आसासेइ १।१६।१३१ इट्टाहिं जाव एवं १।८।२०३ इटाहिं जाव वग्गूहिं १८६७ इट्ठाहिं जाव समासासेइ ११११५० इठे जाव से णं १।५।२० इड्ढी जाव परक्कमे ११७६१।१६।२६५ इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था १७।६:२।१।१२ इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ १११४।४० इहमागए जाव विहरइ ११५१५३ ईसर जाव नीहरणं १११४१५६ ईसर जाव पभितीणं १७।६ ईहामिय जाव भत्तिचित्तं १।११८६११८४६ उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं १।१८।४० उक्किट्ठाए जाव देवगईए १।१६।२०४,२०६ उक्किट्ठाए जाए विज्जाहरगईए १।१६।१६० उक्किट्ठाए प्फ कुम्मगईए १।४।२१ उक्खेवओ तइयवग्गस्स २।३।१ उक्खेवओ पढमज्भयणस्स २।५।३ उज्जलंजाव दुरहियासं १।१।१६३ उज्जला जाव दाहवक्कंतीए १।१।१८७ उज्जला जाव दुरहियासा १।५।१०६,१।१६।२०७१।१६।४५ उज्जाणे जाव विहरइ १।१६।३२१ उत्तरपत्थिमे दिसीभाए तिदंडयं जाव धाउरत्ताओ ११५१८० उत्तरिज्जेहिं जाव चिट्ठामो ११८।१७६ उत्तरिज्जेहिं जाव परम्मुहा शक्षा१७८ उदगपरिफोसिया जाव भिसियाए ११८।१५१ उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई १।२।१४ उम्मुक्कबालभावा जाव उक्किट्ठसरीरा १।१६।१२८ उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण १।८३८,१।१६।३७ १११।११८ २५६ ११५६ १२११४६ १।१६।४७ १।११४६ ११११४६ ११११४८ १६११४६ १।१।१४५ उवा० २१४० १।११४८ १।१।१६४ ११।१७,११५१५२ १।५।६१।२।३४ १६५६ ११११२५ ११८६७ राय० सू० १० १२४१२१ वृत्ति २।२।१ २।२।३ १।१६२ १।१।१६२ १।१।१६२ १।१६।३१६ भ० २१५२११५१५२ १।८।१७७ ११८१७७ १।८।१४१ राय० सू० ६७ ११६।३७ वि०२४।३६ Page #879 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालभावे जाव जोव्वणग० उलस्सक सिध मं जाव सुमिणस्स उरालाई जाव भुंजमाणा उरालाई जाव विहरइ उलाई जाव विहरिज्जामि उरालाई जाव विहरिस्सइ उराले जाव तेयलेस्से उरालेणं तहेव जाव भासं उववेए जाव फासेणं उव्वत्तिज्जमाणे जाव टिट्टियावेज्ज माणे उव्वत्तेइ जाव टिट्टियावेइ उब्वेत्तेंति जाव दंतेहिं निक्खुडेंति जाव करेत्तए उव्वत्तेंति जाव नो चेव णं संचाएंति करेत्तए एगदिसि जाव वाणियगा एगओ जहा अहन्नए जाव लवणसमुद्द एज्जमाणि जाव निवेसे ह एवं अत्थेणं दारेणं दासेहिं पेसेहिं परियणेणं एवं कुलत्था विभाणियव्वा । नवरं इमं नाणत्तं - इत्थि कुलत्था य धन्नकुलत्था य । इत्थकुलत्था तिविहा पण्णत्ता, तं जहाकुलबहुयाइ य कुलमाउयाइ य कुलधूयाइ य । धन्नकुलत्था तहेव एवं जहा मल्लिणाए एवं जहा विजओ तहेव सव्वं जाव रायगिहस्स एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं एवं जहेव तेलिणाए सुव्वयाओ तहेव समोसढाओ तहेव संघाडओ जाव अणुपविट्टे तहेव जाव सूमालिया एवं जहेव राई तहेव रयणी वि एवं जाव घोसस्स एवं जाव सागरदत्तस्स एवं पत्तियामि णं रोएमि णं एवं पाएहि सीसे पोट्टे कायंसि एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्ठए वि auraarकुलीओ वि नासापुडाई ६ १।१४।२२ १।१।१६ १।१२।४० १।१४ २० १।१६।११३ १।१६।२०४ १।१६।१२ १।१।२०४ १।१२/४ १।३।२२ १।३।२६ १।४।१६ १।४।१२ १८६७ १।१७।५ १८१७१ १।१४ । ७७ १/५/७४ १।१६।२०० १।१८।३१,३२ २।१।१५ १।१६१६४-६७ २११५७-६० २।३।११ १।१६८८-१ १।१।१०१ १।१।१५३ १।१४ २१ १।१।२० १|१|१६ १।१६।११३ १।१२/४० १।१६ / ११३ १।१६।११३ १।१।६ १।१।२०२ १।१२।३ १।३।२१ १।३।२१ १।४।११ १।४।११ १८६२ १।८।६६ १|१|४८; १।१६।१३१ १।१४।७७ १।५।७३ १८१५४ १।१८।२०,२२ राय० सू० ६६८ १।१४१४०-४३ २ १/४७-५० ठाणं २३५६-३६२ १।१६।६३-६६ १।१।१०१ १।१।१५३ १।१४ २१ Page #880 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं पास थे कुसीले पमत्ते एवं मासा वि । नवरं इमं नाणत्तं -- मासा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - कालमासा य अत्थमासा य धन्नमासा य । तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं दुवालस तं जहा - सावणे जाव आसाढे । तेणं अभक्खेया । अत्थमासा दुविहा हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य तेणं अभक्खेया । धन्नमासा तहेव एवं वट्टए आडोलियाओ तिदूसए पोचुल्लए साडोल ए एवं सेसाओ वि एवं सेसाओ वि ओरोह जाव विहरs ओसन्ने जाव संथारए ओहय जाव झियायह ओहमण जाव भियायइ ओहमण संकष्पं जाव भियायमाणि ओह मणसंकप्पा ० ओह मणसंकप्पा जाव भियाइ ओह मणसंकप्पा जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायंति ओहमण संकप्पा जाव भियायह ओह मणसंकप्पा जाव भियायामि ओहमणसंकप्पा जाव भियाहि ओह मणसंकपे जाव भियामि ओह मणसंकप्पे जाव झियायइ ओह मणसंकप्पे जाव भियायमाणे ओह मणसं कप्पे जाव भियायसि कंडरीए उट्टाए उट्ठेइ उठेत्ता जाव से जहेयं कंत्ता जाव भवेज्जामि कंते जाव जीवियऊसासए कक्खडा जाव दुरहियासा कज्जेसु य जाव रहस्सेसु कट्टु जाव पडिस हेइ कटुस्स य जाव भरेंति ७ १।५।११७ १।५।७५ १११८८ २|७|६ २८६ १।१६/२२५ १।५।१२५ १८१७१ १।३।२३ १|१४|३८; १ । १६।२०८ १।१४।३८ १।१।३४ १।१४।३७;१।१६।६२,८७,२०७ १/६/१५ १/८/१७३ १।१६।६५ १।१६।६४,६२,२०८ १।१७।१० १।८।१६८; १ । १४ । ७७; १।१७१८ १।१६/३२ १।१७/६ ११५/७३ भ० १८।२१५-२१६ १।१।१२ १।१६।६७ १।१।१४५ १।१।१६२ १७/४२ १।१६।२५५ १।१७।२८ १।५।११७ १।१८८ २७/२ २२ १।१६।१६५ १।५।११७ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ वृत्ति १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।३४ १।१।१०१ १११४।४३ १।१।१०६ वृत्ति १२५६० १।१६।२५१,२५२ १।१७/२२ Page #881 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कणग जाव दलयइ कणग जाव पडिमाए कणग जाव सावएज्ज कणग जाब सिलप्पवाले कयकोउय जाव सब्वालंकारविभूसिया कयत्थे जाव जम्म० कयवलिकम्मं जाव सव्वालंकारविभूसियं कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता कलिकम्मा जाव विपुलाई जाव विहरइ कयवलिकम्मे जाव रायगिहं कवलिकम्मे जाव सरीरे कवलिकम्मे जाव सध्वालंकार० करयल ० करयल० करयल० करयल अंजलि करयल जाव एवं करयल जाव एवं करवल जाव कट्ट् करयल जाव कट्टु तहेव जाव समोसरह करयल जाव कण्हं करयल जाव पच्चप्पिणंति करयल जाव पडणेइ करयल जाव वद्धावेइ करमल जाय बढावेंति करयल जाव वृद्धावेंति करयल जाव वढावेता करयल जाव वद्धावेहि करयल तं चैव जाव समासोरह करयल तहत्ति जेणेव करयलपरिग्गहियं जाब अंजलि १।१६।१६८ १/८/१६० १।१८।३८ १।१८/३३ १।१८१ १।१३।२५ १/१६/७३ १।१।२७ १।१।३२ १।२।५८ ११.६६ १।१।४७ १।५।६८, १२३ ११८७३,८१,१८, १५० १६० १||३१:१।१४१३१,५० १८१२०३,२०४,१।१६।१३७,१६१, २१६,२६४; १।१७।११ १।१६।२४६ ११५५, ६० १।१।३०३१।१६।१७०,२९२: १।१२।१३,४६२।१।२० १६ १७ १ १४।२७,२८,१।१६।४३ १।१।११८; १।१६।१३३,२।१।११ १।१६।१४२ १।१६।१३८ १८१९६ १२८।११५ १।१५।१८ १।१६।२३६ १।१७।२६ १८१३१:१।१६।२४४ १२८।१०७ १।१६।१३४ १।१४।१३ १।१।२१ १११ १२८/४१ १।१।११ १०११११ १।२।२६ १।१३।२५ ११११८१ १।१।३३ १२६६ १।१।२१ १।१।२७ १२१२५१ १।१।१९ १।१।२६ १।१।३६ १।१।१९ १।१।२६ १।१।२१ १।१।२६ १।१६।१३२ १।१६।१३७ १८१६५ १।१।२६ १|१|४८ १|१|४८ १।१।२६ १|१|४८ १|१|४८ १।१६।१३२ १।५।१३ १।१।१६ Page #882 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करयलपरिग्गहियं जाव कटु करयलपरिग्गहियं जाव वद्धावेत्ता करयल वद्धावेइ करयल वद्धावेत्ता करयल वद्धावेत्ता करेइ जाव अडमाणीओ करेंति जाव पच्चुत्तरंति करेत्ता जाव विगयसोया करेमो तं चेव जाव णूमेमो करेह करेत्ता जाव पच्चप्पिणह करेह जाव पच्चप्पिणति कल्लं कल्लं जाव विहरइ कसप्पहारे य जाव निवाएमाणा कसप्पहारेहि य जाव तण्हाए कसप्पहारेहि य जाव लयाप्पहारेहि कारणेसु य जाव तहा कालगए जाव प्पहीणे कालोभासे जाव वेयणं कासे जोणिसूले जाव कोढे किण्हाण य जाव सुक्किलाण किण्हाणि य जाव सुक्किलाणि किण्होभासा जाव निउरंबभूया कुंभए एवं तं चेव जाव पवेसेइ रोहासज्जे कुडवा जाव एगदेसंसि के जाव गमणाए कोट्टपुडाण य जाव अण्णेसि कोट्ठागारंसि सकम्म सं कोडंबिय जाव खिप्पामेव लहुकरणजुत्तं जाव जुत्तामेव उवट्ठवेंति कोडुबियपुरिसा जाव एवं कोडुंबियपुरिसा जाव ते वि तहेव कोडुबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति खंड जाव एडेह ११११३६ १८१२६ १।५।२० १।८।१०५ १।१६।१५७ १११४१४१,४२ शा१५ १।१८।२७ १।१६।२८८ २।१११२ १।८।४० १।८।५१ १।५।१२४ १।२।३३ १।२।६७ १२।४५ ११५६० १।१६।३२२ १२।६७ १।१६।३० १४१७१२२ १।१३।२० १७।१३ १1८1१७४ ११७११७,१८ १११११११ १।१७।२२ २७।२५ १।१।२६ ११११४८ १।११४८ ११११४८ १।१।३६ वृत्ति ११२।१४ ११।४८ १।१६।२८२ राय० सू०६ शा५१ १।१।२४ ११५१२४ १२।३३ ११।३३ १।२।३३ १।१।१६ १।२८४ वृत्ति १।१३।२८ ११७४२३ १।१७।२३ ओ० सू०४ ११८१७३ ११७१५,१६ १।१।१०७ वृत्ति १२७७ १।८।५२ १११५७ ११११११७ १।१।६२ १११६७८ उवा० ११४७,११८५१ ११११६ ११११११६ ११११२३ ११६७४ Page #883 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंतीए जाव बंभचेरवासेणं सिज्जनाहि य जाव एवम वीरधाईए जाव गिरिकंदर मल्लीणा गंध जाव उस्सुक्कं गंध जाव पडिविसज्जेद गंध जाव सक्कारेत्ता गंधवेहि जाव विहति गज्जियं जाव धणियस है गणनायग जाव आमंतेंति गणिमस्स जाव चउब्विहभंडगस्स गब्भस्स जाव विणेंति गय ० गवलगुलिय जान सुरधारेणं गवल जाव एटेमि गहाय जाव पडिगए गामधा वा जाव पंचकोट्टि गामागर जाव अणुपविस सि गामागर जाव आहिदह गिण्हामि जाव मग्गणगवेसणं गु० किं चाले जाव नो परिच्चयइ घडएसु जाव संवसावेइ चउरथ जाव भावेमाणे उत्थ जाव विहरइ चत्थ जाव विहरति चउत्थस्स उम्सेवओ चंपनपायवे० चच्चर जाव महापपहेसु चरगा वा जाव पच्चष्पिणंति चरमाणा जाव जेणेव चरमाणे जाव जेणेव चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे जाव बिहरह चवलं०] नहेहि चारगसोहणं जाव ठिइपडिय १० १।१०१५ १।१८/१४ १।१६/३६ ११६६४ १।१६ १६९ १४७१६ १।१६।१५२ शाह १।१२८१ १८/६६ १२/१७ १८६३ १|१|१६ १/६/३७ १।१८३९ १।१८/२४ १।१६।२२६ १।१४/४३ १।१७।१७ १।२।२९ {1=1108 १।१२।१६ २०१६ १।५।१०१:२।१।३३ १२६१७,२५ २२४११ १।१८।४१ १।१।६७ १।१५।७ १/२ ६१ १०५।१० ११५१०८ १।४।१७ १।१४।३३,३४ १।१०१३ १।१८/१० आयारचूला १५।१४ १1१1३० १८१६० १।१।३० १।१६।१५० 815108 १।१।२४ १२८६६ १।२।१७ १ १/६७ उवा० २।२२ १।९।१६ १।१८।३८ १।१८।२२ १८५८ १८५८ १।२।२७,२१ १८७४ १।१२।१६ १।१।१९५ १।१।१६५ १।१।१९५ २।२।१ १।१।१०५ १।१।२३ १।१५।६ १|१|४ १।१।४ ११४४ १४११४ १।१।७६-७९ Page #884 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११।१७ १८७६ १।१।१५० १।१।१५१ १।१।२३ ११।४ ११११४ १।११४ १।२।१४ १।१८।२१ १।१८।२५ १।१३।३६ १।१६।१०६ १।१६।१०६ ११।१६५ १।१८।२२ १।१४।३८ चारुवेसा जाव पडिरूवा १२।८ चालित्तए जाव विष्परिणामित्तए १८७६ चिट्ठइ जाव उट्ठाए १।१।१५१ चिट्ठइ जाव संजमेणं १।१।१६३ चित्तेह जाव पच्चप्पिणह ११८११७ चेइए जाव अहापडिरूवं श२०६६ चेइए जाव विहरइ ११११६४ चेइए जाव संजमेणं २।१।३ चोक्खा जाव सुहासणवरगया १।१६।१५२ चोरनायगं जाव कुडंगे १११८१३० चोरविज्जाओ य जाव सिक्खाविए १।१८।२८ छुटुंछ?णं जाव विहरइ १।१३।३६ छटुंछट्टेणं जाव विहरइ १।१६।१०८ छ छटेणं जाव विहरित्तए १।१६।१०७ छट्टट्ठम जाव विहरइ १।१६।१०५ जणवयं जाव नित्थाणं १।१८।३२ जहा पोटिला जाव परिभाएमाणी जहा मंडुए सेलगस्स जाव बलिय सरीरे जाए १।१६।२४-२६ जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा १।१७११ जहा महब्बले जाव परिवड्डिया १।८।३७ जहा मागंदियदारगाणं जाव कालियवाए १।१७।६ जहा बद्धमाणसामी नवरं नवहत्थुस्सेहे० २।१।१६ जहा सूरियाभो जाव भासमणपज्जत्तीए २।१।४० जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कंतीए १।१६।२० जायं च जाव अणुवड्ढेमि १।२।१४ जाया जाव पडिलाभेमाणी १४१४१४६ जाव एवं चेव पल्हायणिज्जे १।१२।२३ जाव जहा ११४१२२ जाव पज्जुवासइ ११।१७ जाव सणियं ११४१६ जाव समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे २०६३,६४ जाव हावभावं शा१२१ १५११४-११६ ११८७२ राय० सू० ८०४ शा ओ० सू० १६;वाचनान्तर पृ० १४० राय० सू० ७६७ ११५१०६ श२।१२ ११।४७ १।१२।२२ १।२१७६ १।१।६६ १।४।१३ राय० सू० ६६३,११५१४७ श८।११७ Page #885 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।११८१ १।२।१४ १८९० १।११।२ १।१७।२२ ।२।२५ ११०२७ १।१६।२६४ १।१।१२४ १११४११८ १।१।२७ १।८।१७६ १।१२७ १२७६ २१०४६ २।१।६३ जिमिय जाव सूइभूया १२।१४ जिमियभुत्तुत्तरागयं जाव सुहासण. १।१६।२१६ जोव्वणेण य जाव नो खलु ११८१५४ झोडा जाव मिलायमाणा १११११४ ठवेंति जाव चिटुंति १।१७।२२ डिभएहि य जाव कुमारियाहि शरा२७ बहाए जाव पायच्छित्ते १।१४।६४ बहाए जाव सरणं उवेइ २ करयल एवं व १११६।२६५ बहाए जाव सुद्धप्पावेसाई १।२।७१ ण्हायं जाव पुरिससहस्सवाहिणीयं १।१४।५३ ण्हाया जाव पायच्छित्ता शरा६६शा१७६ व्हाया जाव बहूहिं १०८।१६८ ण्हाया जाव सरीरा १।३।११ ण्हायाणं जाव सुहासण० २१६८ तइयज्झयणस्स उक्खेवओ २१११५६ सइयवग्गस्स निक्खेवओ २।३।१२ तएणं से दूए एवं वयासी जहा वासुदेवे नवरं भेरी नत्थि जाव जेणेव १२१६३१४३,१४४ तं इक्छामि णं जाव पव्वइत्तए ११११११ तं चेव जाव निरावयक्खे समणस्स जाव पब्वइस्ससि १११।१०७ तं चेव सव्वं भणइ जाव अत्थस्स १।१८।५२ तं रयणि च णं चोद्दस महासुमिणा वण्णओ शा२६ तक्करे जाव गिद्धे विव आमिसभक्खी १२।३३ तच्चं दूयं चंपं नयरिं। तत्थ णं तुम कण्णं अंगरायं सल्लं नंदिरायं करयल तहेव जाव समोसरह। चउत्थं दूयं सोत्तिमई नयरिं । तत्थ णं तुमं सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसय-संपरिवुडं करयल तहेव जाव समोसरह । पंचम दूयं हत्थिसीसं नयरिं। तत्थ णं तुम दमदंतंरायं करयल जाव समोसरह । छटुं दूयं महुरं नयरिं। तत्थ णं तुम १।१६।१३४-१४१ १।१।१०४ १।१।१०६ १।१८।५१ कल्पसूत्र ४ १।२।११ Page #886 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घरं रायं करवल जान समोसरह । सत्तमं दूयं रायगिहं नयरं तत्य णं तुमं सहदेवं जरासंधसुयं करयल जाव समोसरह । अट्टमं दूयं कोटिपणं नयरं । तत्व णं तुमं रुप्पि भेसगमुयं करयल तहेब जाव समोसरह नवमं दूयं विराटं नयरिं । तत्थ णं तुमं कीयगं भाउसयसमम्गं करयल जाव समोस रह। दसमं द्वयं अवसेसेसु गामागरनगरे अणेगाई रायहस्साइं जावरसमोसरह तए णं से दूए तहेब निग्गच्छद जेणेव गामागर तहेव जाव समोसरह । तच्च पि जाव संचिट्ठइ तच्चा जाव सब्भूया तणकूडे ० तत्थे जाव संजायभए तयावर ईहापूह जाव सण्णिजाइसरणे तलवर जाव पभितओ तलवर जाव सत्थवाह तहत्ति जाव पडिसुर्णेति तहारूवेहिं जाव विपुलं तव जाव पहारेत्थ तहेव सरीरवाउसिया तं चैव सर्व्व जाव अंतं तहेव सेयापीएहिं कलसेहिं व्हावेइ जाव अरहो अरिदुनेमिस्स छत्ताइ छत्तं पडागाइपडाग पासइ २त्ता विज्जाहरचारणे जाव पासित्ता ताओ जाव विदेहे वासे जाव अंत तिक्खुत्तो जाव एवं तिग जाव पहे तिग जाय बहुजणस्स तित्तेसु जाव विमुक्कबंधणे तुट्टी वा जाव आणंदो तुग्भण्णं जाव पव्वयामि तुरियं जाव वेइय १३ १।१६।१४५ १।१९।३५ १।१२।३१ १।१४।७७ १११।१६६ ११मा१८१ १।१४/६५ ११५१६ १।५।१३ १।१।२१५ ११८११३६,१३७ २।१।५१-५४ ११५२६,२१ १।१६/२२६ १।१९।३४ १।५।२६ १।१६।२६ १।६।४ १।२।६४ १।१२।४३ १८१६६ १।१६।१३२-१३४ १।१९।३५ १।१२।१६ १।१४।७६ १|१|१६० १।१।१६० १।५।६ ओ० सू० ५२ १।१।२६ १।१।२०६ १२६६६,१०० २।१।३२-४४ १।१।१२६,१४४,९९ १।१।२१२ १।१९।२६ १।१।२३ १।५।५३ १/६/४ ११२/६३ १।१।१०४ १।४।१४ Page #887 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुरुक्क जाव गंधवट्टिभयं १।१६।१५५ तेसिं जाव बहूणि १।१७१६ थलय ११८।४६ थलय जाव दसद्धवण्णं ११८।३१ थलय जाव मल्लेणं १।।३२ थावच्चापुत्ते जाव मुंडे १।५८० थेरागमणं इंदकुंभे उज्जाणे समोसढा ११८८ थेरा जाव आलित्ते १।१६।३१५ दंडणाणि जाव अणु परियट्टइ १।४।१८ दंडणाणि य जाव अणुपरियट्टइ श३।२४ दसमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ २।१०।१,२ दाणधम्मं च जाव विहरइ श८१४११५२ दारियं जाव झियायमाणि १।१६।६४ दासचेडियाहिं जाव गरहिज्जमाणी १८।१४७ दाहिणड्डभरहस्स जाव दिसं ।१६।२६६ दिढे जाव आरोग्ग १।१।२० दित्ते जाव विउलभत्तपाणे श२७ दीहमद्धं जाव वीईवइस्सइ १।२।७६ दुपयस्स वा जाव निव्वत्तेइ ११८।१२६ दुरुहइ जाव पच्चोरुहइ १।१७।१३ दुरुहंति जाव कालं १११६।३२३ दुरूढा जाव पाउब्भवंति श८।१४ दूइज्जमाणा जाव जेणेव १।१६।३२१ दूइज्जमाणे जाव विहरइ १।१६।३२० देवकन्ना ११८।१५४ देवकन्ना वा जाव जारिसिया शक्षा८६,१११ देवयभूयाए जाव निव्वत्तिए श८।१२८ देवलोगाओ जाव महाविदेहे १।१६।२४ देवाणुप्पिया जाव कालगए १।१६।३२३ देवाणप्पिया जाव जीवियफले शा७६ देवाणुप्पिया जाव नाइ १।१६।२६५ देवाणु प्पिया जाव पव्वतिए १।१६।३४ देवाणुप्पिया जाव साहराहि १।१६।२४२ देवाणुप्पिया जाव सुलद्धे १११६२६ देवी जाव पंडुस्स १।१६।३०१ १।१०२२ ११८७१ १।८।३० १८।३० १८.३० १।५।३४ शा१२ ११।१४६ सूय० २।२।७८ १।३।२४ २।२।१,२ १।८।१४० १।१६।६२ १।८।१४६ १।१६।२६७ १।१२० वृत्ति १।२।६७ ११८।११६ १।१।१०२ १।१६।३२३ १२५१ १।१।४ १।१।४।१।१६।३१६ १८८६ वृत्ति ११८।१२६ ११११२१२ १।१६।३२२ उवा० २।४० ११५।१२३ १।१६।२६ १।१६।२४० १।१६।२६ ११६।२६२ Page #888 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।६ देवी जाव पउमनाभ ।१६।२३६ १।१६।२३३ देवी जाव साहिया १।१६।२४० २१६०२०८ देवेण वा जाव निग्गंथाओ ११८७५ उवा० २।४५ देवेण वा जाव मल्लीए ११८।१३५ श८७५ दोच्चस्स वग्गस्स उक्खेवयो २।२।१ २।१०६ धण कणग जाव परिभाएउं १।१।६२ ११११११ धण जाव सावएज्जस्स ११७।३४ १।१९१ धण जाव सावएज्जे ११६१ धण्णा णं ते जाव ईसरपभियओ १।१३।१५ १।११३३ धम्म सोच्चा जं नवरं ११५८७ १।१।१०१ धम्म सोच्चा जहा णं देवाण प्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चइत्ता हिरण्णं जाव पव्वइया तहा णं अहं णो संचाएमि पब्बइए ११५॥४५ राय० सू० ६६५ धम्मकहा भाणियव्वा ११७८ १।५।६३ धम्मोत्ति वा जाव विजयस्स ११।७५ १।२।६४ धोवसि जाव आसयसि २।१।३५ २१११३४ धोवेइ जाव आसयइ २।११३८ २।११३४ धोवेइ जाव चेएइ १।१६।११६ १।१६।११४ धोवेसि जाव चेएसि १।१६।११५ १।१६।११४ नंदीसरे अट्टाहियं करेंति जाव पडिगया शा२२४ जंबू० वक्ष०५ नगरगिहाणि १८७ १८५८ नगर जाव सण्णिवेसाणं आहेवच्चं जाव विहराहि १११।११८ नच्चासन्ने जाव पज्जुवासइ १।१४।८५ १।१।६६ नट्टा य जाव दिन्न० १।१३।२० ओ० सू० १ नठुमईए जाव अवहिए १।१७।१० १११७८ नयरिं अणुपविसह १।१६।२१६ १।१६।२१८ नवमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ २।४।१,२ नवरं तस्स ११७।२८,२६ ११७१८,२५,२६ नाइ० ११५।२६,११७।६,६,२२,२६,४२,१।१५।११,१।१६।५०,५४,१११८,५१,५६ १।१।८१ १।१४।१८,१११५।१६ ११।२० ओ० सू० ६८ २।२।१,२ नाइ० Page #889 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७।२५ १।१४।५३ श२।१६ १।१४।१६ १९४८ १।१६।५० १।१३।१५,१११४१५३ १।१६।९७ १।१४।३७ १७६ ११७१६ १२।१२ ११११८१ १।११ शश२० ११५।२० १।१४।३६ १।१४।३६ नाइ चउण्ह य कुल जाव विहराहि नाइ जाव आमंतेइ नाइ जाव नगरमहिलाओ नाइ जाव परियणं नाइ जाव परियणेण नाइ जाव परिवुडे नाइ जाव संपरिवुडे नामं वा जाव परिभोग नाम जाव परिभोग नासानीसासवायवोझ जाव हंसलक्खणं निक्खेवओ निक्खेवओ अज्झयणस्स निक्खेवओ चउत्थवग्गस्स निक्खेवओ दसमवग्गस्स निक्खेवओ पढमज्झयणस्स निक्खेवओ बिइयवग्गस्स निग्गंथा जाव पडिसुणेति । निग्गंथाणं जाव विहरित्तए निग्गंथी वा निग्गंथी वा जाव पव्वइए निग्गंथे वा जाव पव्वइए निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव पंचसु निग्गंथो वा २ जाव विहरिस्सइ निद्वियं जाव विज्झायं निप्पाणे जाव जीवविप्पजढे नियग० निव्वत्तियनामधेज्जे जाव चाउदंते निव्वाघायंसि जाव परिवड्डइ निसंते जाव अब्भणु ण्णाया निसम्म जं नवरं महब्बलं कुमार रज्जे ठावेमि निसीयइ जाव कुसलोदंतं श१।१२८ २।४।६ २।२।८ २।४।६ २।१०१७ २।३।८ २।२।१० श१६।२३ १।५।१२४ १।१८।६१ श७।२७,१११०१३;१।१२३,५ श२७६ १।१७।२५,३६ श१।१४ १।५।१२६ ११।१८४ १।१८।५४ ११७६ १११११६७ १।१६।३६ १।१४।५० आयारचूला १५।२८ २।११४५ २।११४५ २।१२६३ २।१२६३ २।११४५ २।१।६३ शश२६ १११११४ १।२।६८ १२।६८ १।२।६८ श२०६८ ११३।२४ ११२७६ २१११८३ ११।३२ ११११८१ १११११५६ राय० सू० ८०४ १११११०४ म ११८१८ १।१६।१६८ १६२८७ १।१६।१८७ Page #890 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निस्संचारं जाव चिट्ठति नीलुप्पल ० नीलुप्पल जाव असि नीलुप्पल जाब संघसि पउमनाहे जाव नो पडिसेहिए पंचत्रणगारसया बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाणिता जेणेव पुंडरीए पन्चए तेणेव उपागच्छति जहेब यावच्चापुते तहेव सिद्धा० पंचमवग्गस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव बत्तीसं पंचमे जाव भवियव्वं पंचणं जाव पूरियं पंचाणुव्वइयं जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीने जाव अप्पाणं पंडवा० पंथ जाव विहरद पग भद्दए जाव विणीए पचखाए जाव आलोइय० पच्चक्लाए जान थूलए पज्जग जाव तओ पच्छा अणुभूय कल्लाणे पदस्स सि पच्चप्पिणह जाव पच्चपिणंति पट्टिया जाव गहियाउहपहरणा पडागे जाव दिसोदिसि परिबुडा जाव विहाडिय पडिबुद्धि जाव जियसत्तु परिबुद्धी करयल० पहिलाभमाणे जाव विहरद पडिसुर्णेति जाग उवसंपत्ति पढमज्झयणस्स उक्खेवओ पढमस्स उक्सेवओ पणामेत्ता जाव कूर्व पण्णत्ते जाव सग्गं १७ १८१७२ १।१८।४६ १।१४।७३ १।१४।७७ १।१६।२५७ १।५।१२७,१२८ २।५।१,२ १।७।३३ १।१६।२७६ १।५।४५-४७ १।१६।३१३ १।५।१२६ १।१।२०६१।१६।२४ १।१९४६ १।१३।४२ १।१।१११ 212100 १।२।३२ १।१६।२५२ १।१६।६५ १८३६ १८४७ १।५।५६ १।१६।२३ २२७३२८|३२||३ २।१०।३ १।१६।२४४ १४५४६० १८१६७ १२९१६ १९१६ १।१४।७३ १।१६।२६५ ११५८३, ८४ २।२।१,२ १।७।२५,६ १।१६।२७५ वृत्ति ओ० सू० १२०,१६२ १।१।११६ १।५।१२४ ००११ १।१।२०६ १।१।२०६ १।१।११० १।१।२३ राव०सू० ६६४ वृत्ति १।१६।६२ १।८।२७ १1१1३६ १।५।५२ १।५।११३ २।२३ २२३ १।१६।२४३ १।५।५५ Page #891 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पतिवया जाव अपास माणी पत्तिए जाव सल्लइयपत्त इए पत्तिया जाव चिति पत्तेयं जाव पहारेत्थ पमाएयव्वं जाव जामेव परलोए नो आगच्छइ जाव वीईवइस्सइ परिग्ाहिए जाव परिवसितए परिणमंति तं चैव परिणममाणा जाव ववरोवेंति परिणामेण जाव जाईसरणे परिणामेणं जाव तयावरणिज्जाणं परितंता जाव पडिगया परिपेतेणं जाव चिट्ठति परियागए जाव पासित्ता परियाण जाव मत्ययंसि पांसि जाव विहरति पवर जाव पडिसेहित्था पवर जाव भीए पवरविवडिय जाव पडिसेहिया पव्वए जाव सिद्धे पव्वावेइ जाव उवसंपज्जित्ता पवावे जाव जायामायाउत्तियं पसन्दोहला जाव विहरइ पाणाइवाएणं जाव मिच्छदंसण सल्लेणं पाणाणुकपाए जाव अंतरा पाणा कंपया जाव सत्ताणु कंपयाए " पामोक्खा जाव वाणियगा ● पामोक्खे जाव वाणियगे पायसंघट्टणाणि व जाव रखरेण गुंडणाणि पाव जायपव्यइए पावणं जाव से जहेयं पासाईए जाव पडिवे पासित्ता जाव नो वंदसि पियं जाव विविहा १५ १।१६।६२ १।७।१५ १।११।२ १।१६।१७१ १।५।३३ १।१५।१४ ११८१३१ १।१२।१७ १।१५।१५ १।१३।३५ १|१४|८३ १।१३।३१ १।१७।२२ १।३।१९ १ १/४८ १/७/२० १।१६।२५६ १।१८/४४ १।१६।२५३ १।५।१०४,१०५ २।१:३०,३१ १।१।१६२ १२८३३ १।६।४ १।१।१८६ १।१।१५२ ११ ११८८३ १११।१५१ १४२२७३ १।१२।३५ १११२६६ १।५।६७ १।१।२०६ १।१६।५६ १।७।१४ १।११।२ १।१६।१४६ १।१।१४८ १/२/७६ ११८१०७ १।१२१६ १।१५।११ १०१/२० १।१।१६० १।४।१९ १।१७।२२ १३५ १|१|४८ १।७।१६ १८१६५ १।१८४२ १८१६५ ११५८३, ८४ १।१।१५०,१५१ १।१।१५० १ १/६८,६९ १।१।२०६ १ । १ । १८१ १।१।१८१ १८६६ ११८६६ १।१।१५३ १।१।१०१.२० १० १५०, १५१ १।१।१०१ १.१८६ १५६६ भ० २१५२ Page #892 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१।३० १।१।१६ १६५११० १।९।१५३ १२१२२०६ १२।४० १।२।१२ १।११।२ पीइदाणं जाव पडिविसज्जेइ १।३।३१ पीइमणा जाव हियया २।१।११ पीढं १३।११७ पुच्छणाए जाव एमहालियं १।१।१५४,१५५ पुढवि जाव पाओवगमणं ११५५३ पुत्तघायगस्स जाव पच्चामित्तस्स १।२।५६,६४ पुप्फ जाव मल्लालंकार श२।१४ पुफिया जाव उवसोभेमाणा १।१३।१६ पुरापोराणं जाव पच्चणुब्भवमाणी १।१६।९२ पुरापोराण जाव विहरइ १।१६।११३ पुन्वभवपुच्छा एवं २।११५० पोक्खरिणीओ जाव सरसरपंतियाओ १११३।१५ पोसहसालं जाव पुव्वसंगइयं १।१६।२०१-२०३ पोसहसालाए जाव विहरइ १।१३।१४ फलिया जाव उवसोभेमाणा १।११।४ फासुएस णिज्जेणं जाव तेगिच्छं १।५।११४ फासुयं पीढ जाव विहरइ १५।११३ बंधित्ता जाव रज्जू १११४।७७ बहिया जाव खणावेत्तए १।१३।१५ बहिया जाव विहरंति ११५।११८ बहिया जाव विहरित्तए ११५।११७ बहुनायाओ एवं जहा पोट्टिला जाव उव्वलद्धे १।१६।६७ बहूइं जाव पडिगयाई १।१६।१८२ बहूणि गामाणि जाव गिहाई १।१६।१६६ बहूहि जाव चउत्थ विहरइ १॥५॥३८ बहूसु जाव विहरेज्जाह शहा२० बारवइं एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ जाव पच्चप्पिणंति पंडुस्स जहा १।१६।२२३,२२४ बावत्तरि कलाओ जाव अलंभोगसमत्थे १।१६।३०८,३०६ बासढेि जाव उत्तरइ १।१६।२८७ बासट्टि जाव उत्तिण्णा १।१६।२८७ बिइयज्झयणस्स निक्खेवओ २।११५५ बुज्झिहिइ जाव अतं १११३१४४ १।१६।१२ २।१।१५ राय० सू० १७४ १।१६।२३७-२३६ १।११५३ १।११।२ ११५।११० १२५।११० १।१४।७३ १।१३।१५ २११६६ १११।१६६ १।१४।४३ ११८।१६१ श८।५८ १११११६५ १२० १।१६।२१३,२१४ १।११८४,८५ १।१६।२८५ १।१६।२८५ २।१।४५ ११११२१२ Page #893 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० वृत्ति भगवओ जाव पव्वइत्तए भड० भवणवइ० तित्थयर० भवित्ता जाव चोदसपुव्वाई भवित्ता जाव पव्वइत्तए भवित्ता जाव पव्वइस्सामो भवित्ता जाव पव्वयामो भाणियव्वाओ जाव महाघोसस्स भारहाओ जाव हत्थिणारं भाव जाव चित्तेउं भासासमिए जाव विहरइ भीए जाव इच्छामि भीए जाव संजायभए भीया जाव संजायभया भीया वा भीया संजायभया भुंजावेंति जाव आपुच्छंति ° भुतुत्तरागए जाव सुइभूए भेसज्जेहिं जाव तेगिच्छं भोगभोगाइं जाव विहरइ भोगभोगाइं जाव विहरति भोगभोगाइं जाव विहराहि मइविकप्पणाहिं जाव उवणेति मज्झमझेणं जाव सयं मट्टियाए जाव अविग्घेणं मट्रियालेवे जाव उप्पतित्ता मणुण्णे तं चेव जाव पल्हायणिज्जे मत्थयछिड्डाए जाव पडिमाए मयूरपोयगं जाव नदुल्लग महत्थं० महत्थं जाव उवणेति महत्थं जाव तित्थयराभिसेयं महत्थं जाव निक्खमणाभिसेय महत्थं जाव पडिच्छइ ११११११३ १।१।१०४ ११८१६४ १८.५७ ११८।३६ कल्पसूत्र महावीरजन्म प्रकरण १११४१८२ ११५८० ११८।२०४२।१।२७ १।१।१०४ १।१२।४० १।१।१०१ ११८१८६,१।१६।३१० १।१।१०१ २०४८ ठाणं० २:३५५-३६२ १।१६।२४० १।१६।२५४ १।८।११८ १।८।११७ ११५।३५-३७ १।१२।३६ ११५२१ १११४१६६ १११११६० १।६।२५,२७ १।१।१६० ११८७६ ११८७३ ११८७२ १।१।१६० ११८६६ १।८।६६ १।१२।४ श२।१४ ११६।२२ १५।११० ११११६६ १।१।१७ १११६।१८३ ११११३२ १।१६।२०८ ११०३२ १।१६।२४७ ओ० सू० ५७ १।१६।१६६ १।१६।२१८ ११८।१४३ ११५१६० १।६।४ १।६।४ १।१२।८ १।१२।४ १८।४१,४२ १८।४१ १।३।२८ १।३।२७ ११८८१ ११८८१ शा८४ शा८१ शक्षा२०५ १।१।११६ ११५/६८ ११११११६ १।१७।१७ शा८२ Page #894 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मत्थं जा पहु महत्थं जाव पाहुडं रायारिहं महत्वं जाव रायाभिमेय माया इ वा जाव सुहा मासाणं जाव दारियं माहण जाव वणीमगाण माहणी जाब निसिरद मित्त मित्त जाव चउत्थ मित्त जाव बहवे मित्त जाव संपरिवुडा मित्तनाद गणनायग जावसद्धि मित्तपक्खं जाव भर हो मुडावियं जाव सयमेव मुंडे जाव पव्वयाहि मुछिए जाव अभोववण्णे मेहे जाव सवणाए य गं जाव परमसुइभूए रज्जइ जाव नो विप्पडिघाय० रज्जं च जाव अंतेउर रज्जे जाव अंतेउरे रज्जे य जाव अंतेउरे रज्जे य जाव वियंगेड जाव अंगमगाइ रज्जे य जाव वियलेड रणो जायतइत्ति रणो वा जाव एरिसए रयण जाव आभागी २१ १८१६ महब्बले जाव महया मध्याह्य जाव विहरइ २।१।१० महालियं जाव बंधित्ता अत्याह जाव उदगंसि १४१४७७ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि १।१।११० १।१।५३ महिडीए जाव महासोक्से महरालाउयं जाव नेहावागाढं १/१६/० माणुसगाई जाव विहरइ १।१५।१६ १।१४।७१ १।१६।१२४ |१|१४|३८ १।१७।१६ १।१३।१५ १।५।१२:१।१९।३७ १।१६।२४ १।७।२२ 811012. 210135 १।५।२० ११११८१ १।१।११८ १।१।१६१ १।१२।१४ १।१६२९ १।१।१५४ १।१२।२२ १११६४६ १।१९।२६ १।१४।६० १८१५१:१।१६।१८७१।१२।२६ १।१४।२२ १।१४।२२ १।१६।३०३ १८१५३ १।१८।५६ १।५।२० १५/२० १।१।११६ १।५।३४ राय० सू०८ १/१४/७५ १|१|१०६ सू० २०२/७३ १/१६/८ १।१।६७ सूय० २/२/७ १।२।२० आधारचूला १।१६ १।१६।१४ १।१।८१ १४७२६ १।७२५.११ १४२।१२ १।११८१ वृत्ति PIPIRVE १।१।१०१ ??|= १।१।१०६ १।११८१ १।१७।२५ १।१।१६ १।१४/२१ १।१।१६ १।१४/२१ १।१४।२१ १२६११०४ १२८६७ ११६११।१८५१ Page #895 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहमहया राईसर जाव गिहाई राईसर जाव विहरद रायाहीणा जाव रायाहीणकज्जा रिउव्वेय जाव परिणिट्ठिया रुट्ठा जाव मिसिमिसेमाणी वेण य जाव उक्किदुसरीरा रूवेण य जाव लावण्णेण रूवेण य जाव सरीरा रोयमाणा य जाव अम्मा पिऊण रोमाणि जाव नावयक्ससि रोयमाणे जाव विलयमाणे रोयमाणे जाव विलवमाणे लद्धमईए जाय अमूढदिसाभाए लवण जाव ओगाहित्तए लवण जाव ओगाह लवणसमुद्दे जाय एडेमि लोइयाई जाव विगयसोए वंदामो जाव पज्जुवासामो वंदितए जाव पज्जवासित्तए वण्णहेडं वा जान आहारेह aj जाव अहि वणेणं जाव फासेणं वत्थ जाव पडिविसज्जेइ वत्थ जाव सम्माणत्ता बस्स्स जाव सुद्वेणं बत्थे जाव तिसंभ वयासी जाव के अन्ने आहारे जाव पव्वयामि वासी जाव सिणी वरतरुणी जाव सुरूवा बबरोवेह जाव अभागी वाइस जाव रवेण वाणियाणं जाव परियणा वाबाहं वा जाव छविच्छेयं २२ १।१६।१४७ १।१४।४३ १।८।१४६ १|१४|५६ १८१३६ १/२/५७ १।१६।२०० १।१६।११० १।१४।११ १।१८।१३ १२६४४० १/२/३४ १२६४४७ १।१७।१३ १/६/६ १।६।५ १२० १।१८।५७ १।१३।३८ २।१।१२ १।१८।४८ १११०/४ १।१२।३ ११४१६ १।१६।५४ १।५।६१ १७३३ १४१२२४५ १।१६ १६, १७ १।१।१३७ १।१८।५३ १/८/२०२ ११८६७ १।४।२० १/८/५७ १८५८ १८१४० १।१४।५६ ओ० सू० १७ १।१।१६१ १८६० १२६३८ 815180 ११ बाह १६४० १।२।२६ १०६०४० १।१७।१२ ११६४ १२६४४ १२६१९ ११६४८ ओ० ० ५२ ० सू० वृत्ति १।१८,६१ १।१०।२ १।१२।१२ श८/१६० 21018 १।५।६१ शार १।५।६० १।१९।१४, १५ १।१।१३४ १।१८५२ १.१ ।११८ १६६६ १४४।११ Page #896 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ वायणाए जाव धम्माणुओगचिताए ११११८६ वाराओ तं चेव जाव नियघरं १।।४ वावीसु य जाव विहरेज्जाह शक्षा२० वासाइं जाव देति १।२।१२ वासुदेवपामोक्खे जाव उवागए १।१६।१७७ वासुदेवे धणुं परामुसइ वेढो १।१६।२५८ वासे जाव असीइंच सयसहस्सा दल इत्तए ११८।१६४ विउला पगाढा जाव दूरहियासा १।१९।४० विगोवइत्ता जाव पव्वइए १।१६।२६ विजया जाव अवक्कमामो १।२।४७ विणिम्मुयमाणी २ एवं ११।३३ वेज्जा य जाव कुसलपुत्ता १।१३।३० सई वा जाव अलभमाणा ११।२२,२४ सई वा जाव जेणेव १९।२३ संकामेत्ता जाव महत्थं पाहुडं ११८८४ संकिए जाव कलुससमावणे १।३।२४ संगयगयहसिय० ११३८ संचाएइ जाव विहरित्तए ११५११८ संचाएंति० करेत्तए ताहे दोच्चं पि अवक्कमंति ११४।१४,१५ संजत्तगाणं जाव पडिच्छइ १८८२ संता जाव भावा १।१२।३२ संताणं जाव सबभूयाणं १।१२।२६ संते जाव निविणे ११८७६ संते जाव भावे १।१२।२६ संपरिबुडे एवं जाव विहरइ ११८।१४७ संभग्गं जाव पासित्ता १।१६।२६३ संभग्गं जाव सण्णिवइया १।१६।२७८ संभग्गं तोरण जाव पासइ १११६।२७८ संसारभउब्विग्गा जाव पव्वइत्तए १।१४।५३ संसारभउव्विग्गे जाव पव्वयामि ११५८६ सकोरेंट जाव सेयवर० १८५७ सकोरेंटमल्लदाम जाव सेयवरचामराहि महया ११६१ सकोरेंट० सेयचामर हयगयरहमहयाभडचडगरेण जाव परिक्खित्ता १।१६।१५३ १।१।१५३ १४ १९२० १०२।१२ १।१६।१७६ वृत्ति ११८१६४ १।१।१६२ ओ० सू० ५२ १०२।४४ १।१।१४८ १।१३।२६ १६२१ १।६।२१ ११८८१ १०३।२१ १११११३४ ११५११७ १।४।११,१२ ११८८१ १।१२।३१ १।१२।१४ १।४।१२ १।१२।१६ १।१६।१७८ १।१६।२६२ १।१६।२६२ १।१६।२६२ १।१११४५ १।१।१४५ श८।५७ १८५७ Page #897 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकोरेंट हयगय सक्का जाव नन्नत्थ सिसिणियाई जाव बत्बाई सगज्जिया जाव पाउस सिरी सज्जइ जाव अणुपरियट्टिस्सइ सण्णद्ध० सद्ध जाव गहिया सण्णद्ध जाव पहरणा सणद्धबद्ध जाव गहियाउह० सत्तट्ठ जाव उप्पयइ सततलाई जाव धरहन्नगं सत्तमस्स वग्गस्स उक्सेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि सत्तुस्सेहे जाव अज्जसुहम्मस्स सत्यवज्झा जाव कालमासे सद्द जाव गंधाणं सफरिसरसवगंधे जाव भुजमाणे सद्दति जाव रोएंति सहावे जाय जेणेव सहावे जाव तं सदावेद जान तहेव पहारेत्य सदावेद जाव पहारेत्थ सद्दावेह जाव सद्दावेंति सणं जाव अम्हे समणस्स जाव पव्वइत्तए समणस्स जाव पव्वइस्ससि समणाउसो जाव पंच समणाउसो जाव पव्वइए समणाउसो जाव माणूस्सए समणाणं जाव पमत्ताणं समणाणं जाव बीईवस् समणाणं जाव साबियाण समणाण य जाव परिवेसिज्जड समत्तजालाकुलाभिरामे जाव अंजणगिरि० २४ १।१६।१५७ १।५।२५ १८/२०३ १।१।६४ १।१५।१६ १।१६।२४८ १।१६।१३४; १।१८।३५ १।१६।२५१ १।१६।२३६ १२६।३७ ११८७७ २७ १,२ १।१।६ १।१६।३१ ४१।१७।२ १५६ १।१५।१३ १८६६,१०० १४७।१० १६।११२,११३ १८१५५,१५६ १।१।१३६ १।३।१६ १।१।१०७ १।१।१०८, ११२ १/७/३५, ४३ १११०१५ २०१८ ४८ १।१९।४२,४७ १०२५३ ११५ ११५ १३०३४ १।१७।३६ १/८/२०० શ××× ११८५७ १।५।२४ 815108 ११५६ १।३।२४ १।२।३२ १२/३२ १।२।३२ १।२।३२ १२६ ३६ १२८।७३ २।२।१,२ ओ० सू० ८२ १।१६।३१ १।१७।२२ ओ० सू० १५ १।१।१०१ १२८६२,६३ १२७१६,७,९ १८६६, १०० PICIEE, 800 १।१।१३८ १।३।१८ १।१।१०४ १।१।१०६ ११७/२७ १।३।२४ १९२६४४४ १।५।११७ १२/७६ १२/७६ १२८१२६, १९७ ओ० सू० ६३ Page #898 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ ११३७ समाणा जाव चिट्ठति १।१५।१० १।१५।६ समाणी जाव विहरित्तए १।२।१७ १।२।१७ समोवइए जाव निसीइत्ता १।१६।२२७,२२८ १।१६।१६७,१६८ समोसरणं ११५८५ ११।४ सम्मज्जिओवलित्तं जाव सुगंधवरगंधियं २११३३ '११११२२ सम्मज्जिओवलित्तं सुगंध जाव कलियं श३६ १३१२२२ सम्माणेइ जाव पडिविसज्जेइ १।१६।३०० १।१४।१६ सयमेव० आयार जाव धम्ममाइक्खइ १।१।१५० १११।१४६ सरिसगं जाव गुणोववेयं १।८।१२० १८.४१ सरिसियाओ जाव समणस्स पव्वइस्ससि १।१।१०६ १११११०८ सव्वओ जाव करेमाणा १।१६।२३ १।१६।२३ सव्वं तं चेव आभरणं १॥५॥३०-३२ १११।१४५-१४७ सव्वज्जुईए जाव निग्घोसनाइयरवेणं ओ० स० ६७ सव्वट्ठाणेसु जाव रज्जधुराचिंतए १।१४।५६ १।१४।५६;१११११६ सहइ जाव अहियासेइ १।११।३ १।१११५ सहजायया जाव समेच्चा १।८।१०,११ ११३।६,७ सहियाणं जाव पुव्वरत्ता १।५।११८ साइमं जाव परिभाएमाणी १।१६।६३ १।१६।६२ सामदंड० १०८।४५,१।१४।४ १।१।१६ सालइएणं जाव नेहावगाढेणं १।१६।२५,२६ १।१६।८ सालइयं जाव आहारेसि १।१६।१६ १।१६।१६ सालइयं जाव गोवेइ . १।१६।८ १।१६।८ सालइयं जाव नेहावगाढं १।१६।१६,१६,२० १।१६।८ सालइयस्स जाव नेहावगाढस्स १।१६।२२ १।१६।८ सालइयस्स जाव एगमि १।१६।१६ १।१६।१६ साहरह जाव ओलयंति १।८।२ शक्षा४८ सिंगारा जाव कुसला १।१।१३६ ११।१३४ सिंगारागारचारूवेसाओ जाव कूसलाओ १।१।१३५ १११११३४ सिंघाडग० ११५०५३ ११०३३ सिंघाडग जाव पहेसु १।३।३३;१।१३।२६१।१६।१५३;१।१८।१६ ११३३ सिंघाडग जाव बहुजणो ११७४४११।८।२००,१।१३।२६ ११५१५३ सिंघाडग जाव महया ११११९५ ओ० सू० ५२ सिक्खावइए जाव पडिवण्ण उवा० ११४५ सिज्झिहिइ जाव मंत १।१५।२१ १।१।२१२ Page #899 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिज्झिहि जाव सव्वदुक्खाण ० सिद्धे जावपी सीलव्वय जाव न परिच्चयसि सीलव्व तहेव जाव धम्मज्झाणोवगए सीनाय जाव रखेणं सीनाय जाव समुद्दवभूयं सुई वा० सुइं वा जाव अलभमाणे सुई वा जाव लभामि सुई वा जाव उवलद्धा सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे सुभरूवत्ताए सुमिणपाढपुच्छा जाव विहरइ सुमिणा जाव भुज्जो २ अणुवहति सुरं च जाव पसन्नं सुरट्ठाजणवए जाव विहरइ सुरूवा जाव वामहत्थेणं सूमालं निव्वत्तवारसाहस्स इमं एयारूवं सूमालिया जाव गए से धम्मे अभिरुइए तए णं देवा पव्वइत्तए सेयवर हयगय महया भडचडगरपहकरेणं सेसं जहा सागरस्स जाव सयणिज्जाओ सोणियासवस्स जाव अवस्स ० सोणियासवस्स जाव विद्धसणधम्मस्स हुए जाव पडिसेहिए जावया तु जाव पच्चपिणंति हट्ठतुट्ठ जाव मत्थए जाहि हत्थाओ जाव पडिनिज्जा एज्जासि हत्थखंध जाव परिवुडे हत्थ खंधवरगए जाव सेयवरचामराहि हत्थिणाउरे जाव सरीरा हत्थी जाव छुहाए २६ १।१६४६ १५१८४ १/८/७४ ११८७७,७८ १८६७ १११८/३५ १।६।३७ १।१६।२१५ १।१६।२२१ १।१६।२२६ ११५१८ १।१५।१३ शाह १।१।३१ १।१८।३३ १।१६।३१६ १।१६।१६३ १।१६।३०५,३०६ १।१६।८७ १|१|१३ १।१६।२३७ १।१६।८१-८६ १।१८६१ १।१८।४८ १।१६।२५७ २।१।२०, २१, २४, २५ १।१।२३ १।५।१३ १।१।२०:१।१६।१३५ १२७/६ १।१६।१४६ १८१६३ १।१६।२०३ १।१।१८५ १।१।२१२ ठाणं ११२४६ १८७४ १८७४,७५ ओ०सू० ५२ १।८।६७ १।२।२६ १।१६।२१२ १।१६।२१२ १।१६।२१२ ओ ०सू० १४३ १।१५।११ १।१।३२ १।१।२६ १।१६।१४६ १।१६।३१८ वृत्ति १।१६।३३,३४ १।१६।६२ १।१।१०४ १८५७ १।१६।५६-६१ १।१।१०६ १।१।१०६ १८१६५ १|१|१६ १।१।१६, २२ १।१।२६ १|१|१६ १।७।६ १।१६।१४६ १८५७ १।१६।२०० १ । १ । १५७ Page #900 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ हत्थीहि य जाव कलभिया हि हत्थीहि य जाव संपरिवुडे हयगय० हयगय जाव पच्चप्पिणंति हयगय जाव परिवूडा हयगय जाव रवेणं हयगय जाव हथिणाउराओ हयगय संपरिवुडे हयगया जाव अप्पेगइया हय जाव सेणं हयमहिय जाव नो पडिसेहिए हयमहिय जाव पडिसेहिए हयमहिय जाव पडिसेहित्ता हयमहिय जाव पडिसेहिया हयमहिय जाव पडिसेहेइ यमहिय जाव पडिसे हेति हरिसवस० हियए जाव पडिसुणेइ हियाए जाव आणुगामियत्ताए हिरणं जाव वइरं हिरण्णागरे य जाव बहवे हीलणिज्जे० हीलणिज्जे संसारो भाणियव्वो हीलिज्जमाणीए जाव निवारिज्जमाणीए हीलेंति जाव परिभवंति होत्था जाव सेणियस्स रणो इट्ठा जाव विहर १।१।१६८ १।११५८ १।१६।२४८ १।१६।१३६ श१६।१५६ १।१६६ १।१६।३०३ १।१६।१७४ १।१६।१३८ १।८।१६२ १।१६।२८५ १।८।१६६;१।१६।२५६ १।१६।२८६ १।१८।४२ १।१८।२४ १।१८।४१ १११११६१ १।१।१२६ १।१३।३८ १।१७।१६ १।१७।१८ १।४।१८ १५।१२५ १।१६।११८ १।१६।११७ १।१।१५७ १।१।१५७ १।८।५७ ओ०सू० ५६ १।८।५७ १।१।६७ १।८।५७ ११८५७ ११।१५ १८५७ ११८।१६५ ११८।१६५ ११८।१६५ १८।१६५ १।८।१६५ ११८।१६५ वृत्ति ओ०सू० ५६ ओ०सू० ५२ १।१७।१६ १।१७।१४ १।३।२४ १।३।२४ १।६।११७ १।३।२४ शश१७ वृत्ति उवासगदसाओ अंतलिक्खपडिवण्णे एवं वयासी अंतियं जाव असि ७।१७ ५।२,२१ ७।१० ३।२०,२१ Page #901 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्गिमित्ताए वा जाव विहरइ अज जाय वक्रोविजि अभवसाणेणं जाव खओवसमेण अट्ठेहि य जाव वागरणेहि अह जाव निष्पट्ट अड्डे चतारि अड्डे जहा आनंदो नवरं अहिरण्यकोडीओ ससाओ निहाणपउत्ताओ अहि व अहि सकंसाओ पवि अट्ठवया दस गो साहस्सिएणं वएणं अड्डे जाव अपरिभूण अारिए जहा चुलीपिया तहा चितेइ जाव कणीयसं जाव आईच अणारिए जाव समाचरति aggi जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं अणदा कदाइ बहिया जाव विहरइ अपच्छिम जाव अणवखमाणे अपचिम जाव भत्तपाण अपच्छिम जाव विस्स अपच्छिम जाव वागरितए अभगुणाए तं वेव सज्यं कहेइ जाव अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलामेमाणे अभिगयजीवाजीवे जाव विहरद अभिगयजीवेजी णं जाव अणइक्कमणिज्जेणं अभीए जाव विहरइ अभीयं जाव धम्मज्झाणोवगयं अभीयं जाव पासइ अभीयं जाव विहरमाणं अहीण जाव सुरुवा अहीण जाव सुरुवाओ २८ ७/२६ २०४४ ८।३७ ७१४८ ६।२८ ६।३,४,१०१३,४ ८३-५ १।११ ५१४२ ३।४४४।४२ ६।२१,२२,२३,७/२३, २४ १६५४ १।७२ ८१४६ ८।४६ ८४६ १८७६ १।५५ ८।१६ १।३१ २२६,३५ ३।२२ २।२४ अवहरद वा जाव परिवेश ७/२६ अस्सिणी भारिया । सामी सामासढे जहा आणंदो तहेब T गिम्मिं परिवज्जद सामी बहिया विहर असोगणिया जाव विहरसि २।४०:३।२३ २/२८,३० १५-१५ ७।१७ १।१४ 디 ७।२६ २/२२ १।६६ ६।२८ २३.४ १।११-१३ ओ०सू० १४१ ३।४२ ३०४२ ६।२० ना० १।१।१६६ १/६५ १/६५ १।६५ ८।४६ ११७१-७८ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ २।२३ २/२३ २।२४ २।२४ ७/२५ २१५-१५ ७/८ ओ० सू० १५ ओ० सू० १५ Page #902 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ २।४० आओसेसि वा जाव ववरोवेसि ७।२६ ७।२५ आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, २ ता जहा आणंदो जाव समणस्स २०१६ १६६० आलोइज्जइ जाव तवोकम्म ११७८ ठा० ३।३४८ आलोइज्जइ जाव पडिवज्जिज्जइ ११७८ वृत्ति अ०३ आलोएइ जाव जहारिहं ८.५० वृत्ति अ०३ आलोएइ जाव पडिवज्जइ ३।४६ वृत्ति अ० ३ आलोएयव्वं जाव पडिवज्जेयव्वं श८० वृत्ति अ०३ आलोएह जाव पडिवज्जेह ११७८ वत्ति अ० ३ आलोएहि जाव अहारिहं ८।४६ वृत्ति अ० ३ आलोएहि जाव तवोकम्म ११७७ वृत्ति अ०३ आलोएहि नाव पडिवज्जाहि १।१८,३१४५८।४६ वत्ति अ०३ इट्ठ जाव पंचविहे १।१४ ओ० सू० १५ इड्डी जाव अभिस मण्णागए २०४० इमेणं जाव धमणिसंतए ११६५ ११६४ इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ३।४२ ११७३ उक्खेवो ३।१४।१५।१६।१७।१८।१६।११०।१ २।१ उज्जलं जाव अहियासेइ २।३३,३९३।२६ उज्जलं जाव अहियासेमि ३।४४ वत्ति उज्जलं जाव दुरहियासं २।२७ वृत्ति उढाणे इ वा जाव अणियता ६।२१,२३ ६।२० उठाणे इ वा जाव नियता ६।२१,२३,७।२६ उढाणे इ वा जाव परक्कमे ६।२०,२३,७।२६ उट्ठाणे इ वा जाव पुरिसक्कार० ७।२४ उट्ठाणणं जाव परक्कमेणं ६।२३ उट्ठाणेणं जाव पुरिसक्कारपरक्कमेणं ६।२१,७।२३ उद्धाविए जहा चुलणीपिया तहेब सव्वं भाणियव्वं । नवरं अग्गिमित्ता भारिया कोलाहलं सुणित्ता भणइ । सेसं जहा चलणीपिया वत्तव्वया सव्वा नवरं अरुणच्चए विमाणे उववातो जाव महाविदेहे ७७८-८८ ३१४२-५२ उद्धाविए जहा सुरादेवो । तहेव भारिया पुच्छइ, तहेव कहेइ । सेसं जहा चूलणीपियस्स जाव सोहम्मे ५।४२-५२ ३।४२-५२ वृत्ति ६२० Page #903 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ७।११,१८ ७१० ७.४५ ८।२७ ८।१८ ३१५०-५२ ८।३५ ७।१० ८।१६ ८।१८ २१५३-५५ २६४ ११६५ ११६२ ६।३५.४१ २।५०-५६ ३१४४ ३।२७-३८ ११६६,८।३७ उप्पण्णणाणदंसणधरे जाव तच्चकम्मसंपया उप्पण्णनाणदंसणधरे जाव महियपूइए जाव तच्च० उरालाई जाव भुंजमाणे उरालाइं जाव विहरित्तए उरालेणं जहा कामदेवे जाव सोहम्मे उरालेणं जाव किसे उरालेणं तवोकम्मेणं जहा आणंदो तहेव अपच्छिम० एक्कारसमं जाव आराहेइ एवं एक्कारस उवासगपडिमाओ तहेव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणज्झए विमाणे जाव अंतं काहिइ एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं जाव कणीयसं जाव आइंचइ। अहं तं उज्जलं जाव अहियासेमि एवं दक्षिणेणं पच्चत्थिमेणं च एवं देवो दोच्चं पि तच्चं पि भणइ जाव ववरोविज्जसि एवं मज्झिमयं, कणीयसं, एक्केक्के पंच सोल्लया। तहेव करेइ, जहा चुलणीपियस्स, नवरं एक्कक्के पंच सोल्लया एवं वण्णगरहिया तिण्णि वि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ ओहयमणसंकप्पा जाव भियाइ कज्जेसु य आपुच्छउ कदाइ जहा कामदेवो तहा जेट्टपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपण्णत्ति करएहि य जाव उट्टियाहि करगा य जाव उट्टियाओ करेइ । सेसं जहा चुलणीपियस्स तहा भद्दा भणइ । एवं सेसं जहा चलणीपियस्स निरवसेसं जाव सोहम्मे कल्लं जाव जलते ४।४१ ४।३६ ४।२२-३८ ३।२२-३८ २।४५ ८।४२ ११५६ २।२४-४० रा० सू० ७६५ १।१३ ६।३३,३४ তাও २।१८,१६ ওাও ७७ ७/२२ . ४।४५-५२ ११५७;७।१२ ३।४५.५२ ओ० सू० २२ Page #904 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५७ २।४५ २।३०,३१ ११५७ .२।२२ २।२२,२३ २।३-६ ४।३६ ११११-१४ वृत्ति २।३-६ कल्लं विउलं कामदेवा जाव जीवियाओ कामदेवा तहेव जाव सो वि विहरइ कामदेवे गाहावई। भद्दा भारिया। छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वड्डिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं कासे जाव कोढे कुंडकोलिए गाहावई । पूसा भारिया छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वडिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं कुडुंब जाव इमेयारूवे कुडुबस्स जाव आधारे केणटेणं एवं कोडुबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति गिहाओ जाव सोणिएण गिहाओ तहेव जाव आइंचह्न गिहाओ तहेव जाव कणीयसं जाव आइंचइ गिहिणो जाव समुप्पज्जइ गुण जाव भावेमाणस्स गुरु जाव ववरोविज्जसि घाएता जहा कयं तपा विचितेइ जाव गायं घाएत्ता जहा जेठ्ठपुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ । एवं कणीयंसि पि जाव अहियासेइ चत्तारि पलिओवमाई ठिई । सेसं तहेव जाव सिज्झिहिति चूल्लसयए गाहावई अड्ढे जाव छ हिरणकोडीओ जाव छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । बहुला भारिया चेइए जहा संखे जाव पज्जुवासइ जहा आणंदो तहा निग्गच्छइ तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ जाए जाव विहरइ ८।१८ ११५७ ७४६ ७।३४ ३।४२ ३।४२ ३।४४ २७६,७७ ६।१८ ३१४४ ३१४२ १२१३ ७१४८ ११४८ ३२४२ ३।४२ ३३४२ ११७६ २०१८ ३।४१ ३।२१ ३।२७-३८ ३।२१-२६ ५।५२ २१५५,५६ ५।३-६ २।४३ ४।३-६ भ० १२११ ८।१०-१५ १६,१७ १११६-२४ २।१६,१७ Page #905 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ११५६ ७।१४ ७।५० ४।४२ ११५७ १२ ७.१५ ७.३५ ११५७ ७.१५ श२० ७३५ १।१६ राय० सू० १२ ३।४२ ११५७ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ १२० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ११५७ ५।४१ ११५७ ५२४० जाया जाव पडिलाभेमाणी जाव पज्जुवासइ जुगवं जाव निउण सिप्पोवगए जेट्टपुत्तं जाव कणीयसं जाव आइंचइ ठावेत्ता जाव विहरित्तए । णमंस इ जाव पज्जुवासइ णमंसित्ता जाव पज्जुवासइ णाइदूरे जाव पंजलियडा बहाए जाव अप्पमहग्घा० बहाए जाव पायच्छित्ते हाए सुद्धप्पावेस अप्प० बहाया जाव पायच्छित्ता तं मित्त जाव विउलेणं पुप्फ ५ सक्कारेइ सम्माणेइ, २ ता तस्सेव मित्त जाव पूरओ तच्चं पि तहेव भणइ जाव ववरोविज्जसि तत्थ णं बाणारसीए चुलणीपिया नाम गाहावई परिवसई अड्ढे सामा भारिया अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ अट्ठ वडिप० अट्ठपवित्थरप० । अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं जहा आणंदो ईसर जाव सव्वकज्जवडावए यावि होत्था तव जाव कणीयसं तिक्तो जाव वंदइ तीसे य जाव धम्मकहा सम्मत्ता तुम जाव ववरोविज्ज सि दुहट्ट जाव ववरोविज्जसि देवराया जाव सक्कंसि देवाणुप्पिए समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे तं देवाणुप्पिया जाव महागोवे धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं धम्मायरियस्स जाव महावीरस्स नाममुद्दगं च तहेव जाव पडिगए २।३-६ ३१४४ ११२० ३।३-६ ३।४५ ७.३५ २१४४ ३।४४ ওাও; २०४० २१११ २।२२ २।२२ वन्ति ७।३१ ७।४६ ७.५० ७।५१ - ६।२८ ११४५ ७१४४ ७.५० ७.५० ६।२०-२४ Page #906 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निक्खेवो वो पढमस्स नोणेमि एवं जहा चुलणीपिय, नवरं एक्केक्के सत्त मंससोल्लया जाव कणीयसं जाव आईचामि नीलुप्पल एवं जहा चुलणीपियरस तहेव देवो उवसग्गं करे जाव कणीयसं घाए, २ ता जाव आच नीलुप्पल जाव असि नीलुप्पल जाव असणा पंचजोयणसयाई जाव लोलुयच्चुयं पढमं अहासुतं जाव एक्कारस वि पढमं उवासगपडिमं अहासुतं ४ जहा आणंदो जाव एक्कारस वि पाणिता जाव सोहम्मे पाडिहारिएवं जाव उबनिमतिस्सामि पावयण जाव जयं पीढ जाव ओगिहिता पीड जाव संधारणणं पीढ जाव संथारयं पीढ - फलग जाव उवनिमंतेत्तए पुणे कयत्वे कलक्ख सुलदे पुत्तं जाव आइंचइ पुरिसे तब कहे जहा वणीपिया धन्ना वि पडिभणड जाव कणीयसं पुवरता जाव धम्मजागरिय पोसहिए० 1 फग्गुणी भारिया सामी समोसढे जहा आणंदो तहेव गिहिधम्मं पडिवज्जइ जहा कामदेवो तहा जेट्टपुतं वेत्ता पोसहसालाए । समणरस भगवओ महावीरस्स धम्मपति उवसंपत्ति ३३ २०५७; ३।५३,४/५३ ५। ५४; ६२४१७६ १ ८ १५४९।२७ १२६५ ५।२१-३७ ७।५७-७३ २०४५;३।२१,४४,४२१ २।२२,२६ १।७६ ८३३,२४ ३१४८, ४६ १।५३ ७।११ ४/४४ १।६५ पुव्वरत्तावरत्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स ७५४ १/६० ७।३७ ७५२ ७।५१ ७। १८ ७।१८ २।४० ७७८ ११८५ वृत्ति ३।२१-३७ ३।२१-३८ २२२ २२२ १।६६ १/६२,६३ १/६२-६३ ११८४ १४५ १।२३ १।४५ १।४५ १।४५ ११४५ २/४० ३।४२ ૪ १।५७ २1१८ ना० १।११५३ Page #907 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१५-२५ ७५१ ७.१६ २०४० ३।१६ २१५५ ११५७ ७।३७ ওওও ७।३७ ८।२० विहरइ । नवरं निरुवसग्गो एक्कारस्स वि उवासगपडिमाओ तहेव भाणियव्वाओ एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं जाव सोहम्मे फलग जाव ओगिण्हित्ता फलग जाव संथारयं बंभयारी जाव दब्भसंथारोवगए बंभयारी समणस्स बहिं जाव भावेत्ता बहूणं राईसर जहा चितिथं जाव विहरित्तए बहूहिं जाव भावेमाणस्स भवित्ता जाव अहं भारिया जाव सम० भोगा जाव पव्वइया मंसमुच्छिया जाव अज्झोववण्णा मत्ता जाव उत्तरिज्जयं मत्ता जाव विकड्डमाणी महइ जाव धम्मकहा समत्ता महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव समोसरिए महासतयं तहेव भणइ जाव दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो तहेव मारणंतिय जाव कालं मित्त जाव जेट्टपुत्तं मित्त जाव पुरओ मुंडे जाव पव्वइत्तए मोहुम्माय जाव एवं वयासी तहेव जाव दोच्चं पि राईसर जाव सत्थवाहाणं राईसर जाव सयस्स लद्धट्रे जहा कामदेवो तहा निग्गच्छइ जाव पज्जुवास इ । धम्मकहा । वदणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे वंदामि जाव पज्जुवासामि २।५-१६,५०-५५ ११४५ ११४५ १२६० ११६० ११८४ ११५७ २।१८ ११२३ ७१७५ ओ० सू० ५२ वृत्ति ८।२७ ८।२७ २।११ १।१७ १२० ओ० सू० १६-२२ ८।३८ ८.४६ ७।१६ २०४२ २।४३;७।१५ १।१७;७।१२ ८।३८-४० श६५ ११५७ १६५६ १।२३,५३ ८।२७-२६ ११६५ ११५७ ११५७ ओ० स० ५२ ८।४६ १।१३ ११५७ बा२७-२६ ११२३ १।१३ ६।२६,२७ ७.१० ७११५ २।४३,४४ ओ० सू०२ ओ० सू० ५२ Page #908 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वदाहि जाव पज्जुवा साहि वंदस्सामि जाव पज्जुवासिस्सामि वंदेज्जाहि जाव पज्जुवासेज्जाहि वयासी जाव उववज्जि हिसि वाताहतं वा जाव परिवेइ विणस्समाणे जाव विलुप्पमाणे विहरइ । तए णं aastiताई तव धम्मपत्ति । वीसं वासाई परियागं नाणत्त पुत्तं ठवेइ । अरुणगवे विमाणे उववाओ महाविदेहे वासे सिज्झिeिs aastiता एवं तव जेट्ठपुत्तं ठवेइ जाव पोसहसालार धम्मपणत्ति संचाएइ जाव सनियं संताणं जाव भावाणं संतेहि जाव वागरित्तए संतेहिं जाव वागरिया सखिखिणियाई जाव परिहिए सहामि णं जाव से जहेयं समणोवासया ! तं चैव भणइ समणोवासया ! तं चैव भणइ सो जाव विहरइ समणोवासया ! तहेव जाव गायं आइंचइ ३५ १।४५,७१३१ ७।११ ७।१० ८।४६ ७।२६ ७४७,४६ २।५१-५४ १८-२६ १७८ ८।४६ ४ ७।१० १।२३ सद्दालपुत्ता तं चैव सव्वं जाव पज्जुवासिस्सामि ७।१७ समएणं अज्जसुहम्मे समोसरिए जाव जंबू पज्जुवासमाणे समणे जाव विहरइ तं महाफलं गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि समणोवासए जाव अहियासेइ समणोवासए जाव विहरइ समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया जाव न भंजेसि समणोवासया ! जहा कामदेवो जाव न भंजेसि ३।२१ समणोवासया ! जाव न भंजेसि ८२५, २६ २।३४ १।३-५ १२० ५।३८ ४ |४०५ ३८ ३।४४; ७/७५ २/३४५।२१,३६ ७७७ ३।२३, २४ ३/४४ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ ८।४१ ७/२५ ७।४६ १।६२-६५ २१८,१६ २२८ १७८ ८।४६ ८४ २४० रा० सू० ६६५ ७।१०, ११ रा० सू० ६८६; ओ० सू० ८२, ८३ २१८, १९, ५०-५६ ओ० सू० ५२ २।२७ ३/२२ २२२ २२२ २।२२ ७७४ ३।२१,२२ ३।२३-२५ Page #909 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ 319 ३।३६ २।२२ ३१४२ १२१७-२३,५४-६० वृत्ति २।२७ २।२७ भ०३।१०२ २१७-१६ समणोवासया ! तहेव जाव ववरोविज्जसि ३।४१ समणोवासया ! तहेव भणइ जाव न भंजेसि २०२८ समुप्पज्जित्था एवं जहा चुलणीपिया तहेव चिंतेइ ७१७८ समोसरणं जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ । साचेव वत्तव्वया जाव जेट्टपुत्तं २७-१६ सहइ जाव अहियासेइ २।२७ सहंति जाव अहियासें ति २१४६ सहित्तए जाव अहियासित्तए २०४६ साइमं जहा पूरणो जाव जेट्टपुत्तं सामी समोसढे । चुलणीपिया वि जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ । गोयम पुच्छा । तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसहसालाए ३७-१६ सामी समोसढे जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ । सेसं जहा कामदेवो जाव धम्मपण्णत्ति ५॥७-१६ सामी समोसढे जहा कामदेवो तहा सावयधम्म पडिवज्जइ । सा सव्वेव वत्तव्वया जाव पडिलाभेमाणी विहरइ ६७-१७ साहस्सीणं जाव अण्णेसि २।४० सिंघाडग जाव पहेसु ५०३६ सिंघाडग जाव विप्पइरित्तए ५१४२ सीलव्वय-गुणेहिं जाव भावेत्ता सील जाव भावेमाणस्स सीलव्वय जाव भावेमाणस्स ८।२५ सीलाइं जाव न भंजेसि ४।२१ सीलाइं जाव पोसहोववासाई २०२२ सीलाई वयाई न छड़े सि तो जीवियाओ २।२४ सुक्के जाव किसे ११६४ सूद्धप्पावेसाई जाव अप्पमहग्घा ७।१५,३५ सरादेवे गाहावइ अडढे छ हिरण्णकोडीओ जाव छ व्वया दस गोसाहस्सिएणं वएणं २१७-१६ २७-१७ वृत्ति ओ० सू० ५२ ५।३६ ११८४ ११५७ ११५७ ८।५३ ७१५४ २२२ २।२२ २।२२ भ० २०६४ ११४६ Page #910 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ ४१३-१६ १।११-१४,२१७-१६ २०३६,३७ ।३४,३५ तस्स धन्नाभारिया । सामी समोसढो जहा आणंदो तहेव पडिवज्जइ गिहिधम्म जहा कामदेवो जाव समणस्स सो वि दोच्चं पि तच्चं पि भणइ, कामदेवो वि जाव विहरइ हंभो! तं चेव भणइ सो वि तहेव जाव अणाढायमाणे हट्टतुट्ट जाव एवं वयासी हट्ठतुटु जाव गिहिधम्म हट्टतुटु जाव समणं हट्टतुट्ठ जाव हियए हट्ठतुट्ठ जाव हियए जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडि वज्जइ, नवरं एगाहिरण्णकोडी निहाणपउत्ता एगाहिरण्णकोडी वडिपउत्ता एगाहिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ता एगे वए दसगोसाहस्सिएणं जाव समणं हट्ठतट्ठा कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, २ ता एवं क्यासी खिप्पामेव लहुकरण जाव पज्जुवासइ ८२९,३० श२३ ११५१,५२ २०४८ ११७४८।४८ ८।२७,२८ ओ० सू०८० १।२३,२४ ११२३ ११२३ ७।३०,३१ ११२३,२४ ११४६-४६ हट्टतुट्ठा समणं हणेसि वा जाव अकाले हारविराइयवच्छं जाव दसदिसाओ हेऊहि य जाव वागरणेहि ७।३७ ७।२६ २०४० ७५० ओ० सू० ८० भ० ६।१४१-१४३; उवा०७।३३ ११५१ ७।२५ ओ० सू०४७ ६।२८ अंतगडदसाओ ३।२० अंतिए जाव पव्वइत्तए अज्जा जाव इच्छामि अणगारे जाए जाव विहरइ ३१७६ ८।२० ६१५२ ८.७ ना०१५।३५ Page #911 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ३२९२ ३१२३ ३३८६ ३३१०२ ३।७४ ५।११ ८८ अणुत्तरे जाव केवल अतुरियं जाव अडंति अपत्थिय जाव परिवज्जिए अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए अरहओ मुंडे जाव पव्वाहि अरिट्रनेमिस्स जाव पव्वइत्तए अहासुत्तं जाव आराहिया आघवणाहिक आपुच्छामि देवाणुप्पियाणं आसुरुत्ते जाव सिद्धे आहेवच्चं जाव विहरइ इच्छामि णं जाव उवसंपज्जित्ता ईसर जाव सत्थवाहाणं उच्च जाव अड उच्च जाव अडमाणं उच्च जाव अडमाणा उच्च जाव अडमाणे उच्च जाव अडामो उच्च जाव पडिलाभेइ उज्जाणे जाव पज्जुवासइ उज्जला जाव दुरहियासा उत्तर० उम्मुक्क जाव अणुप्पत्ते उरालेणं जाव धमणिसंतया उवागए जाव पडिदंसेइ उवागच्छित्ता जाव वंदइ ओहय जाव झियाइ ओहय जाव झियायइ करयल करेइ जहा गोयमसामी जाव अडइ काएणं जाव दो वि पाए कामा खेलासवा जाव विप्पजहियव्वा कुमारस्स चउत्थ जाव अप्पाणं ११६ ३।१०१ १।१४ ३।१०१ १।१४ ६७६ ६।५५ ३।२६,३० ६१७८ ६८० ३।२८,२६ वृत्ति भ० २।१०८ उवा० २।२२ ३८६ ३२७० ३।७६ ठा० ७.१३ नाभ १११।११४ ना० १११८७ ३।८६-६२ ना० ११श६ ३८७,८८ ना० ११५।६ भ० २।१०८ भ० २।१०६ ३।२४ २।२४ ३।२३ ३१२४,२५ ना० १११६६ ना० १११।१६२ ५।२६ ना० १५१०२० भ० २०६४ ३१६० ६१५२ ३।५० ८।१३ ६.८७ ३।१८ ५।१७ ३।४३ ५।२२६।३५,४१ ६१५४ ३३८८ ३७६ १११६ ८६ ३।४३ ना० १११।३४ ना० १।१२६ भ० २।१०७,१०८ वृत्ति ना० १।११०६ राय० सू० ६८८ ५।३१ Page #912 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८.३३ ११२१ ४७ ३।२१ ५।३१ ५।३१ २२५ ३।२० .३।३ ११५,६ ६।१,२ ८।१७,१८ ११५,६ ७१३ ११७ ७।१,२ ३।१ ८।१६ २१,२ ११५,६ ११५ १७ चउत्थ जाव भावेमाणी चउत्थ जाव भावेमाणे चउत्थस्स वग्गस्स निक्खेवग्रो छटुंछट्टेणं जाव विहरंति जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स जइ छट्ठस्स उक्खेवओ नवरं सोलस जइ णं भंते अट्ठमस्स वग्गस्स उक्खेवओ जाव दस जइ णं भंते तेरस जइ णं भंते सत्तमस्स वग्गस्स उक्खेवओ जाव तेरस जइ तच्चस्स उक्खेवओ जइ दस जइ दोच्चस्स वग्गस्स उक्खेवओ जहा अभओ नवरं हरिणेगमेसिस्स अट्ठमभत्तं पगेण्हइ जाव अंजलि जहा गोयम सामी तहा पडिदसेइ जहा गोयमो जाव इच्छामो जावज्जीवाए जाव विहरइ जाव संलेहणाकालं बहाए जाब विभूसिए ण्हाया जाव पायच्छित्ता तं महा जहा गोयमे तहा तीसे य धम्मकहा तीसे य धम्मकहा देहं जाव किलंत धारिणी सीहं सुमिणे नमसामि जाव पज्जुवासामि नयरीए जाव अडित्तए नवमस्स उक्खेवओ निग्गया जाव पडिगया निक्खमणं जहा महब्बलस्स जाव तमाणाए तहा जाव संजमइ ३१४७-४६ ६५७ ३।२२ ६१५३ ८.३६ ३।४४ ना०११११५३-५८ भ०२।११० भ० २।१०७ ६।५३ ८.१५ ओ० सू० ७० ओ० सू० २० १।१६,२० राय० सू० ६६३ ना० १११११०० वृत्ति १।१७ ओ० सू० ५२ भ० २।१०७ ३३१३ ३१६२ ६१५०,८८ ३६५ ३।११६ ६।३५ ३।२२ ३।११२ ११२ ना० ११११५ ३७८-८५ भ०११११६८,ना०।१।११५-१५१ Page #913 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६।६४ ५८ ५।२८ सा ६५१ ३।१०४ ३।३० ३१७७ ३१२६,२७ ६।१४ राय०सू० ६६३ ना० १११११५० ८८ ना० १११।१०१ ३६५ ३।२२,२३ ना० ११११११४ ३।२४,२५ ना० १११६४ ५।१२ ५।१२ ६।२८ ५।१४ ५।१३ ना० ११५८४ नेरइय जाव उववज्जंति पउमावईए य धम्मकहा पवावेइ जाव संजमियव्वं पारेइ जाव आराहिया पावयणं जाव अब्भुटेमि पुरिसं पाससि जाव अणुपवेसिए पोरिसीए जाव अडमाणा बहुयाहिं अणु लोमाहिं जाव आघवित्तए बारवईए उच्च जाव पडिविसज्जेइ भगवं जाव समोसढे विहरइ भूतं जाव पब्वइस्संति भूतं वा जाव पव्वइस्संति मालागारे जाव घाएमाणे मासियाए संलेहणाए बारस वासाई परियाए जाव सिद्धे मुंडा जाव पव्वइया मुंडा जाव पव्वयामि मुंडे जाव पव्वइए मुंडे जाव पव्वइत्तए मुंडे जाव पव्वइस्सइ रज्जे य जाव अंतेउरे रूवेणं जाव लावण्णेणं लहुकरणजाणपवरं जाव उवट्ठवेंति विण्णवणाहिं जाव परूवेत्तए संजमेणं जाव भावेमाणे संलेहणा जाव विहरित्तए संलेहणाए जाव सिद्धे समणेणं जाव छटुस्स समाणा जाव अहासुहं समोसढे सिरिवणे उज्जाणे अहा जाव विहरइ सरिसया जाव नलकूबरसमाणा सरिसियाणं जाव बत्तीसाए सिंघाडग जाव उग्घोसेमाणा १।२४ ३।३०,५।११ ५।२१,२२ ३१२० ६१५३ ५।१६ ३१५० ५।११ ३१५७ ३३३१ ६।४५ ६।८४ ८.१४ ३।१३ ६।१०२ ३।३० ३।१२ ३।३० ३३१० ५।१४ ३।२० ३।२० ३१२० ३।२० ना० १।१।१६ ३१६० ना० १।१६।१३३ ६१४५ ६।३३ ८।१४ श२४ ४७ ३।२० ना० १।५।१० ३।१६ ना० १११।६० ना० ११२६ Page #914 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५।१६ वृत्ति सिंघाडग जाव महापहपहेसु सिद्धे जाव प्पहीणे सिरिवणे विहरइ सुद्धप्पावेसाइं जाव सरीरे सोच्चा सोच्चा जं नवरं अम्मापियरो आपुच्छामि जहा मेहो महेलियावज्ज जाव वड्डियकुले ६।२८ ३।६२ ६।७५ ६।३६ १११६ ओ० सू० ५३ ना० ११११६ ३।६३-७३ ६१५१ ३।२५ ३।४२ ना० १११११०१-१०७;११०-११३ ना० १११।१०१ ओ०सू०२० ३।२५ हट्ट जाव ह्यिया हट्टतुटु जाव हियया अणुत्तरोववाइयदसाओ अंबगठिया इ वा एवामेव ३।४५ ३।३१; वृत्ति अमुच्छिए जाव अणज्झोववण्णे ३।२७ अं०६।५७ आयंबिलं नो अणायंबिलं जाव नावकंखति ३।२४ ३।२२ इमासिं जाव साहस्सीणं ३१५६ ३।५५ इ वा जाव नो सोणियत्ताए ३३३३ ३।३१ इ वा जाव सोणियत्ताए ३३६ ३।३१ उच्च जाव अडमाणे ३।२४ भ०२।१०६ उण्हे जाव चिट्ठ ३१३५ ३।३४ उरालेणं जहा खंदओ जाव सुहय चिट्ठइ ३।३० भ० २१६४ ऊरू जाव सोणियत्ताए ३१३५ ३३१ एवं जाव सोणियत्ताए ३१३४ ३।३१ एवामेव० ३।३६-४४,४६,४७,४६,५० गोयमे जाव एवं १२१० भ० २०७१ चंदिम जाव नवय० ३१५६ १८ जहा खंधओ तहा जाव हुयासणे ३१५२ भ०२।६४; मा०१।१२०२ जहा जमाली तहा निग्गओ। नवरं पायचारेणं । जाय जं नवरं अम्मयं भदं सत्थवाहिं आपुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए पव्वयामि । Page #915 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ** जाव जहा जमाली तहा आपुच्छइ । मुच्छिया । वृत्तपडिवत्तया जहा महब्बले जाव जाहे नो संचाइ जहा थावच्चापुत्तस्स जियसत्तुं आपुच्च छतचामराओ सयमेव जियसत्तू नियमणं करेति जहा थावच्चापुत्तस्य कण्हो जाव पव्वइए अणगारे जाए इरियासमिए जाब गुत्तबंभवारी 1 जाव उप्पि पासा विहरइ तरुणए जाव चिट्ठ तरुणिया एवामेव बिलमिव जाव आहारेइ मुंडावली वा मुंडे जाव पव्वइए सजमेणं जाव विहरइ संजमेणं जाव विहरामि सुक्कं o सुक्काओ जाव सोणियत्ताए सुपुष्णे सुकयत्वे कवलवखणे सोहम्मीसाण जाव आरणच्चुए अंतरष्णा जाब चरेज एवं जाव इमस्स एवं जाव चिरपरिगत ० एवं जाव परियति पत्थणिज्जं एवं चिरपरि रूसियव्वं जाव चरेज्ज रूसियव्वं जाव न सज्जियव्वं जाव न सई सज्जियव्वं जाव न सति हीलियव्वं जाव पणिहिंदिए ३।११-२१ १७ ३।५१ ३।४५ ३।५७ ३१३८ ३।६६ ३।६६ ३।५७ ३१३७ ३।३२ ३।५६ 815 पहा वागरणाई १०/१५ ५।१० ३२६ ५८ ४१५ १०/१७ १०।१५ १०/१७ १०।१६ १०।१६ भ० १।३३.११.११ ना० १११, ११५ ना० १।१।६३ ३।४३ ३।४३ ३।२७ ३।३१ ३।२२ ३।२७ ३।२७ ३।३१ ३।३१ ३।५८ ना० १।१।२११ १०।१४ ५।१ ३|१ ४/१३ ४११ १०/१४ * १०/१४ १०/१४ * Page #916 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवागसुयं १।८।१,२ १।४।२८ १११।२८ १।२।१,२ श२।६४ वृत्ति वृत्ति १७७ १।२।२४ १।३।१३ १२।२६ १।६।२३ १।१।४७,१।३।१६ १३१७ १।११७० १।१२ अं० ६१५७ ना० १।१।३३ १।२।१४ १।२।२४ १।६।१६ वृत्ति वृत्ति वृत्ति ओ० सू० २२ अट्ठमस्स उक्खेवओ अट्टि जाव महियगत्तं अतुरिय जाव सोहेमाणे अद्धहार जाव पट्ट मउडं अब्भणुण्णाए जाव बिलमिव अम्मयाओ जाव सुलद्धे जाओ अवओडय जाव उग्धोसिज्जमाणं अविणिज्जमाणंसि जाव झियामि असिपत्तेहि य जाव कलंबचीरपत्तेहि अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे अहम्मिए जाव लोहियपाणी अहम्मिए जाव साहस्सिए अहापडिरूव जाव विहरइ अहिमडे इ वा जाव ततो वि अणिटुतराए चेव जाव गंधे अहीण जाव जुवराया अहीण जाव सुरूवा अहीण जाव सुरूवे आसि जाव पच्चणुभवमाणे आसी जाव विहरइ आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आसुरुत्ते जाव साह? आहेवच्चं जाव विहरइ इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छति इट्टरूवे जाव सुरूवे इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था इरियासमिए जाव बंभयारी इहमागच्छेज्जा जाव विहरेज्जा उबरदत्ते निच्छूढे जहा उज्झियए उक्किट्ठि जाव करेमाणे उक्किट्टि जाव समुद्द० १।१।३६ १।६।२ १।२।७ १।२।१० १२।१६ १।३।१६ १।३।४१ १।६।३५ श२।७,११३७ १११११६ १११।२० २।१४१५ १।६।३४ १।१७० २।१।३१ १७।३४ ११३१४३ १।३।२४ ना० १०८।४२ श।४ ओ० सू० १५ ओ० सू० १४३ १२११४२ ११११४२ १।२।६४ ११२१६४ वृत्ति ना० १११।६६ ना० १।१९७ २।१।१५ १२११४१ ओ० सू० २७ ओ०सू० २१ १।२।५६ ११३।२४ ओ०सू० ५२ Page #917 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११७० १।२।१४ १२।१,२ १।२।१,२ १।२।१४,१५ वृत्ति वृत्ति १६४।३६ ११४।३५ ओ० सू०८२ ना० १११६३ वृत्ति १।१।५० १२।२४ वृत्ति उक्कोस नेरइएस ११३१६५ उक्खित्त जाव सूले० ११६ उक्खेवओ नवमस्स १९।१,२ उक्खेवओ सत्तमस्स ११७४१,२ उग्धोसिज्जमाणं जाव चिंता १।४।१२,१३ उज्जला जाव दुरहियासा १।११५६ उम्मुक्क जाव जोव्वणग० १।११७० उम्मुक्कबालभावा जोव्वणेण रूवेण लावण्णण य जाव अईव ११।३४ उम्मुक्कबालभावे जाव विहरइ श६।२६ उराले जाव लेस्से २।११२० उवगिज्जमाणे जाव विहरइ १।६।४८ उस्सुक्कं जाव दसरत्तं ११३१५२ एवं पस्समाणे भासमाणे गेण्हमाणे जाणमाणे ११११५० ओहय० २।२७ प्रोहय जाव झियाइ ११।२४;१९।१६ ओहय जाव झियासि श२।२५:१।६।१७ ओहय जाव पास श२।२५,११७ करयल० १।३।४०,५५,५६१।६।३८ करयल० १।३।५० करयल जाव एवं १।३।४४,१।४।२८ करयल जाव एवं १।३।५२,५३,१।६।३४ करयल जाव पडिसुणेति १।३।५३,६२,१।६।३४:१।६।२०,४० करयल जाव वद्धावेइ १९४५ करेइ जाव सत्थोवाडिए १।६।२३ कुमारे जाव विहरइ १।६।३६ १।११७० गंगदत्ता वि १७।३३ गामागर जाव सण्णिवेसा २।१।३१ गाहावई जाव तं धणे २।११२३ गिण्हावेइ जाव एएणं ११५।२७ घाएंति २ १।३।१४ चउत्थं छ? उत्तरेणं इमेयारूवे १।७।१०,११ चउत्थस्स उक्खेवओ ११४।१,२ १।२।२४ १।२।२४ १।११६६ १।३।४० १।३।४० १।१।६६ ओ० सू० ५६ १।३।५५ वृत्ति १४१४६६ १।१७० १२।५५ ओ० सू० ८६ वृत्ति श२०६४ ११३।१४ १२७।१२।१५ १।२।१,२ ०खुत्तो० Page #918 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ छटुंछट्रेणं जहा पण्णत्तीए पढम जाव जेणेव १।२।१२-१४ भ० २।१०६-१०८ छठुस्स उक्खेवओ १।६।१,२ १।२।१,२ छिदइ जाव अप्पेगइयाणं १।२।२८ १२।२४ जणसदं च जाव सुणेत्ता १।१।१६ ओ० सू० ५२ जहा विजयमित्ते जाव कालमासे कालं किच्चा ११७।३१,३२ १।२।५०,५१ जातिअंधे जाव आगितिमेत्ते १।१।६४ १।१।१४ जायसड्ढे जाव एवं १।१२५ ओ० सू० ८३ जाव पुढवी ११३।६५११४।३६ ११११७० ट्ठिइएसु जाव उववज्जिहिइ ११११७० १।११५७ पहाए जाव पायच्छित्ते १।३।४७,५५,१शहा४५ श२०६४ ण्हायाए जाव पायच्छित्ताए शक्षा५० श२६४ ण्हायाओ जाव पायच्छित्ताओ १२७।२० १।२।६४ व्हाया जाव पायच्छित्ता ११३।२४ १२।६४ तं चेव जाव से णं १।३।१५ ११२।१५ तंतीहि य जाव सुत्तरुज्जुहि १।६।२३ १।६।१८ तं महया जहा पढमं तहा २१११३२ २।१।१२; भ० ६।१५८ तच्चस्स उक्खेवो १।३।१,२ १।२।१,२ तह त्ति जाव पडिसुणेति १३।४६ ११११६६ ताओ जाव फले १७।२३ १७।१६ तीसे य० १।१।२३ ना० १११।१०० तेगिच्छियपत्तो वा जाव उग्घोसति १।१०।१३,१४ शक्षा२१,२२ तो णं जाव ओवाइणइ ११७२१ ११७१६ दसमस्स उक्खेवओ १।१०।१,२ १।२।१,२ दारगस्स जाव आगितिमित्ते १॥श२६ १।१।१४ नगरगोरूवा जाव भीया ११२।३४ १।२।३३ नगरगोरूवा जाव वसभा १२।३३ १।२।२४ नगरगोरूवाणं जाव वसभाण १।२।२८ ११२।२४ नगर जाव विणिज्जामि श२।२४ १।२।२४ निक्खेवओ १३।६६ ११११७१ निक्खेवो ११२१७४।१।४।४०, १।५।३०,११६१३८,१।७।३६१।८।२८,१।६।६० ११११७१ निच्छुभेमाणे अन्नत्थ कत्थइ सुई वा अलभ अण्णया कयाइ रहस्सियं सुदरिसणाए गिहं १।४।२६,२७ १।२।६२,६३ नीय जाव अडइ १७७ १।२।१५ पंचमस्स अज्झयणस्स उक्खेवओ ११५।१,२ १।२।१,२ पंच्चाणुव्वइयं जाव गिहिधम्म २।११३१ २११११३ पज्जेइ जाव एलमुत्तं १।६।२३ १।६।१४ Page #919 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहल० पावं जाय समज्जिण्ड पुढवीए संसारो तहेव पुढवी पुप्फ जाव गहाय पुरा जाव विहरद पुरिसे जाव निरयपरुिवियं पुब्वभवपुच्छ वागरेड पुव्वभवे जाव अभिसमण्णागया पुव्वाणुपुवि जाव जेणेव पुव्वाणुपुव्वि जाव दूइज्जमाणे पोराणाणं जाव एवं पोराणाणं जाव पच्चणुभवमाणे पोराणा जाव विहरइ फल एहि जाव छिप्परेणं फुट्टमाहि जाव विहरइ बहूणं गोरूवाणं ऊहे जाव लावणेहि बहूहि चुण्णप्पओगेहि य जाव अभियोगिता बहूहि जाय व्हाया भगवं जान जओ णं भगवं जाव पज्जुवासामो भवित्ता जाव पव्वइस्सइ भवित्ता जाव पव्वएज्जा मज्मण जान पडिसे महत्वं जाय पच्छि महत्वं जाव पाहुडं महावीरे जाव समोसरिए महिय जाव पडिसेहेति मासाणं जाब आगितिमेत्ते मासाण जाव दारियं मासाणं जाव पयाया मित्त ० मित्त● मित्त जाव अण्णाहि मित्त जाव परियणं मित्त जाव परियणेण ૪૬ १।७।२१ १.१.७० ११५२६ १।७।२३ १ १/४१,४२:१०२६५ १।२।१५ १४७।१२,१३ २।१।१५ १1१/२ २१३२ १०७।११ १ १/६६ १।३।६४।१।४।६१; १ | ५ | २८; १७३७ १ ८८,२६; १६५८ १|१०|१८ १३०४३ २।१।११ १।२।२६ १।१०१७ १।७।२५ ११.३४ १।१।२१ २।१।३५ २।१।३१ १।२।१५ १।३।५६ १।३।५५ १।१।१७ १०२२४९ १.१.६६ १६३१ १।७२६ १।३।६०६१।८।१७ १/७/२७ १।३।२८ १०९॥४७ १।९।५७ वृत्ति १ १/५१ १।३।६५ १।७।२१ १।१/४१ १११।४१ १०१ ४२,४३ वृत्ति ना० १ १/४ २।१।३१ १।२।१५ १।१/४१ ११.४१ १।३।२४ ना० १।१।६३ १।२।२४ १।२।७२ १/७/२३ १।१।३३ ओ०सू० ५२ २।१।१३ २।१।१३ भ० २११० १।३।४० १।२०४० वृत्ति वृत्ति १।१।६४ १।२।३१ १।२।३१ १।२।२७ १।७।१९ १।३।२४ १।२३७ १२/३७ Page #920 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मित्त जाव परिवुडा मित्त जाव परिबुडाओ मित्त जाय परिवुडे मिस जाव महिलाओ मित्त जावसद्धि मिल जान सद्धि मियादेवी जाव पडिजागरमाणी मुंडा जाव पव्वयंति च रट्ठे य जाव अंतेउरे राईसर जाव नो खलु अहं राईसर जाव पभियओ राईसर जाव प्यभियओ राईसर जाव सत्यवाह० राईसर जाव सत्यवाहाण राईसर जाव सत्यवाहेहि राया जाव जीईवयमाणे वेणुयाहि य जाव वायरासीहि संगयगय० सणाहाण य जाव वसभाण सणद्ध जाव पहरणे सणद्धबद्ध जाव पहरणेहि सण्णद्धबद्ध जाव प्पहरणा० सत्येहिय जाव नहच्छेयणेहि समणे जाव विहर समाणे सिपाडा तहेव जाव सुदरिसणाए समुप्पण्णे जाव तहेब निग्गए सागरोवम० सिधाम जाब एवं सिंघाडग जान पहेसु सुंदरथण सुबह जाव समज्जिणित्ता सुबाहुकुमारे जाव अलंभोगस मत्थं तुहियवा हम जाव पडिसेहिए ४७ १।२।५४ १।७/२३ १।३।५५ १।७।२६ १७/२३ १६/४५ १।१।२६ २।१।३१ १।१।५७ १।१।५७ २।१।१३ १/२/७२ १।१०१७ १।५।२२,२३ ११११५० १६/५७ १।६।३७ १।६।२३ १।२/७ १।२।२४ १।२।२५ १।३१४७ १।३।२४ १।६।२३ १।१।२० १।४।२२-२४ १।३।१५ १ १/७० १।१०।१३ १/२/५७३१।८।२१:२।१।२३ १।८।१३१।९१२१:१।१०।० १।२/७ २।१।१०,११ १।१।२९ १।३।५० १।२।३७ १०७/१९ ११२।३७ १०७ १९ १७१६ ११२।३७ १।१।१५ २।१।१३ १०१।५७ वृत्ति वृत्ति ११११५० ११११५० १।१।५० ओ०सू० ५२ १1१/५० १/६/३६ १।६।१६ वृत्ति १।२।२० १।२।१४ १।२।१४ १।२।१४ १।६।२२ ना० ११११६७ १।२।५७-५१ १।२।१५ १।१।५७ १।१।५३ १।१।५३ वृत्ति १४१।५१ ओ०सू० १४८, १४९ ओ०सू० २० १०३२४९ Page #921 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धि-पत्र मूलपाठ ०मणप्पत्ते अशुद्ध ०मणप्पत्ते जहेसु हीत्थ हत्थी कट्ट . विप्पइर-माण संकाणि वेरमणाइ पज्जुवासण्णयाए देवदेसंस कटु विप्पइरमाण संकामणि वेरमणाई पज्जुवासणाए देवसंदेस तुमं ४५५ ४६१ ५१६ तुम ५५१ ताई ५७५ ताइ °समुदएणं सस्सिरीएण ° समुदएण सस्सिरीएणं ५६८ दस ६१६ ७३० खंणमाणे अप्पेगइयाण दुप्पडियाणदे खणमाणे अप्पेगइयाणं दुप्पडियाणंदे ७३६ पा०६ पा०४ पा० २ पाठान्तर पटटंसि पिणद्धति आसुरुत्त ४८ पट्टसि पिणद्धेति आसुरुत्ते ५२२ परिशिष्ट अभिगयजीवेजीणं २८ अभिगयजीवाजीवेणं Page #922 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परस्परोपम जीवाजाम Jain Education Internat For Private a personal use only Valainelibrarvkot