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चौद्द समं अज्झयणं (तैयली)
२५१ कणगरहस्स रज्जासत्ति-पदं २१. तए णं से कणगरहे राया रज्जे य रट्टे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे
य 'पुरे य" अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइ-अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियानो छिदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिदइ,
अप्पेगइयाणं पायंगुलियाओ छिदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिदइ, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिदइ, अप्पेगइयाणं° नासापुडाइं कालेइ, अप्पेगइयाणं
अंगोवंगाइं वियत्तेइ ॥ पउमावईए अमच्चेण मंतणा-पदं २२. तए णं तीसे पउमावईए देवीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि
अयमेयारूवे अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु कणगरहे राया रज्जे य' 'रटे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्ण जाए, जाए पुत्ते वियंगेइअप्पेगइयाणं हत्थंगुलियानो छिदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुटुए छिदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलियानो छिदइ,अप्पेगइयाणं पायंगुटुए छिदइ, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीनो छिदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाइं फालेइ, अप्पेगइयाणं ° अंगमंगाई वियत्तेइ । तं जइ णं अहं दारयं पयायामि, सेयं खलु मम तं दारगं कणगरहस्स रहस्सिययं चेव सारवखमाणीए संगोवेमाणीए विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य 'रटे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइ-अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियाओ छिदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगू?ए छिदइ, अप्पेगइयाणं पायंगलियानो छिदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिदइ, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाई फालेइ, अप्पेगइयाणं अंगोवंगाई वियत्तेइ । तं जद्द णं अहं देवाणुप्पिया ! दारगं पयायामि, तए णं तुम कणगरहस्स रहस्सिययं चेव अणुपुत्वेणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे संवड्ढेहि। तए णं से
१. x (क, ख, ग, घ)। १।१।१६ सूत्रवद् अंगमंगाई। __ अत्रापि 'पुरे य' इति पाठो युज्यते । ५. वियंगेइ (क, ख, ग, घ); २१ सूत्रानुसारेण २. सं० पा० – एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्ठए अत्र 'वियत्तेइ' त्ति पाठेन भवितव्यम् । वि कण्णसक्कुलीयो वि नासापुडाइं।
अतोऽस्माभिः स एव स्वीकृतः । ३. वियंगेइ (क, घ)।
६. रहस्सिगतं (क); रहसिययं (ख, ग)। ४. सं० पा०-रज्जे य जाव वियंगेइ जाव ७. सं० पा०-रज्जे य जाव वियत्तेइ ।
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