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तेरसम अज्झयणं (मंडुक्के)
संपाविउकामस्स । पुविपि य णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए', 'थूलए मुसावाए पच्चक्खाए, थूलए अदिण्णादाणे पच्चक्खाए, थलए मेहणे पच्चक्खाए°, थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए। तं इयाणि पि तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवं, सव्वं असण-पाण-खाइम-साइमं पच्चक्खामि जावज्जीवं । जंपि य इमं सरीरं इटुं कंतं जाव' मा णं विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा
फुसंतु एयंपि य णं चरिमेहिं ऊसासेहि वोसिरामि त्ति कटु ॥ ४३. तए णं से दद्दुरे कालमासे कालं किच्चा जाव' सोहम्मे कप्पे ददुरवडिसए
विमाणे उववायसभाए ददुरदेवत्ताए उववण्णे । एवं खलु गोयमा ! ददुरेणं सा
दिव्वा देविड्ढी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया ॥ ४४. ददुरस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा ! चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता । से णं ददुरे देवे महाविदेहे वासे
सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ 'मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिइ। निक्खेव-पदं ४५. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते ।
-त्ति बेमि ॥ वृत्तिकृता समुद्धता निगमनगाथा
संपन्नगुणो वि जो', सुसाहु-संसग्गवज्जियो पायं।
पावइ गुणपरिहाणि, ददुरजीवोव्व मणियारो ॥१॥ अथवा
तित्थयर-वंदणत्थं, चलिओ भावेण पावए सग्गं । जह ददुरदेवेणं, पत्तं वेमाणिय-सुरत्तं ॥२॥
१. सं० पा०-पच्चक्खाए जाव थूलए। २. ना० १।१।२०६। ३. ना० १११।२११ ।
१५. ना० ११
४. सं० पा०-बूझिहिइ जाव अंतं । ५. ना० ११११७ । ६. जिप्रो (ख, ग)।
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