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________________ छटुं अज्झयणं (कुंडकोलिए) ४८६ पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकि डियाभूए किसे धमणिसंतए जाए ।। कुडकोलियस्स अणसण-पद ३६. तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल- . समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चितिर पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था –एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेण सुकके लुक्वे निम्मंसे अट्टिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। त अत्थि ता मे उट्ठाण कम्मे बले वोरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे उढाणे कम्मे बले वोरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-असिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणव कंखमाणे विहरइ ।। कुडकोलियस्स समाहिमरण पदं ४०. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए बहूहि सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्का रस य उवासगपडिमानो सम्मं कारणं फासित्ता, मासियाए सलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, पालाइय-पडिक्कते, समाहिपत्त, कालमासे काल किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरस्थिमे णं अरुणज्झए विमाणे देवत्ताए उववण्णे। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। ४१. से णं भंते ! कुंडकोलिए ताओ देवलागाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाण° अंतं काहिइ ॥ निक्खेव-पदं ४२. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं छट्ठस्स अझयणस्स अयमढे पण्णत्ते ° ॥ १. उवा० ११५७ । २. सं० पा०-निक्खेवो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003553
Book TitleAngsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages922
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size15 MB
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