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________________ विवाग सुर्य २३. तए णं तस्स सुमुहस्स' गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धेणं 'गाहगसुद्धेणं दायगसुद्धेणं" तिविणं तिकरणसुद्धेणं सुदत्ते अणगारे पडिलाभिए समाणे संसारे परितीकए', मणुस्साए निबद्धे, गेहंसि य से इमाई पंच दिव्वाई पाउब्भूयाई, [तं जहा --- वसुहारा वुट्ठा, दसद्धवण्णे कुसुमे निवातिते", चेलुक्खेवे कए, ग्राहयात्री देवदुंदुभो, तरावि य णं श्रागासंसि 'अहो दाणे अहो दाणे " घुट्टे य' । ]हत्थिणाउरे सिंघाडग ँ--तिग-चउक्क चच्चर- चउम्मुह महापह पहेसु बहुजणो ग्रण्णमण्णस्स एवं इक्खइ एवं भासेइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ - धण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई पुणे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई एवं - कत्थे कयलक्खणे ण सुलद्धे णं सुमुहस्स गाहावइस्स जम्मजीवियफले, जस्स णं इमा एयारूवा उराला माणुस्सिड्डी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया || o तं धणे णं देवाणुपिया ! सुमुहे गाहावई पुण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई एवं- कयत्थे णं कयलक्खणे णं सुलद्धे णं सुमुहस्स गाहावइस्स जम्मजीवियफले, जस्स णं इमा एयारूवा उराला माणुस्सिड्डी लद्धा पत्ता अभि ८०६ समण्णा गया || २४. तए से सुमुहे गाहावई बहूई वाससयाई प्राउयं पालेइ, पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव हत्थिसीसे नयरे प्रदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे | २५. तए णं सा धारिणी देवी सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ग्रोहीरमाणी - श्रोही रमाणी तहेव सीहं पासइ, सेसं तं चैव जाव उप्पि पासाए विहरइ । तं एवं खलु गोयमा ! सुबाहुणा इमा एयारूवा माणुसिड्डी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया || २६. पभू णं भंते ! सुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता प्रगारा अणगारयं पव्वइत्तए ? हंता पभू ॥ २७. तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ || २८. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ हत्थिसीसाओ नयराओ पुप्फकरंडयउज्जाणाओ कयवणमालपियजक्खाययणाश्रो पडनिक्खमइ, पडनिमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ १. 'तस्स सुमुहस्स' त्ति विभक्तिपरिणामात् 'तेन सुमुहेने' ति द्रष्टव्यम् (बृ.) । २. दायगसुद्धेणं पडिगासुद्धेणं (घ ) । ३. परित्तक (घ ) । ४. निवाडिए ( क्व ) | Jain Education International ५. अहोदाणं २ (घ) । ६. कोष्ठकवर्त्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । ७. सं० पा० - सिंघाडग जाव पहेसु । ८. सं० पा० - गाहावई जाव तं धणे । ६. वि० २।११६-११ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003553
Book TitleAngsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages922
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size15 MB
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