________________
६. विवागसूर्य
क.
ख.
ग.
है। बालावबोध पंचपाठी तक हैं। लेखन संवत् १६६७
E
पंक्तियां नीचे में १ ऊपर में ११ तक हैं। अक्षर २८ से ३५ लेखक सुदर्शन प्रति काफी शुद्ध है।
I
मदनचन्दजी गोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) २६० से २८५ तक । ( मूलपाठ) पंक्तियां ५ से ६ तक । कुछ पंक्तियां अधूरी तथा कुछ अस्पष्ट हैं । प्रति प्रायः शुद्ध है। लेखन संवत् ११५६ आश्विन सुदि ३ सोमवार पुष्पिका काफी लम्बी है पर अस्पष्ट है । प्रति की लम्बाई १४ इंच तथा चौड़ाई १ लिखी हुई है ।
।
इंच है और तीन कोष्ठकों में
मूलपाठ
यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र ३२ तथा पृष्ठ ६४ हैं । पत्रों की लम्बाई १० तथा चौड़ाई ४१ इंच है । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। कहीं-कहीं भाषा का अर्थ लिखा हुआ है । प्रति प्रायः शुद्ध है। अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है:
――
शुभं भवतु लेखकपाठकयोः । संवत् १६३३ वर्षे आसो वदि ८ रवि लिखितं छ ।
मूलपाठ-
यह प्रति हनूतमलजी मांगीलालजी बँगानी बीदासर से प्राप्त हुई। इसके पत्र ३५ तथा पृष्ठ ७० हैं । प्रत्येक पत्र ११३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४५ से ४६ तक अक्षर हैं। प्रति अशुद्धि बहुल है। अन्तिम प्रशस्ति में-
एक्कारस्यं अंगं समत्तं ॥ ग्रंथाग्र १२१६ ॥ टीका ६०० एतस्या | लिपि संवत् नहीं है, पर पत्रों की जीर्णता तथा अक्षरों की लिखावट से यह प्रति करीब ४०० वर्ष पुरानी होनी चाहिए।
वृ. एम० सी मोदी तथा वी० जी० चोकसी द्वारा सम्पादित तथा गुर्जरग्रंथरत्न कार्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण १९३५ 'विवागस्यं ।
Jain Education International
सहयोगानुभूति
जैन-परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम याचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनव्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org