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ख.
५. पन्हावागरणाई -
क. ताडपत्रीय ( फोटो प्रिंट) मूलपाठ --
पत्र संख्या २२८ से २५६
ग.
घ.
च.
क्व.
की लम्बाई १० इंच तथा चौड़ाई ४ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति शुद्ध तथा 'त' प्रधान है। अंत में लेखन-संवत् तथा लिपिकर्ता का नाम नहीं है केवल निम्नोक्त वाक्य हैं
॥ छ ॥ अणुत्तरोववाइयदशांगं नवमं अंगं समत्तं छ । श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः छ छः प्रति का अनुमानित समय १६०० है ।
१५
पंचपाठी हस्तलिखित अनुमानित संवत् १२वीं सदी का उत्तरार्धं ।
।
यह प्रति गया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र ८ हैं। प्रत्येक पत्र १० X ४ इंच है। मूलपाठ की पंक्तियां १ से १२ तथा पंक्ति में लगभग २३ से ३५ अक्षर हैं। चारों ओर वृत्ति तथा बीच में बावड़ी है । अन्तिम प्रशस्ति की जगह -- लिखा है । लेखन कर्ता तथा लिपि-संवत् का १३वीं शताब्दी की होनी चाहिए ।
ग्रंथाग्र १२५० शुभं भवतु कल्याणमस्तु | उल्लेख नहीं है किन्तु अनुमानतः यह प्रति
त्रिपाठी (हस्तलिखित ) --
गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त इसके पत्र १११ हैं। प्रत्येक पत्र १०x४ इंच है। मूल पाठ की पंक्तियां १ से ८ तथा प्रत्येक पंक्ति में ३६ से ४६ तक लगभग अक्षर हैं। ऊपर नीचे दोनों तरफ वृत्ति तथा बीच में कलात्मक बावड़ी है । प्रति के उत्तरार्ध के बीच बीच के कई पन्ने लुप्त हैं। अंत में सिर्फ ग्रंथा १२५० । ।। श्री ।। छ || || लिखा है । लिपि संवत् अनुमानतः १६वीं शताब्दी होना चाहिए ।
मूलपाठ (सचित्र) --
पूनमचंद दुधोड़िया, छापर द्वारा प्राप्त। इसके पत्र २७ हैं। प्रत्येक पत्र १२४५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५१ से ६० तक अक्षर हैं । बीच में बावड़ी है तथा प्रथम दो पत्रों में सुनहरी कार्य किए हुए भगवान् महावीर और गौतम स्वामी के चित्र हैं । लेखन संवत् नहीं है पर यह प्रति अनुमानतः १५७० के लगभग की होनी चाहिए। अशुद्धि बहुल है।
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मूलपाठ तथा टब्बा की प्रति-
गया 'पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त पत्र संख्या ५३ ।
यह प्रति वर्तमान में जैन विश्व भारती, लाडनूं में है। इसके पत्र १०३ तथा पृष्ठ २०६
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