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सुनक्षत्र और ऋषिदास-ये तीन अध्ययन प्राप्त हैं। प्रथम वर्ग में वारिषेण और अभय-ये दो अध्ययन प्राप्त हैं, अन्य अध्ययन प्राप्त नहीं हैं। विषय-वस्तु
प्रस्तुत आगम में अनेक राजकुमारों तथा अन्य व्यक्तियों के वैभवपूर्ण और तपोमय जीवन का सुन्दर वर्णन है। धन्य अनगार के तपोमय जीवन और तप से कश बने हए शरीर का जो वर्णन है वह साहित्य और तप दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।
पण्हावागरणाई नाम-बोध
प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का दसवां अंग है। समवायांग सूत्र और नंदी में इसका नाम 'पण्हावागरणाई' मिलता है। स्थानांग में इसका नाम 'पण्हावागरणदसाओ' है। समवायांग में 'पण्हावागरणदसासु'-यह पाठ भी उपलब्ध है। इससे जाना जाता है कि समवायांग के अनुसार स्थानांग-निर्दिष्ट नाम भी सम्मत है । जयधवला में 'पण्हवायरणं' और तत्त्वार्थवातिक में 'प्रश्नव्याकरणम्' नाम मिलता है। विषय-वस्तु
प्रस्तुत आगम के विषय-वस्तु के बारे में विभिन्न मत प्राप्त होते हैं। स्थानांग में इसके दस अध्ययन बतलाए गए हैं-उपमा, संख्या, ऋषि-भाषित, आचार्य-भाषित, महावीर-भाषित, क्षोमक प्रश्न, कोमल प्रश्न, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न और बाहु प्रश्न । इनमें वणित विषय का संकेत अध्ययन के नामों से मिलता है।
समवायांग और नंदी के अनुसार प्रस्तुत आगम में नाना प्रकार के प्रश्नों, विद्याओं और दिव्य-संवादों का वर्णन है। नंदी में इसके पैतालिस अध्ययनों का उल्लेख है । स्थानांग से उसकी
१. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र ६८ ।
(ख) नंदी, सूत्र ६० । २. ठाणं १०।११०। ३. (क) कसायपाहुड, भाग १ पृष्ठ १३१ : पण्हवायरणं णाम अंग।
(ख) तत्त्वार्थवार्तिक १२० : "प्रश्नव्याकरणम् । ४. ठाणं १०१११६:
पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-उवमा. संखा, इसिभासियाई, आयरियभासियाई,
महावीरभासियाई, खोमगपसिणाई, कोमलपसिणाई, अद्दागपसिणाई, अंगुटुपसिणाई बाहुपसिणाई । ५. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १८:
पण्हावागरणेसु अठ्ठत्तरं पसिणसय अठ्ठत्तरं अपसिणसयं अठ्ठतरं पसिणापसिणयं विज्जाइसया,
नागसुवणेहि सद्धि दिव्वा संवाया आघविज्जति । (ख) नंदी, सूत्र ६०
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