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पण्हावागरणाई
१४. थावरकाए य सुहुम-बायर-पत्तेयसरीर-नाम-साधारणे अणते हणंति अविजाणतो
य परिजाणो य जीवे इमेहि विविहेहिं कारणेहिं, 'किं ते ?करिसण-पोक्खरणी-वावि-वप्पिण-कूव-सर-तलाग-चिति-वेदि-खातिय-आरामविहार-थूभ-पागार- दार - गोउर - अट्टालग - चरिय-सेतु-संकम'-पासायविकप्पभवण-घर-सरण-लेण-श्रावण - चेतिय - देवकल - चित्तसभ-पव-पायतण-पावसहभूमिघर-मंडवाण य कए, भायण-भंडोवगरणस्स विविहस्स य अट्ठाए पुढविं
हिंसंति मंदबुद्धिया ।। १५. जलं च मज्जणय-पाण-भोयण-वत्थधोवण-सोयमादिएहिं ।। १६. पयण-पयावण-जलावण-विदंसणेहिं अगणि ।। १७. सुप्प-वियण-तालयंट-पेहुण-मुह-करयल-सागपत्त वत्थमादिएहिं अणिलं ।। १८. अगार-परियार-भक्ख - भोयण - सयण - प्रासण-फलग-मुसल -उक्खल-तत-वितत
आतोज्ज- वहण - वाहण-मंडव-विविहभवण-तोरण-विडंग'-देवकुल- जालय-अद्धचंद-निज्जूह-चंदसालिय-वेतिय" -णिस्सेणि-दोणि-चंगेरि-खील-मेढक-सभ-प्पवपावसह-गंध-मल्ल - अणुलेवण-अंबर-जुय- नंगल-मइय-कुलिय-संदण-सीया-रहसगड-जाण-जोग्ग - अट्टालग - चरिअ - दार-गोपुर- फलिह-जंत-सूलिय"-लउडमुसुंढि-सतग्घि-बहुपहरण-आवरण-उवक्खराण कते । अण्णेहि य एवमादिएहिं बहूहि कारणसतेहिं हिंसंति ते" तरुगणे, भणियाभणिए य एवमादी सत्ते
सत्तपरिवज्जिया उवहणति दढमूढा दारुणमती ।। १६. कोहा माणा माया लोभा 'हस्स रती अरती सोय" वेदत्थ-'जीव-धम्म-अत्थ
कामहेउं',१९ सवसा अवसा अट्ठा अणट्ठाए य तसपाणे थावरे य हिंसंति मंदबुद्धी। सवसा हणंति, अवसा हणंति, सवसा अवसा दुहनो हणंति ।
१. कि तत् तद्यथेति वा (वृ)।
१०. निज्जूहग (घ)। २. पोक्खरिणी (क, ग)।
११. वेदिय (क्व)। ३. वेति (क, ख)।
१२. मलिय (क)। ४. गोपुर (क, ग)।
१३. चरित (क, ग)। ५. संकमण (ख)।
१४. सूलय (क, ख, घ, वृपा); मूसलय (ग)। ६. एतदादिभिः कारण रिति प्रक्रमः (वृ)। १५. मुसढि (क, घ)। ७. जलण जलावण (ख, च)।
१६. कए (क, ग, घ)। ८. तालएंट (क, घ); तालवंट (ख); तालविंट १७. X (क, ग)। (च)।
१८. इह पंचमीलोपो दृश्यः । ६. विटंग (ख)।
१६. जीयकामत्थधम्महेउ (क, ख, घ, च)।
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