SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 742
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छटुं अज्झयणं (पढम संवरदारं) ६८५ अहिंसा-माहप्प-पदं ६. एसा भगवती अहिंसा, जा सा अपरिमियनाणदंसणधरेहिं सीलगुण-विणय-तव-संजमनायकेहि तित्थंकरेहिं सव्वजगवच्छलेहि तिलोगमहिएहि जिणचंदेहि सुट्ठदिट्ठा, ओहिजिणेहि विण्णाया, उज्जुमतीहिं विदिट्ठा, विपुलमतीहिं विदिता', पुव्वधरेहि अधीता, वेउव्वीहि पतिण्णा। आभिणिबोहियनाणीहि सुयनाणीहि मणपज्जवनाणीहि केवलनाणीहिं ग्रामोसहिपत्तेहि खेलोसहिपत्तेहि जल्लोसहिपत्तेहिं विप्पोसहिपत्तेहि सव्वोसहिपत्तेहि बीजबुद्धीहि कोदबुद्धीहि पदाणुसारीहि संभिण्णसोतेहि सुयधरेहि मणबलिएहिं वयिबलिएहिं कायबलिएहिं नाणबलिएहिं दंसणबलिएहिं चरित्तबलिएहिं खीरासवेहि महुअासवेहिं सप्पिासवेहि अक्खीणमहाणसिएहिं चारणेहिं विज्जाहरेहि चउत्थभत्तिएहिं 'छट्ठभत्तिएहिं अट्ठमभत्तिएहिं एवं-दसम-दुवालसचोद्दस-सोलस - अद्धमास - मास - दोमास-चउमास-पंचमास"-छम्मासभत्तिएहि उक्खित्तचरएहि निक्खित्तचरएहिं अंतचरएहिं पंतचरएहिं लूहचरएहिं समुदाणचरएहि अण्णइलाएहि मोणचरएहि संसट्ठकप्पिएहितज्जायससट्ठकप्पिएहि उवनिहिएहि सुद्धेसणिएहि संखादत्तिएहिं दिट्ठलाभिएहि अदिट्ठलाभिएहिं पुट्ठलाभिएहि आयंबिलिएहि पुरिमड्डिएहिं एक्कासणिएहिं निव्वितिएहिं भिण्णपिंडवाइएहि परिमियपिंडवाइएहि अंताहारेहिं पंताहारेहिं अरसाहारेहि विरसाहारेहि लहाहारेहिं तुच्छाहारेहि अंतजीवीहिं पंतजीवीहि लूहजीवीहि तुच्छजीवीहि उवसंतजीवीहि पसंतजीविहि विवित्तजीवी हिं अक्खीरमहुसप्पिएहि अमज्जमंसासिएहिं ठाणाइएहिं पडिमट्ठाईहि ठाणुक्कडिएहि वीरासणिएहि सज्जिएहि डंडाइएहि लगंडसाईहिं एगपासगेहि अायावएहि अप्पाउएहि अणिठ्ठभएहिं अकंडूयएहि धुतकेसमंसु-लोमनखेहि सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्केहि समणुचिण्णा। सुयधरविदितत्थकायबुद्धीहि । धीरमतिबुद्धिणो य जे ते प्रासी विस-उग्गतेयकप्पा निच्छय-ववसाय-पज्जत्तकयमतीया णिच्चं सज्झायज्झाण-अणबद्धधम्मज्झाणा पंचमहव्वयचरित्तजुत्ता समिता समितीसु समितपावा छव्विहजगवच्छला" निच्चमप्पमत्ता, एएहि अण्णेहि य जा सा अणुपालिया भगवती ॥ १. सव्वजगजीव ° (क)। ७. ठाणुक्कुडुएहिं (क)। २. विविदिता (घ)। ८. समनुपालितेति सम्बन्धः (वृ)। ३. सप्पियासवेहि (ख, ग, घ, च)। ६. मिच्छत्तकयमतीया (ख, घ); विणीयपज्जत्त४. एवं जाव (क, ख, ग, घ)। कयमतीया (वृपा)। ५. अक्खित्त° (क)। १०. छविहजगजीववच्छला (क)। ६. पडिमट्ठाइएहिं (ख, घ, च)। ११. एएहि य (घ, च)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003553
Book TitleAngsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages922
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy