SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 827
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७७० विवागसुयं य संडपट्टे य पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता उत्ताणए पाडेइ, लोहदंडेणं मुहं विहाडेइ, विहाडेत्ता अप्पेगइए तत्ततंबं पज्जेइ, अप्पेगइए तउयं पज्जेइ, अप्पेगइए सीसगं पज्जेइ, अप्पेगइए कलकलं पज्जेइ, अप्पेगइए खारतेल्लं पज्जेइ, अप्पेगइयाणं तेणं चेव अभिसेगं करेइ ।। अप्पेगइए उत्ताणए पाडेइ, पाडेत्ता प्रासमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए हत्थिमुत्तं पज्जेइ', प्पेगडए उदमत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए गोमत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए महिसमतं पज्जेइ, अप्पेगइए अयमुत्तं पज्जेइ, अप्पेगइए ° एलमुत्तं पज्जेइ । अप्पेगइए हेट्ठामुहए पाडेइ छडछडस्स' वम्मावेइ, वम्मावेत्ता अप्पेगइए तेणं चेव प्रोवील दलयइ। अप्पेगइए हत्थंडुयाई बंधावेइ, अप्पेगइए पायंडुए बंधावेइ, अप्पेगइए हडिबंधणं करेइ, अप्पेगइए नियलबंधणं करेइ, अप्पेगइए संकोडियमोडियए' करेइ, अप्पेगइए संकलबंधणं करेइ, अप्पेगइए हत्थच्छिण्णए करेइ', 'अप्पेगइए पायच्छिण्णए करेइ, अप्पेगइए नक्कछिण्णए करेइ, अप्पेगइए उछिण्णए करेइ, अप्पेगइए जिब्भछिण्णए करेइ, अप्पेगइए सीसछिण्णए करेइ, अप्पेगइए ° सत्थोवाडियए करेइ ।। अप्पेगइए वेणुलयाहि य', 'अप्पेगइए वेत्तलयाहि य, अप्पेगइए चिचालयाहि य, अप्पेगइए छियाहि य, अप्पेगइए कसाहि य, अप्पेगइए ° वायरासीहि य हणावेइ। अप्पेगइए उत्ताणए कारवेइ, कारवेत्ता उरे सिलं दलावेइ, दलावेत्ता तो लउड छुहावेइ, छुहावेत्ता पुरिसेहिं उक्कंपावेइ । अप्पेगइए तंतीहि य", 'अप्पेगइए वरत्ताहि य, अप्पेगइए वागरज्जूहि य, अप्पेगइए वालय ° सुत्तरज्जूहि य हत्थेसु य पाएसु य बंधावेइ, अगडंसि 'प्रोचूलं बोलगं१२ पज्जेइ। अप्पेगइए असिपत्तेहि य", "अप्पेगइए करपत्तेहि य, अप्पेगइए खुरपत्तेहि य अप्पेगइए° कलंबचीरपत्तेहि य पच्छावेइ, पच्छावेत्ता खारतेल्लेणं अब्भंगावेइ । १. खंडपट्टे (क, ख, ग, घ)। २. सं० पा०-पज्जेइ जाव एलमुत्तं । ३. थलथलस्स (क, घ)। ४. हत्थुडु (ख); हत्थंड ° (ख); हत्थियं (घ)। ५. मोडिए (व)। ६. संपा०-करेइ जाव सत्थोवाडियए। ७. सं० पा०-वेणलयाहि य जाव वायरासीहि। ८. सिर (क)। ६. लउलं (क, घ); नउलं (ख)। १०. ओकंपावेइ (क)। ११. सं० पा०-तंतीहि य जाव सुत्तरज्जूहि । १२. ओलंवालगं (क); उचूलंपालगं (ख); उचूलवालगं (ग) उचूलपाणग (घ); ओचूल वालगं (ह० व)। १३. पाययति खादयतीत्यादि लौकिकीभाषा कारयतीति तु भावार्थः (व)। १४. सं० पा०-असिपत्तेहि य जाव कलंबचीर पत्तेहि। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003553
Book TitleAngsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages922
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy