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________________ पढमं अभयणं ( उक्खित्तणाए ) १. कल्लाण ( ग ) । २. कल्ला (क, ख, ग ) । ३. कयाभरणे ( ग ) । ४. मुद्दिया - पिंगलंगुलीए सुद्धोदहिं पुणो पुणो कल्लाणगः - पवर- मज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसहि बहुविहेहि कल्लाणग - पवर- मज्जणावसाणे पम्हल- सुकुमाल - गंधकासाइलूहियंगे अहय - सुमहग्घ-दूसरयण- सुसंवुए सरस- सुरभि गोसीस-चंदणाणुलित्तगत्ते सुइमाला-वण्णगविलेवणे ग्राविद्ध-मणिसुवणे कप्पिय-हारद्धहार-तिसरयपालंब-लंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसो हे पिणद्धगेवेज्ज-अंगुलेज्जग-ललियंगयललियकयाभरणे नाणामणि- कडग तुडिय-थंभियभुए हिरू सस्सिए कुंडलुज्जोइयाणणे मउड- दित्तसिरए हारोत्थय-सुकय-रयवच्छे 'मुद्दिया - पिंगलं - गुलीए पालंव - पलंवमाण-सुकय-पडउत्तरिज्जे" नाणामणिकणगरयण-विमल - महरिह-निउणोविय- मिसिमिसित' - विरइय-सुसिलिट्ठ - विसि लट्ठ-संठिय-पसत्थ विद्ध-वीरवलए, किंबहुणा ? कप्परुक्खए चेव सुअलंकिय' - विभूसिए नरिंदे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे मंगल-जयसद्द-कयालोए ं ‘ग्रणेगगणनायग- दंडनायग राईसर- तलवर - माडंबिय कोडुंबिय - मंति- महामंति- गणग - दोवारिय-ग्रमच्च - चेड - पीढमद्द - नगर-निगम-सेट्ठि सेणावइसत्थवाह- दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवलमहामेहनिग्गए विव गहगण - दिप्पंतरिक्खतारागणाण मज्भे ससि व्व पियदंसणे नरवई मज्जणघराम्रो पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसणे ॥ २५. तए णं से सेणिए राया अप्पणी दूरसामंते उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दा - सणाइं— सेयवत्थ-पच्चुत्थुयाई" सिद्धत्थय" - मंगलोवयार- कय"-संतिकम्माई - रावेर, रावेत्ता नाणामणिरतणमंडियं ग्रहियपेच्छणिज्जरूवं महग्घवरपट्टणुयं सह बहुभत्तिसय-चित्तठाणं ईहामिय उस भ-तुरय-नर-मगर- विहग वालग पालंब - पलंबमाणसु-डउत्तरिज्जे (क, ख, ग ) । ५. ० करणगरयण (क, ग ) । ६. मिसिमित (क, घ) । ७. अलंकिय (क, ख, घ) । ८. सकोरिंट (घ) | ६. अत्र औपपातिकस्य पाठक्रमो अस्माद् भिन्नो वर्तते । अर्थसमीक्षया सचाधिकः संगतोप्य Jain Education International ११ ; १०. पच्चत्थयाई ( क ) ; पच्चत्थुयाई ( ग ) | ११. सिद्धत्थ ( क, ख, ग ) । १२. कत ( ग ) । स्ति -- ' कयालोए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अणेगगणनायगदंडनायग- राईसर- तलवर- माटुंबिय कोडुंबिय - इब्भ - सेट्ठि - सेणावइ - सत्थवाह दूय-संधिवालसद्धि संपरिवुडे धवल - महामेहणिग्गए इव गगण. दिप्पंत- रिक्ख तारागणाण मज्भे ससिव्व पिअदंसणे णरवइ जेणेव (ओ० सू० ६३) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003553
Book TitleAngsuttani Part 03 - Nayadhammakahao Uvasagdasao Antgaddasao Anuttaraovavai Panhavagarnaim Vivagsuya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages922
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size15 MB
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