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पावागरणाई सव्वजग-जीव- वच्छलेहि तिलोय महिएहिं जिणर्वारिदेहिं एस जोणी जगाणं दिट्ठा न कप्पते' जोणिसमुच्छेदोत्ति, तेण वज्जंति समणसीहा ॥
सणिहि-पदं
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६. जंपि य ओदण - कुम्मास गंज- तप्पण-मंथु भुज्जिय- पलल-सूप - सक्कुलि-वेढिम-वरसरक' - चुण्णकोसग - पिंड - सिरिणि वट्ट मोयग खीर. दहि- सप्पि - नवनीत-तेल्लगुड-खंड -मच्छंडिय. मधु मज्ज-मंस-खज्जक वंजणविधिमादिकं पणीयं उवस्सए परघरे व रण्णे न कप्पति तंपि सणिहिं काऊण सुविहियाणं ||
प्रकम्प भोयण-पदं
७. जंपि य उद्दिठविय-रचितग-पज्जवजात-पकिण्ण पाउकरण- पामिच्चं, मीसककीड - पाहुडं वा, दाणट्ट- पुण्णपगडं, समण-वणीमगट्टयाए व कयं पच्छाकम्मं पुरेकम्मं नितिकं मविखयं प्रतिरिक्तं मोहरं चेव सयंगाहमाहड' मट्टिश्रोवलित्तं, अच्छेज्जं चेव प्रणीसट्टं, जं तं तिहीसु' जण्णेसु ऊसवेसु य अंतो व्व बहिं व होज्ज समाए ठवियं हिंसा सावज्ज-संपत्तं न कप्पति तंपि य परिघेत्तुं ॥ कपभोयण-पदं
८. ग्रह केरिसयं पुणाइ कप्पति ?
जं तं एक्कारसपिंडवायसुद्धं किणण-हणण- पयण- कयकारियाणु मोयण-नवकोहि सुपरिसुद्ध, दसहि य दोसेहिं विप्पमुक्कं उग्गम उप्पायणे सणासुद्धं, ववगय-चुय-चइय-चत्तदेहं च फासूयं च ववगयसंजोग मणिगालं, विगयधूमं, छट्ठा - निमित्तं, छक्कायपरिरक्खणट्ठा हणिहणि फासुकेण भिक्खेण वट्टियव्वं ॥ गाविस णिहि-पदं
६. जंपि य समणस्स सुविहियस्स उ रोगायंके बहुप्पकारंमि समुप्पण्णे, वाताहिकपित्तसिंभाइरित्तकुविय तहसण्णिवायजाते, उदयपत्ते उज्जल-बल- विउल-तिउलकक्खड - पगाढ- दुक्खे, प्रसुभ- कडुय - फरुस - चंडफलविवागे महब्भये जीवियंतकरण सव्वसरीर-परितावणकरे न कप्पति" तारिसे वि तह अप्पणी परस्स वा श्रोसहभेसज्जं भत्त-पाणं च तंपि सष्णिहिकयं ॥
१. कप्पती (क, ग, घ, च) ।
२. विसारक ( क ) ।
३. गुल ( ग, घ, च) ।
४. काउ ( ग ) ।
५. सयगाह ० ( घ च ) ।
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६. तिहिसु ( क च ) ।
७. चयिय ( क ) ; चविय (घ ) ।
हणि-हणि (क, ग, घ ) ।
८.
० जाते व्व (क, ग, घ, च) ।
ε.
१०. कप्पती ( क ) ।
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