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प्रथम अधिकार
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अर्थः- लोक की पूर्व पश्चिम भाग की सम्पूर्ण परिधि कुछ अधिक ३६ राजू प्रमाण जानना चाहिये ||७८ ॥
विशेषार्थ :- लोक को पूर्व पश्चिम दिशा से देखने पर उसमें बस नाली के द्वारा बनाये गये दो त्रिभुज अधोलोक में और चार त्रिभुज ऊर्ध्व लोक में दिखाई देते हैं, जिनके कारणों को परिधि क्रमशः १५० राजू और १६ राजू है । लोक के ऊपर की चौड़ाई १ राजू और नीचे की चौड़ाई ७ राजू प्रमाण है, इस प्रकार पूर्व पश्चिम अपेक्षा लोक को सम्पूर्ण परिधि (१५०+१६+१+७) = ३६६६ राजू प्रमाण है । यह परिधि साधिक ३६ राजू कैसे है ? इसका उत्तर ज्ञात करने के लिये त्रिलोकसार की गा० १२२ दृष्टव्य है ।
ख्यातास्य परिधिर्षक्षैदं क्षिणोत्तर पार्श्वयोः ।
मूलाग्रयोश्च रज्जुद्विचत्वारिंशमिता स्मृता ॥७६॥
अर्थः- लोक की दक्षिणोत्तर दिशा में दोनों पार्श्वभागों की तथा मूल और अग्रभाग की सम्पूर्ण परिधि दक्ष - ज्ञानी जनों के द्वारा ४२ राजू प्रमाण कही गई है ॥७६॥
विशेषार्थ :- लोक को ऊँचाई वह राजू प्रमाण है और दक्षिणोत्तर लोक सर्वत्र सात राजु चौड़ा है, अतः लोक के ऊपर की ७ राजू चौड़ाई, नीचे की सात राजू चौड़ाई और दोनों पार्श्व भागों की १४, १४ राजू ऊँचाई जोड़ देने से (७+७+१४+ १४) = ४२ राजू दक्षिणोत्तर लोक की परिधि होती है | इसका चित्रण त्रिलोकसार गा० १२१ में देखना चाहिये ।
लोक को परिवेष्टित करने वाले तीन वातवलयों का निरूपण ग्यारह श्लोकों द्वारा करते हैं-
घनोदधिर्धनाख्यश्च तनुवात हमे शयः ।
सर्वतो लोकमावेष्टय नित्यास्तिष्ठन्ति वायवः ||८०| श्रद्य गोमूत्रवर्णीयं मुद्गवर्णो द्वितीयकः । पञ्चवर्णस्तृतीयः स्याद् बहिर्वल मारुतः ||८१ ॥
अर्थः- सम्पूर्ण लोक को परिवेष्टित करते हुये घनोदधि, घन और तनु ये तीन पवन नित्य हो स्थित रहते हैं । इनमें ग्राद्य अर्थात् घनोदधि वातवलय का व गोमूत्र के सहश, दूसरे घनवातवलय का वर्णं मूंग (अन्न) के सदृश और तीसरे तनुवात वलय का वर्णं पञ्चवर्गों के सदृश है ।८०,८१ ।।
विशेषार्थ :- जिस प्रकार वृक्ष छाल से वेष्टित रहता है उसी प्रकार यह लोक सर्वत्र तीन तहों या परतों के सदृश तीन पवनों से वेष्टित है। इसकी प्रथम तह लोक को स्पर्शित करने वाली एवं गोमूत्र वर्णं वाली घनोदधि नामक पवन की है। दूसरी तह मध्य में है, जिसका नाम घनवात है और वर्ण मूंग के सदृश है । तीसरी तह बाह्य में है जो पंच वर वाली है और तनुवात के नाम से विख्यात है ।