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[कर्मप्रकृति
हैं (२०-२)। उसी जीव के पुरुषवेद का क्षय होने पर तीन प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (२१-१)। अथवा उपशमश्रेणी में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त पांच प्रकृतियों में से अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरणरूप मायाद्विक के उपशांत होने पर तीन प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (२१-२)। उसी जीव के संज्वलन माया के उपशांत होने पर दो प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (२२-१)। अथवा उपशमश्रेणी में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त चार प्रकृतियों में से अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरणरूप लोभद्विक के उपशांत होने पर शेष दो प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (२२-२)। अथवा क्षायिक सम्यग्दृष्टि क्षपक के पूर्वोक्त तीन प्रकृतियों में से संज्वलन क्रोध के क्षय होने पर दो प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (२२-३)। उसी जीव के संज्वलन मान के क्षय होने पर एक प्रकृति संक्रांत होती है(२३)।
इस प्रकार संक्रमस्थानों की प्राप्ति का विचार किये जाने पर अट्ठाईस, चौबीस, सत्रह, सोलह और पन्द्रह प्रकृति वाले संक्रमस्थान प्राप्त नहीं होते हैं इसलिये उनका प्रतिषेध किया गया है। उनके अतिरिक्त शेष रहे तेईस संक्रमस्थान मोहनीयकर्म में जानना चाहिये।
- इन संक्रमस्थानों में पच्चीस प्रकृति वाला संक्रमस्थान सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव के रूप में चार प्रकार का है। इनमें से अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता वाले मिथ्यादृष्टि के सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की उद्वलना करने पर सादि संक्रम होता है', अनादि मिथ्यादृष्टि के अनादि संक्रम होता है और ध्रुव, अध्रुव संक्रम क्रमशः अभव्य और भव्य की अपेक्षा जानना चाहिये तथा शेष बाईस संक्रमस्थान कादाचित्क होने से सादि और अध्रुव होते हैं।
इस प्रकार मोहनीयकर्म के संक्रमस्थानों और असंक्रमस्थानों की प्ररूपणा जानना चाहिये। मोहनीयकर्म के पतद्ग्रह अपतद्ग्रह स्थान अब पतद्ग्रह और अपतद्ग्रह स्थानों का कथन करते हैं -
सोलस बारसगट्ठग, वीसग तेवीसगाइगे छच्च।
वज्जिय मोहस्स पडिग्गहा उ अट्ठारस हवन्ति ॥११॥ शब्दार्थ – सोलस – सोलह, बारसगट्टग – बारह आठ, वीसग – बीस, तेवीसगाइगेतेईस आदि, छच्च – छह वज्जिय – छोड़कर, मोहस्स – मोहनीय कर्म के, पडिग्गहा – पतद्ग्रह, उ - और, अट्ठारस - अठारह, हवन्ति – होते हैं।
__गाथार्थ – सोलह, बारह, आठ, बीस और तेईस आदि छह स्थानों को छोड़ कर मोहनीय
१. सम्यक्त्व और मिश्र की उद्वर्तना होने से दर्शनमोहत्रिक का संक्रम होना रुक जाता है तब २५ का स्थान सादि रूप होता है।