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उदीरणाकरण ]
[ १९३ प्रकृतिक उदीरणास्थान में तेतीस भंग होते हैं।
चउवन प्रकृतिक उदीरणास्थान में स्वमत से छह सौ छह भंग होते हैं। वे इस प्रकार हैं - नारकों की अपेक्षा एक द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय की अपेक्षा प्रत्येक के दो दो भंग हैं । इसलिये विकलत्रिक के छह भंग होते हैं। स्वभावस्थ तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा दो सौ अठासी, वैक्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा आठ, स्वभावस्थ मनुष्यों की अपेक्षा दो सौ अठासी, वैक्रिय मनुष्यों की अपेक्षा चार, वैक्रियशरीरी संयतों की अपेक्षा उद्योत प्रकृति के साथ एक आहारक शरीरी संयतों की अपेक्षा दो और देवों की अपेक्षा आठ भंग होते हैं । इस प्रकार सब मिलाकर छह सौ छह भंग होते हैं।
और मतान्तर से स्वभावस्थ तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा पांच सौ छिहत्तर भंग होते हैं । वैक्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा सोलह मनुष्यों की अपेक्षा पांच सौ छिहत्तर, वैक्रिय मनुष्यों की अपेक्षा नौ और देवों की अपेक्षा सोलह भंग प्राप्त होते हैं । शेष भंग उसी प्रकार हैं । इस प्रकार परमत की अपेक्षा चउवन प्रकृतिक उदीरणास्थान में बारह सौ दो भंग होते हैं।
पचपन प्रकृतिक उदीरणा स्थान में स्वमत से नौ सौ एक भंग होते हैं, यथा - नारकों की अपेक्षा एक भंग, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की अपेक्षा प्रत्येक के चार-चार भंग प्राप्त होते हैं। इस प्रकार विकल त्रिक के बारह भंग होते हैं । स्वभावस्थ तिर्यंच पंचेन्द्रिय की अपेक्षा पांच सौ छिहत्तर, वैक्रिय शरीरी तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा आठ, स्वभावस्थ मनुष्यों की अपेक्षा दो सौ अठासी, वैक्रिय शरीरी मनुष्यों की अपेक्षा चार, वैक्रिय शरीरी संयतों की अपेक्षा उद्योत के साथ एक आहारकशरीरी संयतों की अपेक्षा दो, तीर्थंकर की अपेक्षा एक और देवों की अपेक्षा आठ भंग होते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर नौ सौ एक भंग होते हैं। लेकिन यहां पर मतान्तर से तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा ग्यारह सौ बावन, वैक्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा १६ स्वभावस्थ मनुष्यों की अपेक्षा ५७६ और वैक्रिय मनुष्यों की अपेक्षा ९ और देवों की अपेक्षा सोलह भंग प्राप्त होते हैं। शेष भंग तथैव जानना चाहिये । इसलिये मतान्तर की अपेक्षा पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान में सत्रह सौ पचासी भंग होते हैं।
छप्पन प्रकृतिक उदीरणास्थान में स्वमत से चौदह सौ उनहत्तर भंग होते हैं यथा - द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय की अपेक्षा प्रत्येक के छह छह भंग प्राप्त होते हैं। इसलिये विकलत्रिक के अठारह, स्वभावस्थ तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा आठ सौ चौसठ, वैक्रिय शरीरी तिर्यंचों की अपेक्षा चार, मनुष्यों की अपेक्षा पांच सौ छिहत्तर वैक्रियशरीरी संयतों की अपेक्षा उद्योत के साथ एक, आहारक शरीरी संयतों की अपेक्षा एक, तीर्थंकर की अपेक्षा एक और देवों की अपेक्षा चार भंग होते हैं। कुल मिलाकर इनका योग चौदह सौ उनहत्तर होता है। यहां पर भी मतान्तर से तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा सत्रह सौ अट्ठाईस, वैक्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा आठ, मनुष्यों की अपेक्षा ग्यारह