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गइहुंडुवघाया णिट्ठखगइनीयाण दुहचउक्कस्स । निरउक्कस्ससमत्ते असमत्ताए नरस्संते ॥ ६२॥
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शब्दार्थ – गइहुंडुवघाया – (नरक) गति, हुंडक संस्थान, उपघात, णिट्ठखगइ – अनिष्ट खगति, नीयाण - नीचगोत्र, दुहचउक्कस्स - दुर्भग चतुष्क की, निरउक्कस्ससमत्ते – उत्कृष्ट स्थिति युक्त पर्याप्त नारक, असमत्ताएं – अपर्याप्त, नरस्स मनुष्य के अंते - अन्तिम समय में ।
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गाथार्थ - नरकगति, हुंडक संस्थान, उपघात, अनिष्ट खगति, नीचगोत्र और दुर्भगचतुष्क की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा उत्कृष्ट स्थिति युक्त पर्याप्त नारक के होती है तथा अंतिम समय में वर्तमान अपर्याप्त मनुष्य के अपर्याप्त नाम की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा होती है ।
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विशेषार्थ - उत्कृष्ट स्थिति में वर्तमान सभी पर्याप्तियों से पर्याप्त और सर्वोत्कृष्ट संक्लेश युक्त नारक नरकगति हुंडकसंस्थान, उपघात अप्रशस्त विहायोगति, नीचगोत्र तथा 'दुहचउक्कस्स' अर्थात् दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और अयश: कीर्ति रूप दुर्भगचतुष्क इन नौ प्रकृतियों की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा का स्वामी होता है।
[ कर्मप्रकृति
अपर्याप्त मनुष्य जो आयु के चरम समय में वर्तमान है और सर्व संक्लिष्ट है, वह अपर्याप्त नामकर्म की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा का स्वामी है। संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय अपर्याप्त से मनुष्य अपर्याप्त अधिक संक्लिष्टतर परिणाम वाला होता है, इसलिये यहां मनुष्य को ग्रहण किया गया है । तथा - कक्खडगुरुसंघयणा त्थीपुमसंठाणतिरियनामाणं । पंचिंदिओ तिरिक्खो अट्टमवासट्ठवासाओ ॥ ६३॥
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शब्दार्थ - कक्खडगुरु कर्कश गुरु स्पर्श, संघयणा - संहनन, त्थीपुम – स्त्रीवेद, पुरुषवेद, संठाण – संस्थान, तिरिय नामाणं तिर्यंचगतिनाम की, पंचिंदिओ - पंचेन्द्रिय, तिरिक्खो
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- तिर्यंच, अट्टमवासट्ठवासाओ - आठवें वर्ष में वर्तमान आठ वर्ष की आयु वाला ।
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गाथार्थ आठवें वर्ष में वर्तमान आठ वर्ष की आयु वाला पंचेन्द्रिय तिर्यंच कर्कश, गुरू स्पर्शो ( पांच अशुभ) संहनन स्त्री-पुरुष वेद ( मध्यम चार ) संस्थान और तिर्यंचगति की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा करता है ।
विशेषार्थ कर्कश स्पर्श, गुरु स्पर्श, प्रथम संहनन को छोड़कर शेष पांच अशुभ संहनन, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, आदि और अंतिम को छोड़कर शेष मध्य के चार संस्थान और तिर्यंचगति इन चौदह प्रकृतियों की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा का स्वामी आठ वर्ष की आयु वाला आठवें वर्ष में वर्तमान सर्वसंक्लिष्ट संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव होता है । तथा
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