Book Title: Karm Prakruti Part 02
Author(s): Shivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala

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Page 473
________________ परिशिष्ट ] ४ - निर्व्याघात अवस्था में स्थिति - अपवर्तना में दलिक निक्षेपविधि ( गाथा ४, ५ के अनुसार ) उदयावलिका के ऊपर की जो स्थिति है, उसके दलिकों का अपवर्तन कर उदयावलिका के एक समय कम उपरितन दो विभागों का उल्लंघन कर अधस्तन एक समयाधिक तीसरे भाग में निक्षेप किया जाता है। [ ४३९ असत्कल्पना से इसको ऐसे समझा जाये कि उदयावलिका दस समय प्रमाण हैं । उसमें तीन तीन समय के दो त्रिभागों को छोड़ कर चार समय प्रमाण एक त्रिभाग दलिक में निक्षेप करते हैं । यह चार समय रूप त्रिभाग जघन्य निक्षेप का प्रमाण और दो त्रिभाग रूप छह समय प्रमाण जघन्य अतीत्थापना का प्रमाण है। जब उदयावलिका से ऊपर की दूसरी स्थिति अपवर्तित की जाती है तो अतीत्थापना पूर्वोक्त प्रमाण से एक समय अधिक होती है, किन्तु निक्षेप पूर्वोक्त प्रमाण रहता है। चार समय प्रमाणं रूप एक त्रिभाग ही रहता है जब उदयावलिका से ऊपर की तीसरी स्थिति अपवर्तित की जाती है तब अतीत्थापना दो समयाधिक दो त्रिभाग और दलिक निक्षेप पूर्ववत् चार समय प्रमाण एक त्रिभाग ही रहता है । इस प्रकार अतीत्थापना प्रतिसमय एक आवलिका पूर्ण होने तक बढ़ाना चाहिये । तदनन्तर अतीत्थापना का प्रमाण सर्वत्र एक आवलिका प्रमाण ही रहता है, किन्तु निक्षेप बढ़ता जाता है। इस प्रकार उत्कृष्ट निक्षेप प्रमाण बंधावली, अतीत्थापनावली ( अबाधा) को छोड़ कर और अपवर्तमान स्थितिस्थान का एक समय छोड़ कर शेष सम्पूर्ण कर्मस्थिति जानना चाहिये । सारांश यह है कि अपवर्तना काल में बंधावलिका और समयाधिक अतीत्थापनावलिका को छोड़ कर शेष सभी स्थितियों में उत्कृष्ट निक्षेप होता है तथा बंधावलिका और उदयावलिका को छोड़ कर शेष सभी स्थितियां अपवर्तना योग्य हैं तथा अपवर्तना की अपेक्षा उदयावलिका से ऊपर के स्थिति-स्थान का जघन्य निक्षेप होता है और सर्वोपरितन स्थितिस्थान का उत्कृष्ट निक्षेप प्राप्त होता है । असत्कल्पना से उक्त कथन का प्रारूप इस प्रकार है -

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