Book Title: Karm Prakruti Part 02
Author(s): Shivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala

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Page 508
________________ ४७४ ] करता उदयावलिका में प्रविष्ट किया जाता है, उसे उदीरणाकरण कहते हैं । जेम्मक्खंधमहंतेसुट्ठिदि - अणुभागेसु अवट्ठिदा ओक्कडिद्णफलदाइणो कीरंति समुदीरणा तिसण्णा जो महान स्थिति और अनुभागों में अवस्थित कर्मस्कन्ध अपकर्षण करके फल देने वाले किये जाते हैं उन कर्मस्कन्धों की 'उदीरणा' यह संज्ञा है । उपशमनाकरण [ कर्मप्रकृति — उपशम्यते उदयोदीरणानिधत्तिनिकाचनाकरणायोग्यत्वेन व्यवस्थाप्यते कर्म यया सोपशमना - जिस वीर्य विशेष परिणति के द्वारा कर्म उदय, उदीरणा, निधत्ति और निकाचनाकरण के असाध्य (अयोग्य) हो जाये उसे उपशमनाकरण कहते हैं । निधत्तिकरण निधीयत उद्वर्तनापवर्तनावर्जकरणायोग्यत्वेन व्यवस्थाप्यते यया सा निधत्ति जिस वीर्यविशेष परिणति के द्वारा कर्म उद्वर्तना- अपवर्तना के सिवाय शेष छह करणों के अयोग्य रूप से व्यवस्थापित किया जाये उसे निधत्तिकरण कहते हैं । निकाचनाकरण निकाच्यतेऽवश्यवेद्यतया व्यवस्थाप्यते कर्म जीवेन यया सा निकाचना - जिस वीर्यविशेष परिणति से जीव द्वारा कर्म अवश्य भोग्य रूप से व्यवस्थापित किया जाता है, उसे निकाचनाकरण कहते हैं । उदय कर्मपुद्गलानां यथास्थितिबद्धानां बाधाकालक्षयेण अपवर्तनादिकरण विशेषतो वा उदयसमय प्राप्तानामनुभवनमुदयं यथायोग्य (स्व-स्व बंध योग्य) स्थिति सहित बंधे हुये कर्म पुद्गलों का अबाधा काल के क्षय होने के अनन्तर अथवा अपवर्तनादिकरण विशेष से उदय समय के प्राप्त होने पर जो अनुभवन किया जाता है, उसे उदय कहते हैं । सत्ता तेषामेवकर्मपुद्गलानां बंधसंक्रमाभ्यां लब्धात्मलाभानां निर्जरण संक्रमकृतस्वरूप प्रच्युत्यभावे सति सद्भावः सत्ता - बंध संक्रमादिक से प्राप्त हुआ आत्म लाभ (तत् तत् कर्मत्व रूप लाभ) जिनका, ऐसे कर्म पद्ग़लों का निर्जरा और संक्रमकृत स्वरूप विनाश का अभाव होने पर जो सद्भाव हो उसे सत्ता कहते हैं।

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