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[ कर्मप्रकृति
आयोजिका करण
आयोजिकाकरणं नाम केवलिसमुद्घातादर्वाग्भवति, तत्राङ् मर्यादायाम्, आ मर्यादया केवलिद्दष्टया योजनं व्यापरणमायोजनम्, तच्चातिशुभयोगानामवसेयम् – केवलिसमुदघात के पूर्व केवली भगवान् के द्वारा जो अतिशय शुभ योगों का आयोजन (व्यापार) किया जाता है, उसे आयोजिका करण कहते हैं। इसे आवर्जितकरण, आवश्यककरण भी कहते हैं। इनकी निरुक्ति इस प्रकार है -
अवर्जितोनाम अभिमुखीकृतः ततश्च तथा भव्यत्वेनावर्जितस्य मोक्षगमनं प्रत्यभिमुखीकृतस्य करणं शुभयोगव्यापारणं आवर्जितकरणं। मोक्षगमन के प्रति अभिमुख हुए जीव (केवली) के द्वारा की जाने वाली क्रिया - शुभ योगों के व्यापार - को आवर्जितकरण कहते हैं।
आवश्यकेनावश्यंभावेन करणमावश्यककरणं - जिस क्रिया को अवश्य - अनिवार्य रूप से किया जाता है, उसे आवश्यककरण कहते हैं। समुद्घात
मूल शरीर को न छोड़ कर निमित्तवशात् उत्तरदेह के साथ साथ जीव प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलने को समुद्घात कहते हैं । वेदना, कषाय, वैक्रिय, आहारक, तैजस, मारणांतिक और केवलि समुद्घात ये सात प्रकार के समुद्घात होते हैं। आगाल
यत्पुनर्द्वितीयस्थितेः सकाशादुदीरणा प्रयोगेण कर्मदलिकं समाकृष्योदये प्रक्षिपति स आगाल इति - उदीरणा प्रयोग के द्वारा द्वितीय स्थिति में से कर्मदलिकों को आकर्षित करके उदय में प्रक्षेपण करना आगाल कहलाता है। प्रथम स्थिति
अन्तरकरणाच्चधस्तनी स्थितिः प्रथमास्थितिरित्युच्यते - अन्तरकरण से नीचे की स्थिति को प्रथम स्थिति और ऊपर की स्थिति को द्वितीय स्थिति कहते हैं - उपरितनी तु द्वितीया। उदीरणा
प्रथमस्थितौ च वर्तमान उदीरणा प्रयोगेण दलिकं प्रथम स्थितिसत्कं दलिकं समाकृष्योदय समये प्रक्षिपति सा उदीरणा - उदीरणा प्रयोग के द्वारा प्रथम स्थिति में वर्तमान कर्मदलिक को आकर्षित कर उदय समय में प्रक्षिप्त करने को उदीरणा कहते हैं।