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[ कर्मप्रकृति यस्थिति
संक्रमणकाले या स्थितिर्विद्यते सा यत्स्थितिः - संक्रमण काल में जो स्थिति विद्यमान है, वह यत्स्थिति कहलाती है। पतद्ग्रह
यस्यां प्रकृती आधारभूतायां तत्प्रकृत्यन्तरस्थं दलिकं परिणमयति आधारभूत प्रकृतिरूपतामापादयति एषा प्रकृतिराधारभूता पतद्ग्रह इव पतद्ग्रहः संक्रम्यमाण प्रकृत्याधार इत्यर्थः।
जिस आधारभूत प्रकृति में अन्य प्रकृति के परमाणु संक्रमित होते हैं, वह आधारभूत प्रकृति पतद्ग्रह कहलाती है अर्थात् जीव जिस प्रकृति में विवक्षित प्रकृति के प्रदेशों को तद्रूप से परिणमाता है जो संक्रम्यमाण प्रकृति की आधारभूत प्रकृति है उसे पतद्ग्रह प्रकृति कहते हैं। बंधोत्कृष्टा प्रकृति
बंधादेव केवलादुत्कृष्टास्थितिलभ्यते सा बन्धोत्कृष्टा - बंध से ही जिसकी उत्कृष्ट स्थिति प्राप्त होती है, वह बंधोत्कृष्टा प्रकृति है। अपनी अपनी मूल प्रकृति की अपेक्षा भी इनकी उत्तर प्रकृतियों की स्थिति में न्यूनता नहीं होती है, किन्तु तुल्यता ही रहती है। ये बंधोत्कृष्टा प्रकृतियां ९७ हैं। संक्रमोत्कृष्टा प्रकृति
___ या पुनर्बन्धेऽबंधे वा सति संक्रमादुत्कृष्टा स्थितिर्भवति सा संक्रमोत्कृष्टा – जिस प्रकृति की बंध या अबंध होने पर संक्रम से उत्कृष्ट स्थिति प्राप्त होती है, उसे संक्रमोत्कृष्टा प्रकृति कहते हैं। वे ६१ प्रकृतियां हैं। प्रकृतिस्थान
द्वित्रयादीनां प्रकृतीनां च समुदायः प्रकृतिस्थानम् – दो, तीन आदि प्रकृतियों के समुदाय को प्रकृतिस्थान कहते हैं। योग्यन्तिका
योगिनिसयोगिकेवलिनि संक्रममाश्रित्यान्तः पर्यन्तो यासां ता योग्यन्तिकाः – सयोगी केवली को पर्यन्त समय में - चरम समय में जिन प्रकृतियों का संक्रम विच्छेद होता है, वे प्रकृतियां योग्यन्तिका कहलाती हैं। डायस्थिति
यतः स्थितिस्थानादपवर्तनाकरणवशेन उत्कृष्टां स्थितिं याति तावती स्थितिहा॑यस्थिति