Book Title: Karm Prakruti Part 02
Author(s): Shivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala

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Page 510
________________ ४७६ ] . [कर्मप्रकृति श्रेणी धनी कृतस्य लोकस्य या एकैक प्रदेश पंक्ति रूपा श्रेणि - धनीकृत लोक की एक एक प्रदेश वाली पंक्ति को श्रेणी कहते हैं। अथवा - लोकमध्यादारम्य ऊर्ध्वमधस्तिर्यक् च आकाशप्रदेशनां क्रमसंतिविष्टानां पंक्ति श्रेणी इत्युच्यते - लोक मध्य से लेकर ऊपर, नीचे और तिरछे क्रम से स्थिति आकाश प्रदेशों की पंक्ति को श्रेणी कहते हैं। स्पर्धक ___ यथोक्त स्वरूपा वर्गणाः समुदिता एकं स्पर्धकं स्पर्धन्त इवोत्तरोत्तर वृद्धया वर्गणा अत्रेति स्पर्धकं -यथोक्त स्वरूपवाली वर्गणाओं के समुदाय को स्पर्धक करते हैं अर्थात् उत्तरोत्तर वृद्धि के द्वारा स्पर्धा के साथ जिसमें वर्गणायें होती हैं वह स्पर्धक कहलाता है। जिसका आशय यह है कि एक एक अविभाग प्रतिच्छेद बढ़ाकर वर्ग और वर्गणा समूह रूप वर्गणायें तब तक बनानी चाहिये जब तक एक एक अधिक परिच्छेद मिलता जाये। इस क्रम हानि और क्रम वृद्धि वाली वर्गणाओं के समुदाय को स्पर्धक कहते हैं। स्नेहप्रत्ययस्पर्धक स्नेह-प्रत्ययस्य-स्नेहनिमित्तस्य स्पर्धकस्य प्ररूपणाः स्नेहप्रत्ययस्पर्धकप्ररूपणा - स्नेह निमित्तक स्पर्धक को स्नेह प्रत्यय स्पर्धक कहते हैं और उसकी प्ररूपणा, विवेचना स्नेहप्रत्ययस्पर्धकप्ररूपणा कहलाती है। नामप्रत्ययस्पर्धक शरीरबंधननामकर्मोदयतः परस्परं बद्धानां शरीरपुद्गलानां स्नेहमधिकृत्य स्पर्धक प्ररूपणा नामप्रत्ययस्पर्धकप्ररूपणा - शरीरबंधननामकर्म के उदय से परस्पर बंधे हुए शरीर पुद्गलों के स्नेह निमित्तक स्पर्धक को नाम प्रत्ययस्पर्धक कहते हैं और उसकी विवेचना करना नाम प्रत्ययस्पर्धक प्ररूपणा है। प्रयोगप्रत्ययस्पर्धक - प्रकृष्टो योगः प्रयोगः तेन प्रत्ययभूतेन कारणभूतेन ये गृहीताः पुद्गलास्तेषां स्नेहमधिकृत्य स्पर्धकप्ररूपणा प्रयोगप्रत्ययस्पर्धकप्ररूपणा - प्रकृष्ट योग को प्रयोग कहते हैं । इस प्रयोग प्रत्यय भूत अर्थात् कारणभूत प्रकृष्ट योग के द्वारा ग्रहण किये गये पुद्गलों के स्नेह के स्पर्धकों को

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