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परिशिष्ट ]
४. अपूर्वकरण में विशुद्धिस्थानों का स्पष्टीकरण
(उपशमनाकरण गा. १०,११ के सन्दर्भ में)
अपूर्वकरण में प्रथम समय की जघन्य विशुद्धि सर्वस्तोक है, किन्तु यथाप्रवृत्तकरण के चरम समय की उत्कृष्ट विशुद्धि की अपेक्षा अनन्त गुणी है । अत: प्रथम समय की उत्कृष्ट विशुद्धि भी अनन्त गुणी है। जिसे प्रारूप में १, २, के अंक देकर बताया है ।
उससे द्वितीय समय की जघन्य विशुद्धि अनन्त गुणी है, जिसे अंक ३ से बताया गया है। उससे उसी के द्वितीय समय की उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्त गुणी है जिसे चार के अंक से बताया है।
उससे तृतीय समय की जघन्य विशुद्धि अनन्त गुणी है जिसे पांच के अंक से बताया गया है उससे उसी तृतीय समय की उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्त गुणी है जिसे ६ के अंक से बताया है ।
इस प्रकार एक जघन्य एक उत्कृष्ट विशुद्धि तब तक कहना यावत् चरम समय की उत्कृष्ट विशुद्धि आती है । इसे प्रारूप में असत् कल्पना से १४ के अंक से बताया है। प्रारूप इस प्रकार है १. प्रथम समय की जघन्य विशुद्धि सर्वाल्प
३. द्वितीय समय की जघन्य विशुद्धि अनन्त गुणी
. ५. तृतीय समय की जघन्य विशुद्धि अनन्त गुणी
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७. चतुर्थ समय की जघन्य विशुद्धि अनन्त गुणी
९. पंचम समय की जघन्य विशुद्धि अनन्त गुणी
११. षष्ठ समय की जघन्य विशुद्धि अनन्त गुणी
२. प्रथम समय की उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्त गुणी
४. द्वितीय समय की उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्त गुणी
६. तृतीय समय की उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्त गुणी
८. चतुर्थ समय की उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्त गुणी
१०. पंचम समय की उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्त गुणी
१२. षष्ठ समय की उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्त गुणी
१३. सप्तम समय की जघन्य विशुद्धि अनन्त गुणी
१४. सप्तम समय की उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्त गुणी