Book Title: Karm Prakruti Part 02
Author(s): Shivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala

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Page 493
________________ परिशिष्ट ] [ ४५९ गुणस्थानवर्ती उपशम सम्यक्त्व वाला उपशम सम्यक्त्व से गिरता हुआ दूसरे गुणस्थान में जाता है। उस समय अनन्तानुबंधी का उदय होने पर भी मिथ्यात्व के उदय में अभी तक जघन्य एक समय उत्कृष्ट षडावलिका अवशेष है। अतः जब तक मिथ्यात्व का उदय नहीं आता तब तक उसमें सास्वादन सम्यक्त्व की स्थिति रहती है। परन्तु इस गुणस्थान में क्षय या क्षयोपशम की प्रक्रिया संभव नहीं है, इसलिये मिथ्यात्व की सत्ता नियमा से समझना चाहिये। किन्तु मिथ्यात्व की सत्ता मात्र से सास्वादन सम्यक्त्व, मिथ्यात्व नहीं कहला सकता। यदि मिथ्यात्व की सत्ता मात्र से या मिथ्यात्वोदय का निश्चित रूप से आने वाला होने की अपेक्षा उसे मिथ्यात्वी माना जाये तो उपशम सम्यक्त्व से मिथ्यात्व में गिरने वाले जीव को मिथ्यात्व का उदय आने की अपेक्षा उसे मिथ्यात्वी कहना होगा। इसी प्रकार क्षयोपशम सम्यक्त्व के विषय में समझना चाहिये। इस प्रकार की चिन्तना से तो मिथ्यात्व के क्षय होने पर ही सम्यक्त्व मानी जायेगी। तब क्षयोपशम या उपशम सम्यक्त्व का कोई महत्त्व नहीं हो सकता जो कर्मग्रन्थकार को भी कभी इष्ट नहीं हो सकता। इस आशय को समझे बिना कर्म के अध्येता कुछ विद्वानों ने सास्वादन सम्यक्त्व की मिथ्यात्व की श्रेणी में परिगणना की है जो कि कर्मसिद्धान्त एवं आगमसिद्धान्त दोनों सिद्धान्तों से उपयुक्त नहीं लगती। सिद्धान्तकार जैसे सास्वादन सम्यक्त्व मानते हैं वैसे ही सत्ता प्रकरण की गाथा ४ का अभिप्राय भी स्पष्टतया सिद्धान्त के अनुरूप फलित होता है । यथा – 'आसादने सासादने सम्यक्त्वं नियमादस्ति।' ३. मूल कर्म बंध में बंध-स्थान उदय-स्थान सत्ता-स्थान प्रारूप . (सत्ता प्रकरण गाथा ५२ के सन्दर्भ में) | बंध-स्थान | उदय-स्थान । सत्ता-स्थान क्रम कर्म का नाम ८ ७ ६ १ ८ ७ ४ ८ ७ ४ १.. ज्ञानावरण | १ x x २. दर्शनावरण वेदनीय मोहनीय १ १ x x १ xxx ६. . नाम ७. गोत्र ८. अन्तराय | १ १ १ x १ x x | १ x x X 4 x X ३. x x x आयु x < or xxxxx or x X or x X xxx or

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