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७ - अनुभाग उद्वर्तना
( स्पष्टीकरण गाथा ७ के अनुसार )
बध्यमान स्थितिस्थान के प्रत्येक स्थान पर असंख्यात अनुभागस्पर्धक होते हैं । विवक्षित कर्म के अंतिम स्थिति गत स्पर्धकों की उद्वर्तना नहीं होती है। इसी प्रकार एक समय कम दो समय कम के क्रम से आवलिका के त्रिभाग गत अनुभागों की उद्वर्तना नहीं होती है, तथा उसके नीचे एक आवलिका प्रमाण अतीत्थापना की स्थिति के अनुभाग स्पर्धकों की भी उद्वर्तना नहीं की जा सकती है, किन्तु उसके नीचे आने पर जो समय मात्र स्थितिगत स्पर्धक होते हैं, उनकी उद्वर्तना अतीत्थापना वाली को छोड़कर होती है । इस प्रकार एक समयाधिक दो समयाधिक के क्रम से निक्षेप बढ़ता जायेगा।
यह उद्वर्तना बंधावलिका तथा अबाधा और एक समय अधिक आवलिका को छोड़कर शेष अनुभाग स्पर्धकों में होती है । असत्कल्पना
से
दर्शक
प्रारूप इस प्रकार है
आवलिकाअतीत्थापना अती को छोड़कर शेष सभी समयों का उद्वर्तन होता है।
सम्पूर्ण कर्मस्थ
बंधावलिका अबाधा
गत अनु. स्पर्धकों का उद्वर्तन नहीं होता है
इसका
北
[ कर्मप्रकृति
होता है। को उद्वर्तन नहीं 'अनुभाग स्पर्धकों
असंख्यातवें भाग आवल के
स्थिति स्थान
एक एक स्थितिस्थान पर असंख्य असंख्य अनुभागस्पर्धक होते हैं