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परिशिष्ट ]
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१ "विषम चतुरस्त्र स्थापना का प्रारूप एवं स्पष्टीकरण"
(उपशमनाकरण गाथा ९ के सन्दर्भ में)
१. यथाप्रवृत्त और अपूर्वकरण के प्रतिसमय अध्यवसायस्थान नाना जीवों की अपेक्षा असंख्येय लोकाकाश प्रदेश प्रमाण होते हैं, यथा – यथाप्रवृत्तकरण के प्रथम समय में विशुद्धिस्थान नाना जीवों की अपेक्षा असंख्येय लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं, द्वितीय समय में विशेषाधिक हैं इस प्रकार यावत् यथाप्रवृत्तकरण के चरम स्थान तक जानना चाहिये।
. २. अपूर्वकरण में विशुद्धिस्थान यथाप्रवृत्तकरण के चरम समय से विशेषाधिक है । द्वितीयादि विशुद्धिस्थानों में भी विशेषाधिकता यावत् अपूर्वकरण के चरम समय तक कहना चाहिये।
३. विषम चतुरस्र स्थापना में प्रथम स्थान के शून्य असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं जो अध्यवसाय स्थान के सूचक हैं । द्वितीयादि समय में विशेषाधिक हैं जिन्हें द्वितीयादि पंक्तियों में शून्यों की अधिकता द्वारा प्रदर्शित किया है।
४. प्रारूप में यथाप्रवृत्तकरण का चरम समय असत्कल्पना से पांचवी पंक्ति में समाप्त किया
यथाप्रवृत्तकरण
/ 'अपूर्वकरण