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१- गुणस्थान में मोहनीय कर्म के उदीरणा स्थान और भंगों की संख्या का प्रारूप
४४६ ]
उदीरणा. मिथ्यात्व सास्वादन मिश्र
अविरत | देशविरत | विरत | अपूर्वकरण | अनिवृत्ति सूक्ष्म संपराय कुल चौबीसी कुल भंग(प्रमत्ता प्रमत्त)
करण भंग भंग । स्थान | चौ भंग चौ भंग| चौ भंग| चौ भंग | चौ भंग | चौ भंग | चौ भंग
१०
प्र. |
१
२४ | x
x
x
.
x
|
x
x
x
x
x
x
| x
x
x
३
७२ | १
२४
८
प्र. |
३
७२ | २ ७२ | २
४८ ४८/
२
४८
३
७२
१
२४ |
x
x
| x
x
x
२४ | १
२४ | ३
७२ / ३
७२ | १-१
२४-२५ x
x
प्र. | x
x
x
x
x
x | १
२४ |
३
७२ | ३-३
७२-७२ १
२४
x
|
५
प्र.
x
x
x
x
x
x
x
x | १
२४ | ३-३ ७२-७२ २
x
.
|
x
x
x
x
x
x
x
x
x
x
| १-१
२४-२४ १
२४
[कर्मप्रकृति
योग
९६ / ८
१९२ ८ १९२ / ८८ १९२ ४
९६/ १६.
. ५२ ।
८ १९२/४ ९६ | ४ कुल भंग १२६५ होते हैं।
१२६५