________________
४३८ ]
[कर्मप्रकृति है तब दो प्रथम समयाधिक असंख्यातवें भाग को अतिक्रमण कर दूसरे असंख्यातवें भाग में निक्षेप किया जाता है।
____ इस प्रकार नवीन कर्मबंध की अतीत्थापना एक एक समय वृद्धि होने पर बढ़ती जाती है और वह वृद्धि तब तक होती रहती है जब तक एक आवलिका पूर्ण होती है किन्तु निक्षेप सर्वत्र उतना ही रहता है। इसके अनन्तर नवीन कर्मबंध की स्थिति बढ़ने पर केवल निक्षेप ही बढ़ता है, अतीत्थापना नहीं बढ़ती है। असत्कल्पना से तत्संबन्धी प्रारूप इस प्रकार है --
| इस नवीन स्थिति में केवल निक्षेप बढ़ता है अतीत्थापना नहीं
भाग ३
आवलि का असंख्यातवां भाग
पूर्ण आवलि
भाग २
आवलि का असंख्यातवां भाग
भाग १
आवलि का असंख्याता भाग
उद्वर्तना अयोग्य
नवीन स्थितिबंध
सम्पूर्ण कर्मस्थिति
....................
पूर्वकालीन बद्धस्थिति
स्थिति स्थान