________________
४४० ]
उदयावलिका
२
३
४
प्रथम भाग
=
द्वितीय भाग
५
६
७
८ तृतीय भाग
९
१०
अबाधा तथा बंधावलिका
अतीत्थापना
निक्षेपस्थान
[ कर्मप्रकृति
सम्पूर्ण कर्मस्थितिबंध
असत्कल्पना द्वारा निर्मित पूर्वोक्त प्रारूप को पुनः विशेष स्पष्ट करते हैं कि
-
द्वितीय आवली के प्रथम निषेक का अपकर्षण करके नीचे प्रथमावली में निक्षेपण करें। वहां भी कुछ निषेकों में तो निक्षेपण करते हैं और कुछ निषेक अतीत्थापना रूप रहते हैं। उनका निक्षेप प्रमाण: इस प्रकार समझना चाहिये
१. यदि आवली १६ समय प्रमाण है तो उसमें से एक समय को निकाल देने से अवशेष १५ समयों के पांच पांच समय प्रमाण तीन त्रिभाग बनते हैं । उनमें से निक्षेप रूप जो त्रिभाग है, वह त्रिभाग कुछ अधिक होने से उसमें परित्यक्त एक समय को मिलाने पर ६ समय प्रमाण निषेक और जघन्य अतीत्थापना ५+५ १० समय प्रमाण होता है ।
२. उसके बाद द्वितीयावली के द्वितीय निषेक का अपकर्षण किया, वहां एक समय अधिक आवली मात्र (१६+१=१७) इसके बीच निषेक हैं और उसमें निक्षेप तो नहीं अर्थात् पूर्ववत् निषेक से कम आवली के त्रिभाग से एक समय अधिक हैं । अतीत्थापना पूर्व से एक समय अधिक है क्योंकि द्वितीयावली का प्रथम समय जिसके द्रव्य को पहले अपकर्षण कर दिया गया है, उदयावली हो कर
1