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उदयप्रकरण ]
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स्थिति उदय से अधिक उत्कृष्ट उदय जानना चाहिये।
'उदयठिई उ हस्सो' इत्यादि अर्थात् ह्रस्व यानी जघन्य स्थिति - उदय छत्तीस प्रकृतियों का एक समय मात्र स्थिति - उदय है । इसका तात्पर्य यह है कि छत्तीस प्रकृतियों का जघन्य स्थिति - उदय समय मात्र स्थिति - उदय प्रमाण जानना चाहिये। और एक स्थिति एक समय मात्र प्रमाण वाली होती है। वह चरम स्थिति जानना चाहिये। ये छत्तीस प्रकृतियां पूर्व में कही गई इकतालीस प्रकृतियों में से पांच निद्राओं का उदीरणा के अभाव में भी शरीरपर्याप्ति के अनन्तर केवल उदय काल में अपवर्तना की प्रवृत्ति होने पर भी एक स्थिति प्राप्त नहीं होती है । इसलिये निद्राओं को यहां छोड़ा गया है। शेष समस्त वर्णन जघन्य उदीरणा के समान जानना चाहिये।
___ इस प्रकार स्थिति - उदय का विचार किया गया। अब अनुभाग - उदय का विचार करते
अनुभाग - उदय
अणुभागुदओ वि जहण्ण, नवरि आवरण विग्यवेयाणं।
संजलण लोभसम्मत्ताण य गंतूणमावलिगं ॥५॥ शब्दार्थ – अणुभागुदओ - अनुभागोदय, वि - भी, जहण्ण - जघन्य, नवरि - विशेष, आवरण विग्घवेयाणं - आवरणाद्विक विघ्न, वेदों का, संजलणलोभसम्मत्ताण - संज्वलन लोभ, सम्यक्त्व का, य - और, गंतूणमावलिगं - आवलिका व्यतीत होने पर।
गाथार्थ – अनुभागोदय भी अनुभाग-उदीरणा के समान होता है। विशेष - आवरणद्विक, विघ्न-अन्तराय, वेद, संज्वलन लोभ, सम्यक्त्व का आवलिका व्यतीत होने पर जघन्य अनुभागोदय जानना चाहिये।
विशेषार्थ – जिस प्रकार पहले अनुभाग - उदीरणा विस्तार से कही है, उसी प्रकार अनुभाग - उदय भी कहना चाहिये। लेकिन विशेष यह है कि ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, अंतरायपंचक, वेदत्रिक, संज्वलन लोभ और सम्यक्त्व मोहनीय का उदीरणा के विच्छेद होने पर उससे आगे एक आवलिका के बीतने के समय उस आवलिका के चरम समय में जघन्य अनुभागोदय जानना चाहिये।
इस प्रकार अनुभागोदय का विचार किया गया। अब प्रदेशोदय के कथन का अवसर प्राप्त है।