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[कर्मप्रकृति
: अनन्तानुबंधीकषाय यश:कीर्ति और संज्वलनलोभ को छोड़कर एक सौ चौबीस ध्रुव सत्कर्म प्रकृतियों का अजधन्य प्रदेशसत्व तीन प्रकार का है, यथा – अनादि, ध्रुव और अध्रुव। वह इस प्रकार जानना चाहिये।
___इन प्रकृतियों का जधन्य प्रदेशसत्व क्षपितकर्मांश जीव के अपने-अपने क्षय के चरम समय में होता है और वह एक समय वाला है। इस कारण सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी प्रदेशसत्व अजघन्य है जो सदैव पाये जाने के कारण अनादि है। ध्रुव, अध्रुव विकल्प पूर्व के समान जानना चाहिये। 'चउतिविहं ति' इस पद का यथास्थान संयोजन कर लेना चाहिये। बयालीस प्रकृतियों का अनुत्कृष्ट विकल्प चार प्रकार का है और ध्रुव सत्ता वाली प्रकृतियों का अजधन्य विकल्प तीन प्रकार का है।
'छण्ह चउद्धा' अर्थात् अनन्तानुबंधीचतुष्क, संज्वलनलोभ और यश:कीर्ति इन छह प्रकृतियों का अजघन्य प्रदेशसत्व चार प्रकार का है, यथा – सादि, अनादि, ध्रव और अध्रुव। वह इस प्रकार है -
अनन्तानुबंधी कषायों की उद्वलना करने वाले क्षपितकर्मांश जीव में जब एक स्थिति शेष रह जाती है, तब उनका जधन्य प्रदेशसत्व पाया जाता है और वह एक समय वाला है। इस कारण सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी प्रदेशसत्व अजघन्य है और वह उद्वलित प्रकृतियों के मिथ्यात्व निमित्त से पुनः बांधे जाने पर पाया जाता है, इसलिये सादि है। उस स्थान को प्राप्त जीव के वह अनादि है। ध्रुव-अध्रुव विकल्प पूर्व के समान जानना चाहिये।
यशः कीर्ति और संज्वलन लोभ का जघन्य प्रदेशसत्व क्षपितकांश जीव के कर्म क्षपण के लिये उद्यत होने पर यथाप्रवृत्तकरण के अंतिम समय में पाया जाता है और वह एक समय वाला है। इस कारण सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी प्रदेशसत्व अजघन्य है। वह भी अनिवृत्तिकरण के प्रथम समय में गुणसंक्रमण से बहुत दलिक पाये जाने से अजघन्य होता हुआ सादि है। उस स्थान को अप्राप्त जीव के वह अनादि है। ध्रुवत्व अध्रुवत्व पूर्व के समान जानना चाहिये।
. 'अभासियं दुविहं ति' अर्थात् सभी प्रकृतियों का अभाषित अनुक्त प्रदेशसत्व दो प्रकार का जानना चाहिये, यथा - सादि और अध्रुव। बयालीस प्रकृतियों का जघन्य, अजघन्य और उत्कृष्ट प्रदेश सत्व अभाषित है। इसमें से उत्कृष्ट प्रदेशसत्व के दो प्रकारों का कथन पूर्व में किया जा चुका है तथा जघन्यत्व और अजघन्य आगे कहे जाने वाले स्वामित्व को देखकर स्वयं ही जान लेना चाहिये। एक सौ चौबीस ध्रुव सत्तावाली प्रकृतियों के अभाषित प्रदेशसत्व तीन हैं - उत्कृष्ट