Book Title: Karm Prakruti Part 02
Author(s): Shivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala

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Page 426
________________ ३९२ ] [ कर्मप्रकृति एक स्थिति शेष रहती है, तब जो सबसे जघन्य प्रदेशसत्व कर्म है, वह प्रथम प्रदेशसत्व कर्मस्थान कहलाता है। तत्पश्चात् उसमें एक परमाणु के प्रक्षेप करने पर अन्य-दूसरा प्रदेशसत्वस्थान होता है। तदनन्तर दो परमाणुओं को प्रक्षिप्त करने पर अन्य तीसरा प्रदेशसत्वस्थान होता है। तीन परमाणुओं के प्रक्षिप्त करने पर चतुर्थ प्रदेशसत्वस्थान होता है। इस प्रकार एक एक परमाणु के प्रक्षेप से प्रदेशसत्वस्थान नाना जीवों की अपेक्षा अनन्त तब तक कहना चाहिये, जब तक कि उसी चरम स्थिति विशेष में गुणितकर्मांश जीव का उत्कृष्ट प्रदेशसत्वस्थान प्राप्त होता है। इससे ऊपर अन्य प्रदेशसत्वस्थान नहीं होता है। इसलिये यहां तक के स्थानों का समुदाय एक स्पर्धक है। यह स्पर्धक चरम स्थिति की अपेक्षा कहा गया है। ___ इसी प्रकार दो चरम स्थितियों में दूसरा स्पर्धक कहना चाहिये और तीन स्थितियों में तीसरा स्पर्धक। इस प्रकार तब तक कहना चाहिये जब तक एक समय कम आवलिका के समय प्रमाण स्पर्धक हैं तथा अंतिम प्रक्षेप को आदि करके पश्चानुपूर्वी से प्रदेशसत्वस्थान यथोत्तर क्रम से बढ़ते हुए तब तक कहना चाहिए जब तक कि अपनी अपनी प्रकृति का उत्कृष्ट प्रदेशसत्व प्राप्त होता है। इसलिये इतने प्रमाण वाले यथासंभव सर्वस्थितिगत एक स्पर्धक की विवक्षा की गई है। इस स्पर्धक सहित आवलिका के समय प्रमाण स्पर्धक होते हैं। तथा – संजलणतिगे चेवं, अहिगाणि य आलिगाएसमएहिं। दुसमयहीणेहिं, गुणाणि जोगट्ठाणाणि कसिणाणि॥४५॥ शब्दार्थ – संजलणतिगे -- संज्वलनत्रिक में, चेवं – इसी प्रकार, अहिगाणि - अधिक, य - और, आलिगाए समएहिं – आवलिका के समयों के साथ, दुसमयहीणेहिं – दो समय कम, गुणाणि – गुणा करने वाले, जोगट्ठाणाणि - योगस्थान, कसिणाणि - समस्त। १. इसका आशय यह है कि अंत समय मात्र में विद्यमान जीव को अंत का एक समय रूप अन्त्य स्थितिस्थान संभव है, लेकिन दो समय रूप स्थितिस्थान गिनने का कारण यह है कि वर्तमान अन्त्य टूढता हुआ होने से प्रदेशसत्ता के संबंध में गिना नहीं जा सकता है। इसलिये प्रायः सर्वत्र प्रदेशसत्ता के संबंध में प्रदेशोदय वर्तमान समय टूटता हुआ होने से गिना नहीं है और इसी कारण अन्त्य स्थितिस्थान दो समय रूप रहे, उस समय अनेक जीवों की अपेक्षा जघन्यादि प्रदेशसत्ता का प्रथम स्पर्धक होता है और इसी रीति से तीन समय शेष रहने पर दूसरा, चार समय रहने पर तीसरा यावत् आवलिका शेष रहने पर सब मिलाकर समयोन आवलिका प्रमाण स्पर्धक होते हैं। २. पूर्व में कहे गये समयोन आवलिका प्रमाण (अन्त्य प्रदेशोदयावलिका संबंधी) स्पर्धकों में यह अन्त्य स्थितिघात संबंधी एक स्पर्धक को मिलाने पर सम्पूर्ण आवलि प्रमाण स्पर्धक होते हैं।

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