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[ ३७७
सत्ताप्रकरण ]
आयुकर्म के सभी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट जघन्य और अजघन्य रूप चारों विकल्प सादि और अध्रुव हैं। क्योंकि आयुकर्म अध्रुव सत्तावाला है ।
इस प्रकार मूल कर्मों की सादि अनादि प्ररूपणा जानना चाहिये । अब उत्तर प्रकृतियों की सादि अनादि प्ररूपणा करते है
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शब्दार्थ
बायाल
एक सौ चौबीस का, अजहन्न होता है, छण्ह अनुक्त (नहीं कहे गये) विकल्प, दुविहं दो प्रकार के ।
छह का, चउद्धा
गाथार्थ बयालीस प्रकृतियों का अनुत्कृष्ट प्रदेशसत्व और एक सौ चौबीस प्रकृतियों का अजघन्य, प्रदेशसत्व क्रमशः चार और तीन प्रकार का है तथा छह प्रकृतियों का अजघन्य प्रदेशसत्व चार प्रकार का है तथा अनुक्त विकल्प दो प्रकार के होते हैं ।
विशेषार्थ सातावेदनीय, संज्वलनचतुष्क, पुरुषवेद, पंचेन्द्रियजाति, तैजससप्तक, प्रथमसंस्थान, प्रथमसंहनन, शुभ वर्णादि एकादशक अगुरुलघु, पराघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त प्रत्येक, स्थिर शुभ सुभग, सुस्वर, आदेय, यश: कीर्ति और निर्माण इन बयालीस
प्रकृतियों का अनुत्कृष्ट प्रदेशसत्व चार प्रकार का है, यथा सादि अनादि, ध्रुव, और अध्रुव ।
जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार का है
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बायालाणुक्कस्सं, चउवीससया जहन्न चउतिविहं । होइह छण्ह चउद्धा, अजहन्नमभासियं दुविहं ॥ २६ ॥
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बयालीस (प्रकृतियों) का, अणुक्कस्सं - अनुत्कृष्ट, चउवीससयाअजघन्य, चउतिविहं चार और तीन प्रकार का, होइह
चार प्रकार का, अजहन्नं
अजघन्य, अभासियं
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वज्रऋषभनाराचसंहनन को छोड़कर शेष इकतालीस प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशसत्व क्षपकश्रेणी में अपने अपने बंध के अंतिम समय में गुणितकर्मांश जीव के होता है। जो एक समयवाला है। इस कारण सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी प्रदेशसत्व अनुत्कृष्ट है और वह भी द्वितीय समय में होने से सादि है । उस स्थान को अप्राप्त जीव के अनादि है । ध्रुव और अध्रुव विकल्प पूर्व के समान क्रमशः अभव्य एवं भव्य की अपेक्षा जानना चाहिये ।
वज्रऋषभनाराचसंहनन का उत्कृष्ट प्रदेशसत्व सप्तम पृथ्वी में वर्तमान मिथ्यात्व में गमन के सन्मुख सम्यग्दृष्टि नारकी के होता है । इसलिय वह सादि और अध्रुव है। उससे अन्य प्रदेशसत्व अनुत्कृष्ट है और वह भी दूसरे समय में होने से सादि है । उस स्थान को अप्राप्त जीव के अनादि है । ध्रुव और अध्रुव विकल्प पूर्व के समान जानना चाहिये ।