________________
३२४ ]
स्थिति - उदय
ठिइउदओ वि ठिइक्खय-पओगसा ठिइ उदीरणा अहिगो । उदयठिई उ हस्सो, छत्तीसा एग उदयठिई ॥ ४ ॥
शब्दार्थ - ठिइउदओ - स्थिति उदय, वि - भी, ठिइक्खय स्थितिक्षय, पओगसाप्रयोग से, ठिइउदीरणा – स्थिति - उदीरणा, अहिगो – अधिक, उदयठिई – उदयस्थिति, उ और, हस्सो जघन्य, छत्तीसा - छत्तीस,
एग एक, उदयठिई – उदयस्थिति ।
-
-
-
-
[ कर्मप्रकृति
-
गाथार्थ – स्थिति - उदय भी स्थिति के क्षय से और प्रयोग से होता है । उत्कृष्ट स्थिति - उदय उदीरणा से एक समय अधिक है और छत्तीस प्रकृतियों का जघन्य स्थिति - उदय एक उदय स्थिति प्रमाण है ।
-
विशेषार्थ उदय दो प्रकार का है स्थितिक्षय से होने वाला और प्रयोग से होने वाला । अबाधा काल रूप स्थिति के क्षय से द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव रूप उदय के कारणों की प्राप्ति होने पर जो स्वभाव से उदय होता है वह स्थितिक्षय से होने वाला उदय कहलाता है। ."स्थितिरबाधाकाल-रूपा तस्याः क्षयेण द्रव्य-क्षेत्र - काल-भव-भाव - रूपाणामुदयहेतूनां प्राप्तौ सत्यां यः स्वभावतः उदयः प्रवर्तते स स्थितिक्षयेणोदयः " और जो उस उदय के प्रवर्तमान होने पर उदीरणाकरण रूप प्रयोग से दलिक को खींचकर अनुभव किया जाता है उसे प्रयोग उदय कहते हैं पुनस्तस्मिन्नुदये प्रवर्तमाने सति उदीरणाकरणरूपेण प्रयोगेणदलिकमाकृष्यानुभवति स प्रयोगोदयः । ' इसी बात का गाथा में संकेत दिया गया है कि स्थिति उदय भी स्थिति के क्षय से और प्रयोग से होता है ।
_
'यः
स्थिति - उदय दो प्रकार का है – उत्कृष्ट और जघन्य । जो उत्कृष्ट स्थिति - उदय है, वह उदीरणा के द्वारा स्थितिउदय से अधिक होता है। जिसका आशय यह है कि उत्कृष्ट स्थिति के बंधने पर अबाधा काल में भी पहले बंधा हुआ दलिक है, इस कारण बंधावलिका के व्यतीत होने पर अनन्तर स्थिति में विपाकोदय से जीव वर्तमान उदयावलिका से ऊपर की सभी स्थितियों की उदीरणा करता है। और उदीरणा करके वेदन करता है । इसलिये बंधावलिका और उदयावलिका से हीन शेष सभी स्थिति की उदय और उदीरणा समान होती है । वेद्यमान स्थिति में उदीरणा नहीं होती है, किन्तु केवल उदय ही होता है। इसलिये वेद्यमान समय मात्र स्थिति से अधिक स्थिति - उदीरणा से उत्कृष्ट स्थिति - उदय, बंधावलिका उदयावलिका से हीन उत्कृष्ट स्थितिउदय उदयोत्कृष्ट बंध वाली प्रकृतियों का जानना चाहिये और शेष प्रकृतियों का यथायोग्य जानना चाहिये। उनमें भी ऊपर कही गई रीति से