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उदयप्रकरण ]
[ ३२७ जाता है। ध्रुव, अध्रुव विकल्प पूर्व के समान जानना चाहिये।
... मोहनीयकर्म का अजघन्य और अनुत्कृष्ट प्रदेशोदय चार प्रकार का है, यथा - सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है -
क्षपितकर्मांश जीव के अन्तरकरण करने पर अन्तरकरणपर्यन्त होने वाले गोपुच्छाकार से स्थित आवलिका प्रमाण दलिकों के अंत समय में मोहनीय का जघन्य प्रदेशोदय होता है और वह एक समय वाला है। इस कारण सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी प्रदेशोदय अजघन्य है और वह भी दूसरे समय में होता है, इसलिये सादि है। उस स्थान को अप्राप्त जीव के अनादि है। ध्रुव, अध्रुव विकल्प पूर्व के समान समझना चाहिये। अर्थात् अभव्य की अपेक्षा ध्रुव और भव्य की अपेक्षा अध्रुव है तथा गुणितकांश जीव के सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान के अंत समय में उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है और वह एक समय मात्र होता है, इसलिये सादि और अध्रुव है, उससे अन्य सभी अनुत्कृष्ट प्रदेशोदय है
और वह उपशमश्रेणी से गिरने वाले जीव के होने से सादि है। उस स्थान को अप्राप्त को अनादि तथा ध्रुव, अध्रुव पूर्ववत् समझना चाहिये।
___ आयुकर्म के उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य रूप चारों ही भेद सादि और अध्रुव होते हैं। क्योंकि चारों ही भेद यथायोग्य नियतकाल में होते हैं।
पूर्व में कहे गये सभी कर्मों के और मोहनीय के शेष रहे उत्कृष्ट और जघन्य रूप विकल्प सादि और अध्रुव हैं । जिनको पूर्व में यथाप्रसंग स्पष्ट किया जा चुका है।
___ इस प्रकार मूल प्रकृतियों की सादि - अनादि प्ररूपणा जानना चाहिये। अब उत्तर प्रकृतियों की सादि - अनादि प्ररूपणा करते हैं -
अजहण्णाणुक्कोसो, सगयालाए चउत्तिहा चउहा।
मिच्छत्ते सेसासिं, दुविहा सव्वे य सेसाणं॥७॥ शब्दार्थ – अजहण्णाणुक्कोसो – अजघन्य, अनुत्कृष्ट, सगयालाए - सैंतालीस प्रकृतियों का, चउत्तिहा - चार और तीन प्रकार का, चउहा - चार प्रकार का, मिच्छत्ते - मिथ्यात्व का, सेसासिं - उनके शेष विकल्प, दुविहा - दो प्रकार के, सव्वे - सर्व विकल्प, य - और, सेसाणं- शेष प्रकृतियों के।
गाथार्थ – सैंतालीस प्रकृतियों का अजघन्य और अनुत्कृष्ट प्रदेशोदय क्रमशः चार और तीन प्रकार का है तथा मिथ्यात्व का अजघन्य और अनुत्कृष्ट प्रदेशोदय चार प्रकार का है। उक्त प्रकृतियों के शेष विकल्प और शेष प्रकृतियों के सर्व विकल्प दो प्रकार के होते हैं।