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[कर्मप्रकृति विशेषार्थ – तैजससप्तक, वर्णादि बीस, स्थिर, अस्थिर, निर्माण, अगुरुलघु, शुभ, अशुभ, ज्ञानावरणपंचक, अन्तरायपंचक और दर्शनावरणचतुष्क, इन सैंतालीस प्रकृतियों का अजघन्य प्रदेशोदय चार प्रकार का है, यथा - सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव । वे इस प्रकार जानना चाहिये -
___कोई क्षपितकांश देव उत्कृष्ट संक्लेश में वर्तमान उत्कृष्ट स्थिति को बांधता हुआ उत्कृष्ट प्रदेशाग्र की उद्वर्तना करता है । तत्पश्चात् बंध के अंत में एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुआ, उसके प्रथम समय में पूर्वोक्त सैंतालीस प्रकृतियों का जघन्य प्रदेशोदय होता है। विशेष यह है कि अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरण का जघन्य प्रदेशोदय बंधावलिका के चरम समय में उस देव के जानना चाहिये और वह एक समय वाला है। इस कारण सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी प्रदेशोदय अजघन्य है और वह दूसरे समय में होता है, अतः वह सादि है। इस स्थान को अप्राप्त जीव के वह अनादि है । ध्रुव और अध्रुव विकल्प पूर्व के समान जानना चाहिये।
इन्हीं पूर्वोक्त सैंतालीस प्रकृतियों का अनुत्कृष्ट प्रदेशोदय तीन प्रकार का है, यथा – अनादि, ध्रुव और अध्रुव। जिसका स्पष्टीकरण यह है -
गुणितकर्माशिक और गुणश्रेणी शीर्ष पर वर्तमान के अपने अपने उदय के अंत में उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है, और वह एक समय वाला है, इस कारण सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी प्रदेशोदय अनुत्कृष्ट है और वह अनादि है क्योंकि सदैव पाया जाता है। ध्रुव अध्रुव विकल्प पूर्व के समान जानना चाहिये।
मिथ्यात्व का अजघन्य और अनुत्कृष्ट प्रदेशोदय चार प्रकार का है, यथा - सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव। वे इस प्रकार जानना चाहिये -
___ जिस क्षपितकर्मांश जीव ने प्रथम सम्यक्त्व को उत्पन्न हुये, अन्तरकरण कर लिया है और औपशमिक सम्यक्त्व से च्युत होकर मिथ्यात्व में आने पर अन्तरकरण पर्यन्त होने वाले गौपुच्छाकार से स्थित आवलिका प्रमाण दलिकों के अन्तसमय में वर्तमान हो उस जीव के जघन्य प्रदेशोदय होता है
और वह एक समय मात्र का है। इस कारण सादि और अध्रुव है। इससे अन्य सभी प्रदेशोदय अजघन्य है वह भी दूसरे समय में होता है, इसलिये सादि है । अथवा वेदक सम्यक्त्व से पतित जीव के होता है, इसलिये सादि है। उस स्थान को अप्राप्त जीव के अनादि है। ध्रुव और अध्रुव विकल्प पूर्व के समान जानना चाहिये।
अब मिथ्यात्व के अनुत्कृष्ट विकल्प के चार प्रकारों को स्पष्ट करते हैं - देशविरति की गुणश्रेणी में वर्तमान कोई गुणितकर्मांश जीव जब सर्वविरति को प्राप्त होता है