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सत्ताप्रकरण ]
उत्कृष्ट स्थितिसत्व है। इसी प्रकार द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति, आहारकसप्तक मनुष्यानुपूर्वी, देवानुपूर्वी का यथोक्त प्रमाण वाला उत्कृष्ट स्थितिसत्व जानना चाहिये ।
सम्यग्मिथ्यात्व का अन्तर्मुहूर्तोन उत्कृष्ट स्थितिसमागम एक समय कम आवलिका से अधिक उत्कृष्ट सत्व भी सम्यक्त्वमोहनीय के उत्कृष्ट स्थितिसत्व के अनुसार समझना चाहिये ।
'उभयासिं जट्ठिई तुल्ला त्ति' अर्थात् उदयवती और अनुदयवति दोनों ही प्रकार की संक्रमोत्कृष्ट स्थितिवाली प्रकृतियों के संक्रमणकाल में जो यत्स्थिति है, उसके समान ही उनका स्थितिसत्व होता है । क्योंकि अनुदयवती प्रकृतियों की भी उस समय स्तिबुकसंक्रमण से उदयवती प्रकृतियों में संक्रान्त होती हुई भी प्रथम स्थिति दलिक रहित ही पाई जाती है। क्योंकि काल का संक्रम नहीं किया जा सकता है । किन्तु उस काल में (समय में) स्थित दलिक ही संक्रमण किया जाता है । इसलिये प्रथम स्थितिगत दलिक के संक्रान्त हो जाने पर भी दलिक रहित प्रथमस्थिति उस समय पाई ही जाती है । इसलिये उन दोनों की उदयवती और अनुदयवती प्रकृतियों की जो यत्स्थिति है उसके तुल्य ही उनका स्थितिसत्व होता है और जो जीव जिन प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति को बांधता है और जो उत्कृष्ट स्थिति को संक्रान्त करता है वह जीव उन प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिसत्व का स्वामी होता है ।
इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिसत्व का स्वामित्व जानना चाहिये ।
जघन्य स्थितिसत्व का स्वामित्व
संजणति सत्सु य, नोकसाएसु संकम जहन्नो । साण ठिई एगा दुसमयकाला अणुदयाणं ॥ १९॥ संजलणतिगे संज्वलनत्रिक, सत्तसु - सात, य और, नोकसा
संकमजहन्नो जघन्य स्थितिसंक्रम, सेसाण शेष की, ठिई – स्थिति, एगा - दो समय काल प्रमाण, अणुदयाणं - अनुदयवती प्रकृतियों का ।
शब्दार्थ
नोकषायों का एक, दुसमयकाला
गाथार्थ संज्वलनत्रिक और सात नोकषायों का जघन्य स्थितिसत्व जघन्य स्थिति संक्रम के समान । शेष उदयवती प्रकृतियों का एक समय प्रमाण और अनुदयवती प्रकृतियों का दो समय प्रमाण जघन्य स्थिति सत्व है
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विशेषार्थ क्रोध मान माया रूप संज्वलनत्रिक का पुरुषवेद हास्यादि षट्क इन सात नोकषायों का जघन्य स्थितिसत्व जघन्य स्थितिसंक्रम के समान जानना चाहिये। क्योंकि ये प्रकृतियां बंध और उदय के विच्छिन्न हो जाने पर अन्य प्रकृति में संक्रमण से क्षय को प्राप्त होती हैं । इस