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स्थितिसत्व-स्वामित्व निरूपण
अब क्रमप्राप्त स्वामित्व का कथन करते हैं । वह दो प्रकार का है उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्म - स्वामित्व और जधन्य स्थिति सत्कर्म - स्वामित्व । इन दोनों में से पहले उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्म का निरूपण करते है
शब्दार्थ - जेट्ठठिई - उत्कृष्ट स्थिति, बंधसमं उत्कृष्ट, बंधोदया बंध और उदय, उ किन्तु,
बंधपराणं जेट्टं - उत्कृष्ट ( स्थितिसत्व) ।
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अनुदय बंधवती प्रकृतियों का, समऊणा
[ कर्मप्रकृति
जेठई बंधसमं, जेट्टं बंधोदया उ जासि सह । अणुदय बंधपराणं, समऊणा जट्ठिई जेट्टं ॥ १७॥ (स्थिति) बंध के जिनके सह
समयोन, ज
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1
जे
समान,
साथ, अणुदय
उत्कृष्टस्थिति,
गाथार्थ जिन प्रकृतियों का बंध और उदय समकाल में होता है उनका उत्कृष्ट स्थितिसत्व उत्कृष्ट स्थितिबंध के समान है । किन्तु अनुदयबंधवती प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिसत्व समयोन उत्कृष्ट स्थितिबंध के तुल्य है ।
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विशेषार्थ जिन प्रकृतियों का बंध और उदय एक साथ होता है उनका उत्कृष्ट स्थितिसत्व उत्कृष्ट स्थितिबंध के समान होता है ।
प्रश्न किन प्रकृतियों का एक साथ बंध और उदय होता ?
उत्तर
वे प्रकृतियों इस प्रकार हैं- ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, असातावेदनीय, मिथ्यात्व सोलह कषाय, पंचेन्द्रियजाति, तैजससप्तक, हुंडकसंस्थान वर्णादि बीस प्रकृति, अगुरुलघु, पराघात, उपघात, उच्छ्वास, अप्रशस्तविहायोगति, उद्योत, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय अयशःकीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र, अंतरायपंचक और मनुष्य एवं तिर्यंचों की अपेक्षा वैक्रियसप्तक, इन छियासी प्रकृतियों का बंध और उदय एक साथ होता है । इन युगपत् बंधोदय वाली प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म उत्कृष्ट स्थितिबंध के प्रमाण होता है । इन प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिबंध के प्रारम्भ में अबाधा काल में भी पूर्वबद्ध दलिक पाये जाते हैं और उनकी प्रथम स्थिति अन्य प्रकृतियों में स्तिबुकसंक्रमण के द्वारा संक्रान्त नहीं होती है। क्योंकि वे उदयवती हैं, इसलिये उनका उत्कृष्ट स्थितिबंध प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिसत्व होता है ।
किन्तु अनुदय बंधपरक प्रकृतियों का एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म है । अनुदय अर्थात् उदय के अभाव में जिन प्रकृतियों का पर अर्थात उत्कृष्ट स्थितिबंध होता है वे अनुदय