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प्रदेश - उदय
प्रदेशोदय का विचार करने के दो अर्थाधिकार हैं, यथा सादि-अनादि प्ररूपणा और स्वामित्व । सादि-अनादि प्ररूपणा दो प्रकार की है - मूल प्रकृति विषयक और उत्तर प्रकृति विषयक । इनमें से पहले मूल प्रकृति विषयक सादि-अनादि प्ररूपणा करते हैं
अजहण्णाणुक्कोसा, चउ त्तिहा छण्ह चउव्विहा मोहे । आउस्स साइअधुवा, सेसविगप्पा य सव्वेसिं ॥ ६ ॥ शब्दार्थ – अजहण्णाणुक्कोसा
अजघन्य अनुत्कृष्ट, चउ त्तिहा
चार और तीन
प्रकार का, छण्ह छह कर्मों का, चउव्विहा चार प्रकार का, मोहे - मोहनीय का, आउस्स आयुकर्म का, साइअधुवा - सादि, अध्रुव, सेसविगप्पा शेष विकल्प, य
और, सव्वेसिं
सर्वकर्मों के ।
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[ कर्मप्रकृति
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गाथार्थ
छह कर्मों का अजघन्य और अनुत्कृष्ट प्रदेशोदय क्रमशः चार और तीन प्रकार का है। मोहनीय कर्म का अजघन्य और अनुत्कृष्ट प्रदेशोदय चार प्रकार का है। आयु के सभी विकल्प और शेष सर्व कर्मों के शेष विकल्प सादि और अध्रुव हैं ।
विशेषार्थ
मोहनीय और आयुकर्म को छोड़ कर शेष छह कर्मों का अजघन्य प्रदेशोदय चार प्रकार का है, यथा - सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव । वह इस प्रकार जानना चाहिये
कोई क्षपितकर्मांश जीव देवलोक में उत्पन्न हुआ और वहां संक्लेश परिणामी हो कर उक्त छह कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति को बांधता हुआ उत्कृष्ट प्रदेशाग्र की उद्वर्तना करता है । पुनः बंध के अंत में काल करके एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुआ । उसके प्रथम समय में पूर्वोक्त छहों कर्मों का जघन्य प्रदेशोदय होता है और वह एक समय वाला है । इस कारण सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी प्रदेशोदय अजघन्य है। वह भी उसके दूसरे समय में होता है, इसलिये सादि है और उस स्थान को अप्राप्त जीव के अनादि है । ध्रुव और अध्रुव विकल्प क्रमशः अभव्य और भव्य जीवों की अपेक्षा पूर्ववत् समझना चाहिये ।
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इन्हीं छहों कर्मों का अनुत्कृष्ट प्रदेशोदय तीन प्रकार का होता है, यथा अनादि, ध्रुव और अध्रुव । वह इस प्रकार है
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इन छहों कर्मों का उत्कृष्ट प्रदेशोदय पूर्वोक्त स्वरूप वाले गुणितकर्मांश के अपने अपने उद के अंत में गुणश्रेणीशीर्ष पर वर्तमान जीव में पाया जाता है और वह एक समय वाला है । इस कारण सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी प्रदेशोदय अनुत्कृष्ट है और वह अनादि है । क्योंकि सदैव पाया