________________
३१८ ]
[ कर्मप्रकृति आयु कर्म तथा गोत्रकर्म के एक प्रकृतिक और दो प्रकृतिक इस तरह दो स्थान देशोपशमना के योग्य होते हैं। इस प्रकार देशोपशमना का विवेचन जानना चाहिये। स्थिति - देशोपशमना अब स्थिति देशोपशमना का कथन करते हैं -
ठिइसंकमव्व ठिइ उवसमणा णवरि जहनिया कज्जा।
अब्भवसिद्धि जहन्ना उव्वलगनियट्टिगे वियरा॥ ७०॥ शब्दार्थ – ठिइसंकमव्व – स्थितिसंक्रम के स्थान, ठिइउवसमणा – स्थिति उपशमना, णवरि - विशेष, जहनिया - जघन्य स्थिति में, कजा – कहना चाहिये, अब्भवसिद्धि - अभव्यसिद्धिक, जहन्ना - जघन्य, उव्वलगनियट्टिगे – उद्वलना और अपूर्वकरण में, वियरा - उससे इतर।
गाथार्थ – स्थितिसंक्रम के समान स्थिति - देशोपशमना कहना चाहिये। विशेष यह है कि जघन्य स्थिति - देशोपशमना में अभव्यसिद्धकप्रायोग्य जघन्यस्थिति जानना और उससे इतर स्थिति वाली प्रकृतियों की देशोपशमना उद्वलना में अथवा अपूर्वकरण में जानना चाहिये।
विशेषार्थ – स्थितिसंक्रम के समान स्थिति - देशोपशमना जानना चाहिये। किन्तु विशेष यह है कि यहां जघन्य स्थिति - देशोपशमना के योग्य जानना चाहिये। जिसका अभिप्राय यह है कि यह जघन्य स्थिति अभव्यसिद्धिक के योग्य ग्रहण करना चाहिये।
___ स्थिति - देशोपशमना दो प्रकार की होती है – मूल प्रकृति - देशोपशमना और उत्तरप्रकृतिदेशोपशमना। ये दोनों प्रत्येक दो दो प्रकार की हैं – जघन्य और उत्कृष्ट । इनमें मूल प्रकृतियों की और उत्तर प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति देशोपशमना का स्वामी जो पहले उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम का स्वामी प्रतिपादित किया गया है, वही जानना चाहिये तथा जघन्य स्थिति देशोपशमना का स्वामी भी जघन्य स्थितिसंक्रम के स्वामी के समान ही जानना चाहिये। केवल उसमें यह विशेष है कि जघन्य स्थितिदेशोपशमना का स्वामी अभव्यसिद्धिक के योग्य जघन्य स्थिति में वर्तमान एकेन्द्रिय जानना चहिये। क्योंकि उसके ही प्रायः सर्वकर्मों की अति जघन्य स्थिति प्राप्त होती है और जो अन्य प्रकृतियां अभव्यसिद्धिक के योग्य जघन्य स्थिति वाली होती हैं, उनकी उद्वलना करने वाले जीव में अथवा अपूर्वकरण में वर्तमान जीव में जघन्य स्थिति - देशोपशमना जानना चाहिये।
उद्वलन प्रायोग्य प्रकृतियों के पल्योपम के अंख्यातवें भाग मात्र अंतिम स्थिति खंड में वर्तमान एकेन्द्रिय अथवा अनेकेन्द्रिय जीव आहारकसप्तक, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की जघन्य