________________
उदीरणाकरण ]
उदीरणा के स्वामित्व का विवेचन करते हैं
तप्पगओदीरगतिसंकिलिट्ठ भावो अ सव्व पगईणं । नेयो जहण्णसामी अणुभागुत्तो य तित्थयरे ॥ ८८ ॥ शब्दार्थ – तप्पगओदीरग उस उस प्रकृति का उदीरक, तिसंकिलिट्टभावो अ संक्लिष्ट भाव वाला, सव्वपगईणं - सभी प्रकृतियों का, नेयो जानना चाहिये, जहण्णसामी जघन्य (प्रदेश उदीरणा का ) स्वामी, अणुभागुत्तो - अनुभाग उदीरणा में कहे अनुसार, य - और, तित्थयरे तीर्थंकर का ।
गाथार्थ
सभी प्रकृतियों की जघन्य प्रदेश उदीरणा का स्वामी अति संक्लिष्ट भाव वाला उस उस प्रकृति का उदीरक जानना चाहिये । तीर्थंकर नाम का जघन्य प्रदेश उदीरक जघन्य अनुभाग उदीरणा में कहे गये अनुसार जानना चाहिये ।
-
-
-
―
[ २५३
—
अति
-
विशेषार्थ जो उन उन प्रकृतियों का उदीरक होता है, वह अति संक्लिष्ट परिणामी क्षपित - कर्मांशिक जीव अपने-अपने योग्य सभी प्रकृतियों की जघन्य प्रदेश उदीरणा का स्वामी जानना चाहिये, जिसका स्पष्ट आशय इस प्रकार है
2
अवधिज्ञानावरण को छोड़कर शेष चार ज्ञानावरणों का अवधिदर्शनावरण को छोड़कर शेष तीन दर्शनावरणों का, साता - असाता वेदनीय का, मिथ्यात्व का, सोलह कषायों का और नौ नोकषायों का, कुल मिलाकर इन पैंतीस प्रकृतियों की जघन्य प्रदेश उदीरणा का स्वामी सर्व पर्याप्तियों से पर्याप्त और सर्व संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि है, निद्रापंचक की जघन्य प्रदेश उदीरणा का स्वामी तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त जीव है ।
जो अनन्तर समय में मिथ्यात्व को प्राप्त होगा, वह अति संक्लिष्ट परिणाम वाला जीव सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की जघन्य प्रदेश उदीरणा का स्वामी होता है । गतिचतुष्क, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकसप्तक, वैक्रियसप्तक, तैजससप्तक, संस्थानषट्क, संहननषट्क, वर्णदि बीस, पराघात, उपघात, अगुरुलघु, उच्छ्वास, उद्योत, विहायोगतिद्विक, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुःस्वर, आदेय, अनादेय, यश: कीर्ति, अयशः कीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र, नीचगोत्र और अन्तरायपंचक इन नवासी प्रकृतियों की जघन्य प्रदेश उदीरणा का स्वामी सर्वोत्कृष्ट संक्लेश से युक्त पर्याप्त संज्ञी जानना चाहिये ।
आहारकसप्तक का तत्प्रायोग्य संक्लेश से युक्त आहारकशरीरी, आनुपूर्वियों का तत्प्रायोग्य ...संक्लेश से विग्रहगति वाला, आतप का सर्व संक्लिष्ट बादर पृथ्वीकायिक जीव, एकेन्द्रियजाति, स्थावर और साधारण नाम का सर्वोत्कृष्ट संक्लेश से युक्त एकेन्द्रिय जीव और सूक्ष्म नामकर्म का सर्व संक्लिष्ट