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उपशमनाकरण ]
अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण लोभ
संज्वलन माया
अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण माया
संज्वलन मान
अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण मान
संज्वलन क्रोध
अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण क्रोध
पुरुषवेद
हास्यादि नोकषाय
स्त्रीवेद
नपुंसकवेद
दर्शनमोहनीयत्रिक
अनन्तानुबंधी कषाय का चतुष्क
अब देशोपशमना का प्रतिपादन करते हैं
१. पुरुषवेद प्रारम्भक की अपेक्षा यह प्रारूप है।
२. आरोहण की अपेक्षा नीचे से ( अनन्तानुबंधी चतुष्क से ) ऊपर की ओर क्रम समझना चाहिये। और अवरोहण की अपेक्षा इससे विपरीत अर्थात् ऊपर से (उपशांतमोह गुणस्थान से) प्रारम्भ कर नीचे की ओर (अनन्तानुबंधी कषायचतुष्क तक) क्रम जानना चाहिये । इस प्रकार सर्वोपशमना का विवेचन किया गया ।
देशोपशमना
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पगइठिई अणुभाग प्पएसमूलत्तराहि पविभत्ता । देसकरणोवसमणा तीए समियस्स अट्ठपयं ॥ ६६ ॥
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मूल और उत्तर भेद से, पविभत्ता - प्रविभक्त, देसकरणोवसमणा
उसके, समियस्स – उपशमित का, अट्ठपयं - अर्थपद (तात्पर्य ) ।
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शब्दार्थ – पगइठिई अणुभागप्पएस - प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश, मूलत्तराहि
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देशकरणोपशमना, तीए
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