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उपशमनाकरण ]
अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा विनाश करता है। इस प्रकार एक एक स्थितिखंड में हजारों अनुभागखंड विनष्ट होते हैं। ऐसे हजारों स्थितिखंडों के द्वारा दूसरा अपूर्वकरण समाप्त होता है।
अब स्थितिबंधाद्धा का आशय बतलाते हैं
पूर्वकरण के प्रथम समय में पल्योपम के संख्यातवें भाग से हीन अन्य ही अपूर्व स्थितिबंध प्रारम्भ करता है । इस प्रकार स्थितिघात और नवीन स्थितिबंध ये दोनों अपूर्वकरण के प्रथम समय में एक साथ ही आरम्भ होते हैं और एक साथ ही पूर्णता को प्राप्त होते हैं ।
अब गुणश्रेणी का स्वरूप कहते हैं .
गुणसेढी निक्खेवो समए समए असंखगुणणाए । अद्धादुगाइरित्तो सेसे सेसे य निक्खेवो ॥ १५ ॥ शब्दार्थ गुणसेढी - गुणश्रेणी, निक्खेवो निक्षेप, समए समए (प्रत्येक समय में), असंखगुणणा असंख्यात गुणित क्रम से, अद्धा • काल, दुगाइरित्तो – दो करण काल से अधिक, सेसे सेसे - शेष शेष समय में, य और, निक्खेवो निक्षेप होता है ।
समय समय में
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गाथार्थ समय समय में असंख्यातगुणित क्रम से जो दलिक निक्षेप किया जाता है, उसे गुणश्रेणी कहते हैं । उसका काल दो करण कालों से कुछ अधिक होता है और शेष शेष समय में दलिक निक्षेप होता है ।
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अब इसका विशेष आशय स्पष्ट करते हैं
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विशेषार्थ जिस स्थितिकंडक को घात करता है, उसके मध्य में से दलिक को ग्रहण कर उदय समय से लेकर प्रतिसमय असंख्यात गुणित क्रम से निक्षिप्त करता है, यथा उदय समय में अल्प दलिक निक्षिप्त करता है, दूसरे समय में असंख्यात गुणित दलिक और उससे भी तीसरे समय में असंख्यात गुणित दलिक निक्षिप्त करता है । इस प्रकार तब तक कहना चाहिये जब तक कि अन्तर्मुहूर्त का चरम समय प्राप्त हो, वह अन्तर्मुहूर्त अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण के काल से कुछ अधिक जानना चाहिये ।
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गुणश्रेणी में निक्षेप समय समय में असंख्यात गुणित क्रम से पूर्व पूर्व के समय की अपेक्षा उत्तर उत्तर समय में वृद्धि रूप होता है और वह भी निक्षेप अद्धाद्विक से अतिरिक्त अर्थात् अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण के काल से कुछ अधिक काल का होता है । यह विधि प्रथम समय में ग्रहण किये गये दलिकों के निक्षेप की भी जानना चाहिये। इसी प्रकार द्वितीयादि समय में ग्रहीत दलिकों की निक्षेपविधि भी जानना चाहिये ।