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उपशमनाकरण ]
अणुमइविरओय - अनुमति मात्र से विरत, जई सर्वविरत, दोह वि करण, दोन्हि – दोनों, न उ तईयं - तीसरा नहीं, पच्छा तावइया उतने ही प्रमाण वाली, आलिगा (उदय)
करणाणि गुणश्रेणी, सिं – उनके,
उप्पिं
ऊपर ।
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दोनों के,
बाद में, गुणसेढीआवलिका से
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गाथार्थ अज्ञान, अनभ्युपगम और अयतना द्वारा अविरत होता है । एक व्रत आदि से लेकर अंतिम अनुमति मात्र देने तक पाप की विरति वाला देशविरत जानना चाहिये और जो अनुमति मात्र से भी विरत है वह सर्वविरम यति है । इन दोनों भावों में देशविरत सर्वविरत यति, आदि के दो करण होते हैं, तीसरा नहीं। पश्चात् उन दोनों के गुणश्रेणी उतने ही प्रमाण वाली होती है, किन्तु उदयावलिका से ऊपर जानना चाहिये ।
विशेषार्थ जो व्रतों को न जानता है, न स्वीकार करता है और न उनके पालन के लिये प्रयत्न करता है, वह अज्ञान, अनभ्युपगम और अयतना से अविरत है । इन तीनों पदों से आठ भंग होते हैं। इनमें से आदि के सात भंगों में नियम से अविरत धुणाक्षर न्यास से व्रतों को पालता भी है, तो भी वे फल वाले नहीं होते हैं । किन्तु सम्यग्ज्ञान और सम्यग्प्रकार से ग्रहणपूर्वक ही पालन किये गये व्रत फल देने वाले होते हैं । इन आठ भंगों में से आदि के चार भंगों में सम्यग्ज्ञान का अभाव है और आगे
तीन भंगों में सम्यग्रहण है किन्तु सम्यक्परिपालन का अभाव है । इसलिये आदि के इन सात भंगों में वर्तमान जीव नियम से अविरत है और अंतिम अष्टम भंग में वर्तमान जीव देशविरत है । क्योंकि उसके अवद्य अर्थात् पाप की एकदेश विरति पाई जाती है।
वह देशविरत (श्रावक) एक व्रतादि अर्थात् एक व्रत ग्राही भी होता है, दो व्रत ग्राही भी होता है, इस प्रकार यावत् चरम अनुमति मात्र प्रतिसेवी तक देशविरत जानना चाहिये । उस अनुमति मात्र प्रतिसेवी ने शेष सकल पाप त्याग दिये हैं । अनुमति तीन प्रकार की जानना चाहिये
१. प्रतिसेवानुमति, २ . प्रतिश्रवणानुमति और ३ संवासानुमति । इनके लक्षण इस प्रकार हैं -
१. जो स्वयं या दूसरों के द्वारा किये गये पाप की प्रशंसा करता है अथवा सावद्य आरंभ से उत्पन्न भोजनादि का उपभोग करता है, तब उसके प्रतिसेवनानुमति जानना चाहिये यः स्वयं परैर्वा कृतं पापं श्लाघते सावद्यारंभोपपन्नं वाऽशनाद्युपभुंक्ते तदा तस्य प्रतिसेवनानुमतिः ।
२. जब वह पुत्रादिकों के द्वारा किये गये पाप को सुनता है और सुन कर अनुमोदन करता है, किन्तु निषेध नहीं करता है, तब प्रतिश्रवणानुमति कहलाती है, पुत्रादिभिः कृतं पापं शृणोति १. इन आठ भंगों के नाम और स्पष्टीकरण परिशिष्ट में देखिये ।