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. अब इनमें से स्थितिघात आदि का प्रतिपादन करते हैं।
उयहिपुहुत्तुक्कस्सं, इयरं पल्लस्स संखतमभागो । ठिकंडगमणुभागा - णणंतभागा मुहुत्तंतो ॥ १३॥ अणुभागकंडगाणं, बहुहिं सहस्सेहिं पूरए एक्कं । ठिइकंडगं सहस्सेहिं, तेसिं बीयं सहस्सेहिं ॥ १४ ॥
[ कर्मप्रकृति
शब्दार्थ - उयहिपुहुत्तुक्कस्सं उत्कृष्टतः उदधि (सागरोपम) पृथक्त्व, इयरं - इतर (जघन्य) से, पल्लस्ससंखतमभागो पल्य के संख्यातवें भाग, ठिइकंडगम स्थितिकंडक को, अणुभागाण - अणुभाग के, अनंतभागा - अनन्तवें भाग को, आमुहुत्तंत्तो - अन्तर्मुहूर्त में । अणुभागकंडगाणं - अनुभाग कंडक, बहुहिंसहस्सेहिं - बहुत से हजारों द्वारा, पूरए - पूरित करता है, एक्कं - एक, ठिइकंडगं - स्थितिकंडक को, सहस्सेहिं – हजारों द्वारा, तेसिं उसके, बीयं - दूसरे, सहस्सेहिं हजारों द्वारा ।
गाथार्थ (अंतिम स्थितिसत्ता में से) उत्कृष्ट सागरोपम पृथक्त्व प्रमाण स्थिति को और जघन्य रूप से पल्योपम के संख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिकंडक को तथा अनुभागसत्व के अनंतवें भाग को अन्तर्मुहूर्त में उत्कीर्ण करता है। इस प्रकार हजारों अनुभागकंडकों से एक स्थितिकंडक को पूरा करता है। वे हजारों स्थितिकंडक दूसरे अपूर्वकरण को पूरित करते हैं ।
विशेषार्थ – पहले स्थितिघात को स्पष्ट करते हैं । कर्मों के स्थितिसत्व के अग्रिम भाग से. उत्कर्षत: प्रमाण बहुत से सैकड़ों सागरोपम प्रमाण और जघन्यतः पल्योपम के संख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिकंडकों को उत्कीर्ण करता है और उत्कीर्ण करके जिन स्थितियों को नीचे खंडित नहीं करेगा, उनमें उस उत्कीर्णदलिक को प्रक्षिप्त करता है। वह एक स्थितिकंडक अन्तर्मुहूर्तकाल से उत्कीर्ण कियां जाता है । तदनन्तर पुनः नीचे के पल्योपम के संख्यातवें भाग मात्र स्थितिकंडक को अन्तर्मुहूर्त' काल के द्वारा उत्कीर्ण करता है और पूर्वोक्त प्रकार से ही उसे निक्षिप्त करता है, इस प्रकार अपूर्वकरण के काल में बहुत से हजारों स्थितिखंड व्यतीत करता है। ऐसा होने पर अपूर्वकरण के प्रथम समय में जो कर्मो का स्थितिसत्व था, उसी अपूर्वकरण के चरम समय में संख्यात गुणाहीन हो जाता है ।
अब रसघात को स्पष्ट करते हैं - 'अणुभागाणं ' इत्यादि अर्थात् अशुभ प्रकृतियों के अनुभागसत्व के अनन्तवें भाग को छोड़ कर शेष सभी अनुभाग को अन्तर्मुहूर्त काल के द्वारा क्षय करता है । तदनन्तर पहले छोड़े गये उस अनन्तवें भाग के अनन्तवें भाग को छोड़ कर शेष सभी बहुभाग अनुभाग
१. पंचसंग्रह में (पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र स्थितिकंडक) यह पाठ है।