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[ कर्मप्रकृति
है । इसलिये ये दोनों ही सादि और अध्रुव हैं। इन प्रकृतियों की उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणा का पहले विचार किया जा चुका है।
ऊपर कही गई प्रकृतियों के अतिरिक्त शेष एक सौ दस प्रकृतियों के सभी जघन्य, अजघन्य, उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट विकल्प दो प्रकार के होते हैं, यथा सादि और अध्रुव । इनकी सादिता और अध्रुवता अध्रुव उदीरणा रूप होने से जानना चाहिये। इस प्रकार मूल और उत्तर प्रकृति विषयक सादिअनादि प्ररूपणा है ।
स्वामित्व प्ररूपणा
अब स्वामित्व प्ररूपणा करते हैं । उसके दो प्रकार हैं १. उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा स्वामित्व और २. जघन्य प्रदेश - उदीरणा स्वामित्व । इनमें से पहले उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणा स्वामित्व कहते हैं । अणुभागुदीरणाए जहण्णसामी पएसजेट्ठाए । घाईणं अन्नयरो ओहीण विणोहिलंभेण ॥ ८२ ॥
शब्दार्थ
अणुभागुदीरणाए - अनुभाग उदीरणा में, जहण्णसामी
जघन्य (अनुभाग उदीरणा के स्वामी, पएसजेट्ठाए – उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणा में, घाईणं - घाति कर्मों की, अन्नयरो - अन्यतर, ओहीण - अवधिद्विक का, विणोहिलंभेण
अवधिलब्धिरहित ।
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गाथार्थ घातिकर्मों की अनुभाग- उदीरणा में जिस प्रकार जघन्य अनुभाग- उदीरणा के, स्वामी हैं, वे उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा में जानना चाहिये । विशेष यह है कि वह अन्यतर अर्थात् श्रुत केवली या अन्य जीव होता है । अवधिद्विक का अवधिलब्धि रहित जीव उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणा का स्वामी होता है । विशेषार्थ सभी घातिकर्मों की अनुभाग- उदीरणा में जो जो जघन्य अनुभाग- उदीरणा का स्वामी पूर्व में बताया गया है, वही गुणितकर्मांश जीव उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणा का स्वामी जानना चाहिये । विशेष यह है कि वह अन्यतर अर्थात् श्रुतकेवली या अन्य कोई जीव होता है । अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरण की उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करने वाला अवधिलब्धि से हीन जानना चाहिये ।
उक्त संक्षिप्त कथन का विशेष स्पष्टीकरण इस प्रकार है - अवधिज्ञानावरण को छोड़कर शेष चार ज्ञानावरणों की चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण इन सात प्रकृतियों की उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा गुणितकर्यांश समयाधिक आवलिका काल शेष रही स्थिति में वर्तमान श्रुत - केवली या 'इतर' अर्थात् क्षीणकषायी जीव होते हैं ।
अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरण की उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा अवधिलब्धि से रहित