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उदीरणाकरण ]
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उदय
जो कर्मदलिक कालक्रम से उदय को प्राप्त होते हुए अनुभव किया जाता है, वह सम्प्राप्त कहलाता है यत् कर्मदलिकं कालप्राप्तं सत् अनुभूयते स संप्राप्त्युदयः । इसका स्पष्ट आशय यह है कि कालक्रम से उदय के कारणभूत द्रव्य क्षेत्र आदि सामग्री की प्राप्ति होने पर कर्मदलिक का उदय होना सम्प्राप्त उदय है - कालक्रमेण कर्मदलिकस्योदयहेतुद्रव्यक्षेत्रादिसामग्रीसंप्राप्तौ सत्यामुदयः संप्राप्त्युदयः । और जो अकाल प्राप्त कर्मदलिक वीर्यविशेषरूप उदीरणाप्रयोग के द्वारा आकर्षित कर कालप्राप्त दलिक के साथ अनुभव किया जाता है, उसे असम्प्राप्त - उदय कहते हैं - यत् पुनरकालप्राप्तं कर्मदलिकमुदीरणा प्रयोगेण वीर्यविशेषसंज्ञितेन समाकृष्य कालप्राप्तेन दलिकेन सहानुभूयते सोऽसंप्राप्त्युदयः । यही उदीरणा कहलाती है । जैसा कि कहा है- जो स्थिति अकाल प्राप्त होती हुई भी उदीरणा प्रयोग के द्वारा पूर्वोक्त स्वरूप वाले सम्प्राप्त उदय में प्रक्षिप्त होती हुई केवल ज्ञानरूप चक्षु द्वारा देखी जाती है, वह स्थिति उदीरणा कहलाती है या स्थितिरकालप्राप्तापि सती प्रयोगतः उदीरणाप्रयोगेण संप्राप्त्युदये पूर्वोक्त स्वरूपे प्रक्षिप्ता सती दृश्यते केवल चक्षुषा सा स्थित्युदीरणा ।
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इस प्रकार स्थितिउदीरणा के लक्षण का निर्देश करने के पश्चात अब स्थितिउदीरणा के भेद बतलाते हैं । भेद प्ररूपणा के लिये गाथा में सेचीकेत्यादि पद आया है । सेचीका शब्द का अर्थ है कि जितनी स्थितियों की भेद कल्पना संभव है वे पूर्व पुरुषों की परिभाषा के अनुसार ( सांकेतिक शब्द से) सेचीका कही जाती है' - यासां स्थितीनां भेद परिकल्पना संभवति ताः पूर्वपुरुषपरिभाषया सेचीका इत्युच्यते । वे सिथतियां दो प्रकार की हैं १. उदीरणा के योग्य और २. उदीरणा के अयोग्य ।
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प्रश्न
कौन स्थितियां उदीरणा के योग्य हैं और कौन अयोग्य है ?
उत्तर
संकमबंधुदयुवट्टणालिगाईण करणाई इस नियम के अनुसार बंधावलिका गत, संक्रमावलिका गत और उदयावलिका गत स्थितियां उदीरणा के अयोग्य हैं । और शेष सभी स्थितियां प्रायः उदीरणा प्रायोग्य होती हैं। इनमें से उदय होने पर जिन प्रकृतियों का उत्कृष्ट बंध संभव है, उन प्रकृतियों की उत्कृष्ट से दो आवलिका से हीन शेष सभी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणा के योग्य होती है । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
उदयोत्कृष्ट अर्थात् अपने उदय में ही जिन प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति बंधती है, उन प्रकृतियों की बंधावलिका बीत जाने पर उदयावलि से वहिर्भूत सभी स्थितियां उदीरणा को प्राप्त होती हैं और अनुदयोत्कृष्ट बंधने वाली प्रकृतियों की स्थितियां यथासंभव उदीरणा के योग्य होती हैं । दो
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१. इसे सेवीका भी कहते हैं "सेव्यंते भेद कल्पनां प्रत्यसक्षियन्ते इति सेविका "