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उदीरणाकरण ]
[ २२९ अन्य सभी अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा है और वह ध्रुव उदीरणा रूप होने से अनादि है। ध्रुव, अध्रुव, विकल्प, अभव्य और भव्य की अपेक्षा जानना चाहिये।
____ 'तेवीसाए अजहण्णा' इत्यादि अर्थात् पांच ज्ञानावरण, चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवलदर्शनावरणचतुष्क, कृष्ण, नील वर्ण, दुरभिगंध, तिक्त, कटु रस, रूक्ष, शीत स्पर्श, अस्थिर, अशुभ और पांच अन्तराय इन तेईस प्रकृतियों की अजघन्य अनुभाग उदीरणा तीन प्रकार की होती है, यथा - अनादि, ध्रुव, अध्रुव। वह इस प्रकार समझना चाहिये कि -
इन प्रकृतियों की जघन्य अनुभाग उदीरणा अपने अपने उदीरणाकाल के अंतिम समय में होती है, इसलिये वह सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी अजघन्य है और वह ध्रुव उदीरणा रूप होने से अनादि है। ध्रुव और अध्रुव विकल्प अभव्य और भव्य की अपेक्षा से होते हैं।
'एयासि' इत्यादि अर्थात् इन पूर्वोक्त प्रकृतियों के ऊपर कहे गये विकल्पों के सिवाय शेष विकल्प यानी मृदु लघु आदि बीस प्रकृतियों के जघन्य, अजघन्य और उत्कृष्ट विकल्प तथा मिथ्यात्व गुरु और कर्कश आदि तेईस प्रकृतियों के उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य विकल्प सादि और अध्रुव होते हैं । वे इस प्रकार जानना चाहिये कि -
_ मृदु लघु तथा तैजससप्तक आदि बीस प्रकृतियों की जघन्य और अजघन्य अनुभाग उदीरणा मिथ्यादृष्टि में पर्याय, (क्रम) से पायी जाती है। इसलिये ये दोनों सादि, अध्रुव हैं । उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा पहले बतायी जा चुकी है। कर्कश, गुरु, मिथ्यात्व एवं पंचविध ज्ञानावरण आदि तेईस प्रकृतियों की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा मिथ्यादृष्टि में क्रम से पायी जाती है । क्योंकि ये अशुभ प्रकृतियां हैं । इसलिये वे दोनों उदीरणा सादि और अध्रुव हैं । जघन्य अनुभाग-उदीरणा पहले कही गई है।
'सव्वविगप्पा सेसाणं' अर्थात् ऊपर कही गई प्रकृतियों से शेष रही एक सौ दस प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट जघन्य अजघन्य रूप सभी विकल्प सादि और अध्रुव हैं। और यह सादिता और अध्रुवता अध्रुव-उदीरणा रूप से जानना चाहिये।
इस प्रकार मूल और उत्तरप्रकृति विषयक सादि अनादि प्ररूपणा का विचार किया गया। स्वामित्व प्ररूपणा
अब स्वामित्व प्ररूपणा करते हैं । वह दो प्रकार की है - १. उत्कृष्ट उदीरणा विषयक और २. जघन्य उदीरणा विषयक। इनमें से पहले उत्कृष्ट उदीरणा विषयक स्वामित्व को बतलाते हैं -