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[ कर्मप्रकृति
सेसगविगप्पा – शेष विकल्प, सव्वविगप्पा – सर्व विकल्प, सेसाण – शेष प्रकृतियों के, वाविभी, अधुवा य साईया - अध्रुव और सादि।
गाथार्थ - मृदु, लघु की अनुत्कृष्ट उदीरणा तथा तीन की अजघन्य उदीरणा चार प्रकार की होती है। बीस प्रकृतियों की अनुत्कृष्ट उदीरणा अनादि ध्रुव और अध्रुव होती है । तेईस प्रकृतियों की अजघन्य उदीरणा तीन प्रकार की होती है। इनके शेष विकल्प तथा शेष प्रकृतियों के सर्व विकल्प सादि और अध्रुव होते हैं।
विशेषार्थ - मृदु और लघु की अनुत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा चार प्रकार की होती है, यथासादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव। वह इस प्रकार है कि -
इन दोनों प्रकृतियों की उत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा आहारकशरीरस्थित संयत के होती है और वह सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी अनुत्कृष्ट उदीरणा है । वह भी आहारकशरीर का उपसंहार करते समय संयत के सादि है और उस स्थान को अप्राप्त जीव के अनादि है। ध्रुव अध्रुव विकल्प अभव्य और भव्य की अपेक्षा से जानना चाहिये।
"तिण्हमवि य' इत्यादि अर्थात् तीन की भी यानी मिथ्यात्व, गुरु और कर्कश इन तीन प्रकृतियों की भी अजघन्य अनुभाग-उदीरणा चार प्रकार की होती है, यथा – सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव। वह इस प्रकार है कि -
- सम्यक्त्व और संयम को युगपत् प्राप्त करने के इच्छुक जीवों को मिथ्यात्व की जघन्यउदीरणा होती है और वह सादि और अध्रुव होती है। उससे अन्य सभी अजघन्य उदीरणा है जो सम्यक्त्व से गिरते हुए जीव के होती है, अतः सादि है । उस स्थान को अप्राप्त जीव को अनादि है। ध्रुव
और अध्रुव विकल्प पूर्ववत् अभव्य और भव्य की अपेक्षा जानना चाहिये। कर्कश और गुरु स्पर्श की जघन्य अनुभाग-उदीरणा केवली समुद्घात से निवर्तमान केवली के छठे समय में होती है, अतः वह सादि और अध्रुव है। क्योंकि वह केवल एक समय मात्र होती है। उससे अन्य सभी अजघन्य उदीरणा है। जो केवली समुद्घात से निवर्तमान केवली के सातवें समय में होती है, अतः सादि है। ध्रुव अध्रुव विकल्प पूर्व के समान जानना चाहिये।
- 'वीसाए' अर्थात् तैजससप्तक, मृदु, लघु को छोड़ कर शेष शुभ वर्णादि नवक, अगुरुलघु, स्थिर, शुभ, निर्माण नाम रूप बीस प्रकृतियों की अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा तीन प्रकार की होती है, यथा – अनादि, ध्रुव, अध्रुव। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है -
इन बीस प्रकृतियों की उत्कृष्ट उदीरणा सयोगी केवली के चरम समय में होती है। उससे