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[ कर्मप्रकृति की बारह कषाय, छह नोकषाय, नरकायु, देवायु, नरकगति, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, तैजससप्तक, वैक्रियसप्तक, आहारकसप्तक, समचतुरस्रसंस्थान, हुंडकसंस्थान, वर्णपंचक, गंधद्विक, रसपंचक, स्निग्ध, रूक्ष, मृदु, लघु शीत और उष्ण, स्पर्शषट्क, अंगुरुलघु, उपघात, पराघात, उच्छ्वास, उद्योत, प्रशस्तविहायोगति, अप्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुःस्वर, आदेय, अनादेय, यश:कीर्ति, अयश:कीर्ति, निर्माण, तीर्थंकर, उच्चगोत्र और नीचगोत्र । कुल मिलाकर शेष कर्म रूप ये एक सौ एक प्रकृतियां हैं।
अनुभाग उदीरणा की अपेक्षा उक्त शेष कर्म रूप एक सौ एक प्रकृतियां का उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा में चतु:स्थानक रस होता है और अनुत्कृष्ट उदीरणा की अपेक्षा उनका चतु:स्थानक, त्रिस्थानक और द्विस्थानक रस होता है।
मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यायज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण का रस उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा की अपेक्षा सर्वघाती है किन्तु अनुत्कृष्ट उदीरणा की अपेक्षा सर्वघाति भी है और देशघाति भी है।
: केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रापंचक, मिथ्यात्व, आदि की बारह कषाय इन बीस प्रकृतियों का रस उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा की अपेक्षा सर्वघाति है।
सातावेदनीय, असातावेदनीय, आयुचतुष्क और नामकर्म की सम्पूर्ण प्रकृतियां तथा गोत्रद्विक, इनका रस उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट उदीरणा की अपेक्षा सर्वघाति का प्रतिभाग है।
चारों संज्वलन और नोकषाय, इनका रस उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा की अपेक्षा सर्वघाति है और अनुत्कृष्ट उदीरणा की अपेक्षा सर्वघाति और देशघाति जानना चाहिये।
अब अशुभ प्रकृतियों के विषय में विशेषता कहते हैं - 'मीसग' इत्यादि अर्थात् सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व मोहनीय को अनुभाग उदीरणा की अपेक्षा पापकर्मों में जानना चाहिये। क्योंकि घाति स्वरूप होने से उन दोनों का रस अशुभ होता है। शेष प्रकृतियां तो जिस तरह शतक ग्रंथ के अनुभागबंध में शुभ और अशुभ बताई हैं उसी प्रकार यहां पर भी जानना चाहिये।
प्रश्न – अनुभाग सत्कर्म में वर्तमान उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किस प्रकार होती है ?
उत्तर – 'छट्ठाणवडियहीणा' इत्यादि अर्थात् अनुभागसत्व के षट्स्थानपतित हीन, रस में उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा करता है। इसका तात्पर्य यह है कि -
जो सर्वोत्कृष्ट अनुभागसत्व है, उसमें अनन्त भागहीन अथवा असंख्यात भागहीन अथवा संख्यात भागहीन अथवा संख्यात गुणहीन असंख्यात गुणहीन अनन्तगुणहीन उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा